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MP Board Class 12th General Hindi Important Questions Chapter 15 यशोधरा की व्यथा

MP Board Class 12th General Hindi Important Questions Chapter 15 यशोधरा की व्यथा

MP Board Class 12th General Hindi Important Questions Chapter 15 यशोधरा की व्यथा

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए – मैथिलीशरण गुप्त

1. “हेमपुंज हेमंत काल के, इस आतप पर वारूँ (महत्वपूर्ण)
प्रिय स्पर्श की पुलकावलि मैं, कैसे आज बिसारूँ
किंतु शिशिर ये ठंडी साँसें, हाय कहाँ तक धारूँ
तन गारूँ, मन मारूँ पर क्या, मैं जीवन भी हारूँ।

मेरी बाहें गही स्वामी ने,
मैंने उनकी छाँह गही”

शब्दार्थ:
हेमपुंज = सोने का समूह, हेमंत = ऋतु, आतप = धूप, वारूँ = न्यौछावर, पुलकावलि = रोमांच, बिसारूँ = भुलाना, शिशिर = ठंडी ऋतु, धारूँ = धारण करना, गारु = निचोड़ना, गही = पकड़ना।

संदर्भ:
प्रस्तुत पद्यांश ‘यशोधरा की व्यथा’ नामक कविता से उद्धृत किया गया है, जिसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।

प्रसंग:
यशोधरा अपने विरह की पीड़ा अपनी सखी से व्यक्त कर रही है।

व्याख्या:
यशोधरा कहती है हेमंत ऋतु की धूप पर सोने का ढेर न्यौछावर करने के लिए मैं तत्पर हूँ। प्रियतम के स्पर्श का रोमांच मैं आज तक नहीं भुला पाई हूँ। इस भयानक शीत ऋतु में ठंडी साँसों का बोझ और असहनीय हो रहा है।

विरह के ताप से उत्पन्न पसीने को तो मैं निचोड़ सकती हूँ। मैं अपने मन को मारकर चुप भी बैठ सकती हूँ, किन्तु जीवन का दाव मैं नहीं हार सकती। मेरी बाहें मेरे पति ने विवाह के अवसर पर पकड़ी थी। तभी से मैंने उनकी छाया स्वीकार की थी अब मैं उस छाया का आश्रय नहीं छोड़ सकती।

विशेष:

  • यशोधरा की विरह व्यथा का प्रभावी चित्रण है।
  • पद मैत्री है।
  • मानवीकरण अलंकार है।

“पेड़ों ने पत्ते तक उनका, त्याग देखकर त्यागे। मेरा धुंधलापन कुहरा बन, छाया सबके आगे। उनके तप के अग्निकुंड से घर-घर में हैं जागे, मेरे कम्प हाय! फिर भी तुम नहीं कहीं से भागे।” (म. प्र. 2014)

शब्दार्थ:
त्याग = वैराग्य, त्यागे = छोड़ना, कम्प = काँपना।

संदर्भ:
पूर्ववत।

प्रसंग:
कवि ने यशोधरा की विरह व्यथा को प्रकृति से जोड़कर देखा है।

व्याख्या:
कवि के अनुसार यशोधरा के पति के वैराग्य से प्रभावित होकर पेड़-पौधों ने भी पत्ते त्याग दिए। वस्तुतः पेड़ों ने पतझड़ के प्रभाव से पत्ते त्यागे किन्तु कवि ने उसे गौतम के त्याग से जोड़ दिया है। यशोधरा की निराशा कुँहरा बनाकर वातावरण में छा गई। गौतम तप के अग्निकुण्ड के पास बैठकर तपस्यारत हुए तो घर घर में लोगों ने अंगीठियाँ जला ली। घर-घर में अंगीठियाँ जलने के बाद भी यशोधरा की कँपकँपी दूर नहीं हुई। अर्थात् यशोधरा विरह की अग्नि में जलती रही।

विशेष:

  • यशोधरा के विरह का प्रभावी चित्रण है।
  • पद मैत्री है।
  • विप्रलम्भ श्रृंगार है।
  • पुनरुक्ति अलंकार है।

3. आशा से आकाश थमा है, स्वाँस-तन्तु कब टूटे।
दिन मुख दमके, पल्लव चमके, भव ने नव रस लूटे।
स्वामी के सद्भाव फैलकर, फूल-फूल में फूटे, उन्हें खोजने को मानो, नूतन निर्झर छूटे।
उनके श्रम के फल सब भोगे। यशोधरा की विनय यही। (म. प्र. 2016)

संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश में आशावादिता की झलक दिखाई देती है। उसे विश्वास है कि उसके पति एक दिन अवश्य आयेंगे।

व्याख्या:
प्रस्तुत पद्यांश में यशोधरा कहती है कि यह आधारहीन आकाश आशा की भित्ति पर टिका हुआ है। यदि जीवन में आशा न हो तो जीवन का सूत्र कभी भी टूट सकता है।

रात्रि के पश्चात् नियति के क्रमानुसार दिन का आगमन होता है। अंधकार के पश्चात् सारा संसार प्रकाश में जगमगा उठता है। इसलिए यशोधरा भी अपने प्रिय-मिलन की आशा को लिए जी रही है। इस समय अपने प्रियतम के वियोग में उसका जीवन रात्रि के समान अन्धकारमय हो रहा है, किन्तु उसे यह विश्वास है कि कल उसके जीवन का भी सवेरा होगा।

उसके जीवन में भी प्रकाश आयेगा, नये-नये पत्ते भी पल्लवित होंगे। आकाश को अपने विश्वास के कारण फल मिला। वहाँ सूर्योदय हुआ जिसके परिणामस्वरूप सारे संसार में नवीन आनन्द की लहर फैल गई और अंकुर फूट पड़े। वातावरण में चारों ओर उल्लास ही उल्लास दृष्टिगोचर हुआ है। ऐसा लगता है कि यशोधरा के स्वामी को खोजने के लिए नये-नये झरने निकल पड़े।

साथ ही उनके परिश्रम का फल न केवल मुझे मिले बल्कि उसका फल सभी प्राणियों को एवं जीवधारियों को मिले क्योंकि सभी ने मेरे दुःख में सहभागिता की है। यशोधरा यही विनय करती है।

विशेष:

  • पद्य में विरहिणी को भी प्रिय मिलन की आशा है।
  • उनके श्रम फल सब भोगे में विश्व कल्याण की भावना।
  • फूल-फूल में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • नूतन निर्झर में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा में तत्सम शब्दावली है।

4. तप मेरे मोहन का उद्धव धूल उड़ाता आया,
हाय विभूति रमाने का भी मैंने योग न पाया।
सूखा कण्ठ, पसीना छूटा मृग-तृष्णा की माया,
झुलसी दृष्टि, अंधेरा दीखा, टूट गई वह छाया मेरा ताप और तप उनका ‘जलती है यह जठर मही। (म. प्र. 2018)

संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश में विरह व्यथित यशोधरा अपनी सखि से पूछ रही है कि उसके मोहन उसे अकेली छोड़कर कहाँ गए।

व्याख्या:
प्रस्तुत पद्यांश में गुप्त जी कहते हैं कि यशोधरा अपने को गोपी रूप में और सिद्धार्थ को कृष्ण रूप में स्वीकार कर रही है कि ऐ उद्धव। यह जो तुम देख रहे हो, यह ग्रीष्म ऋतु में उठने वाली धूलि के झोंके नहीं हैं।

मेरे मोहन की तपस्या से तो सारा संसार जल उठा है और उसी जलन के परिणामस्वरूप धूलि सूख गई है तथा वह वायु में मिलकर यहाँ आ रही है। यशोधरा अपनी हार्दिक वेदना को व्यक्त करती हुई कहती है कि कहाँ तो क्या, शरीर पर भस्म लगाने का अवसर भी नहीं मिला है। कहने का भाव यह है कि मेरे लिये यह भी संभव नहीं है कि मैं अपने प्रियतम की भाँति अपने शरीर पर भस्म रमाकर योगिनी भी बन जाऊँ, क्योंकि मुझे तो राहुल का पालन-पोषण करना है। इस ग्रीष्म ऋतु में मेरा गला सूखा जा रहा है।

शरीर से पसीना निरंतर बह रहा है और चारों ओर मृग-मरीचिका दिखाई दे रही है। गर्मी की तीव्रता से दृष्टि झुलस सी गई है। जिसके कारण आँखों के सामने अँधेरा सा दिखाई देता है और आँखों के समक्ष अँधेरा छा जाने से प्रियतम की अथवा अपनी छाया भी नहीं दिखाई दे रही है। यशोधरा कहती है कि यह जो कठोर पृथ्वी निरंतर जल रही है। इसके जलन का कारण ग्रीष्म ऋतु नहीं है, अपितु मेरे विरह से उत्पन्न ताप और मेरे प्रियतम का ताप है।

विशेष:

  • ग्रीष्म ऋतु में यशोधरा की विरह व्यथा में सूर्य की तपन वृद्धि कर रही है।
  • यशोधरा की विरह और सिद्धार्थ की तप साधना का ताप ही ग्रीष्म ऋतु है।
  • वसन्त से उष्मा सी में उपमा अलंकार है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यशोधरा ने ‘वसंत’ किसको कहा है? (म. प्र. 2009, 13)
उत्तर:
राजकुमार सिद्धार्थ को यशोधरा ने वसंत कहा है।

प्रश्न 2.
धरती किसके ताप से जल रही है? (म. प्र. 2016)
उत्तर:
धरती यशोधरा के ताप से तप रही है।

प्रश्न 3.
गौतम बुद्ध के त्याग से वृक्षों पर क्या प्रभाव पड़ा? (म. प्र. 2012)
उत्तर:
वृक्षों ने भी अपने पत्ते त्याग दिए।

प्रश्न 4.
यशोधरा की विनय क्या है? (म. प्र. 2014)
उत्तर:
सिद्धार्थ की तपस्या से जो भी फल प्राप्त हो उसे सभी भोगें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कविता में गौतम बुद्ध के कौन-कौन से गुण बताए गए हैं? (म. प्र. 2009, 14)
उत्तर:
यशोधरा की व्यथा कविता में गौतम बुद्ध को तपस्वी, दयालु, त्यागी, उदार एवं विश्व का मंगलकारी बताया गया है।

प्रश्न 2.
यशोधरा की ‘निजी व्यथा’, ‘लोक व्यथा’ क्यों बन गई है? (म. प्र. 2014, 16, 17)
उत्तर:
गौतम बुद्ध ने लोक मंगल के लिए साधना का पथ अपनाया था। यशोधरा की सखियाँ, सम्पूर्ण प्रकृति यशोधरा की करुणा एवं व्यथा में सहभागी थीं।
यही कारण है कि यशोधरा को निजी व्यथा समाज एवं प्रकृति में भी प्रतिभासित होती थी।

प्रश्न 3.
कविता में वर्णित षड्ऋतुओं में से किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शिशिर ऋतु में पेड़-पौधों से पीले-पत्ते पृथक हो गए मानो वे भी सिद्धार्थ के तप के प्रभाव में आ गए। धरती पर चारों ओर कुहरा छा गया। घर-घर अलाव जलने लगे। कुहरा यशोधरा की निराशा के प्रतीक स्वरूप धरती पर उतरा। अलाव पंचाग्नि के रूप में जलाया गया। जल जमकर चट्टान बन गया किन्तु यशोधरा के बुरे दिन दूर नहीं हुए।

प्रश्न 4.
यशोधरा की व्यथा कविता में शरदताप किसका सूचक है? (म. प्र. 2015)
उत्तर:
‘यशोधरा की व्यथा’ कविता में शरदताप विकास सूचक है। सिद्धार्थ घन गमन से यशोधरा के मन में भावी फल की अभिलाषा जुड़ी है कि शरद ऋतु का ताप सुख समृद्धि एवं विकास का परिचायक है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ लिखिए –

  1. तप मेरे मोहन का उद्धव धूल उड़ाता आया।
  2. अरी! वृष्टि ऐसी ही उनकी, दया-दृष्टि रोती थी।
  3. मेरी बाँह गयी स्वामी ने, मैंने उनकी छाँह गही।
  4. उनके श्रम के फल सब भोगें, यशोधरा की विनय यही।

उत्तर:

  1. यह ग्रीष्म के प्रभाव से उड़ने वाली धूल नहीं अपितु सिद्धार्थ के तप के प्रभाव से वायु में मिलकर धूल उड़ रही है।
  2. जिस प्रकार बरसात की बूंदें लगातार गिर रही हैं, उसी प्रकार यशोधरा पर सिद्धार्थ दया की बरसात किया करते थे।
  3. यशोधरा कहती है कि विवाह के अवसर पर पति सिद्धार्थ ने मेरी बाँह पकड़ी और मैंने भी उनका वरण किया। उनकी छाया स्वीकार की।
  4. मेरे प्रियतम की तपस्या का फल सारी सृष्टि प्राप्त करे। यशोधरा यह विनती आम जन से करती है।

प्रश्न 6.
यशोधरा ने यह क्यों कहा है कि “हाय विभूति रमाने का भी मैंने योग न पाया”? (म. प्र. 2012)
उत्तर:
यशोधरा अपने भाग्य को कोसती है कि शायद मेरे स्वामी ने अपने काबिल नहीं समझा तब ही वह उन्हें अकेले छोड़कर गये वह मुझे इस योग्य नहीं समझे या उन्होंने मुझे पहचाना ही नहीं मैं स्वयं सुसज्जित कर उन्हें तप हेतु प्रोत्साहन करती किन्तु वे चुपके-चुपके गये उन्होंने बताने की भी आवश्यकता महसूस नहीं की। अब मैं इस योग्य नहीं हूँ कि मैं उनके बताये गये आदर्श के अनुसार अपने शरीर पर विभूति भी लगा सकूँ क्योंकि उनकी नजर में मेरा कोई स्थान नहीं। यशोधरा प्रायश्चित की अग्नि में जलती है।

प्रश्न 7.
“यशोधरा की व्यथा” कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए। (म. प्र. 2013)
उत्तर:
अपनी पत्नी यशोधरा को अर्द्धरात्रि में सोता हुआ छोड़कर राजकुमार सिद्धार्थ स्वयं को साधना संपन्न करने राज महल छोड़कर चले गए थे। कवि ने वियोगिनी यशोधरा की विरह-वेदना को ही इस कविता में प्रस्तुत किया है।

यह कविता यशोधरा द्वारा अपनी सखी को संबोधित है। ग्रीष्म की तपन है, वर्षा मानो सिद्धार्थ की करुणा का प्रतीक है, शरद सिद्धार्थ की शांति और शोभा को प्रदर्शित करते हुए यशोधरा के विरह को बढ़ा देती है। शिशिर की ठंडी श्वास प्रिय का शीतल स्पर्श ही है इसी प्रकार कवि ने हेमन्त और बसंत ऋतु में भी यशोधरा के विरह-भाव को स्पष्ट किया है। इस कविता में ऋतुयें ही विरहणी यशोधरा के विरह को विचलित नहीं करती हैं, बल्कि ऋतुयें भी यशोधरा के विरह से पीड़ित होकर अपनी भाव-दशाओं को बदल रही हैं। कविता में मानवीकरण का सौन्दर्य बिखरा पड़ा है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

  1. यशोधरा के पति ……………… थे। (म. प्र. 2009)
  2. यशोधरा के मन की पीड़ा व्यक्त करने के लिए ……………… का सहारा लिया गया है।
  3. मैथिलीशरण गुप्त का जन्म उ.प्र. के झाँसी जिले के ……………… में हुआ था।

उत्तर:

  1. सिद्धार्थ
  2. ऋतुओं
  3. चिरगाँव।

प्रश्न 2. सत्य / असत्य कथन पहचानिए –

  1. यशोधरा विरह की पीड़ा से संत्रस्त हुई।
  2. ‘यशोधरा की व्यथा’ कविता मैथिलीशरण गुप्त की है।
  3. यशोधरा का विरह अत्यंत कृत्रिम है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य।

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