mp 6 sanskrit

MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः

MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः

MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः

वर्ण-विचार

वर्णमाला के वर्णों का विभाजन

वर्ण दो प्रकार के होते हैं-स्वर तथा व्यंजन।

स्वर :
दो प्रकार के हैं-

  1. ह्रस्व स्वर-अ, इ, उ, ऋ, ल।
  2. दीर्घ स्वर-आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

व्यंजन :
वर्णों को वर्ग के आधार पर निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-

विसर्ग-उच्चारणस्य नियमाः

उच्चारण :
विसर्ग का स्थान पूर्ववर्ती अन्तिम वर्ण के स्थान के समान माना जाता है। अतः पूर्ववर्ती वर्ण अर्थात् विसर्ग के आश्रय वर्ण को ध्यान में रखते हुए सर्प शावक के श्वास के समान विसर्ग का उच्चारण करना चाहिए। इस विषय में उच्चारण के नियम कुछ विशेष हैं-

  1. अकार/आकार तथा ऋकार/ऋकार के पश्चात् विसर्ग का उच्चारण हकार सदृश होता है।
  2. इकार/ईकार के पश्चात् विसर्ग का उच्चारण हिकार सदृश होता है।
  3. उकार/ऊकार के पश्चात् विसर्ग का उच्चारण हुकार सदृश होता है।
  4. एकार के पश्चात् विसर्ग का उच्चारण हेकार सदृश होता है।
  5. ओकार के पश्चात् विसर्ग का उच्चारण होकार सदृश होता।
  6. ऐकार का शुद्ध उच्चारण ‘अइ’ के रूप में होता है अतः ऐकार का परवर्ती घटक इ हुआ इस कारण से ऐकार के बाद विसर्ग का उच्चारण हिकार सदृश होता है।
  7. औकार का शुद्ध उच्चारण ‘अउ’ के रूप में होता है अतः औकार का परवर्ती घटक उ हुआ इस कारण से औकार के बाद विसर्ग का उच्चारण हुकार सदृश होता है। उदाहरणार्थ, सारण पी निम्नानुसार है-

सन्धिपरिचयः

वर्णयोः वर्णानां वा मेलनं सन्धिः। स्वरवर्णमेलनं स्वरसन्धिः। सन्धेः त्रयः प्रकाराः सन्ति। स्वरसन्धिः, व्यश्चनसन्धिः विसर्गसन्धिः च। स्वरसन्धेः बहवः प्रकाराः सन्ति। किन्तु अन केवलं दीर्घसन्धिं पठामः।

(दो वर्णों के मेल को संधि कहते हैं। स्वर वर्ण का मेल स्वर सन्धि होती है। सन्धि तीन प्रकार की होती हैं। स्वर, व्यञ्जन और विसर्ग। यहाँ केवल दीर्घ सन्धि पढ़ेंगे।)

दीर्घ सन्धिः -यदि अ, आ, इ, ई, उ, ऊ वर्णानां समक्षं समानाः स्वराः स्युः तदा द्वयोः स्थाने दीर्घः स्वरः भवति।

(यदि अ आ, इ, ई, उ, ऊ, वर्गों के सामने समान स्वर हों तो दोनों के स्थान पर दीर्घ स्वर हो जाता है।)

यथा-(जैसे-)
हिमाचलः = हिम + अचलः → अ + अ = आ
देहान्तः = देह + अन्तः → अ + अ = आ
हिमालयः = हिम + आलयः → अ + आ = आ
भोजनालयः = भोजन + आलयः → अ + आ = आ
विद्यार्थी = विद्या + अर्थी → आ + अ = आ
शिक्षार्थी = शिक्षा + अर्थी → आ + अ = आ
विद्यालयः = विद्या + आलयः → आ + आ = आ
महाशयः = महा + आशयः → आ + आ = आ
कवीन्द्रः = कवि + इन्द्रः → इ + इ = ई
गिरीशः = गिरि + ईशः → इ + ई = ई
महीन्द्रः = मही + इन्द्रः → ई + इ = ई
नदीशः = नदी + ईशः → ई + ई = ई
भानूदयः = भानु + उदयः → उ + उ + ऊ
भानूष्मा = भानु + ऊष्मा → उ + ऊ = ऊ
वधूत्सवः = वधू + उत्सवः → ऊ + उ = ऊ
वधूर्णावस्त्रम् = वधू + ऊर्णावस्त्रम् → ऊ + ऊ = ऊ

उपसर्गपरिचयः

यः शब्दांशः कस्यापि शब्दस्य धातोः वा पूर्वं प्रयुज्य तस्य अर्थे परिवर्तनं विशेषतां वा आनयति सः उपसर्गः। (जो शब्दांश किसी भी शब्द के या धातु से पहले प्रयुक्त होकर उसके अर्थ में परिवर्तन अथवा विशेषता ला देता है, वह उपसर्ग कहा जाता है।) उपसर्गाः निम्नलिखिताः सन्ति (उपसर्ग निम्नलिखित होते हैं)-

प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर, वि, आङ्, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप, एते, उपसर्गाः।
यथा-
ह धातुः (हरणे), कृ धातु (करणे)
हरति = चुराता है।
प्रहरति = प्रहार करता है।
विहरति = घूमता है।
संहरति = संहार करता है।
करोति = करता है।
अनुकरोति = अनुकरण करता है।
प्रतिकरोति = प्रतिकार करता है।
संस्करोति = संस्कार करता है।

उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यः प्रतीयते।
प्रहाराहारसंहारविहार परिहारवत्॥
[उपसर्ग के द्वारा धातु का अर्थ बलपूर्वक अन्य सा प्रतीत होता है, जैसे-प्रहार, आहार, संसार, विहार, परिहार।]

प्रत्ययपरिचयः

यः शब्दः धातोः शब्दस्य वा अन्ते प्रयुज्य विशेषार्थस्य विधानं करोति सः प्रत्ययः। प्रत्ययः द्विविधः-कृदन्तप्रत्ययः तद्धितप्रत्ययः च।
(जो शब्द धातु अथवा शब्द के अन्त में प्रयुक्त होकर विशेष अर्थ का विधान करता है, वह प्रत्यय होता है। प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं-कृदन्त और तद्धित।)

कृदन्तप्रत्ययः यः प्रत्ययः धातोः अन्ते प्रयुज्यते सः कृदन्तप्रत्ययः।
(जो प्रत्यय धातु के अन्त में जोड़े जाते हैं वे कृदन्त प्रत्यय होते हैं।)

यथा-पठ् धातुः क्त्वा प्रत्ययः-पठित्वा।

तद्धितप्रत्ययः यः प्रत्ययः शब्दस्य अन्ते प्रयुज्यते सः तद्धितप्रत्ययः (जो प्रत्यय शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं वे तद्धित प्रत्यय होते हैं।)
यथा- भारत शब्दः घ (ईय) प्रत्ययः- भारतीयः।

अत्र केवलं वयं कृदन्तप्रत्ययं “क्त्वा” प्रत्ययं “तुमुन्” प्रत्ययं च पठामः।
(यहाँ केवल हम कृदन्त प्रत्यय क्त्वा प्रत्यय ‘तुमुन्’ प्रत्यय को पढ़ेंगे।)

क्त्वा प्रत्ययः “कर” या ‘करके’ इत्यर्थे क्त्वाप्रत्ययः भवति।

यथा-
हस् + क्त्वा = हसित्वा = हँसकर
चल् + क्त्वा = चलित्वा = चलकर
भू + क्त्वा = भूत्वा = होकर
गम् + क्त्वा = गत्वा = जाकर
दा + क्त्वा = दत्वा = देकर
पा + क्त्वा = पीत्वा = पीकर

तुमुन् प्रत्ययः “के लिए” इत्र्थे तुमुन् प्रत्ययः भवति।
यथा-
पठ् + तुमुन् = पठितुम् = पढ़ने के लिए
हस् + तुमुन् = हसितुम् = हँसने के लिए
दा + तुमुन् = दातुम् = देने के लिए
पा + तुमुन् = पातुम् = पीने के लिए
गम् + तुमुन् = गन्तुम् = जाने के लिए

अव्ययपरिचयः

यत् त्रिषु लिङ्गेषु, सर्वेषु वचनेषु सर्वासु विभक्तिषु च समानं भवति, तद् अव्ययं कथ्यते।
(जो तीनों ही लिङ्गों में, सभी वचनों में तथा सभी विभक्तियों में समान होता है, वह अव्यय कहा जाता है)

सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु यन्नव्येति तदव्ययम्॥

विभक्तिपरिचयः

व्यावहारिकसंस्कत शब्दावलिः
(व्यवहार में आने वाली संस्कृत शब्दावलि)

फलानि (फलों के नाम)-

आम्रम् = आम
सेवि = सेब
कदली = केला
जम्बुः = जामुन
दाडिमम् = अनार
बिल्वम् = बेल फल
कपित्थम् = कैथ का फल
द्राक्षा = अंगूर
बदरी = बेर

भोज्यपदार्थाः (भोज्य पदार्थ)-

रोटिका = रोटी
प्ररोटिका = पराँठा
पूरिका = पूरी
शाकम् = सब्जी
सूपः = दाल (पकी हुई)
ओदनम् = भात
अवलेहः = अचार, चटनी
शष्कुली = कचौड़ी, पूरी
संयावकः = हलवा
सुपिष्टकम् = बिस्किट
चाकलेहः = चॉकलेट (टॉफी)
दुग्धम् = दुध
लवणम् = नमक
रसगोलकम् = रसगुल्ला
मिष्टान्नम् = मिठाई
दधि = दही।

शाकानि (सब्जियों के नाम)-

आलुकम् = आलू
रक्ताङ्गः = टमाटर
कूष्माण्डः = कद्दू
मूलकम् = मूली
गृञ्जनम् = गाजर
भिण्डकः = भिण्डी
पालकी = पालक
वृन्ताकम् = भटा (बैंगन)
कारवेल्लः = करेला
मरीचिका = मिर्ची
अलाबुः = लौकी

पुष्पाणि (फलों के नाम)-

कमलम् = कमल
पाटलम् = गुलाब
कन्दुकः = गेंदा
चम्पकः = चम्पा
मालती = चमेली
मल्लिका = बेला
यूथिका = जूही

पाठ्यवस्तूनि (पाठ्य वस्तुएँ)-

पुस्तकम् = पुस्तक
लेखनी = कलम
उत्तरपुस्तिका = कॉपी
कर्गदम् = कागज
मसी = स्याही

दैनिकोपयोगीनि वस्तूनि

(दैनिक उपयोग की वस्तुएँ)-

स्नानफेनकम् = नहाने का साबुन
वस्त्रफेनकम् = कपड़े धोने का साबुन
दन्तेफेनकम् = टूथपेस्ट
क्षालनचूर्णम् = धोने का पावडर
व्यजनम् = पंखा
स्यूतः = थैला
छत्रम्। = छाता
कर्तरी = कैंची
तालकम् = ताला
अग्निपेटिका = माचिस
चुल्लिका = चूल्हा
वायुचुल्लिका = गैस चूल्हा
चायम् = चाय
जलम् = जल
भोजनम् = भोजन

परिजननामानि (परिवार के लोगों के नाम)-

पिता = पिता
माता = माता
पितामहः = दादा
पितामही = दादी
मातामहः = नाना
मामामही = नानी
भ्राता = भाई
भगिनी = बहन
अग्रजः = बड़ा भाई
अनुजः = छोटा भाई
अनुजा = छोटी बहन
अग्रजा = बड़ी बहन
मातुलः = मामा
मातुलानी = मामी
पितृव्यः = चाचा
पितव्या = चाची

शब्दरूपाणि

अकारान्तः पुल्लिङ्गः “बालक” शब्दः

एवमेव देवः, नरः, वृक्षः, ग्रामः, दीपः, गजः, इत्यादयः।
आकारान्तः स्त्रीलिङ्गः “लता” शब्दः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 5
एवमेव माला, शाला, रमा, मापिका, सीता, स्थालिका इत्यादयः।

ईकारान्तः स्त्रीलिङ्गः “नदी” शब्दः

एवमेव लेखनी, नगरी, भगिनी, अङ्गुली, घटी, अङ्कनी इत्यादयः।

उकारान्तः स्त्रीलिङ्गः “धेनु” शब्दः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 7

एवमेव रेणु, रज्जु इत्यादयः।
अकारान्तः नपुंसकलिङ्गः “फल” शब्दः

एवमेव ज्ञानम्, वनम् गृहम्, पुष्पम्, चित्रम्, पुस्तकम्, इत्यादयः।

इकारान्तः पुल्लिङ्गः “मुनि” शब्दः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 9
एवमेव कविः, रविः, पतिः, हरिः इत्यादयः।

उकारान्तः पुल्लिङ्ग “गुरु” शब्दः

एवमेव भानुः, तरु, इत्यादयः।

सर्वनामशब्दरूपाणि

द्कारान्तः पुल्लिङ्ग “तद्” शब्दः

द्कारान्तः स्त्रीलिङ्गः “तद्” शब्दः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 12

द्कारान्तः नपुंसकलिङ्गः “तद्” शब्दः

तृतीयातः सप्तमीपर्यन्तं पुल्लिङ्गवद् रूपाणि भवन्ति।

म्कारान्तः पुल्लिङ्गः “किम्” शब्दः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 14

म्कारान्तः स्त्रीलिङ्ग “किम्” शब्दः

मकारान्तः नपुंसकलिङ्गः “किम्” शब्दः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 16
तृतीयातः सप्तमीपर्यन्तं पुल्लिङ्गवद् रूपाणि भवन्ति

दकारान्तः त्रिलिङ्गकः “अस्मद” शब्दः

दकारान्तः त्रिलिङ्गकः “युष्मद” शब्दः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 18

एक-संख्याबोधकशब्दः
(रूप केवल एकवचन में चलते हैं)

द्वि (दो)
(रूप केवल द्विवचन में चलते हैं)
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 20

त्रि (तीन)
(तीन से सभी संख्याओं के रूप केवल बहुवचन में ही चलते हैं)

चतुर् (चार)
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 22

पाँच से दस तक संख्याओं के रूप
(पाँच से संख्याओं में लिंग भेद नहीं होता है)

धातुरूपाणि

पठ् धातुः “लट् लकारः (वर्तमानकाले)

पठ् धातुः “लङ्” लकारः (भूतकाले)

पठ् धातुः “लृट् लकारः (भविष्यत्काले)
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 26
एवमेव वद्, लिख, गम् (गच्छ), क्रीड्, पा (पिब्) इत्यादयः।

‘कृ’ धातुः “लट् लकारः

“अस्” धातुः लट्लकारः
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 28

‘दा’ धातुः लट्लकारः

अनुवाद के नियम

संस्कृत में अनुवाद करने के लिए मुख्य रूप से हमें विभक्ति (कारक) वचन, लिङ्ग, पुरुष, शब्द और धातु का ज्ञान होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए-प्रथम पुरुष के एकवचन के कर्ता के साथ धातु का प्रथम पुरुष एक वचन का रूप प्रयोगहोगा।
जैसे- वह जाता है-स: गच्छति।

प्रथम पुरुष :
वे दोनों जाते हैं-तौ गच्छतः।

के कर्ता :
वे सब जाते हैं-ते गच्छन्ति।

मध्यम पुरुष :
तुम जाते हो-त्वम् गच्छसि।

के कर्ता :
तुम दोनों जाते हो-युवाम् गच्छथः।
तुम सब जाते हो-यूयम् गच्छथ।

उत्तम पुरुष के :
मैं जाता हूँ-अहम् गच्छामि।

कर्ता :
हम दोनों जाते हैं-आवाम् गच्छावः।
हम सब जाते हैं-वयम् गच्छामः।

इस प्रकार शब्द और धातु के वचन व पुरुष समान होंगे। तीनों लिंग के शब्द रूप भिन्न होने पर भी धातु रूप एक ही प्रयोग किये जाते हैं। जैसे-

  1. लड़की पढ़ती है-बालिका पठति।
  2. लड़का पढ़ता है-बालकः पठति।
  3. पत्र: गिरता है-पत्रम् पतति।

संस्कृत के व्याकरण के नियमों को हम इस प्रकार जानेंगे-

पुरुष या कर्ता :
कर्ता (पुरुष) तीन प्रकार के होते हैं-प्रथम या अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष।

प्रथम या अन्य पुरुष :
जिसके सम्बन्ध में कोई बात की जाए। जैसे-वे, सीता, लड़के, वह, वे दोनों, वे सब आदि।

मध्यम पुरुष :
जिससे बात की जाए। जैसे-तुम, तुम दोनों, तुम सब।

उत्तम पुरुष :
जो बात करता है। जैसे-मैं, हम दोनों, हम सब।

तीनों पुरुष तीन वचनों के साथ प्रयोग होते हैं। इनका प्रयोग धातु रूपों के साथ उसी क्रम से होता है। इनके रूप इस प्रकार से चलते हैं-

इसी प्रकार से धातु रूप भी चलते हैं। यथा पठ् धातु के रूप (वर्तमान काल) में क्रमशः तीनों पुरुष के साथ बनाने पर अनुवाद इस प्रकार बनेगा-
MP Board Class 6th Sanskrit व्याकरण-खण्डः 31

कारक चिह्न और विभक्ति

वर्ण परिचय

वर्ण दो प्रकार के हैं-स्वर और व्यंजन-
स्वर :
इन्हें किसी अन्य वर्ण के सहयोग के बिना उच्चारित किया जा सकता है। ये 13 हैं-
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं और अः।

व्यंजन :
व्यंजनों का उच्चारण करने के लिए स्वरों की सहायता की आवश्यकता होती है। व्यंजन 33 हैं-
क् ख् ग् घ् ङ् च्, छ् ज् झ् ञ् ट् ठ् ड् ढ् ण् त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् य् र् ल् व् श् ष् स्।

इनका उच्चारण करने के लिए प्रत्येक व्यंजन में ‘अ’ स्वर मिलाना पड़ता है; यथा-कमल लिखने के लिए-
क् + अ = क; म् + अ = म; ल् + अ = ल = कमल।
इसी प्रकार प्रत्येक व्यंजन में स्वर अ को मिलाकर पढ़ते हैं।

वर्ण समूह और उच्चारण स्थान :
वर्णों के उच्चारण स्थान के आधार पर उनका समूह होता है जो निम्नलिखित है-

वचन

संस्कृत में तीन वचन होते हैं-एकवचन, द्विवचन, बहुवचन।-
एकवचन :
इससे किसी एक व्यक्ति अथवा वस्तु का बोध होता है। जैसे-राम, सीता, गीता आदि।

द्विवचन :
इससे दो वस्तुओं आदि का बोध होता है। जैसे-दो बालक, दो पुस्तकें, दो फल आदि।

बहुवचन :
इससे दो से अधिक वस्तुओं, स्थान या व्यक्तियों – का बोध होता है। जैसे-लड़के, किताबें, स्त्रियाँ, बालिकाएँ आदि।

संस्कृत में अनुवाद बनाते समय प्रत्येक शब्द तथा धातु के साथ इन तीनों वचनों में से वाक्यानुसार किसी का भी प्रयोग होता है।

विभक्तियों का प्रयोग

चिन्ह के आधार पर वाक्य में उसी विभक्ति का प्रयोग होगा। यथा-

लिंग

संस्कृत में तीन लिंग होते हैं-पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिङ्ग।
पुल्लिग :
पुरुषवाचक शब्द पुल्लिग कहलाते हैं। जैसे-राम, मोहन, सोहन आदि।

स्त्रीलिंग :
स्त्रीवाचक शब्द स्त्रीलिंग कहलाते हैं। जैसे-सीता, गीता, लता, नदी, स्त्री आदि।

नपुंसकलिंग :
जिन शब्दों से किसी भौतिक वस्तु, फल आदि का बोध होता है। जैसे-फल, पुस्तक, कलम आदि।

परीक्षोपयोगी अनुवाद

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