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RBSE Class 10 Hindi Vyakaran पद-भेद-संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय

RBSE Class 10 Hindi Vyakaran पद-भेद-संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय

RBSE Class 10 Hindi Vyakaran पद-भेद-संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय

अर्थ, ध्वनि, उत्पत्ति, व्युत्पत्ति, रूप-परिवर्तन और वाक्य-प्रयोग के अनुसार शब्दों के भेद माने जाते हैं। वस्तुतः शब्द की रचना, उसका अर्थ और उसकी प्रकृति के अनुसार वर्गीकरण उचित माना जाता है। भाषा-विज्ञान में रूप-ध्वनि तथा पद-ध्वनि के अन्तर्गत शब्द या पद का विवेचन किया जाता है। इस कारण पद-भेद पाँच प्रकार के होते हैं –
  1. अर्थ के आधार पर पद-भेद
  2. रचना या व्युत्पत्ति के आधार पर पद-भेद
  3. उत्पत्ति के आधार पर पद-भेद
  4. ध्वनि के आधार पर पद-भेद
  5. रूप-परिवर्तन के आधार पर पद-भेद
1. अर्थ के आधार पर पद-भेद-अर्थ की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं – (1) सार्थक और (2) निरर्थक। वाक्य-प्रयोग की दृष्टि से सार्थक शब्द या पद ही महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि यह भाषा के प्राण हैं और व्याकरण में इन्हीं। का विवेचन किया जाता है। ये तीन प्रकार के होते हैं
  • वाचक-लोक-व्यवहार, व्याकरण, कोश आदि के आधार पर मुख्य अर्थ के लिए प्रयुक्त होने वाला पद ‘वाचक’ कहलाता है।
  • लक्षक-प्रसिद्ध अर्थ के अतिरिक्त उससे सम्बन्धित अन्य अर्थ प्रकट करने वाला शब्द या पद ‘लक्षक’ कहलाता है।
  • व्यंजक-जब किसी पद से वाच्यार्थ और लक्ष्यार्थ से भिन्न कोई अन्य अर्थ व्यंग्य रूप में व्यक्त होता है, तो उस पद को ‘व्यंजक’ कहते हैं।
विशेष-वाचक पद से प्रकट अर्थ को वाच्यार्थ या मुख्यार्थ, लक्षक पद से लक्षित अर्थ को लक्ष्यार्थ तथा व्यंजक पद व्यक्त अर्थ को व्यंग्यार्थ कहते हैं। इन तीनों अर्थों का बोध क्रमशः अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शब्द-शक्ति से होता है।
2. रचना या व्युत्पत्ति के आधार पर पद-भेद-शब्दों की बनावट एवं रचना के आधार पर पद के तीन भेद माने जाते हैं। ये तीन प्रकार इस तरह हैं
  1. रूढ़-जो शब्द किसी अन्य शब्द के योग से नहीं बनते हैं तथा मौलिक प्रकृति के होते हैं, वे रूढ़ कहलाते _____ हैं। जैसे धर्म, अर्थ, मोक्ष, ग्रन्थ आदि।
  2. यौगिक-जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दांशों अथवा शब्दों के योग से बनते हैं, वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे-दशानन (दश + आनन), विद्यालय (विद्या + आलय) आदि।
  3. योगरूढ़-जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बने हों, किन्तु साधारण अर्थ को छोड़कर किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करते हों, वे योगरूढ़ कहलाते हैं। जैसे-जलज (जल + ज), मण्डप, घनश्याम, लम्बोदर, चक्रधर आदि।
3. उत्पत्ति के आधार पर पद-भेद-हिन्दी में प्रयुक्त शब्द अलग-अलग स्रोतों से उत्पन्न माने जाते हैं। इस दृष्टि से इसके चार भेद हैं
  1. तत्सम-तत्सम शब्द दो शब्दों तत् + सम से बना है जिसका अर्थ है-उसके समान अथ समान। इसलिए बिना परिवर्तन के संस्कृत से हिन्दी में आए शब्द तत्सम कहलाते हैं। यथा-मातृ, गृह, ज्ञान, पुष्प, कर्म, स्नेह, यौवन आदि।
  2. तद्भव-तद्भव शब्द दो शब्दों तत् + भव से बना है जिसका अर्थ है-उससे यानि संस्कृत से उत्पन्न होने वाला। उच्चारण की सुविधा के कारण जो शब्द संस्कृत से हिन्दी में कुछ बदलाव के साथ चलन में आए हैं, वे तद्भव कहलाते हैं। जैसे – दूध, खेत, कान, सोना, साँप, काम आदि।
  3. देशज-स्थानीय बोलियों के प्रभाव से अथवा जरूरत के अनुसार बनाकर जिनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें देशज शब्द कहते हैं। जैसे – पेट, पगड़ी, खिड़की, गाड़ी, पिल्ला आदि।
  4. विदेशज-हिन्दी में जो शब्द फारसी, अरबी, अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओं से अपनाये गये हैं, उन्हें। विदेशज (शब्द) कहते हैं। जैसे – आदमी, इम्तिहान, गिलास, रेल, स्कूल, टिकिया आदि।
4. ध्वनि के आधार पर पद-भेद-शब्दों की रचना मूल ध्वनियों के आधार पर होती है। इस दृष्टि से शब्द या पद के दो भेद माने जाते हैं
  • वर्णात्मक-जिस शब्द या पद के वर्गों का अलग-अलग स्पष्ट उच्चारण किया जा सके, वे वर्णात्मक कहलाते हैं। जैसे – ज्ञान, अमर, करुणा, चन्द्रमा आदि।
  • ध्वन्यात्मक-जिन शब्दों, वर्गों का विभाजन नहीं किया जा सके और किसी ध्वनि के अनुकरण पर उनकी रचना होवे, वे ध्वन्यात्मक पद कहलाते हैं। जैसे-नगाड़े की टंकार, वीणा की झंकार, कुत्ते का भौंकना, पक्षी का कूकना आदि।
5. रूप-परिवर्तन के आधार पर पद-भेद-वाक्य में पद या शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में होता है। इस कारण अर्थ में परिवर्तन लाने के लिए रूप में भी परिवर्तन करना पड़ता है। इस दृष्टि से शब्द के दो भेद होते हैं
1. विकारी-जिन पदों या शब्दों का रूप लिंग, वचन, कारक आदि के प्रभाव से बदल जाता है, अथवा प्रयोग के अनुसार उनमें कुछ विकार आ जाता है, वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे – भारत, नदी, दूध, आप, मैं, बुढ़ापा, सुन्दर, पढ़ना, खेलना आदि।
वस्तुतः वाक्य-प्रयोग में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण शब्दों के रूपों में परिवर्तन हो जाता है। ये विकारी शब्द या पद चार प्रकार के होते हैं
(1) संज्ञा, (2) सर्वनाम, (3) विशेषण, और (4) क्रिया।
2. अविकारी-जिन शब्दों में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई रूप-परिवर्तन या विकार नहीं आता है, अर्थात् उनके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता है, वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। अविकारी शब्दों को ‘अव्यय’ भी कहते हैं। जैसे – हा, आह, यद्यपि, परन्तु, और आदि।
प्रकार्य की दृष्टि से अविकारी शब्द भी चार प्रकार के माने जाते हैं –
  1. क्रिया विशेषण
  2. सम्बन्धबोधक अव्यय
  3. समुच्चयबोधक अव्यय और
  4. विस्मयादिबोधक अव्यय।
अभ्यास प्रश्न
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पद किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखिए।
अथवा
पद किसे कहते हैं? पद के भेदों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्याकरण के नियमों के अनुसार वाक्य में प्रयोग करने की योग्यता जिस शब्द को प्रदान की जाती है, उसे पद कहते हैं। पद के दो भेद होते हैं – (1) विकारी और (2) अविकारी।
प्रश्न 2.
रूप-परिवर्तन के आधार पर शब्दों के नामोल्लेख करते हुए रूप-परिवर्तन के चार कारण भी लिखिए।
उत्तर:
रूप-परिवर्तन के आधार पर चार प्रकार के शब्द होते हैं – संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। शब्दों का ‘ रूप-परिवर्तन लिंग, वचन, काल एवं कारक के कारण होता है।
प्रश्न 3.
अर्थ के आधार पर पद-भेदों के नाम बताइए।
उत्तर:
अर्थ के आधार पर तीन प्रकार के पद-भेद माने जाते हैं –
  1. वाचक
  2. लक्षक और
  3. व्यंजक।
प्रश्न 4.
यौगिक शब्द की परिभाषा व उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दांशों या शब्दों के योग से बनते हैं, वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे विद्यालय, छात्रावास आदि।
प्रश्न 5.
तत्सम शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो शब्द संस्कृत से हिन्दी में बिना परिवर्तन किये अपनाये जाते हैं, उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं। जैसे-कर्म, कर्ण, सर्प, गृह आदि।
प्रश्न 6.
विकारी शब्दों में किन कारणों से विकार आ जाता है?
उत्तर:
विकारी शब्दों में लिंग, वचन, कारक आदि कारणों से विकार या परिवर्तन आ जाता है।
प्रश्न 7.
सर्प, कर्ण, क्षेत्र, चर्म, दुग्ध…इनके तद्भव शब्द लिखिए।
उत्तर:
सर्प-साँप, कर्ण-कान, क्षेत्र-खेत, चर्म-चाम, दुग्ध-दूध।
प्रश्न 8.
सार्थक शब्द किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
जिस शब्द का एक निश्चित अर्थ और सही उच्चारण होता है, उसे सार्थक शब्द कहते हैं। सार्थक शब्द भाषा का प्राण है। जैसे-हिमालय, गंगा, भारत आदि।।
प्रश्न 9.
देशज शब्द किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन शब्दों का निर्माण स्थानीय आवश्यकता की पूर्ति के लिए होता है तथा उनके मूल रूप का पता नहीं होता है, उन्हें देशज शब्द कहते हैं। जैसे-ठेठ, ढोर, डकार, लोटा, पगड़ी आदि।

प्रश्न 10.
ध्वनि के आधार पर पद-भेदों के नाम बताइए।
उत्तर:
ध्वनि के आधार पर शब्द या पद के दो भेद माने जाते हैं – (1) वर्णात्मक और (2) ध्वन्यात्मक।

संज्ञा (विकारी शब्द)
वाक्य में प्रकार्य की दृष्टि से विकारी शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें पद भी कहा जाता है। विकारी शब्दों या पदों में सर्वप्रथम संज्ञा की गणना की जाती है।
संज्ञा की परिभाषा-किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ के गुण, धर्म, नाम, स्वभाव तथा स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे-भारत, हिमालय, राम, जयपुर, मेज, पानी, बुढ़ापा, ममता, आम आदि।
संज्ञा के भेद-संज्ञा के मुख्य रूप से तीन भेद माने जाते हैं –
  1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
  2. जातिवाचक संज्ञा और
  3. भाववाचक संज्ञा।
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा-जिस संज्ञा शब्द से किसी एक ही जाति की एक वस्तु, एक स्थान या व्यक्ति का बोध होता है, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – कमल, रमेश, रमा, अरावली, गंगा, भारतवर्ष, दूध, जयपुर आदि।
इन उदाहरणों में ‘कमल’ एक पुष्प का नाम, रमेश’ एक व्यक्ति का नाम, ‘रमा’ एक स्त्री का नाम का बोध कराते हैं। इसलिए ये सब शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा हैं।
2. जातिवाचक संज्ञा-जिस संज्ञा से किसी एक जाति, एक वर्ग या समूह की सभी वस्तुओं का बोध होता है, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-पर्वत, नदी, नगर, पक्षी, फूल, बन्दर, लड़का, देश आदि। इन उदाहरणों में ‘पर्वत’ सभी पर्वतों का, ‘नदी’ सभी नदियों का, ‘नगर’ सभी नगरों और ‘पक्षी’ सभी पक्षियों का बोध करा रहे हैं। इसी प्रकार अन्य शब्द भी अपने वर्ग का बोध कराते हैं।
3. भाववाचक संज्ञा-जिस संज्ञा शब्द से किसी पदार्थ के गुण, दोष, धर्म, अवस्था, भाव, विभिन्न व्यापार आदि का बोध होता है, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मिठास, बुढ़ापा, लिखावट, बचपन, प्रसन्नता, दुःख, भय, भलाई आदि।
कुछ विद्वान् अंग्रेजी व्याकरण के समान संज्ञा के दो अन्य भेद (4) समुदायवाचक या समूहवाचक संज्ञा व (5) द्रव्यवाचक संज्ञा भी मानते हैं, जबकि हिन्दी व्याकरण में इन दोनों संज्ञा भेदों को जातिवाचक संज्ञा के अन्तर्गत ही। माना जाता है। फिर भी अध्ययन की दृष्टि से यहाँ दोनों भेदों का परिचय दिया जा रहा है।
4. समुदायवाचक या समूहवाचक संज्ञा-जो संज्ञा शब्द प्राणियों व वस्तुओं के समूह का बोध कराते हैं, उन्हें समुदायवाचक या समूहवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – कक्षा, भीड़, सेना, परिवार, गिरोह आदि।
5. द्रव्यवाचक संज्ञा-वे संज्ञा शब्द जो नाप-तोल वाले द्रव्य, पदार्थ या धातु का बोध कराते हैं, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-तेल, घी, दूध, गेहूँ, चावल, सोना, चाँदी आदि।
विशेष – भाववाचक संज्ञाएँ निम्नलिखित चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं –
(i) जातिवाचक संज्ञा से –
(iv) क्रिया से –
विशेष – द्रव्य, धातु या पदार्थ का बोध कराने वाले द्रव्यवाचक शब्दों तथा वस्तुओं के समूहों के वाचक शब्दों की गणना जातिवाचक संज्ञा के अन्तर्गत ही की जाती है।
अभ्यास प्रश्न
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संज्ञा की उचित परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान अथवा गुण के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे – राम, मेज, दिल्ली, सजनता आदि।
प्रश्न 2.
संज्ञा के कितने भेद माने जाते हैं?
उत्तर:
संज्ञा के मुख्य रूप से तीन तथा अन्य दो भेद माने जाते हैं। जैसे –
  1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
  2. जातिवाचक संज्ञा
  3. भाववाचक संज्ञा। अन्य भेद
  4. समुदायवाचक संज्ञा
  5. द्रव्यवाचक संज्ञा।
प्रश्न 3.
जातिवाचक संज्ञा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जिस संज्ञा से किसी एक जाति या एक वर्ग की सभी वस्तुओं का बोध होता है; उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
प्रश्न 4.
व्यक्तिवाचक संज्ञा किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिस संज्ञा शब्द से किसी विशिष्ट व्यक्ति या स्थान का ज्ञान हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
प्रश्न 5.
व्यक्तिवाचक संज्ञा व जातिवाचक संज्ञा में अन्तर बताइए।
उत्तर:
वे संज्ञा शब्द जो किसी विशेष व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम का बोध कराते हैं, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा तथा इसके विपरीत जो संज्ञा शब्द अपनी सामान्य जाति का बोध कराते हैं, उन्हें जातिवाचक संज्ञा शब्द
प्रश्न 6.
भाववाचक संज्ञा किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिन संज्ञा शब्दों से किसी भाव, गुण, अवस्था या क्रिया के व्यापार आदि का बोध होता है, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
प्रश्न 7.
समूहवाचक संज्ञा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्तियों या वस्तुओं के समूह का बोध हो, उन्हें समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए- मित्र, बच्चा, अपना, लघु।
उत्तर:
मित्र-मित्रता, बच्चा बचपन, अपना अपनापन, लघ-लघता।
प्रश्न 9.
व्यक्तिवाचक एवं जातिवाचक संज्ञा शब्दों को छाँटिए रमा, बन्दर, नदी, गंगा, कमल, अजमेर, देश, छात्र।
उत्तर:
व्यक्तिवाचक संज्ञा-रमा, गंगा, कमल, अजमेर। जातिवाचक संज्ञा-बन्दर, नदी, देश, छात्र।
प्रश्न 10.
व्यक्तिवाचक संज्ञा को जातिवाचक संज्ञा के रूप में लिखिए।
उत्तर:
‘आप तो पूरे विभीषण निकले।’ यहाँ ‘विभीषण’ शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा होते हुए भी जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न 11.
कक्षा, भीड़, सेना, झुण्ड, परिवार, गिरोह आदि शब्द संज्ञा के किस भेद के अन्तर्गत आते हैं?
उत्तर:
कक्षा, भीड़, सेना, झुण्ड, परिवार, गिरोह आदि शब्द समूहवाचक संज्ञा के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए अपना, बड़ा, भला, घबराना, खाना, मिलाना।
उत्तर:
भाववाचक संज्ञा-अपनत्व, बड़प्पन, भलाई, घबराहट, खाद्य, मिलावट।

सर्वनाम :

सर्वनाम की परिभाषा-जिस शब्द का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है, उसे सर्वनाम कहते हैं। जैसे – मैं, तुम, वह, वे आदि।
‘सर्वनाम’ का शाब्दिक अर्थ है-सबका नाम। अर्थात् वे शब्द जो सबके नाम हों और सबके लिए प्रयुक्त किये जाएँ, उन्हें सर्वनाम कहते हैं। उदाहरण के लिए, नरेश ने किसी से कहा कि ‘सुरेश घर जायेगा। इस वाक्य में ‘सुरेश’ के लिए ‘वह’ का प्रयोग हो सकता है और कहा जा सकता है कि ‘वह घर जायेगा। ‘मोहन ने कहा कि मोहन पढ़ेगा। इस वाक्य में ‘मोहन’ शब्द दो बार आया है, इससे पुनरुक्ति हो गई है। अतः ‘मोहन ने कहा कि वह पढ़ेगा’ कहने से संज्ञा के स्थान पर सर्वनाम का प्रयोग करने से वाक्य दोषपूर्ण नहीं रहेगा।
सर्वनाम के भेद-सर्वनाम के निम्नलिखित छः भेद माने जाते हैं –
  1. पुरुषवाचक सर्वनाम
  2. निश्चयवाचक सर्वनाम
  3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
  4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम
  5. प्रश्नवाचक सर्वनाम
  6. निजवाचक सर्वनाम
1. पुरुषवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम शब्द का प्रयोग किसी पुरुष के स्थान पर प्रयुक्त होता है, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – मैं, हम, तू, तुम, वह, वे।
पुरुषवाचक सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाले, सुनने वाले और जिसके सम्बन्ध में कुछ कहा जाये उसके लिये होता है। इस कारण तीन प्रकार के पुरुषों के आधार पर इसके तीन भेद होते हैं
  • उत्तम पुरुष-जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला अपने नाम के स्थान पर करता है, उसे उत्तम पुरुष कहते हैं। जैसे- मैं, मेरा, मेरी, मेरे, हम, हमारा, हमारी, हमारे, हमें, हमको, मुझको, मुझे आदि।
  • मध्यम पुरुष-जिस सर्वनाम का प्रयोग सुनने वाले के नाम के स्थान पर किया जाता है, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे – तू, तुम, तेरा, तुम्हारा, तुमको, तुझे, आप, आपका, आपकी, आपके आदि।
  • अन्य परुष-जिसके सम्बन्ध में कुछ कहा जाता है, उसके नाम के स्थान पर वक्ता द्वारा जिस सर्वनाम का प्रयोग होता है, उसे अन्य पुरुष कहते हैं। जैसे-वह, उसका, उसकी, वे उनका, उसके, उसका, उसके आदि।
2.निश्चयवाचक सर्वनाम-जिन सर्वनाम शब्दों के द्वारा किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति की ओर संकेत किया जाता है, उन्हें निश्चयात्मक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-यह, ये, वह, वे, इन्होंने, उन्होंने आदि।
3. अनिश्चयात्मक सर्वनाम-जिन सर्वनाम शब्दों के द्वारा संकेत तो किया जाता है, परन्तु किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति की ओर संकेत नहीं होता है, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – कोई, कुछ आदि।
4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम-जो सर्वनाम शब्द वाक्य में परस्पर सम्बन्ध का बोध कराते हैं, उन्हें सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे
  1. जो पढ़ेगा सो पास होगा।
  2. जिसकी लाठी उसकी भैंस।
  3. जिनके खेत उनके बैल।
उपर्युक्त उदाहरणों में जो-सो, जिसकी-उसकी, जिनके-उनके शब्द पर स्वर सम्बन्ध का बोध करा रहे हैं। अतः सम्बन्धवाचक सर्वनाम है।
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम-जो सर्वनाम शब्द प्रश्न का बोध कराते हैं, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे –
  1. तुम कहाँ जा रहे हो?
  2. आज कौन जायेगा?
  3. यहाँ क्या रखा है?
उपर्युक्त उदाहरणों में ‘कहाँ’, ‘कौन’, ‘क्या’ शब्द प्रश्नवाचक सर्वनाम हैं, क्योंकि इन सर्वनामों के द्वारा वाक्य प्रश्नवाचक बन जाते हैं।
6. निजवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम शब्द का प्रयोग कर्ता स्वयं के लिये प्रयुक्त करता है, अर्थात् जो निजता का बोध कराते हैं, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे –
  1. मैं अपने-आप पढ़ता हूँ।
  2. मैं आप आ जाऊँगा या मैं स्वयं आ जाऊँगा।
विशेष-हिन्दी में सर्वनाम शब्दों का लिंग संज्ञा के अनुसार होता है। सामान्यतः क्रिया-प्रयोग से सर्वनाम के लिंग का बोध हो जाता है। जैसे
  1. मैं मर गया। (पु.)
  2. मैं मर गयी। (स्त्री.)
  3. वह जा रहा था। (पु.)
वह जा रही थी। (स्त्री.) इन वाक्यों में क्रिया के द्वारा ही ‘मैं’ और ‘वह’ सर्वनाम शब्दों के लिंग का बोध हो रहा है।
अभ्यास प्रश्न
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सर्वनाम शब्द भाषा. को किस दोष से बचाते हैं?
उत्तर:
सर्वनाम शब्द भाषा को पुनरुक्ति दोष से बचाते हैं।
प्रश्न 2.
पुरुषवाचक सर्वनाम के कितने भेद होते हैं?
उत्तर:
पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद होते हैं – (1) उत्तम पुरुष, (2) मध्यम पुरुष, (3) अन्य पुरुष।
प्रश्न 3.
जो परिश्रम करेगा उसे ही सफलता मिलेगी। यह वाक्य किस सर्वनाम का उदाहरण है? उसकी परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्य सम्बन्धवाचक सर्वनाम का उदाहरण है। जो सर्वनाम शब्द सम्बन्ध बताने का कार्य करते हैं, उन्हें सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से अन्य, मध्यम एवं उत्तम पुरुष सर्वनाम अलग-अलग छाँटकर लिखिए वे, हम, तुम, मैं, हमारी, तू, वह, उनको, उन्हें।
उत्तर:
अन्य पुरुष-वे, उनको, उन्हें, वह। मध्यम पुरुष-तुम, तू। उत्तम पुरुष-हम, मैं, हमारी।
प्रश्न 5.
निजवाचक सर्वनाम की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जिस सर्वनाम शब्द का प्रयोग कर्ता स्वयं के लिए प्रयुक्त करता है, उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे स्वयं, आप, अपना आदि।
प्रश्न 6.
अनिश्चयवाचक सर्वनाम किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिस सर्वनाम शब्द से किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति की ओर संकेत नहीं होता है, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – कोई, कुछ आदि।
प्रश्न 7.
नीचे लिखे कुछ सर्वनाम शब्दों को बहुवचन रूपों में लिखिए। मैं/मैंने, तू/तूने/किसका, किससे।
उत्तर:
  • मैं/मैंने – एकवचन, हम/हमने – बहुवचन।
  • तू/तूने – एकवचन, तुम/तुमने – बहुवचन।
  • किसका – एकवचन, किनका – बहुवचन।
  • किससे – एकवचन, किनसे – बहुवचन।
प्रश्न 8.
‘तू’ और ‘तुम’ शब्द के स्थान पर शिष्टाचारवश अब किस शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है?
उत्तर:
‘तू’ और ‘तुम’ शब्द के स्थान पर शिष्टाचारवश द्वारा ‘आप’ शब्द का प्रयोग होने लगा है।
प्रश्न 9.
अपने लिए प्रयोग होने वाले सर्वनाम को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अपने लिए प्रयोग होने वाले सर्वनाम को निजवाचक सर्वनाम कहते हैं।
प्रश्न 10.
सर्वनाम किसे कहते हैं?
उत्तर:
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं।
प्रश्न 11.
तुम्हारे को माताजी बला रही हैं। उचित सर्वनाम लगाकर वाक्य को शद्ध कीजिए।
उत्तर:
शुद्ध वाक्य-तुमको माताजी बुला रही है।
विशेषण :
परिभाषा – जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं। जैसे – सुन्दर बालक, पीली साड़ी, पाव भर दही, दो बन्दर आदि।
इनमें ‘सुन्दर’, ‘पीली’, ‘पाव भर’ और ‘दो’ विशेषण हैं।
विशेषण के भेद-विशेषण के चार भेद माने जाते हैं, वे हैं –
  1. गुणवाचक विशेषण
  2. संख्यावाचक विशेषण
  3. परिमाणवाचक विशेषण
  4. सार्वनामिक या संकेतवाचक विशेषण
1. गुणवाचक विशेषण-जो शब्द किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के रूप, रंग या गुण सम्बन्धी विशेषता को प्रकट करते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – यह सुन्दर गाय है। यह लाल फूल है। उमाकान्त चतुर विद्यार्थी है। इन वाक्यों में ‘सुन्दर’, ‘लाल’ व ‘चतुर’ शब्द गुणवाचक विशेषण हैं।
गुणवाचक विशेषण में संज्ञा के गुण या दोष का बोध कराया जाता है। जैसे –
  1. गंधवाचक-दुर्गन्धयुक्त, सुगन्धित, खुशबूदार आदि।
  2. गुणबोधक-वीर, श्रेष्ठ, सत्यवादी, ईमानदार।
  3. दोषबोधक-अभिमानी, क्रूर, बुरा, दुष्ट, भीरू, कुरूप, डरपोक आदि।
  4. आकारबोधक-षट्कोण, नुकीला, तिकोना, चौकोर, गोल, आयताकार, लम्बा, चौड़ा आदि।
  5. दशाबोधक-स्वस्थ, रोगी, मोटा, पतला, कमजोर आदि।
  6. दिशाबोधक-उत्तरी, पश्चिमी, पूर्वी, दक्षिणी आदि।
  7. अवस्थाबोधक-बाल्य, युवा, प्रौढ़, वृद्ध आदि।
  8. रंगबोधक-सफेद, नीला, काला, हरा, पीला आदि।
  9. समयबोधक-रात्रि, निशीथ, संध्या, दोपहर, प्रात: आदि।
  10. स्थानबोधक-नीचा, ऊँचे, देशी, विदेशी, लखनवी, बनारसी, भारतीय आदि।
  11. स्पर्शबोधक-खुरदरा, कोमल, कठोर आदि।
  12. स्वादबोधक-चटपटा, मीठा, खट्टा, कड़वा, कसैला, तीखा आदि।
2. संख्यावाचक विशेषण-जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
इस विशेषण के द्वारा निश्चित या अनिश्चित संख्या का बोध होता है। इस कारण संख्यावाचक विशेषण के दो भेद होते हैं
निश्चित संख्यावाचक विशेषण-जो विशेषण निश्चित संख्या का बोध कराते हैं, वे निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं। जैसे-पाँच, सात, पहला, दूसरा आदि। निश्चित संख्यावाचक विशेषण के चार उपभेद होते हैं –
  1. गणनावाचक-जिससे गणना का बोध होता है। जैसे – एक, दो, चार, पाँच आदि।
  2. क्रमवाचक-जिससे क्रम का बोध हो। जैसे – पहला, दूसरा, पाँचवाँ, आठवाँ आदि।
  3. आवृत्तिवाचक-जिससे यह पता लगता है कि विशेष्य (संज्ञा या सर्वनाम) कितने गुना है। जैसे – दूना, चौगुना आदि।
  4. समुदायवाचक-जिससे संज्ञा के समूह का बोध हो। जैसे – दोनों, तीनों, पाँचों आदि। प्रत्येक वाचक-जैसे-एक-एक, दो-दो, तीन-तीन, हर चौथे आदि।
अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण-जो विशेषण किसी निश्चित संख्या का बोध न करायें, उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण’ कहते हैं। जैसे – कई, कुछ, सब, बहुत, थोड़े आदि।
3. परिमाणवाचक विशेषण-जिन शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की नाप-तौल सम्बन्धी विशेषताओं का ज्ञान होता है, उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – थोड़ा दूध, पाव भर चीनी, गज भर कपड़ा आदि।
परिमाण भी निश्चित और अनिश्चित हो सकता है। इस कारण परिमाणवाचक विशेषण के निम्नलिखित दो भेद माने जाते हैं –
  1. निश्चित परिमाणवाचक विशेषण-एक, चार, दस आदि।
  2. अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण…कुछ, थोड़ा, बहुत आदि।
4. सार्वनामिक या संकेतवाचक विशेषण-जो विशेषण शब्द संज्ञा या सर्वनाम की ओर संकेत करते हैं, उन्हें क विशेषण कहते हैं। ये विशेषण सर्वनाम शब्दों से बनते हैं. इस कारण इन्हें ‘सार्वनामिक विशेषण’ भी कहते हैं। जैसे – यह पुस्तक मेरी है। वह मकान तुम्हारा है। वे दिन बीत गये। इस गेंद को मत छुओ। इन वाक्यों में ‘यह’, ‘वह’, ‘वे’, ‘इस’ शब्द क्रमशः पुस्तक, मकान, दिन और गेंद नाम संज्ञाओं की ओर संकेत करते हैं।
विशेषण की अवस्थाएँ :

विशेषणं किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाते हैं। जिन वस्तुओं की विशेषता बतलाई जाती है उनमें न्यूनाधिक्य होना स्वाभाविक है। इस न्यूनाधिक्य को तुलना के रूप में समझा जा सकता है। तुलना की दृष्टि से विशेषण की तीन अवस्थाएँ होती हैं –

  1. मूलावस्था-विशेषण शब्द की मूल दशा को जिसमें वह सामान्य रूप में रहता है, मूलावस्था कहते हैं। जैसे-लघु, प्रिय, श्रेष्ठ आदि शब्द।
  2. उत्तरावस्था-जहाँ दो वस्तुओं या दो व्यक्तियों की तुलना करके एक-दूसरे से अधिक या कम बताया जाता है, वहाँ विशेषण की उत्तरावस्था होती है। जैसे – लघुतर, प्रियतर, श्रेष्ठतर। अथवा यों कहा जाए कि पिताजी सुरेश को महेश से श्रेष्ठतर समझते हैं।
  3. उत्तमावस्था-यह विशेषण की वह अवस्था है जिसमें अनेक वस्तुओं या व्यक्तियों की तुलना करके किसी एक को सबसे अधिक श्रेष्ठ या कम बताया जाता है। जैसे-लघुतम, प्रियतम, श्रेष्ठतम। जैसे – रमेश सभी छात्रों में चतुरतम है। गाय सभी पशुओं में श्रेष्ठतम पशु है।
विशेष –
  • विशेषण की उक्त तीनों अवस्थाएँ केवल गुणवाचक विशेषण में होती हैं।
  • विशेषण की मलावस्था में वह मल रूप में रहता है. उत्तरावस्था में दसरे की तुलना में एक को श्रेष्ठ या विशिष्ट बतलाया जाता है, लेकिन उत्तमावस्था में सबसे श्रेष्ठ या उत्तम बताया जाता है।
  • तत्सम शब्दों की उत्तरावस्था में विशेषण के मूल रूप के साथ ‘तर’ और उत्तमावस्था में ‘तम’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
विशेषण की तीनों अवस्थाओं के रूप :

विशेषणों की रचना

विशेषणों की रचना मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार से होती है –
1. संज्ञा से विशेषण बनाना –
2. सर्वनाम से विशेषण बनाना
अभ्यास प्रश्न
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विशेषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
विशेषण जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं।

प्रश्न 2.
विशेष्य किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
जिंस शब्द की विशेषता बताई जाए, उसे विशेष्य कहते हैं, जैसे – काली गाय। यहाँ काली विशेषण है तथा गाय विशेष्य है।
प्रश्न 3.
प्रतिशेषण की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
जो शब्द विशेषण शब्दों की विशेषता बताते हैं, उन्हें प्रतिशेषण कहते हैं। जैसे – मोहित बहुत सुन्दर लड़का है। यहाँ ‘सुन्दर’ शब्द विशेषण है और बहुत शब्द विशेषण शब्द की विशेष्यता बता रहा है।
प्रश्न 4.
यौगिक विशेषण किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
कुछ विशेषण संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया शब्दों में प्रत्यय लगाकर बनते हैं, उन्हें यौगिक विशेषण कहते हैं। जैसे – वर्ष-वार्षिक, दया – दयालु आदि।
प्रश्न 5:
परिमाणवाचक विशेषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की नाप-तौल सम्बन्धी विशेषताओं का ज्ञान होता है, उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।

प्रश्न 6.
निम्न विशेषणों की उत्तरा एवं उत्तमा अवस्था बताइए बहुत, महत्, कनिष्ठ, श्रेष्ठ, मधुर, कुटिल।
उत्तर:
बहुत-बहुतर, बहुतम। महत्-महत्तर, महत्तम। कनिष्ठ-कनिष्ठतर, कनिष्ठतम। श्रेष्ठ श्रेष्ठतर, श्रेष्ठतम। मधुर मधुरतर, मधुरतम। कुटिल – कुटिलतर, कुटिलतम।

प्रश्न 7.
विशेषण की मूलावस्था किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन विशेषण शब्दों से सामान्य विशेषता प्रकट होती है, उन्हें विशेषण शब्दों की ‘मूलावस्था’ कहते हैं। जैसे-सुन्दर, सरल आदि।।
प्रश्न 8.
विशेषण की ‘उत्तमावस्था’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जिन विशेषण शब्दों से दो अथवा दो से अधिक वस्तुओं की तुलना करके एक वस्तु को सबसे अधिक या सबसे कम बताया जाता है उसे उत्तमावस्था कहा जाता है।
प्रश्न 9.
संख्यावाचक विशेषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध कराने वाले विशेषण शब्दों को संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
प्रश्न 10.
विशेषण का लिंग किसके अनुसार होता है?
उत्तर:
विशेषण का लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
प्रश्न 11.
‘सा’ के प्रयोग से किस तरह के विशेषण का बोध होता है?
उत्तर:
‘सा’ के प्रयोग से तुलनाबोधक विशेषण का बोध होता है।
प्रश्न 12.
सार्वजनिक विशेषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो सर्वनाम शब्द (पुरुषवाचक और निजवाचक सर्वनाम को छोड़कर) संज्ञा से पूर्व आते हैं, उन्हें। सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
क्रिया :
क्रिया की परिभाषा-जिस शब्द से किसी काम का करना अथवा होना पाया जाये, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे –  लड़का पढ़ता है। रामू सोता है। बच्चा खेल रहा है। इन वाक्यों में पढ़ता है’, ‘सोता है’ और ‘खेल रहा है’ क्रिया के बोधक हैं और इनसे कार्य होने का बोध हो रहा है।
क्रिया का निर्माण-क्रिया का निर्माण ‘धातु’ से होता है। अर्थात् क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे –  खाना, पीना, पढ़ना, बुझना, टूटना आदि। इन क्रिया शब्दों में क्रमशः खा, पी, पढ़, बुझ, टूट आदि धातुएँ हैं। हिन्दी के सभी क्रिया शब्दों के अन्त में ‘ना’ प्रत्यय होता है। जैसे – खाना, पढ़ना, लिखना आदि। …..
क्रिया के भेद-कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्य दो भेद होते हैं
1. सकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं के व्यापार या कार्य का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। इस तरह की क्रिया में कर्म अवश्य रहता है। जैसे
(i) रमाकान्त पुस्तक पढ़ता है।
(ii) बालक दूध पीता है।
पहले वाक्य में ‘पढ़ता है’ क्रिया का फल ‘पुस्तक’ पर पड़ रहा है, इसलिए ‘पुस्तक’ कर्म है और ‘पढ़ता है’ सकर्मक क्रिया है। दूसरे वाक्य में ‘पीता है’ क्रिया का फल ‘दूध’ पर पड़ रहा है, इसलिए ‘दूध’ कर्म है और ‘पीता है’ सकर्मक क्रिया है।
इसी प्रकार देखना, सुनना, खेलना, बुलाना, गाना, आना, जाना, बेचना, लिखना आदि सकर्मक क्रियाएँ हैं। सकर्मक क्रिया के भेद-सकर्मक क्रिया के दो भेद होते हैं (1) एक कर्मक क्रिया और (2) द्विकर्मक क्रिया।

2. अकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के साथ कर्म प्रयुक्त न हो तथा क्रिया का व्यापार और फल दोनों कर्त्ता पर ही पड़ें, अर्थात् वे कर्ता तक ही सीमित रहें और उनसे केवल कार्य का होना ज्ञात हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे –

  • सुरेश सोता है।
  • घोड़ा दौड़ता है।
  • पेड़ से पत्ता गिरता है।
इन वाक्यों में ‘सोता है’, ‘दौड़ता है’ तथा ‘गिरता है’ क्रिया का फल कर्म पर नहीं पड़ रहा है, इसलिए ये अकर्मक क्रियाएँ हैं। अर्थात् इनमें कोई कर्म नहीं हैं। इसी प्रकार लगना, हँसना, रोना, गिरना, टूटना एवं बिछुड़ना आदि अकर्मक क्रियाएँ हैं।
विशेष – सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं को पहचानने का सबसे सरल तरीका यह है कि क्रिया के पहले ‘क्या’ अथवा ‘किसको’ लगाकर देखा जाए। यदि उत्तर में कुछ आये, तो क्रिया सकर्मक होगी और यदि उत्तर में कुछ न आये जैसे – गीता रोती है। इस वाक्य में ‘क्या रोती है’ का उत्तर नकारात्मक है। अतः यहाँ ‘रोती है अकर्मक क्रिया है। गीता दूध पीती है। इस वाक्य में ‘पीती है’ क्रिया है। क्या पीती है? ‘दूध पीती है। अतः यहाँ ‘दूध’ कर्म या ‘पीती है’ सकर्मक क्रिया है। –
क्रिया के अन्य भेद-प्रयोग तथा संरचना की दृष्टि से क्रिया के अन्य पाँच भेद माने जाते हैं –
  1. संयुक्त क्रिया
  2. नामधातु क्रिया
  3. प्रेरणार्थक क्रिया
  4. र्वकालिक क्रिया
  5. आज्ञार्थक क्रिया
1. संयुक्त क्रिया-जो क्रिया दो या दो से अधिक भिन्नार्थ क्रियाओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे – मोहन ने दूध पी लिया होगा। इस वाक्य में ‘पी लिया होगा’ संयुक्त क्रिया है, क्योंकि यह ‘पीना’, ‘लेना’ और ‘होना’ नामक भिन्नार्थक क्रियाओं के योग से बनी है।
जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों में धात की तरह प्रत्यय लगाकर बनायी जाती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं। जैसे – हाथ, दुःख, झूठ, लात, फिल्म आदि शब्दों से क्रमशः हथियाना, दुःखाना,
झुठलाना, लतियाना, फिल्माना आदि नामधातु क्रियाएँ बनती हैं।
(i) संज्ञा शब्दों से निर्मित नामधातु क्रिया –
(ii) सर्वनाम शब्द से निर्मित नामधातु क्रिया –
सर्वनाम शब्द     नामधातु क्रिया
अपना          अपनाना
(iii) विशेषण शब्दों से निर्मित नामधातु क्रिया –
(iv) अनुकरणवाची शब्दों से निर्मित नामधातु क्रिया
3. प्रेरणार्थक क्रिया-जहाँ कर्ता स्वयं कार्य न करके अपनी प्रेरणा द्वारा अन्य किसी से करवाता है, वहाँ प्रयुक्त क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। जैसे- रमेश अपना पत्र पोस्टमैन से पढ़वाता है। इस वाक्य में ‘पढ़वाता है’ क्रिया। यद्यपि पोस्टमैन करता है किन्तु वह ऐसा रमेश की प्रेरणा से करता है, अतः यहाँ ‘पढ़वाता’ प्रेरणार्थक क्रिया है।
विशेष – प्रेरणार्थक क्रिया स्वयं के द्वारा दूसरों को प्रेरणा देने से दो प्रकार होती है। यथा –
4. पूर्वकालिक क्रिया-जब एक क्रिया के समाप्त होने के बाद फिर एक दूसरी क्रिया का होना पाया जाये तथा जिसका काल दूसरी क्रिया से प्रकट हो उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। जैसे – मैं पढ़कर उठा हूँ।
इस वाक्य में पढ़ने के बाद उठने की क्रिया हुई है। अतः ‘पढ़कर’ पूर्वकालिक क्रिया है। सामान्यतः पूर्वकालिक क्रिया की धातु के अन्त में ‘के’, कर’ या ‘करके’ लगा दिया जाता है। इसी का एक भेद तात्कालिक क्रिया है। इसमें एक क्रिया की समाप्ति के बाद दूसरी पूर्ण क्रिया प्रयुक्त होती है। जैसे – शेर के आते ही वह बेहोश हो गया। इसमें ‘आते ही’ तात्कालिक क्रिया है।
5. आज्ञार्थक क्रिया-जिस क्रिया का प्रयोग आज्ञा, अनुमति और प्रार्थना आदि के लिए किया जाता है, वह आज्ञार्थक क्रिया कहलाती है। जैसे –
  • तुम सब घर चले जाओ।
  • सारे देशवासी, राष्ट्रभाषा का सम्मान करें।
  • आप खाना खाइए।
  • जरा चुप बैठो।
इन वाक्यों में आज्ञा या निवेदन का भाव व्यक्त हुआ है, इसलिए ये आज्ञार्थक क्रियाएँ हैं।
क्रिया के वाच्य :
परिभाषा – क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि वाक्य में क्रिया द्वारा जो कार्य किया गया है, उसका विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है। इस प्रकार जिस प्रक्रिया से क्रिया के सम्बन्ध का पता चलता है, उसे वाच्य कहते हैं।
वाक्य में क्रिया कर्ता, कर्म और भाव के अनुसार प्रयुक्त होती है। इस दशा में क्रिया का सम्बन्ध कभी कर्ता से, कभी कर्म से और कभी भाव से हो जाता है। अतः वाच्य के तीन भेद हो जाते हैं –
1. कर्तृवाच्य-क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया का प्रधान विषय कर्ता है, अर्थात् क्रिया का प्रयोग कर्ता के अनुसार होता है और लिंग व वचन भी कर्ता के अनुसार होता है, उसे कर्तवाच्य कहते हैं। जैसे
(i) मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
(ii) जयशंकर प्रसाद ने कामायनी रची।
इन वाक्यों में कर्ता ‘मैं’ और ‘जयशंकर प्रसाद’ हैं। क्रिया ‘पढ़ता हूँ’ और ‘रची’ का प्रयोग कर्ता के अनुसार ही हुआ है।
2. कर्मवाच्य-क्रिया के जिस रूप से पता लगे कि क्रिया का प्रयोग कर्म के अनुसार हुआ है, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। जैसे –
(i) मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है।
(ii) मुझ से आम खाया जाता है।
इन वाक्यों में ‘पुस्तक’ और ‘आम’ कर्म हैं, परन्तु कर्ता की स्थिति में होने से इनकी प्रधानता है। इस कारण ये कर्मवाच्य हैं। इन वाक्यों में क्रिया का रूप कर्म के लिंग, पुरुष और वचन के अनुसार ही बदला है।
3. भाववाच्य-क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि क्रिया के कार्य का मुख्य विषय भाव है, अर्थात् जिसमें क्रिया के अर्थ (भाव) की प्रधानता रहती है, कर्त्ता या कर्म की नहीं, उसे भाववाच्य कहते हैं। जैसे –
(i) मुझसे.पढ़ा नहीं जाता है।
(ii) मुझसे चला नहीं जाता है।
इन वाक्यों में भाव की प्रधानता है और उसे निषेधार्थक ‘पढ़ा नहीं जाता’, ‘चला नहीं जाता’ के द्वारा व्यक्त किया गया है। इसमें क्रिया स्वतन्त्र है और वह हमेशा पुल्लिंग, एकवचन तथा अन्य पुरुष में प्रयुक्त होती है।
विशेष :
  1. कर्तृवाच्य सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं में होता है।
  2. कर्मवाच्य केवल सकर्मक क्रियाओं में होता है।
  3. भाववाच्य केवल अकर्मक क्रियाओं में होता है।
अभ्यास प्रश्न
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सकर्मक क्रिया किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिन क्रियाओं को कर्म की अपेक्षा होती है, उन्हें ‘सकर्मक’ किया कहते हैं।
प्रश्न 2.
एककर्मक क्रिया किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिन क्रियाओं में एक कर्म होता है, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 3.
द्विकर्मक क्रिया किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिन क्रियाओं में दो कर्म होते हैं, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 4.
सामान्य क्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
वाक्य में अपने रूढ़ अर्थ में प्रयोग की जाने वाली क्रिया को ‘सामान्य क्रिया’ कहते हैं।
प्रश्न 5.
सहायक क्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
वाक्य में मुख्य क्रिया की सहायता करने वाली क्रिया को सहायक क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 6.
मूल क्रिया किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
मूल क्रिया वह है, जो किसी दूसरे शब्द से न बनी हो, जैसे-खाना, करना, चलना आदि।
प्रश्न 7.
दादीजी थोड़ा ऊँचा सुनती है। वाक्य में मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया बताइए।
उत्तर:
दादीजी थोड़ा ऊँचा सुनती- मुख्य क्रिया, हैं – सहायक क्रिया।
प्रश्न 8.
‘धातु’ किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे – लिख, पढ़, चल, खा आदि।
प्रश्न 9.
निम्न वाक्य को कर्तृवाच्य से भाववाच्य में बदलिए वह नहीं हँसता है।
उत्तर:
भाववाच्य-उससे हँस नहीं जाता है।
प्रश्न 10.
अकर्मक क्रिया किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिस क्रिया का व्यापार और फल दोनों कर्ता पर ही पड़ता है, क्रिया के साथ कर्म प्रयुक्त नहीं रहता है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 11.
पूर्वकालिक क्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 12.
प्रेरणार्थक क्रिया किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जब कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को प्रेरणा देकर कार्य करवाता है, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 13.
नामधातु क्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
मूल धातु से भिन्न-संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों से बनने वाली धातुओं को नामधातु क्रिया कहते हैं।
अव्यय (अविकारी शब्द)
परिभाषा – जिस शब्द में लिंग, वचन, कारकं आदि के कारण रूप-परिवर्तित नहीं होता है; उस अविकारी शब्द को अव्यय कहते हैं। ‘अव्यय’ का शाब्दिक अर्थ है, जो व्यय या खर्च न हो। अर्थात् जिसका रूप लिंग, वचन, कारक आदि से सदा अविकृत या अप्रभावित रहे। इसी कारण अव्यय को अविकारी शब्द कहा गया है।
अव्यय के भेद – अव्यय या अविकारी शब्दों को मुख्यतः चार भेदों में विभाजित किया जाता है
1. क्रिया विशेषण अव्यय-जो अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे –
  • रमेश धीरे-धीरे जा रहा है।
  • तुम कल शीघ्र आना।
  • परसों हम शहर जायेंगे।
इन वाक्यों में धीरे-धीरे’, ‘कल शीघ्र’ और ‘परसों’ क्रियाविशेषण हैं, क्योंकि ये क्रमशः ‘जा रहा है’, ‘आना’ और ‘जायेंगे’ क्रिया की विशेषता प्रकट कर रहे हैं।
क्रियाविशेषण के भेद-कुछ विद्वान् अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के चार भेद मानते हैं और कुछ दस भेद मानते हैं। परन्तु सामान्य रूप से इसके छः भेद मान्य हैं –
  1. कालवाचक क्रियाविशेषण
  2. स्थानवाचक क्रियाविशेषण
  3. रीतिवाचक क्रियाविशेषण
  4. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
  5. स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण
  6. निषेधवाचक क्रियाविशेषण
1. कालवाचक क्रियाविशेषण-जिस अव्यय शब्द से क्रिया के होने का काल या समय ज्ञात होता है, उसे कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे –
  • कल वह दिल्ली जायेगा।
  • प्रतिदिन विद्यार्थी अपना पाठ पढ़ते हैं।
इन वाक्यों में ‘कल’ और ‘प्रतिदिन’ कालवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी प्रकार अन्य क्रियाविशेषण शब्द हैं-अब, अभी, जब, कभी, कब, तभी, तुरन्त, घड़ी-घड़ी, पूर्व, फिर, पश्चात्, पहले, पीछे, निरन्तर, परसों, सदा, शीघ्र।
स्थानवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों में क्रिया के व्यापार स्थान का बोध होता है, उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे
(i) अँधेरे में उधर मत जाओ।
(ii) रमेश भीतर कमरे में है।
इन वाक्यों में ‘उधर’ और ‘भीतर’ स्थानवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी तरह के अन्य अव्यय हैं – इधर, ऊपर, नीचे, यहाँ, वहाँ, जहाँ, तहाँ, पास, दूर, बाहर, इस तरफ, उस तरफ आदि।
रीतिवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों से क्रिया के होने की रीति का बोध होता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे –
(i) रमेश धीरे-धीरे चलता रहा।
(ii) अचानक वर्षा प्रारम्भ हो गई।
इन वाक्यों में धीरे-धीरे’ और ‘अचानक’ शब्दों से क्रिया के होने की रीति का ज्ञान हो रहा है।
विशेष-रीतिवाचक क्रियाविशेषण विविध रूपों में प्रयुक्त होता है। इस कारण यह, प्रश्नवाचक, निश्चयवाचक, अनिश्चयवाचक, कारणवाचक आदि कई भेदों में विभक्त किया जा सकता है।
परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों से क्रिया के परिमाण का बोध होता है परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे –
(i) तुम थोड़ा-थोड़ा अब्यास करते रहो।
(ii) रमेश बहुत ज्यादा बोलता रहता है।
इन वाक्यों में ‘थोड़ा-थोड़ा’ और ‘बहुत ज्यादा’ परिमाणवाचक अव्यय हैं। इसी प्रकार अन्य अव्यय हैं – अति, अधिक, अत्यन्त, कम, कुछ, अल्प, केवल, प्रायः, लगभग, सर्वथा, जितना, उतना, किंचित्।
स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों से क्रिया की स्वीकृति का ज्ञान होता है, उन्हें स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे –
(i) मैं तुम्हारा काम अवश्य कर दूंगा।
(ii) हाँ, तुम्हारा कहना सभी को अच्छा लगता है।
इन वाक्यों में ‘अवश्य’ और ‘हाँ’ स्वीकारवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी प्रकार अन्य शब्द हैं – जी हाँ, निःसन्देह, अच्छा, बहुत अच्छा आदि।
निषेधवाचक क्रियाविशेषण-जिन अव्यय शब्दों से क्रिया के निषेध का बोध होता है, उन्हें निषेधवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे –
(i) तुम आलस्य मत करो।
(ii) परिश्रम करने वाला कभी नहीं हारता है।
इन वाक्यों में ‘मत’ और ‘कभी नहीं’–निषेधवाचक क्रियाविशेषण हैं। इसी प्रकार न, नहीं, कदापि नहीं आदि निषेधवाचक क्रियाविशेषण हैं।
क्रियाविशेषण की रचना-रचना की दृष्टि से क्रिया विशेषण के दो भेद होते हैं (1) मूल क्रिया विशेषण और (2) यौगिक क्रिया विशेषण।
(1) मूल क्रियाविशेषण-जिन क्रिया विशेषणों का निर्माण दूसरे शब्दों के मेल से न हुआ हो वे मूल क्रिया विशेषण कहलाते हैं। जैसे – शायद, अचानक, पुनः, अधिक, थोड़ा आदि।
(2) यौगिक क्रियाविशेषण-जिन क्रियाविशेषणों का निर्माण प्रत्यय अथवा शब्द जोड़ने से होता है, वे यौगिक क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जैसे –
  • प्रत्यय के योग से – स्वभावतः, अक्षरशः आदि।
  • संज्ञा व विशेषण के योग से – एक सार, एक बार आदि।
  • उपसर्ग के योग से-आजीवन, आजन्म, प्रतिदिन आदि।
  • परसर्ग के योग से -धीरे से, तेजी से, ध्यान से आदि।
  • समास से – यथागति, दिन भर, रात-दिन आदि।
  • द्विरुक्ति से – कभी-कभी, धीरे-धीरे आदि।
  • अपूर्ण कृदन्त से-जाते-जाते, सोते-सोते, खाते-खाते, पीते-पीते आदि।
  • पूर्वकालिक कृदन्त से – पीकर, सोकर, जाकर आदि।
  • अनुकरणात्मक शब्दों की द्विरुक्ति से – झटपट, धड़ाधड़, फटाफट आदि।
प्रयोग के आधार पर क्रिया विशेषण के भेद प्रयोग के आधार पर क्रिया विशेषण के तीन भेद होते हैं (1) साधारण (2) संयोजक और (3) अनुबद्ध।
  1. साधारण-इसमें क्रिया विशेषण शब्द स्वतन्त्र रूप से प्रयुक्त किए जाते हैं। जैसे क्या आप मोहन को कभी क्षमा नहीं करेंगे?
  2. संयोजक-इसमें क्रिया विशेषण शब्द अपने युग्म के साथ प्रयुक्त किए जाते हैं। जैसे – जैसा बोओगे वैसा काटोगे।
  3. अनुबद्ध-इसमें क्रिया विशेषण शब्द का प्रयोग बल देने हेतु किया जाता है। जैसे – वह तो आता ही नहीं।
2. सम्बन्धबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों के द्वारा वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध दूसरे शब्दों के साथ प्रकट होता है, उन्हें सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे –
(i) तुम्हारी कलम रमेश के पास है।
(ii) घर के सामने बड़ा चबूतरा है।
इन वाक्यों में ‘पास’ और ‘सामने’ शब्द के द्वारा संज्ञा और सर्वनाम के सम्बन्ध का ज्ञान हो रहा है।
सम्बन्धबोधक अव्यय के काल, दिशा, समता, विरोध, साहचर्य, स्थान, साधन, कारण आदि अनेक उपभेद-सूचक शब्द माने जाते हैं।
क्रिया विशेषण और सम्बन्ध बोधक अव्यय में अन्तर –
जब वाक्यों का प्रयोग संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ होता है तब ये सम्बन्धबोधक अव्यय कहलाते हैं और जब ये क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, तब ये क्रिया विशेषण कहलाते हैं। जैसे –
(1) विद्यालय के अन्दर आओ (सम्बन्ध बोधक)
(2) अन्दर आओ (क्रिया विशेषण)।
3. समुच्चयबोधक अव्यय-जो अव्यय दो या दो से अधिक शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं या पृथक् करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे –
(i) रमा और गीता विद्यालय जाती हैं।
(ii) मैं पढ़ता परन्तु पुस्तक नहीं थी।
इन वाक्यों में ‘और’ दो शब्दों को तथा ‘परन्तु’ दो वाक्यांशों को सम्बद्ध कर रहा है। इस कारण ये दोनों समुच्चयबोधक अव्यय हैं।
समुच्चयबोधक अव्यय के मुख्य दो भेद माने जाते हैं –
(i) संयोजक अव्यय, और
(ii) विभाजक अव्यय। इन भेदों के अतिरिक्त वाक्यांशों और वाक्यों को सम्बद्ध तथा पृथक् करने वाले अव्ययों का वर्गीकरण अनेक उपभेदों में किया जा सकता है। इस दृष्टि से भी इसके निम्न दो भेद मान्य हैं
(क) समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय।
(ख) व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय।
यदि, तथा, एवं, जो, फिर, यथा, पुनः, और आदि संयोजक अव्यय व किन्तु, परन्तु, पर, वरना, बल्कि, अपितु आदि विभाजक अव्यय हैं।
4. विस्मयादिबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों के द्ववारा हर्ष, शोक, घृणा, आश्चर्य, भय, ग्लानि, प्रशंसा, क्रोध आदि भावों की अभिव्यक्ति होती है, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे –
  • हाय! यह तुमने क्या कर डाला!
  • अरे! तुमने तो अनर्थ कर दिया!
  • वाह! तुम तो छिपे हुए रुस्तम निकले!

 

इन वाक्यों में ‘हाय’, ‘अरे’ और ‘वाह’ अव्यय के द्वारा क्रमशः घृणा और आश्चर्य का भाव व्यक्त हुआ है। आश्चर्य; हर्ष, शोक, लज्जा, ग्लानि आदि अनेक भाव विविध शब्दों के द्वारा व्यक्त किये जाते हैं। अतः भाव के आधार पर विस्मयादिबोधक अव्यय के अनेक भेद हो सकते हैं। छिः, धत्, थू, ओहो, आह, हा, ठीक, हाँ-हाँ, अहा, धन्य, धिक् आदि इसी प्रकार के अव्यय शब्द हैं।

विशेष – (i) यद्यपि हिन्दी में मुख्य रूप से अव्यय के चार ही भेद माने जाते हैं, परन्तु शब्दों के प्रारम्भ में जुड़ने वाले संस्कृत उपसर्ग भी अव्यय के समान माने जाते हैं। वे उपसर्ग इस प्रकार हैं
प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, ओ, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि और उप। इन्हें ‘प्रादि अव्यय’ कहा जाता है।
(ii) विस्मयादिबोधक अव्यय के साथ विस्मय का चिह्न (!) अवश्य लगाना पड़ता है, ऐसा करने पर ही उसकी सही अभिव्यक्ति होती है।

अभ्यास प्रश्न
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अविकारी पद किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस शब्द में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण रूप-परिवर्तन नहीं होता है, उसे अविकारी या अव्यय कहते हैं।
प्रश्न 2.
अविकारी या अव्यय के कितने भेद होते हैं? लिखिए।
उत्तर:
अविकारी या अव्यय के चार भेद होते हैं –
  1. क्रियाविशेषण अव्यय
  2. सम्बन्धबोधक अव्यय
  3. समुच्चयबोधक अव्यय तथा
  4. विस्मयादिबोधक अव्यय।
प्रश्न 3.
क्रियाविशेषण अव्यय के दो उदाहरण-वाक्य लिखिए।
उत्तर:
1. कल वह घर जायेगा।
2. बालक धीरे-धीरे चलने लगा।
प्रश्न 4.
विस्मयादिबोधक अव्यय किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिन अव्यय शब्दों के द्वारा हर्ष, शोक, घृणा, आश्चर्य, भय, ग्लानि आदि भावों को व्यक्त किया जाता है, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। .
प्रश्न 5.
प्रादि अव्यय के चार शब्द लिखिए।
उत्तर:
प्रति-प्रतिदिन, प्रत्येक। अति-अत्यावश्यक, अत्यन्त।
प्रश्न 6.
संयोजक और विभाजक अव्यय के चार-चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
संयोजक अव्यय-तथा, और, एवं, यथा। विभाजक अव्यय-किन्तु, परन्तु, वरना, अपितु।
प्रश्न 7.
अव्यय को अविकारी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
अव्यय शब्दों में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण रूप-परिवर्तन या कोई विकार उत्पन्न नहीं होता है, इसी कारण अव्यय को अविकारी शब्द कहा जाता है।
प्रश्न 8.
क्रिया विशेषण अव्यय किसे कहते हैं? लिखिये।
उत्तर:
क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाले शब्दों को क्रिया विशेषण कहते हैं।
प्रश्न 9.
परिमाणवाचक क्रिया विशेषण के कितने भेद होते हैं? लिखिए।
उत्तर:
परिमाणवाचक क्रिया के पाँच भेद होते हैं –
  1. अधिकता बोधक
  2. न्यूनता बोधक
  3. पर्याप्त बोधक
  4. तुलना बोधक और
  5. श्रेणी बोधक।
प्रश्न 10.
रीतिवाचक क्रियाविशेषण किसे कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
जिन क्रिया विशेषण शब्दों से क्रिया की रीति (शैली) का पता चलता है, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।

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