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MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 11 सुभाषितानि

MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 11 सुभाषितानि

MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 11 सुभाषितानि

MP Board Class 8th Sanskrit Chapter 11 अभ्यासः

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) सम्पत्तौ विपत्तौ च केषाम् एकरूपता? (सुख और दुःख में किनकी एकरूपता होती है?)
उत्तर:
महताम्। (बड़े लोगों की)

(ख) अस्तसमये सूर्यस्य वर्णः कः भवति? (अस्त होते समय सूर्य का रंग कैसा होता है?)
उत्तर:
ताम्रः। (लाल)

(ग) नरत्वं दुर्लभं कुत्र? (मानव जन्म कहाँ कठिनता से प्राप्त होता है?)
उत्तर:
लोके। (संसार में)

(घ) केषां वसुधैवकुटुम्बकम्? (किनका सारा संसार परिवार होता है?)
उत्तर:
उदारचरितानाम्। (उदार हृदय वालों का)

(ङ) परार्थाय वृक्षाः कानि यच्छन्ति? (दूसरों के लिए वृक्ष क्या देते हैं?)
उत्तर:
फलानि। (फलों को)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत(एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) सूर्यस्य वर्णः ताम्रः कदा-कदा भवति?
उत्तर:
सूर्यस्य वर्णः ताम्रः उदयकाले अस्तकाले च भवति। (सूर्य का रंग लाल उदय होते समय और अस्त होते समय होता है।)

(ख) भारत्याः कोशः कस्मात् क्षयमायाति? (विद्या का खजाना कैसे घटता है?)
उत्तर:
भारत्याः कोशः सञ्चयात् क्षयमायाति। (विद्या का खजाना एकत्र करने पर घटता है।)

(ग) वृक्षाणां स्वभावः कीदृशः? (पेड़ों का स्वभाव कैसा होता है?)
उत्तर:
वृक्षाणां स्वभावः सत्पुरुष इव। (पेड़ों का स्वभाव सज्जन जैसा होता है।)

(घ) न्याय्यात्पथः पदमपि के न विचलन्ति? (न्याय के मार्ग से एक कदम भी कौन नहीं हटते हैं।)
उत्तर:
न्याय्यात्पथः पदमपि धीराः न विचलन्ति? (न्याय के मार्ग से एक कदम भी धीर नहीं हटते हैं।)

(ङ) लोके विद्या कीदृशी? (संसार में विद्या कैसे प्राप्त होती है?)
उत्तर:
लोके विद्या सुदुर्लभा अस्ति। (संसार में विद्या बहुत कठिनता से प्राप्त होती है।)

प्रश्न 3.
सन्धिविच्छेदं कुरुत(सन्धि-विच्छेद करो-)
(क) कोशोऽयम्
(ख) यथेष्टम्
(ग) फलान्यपि
(घ) युगान्तरे।
उत्तर:
(क) कोशः + अयम्
(ख) यथा + इष्टम्
(ग) फलानि + अपि
(घ) युग + अन्तरे।

प्रश्न 4.
श्लोकम् पूरयत(श्लोक पूरा करो-)
विना वेदं विना गीतां, विना रामायणी कथाम्।
विना कविं कालिदासं, भारतम् भारतं न हि॥

प्रश्न 5.
उचितं मेलयत्(उचित को मिलाओ-)

उत्तर:
(क) → (ii)
(ख) → (iii)
(ग) → (i)
(घ) → (v)
(ङ) → (iv)

प्रश्न 6.
अधोलिखितैः शब्दैः वाक्यरचनां कुरुत (नीचे लिखे शब्दों से वाक्य रचना करो-)
(क) देवः
(ख) व्ययतः
(ग) द्रुमः
(घ) लक्ष्मीः
(ङ) फलानि।
उत्तर:

सुभाषितानि हिन्दी अनुवाद

परोक्षेकार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्॥1॥

अनुवाद :
(पीठ) पीछे कार्य को नष्ट करने वाले और सामने प्रिय बोलने वाले मित्र को वैसे ही त्याग देना चाहिए, जिस प्रकार मुख (ऊपरी हिस्से) में दूध लगे किन्तु अन्दर विष भरे घड़े को त्याग देते हैं।

अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति।
व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयमायाति सञ्चयात्॥2॥

अनुवाद :
हे (विद्या की देवी) सरस्वती! तुम्हारा यह (विद्या का) कोष (खजाना) कुछ अनोखा (अद्भुत) है। जो खर्च करने पर बढ़ता है और एकत्र करने पर घटता है। (अर्थात्। विद्या बाँटनी चाहिए।)

विना वेदं विना गीतां, विना रामायणीं कथाम्।
विना कविं कालिदासं, भारतं भारतं न हि॥3॥

अनुवाद :
बिना वेदों के, बिना. श्रीमद् भगवत् गीता के बिना रामायणी कथा के, बिना कवि कालिदास के भारत (वास्तव में) भारत नहीं है। (अर्थात् इन सबके बिना भारत की कोई पहचान नहीं है।)

उदये सविता ताम्रस्ताम्र एवास्तमेति च।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च, महतामेकरूपता॥4॥

अनुवाद :
सूर्य उदय होते समय लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है। उसी प्रकार महान् लोग सम्पत्ति (सुख) और विपत्ति (दुःख) में एक समान रहते हैं।

उद्यमं साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकः॥5॥

अनुवाद :
उद्यम (परिश्रम), साहस (बल, हिम्मत), धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम, ये छह जहाँ पर होते हैं वहाँ भगवान् सहायक होते हैं।

नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा।
कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्त्र सुदुर्लभा॥6॥

अनुवाद :
संसार में मानव जन्म (नरत्व) कठिनता से प्राप्त। होता है, (यदि मानव जन्म मिल भी जाये तो) उसमें विद्या (ज्ञान) बहुत कठिनता से प्राप्त होती है; (यदि विद्या मिल भी जाये तो) उसमें कवित्व (कविता करना) कठिनता से प्राप्त होता है, (यदि कवित्व मिल भी जाये तो) उसमें (कविता करने की ईश्वर प्रदत्त) शक्ति (क्षमता) बहुत कठिनता से प्राप्त होती है।

अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम्॥7॥

अनुवाद :
‘यह मेरा है, ‘यह उसका है’, ऐसी छोटे मन वालों की सोच होती है। उदार हृदय वालों के लिए तो सारा संसार ही परिवार होता है।

छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे।
फलान्यपि परार्थाय वृक्षाः सत्पुरुषा इव॥8॥

अनुवाद :
दूसरों के लिए छाया करते हैं और स्वयं धूप में खड़े रहते हैं। फल भी दूसरों के लिए होते हैं, इसलिए वृक्ष सज्जनों के समान होते हैं। (अर्थात् जैसे सज्जन दूसरों के लिए कष्ट सहन करके भी उपकार करते हैं, उसी प्रकार वृक्ष होते हैं।)

निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मीः समाविशतु, गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणामस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥9॥

अनुवाद :
धैर्यशील मनुष्यों की, नीति में कुशल विद्वान् निन्दा करें या प्रशंसा करें, इच्छानुसार सम्पत्ति आये अथवा दूर चली जाये (न आये), आज ही मृत्यु हो जाय या दूसरे युग में (बहुत दिनों के बाद) हो, परन्तु वे न्यायोचित मार्ग से एक पग भी विचलित नहीं होते हैं।

सुभाषितानि शब्दार्थाः

सम्पत्तौ = सम्पत्ति (सुख में)। एकरूपता = समानता। विपत्तौ = विपत्ति में। उदये = उदय होते समय में। महताम् = बड़ों का। सविता = सूर्य। ताम्रः = ताँबे के समान लाल। नरत्वम् = मानवता। परोक्षे = पीछे। दुर्लभम् = कठिनता से प्राप्त। वर्जयेत = रोके। कुटुम्बकम् = परिवार। क्षयमायाति = क्षीण होता है। लघुचेतसाम् = छोटे मन वाला। भारति = हे सरस्वती जी। उदारचरितानाम् = उदार हृदय वाला। निन्दन्तु = निन्दा करें। आतपे = धूप में। समाविशतु = अच्छे प्रकार से आये। परार्थाय = दूसरों के लिए। युगान्तरे = दूसरे युग में। सत्पुरुषाः = सज्जन व्यक्ति। यथेष्टम् = इच्छित को। स्तुवन्तु = स्तुति करें।

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