RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़
RBSE Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर:
लेखक को सेकण्ड क्लास के डिब्बे में आया देखकर एकान्त में पालथी मार कर बैठे नवाब साहब की आँखों में असन्तोष छा गया। उन्होंने लेखक से कोई बात नहीं की और उसकी ओर देखा भी नहीं। वे अनजान से बनकर खिड़की से बाहर की ओर झाँकने लगे। साथ ही डिब्बे की स्थिति पर गौर करने लगे। इससे लेखक को प्रतीत हुआ कि डिब्बे में बैठे नवाब साहब उनसे बातचीत करने के लिए उत्सुक नहीं हैं।
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघ कर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर:
नवाब साहब ने ऐसा इसलिए किया होगा, क्योंकि वे अपने आपको एक खानदानी रईस बताकर अपना प्रभाव जमाना चाहते थे। उनके मन में नवाबी प्रदर्शित करने का अहम्पूर्ण भाव समाया था, जिससे वे नज़ाकत और अमीरी प्रकट कर रहे थे। जब वे एकान्त में बैठे खीरा खाने की तैयारी कर रहे थे तभी लेखक के आने पर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का अवसर मिल गया और उन्होंने करीने से खीरे काटे और उन पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खा बुरक दी। दुनिया की रीति से हटकर खीरे की फाँकों को होंठों तक ले जाकर उन्हें सँघा और फिर एक-एक कर उन्हें खिड़की के बाहर फेंक दिया। इस प्रकार करके उन्होंने लेखक के मन पर लखनवी नवाबी की मिथ्या धाक जमानी चाही थी।
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
हमारे मत में बिना विचार, घटना और पात्रों के अभाव में कहानी नहीं लिखी जा सकती, क्योंकि कहानी लिखने के लिए ये तीनों बातें आवश्यक होती हैं। बिना विचार के कहानी बन ही नहीं सकती। बिना घटना के कहानी का कथानक आगे बढ़ नहीं सकता और बिना पात्रों के माध्यम से कहानी कही नहीं जा सकती। अत: यशपाल का यह कथन नयी कहानी पर व्यंग्य मात्र ही है, क्योंकि कहानी में कोई-न-कोई विचार होना उद्देश्य रूप में आवश्यक होता है। इसलिए हम यशपाल के विचार से सहमत नहीं हैं।
आप इस निबन्ध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर:
हम इस निबन्ध को नाम देना चाहेंगे जैसे-दिखावे की जिन्दगी, नवाबी शान, खानदानी रईस, सूक्ष्म भोजी आदि। रचना और अभिव्यक्ति
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
नवाब साहब सीट पर पालथी मारे आराम से बैठे थे। उन्होंने सामने तौलिये पर कच्चे-ताजे खीरे रखे। उन्होंने तौलिए पर से खीरों को उठाया और लोटे के पानी से उन्हें खिड़की के बाहर करके धोया, फिर उन्हें तौलिए से पोंछा। धोए हुए खीरे उन्होंने बिछे तौलिए पर रख लिए। जेब से चाकू निकाला। पहले उन्होंने दोनों खीरों के सिर काटे और गोद कर उनका झाग बाहर निकाला। फिर खीरों को सावधानीपूर्वक छीला और काट कर उनकी फाँकों को तौलिए पर करीने से सजाया। इसके बाद खीरों की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। अब खीरे की फाँकें खाने की तैयारी थी। खीरे के स्वाद की कल्पना में उनकी आँखें मूंद गयीं।
उत्तर:
हम मन-भावन चीजों का रसास्वादन करने के लिए अनेक प्रकार से तैयारी करते हैं। उदाहरण के लिए, खीर का रसास्वादन करने के लिए सबसे पहले खीर बनाने के लिए भगोने को साफ करते हैं। दूध को भगोने में डालकर उसे चूल्हे पर चढ़ाते हैं। जब दूध उबलने लगता है तब हम उसमें आवश्यकतानुसार चावल डाल देते हैं। चावल दूध में कुछ पकते हैं। दूध गाढ़ा होता चला जाता है। बाद में उसमें चीनी डाल देते हैं, फिर इच्छानुसार काजू-बादाम, किशमिश आदि डालकर उसे पकाते हैं। फिर जब स्वादिष्ट खीर बनकर तैयार हो जाती है, तब हम उसे दूसरे बरतन में करके उसका रसास्वादन करते हैं।
खीरे के सम्बन्ध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर:
इतिहास को पढ़ने, जानने और सुनने से पता चलता है कि नवाब वर्ग हमेशा से ही शौकीनमिजाज़ और सनकी रहा है। उदाहरण के लिए, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को जब आक्रमणकारी गिरफ्तार करने आये तो वे अपने पलंग से उठकर इसलिए उनसे लड़ नहीं पाये थे, क्योंकि उस समय जूते पहनाने वाला और तलवार उठा कर देने वाला कोई भी नौकर उनके पास नहीं था। इससे स्पष्ट होता है कि नवाब शौकीनमिजाज़ और सनकी थे।
प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सनक प्रायः नकारात्मक रूप में दिखाई देती है, परन्तु सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता सेनानी इसी सकारात्मक सनक की मनोवृत्ति से प्रभावित थे। उन्हें जिस चीज की सनक सवार हो जाती थी, उसे वे करके ही मानते थे। भारत को अंग्रेजी राज्य से मुक्त कराने की भी उन्हें सनक सवार थी। जब तक भारत आजाद नहीं हुआ तब तक वे चैन से नहीं बैठे। भाषा-अध्ययन
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए
(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर:
(क) बैठे थे – अकर्मक क्रिया
(ख) दिखाया – सकर्मक क्रिया
(ग) बैठे – अकर्मक क्रिया
करते रहना – सकर्मक क्रिया
(घ) काटना, खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
(ङ) काटे, निकाला – सकर्मक क्रिया
(च) देखा – अकर्मक क्रिया
(छ) थककर लेट गये – अकर्मक क्रिया
(ज) निकाला – सकर्मक क्रिया
उत्तर:
मातृभाषा हिन्दी में शिष्टाचार सूचक शब्द अनेक हैं। कुछ प्रमुख शब्द हैं – मान्यवर, श्रीमान्, महाशय, महोदय, कृपा करें, अनुगृहीत करें, अनुकम्पा करें, कृपया, धन्यवाद आदि।
RBSE Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers
- प्रतिकूल = विपरीत।
- निर्जन = खाली।
- नस्ल = जाति।
- विघ्न = कठिनाई।
- सहसा = अचानक।
- लेखक नया कुछ भी लिखने हेतु इस तरह की यात्रा व शौक रखते हैं ताकि उन्हें कोई विचार मिल जाये। इसका पता चलता है।
- भाषा हिन्दी-अंग्रेजी-उर्दू मिश्रित है। समय व प्रसंगानुसार भाषाशैली का प्रयोग हुआ है।
- ठाला = खाली।
- किफायत = मितव्ययता, कम खर्च करना।
- गवारा स्वीकार न होना।
- सफेदपोश = भद्र।
- मँझला = मध्य, सेकेंड।
- दर्जा = क्लास, डब्बा।
- सफर = यात्रा।
सेकेंड क्लास में सफर करना उनके लिए सम्मान की बात नहीं मानी जा सकती है।
- लेखक ने लेखक जाति की खाली बैठे रहने पर कल्पना करने की आदत को उजागर किया है।
- भाषा शैली हिन्दी-अंग्रेजी-संस्कृत-उर्दू मिश्रित है। सहज एवं सरल भाव से पूर्ण है।
- गौर करना = ध्यान देना।
- आदाब-अर्ज = उर्दू में अभिवादन का एक तरीका।
- भाँपना = समझ जाना।
- शराफत = सज्जनता।
- गुमान = अभिमान, घमण्ड।
- लथेड़ = लपेटना।
- किबला = श्रदेय या वयस्क पुरुष।
- लेखक ने नवाबी दिमाग के प्रदर्शन की भावना को प्रकट किया है।
- उर्दू-हिन्दी का बड़ा ही सुन्दर प्रयोग हुआ है।
- करीने-से = तरीके से।
- फाँक = टुकड़ा।
- बुरकना = छिड़कना।
- स्फुरण = फड़कना, हिलना।
- प्लावित = पानी भर जाना।
- लेखक नवाबों की असलियत एवं उनके दिखावे पर प्रकाश डाल रहे हैं।
- भाषा शैली सरल-सहज व हिन्दी-उर्दू शब्दों से मिश्रित है।
- सतृष्ण = तृष्णा या इच्छा के साथ।
- फाँक = टुकड़ा।
- दीर्घ = लम्बी।
- मुंदना = बंद होना।
- रसास्वादन = रस का स्वाद लेना।
- लेखक ने नवाबी रईसी तरीकों पर प्रकाश डाला है।
- भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित है। सरल व सहज भाव है।
- गौर करना = ध्यान देना।
- संतुष्ट होना = प्राप्त होने का भाव।
- सूक्ष्म = अत्यन्त छोटा।
- नफीस = बढ़िया।
- एब्स्ट्रैक्ट = जिसका भौतिक अस्तित्व ना हो।
- उदर = पेट।
- तृप्ति = पूर्ति।
- लजीज = स्वादिष्ट।
- सकील = आसानी से न पचने वाला।
- मेदा = पेटा पर, पाचन शक्ति पर।
- चक्षु = आँख।
- लेखक ने ‘नयी कहानी’ पर आक्षेप लगाया कि वह बिना विचार, घटना, पात्रों की, लेखक बनने की इच्छा से लिखी गई कहानी होती है।
- लेखक का व्यंग्य नये कहानीकारों की विषय-वस्तु को लेकर है।
- भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित तथा सहज-सरल है।
लेखक यशपाल किस धारा से जुड़ाव के कारण जेल गए?
उत्तर:
वे स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ाव के कारण जेल गए।
यशपाल का जेल में किससे परिचय हुआ?
उत्तर:
जेल में उनका परिचय भगतसिंह और सुखदेव से हुआ।
लेखक रेलगाड़ी के किस डब्बे में क्या सोच कर चढ़े?
उत्तर:
लेखक नयी कहानी के कथानक तथा प्राकृतिक दृश्यों के अवलोकन हेतु खाली डब्बा समझ सेकण्ड क्लास में चढ़ गए।
लेखक को नवाब का कौनसा बदला हुआ भाव अच्छा नहीं लगा?
उत्तर:
लेखक को देखकर अनमने भाव से नवाब का खिड़की से बाहर देखना फिर भाव बदल खीरा खाने के लिए पूछना अच्छा नहीं लगा।
लेखक ने खीरा खाने के लिए मना क्यों किया?
उत्तर:
लेखक ने देखा कि नवाब सिर्फ औपचारिकता निभाने तथा कोरा शिष्टाचार हेतु खाने को पूछ रहा है इसलिए . मना किया।
नवाब साहब ने आम आदमियों की तरह खीरा क्यों नहीं खाया? .
उत्तर:
क्योंकि वे लेखक को अपनी नवाबी शान, खानदानी तहजीब, लखनवी नफासत और नजाकत दिखाना चाहते थे।
कैसे कह सकते हैं कि नवाब साहब आम इंसान नहीं थे?
उत्तर:
नवाब साहब ने आम इंसान की तरह खीरा नहीं खाया वरन् उसकी सुगन्ध और स्वाद से ही अपना पेट . भर, डकार भी ले ली थी।
लेखक ने नयी कहानी का लेखक किसे कहा?
उत्तर:
लेखक ने लखनवी नवाबों जैसे नजाकत और नफासत वालों को नयी कहानी का लेखक कहा।
लेखक ने लखनवी नवाब के अंदाज की तुलना किस प्रकार नयी कहानी से की? .
उत्तर:
लेखक ने नवाब को सिर्फ सुगन्ध व स्वाद से आये मुँह से भरे पानी से पेट भरने तथा डकार लेने की प्रक्रिया की तुलना नयी कहानी से की।
लेखक के अनुसार नयी कहानी के लेखक किस प्रकार के हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार नयी कहानी के लेखक बिना विचार, भाव तथा घटना और पात्रों के कहानी लिखते हैं सिर्फ लेखक बनने के लिए।
लेखक ने नयी कहानी पर किस भावना को व्यक्त किया?
उत्तर:
लेखक ने नयी कहानी के बिना विचार, भाव, पात्र, कथानक के ऊपर व्यंग्य भावना व्यक्त की।
‘यशपाल ने पतनशील सामन्ती वर्ग पर कटाक्ष किया है।’ इस कथन को लखनवी अंदाज’ कहानी के आधार पर उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
‘लखनवी अंदाज़’ कहानी में यशपाल ने लखनऊ के एक नवाब साहब की बनावटी जीवन शैली का कथानक उपस्थित किया है। नवाब साहब ने खीरों को छीलकर और नमक-मिर्च लगाकर केवल सूंघा और कहा कि इसका स्वाद लाजवाब है। खीरे खाये नहीं फेंक दिये। इस तरह दिखावटी रईस बनने का आचरण होने से लेखक ने सामन्ती वर्ग पर कटाक्ष किया है।
‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर नवाब साहब के व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत व्यंग्यात्मक कहानी के प्रमुख पात्र नवाब साहब के व्यक्तित्व में अनेक विशेषताएँ समायी हुई हैं। वे मिलनसारिता से रहित, सनकी स्वभाव वाले, अकड़ दिखाने वाले, झूठी शान-शौकत का दिखावा करने वाले और नवाबी नफासत व नजाकत से पूरित व्यक्ति थे।
नवाब साहब ने खीरे को खाने योग्य किस प्रकार बनाया?
उत्तर:
नवाब साहब ने खीरों को पानी से धोकर, तौलिए से पौंछा, फिर चाकू से खीरों के सिर काटकर उन्हें गोद कर झाग निकाला, फिर बड़ी सावधानी से उन्हें छीलकर फाँकों को करीने से तौलिये पर सजाकर उन पर जीरा, नमक मिला और मिर्च झिड़ककर खाने योग्य बनाया।
यशपालजी के व्यंग्य लखनवी अंदाज़’ के लिए आप अन्य क्या शीर्षक देना चाहेंगे? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर:
यशपालजी के व्यंग्य ‘लखनवी अंदाज़’ के लिए अन्य शीर्षक के रूप में ‘खयाली भोजन’ शीर्षक देना चाहेंगे, क्योंकि लखनवी नवाब खीरे के भोग के नाम पर केवल उसकी गंध और स्वाद लेना अपनी शान समझते हैं। इस खयाली अन्दाज से पेट नहीं भरा जा सकता है। इसे ‘नवाबी सनक’ शीर्षक भी दिया जा सकता है।
लेखक ने क्या सोचकर सेकण्ड क्लास का टिकट लिया था?
उत्तर:
लेखक ने भीड़ से बचने के लिए, एकान्त में नयी कहानी के बारे में सोच सकने के लिए और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के विचार से ही सेकण्ड क्लास का टिकट लिया था।
लेखक ने नवाब के चेहरे पर असंतोष का भाव देखकर क्या बात सोची?
उत्तर:
लेखक ने नवाब के चेहरे पर असंतोष का भाव देखकर यह बात सोची कि हो सकता है कि यह भी नयी कहानी की सूझ की चिंता में हो या खीरे जैसे अपदार्थ वस्तु या शौक करते देखे जाने पर संकोच में हो।
डिब्बे में बैठे पूर्व यात्री और लेखक का मिलन कैसा रहा?
उत्तर:
डिब्बे में बैठे पूर्व यात्री और लेखक का मिलन नहीं मिलने जैसा ही रहा। दोनों ने एक-दूसरे की उपस्थिति को देखकर बाधा समझा और आपसी संगति में उत्साह नहीं दिखाया। इसलिए पहली भेंट में ही एक-दूसरे से नजरें चुरा लीं।
लेखक और नवाब साहब ने एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
लेखक और नवाब साहब ने एक-दूसरे के साथ बेगानेपन और अवांछितों जैसा व्यवहार किया। पहले नवाब ने मुँह फेरा। बाद में लेखक ने भी आत्मसम्मान की दृष्टि से अपना ध्यान हटा लिया।
खिड़की से बाहर नवाब साहब को झाँकते देखकर लेखक ने क्या अनुमान लगाया?
उत्तर:
लेखक ने अपनी कल्पनाशीलता के आधार पर अनमान लगाया कि एकान्त और किफायत के विचार से नवाब साहब ने सैकण्ड क्लास का टिकट खरीद लिया हो। अब उन्हें गवारा नहीं हो रहा हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें इस तरह यात्रा करते देखे।
लेखक को नवाब साहब का कौनसा भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा?
उत्तर:
नवाब साहब ने लेखक से पहले तो बेगानेपन का व्यवहार किया, बाद में लेखक से बातचीत करते हुए सहसा उससे खीरा खाने के लिए कहा। लेखक को उनका यह भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा।
“आज का आदमी भावनाओं से जुड़ने की बजाय औपचारिकता निभाने में ही विश्वास करता है।” कथ्य को ‘लखनवी अन्दाज’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘लखनवी अन्दाज़’ कहानी में नवाब साहब ने कुछ सोचकर बातचीत प्रारम्भ करने की दृष्टि से लेखक से कहा, ‘आदाब-अर्ज, जनाब, खीरे का शौक फरमाएँगे?’ यह सुनकर लेखक ने कहा कि-‘शुक्रिया किबला, शौक फरमाएँ।’ इस प्रकार दोनों के कथनों से औपचारिकता निर्वहन ही स्पष्ट होता है।
“नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गये।” कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन में लेखक ने नवाब साहब की खानदानी तहजीब और नज़ाकत पर व्यंग्य किया है। वे इतने . नाजक थे कि खीरा छीलने, उन पर नमक-मिर्च बरकने और संघ कर फेंकने में ही थक कर उन्हें
‘एब्स्टैक्ट’ शब्द के माध्यम से लेखक ने किन-किन पर व्यंग्य किया है?
उत्तर:
‘एब्स्ट्रैक्ट’ शब्द का अर्थ है-अशरीरी या अमूर्त। इस शब्द के माध्यम से लेखक ने नवाबों की काल् िक जीवन-शैली तथा नयी कहानी के लेखकों की अतिसूक्ष्म धारणाओं पर व्यंग्य किया है।
‘ये हैं नयी कहानी के लेखक’ कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक ने व्यंग्य आधार पर स्पष्ट किया कि जब खीरे की गंध और स्वाद मात्र से ही पेट भर जाने की डकार आ सकती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के, लेखक की कोरी कल्पना मात्र अथवा इच्छा मात्र से ‘लखनवी अंदाज़’ में नयी कहानी भी लिखी जा सकती है।
‘लखनवी अन्दाज’ कहानी से हमें क्या सन्देश मिलता है?
उत्तर:
लखनवी अन्दाज़’ कहानी से हमें सन्देश मिलता है कि हमें दिखावटी जीवन-शैली से हमेशा दर रहकर वास्तविकता का सामना करना चाहिए, क्योंकि जीवन में स्थूल और सूक्ष्म दोनों का ही महत्त्व है। जो लोग सनक भरी आदतों से पेट भरने का दिखावा करते हैं, वे अवास्तविक हैं। चाहे नयी कहानी के लेखन की ही बात क्यों न हो।
‘नयी कहानी’ और ‘लखनवी अंदाज में आपको क्या समानता दिखाई देती है?
उत्तर:
‘नयी कहानी’ और ‘लखनवी अंदाज़’ दोनों सूक्ष्म काल्पनिक और अशरीरी हैं। दोनों ही वास्तविकता को महत्त्व न देकर बनावटी जीवन-शैली को महत्त्व देते हैं। नवाब साहब झूठी नवाबी के कारण बिना खीरा खाये अपना पेट भरना चाहते हैं तो नये कहानीकार बिना घटना, पात्र और विचार के कहानी लिखना चाहते हैं। दोनों ही यथार्थ की उपेक्षा कर परजीवी संस्कृति की आराधना करते हैं।
लखनवी अंदाज’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लखनऊ रियासतों का गढ़ माना जाता रहा है। वहाँ के रईस अपनी शानो-शौकत को काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् भी उनके अंदाज में कहीं कोई कमी नहीं आई। रियासतें खत्म हो गईं लेकिन उनके नाज नखरे अभी भी बरकरार है। इसी विषय पर यशपाल जी ने उस सामंती वगे पर कटाक्ष किया है, जो वास्तविकता से बेखबर बनावटी जीवन जीते हैं। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली पर व्यंग्य किया है। रेलगाड़ी के डिब्बे में लखनऊ का एक नवाब मिलता है।
लखनवी अंदाज’ कहानी में लेखक ने किस विषय पर व्यंग्य किया और क्यों?
अथवा
‘लखनवी अंदाज’ कहानी यशपाल की व्यंग्य रचना क्यों कही जाती है? स्पा कीजिए।
उत्तर:
यशपाल जी ने ‘लखनवी अंदाज’ व्यंग्य यह साबित करने के लिए ही लिखा था कि बिना विचार, कथानक, पात्र एवं भाव के कहानी नहीं लिखी जा सकती है, लेकिन ‘नयी कहानी’ के लेखक सिर्फ लेखक बनने के लिए बिना भाव-विचार, कथानक-पात्रों के कहानी लिखते हैं और जिसे ‘नयी कहानी’ के नाम से पुकारा जाता है। दूसरी तरफ यशपाल जी की एक स्वतंत्र रचना के रूप में भी इस कहानी को पढ़ा जा सकता है क्योंकि ‘लखनवी अंदाज’ दिखावा पसंद संस्कृति वाले लोगों पर भी व्यंग्य करती है।
लेखक यशपाल के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर संक्षिप्त में प्रकाश डालिए।
अथवा
लेखक यशपाल के जीवन-कर्म पर प्रकाश डालते हुए संक्षेप में उनके काव्य संग्रहों के नाम भी बताइये।
उत्तर:
लेखक यशपाल का जन्म सन् 1903 में पंजाब के फीरोजपुर छावनी में हुआ था। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कांगड़ा में ग्रहण करने के बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने लाहौर कॉलेज से की। कॉलेज में अध्ययन के दौरान इनका परिचय भरत सिंह और सुखदेव से हुआ। जहाँ से ये स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ गये। जिसके कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। इनकी रचनाओं में आम आदमी की पीड़ा व संत्रास मौजूद है।
लखनवी अंदाज़ Summary in Hindi
उनके सामने दो ताजा-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। बैठे नवाब साहब ने लेखक से कहा, “जनाब खीरे का शौक फरमाएंगे।” लेखक ने शुक्रिया कहकर मना कर दिया। नवाब साहब ने तौलिया बिछाकर खीरे काटे। फिर वे एक-एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गये, सँघा और खिड़की के बाहर फेंक दिया। फिर गर्व से लेखक की ओर देखा। मानो कह रहे हों, यह है खानदानी रईसों का खीरा खाने का तरीका। इसके बाद नवाब साहब ने जोरदार डकार ली। वे लेखक की ओर देखकर बोले-खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन मेदे पर बोझ डाल देता है। नवाब साहब की बात सुनकर लेखक को नयी कहानी लिखने का विचार मिल गया।