RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी
RBSE Class 10 Hindi एक कहानी यह भी Textbook Questions and Answers
लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा, वे थे, लेखिका के पिताजी और लेखिका की हिन्दी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल। पिताजी ने लेखिका को राजनैतिक बहसों में शामिल करके देश और समाज के प्रति जागरूक बनाया। इसके साथ ही उन्होंने उसे रसोईघर और सामान्य घर-गृहस्थी के कामों से दूर रखकर प्रतिभाशाली व्यक्तित्व प्रदान किया।
इस आत्मकथा में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों सम्बोधित किया है?
उत्तर:
इस आत्मकथा में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर इसलिए सम्बोधित किया है, क्योंकि भटियारखाने में खाना-पकाना चलता रहता है। रसोईघर में व्यस्त रहने वाली लडकियों: व्यस्त रहने वाली लड़कियों की प्रतिभा व्यर्थ नष्ट हो जाती है। इसलिए लेखिका के पिता अपने बच्चों को घर-गृहस्थी या चूल्हे-चौके तक सीमित नहीं रखना चाहते थे, बल्कि वे उन्हें चूल्हे-चौके के काम से हटाकर जागरूक नागरिक बनाना चाहते थे। अतः उन्होंने रसोईघर की उपेक्षा करते हुए उसे ‘भटियारखाना’ सम्बोधित किया है।
वह कौनसी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर:
एक बार कॉलेज की प्रिंसिपल ने लेखिका के पिता को पत्र लिखकर कॉलेज में बुलाया। पिता को लगा कि उनकी पुत्री ने कॉलेज में अवश्य कोई गम्भीर शरारत की होगी। अतः पत्र पढ़कर वे भड़क उठे, क्योंकि वे पहले से ही लेखिका के विद्रोही रुख से परेशान रहते थे। उन्हें लगा कि इस लड़की के कारण उन्हें सिर झुकाना पड़ेगा। इसलिए वे बड़बड़ाते हुए कालेज गए। जब वे कॉलेज पहुँचे तब उन्हें पता चला कि उनकी लड़की तो सब लड़कियों की चहेती नेत्री है।
लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर बताइये कि लेखिका के अपने पिता से क्या वैचारिक मतभेद थे?
उत्तर:
लेखिका के पिताजी का स्वभाव क्रोधी, शक्की व अहंवादी था। वे लेखिका को देश-समाज के प्रति जागरूक बनाना चाहते थे लेकिन वे उसे घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखना चाहते थे। लेखिका को पिता की यह सीमा स्वीकार नहीं थी, वह सक्रिय रूप से आन्दोलनों में भाग लेना चाहती थी। लेखिका ने पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया था। इससे लेखिका की उनसे वैचारिक टकराहट थी।
इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आन्दोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नूजी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
सन् 1942 से 1947 तक का समय स्वतन्त्रता आन्दोलन का समय था। इस काल में पूरे देश में देश-भक्ति की भावना अपने पूरे जोश के साथ बह रही थी। जगह-जगह पर आन्दोलन हो रहे थे। जुलूस और प्रभातफेरियाँ निकाली जा रही थीं। स्कूल और कॉलेजों के विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षाओं को छोड़कर जुलूसों और प्रभातफेरियों में शामिल हो रहे थे। ऐसे देश-भक्ति के वातावरण में मन्नू भण्डारी भी अपना उत्साह और जोश दिखाने में पीछे नहीं रहीं।
लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली-डण्डा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले, किन्तु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज की लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गयी हैं? अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
लेखिका ने तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार अपने भाई-बहनों के साथ गुल्ली-डण्डा खेलने तथा पतंग उड़ाने के खेल अपने घर की सीमा के अन्दर ही खेले, लेकिन उस जमाने में घर की दीवारें केवल अपने घर तक ही सीमित नहीं थीं बल्कि एक दृष्टि से पूरे मोहल्ले तक फैली हुई थीं। उस समय किसी के घर जाने में किसी भी प्रकार की पाबन्दी नहीं थी। उस समय के लोगों की सोच बड़ी थी और अपने मन का भाव उनके विशाल हृदयों में समाया हुआ था। आज लड़कियों के लिए स्थितियों में पूरी तरह बदलाव आ गया है।
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परन्तु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है, क्योंकि सुख-दु:ख में सबसे पहले आस-पडोस के ही लोग काम आते हैं और सहयोगी बनते हैं। लेकिन वर्तमान में पाश्चात्य सभ्यता और टी.वी. संस्कृति के प्रभाव ने महानगरों की कल्चर में रहने वाले लोगों को इतना आत्मकेन्द्रित बना दिया है कि वे आस-पड़ोस के जीवन से मानो बेगाने हो गये हैं। धन कमाने की लालसा उनके मन में इतनी बढ़ गयी है कि उन्हें यही पता नहीं चलता कि उनके पड़ोस में कौन रहता है? सम्पर्क की बात तो अलग रह जाती है। इसलिए वे ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं।
लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर:
लेखिका द्वारा पढ़े गये उपन्यासों में ‘त्याग-पत्र’, ‘सुनीता’ (जैनेन्द्रजी), ‘शेखर: एक जीवनी’ (अज्ञेयजी), ‘चित्रलेखा’ (भगवतीचरण वर्मा) आदि हैं। इसके साथ ही लेखिका ने शरत, प्रेमचन्द, यशपाल आदि के साहित्य को भी पढ़ा।
आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर:
छात्र अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में स्वयं लिखें।
(क) इस बीच पिताजी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिताजी की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिताजी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिताजी आग-बबूला हो गये।
उत्तर:
(क) घर चलो, देखो मैं कैसे तुम्हारी लू उतारता हूँ।
(ख) मेरे घर पहुंचने से पूर्व ही मेरा मित्र मेरे विरुद्ध आग लगा चुका था।
(ग) जब लोगों ने उसके दुराचार की बात सुनी तो वे थू-थू करने लगे।
(घ) परीक्षा परिणाम-पत्रक देखते ही पिताजी आग-बबूला हो गये।
RBSE Class 10 Hindi एक कहानी यह भी Important Questions and Answers
कठिन शब्दार्थ :
- साम्राज्य = अधिकार।
- निहायत = बहुत अधिक।
- बेपढ़ी-लिखी = बिना पढ़ी-लिखी, अनपढ़।
- तत्पर = तैयार।
व्याख्या – लेखिका मन्नू भण्डारी बताती है कि उनका जन्म मध्यप्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था। लेकिन जहाँ तक उनकी याददाश्त की बात है तो वह अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के दो-मंजिला मकान से जुड़ी है। जिसकी ऊपरी मंजिल पर उनके पिता का सामान बुरी तरह अवस्थित अधिकार के साथ फैला हुआ था। जिनके बीच में बैठकर वे या तो अखबार पढ़ते रहते या फिर ‘डिक्टेशन’ देते रहते थे।
- लेखिका ने आत्मकथ्य की शुरुआत पिता-माता के कृतित्व-व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया गया है।
- भाषा शैली सरल-सहज एवं प्रवाहमय है।
- भग्नावशेष = टूटे-फूटे (खंडहर)।
- बल-बूता = हिम्मत।
- निचोड़ना = खत्म करना।
- लेखिका ने पिताजी के सकारात्मक-नकारात्मक दोनों पक्षों पर प्रकाश डाला है।
- भाषा शैली सरल-सहज व प्रवाहपूर्ण है।
- विस्फारित = और अधिक फैलना।
- अहं = अभिमान।
- शीर्ष = ऊँचाई।
- हाशिया = किनारा।
- यातना = सजा, पीड़ा।
- विश्वासघात = धोखा।
- लेखिका ने पिताजी के शक्की व्यवहार के पीछे की वजह पर प्रकाश डाला है।
- भाषा शैली प्रवाहमय, शांत एवं सरल है।
- पित् – पिता। गाथा = कहानी।
- खूबी = विशेषता। खामी = दोष।
- ग्रंथि = गाँठ।
- मरियल = मरी हुई सी।
- उबरना = बाहर निकलना।
- लेखिका ने अपने मन की गाँठ को व्यक्त किया है। आत्मकथ्य की विशेषता है, गुण-दोष को निरपेक्षता के साथ व्यक्त करना, जो लेखिका ने किया है।
- भाषा शैली सरल-सहज व भावबोधक है।
- अचेतन = मन में कहीं गहरे, चेतनारहित।
- खंडित = टूटा-फूटा।
- व्यथा = पीड़ा।
- लेखिका ने अपने व्यक्तित्व की छाया में पिताजी के स्वरूप को ही स्वीकार किया है।
- भाषा शैली सरल-सहज व भाव उद्वेगपूर्ण है।
- पाबंदी = रोक-टोक, निषेध।
- शिद्दत = कठिनाई, कष्ट।
- विच्छिन्न = अलग-थलग।
- संकुचित = सिकुड़ा हुआ।
- असहाय = बेचारा।
व्याख्या – लेखिका बताती है कि बचपन में उन्होंने सभी तरह के खेल खेले। गिल्ली-डंडा, पतंग उड़ाना, माँझा सतना सभी। लेकिन लडकियों के खेल का दायरा घर में ही सीमित रहता था। सबसे अच्छी बात यह थी कि उस समय घर की दीवारें घर तक ही न सीमित होकर पूरे मोहल्ले में फैली रहती थीं। मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। सब घर एक परिवार की तरह रहते थे इसलिए कोई भी किसी के घर आ-जा सकता था।
- लेखिका ने महानगरीय परिवेश के एकल जीवन पर दुःख व्यक्त किया है।
- भाषाशैली प्रवाहपूर्ण एवं सरल-सहज है।
- सुघड़ = कुशल, निपुण।
- नुस्खा = विधि।
- भटियारखाना = खाना बनाने की जगह।
- जमावड़ा = इकट्ठा होना।
- शंगल = शौक।
- लेखिका ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय एवं पिता द्वारा पुत्री को देश के हालात जानने की इच्छा पर प्रकाश डाला है।
- भाषाशैली प्रवाहमय, सहज-सरल है।
- ककहरा = बारहखड़ी।
- बाकायदा = कायदे से, तरीके से।
- लेखिका ने साहित्य के प्रति जिज्ञासा, प्रेम व बदलते दृष्टिकोण को व्यक्त किया है।
- भाषा शैली प्रवाहपूर्ण तथा सहज-सहज शब्दों से गुंथित है।
- दमखम = जोश।
- उन्माद = नशा, पागलपन, सनक।
- बवंडर = आँधी-तूफान, चक्रवात।
- बर्दाश्त = सहन।
- दायरा = सीमा।
- लेखिका ने यहाँ अपने पिता व स्वयं के मध्य वैचारिक मतभेद को स्पष्ट किया है।
- भाषाशैली ओजपूर्ण, प्रवाहमय व सारगर्भित है।
- रग = नस।
- लहू = खून, रक्त।
- निषेध = रोक, बाधा।
- वर्जना = नियम, रोक।
- ध्वस्त = नष्ट, खत्म।
- कामना = अभिलाषा।
- लिप्सा = इच्छा, चाह।
- धुरी = नियम।
- वर्चस्व = प्रभुत्व, अधिकार।
- कोप = क्रोध।
- लेखिका ने अपना विद्रोह एवं पिता के नियम-सिद्धान्तों की व्याख्या की है।
- भाषाशैली ओजमयी, प्रवाहपूर्ण है। भावों का उतार-चढ़ाव सहज है।
- मूल = जड़।
- अंतर्विरोध = मन की भावनाओं में विरोध।
- लालसा = इच्छा, चाह।
- लेखिका अपने पिता के अंतर्विरोधों को स्पष्ट करती है। विशिष्टता और सामाजिक अच्छी छवि दोनों में अन्तर्भेद है को व्यक्त करती है।
- भाषा शैली प्रवाहमय है। शब्दों का वाक्य-विन्यास अद्भुत है।
‘एक कहानी यह भी’ किसके द्वारा लिखा गया आत्मकथ्य है?
उत्तर:
‘एक कहानी यह भी’ मन्नू भंडारी द्वारा लिखा गया आत्मकथ्य है।
मन्नू भंडारी का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
मन्नू भंडारी का जन्म मध्यप्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था।
लेखिका के पिताजी ने कौन-से शब्दकोश की रचना की?
उत्तर:
लेखिका के पिताजी ने अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश (विषयवार) की रचना की।
लेखिका बचपन में कैसी दिखती थी?
उत्तर:
लेखिका बचपन में मरियल-सी, दुबली एवं काली दिखती थी।
लेखिका के पिताजी का स्वभाव कैसा था?
उत्तर:
लेखिका के पिताजी एक तरफ कोमल, संवेदनशील थे तथा दूसरी तरफ क्रोधी, शक्की और अहंवादी थे।
‘भग्नावशेषों को ढोते पिता’ पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उनके पिताजी की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी। वे अपने पुराने गुणों को बचे-खुचे अंशों के सहारे जी रहे थे।
लेखिका के पिताजी का शक्की होना किस कारण से हुआ?
उत्तर:
उनके पिताजी को अपनों के विश्वासघात ने शक्की बना दिया था।
लेखिका पर अपने पिता के कारण कौन-से नकारात्मक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
लेखिका हीन-भावना से ग्रस्त तथा “बहुत’ अपनों के विश्वासघात के कारण चिड़चिड़ी और शक्की हो गई थी।
लेखिका को साहित्यिक दुनिया से किसने परिचय करवाया?
उत्तर:
लेखिका को उनकी हिन्दी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने चुन-चुन कर साहित्य पढ़ने की सलाह दी। तथा साहित्य से परिचय करवाया।
लेखिका को वर्तमान में कैसा जीवन पसन्द नहीं था?
उत्तर:
लेखिका को महानगरीय फ्लैट्स में रहने वाला एकाकी जीवन पसन्द नहीं था।
लेखिका ने अपने विद्यार्थी जीवन में किस तरह के कार्यक्रमों में भाग लिया?
उत्तर:
लेखिका ने हड़ताल, जुलूस, भाषण तथा प्रभात-फेरियों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर मन्नू भण्डारी के व्यक्तित्व की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ के आधार पर मन्नू भण्डारी के व्यक्तित्व की तीन विशेषताएँ ये हैं – (1) नेतृत्व क्षमता-उस समय स्वतन्त्रता आन्दोलन में छात्रों का नेतृत्व किया, प्रभातफेरियों और जुलूसों में भाग लिया। (2) साहित्यिक चेतना मन्नू भण्डारी अपने पिता के साथ गोष्ठियों में भाग लेती थी। प्रो. शीला अग्रवाल के प्रभाव से उनका लेखकीय व्यक्तित्व उभरा। (3) विद्रोही स्वभाव-मन्नू भण्डारी प्रारम्भ से ही विद्रोही स्वभाव की थी। पिता से विद्रोह कर अपनी पसन्द से ‘विवाह किया।
मन्नू भण्डारी के पिताजी के स्वभाव की क्या विशेषताएँ थी?
उत्तर:
मन्नू भण्डारी के पिता अत्यन्त कोमल, संवेदनशील और प्रखर समाज-सुधारक होने के साथ ही शक्की स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अन्तर्विरोधों के बीच जीने के कारण अस्थिर चित्त व्यक्ति होने के साथ ही बेहद क्रोधी और अहमवादी व्यक्ति थे।
‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर सन् 1946-47 में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
सन् 1946-47 के दिनों में आजादी के नाम पर स्त्रियों को उतनी ही स्वतन्त्रता थी कि वे घर में आए लोगों के बीच उठे-बैठें और देश की स्थितियों को समझें, परन्तु घर से बाहर निकल कर हड़तालों, जुलूसों में भाग न लें।
“आर्थिक स्थिति खराब हो जाने पर व्यक्ति के स्वभाव और विचारों में भी परिवर्तन आ जाता है।” ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
आर्थिक स्थिति खराब हो जाने पर व्यक्ति की प्रसन्नता, उदारता और सदाशयता नष्ट हो जाती है। वह संकुचित, कंजूस और शक्की हो जाता है। ऐसा व्यक्ति सद्भावनाओं से रहित होकर क्रोधी, अहंवादी, प्रतिष्ठा की झूठी शान रखना आदि विरोधी भावनाओं से ग्रस्त हो जाता है।
अपनों का विश्वासघात व्यक्ति की दशा और दिशा दोनों को बदल देता है। ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपनों का विश्वासघात व्यक्ति को तोड़कर रख देता है। वह स्थान बदलने के साथ ही शक्की, अहंकारी, क्रोधी और चिड़चिड़ा लेखिका के पिता की भाँति होकर अपने व्यक्तित्व को भी खण्डित कर लेता है।
लेखिका के पिता की कार्यशैली कैसी थी?
उत्तर:
लेखिका के पिता. विद्वान् लेखक थे। समय की मार ने उन्हें कमजोर बना दिया था, इसलिए उनकी कार्यशैली अव्यवस्थित हो गयी थी। वे फैली-बिखरी पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि के बीच कुछ पढ़ते रहते या फिर ‘डिक्टेशन’ देते रहते थे। वे घर पर ही आश्रय देकर छात्रों को पढ़ाते भी थे।
लेखिका की माँ अपनी सन्तानों के लिए आदर्श क्यों नहीं बन पाई?
उत्तर:
लेखिका की माँ अपनी संतानों के लिए अपने व्यक्तित्व की कमजोरियों के कारण आदर्श नहीं बन पाई, क्योंकि जहाँ वे एकदम भोली और अशिक्षित थीं, वहीं वे बेचारी निरीह और व्यक्तित्वविहीन थीं।
“पड़ोस-संस्कृति मानव-मन को प्रभावित करती है।” ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखिका के एक दर्जन प्रारम्भिक कहानियों के पात्र अजमेर के उसी मोहल्ले के रहे जिनके बीच उसका बचपन और किशोरावस्था बीती थी। लेखिका को उनकी जीवन-शैली, भाव-भंगिमाएँ, भाषा आदि याद रहीं। इससे स्पष्ट होता है कि पड़ोस-संस्कृति मानव-मन को प्रभावित करती है।
लेखिका किसके सहयोग से जागरूक नागरिक बन पायी?
उत्तर:
लेखिका के पिता ने उसे रसोईघर से हटाकर, सामाजिक समस्याओं की ओर उन्मुख किया। उसे घर में होने वाली बडी-बडी चर्चाओं में शामिल किया, जिससे वह उनके सहयोग से जागरूक नागरिक बन पायी।
लेखिका के मन में हीनता की ग्रन्थि कैसे पनप गयी थी?
उत्तर:
लेखिका के पिता उसकी बड़ी बहिन सुशीला को उसके स्वस्थ शरीर, हँसमुख स्वभाव और गोरे रंग-रूप के कारण बहुत प्यार करते थे। वे हर बात में उसकी प्रशंसा और उससे लेखिका की तुलना करते थे। इससे लेखिका के मन में अपने-आप हीनता की ग्रन्थि पनप गयी थी।
लेखिका के मन में पनपी हीन ग्रन्थि का क्या दुष्परिणाम हुआ? .
उत्तर:
लेखिका के मन में पनपी हीन-ग्रन्थि ने उसे हमेशा के लिए दबा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि वह अपनी उपलब्धियों पर भरोसा नहीं कर पाती थी। खण्डित विश्वास के कारण अपनी उपलब्धि को वह तुक्का समझने लगी, उसे वह अपनी योग्यता का प्रतिफल नहीं मानती थी।
लेखिका को देश-चिन्तक बनाने में आप किसकी भूमिका को महत्त्वपूर्ण मानते हो और क्यों?
उत्तर:
लेखिका को देश-चिंतक बनाने के मामलों में उसके पिता की भूमिका को ही महत्त्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि उन्होंने ही उसे रसोईघर से हटाकर घर में होने वाली राजनैतिक संगोष्ठियों में उठना-बैठना सिखाया।
प्रो. शीला अग्रवाल की जोशीली बातों का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
प्रो. शीला अग्रवाल की जोशीली बातों से लेखिका के मन में साहस, जोश और उत्साह का भाव जागा। उसमें साहित्यिक संस्कार पनपने लगे। परिणामस्वरूप लड़कियों की अगुआ बनकर हड़तालें करवाने लगी और चौराहों पर खड़े होकर जोरदार भाषण देने लगी।
‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि “दकियानूसी विचारधारा जहाँ मन को हतोत्साहित करती है, वहीं प्रगतिशील विचारधारा मानव मन को गर्वित करती है।”
अथवा
“दकियानूसी विचारधारा जहाँ मानव मन को हतोत्साहित करती है, वहीं प्रगतिशील विचारधारा मानव मन को गर्वित करती है।” ‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर कथ्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखिका की भाषणबाजी को सुनकर लेखिका के पिता के दकियानूसी मित्र ने जहाँ उन्हें हतोत्साहित कर लेखिका को घर से बाहर निकलना बन्द करवा दिया था, वहीं वे डॉ. अम्बालाल द्वारा लेखिका की प्रशंसा सुन कर गर्वित हो उठे थे।
थर्ड ईयर फिर से खुलने की खुशी लेखिका के मन में किस कारण से दबकर रह गई थी?
उत्तर:
अगस्त, 1947 के महीने में लेखिका और उसकी सहेलियों ने संघर्ष करके थर्ड ईयर की कक्षा को खुलवाया था, लेकिन उन्हीं दिनों देश आजाद हो गया। उसी खुशी के आगे कक्षा खुलने की खुशी दबकर रह गयी थी।
‘एक कहानी यह भी’ आपको क्या सन्देश देती है?
उत्तर:
‘एक कहानी यह भी’ हमें कई सन्देश देती है। पहला सन्देश यह है कि स्वतंत्रता और जन-आन्दोलनों में स्त्री-पुरुष की बराबरी की भागीदारी होनी चाहिए। दसरा सन्देश यह है कि माता-पिता को में किसी भी तरह से बाधक नहीं बनना चाहिए और सन्तानों को भी अच्छी परम्पराओं और पारिवारिक संस्कारों से अलग नहीं होना चाहिए।
लेखिका को अपने पिता से संघर्ष क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
लेखिका के पिता जहाँ एक ओर सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनाये रखना चाहते थे, वहीं दूसरी ओर वे अपनी पुत्री को विशिष्ट बनाने के साथ ही उसे परिवार की मर्यादा में रखना चाहते थे। इसी आधार पर उनकी लड़की ने क्रान्ति की राह पकड़कर लड़कों के साथं घूम-घूम कर नारे लगाये, हड़तालों में भाग लिया। इस कारण लेखिका को अपने पिता से संघर्ष करना पड़ा।
किन कारणों से लेखिका के मन में हीन-भावना घर कर गयी थी?
उत्तर:
लेखिका की बड़ी बहन सुशीला बहुत ही स्वस्थ और गोरी थी जबकि लेखिका काली और मरियल थी। जिसके कारण उसके पिता उसकी उपेक्षा कर बातों ही बातों में सुशीला की प्रशंसा किया करते थे। लेखिका उनकी भावना को अच्छी तरह समझ गयी थी। जिसके कारण लेखिका के मन में अपने काले रंग और मरियल शरीर के प्रति हीन भावना घर कर गयी थी।
मन्नू भंडारी की एक कहानी यह भी’ का सार संक्षिप्त रूप में लिखिए।
उत्तर:
मन्नू भण्डारी की ‘एक कहानी यह भी’ उनके जीवन की प्रारम्भिक घटनाओं की कथा है। इसमें मन्नू लेवार आत्मकथा नहीं लिखी है। उन्होंने अपने इस आत्मकथ्य में उन घटनाओं और व्यक्तियों को परिप्रेक्ष्य में लिया है, जो उनके जीवन से जुड़े हैं। अपने पिताजी-माताजी, भाई-बहनों के परिचय के साथ पिताजी के विचारों का संक्षिप्त रूप से वर्णन किया है। युवावस्था से जुड़ी घटनाओं के साथ पिताजी के कार्य-व्यवहार एवं उनकी कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का व्यक्तित्व विशेष रूप से प्रकट हुआ है। जिन्होंने आगे चलकर लेखकीय व्यक्तित्व निर्माण में उनका आधार बने हैं।
मन्नू भंडारी की ‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर उनके पिताजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मन्नू भंडारी के पिताजी एक सुशिक्षित, दरियादिल व संवेदनशील व्यक्ति थे। जब वे इन्दौर में रहते थे तब उनकी बड़ी प्रतिष्ठा व सम्मान था। समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने के साथ-साथ राजनीति में भी काफी दिलचस्पी रखते थे। लेकिन इंदौर में ही एक आर्थिक झटके के कारण, वो भी अपनों द्वारा किये गए विश्वासघात की वजह से वे इंदौर छोड़ अजमेर आ गए। शिक्षा का वे केवल उपदेश ही नहीं देते थे वरन् आठ-आठ, दस-दस विद्यार्थियों को अपने घर में रखकर पढ़ाया करते थे।
‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका ने आस-पड़ोस की संस्कृति के महत्त्व पर कैसे प्रकाश डाला है? समझाइये।
उत्तर:
लेखिका ने अपने बचपन की घटनाओं द्वारा यह समझाने का प्रयत्न किया है कि पड़ोस व्यक्ति के निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाता है। जब वह छोटी थी तब उनके लिए परिवार में रहने की ही बाध्यता थी। लेकिन यह परिवार पूरे मोहल्ले को मिलाकर बनता था। मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर पाबंदी नहीं थी बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा थे। आपसी सहयोग, मेलजोल, सद्भावना, सहानुभूति, भाई-चारा, अपनापन सभी पड़ोस-संस्कृति द्वारा ही प्राप्त होता है।
मन्नू भंडारी अपने व्यक्तित्व में उपजी हीन भावना व कुंठा को किस प्रकार पिता की देन मानती हैं? . स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखिका के पिताजी संवेदनशील व्यक्ति थे, लेकिन अपनों द्वारा दिए गए एक बड़े विश्वासघात ने उनकी आर्थिक स्थिति बिगाड़ दी थी जिसकी वजह से वे शक्की और क्रोधी हो गए थे। लेखिका को बचपन से ही उनके इस शक का और क्रोध का खामियाजा भुगतना पड़ा। पिताजी को चूँकि गोरा रंग पसंद था और लेखिका काली, दुबली व मरियल-सी थी।
लेखिका मन्नू भंडारी के खंडित आत्मविश्वास को उनकी अध्यापिका द्वारा किस प्रकार उभारा गया? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मन्नू भंडारी के सफल व्यक्तित्व पर उनकी अध्यापिका की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लेखिका मन्नू भंडारी बचपन से ही हीन भावनाओं से ग्रसित थी। उनके अनुसार उन्हें स्वयं को लेकर अनेक कुंठाएँ उनके मन में जमी हुई थीं। जब वे कॉलेज के प्रथम वर्ष में आई, तब उनका नई नियुक्त हुई हिन्दी की अध्यापिका शीला अग्रवाल से परिचय हुआ। अब तक बिना लेखकों को जाने-समझे किताबें पढ़ने वाली मन्नू को शीला अग्रवाल ने प्रसिद्ध लेखकों की विचारात्मक किताबें पढ़ने की सलाह दी। वे उन्हें चुन-चुन कर किताबें पढ़ने को देती और बाद में उन पर लम्बी बहस भी करती थी।
मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए संक्षेप में उनके कृतित्व के बारे में भी बताइये।
उत्तर:
मन्नू भंडारी का जन्म सन् 1931 में भानपुरा गाँव (मध्यप्रदेश) में हुआ। उनकी पढ़ाई-लिखाई राजस्थान के अजमेर शहर में हुई। हिन्दी कथा साहित्य की प्रमुख लेखिका की रचनाओं में स्त्री-मन से जुड़ी अनुभूतियों को देखा जा सकता है। कहानियाँ, उपन्यास, फिल्म-कथा सभी में उनकी भाषा की सादगी तथा प्रामाणिक अनुभूति स्पष्ट दिखाई देती है। ‘एक प्लेट सैलाब’, ‘मैं हार गई’, ‘त्रिशंक’ (कहानी-संग्रह): ‘आपका बंटी’, ‘महाभोज’ (उपन्यास) तथा ‘एक कहानी यह भी’ (आत्मकथ्य) आदि। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए इन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। दिल्ली के मिरांडा हाउस में अध्यापन के पश्चात् आजकल दिल्ली में ही ये स्वतंत्र लेखन कर रही हैं।