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RBSE Solution for Class 8 Hindi Chapter 7 भक्ति पदावली

RBSE Solution for Class 8 Hindi Chapter 7 भक्ति पदावली

Rajasthan Board RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 भक्ति पदावली

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

पाठ से
सोचें और बताएँ

प्रश्न 1.
मीरां अपनी आँखों में किसे बसाना चाहती हैं ?
उत्तर:
मीरां अपनी आँखों में अपने आराध्य श्रीकृष्ण की माधुरी छवि को बसाना चाहती हैं।

प्रश्न 2.
द्रौपदी की लाज किसने बचाई ?
उत्तर:
द्रौपदी की लाज श्रीकृष्ण ने बचाई।

प्रश्न 3.
मीरां को सतगुरु से कौनसी वस्तु मिली ?
उत्तर:
मीरां को सतगुरु से राम-नाम रूपी अनमोल वस्तु मिली।

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 लिखें अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा ने पीर को हरने वाला किसे बताया ?
उत्तर:
मीरां ने प्रभु श्रीकृष्ण को भक्तजनों की पीर को हरने वाला बताया।

प्रश्न 2.
प्रहलाद को बचाने के लिए हरि ने कौन-सा रूप धारण किया?
उत्तर:
प्रहलाद को बचाने के लिए हरि ने नृसिंह का रूप धारण किया।

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण के किस रूप को मीरां अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं?
उत्तर:
जिस रूप में सिर पर मोरपंखों का मुकुट, कानों में मछली के आकार के कुण्डल, ललाट पर लाल तिलक, मोहनी मूर्ति, होठों पर मुरली, छाती पर सुन्दर वैजयन्ती माला, कमर पर छोटी घंटियाँ और पैरों में रसीली झनकार करने वाली पायजेब हो, श्रीकृष्ण के ऐसे मनोहारी बालरूप को मीरां अपनी आँखों में बसाना चाहती है।

प्रश्न 2.
मीरां ने राम-नाम रूपी धन को अमूल्य क्यों बताया ?
उत्तर:
मीरां ने राम-नाम रूपी धन को इसलिए अमूल्य बताया कि वह सद्गुरु द्वारा दिया गया है, वह खर्च करने पर घटता नहीं है, उसे चोर चुरा भी नहीं सकते हैं और वह दिनोंदिन सवाया बढ़ता है। उस राम-नाम के सहारे यह संसार रूपी सागर पार किया जा सकता है और जीवन का उद्धार हो जाता है। इन सभी विशेषताओं से वह राम-नाम रूपी धन अमूल्य है।

प्रश्न 3.
मीरा ने संसार को पार करने का क्या उपाय बताया ?
उत्तर:
मीरां ने संसार को ऐसा सागर बताया है कि जिसे पार करने के लिए सद्गुरु की शिक्षा से प्राप्त भगवान् की भक्ति और प्रभु का नाम-स्मरण निरन्तर करना पड़ता है। प्रभु का नाम-स्मरण ही सबसे श्रेष्ठ उपाय है। सद्गुरु से उसको ज्ञान मिलता है। मीरा ने इस तरह राम-नाम स्मरण को संसार – सागर पार करने का उपाय बताया है।

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरां ने ‘हरि तुम हरो जन की पीर’ पद में कृष्ण की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
मीरां ने उक्त पद में अपने आराध्य श्रीकृष्ण की इन विशेषताओं का उल्लेख किया है

  1. उन्होंने द्रौपदी की लाज बचायी और उसकी साड़ी लम्बी कर दी।
  2. भक्त प्रहलाद के कारण नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मार डाला।
  3. डूबते हुए गजराज को बचाकर तुरन्त पानी से बाहर किया।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों की रक्षा की। इससे उनकी भक्तों के प्रति वत्सलता, दयालु-प्रवृत्ति एवं अवतार धारण करने की क्षमता विशेषता का उल्लेख हुआ है, जो कि बड़ी-से-बड़ी विपत्तियों से भक्तों को मुक्त करा देते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए
(क) सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भव सागर तर आयो।
(ख) अधर-सुधा-रस मुरली राजति, उर बैजंती माल।
उत्तर:
(क) मीरा कहती है कि मेरी नाव सत्य की है और इस नाव को खेवने वाले मेरे सद्गुरु हैं, जिससे मैं संसार – समुद्र को पार कर गई हूँ। अर्थात् ईश्वरीय कृपा एवं सद्गुरु के उपदेशों से मेरा जीवन सफल हो गया है।
(ख) श्रीकृष्ण के अधर पर अमृत-रस को बहाने वाली मुरली अत्यन्त शोभायमान हो रही है तथा वक्षस्थल पर वैजयन्ती माला शोभा पा रही है। ये दोनों पदार्थ उनकी दिव्यता को प्रकट कर रहे हैं।

प्रश्न 3.
मीरां ने संसार को पार करने का क्या उपाय बताया?
उत्तर:
मीरां ने इस सम्बन्ध में बताया कि अपने आराध्य पर पूरी निष्ठा एवं समर्पण भाव से आस्था रखो और अपना जीवन पूर्णतया सत्य पर आश्रित करो तथा अपने आराध्य का नाम स्मरण करो, ऐसा होने पर सद्गुरु की कृपा से तथा परमात्मा की वत्सलता से संसार-सागर को पार किया जा सकता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
‘मोहनि मूरति’, ‘साँवरि-सूरति’ में प्रथम वर्ण की आवृत्ति हुई है, ‘म-म’ तथा ‘स-स’। इस प्रकार काव्य में वर्षों की आवृत्ति जहाँ होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है, अलंकार का शाब्दिक अर्थ है-सुंदरता को बढ़ाने वाला कारक। काव्य ( कविता ) में जो कारक उसके सौंदर्य में वृद्धि करते हैं, अलंकार कहलाते हैं। पाठ में आए अन्य अलंकारों के बारे में अध्यापकजी की सहायता से जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
काव्य या कविता में उसका सौन्दर्य बढ़ाने वाले तत्त्व अलंकार कहलाते हैं। अलंकार मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं-

  1. शब्दालंकार और
  2. अर्थालंकार अनुप्रास, यमक आदि शब्दालंकार और उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अर्थालंकार होते हैं।
    पाठ में आए अन्य अलंकार निम्नलिखित हैं 

    • मोर-मुकुट मकराकृत कुंडल-अनुप्रास अलंकार
    • चरण-कँवल पर सीर-रूपक अलंकार
    • राम रतन धन पायो-रूपक तथा अनुप्रास अलंकार
    • जन्म-जन्म। दिन-दिन । हरण-हरण-अनुप्रास-पुनरुक्ति अलंकार
    • भवसागर तर आयो-रूपक अलंकार
    • किरपा कर अपनायो-अनुप्रास अलंकार।

प्रश्न 2.
पाठ में से निम्नलिखित तत्सम शब्दों के तद्भव रूप को छाँटकर लिखिए
मूर्ति, विशाल, क्षुद्र, शब्द, वत्सल, कृपा, रत्न, हर्ष।
उत्तर:
मूर्ति      –     मूरति
वत्सले   –     बछल
विशाल  –     बिसाल
कृपा     –     किरपा
क्षुद       –      छुद्र
रत्न       –     रतन
शब्द    –     सबद
हर्ष      –     हरख।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित संज्ञा शब्दों के उचित भेद अपनी उत्तरपस्तिका में लिख़िए
(क) बसो मेरे नैनन में नंदलाल ।
(ख) हरि ! तुम हरो जन की पीर।
(ग) हरख-रख जस गायो।
(घ) द्रौपदी की लाज राखी ।
उत्तर:
(क) नंदलाल-व्यक्तिवाचक संज्ञा ।
(ख) जन- जातिवाचक संज्ञा।
(ग) हरख-रख-भाववाचक संज्ञा ।
(घ) द्रौपदी-व्यक्तिवाचक संज्ञा ।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
मीरां के इन पदों को बालसभा में गाकर सुनाइए।
उत्तर:
पदों को कंठस्थ करके गाइए।

प्रश्न 2.
मीरां के जीवन में आये कष्टों को जानिए और समस्याओं से लड़ने और समाधान खोजने पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मीरां विवाह होने के कुछ समय बाद विधवा हो गई थी। विधवा जीवन जीते हुए वे पूर्व की तरह कृष्ण भक्ति और उनके प्रेम में लीन हो गई । सन्तों के साथ बैठकर भजन गाने और नाचने लगी। यह बातें मेवाड़ के राणा विक्रमादित्य को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने मीरां को जहर देकर मारने का षड्यन्त्र रचा। मीरा ने घर का त्याग कर वृन्दावन में रहना शुरू कर दिया। तत्कालीन परिस्थितियों में समस्याओं से लड़ने का जो समाधान मीरा बाई द्वारा खोजा गया वह उचित ही लगा, क्योंकि महिला होने के नाते उन्हें स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं थी।

यह भी करें

प्रश्न 1.
हमारे समाज में मीरां-सी भक्तिन व विदुषी और भी कई महिलाएँ हुई हैं, उनकी जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
यहाँ मीरां की तरह भक्तिन एवं विदुषी कुछ महिलाओं के नाम दिये जा रहे हैं-सहजो बाई, दया बाई, ललित किशोरी, ललित माधुरी, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान
आदि।

प्रश्न 2.
अन्तर्कथाएँ जानिए
(क) द्रौपदी का चीर-हरण
(ख) भक्त प्रहलाद की कथा
(ग) गजराज की ग्राह से रक्षा।
उत्तर:
(क) द्रौपदी के चीर-हरण को लेकर अन्तर्कथा इस प्रकार है–एक बार कौरवों और पाण्डवों ने द्यूत-क्रीड़ा की। उसमें शकुनी की कपटी चाल से दुर्योधन जीतता रहा और युधिष्ठिर हारते रहे। वे अपना सब राजपाट हार गये। भाइयों को दाँव पर लगाया, फिर पत्नी द्रौपदी को भी दाँव पर लगाकर हार गये। तब दुर्योधन ने अपने भाई दुःशासन से द्रौपदी को सभा में लाने और उसका चीर-हरण करने को कहा। दुःशासन चीर-हरण करने लगा, तो द्रौपदी ने भगवान् श्रीकृष्ण की प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने अपनी माया से द्रौपदी का चीर बढ़ाया और उसकी लज्जा की रक्षा की।
(ख) हिरण्यकशिपु दैत्यराज था। वह देवताओं को अपना शत्रु मानता था। उसका पुत्र प्रह्लाद देवताओं का भक्त था। वह दैत्यों को दुराचारी, पापी एवं कपटी मानता था। हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को काफी समझाया कि वह विष्णु को भगवान् न माने, परन्तु प्रहलाद नहीं माना। तब हिरण्यकशिपु ने उसका वध करना चाहा, तो भगवान् ने नृसिंह अवतार में प्रकट होकर प्रहलाद की रक्षा की और पापी हिरण्यकशिपु का वध कर डाला।
(ग) कोई गजराज त्रिकूट पर्वत के पास क्षीर सागर में जल-क्रीड़ा करने गया। उसे एक विशाल मगरमच्छ ने पकड़ लिया। गजराज को पूर्वजन्म का वरदान मिला हुआ था। इसलिए उसने ग्राह से बचाने के लिए भगवान् की प्रार्थना की, तो भगवान् तुरन्त आये और ग्राह को मारकर गजराज की रक्षा कर उसे सागर से बाहर निकाला।

तब और अब

प्रश्न 1.
नीचे लिखे शब्दों के मानक रूप लिखिएभक्ति, व्यक्ति, शक्ति, सिद्धि।
उत्तर:
भक्ति   –   भति
व्यक्ति  –   व्यक्ति
शक्ति   –   शक्ति
सिद्धि   –   सिद्धि

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
मीरां के अनुसार भक्तों की पीर हरने वाले हैं
(क) गणेश जी
(ख) हनुमान जी
(ग) श्रीकृष्ण जी
(घ) महादेव जी

प्रश्न 2.
मीरा के आराध्य हैं
(क) राम
(ख) कृष्ण
(ग) गणेश
(घ) शिव

प्रश्न 3. मीरा ने नन्दलाल कृष्ण की सूरत बतलायी है
(क) गोरी
(ख) साँवली
(ग) पीली
(घ) लाल

प्रश्न 4.
‘अधर सुधा-रस मुरली रोजति’-इसमें ‘सुधा’ का अर्थ है
(क) धरती
(ख) दूध
(ग) अमृत
(घ) मिठास

प्रश्न 5.
मीरा ने कौन रनधन पाया?
(क) अमूल्य रत्नधन
(ख) भक्ति रत्नधन
(ग) नारायण रत्नधन
(घ) राम रत्नधन

प्रश्न 6.
हिरण्यकशिपु को मार दिया था
(क) भगवान् नृसिंह ने
(ख) भगवान् राम ने
(ग) भगवान् वामन ने
(घ) नन्दलाल श्रीकृष्ण ने

प्रश्न 7.
‘भक्त कारण रूप नरहरि धर्यो’-किस भक्त के कारण भगवान् ने ‘नरहरि’ रूप धारण किया था?
(क) गजराज के
(ख) प्रहलाद के
(ग) ध्रुव के
(घ) परीक्षित के
उत्तर:
1. (ग) 2. (ख) 3. (ख) 4. (ग) 5. (घ) 6. (क) 7. (ख)

सुमेलन

प्रश्न 8.
खण्ड ‘अ’ एवं खण्ड ‘ब’ में दी गई पंक्तियों का मिलान कीजिए

RBSE Solution for Class 8 Hindi Chapter 7 भक्ति पदावली img-1
उत्तर:
पंक्तियों का मिलान
(क) द्रोपदी की लाज राखी तुरत बढ़ायो चीर।
(ख) भक्त कारण रूप नरहरि धायो आप शरीर।
(ग) हिरणाकुश कुँ मारि लीन्हों धारयो नहीं धीर।
(घ) बूढतो गजराज राख्यो करियो बाहर नीर।

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 9.
मीरां ने अपने प्रभु को कैसा बताया है ?
उत्तर:
मीरां ने अपने प्रभु को सन्तों को सुख देने वाला तथा भक्त-वत्सल बताया है।

प्रश्न 10.
द्रौपदी का चीर किसने बढ़ाया ?
उत्तर:
द्रौपदी का चीर श्रीकृष्ण ने बढ़ाया।

प्रश्न 11.
नन्दलाल का मुकुट एवं कुण्डल कैसे हैं ?
उत्तर:
नन्दलाल का मुकुट मोरपंखों का है तथा कुण्डल मछली जैसे आकार के हैं।

प्रश्न 12.
मीरां को अमूल्य वस्तु किसने दी ?
उत्तर:
मीरां को सद्गुरु ने कृपा करके अमूल्य वस्तु दी।

प्रश्न 13.
मीरां हर्षित होकर किसका यश गाती रही?
उत्तर:
मीरां हर्षित होकर अपने प्रभु गिरिधर गोपाल का यश गाती रही।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
(ख) द्रौपदी की लाज राखी, तुरत बढ़ायो चीर।
उत्तर:
(क) बसो मेरे नैनन में नंदलाल-भाव-मीरां कृष्ण से निवेदन करती है कि हे नन्द के लाल आप मेरी आँखों में अपनी सभी विशेषताओं से मण्डित छवि (आकृति) के साथ बस जाओ, क्योंकि मैं आपकी दासी हूँ और आप मेरे आराध्य हैं।
(ख) द्रौपदी की लाज राखी, तुरत बढ़ायो चीर-भावमीरां उद्धार करने के भाव से पूरित होकर कहती है कि हे प्रभु श्रीकृष्ण! आपने अपनी भक्ति करने वाली द्रौपदी की लज्जा बचायी और उसकी साड़ी को तुरन्त लम्बा कर उसे पीड़ा से मुक्त किया उसी प्रकार आप मेरी पीड़ा को भी हर कर मेरा उद्धार करो।

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 15.
‘बसो मेरे नैनन में नन्दलाल’ पंक्ति के आधार पर बताइये कि मीरां की जगह आप होते तो कृष्ण के सौन्दर्य की किन विशेषताओं को अपनी आँखों में बसाना चाहेंगे?
उत्तर:
‘बसो मेरे नैनन में नन्दलाल’ पंक्ति के आधार पर यदि मीरा की जगह मैं होता तो मैं भी कृष्ण के सौन्दर्य की उन सभी विशेषताओं को अपनी आँखों में बसाना चाहता जिनका उल्लेख मीरा ने अपने रचित पद में किया है।

प्रश्न 16.
मीरां ने अपने प्रभु की क्या विशेषता बतायी है?
उत्तर:
मीरां ने बताया है कि उसके प्रभु सन्तजनों को सदा सुख देते हैं तथा वे अपने भक्तों का पूरा ध्यान रखते हैं। वे भक्तों पर कृपा एवं वत्सलता रखते हैं और उनके सभी कष्टों को मिटा देते हैं।

प्रश्न 17.
मीरां ने राम-नाम रूपी अमूल्य वस्तु की क्या विशेषता बतायी है?
उत्तर:
मीरां ने राम-नाम रूपी अमूल्य वस्तु की यह विशेषता बतायी है कि उसे न तो खर्च करके समाप्त किया जा सकता है, न कोई चोर ले जा सकता है और न खर्च करने से घटती है। वह तो जितना खर्च करो, उससे सवा गुणा बढ़ती जाती है। अर्थात् राम-नाम का जितना स्मरण-ध्यान करो, उतना ही वह भक्ति-भावना रूप में बढ़ता रहता है।

प्रश्न 18.
‘चरण-कँवल पै सीर’ से मीरा ने क्या भाव प्रकट किया है?
उत्तर:
इससे मीरां ने यह भाव प्रकट किया है कि वह अपने आराध्य गिरिधर की भक्ति करके स्वयं उनके चरणकमलों पर न्योछावर होना चाहती है। वह स्वयं को उनके भक्त-वत्सल रूप पर समर्पित करना चाहती है। प्रभु ने अपने अनेक भक्तों की पीड़ा का जिस तरह हरण कर उनका उद्धार किया, मीरां भी अपना वैसा ही उद्धार चाहती है। इसी से मीरां स्वयं को गिरिधर की दासी कहती है।

RBSE Class 8 Hindi Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 19.
मीरां ने नन्दलाल की रूप-छवि कैसी बतायी है?
उत्तर:
मीरां ने नन्दलाल श्रीकृष्ण की ऐसी रूप-छवि बतायी है, जो बालपन एवं किशोरपन से युक्त है। उस रूप में श्रीकृष्ण ब्रज में अनेक लीलाएँ करते रहें तथा सुन्दर मनमोहक रूप धारण कर सभी को आकर्षित करते रहे इसी रूप-छवि को लेकर मीरा ने बताया कि वे सिर पर मोरपंखों का मुकुट, कानों में कुंडल और गले में वैजयन्ती माला धारण करते थे। उनके नेत्र कुछ फैले हुए थे, दृष्टि बड़ी चंचल व मधुर थी और उनके होठों पर मुरली रहती थी, जिससे निकलने वाला स्वर अमृत के समान रसीला लगता था। वे कमर पर छोटीछोटी घंटियाँ और पैरों में नूपुर बाँधकर मनोहारी नृत्य भी करते रहते थे। मीरां नन्दलाल श्रीकृष्ण की ऐसी माधुरी छवि को सदा ही देखना चाहती थी।

प्रश्न 20.
मीरां की भक्ति किस प्रकार की मानी जाती है?
उत्तर:
भक्ति के नौ भेद माने गये हैं, परन्तु भक्त-कवियों ने मुख्य रूप से तीन प्रकार की भक्ति की है। वे तीन प्रकार हैं-

  1. सेव्य-सेवक भाव या दास्य भाव की भक्ति
  2. सख्य या मित्र-भाव की भक्ति और
  3. कान्ता या दाम्पत्य भाव की भक्ति।

मीरां ने अनेक पदों में स्वयं को अपने आराध्य की दासी, चरणों की सेविका एवं रूप-शोभा पर आसक्त प्रियतमा तथा पतिपरायणी पत्नी के रूप में चित्रित किया है। इस कारण सभी विद्वान् मीरां की भक्ति को दाम्पत्य-भाव या कान्ताभाव की भक्ति मानते हैं। राणा परिवार से निकल जाने पर मीरां मथुरा-वृन्दावन व द्वारिका में रहीं और उन्होंने अपने आराध्य को पूर्व जन्म का पति एवं बिछुड़ा हुआ प्रियतम कहा। इससे उनकी भक्ति कान्ताभाव की मानी जाती है।

भक्ति पदावली पाठ-सारं

मरुभूमि मेड़ता में जन्मी मीरा बाई भक्तिकाल की प्रमुख कृष्णभक्त कवयित्री थीं। उन्होंने अपने आराध्य की भक्ति में अनेक पदों की रचना की। इस पाठ में मीरां द्वारा रचित तीन पद संकलित हैं। इनमें उन्होंने अपनी भक्ति-भावना प्रकट की है। सप्रसंग व्याख्याएँ

(1) बसो मेरे नैनन ………………………… गोपाल।

कठिन शब्दार्थ-मकराकृत = मछली जैसी आकृति वाला। अरुन = लाल। सोहे = सुन्दर लगता है। साँवरि = साँवली। बिसाल = बड़ा। सुधा = अमृत। राजति = शोभा पाती है। बैजन्ती = पाँच रंग की मोतियों की माला, विष्णु या कृष्ण की माला। उर = छाती, हृदय। छुद = छोटी। कटि-तट = कमर का भाग। नूपुर-सबद = पायलों की झनकार। रसाल = रसीले, मधुर। बछल =प्रिय।

प्रसंग-यह पद ‘भक्ति पदावली’ पाठ से लिया गया है। इसकी रचना भक्त-कवयित्री मीरा बाई ने की है। इसमें उन्होंने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को भक्त-वत्सल एवं सुन्दर आकृति वाला बताया है।

व्याख्या-मीरां निवेदन करती है कि हे नन्द के पुत्र प्रभु श्रीकृष्णं! आप मेरे नेत्रों में बस जाओ। आपने मोरपंखों का मुकुट, मछली की आकृति के कुण्डल और ललाट पर लाल चन्दन का तिलक धारण कर रखा है जो कि अत्यन्त सुन्दर लगता है। आपकी आकृति मोहित करने वाली है, आपकी सूरत साँवली है और दोनों नेत्र सुंदर। बड़े हैं। आपके होठों पर अमृत रस को उगलने वाली सुन्दर मुरली है तो छाती पर वैजयन्ती माला शोभा बढ़ा रही है। आपकी कमर पर छोटी घंटियाँ शोभायमान हैं तो पैरों में पायजेबों की सुन्दर झनकार निकल रही है। मीरा कहती है कि हे प्रभु ! आप सन्तजनों को सुख देने वाले हैं और हे गोपाल! आप अपने भक्तों को प्यार करते हैं। अर्थात् मीरा ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण की, माधुरी छवि को सभी विशेषताओं से मण्डित बताया है और उसी ही आकृति को अपने मन में बसाने की कामना की है।

(2) हरि तुम हरो ………………………………….. पै सीर।

कठिन शब्दार्थ-पीर = पीड़ा। चीर = कपड़ा। नरहरि = नृसिंह, विष्णु का एक अवतार। धयो = धारण किया। धीर = धैर्य। बूढ़तो = डूबता हुआ। नीर = पानी। चरण-कॅवल = चरण रूपी कमल। सीर = समर्पित।।

प्रसंग-यह पद भक्ति पदावली’ पाठ से लिया गया है। यह मीरा बाई द्वारा रचित है। इसमें , भगवान्। श्रीकृष्ण के चरण-कमल पर न्यौछावर होने का निवेदन किया गया है।
व्याख्या-मीरां अपने आराध्य से प्रार्थना करती है कि प्रभु श्रीकृष्ण ! आप मुझ भक्तजन की पीड़ा हरो, अर्थात् मेरा उद्धार करो। आपने अपनी भक्ति करने वाली दौपदी की लज्जा बचायी और उसकी साड़ी या वस्त्र को तुरन्त लम्बा किया। आपने अपने भक्त प्रह्लाद के कारण नृसिंह रूप का शरीर धारण किया, अर्थात् नृसिंह अवतार में भक्त की रक्षा करने आये तथा हिरण्यकश्यप को मारने में जरा भी धैर्य नहीं रखा, अर्थात् तुरन्त ही उसे मार डाला। आपने डूबते हुए हाथी की रक्षा की और उसे तुरन्त पानी से बाहर निकाला। मीरां कहती है कि हे प्रभु, गिरिधर लाल ! मैं आपकी दासी हूँ और आपके चरण-कमलों पर न्योछावर हूँ। भाव यह है कि आपने अपने भक्तों का उद्धार किया। मैं भी आपकी भक्त हूँ। इसलिए आप मेरा भी उद्धार कीजिए।

(3) पायो जी मैंने ………………………………….. जस गायो॥

कठिन शब्दार्थ-अमोलक = अमूल्य। किरपा = कृपा। खोवायो = खो दिया। सवायो = सवाया, सवा गुणा। सत = सत्य। खेवटिया = खेने वाला केवट। भवसागर = संसार रूपी समुद्र। हरख-हरख = हर्षित होकर। जस = यश। नागर = चतुर।।

प्रसंग-यह पद ‘ भक्ति पदावली’ पाठ से लिया गया है। यह मीरा बाई द्वारा रचित है। इसमें मीरा ने अपने आराध्य की कृपा से अपने जीवन का उद्धार हो जाने का भाव प्रकट किया है।

व्याख्या–भक्तिमती मीरा कहती है कि मैंने प्रभु राम रूपी रत्न-धन पा लिया है। अर्थात् भगवान् का नाम एवं उनकी कृपा मेरे लिए अमूल्य चीज है। मेरे सद्गुरु ने मुझे राम-नाम रूपी अमूल्य वस्तु दी है और कृपा करके मुझे अपनाया है। इस राम रत्न धन को पाने से मैंने अनेक जन्मों की खोयी हुई पूँजी पा ली है, संसार में जो खोया था, वह सब पा लिया है। अब यह धन खर्च करने पर भी खर्च नहीं होता है तथा इसे कोई चोर भी नहीं ले जा सकता है। यह तो दिनोंदिन सवाया बढ़ता जाता है। मेरी जीवन रूपी नाव सत्य की है। इस नाव को खेवने वाले मेरे सद्गुरु हैं और मैं संसार रूपी समुद्र को पार कर गई हूँ। मीरा कहती है कि मेरे प्रभु गिरिधर श्रीकृष्ण अतीव चतुर व दयालु हैं। मैं अत्यन्त प्रसन्न होकर उनके यश को गाती रहती हूँ।

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