RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 7 बस की यात्रा
RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 7 बस की यात्रा
Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 7 बस की यात्रा (व्यंग्य-लेख)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
पाठ से
सोचें और बताएँ
प्रश्न 1.
लेखक व उसके मित्र ने क्या तय किया?
उत्तर:
लेखक व उसके मित्र ने शाम की बस से पन्ना पहुँचने का निश्चय किया।
प्रश्न 2.
लोगों ने बस के लिए क्या सलाह दी?
उत्तर:
लोगों ने सलाह दी कि इस बस से जाना समझदारी नहीं है। वे लोग उस बस के सारे हालात को जानते थे।प्रश्न 3.
लेखक व उसके मित्र सुबह घर क्यों पहुँचना चाहते थे?
उत्तर:
लेखक के मित्रों को सुबह काम पर जाना था इसलिए वे सुबह घर पहुँचना चाहते थे।
लिखें
बहुविकल्पी प्रश्न
प्रश्न 1.
समझदार आदमी के शाम वाली बस से सफर नहीं करने की वजह थी
(क) खराब रास्ता
(ख) डाकुओं का आतंक
(ग) अधिक किराया
(घ) खटारा बस
प्रश्न 2.
बस को देखकर लेखक के मन में भाव उमड़ा
(क) दया का
(ख) श्रद्धा का
(ग) प्रेम का
(घ) घृणा का।
उत्तर:
1. (घ)
2. (ख)
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. बस कैसी थी?
उत्तर:
बस बहुत पुरानी और जर्जर हालत में थी।
प्रश्न 2.
बस के काँचों की क्या हालत थी?
उत्तर:
बस की खिड़कियों के अधिकतर काँच टूटे हुए थे।
प्रश्न 3.
रवाना होने के बाद बस पहली बार क्यों रुकी?
उत्तर:
रवाना होने के बाद पेट्रोल की टंकी में छेद हो जाने के कारण बस पहली बार रुकी।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक व उसके मित्रों को छोड़ने आने वालों के चेहरे पर कौन-से भाव थे?
उत्तर:
उन लोगों के चेहरों पर ऐसे भाव थे मानो वे लेखक और उसके मित्रों को अंतिम विदाई देने आए थे। उनकी आँखों में लेखक और उसके मित्रों के प्रति सहानुभूति और करुणा के भाव दिख रहे थे। उनको लग रहा था कि वह यात्रा लेखक और मित्रों की अंतिम यात्रा हो सकती थी। कोई दुर्घटना हो जाने का उनको पूरा अंदेशा था। एक संसार से विदा होते व्यक्ति को देखकर जैसे भाव लोगों के मन में उठते हैं, वैसे ही भाव उनके चेहरों और आँखों से झाँक रहे थे।
प्रश्न 2.
“मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धा भाव से देखा।” लेखक के मन में यह भाव क्यों जागा?
उत्तर:
हिस्सेदार बस में लगे टायरों की बुरी हालत को जानता था। सारे टायर घिसे हुए और पंक्चरों से भरे थे। इतने पर भी वह उसे खतरनाक बस से सफर कर रहा था। उसके साथ कभी भी कोई हादसा हो सकता था। उसकी हिम्मत देखकर ही लेखक के मन में श्रद्धा का भाव जागा होगा। श्रद्धाभाव जागने की बात एक व्यंग्य है, वास्तविकता नहीं है।
प्रश्न 3.
लेखक को ऐसा क्यों लगा जैसे सारी बस ही इंजन है?
उत्तर:
जब इंजन स्टार्ट हुआ तो सारी बस ही उसके चलने से खड़खड़ाने लगी। बस को हर हिस्सा हिल रहा था। बैठने वालों के शरीर और उनकी सीटें भी हिल रही। हर सवारी को ऐसा लग रहा था कि मानो इंजन उनकी सीट के नीचे ही चल रहा था। इस प्रकार वह जीर्ण-शीर्ण हिस्सों वाली सारी बस ही इंजन के साथ काँप रही थी और आवाज कर रही थी। लग रहा था कि पूरी बस ही इंजन है।।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक रास्ते में आने वाले पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था ?
उत्तर:
बस के पहली बार रुकने और नली द्वारा इंजन को तेल दिए जाने की घटना से लेखक को बस के किसी भी हिस्से पर ठीक से काम करने का भरोसा नहीं रहा। उसे लगने लगा कि ब्रेक कभी भी फेल हो सकते हैं। स्टेयरिंग टूट सकता था। इसी कारण उसे हर पेड़ से बस के टकरा जाने की शंका होने लगी। ब्रेक और स्टेयरिंग के बिना बस को मोड़ना या बचाना संभव नहीं था। इसीलिए वे हरे-भरे पेड़ उसको प्रसन्न करने के बजाय अपनी जान के दुश्मन नजर आ रहे थे।
प्रश्न 2.
“गजब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।” लेखक को बस के अपने आप चलने पर हैरानी क्यों हुई?
उत्तर:
बस की पुरानी और जर्जर हालत देखकर लेखक को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह चलती भी होगी। उसने बस कंपनी के हिस्सेदार से पूछा भी कि बस चलती है कि नहीं? हिस्सेदार ने कहा कि बिल्कुल चलती थी और चलेगी। इस पर लेखक ने फिर पूछा कि क्या बस अपने आप बिना धक्का दिए चलेगी ? हिस्सेदार ने फिर विश्वासपूर्वक कहा कि वह अपने आप ही चलेगी। यह सुनकर लेखक को बड़ा आश्चर्य हुआ। ऐसी खटारा, जीर्ण-शीर्ण बस स्टार्ट होकर अपने आप चल सकती थी, इस बात पर लेखक विश्वास नहीं कर पा रहा था।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का अर्थ लिखकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए
अवज्ञा, इत्मीनान, क्रांतिकारी, हिस्सेदार, प्रयाण।
उत्तर:
(क) अवज्ञा = नियम को तोड़ना, न मानना = गुरुजी ने कहा, अनुशासन की अवज्ञा नहीं करनी चाहिए।
(ख) इत्मीनान = विश्वास = उसके प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने की बात पर मुझे इत्मीनान नहीं हो रहा था।
(ग) क्रांतिकारी = अन्याय और अत्याचार का विरोधी = भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल आदि महान क्रांतिकारी थे।
(घ) हिस्सेदार = जिसका मकान, जमीन, व्यापार या कंपनी में हिस्सा हो = इस मकान में पाँच लोग हिस्सेदार हैं।
(ङ) प्रयाण = जाना = तीर्थयात्री सायं पाँच बजे बस से प्रयाण करेंगे।
प्रश्न 2.
‘आया है सो जायेगा, राजा, रंक फकीर।’ एक लोकोक्ति है। हम आपसी बातचीत में अक्सर ऐसी लोकोक्तियों का प्रयोग करते हैं। शिक्षक/शिक्षिका की मदद से ऐसी कुछ लोकोक्तियों को कॉपी में लिखकर उनके अर्थ जानिए।
उतर:
1. आप भला तो जग भला-अच्छे व्यक्ति के लिए सभी अच्छे होते हैं।
2. नाच न जाने आँगन टेढ़ा-अपनी कमी दूसरों पर थोपना।
3. चिराग तले अँधेरा-वहाँ अपराध होना जहाँ उसे रोकने की व्यवस्था हो ।
4. थोथा चना बाजे घना-ओछा व्यक्ति अधिक डींग हाँकता
5. घाट-घाट का पानी पीना-बहुत अनुभवी होना।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए
(क) आगे-पीछे करना
(ख) जान हथेली पर रखना।
उत्तर:
(क) आगे-पीछे करना = झिझकना, आगे न बढ़ना = जब घर में घुसे चोरों का सामना करने की बात आई तो लोग आगे-पीछे करने लगे। कोई आगे न बढ़ा।
(ख) जान हथेली पर रखना = प्राण जाने की परवाह न करना = भारतीय सैनिक जान हथेली पर रखकर शत्रुओं का सामना करते हैं।
प्रश्न 4.
श्रद्धा शब्द का वर्तनी विश्लेषण- श् + र् + अ + द् + ध् + आ है। आप भी निम्नलिखित शब्दों का वर्तनी विश्लेषण कर लिखिए
क्षीण, प्रयाण, उत्सर्ग, वृद्धावस्था
उत्तर:
क्षीण- क्ष् + ई + ण् + अ
प्रयाण- प् + र् + अ + य् + आ + ण् + अ
उत्सर्ग- उ + तु + सु + अ + र + ग + अ
वृद्धावस्था- व् + ऋ + द् + ध् + आ + व् + अ + स् + थ् + आ
पाठ से आगे
प्रश्न 1.
सविनय अवज्ञा व असहयोग आंदोलन के नेतृत्वकर्ता कौन थे? इन आंदोलन का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा तथा असहयोग आंदोलनों का नेतृत्व महात्मा गाँधी ने किया था। इन आंदोलनों का उद्देश्य अंग्रेजी सरकार द्वारा लागू किए गए अनुचित कानूनों का विरोध करना, किसानों को सुविधाएँ दिलाना और जनता में अपने अधिकारों के लिए जागरूकता पैदा करना था।
प्रश्न 2.
आपके पास भी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभव होंगे। अपने अनुभवों को लिखिए।
उत्तर:
पिछली गर्मियों में एक रिश्तेदार की शादी में जोधपुर जाना था। हमने सारी तैयारियाँ कर ली थीं। बस रवाना होने के समय पर हम पहुँच गए। बस खड़ी थी। उसमें कुछ यात्री भी बैठे थे। हमने भी अपनी जगह ले ली। थोड़ी देर बाद चालक ने हॉर्न बजा दिया। बचे-खुचे यात्री भी अंदर आ गए। चालक ने बस स्टार्ट करनी चाहा लेकिन उसके काफी प्रयास के बाद भी इंजन स्टार्ट नहीं हुआ। उसने कुछ यात्रियों से उतरकर बस को धक्का देने के लिए कहा। कुछ दूर तक धक्का देने के बाद बस को एक जोर का झटका लगा और इंजन स्टार्ट हो गया।
लेकिन झटका इतना जबरदस्त था कि ऊपर रखा सामान मुसाफिरों के ऊपर गिर पड़ा और सभी मुसाफिर अपने सामने वाली सीट पर जा भिड़े। खैर किसी तरह लोग सँभले और बस चलने लगी। मुश्किल से पंद्रह-बीस किलोमीटर चली होगी कि अचानक एक और झटका लगा और बस खड़ी हो गई। बस जहाँ खड़ी थी वह एक सँकरी-सी पुलिया थी। काफी धक्के लगाने के बावजूद बस ने दें तक नहीं किया। बहुत समय तक प्रयास करने पर भी जब बस नहीं चली तो चालक नीचे उतर गया और सामने से आने वाले वाहन की प्रतीक्षा करने लगा जिससे वह उस वाहन की मदद से बस को चकर पुलिया से बाहर निकलवा सके। इतने में सामने से एक ट्रक को आता देखकर उसने ट्रक को रोका और उसके चालक से बस को खिंचवाने का आग्रह किया।
बस को खींचने का प्रयास चल ही रहा था कि अचानक पीछे से तेज रफ्तार से आ रहे ट्रक ने बस को जोरदार टक्कर मारी। टक्कर से बस तो जरूर आगे बढ़ी लेकिन बस में सवार कई यात्री घायल हो गए और बस के अगले और पिछले हिस्से को भी काफी नुकसान हुआ। गनीमत थी किसी की जान नहीं गई। उस घटना की याद आज भी मैं भूल नहीं पाया हूँ।
यह भी करें
प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई हिंदी के नामी व्यंग्यकार हुए हैं। उन्होंने व्यंग्य विधा को अपनी सशक्त रचनाओं से समृद्ध किया। पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों से परसाई जी की अन्य रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर:
संकेत-छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए यदि बस जीवित प्राणी होती, बोल सकती तो अपनी बुरी हालत व कष्टों को किन शब्दों में प्रकट करती?
उत्तर:
बस यदि जीवित प्राणी होती तो अपनी व्यथा कुछ इस प्रकार प्रकट करती-मैं एक पुरानी जीर्ण-शीर्ण बस हूँ। आज से कोई तीस साल पहले मैं जवान तथा सुंदर थी और मेरी चाल पर सभी फिदा होते थे। मेरा चालक चलने से पहले रोज मुझे फूल-माला से सजाता और इंजन स्टार्ट करने से पहले मुझे प्रणाम करता था। मुझ पर बैठने वाली सवारियाँ भी मेरी बहुत तारीफ किया करती थीं। लेकिन आज मैं बूढ़ी हो गई हूँ। मेरे जीवन में बहुत से चालक आए पर सब एक जैसे नहीं थे। यात्री भी बदलते गए। मेरे मालिक ने भी मेरा खूब शोषण किया। उसने मुझे पैसा कमाने की मशीन समझ लिया। पहले जहाँ मैं दिन भर में दो चक्कर लगाती थी अब मुझे आठ-दस चक्कर लगाने पड़ते हैं।
इससे मेरे पैर फटने लगे हैं और मैं अब उतनी फुर्ती के साथ नहीं चल पाती जितनी मैं अपनी जवानी के दिनों में चला करती थी। पहले मुझे खुराक भी शुद्ध मिला करती थी जिससे मेरा दिमाग व पेट दुरुस्त रहता था। धीरे-धीरे मुझे मिलावटी भोजन दिया जाने लगा। फिर भी मैं अपनी जान पर खेलकर लोगों की सेवा कर रही हूँ। मेरे चालक और मालिक को मेरी इस दशा पर बिलकुल भी तरस नहीं आता। ऐसी हालत में मैं कभी भी कहीं भी दम तोड़ सकती हूँ।
प्रश्न 3.
यातायात के कई साधन होते हैं, जैसे-बस, रेल, वायुयाने, जलयान। आपने कौन-कौनसे साधनों का उपयोग किया है? लिखिए।
उत्तर:
मैंने अब तक बस, रेलगाड़ी, कार, ऑटोरिक्शा, तथा साइकिल आदि का उपयोग किया है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक और मित्रों ने तय किया
(क) सुबह की बस से चलने के लिए।
(ख) अगले दिन चलने के लिए।
(ग) शाम चार बजे की बस से लौटने के लिए
(घ) कुछ दिन और वहीं रहने के लिए।
प्रश्न 2.
इंजन स्टार्ट होने पर लगा
(क) जैसे बस में हवाई जहाज का इंजन लगा है।
(ख) जैसे सारी बस ही इंजन है।
(ग) जैसे बस के सारे हिस्से बिखरने वाले हैं।
(घ) जैसे अब बस पन्ना जाकर ही रुकेगी।
प्रश्न 3.
सड़क किनारे का हर वृक्ष लेखक को लग रहा था
(क) अपना परम मित्र
(ख) बड़ा हरा-भरा
(ग) अपना दुश्मन
(घ) बड़ा मनमोहक।
प्रश्न 4.
टायर पंक्चर हो जाने पर लेखक ने हिस्सेदार को देखा
(क) व्यंग्य के भाव से
(ख) क्रोध के भाव से
(ग) दया के भाव से
(घ) श्रद्धाभाव से।
प्रश्न 5.
घिसा टायर लगाकर बस चली तो लेखक ने छोड़
दी
(क) बस के सही चलने की उम्मीद
(ख) जीवित रहने की उम्मीद
(ग) पन्ना पहुँचने की उम्मीद।
(घ) यात्रियों के सही-सलामत रहने की उम्मीद।
उत्तर:
1. (ग)
2. (ख)
3. (ग)
4. (घ)
5. (ग)
रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्द से कीजिए
प्रश्न 1.
लोगों ने सलाह दी कि………….आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते। (नासमझ/समझदार)
प्रश्न 2.
हमें लग रहा था कि हमारी. …….के नीचे इंजन है। (सीट/गठरी)
प्रश्न 3.
बस का हर हिस्सा दूसरे से………………….कर रहा (सहयोग/असहयोग)
प्रश्न 4.
………………दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी। (नाली/झील)
उत्तर:
1. समझदार
2. सीट
3. असहयोग
4. झील।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लोगों ने लेखक को बस के बारे में क्या सलाह दी?
उत्तर:
लोगों ने कहा कि समझदार लोग उस शाम वाली बस से यात्रा नहीं करते।
प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार बस को क्या ट्रेनिंग मिल चुकी थी?
उत्तर:
लेखक के अनुसार बस को गाँधीजी द्वारा चलाए गए असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों की ट्रेनिंग मिल चुकी थी।
प्रश्न 3.
“सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया था।” लेखक ने यह बात कब कही?
उत्तर:
जब बस दोबारा रुक गई और ड्राइवर के बहुत प्रयत्न करने पर भी नहीं चली।
प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार कंपनी के हिस्सेदार को क्या होना चाहिए था?
उत्तर:
लेखक के अनुसार उसे किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए था।
प्रश्न 5.
लेखक और उसके मित्रों की चिंता कबजाती रही?
उत्तर:
जब बस का हाल देखकर लेखक एवं उसके मित्रों को सही समय पर पन्ना पहुँचने की उम्मीद न रही तो उसने चिंता करना छोड़ दिया।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लेखक ने बस की दशा की तुलना गाँधीजी के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलनों से क्यों की?
उत्तर:
गाँधीजी ने अँग्रेजी सरकार के गलत कानूनों और अन्याय के विरुद्ध असहयोग आंदोलन चलाया। इसमें जनता और कर्मचारियों को सरकारी काम-काज में सहयोग न करने को कहा गया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन कानूनों को शांतिपूर्ण तरीके से तोड़ना था जो जनता के विरुद्ध थे। बस की दशा भी ऐसी ही थी। उसका कोई हिस्सा एक-दूसरे के साथ रहना नहीं चाह रहा था। लगता था कि सारे हिस्से टूटकर अलग हो जाएँगे। बस का बार-बार खराब होकर खड़े हो जाना सविनय अवज्ञा का ही नमूना था। इस तरह बस अपने ऊपर हो रहे अत्याचार और शोषण का शांतिपूर्ण विरोध कर रही थी।
प्रश्न 2.
पेट्रोल की टंकी में छेद हो जाने पर ड्राइवर ने पेट्रोल बाल्टी में भरकर नली से इंजन में पहुँचाने की तरकीब निकाल ली। यहदेखकर लेखक ने मजाक उड़ाने वाली क्या कल्पना की?
उत्तर:
इंजन की हालत और ड्राइवर के जुगाड़ को देखकर लेखक को मन ही मन हँसी आ रही थी। उसने कल्पना की कि अगली बार कोई खराबी आने पर कंपनी के हिस्सेदार अपने लाडले इंजन को अपनी गोद में बिठा लेंगे और उसे नली से उसी प्रकार पेट्रोल पिलाएँगे जैसे माँ छोटे बच्चे को शीशी से दूध पिलाया करती है।
प्रश्न 3.
कंपनी के हिस्सेदार को क्या सचमुच में क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए था या उन पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर:
कंपनी का हिस्सेदार जिस प्रकार तरह-तरह के उपाय करके बस चलाना चाह रहा था, उससे लगता है कि उसे अपनी जान की तनिक भी परवाह नहीं थी। क्रांतिकारी आंदोलन के नेता में भी अपने उद्देश्य को प्राप्त करने का जुनून सवार रहता है वह भी अपनी जान की परवाह नहीं करता पर उसका उद्दश्य नेक और पवित्र होता है। कंपनी के हिस्सेदार का उद्देश्य केवल पैसा कमाना तथा किसी तरह बस चलवाना था, इसलिए यह उस पर व्यंग्य ही है।
प्रश्न 4.
‘बस की यात्रा’ नामक पाठबस यात्रा की आज की हालत पर भी व्यंग्य करता है। क्या आप इससे सहमत हैं? लिखिए।
उत्तर:
‘बस की यात्रा’ पाठ आज की परिस्थितियों में पूर्णतया सार्थक तथा उपयुक्त है, क्योंकि पाठ में जिस तरह की बस का वर्णन है, आज सड़कों पर इस प्रकार की बसें धड़ल्ले से चल रही हैं। उनकी खिड़कियों, सीटों तथा बॉडी का टूटा होना आम बात है। कंपनी के हिस्सेदार की तरह ही इनके मालिकों को यात्रियों की जान एवं समय की कोई चिंता नहीं होती। उनका एकमात्र उद्देश्य होता है अधिक से अधिक पैसा कमाना
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘बस की यात्रा’पाठसे आपको क्या संदेश मिलता है? लिखिए।
उत्तर:
‘बस की यात्रा’ यपि श्री परसाई जी का व्यंग्य लेख 1 है लेकिन यह हम सभी को कुछ गंभीर संदेश भी देता है। समाज में ऐसे भी धन के भूखे लोग हैं जो अपनी कमाई की खातिर रोज सैकड़ों यात्रियों की जिंदगी को दाँव पर लगा रहे हैं। ऐसे लोग समाज के अपराधी हैं। आज सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या के लिए ऐसे लोग भी पूरी तरह जिम्मेदार हैं।
ऐसे जर्जर वाहनों को सड़क पर चलने देने के लिए प्रशासन भी सवालों के घेरे में आता है। आर.टी.ओ. और यातायात पुलिस की मिलीभगत के बिना ऐसे यात्रियों के दुश्मन वाहन नहीं चल सकते। हर जिम्मेदार नागरिक को इन वाहनों का बहिष्कार और विरोध करना चाहिए। ये खटारा वाहन वायु प्रदूषण फैलाने में भी आगे हैं।
कठिन शब्दार्थ-
डाकिन = महिला डाकू। श्रद्धा = आस्था। वयोवृद्ध = बूढ़ी। सदियों = सैकड़ों वर्ष। अनुभव = तजुरबा। कष्ट = तकलीफ। हिस्सेदार = भागीदार। गजब होना = आश्चर्यजनक बात होना। अनुभवी = तजुरबेकार। नवेली = बिल्कुल नई। विश्वसनीय = विश्वास करने योग्य। निमित्त = कारण। अंतिम विदा = आखिरी विदाई। रंक = बहुत गरीब। फकीर = साधु। स्टार्ट = चालू होना। फौरन = तुरंत। सरकना = खिसकना। असहयोग = सहयोग न करना। सविनय = विनयपूर्वक। अवज्ञा = आज्ञा न करना। ट्रेनिंग = प्रशिक्षण। दौर = समय। बॉडी = ढाँचा। रफ्तार = चाल। गोता लगाना = डुबकी लगाना। तरकीब = तरीका। इत्तफाक = संयोग। क्षीण = कमजोर। दयनीय = दया करने योग्य। ग्लानि = दुख। बियाबान = सुनसान। अंत्येष्टि = अंतिम क्रिया। टटोलना = ढूँढ़ना। पुलिया = छोटा पुल। स्पीड = रफ्तार। उत्सर्ग = त्याग। दुर्लभ = बहुत कठिनाई से प्राप्त होने वाला। क्रांतिकारी = क्रांति करने वाला। बाँहें पसारे = स्वागत के लिए तैयार। प्रयाण करना = प्रस्थान करना। बेताबी = बेचैनी। इस लोक से उस लोक को प्रयाण करना = मर जाना।
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
(1) हममें से दो को सुबह काम पर हाजिर होना था इसलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना जरूरी था। लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते। क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं? नहीं, बस डाकिन है।’ बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफर नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है !
संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के बस की यात्रा’ नामक पाठ से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने बस के बहुत पुरानी होने और यात्रा के काम की न होने के बारे में बताया है।
व्याख्या-
लेखक और उसके मित्रों को वापस लौटना था। दो मित्रों को सवेरे अपने काम पर पहुँचना था। इसलिए उन्हें शाम की बस से जाना आवश्यक था। जो लोग बस अड्डे पर थे उन्होंने लेखक को बताया कि समझदार लोग इस शाम की बस से यात्रा नहीं करते। लेखक ने उनसे पूछा कि क्या मार्ग में डाकू मिलते हैं? जवाब मिला कि यह बस ही डाकिन जैसी है। इसका कोई भरोसा नहीं कि यह ठीक समय पर और सुरक्षित पहुँचा सकेगी। जब लेखक ने बस की ओर देखा। बस बहुत पुरानी थी और वर्षों तक सवारी ढोते रहने से इसके ढाँचे पर टूट-फूट और दुर्घटनाओं के निशान दिखाई दे रहे थे। पुरानी और जीर्ण-शीर्ण होने के कारण लोग इससे यात्रा नहीं करते थे। बड़े-बूढ़ों से काम लेना अन्याय है, उनकी तो बस सेवा होनी चाहिए, ऐसा ही भाव उस बस के प्रति लोगों के मन में रहता होगा। ऐसी वृद्धा बस पर सवारी करना तो महापाप था।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लेखक और उसके मित्रों ने पन्ना जाने के लिए। शाम की बस क्यों पकड़ी?
उत्तर:
लेखक के दो साथियों को अगले दिन काम पर पहुँचना था। इसलिए शाम को चलकर सुबह पहुँचाने वाली बस पकड़ना जरूरी था।
प्रश्न 2.
समझदार आदमी उस शाम की बस से सफर क्यों नहीं करते थे?
उत्तर:
वे ब्रस की दशा से परिचित थे। बहुत पुरानी होने से उसमें कहीं भी, कोई भी खराबी आ सकती थी।
प्रश्न 3.
बस को देखकर लेखक के मन में क्या भाव आए?
उत्तर:
बस बहुत पुरानी और जर्जर थी। लेखक ने उसकी दशा पर मजाक किया है कि उसे देखकर उसे दूर से प्रणाम करना ही ठीक लगा। उस पर सवार होने की हिम्मत नहीं
प्रश्न 4.
“सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी।” इस कथन का अर्थ क्या है?
उत्तर:
इसका अर्थ है कि वर्षों से चलाई जा रही उस पुरानी बस पर टूट-फूट और मरम्मत के बहुत से निशान थे।
(2) बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता, सीट बॉडी को छोड़कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट में हम बैठे हैं। या सीट हम पर बैठी है।
संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के पाठ ‘बस की यात्रा’ से लिया गया है। लेखक बस के चलने पर आई मुसीबत का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या-
आखिर वह बूढ़ी बस चल पड़ी। बस के चलते ही लेखक को लगा कि जब गाँधीजी ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध प्रशासन का सहयोग न करने और अनुबंधित कानूनों
को न मानने का आंदोलन चलाया था तब यह बस अच्छी हालत में रही होगी, क्योंकि इसने गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों की ट्रेनिंग ली थी। तभी तो बस के अंदर को हर हिस्सा दूसरे से सहयोग नहीं कर रहा था। सीट बस की बॉडी से अलग हो जाने को मचल रही थी। कभी बस की रफ्तार के साथ सीट आगे को जाने लगती थी तो कभी लगता था कि बॉडी सीट को छोड़कर आगे भागी जा रही थी। बस के अंदर के सारे हिस्से बुरी तरह हिल रहे थे। कुछ किलोमीटर चलने के बाद सीट का यह हाल हो गया कि सीट और लेखक एक-दूसरे के ऊपर नजर आने लगे।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘बस सचमुच चल पड़ी’ लेखक के इस कथन का भाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक को विश्वास ही नहीं था कि इतनी जर्जर और खस्ताहाल बस चल पाएगी। लेकिन बस के चल पड़ने पर उसे आश्चर्य हुआ।
प्रश्न 2.
लेखक ने बस की हालत को किस आंदोलन से जोड़ा है?
उत्तर:
लेखक बस के हिस्सों को एक-दूसरे से अलग होते देखकर उसको गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से जोड़ा है।
प्रश्न 3.
बस के अंदर किन हिस्सों के बीच असहयोग जैसी हालत नजर आ रही थी?
उत्तर:
बस में सीट और बॉडी के बीच असहयोग चल रहा था। दोनों एक-दूसरे से अलग हो जाना चाह रहे थे।
प्रश्न 4.
कुछ दूर जाने के बाद सीट और लेखक की क्या स्थिति हुई?
उत्तर:
झटकों के लगातार लगने से, कुछ दूर चलने पर, सीट का कुछ हिस्सा लेखक के नीचे और कुछ ऊपर आ गया।
(3) एक पुलिया के ऊपर पहुँचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है।
संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के बस की यात्रा’ नामक पाठ से लिया गया है। लेखक टायर के पंक्चर हो जाने पर हिस्सेदार की कंजूसी पर व्यंग्य बाण चला रहा है।
व्याख्या-
बस जैसे ही एक पुलिया पर पहुँची, उसको एक टायर पंक्चर होकर ‘फिस्स’ की आवाज के साथ बैठ गया। उस क्रिया में बस बहुत जोर से दहला और फिर वह थम गई। यदि वह तेज गति से चल रही होती तो उसका नाले में जा गिरना निश्चित था। इस दिल दहला देने वाली घटना से चिंतित लेखक ने हिस्सेदार की ओर श्रद्धा से (व्यंग्य से) देखा। उसे पता था कि बस के टायर बेकार हो चुके थे। इतने पर भी वह उसी बस से यात्रा कर रहा था। अपनी प्यारी बस के लिए उसका उतना महान त्याग अनुपम था। ऐसा त्याग करने वाला कोई और व्यक्ति मिलना कठिन था।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बस पुलिया के ऊपर पहुँची तो क्या घटना घटी?
उत्तर:
पुलिया के ऊपर पहुँचते ही बस का एक टायर पंक्चर हो गया।
प्रश्न 2.
यदि बस तेज गति से चल रही होती तो क्या हो सकता था?
उत्तर:
तेज गति में होने पर वह टायर के पंक्चर होते ही अनियंत्रित नाले में जा गिरती।।
प्रश्न 3.
लेखक ने ‘श्रद्धाभाव से देखा’ में क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
लेखक ने हिस्सेदार की कंजूसी और मूढ़ता की हँसी उड़ाई है।
प्रश्न 4.
हिस्सेदार जैसे आदमी के चरित्र का किन शब्दों में वर्णन किया जा सकता है?
उत्तर:
ऐसे आदमी के चरित्र का वर्णन ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए’ इन शब्दों में किया जा सकता है।