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RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

RBSE Class 10 Hindi कन्यादान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर:
माँ चाहती थी कि उसकी लड़की स्वभाव से सरल, भोली और कोमल बनी रहे, क्योंकि ये गुण लड़की में स्वाभाविक रूप से होने चाहिए। इसके साथ ही आज की इस स्वार्थी दुनिया को देखकर वह उसे शोषण से भी बचाना चाहती थी कि उसकी पुत्री दुर्बलता, कायरता एवं हीनता से ग्रस्त न हो, अन्याय एवं शोषण का सामना कर सके। इसलिए उसने कहा कि उसकी लड़की, लड़की तो बने किन्तु लड़की जैसी दिखाई न दे।
प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?
उत्तर:
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की उस स्थिति की ओर संकेत किया गया है, जिसमें दहेज कम लाने के जुर्म में उन्हें जलाकर मार दिया जाता है या फिर वे दबाव में आकर आग में जलकर आत्महत्या कर लेती हैं, जो सबसे बड़ा पाप होता है।
(ख) माँ ने अपनी बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा ताकि उसके सामने ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर उससे वह साहस के साथ निपट सके। वह न तो स्वयं इस मार्ग को अपनाये और न दूसरों को ऐसा करने दे।
प्रश्न 3.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में एक ऐसी लड़की की छवि उभरती है जिसके सामने वैवाहिक जीवन का धुंधला प्रकाश है। वह सोच रही है कि वह सज-धजकर ससुराल जायेगी। उसका पति उसे प्यार करेगा, उसके सास-ससुर और अन्य परिवारीजन उसे पलकों पर बिठा लेंगे। वह वहाँ नाज-नखरों से रहेगी। वह नए-नए कपड़े और गहने पहनेगी। सबका मन रिझायेगी। इसके साथ ही घर-गृहस्थी का काम भी निपटायेगी। परन्तु वह विवाहित जीवन की यथार्थ कठोर स्थितियों से पूरी तरह परिचित नहीं थी।
प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर:
माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी इसलिए लग रही थी, क्योंकि कन्यादान के बाद वह अपनी ससुराल चली जायेगी। ऐसी स्थिति में वह अकेली रह जायेगी, फिर वह अपने सुख-दुःख किसके साथ बाँटेगी।
प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर:
माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी
  1. अपने रूप-सौन्दर्य पर कभी गर्व न करना, अर्थात् उसकी प्रशंसा पर रीझकर धोखे में मत रहना।
  2. आग का सदुपयोग करना, अत्याचार एवं अन्याय का दृढ़ता से सामना करना।
  3. वस्त्र और आभूषणों से भ्रमित न होना और न अपना व्यक्तित्व खोना।
  4. अपनी सरलता, कोमलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि ससुराल वाले उसका गलत ढंग से फायदा उठाएँ।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर:
हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात आज के जमाने में करना उचित नहीं है, क्योंकि कन्या कोई बेजान वस्तु नहीं है जिसका दान किया जाये। कन्या का अपना पृथक् व्यक्तित्व होता है। इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि जो वस्तु दान में दी जाती है, वह न तो ली जाती है और न उससे सम्बन्ध रखा जाता है। कन्या विवाह के बाद पुन: अपने माता-पिता के पास आती है और उन्हीं के साथ रहती भी है। इस आधार पर भी उसके साथ दान की बात करना उचित नहीं है। इसी आधार पर कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी पुत्री के विवाह के समय अपनी पुत्री का कन्यादान नहीं किया था।
पाठेतर सक्रियता –
‘स्त्री को सौन्दर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि स्त्री की सुन्दरता को महत्व देकर उसे बंधन में बाँधा जाता है। यदि किसी नारी को अपनी ओर आकर्षित करना हो तो सबसे पहले उसकी वेश-भूषा और उसकी सुन्दरता की प्रशंसा करो। वह अपनी प्रशंसा सुनकर मन ही मन प्रसन्न हो उठेगी। सहज रूप में आपकी तरफ आकर्षित हो जायेगी और बंधन में बंध जायेगी। लेकिन जब उसे यह पता चलेगा कि सौन्दर्य-वर्णन मात्र एक छलावा था, तो वह उसी क्षण से बहकावे में नहीं आयेगी और अपने अस्तित्व को पहचानकर दूर हो जायेगी।
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटूंगी नहीं
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं।
उत्तर:
उपर्युक्त कविता का सीधा संबंध हमें ‘कन्यादान’ कविता से दिखाई पड़ता है। कन्यादान कविता की कन्या भोली, कोमल और सरल स्वभाव की है। वह सौन्दर्य के जाल में बंधी हुई बंधन के कारणों से अनजान है। इसीलिए वह यह नहीं समझ पाती कि वस्त्र और आभूषण उसे पुरुष का गुलाम बना देते हैं।
‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता की कन्या अपने आप में जागरूक है। वह यह समझ गयी है कि गहने उसके लिए बंधन हैं। इसलिए उसने उनसे अपना मुँह मोड़ लिया है। उसने अपनी कमजोरी और अपनी दिशा को अच्छी तरह से समझ लिया है। इस प्रकार ‘मैं लौटूंगी नहीं’ काव्यांश की कन्या ‘कन्यादान’ की कन्या का जागृत रूप है।

RBSE Class 10 Hindi कन्यादान Important Questions and Answers

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘कन्यादान’ कविता का वर्ण्य विषय क्या है?
उत्तर:
‘कन्यादान’ में बेटी के विवाह का वर्णन है। जो माँ बेटी को विदा करते हुए सीख देती है।
प्रश्न 2.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर:
इसलिए कि बेटी के विदा होने के पश्चात् माँ किसके साथ अपने सुख-दुःख बाँटेगी।
प्रश्न 3.
कवि ने लड़की को धुंधले प्रकाश की पाठिका क्यों कहा है?
उत्तर:
क्योंकि उसके सामने वैवाहिक जीवन के सुखों का धुंधला प्रकाश ही था। वह जीवन के अन्य आने वाले दुःखों से अनजान थी।

प्रश्न 4.
‘माँ ने पानी’ में झाँककर अपने चहरे पर मत रीझना’ ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर:
इसलिए कि अपने रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध मत होना, यही मुग्धता बंधन का कारण है।

प्रश्न 5.
वस्त्र और आभूषण को स्त्री के लिए बंधन क्यों माना गया है?
उत्तर:
क्योंकि शादी के बाद वस्त्र और आभूषण लड़की को नये रिश्ते में बाँधते हैं।
प्रश्न 6.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है’ ऐसा कहने का क्या आशय है?
उत्तर:
माँ, बेटी को सीख दे रही है कि आग का उपयोग सिर्फ रोटियाँ सेंकने के लिए है, स्वयं को जलाने या जलवाने के लिए नहीं है।
प्रश्न 7.
कविता में वर्णित ‘शाब्दिक भ्रम की तरह बंधन’ किसके लिए कहा गया है?
उत्तर:
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रम के बंधन के रूप में होते हैं, जो मोह में लिपटी भाषा में जकड़ लेते हैं।
प्रश्न 8.
कवि ऋतुराज की काव्य कृतियों के नाम बताइये।
उत्तर:
‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत और लीला-मुखारविंद’ आदि।
प्रश्न 9.
कवि ऋतसज को मिले साहित्यिक सम्मान के नाम बताइये।
उत्तर:
सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार मिल चुके हैं।
प्रश्न 10.
कवि ऋतुराज की कविताओं का विषय मुख्यतया क्या है?
उत्तर:
उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ प्रतिबिम्बित होता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कन्यादान’ कविता में बेटी को ‘अन्तिम पूँजी’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में बेटी को अन्तिम पूँजी इसलिए कहा गया है कि वह माता-पिता की लाड़ली होती है। कन्यादान के समय वह संचित-पालित पूँजी की तरह दूसरों को सौंप दी जाती है। वह माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुःख की साथी होती है। उसके ससुराल चले जाने पर माँ अकेली रह जाती है।
प्रश्न 2.
‘कन्यादान’ कविता के आधार पर बताइये कि कविता में कोरी भावुकता नहीं बल्कि एक माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है।
उत्तर:
माँ अपनी बेटी के सुख-दुःख की साथी व साक्षी होती है। सामाजिक व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी प्रतिमान गढ़े गये हैं। वे आदर्श के आवरण में बँधे हैं। एक स्त्री होने के नाते माँ अपने अनुभव द्वारा बेटी को उपयुक्त सलाह देती है।
प्रश्न 3.
‘अपने चेहरे पर मत रीझना’ पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राय: बहुएँ अपने रूप पर आकर्षित होकर अपने आप में सुन्दरी होने का भ्रम पाल लेती हैं, जिसका फायदा उन्हें घर-गृहस्थी के बंधन में बाँध देते हैं और वे अपने आप में कमजोर पड़ जाती हैं।
प्रश्न 4.
कवि ने माँ के दुःख को प्रामाणिक क्यों बताया है?
उत्तर:
कवि ने माँ के दु:ख को प्रामाणिक अथवा वास्तविक इसलिए बताया है, क्योंकि उसे अपने वैवाहिक जीवन के कष्टों का यथार्थ अनुभव प्राप्त था। वह अच्छी तरह जानती थी कि ससुराल में उसकी कन्या को कितनी कठिनाइयाँ होंगी तथा उसे किस तरह सुख-दु:ख बाँटना पड़ेगा।
प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता में माँ की मल चिन्ता क्या है?
उत्तर:
माँ की चिन्ता यह है कि उसकी लड़की भोली और सरल है। वह वैवाहिक जीवन के कष्टों और कठिनाइयों को नहीं जानती है। इसलिए वह इस स्वार्थी दुनिया की अनुभूति कर अपनी लड़की के संभावित दु:खों के बारे में सोच-सोचकर घुली जा रही है।
प्रश्न 6.
कवि ने लड़की को धुंधले प्रकाश की पाठिका क्यों कहा है?
उत्तर:
लड़की सयानी न होने के साथ सरल और भोली थी, उसे केवल जीवन के आनन्ददायक पक्ष का ही आभास था। उसे वैवाहिक जीवन से जुड़ी कठिनाइयों एवं कष्टों का आभास नहीं था। इसलिए कवि ने उसे धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है।
प्रश्न 7.
एक कन्या विवाह से पूर्व अपने वैवाहिक जीवन की कैसी-कैसी कल्पनाएँ करती है?
उत्तर:
एक कन्या विवाह से पूर्व अपने वैवाहिक जीवन के बारे में बड़ी रंगीन कल्पनाएँ करती है। उसका पति उससे अतिशय प्रेम करेगा, सभी उसके रूप-सौन्दर्य को देखकर रीझेंगे। वह ससुराल में सुन्दर वस्त्रों और गहनों से सज-धजकर सबका मन अपनी ओर आकर्षित कर लेगी।
प्रश्न 8.
‘वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बन्धन हैं स्त्री-जीवन के कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जिस प्रकार चतुर व्यक्ति अपनी मोहक शब्दावली से भोले इन्सान को गुलाम बना लेता है, वैसे ही वस्त्र और आभूषण अपने आकर्षण से भ्रमित कर स्त्री को गुलाम बना लेते हैं और वह वस्त्राभूषणों के मोह में ससुराल के दासतामय बंधन में पड़ जाती है।
प्रश्न 9.
‘कन्यादान’ कविता का सन्देश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘कन्यादान’ कविता का सन्देश नारी जागृति से संबन्धित है। पुरुषों द्वारा नारी-सौन्दर्य की प्रशंसा करना, वस्त्र और आभूषण का लालच देना वस्तुतः उसे गुलाम बनाये रखने के बंधन हैं। इनसे मुक्त होकर उसे नारी जैसी दुर्बलताओं के प्रति सचेत रहना चाहिए, तभी वह शक्तिशाली बन सकती है।

प्रश्न 10.
माँ अपनी पुत्री के बारे में क्या कामना करती है?
उत्तर:
माँ अपनी पुत्री के बारे में कामना करती है कि वह ससुराल में जाकर समझदारी से काम ले। वह अपनी मोलेपन के कारण बंधनों में न बँधे। वह अपने ऊपर होने वाले अन्याय और अत्याचारों से बचे और अबला न होकर सबला बने।

प्रश्न 11.
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को जो सीख दी है क्या वह आज के युग के अनुकूल है? पक्ष या विपक्ष में तर्क देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को जो सीख दी है, वह आज के युग के सर्वथा अनुकूल है। आज ससुराल पक्ष वधू की सरलता का अनुचित लाभ उठाने के लिए दबाव बनाता है। उसे धमकाया-सताया जाता है। अतः वह साहस से उनका विरोध करे और स्वाभिमान से जीवनयापन करे।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रस्तुत कविता ‘कन्यादान’ का सार संक्षिप्त शब्दों में दीजिए।
अथवा
‘कन्यादान’ कविता में कवि ऋतुराज ने माँ की सीख द्वारा क्या संदेश दिया है? स्पष्ट कीजिए। .
उत्तर:
कवि ऋतुराज ने ‘कन्यादान’ कविता के माध्यम से शादी के बाद स्त्री-जीवन में आने वाली कठिनाइयों से बेटी को सावधान रहने के लिए अनेक बातें कही हैं। कविता में विवाह के पश्चात् विदाई के समय माँ अपने अच्छे-बुरे सभी अनुभवों का निचोड़ एक सही व तर्कसंगत सीख देती है। ताकि आगे जाकर ससुराल में बेटी सुख, सम्मान का जीवन व्यतीत कर सके।
कविता में माँ परम्परागत आदर्श माँओं से हट कर भिन्न है। वह बेटी से कहती है कि तुम अपनी सुन्दरता पर रीझना मत। आग का प्रयोग खाना पकाने के लिए करना, न कि जलने के लिए। तू सावधानी से रहना। स्त्री जीवन जीते हुए वस्त्रों एवं आभूषणों के प्रति मोह मत रखना, क्योंकि ये सब बंधन स्वरूप होते हैं, सोचने-समझने का सामर्थ्य छीन लेते हैं। माँ कहती है तू हमेशा लड़की की तरह निश्छल, सरल रहना लेकिन मूर्ख लड़की की तरह दिखाई मत देना। लोक व्यवहार के प्रति सजग रहना इत्यादि तरह से एक माँ, बेटी को समझाती है।
प्रश्न 2.
‘कन्यादान’ कविता में प्रस्तुत सीख को विस्तार से बताइये।
अथवा
कविता ‘कन्यादान’ में कवि ने कौन-कौनसी सीख दी है और क्यों? विस्तार से बताइये।
उत्तर:
कवि ऋतुराज ने माँ-बेटी के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कई सीख आज की बेटियों को दी है। ससुराल में बेटी को किसी तरह की परेशानी ना हो इसलिए माँ अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से सीखी हुई प्रामाणिक सीख अपनी बेटी को देने की कोशिश करती है। पहली सीख कविता में माँ बेटी को देती है कि अपने सौन्दर्य पर अभिमान मत करना क्योंकि यह स्थाई नहीं होता है। दूसरी सीख में माँ कहती है कि आग का प्रयोग हमेशा खाना बनाने के लिए करना लेकिन अगर किसी के द्वारा इसका प्रयोग जलाने के लिए किया जाए तो उसका पुरजोर विरोध करना क्योंकि आग खाना बनाने के काम आती है जलाने के लिए नहीं।
तीसरी सीख में मां कहती है कि कभी भी वस्त्रों एवं आभूषणों के प्रति मोह-आकर्षण मत रखना क्योंकि ये स्त्री-जीवन के बंधन के रूप में होते हैं। अंत में माँ कहती है कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखना अर्थात् लड़की के गुण मर्यादा, लज्जा, सहनशीलता, विनम्रता सभी को व्यवहार में रखना लेकिन कभी इनको अपनी कमजोरी मत बनने देना। अन्याय अत्याचार के खिलाफ डटकर खड़ी हो जाना। आदि सीख कवि ने कविता में माँ के माध्यम से प्रत्येक बेटी को दी है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
कवि ऋतुराज का जीवन परिचय संक्षिप्त रूप में दीजिए।
अथवा
कवि ऋतुराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि ऋतुराज का जन्म 1940 में भरतपुर में हआ। राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अंग्रेजी में एम.ए. करने के पश्चात् अंग्रेजी साहित्य में पढ़ाने का कार्य किया। मुख्यधारा से अलग समाज के लोगों की चिंताओं को कवि ने अपने लेखन में उतारा है। उनकी कविताओं में दैनिक जीवन का यथार्थ अपने आस-पास की रोजमर्रा में घटित घटनाओं पर आधारित होता था। यही कारण है कि उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। उन्होंने ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत’ और ‘लीला मुखारबिंद’ काव्य-संग्रह लिखे हैं। तथा इन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

कन्यादान Summary in Hindi

कवि-परिचय :
ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से इन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. किया। चालीस वर्षों तक अंग्रेजी साहित्य के अध्यापन के उपरान्त अब सेवानिवृत्ति लेकर ये जयपुर में रहते हैं। इनके अब तक आठ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें से ‘एक मरणधर्मा और अन्य,’ ‘पुल पर पानी’, ‘सरत निस्त और लीला मुखारबिंद’ प्रमुख हैं। इन्होंने सामाजिक उपेक्षा एवं शोषण-उत्पीडन से ग्रस्त लोगों की चिन्ताओं और विडम्बनाओं को अपने लेखन का विषय बनाया है। इन्हें अब तक सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरां पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार मिल चुके हैं।
पाठ-परिचय :
‘कन्यादान’ शीर्षक कविता में कवि ने माँ के द्वारा बेटी को विवाह के समय दी गई सीख का वर्णन किया है। उसकी यह सीख परम्परागत सीख से हटकर है। वह बेटी को जीवन के वास्तविक संघर्ष से अवगत कराती है और कहती है कि लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई न देना।
सप्रसंग व्याख्याएँ
कन्यादान
1. कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
कठिन-शब्दार्थ :
  • प्रामाणिक = सच्चा, वास्तविक।
  • सयानी = समझदार।
  • आभास = महसूस होना।
  • बाँचना = पढ़ना।
  • पाठिका थी = पढ़ने वाली थी।
  • धुंधले = अस्पष्ट।
  • लयबद्ध = लय में बँधी हुई।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश कवि ऋतुराज द्वारा लिखित कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इसमें कवि ने माँ का अपनी पुत्री के प्रति दुःख बताया है। माँ अपनी अंतिम पूँजी अर्थात् बेटी का कन्यादान कर रही है, वह बेटी जो अभी सयानी भी नहीं हुई, स्वभाव से भोली और सरल है। उसी का उक्त वर्णन प्रस्तुत किया है –
व्याख्या – कवि कहता है कि कन्यादान करते समय कन्या की माँ का दु:ख बहुत सच्चा और वास्तविक था, क्योंकि वह कन्या ही उसकी एकमात्र पूँजी थी। उसी से वह अपने सुख-दुःख बाँट सकती थी। जिस लड़की का वह कन्यादान कर रही थी, वह लड़की अभी सयानी (समझदार) नहीं हो पायी थी। अर्थात् न तो वह शारीरिक दृष्टि से विवाह के योग्य हो पायी थी और न उसे दीन-दुनिया की समझ थी।
अभी वह इतनी भोली और सरल थी कि उसे विवाह के सुखों का कुछ-कुछ एहसास था, लेकिन वैवाहिक जीवन के झंझटों और दुःखों का उसे ज्ञान नहीं था सुख में छिपे दुःखों की समझ नहीं थी। वह तो उस पाठिका के समान थी, जो धुंधले प्रकाश में तुकान्त व लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी। उसे तो केवल वैवाहिक जीवन के एक अस्पष्ट से प्रकाश का एहसास था। अर्थात् उसके सामने सुखों का काल्पनिक स्वरूप था, जिसके आधार पर वह सुख को जानने की कुछ-कुछ कोशिश कर रही थी। लेकिन विवाह की वस्तुस्थिति से अनजान थी।
विशेष :
  1. माँ-बेटी के सहज स्नेह बंधन को प्रकट किया गया है।
  2. खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग हुआ है। मुक्त छन्द में रचित पद में उत्प्रेक्षा अलंकार प्रस्तुत है।
  3. भावों की सहज अभिव्यंजना हुई है।
2. माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना..
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
कठिन-शब्दार्थ :
  • रीझना = प्रसन्न होना।
  • शाब्दिक भ्रम = शब्द द्वारा फैलाया गया भ्रम जाल।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश कवि ऋतुराज द्वारा लिखित कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इसमें कवि ने माँ के माध्यम से हर बेटी को संदेश दिया है कि खुद पर मुग्ध नहीं होना है। आग में सिर्फ रोटी ही सेंकना है, खुद को नहीं। लड़की होना पर, लड़की जैसी दिखना मत। माँ की सीख अनुभव द्वारा व्यक्त की गई है।
व्याख्या – कन्यादान करते समय माँ ने अपनी बेटी को सीख देते हुए कहा कि बेटी ! ससुराल में जाकर तू अपने रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध मत होना। अर्थात् तू अपना चेहरा पानी (दर्पण) में देखकर उस पर रीझ मत जाना। भाव यह है कि तुम यह मत समझ बैठना कि तुम्हारा रूप-सौन्दर्य सभी को बाँध लेगा। जीवन की वास्तविकता तो कुछ और ही है। दूसरी बात समझाती हुई कहती है कि आग पर रोटियाँ सेंकी जाती हैं, वह जलने-मरने के लिए नहीं होती है। कायरता है और आग का दुरुपयोग है।
वस्त्र और आभूषणों को स्त्री के लिए शोभाकारक माना जाता है, पर वास्तव में यह भ्रम है। अर्थात् स्त्री वस्त्र-आभूषण पहनकर अपने बारे में गलतफहमी पाल लेती है कि ससुराल वाले बहुत प्यार करते हैं। वह इनके लोभ में आ जाती है लेकिन यथार्थ रूप में यदि देखा जाए तो वह वस्त्र और आभूषण स्त्री के लिए बन्धन होते हैं और वह इनमें बँधकर मोहग्रस्त हो जाती है। अपना अस्तित्व भुला बैठती है। माँ ने पुत्री को अन्तिम शिक्षा देते हुए कहा कि तुम लड़की बनकर तो रहना, पर लड़की जैसी दिखना मत। अर्थात् दुर्बल, पराश्रित एवं दमनचक्र से दबी हुई मत रहना, सहनशीलता के साथ स्वाभिमान से रहना।
विशेष :
  1. कवि ने समाज की सभी बेटियों को स्वावलम्बी, आत्मनिर्भर तथा सजग रहने की सीख दी है।
  2. खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग हुआ है। मुक्त छन्द की गेयता तथा तत्सम शब्दों का प्रस्तुतीकरण है।
  3. भावों की सहज अभिव्यक्ति प्रकट हुई है।

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