RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 16 गौरा
RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 16 गौरा
Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 16 गौरामन से
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. महादेवी वर्मा किस युग की कवयित्री है
(क) द्विवेदी युग
(ख) छायावाद
(ग) प्रगतिवाद
(घ) प्रियदर्शन
2. गौरा के बछड़े का क्या नाम था
(क) लालमणि
(ख) गोपालक
(ग) समीर
(घ) प्रयोगवाद
(घ) प्रियदर्शन
उत्तर:
1. (ख)
2. (क)
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
लेखिका की बहन का नाम क्या है ?
उत्तर:
लेखिका की बहन का नाम श्यामा है।
प्रश्न 4.
‘गाय करुणा की कविता है’ किसका कथन है ?
उत्तर:
‘गाय करुणा की कविता है-यह गाँधी जी का कथन है।
प्रश्न 5.
लेखिका को गाय पालने का सुझाव किसने दिया ?
उत्तर:
लेखिका को गाय पालने का सुझाव उनकी छोटी बहन श्यामा ने दिया था।
प्रश्न 6.
गौरा के बछड़े (वत्स) का क्या नाम रखा गया ?
उत्तर:
गौरा के बछड़े (वत्स) का नाम लालमणि रखा गया। उसे लालू भी कहते थे।
प्रश्न 7.
गौरा की बीमारी को क्या कारण था ?
उत्तर:
गौरा को गुड़ की डली में लपेटकर सुई खिला दी गई थी, जो रक्त-संचार के साथ उसके हृदय की ओर बढ़ रही थी।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 8.
कौन-सी समस्या स्थायी समाधान चाहती थी ? उसका क्या समाधान हुआ ?
उत्तर:
गौरा दस बारह सेर दूध सुबह-शाम देती थी। उसका दूध दुहने की समस्या थी। महादेवी के शहरी सेवक दूध दुहना नहीं जानते थे तथा गाँव से आये हुए सेवकों का दूध दुहने का अभ्यास छूट गया था। महादेवी को ऐसे दूध दुहने वाले की आवश्यकता थी जो स्थायी रूप से यह काम कर सके। महादेवी के घर में पहले एक ग्वाला दूध देने आता था। उसको गौरा को दुहने के लिए नियुक्त कर दिया गया।
प्रश्न 9.
“आह मेरा गोपालक देश” पंक्ति में निहित वेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में गाय का सम्मान, होता है तथा उसको घर-घर में प्रेम के साथ पाला जाता है। उस गोपालकों के देश में गौरा की किसी निर्मम ग्वाले द्वारा हत्या होना अत्यन्त दुःखदायी है। मरणासन्न तथा पीड़ा से तड़पती गौरा को देखकर महादेवी सिहर उठीं और उनके मुख से निकला-“आह मेरा गोपालक देश।”
प्रश्न 10.
गौरा का लेखिका के बंगले पर हुए स्वागत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गौरा जब महादेवी के बंगले पर आई तो परिचितों और परिवार की भीड़ हो गई। श्रद्धापूर्वक सबने उसका स्वागत किया। गौरा की गर्दन में लाल-सफेद गुलाबों की माला पहनाई गई। उसके माथे पर केशर-रोली का बड़ा टीका लगाया गया। घी का चौमुखी दिया जलाकर उसकी आरती की गई। उसको दही-पेड़ा खिलाया गया। उन्होंने उसका नाम गौरांगिनी अथवा गौरा रखा गया। गौरा इस स्वागत से अत्यन्त प्रसन्न हुई।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
”गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शिनी थी” पंक्ति के आधार पर गौरा के शारीरिक सौन्दर्य एवं स्वभावगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गौरा बहुत ही सुन्दर गाय थी। उसकी आँखें काली और चमकीली । उसका माथा चौड़ा तथा मुँह लम्बा था। लम्बे सफेद मुख पर उसकी आँखें बर्फ के बीच नीले जलकुंड जैसी लगती थीं। उसकी आँखों में आत्मीयता से भरा विश्वास का भाव था।
वह मन्थर गति से चलती थी। कुछ दिनों में ही वह हिल-मिल गई थी। कुत्ते बिल्ली उसके पेट के नीचे तथा टाँगों के बीच में खेलने लगे थे। पक्षी उसकी पीठ और माथे पर बैठते थे और उसके कान तथा आँखें खुजलाते थे।गौरा सबको पैरों की आहट से पहचानती थी।
उसको मोटर के आने, चाय, नाश्ता तथा भोजन के समय की पहचान थी। वह कुछ पाने के लिए सँभाने लगती थी। पास आने पर वह अपनी गर्दन सहलाने के लिए आगे बढ़ा देती थी।
हाथ फेरने पर वह आश्वस्त होकर उसे कन्धे पर रख लेती और आँखें मूंद लेती थी। अपने से दूर जाने पर वह जाने वाले को गर्दन घुमा- घुमा कर देखती रहती थी। कोई जरूरत होने पर वह एक निश्चित ध्वनि करती थी।
प्रश्न 12.
‘गौरा की मृत्यु को संघर्ष’ इस संस्मरण का सर्वाधिक मार्मिक प्रसंग है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गौरा को गुड़ की बटी के माध्यम से सुई खिला दी गई थी। उसकी पीड़ा सहती हुई वह तिल-तिल करके मर रही थी। डॉक्टरों ने उसके रोग को असाध्य तथा मृत्यु को अवश्यम्भावी बता दिया था। महादेवी द्वारा बुलाये गये अनेक डॉक्टरों के प्रयास उसे न पीड़ा मुक्त कर पा रहे थे और न स्वस्थ । उसको इंजेक्शन पर इंजेक्शन दिये जाते थे।
पशुओं के लिए प्रयोग में आने वाले इन इंजेक्शनों में सूजे के समान बड़ी सिरिंज होती थी तथा बड़े डिब्बे भरी दवा इनके द्वारा उसके शरीर में पहुँचाई जाती थी।इनकी पीड़ा किसी शल्य क्रिया से कम नहीं थी। गौरा शान्ति के साथ भीतरी तथा बाहरी चुभन को सहती थी। कभी-कभी उसकी आँखों के कोनों से दो बूंद आँसू टपक जाते थे।अब गौरा से खड़ा नहीं हुआ जाता था।
खाना-पानी तो पहले ही छूट चुका था। सेब का जो रस पिलाया जाता था, वह भी उसके गले में अटकने लगा था। उसकी मृत्यु की प्रतीक्षा करना अत्यन्त मार्मिक था।महादेवी ने गौरा शीर्षक संस्मरण में गौरा के आगमन, उसके सौन्दर्य, उसके स्वभावे, उसके बछड़े को जन्म तथा सुई खिला दिये जाने के बाद धीरे-धीरे उसके मृत्यु की ओर बढ़ने आदि का वर्णन किया है।
गौरा का मृत्यु के साथ संघर्ष इस संस्मरण का सबसे अधिक मार्मिक प्रसंग है। गौरा के इस संघर्ष की कथा पढ़कर पाठक द्रवित हो उठता है। महादेवी के समान ही उसके मुख से भी करुणा भरी आह निकलती है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों ……………… उसकी आँखें देखकर ही समझ में आ सकता है।
(ख) अपने पालित जीवन जन्म के पार्थिक…………….उनकी प्रतिध्वनि कहेगी ‘आह मेरा गोपालक देश ।
उत्तर:
उपर्युक्त गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में गद्यांश 3 व 8 का अवलोकन करें।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 अन्य महत्वपूर्ण प्रोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1, ‘गौरा’ है एक
(क) निबन्ध
(ख) गद्य गीत
(ग) रिपोर्ताज
(घ) संस्मरण
2. ‘गौरा’ महादेवी वर्मा की किस पुस्तक में संग्रहीत है?
(क) स्मृति की रेखाएँ।
(ख) अतीत के चलचित्र
(ग) मेरा परिवार
(घ) पथ के साथी।
3. महादेवी को ‘गौरा’ को पालने की सलाह दी
(क) उनकी बहिन श्यामा ने।
(ख) उनके नौकर ने
(ग) उनकी माता ने
(घ) एक गोशाला के प्रबन्धक ने।
4. खाद्य की समस्या के समाधान के लिए महादेवी को अरुचिकर लगता था
(क) खेती करना
(ख) पशु पालना .
(ग) फलों का बगीचा लगाना
(घ) खाद्य पदार्थों की दुकान खोलना।
5. पहली बार देखने पर महादेवी को गौरा लगी
(क) प्रियदर्शिनी
(ख) पयस्विनी
(ग) इटैलियन मार्बल से बनी मूर्ति
(घ) स्नेह की मूर्ति
6. गौरा की चाल थी
(क) बाण की तीव्र गति-सी
(ख) मन्थर गति-सी
(ग) मध्यम वेग वाली गति-सी
(घ) प्रकाश की गति-सी।
7. गौरा के बछड़े का नाम था
(क) वत्स
(ख) लालमणि
(ग) नीलमणि
(घ) गेरुआ।
8. गौरा की मृत्यु का कारण था
(क) उसका पैर टूट जानी
(ख) उसको भरपेट खाना न मिलना
(ग) उसको सुई खिला दिया जाना
(घ) उसका इलाज न होना।
9. गौरा को सुई खिलाने की शंका थी
(क) महादेवी के सेवक पर
(ख) दूध दुहने वाले ग्वाले पर
(ग) सफाई करने वाली पर
(घ) गौरा को चारा-पानी देने वाले पर।
10. गौरा की व्याधि और आसन्न मृत्यु का बोध नहीं था
(क) डॉक्टरों को
(ख) महादेवी वर्मा को
(ग) श्यामा को
(घ) लालमणि को।
उत्तर:
1. (घ)
2. (ग)
3. (क)
4. (ख)
5. (ग)
6. (ख)
7. (ख)
8. (ग)
9. (ख)
10. (घ)
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गौरा कौन थी?
उत्तर:
गौरा महादेवी की छोटी बहन के घर में पली हुई गाय की वयःसन्धि बछिया थी।
प्रश्न 2.
गौरा अन्य गायों से कुछ विशिष्ट कैसे हो गई थी ?
उत्तर:
अत्यन्त स्नेह और दुलार से पाले जाने के कारण गौरा अन्य गायों से कुछ विशिष्ट हो गई थी।
प्रश्न 3.
श्यामा ने महादेवी को क्या सलाह दी ?
उत्तर:
श्यामा ने महादेवी को गाय पालने की सलाह दी।
प्रश्न 4.
उपयोगितावाद सम्बन्धी भाषण किसने दिया था ?
उत्तर:
महादेवी की बहन श्यामा ने गाय की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए महादेवी से देर तक बात की थी। यही उसकी उपयोगितावाद सम्बन्धी भाषण था।
प्रश्न 5.
श्यामा की बातों का प्रभाव किसके समान होता था ?
उत्तर:
श्यामा की बातों का प्रभाव संक्रामक रोग के समान जल्दी ही होता था।
प्रश्न 6.
गौरी को देखते ही महादेवी की मन:स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गौरी को देखते ही महादेवी का गाय पालने के बारे में अनिश्चय निश्चय में बदल गया।
प्रश्न 7.
गौरा की मन्थर गति की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर:
गौरा की मन्थर गति की तुलना अपने वृन्त पर धीरे-धीरे हिलने वाले फूल से की गई है।
प्रश्न 8.
लालमणि के खुरों के ऊपर बने सफेद रंग के वलय कैसे लगते थे ?
उत्तर:
लालमणि के खुरों के ऊपर बने सफेद रंग के वलय गौरा के चाँदी के आभूषणों के समान लगते थे।
प्रश्न 9.
निरीक्षण-परीक्षण के बाद पशु-चिकित्सकों ने क्या कहा ?
उत्तर:
चिकित्सकों ने कहा कि गौरा को सुई खिला दी गई है जिससे उसकी मृत्यु होना निश्चित है।
प्रश्न 10.
महादेवी का मन आज भी क्यों सिहर उठता है ?
उत्तर:
गौरा के मृत्यु से संघर्ष को याद करके महादेवी को मन आज भी सिहर उठता है।
प्रश्न 11.
निरुपाय मृत्यु की प्रतीक्षा’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जब कोई असाध्य रोग हो तथा मृत्यु सुनिश्चित हो तब मृत्यु की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। यही इस कथन का आशय है।
प्रश्न 12.
गौरा की मृत्यु किस समय हुई ?
उत्तर:
गौरा की मृत्यु ब्रह्ममूहर्त में प्रात:काल चार बजे हुई।
प्रश्न 13.
गौरा के पार्थिव शरीर को संस्कार कैसे किया गया ?
उत्तर:
गौरा का पार्थिव शरीर गंगा को समर्पित कर दिया गया।
प्रश्न 14.
“आह मेरा गोपालक देश”- क्या भाव निहित है ?
उत्तर:
‘आह मेरा गोपालक देश में मार्मिक व्यंग्य का भाव निहित है।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘गौरी’ भहादेवी वर्मा की किस गद्य-विधा की रचना है? इसकी विषय-वस्तु को संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘गौरा’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें लेखिका ने गौरा नामक गाय का सजीव चित्रण किया है। गौरा एक सुन्दर गाय थी। महादेवी की इस पालतू गाय को सुई खिला दी गई थी जिससे असीमित पीड़ा भोगकर उसकी निर्मम मृत्यु हुई थी। महादेवी ने गौरा के सौन्दर्य, उसके प्वभाव, उसकी रुग्णता तथा मृत्यु के साथ उसके संघर्ष का प्रभावशाली वर्णन किया है।
प्रश्न 2.
गौरा’ शीर्षक संस्मरण की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
‘गौरा’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरण है। यह उनकी पालित गाय ‘गौरा’ से सम्बन्धित है। इसमें गौरा की सुन्दरता, उसके स्वभाव, उसकी असाध्य बीमारी तथा मृत्यु के साथ उसके संघर्ष का वर्णन है। इसमें एक सामान्य पशु गाय का अत्यन्त प्रभावशाली तथा सजीव चित्रांकन हुआ है।
इससे महादेवी की सूक्ष्म दृष्टि तथा संवेदनशीलता का पता चलता है। महादेवी ने संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा में भावात्मक शैली की सहायता से गौरा को असाधारण व्यक्तित्व प्रदान किया है।
प्रश्न 3.
“मेरी छोटी बहिन श्यामा अपनी लौकिक बुद्धि में मुझसे बहुत बड़ी है……..’ महादेवी के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।अथवा महादेवी वर्मा ने अपनी छोटी बहिन श्यामा को अपने से बहुत बड़ी किस कारण कहा है ?
उत्तर:
श्यामा महादेवी वर्मा की छोटी बहिन थी। उसको दुनियादारी सम्बन्धी गहरा ज्ञान था। महादेवी वर्मा यद्यपि उससे बड़ी थीं और प्रतिष्ठित कवयित्री थीं परन्तु उनमें लौकिक दृष्टि से विचार करने की क्षमता उतनी नहीं थी। श्यामा बचपन से ही कर्मनिष्ठ थी तथा व्यवहारकुशल थी। वह अपनी बात पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहती थी। इन गुणों में श्यामा से पीछे रहने के कारण वह बड़ी होने पर भी ओटी तथा श्यामा छोटी होने पर भी उनसे बड़ी थी।
प्रश्न 4.
“तत्काल उस सुझाव का कार्यान्वयन आवश्यक हो गया”-के अनुसार सुझाव क्या था तथा उसका तत्काल कार्यान्वयन क्यों जरूरी था ?
उत्तर:
महादेवी वर्मा की छोटी बहन ने एक बार उनसे कहा–तुम पशु-पक्षी बहुत पालती हो, गाय क्यों नहीं पालती ? गाय बहुत उपयोगी तथा लाभदायक है। श्यामा ने यह सुझाव अत्यन्त आत्मविश्वास के साथ दिया था। श्यामा का यह सुझाव बहुत व्यावहारिक भी था। श्यामा के विचारों का प्रभाव तत्काल होता था। गाय पालने की उपयोगिता पर श्यामा की बातें इतनी प्रभावशाली थीं कि उसके सुझाव पर तुरन्त अमल करना जरूरी हो गया।
प्रश्न 5.
बकरी, कुक्कुट, मछली आदि घालने के मूल उद्देश्य का ध्यान आते ही मेरा मन विद्रोह करने लगता है।’ इस कथन में वर्णित जीव-जन्तुओं को पाने का मूल उद्देश्य क्या है ? महादेवी को इससे विरोध होने का क्या कारण है ?
उत्तर:
बकरी, मुर्गा, मछली आदि के पालने का मूल उद्देश्य उनका मांस खाना है। मांसाहारी लोग खाद्य समस्याओं को हल करने के लिए इनको पालते हैं। इन जीवों को मांसाहार के इरादे से पालना महादेवी को रुचिकर नहीं लगता था। पहले इनको पालो फिर मारकर खा जाओ-यह सोच उनको अनुचित लगती थी। वह खाद्य समस्या के समाधान के लिए पशु-पक्षियों को पालने की सोच के प्रति उनके मन में विद्रोह का भाव था।
प्रश्न 6.
महादेवी ने गौरा को ध्यानपूर्वक देखा तो कैसा पाया?
उत्तर:
महादेवी की बहन ने उनको गाय पालने का सुझाव दिया। उसने उनके पास एक गाय भेजी। वह खाद्य-समस्या के हल के लिए पशुपालन की विरोधी थीं परन्तु उन्होंने गाय (गौरा) को ध्यानपूर्वक देखा। गौरा के पैर पुष्ट और लचीले, पीठ चिकनी और भरी हुई, पुट्टे भरे हुए तथा गर्दन लम्बी और सुडौल थी।
उसके छोटे-छोटे सग निकल रहे थे। उसके कान भीतर से लाल थे। उसकी पूँछ म्बी थी जिसके अन्तिम छोर पर घने बाल थे। महादेवी को गौरा साँचे में ढली हुई, सी लगी।
प्रश्न 7
“गाय को मानो इटैलियन मार्बल से तराशकर उस पर ओप दी गई हो।” महादेवी के इस कथने का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर:
गौरा सफेद रंग की गाय थी। उसके चमकीले रोम देखकर ऐसा लगता था जैसे उन पर अभ्रक का चूर्ण मल दिया गया हो। इस कारण जिधर से भी प्रकाश पड़ता था विशेष चमक पैदा हो जाती थी। उसका अंग-प्रत्यंग पुष्ट था। वह पूर्णत: स्वस्थ थी। वह अत्यन्त सुन्दर थी। वह इटली के श्वेत मार्बल पत्थर को तराश कर बनाई गई गाय की सुन्दर प्रतिमा के समान लगती थी।
प्रश्न 8.
महादेवी के मन में क्या दुविधा थी ? वह किस प्रकार समाप्त हुई ?
उत्तर:
महादेवी गाय पालने अथवा न पालने के द्वन्द्व में पड़ी थीं। श्यामा का गाय पालने का सुझाव विचारणीय तो था किन्तु महादेवी निर्णय नहीं कर पा रही थीं। श्यामः ने अपने घर में पली हुई गाय की जवान बछिया को उनके पास भेजा। महादेवी ने उसको ध्यानपूर्वक देखा। वह एक सुदर, पुष्ट शरीर की स्वस्थ गाय थी।
गाय पालने की उपयोगिता तो वह श्यामा से सुन ही चुकी थीं। अब एक सुन्दर गाय को अपने सामने पाकर गाय पालने के सम्बन्ध में उनके मन की दुविधा समाप्त हो गई। उन्होंने गौरा को पालने का निश्चय कर लिया।
प्रश्न 9.
“गाय करुणा की कविता हैं”–महात्मा गाँधी के इस कथन को महादेवी ने क्यों उद्धृत किया है ?
उत्तर:
“गाय करुणा की कविता है।” यह कथन महात्मा गाँधी का है। महादेवी ने गौरा के नेत्रों में एक आश्वस्त विश्वास की भाव पाया था। महादेवी ने हिरन भी पाले थे। हिरन के नेत्रों में विस्मय का भाव रहता है।
उसकी तुलना में गाये की आँखों में रहने वाला विश्वास का भाव प्रकट करता है कि वह अपने निकटस्थ जीवों तथा मनुष्यों पर विश्वास करती है।उनमें उनसे डरने अथवा चकित होने की भावना नहीं होती। गाय अपने पालनकर्ता तथा अन्य मनुष्यों और जीवों के प्रति करुणा की भावना से युक्त होती है।
वह अपने भधुर दुग्ध से उनको सुखी और स्वस्थ बनाती है। मेरा विचार है कि गाँधी जी के कथन में सम्भवतः यही भाव पाकर महादेवी ने अपने समर्थन में उसको उद्धृत किया है। गाय की आँखों को देखकर ही इस कथन को समझा जा सकता है।
प्रश्न 10.
गौरा की चाल के बारे में लेखिका का क्या कहना है ?
उत्तर:
गौरा अलस मन्थर गति से चलती थी। उसकी यह चाल अत्यन्त सुन्दर लगती थी। उसकी गति बाण की गति के समान तीव्र नहीं थी। बाण तेजी से चलकर देखने वाले की निगाह में चकाचौंध पैदा तो करता है परन्तु उसमें मन्थर गति की सुन्दरता नहीं होती।
गौरा की मन्थर गति किसी डाल पर खिंचे हुए उस फूल की तरह सुन्दर थी जो मंद हवा के चलने से धीरे-धीरे हिल रहा हो। उस फूल को देखने में जो आनन्द आता है वही आनन्द गौरा को धीरे-धीरे चलते देखकर आता था।
प्रश्न 11.
“कुछ ही दिनों में वह इतनी हिलमिल गई…….” कौन किससे हिल मिल गई ? ‘गौरा’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
गौरा महादेवी के बंगले पर पल रही थी। महादेवी के यहाँ अनेक कर्मचारी थे तथा उन्होंने अनेक पशु-पक्षी पाल रखे थे। कुछ ही दिनों में गौरा सबके साथ घुल-मिल गई। पशु-पक्षी अपने छोटे आकार तथा गौरा के विशाल शरीर का अन्तर भूल गये। कुत्ते-बिल्ली उसके पेट के नीचे से नि:संकोच खेलते थे तथा पक्षी उसकी पीठ तथा माथे पर बैठकर उसके कान तथा आँखें खुजलाते थे। गौरा भी चुपचाप आँखें मूंदकर सम्पर्क का सुख पाती थी।
प्रश्न 12.
गौरी की समझदारी का उल्लेख महादेवी ने किन शब्दों में किया है ?
उत्तर:
गौरा अत्यन्त समझदार गाय थी। वह महादेवी के घर में सबको उनके पैरों की आहट सुनकर ही पहचान लेती थी। उसे समय का भी सही ज्ञान था। महादेवी की कार जब बंगले में आती तो वह ‘बाँ-बाँ’ की आवाज में उनको पुकारती थी। उसको चाय, नाश्ते तथा भोजन के समय का ज्ञान था।
वह कुछ समय प्रतीक्षा करती थी फिर कुछ पाने के लिए सँभाने लगती थी। पास जाने पर वह अपनी गर्दन आगे बढ़ा देती थी। हाथ फेरने पर आश्वस्त होकर अपनी आँखें मूंद लेती थी और सिर कंधे पर रख देती थी। दूर जाने पर गर्दन घुमा-घुमाकर देखती रहती थी।
प्रश्न 13.
‘माता-पुत्र दोनों निकट रहने पर हिमराशि और जलते अंगारे का स्मरण कराते थे।” महादेवी के इस कथन को स्पष्ट करके समझाइए।
उत्तर:
एक वर्ष पश्चात् गौरा ने लाल रंग के बछड़े को जन्म दिया। गौरा अत्यन्त उज्ज्वल सफेद रंग की थी। जब गौरा और उसका बछड। एक साथ होते थे तो अपने सफेद रंग के कारण गौरा बर्फ के समूह की तरह लगती थी और लाल रंग केकारण उसका बछड़ा आग के जलते हुए अंगारे के समान दिखाई देता था। महादेवी ने गौरा की तुलना हिमराशि से तथा उसके बछड़े की तुलना जलते हुए अंगारे से की है।
प्रश्न 14.
लालमणि कौन था ? ‘गौरा’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
लालमणि गौरा का वत्स अर्थात् बछड़ा था। महादेवी के यहाँ आने के एक साल बाद गौरा ने एक बछड़े को जन्म दिया था। उसका रंग लाल था। वह गेरु के बने पुतले जैसा था। उसके माथे पर पान के आकार का सफेद तिलक था तथा खुरों के ऊपर सफेद रंग के गोल घेरे बने हुए थे। वह अपने रंग के कारण जलते हुए अंगारे के समान प्रतीत होता था। उसका नाम लालमणि रखा गया था परन्तु सब उसको लालू कहते थे।
प्रश्न 15.
“अब हमारे घर में दुग्ध-महोत्सव आरम्भ हुआ”-महादेवी ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर:
गौरा गाय एक दिन में लगभग बारह सेर दूध देती थी। लालमणि के लिए कई सेर दूध छोड़ देने पर भी बहुत-सा दूध बचा रहता था। इसको आस-पास के बच्चों के साथ-साथ कुत्ते-बिल्ली तक सब पीते थे। दूध दुहने के समय वे सब गौरा के सामने एक पंक्ति में बैठ जाते थे। महादेवी उनके सामने उनके खाने के बर्तन रख देता था
तथा प्रत्येक के बर्तन में नापकर दूध डाल देता था। उसको पीकर वे अपने-अपने स्वरों में कृतज्ञता प्रकट करते हुए गौरा के चारों ओर उछलने-कूदने लगते थे। इस दृश्य को देखकर लगता था जैसे किसी उत्सव में आमंत्रित अतिथि उपस्थित होकर भोजन-जलपान आदि कर रहे हों।
प्रश्न 16.
दुग्ध दोहन की समस्या क्या थी ? उसका क्या समाधान निकला ?
उत्तर:
गौरा सुबह-शाम लगभग बारह सेर दूध देती थी। महादेवी के शहरी नौकर दूध दुहना जानते नहीं थे। जो गाँव से आये थे वे भी अभ्यास छूट जाने के कारण दूध नहीं दुह पाते थे। महादेवी को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो सुबह-शाम स्थायी रूप से महादेवी की गाय का दूध दुह सके।
अन्त में एक व्यक्ति मिल ही गया। वह एक ग्वाला था तथा घर में ‘गौरा’ के आने से पहले महादेवी के घर दूध पहुँचाया करता था उसके आग्रह पर उसी को दूध दुहने के लिए नियुक्त कर लिया गया।
प्रश्न 17.
महादेवी ने पशु-चिकित्सकों को क्यों बुलाया? उनका कहना क्या था?
उत्तर:
दो-तीन महीने के बाद गौरा ने चारा-दाना खाना बहुत कम कर दिया। वह दिनोंदिन कमजोर और शिथिल होती जा रही थी। महादेवी ने उसको दिखाने के लिए पशु-चिकित्सकों को बुलाया। उन्होंने कई दिनों तक गौरा को निरीक्षण, परीक्षण, एक्स-रे आदि किया और रोग का कारण खोजा।
अन्त में उन्होंने बताया कि गौरा को किसी ने सुई खिला दी थी। वह रक्त संचार के साथ उसके हृदय तक पहुँच गई है। जब सुई उसके हृदय के पार हो जायेगी तो रक्त प्रवाह रुकने से उसकी मृत्यु होना निश्चित है।
प्रश्न 18.
“मुझे कष्ट और आश्चर्य दोनों की अनुभूति हुई।”—महादेवी को कष्ट और आश्चर्य होने का कारण क्या था?
उत्तर:
महादेवी को यह जानकर कष्ट हुआ कि गौरा को सुई खिला दी गई थी। गौरा एक सुन्दर, स्वस्थ, दूध देने वाली गाय थी। सुई खिलाकर उसकी हत्या करने का दुष्टतापूर्ण कार्य निन्दनीय था। गाय की हत्या करने का अमानवीय कार्य नि:सन्देह कष्टप्रद था। महादेवी को दूसरी अनुभूति आश्चर्य की हुई। गौरा ने किसी को हानि नहीं पहुँचाई थी। उसको मारने के बारे में सोचना आश्चर्यजनक था। अकारण गौरा की हत्या का प्रयत्न महादेवी को आश्चर्यजनक प्रतीत हुआ।
प्रश्न 19.
दाना-चारा के साथ गौरा का सुई खाना क्यों सम्भव नहीं था? फिर उसको सुई किस तरह खिलाई। गई थी?
उत्तर:
दाना-चारा के साथ गौरा द्वारा सुई खा लेना सम्भव नहीं था क्योंकि दाना-चारा तो महादेवी का सेवक उसको देखभाल के बाद ही स्वयं देता था। डॉक्टर ने बताया कि चारे के साथ सुई चली गई होती तो वह गाय के मुँह में ही छिद जाती
और पेट में नहीं पहुँचती। किसी ने गुड़ की बड़ी डेली के अन्दर सुई रखकर उसको खिला दी होगी तभी वह गले के नीचे उतर गई है।
प्रश्न 20.
“अन्त में, एक ऐसा निर्मम सत्य उद्घाटित हुआ……” अन्त में किस सत्य का पता चला और वह । निर्मम क्यों था?
उत्तर;
अन्त में महादेवी जी को गौरा का दूध दुहने वाले ग्वाले पर सन्देह हुआ। सुई खिलाये जाने की सच्चाई का पता चलने के बाद से ही वह गायब हो गया था। प्रायः ऐसे घरों में जहाँ ग्वालों से ज्यादा दूध लिया जाता है वो किसी गाय काआना बरदाश्त नहीं कर पाते।
वे गुड़ में छिपाकर गाय को सुई खिलाकर उसकी मृत्यु निश्चित कर देते हैं तथा गाय के मरने के बाद उस घर में फिर से दूध देने लगते हैं। किसी गाय को अपने थोड़े से लाभ के लिए मारा जा सकता है-यह सत्य निर्दयतापूर्ण तो है ही।
प्रश्न 21.
मत्यु के साथ गौरा के संघर्ष का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर;
गौरा की बीमारी बढ़ती जा रही थी। वह अपनी मृत्यु के साथ संघर्ष कर रही थी। उसको इंजेक्शन पर इंजेक्शन लगाये जाते थे। इनमें प्रयुक्त सिरिंज मोटे सूजे के समान होती थी। दवा भी डिब्बा भरेकर प्रयोग की जाती थी। इससे होने वाली पीड़ा शल्यक्रिया से कम नहीं थी। गौरा भीतरी तथा बाहरी चुभन शांति के साथ सहती थी। कभी-कभी उसकी आँखों के कोनों में दो बूंद आँसू छलक आते थे।
डॉक्टरों का कहना था कि गौरा को सेब का रस दिया जाय। इससे सुई पर कैल्शियम जमने पर गौरा बच सकती थी। फलत: सेरों सेबों का रस निकालकर उसे नली द्वारा पिलाया जाता था। परन्तु गौरा की दशा दिनोंदिन गिरती जा रही थी। वह खड़ी भी नहीं हो पाती थी। सेब का रस गले में रुकने लगा था तथा आँखें निस्तेज होने लगी र्थी।
प्रश्न 22.
लालमणि को किस बात का बोध नहीं था? वह क्या करता था?
उत्तर:
लालमणि गौरा का बछड़ा था। उसको यह नहीं पता था कि उसकी माता असाध्य रोग से पीड़ित है तथा मरणासन्न है। उसको दूसरी गाय का दूध पीने को दिया जाता था परन्तु वह उसको रुचिकर नहीं लगता था। वह अपनी माँ का दूध ही पीना चाहता था तथा उसके साथ खेलना चाहता था। मौका पाकर वह गौरा के पास पहुँच जाता था तथा सिर मारकर उसको उठाना चाहता था।
प्रश्न 23.
“ऐसी मर्मव्यथा का मुझे स्मरण नहीं है।” महादेवी को किस मर्मव्यथा का स्मरण नहीं है ? क्या आपको भी किसी मार्मिक व्यथा का स्मरण है ?
उत्तर:
महादेवी ने ‘गौरा’ को मृत्यु से संघर्ष करते देखा था। वह शरीर के अन्दर स्थित सुई की भयानक चुभन सहती थी तथा बाहर इंजेक्शनों के सिरिंज की चुभन भी बर्दाश्त करती थी। इससे उसको जो पीड़ा तथा व्यथा होती थी वह महादेवी के अनुमान से बाहर की बात नहीं थी। उनकी दृष्टि में उससे अधिक कष्टकारक कोई और बात नहीं हो सकती थी।
मुझे स्मरण है कि मैंने अपने बचपन में एक श्वान शिशु अर्थात् पिल्ला पाला था। उसको खुजली हो गयी थी। उसका खूब इलाज कराया। एक दिन वह छत से नीचे गिर गया और मर गया। मैं बहुत दु:खी था। तब मेरे पिताजी ने मुझे बाजार से एक सुन्दर पेन दिलाकर मेरा दु:ख कम करने का प्रयास किया था।
प्रश्न 24.
महादेवी का गौरा के साथ अन्तिम मिलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महादेवी ने जान लिया था कि गौरा का अन्त निकट है। उनकी इच्छा उसके अन्त के समय उसके पास रहने की थी। वह रात में बार-बार उठकर उसको देखती थीं । एक दिन वह ब्रह्ममुहूर्त में सबेरे चार बजे उठकर गौरा के पास पहुँचीं तो उसने जैसे ही अपना मुख हमेशा की तरह उनके कंधे पर रखा वह पत्थर की तरह भारी हो गया और उनकी बाँह से सरककर नीचे जमीन पर आ गया। सम्भवतः सुई ने गौरा के हृदय को छेदकर रक्तसंचार बन्द कर दिया था। गौरा की मृत्यु हो गई थी।
प्रश्न 25.
महादेवी ने ‘गौरा’ शीर्षक संस्मरण का समापन किन शब्दों के साथ किया है तथा क्यों ?
उत्तर:
महादेवी ने ‘गौरा’ शीर्षक संस्मरण में अपनी पालतू गाय गौरा को महत्वपूर्ण शब्दों में स्मरण किया है। संस्मरण का अन्त “आहे, मेरा गोपालक देश !” शब्द-समूह से हुआ है। भारत गोपालकों का देश है। यहाँ गायों की पूजा की जाती है तथा उनका श्रद्धापूर्वक पालन किया जाता है। उसी देश में एक गोपालक अपने तुच्छ आर्थिक लाभ के लिए एक सुन्दर ।
पयस्विनी गाय की हत्या करता है। यह जानकर लेखिका का हृदय विषाद से भर उठता है। इन शब्दों में महादेवी के मन की वेदना को बाहर आने का रास्ता मिला है। गोपालन तथा गो सेवा की भारतीय प्रदर्शनप्रियता पर करारा व्यंग्य भी इन शब्दों में प्रकट हुआ है।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 16 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘गौरा’ का व्यक्तित्व जितना आकर्षक एवं भव्य था उसको अन्त भी उतना ही करुण एवं मार्मिक हुआ।उपर्युक्त कथन पर विचारपूर्ण टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गौरा महादेवी वर्मा की आकर्षक व्यक्तित्व वाली पालतू गाय थी। वह सफेद रंग की थी। उसके अंग-प्रत्यंग,गया तो उसकी मृत्यु सुनिश्चित मान ली गई थी। उसके परिवार के लोगों के साथ ही मेरा मन भी विचिलत था। मैं उसके साथ बिताये समय को याद कर रहा था, मृत्यु के बारे में सोच रहा था परन्तु कुछ भी कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहा था।
बस मन में प्रबल व्याकुलता थी वह मेरे सामने तिल-तिल कर मर रहा था और मैं विवश था।क्षितिज सुडौल तथा साँचे में ढले हुए थे।वह इटैलियन मार्बल से निर्मित मूर्ति के समान लगती थी। गौरा प्रियदर्शिनी थी। उसकी आँखें काली और चमकीली थीं। उनमें अनोखे विश्वास का भाव था। वह सबके साथ घुल-मिल गई थी।
वह बहुत समझदार थी। समय का उसको ज्ञान था। वह स्नेही और कृतज्ञ थी।गौरा को उसका दूध दुहने वाले ग्वाले ने गुड़ की डली में छिपाकर सुई खिला दी थी। महादेवी ने उसका अच्छे से अच्छा इलाज कराया। सुई धीरे-धीरे रक्त संचार के साथ उसके हृदय की ओर बढ़ रही थी।गौरा को भयानक चुभन होती थी।
बड़े-बड़े इंजेक्शनों की चुभन भी उसने सही थी। महादेवी ने गौरा का अच्छे से अच्छा इलाज कराया किन्तु उसको कोई फल न निकला। पल-पल मृत्यु की ओर बढ़ती गौरा को देखकर महादेवी बड़ी दुखी रहती थीं। अंत में भयानक कष्ट सहते हुए गौरा का बड़ा करुण और मार्मिक अंत हो गया।
प्रश्न 2.
‘गौरा’ संस्मरण का अन्त “आह, मेरा गोपालक देश!” से होता है जो समाज में व्याप्त ईष्र्या एवं स्वार्थपरता पर गहरा व्यंग्य है।”-इस कथन को प्रस्तुत संस्मरण के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘गौरा’ शीर्षक संस्मरण में महादेवी ने अपनी पालतू गाय गौरा का भव्य चित्रांकन किया है। इसमें उसके सुन्दर शरीर के साथ उसके मिलनसार स्वभाव का भी वर्णन है। इसको अन्त में लेखिका ने लिखा है-”यदि दीर्घ नि:श्वास का शब्दों में अनवाद हो सके, तो उसकी प्रतिध्वनि कहेगी, ‘आहे मेरा गोपालक देश यहाँ ‘आह! मेरा गोपालक देश में गौरा की निर्मम तथा करुणाजनक मृत्यु पर महादेवी की गहरी वेदना को शब्द मिले हैं।
भारत में गाय की पूजा होती है। उसको गो माता कहते हैं।उसको एक निर्मम, दुष्ट ग्वाला (गोपालक) स्वार्थ और ईष्यवश सुई खिलाकर मार डालता है। गौरा इस असाध्य रोग की पीड़ा सहकर मरती है। एक प्रियदर्शिनी, पयस्विनी, सुन्दर वत्स की माता, मिलनसार गाय गौरा का करुण अन्त भारतीयों की गोपालन तथा गोसेवा की भावना पर सन्देह पैदा करता है।
तुच्छ आर्थिक लाभ के लिए उसकी हत्या समाज में व्याप्त स्वार्थपरता और ईष्र्या को ही सिद्ध करती है। लेखिका की कलम से निकले इन शब्दों में भारतीय समाज के दोगलेपन पर व्यग्य का प्रबल प्रहार हुआ है।
प्रश्न 3.
“निर्मम मृत्यु की प्रतीक्षा का मर्म वही जानता है, जिसे किसी असाध्य और मरणासन्न रोगी के पास बैठना पड़ा हो”-महादेवी के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब किसी को कोई बीमारी होती है तो इलाज करने से वह ठीक हो जाती है। परन्तु जब डॉक्टरों के प्रयल सफल न हों और वे बीमारी को लाइलाज घोषित कर दें तब मृत्यु अवश्यम्भावी हो जाती है। ऐसी अवस्था में रोगी और उसकी सेवा करने वाले के सामने आने वाली मृत्यु की प्रतीक्षा ही शेष रह जाती है।
किसी असाध्य रोग से पीड़ित और मरणासन्न रोगी के पास बैठना अत्यन्त मार्मिक होता है। रोगी के निकट बैठे हुए और उसकी अटल मृत्यु की प्रतीक्षा करने वाले की वेदना को वही जानता है जिसने उसको सहन किया हो।गौरा महादेवी को प्रिय थी। उसको सुई खिला दी गई थी। महादेवी द्वारा अनेक विशेषज्ञ पशु-चिकित्सक बुलाये गये परन्तु किसी ने उसके रोग का उपचार में कोई भी सफल न हो सका।
अन्त में गौरा की सुनिश्चित मृत्यु की घोषणा कर दी गई। इससे लेखिका को मर्मान्तक पीड़ा हुई। वह भारी मन से गौरा की देखभाल करती थीं और जानती थीं कि उसका जीवित बचना असम्भव है। वह रात में बार-बार उसको देखने जाती थीं। गौरा के अन्तिम समय वह उसके पास रहना चाहती थीं। वह गौरा की असहय और अप्रिय मृत्यु की प्रतीक्षा कर रही थीं।
प्रश्न 4.
क्या आपको किसी मरणासन्न रोगी के निकट बैठने का अवसर मिला है ? यदि हाँ, तो उस समय अपने मन में आये हुए विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गौरा की मृत्यु सुनिश्चित थी। चिकित्सक इसकी घोषणा करके चले गए थे। उसके अन्तिम समय में महादेवी भारी मन से उसके पास ही थीं।
मुझे भी एक बार एक मरणासन्न रोगी के निकट बैठने का अवसर मिला है। वह रोगी मेरा मित्र था। उसको डेंगू हो गया था। उसका ज्चर कम नहीं हो रहा था।
उसको लघुशंका के समय रक्त जाता था। अस्पताल में उसको सघन चिकित्सा कक्ष तथा वेंटीलेटर पर भी रखा गया। किन्तु डॉक्टरों का कोई प्रयास उसको रोगमुक्त ने कर सका। जब उसको वेंटीलेटर से हटाया
प्रश्न 5.
“पशु-पक्षियों में भी अपनत्व और कृतज्ञता जैसे मानवीय भाव होते हैं”_’गौरा’ शीर्षक संस्मरण के
आधार पर प्रमाणित कीजिए।
उत्तर:
‘गौरा’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें महादेवी ने अपनी पालित गाय का चित्रण किया है। महादेवी ने गौरा की शारीरिक सुंदरता के साथ उसके स्वभाव की विशेषताओं का भी वर्णन किया है। गौरा अत्यन्त समझदार थी। वह महादेवी तथा अन्य जनों के प्रति अपनत्व का भाव रखती थी। पास जाने पर वह अपनी गर्दन सहलाने के लिए बढ़ा देती थी।
हाथ फेरने पर आश्वस्त होकर आँखें बन्द कर लेती थी। दूर जाने पर गर्दन घुमा-घुमाकर देखती रहती थी। कुत्ते-बिल्ली उसके पेट के नीचे तथा पैरों के आस-पास खेलते थे। पक्षी उसकी पीठ और सिर पर बैठकर उसके कान तथा आँखें खुजलाते थे। जब उसका दूध दुहा जाता था तो कुत्ते-बिल्ली उसके पास दूध पीने के लिए एकत्र हो जाते थे। यदि उन्हें आने में विलम्ब होता था तो वह उनको सँभा-भाकर बुलाती थी।उसमें कृतज्ञता का मानवीय गुण भी था।
बीमारी के कारण वह उठ नहीं पाती थी। परन्तु महादेवी के निकट पहुँचने पर। प्रसन्न होती थी तथा अपना मुँह उनके कंधे पर रखकर उनकी गर्दन चाटने लगती थी।गौरा में इन गुणों का होना इस बात का प्रमाण है कि पशु-पक्षियों में भी अपनेपन और कृतज्ञता के मानवीय भाव होते हैं।
प्रश्न 6.
वह निर्मम सत्य क्या था जिसकी कल्पना भी महादेवी के लिए सम्भव नहीं थी ?
उत्तर:
गौरा एक स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट सुन्दर गाय थी। वह सुबह-शाम बारह सेर दूध देती थी। उसका दूध दुहने के लिए। एक ग्वाले को नियुक्त किया गया था। वह गाय पाले जाने से पहले उनके घर दूध पहुँचाया करता था। उसी ने गौरा का दूध दुहने का प्रस्ताव किया था। गौरा ने चारा खाना कम कर दिया। वह शिथिल रहने लगी। महादेवी ने पशु चिकित्सक बुलाये।
निरीक्षण, परीक्षण, एक्सरे आने के बाद उन्होंने बताया कि गौरा को किसी ने सुई खिला दी थी जो रक्तसंचार के साथ उसके हृदय की ओर बढ़ रही थी। उसकी मृत्यु सुनिश्चित थी।इस बात का पता चलने के बाद से ही ग्वाला गायब हो गया। कुछ ग्वाले जिन घरों में दूध देते हैं, उन घरों में गाय पाला जाना सहन नहीं कर पाते और सुई खिलाकर गाय को मार डालते हैं और उस घर में फिर से दूध देने लगते हैं।
महादेवी को ग्वाले पर सन्देह हुआ। गौ को माता मानने वाले समाज के सदस्य ‘ग्वाले’ के इस घृणित कर्म के बारे में जानना तथा गौरा की निश्चित अकाल मृत्यु होने की बात पता चलना ऐसी सचाई थी जिसकी लेखिका कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
प्रश्न 7.
‘रेखाचित्र एवं संस्मरण विधा को महादेवी जी ने नई ऊँचाई प्रदान की है।’-इस कथन के आधार पर महादेवी वर्मा के लेखन की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
रेखाचित्र’ अंग्रेजी के ‘स्केच’ का पर्याय है। ‘रेखा’ और ‘चित्र’ इन दो शब्दों से बनी रेखाचित्र विधा में किसी वस्तु, व्यक्ति, घटना आदि के आन्तरिक तथा बाह्य स्वरूप का शब्दचित्र प्रस्तुत किया जाता है। ‘संस्मरण’ गद्य विधा में किसी के जीवन के खण्ड-विशेष का शब्द-चित्र स्मरण के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है।
कथात्मकता तथा चित्रोपमता संस्मरण की विशेषताएँ हैं। गद्य की इन दोनों ही विधाओं में महादेवी को पूर्ण सफलता मिली है। आपने संस्मरण तथा रेखाचित्र विधाओं को नई ऊँचाई प्रदान की है।‘स्मृति की रेखायें’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘मेरा परिवार’ आदि पुस्तकों में उनकी इन रचनाओं का संग्रह है। ‘बदरी नारायण की माया’, ‘भक्तिन’, ‘मेरा भाई निराला’ आदि उनके प्रसिद्ध संस्मरण हैं।
‘गौरा’, ‘गिल्लू’, सोना हिरणी, इत्यादि उनके फ्शु-पक्षियों पर आधारित रेखाचित्र हैं। महादेवी ने एक ओर जहाँ मानव-चरित्रों को रचना का आधार बनाया है, वहीं दूसरी ओर साधारण पशु-पक्षियों के मार्मिक तथा प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किए हैं। शब्द-चित्रप्रधान, भावात्मक तथा व्यंग्यपूर्ण शैली तथा सटीक भाषा ने इनमें असाधारण व्यक्तित्व के रंग भरे हैं।
लेखिका-परिचय
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जीवन-परिचय-महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के एक संभ्रांत परिवार में सन् 1907 ई. में हुआ था। आपके पिता गोविन्द प्रसाद भागलपुर में प्रधानाचार्य थे। आपकी माता हेमरानी देवी एक कुशल गृहिणी थीं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में मिशन स्कूल में हुई थी। आगे की शिक्षा आपने इलाहाबाद के क्रोस्थवेट गर्ल्स कॉलेज में प्राप्त की। कॉलेज में ही सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्पर्क में आपका साहित्यिक जीवन प्रारम्भ हुआ। आपका विवाह अल्प आयु में ही बरेली के निकट स्थित नवाबगंज कस्बे के डॉ. स्वरूपनारायण वर्मा के साथ हुआ। आपकी वैवाहिक जीवन के प्रति रुचि नहीं थी। आप प्रयाग महिला विद्यापीठ की सन् 1965 ई. तक प्राचार्या रहीं। 19 सितम्बर, सन् 1987 को आपका निधन हो गया। साहित्यिक परिचय-महादेवी वर्मा जी छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री थीं। महादेवी के काव्य में अज्ञात सत्ता के प्रति समर्पण का भाव मिलता है। महादेवी करुणा, पीड़ा तथा वेदना की गायिका हैं। आपको आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। काव्य के समान ही गद्य के क्षेत्र में भी आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, समालोचना आदि गद्य विधाओं में रचना की है। आपके गद्य में यथार्थ जीवन के करुण चित्र मिलते हैं। आपकी श्रृंखला की कड़ियाँ, (1942) शीर्षक रचना से हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श का आरम्भ माना जाता है।
साहित्य में अपने अनुपम योगदान के लिए महादेवी को मंगला प्रसाद पारितोषिक (1934 में नीरजा के लिए) तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982 में यामा के लिए) प्राप्त हुए। पद्मभूषण (1956) तथा पद्म विभूषण (1988 मरणोपरान्त) से आपको अलंकृत किया गया। आपने ‘चाँद’ पत्रिका का सफल सम्पादन किया।
महादेवी की भाषा संस्कृत गर्भित शुद्ध खड़ी बोली है। आपने विचारात्मक, विवेचनात्मक, वर्णनात्मक, भावात्मक आदि शैलियों में रचना की है। इनके बीच में व्यंग्य शैली भी मिलती है।
कृतियाँ-गद्य– क्षणदा, श्रृंखला की कड़ियाँ, साहित्य की आस्था (निबन्ध), हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य (समालोचना), अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखायें, पथ के साथी, मेरा परिवार (संस्मरण तथा रेखाचित्र)।
पद्य-नीरजा, रश्मि, नीहार, दीपशिखा, यामा आदि।
‘पाठ-सार
प्रश्न 2.
‘गौरा’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर-
पाठ-परिचय-‘गौरा’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। यह उनकी ‘मेरा परिवार’ नामक पुस्तक में संगृहीत है। इसमें ‘गौरा’ गाय का सजीव वर्णन किया गया है।
गाय पालने का सुझाव-महादेवी की छोटी बहिन श्यामा ने उनको गाय पालने का सुझाव दियः। उसने कहा तुम इतने पशु-पक्षी पाला करती हो, गाय पाल लेती तो कुछ उपयोग होता। उसकी बातों से प्रभावित होकर महादेवी ने उसका सुझाव मान लिया। गौरा का आना-गौरा महादेवी की बहिन के घर पली हुई गाय की बछिया थी। वह लगभग जवान हो चुकी थी। गौरा देखने में अत्यन्त आकर्षक, पुष्ट देह की बछिया थी मानो इटैलियन मार्बल तराशकर उस पर थोप दी गई हो। उसका रंग सफेद और विशेष चमकीला था। ऐसा लगता था कि उसके रोमों पर अभ्रक का चूर्ण मल दिया गया हो। गौरा को देखते ही महादेवी ने उसको पालने का निश्चय कर लिया।
गौरा का स्वागत-महादेवी के परिचितों तथा परिचारकों ने गौरा के माथे पर रोली-केशर का टीका लगाया, लाल सफेद गुलाबों की माला पहनाई, चौमुखा दीया जलाकर आरती उतारी और दही-पेड़ा खिलाया। उसका नाम गौरांगिनी या गौरा रखा गया।
गौरा की सुन्दरता तथा स्वभाव-गौरा वास्तव में सुन्दर थी। उसका चौड़ा उजला माथा, बिल्लौरी आँखें, लम्बा मुँह देखने वाले को मुग्ध कर देता था। उसके नेत्रों में आत्मीयता से भरा विश्वास था। वह मन्थर गति से चलती थी। थोड़े समय में ही वह अन्य पशु-पक्षियों के साथ घुल-मिल गई थी। वह सबको पैरों की आहट से पहचानती थी। चाय, नाश्ता तथा भोजन के समय की उसको पहचान थी तथा कुछ पाने की आश में रँभाने लगती थी। पास जाने पर वह अपनी गर्दन आगे बढ़ा देती और सहलाने पर आँखें मूंदकर अपना मुख लेखिका के कंधे पर रख देती थी। वह तरह-तरह की ध्वनियों में अपनी आवश्यकता, उल्लास, दु:ख, आकुलता आदि प्रकट करती थी।
बछड़े का जन्म-एक साल बाद गौरा ने एक लाल रंग के सुन्दर बछड़े को जन्म दिया। उसका नाम लालमणि रखा गया। सब उसे लालू कहकर पुकारते थे। गौरा दिन भर में बारह सेर दूध देती थी। बछड़े के लिए छोड़ने पर भी पर्याप्त दूध . बचता था। यह दूध आसपास के बच्चों तथा पालतू कुत्ते-बिल्लियों को मिलता था। वे गौरा के आस-पास उछलते-कूदते थे तथा गौरा भी रँभा-रँभाकर उनको बुलाती थी।
दुष्ट ग्वाला-गौरा का दूध दोहने की समस्या थी। शहरी सेवक दूध दुहना जानते नहीं थे तथा गाँव से आने वालों को इसका अभ्यास छूट गया था। महादेवी के यहाँ पहले जो ग्वाला दूध देने आता था, उसको उसी के कहने पर इस काम के लिए नियुक्त कर लिया गया। दो-तीन महीने बाद गाय ने दाना-चारा खाना छोड़ दिया। वह निरन्तर दुर्बल होने लगी। पशु-चिकित्सकों ने जाँच करके बताया कि उसको सुई खिला दी गई है। रक्त-संचार के साथ सुई जब हृदय को पार हो जायेगी तो गौरा की मृत्यु निश्चित है। इस सच्चाई के प्रकट होते ही ग्वाला कहीं गायब हो गया। जिन घरों में ज्यादा दूध लिया जाता था, वहाँ गाय पाले जाने पर दूध देने वाले ग्वाले गाय को गुड़ में लपेटकर सुई खिलाकर उसकी हत्या कर देते थे।
मृत्यु से संघर्ष-गौरा मृत्यु से संघर्ष कर रही थी। डॉक्टरों के कहने पर उसे सेबों का रस नली से पिलाया जाता था। उसे मोटी सीरिंज से बार-बार इंजेक्शन दिए जाते थे। गौरा शान्ति के साथ बाहरी-भीतरी चुभन को सहती थी। कभी-कभी उसकी आँखों के कोनों में आँसू छलक आते थे। महादेवी को अपने पास पाकर उसकी आँखों में प्रसन्नता प्रकट हो जाती थी। वह उनकी गर्दन चाटने लगती थी। बछड़े लालमणि को माँ की बीमारी का ज्ञान नहीं था। वह उसके चारों ओर उछलताकूदता रहता था।
मृत्यु की प्रतीक्षा-महादेवी जब गौरा की मृत्यु के बारे में सोचती थीं तो उनकी आँखों में आँसू आ जाते थे। कानपुर, लखनऊ आदि नगरों से विशेषज्ञ पशु चिकित्सकों को बुलाया गया परन्तु उनके उपचार से भी कोई लाभ नहीं हुआ। महादेवी के अनुसार निरुपाय मृत्यु की प्रतीक्षा से होने वाली पीड़ा को वही जानता है जिसको किसी असाध्य और मरणासन्न रोगी के पास बैठना पड़ा हो।
दुःखद मृत्यु-महादेवी जी ने गौरा के अन्तिम समय उसके पास ही रहने का निश्चय किया। एक दिन सबेरे चार बजे वह गौरा को देखने गईं। गौरा ने अपना मुख सदा की तरह उनके कंधे पर रख दिया। वह एकदम भारी होकर नीचे सरककर धरती पर आ गया। गौरा की मृत्यु हो चुकी थी। गौरा को गंगा तट पर ले जाकर जल में समर्पित कर दिया गया। लालमणि इसे भी खेल समझकर उछलता-कूदता रहा।
पाठ के कठिन शब्द और उनके अर्थ
(पृष्ठ सं. 89)
वयःसन्धि = जवानी एवं लड़कपन के मिलने की सन्धि। गोवत्सा = बछिया, गाय। विशिष्ट = खास। लौकिक बुद्धि = दुनियादारी का ज्ञान। कर्मनिष्ठा = काम के प्रति लगन। संक्रामक रोग = छूत का रोग। उपयोगितावाद = उपयोगी होने का विचार। तत्काल = तुरन्त। कार्यान्वयन = कार्यरूप में बदलना। खाद्य = खाने की चीजें। समाधान = हल। कुक्कुट = मुर्गा। पुष्ट = सुडौल, स्वस्थ और मजबूत। चामर = चँवर। साँचे में ढला हुआ = सुनिश्चित आकार-प्रकार वाला। इटैलियन मार्बल = इटली को सफेद संगमरमर पत्थर। तराशना = छेनी-हथौड़े की सहायता से पत्थर को छाँटना। ओप देना = शोभा बढ़ाना, पालिस करना।
(पृष्ठ सं. 90)
रोम = छोटे बाल। अभ्रक = एक रासायनिक पदार्थ। आलोक = प्रकाश। दुविधा = द्वन्द्व, अनिश्चय की भावना। परिचारक = सेवक। चौमुखा दीया = जिसमें रखी बत्तियाँ चारों तरफ जलती हैं। प्रतिफलित = प्रतिबिम्बित। प्रवाहित करना = बहाना। प्रियदर्शिनी = देखने में प्रिय लगने वाली, सुन्दर। जलकुण्ड = तालाब, सरोवर। चकित विस्मय = प्रबल आश्चर्य। आत्मीय = अपनापन से युक्त। यातना = सताने वाला कष्ट। आतंक = भय। मन्थर = धीमी, मन्द। समीर = वायु। वृन्त = डंठल। लघुता = छोटापन। अनुभूति = अनुभव होना। आहट = आवाज। बोध = ज्ञान। ध्वनि = आवाज।
(पृष्ठ सं. 9)
साहचर्यजनित = साथ रहने से उत्पन्न हुआ। लगाव = प्रेम। आश्वस्त = विश्वासपूर्ण। वत्स = बछड़ा। गेरू = लाल रंग का एक पदार्थ। पुतला = आकृति। वलय = घेरा। अलंकृत करना = सजाना। संबोधन = पुकार, नाम। दोहन = दुहना। आयोजन = उत्सव। आतिथ्य = मेहमान। शिष्टता = सभ्यता। पात्र = बर्तन। समाधान = हल। नागरिक = शहरी। अनभ्यास = अभ्यास छूट जाना, आदत न रहना। आग्रह = अनुरोध। उत्तरोत्तर = निरन्तर। शिथिल = ढीली-ढाली। निदान = उपाय। निरीक्षण = देखना। परीक्षण = जाँच करना। रक्त संचार = खून का प्रवाह।
(पृष्ठ सं. 92)
तात्पर्य = आशय। डली = डेला। उद्घाटित = प्रगट। कल्पना = विचार। अन्तर्धान होना = गायब हो जाना। सिहर उठना = रोमांचित होना। सूजा = बड़ी सुई। सिरिंज = इंजेक्शन लगाने में प्रयुक्त सुई। शल्य क्रिया = आपरेशन। व्याधि = बीमारी। आसन्न = निकट। रुचता नहीं था = अच्छा नहीं लगता था। परिक्रमा देना = चारों तरफ घूमना। समय-असमय = पूरी आयु होने अथवा उससे पूर्व ही मृत्यु होना। विदा देना = अपने से अलग भेजना, यहाँ मृत्यु होना। मर्म व्यथा = भयानक पीड़ा।
(पृष्ठ सं. 93)
पयस्विनी = दूध देने वाली। निर्जीव = मृत। निश्चेष्ट = अचेत। विशेषज्ञ = विशेष ज्ञान रखने वाले। उपचार = इलाज। चिकित्सक = डाक्टर। निरुपाय = जिससे बचने का कोई तरीका पता न हो। मर्म = रहस्य, भेद। असाध्य = ऐसा रोग जिसका उपचार पता न हो। मरणासन्न = जिसकी मृत्यु निकट हो। निष्प्रभ = धुंधली, चमकरहित। कंठ = गला। अनुमान अंदाज। ब्रह्ममुहूर्त = सूर्योदय से पूर्व का समय। बेधकर = छेदकर। पालित = पालतू। पार्थिव अवशेष = शव। दीर्घ = लम्बी। निःश्वास = साँस। प्रतिध्वनि = पूँज।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या। 1. पर उस दिन मैंने ध्यानपूर्वक गौरा को देखा। पुष्ट लचीले पैर, भरे पुडे, चिकनी भरी हुई पीठ, लम्बी सुडौल गर्दन, निकलते हुए छोटे-छोटे सींग, भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की दो अधखुली पंखुड़ियों—जैसे कान, लम्बी और अन्तिम छोर पर काले सघन चामर का स्मरण दिलाने वाली पूँछ, सब कुछ साँचे में ढला हुआ-सा था। गाय को मानो इटैलियन मार्बल में तराशकर उस पर ओप दी गई हो।
(पृष्ठ संख्या 89)
सन्दर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित महादेवी वर्मा कृत संस्मरणात्मक रेखाचित्र ‘गौरा से लिया गया है।
महादेवी की बहन श्यामा ने उनको गाय पालने की सलाह दी। उसकी व्यावहारिकता से प्रभावित होकर लेखिका ने अपनी बहन के सुझाव को स्वीकार कर लिया। गौरा श्यामा के घर से आई थी। वह उसके यहाँ पली हुई गाय की बछिया थी। वैसे खाद्य समस्या के समाधान के लिए पशु-पक्षी पालना महादेवी को रुचिकर नहीं लगता था।
व्याख्या-श्यामा के सुझाव पर गाय पालने के निश्चय करने पर महादेवी ने गौरा (गाय) को ध्यानपूर्वक देखा। गौरा एक स्वस्थ सुन्दर जवान होती हुई बछिया थी। उसके पैर मजबूत और लचीले थे। पुट्टे सुडौल थे। उसकी पीठ चिकनी तथा सुदृढ़ थी। उसकी गर्दन लम्बी और पुष्ट थी। उसके सिर पर दो छोटे-छोटे सींग निकल रहे थे। उसके कमल की पंखुड़ियों से जैसे दो कान थे जो भीतर से कुछ-कुछ लाल थे। उसकी लम्बी पूँछ के अन्त में लगे हुए बालों को देखकर चँवर का आभास होता था। इस प्रकार उसका शरीर ऐसा था जैसे उसको किसी साँचे में ढालकर तैयार किया गया हो। इसके अंग-प्रत्यंग सुनिश्चित आकार वाले थे। गौरा इटली के सफेद संगमरमर पत्थर से तराश कर तैयार की गई प्रतिमा जैसी लगती थी।
विशेष-
(i) ‘गौरा’ महादेवी द्वारा चरित्र संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। यह उनके संग्रह ‘मेरा परिवार से लिया गया है।
(ii) महादेवी ने अपनी पालतू गाय ‘गौरा’ का सजीव वर्णन किया है।
(iii) भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा शब्द चित्रात्मक है।
2. गौरा को देखते ही मेरी पालने के सम्बन्ध में दुविधा निश्चय में बदल गई। गाय जब मेरे बँगले पर पहुँची, तब मेरे परिचितों और परिचारकों में श्रद्धा का ज्वार-सा उमड़ आया। उसे लाल-सफेद गुलाबों की माला पहनाई, केशर-रोली का बड़ा-सा टीका लगाया गया, घी का चौमुखा दिया जलाकर आरती उतारी गई और उसे दही-पेड़ा खिलाया गया। उसका नामकरण हुआ गौरागिनी या गौरा। पता नहीं, इस पूजा-अर्चना का उस पर क्या प्रभाव पड़ा, परन्तु वह बहुत प्रसन्न जान पड़ी। उसकी बड़ी, चमकीली और काली आँखों से जब आरती के दिये की लौ प्रतिफलित होकर झिलमिलाने लगी, तब कई दियों का भ्रम होने लगा। जान पड़ा, जैसे रात में काली दिखने वाली लहर पर किसी ने कई दिये प्रवाहित कर दिये हों।
(पृष्ठ सं. 90)
संदर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित महादेवी वर्मा कृत संस्मरणात्मक रेखाचित्र ‘गौरा’ से लिया गया है। महादेवी की बहन श्यामा ने उनको गाय पालने का सुझाव दिया। सुझाव व्यावहारिक था। श्यामा ने अपने घर में पली हुई गाय की जवान बछिया को उनके पास भेजा। महादेवी ने ध्यानपूर्वक उसको देखा। अब तक महादेवी गाय
पालने के सम्बन्ध में अनिश्चित थीं परन्तु भेजी गई गाय को देखते ही उन्होंने गाय पालने का विचार निश्चित कर लिया।
व्याख्या-महादेवी कहती हैं कि गाय उनके बंगले पर पहुँची। उसको देखकर उनके परिचित लोग तथा सेवकगण उसके प्रति श्रद्धा की भावना से भर उठे। श्रद्धावश उन्होंने गाय का स्वागत-सत्कार किया। उसको लाल-सफेद गुलाब के फूलों की माला पहनाई गई। उसके माथे पर केशर और रोली का बड़ा टीका लगाया गया। एक दीपक में चारों ओर बत्तियाँ जलाकर उसकी आरती उतारी गई। उसको दही और पेड़ा खिलाया गया। उसका नाम गौरांगिनी रखा गया। उसको गौरा कहकर पुकारा गया। गाय पर पूजा-अर्चना का क्या प्रभाव हुआ, यह नहीं पता परन्तु ऐसा लगा कि वह बहुत खुश थी। आरती के दीपक की लौ उसकी बड़ी काली-काली और चमकीली आँखों में पड़कर प्रतिबिम्बित हो रही थीं और यह भ्रम हो रहा था कि अनेक दीपक जल रहे हैं। उस छवि को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रात में अंधेरे के कारण काली दिखाई देने वाली पानी की लहर पर किसी ने अनेक दीपक जलाकर प्रवाहित कर दिये हों।
विशेष-
(i) गाय के महादेवी के बंगले पर पहुँचने पर श्रद्धावश हुए उसके स्वागत का वर्णन है।
(ii) वर्णन काव्यात्मक, सजीव तथा चित्र जैसा बन पड़ा है।
(iii) भाषा संस्कृतनिष्ठ, शुद्ध खड़ी बोली है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है।
3. गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शिनी थी, विशेषतः उसकी काली बिल्लौरी आँखों का तरल सौन्दर्य तो दृष्टि को गाँधकर स्थिर कर देता था। चौड़े, उज्ज्वल माथे और लम्बे तथा साँचे में ढले हुए से मुख पर आँखें बर्फ में नीले जल के कुण्डों के समान लगती थीं। उनमें एक अनोखा विश्वास का भाव रहता था। गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा कित विस्मय न होकर एक आत्मीय विश्वास ही रहता था। उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक गप्त होती है, परन्तु उसकी आँखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक। महात्मा गाँधी ने गाय करुणा की कविता है, क्यों कहा, यह उसकी आँखें देखकर ही समझ में आ सकता है।
(पृष्ठ सं. 90)
संदर्भ व प्रसंग -प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित महादेवी वर्मा कृत संस्मरणात्मक रेखाचित्र ‘‘गौरा” में लिया गया है। महादेवी की बहन श्यामा ने उनको गाय पालने का सुझाव दिया और एक बछिया उनके बँगले पर भेजी। महादेवी ने देखा कि गाय बहुत सुन्दर थी। उनके बँगले पर उसका स्वागत-सत्कार हुआ और उसका नाम गौरा अथवा : रागिनी रखा गया।
व्याख्या-महादेवी कहती हैं कि गौरा देखने में सचमुच बहुत ही सुन्दर थी। विशेष रूप से उसकी काली-काली आँखें अधिक सुन्दर लगती थीं। देखने वाला उनकी सुन्दरता में खो जाता था। उसका माथा चौड़ा और उजला था। उसको चेहरा, लम्बा तथा सुडौल था। उसके श्वेत मुख पर आँखें ऐसी लगती थीं मानो बर्फ से घिरे हुए नीले पानी के कुंड हों। उसकी पाँखों में अनोखी विश्वास की भावना भरी हुई थी। हिरन की आँखों में एक प्रकार का आश्चर्य और विस्मय का भाव रहता है। उसके विपरीत गाय की आँखों में अपनेपन से युक्त विश्वास की भावना ही रहती है। उसको अपने आसपास के लोगों पर अपना होने तथा उन पर विश्वास होने का भाव रहता है।
ऐसे पशु गाय को मनुष्य सताता और पीड़ित करता है। वह निर्दयतापूर्वक उसका वध भी कर देता है। परन्तु गाय की आँखों में विश्वास का भाव बना ही रहता है, उसका स्थान आश्चर्य का भाव नहीं लेता। न भय की भावना ही उनमें पैदा होती है। महात्मा गाँधी ने गाय को करुणा की कविता कहा है। गाय की आँखों में निहित भाव को देखकर ही माना जा
सकता है। कि गाँधीजी ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
विशेष-
(i) भाषा साहित्यिक, संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) गौरा की मनोहरता का चित्रण हुआ है।
(iv) लेखिका ने बताया है कि गाय में मनुष्यों के प्रति विस्मय तथा भय का भाव न होकर एक प्रकार का विश्वास का भाव ही पाया जाता है।
(v) ‘गौरा’ एक संस्मरणात्मक रेखाचित्र है जो महादेवी की ‘मेरा परिवार’ पुस्तक से संगृहीत है।
4. एक वर्ष के उपरान्त गौरा एक पुष्ट सुन्दर वत्स की माता बनी। वत्स अपने लाल रंग के कारण गेरु को पुतला-जैसा जान पड़ता था। उसके माथे पर पान के आकार का श्वेत तिलक और चारों पैरों में खुरों के ऊपर सफेद वलय ऐसे लगते थे, मानो गेरू की बनी वत्समूर्ति को चाँदी के आभूषणों से अलंकृत कर दिया गया हो। बछड़े का नाम रखा गया लालमणि, परन्तु उसे सब लालू के संबोधन से पुकारने लगे। माता-पुत्र दोनों निकट रहने पर हिमरोशि और जलते अंगारे का स्मरण कराते थे।
(पृष्ठ सं. 91)
सन्दर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित महादेवी वर्मा कृत संस्मरणात्मक रेखाचित्र ‘गौरा’ से लिया गया है। महादेवी ने गाय पाली। सब उसको गौरा कहते थे। वह सबसे बहुत हिल-मिल गई थी। उसने एक बछड़े के जन्म दिया।
व्याख्या-महादेवी कहती हैं कि एक साल बाद गौरा ने एक सुन्दर, स्वस्थ और मजबूत बछड़े को जन्म दिया। उसके रंग लाल था और वह गेरु से बनी हुई मूर्ति के समान लगता था। उसके माथे पर पान के आकार का सफेद रंग का तिल जैसा चिह्न बना हुआ था। उसके पैरों के खुरों के ऊपर सफेद रंग के गोल घेरे बने थे। ऐसा लगता था कि गेरु से बनी हुई बछ की मूर्ति को चाँदी से निर्मित पाजेब पहना दी गई हो। बछड़े का नाम लालमणि रखा गया परन्तु उसको लालू नाम से पुका जाता था। माता और पुत्र अर्थात् सफेद रंग वाली गौरा तथा लाल रंग का बछड़ा जब एक साथ होते थे तो एक बर्फ के विशार समूह तथा दूसरी जलती हुई आग के अंगारे के समान लगता था।
विशेष-
(i) गौरा ने लालू नामक बछड़े को जन्म दिया।
(ii) गौरा बर्फ के समान निर्मल तथा सफेद थी तो लालू गेरु से बनी मूर्ति तथा अंगारे के समान लाल था।
(iii) भाषा साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है, जिसमें काव्य जैसी मनोहरता है।
5. तब गौरा का मृत्यु से संघर्ष आरम्भ हुआ, जिसकी स्मृति-मात्र से आज भी मन सिहर उठता है। डॉक्टरों कहा, गाय को सेब का रस पिलाया जाये, तो सुई पर कैल्शियम जम जाने और उसके बेचने की सम्भावना है। अ नित्य कई-कई सेर सेब का रस निकाला जाता और नली से गौरा को पिलाया जाता। शक्ति के लिए इंजेक्शन इंजेक्शन दिये जाते। पशुओं के इंजेक्शन के लिए सूजे के समान बहुत लम्बी मोटी सिरिंज तथा बड़ी बोतल १ दवा की आवश्यकता होती है। अतः वह इंजेक्शन भी अपने आप में ‘शल्यक्रिया’, जैसा यातनामय हो जाता था। गौरा अत्यन्त शान्ति से बाहर और भीतर, दोनों ओर की चुभन और पीड़ा सहती थी। केवल कभी-कभी उसः। सुन्दर पर उदास आँखों के कोनों में पानी की दो बूंदें झलकने लगती थीं।
(पृष्ठ सं. 9)
संदर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरणात्मक रेखारि ‘गौरा’ से उद्धृत है। महादेवी जी की पालतू गाय गौरा बीमार रहने लगी। एक ग्वाला उसका दूध दुहने आता था। पहले। उनके घर दूध पहुँचाया करता था। गाय पालने पर महादेवी ने उससे दूध लेना बन्द कर दिया था। डॉक्टरों ने बताया कि गं को गुड़ की डली में छिपाकर सुई खिला दी गई। उसके रक्तसंचार के साथ हृदय तक पहुँचने पर गौरा की मृत्यु हो जायेगी। महादेवी को ग्वाले पर संदेह हुआ परन्तु प्रमाण नहीं था। अचानक वह गायब हो गया।
व्याख्या-महादेवी कहती हैं कि गौरा की बीमारी बढ़ती जा रही थी। अब वह मौत से लड़ रही थी। उसकी उस करुणापूर्ण दशा को याद करके लेखिका का मन दु:ख से द्रवित हो उठता था। डॉक्टरों ने सलाह दी कि गौरी को सेब का रस पिलाया जाय। इससे सुई पर कैल्शियम जमने पर वह बच सकती है। अतः हर दिन सेरों (किलोग्राम के समान एक पुरानी माप) सेबों का रस निकाला जाता था और नली की सहायता से गौरा को पिलाया जाता था। गौरा को ताकत के लिए अनेक इंजेक्शन लगाये जाते थे। पशुओं को इंजेक्शन लगाने के लिए प्रयोग में आने वाली सिरिंज किसी लम्बे बड़े सूजे के समान होती है। इससे इंजेक्शन लगाना किसी आपरेशन के समान ही पीड़ादायक होता था। शरीर के अन्दर तथा बाहर की सुइयों की इस चुभन से गौरा को बहुत पीड़ा होती थी परन्तु वह शान्ति से उसको सहती थी। केवल कभी-कभी उसकी सुन्दर और उदासी से भरी हुई आँखों के कोनों से आँसू की दो बूंदें छलछला उठती थीं।
विशेष-
(i) भाषा साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) गौरा की मृत्यु पूर्व हुई पीड़ा का हृदय विदारक वर्णन हुआ है।
(iv) गौरा के मृत्यु से संघर्ष करने का चित्रण अत्यन्त सजीव है।
6. लालमणि बेचारे को तो माँ की व्याधि और आसन्न मृत्यु का बोध नहीं था। उसे दूसरी गाय का दूध पिलाया जाता था, जो उसे रुचता नहीं था। वह तो अपनी माँ का दूध पीना और उससे खेलना चाहता था, अतः अवसर मिलते ही गौरा के पास पहुँचकर या अपना सिर मार-मार, उसे उठाना चाहता था या खेलने के लिए उसके : चारों ओर उछल-कूद कर परिक्रमा ही देता रहता।
(पृष्ठ सं. 92)
संदर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरणात्मक रेखाचित्र ‘गौरा’ से उद्धृत है। गौरा मृत्यु से संघर्ष कर रही थी। उसे अत्यन्त पीड़ा हो रही थी। शक्तिहीन होने के कारण वह उठ नहीं पाती थी परन्तु पास पहुँचने पर उसकी आँखें प्रसन्नता से भर उठती थीं।
व्याख्या-लेखिका कहती हैं कि गौरा बीमार थी। उसको भयंकर पीड़ा भी थी परन्तु उसका बछड़ा इस बात को नहीं जानता था। बेचारे लालमणि को पता ही नहीं था कि उसकी माँ बीमार है और मरने वाली है। गौरा का दूध न मिलने पर उसको दूसरी गाय का दूध पीने को दिया जाता था परन्तु वह उसको अच्छा नहीं लगता था। वह चाहता था कि अपनी माँ का *दूध पिये और उसके साथ खेले-कूदे। इस कारण जब भी उसको मौका मिलता वह गौरा के पास पहुँच जाता और अपना सिर मारकर उसको उठाना चाहता था। वह गौरा के चारों ओर चक्कर लगाकर उछलता-कूदता था तथा उसके साथ खेलना चाहता था।
विशेष-
(i) भाषा संस्कृत, तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) बछड़े लालमणि की स्वाभाविक क्रियाओं का चित्रण हुआ है।
(iv) बछड़े को अपनी माँ गौरा की असाध्य बीमारी को ज्ञान नहीं था।
7. इतनी हृष्ट-पुष्ट, सुन्दर, दूध-सी उज्ज्वल पयस्विनी गाय अपने इतने सुन्दर चंचल वत्स को छोड़कर किसी भी क्षण निर्जीव और निश्चेष्ट हो जायेगी, यह सोचकर ही आँसू आ जाते थे।
लखनऊ, कानपुर आदि नगरों से भी पशु-विशेषज्ञों को बुलाया, स्थानीय पशु-चिकित्सक तो दिन में दो-तीन :: बार आते रहे, परन्तु किसी ने ऐसा उपचार नहीं बताया, जिससे आशा की कोई किरण मिलती है। निरुपाय मृत्यु की प्रतीक्षा का मर्म वही जानता है, जिसे किसी असाध्य और मरणासन्न रोगी के पास बैठना पड़ा हो।
(पृष्ठ सं. 93)
सन्दर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘गौरा’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस संस्मरणात्मक रेखाचित्र की लेखिका महादेवी वर्मा हैं। गौरा की बीमारी असाध्य थी। उसका जीवित रहना सम्भव नहीं था। वह गहरी पीड़ा झेल रही थी। महादेवी ने उसकी बीमारी के उपचार के लिए अनेक सुयोग्य और अनुभवी चिकित्सकों को बुलाया परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। व्याख्या-महादेवी कहती हैं कि गौरा हृष्ट-पुष्ट और सुन्दर थी। वह दूध के समान सफेद थी। वह खूब दूध देती थी।
उसका एक सुन्दर और चंचल बछड़ा था। भयंकर असाध्य रोग के कारण उसकी मृत्यु निश्चित थी। वह किसी भी क्षण मर सकती थी। इन बातों का विचार मन में आते ही लेखिका की आँखों में आँसू डबडबाने लगते थे। महादेवी कहती हैं कि गौरा के इलाज के लिए अनेक चिकित्सक बुलाये गये। स्थानीय चिकित्सक तो दिन में दो-तीन बार आते ही थे। लखनऊ, कानपुर आदि बड़े शहरों से भी पशुओं के इलाज के विशेष योग्यताधारी डॉक्टरों को बुलाया गया। परन्तु किसी ने भी ऐसा इलाज नहीं किया कि गौरा के बचने की आशा की जाती। गौरा की मृत्यु सुनिश्चित थी। उसकी प्रतीक्षा हो रही थी। जो मृत्यु अवश्यम्भावी हो तथा जिससे बचने का कोई उपाय ही न हो उसके आने की प्रतीक्षा करना अत्यन्त कष्टपूर्ण होता है। इसको वही समझ सकता है जिसको किसी ऐसे रोगी के पास बैठने का अवसर मिला हो जिसकी बीमारी लाइलाज हो तथा जिसकी मृत्यु सुनिश्चित हो।
विशेष-
(i) गौरा के असाध्य रोग, भयंकर पीड़ा तथा आसन्न मृत्यु का सजीव चित्रण हुआ है।
(ii) किसी लाइलाज बीमार के पास बैठकर केवल मृत्यु की प्रतीक्षा करना अत्यन्त कष्टपूर्ण तथा विचलित करने वाला होता है।
(iii) भाषा साहित्यिक, संस्कृतनिष्ठ तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है।
8. अपने पालित जीव-जन्तु के पार्थिव अवशेष मैं गंगा को समर्पित करती रही हैं। गौरागिनी को ले जाते समय मानो करुणा का समुद्र उमड़ आया, परन्तु लालमणि इसे भी खेल समझ उछलता-कूदता रहा। यदि दीर्घ-नि:श्वास का शब्दों में अनवाद हो सके, तो उसकी प्रतिध्वनि कहेगी, ‘आह? मेरा गोपालक देश!’।
(पृष्ठ सं. 93)
संदर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘गौरा’ शीर्षक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से उद्धृत है। इसकी लेखिका महादेवी वर्मा हैं।
गौरा के अन्तिम अनुच्छेद में लेखिका ने बताया है कि वह अनेक जीव-जन्तुओं को पाल ही रही हैं। उनकी मृत्यु भी उन्होंने देखी है। उन्होंने उनके शवों को गंगा के पवित्र जल में प्रवाहित करवाया है।
व्याख्या-महादेवी कहती हैं कि उन्होंने अपने जीवन में अनेक जीव-जन्तु पाले हैं। उनकी मृत्यु भी उनके सामने हुई है। अपने नियम और विश्वास के अनुरूप उन्होंने सभी के शवों को गंगा नदी के पवित्र जल में प्रवाहित कराया है। गौरागिनी को भी गंगा में प्रवाहित करने के लिए ले जाया गया। उस समय महादेवी के परिचितों, सेवकों आदि की भीड़ वहाँ उपस्थित थी। उनके हृदय में करुणा का समुद्र उमड़ रहा था। किन्तु गौरा के बछड़े लालू को अपनी माता की मृत्यु का ज्ञान नहीं था। माँ की विदाई भी उसे खेल लग रही थी। वह पूर्ववत् उछल-कूद रहा था और खेल रहा था। भारत गायों को पालने वालों का देश है। महादेवी व्यंग्यपूर्ण शब्दों में कहती हैं कि ऐसे देश में किसी गाय की इस प्रकार की निर्मम हत्या होना लोगों की प्रदर्शनपूर्ण प्रवृत्ति का भयानक रूप है।
विशेष-
(i) भाषा साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
(ii) शैली वर्णनात्मक और व्यंग्यात्मक है।
(iii) गौरा की अन्तिम विदाई का वर्णन है।
(iv) गोपालकों की उपेक्षापूर्ण निर्मम प्रवृत्ति पर अन्तिम वाक्य में व्यंग्य किया गया है।