MP Board Class 8th General Hindi व्याकरण
MP Board Class 8th General Hindi व्याकरण
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MP Board Class 8th General Hindi व्याकरण
संधि एवं संधि-विच्छेद
संधि एवं संधि-विच्छेद
(1) स्वर संधि
- विद्यार्थी = विद्या + अर्थी
- हिमालय = हिम + आलय
- महात्मा = महा + आत्मा
- परमात्मा = परम + आत्मा
- विद्यालय = विद्या + आलय
- यद्यपि = यदि + अपि
- सूर्योदय = सूर्य + उदय
- देवेन्द्र = देव + इन्द्र
- रमेश = रमा + ईश
- सुरेश = सुर + ईश
- गिरिश = गिरि + ईश
- विद्याध्ययन = विद्या + अध्ययन
- स्वागत = सु + आगत
- परोपकार = पर + उपकार
- नयन = ने + अन
- गायक = गै + अक
(2) व्यंजन संधि
- सज्जन = सत् + जन
- सन्तोष = सम् + तोष
- उन्नति = उत् + नति
- उद्वेग = उत् + वेग
- संसार = सम् + सार
- उद्घाटन = उत् + घाटन
- जगन्नाथ = जगत् + नाथ
- जगदीश = जगत् + ईश
- संहार = सम् + हार
- संकल्प = सम् + कल्प
- संयोग = सम् + योग
- सद्भावना = सत् + भावना
(3) विसर्ग संधि
- दुर्जन = दुः + जन
- दुर्लभ = दुः + लभ
- दुराचार = दुः + आचार
- मनस्ताप = मनः + ताप
- मनोबल = मनः + बल
- मनोनुकूल = मनः + अनुकूल
- वयोवृद्ध = वयः + वृद्ध
- निष्फल = निः + फल
- निष्कपट = निः + कपट
- दुराशा = दु: + आशा
समास एवं समास विग्रह
(1) अव्ययीभाव समास
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- प्रतिदिन – दिनों दिन
- आजीवन – जीवन पर्यन्त
- आजन्म – जन्म पर्यन्त
- प्रत्येक – प्रति एक
- प्रतिक्षण – क्षण-क्षण
(2) तत्पुरुष समास
- पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
- सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
- नीतियुक्त – नीति से युक्त
- बुद्धिहीन – बुद्धि से हीन
- कर्महीन – कर्म से रहित
- शरणागत – शरण के लिए आया
- पदमुक्त – पद से मुक्त
- राष्ट्रचिन्ह – राष्ट्र का चिन्ह
- ध्यानमग्न – ध्यान में मग्न
- पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम
- नरश्रेष्ठ – नर में श्रेष्ठ
- राजपुत्र – राजा का पुत्र
- राजद्रोह – राज से द्रोह
- धर्मशाला – धर्म की शाला
- राजप्रासाद – राज का प्रासाद
- जन्मभूमि – जन्म की भूमि
- सूर्यप्रकाश – सूर्य का प्रकाश
(3) कर्मधारय समास
- नीलकमल – नील जैसा कमल
- नीलकण्ठ – नील जैसा कण्ठ
- घनश्याम – घन जैसा श्याम
- चरण कमल – कमल जैसा चरण
- चन्द्रमुख – चन्द्र जैसा मुख
- सर्वजन – सभी लोग
- अल्पसंचय – अल्प संचय जैसा
- योगिजन – योगबी जैसे जन
(4) द्विगु समास
- पंचवटी – पाँच वटों का समूह
- नवग्रह – नौ ग्रहों का समूह
- त्रिमूर्ति – तीन मूर्तियों का समूह
- पंचनद – पाँच नदों का समूह
- पंचरत्न – पाँच रत्नों का समूह
- पंचगव्य – पाँच गव्यों का समूह
- नवरत्न – नौ रत्नों का समूह
- नवग्रह – नौ ग्रहों का समूह
(5) बन्द समास
- न्याय – धर्म – न्याय और धर्म
- माता – पिता – माता और पिता
- भाई – बहिन – भाई और बहिन
- पाप – पुण्य – पाप और पुण्य
- धर्म – अधर्म – धर्म और अधर्म
- अमीर – गरीब – अमीर और गरीब
- दाल – रोटी – दाल और रोटी
- लोटा – डोरी – लोटा और डोरी
- राम – लक्ष्मण – राम और लक्ष्मण
- चाचा – चाची – चाचा और चाची
(6) बहुब्रीहि समास
- सत्यवादी – जो सत्य बोला है (वह व्यक्ति)
- पीताम्बर – पीले अम्बर वाले (विष्णु)
- गजानन – गज के समान आनन (गणेश)
- दशानन – दश हैं आनन जिनके (रावण)
- वीणापाणि – वीणा है जिनके हाथ में (सरस्वती)
- चन्द्रशेखर – चन्द्र है शेखर पर जिसके (शिव)
- मुरलीधर – मुरली धारण करने वाले (श्रीकृष्ण)
संज्ञा
प्रश्न-
संज्ञा की परिभाषा लिखकर उसके भेद बताइये
उत्तर-
परिभाषा-किसी व्यक्ति, वस्तु, जाति, स्थान आदि के नाम को संज्ञा कहते हैं।
जैसे-
अमीना, वाराणसी, गाय, चांदी, भीड़ आदि। प्रकार-संज्ञा के प्रमुख पाँच प्रकार हैं
- व्यक्तिवाचक संज्ञा-जिस संज्ञा से किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम का ज्ञान हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-जबलपुर, कृष्ण, इलाहाबाद, गीता।
- जातिवाचक संज्ञा-जिस संज्ञा से एक ही जाति का ज्ञान हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-बंदर, सुअर, घर आदि।
- भाववाचक संज्ञा-जिन शब्दों से किसी भाव या काम का ज्ञान हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-शत्रुता, सौंदर्य, प्रेम, मूर्खता आदि।
- समुदायवाचक संज्ञा-जिन शब्दों से समूह का ज्ञान हो, उन्हें समूहवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मेला, भीड़, जुलूस, रथ-यात्रा आदि।
- पदार्थवाचक संज्ञा-जिन शब्दों से किसी पदार्थ का ज्ञान हो, उसे पदार्थवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-सोना, चांदी, सीसा आदि।
सर्वनाम
प्रश्न-
सर्वनाम की परिभाषा एवं प्रकार उदाहरण सहित बताइये।
उत्तर-
परिभाषा-वाक्य में संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। या जो संज्ञा शब्दों के बदले में आते हैं उन्हें सर्वनाम कहते हैं। जैसे-राम सुरेंद्र के साथ उसके विद्यालय तक आया।
उपर्युक्त वाक्य में उसके’ सर्वनाम सुरेंद्र के लिए प्रयुक्त है। सर्वनाम के प्रकार-सर्वनाम के प्रमुख पाँच प्रकार हैं-
- पुरुषवाचक सर्वनाम-जो सर्वनाम वक्ता, श्रोता या अन्य व्यक्ति के बदले प्रयुक्त होता है उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। इसके तीन उपभेद हैं।
- अन्य पुरुष-वह, वे
- मध्यम पुरुष-तुम, आप, तू
- उत्तम पुरुष-मैं, हम।
- निश्चयवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम से वक्ता के समीप एवं दूर की वस्तु का निश्चय हो, वह निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाता है। जैसे-यह, वह, ये, वे आदि।
- अनिश्चयवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम से पुरुष या वस्तु का निश्चित ज्ञान न प्राप्त हो, वह अनिश्चयवाचक सर्वनाम होता है। जैसे-कुछ, कौन, कोई आदि।
- संबंधवाचक सर्वनाम-जिन शब्दों से संज्ञाओं के बीच परस्पर संबंध का ज्ञान हो उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-जैसा-तैसा, जिस-तिस।
- प्रश्नवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाक से प्रश्न के विषय में जानकारी मिले वह प्रश्नवाचक सर्वनाम है। जैसे-क्या, कौन, क्यों आदि।
विशेष एवं विशेष्य
प्रश्न-
विशेषण की परिभाषा एवं प्रकार बताइए।
उत्तर-
परिभाषा-जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता प्रदर्शित करते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं। जैसे राम अच्छा विद्यार्थी है। उपर्युक्त वाक्य में ‘अच्छा’ शब्द राम की विशेषता प्रकट कर रहा है। अतः यह विशेषण है।
विशेषण के प्रकार-विशेषण के मुख्य चार प्रकार हैं-
- गुणवाचक विशेषक-संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के गुण, दोष अवस्था, रंग आदि की विशेषता बताने वाले शब्द गुणवाचक विशेषण हैं। जैसे-काली गाय, लाल बस।
- संख्यावाचक विशेषण-जिससे संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का पता चले वह संख्यावाचक विशेषण कहलाता है। जैसे-बीस शालाएँ, पाँच अंगुलियाँ।
- परिमाणवाचक विशेषण-जिससे संज्ञा या सर्वनाम के परिमाण (नाप-तौला) का ज्ञान हो उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते है। जैसे-दस किलोमीटर, पाँच सेर।।
- सार्वनामिक विशेषण-यदि सर्वनाम का प्रयोग संज्ञा के साथ उसके संकेत के रूप में किया जाए, तो वह सार्वनामिक विशेषण कहलाता है। जैसे-यह तुम्हारी कलम है।
क्रिया
परिभाषा एवं प्रकार
परिभाषा-जिस शब्द से किसी काम का करना, रहना या होने का बोध हो उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-श्याम जाता है। सीला बैठी है। आदि। क्रियाओं के अन्य प्रकार
- प्रेरणार्थक क्रिया-जिस क्रिया के माध्यम से कर्ता स्वयं काम न करके दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा दे, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे-जगना से जगाना, रोना से रुलाना।
- पूर्वकालिक क्रिया-पूर्वकालिक क्रिया मूल क्रिया की समाप्ति के पहले प्रयुक्त की जाती है। जैसे-सोकर, जागकर, खाकर आदि।
- संयुक्त क्रिया-जब दो या दो से अधिक क्रियाएँ एक साथ आती है, तो उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे-जाना चाहता है, गा सकना आदि।
क्रिया-विशेषण
परिभाषा-जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, वे क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। क्रिया-विशेषण के प्रकार-क्रिया-विशेषण के चार प्रकार हैं-
- स्थानवाचक-ये शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं। जैसे-यहाँ, वहाँ, उस आदि।
- कालवाचक-ये विशेषण क्रिया के समय की विशेषता बताते हैं, अतः इन्हें कालवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे-आज, कल।
- परिमाणवाचक-ये विशेषण क्रिया का परिमाण बतलाते हैं अतः इन्हें परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे-न्यून, अधिक, कम आदि।
- रीतिवाचक-ये विशेष क्रिया होने का ढंग बताते हैं। अतः इन्हें रीतिवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे-धीरे, तेज़, मंद, आदि।
संबंधबोधक अव्यय
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ प्रयुक्त होकर वाक्य के दूसरे शब्दों से उसका संबंध बताते हैं, संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं। जैसे-भीतर, सहित और आदि।
समुच्चयबोधक अव्वय- जो शब्द दो शब्दों या वाक्यों को मिलाते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे-भी, तथा, मानो, इसलिए आदि।
विस्मयादिबोधक अव्यय- जो शब्द वक्ता के शोक, हर्ष, विषाद या लज्जा के भावों को प्रकट करें, वे विस्मयादिबोधक अव्यय कहलाते हैं। जैसे-अरे, अहो, हाय, धन्य आदि।
कारक
प्रश्न-
कारक की परिभाषा एवं भेद बताइये।
परिभाषा-संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका वाक्य के दूसरे शब्दों से संबंध जाना जाए, उसे कारक कहते हैं। जैसे-राम ने गीता की पुस्तक को पढ़ा।
विभक्ति- कारक प्रकट करने के लिए संज्ञा या सर्वनाम के साथ जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें विभक्ति कहते हैं।
हिंदी में आठ कारक हैं तथा उनके विभक्ति चिन्ह निम्नलिखित हैं-
काल
परिभाषा-क्रिया के जिस रूप से उसके करने या होने के समय का बोध हो उसे काल कहते हैं।
प्रकार-काल के तीन प्रकार हैं-
(1) भूल काल,
(2) वर्तमान काल
(3) भविष्यत् काल।।
- भूत काल-क्रिया के जिस रूप से उसके बीते समय का ज्ञान हो, उसे भूत काल कहते हैं। राम ने यज्ञ किया।
- वर्तमान काल-क्रिया के जिस रूप से उसके वर्तमान में होने का बोध हो उसे वर्तमान काल कहते हैं। जैसे-राम जा रहा है।
- भविष्यत् काल-क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने का आने वाले समय में ज्ञान हो, वह भविष्यत् काल कहलाता है। जैसे-हम रात्रि जागरण करेंगे।
उपसर्ग
परिभाषा-वे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व लगकर उसके अर्थ को परिवर्तित कर देते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं।
जैसे-प्र + हार = प्रहार, (हार = पराजय) प्रहार = आक्रमण-
प्रमुख उपसर्ग इस प्रकार हैं
- प्र – प्रक्रिया, प्रकाण्ड, प्रदूषण, प्रस्थान, प्रवेश, प्रगति।
- परा – पराजय, पराभव, परागबैनी।
- अनु – अनुशासन, अनुकरण, अनुचर, अनुग्रह, अनुरोध।
- अव – अवगुण, अवतरण, अवसर, अवतार, अवस्था।
- निर् – निर्मल, निर्बल, निर्जल, निर्दय, निर्विकार।
- दुस् – दुःशासन, दुस्साहस।
- अति – अतिवीर, अत्यधिक अतिरिक्त, अत्याचार, अतिशय।
- अप – अपमान, अपयश, अपवाद।
- उत् – उत्कीर्ण, उद्गार, उद्दण्ड, उद्घाटन, उत्सुक, उत्थान, उद्योग, उद्यान, उन्नति, उदाहरण।
- उप – उपकरण, उपहारस, उपकार, उपकृत, उपद्रव।
- नि – निवेदन, निवास, नियुक्त, निमंत्रण।
- परि – परिस्थिति, पर्यावरण, परिवर्तन, परिचय, परिमिति, परिश्रम।
- वि – विकट, विध्वंस, विपक्ष, विसर्जित, विकल्प, विलक्षण, विकल, विपत्ति।
प्रत्यय
परिभाषा-वे शब्दांश जो शब्द के अंत में जुड़कर शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रमुख प्रत्यय एवं उनसे बने शब्द नीचे अनुसार हैं-
- डक – तांत्रिक, साहित्यिक, लौकिक, धार्मिक, दैनिक, वार्षिक, बौद्धिक, तार्किक, नैयायिक।
- इन – मलिन।
- ई – योगी, माली।
- इत – पतित, लज्जित, लिखित, निर्मित, चलित।
- गत – मनोगत, दृष्टिगत, व्यक्तिगत, कण्ठगत, स्वर्गगत, दलगत।
- गम – दुर्गम, हृदयंगम, अगम, संगम, विहंगम।
- दायक – गुणदायक, मंगलदायक, कष्टदायक, लाभदायक, सुखदायक।
- धर – गिरिधर, गंगाधर, हलधर, जलधर, पयोधर, विषधर, मुरलीधर।
- भेद – बुद्धिभेद, मतभेद, अर्थभेद, धर्मभेद, शब्दभेद।
- रहित – भावरहित, धर्मरहित, ज्ञानरहित, प्रेमरहित, दयारहित, शंकारहित, कल्पनारहित।
- शील – विचारशील, दानशील, धर्मशील, सहनशील, प्रगतिशील।
- हीन – गुणहीन, मतिहीन, विद्याहीन, शक्तिहीन, कुलहीन, धनहीन।
- रत – कार्यरत, अध्ययनरत।
मुहावरे : अर्थ एवं वाक्यों में प्रयोग
- काफूर हो जाना (दूर हो जाना)-हामिद की बातें सुनकर अमीना का गुस्सा काफूर हो गया।
- कसमें खाना (प्रतिज्ञा करना)-तुम्हें झूठी कसमें कभी नहीं खानी चाहिए।
- छक्के छूट जाना (हिम्मत हार जाना)-हमारे सैनिकों की वीरता के आगे शत्रुओं के छक्के छूट जाते हैं।
- रंग जमाना (रौब जमाना)-हामिद के चिमटे की तारीफ कर सभी साथियों पर रंग जमा दिया।
- गद्गद होना (गला भर जाना)-हामिद के चिमटा लेने के कारण का उत्तर सुनकर दादी गद्दगद् होकर रो पड़ी।
- माटी में मिल जाना (नष्ट हो जाना)-नूरे के वकील साहब लुढ़क पड़े और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया।
- मुँह छिपाना (लज्जित होना)-रमेश को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे उसे लोगों के सामने मुँह छिपाना पड़े।
- नींद खुलना (होश आना)-तुम ताला बंद करके नहीं जाते। यादे चोरी हो गयी, तो तुम्हारी नींद खुलेगी।
- पीठ दिखाना (मैदान छोड़कर भाग जाना)-हमारे सैनिक युद्ध के मैदान से कभी पीठ दिखाकर नहीं भागते।
- आँख चौंधिया जाना (आश्चर्यचकित हो जाना) -दीपावली की चकाचौंध देखकर सहज ही आँखे चौंधिया जाती हैं।
- लोहा लेना (टक्कर लेना)-शत्रुओं का हमारे सैनिकों से लोहा लेना बड़ा महंगा पड़ेगा।
- हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना (निठल्ला रहना)-हमें कभी भी हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहना चाहिए।
- पाँचों अंगुलियाँ घी में होना (लाभ ही लाभ)-आजकल रहमान की पाँचों अंगुलियाँ घी में हैं।
- प्राण फूंकना (जान डाल देना)-उपवास आत्मा की शांति के लिए किया हुआ शरीर में प्राण फूंकने जैसा कार्य है।
- मिट्टी में मिलना (नष्ट करना)-मेला न देख पाने का कारण टिंकू के सारे के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए।
- फूले न समाना (खुशी की सीमा न रहना)-परीक्षा फल में प्रथम श्रेणी में पास होने पर मैं फूला नहीं समाया।
- तीर मारना (बहादुरी दिखाना)-दो वर्ष में एक कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इतनी खुशी हो रही है जैसे कोई तीर मारकर लौटे हो।
- सतर्क रहना (सावधान रहना)-हमें शहर में जेब-कतरों से हमेशा सतर्क रहना चाहिए।
- हाथ-पाँव फूलना (हताश हो जाना)-बालकों की निर्भीकता एवं साहस देखकर डाकू रामसिंह के हाथ-पाँव फूल गए।
- आँख का तारा (परम प्रिय)-अक्षय और निर्भय अपने दादा की आँख के तारे थे।
- बाल बाँका न होना (कुछ भी न बिगाड़ पाना)-डाकू रामसिंह वीर बालकों का बाल बाँका न कर सका।
- मुँह में पानी आना (मन ललचाना)-खेत में लगे हरे-हरे चनों को देखकर सबके मुँह में पानी आ गया।
- अंधे की लकड़ी (एक मात्र सहारा)-हामिद अमीना के लिए अंधे की लकड़ी के समान था।
- अपना उल्लू सीधा करना (मतलब निकालना)-कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने में ही लगे रहते हैं।
- अपने पैरों पर खड़े होना (आत्म-निर्भर बनना)-हमें उद्यम करके अपने पैरों पर खड़े हो जाना चाहिए।
- आँख में धूल झोंकना (धोख देना)-कभी-कभी चोर पुलिस की आँखों में धूल झोंककर भाग जाते हैं।
- कमर कसना (तैयार होना)-देश से निरक्षरता दूर करने के लिए हम सभी को कमर कस लेनी चाहिए।
- जहर का यूंट पीना (क्रोध को दबाना)-प्रताड़ित होने पर नववधूओं को क्रोध तो आता है, परंतु परवशता में वे जहर का चूंट पीकर रह जाती हैं।
- नाक में दम करना (तंग करना)-तुमने तो हमारी नाक में दम कर रखा है, क्या मैं ठीक से सो भी नहीं सकता?
- नौ-दो ग्यारह होना (भाग जाना)-पुलिस को देखते ही चोर नौ-दो ग्यारह हो गया।
- मुँह की खाना (पराजित होना)-सन् 1965 के युद्ध में भारतीय वीरों के सम्मुख पाकिस्तानी सैनिकों को मुँह की खानी पड़ी थी।
- श्री गणेश होना (काम का शुभारंभ होना)-स्टेडियम की आधारशिला रखकर मुख्यमंत्री ने कार्य का श्री गणेश किया।
- लेने के देने पड़ना (हानि होना)-भारतीय सैनिकों के सम्मुख पाकिस्तानी सैनिकों को लेने के देने पड़ गए।
- हाथ बटाना (हिस्सा लेना)-हमें हमेशा अपने बड़ों के कामों में हाथ बटाना चाहिए।
विराम-चिन्ह
परिभाषा-शब्दों व वाक्यों का परस्पर संबंध बताने तथा किसी विषय को भिन्न-भिन्न भागों में बाँटने व पढ़ने में ठहरने के लिए जिन चिन्हों का उपयोग किया जाता है, उन्हें विराम-चिन्ह कहते हैं।
विराह-चिन्ह निम्न प्रकार के होते हैं-
- अल्पविराम (,)
- अर्धविराम (;)
- पूर्णविराम (।)
- प्रश्नबोधक (?)
- विस्मयादिवोधक (!)
- उद्धरण चिन्ह (“)
- निदेशक (:-)
- कोष्ठक ()
- योजक चिन्ह (-)
- लाघव चिन्ह (0)
- त्रुटिपूरक (^)
पर्यायवाची शब्द
- चंद्रमा – चंद्रमा, शशि, द्विजराज, विधु, सुधाकर, राकापति, निशापति, रजनीश, हिमांशु, शशांक, मयंक, राकेश।
- तालाब – सर, सरोवर, तडाग, हृद, ताल। देवता-अमर, विबुध, देव, सुर।
- असुर – राक्षस, दैत्य, दानव, दनुज, निशाचर, रजनीचर, तमीचर।
- पर्वत – नग, गिरि, अचल, भूधर, महीधर, शैल, पहाड़।
- जल – वारि, अंबु, तोय, नीर, पानी, पय, अंभ, उदक, अमृत, जीवन, अप।
- कमल – पदम्, अंबुज, जलज, नीरज, सरोज, वारिज, पंकज, सरसिज, राजीव, अरविंद, नलिनी, उत्पल, पुण्डरीक।
- स्त्री – अबला, नारी, महिला, ललना। राजा-नृप, नृपति, भूप, भूपति, नरपति, नरनाथ, भूपाल, नरेश।
- अमृत – पीयूष, सुधा, सोपान, अमिय। पुत्र-आत्मज, सुत, सूनु, तनय, तनुज।
- पृथ्वी – भूमि, भू, धरा, अचला, मही, क्षिति, धरती, वसुधा, वसुंधरा।
- समुद्र – सागर, सिंधु, जलधि, जलनिधि, पयोधि, नीरधि, वारीश।
- बादल – मेघ, घन, वारिद, अंबुद, तोयद, जलद, जलधर।
- फल – पुष्प, कुसुम, सुमन, प्रसून।
- ब्राह्मण – द्विज, भूदेव, भूसूर, विप्र, अग्र, जन्मा।
- भोरा – अलि, भ्रमर, षट्पद, षडनि, मिलिंद।
विरुद्धार्थी शब्द
अनेकर्थी शब्द
कनक-सोना, धतूरा। आवागमन यातायात, संसार, भ्रमण। हलधर के वीर-बैल, कृष्ण। वृषभानुज गाय, राधा। पानी इज्जत, जल। राम-श्रीराम, ईश्वर। अंबर-कपड़ा, आकाश। पेय-दूध, पानी। पत्र-पत्ता, चिट्ठी। कंचन-सोना, स्वच्छ। अंबु-जल, एक छंद, चार, आम। अंकन-लिखना, चित्र बनाना। अंकुर पौधे का छोटा रूप, जल, संतति। अकंटक बिना काँटे के, शत्रु रहित। अक्सीर शर्तिया, अचूक। कृष्ण काला, श्याम, (श्रीकृष्ण जी)। अरण्य जंगल, सन्ख्यासियों का एक प्रकार, एक फल का नाम। आँख नेत्र, ईख की गाँठ, संतान। उदरपेट, वस्तु का भीतरी भाग। शुष्क-सूखा, उदास।
तद्भव एवं तत्सम शब्द
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
- वह व्यक्ति जो ईश्वर को नहीं मानता – नास्तिक
- वह व्यक्ति जो ईश्वर को मानता है – आस्तिक
- जिसकी उपमा न दी जा सके – अनुपम
- जिसे जीता न जा सके – अजेय
- जहाँ लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए जाते हों – स्वास्थ्य-गृह
- जिसका कोई मूल्य न आँका जा सके – अनमोल
- अधिक उम्र वाली – सयानी
- जिससे जान पहचान न हो – अजनबी
- जो पाप से रहित है – निष्पाप
- जिसके दस सिर हैं – दशानन
- वह स्थान जहाँ मनुष्य का जाना कठिन है – दुर्गम
- वह रोग जो अच्छा नहीं हो सकता – असाध्य
- एक ही माता से जन्म लेने वाली संतान – सहोदर
- बिना पढ़ा-लिखा व्यक्ति – निरक्षर
- वह व्यक्ति जिसका कोई शत्रु न हो – आजातशत्रु
- जिसके आर-पार देखा जा सके – पारदर्शक
- जिसके आर-पार न देखा जा सके – अपारदर्शक
- जो बिना किसी वेतन के कार्य करता है – अवैतनिक
- वह जो सब-कुछ जानता है – सर्वज्ञ
- जिसे रोगद्वेष नहीं है – वीतराग
- जो सबका हित करने वाला है – हितैषी
- जो कम से कम बोलता है – मितभाषी
- जो मीठा बोलता है – मिष्ट भाषी, मृदुभाषी
- जो किसी के पीछे चलता है – अनुगामी
- जिस पर कोई बंधन नहीं – स्वतंत्र
- जो बंधन युक्त है – परतंत्र
- तपस्या करने वाला व्यक्ति – तपस्वी
- जिसकी गणना न की जा सके – अगणित
- जिसका कोई महत्त्व न हो – नगण्य
- प्राचीन काल से चली आने वाली रीति – परंपरागत
- किसी स्थान को चारों ओर से – चहारदीवारी
- घेरे हुए दीवार
- जिसकी कोई सीमा न हो – असीम
- जो समान आयु का हो – समवयस्क
- जो किसी विशेष स्थान से संबद्ध हो – स्थानीय
- दूसरे देश का व्यक्ति – विदेशी
- किसी देश में रहने वाला व्यक्ति – नागरिक
- पास में रहने वाला व्यक्ति – पड़ोसी
- जिसे प्रेम किया गया है – प्रेमिका/प्रेमी
- गाना गाने वाला – गवैया
- तबला बजाने वाला – तबलची
- गान-नृत्य का स्थान – महफिल
- किसी देवता की स्थापना का स्थान – मंदिर
- जिसने इंद्रियों को जीत लिया है – जितेंद्रिय
- जो बिना विचारे किसी को मानता है – अंधभक्त
अलंकार एवं अलंकार के प्रकार
परिभाषा-वाक्य में सुंदरता या चमत्कार लाने के लिए जिस शाब्दिक या अर्थ संबंधी चमत्कार की उत्पत्ति होती है, उसे अलंकार कहते हैं।
अलंकार के तीन प्रकार हैं-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार।
प्रमुख अलंकार
1. अनुप्रयास-जहाँ वर्णों की आवृत्ति (बार-बार आने से) कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे-
‘मुदित महीपति मदिर आये, सेवक सचित्र सुमंत्र बुलाये।’ इसमें ‘म’ एवं ‘स’ की बार-बार आवृति हुई है।
2. यमक-जब एक या अधिक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हों, पर हर बार उसका अर्थ भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।
जैसे-
कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय जग या पाये बौराय॥
यहाँ एक कनक का अर्थ धतूरा व दूसरे का होना है।
3. इलेष-जहाँ एक ही शब्द के कई अर्थ निकलें।
जैसे-
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे मोती मानुस चून।
यहाँ पानी का अर्थ-क्रमशः चमक, इज्जत व जल है।
4. उपमा-जहाँ किसी वस्तु की उसके किसी विशेष गुण के कारण तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
जैसे- ‘बन्दौं कोमल कमल से, जग जननी के पाँय।’
5. रूपक-जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो वहाँ रूपक होता है।
जैसे-
‘चरण कमल बन्दौं हरि राई।’
यहाँ चरण उपमेय पर कमल उपमान का आरोप
6. उत्प्रेक्षा-जब उपमेय में उपमान की कल्पना कर ली जाए, तो वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे-
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मनौ नील मनि शैल पर, आतप पर्योप्रभात॥
यहाँ श्याम में सूर्य के प्रकाश का उपमान है।