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RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

RBSE Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर:
फादर कामिल बुल्के का जीवन देवदार के वृक्ष के समान विशाल था। वे ‘परिमल’ नामक साहित्यिक संस्था के सम्मानित एवं वयोवृद्ध सदस्य थे। वे संस्था के सभी सदस्यों को परिवार जैसा मानते थे और परिवार के मुखिया की तरह सभी पर अपना वात्सल्य लुटाते थे। उनकी कृपा की छाया उनकी शरण में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर छायी रहती थी, क्योंकि वे घरों में उत्सवों और संस्कारों पर पुरोहितों की भाँति उपस्थित रहते थे। यही कारण है कि उनकी उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी।
प्रश्न 2.
‘फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं’ किस आधार पर ऐसा कहा गया है?
अथवा
फादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग क्यों कहा गया है?
उत्तर:
फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे, क्योंकि उन्होंने भारत में रहकर अपने आप को पूरी तरह भारतीय बना लिया था। उन्होंने कोलकाता और इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई की। हिन्दी विषय में एम.ए. किया और हिन्दी तथा संस्कृत विषयों का अध्यापन कराते हुए सेंट जेवियर्स कालेज में विभागाध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारतीय संस्कृति की प्रतीक राम-कथा की उत्पत्ति और विकास का शोध कार्य किया। उनका जीवन और आचरण भारतीय संस्कृति के मूल्यों के अनुरूप था। उन्हें हिन्दी से बेहद लगाव था। इसके साथ ही यहाँ के लोगों के उत्सवों और संस्कारों में पुरोहितों के समान उपस्थित रहते थे। इन आधारों पर हम कह सकते हैं कि फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग थे।
प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फादर बुल्के का हिन्दी प्रेम प्रकट होता है।
उत्तर:
फादर बुल्के हिन्दी के प्रेमी थे। इसीलिए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. हिन्दी में किया। इसके बाद उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय में ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ पर हिन्दी में अपना शोध प्रबन्ध लिखा। तत्पश्चात् वे राँची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। उन्होंने ‘अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश’ तैयार किया और उन्होंने ‘बाइबिल’ तथा ‘ब्लू बर्ड’ नामक नाटक का हिन्दी में अनुवाद किया। वे ‘परिमल’ नामक संस्था के साथ जुड़े रहे और उन्होंने हिन्दी को राष्ट्र-भाषा बनाने के लिए खूब प्रयत्न किए। वे हर मंच पर हिन्दी के समर्थन में अकाट्य तर्क देकर इसकी उपेक्षा पर दुःख प्रकट करते थे।
प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की छवि एक आत्मीय संन्यासी की उभरती है। उनका व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक था.। उनका रंग गोरा और उनके चेहरे पर सफेद झलक देती हुई दाढ़ी थी। उनकी आँखें नीली थीं। वे हमेशा सफेद चोगा धारण करते थे। वे स्नेह और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थे। उनके मन में परिचितों के प्रति असीम स्नेह समाया हुआ था।
प्रश्न 5.
लेखक ने फादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक इसलिए कहा है कि उनके पावन मन में सभी परिचितों के प्रति सद्भावना और अपार स्नेह समाया हुआ था। वे मानवीय गुणों से मण्डित, सहज हृदय इन्सान थे और सभी के प्रति उनके हृदय से स्नेहिल धारा प्रवाहित होती रहती थी और उनकी करुणा का प्रसाद सभी को बराबर मिलता रहता था। वे परिचितों के हर सुख-दुःख में साथी होते थे। उन्होंने लेखक के पुत्र के मुंह में अन्न भी डाला और उसकी मृत्यु पर उसे सान्त्वना भी दी। मानवीय करुणा की तरल चमक उनके चेहरे पर हर वक्त दिखाई देती थी।
प्रश्न 6.
फादर बुल्के ने संन्यासी की परम्परागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर:
फादर बुल्के सच्चे अर्थों में एक संन्यासी थे। उनमें मानवीय गुणों का समावेश था। वे परोपकारी थे। उनके हृदय में दूसरों के लिए करुणा एवं वात्सल्य भाव समाया हुआ था। वे संन्यासी होकर भी परिचितों से विशेष लगाव रखते थे। वे उनके सुख-दुःख में शामिल होते थे और उन्हें अपने गले लगाने को आतुर रहते थे। वे कभी भी किसी को अपने से दूर तथा अलग प्रतीत नहीं होने देते थे। इसलिए लोग उन्हें आत्मीय संरक्षक मानते थे।
प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फादर को याद करना एक उदास शान्त संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर:
(क) फादर बुल्के की मृत्यु पर रोने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं थी। इस संख्या में उनके परिचित, प्रियजन और सभी साहित्यिक मित्र शामिल थे। इसलिए उनके बारे में लिखना व्यर्थ में स्याही खर्च करना है। कहने का भाव यह है कि उनकी मृत्यु पर शोकाकुल होकर रोने वालों की संख्या बहुत अधिक थी।
(ख) फादर बुल्के को मृत्यु के बाद याद करना एक ऐसा ही अनुभव है मानो हम उदास शान्त संगीत को सुन रहे हों। उनकी यादें हमें उदास कर जाती हैं। इस उदासी के कारण भी उनकी याद शान्त संगीत की तरह गूंजती रहती है।
रचना और अभिव्यक्ति –
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर:
हमारे विचार से बुल्के ने भारत आने का मन इसलिए बनाया होगा, क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिकता के सम्बन्ध में सुना होगा। इसी से उनके मन में भारत के प्रति अपार श्रद्धा और आदर जागा। इसके साथ ही वे यहाँ रहकर भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा से परिचित होना चाहते थे। उन्होंने अपने धर्म-गुरु से संन्यास लेते हुए भी यही शर्त रखी थी कि उन्हें भारत जाने दिया जाए। वे भारत में रहकर काम करना चाहते थे।
प्रश्न 9.
‘बहुत सुन्दर है मेरी जन्म-भूमि रैम्स चैपल’ इस पंक्ति में फादर बुल्के की अपनी जन्म-भूमि के प्रति कौनसी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्म-भूमि के बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर:
इस पंक्ति में फादर बुल्के के मन में समाये स्वाभाविक देश-प्रेम की भावना व्यक्त हुई है। जन्म-भूमि के प्रति उनके मन में गहरा प्रेम होने के कारण ही वह उन्हें बहुत सुन्दर प्रतीत होती है। हम भी अपनी जन्मभूमि के प्रति बहुत उच्च भाव रखते हैं। हमारी जन्मभूमि भारत स्वर्ग से भी महान् है और हमें प्राणों से भी अधिक प्यारी है। हम इसकी रक्षा और सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने को भी हमेशा तैयार हैं।
भाषा अध्ययन –
प्रश्न 10.
मेरा देश भारत विषय पर 200 शब्दों का निबन्ध लिखिए।
उत्तर :
मेरा देश भारत
भारत मेरा देश है। इसका स्वरूप अत्यन्त भव्य और विशाल है। इसकी धरती का भौगोलिक एवं प्राकृतिक सौन्दर्य अद्भुत है। इसके उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत इसके मस्तक का हिम-किरीट है। दक्षिण में इसके चरण प्रक्षालन करता हिन्दमहासागर है। पश्चिम में बंगाल की खाड़ी और पूर्व में अरब सागर है। इसमें स्थित कश्मीर स्वर्ग से भी अधिक सुन्दर है। इसके मैदानी वक्षस्थल पर लहलहाती हरी-भरी फसलें इसे और भी सौन्दर्ययुक्त बनाती हैं। इसकी गोद में बहती हुई नदियाँ इसकी शोभा को द्विगुणित करती हैं।
हमारा देश प्राचीन सभ्यता और संस्कृति वाला देश है। यह संसार का गुरु है। ज्ञान-विज्ञान का आविष्कार इसी ने चड़िया कहे जाने वाले देश की सम्पन्नता से आकर्षित होकर अनेक आक्रमणकारी जातियाँ यहाँ आयीं। इस देश की संस्कृति ने उन सबको अपने में रचा-बसाकर अपनी उदारता का परिचय दिया।
हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति असाधारण है। इसकी संस्कृति में अन्य संस्कृतियों को अपने में आत्मसात् करने की असाधारण क्षमता है। इसीलिए हमारी संस्कृति, मिश्रित संस्कृति है।
हमारे देश में अनेक धर्मों और जातियों के लोग आपस में मिलकर निवास करते हैं। जाति और धर्म के नाम पर उनमें किसी भी तरह का भेदभाव नहीं है। सभी अपने तीज-त्योहार अपनी-अपनी रस्मों के अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक मनाते हैं। हमारे देश में प्राकृतिक, भौगोलिक, धार्मिक, भाषायी, रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ होने के बाद भी यहाँ के निवासियों में भावनात्मक एकता है। इस प्रकार भारत देश महान है। इस महान देश में जन्म लेकर हम अपने आपको धन्य मानते हैं।
प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन एंड्री आस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गर्मी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमन्त्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर
282, रामनगर,
जयपुर (राज.)
08-05-20XX
प्रिय हडसन एंड्री!
सप्रेम नमस्ते।
तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। जानकर प्रसन्नता हुई कि तुम वहाँ आनन्द में हो। ईश्वर की कृपा से यहाँ पर भी राजी-खुशी है। तुम्हें जानकर प्रसन्नता होगी कि इस बार हमारी गर्मी की छुट्टियाँ पन्द्रह मई से आरम्भ होंगी। मैं चाहता हूँ कि इस बार तुम भारत आओ और मेरे साथ यहाँ के पर्वतीय प्रदेशों का भ्रमण करने के लिए चलो। इस बार मैंने हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय स्थानों के भ्रमण का कार्यक्रम बनाया है। इस भ्रमण में पहले हम शिमला चलेंगे। वहाँ घूम-फिर कर कुल्लू-मनाली चलेंगे। इसके बाद अन्य . पर्वतीय स्थानों की भी सैर करेंगे। गर्मियों में यहाँ का वातावरण अत्यन्त सुहावना एवं मनमोहक होता है। आशा है कि तुम मेरे निमन्त्रण को स्वीकार करते हुए हमारे साथ भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु अवश्य चलोगे।
तुम्हारे पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
निखिल सिंह
प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में समुच्चयबोधक छाँटकर अलग लिखिए
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अक्सर डूब जाते।
उत्तर:
(क) और
(ख) कि
(ग) तो
(घ) जो
(ङ) और, लेकिन।
पाठेतर सक्रियता –
फादर बुल्के की तरह ऐसी अनेक विभूतियाँ हुई हैं जिनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी लेकिन कर्मभूमि के रूप में उन्होंने भारत को चुना। ऐसे अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर:
सिस्टर निवेदिता और मदर टेरेसा भी ऐसी ही विशिष्ट विभूतियाँ थीं जिन्होंने विदेशी होते हुए भी भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया।
कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं, जिनकी जन्मभूमि भारत है लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि किसी और देश को बनाया है, उनके बारे में भी पता लगाइए।
उत्तर:
भारत के अनेक विद्वान् मारीशस, फीजी, इंग्लैण्ड एवं अन्य देशों में रहकर हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
एक अन्य पहलू यह भी है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं – इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
यह भी जीवन का एक पहलू है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं। उन्हें वहाँ का जीवन आजीविका, धनार्जन या रोजगार की दृष्टि से अधिक सुविधाजनक प्रतीत होता है। उन्हें भारत की याद तभी आती है, जब वे वहाँ किसी संकट में फँस जाते हैं। अन्यथा वे भारत को भूलकर वहीं के बाशिन्दे बन कर रह जाते हैं।

RBSE Class 10 Hindi मानवीय करुणा की दिव्या चमक Important Questions and Answers

सप्रसंग व्याख्याएँ –
1. फादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस जहर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछे? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था। वह देह की इस यातना की परीक्षा उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दे? एक लम्बी, पादरी के सफेद चोगे से ढकी आकृति सामने है – गोरा रंग, सफेद झाँई मारती भूरी दाढ़ी, नीली आँखें – बाँहें खोल गले लगाने को आतुर। इतनी ममता, इतना अपनत्व इस साधु में अपने हर एक प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था। मैं पैंतीस साल से इसका साक्षी था। तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे। आज उन बाँहों
का दबाव मैं अपनी छाती पर महसूस करता हूँ।
कठिन शब्दार्थ :
  • जहरबाद = गैंग्रीन नाम का रोग जिसका जहर शरीर में फैल जाता है।
  • विधान = निर्माण, रचना।
  • आस्था = विश्वास।
  • देह = शरीर।
  • यातना = पीड़ा, दर्द।
  • साक्षी = गवाह।
  • आतुर = व्याकुल।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखा गया संस्मरण ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने स्मृतियों के आधार पर फादर बुल्के को याद किया गया है।
व्याख्या : लेखक सक्सेनाजी फादर बुल्के को याद करते हुए कहते हैं कि उनकी मृत्यु जहरबाद (गैंग्रीन रोग) से नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि फादर बुल्के का व्यक्तित्व अत्यन्त मिठास भरा था। वे सबके साथ स्नेहशील व्यवहार रखते थे। अमृत के समान मिठास उनकी नसों में खून बन कर बहता था। फिर ऐसे व्यक्ति के लिए ईश्वर ने जहर की रचना क्यों की? लेखक कहते हैं कि यह सवाल कौन-से ईश्वर से पूछे क्योंकि जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभु के विश्वास पर टिका था, वह व्यक्ति जीवन की अंतिम परीक्षा अर्थात् मृत्यु, ऐसी पीड़ा में क्यों दें? पादरी का व्यक्तित्व एक लम्बी काया, जो पादरी के सफेद लिबास से ढकी हुई थी। जिसका गोरा रंग, सफेद और कुछ-कुछ भूरी दाढ़ी, नीली आँखें जिस पर अपनी बाँहें फैलाकर सबको गले मिलाने को बेचैन फादर।
जिसके हृदय में इतनी ममता व सभी के लिए इतना अपनत्व भरा हुआ था जो कि हर किसी प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था। लेखक बताते हैं कि वे पैंतीस सालों से फादर के इस अपनत्व भरे व्यवहार के साक्षी रहे हैं। जब फादर इलाहाबाद में रहते थे. तब से लेखक का उनके साथ स्नेह व्यवहार था और आज भी जब वे दिल्ली आकर उनसे मिलते थे। लेखक उनकी मीठी स्मृति में डूब कर कहते हैं कि फादर का स्नेह से गले लगाने पर सीने पर जो दबाव होता था। वह आज भी उन्हें महसूस होता है और याद आता है।
विशेष :
  1. फादर के स्नेहिल व्यवहार की स्मृति लेखक सीधी सरल भाषा में व्यक्त करते हैं।
  2. भाषा का सरलतम रूप प्रकट हुआ है।
2. फ़ादर को याद करना एक उदास शान्त संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गम्भीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते। मुझे अपना बच्चा और फादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आँखों की चमक में तैरता वात्सल्य-भी जैसे किसी ऊँचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों।
कठिन शब्दार्थ :
  • संकल्प = दृढ़ निश्चय, विचार, इरादा।
  • परिमल = एक कार्यक्रम का नाम, जिसमें सभी साहित्य-प्रेमी इकट्ठे होते थे।
  • निर्लिप्त = लगाव न रखना, सांसारिक मोह-माया से दूर।
  • गोष्ठी = सभा।
  • बेबाक =. निडर, बिना डरे।
  • आशीष = आशीर्वाद।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित संस्मरण ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने स्मृति के द्वारा फादर बुल्के को याद किया है।
व्याख्या : लेखक बताते हैं कि फादर बुल्के को याद करना एक उदास संगीत को सुनने जैसा प्रतीत होता है। मनुष्य जब दुःखी होता है, किसी को याद करता है तो उदासी भरा संगीत उन यादों को और गंभीर बना देता है। फादर को देखना दया, प्रेम, करुणा के जल में स्नान करने जैसा है, कहने का आशय है कि उनके व्यक्तित्व में करुणा जल का स्रोत बहता ही रहता था। उनसे बात करने पर कार्यों को पूर्ण करने के दृढ़ विचार मन में उठते थे। लेखक ‘परिमल’ कार्यक्रम के उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि वहाँ पर इकट्ठे हुए सभी लोग पारिवारिक रिश्तों में बँधे हुए जैसे होते थे और इस परिवार का मुखिया या सबसे बड़े फादर ही होते थे। बिना किसी लगाव या मोह के वे हमारे हँसी-मजाक में शामिल होते।
हमारी गोष्ठियों में गंभीर बहस करते; हमारी लिखी रचनाओं पर अपनी निष्पक्ष, निडर राय, विचार रखते तथा हमारे घर-परिवार में हुए किसी भी उत्सव या संस्कारों में बड़े भाई या पंडित-पुरोहित की तरह सदैव आगे खड़े रहते। अपने सद्-वचन तथा आशीर्वादों से हमारा मार्गदर्शन करते। लेखक को अपने बच्चे का अन्नप्राशन का दिन याद आता है जब उन्होंने फादर से अन्न का पहला दाना बच्चे के मुँह में डलवाया था। उस समय फादर की नीली आँखों की चमक और पुत्र के प्रति वात्सल्य का भाव दोनों याद आ रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो छाया देने के लिए फादर देवदार के वृक्ष की भाँति उनके परिवार को आशीर्वाद व स्नेह-छाया प्रदान कर रहे हों।
विशेष :
  1. लेखक फादर बुल्के के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।
  2. भाषा शैली सरल-सहज व बोधगम्य है।
3. फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ते बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गन्ध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते जरूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है? उनकी चिन्ता हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। हर मंच से इसकी तकलीफ बयान करते, इसके लिए अकाट्य तर्क देते।
कठिन शब्दार्थ :
  • संकल्प = दृढ़ विचार, इरादा, निश्चय।
  • गंध = महक, खुशबू।
  • बयान = बताना।
  • अकाट्य = जिनको काटा न जा सके, कोई विकल्प नहीं हो।
  • तर्क = सुविचारित उत्तर।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित संस्मरण ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ से लिया गया है। इसमें लेखक स्मृतियों के सहारे फादर बुल्के के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को प्रकट कर रहे हैं।
व्याख्या : लेखक फादर बुल्के के व्यक्तित्व को विस्तार देते हुए कहते हैं कि वे दृढ़ विचारों से युक्त संन्यासी थे। उनको देखकर लगता था कि वे मन से संन्यासी नहीं थे क्योंकि वे रिश्ते बनाते थे और रिश्ते मन से बनते हैं। रिश्ते तोड़ते नहीं थे, जबकि संन्यासी मोह, माया से जुड़े सभी रिश्ते तोड़ कर चलते हैं। दसों साल बीतने के बाद भी अगर फादर से मिलना होता था तब भी उस दस साल पहले बने मीठे रिश्ते की महक उनसे महसूस होती थी। लेखक बताते हैं कि फादर जब भी इलाहाबाद से चलकर दिल्ली आते थे तब सर्दी, गर्मी, बारिश की परवाह किये बिना खोजकर हमसे जरूर मिलते, चाहे उनका यह मिलन दो मिनट का ही क्यों न हो। आत्मीयता की यह कड़ी वे हमेशा जोड़े रखते थे।
उनके इस व्यवहार पर लेखक कहते हैं कि कौन संन्यासी इतना करता है कि रिश्तों को बनाये रखे। लेखक को फादर के व्यक्तित्व में एक और बात बहुत अच्छी लगती थी वह थी हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की चिंता, इसलिए वे हिन्दी के विचार-विमर्श मंच से हमेशा अपनी इस तकलीफ को बताते थे और इस बात पर जोर डालते हुए सुविचारित व सारगर्भित बात कहते थे। उनकी कही बातों का कोई तोड़ किसी के पास नहीं होता था क्योंकि वे हिन्दी के पक्ष में अहम व महत्त्वपूर्ण बातें ही कहते थे।
विशेष :
  1. लेखक ने फादर की हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रति चिंता को व्यक्त किया है।
  2. भाषा शैली सरल-सहज व सारगर्भित है।
4. हिन्दी वालों द्वारा ही हिन्दी की उपेक्षा पर दुःख करते हुए उन्हें पाया है। घर-परिवार के बारे में, निजी दुःख तकलीफ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े दुःख में उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना, एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है। हर मौत दिखाती है जीवन को नयी राह’ मुझे अपनी पत्नी और पुत्र की मृत्यु याद आ रही है और फादर के शब्दों से झरती विरल शांति भी।
कठिन शब्दार्थ :
  • उपेक्षा = उदासीनता।
  • सांत्वना = ढांढस, तसल्ली।
  • जनमती = जन्म लेती।
  • विरल = हल्की, पतली।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित संस्मरण ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ से लिया गया है। लेखक ने स्मृति द्वारा फादर बुल्के के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को याद किया है।
व्याख्या : लेखक फादर बुल्के द्वारा हिन्दी को राष्ट्रभाषा न बनाये जाने की चिंता को बताते हैं। एक विदेशी होने के बाद भी वे हिन्दी के प्रति इतना लगाव स्नेह रखते हैं तथा उसके अस्तित्व पर चिंतित होते हैं जबकि हिन्दी वालों द्वारा हिन्दी के प्रति उदासीनता को देखा गया है। हिन्दी भाषी लोगों की इस निष्क्रियता पर उन्हें काफी दुःख होता था। फादर बुल्के सबसे उनके घर-परिवार के बारे में, उनकी निजी दुःख-तकलीफ के बारे में सदैव जानकारी लेते थे। यह उनका स्नेहशील व्यवहार था। इस प्रकरण में वे यथासंभव मदद भी करते थे।
लोगों से उनके दु:ख-दर्द को जानना तथा अपने मुख से दिलासा के दो शब्द भी कहना, उस समय ऐसा प्रतीत होता था मानो उनके जादू भरे तसल्ली के दो शब्द बड़े से-बड़े दुःख को भी कम कर देते हैं। यह जादू भरे स्वर की दिव्य रोशनी एक गहरी तपस्या के बाद जन्म लेती है जो उनके शब्दों में साक्षात् नजर आती थी। लेखक अपनी पत्नी और पुत्र की मृत्यु को याद करते हुए कहते हैं कि हर मौत, जीवन को एक नया रास्ता दिखाती है। अपनों की मृत्यु पर फादर के कहे गए ये शब्द और उनके मुख से झरने वाली हल्की शांति की आभा, लेखक को वास्तव में ही नयी जीवन राह से जोड़ती है।
विशेष :
  1. हिन्दी भाषा के प्रति स्नेह, चिंता तथा स्वजनों के प्रति सांत्वना के स्वर, ये सभी गुण फादर बुल्के की दिव्य आत्मा को प्रकाशित करते हैं।
  2. भाषा शैली सरल-सहज व बोधगम्य है।
5. मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।) इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।
कठिन शब्दार्थ :
  • स्मृति = याद।
  • आँच = चिन्गारी, तपिश।
  • आजीवन = जीवन-भर।
  • नत = झुकना।
  • लहलहाना = खुशियों से भरा हुआ।
प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित संस्मरण ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ से लिया गया है। इस प्रसंग में लेखक फादर की मृत्यु पश्चात् उनके बारे में अपने विचार व्यक्त करते हैं।
व्याख्या : लेखक बताते हैं कि मैं नहीं जानता कि फादर की मृत्यु के पश्चात् फादर ने (संन्यासी) सोचा भी होगा कि कोई उनकी मृत्यु पर अश्रु भी बहायेगा क्या? लेकिन उनकी मृत्यु पर इकट्ठे हुए लोगों को देखकर लेखक बताते हैं कि उस क्षण (मृत्यु) रोने वालों की कमी नहीं थी। साथ ही लेखक ये भी कहते हैं कि उस समय इकट्ठे हुए लोगों की नम आँखों को गिनना अर्थात् सबके नाम लिखना स्याही फैलाना अर्थात् पन्ने भरने जैसा होगा।
फादर के बारे में लेखक कहते हैं कि यह व्यक्ति हम सभी में से सबसे अधिक छायादार, फल-फूल सहित और खुशबू से भरे हुए वृक्ष के समान सबसे अलग व्यक्तित्व वाला लेकिन सबको अपना बनाकर, सबसे अच्छा व्यवहार करके ऊँचाई पर खड़ा होने वाला, मानवीयता की दिव्य ज्योति में सबकी स्मृतियों में लहलहाता खड़ा रहेगा। फादर बुल्के की याद हम सबके मन में तथा वे जिनके ज्यादा निकट थे उनके मन में तो यज्ञ की पवित्र की ज्योति की भाँति आजीवन प्रज्ज्वलित रहेंगे। लेखक कहते हैं कि मैं उस पवित्र आत्मा की स्मृति में सदैव श्रद्धा से झुका रहूँगा। अर्थात् सदैव नतमस्तक रहूँगा।
विशेष :
  1. लेखक फादर बुल्के की याद को जीवन-भर सहेज कर रखते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
  2. भाषा-शैली सरल-सहज व भावपूर्ण है।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ हिन्दी साहित्य की कौनसी विधा पर लिखा गया है?
उत्तर:
संस्मरण स्मृतियों से बनता है। ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ संस्मरण विधा पर लिखा गया है।
प्रश्न 2.
फादर बुल्के की जन्मभूमि का नाम बताइये।
उत्तर:
‘रैम्सचैपल’ बेल्जियम ल्जयम (यूरोप) शहर फादर बुल्के की जन्मभूमि थी।
प्रश्न 3.
फादर बुल्के किस समय संन्यासी बनने के लिए धर्मगुरु के पास गए?
उत्तर:
फादर बुल्के इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष को छोड़ संन्यासी बनने के लिए धर्मगुरु के पास गए।
प्रश्न 4.
फादर बुल्के किस भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु चिंता करते थे?
उत्तर:
फादर बुल्के हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु चिंता करते थे।
प्रश्न 5.
फादर बुल्के ने अपनी पी-एच.डी. थीसिस (शोध प्रबंध) का विषय क्या रखा?
उत्तर:
फादर बुल्के के शोध प्रबंध का विषय ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ था।
प्रश्न 6.
फादर की मृत्यु किस सेग से हुई?
उत्तर:
फादर की मृत्यु गैंग्रीन (जहरबाद) रोग से हुई।
प्रश्न 7.
लेखक ने फादर को याद करना ‘शान्त संगीत’ सुनने जैसा क्यों कहा?
उत्तर:
फादर बुल्के संन्यासी व धर्मगुरु थे। लेखक के परिवार के साथ आत्मीय संबंध थे। इसलिए ‘शान्त संगीत’ जैसा कहा।
प्रश्न 8.
फादर बुल्के किस रूप में संन्यासी थे?
उत्तर:
फादर बुल्के संन्यास का संकल्प लेने से संन्यासी थे। पर मन से संन्यासी नहीं थे। वे रिश्ता बनाते थे, तोड़ते नहीं थे।
प्रश्न 9.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना दिनमान में किस नाम से स्तंभ लिखते थे?
उत्तर:
लेखक ‘चरचे और चरखे’ नाम से स्तंभ दिनमान में लिखते थे।
प्रश्न 10.
सक्सेना को किस कृति पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला?
उत्तर:
‘खटियों पर टंगे लोग’ पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘फांदर बुल्के की छवि अलग है’ कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
बेल्जियम की भूमि पर जन्मे फादर बुल्के ने अपनी जन्मभूमि को महत्त्व न देकर कर्मभूमि भारत को अपनाया और भारतीय कहलाना पसन्द किया। उन्होंने हिन्दी भाषा को प्रेम किया। अपने संत स्वभाव, संवेदनशीलता, मानवीयता, भारतीय संस्कृति से प्रेम, करुणाशीलता आदि गुणों के कारण उनकी छवि अलग है।
प्रश्न 2.
अपने व्यक्तित्व की किन विशेषताओं के कारण लेखक श्री सक्सेना ने फ़ादर कामिल बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग माना है?
उत्तर:
फ़ादर बल्के की जन्मभमि बेल्जियम होने पर भी उन्होंने भारत को अपनी कर्मभमि बनाया। यहाँ की संस्कृति में रचे-बसे ही नहीं, बल्कि हिन्दी का अध्ययन किया और भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत राम-कथा पर शोध ग्रन्थ लिखा। भारतीय परिवारों के उत्सवों में भाग लिया।
प्रश्न 3.
“वह देह की इस यातना की परीक्षा उन की आखिरी देहरी पर क्यों दे।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर:
लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि फ़ादर की मृत्यु जीवन के आखिरी दिनों में गैंग्रीन नामक रोग से तकलीफ पाकर हुई थी। उनका सारा जीवन दूसरों को प्यार, अपनत्व और ममता का अमृत बाँटते हुए व्यतीत हुआ, तो जीवन के अन्त में ऐसी असह्य वेदना क्यों भोगनी पड़ी।
प्रश्न 4.
“लेखक आज भी फ़ादर की बाँहों का दबाव अपनी छाती पर महसूस करता है।” लेखक के कथन का क्या कारण रहा?
उत्तर:
फ़ादर और लेखक के मध्य पैंतीस सालों तक मधुर आत्मीय संबंध रहे। जब तक वे जीवित रहे, लेखक इलाहाबाद में हो या दिल्ली में, आत्मीयता के साथ खुले दिल से उससे मिलते और आलिंगनबद्ध हो जाते थे।
प्रश्न 5.
फ़ादर को याद करना लेखक को उदास शान्त संगीत को सुनने जैसा क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर:
फ़ादर का जीवन करुणा, वात्सल्य और अपनत्व से पूरित था। वे जिनसे भी मिलते थे, खुले दिल से मिलते थे। उनके न रहने पर उनको याद करके उदासी और शान्ति उसी प्रकार छा जाती है जैसे उदास संगीत को सुनने पर छा जाती है।
प्रश्न 6.
“लेखक के जीवन में फ़ादर.का स्थान सर्वोच्च था।”कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक अपने जीवन में फ़ादर को सर्वोच्च स्थान देता था। उदाहरण के लिए, लेखक ने अपने पुत्र का अन्नप्राशन का संस्कार फ़ादर के हाथ से ही करवाया था। जबकि यह संस्कार किसी पंडित के द्वारा करवाया जाता है।
प्रश्न 7.
फ़ादर कामिल बुल्के को सबसे अधिक दुःख किन लोगों पर होता था?
उत्तर:
फ़ादर कामिल बुल्के हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्षधर थे और इस सम्बन्ध में अकाट्य तर्क देते थे। इस कारण उन्हें सबसे अधिक दुःख उन लोगों पर होता था जो हिन्दीभाषी होते हुए भी हिन्दी की घोर उपेक्षा करते थे।
प्रश्न 8.
“फ़ादर के मुख से निकले शब्द जादू का काम करते थे।” कैसे?
उत्तर:
फ़ादर हमेशा अगाध स्नेह से पूरित होकर बात किया करते थे। इसीलिए लेखक की पत्नी और पुत्र की मृत्यु पर जो उन्होंने सांत्वना के शब्द कहे थे, उन शब्दों ने लेखक के मन पर जादू-सा असर दिखाकर उसे परम शान्ति की अनुभूति करायी थी।
प्रश्न 9.
लेखक ने फ़ादर को सबसे अधिक छायादार, फल-फूल और गंध से भरा क्यों कहा है?
उत्तर:
जिस प्रकार फल-फूल और गंध से भरा एक छायादार वृक्ष आश्रय लेने वालों को अपनी छाया, फल और गन्ध से आनन्दित करता है, उसी प्रकार फ़ादर भी परिचितों को अपनी ममता, स्नेह और करुणा की छाया प्रदान करते थे।
प्रश्न 10.
मानवीय करुणा की दिव्य चमक किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मानवीय करुणा की दिव्य चमक फ़ादर कामिल बुल्के को कहा गया है। क्योंकि उनके हृदय में सभी के लिए असीम प्रेम, ममता और करुणा समायी हुई थी। उनका व्यक्तित्व मानवीय गुणों के दिव्य-आलोक से जगमगाता था।
प्रश्न 11.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक संस्मरण से हमें क्या सन्देश मिलता है?
उत्तर:
इस संस्मरण से हमें यह सन्देश मिलता है कि हमें भी फ़ादर बुल्के की तरह मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाकर सभी के साथ करुणापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। अपनी संस्कृति एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी पर गर्व करना चाहिए और दूसरों के सुख-दुःख का साथी बनना चाहिए।
प्रश्न 12.
फ़ादर बुल्के ‘परिमल’ में क्या भूमिका निभाते थे?
उत्तर:
फ़ादर बुल्के ‘परिमल’ साहित्यिक संस्था के अभिन्न सदस्य थे। वे अवस्था में बड़े होने के नाते बड़े होने की भूमिका हमेशा निभाते थे। वे सबके साथ पारिवारिक स्नेह रखने के साथ ही हँसी-मजाक में भी शामिल रहते थे। वे साहित्यिक संगोष्ठियों में गहरी रुचि लेते थे और बहस किया करते थे। रचनाओं पर निडरता के साथ मत दिया करते थे।
प्रश्न 13.
फ़ादर बुल्के को अपने परिवार में सबसे अधिक याद किसकी और क्यों आती थी?
उत्तर:
फ़ादर बुल्के मूल रूप से बेल्जियम देश के ‘रेम्स चैपल’ के रहने वाले थे। उनके परिवार में माता-पित अलावा दो भाई और एक बहन थी। उन्हें अपने परिवार के सदस्यों में सबसे अधिक याद अपनी माँ की आती थी। वे उनकी याद में कभी-कभी डूब जाते थे, क्योंकि उनकी माँ की चिट्ठियाँ अक्सर उनके पास आती रहती थीं।
प्रश्न 14.
फ़ादर बुल्के का अन्तिम संस्कार किस विधि से हुआ था और फ़ादर पास्कल तोयना ने उनके संबंध में क्या.कहा था?
उत्तर:
फ़ादर बुल्के का अन्तिम संस्कार रांची के फ़ादर पास्कल तोयना द्वारा हिन्दी में प्रार्थना कर मसीही विधि से किया गया था। फ़ादर पास्कल तोयना ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था-“फ़ादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों।” यह कह कर उनकी देह कब्र में उतार दी गयी थी।
प्रश्न 15.
फ़ादर कामिल बुल्के ने हिन्दी के विकास में कैसे योगदान दिया?
उत्तर:
फ़ादर कामिल बल्के के मन में हिन्दी के प्रति अपार प्रेम समाया हुआ था। उन्होंने हिन्दी में एम. ए. किया। ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ पर शोध ग्रन्थ लिखा। बाइबिल का हिन्दी में अनुवाद किया। अंग्रेजी-हिन्दी का सबसे प्रामाणिक कोश तैयार किया और जीवन भर हिन्दी को पढ़ाते रहे। साथ ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में रहे।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ संस्मरण पाठ का सार एवं संदेश संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ के लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने फादर बुल्के के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है। बेल्जियम (यूरोप) के रेम्स चैपल शहर में जन्मे फादर कामिल बुल्के एक ईसाई संन्यासी थे। जो गिरजों, पादरियों, धर्मगुरुओं और संतों की भूमि कही जाती है। लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि भारत को बनाया। फादर बुल्के ने परिवार और इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर विधिवत संन्यास धारण किया था। फादर भारतीय संस्कृति से प्रभावित थे इसलिए भारत आ गए और यहीं के होकर रह गए। उन्होंने भारत में ही अपनी पढ़ाई की।
1950 में प्रयाग विश्वविद्यालय से ‘रामकथा: उत्पत्ति और विकास’ शोध प्रबंध पूरा किया। उन्होंने अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश तैयार किया। लेखक के अनुसार फादर वात्सल्य व स्नेह की मूर्ति थे। सबके दुःख-सुख में शामिल होते थे। जिससे एक बार रिश्ता जोड़ते थे, उसका साथ जीवन-पर्यन्त नहीं छोड़ते थे। फादर की दिली इच्छा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की थी। 18 अगस्त, 1982 को उनका देहान्त हो गया था। इस पाठ से करुणा एवं सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करने का संदेश मिलता है। साथ ही हम भारतवासियों को विदेश का लोभ त्याग कर अपने देश की सेवा करनी चाहिए का भाव प्रकट होता है।
प्रश्न 2.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ में सक्सेना की दृष्टि में फादर का व्यक्तित्व किस प्रकार का था? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की दृष्टि में फादर बुल्के के प्रति कैसे विचार थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने जीवन-भर दूसरों को वात्सल्य एवं प्रेम का अमृत पिलाया, जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त कुछ और नहीं था उसकी मृत्यु जहरबाद से होना, ईश्वर का फादर के प्रति अन्याय है। लेखक ने फादर की तुलना उस छायादार, फलदार, सुगंधित वृक्ष से की, जो अपनी शरण में आने वाले। सभी लोगों को अपने मधुर सम्भाषण एवं सांत्वना से शीतलता प्रदान करते हैं। फादर बुल्के लेखक की नजरों में सबके साथ रहते हुए, हम सबसे अलग थे। प्राणी मात्र के लिए उनका प्रेम व वात्सल्य उनके व्यक्तित्व को मानवीय करुणा की दिव्य चमक से प्रकाशमान करता था। लेखक के लिए उनकी स्मृति किसी यज्ञ की पवित्र अग्नि की आँच की तरह थी, जिसकी तपन वे हमेशा महसूस करेंगे।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका जन्म सन् 1927 में जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनकी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई। वे अध्यापक, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, दिनमान में उपसम्पादक और पराग के सम्पादक रहे। मध्यवर्गीय जीवन की आकांक्षाओं, सपनों, संघर्ष, शोषण, हताशा और कुंठा का चित्रण उनके साहित्य में मिलता है।
उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं-काठ की घंटियाँ, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूटियों: पागल कत्तों का मसीहा, सोया हआ जल (कहानी-संग्रह): बकरी (नाटक): भौ-भौ खौ खौ, बतूता का जूता, लाख की नाक (बाल-साहित्य) आदि। सन् 1983 में उनका आकस्मिक निधन हुआ था। उनकी अभिव्यक्ति में सहजता और स्वाभाविकता है।

मानवीय करुणा की दिव्या चमक Summary in Hindi

लेखक-परिचय :
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जन्म सन् 1927 में जिला बस्ती (उ.प्र.) में हुआ। उनकी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। वे अध्यापक, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, ‘दिनमान’ में उपसम्पादक और ‘पराग’ के सम्पादक रहे। सन् 1983 में उनका निधन हो गया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, निबन्धकार और नाटककार थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ’काठ की घंटियाँ’, ‘कुआनो नदी’, ‘जंगल का दर्द’, ‘खूटियों पर टंगे लोग’ (कविता-संग्रह); ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुआ जल’ (उपन्यास); ‘लड़ाई’। (कहानी-संग्रह); ‘बकरी’ (नाटक) आदि हैं।
पाठ-परिचय :
‘मानवीय करुणा की दिव्य-चमक’ में फादर कामिल बुल्के के स्नेहपूर्ण व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है। फादर बुल्के का जन्म बेल्जियम (यूरोप) के रैम्सचैपल शहर में हुआ था। उनके घर में माँ, पिता, दो भाई और एक बहन थी। उन्हें छोड़कर वे भारत आ गये थे और फिर भारत को ही अपनी कर्मभूमि बनाकर जीवन की अन्तिम श्वासों तक यहीं रहे। उन्होंने इलाहाबाद से एम.ए. हिन्दी में किया।
राँची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में ‘हिन्दी’ वभागाध्यक्ष रहे। उन्होंने ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ पर महत्त्वपूर्ण शोध कार्य किया, ‘अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश’ तैयार किया और ‘बाइबिल’ का अनुवाद किया। वे स्नेहशील, रिश्ते बनाकर रहने वाले व्यक्ति थे। वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत व्यग्र थे। प्रस्तुत संस्मरण में उनके व्यक्तित्व के अनेक अनुकरणीय गुणों का उल्लेख किया गया है।

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