MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता
In this article, we will share MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books.
MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता
तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता NCERT अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
आवर्त तालिका में व्यवस्था का भौतिक आधार क्या है?
उत्तर:
आवर्त तालिका में तत्वों को इस तरह वर्गीकृत किया गया है कि समान गुणधर्म वाले तत्व समान समूह में स्थित रहे। चूँकि तत्वों के गुण उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर निर्भर करते हैं अतः एक समूह के तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है।
प्रश्न 2.
मेण्डलीव ने किस महत्वपूर्ण गुणधर्म को अपनी आवर्त तालिका में तत्वों के वर्गीकरण का आधार बनाया। क्या वे उस पर दृढ़ रह पाए?
उत्तर:
मेण्डलीव के अनुसार, तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं। मेण्डलीफ ने समान गुणधर्मों के आधार पर रखते हुए कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिये थे, जिनकी खोज की भविष्यवाणी की थी जो बाद में खोजे भी गये। मेण्डलीव ने कई तत्वों को उनके भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आधार पर आवर्त तालिका में उचित स्थान दिया किन्तु वे परमाणु भारों के आधार पर वर्गीकरण का पूर्णतया पालन नहीं कर सके।
प्रश्न 3.
मेण्डलीव के आवर्त नियम और आधुनिक आवर्त नियम में मौलिक अंतर क्या है?
उत्तर:
मेण्डलीव के आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के गुणधर्म उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं। जबकि आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के गुणधर्म उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं।
प्रश्न 4.
क्वाण्टम संख्याओं के आधार पर यह सिद्ध कीजिए कि आवर्त तालिका के छठवें आवर्त में 32 तत्व होने चाहिए।
उत्तर:
दीर्घ आवर्त सारणी में प्रत्येक आवर्त एक नये मुख्य ऊर्जा (n) के भरने से प्रारंभ होता है। छठवें आवर्त हेतु n = 6 इस आवर्त में इलेक्ट्रॉन 6s, 4f, 5d तथा 6p में प्रवेश करते हैं। इन उपकोशों में कुल 16 (1 + 7 + 5 + 3) कक्षक होते हैं। पाउली के अपवर्जन सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक कक्षक में अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं। अतः 16 कक्षकों में केवल 32 इलेक्ट्रॉन आ सकते हैं। इसलिए, छठे आवर्त में 32 तत्व होने चाहिए।
प्रश्न 5.
आवर्त और वर्ग के पदों में यह बताइए कि Z = 114 कहाँ स्थित होगा?
उत्तर:
परमाणु क्रमांक 114 वाले तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 86[Rn] 5f146d19, 7s26p2 है। अतः 7वें आवर्त (n = 7) एवं 14वें समूह (10 + 2 + 2) का सदस्य होगा।
प्रश्न 6.
उस तत्व का परमाणु क्रमांक लिखिए, जो आवर्त तालिका में तीसरे आवर्त और 17वें वर्ग में स्थित होता है।
उत्तर:
17वें वर्ग के सदस्य के लिए ns2np2 विन्यास होगा। तीसरे आवर्त के लिए यही विन्यास 3s23p5 होगा। अतः तत्व का परमाणु क्रमांक = 10 + 2 + 5 = 17 होगा।
प्रश्न 7.
कौन-से तत्व का नाम निम्नलिखित द्वारा दिया गया है –
- लॉरेन्स बर्कले प्रयोगशाला द्वारा
- सी-बोर्ग समूह द्वारा।
उत्तर:
- लॉरेन्स बर्कले प्रयोगशाला द्वारा दिया गया नाम लॉरेन्सियम (Z = 103) एवं बर्केलियम (Z = 97) है।
- सी-बोर्ग समूह द्वारा दिया गया नाम, सीबोर्गियम (Z = 106) है।
प्रश्न 8.
एक ही वर्ग में उपस्थित तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म समान क्यों होते हैं?
उत्तर:
एक ही वर्ग के तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म समान होते हैं क्योंकि इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (अन्तिम कक्ष) के एक जैसे होते हैं।
प्रश्न 9.
‘परमाणु त्रिज्या’ और ‘आयनिक त्रिज्या’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
परमाणु त्रिज्या:
परमाणु त्रिज्या से तात्पर्य परमाणु के आकार से होता है। इसको X- किरणों या अन्य स्पैक्ट्रोस्कोपिक विधियों से नापा जा सकता है। अधातुओं के लिए इसे सहसंयोजक त्रिज्या भी कहते हैं तथा धातु तत्वों के लिए इसे धात्विक त्रिज्या कहते हैं। सहसंयोजक त्रिज्या किसी तत्व के एक अणु में सहसंयोजक बंध द्वारा जुड़े दो परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी के आधे भाग को सहसंयोजक त्रिज्या कहते हैं। उदाहरण के लिए क्लोरीन अणु के लिए बंध दूरी का मान 198 pm है। अतः इस मान का आधा, 99 pm क्लोरीन परमाणु त्रिज्या या सहसंयोजक त्रिज्या होगी।
आयनिक त्रिज्या:
आयनिक त्रिज्या से तात्पर्य आयन (धनायन या ऋणायन) के आकार से है इसको आयनिक क्रिस्टल में धनायन तथा ऋणायन के बीच की दूरी मापकर नाप सकते हैं। एक धनायन सदैव अपने जनक परमाणु से आकार में छोटा होता है क्योंकि एक या अधिक इलेक्ट्रॉन निकल जाने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ जाता है। ऋणायन सदैव अपने जनक परमाणु से बड़ा होता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने के फलस्वरूप प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान घट जाता है। उदाहरण के लिए, Na+ आयन (95 pm) की आयनिक त्रिज्या, Na परमाणु (186 pm) की परमाणु त्रिज्या से कम होती है जबकि F आयन (136 pm) की आयनिक त्रिज्या परमाणु (72 pm) की परमाणु त्रिज्या से अधिक होती है।
प्रश्न 10.
किसी वर्ग या आवर्त में परमाणु त्रिज्या किस प्रकार परिवर्तित होती है? इस परिवर्तन की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
किसी आवर्त में बायें से दायें जाने पर परमाणु त्रिज्या का मान घटता है क्योंकि एक ही आवर्त में संयोजी कोश समान होते हैं किन्तु दायीं ओर जाने से परमाणु क्रमांक बढ़ने से प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ते जाता है जिससे बाह्यतम इलेक्ट्रॉनों का नाभिक से आकर्षण बढ़ता है एवं परमाणु त्रिज्या कम होती जाती है। किसी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु त्रिज्या बढ़ती है क्योंकि नीचे जाने पर वर्ग में कोशों की संख्या बढ़ती जाती है। जिससे परमाणु के आकार या त्रिज्या में वृद्धि होती जाती है।
प्रश्न 11.
समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज़ से आप क्या समझते हैं? एक ऐसी स्पीशीज़ का नाम लिखिए, जो निम्नलिखित परमाणुओं या आयनों के साथ समइलेक्ट्रॉनिक होगी –
- F–
- Ar
- Mg2+
- Rb+
उत्तर:
समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज़ में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है किन्तु नाभिक में प्रोटॉनों की संख्या (आवेश) भिन्न-भिन्न होती है।
- F– में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 9 + 1 = 10 होती है। अत:F के समइलेक्ट्रॉनिक धनायन, Na+, Mg2+, Al3+ तथा ऋणायन N3-, O2- होते हैं।
- Ar में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 18 है। अतः इसके समइलेक्ट्रॉनिक आयन S2-, Cl–, K+ एवं Ca2+ होंगे।
- Mg2+ में 10 इलेक्ट्रॉन हैं इसके समइलेक्ट्रॉनिक आयन उत्तर (i) में दिये गये हैं।
- Rb+ में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 37 – 1 = 36 है अतः इसके समइलेक्ट्रॉनिक आयन Br–, Kr एवं Sr2+ होंगे।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित स्पीशीज़ पर विचार कीजिए – N3-, O2-, F–, Na+, Mg2+ और Al3+.
- इनमें क्या समानता है?
- इन्हें आयनी त्रिज्या के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर:
- सभी आयन समइलेक्ट्रॉनिक हैं।
- समइलेक्ट्रॉनिक आयनों में परमाणु संख्या वृद्धि के साथ-साथ नाभिकीय आवेश बढ़ता जाता है एवं आयनिक त्रिज्या में कमी होती जाती है। अतः समइलेक्ट्रॉनिक आयनों की त्रिज्या का बढ़ता हुआ क्रम निम्न होगा
Al3+ < Mg2+ < Na+ < F– < O2- < N3-
प्रश्न 13.
धनायन अपने जनक परमाणुओं से छोटे क्यों होते हैं और ऋणायनों की त्रिज्या उनके जनक परमाणुओं की त्रिज्या से अधिक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उदासीन परमाणु से इलेक्ट्रॉन त्यागने पर धनायन बनते हैं। धनायन बनते ही प्रभावी नाभिकीय आवेश में वृद्धि हो जाती है जिससे संयोजी कोश के इलेक्ट्रॉनों पर नाभिक से लगने वाले बल में वृद्धि हो जाती है और धनायन का आकार अपने जनक परमाणु से छोटा हो जाता है। किन्तु ऋणायनों के बनने में परमाणु अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है जिससे प्रभावी नाभिकीय आवेश में कमी आती है और ऋणायन की त्रिज्या जनक परमाणुओं से बढ़ जाती है।
प्रश्न 14.
आयनन एन्थैल्पी और इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी को परिभाषित करने में विलगित गैसीय परमाणु तथा ‘आद्य अवस्था’ पदों की सार्थकता क्या है?
उत्तर:
आयनन एन्थैल्पी, यह विलगित गैसीय परमाणु (X) से बाह्यतम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा होती है।
X(g) → X(g)+ + e–
वह बल जिससे इलेक्ट्रॉन नाभिक के प्रति आकर्षित होता है, अणु में उपस्थित अन्य परमाणुओं अथवा पड़ोस में स्थित अन्य परमाणुओं से भी प्रभावित होता है। अतः आयनन एन्थैल्पी सदैव गैसीय अवस्था में ज्ञात की जाती है क्योंकि गैसीय अवस्था में अन्तराण्विक स्थान अधिकतम होता है तथा अन्तराण्विक आकर्षण बल न्यूनतम होता है। पुनः आयनन एन्थैल्पी कम दाब पर मापी जाती है, क्योंकि मात्र एक परमाणु को विलगित करना संभव नहीं है परन्तु दाब कम करके अन्तराण्विक आकर्षण बल को कम किया जा सकता है। इनके कारण ही आयनन एन्थैल्पी की परिभाषा में, आद्य अवस्था में विलगित गैसीय परमाणु पद जोड़ा गया है।
इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी यह आद्य अवस्था में किसी विलगित गैसीय परमाणु (X) द्वारा एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर एनायन (X) बनाने में निर्मुक्त ऊर्जा की मात्रा है।
X(g) + e– → X(g)–
परमाणु की सबसे स्थायी अवस्था आद्य अवस्था होती है। यदि विलगित गैसीय परमाणु उत्तेजित अवस्था में हो तो एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने पर तुलनात्मक रूप से कम ऊर्जा निर्मुक्त होगी। अतः गैसीय परमाणुओं की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी सदैव आद्य अवस्था में मापी जाती है। अतः ‘आद्य अवस्था’ तथा ‘विलगित गैसीय अणु’ इलेक्ट्रॉन लब्धि एंन्थैल्पी की परिभाषा में अवश्य सम्मिलित किए जाने चाहिए।
प्रश्न 15.
हाइड्रोजन परमाणु में आद्य अवस्था में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा – 2.18 x 10-18 J है। परमाणविक हाइड्रोजन की आयनन एन्थैल्पी J mol-1 के पदों में परिकलित कीजिए।
हल:
आयनन एन्थैल्पी = – (आद्य अवस्था में ऊर्जा)
= – (-2.18 x 10-18) J प्रति परमाणु
= 2.18 x 10-18 x 6.023 x 1023
= 1.312 x 106 J mol-1
प्रश्न 16.
द्वितीय आवर्त के तत्वों में वास्तविक आयनन एन्थैल्पी का क्रम इस प्रकार है – Li < B < Be < C < O < N < F < Ne. व्याख्या कीजिए कि –
- Be की ∆iH, B से अधिक क्यों है?
- O की ∆iH, N और F से कम क्यों है?
उत्तर:
1. दिये गये क्रम में Be की ∆iH, B से ज्यादा है क्योंकि 4Be = 1s2, 2s2 में से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए ,B = 15-2522p’ की तुलना में ज्यादा ऊर्जा लगेगी, क्योंकि Be का 252 कक्षक पूर्ण भरा होने एवं नाभिक से ज्यादा निकट होने के कारण, नाभिक से अतिरिक्त आकर्षण रखता है।
2. O की आयनन एन्थैल्पी (∆iH) का मान N और F से कम होगा चूँकि किसी आवर्त में बायें से दायें जाने पर परमाणु आकार में कमी होने के साथ-साथ आयनन एन्थैल्पी का मान बढ़ता है। O की ∆iH, F से कम होगी किन्तु 7N = 1s22s22p3 में p – कक्षक पूर्णतया अर्धपूरित रहता है और अतिरिक्त स्थायित्व दर्शाता है। अतः O की ∆iH, N से भी कम होती है।
प्रश्न 17.
आप इस तथ्य की व्याख्या किस प्रकार करेंगे कि सोडियम की प्रथम आयनन एन्थैल्पी मैग्नीशियम की प्रथम आयनन एन्थैल्पी से कम है, किन्तु इसकी द्वितीय आयनन एन्थैल्पी मैग्नीशियम की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी से अधिक है?
उत्तर:
Na का प्रभावी नाभिकीय आवेश Mg से कम होता है। अत: Na की प्रथम आयनन एन्थैल्पी का मान Mg से कम होता है किन्तु एक इलेक्ट्रॉन निकलने के पश्चात् Na+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास अक्रिय गैस का विन्यास हो जाता है। अत: Na की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का मान Mg की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी से ज्यादा होता है।
प्रश्न 18.
मुख्य समूह तत्वों में आयनन एन्थैल्पी के किसी समूह में नीचे की ओर कम होने के कौनसे कारक हैं?
उत्तर:
आयनन एन्थैल्पी का मान किसी समूह में ऊपर से नीचे जाने पर कम होता है, जिसके निम्न दो कारण हैं –
1. समूह में ऊपर से नीचे जाने पर मुख्य क्वाण्टम संख्या n का मान (कक्षों की संख्या) बढ़ने के कारण परमाणु का आकार बढ़ता है। अतः संयोजी इलेक्ट्रॉनों पर नाभिक का आकर्षण कम होता है, जिससे इलेक्ट्रॉन मुक्त करने के लिए क्रमशः कम ऊर्जा की आवश्यकता होगी और आयनन एन्थैल्पी का मान कम होता जाता है।
2. समूह में नीचे जाने पर संयोजी इलेक्ट्रॉनों पर परिरक्षण प्रभाव बढ़ता है, जिससे भी आयनन एन्थैल्पी में कमी आती है।
प्रश्न 19.
वर्ग 13 के तत्वों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी के मान (kJ mol-1) में इस प्रकार हैं –
सामान्य से इस विचलन की प्रवृत्ति की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
Ga एवं TI की प्रथम आयनन एन्थैल्पी (∆iH) का मान असामान्य रूप से क्रमशः Al एवं In से ज्यादा होता है, क्योंकि Ga के 3d – कक्षक के संयोजी इलेक्ट्रॉन एवं T के 4f – कक्षक के इलेक्ट्रॉनों पर 5 एवं pकक्षकों के इलेक्ट्रॉनों की तुलना में कम परिरक्षण प्रभाव होता है। अतः इनकी ∆iH कुछ ज्यादा होती है।
प्रश्न 20.
तत्वों के निम्नलिखित युग्मों में किस तत्व की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी अधिक ऋणात्मक होगी –
- O या F
- F या Cl.
उत्तर:
1. ऑक्सीजन तथा फ्लुओरीन दोनों द्वितीय आवर्त में स्थित है। किसी आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर, इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी का मान सामान्यतः अधिक ऋणात्मक होता जाता है। ऑक्सीजन से फ्लुओरीन की ओर जाने पर, परमाणु संख्या में वृद्धि के साथ-साथ प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ता है तथा परमाणु का आकार घटता है, इसके कारण आने वाले इलेक्ट्रॉन के लिए, नाभिक के प्रति आकर्षण बल बढ़ता है। यही कारण है कि फ्लुओरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी, ऑक्सीजन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी की अपेक्षा अधिक होती है। पुनः एक फ्लुओरीन इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके स्थायी विन्यास प्राप्त कर लेता है।
अतः फ्लुओरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (-328 kJ mol-1), ऑक्सीजन (-141 kJ mol-1) से बहुत अधिक ऋणात्मक होती है।
2. किसी वर्ग में नीचे की ओर जाने पर, इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी की ऋणात्मकता क्रमशः घटती जाती है। परन्तु क्लोरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (-349 kJ mol-1), फ्लुओरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (-328 kJ mol-1) की अपेक्षा अधिक ऋणात्मक होती है। यह फ्लुओरीन के छोटे आकार के कारण होता है। 3p कक्षक (Cl) की अपेक्षा 2p कक्षक (F) में इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण अधिक होता है। अतः बाहर से आने वाला इलेक्ट्रॉन क्लोरीन की अपेक्षा फ्लुओरीन में अधिक प्रतिकर्षण अनुभव करता है। इसी कारण फ्लुओरीन की तुलना में क्लोरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी अधिक ऋणात्मक होती है।
प्रश्न 21.
आप क्या सोचते हैं कि O की द्वितीय इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी प्रथम इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी के समान धनात्मक, अधिक ऋणात्मक या कम ऋणात्मक होगी? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सीजन परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन जुड़ने पर O– आयन बनता है, जिससे ऊर्जा मुक्त होती है अर्थात् इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी ऋणात्मक होती है, किन्तु जब O– आयन पर कोई इलेक्ट्रॉन जुड़कर O2-आयन बनाता है तो आने वाला इलेक्ट्रॉन 0 आयन से प्रतिकर्षण अनुभव करता है एवं द्वितीय इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी धनात्मक होती है
O(g) + e (g)– → O(g)– ∆egH1 = -141 kJ mol-1
Or(g)– + e(g)2- → O(g)2-, ∆egH2 = +780 kJ mol-1
प्रश्न 22.
इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी और इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक में क्या मल अंतर है?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी किसी विलगित गैसीय परमाणु द्वारा एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके गैसीय ऋणायन बनाने की प्रवृत्ति है, जबकि किसी तत्व की इलेक्ट्रॉन ऋणात्मकता उस तत्व के परमाणु द्वारा सहसंयोजक बंध के साझे के इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रवृत्ति होती है।
प्रश्न 23.
सभी नाइट्रोजन यौगिकों में N की विद्युत् ऋणात्मकता पाऊलिंग पैमाने पर 3.0 है। आप इस कथन पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देंगे?
उत्तर:
किसी भी तत्व की विद्युत् ऋणात्मकता स्थिर नहीं होती है। यह उस तत्व के साथ जुड़े अन्य तत्व से प्रभावित होती है अर्थात् सभी नाइट्रोजन यौगिकों में N की विद्युत् ऋणात्मकता पाऊलिंग पैमाने पर 3.0 होती है। अत: यह कथन सत्य नहीं है।
प्रश्न 24.
उस सिद्धांत का वर्णन कीजिए, जो परमाणु की त्रिज्या से संबंधित होता है –
- जब वह इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है।
- जब वह इलेक्ट्रॉन का त्याग करता है।
उत्तर:
परमाणु त्रिज्या का मान प्रभावी नाभिकीय आवेश पर निर्भर करता है।
- इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने से प्रभावी नाभिकीय आवेश कम होता जाता है। अतः परमाणु त्रिज्या में वृद्धि होती है।
- इलेक्ट्रॉन त्यागने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता जाता है, जिससे परमाणु त्रिज्या कम होती जाती है।
प्रश्न 25.
किसी तत्व के दो समस्थानिकों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी समान होगी या भिन्न? आप क्या मानते हैं? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
किसी तत्व के दो समस्थानिकों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी समान होगी क्योंकि इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और प्रभावी नाभिकीय आवेश में कोई अन्तर नहीं होता है। इनमें केवल न्यूट्रॉनों की संख्या में अन्तर होता है जिसका आयनन एन्थैल्पी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रश्न 26.
धातुओं और अधातुओं में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर:
धातुएँ कमरे के ताप पर सामान्यतया ठोस होती हैं (मर्करी इसका अपवाद है, गैलियम और सीज़ियम के गलनांक भी बहुत कम क्रमश: 303 K और 302 K हैं)। धातुओं के गलनांक व क्वथनांक उच्च होते हैं तथा ये ताप तथा विद्युत् के सुचालक, आघातवर्ध्य तथा तन्य होते हैं। जबकि अधातु आवर्त सारणी में दायीं ओर स्थित होते हैं। दीर्घ आवर्त सारणी में धात्विक गुण (उसकी इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की क्षमता) किसी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर बढ़ती है तथा आवर्त में बायें से दायें जाने पर कम होती है। अधातु कमरे के ताप पर ठोस व गैस होती है। इनके गलनांक व क्वथनांक कम, ताप तथा विद्युत् के अल्प चालक तथा आघातवर्ध्य व तन्य नहीं होते हैं।
प्रश्न 27.
आवर्त तालिका का उपयोग करते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
- उस तत्व का नाम बताइए, जिसके बाह्य उपकोश में पाँच इलेक्ट्रॉन उपस्थित हों।
- उस तत्व का नाम बताइए, जिसकी प्रवृत्ति दो इलेक्ट्रॉनों को त्यागने की हो।
- उस तत्व का नाम बताइए, जिसकी प्रवृत्ति दो इलेक्ट्रॉनों को प्राप्त करने की हो।
- उस वर्ग का नाम बताइए, जिसमें सामान्य ताप पर धातु, अधातु, द्रव और गैस उपस्थित हों।
उत्तर:
- समूह 17 (हैलोजन परिवार, F, Cl, Br, I एवं At) के सभी तत्वों का ns.np इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है। अत: इनके बाह्यतम उपकोश np में पाँच इलेक्ट्रॉन होते हैं।
- द्वितीय समूह के तत्व Mg, Ca, Sr, Ba एवं Ra में दो इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति होती है।
- 16 वें समूह के तत्व O, S, Se आदि में दो इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है।
- प्रथम समूह में H अधातु एवं गैस हैं जबकि Li, Na, K, Rb ठोस धातुएँ हैं एवं Cs एक द्रव धातु (m.p. 28°C) है।
प्रश्न 28.
प्रथम वर्ग के तत्वों के लिए अभिक्रियाशीलता का बढ़ता हुआ क्रम इस प्रकार है –
Li < Na < K < Rb < Cs; जबकि वर्ग 17 के तत्वों में क्रम F > Cl > Br > I है। इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रथम समूह के तत्वों की क्रियाशीलता उनके इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति पर निर्भर करती है चूँकि इस समूह में ऊपर से नीचे जाने पर आयनन ऊर्जा का मान कम होता है। अतः तत्वों की क्रियाशीलता का क्रम Li < Na < K < Rb < Cs होगा। जबकि 17वें समूह के हैलोजनों के लिए क्रियाशीलता उनके इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन बनाने की क्षमता पर निर्भर करता है। अत: 17वें समूह के तत्वों की क्रियाशीलता का क्रम F > Cl > Br > I होगा। F की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी Cl से कम है किन्तु इसके बन्ध की वियोजन ऊर्जा कम होने के कारण यह Cl से ज्यादा क्रियाशील है।
प्रश्न 29.
s, p, d और f-ब्लॉक के तत्वों का सामान्य बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर:
- s – ब्लॉक के तत्व – ns1-2 (n = 2 से 7)
- p – ब्लॉक के तत्व – ns2np1-6 (n = 2 से 7)
- d – ब्लॉक के तत्व – (n – 1)d1-10 ns0-2 (n = 3 से 7)
- f – ब्लॉक के तत्व – (n – 2)f1-14 (n – 1) d0-1 ns2 (n = 6 से 7)
प्रश्न 30.
तत्व, जिसका बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न है, का स्थान आवर्त तालिका में बताइए –
(i) ns2np4 जिसके लिए n = 3 है।
(ii) (n – 1) d2ns2, जब n = 4 है तथा
(iii) (n – 2)f7 (n – 1) d1ns2, जब n = 6 है।
उत्तर:
प्रश्न 31.
कुछ तत्वों की प्रथम ∆iH1 और द्वितीय ∆iH1 आयनन एन्थैल्पी (kJ mol-1 में) और इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (∆egH) (kJ mol-1 में) निम्नलिखित हैं –
ऊपर दिए गए तत्वों में से कौन-सी –
- सबसे कम अभिक्रियाशील धातु है?
- सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु है?
- सबसे अधिक अभिक्रियाशील अधातु है?
- सबसे कम अभिक्रियाशील अधातु है?
- ऐसी धातु है, जो स्थायी द्विअंगी हैलाइड (binary halide), जिनका सूत्र MX2 (X = हैलोजन) है, बनाता है।
- ऐसी धातु, जो मुख्यतः MX (X = हैलोजन) वाले स्थायी सहसंयोजी हैलाइड बनाती है।
उत्तर:
1. सबसे कम अभिक्रियाशील धातु तत्व V है क्योंकि इसकी प्रथम आयनन एन्थैल्पी अधिकतम एवं इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी धनात्मक है।
2. सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु तत्व II है क्योंकि इसकी प्रथम आयनन एन्थैल्पी न्यूनतम तथा इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी कम ऋणात्मक है।
3. सबसे अधिक अभिक्रियाशील अधातु तत्व III है क्योंकि इसकी प्रथम आयनन एन्थैल्पी उच्च है तथा इलेक्ट्रॉन लब्धि अधिक ऋणात्मक है।
4. सबसे कम अभिक्रियाशील अधातु तत्व IV है क्योंकि इसकी प्रथम आयनन एन्थैल्पी कम है किन्तु इलेक्ट्रॉन लब्धि अधिक ऋणात्मक है।
5. ऐसी धातु जो स्थायी द्विअंगी हैलाइड (सूत्र MX,) बनाने वाली धातु तत्व VI होगी जो कि एक क्षारीय मृदा धातु होगी जिसकी प्रथम एवं द्वितीय आयनन एन्थैल्पी के मान में ज्यादा अंतर नहीं है।
6. ऐसी धातु जो MX सूत्र वाले स्थायी सहसंयोजी हैलाइड बनाती है तत्व I होगी जो कि एक क्षारीय धातु होगी, जिसकी प्रथम आयनन एन्थैल्पी कम तथा द्वितीय आयनन एन्थैल्पी उच्च होती है। साथ ही इसकी इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी कम ऋणात्मक होती है। यह तत्व Li जैसा होगा।
प्रश्न 32.
तत्वों के निम्नलिखित युग्मों के संयोजन से बने स्थायी द्विअंगी यौगिकों के सूत्रों की प्रगुक्ति कीजिए –
- लीथियम और ऑक्सीजन
- मैग्नीशियम और नाइट्रोजन
- ऐल्युमिनियम और आयोडीन
- सिलिकॉन और ऑक्सीजन
- फॉस्फोरस और फ्लुओरीन
- ल्यूटेसियम (71वाँ तत्व) और फ्लु ओरीन।
उत्तर:
- Li2O
- Mg3N2
- AlI5
- SiO2
- PF3 या PF5
- LuF3.
प्रश्न 33.
आधुनिक आवर्त सारणी में आवर्त निम्नलिखित में से किसे व्यक्त करता है –
(a) परमाणु संख्या
(b) परमाणु द्रव्यमान
(c) मुख्य क्वांटम संख्या
(d) दिगंशी क्वांटम संख्या।
उत्तर:
(c) मुख्य क्वांटम संख्या
प्रश्न 34.
आधुनिक आवर्त तालिका के लिए निम्नलिखित के संदर्भ में कौन-सा कथन सही नहीं है –
(a) p-ब्लॉक में 6 स्तंभ है, क्योंकिp-कोश के सभी कक्षक भरने के लिए अधिकतम 6 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।
(b) d-ब्लॉक में 8 स्तंभ है, क्योंकि d-उपकोश के कक्षक भरने के लिए अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।
(c) प्रत्येक ब्लॉक में स्तंभों की संख्या उस उपकोश में भरे जा सकने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है।
(d) तत्व के इलेक्ट्रॉन विन्यास को भरते समय अंतिम भरे जाने वाले इलेक्ट्रॉन का उपकोश उसके दिगंशी क्वाण्टम संख्या को प्रदर्शित करता है।
उत्तर:
(b) d-ब्लॉक में 8 स्तंभ है, क्योंकि d-उपकोश के कक्षक भरने के लिए अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 35.
ऐसा कारक, जो संयोजकता इलेक्ट्रॉन को प्रभावित करता है, उस तत्व की रासायनिक प्रवृत्ति को भी प्रभावित करता है। निम्नलिखित में से कौन-सा कारक संयोजकता कोश को प्रभावित नहीं करता- .
(a) संयोजक मुख्य क्वाण्टम संख्या (n)
(b) नाभिकीय आवेश (Z)
(c) नाभिकीय द्रव्यमान
(d) क्रोड इलेक्ट्रॉनों की संख्या।
उत्तर:
(c) नाभिकीय द्रव्यमान
प्रश्न 36.
समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज़ F–, Ne और Na+ का आकार इनमें से किससे प्रभावित होता –
(a) नाभिकीय आवेश (Z)
(b) मुख्य क्वाण्टम संख्या (n)
(c) बाह्य कक्षकों में इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन अन्योन्य क्रिया
(d) ऊपर दिए गए कारणों में से कोई भी नहीं, क्योंकि उनका आकार समान है।
उत्तर:
(a) नाभिकीय आवेश (Z)
प्रश्न 37.
आयनन एन्थैल्पी के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है –
(a) प्रत्येक उत्तरोत्तर इलेक्ट्रॉन से आयनन एन्थैल्पी बढ़ती है।
(b) क्रोड उत्कृष्ट गैस के विन्यास से जब इलेक्ट्रॉन को निकाला जाता है, तब आयनन एन्थैल्पी का मान अत्यधिक होता है।
(c) आयनन एन्थैल्पी के मान में अत्यधिक तीव्र वृद्धि संयोजकता इलेक्ट्रॉनों के विलोपन को व्यक्त करता है।
(d) कमn मान वाले कक्षकों से अधिक n मान वाले कक्षकों की तुलना में इलेक्ट्रॉनों को आसानी से निकाला जा सकता है।
उत्तर:
(d) कमn मान वाले कक्षकों से अधिक n मान वाले कक्षकों की तुलना में इलेक्ट्रॉनों को आसानी से निकाला जा सकता है।
प्रश्न 38.
B, AI, Mg, K तत्वों के लिए धात्विक अभिलक्षण का सही क्रम इनमें से कौन-सा है –
(a) B > Al > Mg > K
(b) Al > Mg > B > K
(c) Mg > Al > K > B
(d) K > Mg > Al > B
उत्तर:
(d) K > Mg > Al > B
प्रश्न 39.
तत्वों B, C, N, F और Si के लिए अधातु अभिलक्षण का सही क्रम इनमें से कौन-सा
(a) B > C > Si > N > F
(b) Si > C > B > N > F
(c) F > N > C > B > Si
(d) F > N > C > Si > B
उत्तर:
(c) F > N > C > B > Si
प्रश्न 40.
तत्वों F, CI, O और N तथा ऑक्सीकरण गुणधर्मों के आधार पर उनकी रासायनिक अभिक्रियाशीलता का निम्नलिखित में से कौन-से तत्वों में है –
(a) F > Cl > O > N
(b) F > O > Cl > N
(c) Cl > F > O > N
(d) O > F > N > Cl
उत्तर:
(b) F > O > Cl > N
तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
प्रश्न 1.
इन तत्वों में से किसका आयनन विभव सर्वाधिक होगा –
(a) Na
(b) Mg
(c) C
(d) F
उत्तर:
(d) F
प्रश्न 2.
इन तत्वों में से कौन-सा तत्व सबसे अधिक ऋण-विद्युती है –
(a) ऑक्सीजन
(b) क्लोरीन
(c) नाइट्रोजन
(d) फ्लुओरीन
उत्तर:
(d) फ्लुओरीन
प्रश्न 3.
आवर्त-सारणी के किसी आवर्त में परमाणु द्रव्यमान बढ़ने के साथ-साथ –
(a) धन-विद्युती गुण में वृद्धि होती है
(b) ऋण-विद्युती गुण में वृद्धि होती है
(c) रासायनिक सक्रियता में वृद्धि होती है
(d) रासायनिक सक्रियता में कमी होती है।
उत्तर:
(b) ऋण-विद्युती गुण में वृद्धि होती है
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किसकी आयनिक त्रिज्या सबसे अधिक है –
(a) K+
(b) O-2
(c) B2+
(d) C–
उत्तर:
(b) O-2
प्रश्न 5.
निम्नलिखित इलेक्ट्रॉनिक संरचनाओं में किसी निष्क्रिय गैस के अन्तिम कक्ष की इलेक्ट्रॉनिक संरचना कौन-सी है –
(a) s2p3
(b) s2p4
(c) s2p5
(d) s2p6
उत्तर:
(d) s2p6
प्रश्न 6.
निम्न में किसका आकार सबसे छोटा होगा –
(a) Al
(b) Al+1
(c)Al+2
(d) Al+3
उत्तर:
(d) Al+3
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा प्रबल अपचायक है –
(a) F–
(b) Cl–
(c) Br–
(d) I–
उत्तर:
(d) I–
प्रश्न 8.
निम्न में से किसका आयनन विभव सर्वोच्च है –
(a) Ca
(b) Ba
(c) Sr
(d) Mg
उत्तर:
(d) Mg
प्रश्न 9.
एक तत्व जिसका परमाणु-क्रमांक 20 है, आवर्त-सारणी के किस समूह में रखा जायेगा –
(a) 4
(b)3
(c) 2
(d) 1
उत्तर:
(c) 2
प्रश्न 10.
तत्वों का आयनन विभव आवर्त-सारणी के वर्ग में –
(a) परमाणु आमाप के साथ बढ़ता है
(b) परमाणु आमाप के साथ घटता है
(c) स्थिर रहता है
(d) अनियमित रूप से बदलता है
उत्तर:
(b) परमाणु आमाप के साथ घटता है
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- उत्कृष्ट गैसों की इलेक्ट्रॉन बन्धुता …………… होती है।
- द्वितीय समूह में Be तथा Mg की इलेक्ट्रॉन बन्धुता ……….. है।
- आवर्त में बायें से दायें जाने पर सामान्यतः आयनन ऊर्जा में ………………. होता है।
- किसी भी तत्व के द्वितीय आयनन विभव का मान सदैव इसके प्रथम आयनन विभव से ……… होता है।
- सर्वाधिक विद्युतऋणीय तत्व आवर्त सारणी के ………………. समूह में स्थित हैं।
- Li एवं Mg तथा Be और Al के गुणों में समानता का पाया जाना ……….. सम्बन्ध के कारण होता है।
- आधुनिक आवर्त सारिणी में कुल ……………. खाने (कॉलम) हैं तथा कुल ………… आवर्त हैं।
- नाभिकीय आवेश में वृद्धि होने पर आवर्त में परमाणविक त्रिज्या ……………….. है।
- क्लोरीन की इलेक्ट्रॉन बन्धुता फ्लुओरीन से ………. होती है।
- डोबेराइनर ने बताया कि अगर तत्वों को उनके परमाणु भार के बढ़ते क्रम में रखा जाये तो प्रत्येक ……………. तत्व पहले तत्वों के समान गुण प्रदर्शित करता है।
उत्तर:
- शून्य
- शून्य
- वृद्धि
- अधिक
- VII A
- विकर्ण
- 18, 7
- घटती
- अधिक
- आठवाँ।
प्रश्न 3.
उचित संबंध जोडिए –
उत्तर:
- (d)
- (c)
- (b)
- (a).
प्रश्न 4.
एक शब्द/वाक्य में उत्तर दीजिए –
- एका सिलिकॉन का दूसरा नाम है।
- N-3 एवं O-2 दोनों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान है। अतः इन्हें क्या कहा जायेगा?
- Al की कौन-सी ऑक्सीकारक अवस्था सबसे अधिक स्थायी होगी?
- एक तत्व का परमाणु क्रमांक 16 है, बताइये वह आवर्त सारणी के किस वर्ग में उपस्थित है?
- आधुनिक आवर्त सारणी के प्रथम आवर्त में कितने तत्व हैं?
उत्तर:
- जर्मेनियम
- समइलेक्ट्रॉनिक
- + 3
- 6 वें
- दो।
तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेण्डलीफ का आवर्त नियम क्या है?
उत्तर:
मेण्डलीफ का आवर्त नियम-“तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुण उनके परमाणु द्रव्यमान के आवर्ती फलन होते हैं।” अर्थात् तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमानों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करने पर एक निश्चित अंतराल के बाद उनके गुणों में पुनरावृत्ति होती है।
प्रश्न 2.
आधुनिक आवर्त नियम क्या है?
उत्तर:
आधुनिक आवर्त नियम-“तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांक के आवर्ती फलन होते हैं।” इस नियम के आधार पर जब तत्वों को उनके बढ़ते हुये परमाणु क्रमांक के क्रम में रखने पर इनके गुणों में क्रमिक परिवर्तन होता है और एक निश्चित अंतराल के बाद समान गुणों वाले तत्वों की पुनरावृत्ति होती है।
प्रश्न 3.
उस नियम का उल्लेख कीजिये जिसके आधार पर मेण्डलीफ ने तत्वों का वर्गीकरण किया। इस नियम में अब क्या संशोधन हुए हैं?
उत्तर:
वह नियम जिसके आधार पर मेण्डलीफ ने तत्वों का वर्गीकरण किया, मेण्डलीफ का आवर्त नियम कहलाता है। इस नियम के अनुसार-“तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु द्रव्यमानों के आवर्ती फलन होते हैं।” इस नियम को अब संशोधित किया गया है तथा इसे आधुनिक आवर्त नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार-“तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांक के आवर्ती फलन होते हैं।”
प्रश्न 4.
डोबेराइनर का त्रिक नियम क्या है?
उत्तर:
यह नियम सर्वप्रथम डोबेराइनर ने दिया था। इस नियमानुसार तत्वों में समान गुणों वाले तत्वों के केन्द्रीय तत्व का परमाणु भार अन्य दो तत्वों के परमाणु भार का औसत भार होता है।
Li7 Na23 K39 अर्थात् 39+72 = 23
प्रश्न 5.
न्यूलैण्ड का अष्टक नियम समझाइये।
उत्तर:
न्यूलैण्ड का अष्टक नियम-यह नियम न्यूलैण्ड ने दिया था। इस नियमानुसार तत्वों को उनके परमाणु भार के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करने पर आने वाले आठवें तत्व का गुण प्रथम तत्व के गुण के समान होता है। यह संगीत के सात सुरों पर आधारित था जिसमें आठवें से पुनरावृत्ति होती है।
प्रश्न 6.
धनायन अपने जनक परमाणुओं से छोटे क्यों होते हैं और ऋणायनों की त्रिज्या जनक परमाणुओं की त्रिज्या से अधिक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
धनायन सदैव अपने जनक परमाणुओं से छोटे होते हैं क्योंकि एक या दो इलेक्ट्रॉनों को त्यागने के कारण, प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ जाता है। इसके कारण संयोजी इलेक्ट्रॉनों पर नाभिक का आकर्षण बल बढ़ जाता है जिससे आयनिक त्रिज्या घट जाती है। दूसरी ओर ऋणायन सदैव अपने जनक परमाणुओं से बड़े होते हैं क्योंकि एक या दो इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करने के कारण प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान घट जाता है जिससे संयोजी इलेक्ट्रॉनों का नाभिक से आकर्षण बल घट जाता है। इसी कारण आयनिक त्रिज्या घट जाती है।
प्रश्न 7.
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी में कितने आवर्त तथा कितने वर्ग हैं? प्रत्येक आवर्त में तत्वों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी में 7 आवर्त तथा 9 वर्ग हैं। प्रथम आवर्त में 2 तत्व, द्वितीय तथा तृतीय आवर्त में 8-8 तत्व, चौथे और पाँचवें आवर्त में 18-18 तत्व हैं, छठवें आवर्त में 32 तत्व हैं । सातवाँ आवर्त अपूर्ण है। इनमें परमाणु क्रमांक 90 से 103 तक के तत्व जिन्हें एक्टिनाइड कहते हैं भी सम्मिलित हैं।
प्रश्न 8.
प्रत्येक आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर:
प्रत्येक आवर्त में बाँये से दाँये चलने पर आयनन विभव, इलेक्ट्रॉन बंधुता बढ़ती है। लेकिन धात्विक प्रकृति, ऑक्साइडों की क्षारीयता, परमाणु त्रिज्या घटती है।
प्रश्न 9.
किसी समूह में ऊपर से नीचे आने पर क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर:
किसी समूह में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु त्रिज्या, आयनिक त्रिज्या बढ़ती है लेकिन आयनन ऊर्जा, ऋणविद्युतता, इलेक्ट्रॉन बंधुता, गलनांक में कमी आती है।
प्रश्न 10.
आधुनिक आवर्त सारणी तथा मेण्डलीफ की आवर्त सारणी की तुलना कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक आवर्त सारणी और मेण्डलीफ आवर्त सारणी की तुलना:
आधुनिक आवर्त सारणी:
- आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को परमाणु क्रमांक के बढ़ते क्रम में रखा गया है।
- इसमें तत्वों को 18 वर्गों में रखा गया है।
- इसमें धातु और अधातु तत्वों को पृथक् रखा गया है।
मेण्डलीफ आवर्त सारणी:
- मेण्डलीफ आवर्त सारणी में तत्वों को परमाणु भार के बढ़ते क्रम में रखा गया है।
- इसमें तत्वों को 9 वर्ग और 7 उप-वर्गों में रखा गया है।
- इसमें धातु और अधातु को पृथक् नहीं रखा गया है।
प्रश्न 11.
विकर्ण संबंध किसे कहते हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय आवर्त के तत्व तृतीय आवर्त के अगले वर्ग के तत्वों से गुणों में समानता दर्शाते हैं। अर्थात् द्वितीय एवं तृतीय आवर्त में एक-दूसरे के विकर्णतः उपस्थित तत्वों के गुणों में समानता होती है। इसे विकर्ण संबंध कहते हैं।
उदाहरण:
वर्ग I II III IV
द्वितीय आवर्त Li Be B C
तृतीय आवर्त Na Mg Al Si
प्रश्न 12.
सभी नाइट्रोजन यौगिकों में N की विद्युत् ऋणात्मकता पाउलिंग पैमाने पर 3.0 है। आप इस कथन पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देंगे?
उत्तर:
सभी नाइट्रोजन यौगिकों में N की विद्युत् ऋणात्मकता पाउलिंग पैमाने पर 3.0 है। यह कथन असत्य है क्योंकि, किसी भी तत्व की विद्युत् ऋणात्मकता नियत नहीं होती है। जिन अन्य तत्वों पर यह बंधित होता है, उनका प्रभाव भी इसके मान पर पड़ता है। तत्व की ऑक्सीकरण अवस्था तथा संकर कक्षक के s- व्यवहार का प्रतिशत बढ़ने पर भी इसका मान बढ़ता है।
प्रश्न 13.
सहसंयोजक त्रिज्या किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी तत्व के अणु में एकल सहसंयोजक बंध द्वारा आबंधित दो. परमाणुओं के नाभिकों के केन्द्र के बीच की दूरी का आधा उस तत्व के परमाणु की सहसंयोजक त्रिज्या सहसंयोजक त्रिज्या कहलाती है।
प्रश्न 14.
वाण्डर वाल्स त्रिज्या किसे कहते हैं?
उत्तर:
ठोस अवस्था में किसी तत्व के दो निकटतम अणुओं के परमाणुओं के केन्द्रों के बीच की दूरी का आधा उस तत्व के परमाणु की वाण्डर वाल्स त्रिज्या कहलाती है। वाण्डर वाल्स त्रिज्या का मान सह-संयोजक त्रिज्या से अधिक होता है।
प्रश्न 15.
प्रारूपी तत्व से क्या समझते हो?
उत्तर:
ऐसे तत्व जो अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, प्रारूपी तत्व कहलाते हैं। इनमें केवल एक बाह्य कोश अपूर्ण होता है तथा अंदर का कोश नियमानुसार पूर्ण रूप से भरा होता है। द्वितीय तथा तृतीय आवर्त के तत्व प्रारूपी तत्व कहलाते हैं।
उदाहरण: C, N, O इत्यादि।
प्रश्न 16.
किसी तत्व के दो समस्थानिकों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी समान होगी या भिन्न? आप क्या मानते हैं? अपने उत्तर से पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
किसी तत्व के दो समस्थानिकों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी समान होनी चाहिए क्योंकि इसका मान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा प्रभावी नाभिकीय आवेश पर निर्भर करता है। किसी तत्व के समस्थानिकों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है जिसके कारण नाभिकीय आवेश भी समान होता है।
प्रश्न 17.
नाइट्रोजन का आयनन विभव ऑक्सीजन से अधिक है, क्यों?
उत्तर:
नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न हैं –
N7 = 1s2 2s2 2p3
O8 = 1s2 2s2 2p3
कोई भी उपकोश यदि पूर्ण उपकोश या अर्धपूर्ण उपकोश हो तो स्थायी होता है। नाइट्रोजन का p उपकोश अर्धपूर्ण उपकोश है जबकि ऑक्सीजन का p उपकोश अपूर्ण उपकोश है। अर्थात् नाइट्रोजन का p उपकोश ऑक्सीजन के p उपकोश से अधिक स्थायी है। इसलिये N परमाणु में से एक इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिये नाइट्रोजन का आयनन विभव उच्च होता है।
प्रश्न 18.
अक्रिय गैसों के आयनन विभव उच्च होते हैं, क्यों?
उत्तर:
पूर्ण उपकोश तथा अष्टक पूर्ण होने की वजह से अक्रिय गैसों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सबसे अधिक स्थायी होता है। इसलिये बाहरी कोश से इलेक्ट्रॉन हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं।
प्रश्न 19.
हैलोजन तत्वों की इलेक्ट्रॉन बंधुता उच्च होती है, क्यों?
उत्तर:
हैलोजन तत्वों का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np5 होता है तथा इन्हें स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने हेतु एक अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है। अत: ये आसानी से एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके स्थायी हैलाइड आयन बनाते हैं। इसलिये हैलोजनों की इलेक्ट्रॉन बंधुता उच्च होती है।
प्रश्न 20.
F और Cl में किसकी इलेक्ट्रॉन बंधुता उच्च होती है, और क्यों?
उत्तर:
F की इलेक्ट्रॉन बंधुता Cl से कम होती है क्योंकि F के छोटे आकार के कारण इसके 2p कक्षकों के इलेक्ट्रॉनों में प्रतिकर्षण अधिक होता है। इसलिये योगशील इलेक्ट्रॉन परमाणु को अतिरिक्त स्थायित्व प्रदान नहीं कर पाता।
प्रश्न 21.
उत्कृष्ट गैसों की इलेक्ट्रॉन बंधुता शून्य होती है, क्यों?
उत्तर:
उत्कृष्ट गैसों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास स्थायी होता है, क्योंकि इनके संयोजी कोश पूर्णतः भरे होते हैं तथा सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं, जिसके कारण आने वाले इलेक्ट्रॉन के प्रति कोई बंधुता नहीं होती है। इसलिये अक्रिय गैसों की इलेक्ट्रॉन बंधुता शून्य होती है।
प्रश्न 22.
परमाणु त्रिज्या तथा आयनिक त्रिज्या में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परमाणु त्रिज्या तथा आयनिक त्रिज्या में अंतर –
परमाणु त्रिज्या
- उदासीन परमाणु के नाभिक से बाहरी कोश तक की दूरी परमाणु त्रिज्या कहलाती है।
- परमाणु त्रिज्या धनायन की आयनिक त्रिज्या से अधिक होती है।
आयनिक त्रिज्या
- उदासीन परमाणु से बने आयन के नाभिक से बाहरी कोश तक की दूरी आयनिक त्रिज्या कहलाती है।
- धनायन की त्रिज्या परमाणु त्रिज्या से कम लेकिन ऋणायन की आयनिक त्रिज्या परमाणु त्रिज्या से अधिक होती है।
प्रश्न 23.
किसी तत्व के द्वितीय आयनन विभव का मान प्रथम आयनन विभव से अधिक होता है। क्यों?
उत्तर:
किसी परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन निकल जाने से शेष परमाणु धन आवेशित होते हैं तथा धनायन का आयनिक त्रिज्या परमाणु त्रिज्या से कम होती है जिसके फलस्वरूप संयोजी कोश के इलेक्ट्रॉन तथा नाभिक के बीच आकर्षण बल बढ़ जाता है, जिसके कारण बाहरी कोश से द्वितीय इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिये द्वितीय आयनन विभव का मान प्रथम आयनन विभव से उच्च होता है।
प्रश्न 24.
धन आयन की आयनिक त्रिज्या परमाणु त्रिज्या से कम होती है। क्यों? अथवा, धनायन का आकार संगत परमाणु से कम होता है। क्यों?
उत्तर::
जब कोई परमाणु एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन त्यागता है तो धनायन बनता है। इस प्रक्रिया में नाभिक में उपस्थित प्रोट्रॉनों की संख्या व नाभिक पर उपस्थित नाभिकीय आवेश तो वही रहता है परन्तु बाहरी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में कमी आती है। जिसके फलस्वरूप प्रति इलेक्ट्रॉन कार्य कर रहे नाभिकीय आकर्षण बल में वृद्धि होती है और बाहरी कोश नाभिक की ओर दृढ़ता से आकर्षित होता है। इसलिये धन आयन का आकार संगत परमाण से कम होता है।
प्रश्न 25.
ऋण आयन की आयनिक त्रिज्या परमाण त्रिज्या से अधिक होती है। क्यों ? अथवा, ऋण आयन का आकार संगत परमाणु से बड़ा होता है। क्यों?
उत्तर:
जब कोई परमाणु एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है तो ऋणायन बनता है। इस प्रक्रिया में नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या व नाभिक पर उपस्थित नाभिकीय आवेश तो वही रहता है परन्तु बाहरी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में वृद्धि होती है। जिसके फलस्वरूप प्रति इलेक्ट्रॉन कार्य कर रहे नाभिकीय आकर्षण बल में कमी आती है। जिसके कारण ऋण आयन का आकार संगत परमाणु से बढ़ जाता है।
प्रश्न 26.
Be और N की इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान शून्य के निकट होता है। क्यों ?
उत्तर:
Be का 2s उपकोश पूर्ण उपकोश होने के कारण अधिक स्थायी होता है, और वह किसी अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन को 5 उपकोश में प्रवेश करने नहीं देता, इसी प्रकार N के p उपकोश अर्धपूर्ण होने के कारण अधिक स्थायी होता है और अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन को ग्रहण नहीं करता। इसलिये Be तथा N की इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान शून्य के करीब होता है।
प्रश्न 27. Mg+2 आयन का आकार O-2 से छोटा होता है, जबकि दोनों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है। समझाइये।
उत्तर:
Mg+2 आयन तथा O-2 आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान है। दोनों के संयोजी कोश में आठ इलेक्ट्रॉन होते हैं। परन्तु Mg+2 आयन में नाभिकीय आवेश + 12 होता है जबकि O-2 आयन में नाभिकीय आवेश +8 है। इसलिये Mg+2 में बाहरी कोश के इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आवेश O-2 की तुलना में अधिक होता है इसलिये Mg+2 आयन का आकार O-2 से छोटा होता है।
प्रश्न 28.
Al का प्रथम आयनन विभव Mg से कम होता है। क्यों?
उत्तर:
A तथा Mg का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न हैं –
Al13 – 1s22 2s2 2p6 3s2 3p1
Mg12 – 1s2 2s2 2p6 3s2
कोई भी उपकोश यदि पूर्ण तथा अर्धपूर्ण उपकोश है, तो परमाणु अधिक स्थायी होता है। AI में p उपकोश अपूर्ण उपकोश है जबकि Mg का s उपकोश पूर्ण उपकोश है। अर्थात् AI का उपकोश Mg के उपकोश से कम स्थायी है। इसलिये Al परमाणु में से एक इलेक्ट्रॉन निकालने के लिये Mg की तुलना में कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है इसलिये AI की आयनन ऊर्जा Mg से कम है।
प्रश्न 29.
परिरक्षण प्रभाव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनों पर समान ऋण आवेश होता है तथा ये एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं और यह प्रतिकर्षण बल नाभिक द्वारा बाहरी कोश पर लग रहे आकर्षण बल को कम कर देता है, जिसके कारण संयोजी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन नाभिक द्वारा दृढ़ता से बँधे नहीं रहते हैं। इस प्रकार बाह्यतम कोश तथा नाभिक के बीच उपस्थित इलेक्ट्रॉन द्वारा नाभिकीय आकर्षण में डाले गये बाधा को परिरक्षण प्रभाव कहते हैं, जिसके कारण बाहरी कोश का इलेक्ट्रॉन ढीला बँधा रहता है।
तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
फ्लुओरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी, क्लोरीन की अपेक्षा कम ऋणात्मक होती है। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फ्लुओरीन की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (इलेक्ट्रॉन बंधुता) क्लोरीन की अपेक्षा कम ऋणात्मक होती है क्योंकि जब एक इलेक्ट्रॉन F (फ्लुओरीन) में प्रवेश करता है तो वह छोटे (n = 2) ऊर्जा स्तर में प्रवेश करता है जहाँ उस पर इस ऊर्जा स्तर में उपस्थित अन्य इलेक्ट्रॉनों का प्रतिकर्षण बल लगता है। CL में प्रवेश करने वाला इलेक्ट्रॉन बड़े (n = 3) ऊर्जा स्तर में प्रवेश करता है जहाँ उस पर उपस्थित अन्य इलेक्ट्रॉनों का बहुत कम प्रतिकर्षण लगता है।
प्रश्न 2.
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी से दीर्घ आवर्त सारणी श्रेष्ठ है, क्यों?
उत्तर:
- आवर्त सारणी का दीर्घ रूप परमाणु क्रमांक पर आधारित है जो परमाणु का अधिक मूलभूत गुण है।
- प्रत्येक तत्व की स्थिति उसके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर सुनिश्चित की गयी है।
- यह विभिन्न तत्वों के रासायनिक गुणों की समानताओं, असमानताओं तथा उन गुणों में क्रमिक परिवर्तन को अधिक स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
- इसमें तत्वों का वर्गीकरण अधिक वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत आधार पर किया गया है।
प्रश्न 3.
आधुनिक आवर्त सारणी की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- यह आवर्त सारणी तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर आधारित है।
- इसमें धातु और अधातु को पृथक् रखा गया है।
- संक्रमण तत्वों को सामान्य तत्वों से पृथक् कर दिया गया है।
- तत्वों को इलेक्ट्रॉन भरने के आधार पर समस्त तत्वों को s, p, d एवं ब्लॉक में विभाजित किया गया है।
- दुर्लभ मृदा तत्वों को उपयुक्त स्थान पर मुख्य आवर्त सारणी के बाहर नीचे रखा गया है।
प्रश्न 4.
किसी तत्व का परमाणु क्रमांक 17 है। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास देते हुये आवर्त सारणी में इसका स्थान निश्चित कीजिये।
उत्तर:
परमाणु क्रमांक 17 वाले तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 1s2 2s2 2p6 3s2 3p5 = 2, 8,7
1. इसके बाह्यतम कोश की इलेक्ट्रॉनिक संरचना 3523p है अतः यह p ब्लॉक का तत्व है।
2. समूह:
यदि एक कोश अपूर्ण है तो बाहरी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उस तत्व के समूह को दर्शाते हैं इसलिये 7 वें समूह का तत्व है।
3. उपसमूह:
यदि अंतिम इलेक्ट्रॉन s या p उपकोश में प्रवेश करता है तो वह तत्व A उपसमूह का होता है।
4. आवर्त:
कोशों की संख्या आवर्त को दर्शाती है। यह तत्व तीसरे आवर्त का सदस्य है।
समूह = 7
उपसमूह = A
आवर्त = 3
प्रश्न 5.
एक तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 है, इसे आवर्त सारणी के किस समूह और आवर्त में रखा जायेगा और क्यों?
उत्तर:
समूह:
यदि किसी तत्व के बाहरी कोश में आठ इलेक्ट्रॉन हैं अर्थात् अष्टक पूर्ण है तो वह तत्व शून्य समूह अर्थात् 18 वर्ग का सदस्य होगा।
आवर्त:
कुल कोशों की संख्या आवर्त को दर्शाती है। दिये गये तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 अर्थात् 2, 8, 8 है। इसलिये तत्व शून्य समूह का सदस्य है तथा तीसरे आवर्त में व्यवस्थित है।
प्रश्न 6.
‘सभी संक्रमण तत्वd-ब्लॉक के तत्व हैं परन्तु सभी d – ब्लॉक के तत्व संक्रमण तत्व नहीं है।’ व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जिन तत्वों के अन्तिम इलेक्ट्रॉन d – कक्षक में प्रवेश करते हैं, d – ब्लॉक के तत्व अथवा संक्रमण तत्व कहलाते हैं। इन तत्वों का सामान्य बाह्यतम इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n – 1) d-10 ns0-2 होता है। Zn, Cd तथा Hg का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n – 1)dions होता है परन्तु ये संक्रमण तत्वों की विशेषताएँ नहीं दर्शाते हैं। इन तत्वों की आद्य अवस्था तथा सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था में, d- कक्षक पूर्णतया भरे हुए होते हैं। अतः इन्हें संक्रमण तत्व नहीं माना जा सकता है। अत: गुणों के आधार पर सभी संक्रमण तत्व, d – ब्लॉक के तत्व हैं तथा इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर सभी d – ब्लॉक के तत्व संक्रमण तत्व नहीं हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित जोड़ों में से किसकी आयनन ऊर्जा का मान कम है और क्यों –
- Cl या F
- Cl या S
- K या Ar
- Kr या Xe.
उत्तर:
1. Cl और F में क्लोरीन की आयनन ऊर्जा कम है क्योंकि Cl का आकार F से बड़ा है।
2. Cl और S में S की आयनन ऊर्जा कम है क्योंकि दोनों में कोशों की संख्या समान है लेकिन S में क्लोरीन की तुलना में नाभिकीय आवेश कम है इसलिये S का आकार CI से बड़ा है।
3. K तथा Ar में K की आयनन ऊर्जा कम है। पोटैशियम के संयोजी कोश में 1 इलेक्ट्रॉन है जिसे वह सरलता से दान कर K+ आयन बना सकता है जबकि Ar में अष्टक पूर्ण होने की वजह से स्थायी है तथा इलेक्ट्रॉन निकालने के लिये ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
4. Kr तथा Xe में Xe की आयनन ऊर्जा कम है क्योंकि Xe का आकार Kr से बड़ा है।
प्रश्न 8.
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर तत्व कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के उदाहरण दीजिये।
अथवा
इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था के आधार पर तत्वों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था के आधार पर तत्व –
1. सक्रिय गैस:
इन्हें आवर्त सारणी में 18 वें वर्ग में रखा गया है। इनके बाहरी कोश में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास स्थायी होता है। इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np6 है (हीलियम को छोड़कर, ns2)।
उदाहरण: Ne, Ar.
2. प्रतिनिधि तत्व:
इनके बाहरी कोश अपूर्ण होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करने पर अंतिम इलेक्ट्रॉन s या p उपकोश में प्रवेश करता है। इसलिये इसके अंतर्गत 5 ब्लॉक तत्व तथा p ब्लॉक तत्व आते हैं। इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns1 से ns22p5 तक होता है।
- s ब्लॉक तत्व – Na, Mg
- p ब्लॉक तत्व – Cl, S.
3. संक्रमण तत्व:
इनके बाहरी दो कक्ष अपूर्ण होते हैं। समूह क्रमांक 3 से 12 तक के तत्व जो आवर्त सारणी के मध्य में स्थित हैं, संक्रमण तत्व कहलाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करने पर अंतिम इलेक्ट्रॉन d उपकोश में प्रवेश करता है। इनके बाहरी कोश का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2(n – 1)d1-10 होता है। उदाहरण: Cr, Mn.
4. अंतर संक्रमण तत्व:
इनके बाहरी तीन कोश अपूर्ण होते हैं। इसके अंतर्गत लैन्थेनाइड तथा एक्टिनाइड आते हैं। ये आवर्त सारणी के नीचे स्थित हैं। अंतिम इलेक्ट्रॉन F उपकोश में प्रवेश करता है। इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2(n – 2)f1-14 होता है।
उदाहरण: Ce, Th.
प्रश्न 9.
s – ब्लॉक तत्व किसे कहते हैं? इनके मुख्य गुण लिखिये।
उत्तर:
इनमें इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करने पर अंतिम इलेक्ट्रॉन 5 उपकोश में प्रवेश करता है तथा केवल बाहरी कोश अपूर्ण होता है। बाहरी कोश के 5 उपकोश में 1 या 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns1-2 होता है।
s – ब्लॉक तत्वों के सामान्य गुण:
- इन तत्वों के बाह्य कोश में 1 या 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं।
- इनके बाहरी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns1-2 है।
- हाइड्रोजन को छोड़कर अन्य सभी तत्व धातु हैं। प्रथम समूह के तत्व क्षारीय तत्व तथा द्वितीय समूह के तत्व क्षारीय मृदा तत्व कहलाते हैं।
- इनकी ऑक्सीकरण संख्या +1 या +2 होती है।
- ये प्रबल आयनिक यौगिक बनाते हैं।
- इनके ऑक्साइड क्षारीय होते हैं।
- ये प्रबल अपचायक हैं।
- ये जटिल आयन नहीं बनाते हैं।
- जल तथा अम्ल से क्रिया कराने पर हाइड्रोजनं विस्थापित करते हैं।
प्रश्न 10.
p ब्लॉक तत्व किसे कहते हैं? इनके मुख्य लक्षण लिखिये।
उत्तर:
यदि इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करने पर अंतिम इलेक्ट्रॉन p उपकोश में प्रवेश करता है तो उसे p ब्लॉक तत्व कहते हैं। बाह्यतम कोश के 5 उपकोश में 2 तथा p उपकोश में 1 से 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इनके संयोजी कोश का विन्यास ns2np1-6 होता है।
p ब्लॉक तत्वों के सामान्य गुण:
- अंतिम इलेक्ट्रॉन p उपकोश में प्रवेश करता है।
- इनके संयोजी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np1-6 होता है।
- ये प्रायः अधातु तथा उपधातु हैं। कुछ भारी तत्व धातु भी होते हैं।
- प्रायः इनकी निश्चित संयोजकता होती है किन्तु कुछ तत्व परिवर्ती संयोजकता भी दर्शाते हैं।
- ये आपस में सहसंयोजी यौगिक बनाते हैं परन्तु 5 ब्लॉक तत्वों के साथ आयनिक यौगिक बनाते हैं।
- ये प्रायः जटिल ऋण आयन बनाते हैं। जैसे – CO3-2, SO4-2, Na3-1-1.
- इनके ऑक्साइड प्रायः अम्लीय होते हैं। कुछ ऑक्साइड जैसे – PbO, Al2O3, इत्यादि उभयधर्मी भी होते हैं।
प्रश्न 11.
एक तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 4s2 है इसका परमाणु भार 40 है। इसके नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या बताइये। तत्व का नाम व आवर्त सारणी में स्थिति बताइये।
उत्तर:
- तत्व का परमाणु भार – 40
- तत्व का परमाणु क्रमांक – 20
- इलेक्ट्रॉनों की संख्या – 20
- प्रोटॉनों की संख्या – 20
- न्यूट्रॉनों की संख्या – परमाणु भार – प्रोटॉनों की संख्या
40 – 20 = 20 - इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – 2, 8, 8, 2
- समूह – 2
- उपसमूह – A
- आवर्त – 4
अतः यह तत्व 2A समूह में चौथे आवर्त में स्थित है।
प्रश्न 12.
किसी तत्व की विद्युत् ऋणात्मक से क्या समझते हो ? इलेक्ट्रॉन बंधुता से यह किस प्रकार भिन्न है ? आवर्त सारणी में विद्युत् ऋणात्मकता किस प्रकार बदलती है?
उत्तर:
विद्युत् ऋणात्मकता:
किसी यौगिक में दो परमाणुओं के मध्य स्थित साझे के इलेक्ट्रॉन जोड़े को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता को परमाणु की विद्युत् ऋणात्मकता या ऋणविद्युता कहते हैं।
इलेक्ट्रॉन बंधुता:
किसी परमाणु की गैसीय अवस्था में बाहरी कोश में एक इलेक्ट्रॉन के प्रवेश करने पर मुक्त होने वाली ऊर्जा को इलेक्ट्रॉन बंधुता कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी परमाणु द्वारा बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन को बाँधकर रखने की क्षमता को इलेक्ट्रॉन बंधुता कहते हैं। किसी भी तत्व की प्रथम इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान ऋणात्मक होता है क्योंकि यह प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी है। जबकि द्वितीय इलेक्ट्रॉन बंधुता में ऊर्जा का अवशोषण होता है। क्योंकि ऋणआवेशित आयन आने वाले अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन को प्रतिकर्षित करता है।
अंतर:
इलेक्ट्रॉन बंधुता अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन को बाँधने का गुण है। जबकि ऋणविद्युतता अणु में किसी परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन को आकर्षित करने की क्षमता है।
आवर्तिता:
किसी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर परमाणु आकार में कमी तथा नाभिकीय आवेश में वृद्धि के कारण ऋणविद्युतता बढ़ती है। समूह में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु आकार में वृद्धि के साथ ऋणविद्युतता घटती है।
प्रश्न 13.
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी के उपयोग लिखिए।
उत्तर:
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी की उपयोगिता
1. तत्वों के अध्ययन में सहायक:
आवर्त सारणी में वर्गों के समान गुण वाले तत्व तथा आवर्त में तत्वों के गुणों में क्रमिक परिवर्तन होता है। एक वर्ग के सामान्य गुणों की जानकारी होने पर उस वर्ग के सभी तत्वों के सामान्य गुणों को बताया जा सकता है।
2. नये तत्वों की खोज में सहायक:
मेण्डलीफ ने मूल आवर्त सारणी में अज्ञात तत्वों के लिये खाली स्थान छोड़ दिये थे किन्तु इन स्थान पर होने वाले तत्वों की उसने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी। बाद में जब इन तत्वों की खोज हुई थी तो इन तत्वों के गुण लगभग वही पाये गये जिनके मेण्डलीफ ने पहले ही भविष्यवाणी की थी। स्कैण्डियम, गैलियम, जर्मेनियम तत्वों की खोज मेण्डलीफ की भविष्यवाणी के आधार पर हुई।
3. अनेक तत्वों के परमाणु द्रव्यमान ज्ञात करने में:
किसी तत्व की आवर्त सारणी में स्थिति के आधार पर उसकी संयोजकता ज्ञात की जा सकती है। संयोजकता को उस तत्व के सही तुल्यांकी द्रव्यमान से गुणा करने से तत्व का सही परमाणु द्रव्यमान ज्ञात कर सकते हैं।
परमाणु द्रव्यमान = तुल्यांकी द्रव्यमान x संयोजकता
4. अनुसंधान में सहायक:
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी के अवलोकन मात्र से किसी तत्व का दूसरे तत्व के प्रति व्यवहार का अनुमान लगाया जा सकता है। यह ज्ञान तथा जानकारी अनेक अनुसंधान में सहायक है।
प्रश्न 14.
संक्रमण तत्व किन तत्वों को कहते हैं? संक्रमण तत्वों के सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संक्रमण तत्व:
आधुनिक आवर्त सारणी में 5 ब्लॉक तथा p ब्लॉक तत्वों के मध्य स्थित तत्वों को संक्रमण तत्व कहते हैं या जिन तत्वों अथवा उनके आयनों में आंशिक भरे d कक्षक होते हैं, संक्रमण तत्व कहलाते हैं। इनमें अंतिम इलेक्ट्रॉन उपान्तय कक्ष के d कक्षक में प्रवेश करता है। इसलिये इन्हें d ब्लॉक तत्व कहते हैं। इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2(n – 1)d1-10 होता है। इसके अंतर्गत III B से II B तक के वर्ग आते हैं।
संक्रमण तत्वों के सामान्य गुण:
- इनके बाह्यकोश के 2 कोश अपूर्ण होते हैं।
- इनकी प्रकृति धात्विक होती है।
- ये परिवर्ती ऑक्सीकरण संख्या दर्शाते हैं।
- ये रंगीन आयन बनाते हैं।
- ये संकुल लवण बनाते हैं।
- ये अच्छे उत्प्रेरक होते हैं।
- ये सरलता से मिश्रधातु बनाते हैं।
- ये सामान्यतः अनुचुम्बकीय होते हैं।
- सरलता से अन्तराली यौगिकों का निर्माण करते हैं।
- ये रासायनिक रूप से कम क्रियाशील होते हैं।
प्रश्न 15.
अंतर संक्रमण तत्व किसे कहते हैं? अंतर संक्रमण तत्वों के सामान्य गुण लिखिए।
उत्तर:
इन तत्वों के तीन बाहरी कक्ष अपूर्ण होते हैं। इन तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करने पर अंतिम इलेक्ट्रॉन भीतर की ओर तीसरी कक्ष के उपकोश में प्रवेश करता है। इसलिये इन्हें fब्लॉक तत्व भी कहते हैं। लैन्थेनाइड्स तथा एक्टीनाइड्स तत्वों की दोनों श्रेणियाँ वर्ग 3 तथा वर्ग 4 को जोड़ने वाले तत्व हैं इसलिये इन्हें अंतर संक्रमण तत्व कहते हैं तथा इनका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2(n – 2) f1-14 होता है।
लैन्थेनाइड्स:
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करने पर अंतिम इलेक्ट्रॉन 4f उपकोश में प्रवेश करता है।
एक्टिनाइड्स:
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करने पर अंतिम इलेक्ट्रॉन 5f उपकोश में प्रवेश करता है।
अंतर संक्रमण तत्वों के सामान्य गुण:
- इनके (n – 2) कोश के उपकोश में इलेक्ट्रॉन प्रवेश करता है।
- परिवर्ती संयोजकता दर्शाते हैं।
- ये सभी धात्विक प्रकृति दर्शाते हैं।
- इनके आयन प्रायः रंगीन होते हैं।
- संकुल आयन बनाने की प्रवृत्ति होती है।
- विद्युत् संयोजी यौगिक बनाते हैं।
प्रश्न 16.
आधुनिक आवर्त नियम क्या है? इस नियम के आधार पर बनी आवर्त सारणी का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक आवर्त नियम- यह नियम मोसले ने प्रस्तुत किया था। इस नियम के अनुसार, “तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण परमाणु संख्या के आवर्ती फलन होते हैं।”
इस सारणी में सात क्षैतिज और 18 ऊर्ध्वाधर खाने हैं। 7 क्षैतिज खाने आवर्त तथा 18 ऊर्ध्वाधर खाने उपवर्ग को दर्शाते हैं।
आवर्त:
- प्रत्येक आवर्त में तत्व परमाणु क्रमांक के बढ़ते क्रम के आधार पर व्यवस्थित हैं।
- प्रत्येक आवर्त का क्रमांक उस तत्व के बाहरी कोश की मुख्य क्वाण्टम संख्या को दर्शाता है।
- प्रथम आवर्त को छोड़कर अन्य सभी आवर्त क्षार धातु से प्रारम्भ होकर अक्रिय गैस पर समाप्त होते हैं।
- प्रथम आवर्त में 2 तत्व हैं इसे अति लघु आवर्त कहते हैं।
दूसरे तथा तीसरा आवर्त लघु आवर्त हैं इनमें क्रमशः 8-8 तत्व हैं। चौथा, पाँचवाँ आवर्त दीर्घ आवर्त हैं। इनमें क्रमशः 18-18 तत्व हैं । छठवाँ आवर्त अति दीर्घ आवर्त है इसमें 32 तत्व हैं। सातवाँ आवर्त अपूर्ण है।
वर्ग:
- आवर्त सारणी में 18 ऊर्ध्वाधर खाने होते हैं, जो 1 से 18 वर्गों को प्रदर्शित करते हैं।
- प्रत्येक वर्ग में सभी तत्वों के बाह्यतम कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है।
- इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर तत्वों को चार समुदाय में वर्गीकृत किया गया है –
- 5 ब्लॉक
- p ब्लॉक तत्व
- d ब्लॉक तत्व,
- f ब्लॉक तत्व।
प्रश्न 17.
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी तथा आधुनिक आवर्त सारणी की तुलना कीजिए।
उत्तर:
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी और आधुनिक आवर्त सारणी की तुलना –
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी:
- इस आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते हुये परमाणु द्रव्यमान के आधार पर व्यवस्थित किया गया है।
- मेण्डलीफ की आवर्त सारणी में कुल 9 ऊर्ध्वाधर खाने हैं जिन्हें वर्ग कहते हैं।
- मेण्डलीफ की आवर्त सारणी में शून्य समूह में अक्रिय गैसें हैं।
- मेण्डलीफ की आवर्त सारणी में भिन्न गुणों वाले तत्वों को एक ही वर्ग में रखा गया है।
- मेण्डलीफ की आवर्त सारणी में प्रत्येक समस्थानिक को अलग-अलग स्थान मिलना चाहिये। लेकिन समस्थानिकों के लिये कोई स्थान नहीं है।
आधुनिक आवर्त सारणी:
- इस आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते हुये परमाणु क्रमांक के आधार पर व्यवस्थित किया गया है।
- आधुनिक आवर्त सारणी में कुल 18 ऊर्ध्वाधर खाने हैं जिन्हें वर्ग कहते हैं।
- आधुनिक आवर्त सारणी में प्रत्येक आवर्त के अंत को बाद में जोड़ा गया है।
- आधुनिक आवर्त सारणी में असमान गुण वाले तत्वों को अलग-अलग रखा गया है।
- सभी तत्वों के समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक क्रमांक एक ही होता है। इसलिये समस्थानिकों को अलग-अलग स्थान देने की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 18.
आवर्त सारणी में परमाणु के आकार में किस प्रकार परिवर्तन होता है? समझाइये।
उत्तर:
किसी परमाणु में परमाणु के नाभिक से उसके बाह्यतम कोश तक की दूरी परमाणु त्रिज्या कहलाती है।
आवर्त:
किसी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर कोशों की संख्या तो समान रहती है लेकिन परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ बाहरी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन की संख्या में वृद्धि होती है तथा प्रभावी नाभिकीय आवेश भी बढ़ जाता है। इस प्रकार नाभिकीय आवेश के बढ़ने से नाभिक तथा बाहरी कोश के बीच आकर्षण बल बढ़ने के कारण त्रिज्या में कमी आती है अतः आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर परमाणु त्रिज्या में कमी आती है।
वर्ग में:
किसी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु के आकार में वृद्धि होती है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन नये कोश में प्रवेश करता है तथा कोशों की संख्या में भी वृद्धि होती है तथा नाभिकीय आवेश भी बढ़ता है। लेकिन नये कोश का प्रभाव नाभिक की आकर्षण से अधिक होता है।
तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी के प्रमुख दोष क्या हैं ? इन्हें आधुनिक आवर्त सारणी में किस प्रकार दूर किया जा सकता है?
उत्तर:
मेण्डलीफ की आवर्त सारणी के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं –
- हाइड्रोजन का स्थान निश्चित नहीं है।
- अनेक तत्व परमाणु भार के बढ़ते क्रम में नहीं हैं, कुछ भारी तत्वों को हल्के तत्वों से पहले रखा गया है।
- समस्थानिकों को एक ही स्थान पर रखा गया है।
- असमान गुण वाले तत्वों को एक ही वर्ग में एक साथ रखा गया है।
- समान गुण वाले तत्वों को अलग-अलग स्थान पर रखा गया है।
- आठवें वर्ग में तत्वों की स्थिति अनुपयुक्त है।
- अक्रिय गैसों को स्थान नहीं दिया गया था।
आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते हुये परमाणु क्रमांक के क्रम में रखा गया है जिसके कारण मेण्डलीफ आवर्त सारणी के अधिकांश दोष दूर हो गये हैं।
1. अधिक परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व का कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व के पहले रखा जाना:
आधुनिक आवर्त सारणी में इन्हें परमाणु संख्या के क्रम में रखा गया है जिससे परमाणु द्रव्यमान के आधार पर रखने से जो दोष उत्पन्न हो गये थे वह दूर हो गये। जैसे-Ar परमाणु संख्या 18 को पोटैशियम परमाणु संख्या 19 होने से कोई विसंगति नहीं है।
2. समस्थानिकों का स्थान:
किसी तत्व के सभी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक एक ही होता है। इसलिये समस्थानिकों के लिये अलग-अलग स्थान देने की आवश्यकता नहीं है।
3. असमान गुण वाले तत्वों को एक ही स्थान पर रखा गया है:
आधुनिक आवर्त सारणी में असमान गुण वाले तत्वों को अलग-अलग रखा गया है। जैसे-उपवर्ग IA के Li, Na, K को वर्ग A में तथा उपवर्ग IB के Cu, Ag, Au को वर्ग II में रखा गया है।
4. अक्रिय गैसों का स्थान:
आधुनिक आवर्त सारणी में अक्रिय गैसों को प्रबल वैद्युत् ऋणात्मक तत्वों (वर्ग 17) और प्रबल वैद्युत् धनात्मक तत्वों (वर्ग 1) के बीच में रखा गया है जो सेतु जैसा कार्य करते हैं।
प्रश्न 2.
आयनन ऊर्जा से क्या समझते हो? आयनन ऊर्जा को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
उत्तर:
आयनन ऊर्जा-किसी तत्व के गैसीय अवस्था में एक विलगित परमाणु से बाह्यतम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिये आवश्यक ऊर्जा को आयनन ऊर्जा कहते हैं।
Me(g) + ऊर्जा → M(g)+ + इलेक्ट्रॉन
Me(g) – इलेक्ट्रॉन → Me(g)+ + आयनन ऊर्जा
मात्रक:
आयनन ऊर्जा का मात्रक kJ/mol है।
आयनन ऊर्जा को प्रभावित करने वाले कारक:
1. परमाणु या आयन का आकार:
परमाणु या आयन का आकार जितना अधिक होगा नाभिक और बाह्य कोश के इलेक्ट्रॉनों के बीच उतना ही कम प्रभावी आकर्षण बल कार्य करता है जिसके कारण इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः आयनन ऊर्जा के मान में कमी आती है।
2. नाभिकीय आवेश:
नाभिकीय आवेश में वृद्धि होने से आयनन ऊर्जा के मान में वृद्धि होती है क्योंकि इलेक्ट्रॉन और इलेक्ट्रॉन के बीच उच्च स्थिर वैद्युत आकर्षण बल होने के कारण इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
3. परिरक्षण प्रभाव:
परिरक्षण प्रभाव जितना अधिक होता है आयनन विभव का मान उतना कम होता है।
4. पूर्ण एवं अर्धपूर्ण कक्षक:
पूर्ण तथा अर्धपूर्ण उपकक्ष अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होते हैं। इस स्थिति में इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः इस प्रकार के परमाणुओं की आयनन ऊर्जा अधिक होती है।
5. बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:
जिन तत्वों का अष्टक पूर्ण होता है अर्थात् संयोजी कोश में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं वे तत्व अत्यधिक स्थायी होते हैं । अतः इनके संयोजी कोश से इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
6. आवर्तिता:
(i) वर्ग में आवर्तिता:
किसी भी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु त्रिज्या में वृद्धि होती है जिसके कारण संयोजी कोश से इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अत: वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर आयनन ऊर्जा में कमी आती है।
(ii) आवर्त में आवर्तिता:
किसी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर नाभिकीय आवेश में वृद्धि एवं परमाणु त्रिज्या में कमी के कारण संयोजी कोश से किसी इलेक्ट्रॉन को निष्कासित करने हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अर्थात् आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर आयनन ऊर्जा का मान बढ़ता है।
प्रश्न 3.
इलेक्ट्रॉन बन्धुता से क्या समझते हो? इसके प्रभावकारी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उत्तेजित अवस्था में किसी परमाणु या अणु या आयन के इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति को इलेक्ट्रॉन बंधुता कहते हैं । अर्थात् किसी विलगित एवं उदासीन परमाणु को ऋण आयन में बदलने पर प्राप्त ऊर्जा को इलेक्ट्रॉन बंधुता कहते हैं।
इस प्रकार किसी उदासीन विलगित परमाणु में एक अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन के प्रवेश करने से ऊर्जा मुक्त होती है अतः इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान धनात्मक होता है। परन्तु इस ऋण आयन में और अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन का समावेश करने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान ऋणात्मक होता है।
Ag(g) + इलेक्ट्रॉन → A(g)– + ऊर्जा
A(g)– + इलेक्ट्रॉन → A(g)-2-2 ऊर्जा
मात्रक:
इलेक्ट्रॉन बंधुता का मात्रक kJ/mol है।
इलेक्ट्रॉन बंधुता को प्रभावित करने वाले कारक:
1. परमाणु या आयन का आकार:
परमाणु या आयन का आकार बढ़ने से बाह्यकोश तथा नाभिक के बीच दूरी बढ़ती है। जिसके कारण नाभिक तथा ग्रहण होने वाले इलेक्ट्रॉन के बीच आकर्षण बल में कमी आती है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान घटता है।
2. प्रभावी नाभिकीय आवेश:
प्रभावी नाभिकीय आवेश में वृद्धि करने से नाभिक तथा ग्रहण होने वाले इलेक्ट्रॉन के बीच आकर्षण बढ़ता है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान बढ़ता है।
3. बाह्य कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:
जिन तत्वों का अष्टक पूर्ण होता है। अर्थात् संयोजी कोश में आठ इलेक्ट्रॉन हैं तो तत्वों के अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति शून्य होती है इसलिये ऐसे तत्वों की इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान शून्य होता है।
4. अर्धपूर्ण तथा पूर्ण कक्षक:
पूर्ण तथा अर्धपूर्ण कक्षक अधिक स्थायी होते हैं तथा इस अवस्था में यह अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन को सरलता से ग्रहण नहीं करते हैं इसलिये ऐसे तत्वों की इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान शून्य होता है।
5. आवर्तिता:
(i) आवर्त में आवर्तिता:
किसी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान सामान्यतः बढ़ता है क्योंकि नाभिकीय आवेश बढ़ता है तथा परमाणु का आकार घटता है । इसके फलस्वरूप ग्रहण करने वाले इलेक्ट्रॉन पर नाभिक का आकर्षण बढ़ता है।
(ii) वर्ग में आवर्तिता:
किसी भी वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर परमाणु त्रिज्या में वृद्धि के कारण आने वाले इलेक्ट्रॉन तथा नाभिक के बीच आकर्षण बल में कमी आती है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन बंधुता में कमी आती है।
प्रश्न 4.
आवर्त सारणी के किसी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर तत्वों के निम्न गुणों में होने वाले परिवर्तन को समझाइये –
- परमाणु त्रिज्या
- ऋणविद्युतता
- आयनन ऊर्जा
- धात्विक लक्षण
- संयोजकता।
उत्तर:
1. परमाणु त्रिज्या:
किसी भी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या में वृद्धि के कारण नाभिक आवेश में वृद्धि होती है। लेकिन आने वाले इलेक्ट्रॉन समान कोश में प्रवेश करते हैं जिसके कारण बाहरी कोश नाभिक की ओर दृढ़ता से आकर्षित रहता है, जिसके कारण परमाणु त्रिज्या में कमी आती है।
2. ऋणविद्युतता:
किसी भी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर नाभिकीय आवेश में वृद्धि तथा परमाणु त्रिज्या में कमी आती है जिसके कारण ऋणविद्युतता में वृद्धि होती है।
3. आयनन ऊर्जा:
किसी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान सामान्यतः बढ़ता है। क्योंकि नाभिकीय आवेश बढ़ता है तथा परमाणु का आकार घटता है जिसके कारण ग्रहण करने वाले इलेक्ट्रॉन पर नाभिक का आकर्षण बढ़ता है। .
4. धात्विक लक्षण:
किसी भी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर परमाणु त्रिज्या में कमी तथा नाभिकीय आवेश में वृद्धि के कारण आयनन ऊर्जा में वृद्धि होती है जिसके कारण संयोजी कोश के इलेक्ट्रॉन नाभिक के साथ दृढ़ता से जुड़े रहते हैं जिसके फलस्वरूप उसके इलेक्ट्रॉन दान करने की प्रवृत्ति में कमी आती है। इसलिये किसी भी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर धात्विक लक्षण में कमी आती है।
5. संयोजकता:
किसी भी आवर्त में बाँये से दाँये जाने पर ऑक्सीजन के सापेक्ष संयोजकता 1 से 7 तक बढ़ती है लेकिन हाइड्रोजन के प्रति संयोजकता 1 से 4 तक बढ़ती है फिर घटती है।