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MP Board Class 12th General Hindi निबंध साहित्य का इतिहास Important Questions

MP Board Class 12th General Hindi निबंध साहित्य का इतिहास Important Questions

MP Board Class 12th General Hindi निबंध साहित्य का इतिहास Important Questions

प्रश्न 1.
निबंध किसे कहते हैं? कोई एक भारतीय विद्वान की परिभाषा लिखिए।
अथवा (म. प्र. 2015, 16)
निबंध का अर्थ बताते हुए किसी एक पाश्चात्य विद्वान की परिभाषा लिखिए। (म. प्र. 2015, 17)
उत्तर:
‘निबन्ध’ शब्द निः + बन्ध से बना है, जिसका अर्थ अच्छी तरह बँधी हुई परिमार्जित प्रौढ़ रचना है। अंग्रेजी में निबन्ध को (Essay) कहते हैं।
इसका अर्थ है ‘प्रयत्न करना’ यह शब्द मूलतः फ्रांसीसी शब्द ‘एसाई’ से बना है। जिसका अर्थ प्रयत्न, प्रयोग और परीक्षण है।)

परिभाषा:
निबन्ध की विद्वानों के द्वारा अनेक परिभाषाएँ दी गयी हैं। (म. प्र. 2010)

1. हड्सन के अनुसार:
“निबन्ध लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यंजना का निर्व्याज निखरा हुआ स्वरूप है जो आकार में छोटा तथा विवेचन में संक्षिप्त होता है।”

2. बाबू गुलाबराय के अनुसार:
“निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।” (म. प्र. 2017)

3. प्रोफेसर नलिन के अनुसार:
“निबन्ध स्वाधीन, चिंतन और निश्छल अनुभूतियों का सरस, सजीव और मर्यादित गद्यात्मक प्रकाशन है।”

4. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार:
“यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।” (म. प्र. 2014, 15)

5. डॉ.लक्ष्मीनारायण वार्ष्णेय के अनुसार:
“निबन्ध से तात्पर्य सच्चे साहित्यिक निबन्धों से है। जिनमें लेखक अपने आपको प्रकट करता है विषय को नहीं। विषय तो केवल बहाना मात्र होता है।”

6. बेकन के अनुसार:
“निबंध केन्द्रीभूत ज्ञान के वे कुछ पृष्ठ हैं, जिनमें विचारों की सहज अभिव्यक्ति होती है।”

निबन्ध के तत्व:
इन परिभाषाओं के आधार पर निबन्ध के निम्नांकित तत्व निश्चित किये जा सकते हैं –

  1. निबन्ध की विषय-वस्तु
  2. भाषा-शैली।

विषय-वस्तु:
निबन्ध का पहला तत्व उसकी विषय-वस्तु या प्रतिपाद्य वस्तु है। इसी के सहारे निबन्धकार अपने मनोभावों एवं विचारों को रचता चला जाता है। दूसरे शब्दों में प्राकृतिक दृश्य, कोई घटना, कोई विचार, कोई तथ्य कुछ भी निबन्ध का विषय बन सकता है। निबन्ध तो मन का उच्छृखल आवेग या निर्व्याज अभिव्यंजना है। उसके भीतर भौतिक-मानसिक कोई वस्तु या विचार, भावनाएँ विषय-वस्तु रूप में समाहित हैं।

भाषा-शैली:
भाषा-शैली निबन्ध के ऐसे तत्व हैं, जिन्हें एक-दूसरे से विलगाया नहीं जा सकता। भाषा, निवन्ध को आकार प्रदान करती है, तो शैली उस आकार को संवारती है। भाषा-शैली के द्वारा ही विषय-वस्तु सम्प्रेष्य बनती है। जार्ज बर्नार्ड शा के अनुसार-“प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति ही शैली का अर्थ और इति है। शैली विचारों की आकृति है। शैली ही व्यक्ति है।”

बफन के अनुसार:
“शैली ही व्यक्ति है और व्यक्ति ही शैली है।” (म. प्र. 2013, 14)

व्यक्तित्व एवं शैली के आधार पर ही निबन्ध के कथानक, वर्णनात्मक, भावात्मक, विचारात्मक ललित आदि भेद किये जाते हैं। विषय के अनुकूल भाषा और शैली दोनों, बदलती रहती हैं।

संक्षिप्तता, विचार सम्बद्धता, व्यक्तित्व या निजीपन की अभिव्यक्ति, सजीवता की आवश्यक संगति निबन्ध की विशेषताएँ हैं। निबन्ध रचना की प्रमुख शैलियाँ अग्रलिखित हैं – (म. प्र. 2015)

1. व्यास शैली:
इसे प्रसाद शैली भी कहते हैं। इसमें विषय प्रतिपादन सरल और रोचक ढंग से होता है। इसमें सरलता, स्वाभाविकता और स्पष्टता होती है।
कथात्मक और वर्णनात्मक निबन्ध इसी शैली में लिखे जाते हैं। (म. प्र. 2018)

2. समास शैली:
इसका उपयोग विचारात्मक निबन्ध लिखने में होता है। इसमें कम से कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात कहने का प्रयास किया जाता है।

समास शब्द के अर्थ:
संक्षिप्त, शैली के अनुरूप ही इसकी विशेषता है।

3. विवेचन शैली:
इसमें तर्क-वितर्क और चिन्तन-मनन होता है। इसमें कथन को पुष्ट करने के लिए प्रमाण, उदाहरण, आख्यान उद्धृत किये जाते हैं। इस शैली के निबन्ध लेखक के गहन अध्ययन को प्रमाणित करते हैं।
ऐसे निबन्धों में कभी-कभी क्लिष्टता आ जाती है। आचार्य शुक्ल के निबन्ध इस शैली के उदाहरण हैं।

4. व्यंग्य शैली:
इसका मूल आधार सुधार और मनोरंजन होता है। ऐसे निबन्धों में कभी-कभी तीखी चुभन और कभी-कभी गुदगुदी होती है।

5. आवेगशैली:
इसे धारा शैली या प्रवाह शैली भी कहते हैं। यह भाव प्रधान शैली होती है। इसमें भावों के अनुरूप भाषा का प्रयोग स्पष्ट दिखायी पड़ता है।

6. संलाप-प्रलाप-शैली:
संलाप शैली में कथोपकथन के माध्यम से विषय-वस्तु का प्रतिपादन किया जाता है। प्रलाप शैली में मनोभावों पर नियंत्रण नहीं रह पाता। लेखक आवेगपूर्ण मानसिक स्थिति में अपने विचार प्रकट करता है।
यह भाव प्रधान शैली होती है। इसमें भावाभिव्यक्ति कभी-कभी अस्तव्यस्त हो जाती है।

7. निगमन:
आगमन शैली-निगमन शैली को सूत्र शैली भी कहते हैं। इसमें पहले विचार को सूत्र रूप में प्रकट करते हैं फिर विविध प्रकार से उसकी व्याख्या करते हैं।
विचारों को प्रकट करने के लिए उदाहरणों का प्रयोग किया जाता है। आगमन शैली में विचारों को विस्तारपूर्वक समझाकर किसी सिद्धान्त को सारांश या सूत्र रूप में प्रगट किया जाता है।

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