MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 3 भारत में उद्योग
MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 3 भारत में उद्योग
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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 3 भारत में उद्योग
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 पाठान्त अभ्यास
महत्त्वपूर्ण तथ्य
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
भारत की औद्योगिक नीति की घोषणा किस वर्ष में की गई? (2014)
(i) 1947
(ii) 1951
(iii) 1948
(iv) 1972
उत्तर:
(iii) 1948
प्रश्न 2.
भारत के सूती वस्त्र की ‘राजधानी’ है –
(i) अहमदाबाद
(ii) मुम्बई
(iii) इलाहाबाद
(iv) इन्दौर
उत्तर:
(ii) मुम्बई
प्रश्न 3.
भारत में नोट छापने के कागज बनाने का कारखाना किस स्थान पर है ?
(i) नेपानगर
(ii) टीटागढ़
(iii) सहारनपुर
(iv) होशंगाबाद।
उत्तर:
(iv) होशंगाबाद।
प्रश्न 4.
निम्नांकित उद्योगों में सबसे अधिक वायु प्रदूषण किसमें होता है ?
(i) दियासलाई उद्योग
(ii) कागज उद्योग
(iii) रासायनिक उद्योग
(iv) फर्नीचर उद्योग।
उत्तर:
(iii) रासायनिक उद्योग
प्रश्न 5.
मध्य प्रदेश लघु वनोपज व्यापार एवं विकास सहकारी संघ की स्थापना का वर्ष है
(i) 1984
(ii) 1994
(iii) 2004
(iv) 1974
उत्तर:
(i) 1984
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मनुष्य का वस्तु निर्माण करने का कार्य उद्योग कहलाता है। उद्योग की इस प्रक्रिया में मानव कच्चे माल का उपयोग कर श्रम, शक्ति व तकनीक के माध्यम से आवश्यकतानुसार पक्का माल तैयार करता है।
प्रश्न 2.
कागज उद्योग का कच्चा माल क्या है?
उत्तर:
भारतीय कागज उद्योग में प्रयोग होने वाले कच्चे माल निम्नलिखित हैं –
- वनों से प्राप्त कच्चा माल-53 प्रतिशत
- कृषि उपजों से मिलने वाला कच्चा माल-23 प्रतिशत
- रद्दी कागज-15 प्रतिशत
- अन्य प्रकार का कच्चा माल-9 प्रतिशत।
प्रश्न 3.
भारत का सबसे बड़ा लोहा इस्पात कारखाना कौन-सा है ?
उत्तर:
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (टिस्को) जमशेदपुर में स्थापित।
प्रश्न 4.
प्रदूषण से क्या आशय है ?
उत्तर:
प्रदूषण का अर्थ-वायु, जल और भूमि में किसी भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक अनचाहे परिवर्तन से, जिससे प्राणी मात्र का स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण को प्रभावी तौर से हानि पहुँचती हो, तो उसे प्रदूषण कहते हैं।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों के कितने प्रकार हैं ? (2014)
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर उद्योग चार प्रकार के होते हैं –
- निजी उद्योग-इस प्रकार के उद्योग व्यक्तिगत स्वामित्व में होते हैं।
- सरकारी उद्योग-वे उद्योग जो सरकार के स्वामित्व में होते हैं।
- सहकारी उद्योग-जो सहकारी स्वामित्व में होते हैं।
- मिश्रित उद्योग-जो उपर्युक्त में से किन्हीं दो या अधिक के स्वामित्व में होते हैं।
प्रश्न 2.
कच्चे माल के आधार पर उद्योग कितने प्रकार के होते हैं ? (2009, 11)
उत्तर:
कच्चे माल के आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं –
- कृषि आधारित उद्योग-जिन्हें कच्चा माल कृषि उत्पादन से प्राप्त होता है; जैसे – सूती वस्त्र उद्योग।
- खनिज आधारित उद्योग-जिन्हें कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है; जैसे – लोहा-इस्पात उद्योग।
- वन आधारित उद्योग-जिन्हें कच्चा माल वनों से प्राप्त होता है; जैसे – कागज उद्योग।
प्रश्न 3.
लोहा-इस्पात उद्योग आधारभूत’ उद्योग क्यों कहलाता है ? (2009, 13, 18)
उत्तर:
लोहा एवं इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योगों में से एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है। किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए लोहा एवं इस्पात उद्योग का विकास आवश्यक होता है। इस उद्योग की गणना महत्वपूर्ण उद्योगों में की जाती है। यह किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का आधार-स्तम्भ होता है। यह आधुनिक औद्योगिक ढाँचे का आधार और राष्ट्रीय शक्ति का मापदण्ड है। लोहा-इस्पात उद्योग का उपयोग मशीनें, रेलवे लाइन, यातायात के साधन, रेल-पुल, जलयान, अस्त्र-शस्त्र एवं कृषि-यन्त्र आदि बनाने में किया जाता है। इसीलिए लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग कहा जाता है।
प्रश्न 4.
पश्चिम बंगाल में कागज उत्पादक केन्द्र किन-किन स्थानों पर हैं ? (2011)
उत्तर:
पश्चिम बंगाल में प्रमुख कागज उत्पादक केन्द्र टीटागढ़, रानीगढ़, नैहाटी, कोलकाता, काँकिनाडा, बड़ानगर, शिवराफूली आदि हैं। पश्चिम बंगाल का कागज उद्योग में राष्ट्रीय उत्पादन का 40 प्रतिशत योगदान है।
प्रश्न 5.
वनोपज आधारित कुटीर व लघु उद्योगों की स्थापना की आवश्यकता बताइए।
उत्तर:
वनों में रहने वाले हमारे वनवासियों एवं गाँवों में रहने वाले ग्रामीणों के क्षेत्र में उद्योग-धन्धों की कमी है। इस कमी को वनोपज आधारित लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रारम्भ कर दूर किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और लोगों की आय व जीवनस्तर में वृद्धि हो सकेगी।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में उद्योग कितने प्रकार के हैं ? वर्णन कीजिए। (2010)
अथवा
भारत में उद्योग कितने प्रकार के हैं ? स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्णन करिए। (2015)
अथवा
आकार के आधार पर उद्योगों के कितने प्रकार हैं ? किन्हीं दो का वर्णन कीजिए। (2014,16)
[संकेत : ‘आकार के आधार पर’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
भारत में उद्योगों के प्रकार
(1) स्वामित्व के आधार पर – लघु उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
(2) उपयोगिता के आधार पर-इस आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं
- आधारभूत उद्योग-वे उद्योग जो अन्य उद्योगों के आधार होते हैं। इनके उत्पादन अन्य उद्योगों के निर्माण तथा संचालन के काम आते हैं; जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग।
- उपभोक्ता उद्योग-वे उद्योग जो लोगों की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के काम आते हैं; वस्त्र, चीनी, कागज आदि।
(3) आकार के आधार पर-इस आधार पर उद्योग चार प्रकार के होते हैं
- वृहद् उद्योग-औद्योगिक इकाइयाँ जिनमें पूँजी निवेश 10 करोड़ रुपये या उससे अधिक है; जैसे-टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी।
- मध्यम उद्योग-जिन उद्योगों में पूँजी निवेश 5 से 10 करोड़ रुपये के मध्य होता है; जैसे-चमड़ा उद्योग।
- लघु उद्योग-जिनमें कुल पूँजी निवेश 2 से 5 करोड़ रुपये तक है; जैसे-लाख उद्योग।
- कुटीर उद्योग-जिनमें पूँजी निवेश नाममात्र का होता है तथा परिवार के सदस्यों की सहायता से चलाए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में स्थित होने पर यह ग्रामीण उद्योग तथा नगर में स्थित होने पर नगरीय कुटीर उद्योग कहे जाते हैं।
(4) तैयार माल की प्रकृति के आधार पर इस आधार पर उद्योग दो प्रकार के हैं
- भारी उद्योग – जिनमें भारी वस्तुओं, मशीनों आदि का निर्माण किया जाता है; जैसे-ट्रैक्टर बनाने का कारखाना।
- हल्के उद्योग – जिनमें दैनिक उपयोग की छोटी-छोटी वस्तुओं का निर्माण किया जाता है; जैसे-खिलौना उद्योग।
(5) कच्चे माल के आधार पर – लघु उत्तरीय प्रश्न 2 का उत्तर देखें।
प्रश्न 2.
भारत में लोहा इस्पात उद्योग किन चार चरणों में केन्द्रित है और क्यों है ?
अथवा
लोहा-इस्पात उद्योग के उत्पादन एवं वितरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग
प्राचीन काल में भारत में यह लघु उद्योग के रूप में था। वृहद् पैमाने का भारत का प्रथम लोहा-इस्पात कारखाना सन् 1907 में जमशेद जी टाटा द्वारा झारखण्ड राज्य के साकची नामक स्थान पर खोला गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार द्वारा विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से इस उद्योग के क्रमबद्ध व तीव्र विकास के प्रयास किए गए। यह उद्योग सार्वजनिक व निजी दोनों ही क्षेत्रों में विकसित हुआ। भारत सरकार ने इन उद्योगों में समन्वय स्थापित करने हेतु ‘स्टील ऑथोरिटी ऑफ इण्डिया’ (SAIL) की स्थापना की जो विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक संस्था है।
यह उद्योग मुख्यत: चार क्षेत्रों में केन्द्रित है –
- कोयला क्षेत्रों में स्थित इस्पात केन्द्र-बर्नपुर, हीरापुर, कुल्टी, दुर्गापुर तथा बोकारो।
- लौह-अयस्क क्षेत्रों में स्थित इस्पात केन्द्र-भिलाई, राउरकेला, भद्रावती, सलेम, विजयनगर और चन्द्रपुर लौह-अयस्क खानों के समीप स्थित है।
- कोयला व लौह-अयस्क के बीच जोड़ने वाले परिवहन सुविधा प्राप्त स्थानों पर स्थित इस्पात केन्द्र-जमशेदपुर।
- तटीय सुविधा स्थल पर स्थित इस्पात केन्द्र-विशाखापट्टनम
लोहा इस्पात संयन्त्र
प्रश्न 3.
भारत में कागज उद्योग के उत्पादन व विपणन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कागज उद्योग
देश के सामाजिक, आर्थिक विकास में कागज उद्योग की अहम् भूमिका है। वन आधारित उद्योगों में कागज को सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्योग माना जाता है। भारत का प्रथम आधुनिक सफल कारखाना 1716 में तमिलनाडु राज्य के ट्रंकुबार नामक स्थान पर स्थापित हुआ।
उद्योग का केन्द्रीकरण – औसतन 1 टन, कागज बनाने के लिए 2.38 टन बाँस की आवश्यकता पड़ती है। अत: भारत में इस उद्योग का केन्द्रीयकरण कच्चे माल के प्राप्ति स्थलों के निकटवर्ती ऐसे भागों में हुआ है जहाँ उद्योग की स्थापना हेतु अन्य आवश्यक भौगोलिक कारक; जैसे-समतल धरातल, परिवहन के साधन, कुशल श्रम व शक्ति के साधन उपलब्ध हैं। भारत के प्रमुख कागज उत्पादन केन्द्र निम्नवत् हैं –
कागज उत्पादन क्षेत्र
अन्य कागज उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, केरल, बिहार, झारखण्ड आदि प्रमुख हैं। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में नोट छापने के कागज का कारखाना स्थापित है।
कागज का उत्पादन – भारतीय कागज उद्योग करीब एक सदी से अस्तित्व में है और इसने उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश के कागज उत्पादन में 35 गुना वृद्धि हुई है। देश में करीब 850 मिले हैं। भारतीय कागज उद्योग में तीन लाख व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रोजगार जबकि दस लाख व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिले हुए हैं।
देश में सभी प्रकार के कागज व गत्ते का उत्पादन 1950-51 में 116 हजार टन था जो 2014-15 में बढ़कर 4,130 हजार टन हो गया।2
हमारे देश में कागज उत्पादन की तुलना में कागज की माँग बहुत बढ़ी है। अत: इस उद्योग में तीव्र विकास अपेक्षित है।
प्रश्न 4.
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के योगदान का वर्णन कीजिए। (2009, 13, 17)
उत्तर:
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान
औद्योगिक आयोग के अनुसार ईसा से पूर्व भी भारत एक औद्योगिक राष्ट्र था। भारत में निर्मित मलमल, रेशमी-वस्त्र, आभूषण आदि विदेशों को निर्यात किए जाते थे, परन्तु अठारहवीं शताब्दी के मध्य में यूरोप में हुई औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप यहाँ के परम्परागत कुटीर उद्योग को भारी हानि हुई। इस कारण देश की अर्थव्यवस्था में उद्योगों का स्थान धीरे-धीरे सीमित होता गया और भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान हो गई।
1 भारत 2018; पृष्ठ 336.
2 आर्थिक समीक्षा 2014-15;A-90.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश के आर्थिक विकास हेतु औद्योगिक विकास की आवश्यकता का अनुभव किया गया। सन् 1950 में ‘राष्ट्रीय योजना आयोग’ की स्थापना हुई। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से भारत के औद्योगिक विकास हेतु चरणबद्ध उद्देश्य निर्धारित किए गए। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के विकास से निम्नलिखित लाभ प्राप्त हुए –
- उद्योगों के विकास से उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तथा जीवन स्तर उन्नत होता है।
- रोजगार के साधनों में वृद्धि होती है। साथ ही मानव संसाधन भी पुष्ट होते हैं।
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि तथा पूँजी का निर्माण होता है।
- उद्योगों के विकास से अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों-कृषि, खनिज, परिवहन आदि में प्रगति होती है।
- अनुसन्धानों को बल मिलता है तथा तकनीक विकसित होती है। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों की वृद्धि दर निम्न प्रकार से हुई –
उद्योग के मूल के अनुसार उत्पादन लागत के आधार पर वास्तविक सकल
घरेलू उत्पाद की वार्षिक वृद्धि दरें
स्त्रोत : आर्थिक समीक्षा 2016 – 17, P – 140. क : नई श्रृंखला।
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में औद्योगिक उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हो रही है, जो कि उद्योगों के अर्थव्यवस्था में बढ़ते महत्त्व को दर्शाती है।
प्रश्न 5.
औद्योगिक प्रदूषण पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
प्रदूषण के कोई चार प्रकारों को समझाइए। (2018)
अथवा
ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं ? (2009)
[संकेत : इसी प्रश्न के उत्तर में ‘ध्वनि प्रदूषण’ शीर्षक देखिए।]
उत्तर:
औद्योगिक प्रदूषण
औद्योगिक प्रगति ने अर्थव्यवस्था को विकसित व उन्नत बनाने में जहाँ अपना महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया वहीं दूसरी ओर पर्यावरण सम्बन्धी ऐसी कठिनाइयों को जन्म दिया जो आज विकराल रूप से हमारे समक्ष खड़ी हैं। आज पर्यावरणविद् इस बात का अनुभव कर रहे हैं कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला कचरा, दूषित जल, विषैली गैस आदि सम्पूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं, पारिस्थितिकी तन्त्र का सन्तुलन बिगड़ रहा है तथा प्रदूषण की स्थिति संकट बिन्दु तक पहुँच गई है और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। औद्योगीकरण से होने वाले प्रमुख प्रदूषण निम्नलिखित हैं –
(1) वायु प्रदूषण – औद्योगिक कारखानों की चिमनियों के कारण निकलने वाला धुआँ वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। विभिन्न उद्योगों से होने वाले प्रदूषण की मात्रा एवं प्रकृति, उद्योग के प्रकार प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल एवं निर्माण आदि पर निर्भर करती है। इस दृष्टि से कपड़ा उद्योग, रासायनिक उद्योग, धातु उद्योग, तेल शोधक एवं चीनी उद्योग अन्य उद्योगों की अपेक्षा अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। इन उद्योगों से वायुमण्डल में, कार्बन डाइ-ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, धूल आदि हानिकारक व विषैले तत्व मिल जाते हैं जो वाय को प्रदूषित करते हैं।
(2) जल प्रदूषण – जल जीवन का आधार है। जल निरन्तर प्रदूषित हो रहा है। इसके प्रमुख कारण कारखानों का कूड़ा-करकट नदियों और जलाशयों में बहाना। कागज और चीनी की मिलें तथा चमड़ा साफ करने के कारखाने अपना कूड़ा-कचरा नदियों में बहा देते हैं या भूमि पर सड़ने के लिए छोड़ देते हैं जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होता है, क्योंकि कूड़े-कचरे का अंश रिस-रिसकर भूमिगत जल में मिल जाता है। इस जल का उपयोग या सम्पर्क प्राणियों और वनस्पतियों के लिए हानिकारक होता है।
(3) भूमि प्रदूषण – इसे मृदा प्रदूषण’ भी कहते हैं। औद्योगिक अपशिष्ट का भूतल पर फैलाव भूमि प्रदूषण का कारण बनता है। इस प्रकार के अपशिष्ट में अनेक ऐसे पदार्थ होते हैं जो प्राकृतिक रूप में घटित नहीं होते तथा इनका प्रकृति में पुन: चक्रीकरण नहीं होता जिससे भूमि की गुणवत्ता में कमी आती है।
(4) ध्वनि प्रदूषण – मानव के कानों में भी ध्वनि को साधारणतया ग्रहण करने की एक सीमा होती है। वास्तव में शोर वह ध्वनि है जिसके द्वारा मानव के अन्दर अशान्ति व बेचैनी उत्पन्न होने लगती है, इसी को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। उद्योगों में अनेक प्रकार की मशीनें प्रयोग की जाती हैं जिनसे निरन्तर शोर होता रहता है। इसके अतिरिक्त कारखानों में जनरेटर भी चलाये जाते हैं। इन सभी से निरन्तर अधिक शोर होता है। इससे इनमें कार्य करने वाले श्रमिक अनेक मानसिक रोगों तथा बहरेपन के शिकार हो जाते हैं।
प्रश्न 6.
औद्योगिक प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय बताइए। (2009)
अथवा
ध्वनि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के कोई चार उपाय लिखिए। (2016)
[संकेत : ‘ध्वनि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय’ शीर्षक देखें।]
अथवा
जल प्रदूषण को रोकने के चार उपाय लिखिए। (2012, 15)
[संकेत : ‘जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
औद्योगिक प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय
औद्योगिक प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए –
वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय
- कारखानों की चिमनियों की ऊँचाई बढ़ाकर उनसे निकलने वाली हानिकारक गैसों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- कारखानों में कम-से-कम प्रदूषण करने वाले ऊर्जा संसाधनों का उपयोग होना चाहिए; जैसे-सौर ऊर्जा।
- औद्योगिक इकाई की स्थापना से पूर्व ही प्रदूषण अनुमान लगाकर उसको नियन्त्रित करने के साधन जैसे वनस्पति आवरण आदि कारखाना परिसर में विकसित किया जाना चाहिए।
- उद्योगों में प्रदूषण नियन्त्रक उपकरण लगाए जाने चाहिए।
जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय
- उद्योगों में प्रयोग किए गए जल के उपचार की व्यवस्था कारखाने की स्थापना के साथ ही की जानी चाहिए।
- रासायनिक उद्योग जो कि जल को सर्वाधिक प्रदूषित करते हैं को जलाशयों व नदियों से दूर स्थापित किया जाना चाहिए।
- सड़क के किनारे तथा कारखानों के निकट खाली स्थानों पर वृक्ष लगाये जाने चाहिए।
- उद्योग संचालकों को जल प्रदूषण नियन्त्रण परामर्श नियमित दिए जाने चाहिए तथा उद्योगों से विसर्जित जल की प्रशासनिक निगरानी होनी चाहिए।
भू-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय
- औद्योगिक संस्थानों को अपने अपशिष्ट पदार्थों को बिना उपचार किए विसर्जित करने से रोका जाना चाहिए।
- औद्योगिक अपशिष्टों के निक्षेपण की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। अपशिष्ट निक्षेपण खुले स्थानों में नहीं होना चाहिए।
- अपशिष्टों को आधुनिक तकनीक से जलाकर उससे उत्पन्न ताप को ऊर्जा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- औद्योगिक अपशिष्टों को पुनरुत्पादन हेतु प्रयुक्त करने की तकनीक विकसित की जानी चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय
- औद्योगिक इकाइयों को शहर से दूर स्थापित करना चाहिए।
- कारखानों में ध्वनिनिरोधक यन्त्रों का उपयोग किया जाना चाहिए।
- कल कारखानों में मशीनों का रख-रखाव सही करके, मशीनों का शोर कम किया जा सकता है। खराब मशीनें अधिक शोर करती हैं।
- अधिक शोर उत्पन्न करने वाली औद्योगिक इकाइयों में श्रमिकों को कर्ण बन्दकों का प्रयोग करना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए औद्योगिक विकास अवरुद्ध न किया जाए बल्कि औद्योगिक विकास नियोजित ढंग से हो, जिससे पर्यावरण में किसी भी प्रकार का असन्तुलन उत्पन्न न हो।
प्रश्न 7.
मध्य प्रदेश में वन क्षेत्रों में कुटीर एवं लघु उद्योग की स्थापना हेतु सुझाव कीजिए।
उत्तर:
मध्य प्रदेश वन सम्पन्न प्रदेश है। अतः इन क्षेत्रों में कुटीर एवं लघु उद्योग की स्थापना करने हेतु कुछ प्रयास अनिवार्य हैं। यहाँ कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं
(1) कार्यस्थल की व्यवस्था – उद्योग को चलाने के लिए उपयुक्त कार्यस्थल की व्यवस्था वनवासी स्वयं नहीं कर सकते अतः इसकी व्यवस्था सहकारी समितियों व शासन द्वारा आर्थिक सहायता से की जानी चाहिए।
(2) वित्तीय सुविधा – उद्योग कोई-सा भी लगाया जाए कम या अधिक मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। आदिवासी एवं वनवासियों को इसका अभाव होता है। अतः प्राथमिक, सहकारी समितियों के माध्यम से ऋण आपूर्ति की व्यवस्था उद्योग स्थापना के लिए आर्थिक सहायता से की जानी चाहिए।
(3) तकनीकी सहायता – अच्छे उत्पादन हेतु तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता भी होती है। अतः क्षेत्रीय उद्योग की आवश्यकता को देखते हुए तकनीशियनों की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
(4) विज्ञापन की व्यवस्था – वर्तमान युग विज्ञापन का युग है। हर उत्पाद की बिक्री विज्ञापनों के माध्यम से होती है। हमारे कुटीर व लघु उद्योग चलाने वाले उत्पादकों के पास इतने साधन नहीं होते कि वे विज्ञापन पर खर्च कर सकें। अतः यह दायित्व भी प्रशासन का होता है कि वे इनका प्रचार-प्रसार करवाएँ।
(5) विपणन की व्यवस्था – वनोपज आधारित कुटीर एवं लघु उद्योग उसी शर्त पर सफल हो सकते हैं, जबकि उनके उत्पादों की बिक्री की उचित व्यवस्था हो। माल के बिकने से ही आय की प्राप्ति होगी। इसके लिए मेले व प्रदर्शनियों के साथ-साथ इनके सहकारी बिक्री स्टोर्स आदि की व्यवस्था होनी चाहिए।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय
प्रश्न 1.
अखबारी कागज की मिल कहाँ हैं ?
(i) टीटागढ़
(ii) सहारनपुर
(iii) नेपानगर,
(iv) राजमहेन्द्री।
उत्तर:
(iii) नेपानगर,
प्रश्न 2.
भिलाई इस्पात संयन्त्र कहाँ है?
(i) उत्तर प्रदेश
(ii) बिहार
(iii) मध्य प्रदेश
(iv) उड़ीसा।
उत्तर:
(iii) मध्य प्रदेश
प्रश्न 3.
दुर्गापुर इस्पात संयन्त्र कहाँ है ?
(i) मध्य प्रदेश
(ii) पश्चिम बंगाल
(iii) बिहार
(iv) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(iii) बिहार
प्रश्न 4.
भारत का सबसे प्राचीन और प्रमुख उद्योग है-
(i) लोह तथा इस्पात उद्योग
(ii) जूटं उद्योग
(iii) सूती वस्त्र उद्योग
(iv) कागज उद्योग।
उत्तर:
(iii) सूती वस्त्र उद्योग
प्रश्न 5.
कौन-सा उद्योग कृषि पर आधारित नहीं है ?
(i) सूती वस्त्र
(ii) पटसन
(iii) चीनी
(iv) सीमेण्ट
उत्तर:
(iv) सीमेण्ट
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- वे उद्योग जिन पर कई अन्य उद्योग निर्भर होते हैं, उन्हें …………. कहते हैं।
- राउरकेला इस्पात कारखाना …………. के सहयोग से स्थापित किया गया।
- लोहा-इस्पात उद्योग को …………. की संज्ञा प्राप्त है।
- …………. सबसे अधिक का उत्पादन करने वाला राज्य है। (2009)
- टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर …………. राज्य में स्थित है। (2010, 16)
उत्तर:
- आधारभूत उद्योग
- जर्मनी
- आधारभूत उद्योग
- पश्चिम बंगाल
- झारखण्ड।
सत्य/असत्य
- अहमदाबाद को भारत के ‘मानचेस्टर’ की संज्ञा प्रदान की गई है।
- वस्त्र उत्पादन में गुजरात का पहला स्थान है।
- ‘टिस्को’ एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा इस्पात कारखाना है।
- सन् 1950 में ‘राष्ट्रीय योजना आयोग’ की स्थापना हुई।
- प्रदूषण को रोका नहीं जा सकता केवल नियन्त्रित किया जा सकता है।
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- सत्य
- सत्य
- सत्य
जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (ग)
- → (घ)
- → (ङ)
- → (ख)
- → (क)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
कृषि पर आधारित उद्योग कौन-से हैं ?
उत्तर:
चीनी उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, तेल उद्योग, जूट उद्योग।
प्रश्न 2.
एक टन कागज बनाने के लिए कितने टन बाँस की आवश्यकता होगी ? (2009)
उत्तर:
2.38 टन।
प्रश्न 3.
पहला लोहा इस्पात कारखाना कब और कहाँ स्थापित किया गया ?
उत्तर:
सन् 1830 में तमिलनाडु राज्य के पोर्टोनोवो नामक स्थान पर।
प्रश्न 4.
पूर्णत: भारतीय तकनीक पर आधारित कौन-सा इस्पात कारखाना है ?
उत्तर:
विजयनगर इस्पात कारखाना (कर्नाटक में)।
प्रश्न 5.
भारत में प्रथम कागज उद्योग का कारखाना कहाँ स्थापित किया गया ?
उत्तर:
1716 में तमिलनाडु राज्य के ट्रंकुबार नामक स्थान पर।
प्रश्न 6.
भारत के सूती वस्त्र उद्योग की राजधानी। (2009)
उत्तर:
मुम्बई।
प्रश्न 7.
उद्योग स्थापना विस्तार व निवेश की उदार नीति को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
उदारीकरण।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘आधारभूत उद्योग’ से क्या आशय है ?
उत्तर:
जो उद्योग अन्य उद्योगों के विकास के लिए आधार बनाते हैं, उन्हें आधारभूत उद्योग कहा जाता है; जैसे-इस्पात उद्योग एवं भारी इंजीनियरिंग उद्योग और मशीनरी उद्योग।
प्रश्न 2.
भारत में कृषि पर आधारित उद्योग कौन-से हैं ?
उत्तर:
वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, कागज उद्योग, पटसन उद्योग, वनस्पति उद्योग कृषि पर आधारित उद्योग हैं।
प्रश्न 3.
लोहा इस्पात उद्योग कहाँ स्थापित किया जा सकता है ?
उत्तर:
जहाँ इस उद्योग से सम्बन्धित कच्चा माल (लौह अयस्क, कोयला, चूना पत्थर और मैंगनीज) व पर्याप्त मात्रा में शक्ति के साधन उपलब्ध हों।
प्रश्न 4.
कुटीर उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
कुटीर उद्योग से आशय ऐसे उद्योगों से है जो पूर्णतया या मुख्यतया परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्णकालिक या अंशकालिक व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए कौन-कौनसी परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं ?
उत्तर:
- धरातलीय दशाएँ उद्योगों की स्थापना के अनुकूल हैं।
- अधिकांश प्रदेशों में जलवायु दशाएँ सामान्य हैं।
- देश में सस्ता श्रम उपलब्ध है।
- खनिज, वन व कृषि आधारित कच्चे माल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
- परिवहन तन्त्र का फैलाव समुचित है, तथा
- सघन जनसंख्या से विशाल बाजार उपलब्ध है।
प्रश्न 2.
“भारत विश्व अर्थव्यवस्था में एक औद्योगिक राष्ट्र के रूप में उभर रहा है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सन् 1948 में भारत की औद्योगिक नीति घोषित की गई। फलतः उद्योगों को राजकीय और निजी क्षेत्रों में विकसित किया जाने लगा। उद्योगों के विकास हेतु औद्योगिक नीति में सरकार द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किये जाते रहे हैं। भारत की नवीनतम ‘उदारीकरण’ की आर्थिक नीति के अन्तर्गत देश में देशी-विदेशी निवेशकों हेतु उद्योग लगाने के मार्ग खोल दिए हैं। परिणामस्वरूप बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की उद्योग जगत में सहभागिता बढ़ी है और भारत विश्व अर्थव्यवस्था में एक औद्योगिक राष्ट्र के रूप में उभर रहा है।
प्रश्न 3.
आधारभूत उद्योग और उपभोक्ता उद्योग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधारभूत उद्योग और उपभोक्ता उद्योग
आधारभूत उद्योग
- आधारभूत उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग अन्य प्रकार के उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता है; जैसे-लौह-इस्पात उद्योग, भारी मशीन उद्योग
- इन उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग उसी समय समाप्त नहीं होता बल्कि भविष्य में उत्पादन प्रक्रम में योगदान देता है।
- इन उद्योगों से प्राप्त मशीनें अन्य उत्पादों को बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं।
उपभोक्ता उद्योग
- उपभोक्ता उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग प्रायः लोगों के दैनिक उपयोग की वस्तुओं के लिए करते हैं; जैसे-खाने के तेल, चाय, कॉफी, वस्त्र, चीनी आदि।
- इन उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग उसी समय समाप्त हो जाता है। ये उद्योग प्रायः छोटे पैमाने तथा हल्के वर्ग के होते हैं।
- इन उद्योगों से प्राप्त वस्तुएँ सीधी दैनिक जीवन में प्रयोग की जाती हैं।
प्रश्न 4.
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के केन्द्रीकरण को किन-किन बातों ने प्रभावित किया है ?
उत्तर:
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग कच्चे माल के क्षेत्रों में केन्द्रित हैं। कच्चे माल के क्षेत्रों में इस उद्योग की स्थापना का प्रमुख कारण इस उद्योग द्वारा अशुद्ध कच्चे माल का उपयोग करना है इस उद्योग में, लौह-अयस्क, कोयला, मैंगनीज, चूने का पत्थर तथा डोलोमाइट को प्रमुख कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। ये सभी पदार्थ वजनी, मूल्य में सस्ते तथा अशुद्धता से भरे होते हैं। इसीलिए ये प्राप्ति स्थान के समीप ही इस्पात कारखाने की स्थापना को आकर्षित करते हैं।
हमारे देश में लोहा-इस्पात उद्योग के केन्द्रीयकरण को कच्चे माल के अलावा परिवहन की सुविधाओं ने भी प्रभावित किया है। कोयला व लौह-अयस्क की खानों के मध्य रेल सुविधा प्राप्त स्थान इसी कारण इस उद्योग के केन्द्र बने हैं। सस्ते परिवहन के कारण तटीय क्षेत्रों में भी ये उद्योग केन्द्रित हैं।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव बताइए। (2017)
उत्तर:
प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव-प्रदूषित वातावरण सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तन्त्र को हानि पहुँचाता है। मानव जीवन पर इसके प्रमुख दुष्प्रभाव निम्नांकित हैं –
(1) प्रदूषित वायु मानव को श्वसन क्रिया में हानि पहुँचाती है। इससे दमा, निमोनिया, गले में दर्द, खाँसी के साथ ही कैंसर, मधुमेह और हृदय रोग जैसे घातक रोग होते हैं तथा हानिकारक गैसों का वायुमण्डल में अधिक मिश्रण बड़े हादसों को जन्म देता है, जिससे मनुष्य अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं। भोपाल गैस त्रासदी इसी प्रकार की औद्योगिक गैस रिवास का परिणाम थी।
(2) प्रदूषित पेयजल अनेक रोगों के कीटाणु, विषाणु मानव के शरीर में पहुँचकर रोगों को उत्पन्न करते हैं। प्रदूषित जल के सेवन से पेचिश, हैजा, अतिसार, टायफाइड, चर्मरोग, खाँसी, जुकाम, अन्धापन, पीलिया व पेट के रोग हो जाते हैं।
(3) गन्दगी के क्षेत्रों एवं प्रदूषित चीजों पर मक्खी, मच्छर, कीड़े आदि पनपते हैं। गन्दगी युक्त वातावरण में अनेक कीटाणु पैदा होते हैं जो मानव के लिए पेचिश, तपेदिक, हैजा, आँतों के रोग, आँखों में जलन आदि रोग हेतु उत्तरदायी होते हैं।
(4) ध्वनि प्रदूषण का सबसे बुरा प्रभाव सुनने की शक्ति पर पड़ता है। अत्यधिक शोर से व्यक्ति बहरा हो जाता है।
औद्योगीकरण से बढ़ते प्रदूषण और वायुण्डल में बिखरती कार्बन डाइ-ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड से ‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव का जन्म हुआ है। सूर्य की गर्मी वायुमण्डल में कैद हो जाने से धरती के औसत ताप में वृद्धि हो रही है जिससे भूतापन (ग्लोबल वार्मिंग) होने लगी है। इसके दुष्परिणाम मानव जाति के लिए अत्यन्त घातक हैं।