NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्
Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् Questions and Answers were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्
अभ्यासः
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तर लिखत-
(क) व्याधस्य नाम किम् आसीत्?
उत्तरम्:
चञ्चलो।
(ख) चञ्चल: व्याघ्नं कुत्र दृष्टवान्?
उत्तरम्:
जाले बद्धः।
(ग) कस्मै किमपि अकार्य न भवति।
उत्तरम्:
क्षुधार्ताय।
(घ) बदरी-गुल्मानां पृष्ठे का निलीना आसीत्?
उत्तरम्:
लोभशिका
(ङ) सर्वः किं समीहते?
उत्तरम्:
सर्वः स्वार्थ समीहते।
(च) नि:सहायो व्याधः किमयाचत?
उत्तरम्:
निःसहायों व्याघ्रः प्राण भिक्षामिव अयाचत।
प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) चञ्चलेन वने किं कृतम्?
उत्तरम्:
चञ्चलेन बने पक्षिमृगादीनां ग्रहणेन सः स्वीयां जीविका निर्वाहयति स्म।
(ख) व्याघ्रस्य पिपासा कथं शान्ता अभवत्?
उत्तरम्:
नद्याः जलमानीन व्याघ्रस्य पिपासा शान्ता अभवत्।
(ग) जलं पीत्वा व्याघ्रः किम् अवदत्?
उत्तरम्:
जलं पीत्वा व्याघ्रः साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि अपदत्।
(घ) चञ्चलः ‘मातृस्वसः!’ इति को सम्बोधितवान्?
उत्तरम्:
चञ्चल: ‘मातृस्वसः’। इति लोमशिका सम्बोधितवान।
(ङ) जाले पुनः बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा व्याधः किम् अकरोत्?
उत्तरम्:
जाले पुनः बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा व्याधः जलात् वहिः निरसादयत् अकरोत्।
प्रश्न 3.
अधोलिखितानि वाक्यानि कः/का/कं/कां प्रति कथयति-
प्रश्न 4.
रेखांकित पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माण-
(क) व्याधः व्याघ्रं जालात् बहिः निरसारयत्।
उतरम्:
व्याधः व्याघ्र कस्मात् बहिः निरसारयत्।
(ख) चञ्चल: वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत्।
उतरम्:
चञ्चल: कुत्र उपगम्य अपृच्छत्।
(ग) व्याघ्रः लोमशिकायै निखिला कथां न्यवेदयत्।
उतरम्:
व्याघ्रः कस्मयै निखिला कथां न्यवेदयत।
(घ) मानवाः वृक्षाणां छायायां विरमन्ति।
उतरम्:
मानवाः केषाम् छायायां विरमन्ति।
(ङ) व्याघ्रः नद्याः जलेन व्याधस्य पिपासामशमयत्।
उतरम्:
व्याघ्रः के जलेन व्याधस्य पिपासामशमयत्।
प्रश्न 5.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा कथां पूरयत-
एकस्मिन् वने एक: ________ व्याघ्रः आसीत्। सः एकदा व्याधेन विस्तारिते जाले बद्धः अभवत्। सः बहुप्रयासं _________ किन्तु जालात् मुक्तः नाभवत्। ____________ तत्र एकः मूषकः समागच्छत्। बद्धं व्याघ्रं __________ सः तम् अवदत्-अहो! भवान् जाले बद्धः। अहं त्वां _________ इच्छामि। तच्छुत्वा व्याघ्रः _________ अवदत्-अरे! त्व _________ जीवः मम साहाय्यं करिष्यसि। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि __________ अहं त्वां न हनिष्यामि। मूषकः ___________ लघुदन्तैः तज्जालस्य __________ कृत्वा तं व्याघ्र बहिः कृतवान्।
उतरम्:
एकस्मिन् वने एक: वृद्धः व्याघ्रः आसीत्। सः एकदा व्याधेन विस्तारिते जाले बद्धः अभवत्। सः बहुप्रयासं कृतवान् किन्तु जालात् मुक्तः नाभवत्। अकस्मात् तत्र एकः मूषकः समागच्छत्। बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा सः तम् अवदत्-अहो! भवान् जाले बद्धः। अहं त्वां मोचयितुम् इच्छामि। तच्छुत्वा व्याघ्रः साट्टहासम अवदत्-अरे! त्व क्षतः जीवः मम साहाय्यं करिष्यसि। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि। मूषकः स्वकीयैः लघुदन्तैः तज्जालस्य कर्तनम् कृत्वा तं व्याघ्र बहिः कृतवान्।
प्रश्न 6.
यथानिर्देशमुत्तरत-
(क) सः लोमशिकायै सर्वा कथां न्यवेदयत् – अस्मिन् वाक्ये विशेषणपदं किम्।
उतरम्:
सर्वा।
(ख) अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान् – अत्र अहम् इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्।
उतरम्:
चञ्चलः।
(ग) ‘सर्वः स्वार्थ समीहते’, अस्मिन् वात्यो कर्तृपदं किम्।
उतरम्:
सर्वः।
(घ) सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति – वाक्यात् एकम् अव्ययपदं चित्वा लिखत।
उतरम्:
उप।
(ङ) ‘का वार्ता? माम् अपि विज्ञापय’ – अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्? क्रियापदस्य पदपरिचयमपि लिखतः।
उतरम्:
विज्ञापय।
प्रश्न 7(अ).
उदाहरणानुसारं रिक्तस्थानानि परयत-
प्रश्न 7(आ).
धातुं प्रत्ययं च लिखत-
योग्यता-विस्तार
परधान और उनकी कलापरम्परा-परधान मुख्यता: गौड राजाओं की वंशावली और कथा के गायक गौड राज्य क समाप्त होने पर ये गायक अपनी गायी जाने वाली कथाओं पर चित्र बनाने लगे इस समुदाय की कथाओं और चित्रकला के बारे में और अधिक जानने के लिए पुस्तक जनगढ़ कलम (वन्या प्रकाशन भोपाल) देखी जा सकती है। प्रस्तुत कथा के संकलन-कर्ता हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक श्री उदयन वाजपेयी है।
लोककथाओं में जीवन की रंग-बिरंगी तस्वीर मिलती है। दिलचस्प बात यह है कि लोककथाएँ किसी एक भाषा या इसके तक सीमित नहीं रहती। उन्हें कहने वाले जगह-जगह घूमते हैं। इसलिए रूप और वर्णन में हेरफेर के साथ दूसरी जगहों में भी मिल जाती है। क्षेत्र विशेष की संस्कृति की झलक उनको अनूठा बनाती है। स्थान और काल के अनुसार लोककथाओं की नई-नई व्याख्याएँ होती रहती है। इस क्रम में उनमें परिवर्तन भी होता है।
Class 8 Sanskrit Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् Summary
पाठ परिचय:
मध्यप्रदेश के डिण्डोरी जिले में परधानों के बीच प्रचलित एक लोककथा है। यह पञ्चतन्त्र की शैली में रचित है। इस कथा में यह स्पष्ट किया गया है कि संकट में चतुराई एवं प्रत्युत्पन्नमतित्व से बाहर निकला जा सकता है।
शब्दार्थ-
व्याधः – शिकारी, बहेलिया, स्वीयाम् – स्वयं की, दौर्भाग्यात् – दुर्भाग्य से, बद्धः – बँधा हुआ, पलायनम् – पलायन करना, भाग जाना, न्यवेदयत् (नि+अवेदयत्) – निवेदन किया, मोचयिष्यसि – मुक्त करोगे/छुड़ाओगे, निरसारयत् (नि: असारयत्) – निकाला, क्लान्तः – थका हुआ, पिपासुः – प्यासा, शमय – शान्त करो/मिटाओ, बुभुक्षितः- भूखा, भणितम् – कहा, प्रक्षालयन्ति – धोते हैं, विसृज्य – छोड़कर, निवर्तन्ते – चले जाते हैं।लौटते हैं, उपगम्य – पास जाकर, विरमन्ति – विश्राम करते हैं, कुठारैः – कुल्हाड़ियों से, प्रहत्य – प्रहार करके.. छेदनम् – काटना, लोमशिका – लोमड़ी, निलीना – छुपी हुई, उपसृत्य – समीप जाकर, मातृस्वसः! – हे मौसी, समागतवती – पधारी/आई, निखिलाम् – सम्पूर्ण, पूरी, बाढम् – ठीक है, अच्छा, प्रत्यक्षम् – अपने (समक्ष) सामने, वृत्तान्तम् – पूरी कहानी, प्रदर्शयितुम् .- प्रदर्शन करने के लिए, प्राविशत् (प्र+अविशत्) – प्रवेश किया, कूर्दनम् – उछल-कूद, अनारतम् – लगातार, श्रान्तः – थका हुआ, प्रत्यावर्तत (प्रति+आ+अवर्तत) – लौट आया।
मूलपाठः
आसीत् कश्चित…………खादितुम् इच्छासि।
सरलार्थः
कोई ‘चञ्चल’ नाम का बहेलिया था। पक्षी, मग आदि को पकड़कर वह अपनी जीविका निर्वाह करता था। एक बार वह जंगल में जाल फैलाकर घर आ गया। अगले दिन वहाँ जाकर उस फैले हुए जाल में दुर्भाग्यपूर्ण एक बुढ़ा बाघ को फंसा देखा। इसलिए सोचा-बाघ मुझे खा जाएगा इसलिए यहाँ से चलना चाहिए। बाघ ने निवेदन किया – हे मानव! तुम्हारा कल्याण हो अगर तुम मुझे मुक्त करोगे तब तुम्हारा नुकसान नहीं करूँगा। तब वह बहेलिया बाघ को बाहर निकाला। बाघ थका हुआ था। वह बोला – हे मानव! मैं प्यासा हूँ। नदी से जल लाकर मेरी प्यास शान्त करो। बाघ जल पीकर पुनः बहेलिया से बोला- ‘प्यास तो शान्त हो गया अब भुख लगी है अब मैं तुम्हें खाऊँगा।’ चञ्चल ने कहा – मैं तुम्हारे प्रति धर्म को आचरण किया। तुम बेकार कह रहे हो। क्या तुम मुझे खाने के ईच्छा रखते हो?
व्याघ्रः अवदत् अरे मूर्ख!………..सर्वः स्थार्थ समीहते।
सरलार्थः
बाघ बोला, अरे मूर्ख! भूख के लिए कोई भी अकार्य नहीं होता। सभी स्वार्थ में ही निहीत हैं चञ्चल ने नदी जल से पूछा। नदी जल न कहा – ऐसा ही होता है, लोग मेरे जल में स्नान करते हैं, कपड़ा धोते हैं तथा मल-मूत्र का त्याग करते है। सभी में तो सर्वाथ ही निहीत है। चञ्चल वृक्ष के पास जाकर पूछा! वृक्ष बोला -मनुष्य हमारी छाया मे विश्राम करते हैं। हमारे फल खाते हैं, फिर कुल्हाड़ी से प्रहार कर हमें सदा कष्ट देते हैं। यहाँ काटना भी सभी स्वार्थ में ही निहीत हैं।
समीपे एका………………सर्वः स्वार्थ समीहते।
सरलार्थः
नजदीक में एक लोमड़ी पीठ पर गट्ठर लिए सभी बातें सुनी। वह अचानक चञ्चल से पूछी क्या बात है? मुझे भी बताओ। वह बोला – हे मौसी! तुम तो समय पर आ गई हो। मुझे इस बाघ से प्राण रक्षा करो यह मुझे खाना चाहता है। इसके बाद वह लोमडी सम्पूर्क कथा की जानकारी हेतु निवेदन किया। लोमड़ी ने चञ्चल से कहा – ठीक है जाल फैलाओ और पुनः बाघ से कहा – तुम इस जाल में किस प्रकार बंधे से इसका प्रत्यक्ष दिखाओ। बाघ सारी वृतान्त को दिखाने हेतु उस जाल में प्रवेश कर गया। लोमड़ी ने फिर कहा – अब बार-बार उछलकर दिखाओ। उछलते उछलते वह शांत हो गया। कुछ समय के बाद जाल में बन्धने से अपने को बेसहारा समझ गिरते हुए प्राण की रक्षा हेतु गुहार लगाया। लोमड़ी ने बाघ से कहा – सही कहा गया है – सभी स्वार्थ में ही निहीत है।