RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत
RBSE Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर:
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। उनका जीवन सरल था। वे बहुत कम कपड़े पहनते थे। वे अपना जीवन ‘साहब’ की सेवा में समर्पित कर चुके थे। इसलिए वे अपने आप को भगवान् का बन्दा बताते थे। वे अपनी उपार्जित वस्तु को सबसे पहले कबीर साहब के मठ पर ले जाते थे। वहाँ से प्रसाद रूप में वापस मिलता था, उसी से अपना गुजारा करते थे। इसके साथ ही वे अपने जीवन को भी भगवान् की देन मानते थे। वे साधुओं की तरह ईश्वर और गुरु की प्रशंसा के गीत गाते रहते थे। वे दूसरों की चीजों को व्यवहार में लाना तो दूर, छूते तक नहीं थे। यहाँ तक कि वे राग-द्वेष से ऊपर उठे हुए साधु थे।
भगत की पुत्रवधु उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर:
भगत की पुत्रवधू यह भली-भाँति जानती थी कि पुत्र की मृत्यु के बाद अब वे अकेले रह गये हैं। उनकी सेवा-सुश्रूषा करने वाला उसके अलावा अब कोई नहीं है। अब वे वृद्ध भी हो चुके हैं। इसलिए वे अब अपने खाने-पीने की ओर ध्यान नहीं दे पायेंगे। ऐसी परिस्थिति में उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं है। इसलिए सेवाभाव से पूरित होकर वह अपना शेष वैधव्य जीवन उनके चरणों की छाया में ही बिताना चाहती थी।
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त की?
उत्तर:
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर शोक व्यक्त न करके आनन्द की अनुभूति की, क्योंकि उनका मानना था कि इस संसार में ईश्वर की इच्छा ही सर्वोपरि है। अब पुत्र की आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी आत्मा अपने प्रेमी परमात्मा से मिल गई, इससे बढ़कर आनन्द क्या हो सकता है? उन्होंने अपने पुत्र के शव को एक सफेद चद्दर से ढक दिया। कुछ फूल उस पर बिखेर दिए और एक दीपक उसके सिरहाने जला दिया। वे उसके सामने जमीन पर आसन लगाकर बैठ गये और तल्लीन होकर गीत गाने लगे। इसके साथ ही उन्होंने अपनी विलाप करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कहा।
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भगत का व्यक्तित्व एक साधु के अनुरूप था। वे साठ वर्ष से ऊपर गोरे-चिट्टे और मझोले कद के व्यक्ति थे। उनका चेहरा सफेद बालों से ढका हुआ सदा जगमगाता रहता था। वे कपड़े बहुत कम पहनते थे। उनकी कमर पर केवल एक लंगोटी रहती थी और सिर पर कबीरपंथियों वाली कनफटी टोपी। जाड़ा आने पर शरीर पर काली कमली ओढ़ लेते थे। उनके मस्तक पर रामानंदी चंदन चमकता रहता था जो नाक के एक छोर से शुरू होकर ऊपर की ओर चलता जाता था। वे गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते थे। इस वेशभूषा में उनका व्यक्तित्व एक साधु जैसा प्रतीत होता था। इसके साथ ही वे प्रभु-भक्ति में लीन होकर खंजड़ी पर भक्तिगीत गाते रहते थे।
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर:
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी, क्योंकि वह एक बँधे-बंधाए ढर्रे पर चलती थी। उनकी दिनचर्या सरलता, सादगी और नि:स्वार्थ भाव से पूरित थी। वे प्रात:काल उठकर दो मील दूर स्थित नदी में स्नान करने जाते थे। वापस आने पर वे गाँव के बाहर स्थित पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खजड़ी लेकर जा बैठते और प्रभु-भक्ति के गीत टेरा करते थे। उनकी दिनचर्या माघ की सर्दी में भी नहीं बदलती थी। आसमान में तारों के दीपक बुझे नहीं कि काली कमली ओढ़े बालगोबिन भगत खंजड़ी लेकर बैठ जाते और गाते-गाते मस्त हो जाते थे। गर्मियों में अपने आँगन में ही आसन जमा लेते थे और उनके संगीत के प्रेमी भी वहीं एकत्र हो जाते थे। उनकी नियमित दिनचर्या वास्तव में ही सभी को आश्चर्य में डालने वाली थी।
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
बालगोबिन भगत अपनी मनोवृत्ति के अनुसार प्रभु-भक्ति के मधुर गीत गाया करते थे। एक पद वे पहले गाते थे और उनकी प्रेमी-मंडली उसे दुहराती थी। धीरे-धीरे उनका स्वर ऊँचा होने लगता और एक निश्चित ताल एक निश्चित गति में आ जाती। स्वर उतार-चढाव से परित हो जाता। संगीत और गायन का एक ऐसा मधर-आ वातावरण बन जाता कि खंजड़ी लिये बालगोबिन नाचने लगते और उनके साथ लोगों के तन-मन नाचने लगते। इसके साथ ही उनके संगीत के जादुई प्रभाव से खेतों में काम करने वाले किसानों के हाथ और पैर एक विशेष लय में चलने लगते थे। यहाँ तक कि चाहे विकट सर्दी हो या गर्मी, वह उन्हें गायन से अलग या प्रभावित नहीं कर पाती थी।
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
यह सत्य है कि बालगोबिन भगत तत्कालीन समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। इसीलिए वे गृहस्थी छोड़कर साधु बनने में विश्वास नहीं करते थे। वे काम करने पर ही विश्वास करते थे, इसलिए साधु होकर भी वे खेतीबाड़ी में ही लगे रहते थे। वे किसी की मृत्यु पर विचलित भी नहीं होते थे। अपने पुत्र की मृत्यु पर उसके शव को चादर से ढककर उस पर फूल बिखेर कर स्वयं गीत गाने बैठ गये थे। यहाँ तक उन्होंने पतोहू को भी रोने के लिए मना किया था। वे मृत्यु को एक उत्सव ही मानते थे। उन्होंने अपनी पतोहू के हाथों से ही पुत्र के शव को आग दिलाई और पतोहू को उसके भाई के साथ उसके मायके भेज दिया तथा पुनर्विवाह करने का आदेश दिया। इस प्रकार वे सामाजिक मान्यताओं की चिन्ता नहीं करते थे।
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर-लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
धान की रोपाई के समय बालगोबिन भगत की स्वर-लहरियाँ समूचे माहौल को चमत्कृत कर देती थीं। उसी का एक शब्द-चित्र यहाँ प्रस्तुत है आषाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही है। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है-यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा।
पाठ के आधार पर बताइए कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई
उत्तर:
बालगोबिन भगत के मन में कबीर के प्रति अपार श्रद्धा थी। उन्होंने अपनी श्रद्धा निम्न रूपों में प्रकट की –
- उन्होंने अपने आप को कबीर के प्रति समर्पित कर दिया था। वे कबीर को ही ‘साहब’ मानते थे। वे कबीर के आदर्शों पर ही अपना जीवन चलाते थे, इसीलिए वे गृहस्थ होते हुए भी संसार के आकर्षणों से दूर रहते थे। इसके साथ ही वे व्यवहार में खरे थे।
- बालगोबिन भगत हमेशा कबीर के भजन गाते थे और कबीरपंथियों जैसी कनफटी टोपी लगाते थे।
- उनके खेत में जो कुछ भी पैदा होता था उसे वे एक कबीरपंथी मठ को समर्पित कर देते थे और प्रसाद रूप में उन्हें जो मिलता था, उससे ही वे अपना जीवनयापन करते थे।
- बालगोबिन भगत ने भी कबीर के आदेशानुसार अपनी आत्मा की आवाज का व्यवहार किया था। उन्होंने वही किया जो उन्हें उचित और हितकारी लगा।
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर:
मेरी दृष्टि में बालगोबिन भगत कबीर की तरह ही सीधे-सच्चे और गृहस्थ इंसान थे। वे कबीर की भक्ति पद्धति से विशेष रूप से प्रभावित रहे होंगे। उन्हें कबीर का गृहस्थ-जीवन ही अच्छा लगा होगा। इसलिए उन्होंने भी कबीर का अनुकरण किया होगा। कबीर जिस प्रकार अपने कार्यों में लगे रहे थे, इसीलिए वे भी अपनी खेती-बाड़ी के . कार्यों में लगे रहते थे। उन्हें कबीर की आवाज में सच्चाई नजर आयी होगी और वे बाह्याडम्बरों से दूर रहे होंगे। उन्होंने कबीर को अपना गुरु मानकर अपनी अगाध श्रद्धा उनके प्रति प्रकट की होगी।
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर:
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ मास में अपना विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि आषाढ़ मास में वर्षा ही प्रारम्भ होती है। खेतीबाड़ी ही ग्रामीणों की मुख्य आजीविका होने से सारे ग्रामीण खेतों में हल चलाने व निराई-गुड़ाई आदि करने लगते हैं। उन दिनों बच्चे भी खेतों की गीली मिट्टी में लथपथ होकर आनन्द क्रीड़ा करते हैं। औरतें कलेवा लेकर खेतों की मेंड़ पर बैठ जाती हैं। ठंडी हवा चलने लगती है। गाँव के लोग फसलों की आशा में उल्लास से भर जाते हैं। संगीत की स्वर-लहरियाँ गूंजने लगती हैं। गाँव का सारा सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण उल्लास से भर जाता है।
“ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या साधु की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर:
हमारे देश में साधु की पहचान प्रायः उसकी वेशभूषा से की जाती है। भगवा वस्त्र धारण करना, दाढ़ी-जटा बढ़ाना, कमण्डल-खप्पर रखना, तिलक-छापा लगाना इत्यादि रूप में उनकी आमतौर पर पहचान होती है। परन्तु हमारे विचार में साधु की पहचान उसके आचरण से करनी चाहिए। जो व्यक्ति परोपकारी, माया-मोह से मुक्त, स्पष्टवादी, सत्यवादी, निर्लोभ एवं सभी व्यसनों से मुक्त हो, जो आत्मा एवं परमात्मा के रहस्य को जानता हो और आस्तिक हो, ऐसे व्यक्ति को ही हम साधु मानेंगे। सन्त-स्वभाव वाला, आडम्बर-ढोंगरहित, अहंकारशून्य, ज्ञानी तथा सामान्य वेशभूषा वाला व्यक्ति सच्चा साधु होता है।
मोह और प्रेम में अन्तर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर:
मोह में अंधता होती है। वह भला-बुरा न देखकर केवल स्वार्थ पर ही आधारित होता है। प्रेम में सात्विकता होती है। उसमें निर्मलता एवं स्वार्थहीनता होती है। इसीलिए बालगोबिन भगत ने अपनी पतोहू के प्रति मोह न प्रकट करके उसके प्रति प्रेम ही प्रकट किया। पुत्र के मर जाने के बाद उन्होंने उसके भविष्य को सुधारने के लिए उसे दूसरा विवाह करने का आदेश दिया। इससे उनका प्रेम प्रकट हुआ। यदि वे उसे अपनी सेवा में रख लेते तो वह उनका मोह होता।
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर:
क्रियाविशेषण भेद
1. जब जब कालवाचक – क्रियाविशेषण
2. सामने स्थानवाचक – क्रियाविशेषण
3. बिल्कुल कम परिमाणवाचक – क्रियाविशेषण
4. खामखाह रीतिवाचक – क्रियाविशेषण
5. दिन-दिन कालवाचक – क्रियाविशेषण
6. सदा-सर्वदा कालवाचक – क्रियाविशेषण
7. पंक्तिबद्ध रीतिवाचक – क्रियाविशेषण
8. डिमक-डिमक रीतिवाचक – क्रियाविशेषण
9. सवेरे ही कालवाचक – क्रियाविशेषण
10. नजदीक स्थानवाचक – क्रियाविशेषण
उत्तर:
यह कलैंडर चैत्र मास से शुरू होता है। इसके महीनों का क्रम इस प्रकार है-चैत्र, बैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।
उत्तर:
शहर में निवास करने के कारण पाठ में वर्णित ग्राम्य संस्कृति यहाँ की संस्कृति से नितान्त भिन्न है। यहाँ भीड़ और भागम-भाग जिन्दगी के अलावा प्राकृतिक सौन्दर्य देखने का न तो किसी को मौका मिलता है और न कोई उसमें रुचि लेता है। वे ही दौडती पक्की सडकें. वे ही ऊँचे-ऊँचे पक्के खडे मकान नीरसता भरी जिन्दगी के साक्षी हैं।
RBSE Class 10 Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers
- खरा = सच्चा।
- दो टूक = सीधी बात।
- खामखाह = बेकार में, व्यर्थ में।
- बारीक = महीन, गहरी।
- कुतूहल = आश्चर्य।।
- लेखक ने बालगोबिन भगत के व्यवहार को कबीर के समान बताया है कि वे सदैव सबसे संतुलित एवं सत्य निर्भर व्यवहार रखने वाले व्यक्ति थे।
- खड़ी बोली हिन्दी का परिनिष्ठत रूप है। भाषा शैली सरल-सहज है।
- साहब = मालिक।
- मठ = आश्रम।
- मुग्ध = आकर्षित।
- सर्वदा = हमेशा।
- सजीव = जीवित।
- लेखक ने कबीर के प्रति बालगोबिन की भक्ति पर प्रकाश डाला है।
- भाषा सरल-सहज है।
- रिमझिम = धीमी-धीमी बारिश।
- रोपना = धान रोपना, मिट्टी में दबाना।
- कलेवा = नाश्ता।
- मेंड़ = मिट्टी से बने ऊँचे किनारे।
- पुरवाई = हवा, समीर।
- झंकार = वाद्य यंत्र की मधुर आवाज।
- लिथड़े = लिपटे।
- जीना = सीढ़ी।
- लेखक ने ग्रामीण परिदृश्य का सुन्दर चित्र उकेरा है।
- भाषा शैली सरल-सहज है। ग्रामीण शब्दों का प्रयोग है।
- कातिक = कार्तिक महीना, हिन्दी महीने का नाम।
- प्रभातियाँ = भोर/सुबह के समय गाये जाने वाले गीत।
- भिंडा = चबूतरा।
- खंजड़ी = हाथ से बजाया जाने वाला चिमटा।
- टेर = ऊँची आवाज में गाना।
- माघ – हिन्दी महीने का नाम।
- पोखर = पानी से भरे तालाब।
- लेखक ने बालगोबिन की दिनचर्या एवं मधुर भजनों पर प्रकाश डाला है।
- देशज शब्दों के प्रयोग के साथ, खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है। भाव-शैली सरल व सहज है। ‘भगत’ में तत्सम् ‘भक्त’ का प्रयोग है।
- कुहासा = ओस का अँधेरा, कोहरा।
- आवृत = ढका हुआ।
- कुश = एक घास का नाम।
- कमली = कम्बल।
- खंजड़ी = बजाने वाला चिमटा, वाद्य यंत्र।
- ताँता = कतार।
- सुरुर = नशा।
- छाँव = छाया।
- लेखक ने बालगोबिन के मस्त होकर भजन गाते स्वरूप को रेखांकित किया है।
- देशज शब्दों के प्रयोग के साथ, खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग हुआ है।
- भाषा सरल एवं सहज है।
- चरम = उच्च बिंदू पर पहुँचना।
- उत्कर्ष = उन्नति, ऊँचाई पर।
- बोदा = दबा हुआ।
- साध = इच्छा, आशा।
- सुभग = सुन्दर, सौभाग्यशाली।
- प्रबन्धिका = प्रबन्ध संभालने वाली।
- निवृत = छुटकारा।
व्याख्या – लेखक ने भजन गाते हुए लीन बालगोबिन के स्वरूप को देखा जो कड़ाके की सर्दी में पूरी तन्मयता से गा रहे थे। उस स्वरूप को याद करके लेखक को वह दिन याद आ जाता है जब उसके पुत्र की मृत्यु हुई थी। लेखक कहते हैं कि वह दिन उनकी संगीत-साधना का सबसे उच्चतम दिन था, उनकी साधना की चरम उन्नति का दिन था जब बालगोबिन के पुत्र की मृत्यु हुई, कि वह उनका इकलौता पुत्र था। स्वभाव से सुस्त और कुछ दबा हुआ-सा कमजोर लड़का था। और इस कारण बालगोबिन अपने पुत्र से अधिक स्नेह रखते थे।
- लेखक ने बालगोबिन, उसके पुत्र एवं पुत्रवधू के बारे में बताया है।
- देशज शब्द एवं हिन्दी खड़ी बोली का सहज-सुन्दर प्रयोग हुआ है।
कठिन शब्दार्थ :
- फुरसत = खाली समय।
- तल्लीन = भाव-विभोर होकर, जिन्हें आस-पास की कोई खबर ना हो।
- लेखक ने बालगोबिन के अद्भुत व्यक्तित्व का परिचय दिया है।
- भाषा-शैली सरल-सहज है एवं बोधगम्य है।
- पतोहू = पुत्रवधू।
- चरम = उच्च भाव।
- लेखक ने बालगोबिन के माध्यम से जीवन-सत्य को प्रकट किया है कि मृत्यु उत्सव है परमात्मा से आत्मा के मिलन का।
- भाषा सरल-सहज व सांकेतिक अर्थों से पूर्ण है।
- तूल नहीं देना = बात नहीं बढ़ाना, किसी भी मामले को नहीं उछालना।
- अवधि = समय।
- चुल्लू = अँजुरी-भर।
- अटल = नहीं टलने वाला, अडिग।
- दलील = तर्क।
- लेखक ने बालगोबिन के दृढ़ व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है।
- भाषा सरल-सहज व सांकेतिक अर्थपूर्ण है।
- अनुरूप = अनुसार।
- संबल = सहारा।
- उपवास = व्रत।
- टेक = अपनी ही करने में टिके रहना, उच्च स्वर निकालना।
- लेखक ने बालगोबिन के मस्त-मौला व्यवहार को बताया है।
- भाषा सरल-सहज व बोधगम्य है।
- सुस्त = कमजोर, थकी हुई।
- जून = समय।
- तागा = धागा।
- भोर = सुबह का समय।
- पंजर = कंकाल, मृत शरीर।
- नेम = नियम।
- लेखक ने बालगोबिन भगत की मृत्यु का अंकन किया है कि अंत समय तक वे अपने कर्म-पथ से डिगे नहीं थे।
- भाषाशैली सरल-सहज एवं बोधगम्य है।
- ‘तागा’ शब्द में तत्सम प्रयोग हुआ है।
रामवृक्ष बेनीपुरी ने ‘बालगोबिन भगत’ हिन्दी की किस विधा पर लिखा है?
उत्तर:
लेखक ने ‘बालगोबिन भगत’ हिन्दी गद्य की रेखाचित्र विधा पर लिखा है।
रामवृक्ष बेनीपुरी का गद्य में विविध साहित्य किसमें प्रकाशित है?
उत्तर:
रामवक्ष बेनीपरी का परा गद्य साहित्य ‘बेनीपरी रचनावली’ के आठ खंडों में प्रकाशित है।
रामवृक्ष बेनीपुरी विशिष्ट शैलीकार होने के कारण किस नाम से जाने जाते थे?
उत्तर:
विशिष्ट शैलीकार होने के कारण उन्हें ‘कलम का जादूगर’ कहा जाता था।
बालगोबिन गृहस्थ थे, फिर उन्हें भगत क्यों कहा जाता था?
उत्तर:
बालगोबिन गृहस्थ संत थे, उनका आचरण, सोच और प्रवृत्ति साधु-संतों जैसी थी।
बालगोबिन भगत अपने खेत की पैदावार को कहाँ और क्यों ले जाते थे?
उत्तर:
बालगोबिन खेत की पैदावार को भेंट रूप सिर पर लाद कर कबीरपंथी मठ में ले जाते थे।
लेखक के जीवन की कौनसी विशेषता प्रकट हुई है?
उत्तर:
कलाकारों तथा संत-स्वभाव के भक्तों का सम्मान करना और संगीत के प्रति गहरी रुचि रखना, लेखक के जीवन की विशेषता है।
बालगोबिन की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष क्या था?
उत्तर:
जब बालगोबिन के पुत्र की मृत्यु हुई तब भी वे संगीत-साधना में लीन थे, उनका यही व्यवहार संगीत साधना का चरम उत्कर्ष था।
बालगोबिन की पुत्रवधू की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
उनकी पुत्रवधू सुन्दर, सुशील एवं प्रबन्धिका के गुणों से युक्त थी।
भगतजी ने समाज की प्रचलित दो कौनसी महत्त्वपूर्ण मान्यताओं को चुनौती दी?
उत्तर:
भगतजी ने पतोहू के हाथों पुत्र को अग्नि दिलवाई तथा पतोहू के भाई को कह कर विधवा-विवाह करने के लिए कहा।
भगत का आत्मसम्मान किस बात से प्रकट होता है?
उत्तर:
वे गृहस्थ संत थे इसलिए गंगा-स्नान से जाते-आते किसी से माँग कर नहीं खाते थे।
बालगोबिन भगत रेखाचित्र सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बालगोबिन भगत बेटे की मृत्यु पर तल्लीनता से गाते रहे, बेटे की चिता को स्वयं आग न देकर पतोहू से ही दिलवायी और श्राद्ध की अवधि पूर्ण होते ही पतोहू के भाई को भुलाकर पतोहू को मायके भेज दिया था और कहा था कि इसका दूसरा विवाह करा देना। बालगोबिन ऐसी सामाजिक परम्पराओं और रीति-रिवाजों को पाखण्ड मानते थे। प्रस्तुत रेखाचित्र ऐसी रूढ़ियों पर प्रहार करता है।
भगत के जीवन की घटना.के आधार पर मोह तथा प्रेम में अन्तर समझाइये।
उत्तर:
प्रेम में वैराग्य होता है, मोह में नहीं। मोह में मनुष्य अपने स्वार्थ की चिन्ता करता है और प्रेम में वह प्रिय का हित देखता है। बालगोबिन भगत ने अपने व्यवहार से यह अन्तर स्पष्ट किया है। उन्होंने अपनी पतोहू के प्रति पुत्र की मृत्यु के पश्चात् मोह न प्रकट कर प्रेम प्रकट किया। यदि वे उसे अपनी सेवा के लिए रख लेते तो यह उनका मोह होता, लेकिन उन्होंने उसके भविष्य की चिन्ता और उसका जीवन सुधारने के लिए उसे दूसरा विवाह करने की सलाह दी, इससे उनका प्रेम प्रकट हुआ है।
कबीर पंथ मानव को किस प्रकार जीने की प्रेरणा देता है? ‘बालगोबिन भगत’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कबीर पंथ मानव को गृहस्थी के साथ-साथ सांसारिक प्रलोभनों से दूर रहने की प्रेरणा देता है। वह मनुष्य को सरल, सीधा, सच्चा और खरा जीवन जीने की भी प्रेरणा देता है। कबीरपंथ में अपरिग्रह को विशेष महत्त्व दिया गया है, वह आत्मा-परमात्मा का मिलन शाश्वत मानकर मोह-माया से मुक्त रहने का सन्देश देता है। कबीरपंथ कहता है कि मनुष्य अपने जीवन को साहब की संपत्ति समझे और अपने आप को प्रभु चरणों में अर्पित करने की भी प्रेरणा देता है।
लेखक द्वारा बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष किस दिन देखा गया?
अथवा
“बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया।” बालगोबिन भगत के जीवन में उस दिन कौनसी घटना घट गई, जिससे उनकी संगीत साधना का चरम उत्कर्ष देखा गया?
उत्तर:
लेखक को उनकी संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखने को मिला, जिस दिन उनके पुत्र की मृत्यु हो गयी थी। वे उस दिन सामान्य गृहस्थों की तरह विलाप न करके शव के सामने बैठकर भक्ति के पद तल्लीन होकर गा रहे थे।
‘बालगोबिन भगत’ पाठ में आये विक्रम संवत् के कैलेण्डर के नाम क्रम से लिखिए। .
उत्तर:
विक्रम संवत् के कैलेण्डर के अनुसार माहों के नाम क्रमानुसार इस प्रकार हैं-चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भाद्रपद (भादों), आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन।
‘बालगोबिन भगत’ रेखाचित्र के आधार पर बताइए कि कैसे व्यक्तियों पर ज्यादा नजर रखनी चाहिए?
उत्तर:
‘बालगोबिन भगत’ रेखाचित्र के आधार पर हमें उन व्यक्तियों या बच्चों पर विशेष रूप से नजर रखनी चाहिए जो सुस्त और बोदे होते हैं। अर्थात् जो कम बुद्धि वाले या मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, वे ही निगरानी, स्नेह और दूसरे की कृपा के अधिक हकदार होते हैं।
बालगोबिन भगत का मृत्यु के प्रति क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
बालगोबिन कबीरपंथी संत थे। वे मत्यु को दुःख का कारण न मानकर आत्मा-परमात्मा के मिलन का साधन मानते थे। इसी सोच के कारण उन्होंने पुत्र की मृत्यु पर पुत्रवधू को रोने के स्थान पर उत्सव मनाने को कहा था।
अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है-यह आप किस आधार पर कहेंगे? ‘बालगोबिन भगत’ पाठ के आधार पर बताइये।
उत्तर:
बाहरी पहनावे के आधार पर किसी व्यक्ति को ‘साधु’ नहीं कहा जा सकता है। साधु व्यक्ति परोपकारी, निर्लोभी, अपरिग्रही, माया-मोह से मुक्त, सत्यवादी, आस्तिक, सांसारिक राग-द्वेष से रहित तथा निष्कपट होता है। वह आत्मा से जुड़ा व्यक्तित्व होता है।
बालगोबिन भगत सद्गृहस्थ थे-यह आप कैसे कह सकते हो?
उत्तर:
बालगोबिन भगत सद्गृहस्थ थे-उनके परिवार में एक पुत्र और पतोहू भी थी। भगतजी अन्य गृहस्थों की तरह ही अपनी खेती-बारी करते थे। वे लोक-व्यवहार में खरे और नि:स्वार्थ भाव से पूरित थे।
‘बालगोबिन भगत’ पाठ से हमें क्या सन्देश मिलता है?
उत्तर:
‘बालगोबिन भगत’ पाठ से हमें सन्देश मिलता है कि गृहस्थ धर्म का पालन कर्मनिष्ठ रहकर करना चाहिए। ईश्वर के प्रति समर्पित हो, ऊँच-नीच के भेद को त्यागकर, नारी को पुरुष के समान समझकर और रूढ़िवादी न होकर विवेक से काम लेना चाहिए।
बालगोबिन भगत के संगीत के स्वर लोगों को किस नींद से जागने की प्रेरणा देते थे और क्यों?
उत्तर:
बालगोबिन भगत के संगीत के स्वर लोगों को सामान्य नींद से जागने की प्रेरणा न देकर, सांसारिक मोह माया की नींद से जागने की प्रेरणा देते थे, क्योंकि उनका गीत-संगीत एवं प्रभाती के स्वर प्रभु-भक्ति से पूरित होते थे।
लेखक बालगोबिन के किस गुण पर मुग्ध था?
उत्तर:
लेखक बालगोबिन के व्यक्तित्व में समाये संगीत के गान पर मुग्ध था, जो उसे हमेशा सुनने को मिलते थे। वे कबीर के सीधे-सादे पद गाते थे जो उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते थे।
बालगोबिन भगत के संगीत को लेखक ने जादू क्यों कहा है?
उत्तर:
खेतों में काम करते समय जब उनका संगीत-स्वर लोगों को सुनाई देता था तो खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ों पर खड़ी औरतें गुनगुनाने लगती थीं, हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते थे। इसलिए लेखक ने बालगोबिन भगत के संगीत को जादू कहा है।
बालगोबिन भगत अपनी पतोहू को रोने के बदले उत्सव मनाने को क्यों कह रहे थे?
उत्तर:
भगतजी का मानना था कि व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी आत्मा अपने प्रियतम परमात्मा के पास चली जाती है। विरहिणी आत्मा का परमात्मा प्रियतम से मिलन आनन्दोत्सव की घटना होती है। इसलिए वे अपनी पतोहू को रोने के बदले उत्सव मनाने को कह रहे थे।
बालगोबिन भगत अपनी पतोह को उसके भाई के साथ क्यों भेजना चाहते थे?
उत्तर:
बालगोबिन भगत समाज में प्रचलित परम्पराओं और लोक-निंदा की परवाह नहीं करते थे। वे विधवा विवाह के समर्थक थे, इसीलिए वे अपनी पतोहू को दूसरी शादी करने के लिए उसके भाई के साथ भेजना चाहते थे।
‘बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई।’ कैसे?
उत्तर:
बालगोबिन भगत प्रभु-भक्त थे। उनका जीवन भक्ति में ही बीता। वे जीवन की अन्तिम साँस तक भक्ति के पद गाते रहे। इनके साथ ही वे स्नान-ध्यान, व्रत-नियम की निश्चित क्रियाएँ अन्त तक निभाते रहे। इस प्रकार उनकी मृत्यु उन्हीं के अनुरूप हुई।
बालगोबिन भगत के गीत सबको क्यों चौंका देते थे?
उत्तर:
कबीरपंथी भगत के गीत सबको जगाने और चौंकाने की अपार क्षमता थे। रात में जब लोग अकेले होते थे तब वे उनके गीत-स्वरों पर अवश्य ध्यान देते थे। वे गीतों में पियवा’ सुनकर अवश्य चौंक पडते थे। परमात्मा हर मनुष्य के पास है। जिससे उन्हें अपनी अज्ञानता और अबोधता पर आश्चर्य होता था।
भगतजी के गायन का कौन-सा गुण आपको प्रभावित करता है?
उत्तर:
भगतजी का गायन मस्ती और तल्लीनता से भरा होता था। इसलिए जब वे गाने बैठते तो वे गाते-गाते स्वयं को भी भूल जाते। उन्हें सर्दी और कुहरे की भी याद नहीं रहती और वे स्वयं गीतमय हो जाते थे। वे गाते-गाते इतने उत्साहित और मस्त हो जाते थे कि भीषण सर्दी में भी उनके मस्तक से पसीना झलकने लगता था।
रामवृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्र ‘बालगोबिन भगत’ के आधार पर भगत का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘बालगोबिन भगत’ रेखाचित्र के लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी ने भगत अर्थात् बालगोबिन के माध्यम से उनके संत चरित्र पर प्रकाश डाला है। लेखक बचपन से ही बालगोबिन भगत को आदरणीय व्यक्ति मानते आये थे। लेखक ने इस पाठ में भगत’ के वास्तविक साधुत्व का परिचय दिया है। गृहस्थ जीवन जीते हुए भी व्यक्ति अपने कर्मों द्वारा साधु बना रह सकता है। बालगोबिन, संत कबीर की भाँति भगवान के निराकार स्वरूप को मानते थे। उनके अनुसार जो भी है वह सब ईश्वर का दिया हुआ है इसलिए अपने खेतों की पैदावार को वे पहले कबीर मठ पहुंचाते, बाद में प्रसादस्वरूप जो मिलला, वो ग्रहण करते थे।
लेखक ‘बालगोबिन भगत’ के आधार पर क्या सन्देश देते हैं?
उत्तर:
लेखक ने इस पाठ के आधार पर यह बताया है कि साधुत्व का पालन गृहस्थ जीवन में भी निभाया जा सकता है। व्यक्ति का अपने नियमों पर दृढ़ रहना, निजी आवश्यकताओं को सीमित करना, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील होना तथा मोह-माया के जाल से दूर रहने वाला व्यक्ति ही साधु हो सकता है। साधु की पहचान उसका पहनावा नहीं बल्कि उसका व्यवहार है। साधु निजी स्वार्थ के लिए कुछ नहीं करते हैं, उनके सभी कार्य परहित में होते हैं। बालगोबिन भगत भी इसी प्रवृत्ति एवं नियमों को विश्वासपूर्वक जीवन भर निभाते रहे थे।
लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
रचनाकार रामवृक्ष बेनीपुरी के जीवन एवं कर्म-साधना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में सन् 1899 में हुआ। बचपन में माता-पिता का निधन हो जाने से प्रारम्भिक जीवन कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। मैट्रिक तक की परीक्षा पास कर स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रूप से जुड़ गये। 15 वर्ष की अवस्था में उनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी। उन्होंने अनेक समाचार-पत्रों का सम्पादन किया।
बालगोबिन भगत Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में सन् 1899 में हुआ। इनके माता-पिता का देहान्त बचपन में ही हो जाने के कारण इनका प्रारम्भिक जीवन कठिनाइयों में बीता। दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सन् 1920 में राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन से सक्रिय रूप से जुड़ गये। परिणामस्वरूप वे कई बार जेल भी गये। उनका देहावसान सन् 1968 में हुआ। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में ही इनकी रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं।
उन्होंने अनेक दैनिक, साप्ताहिक और मासिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया, जिनमें ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’ और ‘नयी धारा’ उल्लेखनीय हैं। उनका पूरा साहित्य ‘बेनीपुरी रचनावली’ में प्रकाशित है। उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं – ‘पतितों के देश में’ (उपन्यास), “चिता के फूल’ (कहानी), ‘अंबपाली’ (नाटक), ‘माटी की मूरतें’ (रेखाचित्र), ‘पैरों में पंख बाँधकर’ (यात्रा वृत्तांत), ‘जंजीरें और दीवारें’ (संस्मरण) आदि।
पाठ-परिचय :
‘बालगोबिन भगत’ एक सजीव रेखाचित्र है। इस रेखाचित्र के माध्यम से लेखक ने एक ऐसे रित्र का उद्घाटन किया है जो मनुष्यता, लोक-संस्कृति और सामहिक चेतना का प्रतीक है। बालगोबिन खेती करते हुए भी कबीरपंथी साधु थे। वे वर्षा की रिमझिम में धान रोपते हुए जहाँ गीत गाते थे, वहीं सर्दियों में प्रभातफेरियाँ और गर्मियों में घर पर भक्तों के बीच पद गाते थे। वे सामाजिक परम्पराओं और रीति-रिवाजों को पाखण्ड भर मानते थे।
इसीलिए पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे तल्लीन होकर गा रहे थे। उन्होंने बेटे को आग न देकर पतोहू से ही दिलवायी थी और बिना क्रियाकर्म की रस्में निभाये पतोहू को मायके भेज दिया था और कहा था कि इसका दूसरा विवाह कर देना। इस प्रकार यह रेखाचित्र सामाजिक रूढ़ियों पर जहाँ प्रहार करता है, वहीं ग्रामीण जीवन की सजीव झाँकी भी प्रस्तुत करता है।