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RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 सआत्मकथ्य

RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 सआत्मकथ्य

RBSE Class 10 Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर:
कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है, क्योंकि जहाँ उसे अपनी दुर्बलताओं और कमियों का उल्लेख करना पड़ेगा, वहीं आत्मकथा लिखने से उसकी पुरानी यादें ताजा हो जायेंगी, जिससे आत्मकथा पढ़ने वाले उसके बारे में जान जायेंगे और वह स्वयं उपहास एवं व्यंग्य का पात्र बन जायेगा।
प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के सन्दर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर:
आत्मकथा सुनाने के सन्दर्भ में अभी समय भी नहीं है यह इसलिए कहता है कि अभी उसने अपने जीवन में ऐसी कोई महान् उपलब्धि प्राप्त नहीं की है जिसे दूसरे को सुनाया जा सके। वह अपनी व्यथाओं को भुलाने का प्रयास कर रहा है, अभी उसकी वेदना-व्यथाएँ भी सोई हुई शान्त पड़ी हैं, उन्हें वह फिर से हरा करने का इच्छुक नहीं है।
प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
स्मृति को पाथेय अर्थात् रास्ते का भोजन या सहारा या संबल बनाने का आशय यह है कि कवि अपने बीते जीवन की मधुर एवं सुखद स्मृतियों के सहारे ही जीना चाहता है।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
उत्तर:
भाव-पंक्तियों का भाव यह है कि कवि ने अपने जीवन में प्रिया के प्रेम रूपी जिन सुखद क्षणों की प्राप्ति की आशा की थी, वे सुखद क्षण उसके आलिंगन में आते-आते उससे दूर हो गये। इससे उसे लगा कि इस संसार में सुख की कल्पना छलावा मात्र है। वह थोड़ी-सी झलक दिखाकर हमसे दूर हो जाता है।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में॥
उत्तर:
भाव-कवि के कथन का भाव यह है कि वे भी क्या दिन थे जब प्रिया के साथ मधुर चाँदनी में बैठकर बातें करने के साथ-साथ खूब खिल-खिला कर हँसा करते थे। प्रिया का मनमोहक मुख-सौन्दर्य उषाकालीन लालिमा से भी बढ़कर मस्त कर देने वाला था।
प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहता है कि निजी प्रेम के मधुर क्षण सबके सामने कहने के लिए नहीं होते हैं, क्योंकि दाम्पत्य-प्रेम की कहानी व्यक्ति की निजी सम्पत्ति होती है, इसलिए आत्मकथा में उन क्षणों के बारे में कुछ लिखना अनावश्यक है। वैसे भी उसका दाम्पत्य-जीवन पूरी तरह सफल नहीं रह पाया।
प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्य-भाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्य-भाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
  1. कविता की भाषा शद्ध साहित्यिक खडी बोली है। इसमें तत्सम शब्दों की प्रधानता है, जैसे ‘इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास’।
  2. कविता में संकेतों और प्रतीकों के माध्यम से भावों की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। जैसे-‘तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।’
  3. कविता की भाषा में छायावादी शैली का प्रयोग किया गया है। जैसे-‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।’
  4. प्राकृतिक उपमानों का बहुलता से प्रयोग किया गया है। जैसे-पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात आदि।
  5. अलंकारों का सहज प्रयोग भी सुन्दर है। जैसे-(i) ‘मेरी मौन’ अनुप्रास, (ii) ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ (मानवीकरण), ‘अरी सरलता तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं’ (मानवीकरण)।
प्रश्न 7.
कवि ने जो सख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
कवि ने अपनी प्रेमिका को आलिंगन में लेने का सुख देखा था जो आलिंगन में आते-आते उससे दूर भाग गया। वे मधुर चाँदनी में प्रेमभरी बातें कर रहे थे, आपस में खिल-खिला रहे थे। उसकी प्रिया के गालों की लालिमा उषाकालीन लालिमा से भी सुन्दर प्रतीत हो रही थी।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसादजी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस कविता के माध्यम से प्रसादजी के व्यक्तित्व की जो विशेषताएँ हमारे सामने आती हैं, वे इस प्रकार हैं –
i. विनयशील-छायावादी कवि प्रसाद अत्यन्त सरल स्वभाव के विनम्र कवि थे। वे महान् कवि होते हुए भी बड़प्पन की भावना से कोसों दूर थे। इसीलिए वे अपने आप को दुर्बलताओं से घिरा भोला-सरल इन्सान कहते थे। इससे उनकी विनम्रता स्पष्ट होती है।
ii. गम्भीर और मर्यादित-प्रसादजी गम्भीर और मर्यादित कवि थे। इसीलिए वे अपने जीवन की छोटी-छोटी बातों को प्रचारित नहीं करना चाहते थे और न निजी जीवन की दुर्बलताओं और अपने प्रेम की बातों को किसी के सामने उद्घाटित करना चाहते थे।
iii. सरल स्वभाव के धनी-प्रसादजी सरल-भोले स्वभाव के धनी कवि थे। उन्होंने अपनी सरलता को कभी नहीं त्यागा। उनके मित्रों द्वारा छल-कपट किए जाने पर भी वे अपने स्वभाव की सरलता से दूर नहीं हुए।
iv. संघर्षशील-प्रसाद को अपने पारिवारिक जीवन में अनेक आघात झेलने पड़े, दाम्पत्य जीवन कष्टों से घिरा रहा, सम्पन्न परिवार में जन्म लेकर भी अभावों से जूझना पड़ा। परन्तु वे जीवन-भर संघर्षशील बने रहे।
प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर:
हम महान्, कर्मठ, त्यागी और देश-भक्त व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे, क्योंकि उनकी आत्मकथा पढ़कर ही यह जान सकते हैं कि वे अपने जीवन में महान्, कर्मठ, त्यागी और देशभक्त कैसे बने? उनका अनुकरण करके ही अपने व्यक्तित्व को उन जैसा बना सकते हैं।
प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा “आलो आंधारि” बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर:
मैं एक सामान्य कृषक परिवार का बालक हूँ। घरेलू परिस्थितियों के कारण मैं बचपन से ही पिताजी के साथ कृषि कार्य में उनका हाथ बँटाता आया हैं। इसलिए मुझे स्कल का मुंह देखने का अव देखने का अवसर प्राप्त न हो सका। अब हमारे पिताजी की आर्थिक स्थिति सुधर गयी है। उन्होंने अन्य स्कूल जाते हुए बच्चों को देखकर मुझसे भी पढ़ाई करने के लिए कहा। उनके कहने पर मेरे मन में पढ़ने की छिपी भावना जाग उठी। अब मैं घर पर ही पढ़ने लगा हूँ और अगली साल सीधे. ही आठवीं की परीक्षा दूंगा और सभी को उत्तीर्ण होकर दिखाऊँगा, क्योंकि मैं समझ गया हूँ कि पढ़ाई जीवन के लिए कितनी आवश्यक है।
पाठेतर सक्रियता –
किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पक्ष में विचार-किसी भी चर्चित व्यक्ति का जीवन उसका अपना न होकर समाज और राष्ट्र की सम्पत्ति होता है, क्योंकि लोग उसे अपना आदर्श मानकर उसका अनुकरण करते हैं। इसलिए उसके जीवन में छिपी कमजोरियों को भी जानना चाहते हैं। जिन दुर्बलताओं का शिकार अपनी अज्ञानता के कारण उसका आदर्श हो चुका है, उसकी उन दुर्बलताओं से वे प्रेरणा ग्रहण कर सकें और उनको अपने जीवन में न आने दें। इस दृष्टि से निजता को सार्वजनिक करने की अपेक्षा को सही मानता हूँ।
विपक्ष में विचार-किसी भी चर्चित व्यक्ति का जीवन समाज और राष्ट्र की सम्पत्ति होता है। उसके बारे में जानने के सभी इच्छुक रहते हैं, ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन उसके निजी जीवन में जो उसका परिवार होता है, उसके अपने सुख दुःख होते हैं। वह उनके साथ अकेले ही जीना चाहता है और उसे जीना भी चाहिए, क्योंकि वहाँ वह चर्चित व्यक्ति न होकर सम्बन्धों में बँधा एक सामान्य व्यक्ति ही होता है। उसके निजी जीवन में उसकी कुछ कमज़ोरियाँ भी हो सकती हैं, जो उसकी महानता के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं, क्योंकि मनुष्य कमजोरियों और गलतियों का पुतला होता है। इस दृष्टि से निजता को सार्वजनिक करने की उससे अपेक्षा करना सही नहीं है।
बिना ईमानदारी और साहस के आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गाँधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग में ईमानदारी के साथ अपनी कमजोरियों और दुर्बलताओं का वर्णन किया है। इस वर्णन में वे किंचित् मात्र भी हिचके नहीं हैं। सत्य के प्रयोग में उनकी महानता, सच्चाई, ईमानदारी, साहस, दृढ़ता, संयम और सादगी के दर्शन होते हैं।

RBSE Class 10 Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘आत्मकथ्य’ काव्यांश में प्रतीकार्य क्या है?
उत्तर:
इसका प्रतिकार्य यह है कि इस नाशवान संसार में दुःख-तकलीफों का कोई अन्त नहीं है।
प्रश्न 2.
कवि अपनी दुर्बलता क्यों नहीं कहना चाहते?
उत्तर:
क्योंकि लोग उन दुर्बलताओं का उपहास उड़ाते हैं। इसलिए नहीं कहना चाहते हैं।
प्रश्न 3.
कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता है?
उत्तर:
इसलिए कि उनकी भूलें सबके सामने प्रकट हो जायेंगी और सब उनके स्वभाव के सरलता की हँसी उड़ायेंगे।
प्रश्न 4.
‘थके पथिक की पंथा’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर:
यह कवि जयशंकर प्रसाद के लिए प्रयुक्त हुआ है क्योंकि जीवन पथ की कठिनाइयाँ झेलते-झेलते वह थक चुका है।
प्रश्न 5.
‘कंथा’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘कंथा’ का अर्थ गुदड़ी है। जो निर्धनता का प्रतीक है, कवि का जीवन भी गुदड़ी के समान नगण्य है।
प्रश्न 6.
‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ पंक्ति का क्या आशय है?।
उत्तर:
इसमें कवि कहते हैं कि मेरी व्यथाएँ, कठिनाइयाँ, परेशानियाँ सब थक कर मौन हो चुकी हैं।
प्रश्न 7.
जयशंकर प्रसाद की काव्य-कृतियों के नाम बताइये।
उत्तर:
‘चित्राधार’, ‘कानन-कुसुम’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘लहर’ आदि काव्यकृतियाँ हैं।
प्रश्न 8.
‘आत्मकथ्य’ कविता सर्वप्रथम कौनसी पत्रिका में प्रकाशित हुई?
उत्तर:
पहली बार 1932 में हँस के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई।
प्रश्न 9.
कवि जयशंकर प्रसाद कौनसी काव्य-धारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं?
उत्तर:
कवि जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं।
प्रश्न 10.
प्रसादजी को आत्मकथा लिखने के लिए किसने आग्रह किया?
उत्तर:
प्रसादजी के मित्रों ने उन्हें आत्मकथा लिखने का आग्रह किया।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ एवं अभाव पक्ष की जो मार्मिक अभिव्यक्ति की है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि जयशंकर प्रसाद ने बताया कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन के यथार्थ को प्रकट नहीं करना चाहता है, अपनी भूलों और प्रवंचनाओं को व्यक्त करने में हीनता की अनुभूति होती है। उज्ज्वल गाथा तो सभी कह लेते हैं, परन्तु मेरे जीवन सुख के क्षण मुझसे सदा दूर ही रहे, मेरी प्रिया भी मुझसे शीघ्र बिछुड़ गयी थीं, अब तो केवल स्मृतियाँ शेष हैं और मेरी व्यथा-कथा भी मन्द पड़ गयी है।
प्रश्न 2.
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि प्रसाद ने महान् कवि की विनम्रता किस प्रकार व्यक्त की है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में प्रसाद ने अपनी विनम्रता व्यक्त करते हुए कहा है कि मेरा जीवन अनेक दुर्बलताओं से घिरा रहा है, मेरी कथा सामान्य व्यक्ति की जीवन-कथा है, इस छोटी-सी कथा को अपनी महानता बताकर कुछ लिखना अच्छा नहीं लग रहा है।
प्रश्न 3.
‘मुरझा कर गिर रही पत्तियाँ’ क्या सन्देश देती हैं?
उत्तर:
‘मुरझा कर गिर रही पत्तियाँ’ यह सन्देश देती हैं कि मानव जीवन क्षणिक और निराशाओं से पूरित है। इसमें व्यक्ति की वेदनाओं का कहीं भी अन्त नहीं है। इसलिए अपनी दुर्बलताओं और असफलताओं को सुनाकर दूसरों को हँसने का मौका नहीं देना चाहिए।
प्रश्न 4.
असंख्य जीवन इतिहास से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असंख्य जीवन इतिहास से कवि का आशय अनगिनत लिखी आत्मकथाओं से है जिनमें लेखकों ने अपने जीवन की दुर्बलताओं और कमियों का उल्लेख किया है। भले ही आत्मकथा-लेखक की कमजोरियों और कमियों को पढ़कर ज्यादातर लोग व्यंग्य एवं उपहास करते हैं।
प्रश्न 5.
कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
उत्तर:
कवि अपनी आत्मकथा इसलिए लिखना नहीं चाहता, क्योंकि आत्मकथा लेखन में जीवन की घटनाओं का सही-सही वर्णन करना पड़ता है। कवि के जीवन में दुःख ही दुःख है, असफलताएँ और कमजोरियाँ हैं, उन्हें कहना अपना उपहास उड़ाना है।
प्रश्न 6.
कवि के अनुसार कौन अपना ‘व्यंग्य-मलिन उपहास करते रहते हैं और क्यों?
उत्तर:
कवि के अनुसार आत्मकथा-लेखक अपनी कथा लिखकर अपनी दुर्बलताओं पर प्रकाश डालते रहते हैं। उनमें वे बुरे अनुभव मानो उनके जीवन पर व्यंग्य करते हुए प्रतीत होते हैं। इस प्रकार उनकी आत्मकथा स्वयं अपना मजाक उड़ाती हुई प्रतीत होती है।
प्रश्न 7.
‘देखो, यह गागर रीती’। गागर रीती से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गागर रीती से कवि का अभिप्राय है-खाली घड़ा अर्थात् उपलब्धियों से रहित एवं असफल जीवन। खाली घड़े की तरह कवि का जीवन भी महत्त्वहीन है। उसके जीवन में ऐसी कोई विशेष उपलब्धि नहीं है, जिसे वह आत्मकथा के माध्यम से बतलाये।
प्रश्न 8.
कवि अपनी सरलता की हँसी उड़ाने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर:
स्वभाव की सरलता के कारण ही कवि को उसके सयाने दोस्तों ने धोखा दिया है। अतः वह अपनी आत्मकथा लिखकर अपनी कमजोरियों और दुःखद घटनाओं की स्मृतियों को दुहराता है तो उसकी सरलता उपहास का पात्र बनेगी। वह इससे बचना चाहता है।
प्रश्न 9.
कवि किसे विडम्बना मानता है और क्यों?
उत्तर:
कवि अपने स्वभाव की सरलता को दोष नहीं देना चाहता है। उसे सरलता के कारण ही अनेक कष्ट सहने पड़े। इसे ही वह विडम्बना अर्थात् अपना दुर्भाग्य मानता है, क्योंकि सरलता के कारण झेले गये कष्टों को वह बुरा नहीं मानता है।
प्रश्न 10.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ’ कवि की उज्ज्वल गाथा कौनसी थी? उसे वह क्यों नहीं गाना चाहता?
उत्तर:
कवि की उज्ज्वल गाथा प्रिया के साथ मधुर मिलन के क्षण थे। वह उसके बारे में इसलिए बताना नहीं चाहता, क्योंकि उस पर वह अपना व्यक्तिगत अधिकार मानता है और उन्हीं मधुर क्षणों की स्मृतियों के सहारे अपना शेष जीवन जीना चाहता है।
प्रश्न 11.
कवि को कौनसा सुख नहीं मिल पाया और क्यों?
उत्तर:
कवि को वह सुख नहीं मिल पाया जिस सुख का स्वप्न देखकर सोते से वह जाग गया था, क्योंकि जिस प्रिया रूपी सुख को पाने के लिए उसने अपनी बांहों को आगे बढ़ाया, वह प्रिया रूपी सुख मुस्करा कर उससे दूर भागता रहा।
प्रश्न 12.
कवि ने अपने आप को ‘थके पथिक’ क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि ने अपने आप को थके पथिक इसलिए कहा है कि वह अपने जीवन में अनेक संघर्ष करते और कष्टों को संहते-सहते थक गया है। जीवन-पथ पर निरन्तर आघात सहते रहने से वह थककर चूर हो गया है।
प्रश्न 13.
संकलित कविता के आधार पर बताइए कि जयशंकर प्रसाद की जीवन-यात्रा कैसी रही?
उत्तर:
कवि को अपने जीवन के विभिन्न मोड़ों पर कष्टों का सामना करना पड़ा। वह पारिवारिक स्नेह एवं दाम्पत्य प्रेम का पूरा उपभोग नहीं कर सका। साथ ही उसने अपने मित्रों से धोखा खाया। जिसके कारण वह अपनी भोली आत्मकथा को मन ही मन छिपाये जीवन जीता रहा।
प्रश्न 14.
‘बड़ी कथाएँ आज कहूँ’ से कवि का क्या तात्पर्य है? वह ऐसा क्यों नहीं कहना चाहता है?
उत्तर:
बड़ी कथाओं से कवि का तात्पर्य महान् बातों से है, अर्थात् अपने संबंध में बढ़ा-चढ़ा कर अपनी उपलब्धियों का बखान करने से है। कवि अपनी सामान्य जिन्दगी को बड़ी-बड़ी बातें करके उसे महान् सिद्ध नहीं करना चाहता है।
प्रश्न 15.
‘सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि का जीवन अनेक आघातों, अभावों एवं असफलताओं से घिरा रहने से कोई उल्लेखनीय नहीं रहा। इसलिए उसके जीवन में कुछ भी महान् नहीं है जिसको जानकर कुछ भी सीखा नहीं जा सकता है। इसी कारण कवि कहता है कि ऐसे जीवन के बारे में जानना व्यर्थ है।
प्रश्न 16.
‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ कवि ने अपने संबंध में ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि ने अपने जीवन में अनेक कष्टों को भोगा है। इसलिए उसकी व्यथाएँ दुःख झेलते-झेलते थक कर मौन हो चुकी हैं। अब उसमें इतना उत्साह नहीं है कि वह अपनी आत्मकथा लिखकर उन्हें पुनः हरा कर ले।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘आत्मकथ्य’ कविता का सार बताइये।
अथवा
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आत्मकथ्य’ कविता का सार संक्षिप्त रूप में दीजिए।
उत्तर:
‘आत्मकथ्य’ कविता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है। इसमें कवि अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है। कभी संसार की नश्वरता पर विचार करता है कि दु:खों से भरा यह जीवन नाशवान है। कठिनाइयों और परेशानियों के अलावा इसमें बताने को कुछ भी नहीं है, कवि का कहना है कि उसके जीवन की गागर तो खाली है। वह भला दूसरों को क्या दे सकता है? वह अपनी भूलों और दूसरों की रचनाओं को उजागर नहीं करना चाहता क्योंकि इसका कोई लाभ नहीं है।
यह ठीक है कि कवि के जीवन में सुखद क्षण आये थे। जिसमें प्रेयसी के साथ हिलमिल कर समय व्यतीत किया था। पर वे क्षण कुछ ही पल टिक पाये। सुख उनके निकट आते-आते चले जाते थे। और कवि उन क्षणों की प्रतीक्षा ही करते रहते थे। वे अपनी प्रियतमा के सौन्दर्य की भी प्रशंसा करते हैं, उसके गालों की लाली उषा के लिए भी ईर्ष्या का विषय थी। पर इन सब बातों को अब कहने का कोई लाभ नहीं है। उसकी कथा में दूसरों को कुछ भी नहीं मिल पायेगा।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय संक्षिप्त में दीजिए।
अथवा
छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
छायावादी कवि जयशंकर का जन्म सन् 1889 में वाराणसी में हुआ। परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होने के कारण घर पर ही उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी का अध्ययन किया। इनका आरम्भिक जीवन अत्यन्त संघर्षमय रहा। महाकवि प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने नाटक, कहानी, उपन्यास, आलोचना, कविता आदि सभी विधाओं पर उच्च कोटि का साहित्य रचा।
‘आँसू’, ‘लहर’, ‘झरना’, ‘कामायनी’, ‘चित्राधार’, ‘प्रेमपथिक’, ‘करुणालय’ आदि इनकी कालजयी कृतियाँ हैं। इन्होंने ‘चन्द्रगुप्त’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘विशाख’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘राज्यश्री’, ‘अजातशत्रु’, ‘एक बूंट’ आदि नाटक, ‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ आदि उपन्यास लिखे। ‘आकाशदीप’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘पुरस्कार’, ‘आँधी’, ‘छाया’ आदि कहानी संग्रह लिखे। सन् 1937 में इनका निधन हो गया था।

आत्मकथ्य Summary in Hindi

कवि-परिचय :
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में वाराणसी में हुआ था। इनके पिता देवीप्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे और तम्बाकू का व्यापार करते थे। प्रसादजी ने अधिकांश अध्ययन घर पर ही रहकर किया। उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, फारसी का गहन अध्ययन किया। छायावादी काव्य-प्रवृत्ति के प्रमुख कवियों में से एक जयशंकर प्रसाद का सन् 1937 में निधन हुआ। उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-‘चित्राधार’, ‘प्रेमपथिक’, ‘करुणालय’, ‘कानन कुसुम’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘लहर’ और ‘कामायनी’। वे कवि के साथ-साथ सफल गद्यकार भी थे। ‘अजातशत्रु’, स्कंदगुप्त’ और ‘ध्रुवस्वामिनी’ उनके नाटक हैं तो ‘कंकाल’, ‘तितली’ और ‘इरावती’ उपन्यास। ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इन्द्रजाल’ उनके कहानी-संग्रह हैं।
पाठ-परिचय :
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि ने जीवन के यथार्थ एवं अभावों का मार्मिक अंकन किया है। कवि ने अपने जीवन को सामान्य व्यक्ति का जीवन बताया है और उसने उन क्षणों का स्मरण किया है जब कुछ क्षणों के लिए उसके जीवन में सुख आया था। वह सुख टिक नहीं सका। अब वह उस सुख की कल्पना ही करता है। कवि को अपने जीवन में दूसरों से धोखे मिले हैं। वह अपनी जीवन कथा में उनका उल्लेख नहीं करना चाहता है।
सप्रसंग व्याख्याएँ
आत्मकथ्य :
1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास,
यह लो, करते ही रहते हैं अपनी व्यंग्य-मलिन उपहास॥
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
कठिन-शब्दार्थ :
  • मधुप = भौंरा।
  • गंभीर = गहरा।
  • अनंत-नीलिमा = सीमा-रहित विशाल नीला आकाश।
  • जीवन-इतिहास = जीवन की कहानी।
  • व्यंग्य-मलिन = खराब ढंग से निन्दा करना।
  • उपहास = मजाक।
  • गागर = जीवन रूपी घड़ा।
  • रीती = खाली।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसमें कवि ने जीवन के यथार्थ एवं अभाव की बात कही है। जीवन की दुर्बलताएँ जानने को इच्छुक लोगों पर कटाक्ष किया है।
व्याख्या – कवि कहता है कि गुंजन करते भँवरे और डालों से मुरझाकर गिर रही घनी पत्तियाँ जीवन की करुण कहानी ही सुना रहे हैं। उनका अपना जीवन भी व्यथाओं की कथा है। कहने का आशय है कि फूल से फूल पर भटकते भौंरे की गुंजार क्या है? कभी न तृप्त होने वाली प्यास की करुण कहानी है। डालों से मुरझाकर गिरने वाली पत्तियाँ जीवन की नश्वरता की कहानी सुना रही है।
इस अनंत नीले आकाश के नीचे असंख्य जीवन पल रहे हैं। सबका अलग-अलग इतिहास है, अपनी-अपनी आत्मकथाएँ हैं। इन्हें लिखने वालों ने स्वयं को ही व्यंग्य एवं उपहास का पात्र बनाया है। कवि मित्रों से पूछते हैं कि क्या यह सब देखकर भी वे चाहते हैं कि वह अपनी दुर्बलताओं से युक्त आत्मकहानी लिखें? इस खाली गगरी जैसी महत्त्वहीन आत्मकथा को पढ़कर उन्हें क्या सुख प्राप्त होगा?
विशेष :
  1. कवि प्रसाद ने जीवन का प्रतीकात्मक वर्णन किया है कि नाशवान दुनिया में दुःख तकलीफों का कोई अन्त नहीं है।
  2. पद्यांश में संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है, अनुप्रास अलंकार एवं प्रतीकात्मक छायावादी शैली है।
2. किन्तु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
कठिन-शब्दार्थ :
  • विडंबना = दुर्भाग्य, अनचाही स्थिति।
  • प्रवंचना = धोखा, ठगा जाना।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसमें कवि अपने मित्रों के आग्रह पर आत्मकथा लिखने के सन्दर्भ में कहते हैं।
व्याख्या – कवि प्रसाद कहते हैं कि मित्रों कहीं ऐसा न हो कि मेरे रस शून्य खाली गगरी जैसे जीवन के बारे में पढ़कर तुम स्वयं को ही अपराधी समझने लगो। तुम्हें ऐसा लगे कि तुमने मेरे जीवन से रस चुराकर अपनी सुख की गगरी को भरा है। कहने का प्रतीकात्मक अर्थ है कि मेरे जीवन की खुशियों को चुरा कर तुम अपनी खुशी समझना चाहते हो तो ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि मेरे जीवन की गागर बिल्कुल खाली है।
आगे कवि जीवन को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि वह अपनी भूलों और ठगे जाने के विषय में बताकर अपनी सरलता अर्थात् सरल हृदय की हँसी नहीं उड़वाना चाहते हैं। जीवन का यथार्थ यही है कि जीवन-सत्य अगर सबके सामने लाते हैं तो लोग सहानुभूति नहीं जताते वरन खिल्ली ही उड़ाते हैं। इसलिए कवि अपनी भूलें दिखाकर या बताकर दूसरों का सत्य सामने नहीं लाना चाहते हैं।
विशेष :
  1. कवि अपनी विवशता और दुर्बलता अपने मित्रों के समक्ष नहीं लाना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षण सबके सामने प्रकट हो जाये।
  2. पद्यांश में खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है, छायावादी प्रतीकात्मक शैली है, अनुप्रास अलंकारं एवं तत्सम शब्द का प्रयोग है।
3. उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते. होने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
कठिन-शब्दार्थ :
  • उज्ज्वल = सुखपूरित, स्वच्छ।
  • गाथा = कहानी।
  • आलिंगन = गले लगाना।
  • मुसक्याकर = मुस्कराकर।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसमें कवि अपने प्रेम व सुख की वे बातें किसी को नहीं बताना चाहते जो उन्हें छलावा देकर भाग गया या उनसे दूर हो गया।
व्याख्या – कवि कहता है कि मैं अपनी प्रिया के साथ बिताये जीवन के मधुर क्षणों की कहानी सबके सामने कैसे बताऊँ ? वे तो मेरे प्रेमिल जीवन की निजी अनुभूतियाँ हैं, क्योंकि उस काल में मैंने अपनी प्रिया के साथ जो खिल-खिलाकर हँसते हुए उससे बातें की उन बातों को मैं कैसे लिखू, अर्थात् उन्हें दूसरों को कैसे बताऊँ? अर्थात् उन भूली स्मृतियों को जगाकर मैं अपने मन को व्यथित नहीं करना चाहता हूँ।
कवि कहते हैं कि मैंने जीवन में जो सुख के स्वप्न देखे थे, वे कभी साकार नहीं हुए। सुख मेरी बाँहों में आते-आते मुस्कुरा कर भाग गया और मेरा अपने प्रिय को पाने का सपना अधूरा ही रह गया। इस कारण कवि अपना आत्मकथ्य नहीं लिखना चाहते थे, जिससे उनकी वे बातें सबके सामने न आने पाये।
विशेष :
  1. कवि अपनी मधर स्मतियों को याद करके व्यथित हो रहे हैं।
  2. खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग, छायावादी प्रतीक शैली तथा अनुप्रास अलंकार का प्रयोग तथा तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
4. जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
कठिन-शब्दार्थ :
  • अरुण कपोलों = लाल गालों।
  • मतवाली = मस्त।
  • अनुरागिनी = प्रेम करने वाली।
  • मधुमाया = मधुर मोहकता।
  • स्मृति पाथेय = स्मृति रूपी संबल।
  • पंथा = रास्ता।
  • सीवन = सिलाई।
  • कंथा = गुदड़ी, अंतर्मन।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसमें कवि अपनी मधुर स्मृतियों को याद कर रहे हैं।
व्याख्या – कवि स्मरण कर कहता है कि मेरी प्रिया के लाल-लाल कपोल इतने मतवाले और सुन्दर थे कि प्रेममयी उषा भी अपनी सुगन्धित मधुर लालिमा उसी से उधार लिया करती थी। कहने का भाव यह है कि मेरी प्रिया के लाल-लाल कपोल उषाकालीन लालिमा से भी सुन्दर थे।
कवि कहता है कि आज उसी प्रेमिका की स्मृतियाँ मुझ जैसे थके पथिक के लिए संबल बनी हुई हैं और उसी संबल के सहारे मैं जीवन रूपी रास्ते पर चल रहा है। ऐसी स्थिति में हे मित्र! क्या तम मेरी उन मधर यादों की गदडी को उधेड़-उधेड़ कर उनके भीतर झाँकना चाहते हो। अर्थात् तुम मेरी वेदनामयी स्मृतियों को जगाकर देखना चाहते हो कि उसके अन्दर क्या छिपा हुआ है। इसलिए कवि नहीं चाहते कि वे आत्मकथा लिखकर अपनी वेदनामय स्थिति को सबके सामने लाये।
विशेष :
  1. कवि ने अपने जीवन की व्यथाओं को स्पष्ट किया है।
  2. खड़ी बोली हिन्दी, अनुप्रास अलंकार, आत्मकथात्मक छायावादी शैली का प्रयोग हुआ है।
5. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
कठिन-शब्दार्थ :
  • औरों = दूसरों की।
  • मौन = चुप।
  • आत्म-कथा = अपने जीवन की कहानी स्वयं कहना।
  • मौन = शान्त।
  • व्यथा = परेशानी. बेचैनी।।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘आत्मकथ्य’ से लिया गया है। इसमें कवि अपनी व्यथा न सुनाकर दूसरों की चुपचाप सुनना चाहते हैं।
व्याख्या – कवि कहता है कि मेरे इस छोटे से सामान्य जीवन में अनेक घटनाएँ घटी हैं। मैं आज उन घटनाओं की बड़ी-बड़ी कहानियाँ कैसे कह दूं? अर्थात् लिख दूँ। इससे तो अच्छा मेरे लिए यही है कि मैं अपने बारे में चुप रहकर दूसरों संजीव पास बुक्स की कथाएँ सुनता रहूँ। कवि अपने मित्रों से कहता है कि भला तुम मेरी भोली-भाली आत्म-कथा को सुनकर क्या करोगे?
उसमें तुम्हारे काम की कोई बात नहीं है और अभी मैंने कोई महानता भी प्राप्त नहीं की है जिसके बारे में मैं अपने अनुभव लिखू। इसके साथ ही एक बात और भी है कि इस काल में मेरे जीवन के सारे दुःख-दर्द और व्यथाएँ शान्त हैं। इसलिए मैं उन व्यथित करने वाली स्मृतियों एवं व्यथा-वेदनाओं को फिर से जगा दूं, इसलिए मैं नहीं चाहता कि आत्मकथा लिख कर मैं उन कटु व्यथित करने वाली स्मृतियों को फिर से जगा दूँ।
विशेष :
  1. कवि अपनी जीवन कथा की वेदना व्यथा सुनाकर अपने मित्रों को निराश नहीं करना चाहते हैं।
  2. खड़ी बोली हिन्दी, अनुप्रास अलंकार तथा छायावादी प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।

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