RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 13 अमर शहीद
RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 13 अमर शहीद
Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 13 अमर शहीद
RBSE Class 10 Hindi Chapter 13 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 10 Hindi Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. सागरमल गोपा ने किस स्वेच्छाचारी राज्य के खिलाफ विद्रोह किया था ?
(क) बीकानेर
(ख) नागपुर
(ग) जैसलमेर
(घ) जोधपुर
2. सागरमल गोपा ने किन स्वतंत्रता सेनानियों को पत्र लिखे थे
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ख) जयनारायण व्यास
(ग) हीरालाल शास्त्री
(घ) उपर्युक्त तीनों की
उत्तर:
1. (ग)
2. (घ)
RBSE Class 10 Hindi Chapter 13 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अमर शहीद’ एकांकी का मुख्य पात्र कौन है?
उत्तर:
‘अमर शहीद’ एकांकी का मुख्य पात्र सागरमल गोपा है।
प्रश्न 2.
जेलर का क्या नाम है?
उत्तर:
जेलर का नाम करणीदान है।
प्रश्न 3.
पुलिस अधीक्षक का क्या नाम है?
उत्तर:
पुलिस अधीक्षक का नाम गुमानसिंह रावलोत है।
प्रश्न 4. सागरमल गोपा द्वारा रचित पुस्तकें कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
सागरमल गोपा द्वारा रचित पुस्तकें “जैसलमेर राज्य का गुंडा शास्त्र” तथा “रघुनाथ सिंह का मुकदमा” हैं।
प्रश्न 5. “हमें चाहिए स्वतन्त्रता…………सिर्फ स्वतन्त्रता” यह कथन किसने एवं किसको कहा?
उत्तर:
“हमें चाहिए स्वतन्त्रता…………सिर्फ स्वतन्त्रता” यह कथन सागरमल गोपा ने जेलर करणीदान से कहा है।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
सागरमल गोपा को जेल में दी गई यातनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सागरमल गोपा को जेल में पुलिस अधीक्षक गुमानसिंह रावलोत तथा उसके मातहतों द्वारा भयंकर यातनाएँ दी गई थीं। उसको थप्पड़ और घूसे मारे गये। उसको बूट की ठोकरें मारी गईं। उसके शरीर पर बेंत मारे गए। उसके पैरों पर चढ़कर रौंदा गया। उसके कानों, नाक, आँखों और गुप्तांगों में मिर्चे भर दी गईं। अन्त में उसके ऊपर मिट्टी का तेल छिड़क कर उसको जीवित ही जला दिया गया।
प्रश्न 7.
‘मातृभूमि के दीवाने तन का जीवन नहीं मन का जीवन जीते हैं’ -पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह पंक्ति सागरमल गोपा की है जो उसने जेलर करणीदान से कही हैं। इसका आशय यह है कि स्वतन्त्रता से प्रेम करने वाले लोग मातृभूमि को सच्चे मन से प्यार करते हैं। किसी भय अथवा लालच के कारण वे अपने मन से मातृभूमि
अन्य महत्वपूर्ण प्रजोत्तर वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1.अमर शहीद’ एकांकी का नायक है
(क) सागरमल गोपा
(ख) गुमानसिंह रावलोत
(ग) जेलर करणीदान .
(घ) मुनकासोहिल।
2. जैसलमेर राज्य का शासक है
(क) गुमानसिंह रावलोत
(ख) महारावल जवाहर सिंह
(ग) मुनकासोहिल
(घ) अहमदकलर।
3. ‘तुमने अन्नदाता के साथ गद्दारी की’-कथन किसका है?
(क) सागरमल गोपा का
(ख) करणीदान का
(ग) बीरबल, मुनकासोहिल का
(घ) गुमान सिंह रावलोत का।
4. जेलर करणीदान गुमानसिंह से थोड़ा ठंडा पानी भेजने को कहता है
(क) स्वयं पीने के लिए
(ख) सागरमल के घाव धोने के लिए
(ग) सागरमल के अंगों से मिर्दो की जलन दूर करने के लिए
(घ) बेहोश सागरमल को होश में लाने के लिए।
5. पीड़ित और प्रताड़ित होने पर भी सागरमल के मन में है
(क) दृढ़ता और साहस
(ख) निराशा और थकावट
(ग) भय और आतंक
(घ) दर्द और छटपटाहट।
6. ‘ताश के महल की तरह ढहना’ मुहावरे का अर्थ है
(क) ताश के पत्तों का महल होना
(ख) शीघ्र ही आसानी से नष्ट हो जाना
(ग) कमजोर निर्माण होना
(घ) बिना प्रयास के ही टूट जाना।
7. सागरमल को नीति का सहारा लेकर समझाने वाला है
(क) जवाहर सिंह
(ख) गुमान सिंह
(ग) करणीदान
(घ) बीरबल मुनकासोहिल।
8. ‘दहेज का दान’ है, लक्ष्मीनारायण रंगा का
(क) कविता संग्रह
(ख) नाटक संग्रह
(ग) कहानी संग्रह
(घ) निबन्ध संग्रह।
9. मुझे मार सकते हैं
(क) मेरी इच्छा को नहीं
(ख) मेरी भावना, मेरी आत्मा को नहीं
(ग) मेरी स्वतन्त्रता को नहीं
(घ) मेरे मन को नहीं।
10. लक्ष्मीनारायण रंगा का जन्म स्थान है
(क) जैसलमेर
(ख) बीकानेर
(ग) उदयपुर
(घ) जयपुर
उत्तर:
- (क)
- (ख)
- (घ)
- (घ)
- (क)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
- (ख)
- (ख)
RBSE Class 10 Hindi Chapter 13 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लक्ष्मी नारायण रंगा के किस नाटक पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है?
उत्तर:
लक्ष्मी नारायण रंगा के राजस्थानी भाषा में रचित ‘पूर्णमिदं’ शीर्षक रंग नाटक पर सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
प्रश्न 2.
‘अमर शहीद’ एकांकी का कथानक किससे सम्बन्धित है?
उत्तर:
‘अमर शहीद’ एकांकी राजस्थान के स्वतन्त्रता सेनानी वीर शिरोमणि सागरमल गोपा द्वारा मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए प्राणोत्सर्ग करने की गौरवगाथा है।
प्रश्न 3.
सागरमल गोपा का उत्पीड़न क्यों किया गया था?
उत्तर:
सागरमल गोपा अँग्रेजों के पिट्ठू महारावल जवाहर सिंह से मातृभूमि जैसलमेर को मुक्त कराने के लिए आन्दोलन कर रहे थे।
प्रश्न4.
सागरमल गोपा का देहावसान कैसे हुआ था?
उत्तर:
मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए लड़ने के कारण सागरमल गोपा को जेल में ही 3 अप्रैल 1946 को जिन्दा जला दिया गया था।
प्रश्न 5.
‘अमर शहीद’ की संवाद-योजना कैसी है?
उत्तर:
‘अमर शहीद’ एकांकी के संवाद ओजपूर्ण तथा प्रभावशाली हैं।
प्रश्न 6. सागरमल गोपा की शहादत का स्वतन्त्रता के आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
सागरमल गोपा की शहादत ने राजस्थान में स्वतन्त्रता के आन्दोलन को सशक्त बना दिया।
प्रश्न 7.
रंगमंच के बीच सागरमल गोपा बैठा है-में ‘रंगमंच’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘रंगमंच’ वह स्थान होता है जहाँ किसी नाटक का मंचन अर्थात् अभिनय-प्रदर्शन किया जाता है।
प्रश्न 8.
‘अमर शहीद’ एकांकी की भाषा कैसी है?
उत्तर:
‘अमर शहीद’ एकांकी की भाषा मुहावरेदार तथा ओजपूर्ण है।
प्रश्न 9.
सागरमल गोपा ने अपने जीवन का ध्येय क्या बताया है?
उत्तर:
सागरमल गोपा ने अपने जीवन का ध्येय जैसलमेर की प्रजा को जागृत करके सामंती अत्याचारों को नष्ट करना बताया है।
प्रश्न 10.
सागरमल गोपा की दृष्टि में स्वतन्त्रता-संग्राम का सफर कैसा है?
उत्तर:
सागरमल गोपा की दृष्टि में स्वतन्त्रता-संग्राम एक लम्बा सफर है, जिस पर पूर्ण विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ चलना पड़ता है।
प्रश्न 12.
सागरमल गोपा को अपने ध्येय से विरत करने में जेलर तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा अपनाई गई नीतियों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जेलर ने सामनीति तथा पुलिस अधीक्षक ने दण्डनीति अपनाई है।
प्रश्न 13.
मनुष्य का जीवन कब मिलता है?
उत्तर:
मनुष्य का जीवन चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मिलता है।
प्रश्न 14.
जेलर ने सागरमल से क्यों कहा कि वह स्वार्थी है?
उत्तर:
सागरमल अपने माता-पिता तथा परिवार की उपेक्षा करके देश की स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहा है, जेलर ने इसलिए उसको स्वार्थी कहा है।
प्रश्न 15.
सागरमल गोपा को तड़पता देखकर गुमानसिंह और उसके साथियों द्वारा अट्टहास करने से उनके बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
गुमानसिंह और उसके साथियों द्वारा सागरमल गोपा को तड़पता देखकर अट्टहास करने से पता चलता है कि वे अत्यन्त निर्दय और क्रूर हैं।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सागरमले गोपा कौन है?
उत्तर:
सागरमल गोपा स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत वीर है। वह जैसलमेर की स्वतन्त्रता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाला अमर शहीद है। वह ‘अमर शहीद’ एकांकी का प्रधान पात्र तथा नायक है। वह अँग्रेजों की छत्र-छाया पाने के लिए जैसलमेर राज्य तथा उसकी प्रजा के साथ गद्दारी करने वाले महारावल जवाहर सिंह तथा उसके साथियों का विरोधी है।
प्रश्न 2.
रंगमंच पर बैठे हुए सागरमल गोपा का वर्णन ‘अमर शहीद’ एकांकी के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
रंगमंच के बीच सागरमल बैठा है। उसके हाथों को पीछे करके हथकड़ी लगाई गई है। उसके पैरों में बेड़ियाँ हैं, जिनके कारण उसके पैर घायल हो गए हैं तथा उनसे खून बह रहा है। सागरमल गोपा मैला-कुचला धोती-कुर्ता पहने हुए है। बेंतों से पीटे जाने के कारण उसके कपड़े फटे हुए हैं। उन पर खून के धब्बे पड़े हुए हैं। उसके चेहरे पर वेदना के चिह्न हैं।
प्रश्न 3:
सागरमल तथा गुमानसिंह ने ‘नाक’ से सम्बन्धित मुहावरों का परस्पर विरोधी अर्थों में प्रयोग किस प्रकार किया है?
उत्तर:
गुमानसिंह का कहना है कि सागरमल ने राजद्रोह करके जैसलमेर की नाक कटवा दी है। इसके उत्तर में सागरमल उससे कहता है कि उसने राष्ट्र-प्रेम करके पूरे देश तथा सारी दुनिया में जैसलमेर की नाक ऊँची करवा दी है। नाक कटवाने का अर्थ सम्मान गिराना है तो नाक ऊँची करने का अर्थ सम्मान बढ़ाना है। इस प्रकार इन मुहावरों का परस्पर विरोधी अर्थों में प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 4.
गुमानसिंह के अनुसार सागरमल गापा ने कौन-कौन से अपराध किए हैं?
उत्तर:
गुमानसिंह की दृष्टि में सागरमल ने अनेक अपराध किए हैं। उसने जैसलमेर राज्य की प्रजा को उकसाया है। ताजियों का झगड़ा भड़काया है। दर्जी सत्याग्रह कराया है। हड़तालें और भूख हड़तालें कराई हैं। क्रान्तिकारी कवितायें तथा पुस्तकें लिखी हैं। किले पर तिरंगा लहराने की घोषणा की है। प्रजा को महारावल को नजराना देने से रोका है। उसने महारावल के सामने सिर न झुकाने का संकल्प लिया है।
प्रश्न 5.
“पीवणे सँपोलिये” किसके लिए प्रयुक्त हुआ है तथा क्यों?
उत्तर:
गुमानसिंह ने सागरमल गोपी को ”पीवणे सँपोलिये’ कहा है। यह साँपों की एक प्रजाति होती है। साँप अपने विष से जीवों को हानि पहुँचाता है। इससे उनकी मृत्यु भी हो जाती है। इस कारण उसको मार दिया जाता है। गुमानसिंह के मत में सागरमल जैसलमेर के शासक के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है। वह प्रजा को विद्रोह के लिए भड़का रहा है। अतः गुमानसिंह की दृष्टि में वह दण्डनीय है।
प्रश्न 6.
‘फेंक दो इस जिंदा लाश को’-गुमानसिंह ने यह क्यों कहा है?
उत्तर:
सिपाहियों द्वारा लात-घूसों, मुक्कों तथा लाठी से सागरमल को पीटा जाता है। सिपाही उसके पैरों पर चढ़ जाते हैं। इस उत्पीड़न के कारण सागरमल तड़प उठता है तथा बेहोश हो जाता है। उसकी यह दयनीय दशा देखकर गुमानसिंह को प्रसन्नता होती है। वह उसको जिंदा लाश कहता है और सिपाहियों को उसे फेंकने के लिए कहता है।
प्रश्न 7.
“आपकी बात समझा नहीं” इस संवाद के आधार पर बताइए कि कौन, किसकी तथा क्या बात नहीं समझा?
उत्तर:
जेलर करणीदान ने पुलिस अधीक्षक गुमानसिंह से कहा कि सभी को एक ही लाठी से नहीं हाँका जा सकता है। स्वतन्त्रता के दीवाने सिर कटा लेंगे लेकिन सिर झुकायेंगे नहीं। इनसे नीति से काम लेना चाहिए ताकि साँप भी मर जायेऔर लाठी भी न टूटे। आशय यह है कि सागरमल गोपा जैसे स्वतन्त्रता सेनानी को बल प्रयोग करके झुकाया नहीं जा सकता। जेलर करणीदान की यह बात गुमानसिंह नहीं समझा।
प्रश्न 8.
“ये स्वतन्त्रता के दीवाने सर कटा लेंगे पर झुकाएँगे नहीं ।” जेलर करणीदान के इस कथन का आशय स्पष्ट करते हुए इससे अपनी सहमति अथवा असहमति व्यक्त करें।
उत्तर:
जेलर करणीदान स्वतन्त्रता के दीवानों के चरित्र से परिचित है। वह जानता है कि स्वतन्त्रता के दीवाने अपने विचारों पर अडिग रहते हैं। बल प्रयोग करके भी उनको झुकाया नहीं जा सकता। वे अपने लक्ष्य और विश्वास के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर सकते हैं। वे स्वतन्त्रता के लिए मर सकते हैं परन्तु अपना रास्ता नहीं बदल सकते। जेलर के इस कथन से असहमत नहीं हुआ जा सकता।
प्रश्न 9.
जेलर करणीदान सागरमल गोपा से कैसा व्यवहार करता है?
उत्तर:
जेलर करणीदान सागरमल गोपा की हथकड़ियाँ खोलकर उसको सीधी करता है। वह उसकी नब्ज़ देखता है। सिपाही द्वारा लोटे में लाए गए पानी की छींटें सागरमल के मुँह पर मारता है। होश में आने पर वह उसको सहारा देकर बैठता है और पानी पिलाता है।
प्रश्न 10.
सागरमल गोपा के प्रति करणीदान तथा गुमानसिंह के व्यवहार में क्या अन्तर है? क्या आपकी दृष्टि में दोनों के उद्देश्य में भी अन्तर है?
उत्तर:
सागरमल गोपा के प्रति करणीदान का व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण है। वह उसके साथ सामनीति का प्रयोग करता है। इसके विपरीत गुमानसिंह उससे घृणा करता है। वह उसका उत्पीड़न करता है और उसके साथ अमानवीय व्यवहार करता है। वह दण्डनीति को अपनाता है। दोनों की नीति भिन्न है। परन्तु उनके उद्देश्य एक समान हैं। दोनों ही उसको महारावल जवाहर सिंह से क्षमायाचना करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं और स्वतन्त्रता संघर्ष से विरत करना चाहते हैं।
प्रश्न 11.
सागरमल स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों के बारे में करणीदान को क्या बताता है?
उत्तर:
सागरमल करणीदान को बताता है कि स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने वाले जानते हैं कि यह एक लम्बा रास्ता है। इस पर अपने प्राणों की मशाल जलाकर चलना पड़ता है। यह नहीं पता कि कोई इस रास्ते पर कितना चल पायेगा और कब उसकी मृत्यु हो जायेगी। कदम थकने पर स्वतन्त्रता के पथ का पथिक अपनी मशाल दूसरों को सौंपकर मौत की गोद में सो जाता है परन्तु स्वतन्त्रता की मशाल जलती रहती है।
प्रश्न 12.
“स्वतन्त्रता के दीवाने संसार से कुछ लेने की नहीं संसार को कुछ देने की तमन्ना रखते हैं” इस कथन के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
सागरमल का यह कथन स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलन करने वालों की त्याग-बलिदान के लिए तत्परता को । प्रकट करने वाला है। स्वतन्त्रता सेनानी देश के लिए मर मिटने की कसम खाकर ही स्वतन्त्रता के पथ पर बढ़ते हैं। वे अपने लिए संसार से कुछ नहीं चाहते। उनकी इच्छा होती है कि वे संसार को कुछ दें। वे अपना जीवन देने में भी पीछे नहीं हटते।
प्रश्न 13.
स्वतन्त्रता सेनानी की तुलना किनसे की गई है तथा क्यों?
उत्तर:
स्वतन्त्रता सेनानी की तुलना माली तथा भगीरथ से की गई है। माली आम का बाग लगाता है तो वह जानता है। कि उसके परिश्रम से उत्पन्न आम के मीठे फल भावी पीढ़ी को खाने को मिलेंगे। वह स्वयं उनको नहीं खा सकेगा। भागीरथ धरती पर गंगा दूसरों के हित के लिए ही लाए थे। स्वतन्त्रता सेनानी भी देश और समाज को स्वतन्त्रता का सुख दिलाने के लिए अपने प्राण न्योछावर करता है।
प्रश्न 14.
क्या स्वतन्त्रता सेनानी अपना नाम अमर करने के लिए कष्ट सहता है और अपना जीवन बलिदान करता है? सागरमल गोपा के कथन के आधार पर उत्तर दीजिए।
लिए कष्ट सहता है और त्याग-बलिदान करता है तो उसका उद्देश्य अपना नाम अमर करना नहीं होता उसका लक्ष्य तो केवल स्वतन्त्रता होती है।
प्रश्न 15.
नींव के पत्थर’ तथा ‘पतझड़ के पत्ते’ से स्वतन्त्रता सेनानी की क्या समानता है?
उत्तर:
नींव का पत्थर भवन के नीचे दबा होता है। उसे कोई नहीं देखता परन्तु उस पर खड़ा भवन मजबूत और सुन्दर बन जाता है। लोग उसी को देखते और उसी की प्रशंसा करते हैं। पतझड़ के पत्ते जमीन पर गिरकर खाद बन जाते हैं और पेड़ों को जीवन देते हैं। बसन्त आने पर पेड़ों पर लगे नये पत्ते और फूल उनके कारण ही शोभा पाते हैं। इसी प्रकार स्वतन्त्रता सेनानी चुपचाप देश के लिए अपना जीवन अर्पित कर देता है।
प्रश्न 16.
“एक शहीद भी अपने प्राणों के बीज बोकर शहीदों की अमर फसल उगा सकता है’-कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के लिए कष्ट सहने और अपने प्राण देने वाला शहीद दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है। उससे अनेक युवक-युवतियाँ प्रेरित होकर देश को स्वतन्त्र कराने के लिए चल पड़ते हैं। जिस प्रकार एक बीज मिट्टी में दबकर अनेक बीज पैदा करता है। एक लहर से हजारों लहरें उठती हैं, एक लौ से हजारों दीपक जल उठते हैं, उसी प्रकार किसी शहीद का प्राणोत्सर्ग अनेक वीरों द्वारा देश के लिए सर्वस्व निछावर करने का कारण बन जाता है।
प्रश्न 17.
“सागर! तुमने कभी सोचा, तुम कितने स्वार्थी हो?” जेलर करणीदान ने यह क्यों कहा है?
उत्तर:
जेलर करणीदान ने सागरमल को स्वार्थी कहा है। वह उसे बताता है कि वह अपनी जिद पर अड़कर अपने माता-पिता, अपने भाई तथा अपनी पत्नी की उपेक्षा कर रहा है। उनके दु:ख-दर्द को नहीं देख-सुन रहा है। जेलर करणीदानके अनुसार परिजनों के उनके प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति न करने के कारण वह स्वार्थी ही कहा जायगा
प्रश्न 18.
सागरमल को स्वार्थी कहने से पीछे जेलर करणीदान का क्या उद्देश्य है? क्या आपकी दृष्टि में सागरमल स्वार्थी है?
उत्तर:
माता-पिता, भाई और पत्नी के दु:ख-दर्द की याद दिलाकर करणीदान सागरमल को विचलित करना चाहता है। वह उसको स्वतन्त्रता के प्रति उसके अटल समर्पण से पृथक करना चाहता है।वह अपनबातोंसे फुसलाकर उसेमहारावल से माफी माँगने के लिए तैयार करना चाहता है। हमारी दृष्टि से सागरमल स्वार्थी नहीं है। वह एक सच्चा देशप्रेमी त्यागी तथा बलिदानी वीर है। उसने अपना सुख-सौख्य तथा जीवन देश की स्वतन्त्रता के लिए समर्पित कर रखा है।
प्रश्न 19.
कानून और दण्ड-व्यवस्था के प्रति सागरमल का क्या विचार है?
उत्तर:
सागरमल का विचार है कि कानून और दण्ड-व्यवस्था की कठोरता स्वतन्त्रता सेनानियों को प्रभावित नहीं करती। वे उससे नहीं डरते। इस व्यवस्था के कारण उनके जीवन को तो छीना जा सकता है किन्तु उनको डराया और अपने उद्देश्य से पीछे हटाया नहीं जा सकता। स्वतन्त्रता सेनानी मरकर अमर हो जाते हैं। उनका यश फैल जाता है। वे दूसरों के प्रेरणास्रोत बनकर अनेक स्वतन्त्रता सेनानी पैदा करते हैं।
प्रश्न 20.
“मातृभूमि के दीवाने तन का नहीं, मन का जीवन जीते हैं”-कथन का तात्पर्य क्या है?
उत्तर:
तात्पर्य यह है कि स्वतन्त्रता के प्रति समर्पित वीर अपने शरीर के सुख-दुख की चिन्ता नहीं करते। वे दु:ख और उत्पीड़न सहकर भी अपने स्वतन्त्रता के लक्ष्य से पीछे नहीं हटते। उनके मन में स्वतन्त्रता के प्रति समर्पण की अडिग भावना होती है। उनको इस कठिन मार्ग पर चलने की शक्ति मन से ही प्राप्त होती है। उनके मन में निराशा की भावना नहीं होती। उनका मन उनको मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए काम करने की निरन्तर प्रेरणा देता है।
प्रश्न 21.
“लातों के भूत बातों से नहीं मानते”—यह किसका कहना है? ऐसा कहने का कारण क्या है?
उत्तर:
जेलर करणीदान तरह-तरह से सागरमल गोपा को समझाता है कि वह महारावल जवाहर सिंह से माफी माँग ले। मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए समर्पित सागर उसकी प्रत्येक बात का तर्कपूर्ण उत्तर देता है। वह उसकी बातों से अप्रभावित रहता है। तब गुमानसिंह क्रोधित होकर कहता है कि सागरमल का शांतिपूर्ण तरीके से कही गई बातों से नहीं मानेगा। उसको मारपीट कर और सताकर ही उससे माफीनामे पर दस्तखत कराये जा सकते हैं।
प्रश्न 22.
तुम मेरी हत्या पर आत्महत्या का कफन ओढ़ाने की कोशिश करोगे……….”कथन किसने तथा क्यों कहे ?
उत्तर:
गुमानसिंह ने सागरमल से कहा कि वह उसको जिन्दा जला देगा। वह लोगों में प्रचार करेगा कि सागरमले ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या की बात भी लोग आसानी से मान लेंगे। सागरमल अनेक पत्रों में लिख चुका है कि उत्पीड़न सहन न होने पर वह आत्महत्या कर लेगा। गुमानसिंह के इस कथन के प्रत्युत्तर में सागरमल ने उपर्युक्त कथन कहा है। वह जानता है कि गुमानसिंह ने उसकी हत्या को आत्महत्या प्रचारित करने की व्यवस्था कर ली है।
प्रश्न 23.
“इस दृश्य को रंगमंच के पीछे आग का प्रभाव पैदा करके भी दिखाया जा सकता है, सिर्फ आवाजें आती रहें” एकांकीकार के इस निर्देश पर टिप्पणी करिये।
उत्तर:
नाट्यशास्त्र में कुछ घटनाओं को रंगमंच पर दिखाना उचित नहीं माना गया है। सागरमल को जिन्दा जलाने की घटना भी इसी प्रकार की है। इस प्रकार के दृश्य को प्रदर्शित करने की व्यवस्था भी सरल नहीं है। इस तरह के दृश्यों को रंगमंच के पीछे से आवाजें सुनाकर ही सूचित किया जाता है। इस प्रकार के दृश्यों को सूच्य कहते हैं तथा दर्शकों को उसकी सूचना ही दी जाती है।
प्रश्न 24.
‘अमर शहीद’ एकांकी का अन्त किस घटना के साथ होता है? ऐसे एकांकी नाटक आदि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
‘अमर शहीद’ एकांकी का अन्त एकांकी के नायक सागरमल गोपा को जिंदा जलाकर की गई हत्या के साथ होता है। भारतीय नाट्यशास्त्र के नियमों के अनुसार नायक को पराजित तथा मृत नहीं दिखाया जाता। पाश्चात्य प्रणाली के अनुसार नाटक सुखान्त तथा दुखान्त होते हैं। नायक की मृत्यु प्रदर्शित करने वाले नाटक दुखान्त होते हैं। ‘अमर शहीद’ भी एक दुखान्त एकांकी है।
प्रश्न 25.
‘अमर शहीद’ एकांकी के शीर्षक के औचित्य पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए।
उत्तर:
‘अमर शहीद’ एकांकी में स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल गोपा की शहादत का चित्रण हुआ है। आरम्भ से अन्त तक एकांकी में उसी को आतताइयों का सामना साहसपूर्वक करते हुए दिखाया जाता है। वह स्वतन्त्रता के प्रति समर्पित तथा अडिग है। अन्त में उसके शहीद होने का दृश्य है। इस तरह एकांकी का शीर्षक ‘अमर शहीद’ पूरी तरह से उचित तथा सार्थक है।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लक्ष्मीनारायण रंगा द्वारा रचित ‘अमर शहीद’ एकांकी की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अमर शहीद’ लक्ष्मीनारायण रंगा का एक सफल एकांकी है। इसकी विशेषतायें निम्नलिखित हैंकथावस्तु-जैसलमेर राज्य की स्वतन्त्रता के लिए सागरमल गोपा का संघर्ष इसकी कथावस्तु का आधार है। गोपा अँग्रेजों की छत्रछाया से जैसलमेर राज्य को मुक्त कराने के प्रयासों के कारण उत्पीड़ित होता है और अन्त में शहीद हो जाता है।
पात्र एवं चरित्र-चित्रण-इस एकांकी में सागरमल गोपा, गुमानसिंह रावलोत, जेलर करणीदान, बीरबल मुनकासोहिल, सिपाही आदि पात्र हैं। उनका चरित्र-चित्रण प्रभावशाली है।संवाद-योजना-एकांकी के संवाद छोटे, नाटकीय तथा प्रभावशाली हैं।वे कथावस्तु के विकास तथा पात्रों के चरित्र-चित्रण में सहायक हैं।
देशकाल-इस एकांकी में ब्रिटिश शासनकाल के जैसलमेर राज्य तथाउसके शासकों का समयानुकूल चित्रण हुआहै।भाषा-शैली-एकांकी की भाषा-शैली ओजपूर्ण तथा प्रभावशाली है।उद्देश्य-एकांकी का उद्देश्य देशी राज्यों के ऊपर अँग्रेजों के प्रभाव और उनमें चलने वाले स्वाधीनताआन्दोलन का चित्रण करना है। इसमें एकांकीकार को पूरी सफलता मिली है।
प्रश्न 2.
‘अमर शहीद’ एकांकी के पात्र गुमानसिंह रावलोत तथा जेलर करणीदान के चरित्रों की समानता और विषमता का परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘अमर शहीद’ एकांकी के दो महत्वपूर्ण पात्र हैं-गुमानसिंह रावलोत तथा जेलर करणीदान। उनके चरित्रों में अग्रलिखित समताएँ एवं विषमताएँ हैंसमता-गुमानसिंह रावलोत तथा करणीदान-दोनों ही जैसलमेर रियासत के कर्मचारी हैं। वे राज्य के शासक महारावल जवाहर सिंह के वफादार हैं। वे उनके प्रति समर्पित हैं।
दोनों का सहयोग राज्य की शासन-व्यवस्था के संचालन में उनकोप्राप्त है। सागरमल मातृभूमि जैसलमेर को अँग्रेजों के प्रभाव से मुक्त कराना चाहता है। वह प्रजा को राज्य की स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित करता है तथा महारावल की अँग्रेजपरस्त नीतियों का विरोधी है।दोनों को सागरमल को स्वतन्त्रता आन्दोलन से दूर करने का काम सौंपा जाता है।विषमता-गुमानसिंह तथा करणीदान सागरमल को स्वतन्त्रता-आन्दोलन को त्यागने तथा महारावल से क्षमायाचना करने को कहते हैं।
गुमानसिंह इसके लिए सागरमल का दमन करता है। उसका व्यवहार निर्दयता और क्रूरता से भरा है। अपनी बात न मानने पर वह उसको जीवित जला देता है। इसके विपरीत करणीदान सागरमल को समझा-बुझाकर अपनी बात मानने के लिए प्रेरित करता है। उसका व्यवहार सागरमल के प्रति सहानुभूतिपूर्ण है। गुमानसिंह के उत्पीड़न भरे व्यवहार से करणीदाने भी काँप उठता है।
प्रश्न 3.
सागरमल गोपी द्वारा जैसलमेर की स्वतन्त्रता के लिए किए गए आन्दोलन का परिचय दीजिए।
उत्तर:
सागरमल गोपा जैसलमेर राज्य को अँग्रेजों के प्रभाव से मुक्त कराकर मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलन कर रहा है। जैसलमेर का शासक महारावल जवाहर सिंह अँग्रेजों के प्रभाव में है। वह प्रजा का उत्पीड़क तथा शोषक है। उसके कर्मचारी भी उसका आदेश पाकर प्रजा को सताते हैं।
सागरमल इन बातों से भारत की स्वाधीनता के नेता जवाहरलाल नेहरू, जयनारायण व्यास, हीरालाल शास्त्री तथा रेजीडेंट एलिंगटन आदि को अवगत कराने के लिए पत्र लिखता है।वह प्रजा को अत्याचार तथा शोषण का विरोध करने के लिए प्रेरित करता है।
राजा की निरंकुश, अत्याचारी, स्वेच्छाचारी सामंतशाही के विरुद्ध उसका आन्दोलन देखकर क्रोधित सत्ताधारी उसको बन्दी बनाकर तरह-तरह की यातनायें देते हैं। उत्तरदायी शासकों से माफी न माँगने पर उसको जीवित ही जला दिया जाता है। 3 अप्रैल, 1946 ई. को वह स्वतन्त्रता की वेदी पर शहीद हो जाता है।एकांकीकार ने सागरमल गोपा की इसी संघर्ष गाथा का ‘अमर शहीद’ एकांकी में चित्रण किया है।
प्रश्न 4.
सागरमल गोपा को अपने निश्चय से डिगाने का काम यदि आपको सौंपा जाता तो आप किस नीति का प्रयोग करते? गुमान सिंह की अथवा जेलर करणीदान की अथवा उनसे कोई भिन्न नीति आप अपनाते ? कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
सागरमल गोपा स्वतन्त्रता सेनानी है तथा जैसलमेर को अंग्रेजी शासन के प्रभाव से मुक्त कराना चाहता है। राज्य के प्रशासकों के जन-उत्पीड़न का वह प्रबल विरोध करता है। उसको बंदी बनाया जाता है। राज्य के पुलिस प्रशासन के अधिकारी उससे शासक जवाहर सिंह से माफी माँगने के लिए कहते हैं।
पुलिस अधीक्षक गुमान सिंह उसे कठोर यातनायें देकर उसको उसके निश्चय से डिगाना चाहता है। वह सोचता है कि भयभीत और प्रताड़ित होकर वह अपना निश्चय त्याग देगा।जेलर करणीदान शान्ति से काम लेता है और उसे तरह-तरह से समझा-बुझाकर माफी माँगने को कहता है। गुमानसिंह तथा करणीदान की नीतियाँ परस्पर भिन्न हैं।
यदि यह कार्य मुझको सौंपा जाता तो मैं इससे भिन्न नीति अपनाती। मैं सागरमल को गुप्त रूप से सहायता पहुँचाने का प्रयत्न करता और उसके आन्दोलन को सशक्त बनाता। मैं भेदनीति का प्रयोग कर राज्य के अधिकारियों को भी महारावल के विरुद्ध करने का प्रयास करता।
प्रश्न 5.
“अहमद इसे ले जाओ और माचा चढ़ाओ-बीरबल के इस कथन से जैसलमेर राज्य की पुलिस के बारे में क्या पता चलता है। तत्कालीन पुलिस के कार्यों की तुलना जनतन्त्र भारत की पुलिस के तरीकों से करिये। क्या भारतीय पुलिस प्रजातंत्रीय राज्य व्यवस्था के अनुकूल है। अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर:
बीरबल सिपाही को आदेश देता है कि वह सागरमल को अन्दर ले जाकर माची चढ़ाये। ‘माचा चढ़ाना’ पुलिस द्वारा अपराधी से अपनी बात मनवाने के लिए अपनाई जाने वाली अमानवीय, गैर कानूनी तथा जन विरोधी क्रिया थी। इसके अन्तर्गत बन्दी को भयानक पीड़ा दी जाती थी। मारना, पीटना तथा उसके आँख, नाक, गुप्तांग आदि में मिर्चे डालना आदि कुकृत्य पुलिस करती थी।
इससे पुलिस की क्रूरता, निरंकुशता, कानून की अवहेलना आदि का पता चलता है।आज भारत में जनतंत्रीय शासन है। परन्तु भारतीय पुलिस की कार्य प्रणाली गुलाम भारत की पुलिस जैसी ही है।वह निरपराधों को आतंकी बताकर मार डालती है। निरपराध लोगों को पकड़कर उनको भयानक पीड़ा देकर अपनी बात मनवाने और अपराध स्वीकार करने को विवश करती है।
वह बन्दी बनाये गये लोगों को मारती-पीटती है, उनका अंग-भंग करती है, झूठी मुठभेड़ दिखाकर उनकी हत्या करती है, उनके नाजुक अंगों में बिजली का करंट लगाती है तथा अन्य अनेक अनुचित,शा अमानवीय तथा विधिविरोधी कार्य करती है। उत्तर प्रदेश का उच्च न्यायालय ऐसे कार्यों के कारण पुलिस को गुंडों का संगठित गिरोह कह चुका है।मेरे मतानुसार स्वतन्त्र भारत के पुलिस की कार्यप्रणाली जनतंत्रीय व्यवस्था के अनुकूल नहीं है। इसमें बहुत सुधार की आवश्यकता है।
प्रश्न 6.
‘अमर शहीद’ एकांकी की संवाद-योजना पर अपना मत लिखिए।
उत्तर:
संवाद-योजना की दृष्टि से अमर शहीद’ को एक सफल एकांकी कहा जा सकता है। एकांकीकार ने पात्रों, प्रसंगों तथा भावनाओं के अनुकूल संवाद-रचना की है। देशभक्त सागरमल तथा पुलिस अधिकारी गुमान सिंह और जेल अधीक्षक करणीदान की भाषाएँ उनके चरित्र और विचारों पर प्रकाश डालती हैं।
भाषा को प्रभावशाली बनाने के लिए। एकांकीकार ने यथास्थान मुहावरों का प्रयोग तथा ओजपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। कुछ उदाहरण हैंसागर-किया-किया-किया सौ बार किया और हजार बार करूंगा।’गुमान सिंह-“अरे नमक हराम! तेरी पीढ़ियों ने जिस भाटी महासवल का नमक खाया है, तूने उसी थाली में छेद किया। गद्दार।”
अधिकांश संवाद छोटे हैं किन्तु कहीं-कहीं लम्बे संवाद कथा-प्रवाह को शिथिल बना रहे हैं।मंच पर प्रस्तुत न किए जा सकने वाले दृश्यों की संवादों के माध्यम से सूचना दी गई है। यह पुरानी परंपरा है। इससे बचा जा सकता था।कुल मिलाकर ‘अमर शहीद’ एकांकी की संवाद योजना, पाठकों एवं दर्शकों को प्रभावित करने वाली है।
प्रश्न 7.
एकांकी ‘अमर शहीद’ आपको क्या संदेश देता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
अमर शहीद’ देशभक्त राजस्थानी सागरमल के बलिदान की मर्मस्पर्शी गाथा है। यह भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास का एक अविस्मरणीय स्वर्णिम पृष्ठ है। एकांकीकार बताता है कि ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने के लिए जनता को जगाने वाले देश के सपूतों पर, अंग्रेजों के अंधभक्त, रियासती राजा, महाराज और रावल कैसे-कैसे लोमहर्षक, घृणित अत्याचार कराते थे।
सौगरमल का चरित्र उसके देशप्रेम के दीवानेपन, निर्भीकता और बलिदान पर प्रकश डालता है। एकांकी के माध्यम से लेखक ने हमें अनेक अनुकरणीय संदेश दिये हैं।एकांकी हमें देश के लिए सर्वस्व बलिदान की प्रेरणा दे रहा है। जन-जागरण को स्वाधीनता की प्राप्ति और सुरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण साधन बता रहा है।
अत्याचारी और भ्रष्ट शासन के विरुद्ध दृढ़ता से खड़े होने की प्रेरणा भी हमें एकांकी से प्राप्त होती है।आज देश स्वतंत्र है, प्रजातंत्रीय शासन प्रणाली है, तथापि ‘अमर शहीद’ जैसी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। आज भी ऐसे सागरमल चाहिए जो भ्रष्ट तथा जनता को भ्रमित करने वाले शासनतंत्र से मुक्ति के लिए, जनता का सही मार्गदर्शन करें।
लेखक-परिचय
प्रश्न 1.
लक्ष्मीनारायण रंगा के जीवन तथा साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
जीवन-परिचय-लक्ष्मीनारायण रंगा का जन्म राजस्थान के बीकानेर में 4 फरवरी, 1934 ई. को हुआ था। डूंगर कॉलेज, बीकानेर से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद आप जयपुर में भाषा-विभाग में मुख्य अनुवादक हो गए।
साहित्यिक परिचय-
रंगा जी का हिंदी तथा राजस्थानी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है। दोनों में ही आपने साहित्य-रचना की है। आपने नाटक लेखन, निर्देशन तथा अभिनय में सक्रियता दिखाई है। आपके नाटक इतिहास, समाज तथा समसामयिक विषयों पर आधारित हैं। सन् 2006 में आपको राजस्थानी भाषा में लिखे ‘पूर्णमिदं’ (रंग नाटक) पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
कृतियाँ
नाटक एवं एकांकी-टूटती नालन्दाएँ, रक्तबीज, तोड़ दो ये जंजीरें, एक घर अपना।
कहानी संग्रह-दहेज का दान, हम नहीं बचेंगे, हम नहीं छोड़ेंगे।
बाल-कहानियाँ-टमरकटू (राजस्थानी भाषा में)।
कविता संग्रह-हरिया सूवटिया (राजस्थानी भाषा में)।
पाठ-सार
प्रश्न’.
‘अमर शहीद’ एकांकी का सारांश लिखिए।
उत्तर-
पाठ-परिचय-‘अमर शहीद’ लक्ष्मीनारायण रंगा द्वारा रचित वीरशिरोमणि सागरमल गोपा के मातृभूमि की स्वतन्त्रता हेतु संघर्ष एवं प्राणोत्सर्ग की कथा पर आधारित एकांकी है। जैसलमेर राज्य के स्वेच्छाचारी, निरंकुश तथा अत्याचारी शासन का विरोध करने कारण सागरमल को 3 अप्रैल, 1946 को जेल में ही जिंदा जला दिया गया था।
एकांकी के पात्र-सागरमल गोपा एकांकी का नायक है। अन्य पात्रों में गुमान सिंह रावलोत (पुलिस अधीक्षक), जेलर करणीदान (जैसलमेर जेल का इंचार्ज) बीरबल मुनकासोहिल, अहमदकलर, सिपाही आदि हैं। रंगमंच-3 अप्रैल, 1946 दोपहर का समय है। रंगमंच पर जेल की कोठरी को दृश्य उभरता है। सागरमल बैठा दिखाई देता है। उसके हाथों में पीठ की ओर हथकड़ियाँ लगी हैं। पैरों में भारी बेड़ियाँ हैं, जिनके कारण घाव हो गए हैं और खून बह रहा है। पिटाई के कारण उसके वस्त्र फट गए हैं। अत्याचारों के कारण वह कराह उठता है। पीछे से दरवाजे पर गुमान सिंह रावलोत खड़ा दिखाई देता है।
कथानक-पीड़ा से कराहते हुए सागरमल को गुमान सिंह सलाह देता है कि वह महारावल जवाहर सिंह से माफी माँग ले और स्वतन्त्रता का आन्दोलन छेड़कर उसने जो राजद्रोह किया है उसको त्याग दे। सागरमल को अपने राष्ट्रप्रेम पर गर्व है, वह माफी माँगने से इनकार कर देता है। गुमान सिंह उसे याद दिलाता है कि उसने महारावल को डाकू, खूनी, हिंसक और आततायियों का रक्षक कहा है। उसने जैसलमेर को जंगल का राज्य कहा है। उसने जैसलमेर राज्य का गुंडा शासन’ तथा ‘रघुनाथ सिंह का मुकदमा’ किताबें लिखी हैं। यह राजद्रोह है। अन्नदाता के प्रति गद्दारी है। उसने जनता को विद्रोह के लिए उकसाया है। माफी माँगने पर उसको छोड़ दिया जायगा और पीड़ा से उसको छुटकारा मिल जायेगा। परन्तु सागरमल माफी माँगने को तैयार नहीं होता है। तब गुमानसिंह रावलोत के आदेश पर बीरबल, मुनकासोहिल, अहमद कलर उसको बुरी तरह मारते-पीटते हैं, जिससे सागरमल तड़पकर बेहोश हो जाता है।
उसी समय जेलर करणीदान आता है। वह गुमानसिंह से कहता है कि स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल मर जायेगा पर झुकेगा नहीं। उससे नीति से काम लेना चाहिए। वह गुमानसिंह को जाने के लिए कहता है। सागरमल की हथकड़ी खोलकर उसे सीधा करता है। उसके मुँह पर पानी के छीटें मारकर उसे होश में लाता है। सहारा देकर पानी पिलाता है। वह उसे अपने ऊपर
तथा अपने बूढ़े बाप और परिवार पर तरस खाने की बात कहकर समझाता है। सागरमल जेलर के समझाने पर भी माफी माँगने को तैयार नहीं होता।
तभी गुमानसिंह अपने साथियों के साथ आता है। वह क्रोध में है। वह और उसके साथी सागरमल को पीटते हैं। उसकी आँख, कान, नाक आदि में मिर्च भर देते हैं सागरमल पीड़ा से कराहता है, चीखता है परन्तु गुमानसिंह द्वारा तैयार किए गए माफीनामे पर हस्ताक्षर नहीं करता। इस बात से अत्यधिक नाराज होकर गुमानसिंह मिट्टी का तेल छिड़ककर सागरमल को जला देता है। सागरमल भारत माता की जय बोलता हुआ जलकर मर जाता है। गुमान सिंह और उसके साथी अट्टहास करते हैं। रंगमंच का पर्दा गिरता है।
पाठ के कठिन शब्द और उनके अर्थ।
(पृष्ठ सं. 62)
पात्र = एकांकी से सम्बन्धित स्त्री-पुरुष। आंतरिक = भीतरी। रंगमंच = वह स्थान जहाँ अभिनेता/अभिनेत्री अभिनय करते हैं। वेदना = पीड़ा। दाग = धब्बे। बरबस = रोकने पर भी। राष्ट्रद्रोह = देश से बगावत। नाक कटवाना= सम्मान गिराना। नाक ऊँची करना = सम्मान बढ़ाना।
(पृष्ठ सं. 63)
लानत = निन्दा। बोटी-बोटी नुचवाना = कठोर यातना देना। गद्दारी = द्रोह। आतताई = अत्याचारी। कलेजे पर हाथ रखकर सोचना = गम्भीरता से सोचना। नमक हराम = गद्दार। नमक खाना = उपकृत होना। थाली में छेद करना = धोखा देना। छत्रछात्रा = संरक्षण। उकसाना = उत्तेजित करना। नजराना = भेट में दिया जाने वाला धन। संकल्प = निश्चय, प्रण। ६ येय = लक्ष्य। प्राणों की बाजी लगाना = जीवन संकट में डालना। जीवणे सपोलिये = साँपों की एक जाति। सामंती = राजतन्त्र। पैगाम = संदेश। जुर्म = अत्याचार। ताश का महल = कमजोर।
(पृष्ठ सं. 64)
श्मशान = मुर्दाघर, कब्रिस्तान। सिर पर मँडराना = निकट होना। कचूमर निकालना = कुचलना। बूट = जूते। लाश = मृत शरीर। एक ही लाठी से हाँकना = एक ही तरह का व्यवहार करना। दीवाने = गहरा प्रेम करने वाले। साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे = बिना हानि उठाये सफलता मिलना। नब्ज = नाड़ी।
(पृष्ठ सं. 65)
रहम = दया। अस्त होना = छिपना। प्रयास = प्रयत्न। तमन्ना = इच्छा। सफर = यात्रा।
(पृष्ठ सं. 66)
जहान = संसार। प्रज्वलित = जलना, प्रकाशित होना। फायदा = लाभ। भागीरथी = गंगा। जीवन्त = सजीव। अस्तित्व = होना। उजागर = प्रकट। स्तम्भ = खम्भा। यशोगीत = प्रशंसा। आहुति देना = घी डालना। लपट = आग की लौ।
(पृष्ठ सं. 67)
शहीद = बलिदानी। जुनून = अति उत्साह, पागलपन। परकोटा = चाहरदीवारी। दफन = मिट्टी में दबना। लुप्त = छिपी हुई। जंजीर = साँकल। हक = अधिकार। पखेरू = पक्षी। सूनी गोदवाली = नि:संतान। परिजन = घरवाले।
(पृष्ठ सं. 68)
दरिन्दा = हिंसक पशु। महक = सुगंध। कलेजा दहलना = विचलित होना। नजर = दृष्टि। लातों के भूत बातों से नहीं मानते = समझाने का नहीं दण्ड का प्रभाव होना।
(पृष्ठ सं. 69)
खून पी जाना = मार डालना। कच्चा चबाना = भीषण दण्ड देना। काले कारनामे = अपवित्र कार्य। पर्दाफाश करना = रहस्य बताना। अर्थी = शव को श्मशान तक ले जाने के लिए बनी शैय्या। माचा चढ़ाना = भीषण यातना देना। दिल दहलाना = व्याकुल करना। अट्टहास = भीषण हँसी। तरबतर = भीगी हुई।
(पृष्ठ सं. 70)
दस्तखत = हस्ताक्षर। माफीनामा = क्षमा याचना-पत्र। गफलत = धोखा, भूल। नाहक = व्यर्थ। साजिश = षडयंत्र। कच्ची गोली न खेलना = पूरी सफलता दिलाने वाला काम करना। कफन = शव पर डाला जाने वाला वस्त्र। मात देना = निष्फल करना। पुश्तैनी = पीढ़ियों को।
(पृष्ठ सं. 71)
आग बबूला होना = क्रोधित होना। मंजूर = स्वीकार। अरमान = इच्छा कामना। (पृष्ठ सं. 72) तड़पना = असहनीय व्याकुलता। नारे = पुकार। पर्दा = यवनिका, रंगमंच के आगे लगा कपड़ा।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या।
(1) गुमान-(गुस्से से) झूठे! क्या तुमने राज्य की जनता को नहीं उकसाया? क्या तुम लोगों ने ताजियों का झगड़ा नहीं भड़काया? क्या तुम लोगों ने दर्जी सत्याग्रह नहीं कराया? क्या तुमने हड़तालें और भूख हड़ताले नहीं कराईं? क्या तुमने क्रान्तिकारी कविताएँ नहीं लिखीं? क्या तुमने जैसलमेर के किले पर तिरंगा झंडा लहराने की घोषणा नहीं की। क्या तुम लोगों ने नहीं कहा कि महारावल को नजराना भेंट नहीं करेंगे? क्या तुम लोगों ने संकल्प नहीं किया कि महारावल के सामने सिर नहीं झुकाएँगे? बोल…… बोल…… तुम लोगों ने यह सब किया या नहीं।
(पृष्ठ सं. 63)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘अमर शहीद’ शीर्षक एकांकी से उद्धृत है। इसके लेखक लक्ष्मीनारायण रंगा हैं। सागरमल स्वतंत्रता सेनानी है। वह जैसलमेर जेल में कैद है। पुलिस अधीक्षक गुमानसिंह रावलोत उसको राज्य का गद्दार कहता है तथा क्रोध के आवेश में उसको बताता है कि उसने जैसलमेर सियासत के विरुद्ध क्या-क्या अपराध किए हैं।
व्याख्या-गुमानसिंह ने क्रोध प्रकट करते हुए सागरमल से कहा कि उसने राज्य की प्रजा को विद्रोह के लिए उकसाया है। उसने ताजियों का झगड़ा और दर्जी सत्याग्रह कराया है। उसने लोगों से भूख हड़तालें तथा हड़ताले कराई हैं। उसने क्रान्ति का आह्वान करते हुए कवितायें लिखी हैं। उसने घोषणा की है कि जैसलमेर किले पर तिरंगा झंडा लहरायेगा। उसने लोगों को भड़काया है कि वे महारावल को उपहार भेंट नहीं करें। उसने अपने साथियों के साथ महारावल के सामने सिर न झुकाने की प्रतिज्ञा की है। तमाम आरोप लगाने के बाद गुमानसिंह ने सागरमल से पूछा कि वह बताये कि क्या उसने ये अपराध नहीं किये हैं।
विशोष-
(i) स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल पर राज्य तथा उसके शासक के विरुद्ध वगावत करने का आरोप लगाया गया है।
(ii) संवाद की भाषा प्रवाहपूर्ण है। प्रश्न शैली का प्रयोग हुआ है।
(iii) संवाद से गुमानसिंह के क्रोध और आवेश प्रकट हुए हैं।
(iv) संवाद ‘अमर शहीद’ की कथावस्तु के विकास में सहायक हैं।
2. जेलर – पर सागर जरा सोच, अगर वह स्वतन्त्रता मिल भी गयी, तो तुझे क्या मिल जाएगा? तेरा घर,
तेरा परिवार ………………………… सागर -(हल्की हँसी के साथ) स्वतन्त्रता के दीवाने संसार से कुछ लेने की नहीं, संसार को कुछ देने की तमन्ना रखते हैं जेलर साहब! वे अपने जीवन की साँसों के मोतियों से अपना घर नहीं, संसार को सजाते हैं।
(पृष्ठ सं. 65)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘अमर शहीद’ शीर्षक एकांकी से लिया गया है। इसके लेखक लक्ष्मी नारायण रंगा हैं। जेलर करणीदान स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल को समझाता-बुझाता है कि वह मातृभूमि की स्वतन्त्रता की रट छोड़ दे तथा महारावल का विरोध करना बन्द कर दे। इससे उसको तथा उसके परिवार को कष्टों से छुटकारा मिल जायेगा।
व्याख्या- जेलर करणीदान ने स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल को समझाया कि उसको स्वतन्त्रता का सपना त्याग देना चाहिए। यदि मातृभूमि को स्वतन्त्रता मिल भी गई तो इससे उसका तो कोई हित होगा नहीं। उसका घर और परिवार संकट में पड़ा है। उसको उसकी चिन्ता भी तो करनी चाहिए। इसके उत्तर में सागरमल ने कुछ हँसते हुए जेलर को बताया कि वह स्वतन्त्रता सेनानी है। स्वतन्त्रता सेनानी संसार को कुछ देने की इच्छा रखते हैं। संसार से कुछ पाने की उनकी इच्छा नहीं होती। वे अपने जीवनरूपी मोतियों का उपयोग अपना घर सजाने में नहीं करते। वे तो उनसे संसार को सजाते हैं। आशय यह है कि स्वतन्त्रता के लिए लड़ने वाले वीर अपना हित नहीं समस्त संसार का हित चाहते हैं तथा उसी के लिए कष्टपूर्ण जीवन जीते हैं। अत: स्वतन्त्रता से उनको कुछ लाभ होगा या नहीं; यह उनके विचार का विषय ही नहीं होता।
विशेष-
(i) जेलर करणीदान सागरमल को उसके परिवार की याद दिलाकर उससे स्वतन्त्रता संग्राम से पीछे हटने को कहता है।
(ii) सागरमल करणीदान को बताता है कि स्वतन्त्रता सेनानी अपना नहीं संसार का भला चाहते हैं।
(iii) इन संवादों में दोनों पात्रों के विचारों का अन्तर प्रकट हुआ है। इससे सागरमल का नि:स्वार्थ देशप्रेम व्यक्त होता है।
(iv) भाषा-शैली ओजपूर्ण तथा तर्क प्रधान है।
3. सागर – (बीच में बात काटकर) स्वतन्त्रता सेनानी आम का बाग लगाता है जेलर साहब! वह जानता है, इस आम का अमृत उसे नहीं मिलेगा। वह अपने प्राण बोकर, खून-पसीने से सींचकर, यह अमृत-फल आने वाली पीढ़ियों के लिए उगाता है। स्वतन्त्रता संग्राम भी इसी भावना से लड़ा जा रहा है। भगीरथ गंगा खुद के लिए नहीं लाया था। युगों-युगों तक लोग उस भागीरथी से अपने तन-मन की प्यास बुझाते रहेंगे।
(पृष्ठ सं. 66)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘अमर शहीद’ शीर्षक एकांकी से लिया गया है। इसके लेखक लक्ष्मीनारायण रंगा हैं। जेलर करणीदान ने स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल गोपा से बातें कीं। उसने शान्ति के साथ उसे समझाना चाहा कि उसे स्वतन्त्रता-प्राप्ति की हठ छोड़कर महारावल से माफी माँग लेनी चाहिए। जेलर ने कहा कि यदि स्वतन्त्रता तुम्हारी मृत्यु के बाद मिलेगी तो उससे तुमको कोई लाभ नहीं होगा।
व्याख्या-सागरमल ने करणीदान को बातें करने से बीच में ही रोक दिया। उसने बताया कि स्वतन्त्रता के लिए लड़ने वाला माली के समान होता है। माली आम का बाग लगाता है। वह जानता है कि उसके अमृत जैसे मीठे फल उसको खाने को नहीं मिलेंगे। वह जी-जान लगाकर मेहनत कर के भावी पीढ़ी के लिए आम के मीठे फलों वाला बाग लगाता है। भागीरथ ने तपस्या की थी। वह स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाए थे। इस कार्य में उनका कोई स्वार्थ नहीं था। वह जानते थे कि गंगा के शीतल जल से लोग लम्बे समय तक लाभ उठायेंगे। माली और भागीरथ का कार्य परहितार्थ था। स्वतन्त्रता सेनानी भी परहित की ऐसी ही भावना के साथ आन्दोलन में भाग लेता है।
विशेष-
(i) भाषा सरल, सरस और प्रभावशाली है।
(ii) शैली तर्कप्रधान तथा ओजपूर्ण है।
(iii) सागरमल ने माली तथा भागीरथ के समान ही स्वतन्त्रता-संघर्ष के अपने कार्य को स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि जनहित के लिए बताया है।
(iv) सागरमल अपने लक्ष्य (स्वतन्त्रता) को छोड़ना नहीं चाहता।।
4. सागर – नींव का पत्थर कब कहता है जेलर साहब कि मेरी कहानी बने। उस पर खड़ा भवन ही उसकी। जीवन्त कहानी होता है। अँधेरे में गलकर भी वह अजर-अमर है, चाहे उसका स्वयं का अस्तित्व उजागर न हो। इसीलिए नींव के पत्थर का महत्व हर कीर्ति-स्तम्भ से बढ़कर होता है। जेलर – फिर भी हर काम करने वाला नाम तो चाहता ही है। सागर – (हल्की हँसी) जेलर साहब! बसन्त लाने के लिए झड़ने वाले पत्ते कब कहते हैं कि कोई उनके यशोगीत गाए। वे तो चुपचाप झड़ जाते हैं और चुपचाप धरती की गोद में खाद बनकर समा जाते हैं और उनके स्थान पर उग आते हैं नये-नये, हरे-हरे पत्ते।
(पृष्ठ सं. 66)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के अमर शहीद’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस एकांकी की रचना लक्ष्मीनारायण रंगा ने की है। जेलर करणीदान स्वतन्त्रता-सेनानी सागरमल को तरह-तरह से समझाकर स्वतन्त्रता-संघर्ष छोड़ने के लिए कह रहा है। वह कहता है कि धरती पर गंगा को लाने के लिए भगीरथ तो प्रसिद्ध हो गए। परन्तु वह तो इसी काल कोठरी में पड़े-पड़े मर जायेगा। कोई उसका नाम भी नहीं जानेगा।
व्याख्या-सागरमल करणीदान से सहमत नहीं है। वह स्वतन्त्रता-संघर्ष में हिस्सा अपना नाम अमर करने के लिए नहीं ले रहा है। वह त्याग की भावना के साथ इसमें भाग ले रहा है। वह नींव में दबे हुए पत्थर का उदाहरण देकर बताता है कि लोग उसको नहीं जानते। वह चुपचाप नींव में दब जाता है। उस पर बने भव्य भवन को देखकर लोग भवन की प्रशंसा करते हैं। उस भवन की प्रशंसा ही उसकी प्रशंसा है। नींव के अँधेरे में दबकर भी वह अमर हो जाता है।
लोग उसे नहीं जानते परन्तु उसका महत्व किसी कीर्ति-स्तम्भ से अधिक ही होता है। जेलर पुनः कहता है कि काम करने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपना नाम तो चाहता ही है। इस कथन पर सागरमल को थोड़ी हँसी आ जाती है। वह उसको बताता है कि उसका कहना सच नहीं है। वह बताता है कि बसन्त की ऋतु आने से पहले पतझड़ होता है। पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं। वे मिट्टी में मिलकर खाद बन जाते हैं। उनसे वृक्ष को जीवन मिलता है और बसन्त ऋतु में वृक्ष नये कोमल हरे-हरे पत्तों से लद जाता है। झड़ने वाले पत्ते अपने त्याग के बदले किसी प्रशंसा के इच्छुक नहीं होते। स्वतन्त्रता सेनानी भी प्रचार-प्रशंसा से दूर ही रहते हैं।
विशेष-
(i) सागरमल स्पष्ट कर रहा है कि उसने त्याग और परहित की भावना के साथ स्वतन्त्रता-आन्दोलन में हिस्सा लिया है।
(ii) स्वतन्त्रता-सेनानी स्वार्थी नहीं होते। वे न अपना हित चाहते हैं न प्रशंसा।
(iii) भाषा सरल तथा बोधगम्य है। वह तत्सम शब्दावली युक्त है।
(iv) शैली उद्धरण प्रधान तथा तर्कपूर्ण है।
5. सागर – (हँसकर) आवाज कभी मरती नहीं जेलर साहब! मेरी आवाज का यदि गला घोंटा गया, तो वह जनता की आवाज बन जाएगी और जनता की आवाज कभी दब नहीं सकती, कभी मर नहीं सकती। (सोचकर) फिर शहीदों की जिन्दगी तो लुप्त गंगा की तरह होती है जेलर साहब! जो कहीं भी, किसी भी धरातल को फोड़कर बह निकलती है। उसे कोई जंजीर, कोई जेल, कोई दीवार, कोई परकोटा बाँध नहीं सकता।
(पृष्ठ सं. 67)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘अमर शहीद’ शीर्षक एकांकी से उधृत है। इसके रचयिता लक्ष्मीनारायण रंगा हैं। सागरमल तर्कपूर्ण शैली में स्वतन्त्रता के प्रति अपने संघर्ष को सही सिद्ध करता है और उस पर दृढ़ता से चलना चाहता है। जेलर उसकी बातों को जुनून की बातें कहता है। वह बताता है कि वह काल कोठरी में पड़ा मर जायेगा। उसकी आवाज दबा दी जायेगी।
व्याख्या-जेलर की बात सुनकर सागरमल हँस पड़ता है। वह कहता है कि आवाज मरती नहीं, वह अमर होती है। यदि सागरमल की हत्या की गई और उसकी आवाज को दबाया गया तो वह राज्य की जनता की आवाज बन जायेगी। तब जनता स्वतन्त्रता की माँग उठायेगी। उसकी आवाज दबाई नहीं जा सकेगी। जनता की आवाज कभी मरती नहीं है। कुछ सोचकर वह पुनः कहता है कि शहीदों का जीवन लुप्त हो गई गंगा नदी के समान होता है।
नदी कहीं-कहीं लुप्त हो जाती है लेकिन मौका पाकर वह किसी अन्य स्थान पर फूट पड़ती है और प्रकट हो जाती है। शहीद की मृत्यु के बाद भी उसका समर्पण नहीं मरता। किसी अन्य स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में वह जाग उठता है। शहीद की आवाज अमर होती है। उसको न जंजीर से बाँधा जा सकता है और न जेल में बंद किया जा सकता है। कोई चाहरदीवारी, कोई जेल की दीवार उसको रोक नहीं सकती। इन सब बाधाओं को तोड़कर वह जन-जन तक पहुँच जाती है।
विशेष-
(i) सागरमल बताता है कि स्वतन्त्रता के लिए उसकी पुकार को रोका नहीं जा सकता।
(ii) शहीद की आवाज सभी बन्धनों को तोड़कर जनता की आवाज बन जाती है।
(iii) भाषा सरल, प्रवाहमयी तथा ओजपूर्ण है।
(iv) शैली तर्कप्रधान है।
6. जेलर – यह सब पागलपन है सागर ! तुमने कभी सोचा, तुम कितने स्वार्थी हो? तुम्हारे इस जीवन पर सिर्फ तुम्हारा ही हक नहीं है, तुम्हारे परिवार का भी अधिकार है। जानते हो, तुम्हारे बूढ़े पिता तुम्हारे लिए तरस-तरस कर मर गए? दिन-रात गोपा-गोपा की रट लगाते हुए, तुम्हें पुकारते-पुकारते तुम्हारी बीमार बूढ़ी माँ के प्राण पखेरू न जाने कब उड़ जाएँ? तुम्हारे भाई कितने दुःखी हैं? सूनी गोद वाली तुम्हारी पत्नी दिन-रात कितनी रोती है? क्या तुम्हें इन सब पर दया नहीं आती?
(पृष्ठ सं. 67)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘अमर शहीद’ शीर्षक एकांकी से उद्धृत है। इसके लेखक लक्ष्मीनारायण रंगा हैं। स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल गोपा जेलर करणीदान को बताता है कि शहीदों की आवाज अमर होती है। वह जनता की आवाज बन जाती है। उसको रोका नहीं जा सकता। जेलर सागरमल के विचारों को विवेक से परे। बताता है। वह कहता है कि उसके विचार उसका पागलपन प्रकट करते हैं।
व्याख्या-जेलर ने सागरमल का प्रतिवाद करते हुए कहा कि शहीदों की आवाज अमर होती है-यह सोचना उसका पागलपन है। उसे सोचना चाहिए कि स्वतन्त्रता की हठ करके वह अपने स्वार्थ पर ही अड़ा हुआ है। वह अपना पूरा जीवन इसी को अर्पित कर चुका है। उसका अपना परिवार भी है। उसका हक भी उसके जीवन पर है। परिवार के प्रति भी उसके कुछ कर्त्तव्य हैं। उसके बूढ़े पिता उसको देखने के लिए तरस गए और अन्त में मर गए। उसकी बीमार बूढ़ी माँ रात-दिन उसका नाम लेकर उसको पुकारती और याद करती है। वह कभी भी मर सकती है। उसके बिना उसके भाई दु:खी हैं। उसकी पत्नी को कोई संतान नहीं है। वह भी रात-दिन रोती रहती है और दु:खी है। क्या उसको अपने इन परिजनों की याद नहीं आती?
विशेष-
(i) जेलर सागरमल को उसके परिवारवालों की याद दिलाकर विचलित करना चाहता है। वह चाहता है कि सागर स्वतन्त्रता का विचार छोड़ दे।
(ii) जेलर ने सागरमल की भावनाओं को छूकर उसको अपने लक्ष्य से हटाने का मनोवैज्ञानिक प्रयास किया है।
(iii) सागरमल स्वतन्त्रता के लक्ष्य पर दृढ़ है।
(iv) भाषा सरल और बोधगम्य है। शैली भावात्मक है।
7. सागर – जेलर साहब! (थोड़ा दुःखी होकर) मैं एक आँख से इन्हें देखता हूँ तो दूसरी आँख से देश की दुःखी जनता को देखता हूँ। एक कान से इनकी पुकारें सुनता हूँ। जेलर साहब! मातृभूमि, मेरी माँ की माँ है, देश मेरे पिता का पिता है। मेरे देशवासी मेरे परिजनों से बढ़कर हैं। यदि मेरे घरवालों के दुःख-आँसू भारत माता के होठों पर सुख-स्वतन्त्रता की मुस्कान रचा सके, तो मैं अपने परिवार की हर कराह-हर आँसू सहने को तैयार हूँ।
(पृष्ठ सं. 67)
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के अमर शहीद’ शीर्षक एकांकी से उद्धृत है। इसके लेखक लक्ष्मीनारायण रंगा हैं। जेलर सागरमल को स्वतन्त्रता के लक्ष्य से हटाने के लिए उसकी भावनाओं को प्रभावित करता है। वह उसको परिवार के प्रति उसके कर्त्तव्य याद दिलाता है। वह उसके सामने उसके पिता, माता, भाई तथा पत्नी के कष्टों का वर्णन करता है।
व्याख्या-अपने परिवार के बारे में सुनकर सागरमल को थोड़ा दु:ख होता है। वह जेलर से कहता है कि वह अपने परिवार के बारे में भी सोचता है। परिवार वालों के कष्टों के बारे में जानकर वह दुःखी भी होता है। परन्तु वह देश की परतन्त्र दु:खी जनता को भी देखता है। वह परिवार वालों की पुकार एक कान से सुनता है तो दूसरे से देश की जनता की पीड़ा भरी पुकार उसे सुनाई देती है। एक आँख से परिवार के कष्ट तो दूसरी से जनता के कष्ट दिखाई देते हैं। मातृभूमि माँ की माँ होने तथा देश पिता का पिता होने के कारण उसके माता-पिता से बड़े हैं। उसके देश के निवासी उसके लिए परिवार के लोगों से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह छोटे उद्देश्य को छोड़ सकता है। देश तथा मातृभूमि के लिए वह परिवार की उपेक्षा कर सकता है। भारत-माता को स्वतन्त्र कराने तथा सुखी बनाने के लिए, उसके मुख पर मुस्कान लाने के लिए वह अपने परिवार वालों के कष्टों की अनदेखी कर सकता है, उनका दु:ख सहन कर सकता है।
विशेष-
(i) सागरमल गोपा देश की स्वतन्त्रता को परिवार के सुख की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण मानता है।
(ii) वह परिवार के सुख को देश के हित में त्यागने को प्रस्तुत है।
(iii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली ओजपूर्ण है।
8. सागर – (हँसकर) मातृभूमि के दीवाने तन का जीवन नहीं, मन का जीवन जीते हैं। फिर मेरे पाँव टूटने पर यदि मेरे देश का एक कदम आगे बढ़े, मेरे हाथ टूटने पर यदि देश के हाथ थोड़े मजबूत होते हों, मेरी आँखें फूटने से यदि देश को नई नजर मिले, मेरे प्राण लेने से यदि देश को नया जीवन मिले, तो मैं इन्हें खोना अपना परम सौभाग्य मानूंगा। मेरा नाम सागर है। जेलर साहब! मेरी गहराइयों को तोप और तलवार हिला नहीं सकतीं।
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संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित “अमर शहीद’ एकांकी से उद्धृत है। इसके लेखक लक्ष्मीनारायण रंगा हैं। सागरमल देश की स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलनरत है। वह जेलर के समझाने पर भी अपने लक्ष्य को छोड़ना नहीं चाहता। जेलर उसे बताता है कि वह अपनी हठ पर अड़ा रहा तो महारावल के लोग उसके हाथ-पैर तोड़ देंगे, आँखें फोड़ देंगे और उसकी हत्या कर देंगे।
व्याख्या-सागरमल को भय नहीं है। वह देश को स्वतन्त्र कराने के अपने प्रयासों को छोड़ना नहीं चाहता। जेलर की बातों का वह हँसकर उत्तर देता है। वह बताता है कि स्वतन्त्रता प्रेमी वीर शरीर का मोह नहीं रखते। वह शरीर के सुख के लिए जीवित नहीं रहते। वे अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं। इस समर्पण की प्रेरणा उनको तन से नहीं मन से मिलती है। उनके मन में दृढ़ता होती है और उसमें देश की स्वतन्त्रता के प्रति गहरा प्रेम होता है। वे शरीर के कष्टों की परवाह नहीं करते। यदि उसके हाथ-पैर तोड़ने से उसके देश के हाथ मजबूत होते हैं तो वह अपने हाथ-पैर तुड़वाने को तैयार है। यदि उसकी आँखें फोड़ना देश की स्वतंत्रतापूर्ण नवीन दृष्टि में सहायक होता है तथा उसकी हत्या होने से देश को नया जीवन मिलता है, उसको स्वाधीनता प्राप्त होती है तो अपने अंगों और जीवन को खोने में भी अपने सौभाग्य के दर्शन करूंगा। वह दृढ़तापूर्वक कहता है कि उसका नाम सागर है। उसकी गहराई का किसी को अता-पता नहीं है। उसको किसी तोप और तलवार से भी प्रभावित नहीं किया जा सकता है।
विशेष-
(i) भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
(ii) शैली ओजप्रधान है।
(iii) देश की स्वतन्त्रता के प्रति सागरमल गोपा का दृढ़ संकल्प व्यक्त हुआ है।
(iv) सागरमल निर्भीक है तथा देशहित में आत्म-बलिदान के लिए प्रस्तुत है।