RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति
RBSE Class 10 Hindi संस्कृति Textbook Questions and Answers
लेखक की दृष्टि से ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर:
लेखक की दृष्टि से ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक इसलिए नहीं बन पायी, क्योंकि हम इन दोनों बातों को एक ही समझते हैं या एक-दूसरे में मिला देते हैं। वस्तुतः इन दोनों शब्दों के साथ अनेक विश्लेषण लगा देने के कारण इनका अर्थ गड़बड़ा जाता है। दोनों के अन्तर को समझने का प्रयास भी नहीं हुआ और संस्कृति को देशों और धर्मों में बाँटकर परिभाषित करने की भी प्रवृत्ति रही है।
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर:
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज इसलिए मानी जाती है, क्योंकि यह खोज हमारे जीवन संचालन की एक बहुत बड़ी आवश्यकता भोजन पकाने के काम आती है। इसलिए इस खोज को आदिमनुष्य ने एक बहुत बड़ी खोज माना और आज भी हमारे जीवन में इसका सर्वोपरि स्थान है। इसकी खोज के पीछे पेट की ज्वाला शान्त करने की प्रेरणा प्रमुख थी, साथ ही प्रकाश और गर्मी पाने की प्रेरणा भी रही होगी।
प्रश्न 3.
वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार वास्तविक अर्थ में ‘संस्कृत व्यक्ति’ उसे कहा जा सकता है, जो अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर किसी नयी चीज की खोज करे और उसका दर्शन करे। अर्थात् किसी नयी चीज का आविष्कर्ता व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त खोजा। अतः उसे ‘संस्कृत व्यक्ति’ कहा जा सकता है।
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौनसे तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर:
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे लेखक ने तर्क देते हुए कहा है कि जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से किसी नयी चीज का अनुसंधान और दर्शन कर सकता है, वही व्यक्ति संस्कृत है। न्यूटन ने भी अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर विज्ञान के नियम की खोज की और उसे सबके सामने रखा। इस कारण वह संस्कृत व्यक्ति हुआ। लेकिन दूसरे लोग न्यूटन के सिद्धान्त की बारीकियों को भले ही ज्यादा जानते हों, इसलिए वे सभ्य तो कहे जा सकते हैं, पर संस्कृत व्यक्ति नहीं कहला सकते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर किसी नयी चीज की खोज नहीं की।
किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार किया होगा?
उत्तर:
जिस तरह आदिमानव ने सबसे पहले अपने शरीर को सर्दी-गर्मी से बचाने के लिए सूई-धागे का आविष्कार किया होगा। फिर अपने शरीर को सजाने के लिए सूई-धागे की सहायता से कपड़े के दो हिस्सों को सिला होगा और उसे शरीर पर पहना होगा।
‘मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।’ किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर:
(क) मानव संस्कृति एक है लेकिन यदि उसे हिन्दू और मुस्लिम धर्म के आधार पर देखा जाए तो काफी भेदभाव है। मनुष्य का यह स्वाभाविक गुण है, वह जिस संस्कृति का पक्षधर होता है उसको महान् बताना चाहता है और उसकी श्रेष्ठताओं और उपलब्धियों को याद रखना चाहता है। इसके साथ ही उसकी पहचान भी स्थापित करना चाहता है। मानव संस्कृति को धर्म-सम्प्रदाय के आधार पर बाँटने की चेष्टाएँ की गई हैं अर्थात् हिन्दू संस्कृति और मुस्लिम-संस्कृति कहकर उनसे एक-दूसरे को खतरा बताया गया है।
(ख) मानव-संस्कृति एक है। इसी बड़ी सोच के आधार पर हिन्दू-मुस्लिम का भेद त्यागकर हमारे महापुरुषों एवं मनीषियों ने सभी संस्कृतियों की अच्छी चीजों को खुले मन से अपनाया। ‘त्याग’ संस्कृति का श्रेष्ठ गुण है इसलिए इस गुण को हिन्दू हो या मुसलमान हो या फिर अन्य कोई सम्प्रदायी हो, सभी ने समान रूप से उसे अपनाने की चेष्टा की है। इसी तरह ‘बुद्ध’ के ‘अप्प दीपो भव’ (अपने दीपक स्वयं बनो) पर सभी का समान रूप से अधिकार है। जब अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराया गया तो दुनिया की सभी संस्कृतियों ने इसका खुलकर विरोध किया। इसी प्रकार ‘रसखान’ ने कृष्ण का गुणगान किया तो उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने बालाजी के लिया। इसी प्रकार हजारों की संख्या में हिन्दू अजमेर शरीफ जाकर दुआ करते हैं और पीरों की पूजा करते हैं।
आशय स्पष्ट कीजिए
मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम इसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
उत्तर:
आशय यह है कि मानव की जो योग्यता है, उस योग्यता के आधार पर उसे मानव कल्याण के लिए उपयोगी चीजों का आविष्कार आग और सुई-धागे की तरह करना चाहिए। उसका यह आविष्कार सृजन कहलाता है लेकिन जब मनुष्य अपनी योग्यता के आधार पर विनाश के साधनों का निर्माण करता है तब उसे असंस्कृत कहा जायेगा और उसके आविष्कार या नये निर्माण को संस्कृति न कहकर असंस्कृति ही कहा जायेगा।
लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं? लिखिए।
उत्तर:
लेखक ने स्पष्ट बताया है कि संस्कृति और सभ्यता में पर्याप्त अन्तर है। मानव-कल्याण की आत्मिक भावना रखना संस्कृति है, तो मानव-समाज का बाहरी आचरण सभ्यता है। इस तरह सभ्यता स्थूल होती है और उसके द्वारा हमारे रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा आदि का परिचय मिलता है, जबकि संस्कृति मन के भावों का परिष्कृत रूप है। इसके साथ ही हमारे विचार से संस्कृति आंतरिक वस्तु है और सभ्यता बाहरी।
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए
गलत-सलत आत्म-विनाश
महामानव पददलित
हिन्दू-मुसलमान यथोचित
सप्तर्षि सुलोचना।
उत्तर:
RBSE Class 10 Hindi संस्कृति Important Questions and Answers
- आध्यात्मिक = परमात्मा या आत्मा से संबंध रखने वाला।
- अन्तर = भेद।
विशेष :
- लेखक ने सभ्यता और संस्कृति दोनों पर जिज्ञासा व्यक्त की है कि क्या ये दोनों एक ही हैं या अलग-अलग अर्थ देते हैं।
- खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है। भाषा सरल-सहज व बोधगम्य है।
- साक्षात = आँखों के सामने प्रत्यक्ष, सीधे।
- पहले-पहल = सर्वप्रथम।
- आविष्कर्ता = खोज करने वाला, आविष्कार करने वाला।
- लेखक ने अग्नि व सुई-धागे की खोज द्वारा किस तरह मनुष्य की सभ्यता विकसित हुई उस पर प्रकाश डाला है।
- भाषा शैली सरल-सहज व प्रश्नात्मक है।
प्रवृत्ति = स्वभाव, आदत, व्यवहार।
प्रेरणा = मन में उत्पन्न उच्च विचार, जो प्रेरक बुद्धि प्रदान करे।
बल = शक्ति।
परिष्कृत = शुद्ध किया हुआ, साफ किया हुआ।
- लेखक ने सभ्यता और संस्कृति का अर्थ व भेद स्पष्ट किया है।
- भाषा शैली सरल-सहज व. परिष्कृत है।
- संस्कृत = शुद्ध, परिष्कृत।
- पूर्वज = पूर्व उत्पन्न हुए।
- अनायास = सायास, बिना प्रयास के।
- विवेक = बुद्धि।
- तथ्य = खोज, स्रोत, सत्य।
- लेखक ने संस्कृत व सभ्य के मध्य के अत्यन्त क्षीण अन्तर को प्रकट किया है।
- भाषा शैली सरल-सहज व बोध क्लिष्टता की ओर है।
- युग = समय।
- परिचित = जानकार।
- लेखक ने संस्कृत और सभ्य को न्यूटन के आविष्कार के माध्यम से समझाया है।
- भाषा सरल-सहज व परिनिष्ठत है। भाषा का प्रवाह सरल है।
- कदाचित् = कभी, शायद।
- ज्वाला = आग, अग्नि।
- शीतोष्ण = सर्दी-गर्मी।
- लेखक ने मनुष्य की जिज्ञासा प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है कि उसकी जिज्ञासा ही खोज का कारण होती है। नहीं भरा पेट तथा ढका तन आराम से सो भी सकता है।
- भाषा सरल-सहज व प्रश्नात्मक है।
- जननी = जन्म देने वाली।
- निठल्ला = खाली बैठना, बिना काम के बैठना।
- अंश = भाग, हिस्सा।
- चेतना = बुद्धि, जागृति।
- प्रधान = मुख्य।
- मनीषियों = ऋषि-मुनि, विद्वान।
- वशीभूत = वश में होना।
- लेखक ने ऋषि-विद्वानों की आंतरिक जिज्ञासु प्रवृत्ति तथा सहज व्यक्ति के भौतिक कारणों द्वारा उत्पन्न संस्कृति पर प्रकाश डाला है।
- भाषा प्रवाह सहज-सरल है। भाषा बोधगम्य एवं प्रभावपूर्ण है।
- ज्ञानेप्सा = ज्ञान की लिप्सा अर्थात् इच्छा।
- कौर = टुकड़ा।
- डैस्क = टेबल।
- त्याग = छोड़ना।
- तृष्णा = प्यास, लाभ।
- लेखक ने संसार के ऐसे कई उदाहरण प्रस्तुत किये हैं जिन्होंने अपने स्वसुख का त्याग कर परसुख को महत्ता प्रदान की है।
- भाषा शैली सरलता व सहजता से प्रेरित है। प्रश्नात्मकता इस शैली का प्रमुख गुण है।
- परिणाम = फल, निष्कर्ष।
- गमना-गमन = आने-जाने।
- परस्पर = एक-दूसरे।
- आत्म-विनाश = स्वयं का विनाश।
- नाता = रिश्ता।
- अतिरिक्त = अलावा।
- लेखक ने सभ्य एवं असभ्य तथा संस्कृत व असंस्कृत के माध्यम से यही संदेश दिया है कि परपीड़ा में सहभागी होना, संस्कृत व सभ्य होना है।
- भाषा शैली प्रवाहमय एवं परिनिष्ठित है। अर्थ व्यंजना गाम्भीर्य लिये हुए है।
- बोध = ज्ञान।
- रक्षणीय = रक्षा करने वाली।
- प्रज्ञा = बुद्धि, विवेक।
- तथ्य = सत्य।
- दलबंदी = गुटबंदी।
- अविभाज्य = जो बाँटा न जा सके।
- अंश = भाग, हिस्सा।
- लेखक ने कल्याण की भावना पर जोर देते हुए बताया है कि संस्कृति का प्रमुख भाग कल्याण में छिपा होता है।.
- भाषा प्रवाहपूर्ण व बोधयुक्त है। भाषा हिन्दी सरलता व सहजता लिये हुए है।
‘संस्कृति’ पाठ में कौनसे दो शब्द ऐसे हैं, जो सबसे अधिक काम में आते हैं?
उत्तर:
‘सभ्यता और संस्कृति’ सबसे अधिक काम में आते हैं।
किस आधार पर आग व सुई-धागे का आविष्कार हुआ?
उत्तर:
योग्यता, प्रवृत्ति तथा प्रेरणा के बल पर आग व सुई-धागे का आविष्कार हुआ।
आग व सुई-धागे का आविष्कार किसके अन्तर्गत आता है?
उत्तर:
आग व सुई-धागे का आविष्कार व्यक्ति विशेष की संस्कृति के अन्तर्गत आता है।
लेखक के अनुसार संस्कृति क्या है?
उत्तर:
नयी खोज की योग्यता, प्रवृत्ति या प्रेरणा ही संस्कृति है।
लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है?
उत्तर:
संस्कृति द्वारा किये गए या आन्तरिक योग्यता के आधार पर किये गए आविष्कार दूसरों के उपयोग में आते हैं, सभ्यता कहलाते हैं।
लेखक के अनुसार संस्कृत व्यक्ति कौन है?
उत्तर:
‘बुद्धि एवं विवेक’ से नए तथ्य का दर्शन करने वाला तथा आविष्कार करने वाला संस्कृत व्यक्ति है।
लेखक के अनुसार सभ्य व्यक्ति कौन है?
उत्तर:
पूर्वजों द्वारा प्राप्त ज्ञान व सत्य आविष्कार को उपयोग में लाने वाला सभ्य है।
मनुष्य ने आग का आविष्कार क्यों किया होगा?
उत्तर:
मनुष्य ने जरूरत के लिए पेट की भूख को शान्त करने के लिए अग्नि का आविष्कार किया होगा।
‘मोती का भरा थाल’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
मोती भरा थाल, आकाश में खिले तारों को कहा गया है।
लेखक ने किन मनोभावों को मानव-संस्कृति का जनक माना है?
उत्तर:
लेखक ने ‘भौतिक प्रेरणा, ज्ञानेप्सा और त्याग’ को मानव संस्कृति का जनक माना है।
मानवता के विकास के लिए किस मानवीय गुण का स्थान सर्वोपरि है?
उत्तर:
त्याग का स्थान सर्वोपरि है। माता का रात को सो न पाना, लेनिन व कार्ल मार्क्स की दूसरों के प्रति सहानुभूति तथा सिद्धार्थ का मानवता के लिए घर त्यागना।
‘संस्कृति और असंस्कृति’ में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मानव के विकास, ज्ञान और कल्याण की भावना संस्कृति में निहित है तथा मानवता के ह्रास, विनाश और अकल्याण की भावना असंस्कृति है।
‘संस्कृति’ पाठ में सर्वस्व त्याग के कौन-से उदाहरण दिये गये हैं?
उत्तर:
लेखक ने सर्वस्व त्याग के ये उदाहरण दिये हैं-
- माता रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लिए बैठी रहती है।
- लेनिन डबल रोटी का टुकड़ा स्वयं न खाकर दूसरों को खिलाता था।
- कार्ल मार्क्स ने मजदूरों की खातिर जीवनभर कष्ट झेले।
- सिद्धार्थ ने मानवता के हितार्थ अपना सारा सुख त्याग दिया था।
लेखक ने आग और सई-धागे का उदाहरण देकर किनके अन्तर को स्पष्ट किया है?
उत्तर:
लेखक ने आग अ गे का उदाहरण देकर संस्कृति और सभ्यता के अन्तर को स्पष्ट किया है। इन दोनों के आविष्कार करने की शक्ति अथवा मूल. प्रेरणा को संस्कृति तथा आविष्कार को सभ्यता बताया है।
लेखक ने संस्कृति और असंस्कृति किसे कहा है?
उत्तर:
लेखक ने मानव-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर किसी नये तथ्य की खोज करने की योग्यता को संस्कृति कहा है। लेकिन मानव का अकल्याण करने की भावना से की जाने वाली खोज की योग्यता को असंस्कृति कहा है।
लेखक के अनसार असभ्यता किसे कहेंगे?
उत्तर:
लेखक के अनुसार जब मनुष्य दूसरों के विनाश के लिए विध्वंसक हथियार बनाता है तो उसके द्वारा बनाये जाने वाले हथियारों जैसे बम, मिसाइलें, परमाणु बम आदि को असभ्यता ही कहेंगे।
लेखक ने संस्कृति के विविध रूप किन्हें माना है?
उत्तर:
लेखक ने आग और सुई-धागे का आविष्कार करने वाली भावना को, तारों की जानकारी चाहने वाली ज्ञान इच्छा को, पर-दुःख को लेकर संवेदनशील बनाने वाली प्रेरणा और सर्वस्व त्याग करने वाली महा मानवता को ही संस्कृति के विविध रूप माना है।
लेखक के अनुसार संस्कृति कब असंस्कृति हो जाती है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार संस्कृति में मानव-कल्याण की भावना निहित होती है। जब यही भावना टूट कर मानव के अकल्याण और विनाश में सहायक बन जाती है तब वह असंस्कृति हो जाती है।
लेखक किस बात से भयभीत है? आप उसके भय को दूर करने के लिए क्या सुझाव देना उचित समझेंगे?
उत्तर:
लेखक बढ़ती हुई असंस्कृति की भावना से भयभीत है, क्योंकि इससे मानव-संस्कृति का घोर अनर्थ हो, जायेगा। इस स्थिति में भय को दूर करने का सुझाव यह है कि हमारा वैज्ञानिक विकास कल्याणकारी भावना को लेकर हो। प्राप्त उपलब्धियों का उपयोग स्वार्थ से ऊपर उठकर हो।
लेखक ने सभ्य किसे कहा है?
उत्तर:
लेखक ने उस व्यक्ति को सभ्य कहा है जो संस्कृति के परिणामस्वरूप उत्पन्न वस्तुओं और परिणामों का ज्ञाता हो, परम्परा से प्राप्त आविष्कारों तथा उनसे प्राप्त वस्तुओं का उपयोग कल्याणकारी भावना से युक्त होकर करता हो।
लेखक के अनुसार मनुष्य-संस्कृति का जनक होने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार मनुष्य-संस्कृति का जनक होने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य अपनी भौतिक आवश्यकताओं से ऊपर उठकर निरन्तर किसी सूक्ष्म रहस्य की खोज में लगा रहे और उससे जानने का प्रयत्न करे।
मनीषियों से मिलने वाला ज्ञान हमें उनकी किस प्रवृत्ति के कारण प्राप्त होता है?
उत्तर:
मनीषियों से मिलने वाला ज्ञान उनकी सहज संस्कृति के कारण हमें प्राप्त होता है, क्योंकि वे हमेशा ही ज्ञान की खोज में लगे रहते हैं। वे अदम्य जिज्ञासा वृत्ति रखते हैं और सामान्य सफलता पर कभी भी संतुष्ट होकर नहीं बैठते हैं।
असंस्कृति और असभ्यता के संबंध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असंस्कृति असभ्यता की जननी है। जिस प्रकार संस्कृत व्यक्ति अपनी लगन से सभ्यता को जन्म देता है, उसी प्रकार मानव के विनाश में लगा हुआ व्यक्ति समस्त घातक हथियारों, युद्धक विमानों, मिसाइलों, परमाणु बमों आदि का आविष्कार करता है।
लेखक ने मानव-संस्कृति में कौनसी चीज स्थायी बतायी है और क्यों?
उत्तर:
लेखक ने मानव-संस्कति में कल्याणकारी निर्माण को स्थायी बताया है. क्योंकि अकल्याणकारी बातें समय के साथ ही अनुपयोगी सिद्ध हो जाती हैं, जबकि कल्याणकारी चीजें अपनी उपयोगिता के आधार पर दीर्घकाल तक बनी रहती हैं।
प्रश्न 13.
भदंत आनन्द कौसल्यायन के अनुसार मानव संस्कृति क्या है?
उत्तर:
भदंत आनन्द कौसल्यायन के अनुसार मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है और वह मानव कल्याणकारी है। वह मानव के आन्तरिक सूक्ष्म गुण के साथ उसकी योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा की जननी है। उसे देश या धर्म के आधार पर बाँटा नहीं जा.सकता है। इसलिए वह मानव-कल्याण करने वाली श्रेष्ठ और स्थायी है। उसकी खोज किसी किसी सम्प्रदाय विशेष के लिए नहीं होती है, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए ही होती है।
‘संस्कृति’ नामक पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘संस्कृति’ पाठ में लेखक का उद्देश्य संस्कृति, असंस्कृति, सभ्यता और असभ्यता जैसे शब्दों का अर्थ बताना रहा है। हिन्दू-संस्कृति और मुस्लिम संस्कृति जैसे विभाजनों को अनुचित बतलाकर संस्कृति के मूल स्वरू प्रकाश डालना भी लेखक का उद्देश्य रहा है। लेखक के अनुसार सम्पूर्ण मानव-संस्कृति एक है। मूल रूप से सभी मानव समान हैं तथा उनमें जाति, वर्ण आदि का विभाजन अनुचित है।
निबन्ध ‘संस्कृति’ में व्यक्त विचारों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेखक भदंत आनन्द कौसल्यायन के निबन्ध ‘संस्कृति’ का मूल प्रतिपाद्य व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
भदंत आनंद कौसल्यायन द्वारा लिखित ‘संस्कृति’ निबन्ध एक प्रसिद्ध रचना है, जिसमें सभ्यता और संस्कृति जैसे प्रश्नों की व्याख्या विभिन्न उदाहरणों द्वारा व्यक्त की गई है। लेखक के अनुसार इन दो शब्दों का प्रयोग सबसे अधिक होता है लेकिन इसके साथ विशेषण लगा कर इसकी गलत व्याख्या की जाती है। लेखक ने बताया कि अग्नि व सुई-धागे का आविष्कार करने वाला प्रथम संस्कृत व्यक्ति था। जिस योग्यता, प्रवृत्ति तथा प्रेरणा के बल पर अग्नि व सुई धागे का आविष्कार हुआ वह संस्कृति है।
लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भदंत आनन्द कौसल्यायन का जन्म सन् 1905 में पंजाब के अंबाला जिले के सोहाना गाँव में हुआ था। बचपन का नाम हरदास था। हिन्दी सेवक कौसल्यायनजी बौद्ध भिक्षु थे। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में जीवन समर्पित कर दिया। उनकी पुस्तकें ‘भिक्षु के पत्र’, ‘जो भूल न सका’, ‘हा! ऐसी दरिद्रता’, ‘बहानेबाजी’, ‘यदि बाबा न होते’, ‘रेल का टिकट’, ‘कहाँ क्या देखा’ आदि प्रमुख हैं।