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RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

RBSE Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर:
लेखक को सेकण्ड क्लास के डिब्बे में आया देखकर एकान्त में पालथी मार कर बैठे नवाब साहब की आँखों में असन्तोष छा गया। उन्होंने लेखक से कोई बात नहीं की और उसकी ओर देखा भी नहीं। वे अनजान से बनकर खिड़की से बाहर की ओर झाँकने लगे। साथ ही डिब्बे की स्थिति पर गौर करने लगे। इससे लेखक को प्रतीत हुआ कि डिब्बे में बैठे नवाब साहब उनसे बातचीत करने के लिए उत्सुक नहीं हैं।
प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघ कर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर:
नवाब साहब ने ऐसा इसलिए किया होगा, क्योंकि वे अपने आपको एक खानदानी रईस बताकर अपना प्रभाव जमाना चाहते थे। उनके मन में नवाबी प्रदर्शित करने का अहम्पूर्ण भाव समाया था, जिससे वे नज़ाकत और अमीरी प्रकट कर रहे थे। जब वे एकान्त में बैठे खीरा खाने की तैयारी कर रहे थे तभी लेखक के आने पर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का अवसर मिल गया और उन्होंने करीने से खीरे काटे और उन पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खा बुरक दी। दुनिया की रीति से हटकर खीरे की फाँकों को होंठों तक ले जाकर उन्हें सँघा और फिर एक-एक कर उन्हें खिड़की के बाहर फेंक दिया। इस प्रकार करके उन्होंने लेखक के मन पर लखनवी नवाबी की मिथ्या धाक जमानी चाही थी।
प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
हमारे मत में बिना विचार, घटना और पात्रों के अभाव में कहानी नहीं लिखी जा सकती, क्योंकि कहानी लिखने के लिए ये तीनों बातें आवश्यक होती हैं। बिना विचार के कहानी बन ही नहीं सकती। बिना घटना के कहानी का कथानक आगे बढ़ नहीं सकता और बिना पात्रों के माध्यम से कहानी कही नहीं जा सकती। अत: यशपाल का यह कथन नयी कहानी पर व्यंग्य मात्र ही है, क्योंकि कहानी में कोई-न-कोई विचार होना उद्देश्य रूप में आवश्यक होता है। इसलिए हम यशपाल के विचार से सहमत नहीं हैं।
प्रश्न 4.
आप इस निबन्ध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर:
हम इस निबन्ध को नाम देना चाहेंगे जैसे-दिखावे की जिन्दगी, नवाबी शान, खानदानी रईस, सूक्ष्म भोजी आदि। रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
नवाब साहब सीट पर पालथी मारे आराम से बैठे थे। उन्होंने सामने तौलिये पर कच्चे-ताजे खीरे रखे। उन्होंने तौलिए पर से खीरों को उठाया और लोटे के पानी से उन्हें खिड़की के बाहर करके धोया, फिर उन्हें तौलिए से पोंछा। धोए हुए खीरे उन्होंने बिछे तौलिए पर रख लिए। जेब से चाकू निकाला। पहले उन्होंने दोनों खीरों के सिर काटे और गोद कर उनका झाग बाहर निकाला। फिर खीरों को सावधानीपूर्वक छीला और काट कर उनकी फाँकों को तौलिए पर करीने से सजाया। इसके बाद खीरों की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। अब खीरे की फाँकें खाने की तैयारी थी। खीरे के स्वाद की कल्पना में उनकी आँखें मूंद गयीं।
(ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर:
हम मन-भावन चीजों का रसास्वादन करने के लिए अनेक प्रकार से तैयारी करते हैं। उदाहरण के लिए, खीर का रसास्वादन करने के लिए सबसे पहले खीर बनाने के लिए भगोने को साफ करते हैं। दूध को भगोने में डालकर उसे चूल्हे पर चढ़ाते हैं। जब दूध उबलने लगता है तब हम उसमें आवश्यकतानुसार चावल डाल देते हैं। चावल दूध में कुछ पकते हैं। दूध गाढ़ा होता चला जाता है। बाद में उसमें चीनी डाल देते हैं, फिर इच्छानुसार काजू-बादाम, किशमिश आदि डालकर उसे पकाते हैं। फिर जब स्वादिष्ट खीर बनकर तैयार हो जाती है, तब हम उसे दूसरे बरतन में करके उसका रसास्वादन करते हैं।
प्रश्न 6.
खीरे के सम्बन्ध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर:
इतिहास को पढ़ने, जानने और सुनने से पता चलता है कि नवाब वर्ग हमेशा से ही शौकीनमिजाज़ और सनकी रहा है। उदाहरण के लिए, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को जब आक्रमणकारी गिरफ्तार करने आये तो वे अपने पलंग से उठकर इसलिए उनसे लड़ नहीं पाये थे, क्योंकि उस समय जूते पहनाने वाला और तलवार उठा कर देने वाला कोई भी नौकर उनके पास नहीं था। इससे स्पष्ट होता है कि नवाब शौकीनमिजाज़ और सनकी थे।

प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सनक प्रायः नकारात्मक रूप में दिखाई देती है, परन्तु सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता सेनानी इसी सकारात्मक सनक की मनोवृत्ति से प्रभावित थे। उन्हें जिस चीज की सनक सवार हो जाती थी, उसे वे करके ही मानते थे। भारत को अंग्रेजी राज्य से मुक्त कराने की भी उन्हें सनक सवार थी। जब तक भारत आजाद नहीं हुआ तब तक वे चैन से नहीं बैठे। भाषा-अध्ययन

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए
(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर:
(क) बैठे थे – अकर्मक क्रिया
(ख) दिखाया – सकर्मक क्रिया
(ग) बैठे – अकर्मक क्रिया
करते रहना – सकर्मक क्रिया
(घ) काटना, खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
(ङ) काटे, निकाला – सकर्मक क्रिया
(च) देखा – अकर्मक क्रिया
(छ) थककर लेट गये – अकर्मक क्रिया
(ज) निकाला – सकर्मक क्रिया
पाठेतर सक्रियता –
‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘आदाब अर्ज……….शौक फरमाएँगे’ जैसे कथ्य शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
मातृभाषा हिन्दी में शिष्टाचार सूचक शब्द अनेक हैं। कुछ प्रमुख शब्द हैं – मान्यवर, श्रीमान्, महाशय, महोदय, कृपा करें, अनुगृहीत करें, अनुकम्पा करें, कृपया, धन्यवाद आदि।

RBSE Class 10 Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

सप्रसंग व्याख्याएँ –
1. गाड़ी छूट रही थी। सेकण्ड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, जरा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से की आँखों में एकान्त चिन्तन में विन का असन्तोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिन्ता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।
कठिन शब्दार्थ :
  • प्रतिकूल = विपरीत।
  • निर्जन = खाली।
  • नस्ल = जाति।
  • विघ्न = कठिनाई।
  • सहसा = अचानक।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया हुआ है। इसमें लेखक अपनी एक छोटी-सी यात्रा के विषय में बता रहे हैं।
व्याख्या – लेखक यशपाल ने बताया कि नई कहानी के बारे में सोचने व प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के लिए वे ट्रेन का टिकट लेते हैं। गाड़ी छूट ही रही थी। सेकंड क्लास का छोटा डब्बा जो कि यात्रियों से खाली लग रहा था, उसे देख उसमें चढ़ गए। लेखक ने जैसा सोचा था उसके विपरीत वह डब्बा खाली नहीं था। ट्रेन की एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी जाति के एक भद्र सज्जन बहुत ही आराम से पालथी मार कर सीट पर बैठे थे। उनके सामने तौलिये पर ताजे, चिंकने दो खीरे रखे हुए थे।
डब्बे में सहसा लेखक के आ जाने से नवाब की एकांतप्रियता में कुछ विघ्न पड़ा, जिसके कारण नवाब के चेहरे पर असंतोष की भावना या कुछ नाराजगी के भाव प्रकट हुए। लेखक को नवाब का यह अंदाज ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह भी उनकी तरह कोई नयी कहानी लिखने के विचार से हो या फिर खीरे जैसे अपदार्थ को खाने का शौक रखे जाने, जो लेखक को पता चल गया इस संकोच में चेहरे की भंगिमा बदल रहा हो। यह सब . अनुमान लेखक अपने मन में विचार कर रहे हैं।’
विशेष :
  1. लेखक नया कुछ भी लिखने हेतु इस तरह की यात्रा व शौक रखते हैं ताकि उन्हें कोई विचार मिल जाये। इसका पता चलता है।
  2. भाषा हिन्दी-अंग्रेजी-उर्दू मिश्रित है। समय व प्रसंगानुसार भाषाशैली का प्रयोग हुआ है।
2. ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। सम्भव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकण्ड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मैंझले दर्जे में सफर करता देखे।… अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?
कठिन शब्दार्थ :
  • ठाला = खाली।
  • किफायत = मितव्ययता, कम खर्च करना।
  • गवारा स्वीकार न होना।
  • सफेदपोश = भद्र।
  • मँझला = मध्य, सेकेंड।
  • दर्जा = क्लास, डब्बा।
  • सफर = यात्रा।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने एक छोटी सी यात्रा का वर्णन किया है, जिसमें उनके साथ लखनवी नवाब भी थे।
व्याख्या – लेखक अपने विषय में बताते हुए कहते हैं कि खाली बैठे रहने के कारण कल्पना करते रहने की उनकी साहब की बदली हई भंगिमा तथा उनके आने से उत्पन्न हई संकोच व असुविधा के बारे में लेखक सोचने लगे। हो सकता है कि नवाब साहब ने कम खर्च करने के उद्देश्य से सेकेंड क्लास का टिकिट खरीद लिया हो और अब एक सज्जन के उनके इस तरह सफर किये जाने को देख लेने पर उन्हें स्वीकार नहीं हो रहा है। अर्थात् लखनऊ के नवाब अपनी रईसी व शानोशौकत के लिए काफी मशहूर माने जाते हैं।
सेकेंड क्लास में सफर करना उनके लिए सम्मान की बात नहीं मानी जा सकती है।
ऐसा ही लेखक सोच रहे हैं और साथ ही अनुमान भी लगा रहे हैं कि अकेले सफर करते नवाब ने समय व्यतीत करने के लिए खीरे खरीद लिये होंगे। लेकिन अब किसी दूसरे भद्र पुरुष या सज्जन के सामने वे खीरे कैसे खा सकते हैं। क्योंकि स्वयं काट-छील कर खीरे खाना नवाबी शान के खिलाफ है। लेखक ऐसा ही अनुमान नवाब की मुख-मुद्रा को देख कर लगा रहे थे।
विशेष :
  1. लेखक ने लेखक जाति की खाली बैठे रहने पर कल्पना करने की आदत को उजागर किया है।
  2. भाषा शैली हिन्दी-अंग्रेजी-संस्कृत-उर्दू मिश्रित है। सहज एवं सरल भाव से पूर्ण है।
3. हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर करते रहे। ‘ओह’, नवाब साहब ने सहसा हमें संबोधन किया, ‘आदाब-अर्ज’, जनाब, खीरे का शौक फरमाएँगे? नवाब साहब का सहसा भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। भाँप लिया, आप शसफत का गुमान बनाए रखने के लिए हमें भी मामली लोगों की हरकत में लथेड लेना चाहते हैं। जवाब दिया. ‘शक्रिय ब दिया, ‘शुक्रिया, किबला शौक फरमाएँ।’
कठिन शब्दार्थ :
  • गौर करना = ध्यान देना।
  • आदाब-अर्ज = उर्दू में अभिवादन का एक तरीका।
  • भाँपना = समझ जाना।
  • शराफत = सज्जनता।
  • गुमान = अभिमान, घमण्ड।
  • लथेड़ = लपेटना।
  • किबला = श्रदेय या वयस्क पुरुष।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक नवाब साहब की सभी भाव-भंगिमाओं पर नजर डाल रहे हैं।
व्याख्या – लेखक यशपाल बता रहे हैं कि नवाब साहब की आजादी में दखल देने हेतु जैसे ही लेखक ने डब्बे में प्रवेश किया। नवाब साहब की मुख-मुद्रा ही बदल गई। लेखक आंखों के किनारे से नवाब साहब की प्रत्येक हरकत पर नजर रखे हुए थे। नवाब साहब कुछ देर तक तो गाड़ी की खिड़की से बाहर देख कर स्थिति को देखते रहे और सोचते रहे। अचानक उन्होंने ‘ओह’ कह कर लेखक को सम्बोधित किया। ऐसा करने के पीछे यह दिखाना था कि उन्हें अभी अचानक ही ध्यान आया कि उनके साथ डब्बे में कोई और भी है।
नवाब साहब ने लखनवी अंदाज में लेखक का अभिवादन किया और पूछा कि क्या वह खीरा खायेंगे? नवाब साहब का अचानक इस तरह बदल जाना लेखक को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने इसके पीछे की सोच नवाब की क्या है, यह समझ लिया कि नवाब साहब शराफत, सादगी का घमण्ड बनाये रखते हुए मामूली लोगों को इसमें लपेटना चाहते हैं। ताकि हाँ कहने पर वे उस खीरे को देकर दानी बन जायें और अपनी रईसी व बड़प्पन को प्रदर्शित करें। लेखक उनकी इस चाल को समझकर खीरा लेने से मना करते हैं और कहते हैं कि आप ही खाइये।
विशेष :
  1. लेखक ने नवाबी दिमाग के प्रदर्शन की भावना को प्रकट किया है।
  2. उर्दू-हिन्दी का बड़ा ही सुन्दर प्रयोग हुआ है।
4. नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्जी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नजरों से बच सकने के खयाल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं। नवाब साहब ने फिर एक बार हमारी ओर देख लिया, ‘वल्लाह, शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है।”
कठिन शब्दार्थ :
  • करीने-से = तरीके से।
  • फाँक = टुकड़ा।
  • बुरकना = छिड़कना।
  • स्फुरण = फड़कना, हिलना।
  • प्लावित = पानी भर जाना।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने खीरे काटने से लेकर नमक-मिर्च लगाने तक की प्रक्रिया बताई है।
व्याख्या – लेखक के साथ यात्रा कर रहे लखनवी नवाब ने बहुत ही तरीके से खीरे की फाँक की अर्थात् उसके टुकड़े किये। उसके पश्चात् उन टुकड़ों पर जीरा-नमक-लाल मिर्च का पाउडर बहुत ही आराम से छिड़क दिया। इन सारी प्रक्रियाओं को करते समय उनके चेहरे की भाव-मुद्राएँ और उनके जबड़ों के हिलने-फड़कने से स्पष्ट पता चल रहा था कि नवाब साहब का मुँह खीरे के रस के स्वाद से मुँह में पानी आ रहा था। लेखक उनकी सारी भंगिमाएँ देखते हुए सोचते हैं कि ये लोग दिखावे के लिए अमीर बनते हैं, देने का नाटक करते हैं।
लेकिन लोगों की नजरों से बच कर यहाँ बैठने से इनकी सारी असलियत सामने आ गई है। कहने का तात्पर्य है कि देने का कहना सिर्फ इनका दिखावा होता है। असलियत में ये लोग अभिमानी होते हैं। यह सब सोचते हुए लेखक को नवाब साहब ने पुनः कहा कि यह लखनऊ का बहुत ही अच्छा बालम खीरा (खीरे की किस्म) है इसलिए आप लीजिए। लेखक जब एक बार मना कर चुके थे तो अपने आत्म-सम्मान को बनाये रखने हेतु उन्होंने पुनः मना कर दिया।
विशेष :
  1. लेखक नवाबों की असलियत एवं उनके दिखावे पर प्रकाश डाल रहे हैं।
  2. भाषा शैली सरल-सहज व हिन्दी-उर्दू शब्दों से मिश्रित है।
5. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निःश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनन्द में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का छूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए। नवाब साहब ने खीरे की सब फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आँखों से हमारी ओर देख लिया, मानो कह रहे हों यह है खानदानी रईसों का तरीका!
कठिन शब्दार्थ :
  • सतृष्ण = तृष्णा या इच्छा के साथ।
  • फाँक = टुकड़ा।
  • दीर्घ = लम्बी।
  • मुंदना = बंद होना।
  • रसास्वादन = रस का स्वाद लेना।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने रईसों के खीरे खाने के खानदानी तरीकों को बताया है।
व्याख्या – लेखक नवाब साहब के सारे क्रिया-कलापों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। नवाब साहब ने बड़ी इच्छा से अपनी आंखों द्वारा नमक-मिर्च लगी चमकते खीरे के टुकड़ों को देखा। फिर खिड़की से बाहर की ओर देखा। खिड़की से बाहर की ओर देखते हुए लम्बी साँस भरते हैं मानो अपनी कोई बड़ी इच्छा पूरी कर रहे हैं। खीरे की एक फाँक को उठाकर होठों तक ले गए, फाँक को सूंघा, उसका स्वाद लेने का जो काल्पनिक आनन्द था उसके अतिरेक में उनकी आँखें बंद हो गयीं।
फांक को खाने के स्वाद में मुँह में भर आये पानी को गटक लिया, जब नवाब साहब ने फाँक का काल्पनिक स्वाद पूरी तरह से ले लिया तब उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसी तरह नवाब साहब खीरे की प्रत्येक फाँक को नाक व होठों के पास ले जाकर, बड़ी लालसा से उसके रस का आनन्द लेकर एक-एक करके खिड़की से बाहर फेंकते गए। सारी फाँकों को फेंकने के पश्चात् नवाब साहब ने तौलिए से होठों तक आये पानी को तथा हाथों को पोंछ लिया। फिर गर्व तथा अभिमान की लालिमा से भरी आँखों से लेखक की तरफ देखा- मानो लेखक को बताना और दिखाना चाह रहे हों कि हमारा खानदानी रईसों का यही तरीका होता है। हम सिर्फ देख, सूंघ कर ही स्वाद ले लेते हैं और फिर उस वस्तु को फेंक देते हैं।
विशेष :
  1. लेखक ने नवाबी रईसी तरीकों पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित है। सरल व सहज भाव है।
6. हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरें की सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से सन्तुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका जरूर कहा जा सकता है। परन्तु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लजीज होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’ ज्ञान-चक्षु खुल गए! पहचाना-ये हैं नयी कहानी के लेखक! खीरे की सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार आ सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के.लेखक की इच्छा मात्र से ‘नयी कहानी’ क्यों नहीं बन सकती?
कठिन शब्दार्थ :
  • गौर करना = ध्यान देना।
  • संतुष्ट होना = प्राप्त होने का भाव।
  • सूक्ष्म = अत्यन्त छोटा।
  • नफीस = बढ़िया।
  • एब्स्ट्रैक्ट = जिसका भौतिक अस्तित्व ना हो।
  • उदर = पेट।
  • तृप्ति = पूर्ति।
  • लजीज = स्वादिष्ट।
  • सकील = आसानी से न पचने वाला।
  • मेदा = पेटा पर, पाचन शक्ति पर।
  • चक्षु = आँख।
प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इसमें लेखक खीरे द्वारा नवाबी रहस्य को प्रकट कर रहे हैं।
व्याख्या – लेखक ने नवाब साहब की प्रतिक्रियाओं के विषय में बताते हुए कहा कि मैं उनकी सारी गतिविधियों पर गौर कर रहा था अर्थात् ध्यान दे रहा था कि वे किस तरह खीरा इस्तेमाल करते, किस तरीके से उसकी सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से सन्तुष्ट हो रहे थे। लेखक बताते हैं कि उनका यह तरीका सूक्ष्म, बढ़िया या जिसका कोई भौतिक स्वरूप ना हो ऐसा तरीका जरूर कहा जा सकता है परन्तु क्या इस काल्पनिक स्वाद व सुगन्ध से पेट भर सकता है? तभी नवाब साहब की तरफ से भरे पेट होने की डकार का स्वर सुनाई देता है, साथ ही नवाब साहब लेखक की तरफ देख कर कहते हैं कि खीरा स्वादिष्ट जरूर होता है लेकिन यह आसानी से पचता नहीं है तथा पेट की पाचन शक्ति पर पचने का अधिक बोझ डाल देता है।
नवाब साहब के ऐसा कहते ही लेखक के ज्ञान की आँखें खुल जाती हैं और उनके मुँह से व्यंग्य स्वरूप निकलता है कि यही हैं ‘नई कहानी के लेखक।’ लेखक ‘नयी कहानी’ के लेखकों के प्रति व्यंग्य की दृष्टि से कहते हैं कि जब खीरे की सुगंध व स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने पर डकार आ सकती है तो फिर ‘नयी कहानी’ के लेखक बिना विचार, घटना और पात्रों के लेखक बनने की इच्छा से ही ‘नयी कहानी’ की रचना कर डालते हैं।
विशेष :
  1. लेखक ने ‘नयी कहानी’ पर आक्षेप लगाया कि वह बिना विचार, घटना, पात्रों की, लेखक बनने की इच्छा से लिखी गई कहानी होती है।
  2. लेखक का व्यंग्य नये कहानीकारों की विषय-वस्तु को लेकर है।
  3. भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित तथा सहज-सरल है।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक यशपाल किस धारा से जुड़ाव के कारण जेल गए?
उत्तर:
वे स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ाव के कारण जेल गए।
प्रश्न 2.
यशपाल का जेल में किससे परिचय हुआ?
उत्तर:
जेल में उनका परिचय भगतसिंह और सुखदेव से हुआ।
प्रश्न 3.
लेखक रेलगाड़ी के किस डब्बे में क्या सोच कर चढ़े?
उत्तर:
लेखक नयी कहानी के कथानक तथा प्राकृतिक दृश्यों के अवलोकन हेतु खाली डब्बा समझ सेकण्ड क्लास में चढ़ गए।
प्रश्न 4.
लेखक को नवाब का कौनसा बदला हुआ भाव अच्छा नहीं लगा?
उत्तर:
लेखक को देखकर अनमने भाव से नवाब का खिड़की से बाहर देखना फिर भाव बदल खीरा खाने के लिए पूछना अच्छा नहीं लगा।
प्रश्न 5.
लेखक ने खीरा खाने के लिए मना क्यों किया?
उत्तर:
लेखक ने देखा कि नवाब सिर्फ औपचारिकता निभाने तथा कोरा शिष्टाचार हेतु खाने को पूछ रहा है इसलिए . मना किया।
प्रश्न 6.
नवाब साहब ने आम आदमियों की तरह खीरा क्यों नहीं खाया? .
उत्तर:
क्योंकि वे लेखक को अपनी नवाबी शान, खानदानी तहजीब, लखनवी नफासत और नजाकत दिखाना चाहते थे।
प्रश्न 7.
कैसे कह सकते हैं कि नवाब साहब आम इंसान नहीं थे?
उत्तर:
नवाब साहब ने आम इंसान की तरह खीरा नहीं खाया वरन् उसकी सुगन्ध और स्वाद से ही अपना पेट . भर, डकार भी ले ली थी।
प्रश्न 8.
लेखक ने नयी कहानी का लेखक किसे कहा?
उत्तर:
लेखक ने लखनवी नवाबों जैसे नजाकत और नफासत वालों को नयी कहानी का लेखक कहा।
प्रश्न 9.
लेखक ने लखनवी नवाब के अंदाज की तुलना किस प्रकार नयी कहानी से की? .
उत्तर:
लेखक ने नवाब को सिर्फ सुगन्ध व स्वाद से आये मुँह से भरे पानी से पेट भरने तथा डकार लेने की प्रक्रिया की तुलना नयी कहानी से की।
प्रश्न 10.
लेखक के अनुसार नयी कहानी के लेखक किस प्रकार के हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार नयी कहानी के लेखक बिना विचार, भाव तथा घटना और पात्रों के कहानी लिखते हैं सिर्फ लेखक बनने के लिए।
प्रश्न 11.
लेखक ने नयी कहानी पर किस भावना को व्यक्त किया?
उत्तर:
लेखक ने नयी कहानी के बिना विचार, भाव, पात्र, कथानक के ऊपर व्यंग्य भावना व्यक्त की।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘यशपाल ने पतनशील सामन्ती वर्ग पर कटाक्ष किया है।’ इस कथन को लखनवी अंदाज’ कहानी के आधार पर उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
‘लखनवी अंदाज़’ कहानी में यशपाल ने लखनऊ के एक नवाब साहब की बनावटी जीवन शैली का कथानक उपस्थित किया है। नवाब साहब ने खीरों को छीलकर और नमक-मिर्च लगाकर केवल सूंघा और कहा कि इसका स्वाद लाजवाब है। खीरे खाये नहीं फेंक दिये। इस तरह दिखावटी रईस बनने का आचरण होने से लेखक ने सामन्ती वर्ग पर कटाक्ष किया है।
प्रश्न 2.
‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर नवाब साहब के व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत व्यंग्यात्मक कहानी के प्रमुख पात्र नवाब साहब के व्यक्तित्व में अनेक विशेषताएँ समायी हुई हैं। वे मिलनसारिता से रहित, सनकी स्वभाव वाले, अकड़ दिखाने वाले, झूठी शान-शौकत का दिखावा करने वाले और नवाबी नफासत व नजाकत से पूरित व्यक्ति थे।
प्रश्न 3.
नवाब साहब ने खीरे को खाने योग्य किस प्रकार बनाया?
उत्तर:
नवाब साहब ने खीरों को पानी से धोकर, तौलिए से पौंछा, फिर चाकू से खीरों के सिर काटकर उन्हें गोद कर झाग निकाला, फिर बड़ी सावधानी से उन्हें छीलकर फाँकों को करीने से तौलिये पर सजाकर उन पर जीरा, नमक मिला और मिर्च झिड़ककर खाने योग्य बनाया।
प्रश्न 4.
यशपालजी के व्यंग्य लखनवी अंदाज़’ के लिए आप अन्य क्या शीर्षक देना चाहेंगे? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर:
यशपालजी के व्यंग्य ‘लखनवी अंदाज़’ के लिए अन्य शीर्षक के रूप में ‘खयाली भोजन’ शीर्षक देना चाहेंगे, क्योंकि लखनवी नवाब खीरे के भोग के नाम पर केवल उसकी गंध और स्वाद लेना अपनी शान समझते हैं। इस खयाली अन्दाज से पेट नहीं भरा जा सकता है। इसे ‘नवाबी सनक’ शीर्षक भी दिया जा सकता है।
प्रश्न 5.
लेखक ने क्या सोचकर सेकण्ड क्लास का टिकट लिया था?
उत्तर:
लेखक ने भीड़ से बचने के लिए, एकान्त में नयी कहानी के बारे में सोच सकने के लिए और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के विचार से ही सेकण्ड क्लास का टिकट लिया था।
प्रश्न 6.
लेखक ने नवाब के चेहरे पर असंतोष का भाव देखकर क्या बात सोची?
उत्तर:
लेखक ने नवाब के चेहरे पर असंतोष का भाव देखकर यह बात सोची कि हो सकता है कि यह भी नयी कहानी की सूझ की चिंता में हो या खीरे जैसे अपदार्थ वस्तु या शौक करते देखे जाने पर संकोच में हो।
प्रश्न 7.
डिब्बे में बैठे पूर्व यात्री और लेखक का मिलन कैसा रहा?
उत्तर:
डिब्बे में बैठे पूर्व यात्री और लेखक का मिलन नहीं मिलने जैसा ही रहा। दोनों ने एक-दूसरे की उपस्थिति को देखकर बाधा समझा और आपसी संगति में उत्साह नहीं दिखाया। इसलिए पहली भेंट में ही एक-दूसरे से नजरें चुरा लीं।
प्रश्न 8.
लेखक और नवाब साहब ने एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
लेखक और नवाब साहब ने एक-दूसरे के साथ बेगानेपन और अवांछितों जैसा व्यवहार किया। पहले नवाब ने मुँह फेरा। बाद में लेखक ने भी आत्मसम्मान की दृष्टि से अपना ध्यान हटा लिया।
प्रश्न 9.
खिड़की से बाहर नवाब साहब को झाँकते देखकर लेखक ने क्या अनुमान लगाया?
उत्तर:
लेखक ने अपनी कल्पनाशीलता के आधार पर अनमान लगाया कि एकान्त और किफायत के विचार से नवाब साहब ने सैकण्ड क्लास का टिकट खरीद लिया हो। अब उन्हें गवारा नहीं हो रहा हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें इस तरह यात्रा करते देखे।
प्रश्न 10.
लेखक को नवाब साहब का कौनसा भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा?
उत्तर:
नवाब साहब ने लेखक से पहले तो बेगानेपन का व्यवहार किया, बाद में लेखक से बातचीत करते हुए सहसा उससे खीरा खाने के लिए कहा। लेखक को उनका यह भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा।
प्रश्न 11.
“आज का आदमी भावनाओं से जुड़ने की बजाय औपचारिकता निभाने में ही विश्वास करता है।” कथ्य को ‘लखनवी अन्दाज’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘लखनवी अन्दाज़’ कहानी में नवाब साहब ने कुछ सोचकर बातचीत प्रारम्भ करने की दृष्टि से लेखक से कहा, ‘आदाब-अर्ज, जनाब, खीरे का शौक फरमाएँगे?’ यह सुनकर लेखक ने कहा कि-‘शुक्रिया किबला, शौक फरमाएँ।’ इस प्रकार दोनों के कथनों से औपचारिकता निर्वहन ही स्पष्ट होता है।
प्रश्न 12.
“नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गये।” कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन में लेखक ने नवाब साहब की खानदानी तहजीब और नज़ाकत पर व्यंग्य किया है। वे इतने . नाजक थे कि खीरा छीलने, उन पर नमक-मिर्च बरकने और संघ कर फेंकने में ही थक कर उन्हें
प्रश्न 13.
‘एब्स्टैक्ट’ शब्द के माध्यम से लेखक ने किन-किन पर व्यंग्य किया है?
उत्तर:
‘एब्स्ट्रैक्ट’ शब्द का अर्थ है-अशरीरी या अमूर्त। इस शब्द के माध्यम से लेखक ने नवाबों की काल् िक जीवन-शैली तथा नयी कहानी के लेखकों की अतिसूक्ष्म धारणाओं पर व्यंग्य किया है।
प्रश्न 14.
‘ये हैं नयी कहानी के लेखक’ कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक ने व्यंग्य आधार पर स्पष्ट किया कि जब खीरे की गंध और स्वाद मात्र से ही पेट भर जाने की डकार आ सकती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के, लेखक की कोरी कल्पना मात्र अथवा इच्छा मात्र से ‘लखनवी अंदाज़’ में नयी कहानी भी लिखी जा सकती है।
प्रश्न 15.
‘लखनवी अन्दाज’ कहानी से हमें क्या सन्देश मिलता है?
उत्तर:
लखनवी अन्दाज़’ कहानी से हमें सन्देश मिलता है कि हमें दिखावटी जीवन-शैली से हमेशा दर रहकर वास्तविकता का सामना करना चाहिए, क्योंकि जीवन में स्थूल और सूक्ष्म दोनों का ही महत्त्व है। जो लोग सनक भरी आदतों से पेट भरने का दिखावा करते हैं, वे अवास्तविक हैं। चाहे नयी कहानी के लेखन की ही बात क्यों न हो।
प्रश्न 16.
‘नयी कहानी’ और ‘लखनवी अंदाज में आपको क्या समानता दिखाई देती है?
उत्तर:
‘नयी कहानी’ और ‘लखनवी अंदाज़’ दोनों सूक्ष्म काल्पनिक और अशरीरी हैं। दोनों ही वास्तविकता को महत्त्व न देकर बनावटी जीवन-शैली को महत्त्व देते हैं। नवाब साहब झूठी नवाबी के कारण बिना खीरा खाये अपना पेट भरना चाहते हैं तो नये कहानीकार बिना घटना, पात्र और विचार के कहानी लिखना चाहते हैं। दोनों ही यथार्थ की उपेक्षा कर परजीवी संस्कृति की आराधना करते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लखनवी अंदाज’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लखनऊ रियासतों का गढ़ माना जाता रहा है। वहाँ के रईस अपनी शानो-शौकत को काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् भी उनके अंदाज में कहीं कोई कमी नहीं आई। रियासतें खत्म हो गईं लेकिन उनके नाज नखरे अभी भी बरकरार है। इसी विषय पर यशपाल जी ने उस सामंती वगे पर कटाक्ष किया है, जो वास्तविकता से बेखबर बनावटी जीवन जीते हैं। इस रचना के माध्यम से लेखक ने दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली पर व्यंग्य किया है। रेलगाड़ी के डिब्बे में लखनऊ का एक नवाब मिलता है।
नवाब बड़े सलीके से खीरा खाने की तैयारी करता है किन्तु लेखक के सामने खाने में उसे संकोच होता है इसलिए अपने लखनवी अंदाज में करीने से खीरे को काट कर उस पर नमक-मिर्च छिड़क कर उसे होठों तक ले जाकर व नाक से सूंघ कर खिड़की से बाहर फेंक देता है तथा सुगन्ध व काल्पनिक स्वाद से ही पेट भरे होने की डकार लेता है। ऐसा वह इसलिए करता है कि साधारण-सी चीज खाते देख उसकी शान में फर्क न आ जाए, इस तरह वह दिखावा करता है। ‘लखनवी अंदाज’ शीर्षक बिल्कुल उपयुक्त और सटीक है।
प्रश्न 2.
लखनवी अंदाज’ कहानी में लेखक ने किस विषय पर व्यंग्य किया और क्यों?
अथवा
‘लखनवी अंदाज’ कहानी यशपाल की व्यंग्य रचना क्यों कही जाती है? स्पा कीजिए।
उत्तर:
यशपाल जी ने ‘लखनवी अंदाज’ व्यंग्य यह साबित करने के लिए ही लिखा था कि बिना विचार, कथानक, पात्र एवं भाव के कहानी नहीं लिखी जा सकती है, लेकिन ‘नयी कहानी’ के लेखक सिर्फ लेखक बनने के लिए बिना भाव-विचार, कथानक-पात्रों के कहानी लिखते हैं और जिसे ‘नयी कहानी’ के नाम से पुकारा जाता है। दूसरी तरफ यशपाल जी की एक स्वतंत्र रचना के रूप में भी इस कहानी को पढ़ा जा सकता है क्योंकि ‘लखनवी अंदाज’ दिखावा पसंद संस्कृति वाले लोगों पर भी व्यंग्य करती है।
लेखक सामंती वर्ग के दिखावा पसंद प्रवृत्ति को उजागर करते हैं, जो वास्तविकता से बेखबर बनावटी जीवन जीने का आदी है। कहना न होगा कि आज भी इस तरह के लोग हम अपने आस-पास देख सकते हैं। जो अपनी झूठी शान बघारने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। जिस प्रकार नवाब साहब खीरा खाते नहीं हैं बल्कि लेखक को दिखा-दिखा कर उसे खिड़की के बाहर फेंकते हैं। इस तरह अपनी अमीरी का झूठा दिखावा करते हैं।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
लेखक यशपाल के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर संक्षिप्त में प्रकाश डालिए।
अथवा
लेखक यशपाल के जीवन-कर्म पर प्रकाश डालते हुए संक्षेप में उनके काव्य संग्रहों के नाम भी बताइये।
उत्तर:
लेखक यशपाल का जन्म सन् 1903 में पंजाब के फीरोजपुर छावनी में हुआ था। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कांगड़ा में ग्रहण करने के बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने लाहौर कॉलेज से की। कॉलेज में अध्ययन के दौरान इनका परिचय भरत सिंह और सुखदेव से हुआ। जहाँ से ये स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ गये। जिसके कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। इनकी रचनाओं में आम आदमी की पीड़ा व संत्रास मौजूद है।
सामाजिक विषमता, राजनैतिक पाखंड और रूढ़ियों के खिलाफ इनकी रचनाएँ काफी मुखर हैं। कहानी संग्रह ‘ज्ञानदान’, ‘तर्क का तूफान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वा दुलिया’, ‘फूलों का कुर्ता’ प्रसिद्ध है। ‘झूठा सच’, ‘अमिता’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘दादा कामरेड’, ‘तेरी मेरी उसकी बात’ उपन्यास हैं। साहित्य रचना करते हुए इनकी मृत्यु सन् 1976 में हुई।

लखनवी अंदाज़ Summary in Hindi

लेखक-परिचय :
साहित्यिक और क्रान्तिकारी व्यक्तित्व के धनी यशपाल का जन्म सन् 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा काँगड़ा में ग्रहण करने के बाद लाहौर के नेशनल कॉलेज से उन्होंने बी.ए. पास किया। वहाँ उनका परिचय भगतसिंह और सुखदेव से हुआ। स्वाधीनता संग्राम की क्रान्तिकारी धारा से जुड़ाव के कारण वे जेल भी गये। उनकी मृत्यु सन् 1976 में हुई।
यशपाल ने यथार्थवादी शैली में कहानियों एवं उपन्यासों की रचनाएँ कीं। उनके कहानी-संग्रहों में – ‘ज्ञानदीप’, ‘तर्क का तूफान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वा दुलिया’, ‘फूलों का कुर्ता’ उल्लेखनीय हैं। ‘झूठा सच’, ‘अमिता’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘दादा कामरेड’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’ आदि उनके प्रमुख उपन्यास हैं। इसके साथ ही उन्होंने निबन्ध और संस्मरण भी लिखे हैं।
पाठ-परिचय :
‘लखनवी अंदाज़’ यशपाल की व्यंग्यात्मक कहानी है। यह कहानी शान-शौकत वाली बनावटी जीवन-शैली पर कटाक्ष करती है। एक बार लेखक ने नई कहानी लिखने की दृष्टि से सेकण्ड क्लास की टिकट खरीद कर अपनी रेल यात्रा प्रारम्भ की। वह जिस डिब्बे में बैठने के लिए घुसा उस डिब्बे में एक सज्जन पहले से ही लखनवी नवाबी अंदाज में पालथी मारे बैठे थे।

उनके सामने दो ताजा-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। बैठे नवाब साहब ने लेखक से कहा, “जनाब खीरे का शौक फरमाएंगे।” लेखक ने शुक्रिया कहकर मना कर दिया। नवाब साहब ने तौलिया बिछाकर खीरे काटे। फिर वे एक-एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गये, सँघा और खिड़की के बाहर फेंक दिया। फिर गर्व से लेखक की ओर देखा। मानो कह रहे हों, यह है खानदानी रईसों का खीरा खाने का तरीका। इसके बाद नवाब साहब ने जोरदार डकार ली। वे लेखक की ओर देखकर बोले-खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन मेदे पर बोझ डाल देता है। नवाब साहब की बात सुनकर लेखक को नयी कहानी लिखने का विचार मिल गया।

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