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RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 माखनलाल चतुर्वेदी

RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 माखनलाल चतुर्वेदी

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 माखनलाल चतुर्वेदी

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गंगा का पर्याय शब्द है
(क) कालिन्दी
(ख) सूर्यजा
(ग) मन्दाकिनी
(घ) कृष्णा।
उत्तर:
(ग) मन्दाकिनी

प्रश्न 2.
पुष्प का पर्यायवाची शब्द नहीं है
(क) निहार
(ख) प्रसून
(ग) सुमन
(घ) गुल
उत्तर:
(क) निहार

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
पुष्य किसके गहने में गूंथे जाने की चाह नहीं रखता
उत्तर:
पुष्प सुरबाला के गहनों में गूंथे जाने की चाह नहीं रखता है।

प्रश्न 4.
देवताओं के सिर पर चढ़ पुष्प क्या नहीं चाहता
उत्तर:
पुष्प नहीं चाहता कि देवताओं के सिर पर चढ़कर वह अपने सौभाग्य पर गर्व करे।

प्रश्न 5.
वनमाली से किस पथ पर फेंक देने को कहता है ?
उत्तर:
पुष्प वनमाली से कहता है कि वह उसे तोड़कर उस पथ पर फेंक दे जिस पर चलकर वीर पुरुष देश पर बलिदान होने जाते हैं।

प्रश्न 6.
पर्वत किससे मढ़ा नहीं बनना चाहता है ?
उत्तर:
पर्वत सोने से मढ़ा हुआ सुमेरु बनना नहीं चाहता।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 7.
पर्वत मणि-माणक क्यों प्रगटाना नहीं चाहता है ?
उत्तर:
पर्वत में अनेक खनिजों का भण्डार होता है। ये अत्यन्त मूल्यवान् होते हैं। खुदाई करके ये खनिज निकाले जाते हैं। पर्वत नहीं चाहता कि उसका मूल्यांकन उसमें दबे हुए खनिजों से हो। वह अपने भीतर से नदी की धारा बहाना चाहता है जिससे उसके जल से मातृभूमि हरी-भरी हो सके।

प्रश्न 8.
पर्वत गंगा-यमुना बहाकर क्या अभिलाषा रखता है?
उत्तर:
पर्वत की इच्छा है कि उसके भीतर से गंगा-यमुना की जलधारा प्रकट हो। उसकी इस अभिलाषा के पीछे जगत प्रेम तथा देश-प्रेम की भावना है। वह इन नदियों के पानी की सहायता से अपने देश तथा सारे जगत को निर्मल और शस्य- श्यामल बनाना चाहता है।

प्रश्न 9.
निम्न को समझाइयेस्वर्ण मढ़ा सुमेरु, मणि-माणक, वनदेवी का लीला-क्षेत्र।
उत्तर:
सुमेरु पुराणों में बताया गया धरती का एक ऊँचा पर्वत है। सोना मूल्यवान धातु है। सोने से मढ़ने पर किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाती है। स्वर्ण मढ़ा सुमेरु का आशय मूल्यवान् पर्वत है। मणि-माणक कीमती खनिज होते हैं। पर्वत में मूल्यवान रत्नों का भण्डार होता है। वनदेवी में वन प्रदेश का मानवीकरण है। वनदेवी का लीला क्षेत्र का तात्पर्य पर्वत पर उगने वाली विभिन्न वनस्पतियों से है। वनदेवी एक पौराणिक कल्पना है जो सारे वन-प्रदेश की सुरक्षा तथा सुन्दरता का भार उठाती है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 10.
‘पुष्प की अभिलाषा’ के माध्यम से कवि क्या सन्देश दे रहा है ?
उत्तर:
पुष्प की अभिलाषा’ माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध रचना है। इस कविता में कवि ने बताया है कि पुष्प अपना उपयोग सुरबाला की रूप-सज्जा के लिए गुँथे जाने वाले पुष्प हार के रूप में नहीं कराना चाहता। वह स्वर्ग की अप्सराओं को सजाने के लिए प्रयुक्त होने का अभिलाषी नहीं है। वह किसी सम्राट के शव पर डाले जाने का भी इच्छुक नहीं है। वह यह भी नहीं चाहता कि उसको किसी देवता के सिर पर पूजा के समय चढ़ाया जाय। इसमें उसको अपने सौभाग्य पर गर्व करने का कोई कारण दिखाई नहीं देता।

पुष्प की एकमात्र अभिलाषा यही है कि ईश्वररूपी माली उसको उस रास्ते पर फेंक दे, जहाँ से वीर पुरुष स्वदेश पर अपना सिर बलिदान करने के लिए जाते हैं, जिससे उनके पैरों के नीचे कुचलकर उसे भी देश के लिए आत्म-बलिदान देने का सौभाग्य मिल सके। पुष्प की इस अभिलाषा के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है। कि प्रत्येक देशवासी को अपनी मातृभूमि के लिए त्याग और बलिदान करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। कवि ने इस कविता द्वारा युवकों को राष्ट्रहित में अपना सर्वस्व और जीवन अर्पित करने को प्रेरित किया है।

प्रश्न 11.
व्याख्या कीजिएचाह नहीं देवों के सिर पर जिस पथ पर जाएँ वीर अनेक।
उत्तर:
कवि कहता है कि पुष्प की अभिलाषा राष्ट्र-हित में समर्पित होने की है। फूल यह नहीं चाहता कि उसको गूंथकर ऐसे आभूषण तैयार किए जायें जिनको पहनकर स्वर्ग की अप्सराओं का सौन्दर्य दूना हो जाए। वह यह भी नहीं चाहता कि किसी सम्राट की मृत्यु के बाद उसको उसकी मृत देह को सजाने के काम में लाया जाए। पुष्प की यह मनोकामना भी नहीं है कि पूजा के समय उसको देवताओं के सिर पर चढ़ा दिया जाए। ऐसा अवसर मिलने पर भी उसको अपने सौभाग्य पर गर्व नहीं होगा। उसकी तो एकमात्र अभिलाषा यह है कि माली उसको डाली से तोड़कर उस रास्ते पर फेंक दे, जिस पर होकर स्वदेश पर बलिदान होने और उसको अपना सिर देने के लिए वीर पुरुष जाते हैं।

पुष्प चाहता है कि उन वीरों के पैरों के नीचे कुचला जाकर वह स्वयं को धन्य अनुभव करे कि वह देश के कुछ काम आया। कवि बता रहा है कि पर्वत की इच्छा देशहित का साधन बनने की है। पर्वत ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे सोने से मढ़ा हुआ सुमेरु पर्वत न बनाए। वह इतना मूल्यवान पर्वत बनने का इच्छुक नहीं है। वह यह भी नहीं चाहता कि उसकी कोख से मूल्यवान रत्न खोदकर निकाले जाएँ। उसकी इच्छा वनस्पतियों से आच्छादित होकर सुन्दर बनने की भी नहीं है। उसकी तो ईश्वर से यही एक प्रार्थना है कि वह उसके अन्दर से गंगा और यमुना जैसी नदियाँ पैदा करे, जिससे इन नदियों में बहने वाले पानी से वह मातृभूमि के चरण धो सके और उसे हरा-भरा बना सके। वह चाहता है कि ईश्वर उसकी यह इच्छा बिना देर लगाए पूरा कर दे।

प्रश्न 12.
कविता को कंठस्थ करं सस्वर सुनाइए।
उत्तर:
संकेत-छात्र कविता को कंठस्थ करें ओर कक्षा में सुनाएँ।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुष्प की अभिलाषा क्या है ?
उत्तर:
पुष्प की अभिलाषा स्वदेश पर स्वयं को बलिदान करने की है। प्रश्न 2, पर्वत ने क्या इच्छा प्रगट की है ?
उत्तर:
पर्वत ने अपने भीतर से नदी बहाकर तथा उस पानी से भूमि को हरा-भरा बनाने की इच्छा प्रकट की है।

प्रश्न 3.
पुष्प स्वयं को किससे अधिक सौभाग्यशाली मानता है ?
उत्तर:
पुष्प देश की रक्षा के लिए तत्पर सैनिकों के पैरों से स्वयं को कुचले जाने को देवताओं के सिर पर चढ़ने से अधिक सौभाग्यशाली मानता है।

प्रश्न 4.
पर्वत की अभिलाषा में क्या करना किससे अधिक सम्माननीय है ?
उत्तर:
पर्वत की अभिलाषा में मातृभूमि को हरा-भरा करना मणि-माणिक्य प्रकट करने से अधिक सम्माननीय है।

प्रश्न 5.
पर्वत ईश्वर से अपनी किस इच्छा की शीघ्र पूर्ति चाहता है ?
उत्तर:
पर्वत ईश्वर से अपनी उस इच्छा की शीघ्र पूर्ति चाहता है कि उसके अन्दर से गंगा-यमुनी जैसी नदियाँ निकलें जिनके जल से मातृभूमि हरी-भरी बन सके।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुष्प की अभिलाषा’ कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर:
‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता में कवि ने देश के प्रति समर्पित होने का संदेश दिया है। पुष्प के माध्यम से कवि ने प्रेरणा दी है कि हमें अपने देश के लिए त्याग-बलिदान करने में पीछे नहीं रहना चाहिए। हमें अपने देश पर स्वयं को बलिदान करने के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘पर्वत की अभिलाषा’ कविता में क्या संदेश छिपा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘पर्वत की अभिलाषा’ कविता चतुर्वेदी जी की एक संदेशपरक रचना है। इस कविता में मानव जीवन के सर्वश्रेष्ठ गुण परोपकार को अपनाने का संदेश छिपा है। पर्वत अपनी नदियों के जल से धरा को हरा-भरा बनाने के कार्य में ही अपने जीवन की सार्थकता समझता है। इसी प्रकार परोपकार पूर्ण जीवन ही सार्थक है।

प्रश्न 3.
चतुर्वेदी जी के काव्य में देश के प्रति समर्पण और त्याग का अदम्य भाव मिलता है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चतुर्वेदी जी का काव्य ओज का भण्डार है। उसमें युवकों को स्वदेश के प्रति समर्पित होने का महान् संदेश छिपा है। कवि ने स्वदेश के लिए त्याग और बलिदान करने को अत्यन्त पवित्र कर्म माना है। ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता में पुष्प ने माली से स्वयं को बलिदानी वीरों की सेवा में अर्पित होने का अवसर देने की प्रार्थना की है।
उदाहरणार्थ :
मुझे तोड़ लेना वनमाली।
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ पर जाएँ वीर अनेक।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न:
”प्रकृति और देश-प्रेम का सम्मिश्रण माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाओं की प्रमुख विशेषता है।” उदाहरण देकर इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
चतुर्वेदी जी का काव्य मूलतः देश-प्रेम का काव्य है। उसमें देश से प्रेम करने, उसके लिए त्याग तथा बलिदान करने, उसकी स्वाधीनता के लिए क्रान्ति पथ को अपनाने आदि का आह्वान है। चतुर्वेदी जी भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गरिमा के चित्रकार हैं। वह भारत की अनेकता में एकता को उसकी महत्वपूर्ण विशेषता मानते हैं। प्रकृति और देशप्रेम का सम्मिश्रण चतुर्वेदी जी के काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता है। आपने प्रकृति के माध्यम से देश के प्रति समर्पित होने तथा उसके लिए बलिदान करने का संदेश दिया है। इससे उनकी कविता उपदेशात्मकता के दुष्प्रभाव से मुक्त रह सकी है। प्रकृति की वस्तुओं को प्रतीक मानकर कवि ने लाक्षणिक भाषा में देश के लिए बलिदान होने का मनोभाव व्यक्त किया है। पुष्प को देवताओं के सिर पर चढ़ने की अपेक्षा बलिदानी वीरों के पैरों तले रौंदे जाने की कामना की है।

अभिलाषा

पाठ-परिचय

‘अभिलाषा’ शीर्षक पाठ में पुष्प तथा पर्वत की अभिलाषा प्रकट की गई है। पुष्प की अभिलाषा के माध्यम से कवि ने राष्ट्र-प्रेमी बलिदानी वीरों के सम्मान का संदेश दिया है। पुष्प कहता है कि देवताओं के सिर पर चढ़ाए जाने, देव बालाओं के आभूषणों में गुँथे जाने तथा सम्राटों के शव पर डाले जाने की अपेक्षा उसको राष्ट्र के हित में अपना बलिदान देने वाले वीरों के पैरों से कुचला जाना प्रिय है। पर्वत भी नहीं चाहता कि वह स्वर्ण से मढ़ा हुआ सुमेरु पर्वत बने, उसकी कोख से मणियाँ निकलें अथवा वह वन देवी की क्रीड़ा का स्थल बने। वह चाहता है कि वह गंगा-यमुना नदियों का उद्गम बने जिससे उनके जल से मातृभूमि शस्यश्यामला बन सके, वह संसार का उपकार कर सके।

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय धारा के कवि माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
कवि-परिचय
जीवन-परिचय-राष्ट्रीय धारा के कवि माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन् 1889 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री नन्दलाल चतुर्वेदी थे। आपको उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं मिल सका। स्वाध्याय द्वारा आपने संस्कृत, अंग्रेजी, गुजराती, बंगला आदि का ज्ञान प्राप्त किया था। सागर विश्वविद्यालय ने आपको डी.लिट्. की मानद उपाधि प्रदान की। भारत सरकार ने आपको ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सुशोभित किया। आपको देहावसान 30 जनवरी, सन् 1968 को हो गया। साहित्यिक परिचय-माखनलाल चतुर्वेदी कुशल पत्रकार तथा राष्ट्रीय विचारधारा के सफल कवि थे। साहित्य-क्षेत्र में आप एक भारतीय आत्मा’ के उपनाम से प्रसिद्ध हैं। आपने कविता, कहानी, नाटक, निबन्ध, संस्मरण आदि विधाओं पर लेखनी चलाई है। पत्रकार और साहित्यकार के रूप में आपने देशप्रेम तथा त्याग-बलिदान की प्रेरणा दी है। आपकी रचनाओं में करुणा की पुकार, पौरुष की ललकार, क्रान्ति का ओज, राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव मिलता है। रचनाएँ-हिमकिरीटिनी, हिमतरंगिनी, युगचरण, समर्पण, माता, वेणु लो पूँजे धरा (काव्य), साहित्य के देवता (गद्य-काव्य), चिन्तक की लाचारी, आत्मदीक्षा ( भाषण), कृष्णार्जुन युद्ध (नाटक), वनवासी, कला का अनुवाद (कहानी) आदि चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएँ हैं। पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

(1) पुष्प की अभिलाषा चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि! डाला जाऊँ। चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढू, भाग्य पर इठलाऊँ, मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ पर जाएँ वीर अनेक।

शब्दार्थ-चाह = इच्छा। सुरबाला = देवनारी, अप्सराएँ। शव = मृत देह। इठलाऊँ = गर्व करूं। वनमाली = उपवन की देखभाल करने वाला। सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘अभिलाषा’ शीर्षक कविता की ‘पुष्प की अभिलाषा’ से लिया गया है। इसके रचयिता माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि ने यहाँ पुष्प की इच्छा के माध्यम से राष्ट्र के लिए त्याग और बलिदान करने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या-कवि कहता है कि पुष्प की अभिलाषा राष्ट्र-हित में समर्पित होने की है। फूल यह नहीं चाहता कि उसको गूंथकर ऐसे आभूषण तैयार किए जायें जिनको पहनकर स्वर्ग की अप्सराओं का सौन्दर्य दूना हो जाए। वह यह भी नहीं चाहता कि किसी सम्राट की मृत्यु के बाद उसको उसकी मृत देह को सजाने के काम में लाया जाए। पुष्प की यह मनोकामना भी नहीं है कि पूजा के समय उसको देवताओं के सिर पर चढ़ा दिया जाए। ऐसा अवसर मिलने पर भी उसको अपने सौभाग्य पर गर्व नहीं होगा। उसकी तो एकमात्र अभिलाषा यह है कि माली उसको डाली से तोड़कर उस रास्ते पर फेंक दे, जिस पर होकर स्वदेश पर बलिदान होने और उसको अपना सिर देने के लिए वीर पुरुष जाते हैं। पुष्प चाहता है कि उन वीरों के पैरों के नीचे कुचला जाकर वह स्वयं को धन्य अनुभव करे कि वह देश के कुछ काम आया।

विशेष-
(1) सरल भावानुकूल खड़ी बोली है।
(2) वीररस, ओज गुण है।
(3) अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार है।

(2) पर्वत की अभिलाषा तू चाहे हरि, मुझे स्वर्ण को मढ़ा सुमेरु बनाना मत, चाहे मेरी गोद-खोद कर, मणि-माणक प्रगटाना मत, लावण्य-लाडली वन देवी का, लीला-क्षेत्र बनाना मत, जगती-तल का मल धोने को, गंगा-यमुना मैं बहा सकें। यह देना, देर लगाना मत।

शब्दार्थ-मढ़ी = चारों तरफ से घिरा हुआ। सुमेरु = पुराणों में बताया गया एक पर्वत। मणि-माणक = मूल्यवान् रत्न। प्रगटाना = निकालना। लावण्य = सुन्दरता। लाड़ली = प्रिय। लीला = क्रीड़ा। क्षेत्र = भूमि। जगती = धरती, मातृभूमि। तल = तला, भूमि।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘पर्वत की अभिलाषा’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी हैं। कवि ने पर्वत की इच्छा को आधार बनाकर राष्ट्र-प्रेम तथा देश की भूमि को हरी-भरी बनाने का संदेश दिया है।

व्याख्या-कवि बता रहा है कि पर्वत की इच्छा देशहित का साधन बनने की है। पर्वत ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे सोने से मढ़ा हुआ सुमेरु पर्वत न बनाए। वह इतना मूल्यवान पर्वत बनने का इच्छुक नहीं है। वह यह भी नहीं चाहता कि उसकी कोख से मूल्यवान रत्न खोदकर निकाले जाएँ। उसकी इच्छा वनस्पतियों से आच्छादित होकर सुन्दर बनने की भी नहीं है। उसकी तो ईश्वर से यही एक प्रार्थना है। कि वह उसके अन्दर से गंगा और यमुना जैसी नदियाँ पैदा करे, जिससे इन नदियों में बहने वाले पानी से वह मातृभूमि के चरण धो सके और उसे हरा-भरा बना सके। वह चाहता है कि ईश्वर उसकी यह इच्छा बिना देर लगाए पूरा कर दे।

विशेष-
(1) कवि ने भावानुकूल तत्सम शब्दों वाली खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
(2) वीर रस तथा ओजगुण है।
(3) अनुप्रास अलंकार एवं मानवीकरण अलंकार है।

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