MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन
MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन
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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 6 प्राकृतिक आपदाएँ एवं आपदा प्रबन्धन
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 पाठान्त अभ्यास
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MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित राज्य (2009)
(i) बिहार
(ii) पश्चिमी बंगाल
(iii) असम
(iv) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(ii) पश्चिमी बंगाल
प्रश्न 2.
भूकम्प की दृष्टि से भारत का अत्यधिक प्रभावित क्षेत्र – (2009)
(i) कच्छ
(ii) अरावली पर्वत
(iii) उड़ीसा तट
(iv) गोवा।
उत्तर:
(i) कच्छ
प्रश्न 3.
दिसम्बर 2004 में सुनामी से सबसे अधिक जनहानि हुई थी
(i) तमिलनाडु में
(ii) गुजरात में
(iii) केरल में
(iv) उड़ीसा में।
उत्तर:
(i) तमिलनाडु में
प्रश्न 4.
विश्व स्तर पर पहला भू शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था (2017)
(i) जापान (याकोहामा)
(ii) भारत (बंगलूरु)
(iii) ब्राजील (रियोडिजेनिरो)
(iv) यू. एस. ए. (न्यूयार्क)।
उत्तर:
(iii) ब्राजील (रियोडिजेनिरो)
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भूस्खलन को रोकने के लिए पहाड़ी सड़कों के किनारे क्या किया जाता है ?
उत्तर:
पहाड़ी स्थानों पर सड़कों के किनारे भूस्खलन को रोकने हेतु बनायी गयी पुख्ता दीवारें बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती हैं।
प्रश्न 2.
अचानक उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौनसी हैं ? (2014)
उत्तर:
अचानक उत्पन्न होने वाली आपदाएँ–भूकम्प, सुनामी लहरें, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात, हिम स्खलन, बादल फटना इत्यादि।
प्रश्न 3.
तटबाँध का निर्माण किन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है ?
उत्तर:
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तटबाँधों का निर्माण करके बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
रिक्टर पैमाने पर क्या मापा जाता है ? (2013, 16)
उत्तर:
भूकम्प की मात्रा एवं तीव्रता।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आपदाओं से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
आपदा से आशय – आपदा एक मानवजनित या प्राकृतिक विपत्ति है जिससे निश्चित क्षेत्र में आजीविका तथा सम्पत्ति की हानि होती है, जिसकी परिणति मानवीय वेदना तथा कष्टों में होती है।
अतः वे समस्त घटनाएँ जो प्रकृति में व्यापक रूप से घटित होती हैं और मानव समुदाय को असुरक्षित एवं संकट में डालते हुए मानवीय दुर्बलताओं को दर्शाती हैं, आपदाएँ हैं। जैसे—भूकम्प, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, आग, आतंकवाद, नाभिकीय संकट, रासायनिक संकट, पर्यावरणीय संकट आदि।
प्रश्न 2.
सूखा एवं बाढ़ किसे कहते हैं ? लिखिए। (2011, 18)
उत्तर:
सूखा – सूखा एक प्रमुख आपदा है जो मानवीय चिन्ता का प्रमुख विषय रहा है। हमारे राष्ट्र में बहुत कम ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ सूखे की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। किसी भी क्षेत्र में होने वाली सामान्य वर्षा में 25 प्रतिशत या उससे ज्यादा कमी होने पर उसे सूखे की स्थिति कहा जाता है। गम्भीर सूखे की स्थिति को हम तब कहते हैं जब या तो वर्षा में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी हो या दो वर्षों तक निरन्तर वर्षा न हो।
सिंचाई आयोग की 1972 की रिपोर्ट के अनुसार देश के वे क्षेत्र जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम हो, साथ ही कुल वार्षिक वर्षा में सामान्य से 25 प्रतिशत तक परिवर्तन हो, सूखाग्रस्त क्षेत्र कहा गया है।
बाढ़ – किसी बड़े भू-भाग में किन्हीं भी कारणों से हुआ जलभराव जिससे जन-धन की हानि होती है, बाढ़ कहलाती है। जलाशयों में पानी की वृद्धि होने या भारी वर्षा के कारण नदी के अपने किनारों को लाँघने या तेज हवाओं या चक्रवातों के कारण बाँधों के फटने से विशाल क्षेत्रों में अस्थायी रूप से पानी भरने से बाढ़ आती है।
प्रश्न 3.
भूस्खलन की आपदा से बचने के लिए प्रयुक्त तीन चरणों को लिखिए।
उत्तर:
भूस्खलन की आपदा से बचने के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं –
(1) आपदा संकट मानचित्रण – सर्वप्रथम आपदा संकट मानचित्रण करके भूस्खलन के क्षेत्रों का पता लगाना आवश्यक होता है। ऐसा करने से यह पता लग सकेगा कि बस्तियाँ बसाने के लिए कौन-कौनसे क्षेत्रों से बचा जाए।
(2) प्राकृतिक वनस्पति को बढ़ावा – पहाड़ी ढालों पर प्राकृतिक वनस्पति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वनस्पतिविहीन ऊपरी ढालों पर उपयुक्त प्रजातियों के वृक्षों को रोपित करके पुनः वनस्पति युक्त बनाया जाना आवश्यक है।
(3) मजबूत बुनियाद के नक्शे मजबूत बुनियाद के साथ नक्शे तैयार करके बनाए गए भवन भूमि की संचलन शक्ति को सहन कर लेते हैं। भूमि के नीचे बिछाए गये पाइप तथा केबल्स लचीले होने चाहिए ताकि वे भूस्खलन से उत्पन्न दबाव का सामना आसानी से कर सकें।
भूस्खलन को रोकने का सबसे सस्ता और प्रभावी तरीका है वनस्पति आच्छादन का विस्तार करना। ऐसा करने से मिट्टी की ऊपरी परत निचली परत के साथ जुड़ जाती है। अत्यधिक अपवाह और भूक्षरण को भी इससे रोका जा सकता है।
प्रश्न 4.
सुनामी से क्या आशय है ?
उत्तर:
सुनामी – भूकम्प और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में अचानक हलचल उत्पन्न होती है और महासागरीय जल का अचानक विस्थापन होता है। परिणामस्वरूप समुद्री जल में उर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं। इन्हें सुनामी या भूकम्पीय समुद्री लहरें कहा जाता है।
सामान्यतया प्रारम्भ में सिर्फ एक ऊर्ध्वाधर तरंग ही उत्पन्न होती है, परन्तु कालान्तर में जल-तरंगों की एक श्रृंखला बन जाती है। महासागर में जल तरंग की गति जल की गहराई पर निर्भर करती है। जल तरंग का गति उथले समुद्र में कम और गहरे समुद्र में ज्यादा होती है। गहरे समुद्र में सुनामी लहरों की लम्बाई अधिक होती है और ऊँचाई कम। उथले समुद्र में किनारों पर इन लहरों की ऊँचाई 15 मीटर या इससे अधिक हो सकती है। इससे तटीय क्षेत्र में भीषण विध्वंस होता है।
प्रश्न 5.
हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
भू-संरचना की दृष्टि से हिमालय नवीन पर्वतीय श्रृंखला वाला क्षेत्र है। यह पर्वतीय क्षेत्र अभी भी अपने निर्माण की अवस्था में है इसलिए समस्त हिमालय क्षेत्र सक्रिय भूकम्पीय क्षेत्रों के अन्तर्गत है। यहाँ निरन्तर ही प्राचीन काल से अनेक विनाशकारी भूकम्प आते रहे हैं। भारतीय हिमालय के मध्यवर्ती भाग में स्थित विशाल मैदान भी भूकम्प प्रभावित क्षेत्र है। 1988 में बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर अंजारिया में विनाशकारी भूकम्प आया था जिसका प्रभाव मधुबनी और दरभंगा पर पड़ा था।
प्रश्न 6.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं ?
उत्तर:
सूखे का सबसे महत्वपूर्ण कारण वर्षा का कम होना तथा असमान वितरण है। पश्चिमी तथा मध्य भारत में वर्षा की अनिश्चितता रहती है। यहाँ वर्षा केवल वर्षा ऋतु में ही होती है। इसलिए इसकी मात्रा कम रहती है। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा पड़ते हैं।
प्रश्न 7.
भारत में सुनामी प्रभावित प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं ? (2009, 11)
उत्तर:
सुनामी आपदा के क्षेत्र – समुद्रतटीय क्षेत्र सुनामी आपदा के प्रभाव क्षेत्र हैं। सुनामी आपदा के क्षेत्रों में प्रमुखतया तमिलनाडु, केरल, आन्ध्र प्रदेश, पाण्डिचेरी और अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह आदि हैं।
प्रश्न 8.
प्राकृतिक आपदाओं के लिए वनों का विदोहन (या विनाश) उत्तरदायी है। क्या यह सच है ? समझाइए। (2009, 14)
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएँ वे समस्त घटनाएँ हैं जो प्रकृति में विस्तृत रूप से घटित होती हैं और जिनका प्रभाव विनाशकारी होता है; जैसे – सूखा, बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन एवं सुनामी आदि। इन आपदाओं के लिए प्रमुख रूप से वनों का विदोहन उत्तरदायी है। वनों से ही मिट्टी को पोषण तत्व प्राप्त होते हैं, मृदा अपरदन से रक्षा होती है, वर्षा में वृद्धि होती है। वन विनाश से प्राकृतिक जल धाराओं का सूखना, वर्षा कम होने से भूमिगत जल स्तर का नीचा होना, नदियों के जल स्तर का गिरना जिससे सूखे की प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्राकृतिक आपदाओं के लिए वनों का विनाश (विदोहन) उत्तरदायी है।
प्रश्न 9.
महामारी कैसे फैलती है ? स्पष्ट कीजिए। (2009, 13)
अथवा
महामारी आपदा से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख कारण लिखिए। (2009)
उत्तर:
महामारी को किसी ऐसे रोग या स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य घटना के रूप में परिभाषित किया जाता है जो असाधारण या अप्रत्याशित रूप से बड़े पैमाने पर फैल जाती है। महामारी या प्रकोप की स्थिति तब होती है जब किसी रोग विशेष से ग्रस्त मामलों की संख्या अनुमान से बहुत अधिक हो जाती है। कोई भी महामारी तेजी के साथ या अचानक फैल सकती है।
महामारी के प्रमुख कारण विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ अथवा कवक होते हैं। खाद्य पदार्थ एवं पेयजल का प्रदूषण, बारिश के मौसम में मच्छरों की वृद्धि, पर्यटक एवं प्रवासी लोगों की अत्यधिक भीड़ तथा वातावरण पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव भी महामारी का प्रकोप लाता है।
प्रश्न 10.
आपदा प्रबन्धन से क्या आशय है ? आपदा प्रबन्ध के मुख्य तत्व बताइए। (2009, 13, 15, 17)
अथवा
“आपदा प्रबन्धन का ज्ञान प्रत्येक विद्यार्थी को होना चाहिए।” क्यों ? (2010)
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन का आशय – आपदा प्रबन्धन क्रियाकलापों की एक ऐसी श्रृंखला है जो आपदा से पहले और उसके बाद ही नहीं बल्कि एक दूसरे के समानान्तर भी चलती रहती है। यह व्यवस्था विस्तार और संकुचन मॉडल से भी अधिक है। इस व्यवस्था में यह मानकर चला जाता है कि आपदा सम्भावित समुदाय के भीतर आपदा की रोकथाम, उसके दुष्प्रभाव को कम करने, जवाबी कार्यवाही और सामान्य जीवन स्तर पर लौटने के लिए पर्याप्त उपाय होते हैं, तथापि विभिन्न घटक, संकट और समुदाय की असुरक्षा की सम्भावना के बीच सम्बन्ध के आधार पर विस्तारित तथा संकुचित होते रहते हैं। अर्थात् आपदा प्रबन्धन ऐसे क्रियाकलापों का एक समूह है जो आपदा के पूर्व या बाद की स्थिति के क्रम में न होकर एक-दूसरे के साथ-साथ चलती हैं।
आपदा प्रबन्धन के चार मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं –
- पहले से तैयारी – इसके अन्तर्गत समुदाय को आपदा प्रभाव से निपटने के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए।
- राहत एवं जवाबी कार्यवाही – आपदा से पहले, आपदा के दौरान और आपदा के तुरन्त बाद किए गए ऐसे उपाय जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आपदा के प्रभाव कम से कम हों।
- सामान्य जीवन स्तर पर लौटना – ऐसे उपाय जो कि भौतिक आधारभूत सुविधाओं के पुनर्निर्माण तथा आर्थिक एवं भावनात्मक कल्याण की प्राप्ति में सहायक हों।
- रोकथाम और दुष्प्रभाव कम करने के लिए योजना – आपदाओं की गम्भीरता तथा उनके प्रभाव को कम करने के उपाय।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बाढ़ आपदा के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन करते हुए उसके नियन्त्रण के उपाय बताइए।
अथवा
बाढ़ नियन्त्रण के कोई चार उपाय लिखिए। (2016)
[संकेत : ‘बाढ़ नियन्त्रण के उपाय’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
बाढ़ के उत्तरदायी कारण
बाढ़ आपदा के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं –
(1) बाँध, तट बाँध एवं बैराज का टूटना-भारत में तटबन्ध टूटने, बाँध टूटने और बैराज से अधिक पानी छोड़े जाने के कारण बाढ़ आती है जिसे ‘क्लेश फ्लड’ कहते हैं। अविवेकपूर्ण तरीके से तट बन्धों का निर्माण होने, पुराने व जीर्ण हो रहे बाँधों के कारण बाढ़ों का खतरा निरन्तर बना रहता है।
(2) नदियों में गाद की मात्रा बढ़ना-हिमालय क्षेत्र में बहने वाली नदियों में मिट्टी और गाद पानी के साथ बहकर मैदानों एवं समुद्र तटीय क्षेत्रों में जमा हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार हिमालय से निकलने वाली गण्डक और सरयू नदियों से प्रतिवर्ष 10 लाख घन फुट मिट्टी जल के साथ बहकर उत्तर प्रदेश के मैदानों में जमा हो रही है। इससे नदियों का तल उठ रहा है और उनकी जल सतह ऊपर उठ रही है। अब प्रतिवर्ष इनकी ये धारा ही बाढ़ का रूप धारण कर रही है।
(3) भूस्खलन होना-पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन द्वारा नदी का मार्ग अवरुद्ध होने से जलाशय बन जाते हैं और फिर उनके अचानक टूटने से प्रलयकारी बातें आती हैं। हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन एक आम क्रिया है।
(4) सडक और निर्माण कार्यों से जल निकासी में व्यवधान पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण, वन कटाई, अनियन्त्रित खनन से पहाड़ों की भूमि अस्थिर हो गई है। हिमालय क्षेत्र में एक किमी. लम्बी सड़क बनाने में औसतन 60,000 घन मीटर मलबा निकलता है। हिमालय क्षेत्र में लगभग 50,000 किमी. लम्बी सड़कों का निर्माण हो चुका है। सड़क निर्मित एकत्रित मलबा भी बाढ़ों को आमन्त्रित करता है।
इसके अतिरिक्त अन्य कारणों में नदियों पर निर्मित बाँधों में तल-छट भरना व पर्यावरण विनाश एवं मृदा अपरदन और निक्षेपण अधिक होना बाढ़ के लिए उत्तरदायी कारण हैं।
बाढ़ नियन्त्रण के उपाय
बाढ़ नियन्त्रण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं –
- नदियों के ऊपरी क्षेत्रों में अनेक जलाशय बनाये जा सकते हैं।
- सहायक नदियों व धाराओं पर अनेक छोटे-छोटे बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे मुख्य नदी में बाढ़ के खतरे को कम किया जा सके।
- नदियों के ऊपरी जल संग्रहण क्षेत्रों में सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
- मैदानी क्षेत्रों में अनुपयुक्त भूमि पर जल संग्रहण किया जाना चाहिए।
- नदियों के किनारों की भूमि पर मानवीय बस्तियों के अतिक्रमण पर रोक लगाई जानी चाहिए।
- नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में वन विनाश को नियन्त्रित करना चाहिए।
- पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण के समय विस्फोटकों का सीमित उपयोग कर भूस्खलन पर नियन्त्रण किया जाना चाहिए।
बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में किसी भी बड़े विकास कार्य की अनुमति नहीं देनी चाहिए। बाढ़ क्षेत्रों में भवनों का निर्माण मजबूत होना चाहिए।
प्रश्न 2.
भूकम्प आपदा का अर्थ बताते हुए भारत में भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘भूकम्प’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, भू + कम्प; जहाँ भू का अर्थ पृथ्वी, कम्प का अर्थ काँपना है। जब पृथ्वी की सतह अचानक हिलती या कम्पित होती है, तो इसे भूकम्प कहते हैं। अर्थात् पृथ्वी के अन्दर अचानक हलचलों के कारण भूकम्प उत्पन्न होते हैं।
भूकम्प उत्पत्ति के कारण
इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
- ज्वालामुखी उद्भेदन – भूकम्प की उत्पत्ति का एक मुख्य कारण ज्वालामुखी उद्गार है। जब तप्त एवं तरल लावा भूपटल की शैलों को तोड़कर वेग के साथ बाहर निकलता है, तो भूपटल वेग से काँप उठता है जिसके परिणामस्वरूप भूकम्प आते हैं।
- भू-असन्तुलन – भूगर्भ में भ्रंशों के सहारे उत्पन्न निर्बल क्षेत्र में शैलों का सन्तुलन बिगड़ जाता है। सन्तुलन बिगड़ने के कारण शैलों में कम्पन उत्पन्न होने लगता है और भूकम्प आ जाते हैं।
- प्लेट विवर्तनिकी – भू प्लेटों के किनारे जब एक-दूसरे से आपस में रगड़ते हैं तो उससे चट्टानों में भ्रंशन और चटकन द्वारा भूकम्प उत्पन्न होते हैं। प्रायद्वीपीय दक्षिणी भारत में प्लेट विवर्तनिकी भूकम्प आते हैं।
भारत में भूकम्प प्रभावित क्षेत्र
भूकम्प के विवरण एवं प्रभाव के आधार पर भारत को पाँच क्षेत्रों में बाँटा जाता है
- अत्यधिक प्रभावित क्षेत्र
- अत्यधिक खतरा प्रभावित क्षेत्र
- मध्यम प्रभावित क्षेत्र
- निम्न खतरा प्रभावित क्षेत्र, तथा
- सामान्य क्षेत्र।
देश में सबसे खतरा प्रभावित क्षेत्र हैं हिमालय, जिसके अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर बिहार तथा पूर्वोत्तर भारत शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कच्छ भी अधिक खतरा प्रभावित क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त कोंकण तट भी अधिक खतरा प्रभावित क्षेत्र है।
मध्य भारत, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ भूकम्प से कम प्रभावित क्षेत्र हैं। देश के अन्य भाग मध्यम खतरा प्रभावित क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 3.
सखा और बाढ़ में क्या सामान्य है ? किस प्रकार उचित योजना के द्वारा सुखे और बाढ़ की स्थितियों को नियन्त्रित किया जा सकता है ? विवेचना कीजिए।
अथवा
सूखा आपदा से निपटने के लिए कोई चार उपाय लिखिए। (2012)
[संकेत – सूखे के दुष्प्रभाव को कम करने के उपाय’ शीर्षक को देखें।]
उत्तर:
सूखा और बाढ़ में क्या सामान्य ? – भारत की विशालता और भौतिक विभिन्नता के कारण यहाँ बाढ़ एक सामान्य आपदा है। देश में वर्षा का 80 प्रतिशत से अधिक भाग मानसून द्वारा प्राप्त होता है। मानसूनी वर्षा की कमी या अधिकता क्रमशः सूखे या बाढ़ को जन्म देती है।
सूखे के दुष्प्रभाव को कम करने के उपाय
इस दिशा में निम्नलिखित कदम प्रभावशाली हो सकते हैं –
- सूखे पर नजर रखना – इसके अन्तर्गत वर्षा पर निरन्तर नजर रखना, पानी के संग्रह स्थलों में पानी की मात्रा पर नजर रखना तथा उपलब्ध जल की मात्रा की उसकी आवश्यक मात्रा से तुलना आदि को सम्मिलित किया जाता है।
- जल संरक्षण – इसमें घरों तथा कृषि क्षेत्रों में वर्षा के पानी को संचित किया जाता है। यह उपलब्ध पानी की मात्रा को बढ़ा देता है। जल संचय वर्षा के पानी को निचले क्षेत्र या तालाबों आदि में एकत्र करके या इसे पृथ्वी के अन्दर अवशोषित कराकर किया जाता है। इससे कृषि के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा बढ़ जाती है।
- सिंचाई के साधनों को बढ़ाना – सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, सूखे से असुरक्षा को कम करता है।
- वनारोपण – वनारोपण या वृक्ष लगाने का कार्य बड़े पैमाने पर किया जाना चाहिए जिससे वर्षा के पानी को व्यर्थ में बहने से रोका जा सके। वर्षा को आकर्षित किया जा सके।
- आजीविका योजना – सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए खेती से हटकर रोजगार के अवसर बढ़ाना, सामुदायिक वनों से गैर काष्ठ वन उपज संग्रह करना, बकरी पालन, बढ़ईगीरी करना, आदि शामिल हैं।
प्रश्न 4.
सामान्य आपदाओं से क्या तात्पर्य है ? प्रमुख सामान्य आपदाओं का वर्गीकरण करते हुए उनके कारण, प्रभाव और बचाव के उपायों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
घरों में लगने वाली आग की रोकथाम की बुनियादी युक्तियाँ लिखिए। (2009)
अथवा
घर में आग से बचाव के कोई चार उपाय लिखिए। (2012, 16)
[संकेत : ‘आग से बचाव के उपाय’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
सामान्य आपदाएँ
सामान्य आपदाएँ वे घटनाएँ हैं जो दैनिक कार्यों के सम्पादन के दौरान घटित होती हैं एवं क्षति पहुँचाती हैं;
जैसे – आग, सड़क दुर्घटनाएँ, रेल एवं यातायात दुर्घटनाएँ, महामारी आदि।
(1) आग
आग अत्यन्त खतरनाक होती है। चक्रवात, भूकम्प, बाढ़ आदि सभी प्राकृतिक आपदाओं को मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोग आग से जलकर मरते हैं।
आग लगने के कई कारण होते हैं बिजली के हीटर पर खाना पकाते समय होने वाली दुर्घटनाएँ, बिजली की वाइंडिंग क्षमता से अधिक भार, कमजोर वाइंडिंग, कूड़ा-करकट में लगी आग, आगजनी, बारूदी पदार्थ आदि।
आग से बचाव के उपाय –
- आग से बचाव के बुनियादी नियम और बाहर निकलने का रास्ता सदैव ध्यान में रखा जाये।
- घर के भीतर अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ न रखें।
- जब घर से बाहर जाएँ तो बिजली और गैस के सभी उपकरण बन्द करके जाएँ।
- घर में एक अग्निशमन यन्त्र अवश्य रखें और प्रयोग करना सीखें।
- बिजली के एक ही सॉकिट में बहुत सारे उपकरण न लगाएँ।
- आग लगने पर दमकल विभाग को बुलाएँ, उन्हें अपना पता तथा पानी की प्रकृति और स्थान की सूचना दें।
(2) सड़क दुर्घटनाएँ
सड़क व्यवस्था बेहतर सम्पर्क और सेवा के लिए बनाई जाती है। लेकिन वाहन चालकों की जल्दबाजी व लापरवाहियों के कारण सड़क दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
- यातायात नियमों का उल्लंघन।
- नशे की हालत में वाहन चलाना।
- तीव्र गति से गाड़ी चलाना।
- वाहनों तथा सड़कों के रख-रखाव में कमी।
बचाव के उपाय –
- वाहन तभी चलाएँ जब आप उसके लिए पर्याप्त सक्षम हों।
- वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात न करें।
- दो पहिया वाहन सदैव हेलमेट पहनकर चलाएँ।
- अपने से अगली गाड़ी से आगे निकलने का अनावश्यक प्रयास न करें।
- सड़क से सम्बन्धित संकेतों का ज्ञान होना चाहिए तथा उनका पालन करना चाहिए।
- वाहन चलाते समय गति को अचानक तेज या कम न करें।
- सड़क को पार करते समय सड़क के दोनों तरफ देखें।
(3) रेल दुर्घटनाएँ
रेल दुर्घटनाएँ, रख-रखाव की कमी, मानवीय त्रुटि या तोड़-फोड़ की कार्यवाही के कारण पटरी से उतरने से होती हैं।
सुरक्षा के उपाय –
- रेल क्रॉसिंग पर सिग्नल और स्विंग बैरियर का ध्यान रखें, उनके नीचे से निकलने का प्रयास न करें।
- मानवरहित क्रॉसिंग पर वाहन से नीचे उतरकर दोनों ओर देखिए। रेलगाड़ी के दिखाई न देने पर ही लाइन पार कीजिए।
- रेल से यात्रा करते समय अपने साथ ज्वलनशील पदार्थ नहीं ले जाने चाहिए।
- रेलगाड़ी में सफर करते समय दरवाजे पर खड़े न हों और न ही बाहर की तरफ झुकें।
- आपातकालीन चेन को बिना आवश्यकता के न खींचें। आपातकालीन खिड़की का दुर्घटना के समय बाहर निकलने हेतु उपयोग न करें।
(4) हवाई दुर्घटनाएँ
हवाई यात्रा में यात्री की सुरक्षा अनेक कारकों से प्रभावित होती है। हवाई यात्रा निम्न स्थितियों में जोखिम पूर्ण हो जाती है; जैसे तकनीकी समस्या, आग, जहाज उतरने तथा उड़ने की अवस्थाएँ, पहाड़ी क्षेत्रों में आने वाले तूफान, अपहरण एवं बमो से आक्रमण।
सुरक्षा के उपाय –
- विमान चालक दल द्वारा सुरक्षा के सम्बन्ध में जो बातें बताई जाएँ उन पर ध्यान दें।
- सुरक्षा अनुदेश कार्ड को ध्यानपूर्वक पढ़ें।
- निकटतम आपातकालीन खिड़की का पता होना तथा आपातकाल के दौरान इसे खोलने की विधि का ज्ञान होना चाहिए।
- कुर्सी पर बैठते समय सुरक्षा पेटी को बाँधकर रखना चाहिए।
(5) महामारी आपदा
महामारियाँ रोग एवं मृत्यु के लिए जिम्मेदार होती हैं। महामारियों से समाज में विघटन होता है और आर्थिक हानि भी। महामारियों से ऐसे लोग अधिक प्रभावित होते हैं जो कुपोषित होते हैं या दूषित वातावरण में रहते हैं, जहाँ जलआपूर्ति घटिया होती है एवं जहाँ पर स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता नहीं होती, जिन व्यक्तियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है वे महामारी से ज्यादा प्रभावित होते हैं। यदि किसी स्थान पर प्राकृतिक आपदा (ज्वालामुखी, बाढ़, चक्रवात, सुनामी) पहले आ चुकी हो तो महामारी का प्रकोप जीवन के लिए भयावह स्थितियाँ उत्पन्न कर देता है।
बचाव के उपाय –
- महामारी को नियन्त्रित करने हेतु स्वास्थ्य सेवाओं का राज्य स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक विस्तारित किया जाना आवश्यक है। अत: राज्य, जिला, उपकेन्द्र तथा ग्राम स्तर पर स्वास्थ्य कर्मियों एवं नौं को पूर्व तैयारी एवं तालमेल बनाना आवश्यक होता है।
- महामारियों के घटने की आशंका किसी क्षेत्र में है तो जवाबी कार्यवाही के रूप में उसकी आकस्मिक कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए तथा नियमित निगरानी प्रणाली को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- उपलब्ध दवाओं, टीकों, प्रयोगशाला इकाइयों, डॉक्टरों और सहयोगी स्टाफ की संख्या दर्शाने वाली सूची तैयार की जानी चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर उनका उपयोग सम्भव हो सके।
- महामारियों एवं उनके सुरक्षा उपायों पर आधारित प्रशिक्षण, सभी स्तरों पर कार्यरत् अधिकारियों एवं कर्मचारियों को दिया जाना चाहिए इससे क्षमता निर्माण के साथ बेहतर ढंग से आपात स्थिति में कार्य लिया जा सकता है।
- टीकाकरण द्वारा वैयक्तिक बचाव तथा दुष्प्रभाव को सीमित किया जा सकता है।
- संक्रमण के वाहकों को कई विधियों द्वारा नियन्त्रित किया जाना चाहिए;
जैसे –
- स्वच्छता अवस्थाएँ सुधारकर
- रोगाणुओं के प्रजनन स्थलों को नष्ट करके
- कूड़ा-करकट के उचित निस्तारण द्वारा, तथा
- जल स्रोतों को शुद्ध करके।
प्रश्न 5.
रासायनिक आपदाएँ क्या हैं ? प्रमुख रासायनिक आपदाओं के उदाहरण देते हुए रोकथाम के उपाय बताइए।
उत्तर:
रासायनिक आपदाएँ
औद्योगिक व रासायनिक आपदाएँ मानव प्रदत्त आपदाएँ हैं। इनकी शुरुआत बड़ी तेजी से बिना किसी चेतावनी के हो सकती है।
रासायनिक गैस रिसाव मानवीय गलती, प्रौद्योगिकी खराबी अथवा प्राकृतिक क्रियाकलापों से हो सकती है।
उदाहरण – रासायनिक गैस रिसाव (2-3 दिसम्बर, 1984) भोपाल में घटने वाली अभी तक की सबसे विनाशकारी औद्योगिक रासायनिक आपदा है। यह त्रासदी एक प्रौद्योगिकी घटना का परिणाम थी। इसमें हाइड्रोजन, साइनाइड तथा अन्य अभिकृत उत्पादों सहित 4-5 टन मिथाइलआइसोसाइनेट (एमआईसी) नामक अत्यन्त जहरीली गैस यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से रात 12 बजे रिसी और हवा के साथ चारों तरफ फैल गई। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इससे लगभग 3,600 लोग मरे और अनेक रोगग्रस्त हो गए।
रोकथाम के उपाय
- खतरनाक रसायनों के उपयोग, भण्डारण तथा बचाव के तरीके से सम्बन्धित जानकारी सरल भाषा में आम नागरिक तक पहुँचाना।
- रिहायशी क्षेत्रों को औद्योगिक क्षेत्रों से अलग एवं दूर रखा जाना चाहिए। औद्योगिक व आवासीय क्षेत्रों के मध्य हरित पट्टी होनी चाहिए।
- दुर्घटना की स्थिति का सामना करने की समझ विकसित करने हेतु समय-समय पर नकली अभ्यास (मॉकड्रिल) करना चाहिए।
- जहरीली पदार्थों के भण्डार की क्षमता सीमित होनी चाहिए।
- अग्निरोधी चेतावनी प्रणाली में सुधार करना चाहिए।
- उद्योग के लिए बीमा और सुरक्षा सम्बन्धी कानून सख्ती से लागू होने चाहिए।
प्रश्न 6.
भारत के रेखामानचित्र पर अपने रहने की स्थिति को बिन्दु के द्वारा दर्शाइए। उसमें भूकम्प प्रभावित मुख्य क्षेत्र, सूखा, बाढ़, भूस्खलन एवं सुनामी संभावित प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित संभावित क्षेत्रों को दर्शाइए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
आपदा प्रबन्धन पर एक लेख लिखिए। (2018)
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन
आपदा प्राय: एक अनापेक्षित घटना है। यह ऐसी ताकतों से घटित होती है जो मनुष्य के नियन्त्रण में नहीं है। यह थोड़े समय में बिना चेतावनी के घटित होती है जिसकी वजह से मानव जीवन के क्रियाकलाप अवरुद्ध हो जाते हैं और बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि होती है। आपदा पश्चात् रहने के स्थान, भोजन, कपड़ा, सामाजिक एवं चिकित्सा जैसी सहायता में बाहरी सहयोग की आवश्यकता पड़ती है।
लम्बे समय तक भौगोलिक साहित्य आपदाओं को प्राकृतिक बलों का परिणाम मानता रहा है और मानव को इनका अबोध एवं असहाय शिकार। परन्तु प्राकृतिक बल ही आपदाओं का एकमात्र कारक नहीं है। आपदाओं की उत्पत्ति का सम्बन्ध मानव क्रियाकलापों से भी है। कुछ मानवीय गतिविधियाँ तो प्रत्यक्ष रूप से इन आपदाओं के लिए उत्तरदायी हैं; जैसे…..भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, युद्ध, सी. एफ. सी. (क्लारोफ्लोरो कार्बन) गैसें वायुमण्डल में छोड़ना, ग्रीन हाउस गैसें, ध्वनि, वायु, जल, मिट्टी सम्बन्धी पर्यावरणीय प्रदूषण।
कुछ मानवीय गतिविधियाँ परोक्ष रूप से आपदाओं को बढ़ावा देती हैं; जैसे – वनों के विनाश से भूस्खलन और बाढ़। यह सर्वमान्य सत्य है कि पिछले कुछ वर्षों में मानवीकृत आपदाओं की संख्या और परिमाण दोनों में ही वृद्धि हुई। ऐसी घटनाओं से बचने के लिए प्रयत्न भी किए गए। इस सन्दर्भ में अब तक सफलता नाममात्र ही हाथ लगी, परन्तु इन मानवीकृत आपदाओं में से कुछ का निवारण सम्भव है। इसके विपरीत प्राकृतिक आपदाओं पर रोक लगाने की सम्भावना बहुत कम है। इसलिए सबसे अच्छा तरीका है इनके प्रभाव को कम करना और इनका प्रबन्ध करना। इस दिशा में विभिन्न स्तरों पर कई प्रकार के ठोस कदम उठाए गये हैं, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबन्ध संस्थान की स्थापना, 1993 में रियोडिजेनिरो (ब्राजील) में भू शिखर सम्मेलन और मई, 1994 में याकोहोमा (जापान) में आपदा प्रबन्ध पर संगोष्ठी आदि प्रयास प्रमुख हैं।
आपदा प्रबन्धन की मुख्य बातें
आपदा प्रबन्धन चार बातों को महत्व देता है –
(1) पहले से तैयारी-इसके अन्तर्गत समुदाय को आपदा के प्रभाव से निपटने के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए। इसके लिए जरूरी है –
- सामुदायिक जागरूकता और शिक्षा
- समुदाय, स्कूल, व्यक्ति के लिये आपदा प्रबन्धन योजनाएँ तैयार करना
- मॉक ड्रिल, प्रशिक्षण, अभ्यास
- सामग्री और मानवीय कौशल संशोधन दोनों प्रकार के संसाधनों की सूची
- समुचित चेतावनी प्रणाली
- पारस्परिक सहायता व्यवस्था
- असुरक्षित समूहों की पहचान करना।
(2) राहत कार्यवाही – इसके अन्तर्गत आवश्यक बातें हैं –
- आपात केन्द्र (नियन्त्रण कक्ष) को चालू करना
- आपदा प्रबन्ध योजनाओं को कार्यरूप देना
- स्थानीय समूहों की सहायता से सामुदायिक रसोई स्थापित करना
- संसाधन जुटाना
- वर्तमान स्थिति के अनुसार चेतावनी देना
- समुचित आश्रय और टॉयलेट की व्यवस्था करना
- रहने के लिए अस्थायी व्यवस्था करना
- प्रभावितों को ढूँढ़ने और उनका बचाव करने के लिए दल भेजना
- खोज एवं बचाव दल तैनात करना।
(3) सामान्य जीवन स्तर पर लौटना और पुनर्वास ऐसे उपाय जो कि भौतिक आधारभूत सुविधाओं के पुनर्निर्माण तथा आर्थिक एवं भावनात्मक कल्याण की प्राप्ति में सहायक हों –
- समुदाय को स्वास्थ्य और सुरक्षा उपायों की जानकारी देना
- जिनके परिजन बिछड़ गये हैं, उन्हें दिलासा देने का कार्यक्रम
- अनिवार्य सेवाओं सड़कों, संचार सम्पर्क की पुनः शुरुआत
- आश्रय/अस्थायी आवास सुलभ कराना
- निर्माण के लिए मलबे में से प्रयोग लायक सामग्री एकत्र करना
- आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना
- रोजगार के अवसर ढूँढ़ना
- नये भवनों का पुनः निर्माण कराना।
(4) रोकथाम और दुष्प्रभाव को कम करने के लिए योजना – आपदाओं की गम्भीरता तथा उनके प्रभाव कम करने के उपाय –
- भूमि उपयोग की योजना तैयार करना
- जोखिम क्षेत्रों में बसावट को रोकना
- आपदा रोधी भवन बनाना
- आपदा घटने से भी पहले जोखिम को कम करने के तरीके तलाशना
- सामुदायिक जागरूकता और शिक्षा।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भोपाल में रासायनिक गैस का रिसाव हुआ था
(i) दिसम्बर 1984
(ii) दिसम्बर 1987
(iii) दिसम्बर 1988
(iv) दिसम्बर 1990
उत्तर:
(i) दिसम्बर 1984
प्रश्न 2.
मानवजनित आपदा है (2012, 15)
(i) सूखा
(ii) बाढ़
(iii) भूस्ख लन
(iv) सड़क दुर्घटना।
उत्तर:
(iv) सड़क दुर्घटना।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में जैविक आपदा है
(i) बम विस्फोट
(ii) बर्ड फ्लू
(iii) ज्वालामुखी
(iv) सुनामी।
उत्तर:
(ii) बर्ड फ्लू
प्रश्न 4.
आपदा प्रबन्ध पर संगोष्ठी हुई थी
(i) यू. एस. ए. (शिकागो) में
(ii) जापान (याकोहामा) में
(iii) भारत (नई दिल्ली) में
(iv) सिंगापुर में।
उत्तर:
(ii) जापान (याकोहामा) में
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- आपदा के कारण जीवन तथा सम्पत्ति की बड़े ……………….. होती है।
- भारत में तटीय ……………….. सर्वाधिक चक्रवात सम्भावित क्षेत्रों में से एक है। (2011)
- विश्व के समुद्र तटीय क्षेत्र ……………….. के प्रभाव क्षेत्र हैं।
- नदी के अतिरिक्त जल का आस-पास की भूमि पर फैल जाना ……………….. कहलाता है।
उत्तर:
- पैमाने पर हानि
- उड़ीसा
- सुनामी आपदा
- बाढ़।
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को आपदा-प्रबन्धन के द्वारा कम किया जा सकता है। (2018)
अथवा
आपदा प्रबन्ध द्वारा आपदाओं से होने वाली हानि को कम किया जा सकता है। (2009)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
खतरा = सकट × क्षमता / असुरक्षा
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 3.
राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र जिनमें प्रति दो वर्ष में सूखा पड़ता है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4.
सड़क निर्मित एकत्रित मलबा भी बाढ़ों को नियन्त्रित करता है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 5.
औद्योगिक व रासायनिक आपदाएँ मानवप्रदत्त आपदाएँ हैं।
उत्तर:
सत्य
जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (घ)
- → (ङ)
- → (ख)
- → (ग)
- → (क)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
29 अक्टूबर, 1999 को एक भीषण-चक्रवात भारत के किस राज्य में आया था ?
उत्तर:
ओडिशा
प्रश्न 2.
देश में सर्वाधिक भूकम्प प्रभावित क्षेत्र कौन-सा है ? (2010)
उत्तर:
कच्छ
प्रश्न 3.
प्रदूषण, आग, गैस तथा अन्य रासायनिक पदार्थों का रिसना किस प्रकार का संकट है ?
उत्तर:
मानवकृत संकट
प्रश्न 4.
2004 सुनामी का अधिकेन्द्र कहाँ था ?
उत्तर:
सुमात्रा (इण्डोनेशिया)
प्रश्न 5.
भारत में 26 दिसम्बर, 2004 को आयी सुनामी से कितने लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।
उत्तर:
3 लाख से अधिक।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भूस्खलन क्या है ?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण या अन्य कोई प्राकृतिक या मानवीय कारकों के प्रभावी होने के कारण शैलों के मलबे का तेजी से ढलानों पर से नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन कहलाता है।
प्रश्न 2.
बाढ़ की पूर्व सूचना तथा चेतावनी कैसे दी जाती है ?
उत्तर:
- बाढ़ की पूर्व सूचना तथा चेतावनी केन्द्रीय जल आयोग द्वारा दी जाती है।
- देशभर में 132 केन्द्र बाढ़ की पूर्व सूचना तथा चेतावनी देते हैं।
- इन केन्द्रों से वर्ष भर में 6,000 से अधिक घोषणाएँ की जाती हैं।
प्रश्न 3.
बाढ़ों के उत्पन्न होने के प्रकार बताइए।
उत्तर:
- बाढ़ें धीरे-धीरे आती हैं। बाढ़ों के आने में घण्टों का समय लगता है।
- भारी वर्षा, बाँधों के टूटने, चक्रवात तथा समुद्री तूफान आदि के कारण बाढ़ें अचानक भी आती हैं।
प्रश्न 4.
ज्वार किस प्रकार सुनामी लहर उत्पन्न करते हैं ?
उत्तर:
यह अनुभव किया गया है कि ज्वार विवर्तनिक प्लेट पर दबाव डालते हैं जो कि प्लेट में हलचल उत्पन्न करता है। परिणामस्वरूप भूकम्प और ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं। इनसे सुनामी उत्पन्न हो जाते हैं।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आपदा के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
आपदा के प्रभाव –
- आपदा समाज की सामान्य कार्यप्रणाली को बाधित करती है। इससे बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं।
- आपदा के कारण जीवन तथा सम्पत्ति की बड़े पैमाने पर हानि होती है।
- आपदा समुदाय को प्रभावित करती है जिसमें क्षतिपूर्ति के लिए बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है।
- सभी आपदाओं; जैसे – भूकम्प, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, आग, महामारी आदि के अपने विशिष्ट प्रभाव होते हैं।
प्रश्न 2.
‘आपदाएँ मानव जाति एवं पर्यावरण के लिए खतरा हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आपदाएँ मानव जाति एवं पर्यावरण के लिए गम्भीर खतरा हैं। क्षति पहुँचाने की क्षमता के माप को खतरा कहते हैं। अत्यधिक असुरक्षा एवं संकट बड़े खतरे वाली आपदा से जुड़े होते हैं। यदि असुरक्षा या संकट बहुत कम हैं तो आपदा का खतरा भी बहुत कम होता है। संकट और असुरक्षा से आपदा का खतरा उत्पन्न होता है; जैसे – मृत्यु होना, चोट लगना, सम्पत्ति का नुकसान होना, आजीविका में कठिनाई उत्पन्न होना, आर्थिक गतिविधियों में बाधाएँ आना या वातावरण को क्षति पहुँचाना।
आपदाएँ कठिनाई उत्पन्न करती हैं, विकास से प्राप्त लाभों को हानि पहुँचाती हैं और हम विकास के क्षेत्र में कई वर्ष पीछे खिसक जाते हैं।
प्रश्न 3.
भारत में आपदाओं या संकटों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आपदा के प्रकारों का उल्लेख कीजिए। (2014)
अथवा
आपदाओं से क्या तात्पर्य है ? यह कितने प्रकार की होती हैं ? (2014)
[संकेत : ‘आपदा का आशय’ पाठान्त अभ्यास के प्रश्न 1 के उत्तर में देखें।]
उत्तर:
भारत में कई प्रकार के संकट देखे गए हैं, जो हमारे लिए व्यापक चिन्ता का कारण हैं। संकटों की सूची बहुत लम्बी है। इनका वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है। आपदाओं या संकटों का वर्गीकरण निम्नानुसार है –
- आकस्मिक संकट – भूकम्प, सुनामी लहरें, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात, हिमस्खलन, मेघ विस्फोट इत्यादि। अर्थात् ऐसे संकट अचानक उत्पन्न होते हैं।
- संकट जो धीरे – धीरे प्रकट होते हैं सूखा, ओले, पर्यावरण अवक्रमण, मरुस्थलीकरण इत्यादि।
- औद्योगिक/प्रौद्योगिक दुर्घटनाएँ – प्रणालीगत खराबी, आग, विस्फोट, रासायनिक रिसाव इत्यादि।
- महामारी – जल/खाद्य आधारित रोग, संक्रामक रोग इत्यादि।
- युद्ध।
प्रश्न 4. प्राकृतिक आपदाएँ व मानवकृत आपदाएँ क्या हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएँ – सूखा, बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन एवं सुनामी। वे समस्त घटनाएँ हैं जो प्रकृति में विस्तृत रूप से घटित होती हैं और जिनका प्रभाव विनाशकारी होता है।
मानवकृत आपदाएँ – आणविक, जैविक एवं रासायनिक बम विस्फोट, प्राकृतिक आपदाएँ या संकट। मानवकृत आपदाएँ वे संकट हैं जो मानवीय महत्वाकांक्षा व प्रयासों से सम्बन्धित हैं तथा इनके प्रभाव विनाशकारी होते हैं।
प्रश्न 5.
सूखा आपदा के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर:
सूखा आपदा के लिए उत्तरदायी कारक-सूखा एक प्राकृतिक आपदा है। सूखे की स्थिति हेतु मुख्य उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं –
- भूमि प्रबन्धन की उपेक्षा हो।
- सिंचाई के पारम्परिक स्रोतों; जैसे – तालाब, कुआँ और टंकी की उपेक्षा।
- सामुदायिक वनों का विनाश।
- वन विनाश से प्राकृतिक जलधाराओं का सूखना, वर्षा कम होने से भूमिगत जल स्तर का नीचे जाना, नदियों के जल स्तर का गिरना।
- अनिश्चित क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था का अस्त-व्यस्त होना।
- फसल चक्र में तीव्र परिवर्तन।
- वातावरण के आपसी सम्बन्ध टूटने से कृषि उद्योग एवं घरेलू कार्य में पानी की माँग में अभूतपूर्व वृद्धि।
- जल संसाधनों के दोहन की दोषपूर्ण व्यवस्था।
प्रश्न 6.
भारत में सूखा प्रभावित प्रमुख क्षेत्र कौनसे हैं ?
उत्तर:
भारत में सूखा आपदा प्रभावित क्षेत्र–भारत में सूखा आपदा से प्रभावित क्षेत्र प्रमुखतया निम्नलिखित हैं –
- राजस्थान क्षेत्र – राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र जिनमें प्रति दो वर्षों में सूखा पड़ता है।
- गुजरात, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, रायलसीमा और तेलंगाना क्षेत्र में लगभग तीन वर्षों में सूखा पड़ता है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी कर्नाटक तथा विदर्भ क्षेत्र में औसतन चार वर्षों में सूखा पड़ता है।
- पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तटीय आन्ध्र प्रदेश, मध्य महाराष्ट्र, केरल, बिहार और उड़ीसा में औसतन प्रति पाँच वर्षों में सूखा पड़ता है।
प्रश्न 7.
बाढ़ के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
बाढ़ के प्रभाव बाढ़ एक विनाशकारी आपदा है। मानव जीवन को बाढ़ निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करती है –
- सम्पत्ति की हानि – तेज गति से बहने वाले पानी के कारण भवनों को हानि पहुँचती है। कमजोर नींव के ऊपर बने भवन बाढ़ के कारण ढह जाते हैं। जान-माल को खतरा हो जाता है।
- मृत्यु तथा जनस्वास्थ्य – बाढ़ में डूबने से लोगों और मवेशियों की मृत्यु हो जाती है। महामारी, अतिसार, विषाणु संक्रमण तथा मलेरिया जैसे रोगों का फैलाव आम बात है।
- जल आपूर्ति में व्यवधान – बाढ़ के कारण पीने का पानी दूषित हो जाता है, जिससे पीने के स्वच्छ पानी का अभाव हो जाता है।
- फसलें एवं खाद्य आपूर्ति – अचानक आने वाली बाढ़ों से फसलें तथा भण्डारित अनाज खराब हो जाते हैं।
- मृदा संरचना में परिवर्तन – बाढ़ से मृदा के गुण बदल जाते हैं। ऊपरी सतह के अपरदन के कारण मृदा कम उपजाऊ हो जाती है। समुद्री जल के कारण भूमि लवणीय हो जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
प्रश्न 8.
भूकम्प के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भूकम्प के प्रभाव – भूकम्प से बड़े पैमाने पर हानि होती है। यदि यह अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र में आता है तो जान-माल की भारी क्षति होती है। संचार और यातायात के साधन नष्ट हो जाते हैं, उद्योग एवं विकास के कार्य में बाधा पहुँचती है। रास्ते अवरुद्ध होने से लोगों की सहायता करने में बाधाएँ आती हैं। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं –
- भौतिक हानि
- मानव एवं जीव-जन्तु की मृत्यु
- जनस्वास्थ्य पर प्रभाव
- जल आपूर्ति प्रभावित
- परिवहन नेटवर्क में बाधा, तथा
- विद्युत आपूर्ति और संचार सेवा में बाधा।
प्रश्न 9.
भूकम्प के दुष्प्रभाव को कम करने के उपाय बताइए।
उत्तर:
भूकम्प के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए –
- भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भवनों का डिजाइन व वास्तुकला इन्जीनियरी के सहयोग से होना चाहिए। भवन निर्माण से पहले मिट्टी की किस्म का विश्लेषण कराना उपयुक्त होता है। नरम मिट्टी के ऊपर मकान नहीं बनाए जाने चाहिए। मुलायम मिट्टी पर निर्माण कार्य करने के लिए भवन डिजाइन में सुरक्षा उपाय अपनाये जाने चाहिए।
- भारतीय मानक ब्यूरो ने भूकम्परोधी इमारतों के निर्माण सम्बन्धी नियम तथा दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हम सभी को उनका पूर्णरूप से पालन करना चाहिए।
- अस्पतालों, विद्यालयों तथा दमकल केन्द्र का निर्माण भूकम्प से सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
- वास्तुकारों, बिल्डरों, ठेकेदारों, डिजाइनरों, सरकारी अधिकारियों, समान मालिकों के लिए संवेदीकरण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के द्वारा जागरूकता विकसित की जानी चाहिए।
प्रश्न 10.
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूस्खलन के क्षेत्र – भारत में भूस्खलन आपदा के प्रमुख क्षेत्र हैं –
(1) अत्यधिक प्रवण क्षेत्र-अस्थिर हिमालय पर्वत की युवा शृंखलाएँ, अण्डमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरि के अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलाप वाले क्षेत्रों को जिनमें सड़क और बाँध निर्माण आदि शामिल हैं, अत्यधिक भूस्खलन वाले क्षेत्रों में रखे जाते हैं।
(2) अधिक सुमेद्यता क्षेत्र-अधिक प्रवण क्षेत्र अत्यधिक प्रवण क्षेत्रों से मिले हैं। हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तरी पूर्वी भाग (असम राज्य को छोड़कर) इस क्षेत्र में शामिल हैं।
(3) मध्यम और कम सुमेद्यता क्षेत्र-हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में स्फीति अरावली पहाड़ियों के कम वर्षा वाले क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट, दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं जहाँ कभी-कभी भूस्खलन होता है। इनके अलावा झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खदानें और भूमि धंसने से भूस्खलन होता रहता है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 6 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सुनामी आपदा के कारण व इसके प्रभाव बताइए।
अथवा
सुनामी किसे कहते हैं ? इसके मुख्य कारणों का विवरण दीजिए।
[संकेत : सुनामी का आशय-पाठान्त अभ्यास के लघु उत्तरीय प्रश्न 4 का उत्तर देखें।]
उत्तर:
सुनामी आपदा के कारण
समुद्री जल कभी भी शान्त नहीं रहता है। समुद्री जल में हलचल होना स्वाभाविक है। भूकम्प और ज्वालामुखी का समुद्री क्षेत्रों में आना ही सुनामी आपदा का प्रमुख कारण है। जब समुद्री क्षेत्रों के धरातल में अचानक ज्वालामुखी या भूकम्प के उद्भेदन की क्रिया होती है तो समुद्री जल में गतिशीलता बढ़ती है जिसके कारण समुद्री जल में ऊँची तरंगें उत्पन्न होती हैं जो जल हानि और सम्पदा विनाश का कारण बनती हैं।
सुनामी आपदा के प्रभाव
समुद्री तट पर पहुँचने के पश्चात् सुनामी तरंगें अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा छोड़ती हैं। इससे समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है तथा बन्दरगाहों, शहरों, कस्बों, अनेक प्रकार के ढाँचों, इमारतों और बस्तियों को हानि पहुँचाता है। समुद्र तट पर जनसंख्या का सघन बसाव होता है और ये क्षेत्र बहुत-सी मानव गतिविधियों के केन्द्र होते हैं। यहाँ दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सुनामी अधिक हानि पहुँचाती है। दिसम्बर 2004 में आई सुनामी लहरों से 5,00,000 लोग अकाल मृत्यु का शिकार हुए। दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में सुनामी के प्रभाव को कम करना कठिन है। किसी अकेले देश या सरकार के लिए सुनामी जैसी आपदा से निपटना भी आसान नहीं है। अतः इसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रयास आवश्यक हो जाते हैं। अकेले, भारत में 26 दिसम्बर, 2004 को आयी सुनामी से तीन लाख से अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।
बचाव के उपाय – सुनामी चेतावनी यन्त्र विकसित करके समुद्र तटीय क्षेत्रों में मछुआरों एवं समुद्री पोतों की रक्षा की जा सकती है।