RBSE Solutions for Class 6 Hindi Chapter 6 मनोहर
RBSE Solutions for Class 6 Hindi Chapter 6 मनोहर
Rajasthan Board RBSE Class 6 Hindi Chapter 6 मनोहर
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
पाठ से
उच्चारण के लिए
मातृ-पितृ, श्रमसिक्त, कृतज्ञता, मशगूल, दुछत्ती
नोट—छात्र-छात्राएँ स्वयं उच्चारण करें।
सोचें और बताएँ
प्रश्न 1.
लेखक ने जब बालक मनोहर से उसके माता-पिता के बारे में पूछा तो उसने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
लेखक ने जब बालक मनोहर से उसके माता पिता के बारे में पूछा तो उसने उत्तर दिया कि जब वह दो बरस का था तब उसकी माँ मर गयी थी और उसके पिता उसे उसी दिन छेड़कर चले गये, जिस दिन उसकी माँ मनोहर को छोड़कर चली गई थी।
प्रश्न 2.
मनोहर का बचपन कैसे बीता ?
उत्तर:
बचपन में मनोहर चाय की दुकान पर काम करता था। उसमें गजब की फुर्ती थी। वह सुबह-शाम की मेहनत के साथ स्कूल की पढ़ाई भी मन लगाकर करता था। उसका बचपन बड़ा संघर्ष से भरा था।
प्रश्न 3.
लेखक का मनोहर से प्रथम परिचय कैसे हुआ?
उत्तर:
लेखक उसी चाय के ठेले पर चाय पीने आया करते थे, जिस ठेले पर मनोहर बचपन में काम करता था। बातों ही बातों में एक दिन लेखक को मनोहर के जीवन की कहानी सुनने का अवसर मिला। बस लेखक का मनोहर से प्रथम परिचय ऐसे ही हुआ।
लिखें
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक बिलासपुर छोड़कर जनकनगर में बस गया था
(क) अपने नये घर में
(ख) अपने पुश्तैनी घर में
(ग) डाक बंगले में
(घ) किले में।
प्रश्न 2.
मनोहर राजस्थान के जिले का रहने वाला था
(क) अजमेर का
(ख) उदयपुर का
(ग) हँगरपुर का
(घ) बाड़मेर का
प्रश्न 3.
लेखक की निगाहें बस्ती के बीच ढूँढ़ रही थीं
(क) चाय के ठेले को
(ख) फल की दुकान को
(ग) सब्जी के ठेले को
(घ) मिठाई की दुकान को
उत्तर:
1. (ख)
2. (ग)
3. (क)
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मनोहर ने अपना जीवन चलाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
मनोहर ने अपना जीवन चलाने के लिए चाय की दुकान में काम किया।
प्रश्न 2.
मनोहर की माँ की मृत्यु का क्या कारण था?
उत्तर:
मनोहर की माँ बहुत बीमार थी और उनके पास दवा के पैसे नहीं थे। बिना दवाई के मनोहर की माँ की मृत्यु हो गई थी।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मनोहर पाँच वर्ष का होते-होते कैसा बालक बन गया था?
उत्तर:
मनोहर के माता-पिता दोनों में से कोई नहीं था। उसका बचपन संघर्ष से भरा हुआ था। उस अकेले बच्चे का अपना कहने वाला कोई नहीं था। वह जो कुछ भी करता था, अपनी सोच के अनुसार ही करता था, इसीलिए पाँच वर्ष का होते-होते मनोहर बड़ा मेहनती बालक बन गया था।
प्रश्न 2.
बालक मनोहर अपने स्कूल की फीस की व्यवस्था कैसे करता था?
उत्तर:
बालक मनोहर चाय के ठेले पर काम करता था। चाय की दुकान पर मेहनत से कमाया उसका पैसा स्कूल की फीस में चला जाता था और कुछ पैसे वह बचत भी करता था।
प्रश्न 3.
मनोहर ने किसे अपना पिता तुल्य बताया?
उत्तर:
मनोहर ने अपने मालिक को पिता तुल्य बताया। उसके मालिक मनोहर को पर्याप्त रुपया देते थे और पिता के समान उसके मालिक मरते समय उनकी छोटी सी जगह मनोहर के नाम कर गए थे।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“बाबूजी उस रात आपके दिए गए आशीर्वाद का ही फल है।” मनोहर ने किस रात की घटना की बात कही है? विस्तार से बताए।
उत्तर:
एक दिन बहुत तेज सर्दी थी। इतनी ठंड में शाम होते-होते बाजार सूने हो जाते थे। लेखक दिनभर रजाई में सोते रहे। शाम को लेखक को टहलने की इच्छा हुई। सर्दी से बचने के लिए वह ओवरकोट पहनकर मनोहर के घर की ओर चल दिये। वहाँ जाकर उन्होंने मनोहर से पूछा कि “तुम आगे चलकर क्या बनना चाहते हो?” तो मनोहर ने बड़े विश्वास के साथ कहा कि वह पढ़-लिखकर बहुत कुछ बनना चाहता है। उसने बताया कि चाय के ठेले पर काम करने के बदले में उसके मालिक पर्याप्त रुपया देते हैं। उनके दिए गए रुपयों में से स्कूल की पढ़ाई का पैसा देने के बाद जो कुछ बचता है, वह बचत के रूप में गुल्लक में डाल देता है। मनोहर की गुल्लक देखकर लेखक को मनोहर पर बहुत गर्व हुआ और उसके मुँह से निकला, “बेटा! तुम्हारी मेहनत अवश्य एक दिन रंग लाएगी।” मनोहर ने उसी रात की घटना की बात लेखक से कही थी।
प्रश्न 2.
लेखक वर्षों बाद बिलासपुर आने पर मनोहर से मिलने के लिए क्यों उत्सुक था?
उत्तर:
लेखक वर्षों पहले जब बिलासपुर में रहता था, तब । उसकी मुलाकात पाँच वर्ष के एक छोटे से बालक मनोहर से हुई थी। मनोहर उसी चाय की दुकान पर काम करता था, जिस दुकान पर लेखक चाय पीने आता था। एक दिन बातों-बातों में मनोहर से बात करने पर लेखक को पता लगा कि उस बच्चे के माँ-बाप नहीं हैं। वह अपना जीवन चलाने के लिए काम करता है और काम करने के बाद में उसके मालिक जो रुपया उसे देते हैं, उनसे वह स्कूल की फीस देता है और बाकी बचे पैसे बचत के रूप में गुल्लक में डाल देता है। लेखक के मन में यह जानने की उत्सुकता थी कि वह बालक मनोहर बड़ा होकर क्या कर रहा होगा? कैसा होगा? आदि। इसीलिए बिलासपुर आने पर लेखक मनोहर से मिलना चाहता था।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों को पढ़िए और जानिए
मातृ – माता
शौक – आदत
मात्र – केवल
शोक – दु:ख
कुल – किनारा
अंश – भाग
कुल – वंश
अंस – कंधा
उपर्युक्त शब्दों के जोड़ों का उच्चारण समान होते हुए भी उनके अर्थ बिलकुल भिन्न हैं। ऐसे समान उच्चारण लेकिन भिन्नार्थक शब्दों को युग्म शब्द कहते हैं। आप भी ऐसे युग्म शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
1. युग्म शब्द
- दिन. – दिवस
दीन – गरीब - दिए – देना।
दीए – दीपक - और – दुसरा
और – तरफ - फल – परिणाम
फल – खाने का फल
प्रश्न 2.
अर्थ के आधार पर शब्दों के निम्नलिखित भेद किए जाते हैं
- एकार्थी शब्द, जैसे – गाय, पानी।
- अनेकार्थी शब्द, जैसे – कनक-धतूरा व सोना।
- पर्यायवाची शब्द, जैसे – बादल, नीरज, जलद।
- विलोम शब्द, जैसे रात – दिन
- युग्म शब्द, जैसे – कूल व कुल।।
पाठ से आगे
प्रश्न 1.
अगर आप बालक मनोहर की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर:
अगर हम बालक मनोहर की जगह होते, तो शायद हम भी ऐसा ही कुछ करते जैसा मनोहर ने अपने बचपन में किया था। हम भी मनोहर की तरह अपना जीवन-यापन करने के लिए कोई काम करते और साथ-ही-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखते, ताकि आगे चलकर हम पढ़-लिखकर कुछ बन सके।
प्रश्न 2.
यदि लेखक वापस बिलासपुर आने पर मनोहर से नहीं मिलता तो क्या होता?
उत्तर:
यदि लेखक बिलासपुर आने पर मनोहर से नहीं मिलता, तो वह परेशान ही रहता। उसके मन में सदा ये उत्सुकता बनी रहती कि मनोहर कैसा होगा ? उसका क्या हुआ होगा ? वह कुछ बन पाया होगा कि नहीं? आदि। यही सब सवाल उसके दिमाग में आते रहते और वह चैन से नहीं रह पाता।
यह भी करें
अगर आपके आस-पास कोई ऐसा बालक हो जिसके परिवार में कोई नहीं है। आप उसकी किस प्रकार सहायता कर सकते हैं।
उत्तर:
अगर हमारे आस-पास कोई ऐसा बालक हो जिसके परिवार में कोई नहीं है तो हम यथासंभव उसकी मदद करने की कोशिश करेंगे। अगर हमारे पास पर्याप्त रुपया हुआ तो हम ही उसकी पढ़ाई-लिखाई का पूरा जिम्मा उठा लेंगे, नहीं तो उसे कोई ऐसा काम दिलवाने की कोशिश करेंगे जिससे वह अपने जीवन-यापन के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रख सके। समय-समय पर उससे मदद के लिए पूछते रहेंगे और जरूरत पड़ने पर उसकी देखभाल भी करेंगे और उसे यह बतायेंगे कि तुम अकेले नहीं हो, हम तुम्हारे साथ हैं।
यह भी जानें
हमारे देश में बाल मजदूरी को कानूनन अपराध माना जाता है। भारत सरकार व राज्य सरकारों द्वारा अपने अपने स्तर पर बाल मजदूरी रोकने के उपाय किए जा रहे हैं। ऐसे बालक जो बेसहारा हैं उनके लिए रहने-पढ़ने की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है। समाज कल्याण विभाग ऐसे बच्चों के लिए आवास व शिक्षा का प्रबंध करता है। स्वयंसेवी संगठन भी ऐसे जरूरतमंद बच्चों की मदद करते हैं। हमें भी ऐसे बच्चों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मनोहर का बचपन भरा हुआ था
(क) संघर्ष से
(ख) खुशियों से
(ग) खेलने-कूदने से
(घ) फूलों से।
प्रश्न 2.
मनोहर चाय बनाने के साथ करता था
(क) पढ़ाई
(ख) धुलाई
(ग) पुछाई
(घ) रँगाई
प्रश्न 3.
पुराना चाय का ठेला आज बन चुका था
(क) मकान
(ख) गोदाम
(ग) केबिन
(घ) घर
उत्तर:
1. (क)
2. (क)
3. (ग)
रिक्त स्थान पूर्ति….
(चेहरा, बूढ़े, पैर, पुश्तैनी, व्यक्ति)
- समय की मार से चेहरे ……… हो गये थे।
- “क्या तुम मनोहर नाम के किसी …….. को जानते हो?”
- युवक का ……… भोला-भाला था।
- मनोहर ने झुककर मेरे ……… छू लिए।
उत्तर:
- बूढ़े
- व्यक्ति
- चेहरा
- पैर
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मनोहर कितने बरस का था, जब उसकी माँ गुजर गई थी?
उत्तर:
मनोहर दो बरस को था, जब उसकी माँ गुजर गई थी।
प्रश्न 2.
मनोहर जो कुछ करता था, किसके निर्णय से करता था?
उत्तर:
मनोहर जो कुछ भी करता था, अपने निर्णय से करता था।
प्रश्न 3.
मनोहर के पास सर्दी से बचने के लिए क्या था?
उत्तर:
मनोहर के पास सर्दी से बचने के लिए एक फटा कंबल था।
प्रश्न 4.
मनोहर की किस चीज को देखकर लेखक गद्गद् हो य?
उत्तर:
लेखक मनोहर की गुल्लक को देखकर गद्गद् हो उठा था।
प्रश्न 5.
लेखक चाय के ठेले को क्यों हूँढ रह्म था?
उत्तर:
लेखक चाय के ठेले को इसलिए ढूँढ रहा था, क्योंकि वह मनोहर से मिलना चाहता था।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
युवक मनोहर के व्यक्तित्व का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है?
उत्तर:
लेखक ने ध्यान से युवक को देखा। वह अपनी मस्ती में खोया, चाय बनाने में मशगूल था। उसका चेहरा भोला-भाला था और आँखों में बचपन जैसे अभी झूल रहा था। उसके ललाट पर खिर्ची रेखाएँ चेहरे की मासूमियत के साथ मेल नहीं खा रही थीं। वे बता रही र्थी कि कैसे कच्ची उम्र अनुभव और जीवन के थपेड़ों से गंभीर हो जाती है।
प्रश्न 2.
बचपन में लेखक के पूछने पर मनोहर ने उसे अपनी क्या-क्या कहानी सुनायी?
उत्तर:
मनोहर ने लेखक को बताया कि वह राजस्थान के हूँगरपुर के पास एक छोटे से गाँव का रहने वाला था। वह अपने घर से भागकर यहाँ आया था। जब वह दो बरस का था, तब उसकी माँ की बीमारी में दवाई न मिल पाने के कारण मृत्यु हो गयी थी और बाप उसे उस दिन छोड़कर चले गये थे, जिस दिन उसकी माँ चली गई थी।
प्रश्न 3.
लेखक जब सर्दी में मनोहर के घर पहुंचा, तो उसने क्या देखा?
उत्तर:
लेखक को अचानक टहलने की इच्छा हुई। वह ओवरकोट पहनकर मनोहर के घर की तरफ चल दिया। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि चाय के ठेले के सामने दुछत्ती के नीचे कोने पर दिए की लौ में स्कूल के सबक को याद करता मनोहर दूर से ही दिखाई दे रहा था। श्रमसिक्त चेहरे पर थकान स्पष्ट नजर आ रही थी, लेकिन आँखों में सुनहरा भविष्य का सपना चमक रहा था।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर मनोहर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
पाठ के आधार पर मनोहर का चरित्र चित्रण इस प्रकार है
- मातृ-पितृ विहीन बालक—मनोहर एक बिना माँ बाप | का बालक था। जब वह दो वर्ष का था तब उसकी माँ की मृत्यु हो गयी थी और पिता उसे छोड़कर चले गये थे। इस संसार में उसका कोई नहीं था। वह बिल्कुल अकेला था।
- परिश्रमी—मनोहर बहुत परिश्रमी बालक था। वह बचपन में चाय की दुकान पर काम करता था और उसके साथ-साथ वह स्कूल की पढ़ाई भी करता था। उसको बचपन संघर्ष से भरा हुआ था। जो कुछ वह करता था, उसका स्वयं का निर्णय होता था।
- मितव्ययी—मनोहर मितव्ययी यानि बचत करने वाला भी था। चाय के ठेले पर मेहनत करने के बाद उसके मालिक मनोहर को जो पैसे देते थे, उन रुपयों में से स्कूल की पढ़ाई के लिए फीस देने के बाद जो कुछ बचता था, वह गुल्लक में डाल देता था।
- विनम्न—मनोहर बचपन से ही बहुत विनम्र था। तभी तो उसने लेखक को पहचानकर, झुककर उसके पैर छू लिए थे। बचपन के मनोहर की विनम्रता बड़ी होने पर और भी घनीभूत हो गयी थी।
प्रश्न 2.
लेखक को क्यों लगा कि मनोहर भारत के सुखद भविष्य का पर्याय बन गया है?
उत्तर:
मनोहर बड़ी लगन के साथ अपने बचपन से संघर्ष करता हुआ कठिन परिश्रम करता है। वह चाय की दुकान पर काम करता है। उसके अतिरिक्त पढ़ने के लिए स्कूल जाता है और अपने मालिक से मिले पैसों से बचत करके बड़े होने पर अपनी मेहनत से चाय का केबिन तैयार कर लेता है। और अपने रहने के लिए घर भी बना लेता है। लेखक को मनोहर के चेहरे पर बीते हुए समय के प्रति कृतज्ञता, वर्तमान के प्रति अपार संतोष और आत्मविश्वास तीनों एक साथ दिखाई देते हैं। लेखक को लगता है, एक मनोहर ही नहीं : ऐसे अनेक मनोहर देश के कोने-कोने में अपने जीवन को सँवारने में लगे हैं। मनोहर लेखक के लिए भारत के सुखद भविष्य का पर्याय बन गया था।
कठिन शब्दार्थ
घनी = भरी हुई। बस्ती = मौहल्ला। परिवर्तन = बदलना। समय की मार = परेशानियाँ। फुटपाथ = सड़क के किनारे पर चलने की जगह। केबिन = दुकान। पुश्तैनी = पैतृक। पारिवारिक = परिवार के साथ। सम्मिलित = शामिल होना। मस्ती = धुन में। मशगूल = व्यस्त। ललाट = माथा। रेखाएँ = लकीरें। मासूमियत = भोलापन। कच्ची अ = छोटा बचपन। अनुभव = तजुर्बा। थपेड़ों = कठिनाइयों। सभ्रम संशय सहित। पर्याप्त = भरपूर। विनम्रता = कोमलता। घनीभूत = बढ़ गयी थी, गहरा। गजब = अत्यंत। फुर्ती = तेजी। बाध्यता = बंधन, मजबूरी। राम कहानी = जीवन की गाथा। अमिट = जो मिट न सके। अंकित = छपना, बस जाना। कड़वाहट = नफरत, गुस्सा। टूटे-फूटे शब्दों में = पूरी तरह से बोल न पाने वाली भाषा में। निष्कर्ष = पता लगाना, निचोड़। मातृ-पितृ विहीन = बिन माँ-बाप का। संघर्ष = कठिनाइयाँ। निर्णय = फैसला। दुबके = छुपा होना। ओवरकोट = सर्दी में पहनने का घुटनों तक लंबा कोट। दुछत्ती = छत के नीचे सामान रखने का स्थान। श्रमसिक्त = मेहनत से भरा हुआ। स्पष्ट = साफ। सुनहरे भविष्य = आने वाला सुंदर समय। विचलित = दु:खी होना। मन की थाह लेना = मन की बात को जान लेना। जरूरत = आवश्यकता। पर्याप्त = आवश्यकतानुसार। गद्गद् = बहुत अधिक खुश होना। संकल्प = दृढ़ निश्चय। हठात् = एकदम, अचानक। संतोष = सुख, चिंता से दूर। कृतज्ञता = कृतज्ञ होने का भाव। आत्मविश्वास = मन की दृढ़ इच्छाशक्ति। ओढ़कर = ढककर।
गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
(1)
आज भी मैं वे पल भूल नहीं पाया, जब बालक ने टूटे-फूटे शब्दों में अपनी कहानी बयान की थी। सब कुछ सुनने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा था कि मातृ-पितृ विहीन उस बालक का बचपन संघर्ष से भरा हुआ था। अकेला बच्चा। अपना कहने वाला कोई नहीं। जो कुछ करना था, उसका अपना निर्णय था। इसलिए पाँच वर्ष का होते-होते मनोहर बड़ा मेहनती बालक बन गया था।
प्रसंग—प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘मनोहर’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. राकेश तैलंग हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने बालक के संघर्ष के बारे में बताया है।
व्याख्या/भावार्थ—लेखक कहते हैं कि वे अभी तक उस समय को नहीं भूल पाये हैं, जब शेटे से बच्चे ने टूटे-फूटे शब्दों में अपनी कहानी उन्हें सुनायी थी। इसकी कहानी सुनने के बाद लेखक ने यह समझ लिया था कि उस बिन माँ-बाप के बच्चे का बचपन कष्टों से भरा हुआ था। वह बेचारा अकेला था, उसका अपना कोई नहीं था। वह अपनी समझ से ही सारा काम करता था। इसीलिए पाँच साल की उम्र में ही मनोहर बहुत मेहनती बच्चा बन गया था।
प्रश्न 1.
लेखक कौन-सा पल नहीं भूल पाया था?
उत्तर:
लेखक वह पल नहीं भूल पाया था, जब बालक ने अपने टूटे-फूटे शब्दों में अपनी कहानी बयान की थी।
प्रश्न 2.
कहानी सुनने के बाद लेखक किस निष्कर्ष पर पहुँचा था?
उत्तर:
कहानी सुनने के बाद लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मातृ-पितृ विहीन उस बालक का जीवन संघर्ष से भरा हुआ था।
प्रश्न 3.
पाँच वर्ष का होते-होते मनोहर कैसा बालक बन गया था?
उत्तर:
पाँच वर्ष का होते-होते मनोहर मेहनती बालक बन गया था।
प्रश्न 4.
बच्चा किसकी सलाह से काम करता था?
उत्तर:
बत्रा इस दुनिया में अकेला था। वह जो कुछ काम करता था, उसमें उसका अपना निर्णय होता था।
(2)
मैंने कहा-“मनोहर! आगे चलकर तुम क्या बनना चाहोगे?” मनोहर बड़े उल्लास के साथ बोला, “बाबूजी! मैं पढ़-लिखकर बहुत कुछ बनना चाहता हैं। अभी मैं चाय के ठेले पर थोड़ी-बहुत मेहनत करता हूँ। जेब खर्च के लिए मुझे मेरे मालिक पर्याप्त रुपया देते हैं। वे मेरे लिए पिता तुल्य हैं। मुझे उनका बड़ा आसरा है। उनके दिए गए रुपयों में से स्कूल की पढ़ाई के लिए पैसा बचाने के बाद जो कुछ बचता है, वह बचत के रूप में इस डिब्बे में बंद है, बाबूजी।”
प्रसंग—प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘मनोहर’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. राकेश तैलंग हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने मनोहर द्वारा अपने सपने के बारे में बताया है।
व्याख्या/भावार्थ—लेखक द्वरा यह पूछने पर कि मनोहर आगे चलकर क्या बनना चाहता है ? तो मनोहर ने बहुत आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया कि वह पढ़-लिखकर बहुत कुछ बनना चाहता है। अभी तो वह चाय के ठेले पर काम करता है। उसके मालिक उसे काम के बदले में जो रुपये देते हैं, वह काफी हैं। उसके मालिक उसके लिए पिता के समान हैं। मनोहर को उसका बड़ा सहारा है। मालिक द्वारा दिये गये रुपयों में से स्कूल की पढ़ाई के लिए पैसा खर्च करने के बाद, जो पैसा बचता है, उन्हें वह बचत के रूप में एक डिब्बे में बंद कर देता है।
प्रश्न 1.
लेखक ने मनोहर से क्या पूछा?
उत्तर:
लेखक ने मनौहर से पूछा कि आगे चलकर वह क्या बनेगा?
प्रश्न 2.
मनोहर ने विश्वास के साथ क्या कहा?
उत्तर:
मनोहर ने विश्वास के साथ कहा कि वह पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहता है।
प्रश्न 3.
चाय के ठेले पर काम करने का मालिक उसे क्या देते थे?
उत्तर:
चाय के ठेले पर काम करने का मालिक उसे जेब खर्च के रूप में पर्याप्त रुपया देते थे।
प्रश्न 4.
मनोहर के लिए पिता तुल्य कौन थे?
उत्तर:
मनोहर के मालिक उसके लिए पिता तुल्य थे।
(3)
मनोहर के चेहरे पर अपार संतोष, कृतज्ञता और आत्मविश्वास तीनों एक साथ दिखाई दिए। बीते हुए समय के प्रति कृतज्ञता, वर्तमान के प्रति अपार संतोष और भविष्य के प्रति आशावादिता ही तो थी यह।
मुझे लगा, एक मनोहर ही नहीं ! ऐसे अनेक मनोहर देश के कोने कोने में अपने जीवन को सँवारने में लगे हैं। मनोहर मेरे लिए भारत के सुखद भविष्य का पर्याय बन गया है।
प्रसंग—प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘मनोहर’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. राकेश तैलंग हैं। इन पंक्तियों में लेखक को मनोहर के रूप में देश का भविष्य दिखायी दे रहा था।
व्याख्या/भावार्थ—लेखक को मनोहर के चेहरे पर बहुत अधिक संतोष, कृतज्ञ होने का भाव और आत्मविश्वास तीनों एक साथ दिखायी दे रहे थे। उसको देखकर लग रहा था कि वह अपने बीते हुए समय के प्रति कृतज्ञता के भाव, वर्तमान के प्रति अपार संतोष और भविष्य के प्रति आशावादिता थी। लेखक को लगा कि एक मनोहर ही नहीं ऐसे बहुत से बच्चे देश में अलग-अलग जगहों पर अपना जीवन बनाने में लगे हुए हैं। मनोहर लेखक के लिए भारत के एक सुखद भविष्य का उदाहरण बन चुका था।
प्रश्न 1.
लेखक को मनोहर के चेहरे पर क्या दिखायी दिया?
उत्तर:
लेखक को मनोहर के चेहरे पर अपार संतोष, कृतज्ञता और आत्मविश्वास तीनों एक साथ दिखाई दिए।
प्रश्न 2.
मनोहर लेखक के लिए क्या बन गया था?
उत्तर:
मनोहर लेखक के लिए भारत के सुखद भविष्य का पर्याय बन गया था।
प्रश्न 3.
बीते हुए समय के प्रति मनोहर के चेहरे पर क्या था?
उत्तर:
बीते हुए समय के प्रति मनोहर के चेहरे पर कृतज्ञता थी।
प्रश्न 4.
मनोहर के मन में भविष्य के प्रति क्या था?
उत्तर:
मनोहर के मन में भविष्य के प्रति आशावादिता थी।
