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MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 23 कर्तव्य पालन

MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 23 कर्तव्य पालन

MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 23 कर्तव्य पालन

MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Chapter 23 पाठ का अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क) कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश कब दिया था ?
उत्तर
कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन युद्ध करने से पीछे हट रहा था तब श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने कर्तव्यपथ पर डटे रहने के लिए उपदेश दिया था।

(ख) अर्जुन करुणा से क्यों भर उठते हैं?
उत्तर
कुरुक्षेत्र में युद्ध के मैदान में जब अर्जुन दोनों सेनाओं की ओर दृष्टि डालते हैं और वहाँ अपने ताऊ, दादा, मामा, भाई, पुत्र, मौसा, मित्र, गुरु तथा सुहृदयों आदि को देखते हैं तो उनका मन करुणा से भर उठता है।

(ग) अपने स्वजनों को युद्धभूमि में देखकर अर्जुन की क्या दशा हुई?
उत्तर
युद्ध के मैदान में अपने स्वजनों को सामने देखकर अर्जुन का बहुत बुरा हाल हुआ। उसका गला सूख गया। उसके पूरे शरीर में कम्पन्न होने लगा। उसके हाथ में थमा उसका प्रिय धनुष गाण्डीव गिर गया। उसके मन में भ्रम उत्पन्न हो गया। उसमें युद्ध के मैदान में खड़े रहने तक की शक्ति नहीं बची। उसके मन में अनायास अपनों के प्रति मोह उत्पन्न हो गया और उसने श्रीकृष्ण के सामने युद्ध न लड़ने की बात कही।

(घ) अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था ?
उत्तर
युद्ध के मैदान में दोनों सेनाओं की ओर दृष्टि डालने पर जब अर्जुन ने देखा कि दोनों ओर उसके परिजन एवं प्रियजन खड़े हैं तो उसका मन करुणा से भर गया और उसने श्रीकृष्ण के समक्ष युद्ध न करने की इच्छा व्यक्त की।

(छ) हम सुख-दुःख के बंधन से मुक्त कैसे हो सकते
उत्तर
हम सुख और दुःख दोनों स्थितियों में एकसमान रहकर सुख-दु:ख के बंधन से मुक्त हो सकते हैं।

(च) पाप-पुण्य के भ्रम से निकलने के लिए गुरुजी ने क्या उपाय बताया ? .
उत्तर
गुरुजी के अनुसार मनुष्य को कभी भी पाप-पुण्य के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। पाप-पुण्य के भ्रम से निकलने के लिए उपाय बताते हुए गुरुजी ने कहा कि अतीत में किये गये पापों का अँधेरा पुण्य के एक ही कार्य से दूर हो जाता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ अपने शब्दों में लिखिए

(क) “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”।
उत्तर
श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे मानव ! तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है, उसका फल प्राप्त करने का कभी नहीं है। इसलिए मोह-माया को त्यागकर तू केवल अपने कर्म को कर, फल की इच्छा त्याग दे।

(ख) सुख और दुःख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।
उत्तर
यह बिल्कुल ठीक है कि सुख और दुःख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं क्योंकि जब हमें सुख मिलता है तो हम इस चिन्ता में पड़ जाते हैं कि कहीं यह सुख हमसे छिन न जाये और जब हम दुःख में नहीं भी होते हैं तब भी इस चिन्ता में रहते हैं कि कहीं दु:ख न आ जाये। यही वह बंधन है जिससे हम मुक्त नहीं हो पाते हैं।

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) युद्ध में तू प्राणों का उत्सर्ग कर ……….. को प्राप्त होगा।
(ख) तेरा यह आचरण किसी ………. पुरुष का आचरण नहीं है।
(ग) आपने मेरे मन से अज्ञानरूपी अंधकार का नाश
कर ज्ञान रूपी ……….” फैलाया है।
उत्तर
(क) स्वर्ग
(ख) श्रेष्ठ
(ग) प्रकाश

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
शुद्ध वर्तनी छाँटिए

(क) कुरूक्षेत्र कुरुक्षेत्र कुरुछेत्र
(ख) पश्चात पशचात पश्चिात
(ग) निशचित निचित निश्चित
(घ) सामर्थ सामर्थ्य सामरथ्य
उत्तर
(क) कुरुक्षेत्र
(ख) पश्चात
(ग) निश्चित
(घ) सामर्थ्य।

प्रश्न 2.
दी गई वर्ग पहेली में से नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द छाँटिए
अंधकार, कर्म, अनिश्चय, लाभ, बंधन, ज्ञान, पुण्य।
उत्तर
अंधकार-प्रकाश, कर्म-अकर्म, अनिश्चयनिश्चय, लाभ-हानि, बंधन-मुक्त, ज्ञान-अज्ञान, पुण्य-पाप।

प्रश्न 3.
‘एकांकी’ में आए योजक चिह्न वाले शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर
बात-चीत, माता-पिता, कृष्ण-अर्जुन, मेज-कुर्सी, धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुःख, कर्म-अकर्म, आमने-सामने, बंधु-बांधवों, पाप-पुण्य, जय-पराजय, लाभ-हानि, मोह-माया, क्या-क्या, अपने-अपने।

प्रश्न 4.
दिए गए सामासिक पदों का विग्रह कीजिएपितृभक्त, सूत्रधार, सत्यवादी, युद्धारंभ, भगवद्गीता।।
उत्तर
पितभक्त =पिता का भक्त, सुत्रधार = सूत्र का धारक, सत्यवादी- सत्य का वादक (बोलने वाला), युद्धारंभ = युद्ध का आरम्भ, भगवद्गीता = भगवान की गीता।

प्रश्न 5.
दिए गए शब्दों में से तत्सम एवं तद्भव शब्द छाँटकर अलग कीजिए
वृक्ष, इच्छा, कर्त्तव्य, नमस्ते, सच, माता, अभिनय, मुंह।
उत्तर
तत्सम शब्द – वृक्ष, इच्छा, कर्तव्य, अभिनय।
तद्भव शब्द – नमस्ते, सच, माता, मुंह।

प्रश्न 6.
‘ही’ निपात के प्रयोग वाले वाक्य एकांकी से छाँटकर लिखिए।
उत्तर

  1. तेरा यह आचरण किसी श्रेष्ठ पुरुष का आचरण नहीं है और न ही तेरी कीर्ति को बढ़ाने वाला
  2. लेकिन केशव ! अपने ही बंधु-बांधवों से युद्ध कर न तो मैं विजय चाहता हूँ, न राज्य और न ही सुख।
  3. इसलिए इस विषय में तू व्यर्थ ही शोक कर रहा है।
  4. मैं रणभूमि में किस प्रकार भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लडूंगा? ये दोनों ही मेरे पूजनीय
  5. अपने ही गुरुजनों और बंधु-बांधवों का वधकर मेरा किसी भी प्रकार कल्याण नहीं होगा।
  6. बुद्ध में अपने ही स्वजनों का वध कर मुझे क्या फल मिलेगा?
  7. सुख और दुःख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं।
  8. उसी प्रकार अतीत में किये गये पापों का पुण्य अँधेरा पुण्य के एक ही कार्य से दूर हो जाता है।
  9. जब फल की इच्छा ही नहीं होगी तो हम कर्म क्यों करेंगे?
  10. तब तो कोई भी व्यक्ति न तो वृक्ष लगाता और न ही हमें उसके फल खाने को मिलते।

प्रश्न 7.
‘ईय’ प्रत्यय लगाकर शब्द बना है ‘पूजनीय’। इसी प्रकार के पाँच अन्य शब्द लिखिए।
उत्तर
शोभनीय, दर्शनीय, कल्पनीय, माननीय, । उल्लेखनीय।

कर्तव्य पालन परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या

1. मैं हूँसूत्रधार। आज मैं धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि की ओर संकेत करने वाले एक ऐसे प्रसंग से आपका साक्षात्कार कराने जा रहा हूँ जिसने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ को जन्म दिया। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पाण्डव की सेनाएँ युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी हैं। युद्धारम्भ के लिए शंखनाद हो चुका है।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘कर्त्तव्यपालन’ नामक पाठ से अवतरित हैं। इसकी रचयिता डॉ. छाया पाठक हैं।

प्रसंग-कुरुक्षेत्र के मैदान पर युद्ध के आरम्भ होने से पूर्व के दृश्य का वर्णन है।

व्याख्या-सूत्रधार के रूप में काल कुरुक्षेत्र के युद्धकाल का वर्णन करते हुए कहता है कि वह महाभारत युद्ध के एक ऐसे प्रसंग के बारे में बताना चाहता है जिसके कारण महान धर्म-ग्रन्थ ‘गीता’ की रचना हुई। महाभारतकाल का यह प्रसंग मानव के समक्ष अक्सर आने वाली विभिन्न विकट स्थितियों, जैसे-धर्म-अधर्म, निश्चय-अनिश्चय, सुख-दुख, कर्म-अकर्म आदि के समाधान हेतु एक मार्गदर्शक की-सी भूमिका निभाता है। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में लड़ाई शुरू होने वाली है, बिगुल बज चुका है। एक ओर कौरवों की विशाल सेना खड़ी होती है तो दूसरी ओर पाण्डवों की सेना मोर्चा लिए हुए है।

2. हे कृष्ण! अपने इन प्रियजनों को देखकर तो मेरा मुख सूखा जा रहा है। मेरे शरीर में कंप और रोमांच हो रहा है। हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है। मेरा मन
भी भ्रमितसा हो रहा है। मुझमें यहाँ खड़े रहने का भी सामर्थ्य नहीं है। इसलिए मैं युद्ध नहीं करना चाहता।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन श्रीकृष्ण के समक्ष युद्ध लड़ने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर रहा है।

व्याख्या-कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण अर्जुन के रथ को दोनों सेनाओं के बीचोबीच खड़ा कर देते हैं। दुश्मन सेना पर जैसे ही अर्जुन दृष्टि डालता है तो अपने नाते-रिश्तेदारों, परिजनों, शुभचिन्तकों इत्यादि को सामने देख उसके होश उड़ जाते हैं। वह श्रीकृष्ण के सम्मुख युद्ध न करने की बात कहता है। वह कहता है कि अपनों के विरुद्ध युद्ध लड़ने की सोचने मात्र से उसके शरीर में कँपकँपी छूट रही है। उसके हाथ से उसका प्रिय धनुष गाण्डीव भी छूटा जा रहा है। अपनों को सामने खड़ा देखकर उसका मन भ्रमित हो रहा है। उसमें तो मैदान में खड़ा रहने तक की शक्ति नहीं रह गई है। वह श्रीकृष्ण से कहता है कि वह इन परिस्थितियों में युद्ध नहीं करना चाहता।

कर्तव्य पालन शब्दकोश

आतुर = उतावला, अधीर, उत्सुक; तीर्थाटन = तीर्थयात्रा; सामर्थ्य = क्षमता, ताकत; जिज्ञासा = उत्सुकता; आचरण = व्यवहार; संशय = आशंका/संदेह;  उत्सर्ग = आत्म बलिदान दुविधा = अनिर्णय, अंतर्द्वन्द्व।

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