MP 9th Sanskrit

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 3 गोदोहनम्

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 3 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

गद्यांशों के हिन्दी में अनुवाद
पाठ परिचय – एतत् नाट्यांश कृष्णचन्द्रत्रिपाठिमहोदयैः रचितात् ‘चतुर्व्यहूम्’ इति पुस्तकात् संक्षिप्य सम्पाद्य च उद्धृतम्। अस्मिन् नाटके एतादृशस्य जनस्य कथानकम् अस्ति यः धनवान् सुखाकाङ्क्षी च भवितुम् इच्छुकः मासपर्यन्तं दुग्धदोहनादेव विरमति, येन मासान्ते धेनोः शरीरे सञ्चितं पर्याप्तं दुग्धम् एकवारमेव विक्रीय सम्पत्तिमर्जयितुं समर्थः भवेत् । परं सामान्ते यदा सः दुग्धदोहनाय प्रयतते तदा सः दुग्धबिन्दुम् अपि न प्राप्नोति । दुग्धप्राप्तिस्थाने सः धेनोः प्रहारैः रक्तरञ्जितः भवति, अवगच्छति च यत् दैनन्दिनं कार्य यदि मासपर्यन्तं संगृह्य क्रियते तदा लाभस्य स्थाने हानिरेव भवति ।
अनुवाद- नाटक का यह अंश कृष्णचन्द्र त्रिपाठी महोदय दवारा रचित ‘चक्रव्यूह’ पुस्तक से संक्षिप्त में सम्पादित करके उदृधृत किया गया है। इस नाटक में ऐसे व्यक्ति का कथानक है, जो धनवान और सुख का अभिलाषी बनने के लिए एक महीने तक दूध नहीं दोहता है, जिससे वह गाय के शरीर से संचित पर्याप्त दूध को एक बार में बेचकर धन कमाने में समर्थ हो जाना चाहता है। परन्तु एक माह बीतने पर जब वह दूध दोहने के लिए प्रयत्न करता है, तब वह दूध की एक बून्द भी प्राप्त नहीं करता है। दूध प्राप्त करने के स्थान पर वह गाय के प्रहार से लहुलुहान हो गया और जान जाता है कि प्रतिदिन के कार्य को यदि एक महीने तक एकत्र किया जाता है, तो लाभ के स्थान पर हानि ही उठानी पड़ती है।
गद्यांश 1. ( प्रथम दृश्यम् ) –
( मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति )
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः ।)
चन्दन:
अहा ! सुगन्धस्तु मनोहर: ( विलोक्य ) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा )
आस्वादयामि तावत्। (मोदकं गृहीतुमिच्छति )
मल्लिका –
(सक्रोधम् ) विरम | विरम | मा स्पृश! एतानि मोदकानि ।
चन्दन:
किमर्थ क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां
नियन्त्रयितुम् अक्षमः अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्?
मल्लिका-
सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति ।
चन्दन:
तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि ।
मल्लिका-
भो! अत्र पूजनं न भविष्यति । अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः ।
चन्दन:
सखिभिः सह ! न मया सह! (विषादं नाटयति )
मल्लिका-
आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः । तावत्, गृह व्यवस्थां, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।
अनुवाद- ( प्रथम दृश्य ) – (मल्लिका लड्डू बनाती जाती है और मन्द स्वर में शिवजी की स्तुति करती रहती है।) (तभी लड्डू की सुगन्ध का अनुभव करते हुए प्रसन्न मन से चन्दन प्रवेश करता है।)
चन्दन –
अहा! बड़ी मस्त सुगन्ध आ रही है। (देखकर ) अरे लड्डू बनाये जा रहे हैं?
( प्रसन्न होकर) तब तो जायका लेता हूँ। (लड्डू लेने की इच्छा करता है)
मल्लिका –
(आवेश में आकर) ठहर जा। ठहर जा!! इन लड्डुओं को हाथ मत लगाओ! ये लड्डू है।
चन्दन –
नाराज क्यों होती हो! तुम्हारे हाथों से बने लड्डुओं को देखकर मैं जीभ की लोलुपता को वश में करने में असमर्थ हूँ, क्या तुम यह नहीं जानती हो?
मल्लिका-
अच्छी तरह से जानती हूँ. स्वामी! परन्तु ये लड्डू पूजा के लिए बने हैं।
चन्दन –
तो पूजा जल्दी से पूरी करो और प्रसाद दो ।
मल्लिका-
अरे! यहाँ पूजन नहीं होगा। मैं अपनी सखियों के साथ कल सुबह काशी विश्वनाथ मन्दिर जाऊँगी और वहाँ हम गंगा स्नान व धर्म यात्रा करेंगे।
चन्दन –
सखियों के साथ ! मेरे साथ नहीं! ( दुःख का अभिनय करता है।)
मल्लिका-
हाँ, चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सभी जा रही हैं।
इसलिए मेरे साथ तुम्हारा आना ठीक नहीं है। हम सप्ताह भर में लौट आएँगी। तब तक घर पर रहना और गाय का दूध दोहने की व्यवस्था का ध्यान रखना।
मल्लिका- हाँ,
गद्यांश 2. (द्वितीयं दृश्यम् )
चन्दन:
अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि | शिवास्ते सन्तु पन्थानः |
चन्दनः
मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु । दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति )
उमा –
मातुलानि! मातुलानि !
चन्दन:-
उमे! अहं तु मातुलः । तव मातुलानि तु गङ्गास्नानार्थं काशीं गता अस्ति । कथय ! किं ते प्रियं करवाणि?.
उमा –
मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति । तत्र त्रिशतसेटकमितं दुग्धम् अपेक्षते । एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दन:-
(प्रसन्नमनसा ) त्रिशत-सेटककपरिमितं दुग्धम् ! शोभनम् । दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा –
धन्यवादः मातुल! याम्यधुना । (सा निर्गता )
अनुवाद – (द्वितीय दृश्य )
चन्दन –
अच्छा जाओ। सखियों के साथ धर्म यात्रा आनंद प्रद हो। मैं सब परिपालन करूँगा। यात्रियों का मंगल हो ।
चन्दन-
उमामल्लिका तो धर्म-यात्रा के लिए गई। अच्छा। दूध दोहन करके बाद में अपने नाश्ते का प्रबन्ध करूँगा। (स्त्री का वेष धारण करके दूध का बर्तन हाथ में लिए नन्दिनी के पास जाता है । )
उमा –
मामीजी! मामीजी !!
चन्दन –
अरी उमा ! मैं तो मामाजी हूँ। तुम्हारी मामीजी तो गंगा स्नान के लिए काशीजी गई हैं। बोलो। तुम क्या कहना चाहती हो?
उमा-
मामाजी! दादाजी कहते हैं महीने भर के बाद हमारे घर महोत्सव होगा। उसमें तीस लीटर दूध चाहिए। यह व्यवस्था आपको करनी है।
चन्दन –
( प्रसन्न मन से) तीस लीटर दूध ! बढ़िया। दूध की व्यवस्था हो जाएगी। दादाजी को तुमने बतला देना।
उमा –
धन्यवाद, मामाजी! अब मैं जाऊँ।
(वह चली गई )
गद्यांश 3. (तृतीयं दृश्यम् )
चन्दन:
( प्रसन्नो भूत्वा, अङ्गुलिषु गणयन्) अहो ! सेटक- त्रिशतकानि पयांसि ! अनेन तु बहुधनं लप्स्ये। ( नन्दिनीं दृष्ट्वा ) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि । (प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति )
चन्दन:
(चिन्तयति ) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति । यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति । इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि। ( एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति )
मल्लिका –
( प्रविश्य ) स्वामिन् ! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्।
( चन्दन: मोदकानि खादति वदति च )
चन्दन:-
मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि ।
मल्लिका-
( साश्चर्यम्) एवम्। धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम् ?
अनुवाद- (तृतीय दृश्य )
चन्दन –
( प्रसन्न होकर, अँगुली पर गिनती करते हुए) अहो! तीस लीटर दूध ! इससे तो बहुत धन मिलेगा। (नंदिनी को देखकर) अरे नंदिनी! तुम्हारी कृपा से तो मैं धनवान बन जाऊँगा । ( प्रसन्न होकर वह गाय की बहुत सेवा करता है)
चन्दन-
 (सोचता है) महीना भर पूरा होने पर ही दूध की आवश्यकता होगी। यदि प्रतिदिन दोहन करता हूँ, तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। अब मैं क्या करूँ ? ठीक है, महीना भर पूरा होने पर सारा दूध दुहुँगा । ( इस प्रकार सात दिन बीत गए। सप्ताह बीतने पर मल्लिका लौट आई)
मल्लिका-
( प्रवेश करके) स्वामी! मैं लौट आई हूँ। प्रसाद ग्रहण करो। (चन्दन लड्डू खाता है और बोलता है)
चन्दन –
अरी मल्लिका! तुम्हारी यात्रा तो अच्छी तरह से सम्पन्न हुई।
काशीविश्वनाथ की कृपा से अच्छी बात बताता हूँ। मल्लिका (आश्चर्यपूर्वक) ऐसा! धर्मयात्रा से अतिरिक्त अधिक प्रिय बात क्या हो सकती है ? )
गद्यांश 4.
चन्दन:- ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः मासान्ते भविष्यति । तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति।
मल्लिका-
किन्तु एतावन्मात्रं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः ।
चन्दन:
विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति । अत एवं दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः ।
मल्लिका-
स्वामिन् ! त्वं तु चतुरतमः । अत्युत्तमः विचारः । अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्याव: । अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः ।
( द्वावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः । कदाचित् विषाणयोः
तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः )
चन्दन:
मल्लिके! आगच्छ। कुम्भकारं प्रति चलावः । दुग्धार्थ पात्रप्रबन्धोऽपि करणीय: । ( द्वावेव निर्गतौ )
अनुवाद –
चन्दन-
महीने भर बाद ग्राम के प्रमुख के घर महोत्सव होगा। वहाँ तीस लीटर दूध हमें देना है।
मल्लिका
परन्तु इतना दूध कहाँ से प्राप्त होगा?
चन्दन-
विचार करो, मल्लिका ! प्रतिदिन दुह कर दूध रखते हैं, तो वह सुरक्षित नहीं रहेगा। इसलिए दूध नहीं दूहते हैं। उत्सव के दिन ही सारा दूध दुह लेंगे।
मल्लिका-
स्वामी! तुम तो अत्यन्त चतुर हो। बहुत उत्तम विचार है। अब दूध दुहना छोड़कर केवल नंदिनी की सेवा ही करेंगे। इससे महीने भर में अधिक से अधिक दूध प्राप्त होगा।
(दोनों गाय की सेवा में लग जाते हैं। इस क्रम से घास गुड़ आदि खिलाता है। कभी सींगों पर तेल का लेप करते, तिलक लगाते और रात्रि में आरती उतारकर सन्तुष्ट हो जाते ।)
चन्दन –
अरी मल्लिका ! आओ! कुम्हार के पास चलते है। दूध के लिए बर्तन की व्यवस्था भी कर लेते हैं। (दोनों चले जाते हैं)
गद्यांश 5. (चतुर्थ दृश्यम् ) 
कुम्भकार:-( घटरचनायां लीनः गायति )
ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम। जीवनं भङ्करं सर्व यथैष मृत्तिकाघटः ॥
चन्दनः
नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि । किं दास्यसि ?
देवेश –
कथं न? विक्रयणाय एव एते । गृहाण घटान् । पञ्चशतोत्तर रूप्यकाणि च देहि ।
चन्दन:
साधु । परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते ।
 देवेश:
क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं नं दास्यामि ।
मल्लिका
( स्वाभूषणं दातुमिच्छति ) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्।
देवेश:
पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।
उभौ- धन्योऽसि तात! धन्योऽसि ।
अनुवाद – ( चतुर्थ दृश्य )
कुम्हार –
(घड़ा बनाने में लीन रहकर गाता है) यह “जानते हुए भी अपनी जीविका के लिए मैं घड़े बनाता हूँ कि जीवन क्षण भंगुर है, जैसे- यह मिट्टी का घड़ा।”
चन्दन
नमस्कार भैया! पन्द्रह घड़े चाहिए। क्या दे दोगे?
देवेश
क्यों नहीं? ये बेचने के लिए ही है। ले लो घड़े और पन्द्रह रुपये दे दो।
चन्दन
ठीक। परन्तु मूल्य तो दूध बेचकर ही दे सकूँगा।
देवेश
क्षमा करो, बेटा! मूल्य के बिना एक भी घड़ा नहीं दूँगा।
मल्लिका-
(अपना आभूषण देने को तत्पर होती है) भैया! यदि मूल्य अभी ही आवश्यक है, तो यह आभूषण रख लो।
देवेश –
बेटी! मैं पाप का काम नहीं करता हूँ। मैं तुम्हें आभूषण रहित नहीं करना चाहता। तुम्हें जितने चाहिए, उतने घड़े ले जाओ। दूध बेचकर ही घड़ों का मूल्य दे देना।
दोनों- धन्यवाद भैया! तुम धन्य हो ।
गद्यांश 6.(पञ्चमं दृश्यम्)
(मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ता: नूतनघटाः सन्ति । दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीना: )
चन्दन:
( धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति ) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ।
मल्लिका
आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत् ।
चन्दन:
(यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति । चन्दनश्च पात्रेण सह पतति ) नन्दिनि! दुग्धं देहि । किं जातं ते? ( पुनः प्रयासं करोति ) ( नन्दिनी च पुन: पुन: पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति ) हा! हतोऽस्मि । (चीत्कारं कुर्वन् पतति ) ( सर्वे आश्चर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति ।
मल्लिका-
( चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य ) नाथ! किं
 जातम् ? कथं त्वं रक्तरञ्जितः ?
चन्दन:
धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति । दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्।
( मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते । किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।)
मल्लिका-
( चन्दनं प्रति ) नाथ ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं कृतम्। सा पीडम्अ नुभवति । अत एव ताडयति ।
चन्दनः
देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम्। अत एव, दुग्धं शुष्कं जातम् । सत्यमेव उक्तम्
कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्। विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम् ॥
मल्लिका-
आम् भर्तः ! सत्यमेव । मयापि पठितं यत्
सुविचार्य विधातव्यं कार्य कल्याणकाङ्क्षिणा । यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः ॥ किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत् ।
सर्वे
दिनस्य कार्य तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम् । यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम् । ( जवनिका पतनम् ) ( सर्वे मिलित्वा गायन्ति ।)
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्॥
अनुवाद- ( पञ्चमं दृश्यम् )
( महीना बीतने पर सन्ध्या का समय। खाली नये घड़े एकत्र हैं। दूध खरीदने वाले और अन्य गाँव वाले भी खड़े हैं )
चन्दन
(गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण करके, मल्लिका को बुलाता है)
मल्लिका! जल्दी आओ।
मल्लिका-
आई, स्वामी! तब तक दूध दुहना प्रारम्भ करो। (जब गाय के पास जाकर दूध दूहने लगा, तब गाय अपने पिछले पैरों से प्रहार करती है। चन्दन बर्तन सहित गिर पड़ता है। )
चन्दन
दूध दो। तुम्हें क्या हो गया है? (फिर प्रयास करता है) नंदिनी !
( नंदिनी बार – बार पैरों के प्रहार करके चन्दन को लहूलुहान कर देती है।)
हाय!
मैं तो मारा गया। (चिल्लाकर गिर पड़ता है) सभी आश्चर्य से चन्दन की और एक-दूसरे को देखने लगते हैं)
मल्लिका-
(चिल्लाना सुनकर एकदम प्रवेश करके) हे स्वामी! क्या हो गया? तुम लहूलुहान कैसे हो गए ?
चन्दन
गाय दूहने नहीं देती है। दुहने की प्रक्रिया प्रारंभ करते ही मुझे मारने लगती है।
( मल्लिका गाय को स्नेह और प्यार से पुचकार करके दुहने का प्रयत्न करती है, किन्तु गाय दूध नहीं दे पाती है।)
मल्लिका –
( चन्दन की ओर) स्वामी! हमने बहुत गलत किया है कि महीने भर गाय को दुहा नहीं। वह कष्ट का अनुभव करती है। इसलिए मारती है।
चन्दन
हे देवी! मैंने भी जान लिया है कि हमारे द्वारा बिल्कुल गलत किया गया कि पूरे महीने भर दुहा नहीं। इसलिए दूध सूख गया। सत्य ही कहा गया है “जो आज का कार्य है, उसे आज ही सम्पन्न कर लेना चाहिए। जो इसके विपरीत करता है, उसे निश्चय ही कष्ट उठाना पड़ता है। “
मल्लिका-
हाँ, स्वामी ! सत्य है। मैंने भी पढ़ा है- “कल्याण चाहने वाले को कार्य को अच्छी तरह से विचार करके पूरा करना चाहिए। जो व्यक्ति बिना विचार किए कार्य करता है, वह दुःखी होता है । ‘ किन्तु आज प्रत्यक्ष में यह अनुभव में आया है।
सभी – जिस दिन के कार्य को उसी दिन कर लेना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है, वह निश्चित ही कष्ट प्राप्त करता है। (पर्दा गिरता है।) (सभी मिलकर गाते हैं ) । आदान-प्रदान के काम को शीघ्र कर लेना चाहिए अन्यथा समय उसके सारतत्व को पी जाता है ( समाप्त कर देता है ) ।
अभ्यासस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एक पदेन उत्तरं लिखत
( एक पद में उत्तर लिखिए ) –
(क) मल्लिका पूजार्थं सखीभिः सह कुत्र गच्छति स्म ?
(मल्लिका पूजा के लिए सखियों के साथ कहाँ गई थी ? )
(ख) उमायाः पितामहेन कति सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते स्म?
(उमा के दादाजी को कितने लीटर दूध चाहिए था ? )
(ग) कुम्भकार: घटान् किमर्थं रचयति?
(कुम्हार घड़े किसलिए बनाता है ? )
(घ) कानि चन्दनस्य जिह्वा लोलुपतां वर्धन्ते स्म ?
( चन्दन की लोलुपता कौन बढ़ा रहे थे?)
(ङ) नन्दिन्याः पादप्रहारै: क: रक्तरञ्जितः अभवत् ?
(नंदिनी के पैरों के प्रहार से कौन लहूलुहान हो गया?)
 उत्तर- (क) काशी विश्वनाथ मन्दिरं, (ख) त्रिशत सेटकमितं, ग) विक्रयणाय, (घ) मोदकानि, (ङ) चन्दनः।
प्रश्न 2. पूर्ण वाक्येण उत्तरं लिखत ( पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखिए ) –
( क ) मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्तं धेनोः कथम् अकुरुताम् ?
( मल्लिका और चन्दन ने महीने भर गाय का क्या किया?)
उत्तर- मल्लिका चन्दनश्च मास पर्यन्तं धेनोः दुग्ध दोहनं न अकुरुताम्।
(मल्लिका और चन्दन ने महीने भर गाय का दूध नहीं दुहा )
 ( ख ) कालः कस्य रसं पिबति ?
(काल किसका रस पीता है? )
उत्तर- कालः क्षिप्रमक्रियमाणस्य रसं पिबति ।
(काल जल्दी कार्य न करने वाले का रस पीता है।)
(ग) घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते तदा कुम्भकारः किं वदति ?
(घड़े की कीमत के लिए जब मल्लिका अपने आभूषण देने का प्रयत्न करती है, तब कुम्हार क्या कहता है । )
उत्तर- घट मूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते, तदा कुम्भकारः वदति- “पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम् । नयतु यथाभिलषितान् घटान्।”
(घड़े की कीमत के लिए जब मल्लिका अपने आभूषण देने का प्रयत्न करती है, तब कुम्हार कहता है- “बेटी! मैं पाप का काम नहीं करता। मैं तुम्हें आभूषणों से रहित नहीं करना चाहता । तुम्हें जितने घड़े चाहिए, उतने ले जाओ।”
(घ) मल्लिकया किं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणं ज्ञातम् ?
( मल्लिका ने क्या देखकर गाय के मारने के वास्तविक कारण को जान लिया? )
उत्तर- मल्लिकया धेनोः पीडाम् दृष्ट्वा तस्य ताडतस्य वास्तविकं कारणं जातम् ।
(मल्लिका ने गाय की पीड़ा को देखकर उसके मारने के वास्तविक कारण को जान लिया।)
(ङ) मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य किं कारणमासीत् ? ( महीने भर गाय के न दोहने का क्या कारण था ? )
 उत्तर- धनलोभं मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य कारणमासीत् । ( धन का लोभ महीने भर गाय के न दोहने का कारण था।)
प्रश्न 3. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न बनाइए ) – (क) मल्लिका सखीभिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म।
(ख) चन्दन: दुग्धदोहनं कृत्वा एव स्वप्रातराशस्य प्रबन्धम् अकरोत्।
(ग) मोदकानि पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्।
(घ) मल्लिका स्वपतिं चतुरतमं मन्यते ।
(ङ) नन्दिनी पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति।
उत्तर-
(क) मल्लिका काभिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म ?
(ख) चन्दन: दुग्ध दोहनं कृत्वा एव कस्य प्रबन्धम् अकरोत्?
(ग) कानि पूजानिमितानि रचितानि आसन्?
(घ) मल्लिका स्वपतिं किम् मन्यते?
(ङ) का पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति?
प्रश्न 4. मञ्जूषायाः सहायतया भावार्थे रिक्तस्थाननि पूरयत- (मंजूषा की सहायता से भावार्थ में रिक्त स्थान भरिए ) –
गृहव्यवस्थायै, उत्पादयेत्, समर्थकः, धर्मयात्रायाः मङ्गलकामनाम्, कल्याणकारिणः ॥
यदा चन्दनः स्वपल्या काशीविश्वनाथं प्रति विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्याः पत्नी तं कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गा: शिवा: अर्थात् …… भवन्तु । मार्गे काचिदपि बाधा: तव कृते समस्यां न …..। एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारीस्वतन्त्रतायाः ………. आसीत् ।
उत्तर- धर्मयात्रायाः गृहव्यवस्थायै, मङ्गलकामनाम्, कल्याणकारिण: उत्पादयेत्, समर्थकः ।
प्रश्न 5. घटनाक्रमानुसारं लिखत- (घटना क्रम के अनुसार लिखिए)
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिर प्रति गच्छति।
( ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्या कुरुतः ।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थ दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति।
(घ) मल्लिका पूजार्थ मोदकानि रचयति ।
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्घुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति ।
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।
(छ) चन्दन: उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति ।
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
उत्तर- 1→(घ), 2.→(क), 3. (ग), 4.→(छ), 5.→(ज), 6.→(ख), 7.→ङ), 8.→(च)।
प्रश्न 6. अघोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति इति प्रदत्तस्थाने लिखत
( निम्नलिखित वाक्य कौन किस से कहता है- दिए गए स्थान पर लिखिए)
उदाहरणम्                  कं/ काम्।        कः/का
स्वामिन्!
प्रत्यागता अहम्।
आस्वादय प्रसादम्।       मल्लिका        चन्दनं प्रति
(क) धन्यवाद मातुल! याम्यधुना। …………………           …………………
(ख) त्रिशतसेटकमितं दुग्धम्। शोभनम् । व्यवस्था भविष्यति। ……………….      ………………….
(ग) मूल्यं तु दुग्धं विक्रीयैव दातुं शक्यते। ………………     …………………
(घ) पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। ……………….     …………………..
(ङ) देवि! मयापि ज्ञातं यदस्माभिः सर्वथानुचितं कृतम्। …………………….     …………………..
उत्तर- (क) उमा चन्दनं प्रति कथयति। (ख) चन्दनः उमां प्रति कथयति। (ग) चन्दन: देवेशं प्रति कथयति। (घ) देवेशः मल्लिकां प्रति कथयति। (ङ) चन्दनः मल्लिकां प्रति कथयति।
प्रश्न 7. पाठास्य आधारेण प्रदत्तपदानां सन्धि /सन्धिच्छेदं वा कुरुत
(पाठ के आधार पर दिए गए पदों की सन्धि / सन्धिविच्छेद कीजिए ) –
उत्तर- (क) शिवास्ते = शिवाः + ते
(ख) मनः हर: = मनोहर:
(ग) सप्ताहान्ते = सप्ताह + अन्ते
(घ) नेच्छामि = न + इच्छामि
(ङ) अत्युत्तमः = अति + उत्तमः
(अ) पाठाधारेण अधोलिखित पदानां प्रकृति-प्रत्ययं च संयोज्य/विभज्य वा लिखत
(पाठ के आधार पर निम्न लिखित पदों के मूल शब्द और प्रत्यय मिलाइए या अलग कीजिए ) –
(क) करणीयम् =……………+ …………….
(ख) वि + क्री + ल्यप् = …………..+ …………….
(ग) पठितम्  = …………..+ ……………
(घ) ताडय् + क्त्वा = …………..+ ……………
(ङ) दोग्धुम् = …………..+ ……………
उत्तर- (क) कृ + अनीय । (ख) विक्रीय। (ग) पठ् + इतच्। (घ) तांडयित्वा । (ङ) दुह् + तुमुन् ।
योग्यताविस्तार
‘गोदोहनम्’ एकांकी में एक ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनवान् और सुखी बनने की इच्छा से अपनी गाय एक महीने तक दूध निकालना बंद कर देता है, ताकि महीने भर के दूध को एक साथ निकालकर बेचकर धनवान् बन सके। इस प्रकार एक मास पश्चात् जब वह गाय को दुहने का प्रयास करता है तब अत्यधिक दूध का तो कहना ही क्या । उसे दूध की एक बूँद भी नहीं मिलती, एक साथ दूध के स्थान पर उसे मिलते हैं। गाय के पैरों से प्रहार जिससे आहत और रक्तरञ्जित होने पर वह जमीन पर गिर पड़ता है। इस घटना से वहाँ उपस्थित सभी यह समझ जाते हैं कि यथासमय किया हुआ कार्य ही फलदायी होता है।
भाव – विस्तार:
उपायं चिंतयेत् प्राज्ञस्तथापायं च चिंतयेत्।
पश्यतो बक मूर्खस्य नकुलेन हताः बकाः ||
बुद्धिमान व्यक्ति उपाय पर विचार करते हुए अपाय अर्थात् उपाय से होने वाली हानि के विषय में भी सोचे हानिरहित उपाय ही कार्य सिद्ध करता है । अपाय युक्त उपाय नहीं जैसे कि अपने बच्चों को साँप द्वारा खाए जाते हुए देखकर एक बगुले ने नेवले का प्रबंध साँप को खाने के लिए किया जो कि साँप को खाने के साथ-साथ सभी बगुलों को भी बच्चों सहित खा गया। अतः ऐसा उपाय सदैव हानिकारक होता है, जिसके अपाय पर विचार न किया जाए।
“अविवेकः परमापदां पदम्”
गोदोहनम्-एकाङ्की पढ़ाते समय आधुनिक परिवेश से जोड़ें तथा छात्रों को समझाएँ कि कोई भी कार्य यदि नियत समय पर न करके कई दिनों के पश्चात् एक साथ करने के लिए संगृहीत किया जाता रहता है तो उससे होने वाला लाभ-हानि में परिवर्तित हो सकता है।
अतः हमें सदैव अपने सभी कार्य यथासमय करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। पाठ की कथा नाटकीयता के साथ ही छात्रों को यही भी बताएँ कि इस नाटक से तात्कालिक समाज का परिचय भी मिलता है कि घर की व्यवस्था स्त्री-पुरुष मिलकर ही करते थे तथा स्त्री को स्वतंत्र निर्णय लेने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त था ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *