RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 7 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 7 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 7 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. ‘मृदुल वसन्त’ जीवन के किस पड़ाव का प्रतीक है
(क) बचपन
(ख) यौवन
(ग) बुढ़ापा,
(घ) उपर्युक्त सभी।
2. शतदल का शब्दार्थ है
(क) पतझड़
(ख) कुमुदिनी
(ग) कमल
(घ) भंवरा
उत्तर:
1. (ख), 2. (ग)।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में किस ऋतु के आगमन की बात कही गई है?
उत्तर:
कविता में वसंत ऋतु के आगमन की बात कही गई है।
प्रश्न 4.
‘हरे-हरे ये पात’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
प्रश्न 5.
कवि का कविता में किस प्रथम चरण की ओर संकेत है?
उत्तर:
कवि का कविता में जीवन के प्रथम चरण ‘किशोरावस्था युवावस्था की ओर संकेत है।
प्रश्न 6.
‘फेसँगा निद्रित कलियों पर’ पंक्ति में ‘निद्रित कलियों’ का आशय क्या है?
उत्तर:
कवि ने निद्रित कलियाँ उन आलस्य में डूबे व्यक्तियों को कहा है जिनमें सुगंधरूपी गुण छिपे हैं। कवि उन्हें जागरूक और सक्रिय बनायेगा।
प्रश्न 7.
‘मातृ-वन्दना’ में कवि ने ‘माँ’ संबोधन किसके लिए किया है?
उत्तर:
कवि ने कविता में ‘माँ’ संबोधन मातृभूमि भारत के लिए किया है।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 8.
कविता ‘अभी न होगा मेरा अंत’ के अनुसार वसंत आगमन पर प्रकृति में कौन-से परिवर्तन परिलक्षित होते हैं?
उत्तर:
वसंत ऋतु आने पर चारों ओर सुन्दर प्राकृतिक दृश्य दिखाई देने लगते हैं। वृक्षों में हरे-हरे पत्ते लग जाते हैं। डालियों पर कोमल कलियाँ दिखाई देने लगती हैं। प्रात:काल के समय सूर्य की किरणों के कोमल स्पर्श से कलियाँ खिलकर फूल बनने लगती हैं। सूर्य-उदय के मनोहारी दृश्य प्रकट होने लगते हैं।
प्रश्न 9.
कविता ‘मातृ-वंदना’ के अनुसार कवि माँ के चरणों में क्या-क्या समर्पित करना चाहता है?
उत्तर:
कवि मातृभूमि की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित करना चाहता है। वह अपने परिश्रम से अर्जित सभी वस्तुएँ। माँ के चरणों में अर्पित करना चाहता है। सारी विघ्न-बाधाओं के झेलते हुए और कष्ट सहन करते हुए भी वह सारे जीवन में श्रम के स्वेद से सिंचित पवित्र कमाई माँ पर न्योछावर करना चाहता है। अपना सम्पूर्ण श्रेय (कर्म और यश) वह मातृचरणों की बलिवेदी पर समर्पित कर देना चाहता है।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 10.
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता कवि निराला के जीवन-दर्शन पर प्रकाश डालती है। कवि इस रचना द्वारा संदेश देना चाहता है कि मनुष्य को आत्मविश्वास और उत्साह के साथ जीवन बिताना चाहिए। युवावस्था जीवन का सर्वोत्तम सुअवसर होता है। मृत्यु की चिन्ता न करते हुए व्यक्ति को युवावस्था में जीवन का आनन्द लेना चाहिए। अपने आनन्द और उत्साह से समाज के सोए हुए लोगों को लाभान्वित करना चाहिए। कवि अंत की उपेक्षा करते हुए जीवन के आरम्भ को महत्व देना चाहता है। उसे विश्वास है कि उसकी जीवन-लीला शीघ्र समाप्त नहीं होने वाली। उसे सक्रियता से सार्थक जीवन बिताना चाहिए और अन्य लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।
प्रश्न 11.
‘मातृ-वन्दना’ कविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
निराला जी की कविता ‘मातृ-वन्दना’ मातृभूमि भारत के प्रति असीम भक्ति भाव पर केन्द्रित है। ‘निराला’ अपने सारे स्वार्थभाव तथा जीवनभर के श्रम से प्राप्त सारे फल माँ भारती के चरणों में अर्पित करने का संकल्प व्यक्त कर रहे हैं। चाहे उनके जीवन में कितनी भी बाधाएँ और कष्ट क्यों न आएँ, वह सभी को सहन करते हुए पराधीन जन्मभूमि को स्वतन्त्र कराने के लिए कृत संकल्प है। कवि ने हर देशवासी के सामने देश के प्रति उसके पवित्रतम् कर्तव्य को प्रस्तुत किया है। मातृभूमि को स्वतन्त्र और सुखी बनाने के लिए सर्वस्व समर्पण कर देना, कवि के अनुसार सबसे महान कर्तव्य है।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) हरे-हरे ये पात……………..अमृत सहर्ष सच पूँगा मैं ।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की रचना ‘अभी न होगा मेरा अन्त’ से लिया गया है। यहाँ कवि पूर्ण रूप से आश्वस्त है कि अभी उसकी काव्य-रचना का उत्साह भरा प्रथम चरण प्रारम्भ हुआ है। अभी अंत बहुत दूर है।
(ख) मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण……………अभी न होगा मेरा अंत।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की कविता ‘अभी न होगा मेरा अन्त’ से लिया गया है। कवि हर शिथिल और आलस में पड़े जीवन में जागरूकता और उत्साह भरने का संकल्प कर रहा है।
(ग) बाधाएँ आएँ तन पर…………..सकल श्रेय श्रम संचित फल।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की कविता ‘मातृ-वन्दना’ से लिया गया है। इस अंश में कवि मातृभूमि से अनुरोध कर रहा है कि वह उसके मन को इतना दृढ़ बना दे कि वह अपने स्वार्थ, परिश्रम से अर्जित फल, और अपने जीवन को भी उस पर न्योछावर कर दे।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रणोत्तर
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. कवि ‘निराला’ के जीवन में अभी-अभी आया है
(क) महान परिवर्तन
(ख) वसंत ऋतु
(ग), वर्षा ऋतु
(घ) कष्टमय समय।
2. कवि ‘निराला’ अपना कोमल ‘कर’ फेरेगा
(क) खिले हुए फूलों पर
(ख) हरे-भरे वृक्षों पर
(ग) निद्रित कलियों पर
(घ) छोटे बच्चों पर।
3. कवि ‘निराला’ ने अपने मन को बताया है
(क) चंचल
(ख) व्याकुल
(ग) प्रसन्न
(घ) बालक जैसा।
4. कवि ‘निराला’ स्वार्थों को चाहते है
(क) त्याग देना
(ख) उनका लाभ उठाना
(ग) माँ के चरणों में समर्पित करना
(घ) भुला देना।
5. ‘निराला’ अपने हृदय में जगाना चाहते हैं
(क) मातृभूमि की आँसूओं से भीगी हुई मूर्ति की स्मृति
(ख) देशभक्ति की प्रबल भावना
(ग) महान देशभक्तों की समृतियाँ
(घ) देशवासियों से प्रति प्रेमभाव।
6. मातृभूमि को मुक्त करने के लिए ‘निराला’ देना चाहते हैं
(क) अपना सारा धने
(ख) अपने सभी सत्कर्मों के फल
(ग) अपना क्लेद युक्त शरीर
(घ) अपना सर्वस्व
उत्तर:
1. (ख), 2. (ग), 3. (घ), 4. (ग), 5. (क), 6. (ग)।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अभी न होगा मेरा अंत’ ऐसा कवि ने किस आधार पर कहा है?
उत्तर:
कवि ने ऐसा इस आधार पर कहा है कि उसके जीवन में अभी-अभी ही वसंत जैसी सुन्दर युवावस्था आई है।
प्रश्न 2.
कवि ‘निराला’ ने वसंत के आगमन पर किस परिवर्तन की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
कवि ने वृक्षों पर हरे-हरे पत्तों से भरी डालियों और डालियों पर लगी कलियों की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 3.
‘निद्रित कलियों’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
निद्रित कलियों से कवि का आशय है-आलस्य में डूबे हुए युवा।
प्रश्न 4.
कवि एक मनमोहक प्रातः काल क्यों जगाना चाहता है?
उत्तर:
प्रातः काल होने पर कलियाँ खिल जाती हैं। कवि चाहता है कि युवा लोग जागें और अपने गुणों से जगत को सुन्दर बनाएँ।
प्रश्न 5.
कवि हर पुष्प से क्या खींच लेना चाहता है?
उत्तर:
कवि हर पुष्प से शिथिलता और आलस्य खींच लेना चाहता है।
प्रश्न 6.
फूलों को कवि निराला किससे सींचने की बात कहते हैं?
उत्तर:
कवि निराला अपने नवजीवन के उत्साह और आनन्द से फूलों (युवाओं) को सींच देने की बात कहते हैं।
प्रश्न 7.
निराला युवाओं को किसका द्वार दिखाना चाहते हैं?
उत्तर:
निराला युवाओं को अनंत ईश्वर तक पहुँचाने वाला द्वार दिखाना चाहते हैं।
प्रश्न 8.
जीवन का प्रथम चरण’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
‘जीवन का प्रथम चरण’ से कवि का आशय है-युवावस्था में प्रवेश करना।
प्रश्न 9.
जीवन का प्रथम चरण होने से कवि को किस बात पर पूरा विश्वास है?
उत्तर:
कवि को विश्वास है कि अभी उसकी पूरी युवावस्था बाकी है और उसे मृत्यु की कोई आशंका नहीं है।
प्रश्न 10.
‘स्वर्ण-किरण कल्लोल’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि का आशय है कि अभी उसका मन बालसुलभ सुनहली कल्पनाओं में डूबा हुआ है। अविकसित है।
प्रश्न 11.
कवि के अनुसार सारी दिशाओं में विकास का संदेश कैसे पहुँचेगा?
उत्तर:
कवि को विश्वास है कि उसकी कविताओं में प्रौढ़ता आने के साथ-साथ जन-मन को विकास का संदेश जाएगा ।
प्रश्न 12.
नर जीवन के स्वार्थ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘नर जीवन के स्वार्थ’ सुख सम्पत्ति, यश आदि पाने की इच्छाएँ हैं।
प्रश्न 13.
‘श्रम सिंचित फल’ से कवि निराला का क्या आशय है?
उत्तर:
‘श्रम सिंचित फल’ से कवि का आशय है-उसके द्वारा परिश्रम से अर्जित की गई वस्तुएँ।
प्रश्न 14.
जीवन के रथ पर चढ़कर’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इसका अभिप्राय है जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए आगे बढ़ना।
प्रश्न 15.
‘मातृ-वंदना’ कविता में मृत्यु पथ’ शब्द का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘मृत्युपथ’ का तात्पर्य मानव जीवन से है जो प्रति क्षण मृत्यु की ओर बढ़ता रहता है।
प्रश्न 16.
खरतर शर’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महाकाल के ‘खरतर शर’ का भाव जीवन में आने वाले कष्टदायक अनुभव हैं।
प्रश्न 17.
मातृभूमि के ‘दृग जल’ आँसुओं से कवि किस बात के लिए बल पाना चाहता है?
उत्तर:
कवि भारत माँ के आँसुओं से प्रेरित होकर अपने जन्म और परिश्रम से अर्जित फल उसके चरणों में समर्पित करना चाहता है।
प्रश्न 18.
कवि मातृभूमि द्वारा स्वयं को किस प्रकार देखा जाना चाहता है?
उत्तर:
कवि चाहता है कि भारतमाता उसे आँसू भरे नेत्रों से अपलक देखती रहें।
प्रश्न 19.
कवि निराला भारत माता को किस प्रकार मुक्त करने का दृढ़ निश्चय प्रकट कर रहे हैं?
उत्तर:
‘निराला’ भारतमाता के चरणों पर अपना शरीर, सत्कर्म और परिश्रम से अर्जित फल समर्पित करके उसे मुक्त करने का प्रण कर रहे हैं।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि निराला को अभी न होगा मेरा अंत’ यह विश्वास किस कारण है?
उत्तर:
कवि निराला को पूरा विश्वास है कि उनके भौतिक और कवि जीवन का अंत शीघ्र नहीं होने वाला है। इसका कारण कवि बताता है कि उसके जीवन में वसंत ऋतु जैसा उल्लास, उत्साह और आनंदमय समय अर्थात् युवावस्था अभी-अभी ही आई है। अत: अभी उसका बहुत जीवन बाकी है।
प्रश्न 2.
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में निराला अपने जीवन में और जन-जीवन में क्या-क्या परिवर्तन लाना चाहते हैं?
उत्तर:
कवि के जीवन में वसंत ऋतु जैसी युवावस्था अभी-अभी आई है। वसंत के आगमन पर जैसे प्रकृति में हरियाली छा जाती है और डालों पर कलियाँ दिखाई देने लगती हैं, उसी प्रकार कवि के जीवन में प्रसन्नता की हरियाली छा गई है। उसकी अनेक मनोकामनाएँ कलियों की तरह खिलने की प्रतीक्षा कर रही हैं। कवि अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने के साथ जन-जीवन में भी सवेरा लाना चाहता है ताकि औरों की कामनाएँ रूपी कलियाँ भी खिलकंर फूल बन जाएँ। कवि ने निश्चय किया है कि वह जन-जन को सक्रियता और जागरण का संदेश देगा। अपने जीवन में जागे उत्साह और आनन्द से, औरों के जीवन को भी आनंदमय बनाएगा।
प्रश्न 3.
‘ है जीवन ही जीक्न अभी’ कवि निराला ने इस विश्वास का आधार क्या बताया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में निराला जी ने अपने दृढ़ आत्मविश्वास और जीवंत उत्साह का परिचय कराया है। वह मृत्यु के भय को अपने मन में नहीं आने देना चाहते। इसी मनोभाव को कविता के अन्तिम चरण में उन्होंने तार्किक रूप से पुष्ट किया है। वह कहते हैं कि अभी तो उनके जीवन को प्रथम चरण ही आरम्भ हुआ है। अभी मृत्यु का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अभी तो उनके सामने जीवन ही जीवन पड़ा हुआ है। पूरी युवावस्था आगे है। अतः अभी जीवन के अंत के बारे में सोचने की कोई आवश्यकता नहीं।
प्रश्न 4.
नर जीवन के स्वार्थ सकल, बलि हों तेरे चरणों पर इस काव्य पंक्ति में निहित कवि निराला के मनोभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा कवि ने मातृभूमि के प्रति अपने भक्तिभाव और सर्वस्व समर्पण का भाव व्यक्त किया है। मनुष्य अपने जीवन को सब प्रकार से सुखी बनाना चाहता है। इसके लिए वह अनेक स्वार्थों को सफल बनाने की इच्छा किया करता है। धन, कीर्ति, पद, प्रभाव आदि प्राप्त करना मनुष्य के स्वाभाविक स्वार्थ हुआ करते हैं। कवि इन सभी स्वार्थों को मातृभूमि के हित में त्यागने को तत्पर है। इतना ही नहीं वह अपने परिश्रम से अर्जित समस्त फलों को भी माँ के चरणों में अर्पित कर देने की भावना भी व्यक्त कर रहा है।
प्रश्न 5.
‘मुझे तू कर दृढ़तर’ कवि मातृभूमि से दृढ़ता का वरदान किसलिए चाहता है? ‘मातृ-वन्दना’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कंवि चाहता है कि वह निर्भीकता से मृत्यु के पथ अर्थात् जीवन में आगे बढ़ता जाय। जीव मात्र को अपना ग्रास बनाने वाला काल या मृत्यु चाहे उस पर कितने भी विघ्न, बाधा और कष्टरूपी तीखे बाण चलाए। वह सभी का सामना करते हुए मातृभूमि की सेवा करता रहे। इसीलिए वह मातृभूमि से दृढ़ता का वरदान चाहता है। उसका मन बाधाओं और घोर कष्टों में भी अडिग बना रहे, यही कामना इस पंक्ति में व्यक्त हुई है।
प्रश्न 6.
कवि अपने हृदय में माँ भारती की कैसी मूर्ति जगाना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि भारत माता की आँसुओं से धुली निर्मल मूर्ति अपने हृदय में जगाना चाहता है। इसका कारण यह है कि जब मनुष्य अपने प्रिय या श्रद्धेय व्यक्ति को कष्ट में देखता है तो उसके हृदय में उसकी सेवा और सहायता का भाव उमड़ उठता है। भारत माता परतन्त्रता से या अभावों और कष्टों से पीड़ित हैं। अतः उनकी आँखों से बहते आँसू देखकर कवि बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर हो जाएगा। माँ की आँखों से आँसू उसे अपना जीवन और श्रमजनित सारा फल माँ के चरणों में न्योछावर कर देने की प्रेरणा और बल प्रदान करेंगे।
प्रश्न 7.
भारत माता को मुक्त करने के लिए कवि की तीव्र अभिलाषा किन शब्दों में व्यक्त हुई है? लिखिए।
उत्तर:
कवि कहता है कि भले ही उसका शरीर बाधाओं से ग्रस्त हो जाय किन्तु उसकी माँ पर से ध्यान नहीं हटेगा। जब माँ उसको अपने हृदय-कमल पर आँसू भरी एकटक आँखों से देखेगी तो वह अपना परिश्रम के पसीने से भीगा शरीर उसके कष्ट दूर करने के लिए समर्पित कर देगा। उसे परतन्त्रता और अभावों से मुक्त करेगा। अपने सारे श्रेष्ठ कर्मों से एकत्र हुए फल को वह माँ के चरणों में समर्पित कर देगा।
RBSE Class 10 Hindi Chapter 7 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता से आपको किन-किन जीवन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा प्राप्त होती है? लिखिए।
उत्तर:
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में कवि निराला ने जो उद्गार व्यक्त किए हैं वे हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। इस काव्य-रचना में कवि को अनेक श्रेष्ठ और अनुकरणीय मूल्यों को अपनाते हुए देखा जा सकता है।
कविता का शीर्षक दृढ़ आत्म-विश्वास और आत्मबल का प्रेरक है। कवि दृढ़ता से कहता है कि अभी उसके जीवन का अंत नहीं हो सकता। आत्म-विश्वास ही मनुष्य में सार्थक और उत्साहपूर्ण जीवन जीने की इच्छा को जन्म देता है। युवा कवि ने अपनी जवानी को जीवन का वसंत कहा है। वसंत प्रकृति में नवजीवन और उल्लास लेकर आता है। कवि भी अपनी युवावस्था को उत्साह और उल्लास के साथ जीना चाहता है। कवि ने लोकहित, जीवन्तता और आत्मविश्वास जैसे श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी है। वह हर फूल में अपने नवजीवन का अमृत सींचे देने का संकल्प लेता है।
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता हमें आत्मविश्वास, उत्साह, जीवंतता, लोकमंगल, सहानुभूति आदि मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देती है।
प्रश्न 2.
कवि ‘निराला’ ने अपने आगामी जीवन में क्या-क्या करने की इच्छा रखते हैं। अभी न होगा मेरा अन्त’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
कवि निराला को दृढ़ विश्वास है कि उनका जीवन अभी शीघ्र ही समाप्त होने वाला नहीं है। अभी तो उनके जीवने का प्रथम चरण आरम्भ हुआ है। पूरी जवानी आगे पड़ी है। कवि अपने आगामी जीवन को श्रेष्ठ-मूल्यों के प्रचार और परोपकार में लगाना चाहते हैं। वे कलियों के समान सोए पड़े लोगों को अपने प्रेरणामय स्पर्श से जगाकर उनके जीवन को उल्लासमय से बनाना चाहते हैं। वे लोगों को आलस्य से मुक्त करके अपना आनन्द उनसे साझा करना चाहते हैं। वह अपने ‘अनंत’ से मिलाने के लिए लोगों का मार्गदर्शन करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि लोग जीवन के सकारात्मक पक्ष को अपनाएँ। जीवन के अन्त की चिन्ता त्याग कर अपने और दूसरों के जीवन का आनंदमय बनायें।
प्रश्न 3.
‘मातृ-वन्दना’ कविता में निराला जी के हृदय की देशभक्ति की भावना मर्मस्पर्शी रूप में व्यक्त हुई है। इस कथन पर अपना मत लिखिए।
उत्तर:
मातृभूमि, भारत के प्रति कवि की भक्ति-भावना, सर्वस्व समर्पण, त्याग और आत्मबलिदान का इस कविता में हृदय को छू लेने वाला मर्मस्पर्शी रूप सामने आया है। एक मनुष्य के रूप में कवि के जितने भी स्वार्थ हो सकते हैं, उन सबको वह माँ भारती के चरणों में समर्पित करने को प्रस्तुत है। उसने परिश्रम करके जो सत्कर्मों का फल या लाभ प्राप्त किए हैं, उनको भी कवि भारत माता पर न्योछावर कर देने का संकल्प लेता है। वह चाहता है कि मातृभूमि की आँसू भरी मूर्ति उसे सदा उसकी सेवा की प्रेरणा देती रहे। जीवन के पथ पर सारे कष्टों को सहन करने के लिए, वह माँ की आँखों के आँसुओं से प्रेरणा लेना चाहता है। जीवन के परिश्रम से अर्जित फल को वह माँ पर न्योछावर कर देने को प्रस्तुत है। अपना तन-मन सब कुछ माँ के चरणों में समर्पित का वह मातृभूमि को सारे कष्टों से मुक्त करने हेतु संकल्पित है। इस प्रकार कवि की मातृभक्ति का इस रचना में हृदयग्राही चित्रण हुआ है।
प्रश्न 4.
कवि निराला ने ‘मातृ-वंदना’ कविता में भारत माता से क्या-क्या चाहा है? कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
पुत्र को कर्तव्य है कि वह अपनी मातृभूमि के कष्टों को दूर करने के लिए, आवश्यक हो तो अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे। कवि निराला ने ‘मातृ-वंदना’ कविता में यही भावना व्यक्त की है। कवि चाहता है कि उसके जीवन में सारे स्वार्थ और उसके कर्मों के सारे फल मातृभूमि के चरणों में समर्पित हो जायें। उसे अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए। कवि चाहता है कि वह समय द्वारा मार्ग में उत्पन्न जारी विघ्न-बाधाएँ पार करते हुए, मातृभूमि की सेवा में तत्पर रहें। मातृभूमि के कष्टों से प्रेरणा पाकर अपने जीवन के सारे संचित फल वह उस पर न्यौछावर कर देना चाहता है। वह संकल्प लेता है कि वह अपने तन को बलिदान देकर भी मातृभूमि को मुक्त करायेगा। उसके चरणों पर अपने श्रम से संचित सारा फल समर्पित कर देगा।
कवि परिचय
जीवन परिचय-
फक्कड़पन और निर्भीक अभिव्यक्ति में कबीर का प्रतिनिधित्व करने वाले, कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 1896 ई. में बंगाल के मेदिनीपुर गाँव में हुआ था। आपके पिता पं. रामसहाय त्रिपाठी थे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा हाईस्कूल तक हुई। इसके पश्चात् आपने स्वाध्याय द्वारा हिन्दी, संस्कृत तथा बांग्ला भाषाओं का अध्ययन किया। बाल्यावस्था में ही ‘निराला’ के माता-पिता उन्हें छोड़ स्वर्गवासी हो गए। युवावस्था में एक-एक करके पत्नी, भाई, भाभी तथा चाचा भी महामारी की भेंट चढ़ गए। अंत में उनकी परम प्रिय पुत्री सरोज भी उन्हें छोड़कर परलोक चली गई। मृत्यु के इस ताण्डव से ‘निराला’ टूट गए। उनकी करुण व्यथा ‘सरोज़ स्मृति’ नामक रचना के रूप में बाहर आई। सन् 1961 ई. में हिन्दी के इस निराले साहित्यकार का देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय-कविवर ‘निराला’ ने हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं को अपनी विलक्षण प्रतिभा से अलंकृत किया। उन्होंने काव्य-रचना के अतिरिक्त कहानी, उपन्यास तथा आलोचना पर भी अपनी लेखनी चलाई किन्तु मुख्य रूप से वह एक कवि के रूप में ही प्रसिद्ध रहे। निराला’ की रचनाएँ छायावाद, रहस्यवाद एवं प्रगतिवादी विचारधाराओं से प्रभावित हैं। निरीला जी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।
रचनाएँ-अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, नए पत्ते, राम की शक्तिपूजा, सरोज-स्मृति तथा लिली, चतुरी चमार, अपरा, अलका, प्रभावती और निरूपमा आदि गद्य रचनाएँ हैं।
पाठ परिचय
पाठ में कवि निराला की दो रचनाएँ संकलित हैं-‘अभी न होगा मेरा अंत’ तथा ‘मातृ-वन्दना’। ‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में कवि ने आत्मविश्वास का परिचय देते हुए कहा है कि उनके कवि जीवन का अभी अंत होने वाला नहीं। यद्यपि काल में उनके प्रियजनों को छीनकर उन्हें बार-बार आघात पहुँचाया है, किन्तु उनकी जीवंतता को वह नहीं छीन पाया है। अभी तो उनके जीवन में वसंत का आगमन हुआ है। वह अपनी रचनाओं से सोते हुओं को जगाएँगे। निराश जीवनों में आशा और उत्साह भरेंगे। उनकी रचनाओं में निरन्तर प्रौढ़ता और प्रेरणा आती जाएगी। उनके पास समय की कोई कमी नहीं है।
दूसरी रचना ‘मातृ-वंदना’ में कवि ने भारत माता की वंदना की है। वह अपने जीवन की सारी सफलताएँ मातृभूमि के चरणों में अर्पित करने को प्रस्तुत है। वह समय के सारे प्रहारों को सहते हुए देशप्रेम के पथ पर बढ़ता रहेगा। चाहे कितनी भी बाधाएँ क्यों न आएँ वह मातृभूमि को मुक्त करने के लिए अपना सारा श्रम संचित फल अर्पित कर देगा।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ अभी न होगा मेरा अंत
(1)
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है।
मेरे जीवन में मृदुल वसंत
अभी न होगा मेरा अन्त।
हरे-हरे ये पति।
डालियाँ कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेसँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
शब्दार्थ-मृदुल = कोमल। वसंत = युवावस्था, उत्साहमय समय। पात = पत्ते। गात = शरीर। कर = हाथ। निद्रित = सोई हुई। प्रत्यूष = प्रात:काले। मनोहर = मन को वश में करने वाला, आनन्ददायक।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की रचना ‘अभी न होगा मेरा अन्त’ से लिया गया है। यहाँ कवि पूर्ण रूप से आश्वस्त है कि अभी उसकी काव्य-रचना का उत्साह भरा प्रथम चरण प्रारम्भ हुआ है। अभी अंत बहुत दूर है।
व्याख्या-कवि घोषित कर रहा है कि अभी उसका साहित्य-सृजन थमने वाला नहीं है। अभी तो उसके कवि जीवन का आरम्भ ही हुआ है। जैसे वसंत ऋतु आने पर प्रकृति में उल्लास और उत्साह भरा वातावरण दिखाई देने लगता है, उसी प्रकार उसके जीवन का यह युवाकाल है। वह उत्साह से भरा हुआ है। अभी अंत के बारे में तो सोचना भी व्यर्थ है। कवि के मन और जीवन में हरियाली छाई हुई है। वह हरे-हरे कोमल शरीर वाले वृक्षों और पौधों को देखकर हर्षित हो रहा है। अपनी सपने जैसी कोमल कल्पनाओं द्वारा रचित काव्यरूपी हाथ को फेरकर वह आलस्य में पड़े जीवनों को जगाएगा। जैसे वसंत कलियों को खिलाता है, वह भी अपनी कविताओं से एक मनमोहक सवेरा लाएगा और अपने आस-पास स्थित अलसाये जीवनों में उत्साह जगाएगा।
विशेष-
(1) यद्यपि कवि का जीवन प्रियजनों के विछोह से व्यथित है किन्तु वह हार मानने को तैयार नहीं है।
(2) कवि को विश्वास है कि उसकी सोतों को जगाने और हँसाने वाली काव्य रचना की यात्रा दूर तक जाएगी।
(3) भाषा भावों के अनुरूप तथा शैली भावुकता से पूर्ण है।
(4) काव्यांश में ‘डालियाँ, कलियाँ कोमल गात’ में अनुप्रास अलंकार, ‘स्वप्न-मृदुल-कर’ में उपमा तथा ‘निद्रित कलियों में मानवीकरण अलंकार है।
(5) काव्यांश सकारात्मक सोच और जीवन्त बने रहने का संदेश देता है।
2. पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लँगा मैं
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त
अभी न होगा मेरा अंत।
शब्दार्थ-पुष्प = फूल। तन्द्रालस = शिथिलता और आलस्य। लालसा = तीव्र इच्छा। खींच लँगा = दूर कर दूंगा। नव = नया। अमृत = उत्साह, प्रेरणा। सींच दूंगा = भर दूंगा। अनन्त = जिसका अन्त न हो, परमात्मा।।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की कविता ‘अभी न होगा मेरा अन्त’ से लिया गया है। कवि हर शिथिल और आलस में पड़े जीवन में जागरूकता और उत्साह भरने का संकल्प कर रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि जैसे वसंत हर फूल को खिला देता है और प्रकृति में आनन्दमय वातावरण उत्पन्न कर देता है। उसी प्रकार वह भी शिथिलता और आलस में पड़े जीवनों को प्रसन्नता और जागरूकता प्रदान करेगा। अपने उत्साह भरे नवयौवन का आनन्द उनके हृदयों में भरकर उन सभी को निराशा से मुक्त कर देगा। अपनी रचनाओं से उनका मार्गदर्शन करते हुए अनन्त परमात्मा तक पहुँचने में उनकी सहायता करेगा। अभी कवि के सामने लम्बा जीवन पड़ा हुआ है क्योंकि अभी तो उसके जीवन का प्रथम चरण ही आरम्भ हुआ है।
विशेष-
(1) कवि की जीवन में आस्था और उसका सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।
(2) कवि मृत्यु की चिंता से मुक्त है और जीवन का आनन्द लेने और देने में विश्वास करता है।
(3) ‘पुष्प-पुष्प’ में पुनरुक्ति प्रकाश ‘तन्द्रालस लालसा’, ‘सहर्ष सींच’ तथा ‘द्वार दिखा’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘नव जीवन का अमृत’ में रूपक का आभास है।
(4) काव्यांशों में लोकहित का संदेश निहित है।
(3) मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।
शब्दार्थ-प्रथम चरण = जीवन का आरम्भिक समय। स्वर्ण-किरण = सुनहली किरणें, काल का समय। कल्लोल = लहर। बालक-मन = भोला हृदय। अविकसित = अनुभवहीन, अपूर्ण। राग = संगीत, काव्य रचना। दिगन्त = सारा आकाश, क्षितिज।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की रचना ‘अभी न होगा मेरा अंत’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने मृत्यु के प्रहारों से सशंकित अपने मन को आश्वासन दे रहे हैं कि अभी उनका जीवन समाप्त नहीं होने वाला है। उन्हें अभी जीवन में बहुत कुछ सीखना और करना बाकी है।
व्याख्या-कवि इस अंश में स्वयं को ही सम्बोधित करता हुआ प्रतीत हो रहा है। अतीत में अपने अनेक प्रियजनों की अकाल मृत्यु ने उसके बालमन को सशंकित कर दिया है। अतः वह अपने मन को आश्वस्त करना चाहता है कि अभी वह बहुत समय तक जीवित रहेगा, सक्रिय रहेगा। वह कहता है कि जब यह उसके जीवन का प्रथम चरण है तो अभी उसकी मृत्यु कैसे हो सकती है। अभी तो दूर-दूर तक उसे जीवन ही जीवन दिखाई दे रहा है। वह मन को समझाता है कि अभी तो उसकी सारी युवावस्था पड़ी हुई है।
कवि कहता है कि अभी तो उसका मन बालकों जैसा भोला और कल्पनाशील है। वह सुनहली किरणों की लहरों पर बह रह्म है। अर्थात् वह उल्लासपूर्ण जीवन की उज्ज्वल कल्पनाओं में मग्न है। धीरे-धीरे उसकी रचनाओं में प्रौढ़ता आएगी। उसकी काव्य रचना दूर-दूर तक लोगों को आत्म-विश्वास और उत्साह से भरने लगेगी।
विशेष-
(1) कवि के अनुसार उसके जीवन में प्रथम बार वसंत जैसे उल्लास और उत्साहमय समय का आगमन हुआ। है। वह निरन्तर कर्मशील रहकर समाज के निराश और हताश लोगों में आत्मविश्वास का संचार करेगा।
(2) कवि ने अपने उत्साह और आत्मविश्वास से पूर्ण भावनाओं द्वारा निरन्तर सृजन में लगे रहने और मृत्यु के भय से मुक्त रहने का संदेश दिया है।
(3) ‘स्वर्ण-किरण कल्लोल’ में रूपक की झलक है।
मातृ-वदना-
नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल।
जीवन के रथ पर चढ़ कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़कर
महाकाल के खरतर शर सह
सहूँ, मुझे तू कर दृढ़तर;
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
दृग जल से पा बल बलि कर दें
जननि, जन्म श्रम संचित फल।
शब्दार्थ-नर जीवन = मनुष्य-रूप में प्राप्त वर्तमान जीवन। सकल = सारे। बलि = न्योछावर, बलिदान। श्रम = परिश्रम, मेहनत। सिंचित = सींचे हुए, परिश्रम से किए गए। मृत्युपथ = मृत्यु की ओर बढ़ता जीवन। महाकाल = समय, मृत्यु। खरतर = अधिक तीखे, पैने। शर = बाण, आघात। दृढ़तर = और अधिक दृढ़। उर = हृदय, मन। अश्रु = आँसू। धौत = धुली हुई। विमल = स्वच्छ। दृग जल = आँसू। जननि = माता। श्रम संचित = परिश्रम से प्राप्त।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की कविता ‘मातृ-वन्दना’ से लिया गया है। इस अंश में कवि मातृभूमि से अनुरोध कर रहा है कि वह उसके मन को इतना दृढ़ बना दे कि वह अपने स्वार्थ, परिश्रम से अर्जित फल, और अपने जीवन को भी उस पर न्योछावर कर दे।
व्याख्या-कवि कहता है, हे माँ! मुझे ऐसा आत्मबल दो कि मैं अपने मनुष्य जीवन के सारे स्वार्थों और अपने परिश्रम अर्जित सभी वस्तुओं को तुम्हारे चरणों पर न्योछावर कर दें।
मुझे इतना दृढ़ बना दो कि मैं जीवनरूपी रथ पर सवार होकर अर्थात् मृत्यु की चिंता किए बिना जीवन में आगे बढ़ते हुए, समय-समय पर आने वाले बाण की तरह कष्टदायक बाधा-विघ्नों को झेलते हुए तेरी सेवा करता रहूँ। मेरे हृदय में तेरा। आँसूओं से धुला स्वच्छ स्वरूप साकार हो जाए। मैं परतन्त्रता में दुखी और आँसू बहाते तेरे रूप को मन में बसा लूं। तेरे आँसू मुझे इतना बल प्रदान करें कि मैं अपने सारे जीवन में परिश्रम से अर्जित सभी वस्तुएँ और जीवन भी तुझ पर बलिदान कर सकें।
विशेष-
(1) भाषा में तत्सम शब्दों की प्रधानता है। शब्द-चयन मनोभावों को व्यक्त करने में सफल है।
(2) शैली भावात्मक और समर्पणपरक है।
(3) ‘स्वार्थ सकल’, ‘खरतर शर’, ‘श्रम संचित’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘जीवन के रथ’ में रूपक अलंकार है।
(2)
बाधाएँ आएँ तन पर।
देखें तुझे नयन, मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर;
क्लेद युक्त, अपना तन ढूँगा
मुक्त करूंगा, तुझे अटल
तेरे चरणों पर देकर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल।
शब्दार्थ-सजल दृगों से = आँसू भरे नेत्रों से। अपलक = बिना पलक झपकाए, एकटक। शतदल = कमल। क्लेद = पसीना, कष्ट। मुक्त = स्वतन्त्र। श्रेय = श्रेष्ठ, प्रशंसनीय।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की रचना ‘मातृ-वन्दना’ से लिया गया है। कवि मातृभूमि की परतन्त्रता से आहत होकर, उसे स्वतन्त्र कराने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देने का संकल्प व्यक्त कर रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है-हे मातृभूमि ! चाहे मेरे मार्ग में कितनी भी बाधाएँ आएँ पर मेरा ध्यान और मेरी दृष्टि सदा तुझ पर ही लगी रहे। हे माँ ! तू अपने आँसुओं भरे नेत्रों से एकटक देखती रहना। मुझे अपने हृदयरूपी कमल पर बैठाए रखना। मेरी याद मत भूलना। मैं परिश्रम के पसीने से भीगे अपने शरीर को तुझे समर्पित कर दूंगा। बड़े से बड़ा बलिदान देकर भी मैं संदा के लिए तुझे स्वतन्त्र करा दूंगा। मैं अपने सारे श्रेष्ठ आचरणों और परिश्रम से प्राप्त सफलताओं और कीर्ति को तुझ पर न्योछावर कर दूंगा।
विशेष-
(1) कवि के देशप्रेम की निस्वार्थ और उत्कट भावना पंक्ति-पंक्ति में झलक रही है।
(2) कवि अपने परिश्रम से अर्जित पवित्र फल को, मातृभूमि के चरणों में समर्पित करने का दृढ़ संकल्प ले रहा है।
(3) ‘उर के शतदल’ में रूपक तथा ‘ श्रेय श्रम संचित’ में अनुप्रास अलंकार है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न