MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 11 गिरधर की कुण्डलियाँ
MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 11 गिरधर की कुण्डलियाँ
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MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 11 गिरधर की कुण्डलियाँ
गिरधर की कुण्डलियाँ पाठ का अभ्यास
गिरधर की कुण्डलियाँ बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
- दौलत-सम्पत्ति; ठाँऊस्थान, स्थिर; पाहुनअतिथि, मेहमान; निदान = अन्त में, कारण, उपचार; निस= रात; अभिमान : घमण्ड; जस= यश; जग संसार, दुनिया; जियत = जीवित रहना, जीते रहना।।
- गाहक = ग्राहक, ग्रहण करने वाला; कोकिला = कोयल; सहस = हजार; बिनु = बिना; लहै = प्राप्त कर सकना; ठाकुर मन के = मन के मालिक, मन के स्वामी।
- ताहि उसको; खता= चूक, गलती, कमी; परतीती = विश्वास, भरोसा; सुधि लेइ = खोज खबर लेनी चाहिए, सोच-समझकर आचरण करना चाहिए; बिसारि दे= भुला दे।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) हमें दूसरे व्यक्तियों से किस प्रकार के वचन बोलना चाहिए?
उत्तर
हमें दूसरे व्यक्तियों से विनयपूर्वक मीठे वचन बोलने चाहिए।
(ख) कोयल सबको अच्छी क्यों लगती है ?
उत्तर
कोयल सबको अच्छी लगती है क्योंकि वह मिठास भरी बोली बोलती है।
(ग) धनी व्यक्ति को क्या नहीं करने को कहा है ?
उत्तर
धनी व्यक्ति को अपने धन का घमण्ड नहीं करना चाहिए।
(घ) ‘गुन के गाहक’ से क्या आशय है ?
उत्तर
गुण (अच्छी बात या लाभकारी वस्तु) के ग्रहण करने वाली सभी होते हैं। गुण रहित (खराब और अलाभकारी) वस्तु को कोई भी स्वीकार नहीं करता है।
(ङ) बीति ताहि …… कहकर कवि ने कौन सी सलाह दी है?
उत्तर
कवि ने सलाह दी है कि जो बात (घटना) घट चुकी है, उसे भुला देना ही उचित है। इससे आगे सोच-समझकर व्यवहार करना चाहिए।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) धन पाकर हमें अभिमान क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर
धन पाकर हमें अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि धन तो चंचल है, कभी धन आ जाता है, तो कभी चला जाता है। सम्पत्ति किसी पर भी सदा के लिए नहीं रहती। यह तो बहते हुए जल के समान होती है जिस प्रकार जल एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता उसी तरह धन कभी भी एक व्यक्ति के पास सदा स्थिर बनकर नहीं रहता। इसे स्थिर बनाकर रखने का कोई उपचार भी नहीं है। यह धन तो चार दिन-रात का मेहमान होता है। इसलिए मीठा बोलकर, विनयपूर्वक सबके साथ व्यवहार करना चाहिए।हमें प्रेमपूर्वक सन्तुलित बात करनी चाहिए। धन पर घमण्ड करना घाटे का (हानि का) सौदा है।
(ख) कोयल और कौए की वाणी में क्या अन्तर है?
उत्तर
कोयल और कौआ दोनों ही काले रंग के पक्षी हैं। इनकी वाणी को सभी लोग सुनते हैं लेकिन कोयल की वाणी सभी को अच्छी लगती है, सुहाती है। अपनी कर्कश बोली के कारण कौए सबके द्वारा अपवित्र और त्याज्य माने गये हैं। कोयल की वाणी मीठी होने से सब लोगों द्वारा उसकी मिठास की प्रशंसा की जाती है। सभी लोग उसके ग्राहक हैं। कोयल की मधुर वाणी हजारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
(ग) बीती बातों को भुलाने से क्या लाभ तथा क्या हानि है ?
उत्तर
बीती बातों को भुलाने से ही लाभ है क्योंकि भविष्य में लाभ होने की बात को ठीक तरह से सोच-समझ लेने से घटित घटना को भुला देने में ही भलाई है। घटित घटना से हमें निराश और हतोत्साहित नहीं हो जाना चाहिए। आगे के कार्य को सोच-समझकर कर, मन लगाकर करना चाहिए। फिर जो आसानी से हो सके उसे करना चाहिए। मन लगाकर काम करने से उसमें सफलता मिलती है। दुष्ट व्यक्ति भी फिर हँसी नहीं उड़ा पाते। मन में कोई चूक (कभी गलती) न होने से, मन में पक्का विश्वास करके अपने काम में जुट जाना चाहिए। इससे भविष्य में सफलता मिलती है। भविष्य में सुख प्राप्ति की आशा होती है। अतः जो घटना (बात) बीत गई (घटित हो गई) उसे भुला देने में ही लाभ है।
प्रश्न 4.
‘लोक व्यवहार की बातें’ इन कुण्डलियों में हैं। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
(1) किसी भी व्यक्ति को अपने धन का घमण्ड सपने में भी नहीं करना चाहिए। यह धन कभी आ जाता है तो कभी चला जाता है।
(2) हमें मीठे वचन बोलने चाहिए। मधुर व्यवहार से और विनयपूर्वक बोलने से हमें संसार में यश की प्राप्ति होती है। जो लोग घमण्ड रहित होकर, मधुर वाणी बोलकर व्यवहार नहीं करते, वे निश्चय ही घाटे का सौदा प्राप्त करते हैं।
(3) धन का घमण्ड उचित नहीं क्योंकि धन सदा किसी के पास नहीं रहता।
द्रष्टव्य है
- दौलत पाय न कीजिए सपने में अभिमान।
- मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही सौं कीजै।
- पाहुन निस दिन चारि, रहत सब ही के दौलत।
(4) मधुर और मीठे बोल सभी को अच्छे लगते हैं। ‘सबद सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।’
(5) घटित घटना को भुला देना ही लाभकारी है। भविष्य में सबका भला हो, इस भावना से उचित व्यवहार की बात को सोच समझकर बीती बात भुला देनी चाहिए। मन में किसी भी प्रकार चूक न रखते हुए मन पर पूरा विश्वास रखते हुए आगे का उचित व्यवहार अपनाना चाहिए। इसी में भलाई है, सुख है। ‘बीती ताहि बिसारे दे, आगे की सुधि लेइ।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों का सन्दर्भ सहित भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) सबद सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को रंग एक, काग सब भए अपावन।।
(ख) बीति ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेड़।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित्त देई।।
उत्तर
महाकवि गिरधर कहते हैं कि गुणों के (अच्छी बात के) ग्रहण करने वाले लोग तो हजारों की संख्या में होते हैं। बिना गुण की वस्तु को (जो वस्तु अच्छी नहीं है, उसे) कोई भी नहीं लेता। जिस तरह कौआ और कोयल के शब्द को (वाणी को) तो सभी सुनते ही हैं लेकिन कोयल की वाणी सभी को अच्छी लगती है। इन दोनों-कौआ और कोयल का रंग एक-सा होता है, परन्तु सभी कौए अपवित्र हो गये। हे मन के स्वामी (मनमौजी) ! कवि गिरधर कहते हैं कि आप सभी इस एक बात को सुन लीजिए कि कोई भी व्यक्ति – बिना गुण वाली (खराब) वस्तु को ग्रहण नहीं करेगा। गुणकारी (अच्छी) वस्तु के ग्राहक तो हजारों लोग होते हैं।
जो बात हो चुकी उसे भुला देना चाहिए, हमें, फिर, भविष्य के बारे में सोच-विचार (खोज खबर लेनी चाहिए) करना चाहिए। जो बात (काम) आसानी से हो सके, उसमें ही अपने मन को लगाना चाहिए। जो भी बात (काम) बन सके (हो सके) तो उसे ही मन लगाकर करना चाहिए। इस तरह कोई भी दुष्ट व्यक्ति हमारी हँसी भी नहीं उड़ा सकेगा और मन में कोई भी चूक अथवा दोष भी नहीं आ सकेगा। कविवर गिरधर कहते हैं कि उस काम को मन में विश्वास के साथ कीजिए। भविष्य में होने वाले सुख की बात को समझकर उस बात को भुला दीजिए, जो बीत चुकी है, घट चुकी है।
गिरधर की कुण्डलियाँ भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1.
‘जस’ शब्द का मानक रूप ‘यश’ है। इसी प्रकार निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखिए
सपने, सहस, सबद, गुन, परतीती, जियत, ग्राहक।
उत्तर
- स्वप्न
- सहस्र
- शब्द
- गुण
- प्रतीति
- जीवित
- ग्रहणकर्ता।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए
“सबद सुनै सब कोइ, कोकिला सबै सुहावन” में अलंकार है (यमक, अनुप्रास, श्लेष)
उत्तर
‘अनुप्रास’
प्रश्न 3.
इस पाठ की कुण्डलियों में अभिमान’ शब्द के समान ‘निदान’ तुकान्त शब्द आया है।
इसी प्रकार निम्नलिखित तालिका में से तुकान्त शब्द चुनिए और सही क्रम में लिखिए लीजै
उत्तर
- लीजै-कीजै
- तौलत-दौलत
- सुहावनअपावन
- देइ-लेइ
- पावै-आवै।
प्रश्न 4.
अनुस्वार और आनुनासिक के प्रयोग वाले पाँच-पाँच शब्द लिखिए।
उत्तर
अनुस्वार के प्रयोग वाले शब्द-पंच, गंज, पंक, पंत, कंस, कोंपल, चौंच।
आनुनासिक के प्रयोग वाले शब्द-जाँच, आँच, आँख, नदियाँ, फलियाँ।
प्रश्न 5.
कुण्डलियाँ छन्द के अन्य उदाहरण छाँटकर उसकी मात्राओं की गणना कीजिए।
उत्तर
लक्षण – कुण्डलियाँ के छ: चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इस छन्द के आरम्भ में दोहा और अन्त में रोला छन्द होता है। इस छन्द की एक विशेषता यह भी है कि जो शब्द इसके आरम्भ में आता है, वही इसके अन्त में भी आता है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द वर्ग पहेली से छाँटकर लिखिए
दौलत, संसार, अभिमान, पाहुन।
उत्तर-
शब्द – पर्यायवाची शब्द
दौलत = सम्पदा, धन।
संसार = लोक, जग।
अभिमान = गर्व, दर्प।
पाहुन = अतिथि, मेहमान।
गिरधर की कुण्डलियाँ सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
1. दौलत पाय न कीजिए सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि को, ठाँउ न रहत निदान।।
ठाँउ न रहत निदान, जियत अग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही सौं कीजै।।
कह गिरधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन न निस दिन चारि, रहत सब ही के दौलत।
शब्दार्थ-दौलत सम्पत्ति:पाय प्राप्त करके अभिमान घमण्ड; ठाँउ = स्थिर; निदान = अन्त में; जीयत = जीवित रहते हुए; जग = संसार; जस = यश; लीजै = प्राप्त कर लीजिए; सुनाय = सुनाकर; सौं = से; कीजै = कीजिए; घट = कम; तौलत = तोलते हैं; पाहुन = मेहमान, अतिथि; निसिदिन चारि = चार रात-दिन की, थोड़े समय की; सब ही के सभी के पास।
सन्दर्भ-प्रस्तुत कुण्डलियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषाभारती’ के पाठ ‘ गिरधर की कुण्डलियाँ से अवतरित हैं। इसके रचयिता कविवर गिरधर हैं।
प्रसंग-कवि गिरधर ने इन कुण्डलियों के माध्यम से बताया है कि धन सम्पत्ति का मनुष्य को घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तो थोड़े समय की ही होती है।
व्याख्या-हमें धन-सम्पत्ति प्राप्त करके स्वप्न में भी घमण्ड नहीं करना चाहिए। यह सम्पत्ति तो जल के समान चंचल है, बहुत थोड़े समय रहती है। अन्त में यह एक स्थान पर (किसी एक व्यक्ति के पास) नहीं रहती है। क्योंकि सम्पत्ति स्थिर नहीं रहती, इसलिए इस संसार में अपने जीवनकाल में यश प्राप्त करो। सभी से मधुर वचन बोलिए और सभी के साथ विनयपूर्वक व्यवहार कीजिए। महाकवि गिरधर कहते हैं कि धन-सम्पत्ति प्राप्त करके जो कम तौलते हैं अर्थात् कपट का व्यवहार करते हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सम्पत्ति तो चार दिन रात (थोड़े समय) की मेहमान (अतिथि) है; यह सभी के पास सदा नहीं रहती है।
(2) गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, सबद सुनै सब कोय।।
सब सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को रंग एक, काग सब भए अपावन।।
कह गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के।।
शब्दार्थ-गुन = गुण; गाहक = ग्रहण करने वाले; सहसहजारों; लहै = ग्रहण करते हैं; न कोय = कोई भी नहीं; कागाकौआकोकिला = कोयल; सबद = वाणी, बोली; सब कोयसभी लोग: सबै सभी को सुहावन = अच्छी लगती है; अपावन = अपवित्र; ठाकुर मन के = मन के स्वामी; गुन = गुणों के, लाभकारी होने से; गुण के अच्छे के।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-कवि बताते हैं कि गुणकारी (लाभदायक) अथवा अच्छी वस्तु (बात) के हजारों लोग ग्राहक होते हैं।
व्याख्या-महाकवि गिरधर कहते हैं कि गुणों के (अच्छी बात के) ग्रहण करने वाले लोग तो हजारों की संख्या में होते हैं। बिना गुण की वस्तु को (जो वस्तु अच्छी नहीं है, उसे) कोई भी नहीं लेता। जिस तरह कौआ और कोयल के शब्द को (वाणी को) तो सभी सुनते ही हैं लेकिन कोयल की वाणी सभी को अच्छी लगती है। इन दोनों-कौआ और कोयल का रंग एक-सा होता है, परन्तु सभी कौए अपवित्र हो गये। हे मन के स्वामी (मनमौजी) ! कवि गिरधर कहते हैं कि आप सभी इस एक बात को सुन लीजिए कि कोई भी व्यक्ति – बिना गुण वाली (खराब) वस्तु को ग्रहण नहीं करेगा। गुणकारी (अच्छी) वस्तु के ग्राहक तो हजारों लोग होते हैं।
3. बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेड।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित्त देइ।।
साही में चित्त देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हँसे न कोय, चित्त में खता न पावै।।
कह गिरधर कविराय, यह करू मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होय बीती सो बीती।।
शब्दार्थ-बीती ताहि = जो बात (घटना) समाप्त हो गई, घट गई उसे; बिसारि दे = भुला दे; आगे की सुधि लेइ = इसमें आगे विचार करके आचरण (व्यवहार) करना चाहिए, खोज खबर लेनी चाहिए; जो बनि आवै = जो भी कुछ हो सके उसे; सहज में = सरलता से, आसानी से; ताही में = उसी में; चित्त देइ = मन लगाना चाहिए; बात जोई बनि आवै = जो भी बात बन सके दुर्जन = दुष्ट व्यक्ति; कोय = कोई भी; हँसे न = हँसी न ठड़ा सके; खता = दोष या चूक; पावै = प्राप्त होने दो; यहै = वही; मन परतीती = मन में विश्वास के साथ; करू = कीजिए; आगे को = भविष्य में (आने वाले समय में); समुझि = समझकर; बीती सो बीती = जो बात (घटना) बीत गई (हो गई), सो हो गई।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-जो बात (घटना) घट चुकी, उसके ऊपर अधिक सोच-विचार नहीं करना चाहिए, कवि को ऐसी सलाह है।
व्याख्या-जो बात हो चुकी उसे भुला देना चाहिए, हमें, फिर, भविष्य के बारे में सोच-विचार (खोज खबर लेनी चाहिए) करना चाहिए। जो बात (काम) आसानी से हो सके, उसमें ही अपने मन को लगाना चाहिए। जो भी बात (काम) बन सके (हो सके) तो उसे ही मन लगाकर करना चाहिए। इस तरह कोई भी दुष्ट व्यक्ति हमारी हँसी भी नहीं उड़ा सकेगा और मन में कोई भी चूक अथवा दोष भी नहीं आ सकेगा। कविवर गिरधर कहते हैं कि उस काम को मन में विश्वास के साथ कीजिए। भविष्य में होने वाले सुख की बात को समझकर उस बात को भुला दीजिए, जो बीत चुकी है, घट चुकी है।