RBSE Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 4 योग
RBSE Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 4 योग
Rajasthan Board RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 योग
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार योग क्या है?
उत्तर:
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार सिद्धि-असिद्धि में समान रहना योग है-अर्थात् मान-अपमान, शीतोष्ण, पाप| पुण्य, शत्रु-मित्र, लाभ-हानि, सुख-दु:ख इत्यादि में समान भाव से रहना ‘योग’ है।
प्रश्न 2.
प्राणायाम क्या है?
उत्तर:
स्थूल शरीर का मूल आधार प्राण है, जो मृत्युपर्यन्त | इसके साथ रहता है।
प्रश्न 3.
त्रिकोणासन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
त्रिकोणासन शब्द का अर्थ त्रि अर्थात् तीन कोणों वाला आसन है। इस आसन के अभ्यास के समय काया एवं पैरों की बनी आकृति तीन भुजाओं के सदृश्य दिखाई देती है। इसलिए इस अभ्यास को त्रिकोणासन कहते हैं।
प्रश्न 4.
पादहस्तासन को और किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
उत्तानासन के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 5.
सर्वोइकल स्पॉन्डिलाइटिस में कौन से आसन के अभ्यास से आराम मिलता है ?
उत्तर:
अर्द्धचक्रासन से।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
योग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
योग”योग कर्मसु कौशलम्-अर्थात् कर्मों की कुशलता ‘योग’ है।” इसी प्रकार कठोपनिषद् के अनुसार इन्द्रियों (ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियों और मन) के स्थिर होने से वे प्रमाद रहित हो जाती हैं। उनमें शुभ संस्कारों की उत्पत्ति और अशुभ आदतों का नाश होने लगता है। यह अवस्था ही ‘योग’ है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार सिद्धि-असिद्धि में समान रहना ‘योग” है-अर्थात् मान-अपमान, शीतोष्ण, पाप-पुण्य, शत्रु-मित्र, लाभ-हानि, सुख-दुःख इत्यादि में समान भाव से रहना ‘योग’ है। संक्षेप में कहा जाए तो ‘योग’ एक अध्यात्मिक अनुशासन एवं अत्यन्त सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित ज्ञान है जो मन और शरीर के बीच सामंजस्य का कार्य करता है। यह स्वस्थ जीवन की कला एवं विज्ञान है।
प्रश्न 2.
वृक्षासन के क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर:
वृक्षासन के लाभ –
- तंत्रिका से सम्बन्धित स्नायुओं के समन्वय को बेहतर बनाता है, शरीर को संतुलित बनाता है, सहनशीलता एवं जागरूकता बढ़ाता है।
- पैरों की मांसपेशियों को गठीला बनाता है और लिगामेंट्स का भी कायाकल्प करता है।
प्रश्न 3.
वक्रासन में कौन-कौनसी सावधानियाँ रखनी चाहिए ?
उत्तर:
वक्रासन में रखी जाने वाली सावधानियाँपीठ दर्द, कमर दर्द आदि विकारों में तथा किसी प्रकार की शल्य क्रिया के बाद अभ्यास से बचना चाहिए।
प्रश्न 4.
भुजंगासन की विधि समझाइये।
उत्तर:
भुजंगासन की विधि –
स्थिति मकरासन (पेट के बल लेटना, ठुड्डी सामने देखती हुई) हाथों पर सिर टिकाते हुए शरीर को शिथिल करना चाहिए।
- पैरों को आपस में मिलाना, हाथों को खींचकर रखते हुए ललाट को जमीन पर रहने देना चाहिए।
- दोनों हाथों को शरीर के बगल में रखना। हथेलियों और कोहनियों को जमीन पर रहने देना चाहिए।
- धीरे-धीरे श्वास अन्दर खींचते हुए ठुड्डी और नाभि क्षेत्र तक शरीर को ऊँचा उठाना चाहिये। कुछ देर (20-30 सेकण्ड) इस अवस्था में रुकना चाहिए। अच्छा अभ्यास हो जाने पर हथेलियाँ कमर के पास रखते हुए पूरे शरीर (ठुड्डी से नाभि तक) ऊपर उठाना चाहिये।
- प्रारम्भिक अवस्था में धीरे-धीरे वापस आना।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
योग के अष्टांग समझाइये। उत्तर-योग के अष्टांग योग के आठ अंग माने गए
- यम – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
- नियम – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
- आसन – पातंजलि योगसूत्र के अनुसार-“सुख एवं स्थिरतापूर्वक बैठना ही आसन है।”
- प्राणायाम – स्थूल शरीर का मूल आधार प्राण है, जो मृत्युपर्यन्त इसके साथ रहता है।
- प्रत्याहार – मन पर अंकुश लगाना, कर्मों में लिप्तता समाप्त कर देना आदि विधियाँ इन्द्रियों को विषय-भोगों से दूर करती है, यही प्रत्याहार है।
- धारणा – प्राणायाम के द्वारा मन रूपी चंचल अश्व पर लगे अंकुश से मन किसी एक तथ्य तक निहित हो जाता है। यही धारणा है।
- ध्यान – धारणा किए गए स्थान पर वृत्तियों के प्रवाह के एक रस हो जाने को ‘ध्यान’ कहते हैं।
- समाधि – ध्याता में ध्येय के स्वभाव का आवेश होना ही समाधि है।
प्रश्न 2.
सूर्य नमस्कार में किन-किन आसनों का अभ्यास होता है? विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
सूर्य नमस्कार में निम्न आसनों का अभ्यास होता है।
सिद्धस्थिति (दूसरा नाम : नमस्कारासन)
- दोनों पैरों को अँगूठों सहित मिलाना।
- सम्पूर्ण शरीर दंड (लकड़ी/लाठी) के समान सीधा एवं खेड़ा।
- सीना तना हुआ, कंधे पीछे, गर्दन सीधी।
- हाथों के पंजे जुड़े हुए, अँगुलियाँ जुड़ी हुई, जमीन के लंबवत्, अँगूठे सीने से चिपके हुए नमस्कार की मुद्रा।
- दोनों कोहनी से कलाई तक की बाजू जमीन के समानान्तर
- दृष्टि नाक के अग्रभाग पर।
लाभ –
सिद्ध स्थिति में हाथ की कलाई तथा पंजे में 90° का कोण बनने से कलाई एवं पंजों में तनाव उत्पन्न होता है। सीधे (तना हुआ) खड़े रहने की आदत से रीढ़ की बीमारियाँ नहीं होती हैं। आत्मविश्वास बढ़ता है। बाजू एवं कंधे की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।
पहली स्थिति (दूसरा नाम : ऊर्ध्वहस्तासन)
- हाथों के पंजे चिपके हुए नमस्कार मुद्रा में ऊपर आकाश की ओर उठावें ।
- हाथ सीधे, कोहनियों में खंब नहीं, सिर पीछे की ओर।
- दृष्टि हाथ के पंजों के मूल पर (कलाई पर)
- पैर सीधे, घुटनों की कटोरियाँ खिंची हुई ।
- रीढ़ को पीछे की ओर झुकाते हुए कमर के ऊपर का सारा शरीर पीछे झुका हुआ।
लाभ –
रीढ़ को पीछे झुकाने से उत्पन्न होने वाले तनाव के कारण रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है। घुटनों से लेकर गर्दन तक शरीर को आगे से तान मिलने के कारण पेट (तोंद) नहीं निकलती है। लम्बा श्वास लेने से फेंफड़े उत्तेजित होकर अधिक कार्यक्षम बनते हैं।
दूसरी स्थिति (दूसरा नाम : हस्तपादासन)
- हाथों को कोहनियों से न मोड़ते हुए सामने से सीधे नीचे लावें।
- पंजों को पैरों के बगल में जमीन पर पूरा टिकायें, पंजों में कंधों के बराबर अंतर रखें।
- दोनों पंजे एवं पैर सामने से एक रेखों में हों।
- ठुड्डी सीने के ऊपर चिपकी हुई।
- मस्तक घुटनों से लगा हुआ।
- पैर एवं घुटने सीधे।
लाभ –
इस स्थिति में आगे से नीचे झुकने के कारण पीठ की सभी मांसपेशियों का उत्तम व्यायाम होता है। पेट के दबाव बढ़ने से आंत, प्लीहा, यकृत की कार्यक्षमता बढ़ती है। घुटनों को सीधे रखते हुए पंजों को जमीन पर टिकाने से कलाइयों का व्यायाम होता है। इस आसन को करने से गुर्दो की सक्रियता बढ़ती है।
तीसरी स्थिति ( दूसरा नाम : अर्द्धभुजंगासन)
- दाहिना पैर व दोनों पंजे जमीन पर स्थिर रखते हुए बायाँ पैर पीछे लेकर जावें, घुटना बायें पैर का एवं सभी अँगुलियाँ जमीन पर टिकी हुई होनी चाहिए।
- दाहिना पैर मुड़ा हुआ हो तथा उसकी जंघा, पिंडली तथा सीने की आखरी पसली एक दूसरे से चिपकी हुई हो। पूरा शरीर धनुष की तरह मुड़ा हुआ होना चाहिए।
- कोहनियाँ सीधी, सीना आगे।
- कंधे एवं ललाट (मस्तक) पीछे।
- दृष्टि ऊपर।
लाभ –
इस स्थिति में पैरों की हलचल से टखना, घुटना, जंघा एवं पिंडली की मांसपेशियों का व्यायाम होने से उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है। घुटनों को मोड़ने से जोड़ों की हड्डियाँ मजबूत होती
हैं।
चौथी स्थिति (दूसरा नाम : मकरासन)
- दाहिना पैर पीछे लेकर दोनों पैर एवं एडियाँ मिलावें।
- हाथ और पैर सीधे, घुटने एवं कोहनियाँ सीधी।
- पंजे एवं पैर की अँगुलियों पर सम्पूर्ण शरीर पैर से लेकर सिर तक एक सीधी रेखा में तोलना।
- दृष्टि सीधी जमीन की ओर।
लाभ –
इस स्थिति में रीढ़ की हड्डी सीधी तनी हुई रहती है। पूरे शरीर का वजने कंधे एवं कलाई पर होने से उनकी ताकत में वृद्धि होती है।
पाँचव स्थिति (दूसरा नाम : साष्टांग नमस्कारासन)।
- हाथों को कोहनियों से मोड़कर सिर से पैर तक नमस्कार करें जिसमें मस्तक, सीना, दोनों पंजे, दोनों घुटने, दोनों पैरों की उँगलियाँ (आठ अंग) जमीन पर टिक जावें।
- पेट जमीन से ऊपर उठा हुआ।
- कोहनियों को एक दूसरे की ओर खींचे अर्थात् शरीर से चिपकायें।
- ठुड्डी सीने के ऊपर चिपकी हुई।
लाभ –
इस स्थिति में पेट ऊपर उठाने एवं ठुड्डी को सीने से चिपकाने से रीढ़ की हड्डी में दबाव बढ़कर उनकी मालिश होती है। कमर, गर्दन व हाथों की मांसपेशियों पर तनाव आने से उनका व्यायाम होता है। पेट ऊपर उठाने से पेट के अंदर के अवयवों में खिंचाव आता है। मूत्राशय, गर्भाशय, बड़ी आंत के आखिरी हिस्से में खिंचाव आता है। इससे बार-बार लघुशंका जाने की शिकायत दूर होती है।
छठी स्थिति –
- हाथ सीधे, कोहनियों में कोई खंब (झुकाव) नहीं।
- सीना सामने
- कंधे एवं मस्तक पीछे
- दृष्टि ऊपर आसमान की ओर
- घुटने जमीन पर टिके हुए, पैर एवं एड़ियाँ जुड़ी हुई।
- कमर का हिस्सा जहाँ तक संभव हो दो पंजों के बीच में खींचें।
- पैरों की उँगलियाँ जुड़ी हुई एवं स्थिर।
- रीढ़ की हड्डी धनुष के समान।
लाभ –
इस स्थिति में शरीर भुजंग (सांप) की तरह होता है। इस स्थिति में कंठमणी से लेकर जंघा तक सीने की तरफ से खिंचाव होता है, जिससे सीना, पेट, बाजू एवं जंघा की मांसपेशियाँ मजबूत बनती हैं। पेट की चर्बी कम होती है। रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ने से रीढ़ मजबूत होती है। गर्दन, पीठ, कमर का दर्द कम होता है। इस स्थिति से रीढ़ की हड्डी में कैल्शियम की मात्रा बढ़ती है।
सातवीं स्थिति (अन्य नाम पर्वतासन, त्रिकोणासन, अधोमुखश्वानासन)।
- पैर एवं हाथों के पंजों को अपने स्थान से न हिलाते हुए कमर को ऊपर उठायें।
- एड़ियाँ जमीन पर टिकी हुई।
- हाथ सीधे, कोहनियाँ सीधी।
- एड़ी, कमर एवं कलाई का त्रिकोण।
- ठुड्डी सीने से चिपकी हुई ।
- दृष्टि नाक के अग्रभाग पर।
लाभ –
इस स्थिति में शरीर का पूरा वजन कलाई एवं पैर के पंजों पर होता है। पीठ की ओर से शरीर का अच्छा खिंचाव होता है। इनसे जुड़ी हुई सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। अधोमुखश्वानासन की स्थिति बनने से थकान दूर होती है। एड़ी की हड्डियाँ नरम होती हैं। टखने मजबूत बनते हैं। पैर सुन्दर होते हैं। कंधों का संधिवात ठीक होता है। हृदय एवं दिमाग की कोशिकाओं को नवचैतन्य प्राप्त होता है। इस आसन को करने से शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है।
आठवीं स्थिति (दूसरा नाम : अर्धभुजंगासन)
- बायाँ पैर आगे लेकर पूर्व के स्थान पर रखें।
- दाहिने पैर का घुटना एवं पैर की उँगलियाँ जमीन पर टिकी हुई।
- बाकी शेष शरीर की स्थिति क्रमांक तीन के अनुसार।
- तीसरी एवं आठवीं स्थिति में पैरों की हलचल परस्पर पूरक बनाने के लिये प्रत्येक सूर्यनमस्कार में पैर बदलना जरूरी है। एक नमस्कार में बायाँ पैर तो दूसरे में दाहिना पैर आगे-पीछे करना होता है। ऐसा ही क्रम चालू बनाये रखें।
लाभ –
इस स्थिति में दोनों पैरों को समान अवसर देना आवश्यक है। इसमें पैरों की मांसपेशियों का व्यायाम होने से पिंडलियों के स्नायु बलवान होते हैं। इसमें घुटनों का खुलना, बन्द होना सुसंगत होने से घुटनों के जोड़ मजबूत एवं कार्यक्षम होते हैं।
नौवीं स्थिति (दूसरा नाम : हस्तपादासन)
- हाथों के पंजों को अपने स्थान पर स्थिर रखते हुए दाहिने पैर को आगे बढ़ाकर पूर्व के स्थान पर रखें।
- पैर एक-दूसरे से चिपके हुए।
- पैर सीधे, घुटने खिंचे हुए।
- हाथ सीधे, कोहनियाँ सीधी।
- ठुड्डी सीने के ऊपरी हिस्से से चिपकी हुई।
- मस्तक घुटनों पर टिका हुआ।
- शरीर की हलचल को नियंत्रित रखें।
- क्रमांक दो की स्थिति के अनुसार।
लाभ –
यह स्थिति क्रमांक दो की स्थिति जैसी ही है। क्रमांक दो की स्थिति में मिलने वाले लाभ यहाँ भी मिलते हैं। पीठ की मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम होता है। पेट की मांसपेशियों की कार्यक्षमता बढ़ती है। कलाइयों का व्यायाम होने से कलाइयाँ मजबूत होती हैं।
दसवीं स्थिति –
- शुरू की ‘सिद्ध की स्थिति के अनुसार सम्पूर्ण शरीर सीधा दंड के समान खड़ा।
- हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े हुए।
- सीना तना हुआ, गर्दन सीधी।
- दृष्टि नाक के अग्रभाग पर।
- यह सूर्यनमस्कार की अंतिम स्थिति होती है।
- इस स्थिति में दो सेकण्ड रुकने से आगामी सूर्यनमस्कार की सिद्धता होती है।
लाभ –
सिद्ध स्थिति के अनुसार प्रत्येक सूर्यनमस्कार करने से पूर्व एक-एक नाम मंत्र बोलना चाहिये। इस प्रकार 13 समंत्र सूर्यनमस्कार करने के पश्चात् फलप्राप्ति का श्लोक बोलना चाहिए।
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने-दिने। आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यम् तेजः तेषां च जायते।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
श्वसन की तीन क्रियाएँ कौनसी हैं?
उत्तर:
श्वसन की तीन क्रियाएँ पूरक, रेचक व कुंभक
प्रश्न 2.
सूर्य नमस्कार पूर्ण करने के बाद बोली जाने वाला श्लोक बताइये।
उत्तर:
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने-दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यम् तेजः तेषां च जायते ।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पेट के आसनों के प्रकार व कार्य लिखें।
उत्तर:
पेट के आसनों के प्रकार व कार्य –
- सर्वांगासन – रक्त संचरण में सुधार होता है।
- हलासन – मेरुदण्ड में खिंचाव आता है। ऊँचाई बढ़ाने में यह आसन सहायक है।
- मत्स्यासन – गर्दन की समस्त नाड़ियों में रक्त संचार भली प्रकार होता है। नेत्र शक्ति बढ़ती है।
- उत्तानपादासन – रीढ़ की हड्डियों की कोशिकाएँ पुष्ट होती हैं।
- भुजंगासन – पेट की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।
- धनुरासन – मेरुदण्ड एवं पीठ की मांसपेशियाँ सशक्त होती हैं।
- पश्चिमोत्तानासन – पेट की मांसपेशियों में रक्त संचरण भली प्रकार होता है।
प्रश्न 2.
सूर्य नमस्कार के लाभ बताइये।
उत्तर:
सूर्य नमस्कार के लाभ-इससे शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास होता है। शरीर में संयम आकर अहंकार में कमी आती है। तेज और शक्ति का संचार होता है। शरीर के सभी अवयव, जोड़ एवं मांसपेशियाँ कार्यक्षम होकर शरीर लचीला एवं मजबूत बनता है। दीर्घायु प्राप्त होती है, मन। एकाग्रचित होता है व शरीर निरोगी रहता है। उत्तम स्वास्थ्य का मतलब है शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य और यह प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करने से प्राप्त होता है। एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
योगासन के लिए सामान्य नियम लिखिए।
उत्तर:
योगासन के सामान्य नियम –
आसन से पहले –
- शौच निवृत्ति, आस-पास का वातावरण, शरीर व मन की शुद्धि करना।
- योग का अभ्यास खाली पेट करना ठीक रहता है।
- अभ्यास के लिए बिछायत चटाई, दरी, कंबल का प्रयोग करना चाहिए।
- आरामदायक सूती वस्त्र धारण किए हों तो सरलता रहती है।
- थकावट, बीमारी, तनाव व जल्दबाजी की स्थिति में योगासन करने से बचना चाहिए।
- यदि पुराने रोग, पीड़ा व हृदय सम्बन्धी समस्या हो तो अभ्यास से पूर्व चिकित्सक या योग विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
- गर्भावस्था या मासिक-धर्म के समय योग से पूर्व योग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
आसन करते समय –
- प्रार्थना अथवा स्तुति से मन एवं मस्तिष्क को शिथिल करने एवं वातावरण निर्मित करने में सहयोग मिलता है।
- धीरे-धीरे आरामदाय; ति में शरीर एवं श्वासप्रश्वास की सजा, श्वास गति को बिना रोके करना चाहिये।
- शरीर को शिथिल रखना, किसी प्रकार के झटके से बचना चाहिए।
- अपनी शारीरिक व मानसिक स्थिति के अनुरूप ही अभ्यास करना चाहिए।
- अच्छे परिणाम आने में कुछ समय लगता है। इसलिए नियमित अभ्यास, निर्देश, सावधानियों का पालन तथा योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में अभ्यास करना चाहिए।
- योग सत्र का समापन ध्यान, गहन मौन एवै शांति पाठ के साथ करने से लाभ बढ़ते हैं।