RBSE Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 7 संतुलित आहार: क्या खायें क्या न खायें?
RBSE Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 7 संतुलित आहार: क्या खायें क्या न खायें?
Rajasthan Board RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 संतुलित आहार: क्या खायें क्या न खायें?
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक सामान्य व्यक्ति में कितनी कैलोरी की मात्रा होती है?
उत्तर:
एक सामान्य व्यक्ति द्वारा प्रतिदिन खाद्य पदार्थों द्वारा 2500 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त की जाती है।
प्रश्न 2.
वसा के प्रमुख स्रोत लिखिए।
उत्तर:
वसा दूध, घी, मक्खन, मांस, अण्डे की जर्दी, सूअर की चर्बी, मछली का तेल, मूंगफली, नारियल, सरसों, तिल्ली, सूखे मेवे, सोयाबीन, अखरोट व पिस्ता आदि से प्राप्त होती है।
प्रश्न 3.
विटामिन ‘ए’ प्राप्ति के मुख्य स्रोत कौनकौन से हैं?
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ प्राप्ति के मुख्य स्रोत – दूध, मक्खन, पनीर, गाजर, मछली का तेल, अण्डे की जर्दी, घी, टमाटर व हरी सब्जियाँ आदि ।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पोषक तत्त्वों का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
पोषक तत्त्वों का महत्व – पोषक तत्वों से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। भोजन में कई पौष्टिक तत्त्व होते हैं जिन्हें मुख्य रूप से 6 वर्गों में बाँटा जा सकता है। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज लवण एवं पानी। इन पौष्टिक तत्त्वों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा हमें ऊर्जा प्रदान करने का कार्य करते हैं। इनमें प्रतिदिन 25 प्रतिशत ऊर्जा वसा से, 10 प्रतिशत प्रोटीन से एवं शेष ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट से मिलती है। परन्तु भोजन में ये तीन तत्त्व ही पर्याप्त नहीं होते अपितु विटामिन व खनिज लवण भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अत: 2500 कैलोरी ऊर्जा के लिए निम्नलिखित तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है।
आहार में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्वों के प्रमुख कार्य –
आहार में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्त्वों के प्रमुख कार्य निम्नांकित हैं –
प्रश्न 2.
खनिज लवण की कमी से होने वाले रोगों को बताइये।
उत्तर:
खनिज लवण की कमी से होने वाले रोग –
- कैल्शियम के अभाव के रोग – कैल्शियम की कमी से हड़ियाँ कमजोर व विकृत हो जाती हैं तथा बच्चों में रिकेट्स रोग हो जाता है। कैल्शियम की कमी से दाँत शीघ्र टूट। जाते हैं, दिल की धड़कन की गति बढ़ने लगती है, पूरी तरह नींद नहीं आती, गुर्दे समुचित तरीके से काम नहीं करते हैं जोड़ों में दर्द और सूजन आ जाती है तथा मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
- आयोडीन के अभाव के रोग – इसके अभाव में घेघा रोग हो जाता है तथा बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है तथा गण्ठमाला रोग होने की संभावना हो जाती है।
- मैग्नीशियम के अभाव के रोग – मैग्नीशियम के अभाव में स्नायु सम्बन्धी रोग तथा ऐंठन के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
- पोटेशियम के अभाव के रोग – इसकी कमी से मन में घबराहट रहती है, नींद कम आती है और कब्ज रहता है।
- जस्ते के अभाव के रोग – जस्ते की कमी से मधुमेह नामक रोग हो जाता है।
- लौह के अभाव के रोग – इसकी कमी से एनीमिया, रक्ताल्पता, रक्तहीनता नामक रोग हो जाती है।
प्रश्न 3.
भोजन की कैलोरी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भोजन की कैलोरी – पोषक तत्वों से हमें जो ऊर्जा प्राप्त होती है, उसकी माप को कैलोरी कहते हैं, यह भौतिक कैलोरी की तुलना में एक हजार गुना अधिक होती है।
प्रश्न 4.
शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता क्यों है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शरीर को स्वस्थ रखने तथा कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। मनुष्य की ऊर्जा विभिन्न कार्यों को करने में खर्च होती है, जिसकी पूर्ति सन्तुलित भोजन के विभिन्न पौष्टिक तत्त्व करते हैं।
प्रश्न 5.
भोजन सम्बन्धी 6 अच्छी आदतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भोजन सम्बन्धी अच्छी आदतें –
- आहार लेने से पूर्व हाथ, पैर व मुँह साफ करें।
- भोजन निश्चित समय पर हल्का वे ताजा करना चाहिए।
- भोजन अच्छी तरह से चबा-चबा कर करना चाहिए।
- अरुचिकर भोजन न करें।
- भूख लगने पर ही भोजन करें।
- खुली वस्तुओं का सेवन न करें।
- बासी व बदबूदार पदार्थों का सेवन न करें।
- भोजन के साथ टमाटर, मूली, गाजर, फल आदि का प्रयोग अवश्य करें।
- भोजन करते समय क्रोध, चिन्ता आदि न करें। सदैव प्रसन्नचित्त रहकर भोजन करें।
- वातावरण मधुर, शान्त एवं प्रसन्नतापूर्ण हो।
- भोजन के बीच में पानी का सेवन कम करें। भोजन करने के 1 घण्टे बाद पानी पियें ताकि पाचन में सहायता मिल सके।
- भोजन में अधिक मिर्च-मसाले का प्रयोग न करें।
- रात्रि का भोजन सोने से 2 घण्टे पूर्व करें ताकि पानी पी सकें।
- भोजन के तुरन्त बाद कठोर शारीरिक व मानसिक परिश्रम न करें।
- आहार शरीर की आवश्यकता के अनुसार ही लें।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सन्तुलित भोजन किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिये तथा सन्तुलित भोजन के तत्त्वों का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सन्तुलित भोजन – सन्तुलित आहार वह है जिसमें शरीर को प्रोटीन, वसा, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट्स आवश्यकतानुसार उचित मात्रा में मिलें। हमारे भोजन में उन समस्त घटकों (तत्त्वों) का होना अनिवार्य है। जिनके द्वारा ये कार्य सम्पन्न होते हैं। सन्तुलित व उत्तम भोजन वही है जिसमें सभी पोषक तत्त्व मौजूद हों। डॉ. जी. पी. शेरी एवं एस.पी. सुखिया के अनुसार, ”सन्तुलित भोजन वह आहार है, जो कि मात्रा और गुण में सन्तुलित है तथा वृद्धि, विकास, शरीर के कार्य और स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को सही मात्रा में शामिल करता है।” सन्तुलित भोजन के तत्त्व – सन्तुलित भोजन में मुख्य रूप से 6 पोषक तत्त्व माने गये हैं।
प्रत्येक तत्त्व का अपना महत्त्व है इसलिए उपरोक्त समस्त तत्त्वों को भोजन में समावेश किया गया है, जिनसे आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है। प्रतिदिन 25 प्रतिशत ऊर्जा वसा से, 10 प्रतिशत प्रोटीन से एवं शेष ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट से मिलती है। परन्तु भोजन में ये तीन तत्त्व ही पर्याप्त नहीं होते अपितु विटामिन व खनिज लवण भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अतः 2500 कैरोली ऊर्जा के लिए निम्नलिखित तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है –
(1) प्रोटीन – प्रोटीन शरीर की वृद्धि एवं विकास में सहायक होते हैं। ये शरीर के प्रत्येक कोष में प्रोटोप्लाज्म के रूप में उपस्थित रहते हैं। प्रोटीन शरीर के निर्माणात्मक तत्त्व हैं तथा शरीर की प्रथम आवश्यक शक्ति हैं। प्रोटीन पाचन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित हो जाते हैं तथा शक्ति उत्पादन में सहायक होते हैं। प्रोटीन बीमारियों से लड़ने की शक्ति उत्पन्न करते हैं। इनकी अधिकता एवं न्यूनता शरीर के लिए हानिकारक हैं।
प्रोटीन प्राप्त करने के साधन –
- वनस्पति प्रोटीन – मटर, चना, उड़द, मूंग, सोयाबीन, काजू, बादाम, गेहूँ, चना, जौ, मूंगफली, मक्का आदि।
- प्राणिज प्रोटीन – मांस, मछली, अण्डा, पनीर, दूध दही।
(2) कार्बोहाइड्रेट्स – यह कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण से बना है। इसके अन्दर शक्कर व श्वेतसार सम्मिलित हैं, जो चर्बी के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। शक्कर हमें ग्लूकोज, लेक्टोज, गन्ना, फल तथा चुकन्दर से प्राप्त होती है। और श्वेतसार चावल, गेहूँ, बाजरा, मक्का तथा आलू से, यह शरीर में शक्ति और गर्मी उत्पन्न करती है। यह पाचन क्रिया में खाद्य पदार्थों के तत्त्वों को ग्लूकोज में बदल देती है, जो रक्त से मिलकर मांसपेशियों तक पहुँचता है। शारीरिक परिश्रम करने वाले खिलाड़ी आदि को इसकी अधिक आवश्यकता होती है।
कार्बोहाइड्रेट्स प्राप्त करने के साधन –
- श्वेतसार – चावल, गेहूँ, आलू, ज्वार, उड़द, मूंग, मसूर, चना आदि।
- शर्करा – ग्लूकोज, गन्ना, गुड़, चीनी, मीठे फल, शहद, खजूर, किसमिस, शकरकंद आदि। मोटे शरीर वाले व्यक्तियों को कार्बोहाइड्रेट का सीमित मात्रा में प्रयोग करना चाहिये।
(3) वसा – कार्बोहाइड्रेट्स की अपेक्षा वसा दुगुनी से अधिक ताप तथा ऊर्जा उत्पन्न करती है। इसके कारण शरीर में चिकनाई उत्पन्न होती है। त्वचा के नीचे एकत्रित हुई वसा बाहरी ठंडक और गर्मी से शरीर की रक्षा करती है। शरीर को सुडौल बनाती है। भोजन में वसा की कमी से त्वचा शुष्क हो जाती है। तथा त्वचा के विभिन्न रोग हो जाते हैं।
वसी प्राप्ति के साधन –
- वनस्पति – नारियल, सरसों, तिल, मूंगफली, विभिन्न तेल, घी, सोयाबीन, काजू, बादाम, अखरोट।
- प्राणिज – मांस, मछली, चर्बी, अण्डा, दूध, दही, मक्खन आदि।
(4) खनिज लवण – हमारे शरीर में लवण का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसमें कैल्शियम, पोटेशियम, लोहा, फॉस्फोरस आयोडीन और गन्धक होते हैं। ये शरीर के पूर्ण स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक हैं।
प्राप्त करने के साधन –
- वनस्पति साधन – अन्न, दाल, सेव, मेथी, शलजम, सोयाबीन, अमरूद, करेला, हरा धनिया, पोदीना, गाजर आदि।
- प्राणिज साधन – मांस, अण्डा, मछली आदि थायराइड ग्रन्थियों के लिए आयोडीन अत्यन्त उपयोगी है। जल या भोजन द्वारा यह हमें उचित मात्रा में प्राप्त हो जाता है। पोटेशियम हरी पत्तीदार सब्जियों तथा दालों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इससे हृदय की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है। सोडियम क्लोराइड शरीर के समस्त तत्त्वों में व्याप्त है। जो प्रोटीन तथा खनिज लवण पचाने में सहायक है।
(5) जल – शरीर में रक्त का उचित प्रवाह एवं शरीर के तापमान को ठीक रखने का कार्य जल का ही है। जल के बिना। जीवन की कल्पना सम्भव ही नहीं है। यह रक्त में मिलकर शरीर के सभी तत्त्वों को ऑक्सीजन और भोजन पहुँचाता है। शरीर के विकारों को पसीने, मल व मूत्र द्वारा बाहर निकाल देता है।
(6) विटामिन्स – ये भोजन के प्रमुख तत्त्व हैं, जो व्यक्ति को निरोगी और स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक हैं। इन्हें शरीर के पोषक तत्त्व भी कहते हैं; क्योंकि ये शरीर में रोगों से संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न करते हैं। भोजन में इनकी कमी से ‘विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं।
विटामिन्स दो प्रकार के होते हैं –
- पानी में घुलने वाले – ‘बी’ और ‘सी’।
- वसा में घुलने वाले – ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’।
प्रश्न 2.
आहार के पोषक तत्वों की कमी से होने वाले प्रमुख रोग लिखिए।
उत्तर:
पोषक तत्त्वों की कमी से होने वाले प्रमुख रोग –
(1) कार्बोहाइड्रेट के अभाव से रोग – भोजन में कार्बोहाइड्रेट की कमी से ‘मरास्सम’ या ‘सूखा रोग’ हो जाता है। उसकी पर्याप्त मात्रा न मिलने पर क्रियाशीलता कम व शरीर का भार कम हो जाता है तथा दुर्बलता आ जाती है। इसकी अधिकता से मधुमेह रोग हो जाता है।
(2) प्रोटीन के अभाव से होने वाले रोग – प्रोटीन की कमी से शरीर अस्वस्थ रहता है। हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं। तथा उसका विकास रुक जाता है। प्रोटीन के अभाव से मांसपेशियों में शिथिलता, त्वचा व नाखून का सूखापन, रक्तहीनता, शरीर क्रियाओं में गड़बड़ व बालों का टूटना तथा ‘क्वाशियरक्वोर’ नामक बीमारी हो जाती है। इससे शरीर में रक्त की कमी होने लगती है, दाँतों का क्षय होने लगता है, शारीरिक वृद्धि रुक जाती है। स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा मांसपेशियों की वृद्धि में रुकावट आ जाती है।
(3) वसा के अभाव से होने वाले रोग – वसा के अभाव में शरीर का भार कम एवं त्वचा शुष्क हो जाती है। वसी की भोजन में अधिक मात्रा होने पर शरीर मोटा हो जाता है। वसा से शरीर की त्वचा नर्म व चिकनी रहती है।
(4) विटामिन्स की कमी से होने वाले रोग – विटामिन ‘ए’ की कमी से उत्पन्न रोग रतौंधी, शिथिलता, ब्रोकांइटिस, खाँसी, गुर्दे में पथरी, निमोनिया, चर्म रोग आदि। विटामिन ‘बी’ की कमी से उत्पन्न रोगबेरी-बेरी (स्नायुरोग), पैलोग्रा (पेट दर्द), रक्तहीनता/एनिमिया, आंशिक पक्षाघात, मांसपेशियों का दूषित होना, शरीर की वृद्धि रुकना, अतिसार, चर्म रोग, खुजली, पाचन शक्ति में कमी, भुजाओं में कड़ापन, बुढ़ापा (रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना) आदि हो जाते हैं। विटामिन ‘सी’ की कमी से उत्पन्न रोग – स्कर्वी (दाँतों व मसूड़ों का क्षय), पायरिया रोग तथा मसूड़े खराब हो जाते हैं। तपेदिक व निमोनिया रोग भी हो जाता है। दाँतों से खून आता है। तथा हाथ – पैरों व जोड़ों में दर्द रहता है।
विटामिन ‘डी’ की कमी से उत्पन्न रोग – रिकेट्स रोग (सूखा रोग) – यह रोग अधिकतर पाँच वर्ष की उम्र तक होता है। इस रोग में हड़ियाँ कमजोर तथा दाँतों का विकास रुक जाती है। इसमें बच्चों के सिर की अस्थि विकृत हो जाती है। कूबड़ निकलना, रोगी खिन्न रहता है तथा चिढ़चिढ़ा हो जाना। विटामिन ‘ई’ के अभाव से उत्पन्न रोग – इसकी कमी से कंकाल पेशियाँ कमजोर, हृदय व शरीर की मांसपेशियों को, अपकर्षण होने लगता है। विटामिन ‘के’ के अभाव से रोग – इसकी कमी से रक्त स्राव बन्द नहीं होता है।
(5) खनिज लवण की कमी से होने वाले रोग –
- रक्तहीनता – यह रोग शरीर में लोहा तथा विटामिन बी – 2 की कमी के कारण हो जाता है। बच्चा अशक्त कमजोर हो जाता है। उसके शरीर व आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। नाखून सफेद हो जाते हैं। श्वास की गति तेज होने के साथ हृदय की गति तेज हो जाती है।
- घेघा व गलगण्ड – यह रोग भोजन में आयोडीन की कमी के कारण होता है। इस रोग से रोगी की थायराइड ग्रंथि में विकार आ जाता है। शारीरिक वृद्धि रुक जाती है। मस्तिष्क कमजोर हो जाता है। रोगी को श्वास लेने में कठिनाई होती है। मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं रहता है।
प्रश्न 3.
एक वयस्क व्यक्ति के लिए दैनिक सन्तुलित आहार तालिका तैयार कीजिये।
उत्तर:
वयस्क व्यक्ति के लिए दैनिक सन्तुलित आहार तालिका
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किस तत्त्व की कमी से त्वचा शुष्क हो जाती
उत्तर:
वसा की कमी से।
प्रश्न 2.
हीमोग्लोबिन बनाने में कौन से तत्त्व सहायक होते हैं ?
उत्तर:
लोहा तथा तांबा।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शरीर में पौष्टिक आहार का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
शरीर में पौष्टिक आहार का महत्त्व निम्न प्रकार हैं।
- शरीर की सभी क्रियाओं के लिये ऊर्जा प्रदान करना।
- शरीर में रोग के कीटाणुओं से लड़ने की शक्ति उत्पन्न करना।
- आहार शरीर की वृद्धि और विकास करता है।
- शरीर के कोषों तथा तन्तुओं में टूट-फूट की क्षतिपूर्ति करना।
- शरीर की विभिन्न प्रक्रियाओं को नियंत्रित करना।
- शरीर में जल की मात्रा को सन्तुलित करता है। जल की सहायता से ही पसीना, मल-मूत्र आदि निरर्थक पदार्थ, शरीर से बाहर निकलते हैं।
प्रश्न 2.
विभिन्न विटामिन के प्राप्ति-स्रोत एवं कार्य लिखिए।
उत्तर:
विभिन्न विटामिन के प्राप्ति-स्रोत एवं कार्य
प्रश्न 3.
खनिज लवण की उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
खनिज लवण की उपयोगिता-हमारे शरीर में लवण को भी अपनी महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसमें कैल्शियम, पोटेशियम, लोहा, फास्फोरस, आयोडीन तथा गन्धक होते हैं। ये शरीर के पूर्ण स्वास्थ्य के लिये अत्यावश्यक हैं। रक्त और शरीर के तरल पदार्थ को ठीक स्थिति में रखते हैं। पाचक रसों को उत्तेजित करते हैं तथा आन्तरिक क्रियाओं को नियंत्रित रखते हैं। चूना तथा फास्फोरस हड्डियों को बनाते हैं। लोहा और ताँबा हीमोग्लोबिन बनाने में सहायक होते हैं। इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये। चूना हड्डियों तथा दाँतों की रचना का मुख्य रसायन है। व्यक्ति के पूर्ण विकास में उसकी हड़ियों का प्रधानतः योगदान रहता है। कैल्शियम रक्त का थक्का जमाने की प्रक्रिया में भी अपना सहयोग देता है। कैल्शियम की कमी से चोट लगने पर रक्त जल्दी बन्द नहीं होता।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कुपोषण के कारण, लक्षण व निवारण के उपायों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
कुपोषण के कारण –
- भोजन के विभिन्न पोषक तत्त्वों का समुचित अनुपात में न मिलना।
- खेलकूद, व्यायाम व मनोरंजनात्मक कार्यों में भाग न लेना।
- पारिवारिक, आर्थिक स्थिति खराब होना।
- स्वास्थ्यप्रद वातावरण का अभाव। आवश्यकता से अधिक कार्य करना।
- निद्रा व आराम की कमी।
- परिवार में जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्य पदार्थ, ‘फल, सब्जी, दूध, दही, घी आदि पदार्थों का अभाव।
- कोई भी कार्य नियमित रूप से नहीं करना।
- भोजन की अनियमितता।
- निर्धनता, बेकारी, अज्ञानता, अस्वच्छ वातावरण में रहना।
- शराब, गुटका, सिगरेट आदि नशीली वस्तुओं के सेवन की प्रवृत्ति का होना।
कुपोषण के लक्षण –
- चिन्ता, परेशानी।
- मानसिक व्यग्रता एवं विचलन।
- मांसपेशियों में शिथिलता।
- जुकाम, खाँसी।
- भय व शंका होना।
- आँखें दुखना।
- त्वचा पीली पड़ जाना।
- नींद कम आना।
- आलसीपन।
- आँखों की ज्योति कम होना।
- सिरदर्द होना।
- वजन कम होना।
- पाचन शक्ति खराब होना।
- थकावट।
- दाँत कमजोर होना।
कुपोषण के निवारण के उपाय –
- विद्यालय में बालकों को भोजन के पोषक तत्त्वों एवं उनके महत्त्व को बताना।
- मध्यान्तर में सन्तुलित भोजन की व्यवस्था करना।
- खिलाड़ियों में सन्तुलित भोजन करने की आदतों को ड़ालना।
- कुपोषित बालकों को डॉक्टर के परामर्श के अनुसार भोजन दिलवाने का प्रयास करना।
- कुपोषण के कारणों को ढूंढ़ना तथा उनका निवारण करने का प्रयास करना।
प्रश्न 2.
अधिपोषण से उत्पन्न रोग तथा निवारण के उपाय लिखिये।
उत्तर:
अधिपोषण उन लोगों में होता है जो अधिक वसा वाले पदार्थ घी, दूध, मेवे, मलाई तथा मिठाई का सेवन करते हैं। जो बालक आवश्यकता से अधिक खाते हैं किन्तु शारीरिक श्रम नहीं करते, उनमें शरीर के लिये आवश्यक ऊर्जा से अधिक मात्रा में लिया गया भोजन चर्बी के रूप में शरीर में एकत्रित हो जाता है। यह चर्बी शरीर को मोटा बना देती है। जमा चर्बी रक्त की धमनियों को रुग्ण कर देती है तथा मोटापा चलने-फिरने, उठनेबैठने में तकलीफ देह होता है जो आयु को कम करता है।
अधिपोषण के कारण उत्पन्न होने वाले रोग – अधिपोषण मधुमेह, हृदय रोग, अपच, अजीर्ण, जोड़ों में दर्द, फोड़े-फुसियाँ आदि रोगों का कारण बन जाता है। अधिपोषण निवारण के उपाय सम्यक् आहार, सम्यक् दिनचर्या तथा सम्यक् व्यायाम। उपर्युक्त रोगों से सम्बन्धित लक्षण दिखाई देने पर अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट्स व वसा से सम्बन्धित पदार्थों में कमी कर देनी चाहिए। व्यायाम एवं खेलकूद में भाग लेना चाहिए तभी उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति संभव है।