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RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 13 भारत की मनस्विनी महिलाएँ

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 13 भारत की मनस्विनी महिलाएँ

Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 13 भारत की मनस्विनी महिलाएँ (पत्र)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठ से
उच्चारण के लिए

ब्रह्मवादी, शुभाशीर्वाद, वैविध्य, आध्यात्मिक।
उत्तर:
संकेत–विद्यार्थी स्वयं उच्चारण करें।

सोचें और बताएँ

प्रश्न 1.
किरण ने अपने पत्र में क्या पूछा था?
उत्तर:
किरण ने अपने पत्र में भारत की मनस्विनी नारियों के विषय में पूछा था।

प्रश्न 2.
‘मनुष्य’ जैसा सोचता है, वैसा ही बनता है, कैसे?
उत्तर:
मनुष्य जैसा सोचता है अथवा जिसके बारे में सोचता है उसके अच्छे गुण भी मन में अनचाहे ही आ जाते हैं और उन गुणों के माध्यम से उसका भविष्य उज्ज्वल होता जाता है। इसलिए कह सकते हैं कि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बनता भी है।

प्रश्न 3.
विवेकानंद जी के गुरु का नाम बताइए।
उत्तर:
विवेकानंद जी के गुरु का नाम स्वामी रामकृष्ण परमहंस था।

लिरवें
बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
नारी जाति के प्रति पुरुष वर्ग ने श्रद्धा-सम्मान प्रकट किया है, क्योंकि
(क) नारी पुरुष से अधिक बुद्धिमती होती है।
(ख) वह रसोई का काम अधिक करती है।
(ग) पुरुष नारी से डरता है।
(घ) उसने भारतीय सभ्यता के विकास में विशेष योगदान दिया है।
उत्तर:
1. (घ)

खाली जगह भरिए

प्रश्न 1.
रामकृष्ण परमहंस की पत्नी……………….. को भी भूला नहीं जा सकता।

प्रश्न 2.
पार्वती जिसने……………..के घर जन्म लिया।

उत्तर:
1. माँ शारदामणि
2. हिमाचल।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यह पत्र किसने किसको लिखा है?
उत्तर:
यह पत्र बाबा ने पोती को लिखा है।

प्रश्न 2.
किरण दादाजी से क्या जानना चाहती थी?
उत्तर:
किरण दादाजी से भारत की मनस्विनी महिलाओं के बारे में जानना चाहती थी।

प्रश्न 3.
कील के स्थान पर उँगली किसने लगाई थी?
उत्तर:
कील के स्थान पर उँगली कैकेयी ने लगाई थी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबा ने अपने पोते-पोतियों को बधाई क्यों भेजी है?
उत्तर:
परीक्षा में सफल होने पर बाबा ने पोते-पोतियों को बधाई भेजी है।

प्रश्न 2.
विद्वत्ता के क्षेत्र में किस की महिमा आज भी गाई जाती है?
उत्तर:
विद्वत्ता के क्षेत्र में गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों की महिमा आज भी गाई जाती है।

प्रश्न 3.
शिव तत्व क्या है? पाठके आधार पर लिखिए।
उत्तर:
शिव संपूर्ण जीव-जगत् के लिए कल्याण तत्व हैं। उनके यहाँ मानव-दानव, सुर-असुर, दैत्य-गंधर्व सब एक समान आश्रय पाते हैं। वहाँ साँप-बिच्छू, मूषक और मयूर सब एक साथ सानंद विचरण करते हैं। इसके अलावा शिव वह तत्व भी है जो विषय-वासना को भस्म करने की क्षमता रखता है।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पाठ में आई मनस्विनीं महिलाओं को सूचीबद्ध कर उनका संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर:
पाठ में निम्नलिखित महिलाओं के नाम आए हैं, इनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है
पार्वती- भगवान शिव की अर्धांगिनी, जिन्होंने विरक्त शिव को संसार के कल्याण के लिए तैयार किया। इनकी माँ का नाम मैना तथा पिता हिमाचल थे।
सावित्री- सत्यवान की पत्नी। इन्होंने अपने पतिव्रत धर्म के तेज से अपने पति के प्राण यमराज से वापस पाये थे।
अनुसूया- सती स्त्रियों में अग्रगण्य। महर्षि अत्रि की पत्नी। परीक्षा लेने आए तीनों देवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को नन्हे शिशु बना दिये।
मदालसा- ब्रह्म ज्ञान की विदुषी। इन्होंने अपने सभी पुत्रों को पालने में लोरी गा-गाकर ब्रह्मवादी बना दिया था।
गार्गी और मैत्रेयी- वेद-ज्ञान की विदुषी महिलाएँ, शास्त्रार्थ में इन्होंने बड़े-बड़े ज्ञानियों को परास्त किया।
कैकेयी- दशरथ की वीर पत्नी। इन्होंने देवासुर संग्राम में दशरथ की सहायता की।
सीता- भगवान राम की अर्धांगिनी। राजा जनक की पुत्री। इन्होंने अपने जीवन चरित्र से विश्व-महिलाओं को धर्म का पाठ पढ़ाया।
रानी भवानी, अहिल्याबाई, लक्ष्मीबाई- इन महिला-त्रयी को श्रेष्ठ व न्यायप्रिय प्रशासिका व वीरांगना के रूप में जाना जाता है।
शारदा मणि- रामकृष्ण परमहंस की सहधर्मिणी। रामकृष्ण की साधना को सफल करने में और विवेकानंद को गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 2.
“मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बनता है।” इस कथन के प्रमाण में जानकारी प्राप्त कर उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बनता है”, इस कथन का तात्पर्य यह है कि कुछ बनने से पहले वह प्रक्रिया विचार के स्तर पर फलीभूत होती है, जैसे महात्मा गाँधी जब लंदन में पढ़ने गए थे तो अंग्रेजों की जीवन-शैली से बहुत प्रभावित हो गए थे और वे वैसा ही बनना चाहते थे। परिणाम यह हुआ कि उन्होंने मन में चल रही इच्छाओं को कार्य रूप में परिणत करना आरंभ कर दिया। वे अंग्रेजी भाषा, पियानो बजाना और उन्हीं की भाँति डांस करना सीखने लगे तथा कपड़े भी वैसे ही पहनने लगे। किंतु वही गाँधी जब ब्रिटिश शासकों के व्यवहार से क्षुब्ध हुए तो उनकी जीवन-शैली ही नहीं बल्कि विदेश में बने कपड़ों को भी त्याग दिया तथा उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए विराट आंदोलन खड़ा कर दिया। इसलिए कह सकते हैं कि मनुष्य का विचार ही उसे गढ़ता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
“तुमने गौरी का नाम सुना है। उसने हिमाचल के घर जन्म लिया था।” दूसरे वाक्य में गौरी के स्थान पर “उसने” शब्द का प्रयोग किया गया है।
उत्तर:
संज्ञा के स्थान पर काम आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। सर्वनाम के छह भेद होते हैं।

प्रश्न 2. प्रत्येक सर्वनाम का प्रयोग करते हुए दो-दो वाक्य अपने शिक्षक/शिक्षिका की सहायता से लिखिए।
उत्तर:
(क) पुरुषवाचक सर्वनाम- मैं स्कूल में खेलने का भी आनंद लेता हूँ। खेल की कक्षा में हम खूब खेलते हैं।
(ख) निश्चयवाचक सर्वनाम- वह कविता पढ़ता है। वे लोग साथ में पढ़ते हैं।
(ग) अनिश्चयवाचक सर्वनाम- कुछ बच्चे झूल रहे हैं। उसमें कोई एक बच्चा बहुत छोटा है।
(घ) संबंधवाचक सर्वनाम- जो लोग पढ़ेंगे वे आगे बढ़ेंगे। जिसकी आदतें अच्छी होती हैं उसको लोग प्यार करते हैं।
(ङ) प्रश्नवाचक सर्वनाम- कौन है जो आज गाँधी जी को नहीं जानता है! मोहन कहाँ जा रहा है?
(च) निजवाचक सर्वनाम-मैं अपना काम स्वयं करती हूँ। मुरारी अपने आप ही बड़वड़ा रहा था।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए शब्दों का वचन बदलकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए
उत्तर:
उँगली- उँगलियाँ
तैयारी- तैयारियाँ
ताली- तालियाँ
देवियों- देवी
जिम्मेदारियाँ- जिम्मेदारी
स्वाभिमानियों- स्वाभिमानी

पाठसे आगे

प्रश्न 1.
देवासुर संग्राम की अंतर्कथा जानिए।
उत्तर:
देवासुर संग्राम की कथा के अनेक रूप में हमारे देश में प्रचलित हैं तथा सभी कथाओं की कहानियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं। सामान्य रूप से जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार देवता और असुर दोनों ही आदि देवता प्रजापति अथवा ब्रहमा की संतान थे। दोनों में अपने अधिकारों को लेकर लड़ाइयाँ होती रहती थीं। एकबार देवासुर संग्राम के अवसर पर राजा दशरथ कैकेयी को साथ लेकर इंद्र की सहायता के लिए पहुँचे। उस समय दंडकारण्य के भीतर शंबर नाम से प्रसिद्ध एक महामायावी असुर रहता था जिसे देवताओं के समूह भी पराजित नहीं कर पाते थे। उस असुर ने जब इंद्र के साथ युद्ध छेड़ दिया तब दशरथ ने भी असुरों के साथ बड़ी भारी युद्ध किया। परंतु असुरों ने अपने तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रों द्वारा दशरथ के शरीर को बहुत घायल कर दिया जिससे राजा की चेतना लुप्त-सी हो गई। तब सारथि का काम करती हुई कैकेयी ने अपने पति दशरथ को रणभूमि से दूर ले जाकर उनके प्राणों की रक्षा की थी।

इससे संतुष्ट होकर राजा ने कैकेयी से दो वरदान माँगने के लिए कहा परंतु कैकेयी ने आवश्यकता के समय उन वरदानों को माँगने का वचन राजा से ले लिया था। ये वही वरदान थे जिसके कारण राम को वनवास और भरत को अयोध्या का राज मिला था। कुछ कथाओं में थोड़े फर्क के साथ यह मिलता है कि राजा दशरथ के रथ से पहिए की कील निकल गई थी जिसके स्थान पर कैकेयी ने अपनी उँगली लगाकर राजा के प्राणों की रक्षा की थी।

प्रश्न 2.
यदि सीता के स्थान पर आप होते तो राम के वनगमन पर क्या करते लिखिए।
उत्तर:
सीता साधारण मनुष्य नहीं थीं, देवी थीं। अपने आप को सीता के रूप में रखकर देखने पर तो यही लगता है कि एक साधारण मनुष्य होने के नाते हम श्रीराम के वनगमन को बाधित करने के सारे उपाय करते और पहले तो यह चाहते कि राम का वन जाना टल जाए। वन जाना न टलता तो बहुत संभव है कि हम भी सीता की भाँति राम के साथ वन को जाते किंतु कुछ ही दिनों में दबाव डालकर राम को अयोध्या वापस ले जाने का प्रयास करते। बहुत संभव है। कि श्रीराम को इसके लिए तैयार कर लेते कि वन में रहने से बेहतर किसी अन्य राज्य को जीतकर वहाँ के राजा बन जाएँ, बेशक अयोध्या लौटकर न जाएँ।

प्रश्न 3.
इस पाठ में हमने प्राचीन विदुषी महिलाओं के बारे में पढ़ा है। ऐसी ही आधुनिक विदुषी महिलाओं की जानकारी प्राप्त कर लिखिए।
उत्तर:
इस पाठ में हमने प्राचीन भारत की विदुषी महिलाओं के बारे में जाना। इसी प्रकार आधुनिक भारत में भी अनेक विदुषी महिलाएँ हुई हैं जिन्हें पाकर यह देश गौरव का अनुभव करता है। ऐसी महान नारियों में पंडिता रमा बाई, सावित्री बाई फुले, सरोजिनी नायडू, प्रेम माथुर, विजयलक्ष्मी पंडित, अन्ना चांडी, सुचेता कृपलानी, श्रीमती इंदिरा गाँधी, अमृता शेरगिल, एम. फातिमा बीवी तथा कल्पना चावला का नाम महत्वपूर्ण है।

पंडिता रमाबाई और सावित्री बाई फुले ने भारत में स्त्री शिक्षा की अलख जगाई। पंडिता रमाबाई को समाज सेवा के कारण ब्रिटिश शासन के द्वारा सन् 1919 में कैसरए-हिंद सम्मान से सम्मानित किया गया था। भारत कोकिला सरोजिनी नायडू पहली भारतीय महिला थीं जो सन् 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थीं। प्रेम माथुर सबसे पहली बार व्यावसायिक विमान की पायलट बनी थीं। इसी प्रकार विजयलक्ष्मी पंडित यूनाइटेड नेशंस असेम्बली की पहली महिला और पहली भारतीय अध्यक्ष के रूप में विख्यात हैं।

अन्ना चांडी जी सन् 1959 में पहली भारतीय महिला जज बनीं तो न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला जज बनीं। इसी प्रकार सुचेता कृपलानी को पहली महिला मुख्यमंत्री और श्रीमती इंदिरा गाँधी को पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में हम सब अच्छी तरह जानते हैं। अमृता शेरगिल भारत की महान चित्रकार के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जानी जाती हैं। इसी तरह कल्पना चावला भारतीय मूल की पहली ऐसी प्रथम महिला थीं जो अंतरिक्ष में गईं। उपर्युक्त उदाहरणों से यह समझा जा सकता है कि भारत में विदुषी नारियाँ हमेशा से रही हैं और आज भी हैं।

यह भी करें

प्रश्न 1.
आपकी जानकारी में ऐसी महिलाएँ अवश्य होंगी, जिन्होंने समाज के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है। उनका नाम व उसके द्वारा किए गए कार्य की तालिका इस प्रकार बनाइए
उत्तर:

महिलाओं के नाम किए गए कार्य
मेधा पाटेकर (प्रख्यात समाज सेविका) मेधा पाटेकर हमारे देश की प्रसिद्ध समाज सेविका हैं। इन्होंने नर्मदा नदी पर बन रहे सरदार सरोवर बाँध के कारण विस्थापित हजारों लोगों की जीवन रक्षा और उनके अधिकारों के लिए महान आंदोलन चलाया।
सानिया मिर्जा (टेनिस खिलाड़ी) भारत में महिला वर्ग में टेनिस का बहुत प्रचलन नहीं था, उसके बावजूद सानिया मिर्जा ने टेनिस को चुना और उस खेल में अनेक कीर्तिमान स्थापित करके देश का नाम उज्ज्वल किया।
किरण बेदी (पुलिस अफसर) किरण बेदी हमारे देश की अत्यंत ईमानदार और कर्मठ पुलिस अधिकारी के रूप में जानी जाती हैं। इसके अलावा वह समाज के वंचित लोगों के लिए व समाज सेवा का भी कार्य करती हैं।

 

प्रश्न 2.
महिला और पुरुष का समाज के विकास में बराबर महत्व है। इस विषय पर बाल सभा में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
महिला और पुरुष दोनों ही इस प्रकृति की देन हैं इसके बावजूद संसाधनों को अधिक-अधिक हड़पने की लालसा में पुरुषों ने प्राकृतिक रूप-से-स्त्रियों को बराबर का भागीदार मानने से इंकार कर दिया था। पुरुषों ने अपने बाहुबल से इस समाज का उच्च पद हासिल कर लिया और वे ही स्त्रियों के लिए नियम-कानून बनाने लगे जिसके माध्यम से लगातार उन्हें नीचे धकेला जाता रहा। किंतु आधुनिक समाज में सबको पढ़ने-लिखने और प्रतिभा के अनुरूप कार्य करने का मौका मिला है। जब सबको बराबर का अवसर मिलने लगा तो सदियों से बनी-बनाई यह अवधारणा अपने-आप ही टूटने लगी कि पुरुष महिलाओं से श्रेष्ठ हैं।

आज सभी मानते हैं कि स्त्रियाँ किसी भी स्तर पर पुरुषों से कम नहीं हैं। प्राकृतिक स्तर पर अंतर होने का मतलब यह कतई नहीं है कि पुरुष श्रेष्ठ है या महिला श्रेष्ठ है। आज समय की ज़रूरत है कि महिला और पुरुष साथ मिलकर अपना और देश तथा पूरे संसार के विकास में अपना योगदान दें। आज के समय में इस स्पर्धा का कोई अर्थ नहीं है कि श्रेष्ठ कौन है? सच तो यह है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। साथ-साथ कार्य करके ही दोनों अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं
(क) काली
(ख) सरस्वती
(ग) लक्ष्मी
घ) पार्वती

प्रश्न 2.
संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं
(क) सरस्वती
(ख) पार्वती
(ग) लक्ष्मी
(घ) दुर्गा

प्रश्न 3.
किस देवी को विद्या की देवी माना जाता है?
(क) काली
(ख) लक्ष्मी
(ग) सीता
(घ) सरस्वती।

प्रश्न 4.
माता अनुसूया के पति का नाम था
(क) सत्यवान
(ख) महर्षि अत्रि
(ग) स्वामी रामकृष्ण परमहंस
(घ) इनमें से कोई नहीं।

उत्तर:
1. (क)
2. (ग)
3. (घ)
4. (ख)

रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए

प्रश्न 1.
गौरी……………..की पुत्री थी। (हिमाचल, अत्रि)

प्रश्न 2.
यमराज के फंदे से अपने पति को छुड़ाने वाली महिला का नाम……………. है (सावित्री, गार्गी)

प्रश्न 3.
………………… ने अपने पुत्रों को लोरियाँ सुनाकर ब्रहमवादी बना दिया। (मैत्रेयी, मदालसा)

प्रश्न 4.
राजा दशरथ………………. संग्राम में अपनी रानी कैकेयी को साथ ले गए थे। (महाभारत, देवासुर)

उत्तर:
1. हिमाचल
2. सावित्री
3. मदालसा
4. देवासुर

अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किनके पति को गार्हस्थ्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं था?
उत्तर:
माँ शारदामणि के पति स्वामी रामकृष्ण को गार्हस्थ्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं था।

प्रश्न 2.
रामकृष्ण परमहंस के विश्व-प्रसिद्ध शिष्य का नाम क्या है?
उत्तर:
ामकृष्ण परमहंस के विश्व-प्रसिद्ध शिष्य का नाम स्वामी विवेकानंद है।

प्रश्न 3.
रानी लक्ष्मीबाई का नाम किस युग की वीर महिला के रूप में लिया जाता है?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई का नाम आधुनिक युग की वीर महिला के रूप में लिया जाता है।

प्रश्न 4.
रावण ने किसका अपहरण किया था?
उत्तर:
रावण ने सीता का अपहरण किया था।

प्रश्न 5. लव-कुश जैसे वीर पुत्रों की माता का क्या नाम था?
उत्तर:
लव-कुश जैसे वीर पुत्रों की माता का नाम सीता था।

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पत्र लेखक को अपने पोती की जिज्ञासा में क्या दिखाई देता है?
उत्तर:
पत्र लेखक को अपनी पोती की जिज्ञासा में भारतीय नारियों के लिए श्रद्धा दिखाई देती है। लेखक कहता है कि यह बहुत शुभ लक्षण है, क्योंकि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है। आशय यह है कि उसे अपनी पोती की जिज्ञासा में उसका उज्ज्वल भविष्य दिखाई देता है।

प्रश्न 2.
भारतीय नारियाँ किस प्रकार भारतीय सुधी समाज के आगे उच्च आदर्श प्रस्तुत करती आ रही हैं?
उत्तर:
भारतीय नारियाँ अपने त्याग, तपस्या, शौर्य, उदारता, भक्ति, वात्सल्य, जन्मभूमि-प्रेम तथा अध्यात्म चिंतन से सुधी समाज के आगे उच्चादर्श प्रस्तुत करती आ रही हैं।

प्रश्न 3.
“नारी ने ही पुरुष को गृहस्थ और किसान बनाया।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या बताना चाहता है?
उत्तर:
लेखक का मूल उद्देश्य मानव सभ्यता के विकास और प्रसार में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करना है। इसीलिए वह सभ्यता की प्रारंभिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए कहता है कि पुरुष के गृहस्थ बनने में ही नहीं बल्कि किसान बनने में भी नारी की भूमिका है।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः” इस श्लोक के माध्यम से पत्र लेखक अपनी पोती को क्या बताना चाहता है?
उत्तर-:
इस श्लोक के माध्यम से पत्र लेखक सत्यनारायण अपनी पोती किरण को बताना चाहते हैं कि प्राचीनकाल से ही भारत देश में नारियों की प्रतिष्ठा रही है, ऐसा आधुनिक विचारों के प्रसार के बाद ही नहीं हुआ है। लेखक अपनी पोती को मनस्विनी नारियों की चर्चा के माध्यम से देश की गौरव गाथा सुना रहा है और उसी की पुष्टि के लिए उसने अथर्ववेद का उपर्युक्त श्लोक उद्धृत किया है। इस श्लोक के उद्धृत करने के पीछे लेखक का उद्देश्य यह है कि उसकी पोती वैदिक काल की नारियों के बारे में लिखे ऐसे महान श्लोक को पढ़कर अपने देश के लिए गौरव से भर उठे।

प्रश्न 2.
“एक विस्तृत उद्यान में खिले सैकड़ों रूप, रंग और गंधों के हजार-हज़ार सुमनों की भाँति भारत की सन्नारियों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति में विपुल वैविध्य का विधान किया है, उनके प्रत्येक पक्ष को समृद्ध किया है।”इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन में भारतीय नारियों के वैविध्यपूर्ण व्यक्तित्व को रेखांकित किया गया है। भारतीय नारी में यह विविधता प्राचीनकाल से ही दिखाई देती है। वह स्नेहमयी माता है तो प्रेम करने वाली पत्नी हो। इसके अलावा घर के बड़े-बुजुर्गों का भी वह संरक्षण और पोषण करती रही है। इसी के साथ-साथ वह श्रम में भी भागीदारी निभाते हुए पुरुषों को किसान बनने में अर्थात् कृषक संस्कृति विकसित करने में भी अपना योगदान देती रही है। इसके अलावा उसका विदुषी रूप तो गरिमापूर्ण है ही। इसलिए अनेक देवियों की स्थापना और पूजा करके पुरुष समाज ने नारियों का उचित आभार ही स्वीकार किया है।

कठिन शब्दार्थ-
मनस्विनी = बुद्धिमान स्त्री, उच्च विचार वाली स्त्री। अधिष्ठात्री = प्रधान, मुखिया, देवी। सस्नेह = प्रेम सहित। अनुज = छोटा भाई। जिज्ञासा = जानने की इच्छा, ज्ञान प्राप्त करने की कामना, प्रश्न। शुभ = अच्छा, भला, उत्तम, कल्याणकारी। लक्षण = गुण। सद्गुण = अच्छे गुण। समावेश = एक साथ या एक जगह रहना, एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ के अन्तर्गत होना। स्वतः = अपने आप। प्रशस्त = प्रशंसनीय, सुंदर, श्रेष्ठ, भव्य, विस्तीर्ण, लंबा-चौड़ा। कर्मठती = परिश्रमी, काम करने में कुशल। सहिष्णुता = सहनशीलता। कीर्ति = ख्याति, यश। वाङ्मय = साहित्य विद्यमान = उपस्थित, मौजूद। सात्विक = सत्वगुण वाला, सत्वगुण से उत्पन्न। स्निग्ध = जिसमें स्नेह या प्रेम हो। निर्वहन = निर्वाह, गुजर-बसर। विपुल = विस्तार, संख्या या परिमाण में बहुत अधिक, बड़ा। जाज्वल्यमान = प्रज्वलित, दीप्तिमान, तेजस्वी। विमुख = जिसने किसी बात से मुँह फेर लिया हो, जिसे परवाह न हो, उदासीन। पातिव्रत्य = सतीत्व, पतिव्रता होने का भाव। तज्जनित = उससे उत्पन्न शास्त्रार्थ = तर्क-वितर्क, बहस, वाद-विवाद। विरथ = बिना रथ के, रथ विहीन। सांसत = दम घुटने जैसा कष्ट, बहुत अधिक कष्ट, झंझट। अश्वमेध = एक प्राचीन यज्ञ जिसमें राजा द्वारा मस्तक पर जय-पत्र बाँधकर छोड़ा हुआ एक घोड़ा मार्ग रोकने वालों को पराजित करते हुए दुनिया भर में घुमाया जाता था। घोड़े के सुरक्षित लौट आने पर उसका स्वामी (राजा) अपने को सम्राट घोषित कर उस घोड़े की बलि देकर यज्ञ करता था। यह बहुत महान यज्ञ माना जाता था। मनोरथ = अभिलाषा, इच्छा।

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) भारतीय नारियाँ अनादि काल से ही अपनी विद्या, बुधि, कला-कुशलता, कर्मठता तथा सहिष्णुता के आधार पर मानव जीवन और जगत को अधिकाधिक सुखमय बनाने का सफल प्रयास करती हैं। साथ ही अपने त्याग, तपस्या, शौर्य, उदारता, भक्ति, वात्सल्य, जन्मभूमि प्रेम तथा अध्यात्म चिंतन से सुधी समाज के सम्मुख उच्चादर्श भी प्रस्तुत करती आ रही हैं। इनके कीर्ति कलाप से आज भी समस्त भारतीय वाङ्मय सुरभित है। हमारे पूर्वजों ने नारी को सदा पूजनीया माना है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ कहकर उन्होंने नारी-जाति को श्रद्धापूर्वक सम्मान किया है।

संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के भारत की मनस्विनी महिलाएँ’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ पत्र-शैली में रचित है जिसमें बाबा की ओर से पोती को पत्र लिखकर इस देश की मनस्विनी महिलाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

व्याख्या-
प्रस्तुत गद्यांश में पत्र लेखक ने भारतीय नारियों का गौरव-गान करते हुए कहा है कि भारत की नारियाँ सभ्यता के प्रारंभ से ही अपनी महानता को प्रमाणित करती आई हैं। उन्होंने अपनी विद्या, बुधि, कला-कुशलता, कर्मठता तथा सहिष्णुता के माध्यम से इस संसार को सुखमय और अर्थपूर्ण बनाने का प्रयास किया है। कहने का आशय यह है कि नारियाँ कभी भी कमजोर या केवल दूसरों की करुणा पर जीवनयापन करने वाली नहीं रही हैं। जिन कार्यों को सदियों तक पुरुषों के योग्य माना जाता रहा है, जैसे कि विद्वत्ता, बुद्धिमत्ता तथा कर्मठता आदि, इन कार्यों में महिलाओं ने सभ्यता के प्रारंभ से ही अपनी योग्यता प्रमाणित की है। यही कारण है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी इनकी महिमा का बखान मिलता है। इनके बारे में तो यहाँ तक कहा गया है कि जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है। आशय यह है कि सभ्य और धर्मसम्मत समाज में नारियाँ प्रतिष्ठित होती हैं। इसलिए नारियों को किसी भी दृष्टिकोण से पुरुषों से कमतर नहीं समझना चाहिए। स्त्री और पुरुष, दोनों से ही बेहतर समाज का निर्माण संभव है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय नारियों ने अपनी विद्वत्ता और कर्मठता से इस जगत को कैसा बनाने में सहयोग दिया है?
उत्तर:
भारतीय नारियों ने अपनी विद्वत्ता और कर्मठता से इस जगत को सुखमय बनाने में सहयोग दिया है।

प्रश्न 2.
भारतीय वाङमय में नारियों के किन रूपों का चित्रण हुआ है?
उत्तर:
भारतीय वाङ्मय में नारियों को विदुषी, बुद्धिमती, विद्या की देवी, परम शक्तिशाली योद्धा, संसार के मंगल हेतु समर्पित तपस्विनी, पतिव्रता, पुत्र के प्रति वात्सल्य से भरपूर स्त्री आदि अनेक रूपों में दिखलाई पड़ती हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय वाङ्मय में प्रतिष्ठित चारों वेद कौन कौनसे हैं?
उत्तर:
भारतीय वाङ्मय में प्रतिष्ठित चारों वेदों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद

प्रश्न 4.
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’गद्यांश में उद्धृत यह श्लोक कहाँ से लिया गया है?
उत्तर:
उपर्युक्त श्लोक भारतीय वाङ्मय के अमूल्य धरोहर चारों वेदों में से एक अथर्ववेद से लिया गया है।

(2) नारी जाति के प्रति पुरुष वर्ग का यह श्रद्धा-सम्मान भरा आचरण अकारण नहीं, प्रत्युत सकारण है। नारी ने ही पुरुष को गृहस्थ और किसान बनाया। उसका यह प्रयत्न मानव सभ्यता तथा संस्कृति के भवन की नींव की पहली शिला प्रमाणित हुआ। स्वयं गार्हस्थ्य जीवन के केंद्र में स्थिर-स्थित रहकर भारतीय नारी ने बड़े-बूढ़ों की सेवा की, नन्हें-मुन्नों को पाला-पोसा और पति के कंधे से कंधा मिलाकर पारिवारिक दायित्व का स्निग्ध निर्वहन किया। एक विस्तृत उद्यान में खिले सैकड़ों रूप, रंग, गंधों के हज़ार-हज़ार सुमनों की भाँति भारत की सन्नारियों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति में विपुल वैविध्य का विधान किया है, उनके प्रत्येक पक्ष को समृद्ध किया है। यह भारतीय पुरुष वर्ग का केवल आभार-स्वीकार है कि उसने शक्ति, संपत्ति और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवियों के रूप में काली, लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिष्ठा कर रखी है और उनका पूजन-आराधना कर वह आज भी धन्य हो रहा है।

संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक भारत की मनस्विनी महिलाएँ’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस गद्यांश में यह बताया गया है कि आज स्त्री को जो सम्मान देने की बात जोर-शोर से की जाती है वह अकारण नहीं है।

व्याख्या-
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक लिखता है कि पुरुष वर्ग के बीच से आज महिलाओं को सम्मान और अधिकार देने की जो बात की जाती है वह अकारण नहीं है। महिलाओं ने ही पुरुषों के वैवाहिक जीवन में भागीदारी निभाकर एक गृहस्थ बनाया है। इसके अलावा सभ्यता के प्रारंभ में खेती के कामों में भी महिलाओं का श्रम शामिल रहा है और इस प्रकार उन्होंने पुरुषों को किसान बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मानव-सभ्यता तथा संस्कृति की पहली मज़बूत शिला रखी थी। इसके अलावा वह परिवार के केंद्र में रहकर बच्चे पैदा करने, उनका पालन-पोषण करने और उन्हें अच्छे गुणों से परिपूर्ण करके बेहतर समाज के निर्माण में तो उत्कृष्ट सहयोग दिया ही, समाज के वृद्धों का भी पालन-पोषण कर उनके जीवन का गौरव बढ़ाया है। इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय नारियों ने हमारी संस्कृति के निर्माण और विकास में मुख्य भूमिका निभाई है। इस लिहाज से देखा जाए तो देवियों के रूप में नारियों की प्रतिष्ठा और उनकी पूजा केवल आभार-प्रदर्शन है। नारियों ने इस सभ्यता के निर्माण और विकास में जो भागीदारी निभाई है उसका सही प्रतिदान तो उन्हें बराबरी का अधिकार देना ही हो सकता है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार नारी ने पुरुषों को क्या-क्या बनाया है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार नारी ने पुरुषों को गृहस्थ और किसान बनाया है।

प्रश्न 2.
लक्ष्मी को किस तरह की देवी माना गया है?
उत्तर:
लक्ष्मी को संपत्ति की देवी माना गया है।

प्रश्न 3.
विद्या की देवी कौन हैं?
उत्तर:
विद्या की देवी माँ सरस्वती हैं।

प्रश्न 4.
मानव सभ्यता और संस्कृति के भवन की नींव की पहली शिला किसे माना गया है?
उत्तर:
मानव सभ्यता और संस्कृति के भवन के नींव की पहली शिला पुरुष के गृहस्थ और किसान बनने को माना गया है।

(3) राजा दशरथ की रानी कैकेयी की सूझ-बूझ और वीरता तो जगजाहिर ही है। देवासुर संग्राम में राजा दशरथ के रथ की कील निकल गई थी। यदि रथ का पहिया निकल जाता, तो पता नहीं क्या हो जाता राजा दशरथ विरथ होकर पराजित भी हो सकते थे। जानते हो, कैकेयी ने क्या किया। वह राजा के साथ उसी रथ में थी, उसने कील के स्थान पर उँगली लगा दी। रथ चलता रहा। युद्ध होता रहा। विजय राजा की हुई। तब उनका ध्यान गया कैकेयी की ओर, उसकी उँगली की ओर। वे सब कुछ समझ गए। उन्होंने रानी का आजीवन आभार माना।

संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के भारत की मनस्विनी महिलाएँ’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस गद्यांश में एक अन्य वीरांगना स्त्री राजा दशरथ की रानी कैकेयी के बारे में बताया गया है।

व्याख्या-
उपर्युक्त गद्यांश में बताया गया है कि देवासुर संग्राम में राजा दशरथ की विजय कैकेयी की सूझ-बूझ और साहस का नतीजा थी। उस युद्ध में राजा दशरथ के साथ रणभूमि में कैकेयी भी गई थी। जब संग्राम जोरों पर था तो उसी समय राजा दशरथ के रथ से पहिए की कील निकल गई। रानी कैकेयी ने बिना कोई मौका नँवाए उस कील की जगह पर अपनी उँगली लगा दी और रथ का पहिया निकलने से बच गया। अगर रानी ने उँगली नहीं लगाई होती तो पहिया रथ से निकल जाता और बड़ी दुर्घटना भी हो सकती थी। जिस नारी को अबला और कोमल माना जाता है वह युद्ध भूमि में जाती थी और विजय का निमित्त भी बनती थी। कहना न होगा कि राजा दशरथ ने रानी का आभार जीवन-भर माना।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
राजा दशरथ की किस रानी ने सूझ-बूझ और वीरता का परिचय दिया था?
उत्तर:
राजा दशरथ की दूसरी रानी कैकेयी ने सूझ-बूझ और वीरता का परिचय दिया था।

प्रश्न 2.
राजा दशरथ की कितनी रानियाँ थीं?
उत्तर:
राजा दशरथ की तीन रानियाँ -कौशल्यो, कैकेयी और सुमित्रा।

प्रश्न 3.
राजा दशरथ ने किस का आभार आजीवन माना?
उत्तर:
राजा दशरथ ने कैकेयी का आभार जीवनभर माना।

प्रश्न 4.
दशरथ कैकेयी को साथ लेकर कहाँ गए थे?
उत्तर:
देवासुर संग्राम में भाग लेने दशरथ कैकेयी के साथ गए थे।

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