MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 16 पथिक से
MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 16 पथिक से
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MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 16 पथिक से
पथिक से बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
पथिक = राहगीर; वापी = बावड़ी; जलकण = जल की बूदें; एकाकीपन = अकेलापन; असमंजस = दुविधा; हवन सामग्री = यज्ञ में आहुति देने की वस्तुएँ; दूर्वादल = दूब घास के कोमल पत्ते; निर्झर = झरने; उन्मन = उदास; कुमकुम थाल = रोली की थाली; आहुति = यज्ञ में डालने की हवन सामग्री।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) “पथ में काँटे तो होंगे ही” इस पंक्ति में काँटे शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
काँटे शब्द का अर्थ बाधाओं से है। कर्त्तव्य निर्वाह करना कठिनाइयों से भरा होता है।
(ख) नीचे दो खण्डों में कविता की आंशिक पंक्तियाँ दी गई हैं। खण्ड ‘अ’ और खण्ड ‘ब’ से एक सही पंक्ति लेकर पूरी कीजिए
उत्तर
(अ) → (3), (आ) → (4), (इ) + (1), (ई)→(2)
(ग) स्वतन्त्रता की ज्वाला में माँ आहुति की मांग कर रही है। ‘माँ’ शब्द के प्रयोग द्वारा यहाँ किस माँ की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर
‘माँ’ शब्द के प्रयोग से ‘भारत माँ’ की ओर संकेत किया गया है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) जीवन पथ पर चलते हुए पथिक को किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है ? कविता के आधार पर कोई तीन बाधाओं को लिखिए।
उत्तर
जीवन रूपी मार्ग पर मनु रूपी राहगीर आगे बढ़ता है तो उसे अनेक बाधाएँ आकर घेर लेती हैं। मनुष्य सोचता है कि वह सफलताएँ ही प्राप्त करता जाएगा, विफलता उसके समक्ष आएँगी ही नहीं, ऐसा सोचना उसकी मूर्खता है। विफलता भी आ सकती है। इन विफलताओं (कठिनाइयों) के समय में अपने भी पराये जैसा (अपरिचितों जैसा) व्यवहार करते हैं। मन में दुविधा आ सकती है, यही दुविधा निराशा को जन्म देती है। आशा को काले बादलों में छिपा लेती है। आपत्तिकाल में अकेला व्यक्ति व्याकुल हो सकता है। कविता में कवि ने तीन बाधाओं को दर्शाया है
- निराशा में डूबे हुए व्यक्ति का एकाकीपन।
- ध्येय प्राप्ति में उलझन कि कार्य शुरू किया जाय या नहीं।
- अपनी क्षमताओं पर अविश्वास-असमंजस (दुविधा) की स्थिति का बन जाना।
(ख) किस स्थिति में कदम-कदम पर मनुष्य अपने आपको घोर निराशा में देखता है?
उत्तर
मनुष्य जब सब प्रकार से अपने प्रयास करने पर विफल हो जाता है, तो उस स्थिति में भी उसे अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं हो जाना चाहिए। उस असफलता की घड़ी में हर एक आदमी पराया-सा लगता है और उसके सामने पूर्णत: विरोधी होकर सामने दीख पड़ते हैं। उसे कदम-कदम पर भारी निराशा होती है। कठिनाइयों के काले बादल छा जाते हैं। उस अवस्था में उसे अकेलापन अनुभव करता है। उस व्यक्ति में निराशा और हताशा दोनों स्थितियाँ उसे क्लेश पहुँचाने वाली होती हैं।
(ग) सुन्दरता की मृगतृष्णा का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
किसी भी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आदमी को निश्चित उपायों के माध्यम से अपने लक्ष्य (मंजिल) तक पहुँचना होता है, परन्तु उस व्यक्ति को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उस मार्ग पर काँटों रूपी रुकावटें होंगी। साथ ही, कभी-कभी कोमल घास के दलों से पूर्ण सुखदायी मार्ग होगा, नदियाँ और तालाब तथा झरने भी होंगे। उस सौन्दर्य की मृगतृष्णा उस पथिक को भ्रम में डाल देने वाली होती है। सौन्दर्य की मृगतृष्णा में आनन्द और जीवन की सफलता महसूस करना उसे भ्रमित कर सकता है। इसी भ्रम से पथिक अपने कर्तव्य पथ को छोड़ उत्तरदायित्व के निर्वाह करने से विमुख हो जाता है।
(घ) कवि के अनुसार पथिक के सामने कब असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है? . .
उत्तर
कवि का मत है कि मातृभूमि की आजादी के लिए अनेक राष्ट्र भक्तों ने स्वयं का बलिदान फाँसी के तख्ते पर झूल कर दे दिया। उस आजादी को प्राप्त तो कर लिया परन्तु उसकी रक्षा के लिए मातृभूमि अपने राष्ट्रभक्तों से आहुति की माँग कर रही है। इस स्वतन्त्रता की ज्वाला में अपने महात्याग के पथ पर चलते हुए असमंजस (दुविधा) में स्थिति उत्पन्न मत होने देना। नहीं तो हे पथिक ! तू अपने कर्तव्य पथ को भूल जायेगा।
(ङ) कवि ने इस कविता में प्रकृति के कौन-कौन से अंगों-उपांगों का चित्रण किया है जो पथिक को उसके मार्ग में मिलते हैं?
उत्तर
कवि ने उन प्राकृतिक अंगों-उपांगों का वर्णन किया है जिन्हें पथिक कदम-कदम पर देखता है। पथिक को कभी तो दूबघास के कोमल दल, अपने निर्मल जल से भरकर इठलाती चलती नदियाँ, व तालाब दिखेंगे। इनके अतिरिक्त सुन्दर पर्वत, वन-वाटिकाएँ तथा जल की बावडियाँ तथा सुन्दर-सुन्दर झरने भी दिखेंगे जो अपनी कल-कल की मधुर ध्वनि से आकर्षण के केन्द्र बने हुए होंगे। कर्तव्य पथ के पथिक को प्राकृतिक उपादानों की सुन्दरता मृगतृष्णा के विमोह में फंसा लेने वाली सिद्ध न हो जाए, जिससे वह अपने कर्तव्य पालन में विफल होकर उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सके। कवि तो पथिक को आगाह करता है कि वह अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होता ही रहे।
पथिक से भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के चार-चार पर्यायवाची शब्द दिए गए हैं। उनमें से एक-एक शब्द गलत है। गलत ‘शब्द पर गोला लगाएँ
उत्तर
(क) पहाड़-(1) गिरि, (2) अचल, (3) पाषाण, (4) पर्वत।
(ख) वन-(1) अरण्य, (2) जम्बुक , (3) कानन , (4) विपिन।
(ग) तालाब-(1) सर, (2) तड़ाग, (3) सरोवर, (4) तटिनी।
प्रश्न 2.
नीचे कुछ शब्द और अके विलोम शब्द दिए गए हैं। दोनों को अलग-अलग लिखिए, प्रथम, सम्मुख, विफलता, अन्तिम, मांग, कठिन, विमुख, सफलता, अनुराग, प्रलय, पुष्ट, जर्जर, विराग, सरल, पूर्ति, सृष्टि।
उत्तर
शब्द – विलोम शब्द
प्रथम – अन्तिम
सम्मुख – विमुख
विफलता – सफलता
माँग – पूर्ति
कठिन – सरल
अनुराग – विराग
प्रलय – सृष्टि
पुष्ट – जर्जर
प्रश्न 3.
कविता में आए पुनरुक्ति शब्दों (जैसेअपना-अपना) को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
- सुन्दर-सुन्दर
- पग-पग
- सुन-सुन
- विदा-विदा।
प्रश्न 4.
एकाकीपन शब्द में ‘एकाकी’ में ‘पन’ – प्रत्यय है। इसी प्रकार ‘पन’ प्रत्यय जोड़कर चार शब्द बनाइए।
उत्तर
- लड़कपन
- बचपन
- दुकेलापन
- अकेलापन।
प्रश्न 5.
‘सरिता-सर’ में अनुप्रास अलंकार है। अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर
वन-वापी, कठिन-कर्म, सैनिक-पुलक।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रयुक्त अलंकार पहचानकर उनके नाम लिखिए
(क) जब कठिन कर्म पगडंडी पर।
राही का मन उन्मन होगा।
(ख) मानो झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से।
उत्तर
(क) अनुप्रास अलंकार
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार।
पथिक से सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
1. पथ भूल न जाना पथिक कहीं
पथ में काँटे तो होंगे ही,
‘दूर्वादल, सरिता, सर होंगे।
.सुन्दर गिरि-वन-वापी होंगे,
सुन्दर-सुन्दर निझर होंगे।
सुन्दरता की मृगतृष्णा में,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
शब्दार्थ-पथ = मार्ग, राह; पथिक = राहगीर; काँटे = कंटकी रूपी बाधाएँ: दूर्वादल = दूब घास के कोमल पत्ते; सरिता = नदियाँ; सर = तालाब; गिरि = पर्वत; वन = जंगल; वापी = बावड़ियाँ निर्झर = झरने; मृगतृष्णा = (एक प्रकार का भ्रम), रेगिस्तान में रेत पर सूर्य की किरणें पड़ने पर जल का भ्रम होता है।
सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के पाठ ‘पथिक से’ अवतरित है। इसके रचयिता डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं।
प्रसंग-कवि बता देना चाहता है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं परन्तु उस मार्ग में बहुत से सुहावने दृश्य भी होते हैं जो हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं लेकिन हमें उनके सौन्दर्य के भुलावे में नहीं आना चाहिए। हमें तो केवल अपने कर्तव्य पथ पर आगे ही आगे बढ़ते जाना चाहिए।
व्याख्या हे पथिक ! तुम अपने मार्ग को मत भूल जाना। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ (काँट) अवश्य ही होंगी परन्तु इसके विपरीत वहाँ कोमल दूब घास के पत्ते होंगे, नदियों के अच्छे-अच्छे दृश्य भी होंगे। मनोरम तालाब भी होंगे। पर्वतों, वनों और बावड़ियों के अति सुन्दर जंगल होंगे। -वहाँ अति सुन्दर झरने भी होंगे परन्तु हे राहगीर तुझे यह ध्यान – रखना पड़ेगा कि सुन्दरता का भ्रम, तुझे अपने लक्ष्य प्राप्ति के -सही मार्ग से भटका न दे। तू अपने सही मार्ग को भूल मत जाना।
(2) जब कठिन कर्म पगडंडी पर
राही का मन उन्मन होगा।
जब सपने सब मिट जाएँगे,
कर्तव्य मार्ग सम्मख होगा।
तब अपनी प्रथम विफलता में,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
शब्दार्थ-कर्म पगडंडी पर = कर्म के कम चौड़े मार्ग पर; राही = राह पर चलने वाला उन्मन = उदास. खिन्न: सपने = कल्पनाएँ; मिट जाएंगे = समाप्त हो जाएँगे; कर्त्तव्य मार्ग = उत्तरदायित्व का निर्वाह करने वाला रास्ता; सम्मुख = समक्ष, सामने प्रथम = पहली; विफलता- असफलता।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-कवि सलाह देता है कि कर्म के मार्ग पर चलते रहने से कल्पनाएँ अपने आप मिट जाती हैं। वे साकार होने लगती हैं।
व्याख्या-अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में पथिक के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती ही हैं, राही का मन कई बार इनमें घिरकर उदास हो उठता है। जब उसकी कल्पनाएँ मात्र कल्पनाएँ लगने लगती हैं। तब उसके सामने केवल कर्त्तव्य मार्ग ही होता है। यदि किसी कारण से पहली बार उसे असफलता मिलती है तो भी
उस कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने वाले राहगीर को अपना मार्ग नहीं भुला देना चाहिए। वह मार्ग से भटक न जाय अर्थात् उसे अपने कर्तव्य को पूरा करने में जुटा रहना चाहिए।
3. अपने भी विमुख पराये बन,
आँखों के सम्मुख आएंगे।
पग-पग पर घोर निराशा के,
काले बादल छा जाएंगे।
तब अपने एकाकीपन में,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
शब्दार्थ-विमुख = विरुद्ध पराये = दूसरे, अन्य; सम्मुख = सामने; निराशा = नाउम्मीद; काले बादल = विपत्ति, कठिनाइयाँ; छा जाएँगे = घिर आएँगे;
एकाकीपन अकेलापन।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-कठिनाइयों के आ जाने पर भी अपने कर्त्तव्य मार्ग से पीछे नहीं हटना चाहिए, इस तरह की सलाह कवि देता है।
व्याख्या-कठिनाइयों के काले बादल जब चारों ओर छा जाते हैं तब कदम-कदम पर भयंकर आशाहीनता आ जाती है। उस समय अपने सगे-सम्बन्धी भी अन्य से (पराये से) बन जाते हैं। वे अपरिचित से हो जाते हैं। उस अकेलेपन में भी, हे राहगीर ! तुम्हें अपने कर्त्तव्य मार्ग से नहीं भटक जाना चाहिए।
4. रणभेरी सुन-सुन विदा-विदा
जब सैनिक पुलक रहे होंगे;
हाथों में कुमकुम थाल लिए,
जल कण कुछ डुलक रहे होंगे।
कर्तव्य प्रेम की उलझन में,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
शब्दार्थ-रणभेरी = युद्ध शुरू करने की ध्वनि पुलक रहे होंगे – प्रसन्न या पुलकायमान हो रहे होंगे;
जलकण = आँसुओं की बूंदें।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-कर्त्तव्य निर्वाह किया जाय अथवा प्रेम का निर्वाह इस उलझी हुई पहेली के सुलझाव के लिए अपने कर्तव्य के मार्ग को मत भूल जाना, ऐसी सलाह देकर कवि राहगीर को अपने कर्त्तव्य पथ पर आगे ही आगे बढ़ते रहने का सदुपदेश देता है।
व्याख्या-युद्ध प्रारम्भ होने की ध्वनि सुनते-सुनते, सैनिक रोमांचित हो रहे होंगे। वे युद्ध क्षेत्र के लिए विदा होने की तैयारी कर रहे होंगे। युद्ध (कर्तव्य पथ पर बढ़ने के लिए) को जाते समय वह (प्रियतमा) कुमकुम से सजा हुआ थाल अपने हाथों में लिए हुए अपने नेत्रों से प्रेमाश्रु बहाती हुई हो सकती है। उन प्रेमाश्रुओं को देखकर तथा समक्ष ही कर्तव्य पूरा करने की घड़ी सामने होने पर पैदा हुई उलझन में, हे राहगीर तुम अपने कर्तव्य मार्ग से इधर-उधर भटक मत जाना।
(5) कुछ मस्तक कम पड़ते होंगे,
जब महाकाल की माला में,
माँ माँग रही होगी आहुति,
जब स्वतन्त्रता की ज्वाला में।
पल भर भी पड़ असमंजस में,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
शब्दार्थ-मस्तक = माथा; आहुति = यज्ञ में डाली जाने वाली हवन सामग्री; असमंजस- दुविधा।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-किसी भी प्रकार की दुविधा में पड़े बिना कर्तव्य | का निर्वाह करते रहना चाहिए।
व्याख्या-युद्ध की देवी उन बहादुर वीरों की संख्या कम होने पर अन्य युद्धवीरों के आने की प्रतीक्षा कर रही होगी क्योंकि महाकाल की माला में आजादी की खातिर अपने मस्तक को काटकर चढ़ाने वाले युद्ध वीरों की संख्या कुछ कम पड़ सकती है। वह युद्ध की देवी, नौजवान युवकों की आहुति आजादी को प्राप्त करने की प्रज्ज्वलित आग में देने के लिए, सभी से माँग कर रही है। कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए, किसी भी असमंजस 1 में नहीं पड़ें। उन्हें तो अपने कर्तव्य मार्ग का ही ध्यान होना चाहिए। कर्त्तव्य मार्ग से हट जाने की भूल न हो जाये।