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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

महत्वपूर्ण स्मरणीय बिन्दु

‘पालमपुर गाँव की कहानी” नामक अध्याय का उद्देश्य है, उत्पादन से संबंधित कुछ मूल विचारों और अवधारणाओं से छात्रों का परिचय कराना।
पालमपुर में खेती मुख्य उत्पादन क्रिया है।
डेयरी, परिवहन, लघु-स्तरीय विनिर्माण आदि पालमपुर की अन्य उत्पादन क्रियाएँ हैं।
उत्पादन क्रियाओं के लिए विभिन्न प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होती है, जैसे- प्राकृतिक संसाधन, मानव निर्मित वस्तुएँ, मानव प्रयास, मुद्रा आदि ।
लघु विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि गैर कृषि क्रियाएँ हैं।
उत्पादन का उद्देश्य ऐसी सेवाओं और वस्तुओं का निर्माण करना है, जिनकी हमें आवश्यकता होती है।
वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए आवश्यक कारक निम्न हैं
(1) भूमि (2) श्रम (3) भौतिक पूँजी (4) कार्यशील पूँजी (5) मानव पूँजी आदि ।
भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है जो सीमित है।
जल, वन, खनिज आदि भी उत्पादन के प्राकृतिक संसाधन हैं।
भूमि मापने की मानक इकाई हेक्टेयर है।
एक हेक्टेयर 100 मीटर की भुजा वाले वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर होता है।
उत्पादन; भूमि, श्रम और पूँजी को संयोजित करके संगठित होता है।
भारत में आज भी कुल कृषि क्षेत्र के 40 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र में ही सिंचाई होती है। शेष क्षेत्रों में कृषि, मुख्यत: वर्षा पर निर्भर है।
हमारे देश में तटीय क्षेत्रों में अच्छी सिंचाई होती है।
हमारे देश में पठारी क्षेत्रों जैसे- दक्षिणी पठार में सिंचाई कम होती है।
भारत में रासायनिक खाद का सबसे अधिक प्रयोग पंजाब में होता है।
क्रियाकलाप तथा पाठगत प्रश्न 
प्रश्न 1. क्या सिंचाई के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है ? क्यों?
उत्तर- सिंचाई के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि जिस क्षेत्र में सिंचाई की सुविकसित व्यवस्था होती है, वहाँ के किसान एक वर्ष में तीन अलगअलग फसलें पैदा कर पाते हैं, जिससे उनकी आमदनी भी बढ़ती है, पालमपुर गाँव इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।
प्रश्न 2. निम्न सारणी में 10 लाख (मिलीयन) हेक्टेयर की इकाइयों में भारत में कृषि क्षेत्र को दिखाया गया है। सारणी के नीचे दिए गए आरेख में इसे चित्रित करें। आरेख क्या दिखाता है? कक्षा में चर्चा करें –
उपर्युक्त आरेख दर्शाता है कि वर्ष 1990-91 तक भारत में कृषि क्षेत्र में वृद्धि हुई है परन्तु उसके बाद इसमें कोई वृद्धि नहीं हुई और यह 155-157 मिलियन हेक्टेयर के बीच ही स्थिर रही।
प्रश्न 3. बहुविध फसल प्रणाली और खेती की आधुनिक विधियों में क्या अंतर है ? बताइए ।
उत्तर- बहुविध फसल प्रणाली और खेती की आधुनिक विधियों में अन्तर निम्नलिखित हैं –
प्रश्न 4. निम्न सारणी में भारत में हरित क्रांति के बाद गेहूँ और दालों के उत्पादन को करोड़ टन इकाइयों में दिखाया गया है। इसे एक आरेख बनाकर दिखाइये | क्या हरित क्रांति दोनों ही फसलों के लिए समान रूप से सफल सिद्ध हुई? विचार-विमर्श कीजिए ।
सारणी : दालों तथा गेहूँ का उत्पादन (करोड़ टन)
उत्तर- उपर्युक्त सारणी स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि हरित क्रांति गेहूँ और दाल दोनों फसलों के लिए समान रूप से सफल नहीं हुई। यह गेहूँ के उत्पादन में विशेष रूप से सफल हुई। 196566 में इन दोनों फसलों का उत्पादन 10 करोड़ टन था। परन्तु 52 वर्षों के बाद वर्ष 2017-18 में दाल का उत्पादन बढ़कर केवल 24 करोड़ टन हुआ जबकि गेहूँ का उत्पादन बढ़कर 97 करोड़ टन हो गया।
प्रश्न 5. आधुनिक कृषि विधियों को अपनाने वाले किसान के लिए आवश्यक कार्यशील पूँजी क्या है?
उत्तर- आधुनिक कृषि विधियों को अपनाने वाले किसान के लिए उन्नत बीज, रासायनिक खाद उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों के अतिरिक्त सिंचाई एवं मजदूरी आदि के लिए नकद पैसे आदि आवश्यक कार्यशील पूँजी है।
प्रश्न 6. पहले की तुलना में कृषि की आधुनिक विधियों के लिए किसानों को अधिक नकद की जरूरत पड़ती है। क्यों?
उत्तर- (1) परंपरागत विधि में किसान उर्वरकों के रूप में गाय के गोबर या दूसरी प्राकृतिक खाद का प्रयोग करते हैं, जिसे किसानों को खरीदना नहीं पड़ता है। दूसरी ओर, आधुनिक विधि में रासायनिक खादों, कीटनाशकों और ट्रैक्टरों एवं थ्रेशरों के प्रयोग की भी जरूरत पड़ती है। इन सभी के लिए अधिक पैसों की आवश्यकता होती है क्योंकि ये औद्योगिक वस्तुएँ हैं। यही कारण है कि कृषि की आधुनिक विधियों के लिए अधिक नकद की जरूरत पड़ती है।
(2) परंपरागत विधियों के लिए परंपरागत बीजों की आवश्यकता होती है जिसके लिए कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है जबकि आधुनिक कृषि विधियों के लिए उन्नत बीज और अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।
(3) चूँकि खेती की आधुनिक विधियों के लिए रासायनिक खाद, कीटनाशक, ट्रैक्टर, थ्रेसर जैसी आगतों की आवश्यकता होती है जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है, इसलिए पहले की तुलना में किसानों को अधिक नकद की जरूरत पड़ती है।
प्रश्न 7. आधुनिक या परंपरागत या मिश्रित खेती की विधियों में से किसान किसका प्रयोग करते हैं? एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कृषि विधियों का प्रयोग किया जाता है। जैसे- भारत में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान कृषि के आधुनिक तरीकों का ही अधिक प्रयोग करते हैं। हरित क्रांति का अधिक विकास व विस्तार इन्हीं क्षेत्रों में हुआ है। इन क्षेत्रों में किसानों ने खेती में सिंचाई के लिए नलकूप और एच. वाई. वी. बीजों, रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया। इससे गेहूँ की ज्यादा पैदावार प्राप्त हुई। पालमपुर के किसानों ने भी एच. वाई. वी. बीजों का प्रयोग किया जिससे यहाँ गेहूँ उत्पादन में वृद्धि हुई। भारत के विभिन्न भागों में आजकल मिश्रित कृषि विधियों का प्रयोग किया जा रहा है।
प्रश्न 8. भारत में सिंचाई के कौन-कौन से स्रोत है ? नाम बताइए ।
उत्तर – भारत में सिंचाई के साधनों में; नहरें, कुएँ, बाँध, तालाब, नलकूप आदि हैं।
प्रश्न 9. भारत में कृषि भूमि के कितने भाग में सिंचाई होती है ?
उत्तर – भारत में आज भी कुल कृषि क्षेत्र के 40 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र में ही सिंचाई होती है।
प्रश्न 10. किसान अपने लिए आवश्यक आगत कहाँ से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर- किसान अपने लिए आवश्यक आगत निम्नानुसार प्राप्त करते हैं –
(1) अधिसंख्य छोटे किसानों को पूँजी की व्यवस्था करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ता है। वे बड़े किसानों से या गाँव के साहूकारों से या खेती के लिए विभिन्न आगतों की पूर्ति करने वाले व्यापारियों से कर्ज़ लेते हैं। ऐसे कर्जों पर ब्याज की दर बहुत ऊँची होती है। कर्ज़ चुकाने के लिए उन्हें बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं।
(2) छोटे किसानों के विपरीत, मझोले और बड़े किसानों को खेती से बचत होती है। इस तरह वे आवश्यक पूँजी की व्यवस्था कर लेते हैं।
प्रश्न 11. अखबारों / पत्रिकाओं से पाठ में दी गई रिपोर्ट पढ़ने के बाद, कृषि मंत्री को यह बताते हुए अपने शब्दों में एक पत्र लिखिए कि कैसे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग हानिकारक हो सकता है।
उत्तर –
माननीय कृषि मंत्री,
भारत सरकार, नई दिल्ली
विषय- रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से होने वाली हानि के संबंध में पत्र ।
महोदय,
मैं आपका ध्यान रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से होने वाली हानि की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ।
अखबारों/पत्रिकाओं में दी गई रिपोर्ट पढ़ने के बाद स्पष्ट होता है कि रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है। इन उर्वरकों में ऐसे खनिज होते हैं, जो पानी में घुल जाते हैं और पौधों को तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं। लेकिन, मिट्टी इन्हें लंबे समय तक धारण नहीं कर सकती । अतः ये खनिज मिट्टी से निकलकर भौम-जल, नदियों और तालाबों में जाते हैं और उन्हें प्रदूषित करते हैं।
साथ ही, रासायनिक उर्वरक मिट्टी में उपस्थित जीवाणुओं और सूक्ष्म-अवयवों को नष्ट कर सकते हैं। इस प्रकार, उनके प्रयोग कुछ समय पश्चात् मिट्टी पहले की तुलना में कम उपजाऊ में रह जाती है। उदाहरण के लिए, पंजाब के किसानों को पहले के का उत्पादन स्तर पाने के लिए अब अधिक-से-अधिक रासायनिक उर्वरकों और अन्य आगतों का प्रयोग करना पड़ता है। इसलिए वहाँ खेती की लागत बहुत तेजी से बढ़ रही है ।
अतः मेरा आपसे विनम्र आग्रह है कि इस विषय पर विचार करके उचित कार्यवाही की जाए और उचित नीति बनाई जाए।
भवदीय
प्रश्न 12. किसानों के इतने अधिक परिवार भूमि के इतने छोटे प्लॉटों पर क्यों खेती करते हैं? उत्तर – ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भूमि का आकार तो नहीं बढ़ता लेकिन किसानों के परिवार बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए कृषक गोविंद के पास 2.25 हेक्टेयर भूमि थी जो उसके तीनों पुत्रों के बीच बँट गई। अब प्रत्येक के पास केवल 0.75 हेक्टेयर भूमि का टुकड़ा बचा।
प्रश्न 13. डाला और रामकली जैसे खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?
उत्तर – डाला और रामकली पालमपुर में दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले भूमिहीन श्रमिक हैं, इसलिए उन्हें लगातार काम ढूँढ़ते रहना पड़ता है। सरकार द्वारा खेतों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए एक दिन का न्यूनतम वेतन 300 रु. (मार्च 2017) निर्धारित है। किंतु डाला और रामकली को मात्र 160 रु. ही मिलते हैं। पालमपुर जैसे स्थानों पर खेतिहर श्रमिकों में बहुत अधिक स्पर्धा है, इसलिए लोग कम वेतन में भी काम करने को सहमत हो जाते हैं। डाला और रामकली जैसे भूमिहीन श्रमिकों को वर्ष भर रोजगार प्राप्त नहीं होता है। खेतिहर श्रमिकों का खेत में उगाई गई फसल पर कोई अधिकार नहीं होता, जैसा किसानों का होता है। डाला जैसे खेतिहर श्रमिकों को केवल अल्प दैनिक मजदूरी मिलती है, इन्हीं सब कारणों से डाला तथा रामकली जैसे खेतिहर श्रमिक गरीब हैं।
प्रश्न 14. गोसाईंपुर और मझौली उत्तर बिहार के दो गाँव हैं। दोनों गाँवों के कुल 850 परिवारों में 250 से अधिक पुरुष ऐसे हैं, जो पंजाब और हरियाणा के ग्रामीण इलाकों या दिल्ली, मुंबई, सूरत, हैदराबाद या नागपुर में काम कर रहे हैं। इस प्रकार का प्रवास अधिसंख्य भारतीय गाँवों में होता है। (1) लोग प्रवास क्यों करते हैं? (2) क्या आप इस बात की व्याख्या (अपनी कल्पना के आधार पर) कर सकते हैं कि गोसाईपुर और मझौली के प्रवासी अपने गंतव्यों पर किस तरह का काम करते होंगे ? –
उत्तर – ( 1 ) लोग रोजगार के अवसर खोजने तथा अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए प्रवास करते हैं क्योंकि गाँव में रोजगार के साधन नहीं मिलते हैं।
(2) मेरी कल्पना के अनुसार गोसाईंपुर और मझौली के प्रवासी अपने गंतव्यों पर गाँवों में खेतिहर श्रमिकों या शहरों में कम आमदनी वाले व्यवसायों में दैनिक श्रमिकों के रूप में कार्य करते होंगे।
प्रश्न 15. आपने उत्पादन के तीन कारकों – भूमि, श्रम और पूँजी तथा कृषि में इनके प्रयोग के बारे में समझा। अब इस समझ के आधार पर नीचे दिए गए रिक्त स्थानों की पूर्ति करो –
उत्पादन के तीन कारकों में श्रम उत्पादन का सर्वाधिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कारक है। ऐसे अनेक लोग हैं, जो गाँवों में खेतिहर मज़दूरों के रूप में काम करने को तैयार हैं, जबकि काम के अवसर सीमित हैं। वे या तो भूमिहीन परिवारों से हैं या । उन्हें (1) ……. बहुत कम मजदूरी मिलती है और वे एक कठिन जीवन जीते हैं।
श्रम के विपरीत (2) ……. उत्पादन का एक दुर्लभ कारक है। कृषि भूमि का क्षेत्र (3) है। इसके अतिरिक्त उपलब्ध भूमि भी (4) …. (समान / असमान) रूप से खेती में लगे लोगों में वितरित है। ऐसे कई छोटे किसान हैं जो भूमि के छोटे टुकड़ों पर खेती करते हैं और जिनकी स्थिति भूमिहीन खेतिहर मजदूरों से बेहतर नहीं हैं। उपलब्ध भूमि का अधिकतम प्रयोग   करने के लिए किसान (5) ……. और (6) ……… का उपयोग करते हैं। इन दोनों से फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। खेतों की आधुनिक विधियों में ( 7 ) …. की अत्यधिक आवश्यकता होती है। छोटे किसानों को सामान्यत: पूँजी की व्यवस्था करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ता है और कर्ज चुकाने के लिए उन्हें बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं। इसलिए, विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए पूँजी भी उत्पादन का एक दुर्लभ कारक है।
यद्यपि भूमि और पूँजी दोनों दुर्लभ हैं, उत्पादन के इन दोनों कारकों में एक मूल अंतर है। (8) ……. प्राकृतिक संसाधन है, जबकि (9) ……… मानव निर्मित है। पूँजी को बढ़ाना संभव है, जबकि भूमि स्थिर है। इसलिए, यह बहुत आवश्यक है कि हम भूमि और खेती में प्रयुक्त अन्य प्राकृतिक संसाधनों की अच्छी तरह देखभाल करें।
उत्तर – (1) खेतिहर मजदूर हैं (2) भूमि (3) सीमित (4) असमान (5) रासायनिक उर्वरक (6) कीटनाशक (7) पूँजी (8) भूमि (9) पूँजी।

अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गाँव का सर्वेक्षण किया जाता है। पालमपुर से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका को भरिए –
उत्तर- (क) अवस्थिति क्षेत्र – पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रायगंज से 3 कि.मी. दूर, शाहपुर के निकट ।
(ख) गाँव का कुल क्षेत्र – 226 हेक्टेयर
(ग) भूमि का उपयोग (हेक्टेयर में)
प्रश्न 2. खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसी अधिक आगतों (साधनों) की आवश्यकता होती है जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है क्या आप सहमत हैं?
उत्तर – (1) हाँ, मैं इस बात से सहमत हूँ कि खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसे अधिक आगतों की आवश्यकता होती है जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है।
(2) जैसे जुताई के लिए ट्रैक्टर, कटाई के लिए हार्वेस्टर, गहाई के लिए थ्रेशर, अधिक उपज के लिए रासायनिक खाद व उर्वरक, खेती की मशीनों के ईंधन के लिए डीज़ल, फसलों की बीमारियों के लिए कीटनाशक, सिंचाई के लिए पम्पिंग-सेट के साथ-साथ बाँध, नहरों आदि के लिए इलेक्ट्रिक उपकरण एवं मशीनरी, औजार आदि ।
(3) ये सभी उपकरण उद्योगों में ही विनिर्मित किए जाते हैं।
प्रश्न 3. पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस तरह मदद की।
उत्तर – पालमपुर में बिजली की सुविधा बहुत जल्द प्राप्त हो गई थी। उसका मुख्य प्रभाव यह पड़ा कि यहाँ कृषि में सिंचाई की पद्धति भी बदल गई। अब तक किसान कुओं से रहट द्वारा पानी निकालकर खेतों की सिंचाई किया करते थे लेकिन अब वहाँ के किसान बिजली से चलने वाले नलकूपों से ज्यादा प्रभावशाली ढंग से अधिक क्षेत्र की सिंचाई करने लगे जिससे पालमपुर के किसान एक वर्ष में तीन अलग-अलग फसलें उत्पन्न करने लगे जिससे उनकी आमदनी और जीवन स्तर उच्च हुआ। 1970 के दशक के मध्य तक पालमपुर में 200 हेक्टेयर के पूरे जुते हुए क्षेत्र की सिंचाई होने लगी जिससे यहाँ के किसानों की मानसून पर निर्भरता कम हुई और उनकी संपन्नता में वृद्धि हुई।
प्रश्न 4. क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्वपूर्ण है? क्यों ? उत्तर- सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना निम्नांकित कारणों से महत्वपूर्ण है –
(1) चावल, गेहूँ, गन्ना, आदि कुछ ऐसी फसलें हैं जिसके लिए नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में जल आपूर्ति आवश्यक है।
(2) उंच्च उत्पादकता वाले बीजों को भी पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।
(3) कुछ क्षेत्रों में वर्षा पर्याप्त नहीं होती है। साथ ही, यह अनिश्चित भी होती है। ऐसी स्थिति प्राय: दक्कन एवं मध्य भारत, पंजाब, राजस्थान, आदि में देखने को मिलती है। इन क्षेत्रों में कृत्रिम सिंचाई अति आवश्यक है। इसके बिना यहाँ खेती लगभग असंभव है।
(4) कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वर्षा तो पर्याप्त होती है किन्तु वर्षभर में एक सीमित समय के लिए। वर्ष का शेष समय सूखा रहता है। अत: ऐसे क्षेत्रों में वर्ष में एक से अधिक फसल उगाने में सिंचाई सुविधाएँ बहुत आवश्यक सिद्ध होगी।
(5) भारत में भूमि का बहुत छोटा-सा भाग सिंचाई के अन्तर्गत है। अतः इसे बढ़ाये जाने की आवश्यकता है।
6. पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से कम क्यों है?
उत्तर- यह डाला और रामकली की स्थिति से स्पष्ट है कि पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से कम है। सरकार द्वारा खेतिहर श्रमिकों के लिए एक दिन की न्यूनतम मजदूरी रु. 300 निर्धारित है। लेकिन डाला को मात्र रु. 160 ही मिलते हैं। इसका कारण यह है कि –
(1) खेतिहर मजदूर या तो भूमिहीन किसान परिवार या छोटे किसान परिवार से आते हैं। वे गरीब और असहाय होते हैं। वे दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं। उन्हें नियमित रूप से काम ढूँढना पड़ता है। चूँकि पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है, इसलिए श्रमिक न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी पर भी काम करने को सहमत हो जाते हैं।
(2) खेतिहर श्रमिक सामान्यत: अशिक्षित और अनभिज्ञ होते हैं। वे श्रम-संघों में संगठित नहीं होते हैं। अत: वे ऊँची मजदूरी सुनिश्चित करने के लिए भूमि मालिकों से मोल-भाव करने की स्थिति में नहीं होते हैं। उनकी इस मजबूरी का फायदा बड़े कृषक उठाते हैं।
प्रश्न 7. अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों से बात कीजिए। खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण कार्य में लगे मजदूरों में से किसी को चुनें। उन्हें कितनी मजदूरी मिलती है? क्या उन्हें नकद पैसा मिलता है या वस्तु रूप में? क्या उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है? क्या वे कर्ज़ में हैं?
उत्तर – मैंने अपने क्षेत्र के कृष्णा और मीरा नामक दो खेतिहर श्रमिकों से बात की – यह वार्तालाप निम्नानुसार है –
मैंने कृष्णा व मीरा से कहा, “आप कितनी मजदूरी प्राप्त करते हैं?”
उन्होंने कहा, “हमें केवल रु.160 ही मिलते हैं।
मैंने उनसे पुन: पूछा, “आपको मजदूरी नकद में मिलती है या वस्तु में?”
उन्होंने कहा, “हमें मजदूरी कभी नकद में और कभी अनाज के रूप में मिलती है। “
मैंने कहा, “क्या आप लोगों को नियमित रूप से काम मिलता है?”
उन्होंने जवाब दिया, “नहीं, पिछले वर्ष हमने वर्ष- भर में लगभग 180 दिन ही काम किया । “
अंत में मैने ” पूछा, “क्या आप ऋणग्रस्त हैं?”
कृष्णा ने कहा, “जब खेतों में कोई काम नहीं था तो मैंने स्थानीय साहूकार से रु. 6,000 का ऋण लिया। भगवान जाने कि मैं उसे अब कैसे चुका पाऊँगा ।” मीरा ने कहा, “मैंने पिछले वर्ष गाँव के साहूकार से रु. 5,000 का ऋण लिया था। इसलिए उसने मुझे आगे ऋण देने से मना कर दिया है । ” इस प्रकार, मैंने अपने क्षेत्र में देखा कि” –
(1) खेतिहर श्रमिकों को केवल रु. 160 मजदूरी मिलती है ।
(2) उन्हें मजदूरी कभी नकद में ओर कभी वस्तु के रूप में मिलती है।
(3) उन्हें नियमित रूप से काम नहीं मिलता है ।
(4) इसलिए वे कर्ज़ में होते हैं और उनका जीवन स्तर निम्न होता है तथा वे निर्धनता के दुष्चक्र में फँसे रहते हैं।
प्रश्न 8. एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग कौन-से तरीके हैं? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर- एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग दो तरीके हैं –
(1) बहुविध फसल प्रणाली; (2) खेती की आधुनिक विधियाँ
1. बहुविध फसल प्रणाली – एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से ज्यादा फसल पैदा करने को बहुविध फसल प्रणाली कहते हैं। उदाहरण के लिए कृषक वर्षा के मौसम (खरीफ) में ज्वार और बाजरा, अक्टूबर से दिसम्बर के बीच आलू और शीत ऋतु (रबी) में गेहूँ व चना उगाते हैं।
2. खेती की आधुनिक विधियाँ इसके अंतर्गत निम्न है(i) परंपरागत बीजों के स्थान पर उन्नत बीजों (एच. वाई. वी. ) का प्रयोग किया जाता है। इससे एक ही पौधे से ज्यादा मात्रा में अनाज पैदा होता है। –
(ii) सिंचाई बिजली-चालित नलकूपों व नहरों से की जाती है।
(iii) रासायनिक खाद, उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।
(iv) ट्रैक्टर, थ्रेशर, हार्वेस्टर जैसी मशीनों का प्रयोग होता है।
प्रश्न 9. एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर- एक हेक्टेयर, 100 मीटर की भुजा वाले वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर होता है –
मान लेते हैं कि एक किसान अपनी एक हेक्टेयर भूमि पर गेहूँ की खेती करने की योजना बना रहा है। इसके लिए-
(1) उसे बीज, खाद, कीटनाशक, उर्वरक के साथ-साथ जल और खेती के अपने उपकरणों की मरम्मत करने के लिए कुछ नकदी की भी आवश्यकता होगी। यह अनुमान किया जा सकता है कि उसे कार्यशील पूँजी के रूप में कम-से-कम रु. 6,000 की जरूरत होगी जिसके लिए उसे कर्ज लेना होगा।
(2) उन्हें कई कृषि कार्य करने होंगे, जैसे- भूमि को जोतना, बीज बोना, नियमित सिंचाई, उर्वरक व खाद डालना, खरपतवार हटाना, कीटनाशक का छिड़काव करना, फसल कटाई, गहाई, विपणन आदि ।
(3) चूँकि उसके पास भूमि कम है, इसलिए उसे बड़े किसानों के खेतों में कठोर शर्तो पर खेतिहर श्रमिकों के रूप में भी काम करना पड़ता है।
(4) जब खेती-बाड़ी का काम नहीं हो तो जीवन निर्वाह के लिए वह गैर-कृषि-कार्य भी करता है।
प्रश्न 10. मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी | प्राप्त करते हैं? वह छोटे किसानों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर- मझोले और बड़े किसान अपने उपभोग से अधिक (अधिशेष) कृषि उत्पादों को बेचते हैं। कमाई के एक भाग को वे अगले मौसम के लिए कार्यशील पूँजी के तौर पर बचाकर रखते हैं। इस तरह वे अपनी खेती के लिए पूँजी की व्यवस्था अपनी ही बचतों से कर लेते हैं। वे प्रतिवर्ष की बचतों को जोड़कर अपनी स्थिर पूँजी को भी बढ़ाते रहते हैं।
दूसरी ओर छोटे किसानों को कृषि के लिए पूँजी की व्यवस्था के लिए बड़े किसानों या गाँव के साहूकारों से कठोर शर्तों व उच्च ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता है।
प्रश्न 11. सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती ?
उत्तर – सविता को निम्न कठोर निम्न शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है।
(1) सविता को यह वचन देना पड़ा है कि वह कटाई के मौसम में उसके खेतों में एक मजदूर के रूप में रु.100 प्रतिदिन पर काम करेगी। यह मजदूरी बहुत कम है और न्यायोचित नहीं है।
(2) तेजपाल सिंह ने सविता को चार महीनों के लिए 24% की ब्याज दर पर ऋण दिया। यह ब्याज की एक बहुत उच्च दर है।
(3) निस्संदेह, ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती है। वह ब्याज की कम दर पर कर्ज आसानी से चुका पाती और उसे तेजपाल सिंह के लिए खेतिहर मजदूर के रूप में कठोर परिश्रम नहीं करना पड़ता।
प्रश्न 12. अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिए और पिछले 30 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए ।
उत्तर- मैंने अपने क्षेत्र में गाँव के अनेक पुराने निवासियों से ग्राम चौपाल पर बात की और पिछले 30 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए बदलावों के विषय में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की।
मैंने राघव ताऊ से कहा – ताऊ, कृपया मुझे 1980 के दशक में प्रचलित सिंचाई व्यवस्था के बारे में बताइए।
राघव ने कहा, “उस समय किसान सामान्यतः कुओं, नहरों या तालाबों से रहट द्वारा पानी निकालकर अपने छोटे-छोटे  खेतों की सिंचाई किया करते थे। इसके अतिरिक्त खेतिहर श्रमिक सिंचाई के लिए मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करते थे।” मैंने मोहन से पूछा, “मामा, 30 वर्ष पहले उत्पादन के कौन- से तरीके प्रचलित थे?”
मोहन मामा ने कहा, “उस समय खेतों की जुताई बैलों से होती थी। रासायनिक खाद के बदले प्राकृतिक खाद का उपयोग होता था। कुओं या तालाबों से रहट या मिट्टी के बर्तनों द्वारा पानी निकालकर खेतों की सिंचाई की जाती थी। खेतिहर मजदूर फसलों की कटाई करते थे।”
इस प्रकार, हम देखते हैं कि सिंचाई प्रणाली और उत्पादन की प्रणालियों में अब व्यापक परिवर्तन हो चुका है।
(1) गोबर या दूसरी प्राकृतिक खाद के बदले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग काफी बढ़ गया है।
(2) परंपरागत बीजों का प्रयोग अब नहीं होता है, बल्कि लगभग संपूर्ण प्रदेश में अधिक उपज देने वाले एच. वाई. वी. बीजों का प्रयोग किया जाता है और इसी ने हरित क्रांति को संभव बनाया।
(3) बैलों के स्थान पर ट्रैक्टरों एवं थ्रेशरों का प्रयोग किया जाता है।
(4) रहट या मिट्टी के बर्तनों के स्थान पर अब प्राय: पम्पिंगसेट का प्रयोग किया जाता है।
(5) विपणन के क्षेत्र में भी काफी सुधार हुआ है।
प्रश्न 13. आपके क्षेत्र में कौन-से गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इनकी एक संक्षिप्त सूची बनाइए।
उत्तर – हमारे क्षेत्र में कार्यशील जनसंख्या का लगभग 24% भाग कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यों में लगा है। उन लोगों की मुख्य क्रियाएँ निम्न हैं-
1. परिवहन – हमारे क्षेत्र में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो परिवहन सेवाओं में लगे हैं। इनमें ट्रक चालक, ताँगे वाले, रिक्शे वाले, हाथ ठेला चलाने वाले, आदि शामिल हैं।
2. दुकानदारी- हमारे क्षेत्र के कुछ लोग दुकानदारी का काम भी करते हैं। वे शहरों के थोक बाजारों से कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदते हैं और उन्हें गाँव में लाकर बेचते हैं।
3. लघु स्तरीय विनिर्माण – वर्तमान में मेरे गाँव में लगभग 50 परिवार लघु स्तरीय विनिर्माण में लगे हैं। विनिर्माण कार्य पारिवारिक श्रम की सहायता से अधिकतर घरों या खेतों में किया जाता है। इनमें गुड़ उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने का काम, हस्तशिल्प का काम तथा बीड़ी बनाना शामिल है।
4. डेयरी – यह हमारे क्षेत्र के कुछ परिवारों में एक प्रचलित जीवकोपार्जन की क्रिया है। लोग गायों भैसों एवं बकरियों को पालते हैं और दूध को निकट के शहरों में बेचते हैं।
प्रश्न 14. गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए क्या किया जा सकता है ?
उत्तर (1) गाँव के युवाओं के लिए उचित व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था जानी चाहिए ।
( 2 ) ग्रामीणों को कम ब्याज दर पर आसानी से बैंक ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसके लिए सहकारी समितियों की भी सार्थक भागीदारी होनी चाहिए।
( 3 ) ग्रामीणों के बीच उन गैर-कृषि गतिविधियों की संभावनाओं एवं स्वरूपों के बारे में सामान्य जागरूकता पैदा करना बहुत ही महत्वपूर्ण है जिन्हें वे अपने घरों में या घर से बाहर संचालित कर सकते हैं। वर्तमान में चल रही गतिविधियों में सुधार लाना और उन्हें लाभकारी बनाना भी अत्यावश्यक है।
(4) गैर-कृषि कार्यों के प्रसार के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे बाजार हों जहाँ वस्तुएँ व सेवाएँ बेची जा सके। इससे उत्पादकों, दुकानदारों और ग्राहकों में सकारात्मक स्पर्धा विकसित होगी। अत: बाजारों के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
(5) बुनियादी सुविधाओं का विकास प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए जैसे- सड़क, बिजली, पेयजल आदि ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सही विकल्प का चयन कीजिए –
( 1 ) निम्नांकित में से कौन-सी क्रिया पालमपुर के निवासियों की मुख्य आर्थिक क्रिया है ?
(a) विनिर्माण
(b) व्यापार और वाणिज्य
(c) कृषि
(d) खनन
(2) निम्नांकित में से कौन-सी चीज स्थायी पूँजी है?
(a) मुद्रा
(b) श्रम
(c) कच्चा माल
(d) औजार
(3) गाँवों में मुख्य उत्पादन क्रिया है –
(a) खेती
(b) परिवहन
(c) विनिर्माण
(d) डेयरी
(4) उत्पादन के कारकों में सर्वाधिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कारक है –
(a) भूमि
(b) श्रम
(c) पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
(5) उत्पादन का सबसे दुर्लभ कारक है –
(a) पूँजी
(b) श्रम
(c) भूमि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- ( 1 ) (c), (2) (d), (3) (a), (4) (b), (5) (c) ।
प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
( 1 ) पालमपुर के किसान … ऋतु में ज्वार और बाजरा का उत्पादन करते हैं।
(2) भारत में ग्रामीण क्षेत्र के 100 कामगारों में से केवल …….. ही गैर कृषि कार्यों में लगे हैं।
( 3 ) भूमि मापने की मानक इकाई ……… है।
(4) एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से ज्यादा फसल पैदा करने को ……… कहते हैं।
(5) ………… के दशक के अंत में भारत में हरित क्रांति का आरंभ हुआ।
उत्तर (1) वर्षा, (2) 24, (3) हेक्टेयर, (4) बहुविध फसल प्रणाली, (5) 1960.
प्रश्न 3. सही जोड़ी बनाइये –
सूची-1                                    सूची-2
(i) प्राकृतिक संसाधन            (a) श्रम
(ii) मानव संसाधन               (b) जल, वन, खनिज
(iii) मानव निर्मित संसाधन   (c) भूमि + श्रम + पूँजी
(iv) उत्पादन के कारक        (d) पूँजी
उत्तर – (i) b, (ii) a, (iii) d, (iv) c.
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1. उत्पादन का सबसे दुर्लभ कारक कौन-सा है ?
उत्तर- भूमि सबसे दुर्लभ कारक है।
प्रश्न 2. उत्पादन का सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कारक कौन-सा है ?
उत्तर- श्रम सबसे प्रचुरता में उपलब्ध कारक है।
प्रश्न 3. देश में कुल कृषि क्षेत्र के कितने प्रतिशत भाग में सिंचाई सुविधाएँ हैं?
उत्तर- देश में 40% से भी कम क्षेत्र में सिंचाई होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर-
प्रश्न 4. भूमि के मापन की मानक इकाई और क्षेत्रीय इकाईयों के बारे में बताइए ।
उत्तर- भूमि के मापन की मानक इकाई हेक्टेयर है। जबकि क्षेत्रीय इकाइयाँ बीघा, गुंठा आदि हैं।
एक हेक्टेयर, 100 मीटर की भुजा वाले वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर होता है।
प्रश्न 5. भारत में सिंचाई व्यवस्था पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – नदीय मैदानों के अतिरिक्त हमारे देश में तटीय क्षेत्रों में अच्छी सिंचाई होती है। इसके विपरीत, पठारी क्षेत्रों, जैसेदक्षिणी पठार में सिंचाई कम होती है देश में आज भी कुल कृषि क्षेत्र के 40 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र में ही सिंचाई होती है। शेष क्षेत्रों में खेती मुख्यत: मानसून पर निर्भर है।

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