RB 10 Hindi

RBSE Class 10 Hindi अपठित गद्यांश

RBSE Class 10 Hindi अपठित गद्यांश

RBSE Class 10 Hindi अपठित गद्यांश

अपठित बोध :

अपठित-भाषा – ज्ञान के लिए पाठ्यक्रम में कुछ पुस्तकें निर्धारित होती हैं। इन पुस्तकों को पाठ्य-पुस्तक कहा जाता है। इन पाठ्य-पुस्तकों का विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। परीक्षा में पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य-पुस्तकों से प्रश्न पूछे जाते हैं, परन्तु प्रश्न-पत्र में एक प्रश्न ऐसा भी पूछा जाता है जिसका सम्बन्ध पाठ्य-पुस्तकों से न होकर बाहरी पुस्तकों से होता है। इसलिए इसे अपठित कहा जाता है। अपठित का अर्थ है-अपठित अर्थात् जो पढ़ा नहीं गया हो।

अपठित गद्यांश या पद्यांश का स्तर पाठ्य-पुस्तकों के स्तर से अधिक नहीं होता है। अपठित गद्यांश या पद्यांश बिना पढ़ा होने के कारण इससे सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर देने में विद्यार्थियों के मन में भय रहता है। यदि विद्यार्थी थोड़ा धैर्य रखकर बुद्धि का प्रयोग इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने में करें, तो उन्हें अवश्य सफलता मिल जाती है।

(i) अपठित गद्यांश निर्देश-निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिये गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए

1. सामान्यतः ईश्वर के दो रूप माने गए हैं-सगुण एवं निर्गुण। जब परमात्मा को निराकार, अज, अनादि, सर्वव्यापी, गुणातीत, अगोचर, सूक्ष्म मानकर उसकी विवेचना की जाती है तब उसे निर्गुण ब्रह्म कहा जाता है और जब वही ब्रह्म सगुण, साकार रूप धारण कर नर शरीर ग्रहण कर नाना प्रकार के कृत्य करता है तब उसे सगुण परमात्मा के रूप में जाना जाता है।

सामाजिक उपयोगिता की दृष्टि से सगुण भक्ति को निर्गुण भक्ति की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है, किन्तु केवल इसी कारण से निर्गुण भक्ति की उपेक्षा नहीं की जा सकती। तत्कालीन परिस्थितियों में सगुणोपासक भक्त कवियों का सारा ध्यान इस ओर केन्द्रित था कि हिन्दू समाज को विघटन और उत्पीड़न से बचाया जा सके। इसलिए उन्होंने हिन्दू समाज के विभिन्न घटकों को संगठित करने का कार्य किया। दूसरी ओर निर्गुणोपासक कवियों की दृष्टि हिन्दू समाज को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय समाज को एकता के सूत्र में पिरोने की ओर लगी हुई थी। वे हिन्दू और मुसलमान का भेद भुलाकर मानवता के उदात्त मूल्यों की स्थापना में लगे हुए थे।

प्रश्न 1.
सामान्यतः ईश्वर के रूप माने गए हैं
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ख) दो

प्रश्न 2.
निर्गुण ब्रह्म कहा जाता है –
(क) गुणातीत को
(ख) अगोचर को
(ग) अनादि को
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
जब ब्रह्म आकार धारण कर नाना प्रकार के कृत्य करता है, कहलाता है –
(क) सगुण ब्रह्म
(ख) निर्गुण ब्रह्म
(ग) सगुण और निर्गुण ब्रह्म
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सगुण ब्रह्म

प्रश्न 4.
निर्गुणोपासक भक्त कवियों का ध्यान केन्द्रित था
(क) हिन्दू समाज को विघटन और उत्पीड़न से बचाने में
(ख) हिन्दू समाज के विभिन्न समूहों को इकट्ठा करने में
(ग) हिन्दू मुसलमान का भेद भुलाकर एक करने में
(घ) इनमें से सभी कृत्य करने में
उत्तर:
(ग) हिन्दू मुसलमान का भेद भुलाकर एक करने में

प्रश्न 5.
सगुण भक्ति को निर्गुण भक्ति की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण माना जाता है–
(क) आर्थिक दृष्टि से
(ख) ऐतिहासिक दृष्टि से
(ग) धार्मिक दृष्टि से
(घ) सामाजिक दृष्टि से।
उत्तर:
(घ) सामाजिक दृष्टि से।

2. आधुनिक काल में भी नारी एक बार फिर से अपनी पूरी क्षमता, शक्ति और साहस के साथ समाज में दिखाई देने लगी है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार से वह पूरी तरह आत्मविश्वास से भर गई। आप आजादी की लड़ाई का उदाहरण ही लीजिए। भीकाजी कामा, सरोजिनी नायडू, अरूणा आसफ अली, कैप्टन लक्ष्मी सहगल आदि बहुत सारे नाम आपके जेहन में आते जाएँगे। गाँधीजी के एक आह्वान पर न जाने कितनी महिलाएँ घर-बार छोड़कर देश की आजादी के लिए संघर्ष करने निकल पड़ी। चाहे वो गाँव की हों, छोटे कस्बे की हों, शहर की हों, या महानगर की हों, चाहे वे पढ़ी लिखी हों, चाहे गरीब हों या अमीर, सभी वर्गों की नारियाँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में घर से बाहर निकल पड़ी थीं।

प्रश्न 1.
शिक्षा के प्रचार-प्रसार से नारी का स्वरूप बना
(क) सहनशील
(ख) आत्मविश्वासी
(ग) साहसी
(घ) संवेदनशील
उत्तर:
(ख) आत्मविश्वासी

प्रश्न 2.
किसके कहने से महिलाएँ घर-बार छोड़ आजादी की लड़ाई के लिए निकल पड़ीं?
(क) सुभाषचन्द्र बोस
(ख) जवाहर लाल नेहरू
(ग) गाँधीजी
(घ) इन्दिरा गाँधी
उत्तर:
(ग) गाँधीजी

प्रश्न 3.
आजादी की लड़ाई में शामिल हुई
(क) कैप्टन लक्ष्मी
(ख) कैप्टन नीरजा
(ग) किरण बेदी
(घ) लता मंगेशकर
उत्तर:
(क) कैप्टन लक्ष्मी

प्रश्न 4.
वर्तमान नारी में समाहित गुण हैं
(क) क्षमता
(ख) साहस
(ग) शक्ति
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में साथ दिया–
(क) शहर की नारी ने
(ख) अमीर वर्ग की नारी ने
(ग) पढ़ी-लिखी नारी ने
(घ) उपर्युक्त सभी ने
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी ने

3. ‘कबीर ने समाज में रहकर समाज का बड़े समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट-प्रमाण लेकर ऐसा दृढ़ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा।

ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगने वालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया, और दीन-दलितों को ऊपर उठाने का उपदेश देकर अपने व्यक्तित्व को सुधार कर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्म-काण्ड तथा मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रचकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी की एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज-सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीलता प्रदान की।

प्रश्न 1.
कबीर ने समाज में रहकर दृढ़ विरोध किया
(क) बाह्याडंबर
(ख) भेदभाव
(ग) साम्प्रदायिकता
(घ) इन सभी का
उत्तर:
(घ) इन सभी का

प्रश्न 2.
कबीर किस भक्ति-मार्ग का प्रसार करते थे?
(क) सगुण
(ख) निर्गुण
(ग) सगुण व निर्गुण
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(ख) निर्गुण

प्रश्न 3.
कबीर ने हिन्दू-मुस्लिम के मध्य दृष्टिकोण अपनाया
(क) समाजवादी
(ख) धार्मिक
(ग) समन्वयवादी
(घ) ऐतिहासिक
उत्तर:
(ग) समन्वयवादी

प्रश्न 4.
कर्म, सेवा, अहिंसा एवं निर्गुण मार्ग के पक्षधर थे
(क) तुलसीदास
(ख) कबीरदास
(ग) सूरदास
(घ) मीराबाई
उत्तर:
(ख) कबीरदास

प्रश्न 5.
कबीर ने अपने ज्ञान का उपदेश किस भाषा में दिया है?
(क) अवधी भाषा में
(ख) ब्रज भाषा में
(ग) खड़ी बोली में
(घ) आम बोलचाल की भाषा में
उत्तर:
(घ) आम बोलचाल की भाषा में

4. देश-प्रेम क्या है? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलम्बन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन-पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है, जिनके मध्य हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते हैं, जिनका और हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास हो जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अन्तःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है।

प्रश्न 1.
देश-प्रेम का आलम्बन माना गया है
(क) पशु, पक्षी
(ख) नदी-नाले
(ग) सम्पूर्ण पृथ्वी
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
देश-प्रेम किस कोटि का माना जाता है?
(क) साहचर्यगत
(ख) असाहचर्यगत
(ग) क और ख दोनों
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(क) साहचर्यगत

प्रश्न 3.
सान्निध्य से उत्पन्न होता है
(क) क्रोध-उपेक्षा
(ख) लोभ-राग
(ग) नफरत-हिंसा
(घ) आकर्षण-अपेक्षा
उत्तर:
(ख) लोभ-राग

प्रश्न 4.
देश प्रेम वास्तव में भाव माना जाता है-
(क) अन्त:करण का
(ख) बाह्यकरण का
(ग) क और ख दोनों का
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(क) अन्त:करण का

प्रश्न 5.
साहचर्यगत प्रेम की क्रियाएँ हैं
(क) साथ रहना
(ख) आँखों से देखना
(ग) बराबर सुनना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

5. जीवन की सच्ची प्रगति स्वावलम्बन के द्वारा ही संभव है। यदि हमारे मन में अपना कार्य करने का उत्साह नहीं है, अपने ऊपर विश्वास नहीं है, आलस्य ने हमारी कार्य शक्ति को पंगु बना दिया है तो फिर कैसे हमारे जीवन के कार्य परे हो सकेंगे? ऐसी स्थिति में हम अपने आपको किसी भी कार्य को करने में असमर्थ पाएंगे। समाज और संसार के लिए तो हम कर ही क्या सकेंगे, स्वयं अपने लिए भी भार स्वरूप हो जाएंगे। यह बात विचारणीय है कि संसार में जो इतने महान कार्य हुए हैं, क्या उनके पीछे स्वावलम्बन की सुदृढ़ शक्ति नहीं थी?

यदि परावलम्बी पुरुषों की भांति सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते, अकर्मण्यता, आलस्य और दूसरों के सहारे जीने की भावना लिए रहते तो मानव समाज की इतनी प्रगति क्या संभव थी? इसीलिए तो संसार के सभी महापुरुष स्वावलंबन के पुजारी थे। अपने हाथों से ही उन्होंने अपने महान जीवन का द्वार खोला था। अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी, ईश्वर चन्द्र विद्या सागर आदि महापुरुषों से कौन अपरिचित है? उन्होंने स्वाबलम्बन के अमृत को पीकर ही अमरता प्राप्त की थी। इसी कारण वे आज मर कर भी जीवित हैं।

प्रश्न 1.
स्वावलम्बन से तात्पर्य है
(क) स्वयं पर विश्वास
(ख) कार्य करने का उत्साह
(ग) कार्य करने की प्रवृत्ति
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
संसार के महान कार्यों के पीछे शक्ति निहित होती है….
(क) परावलम्बन की
(ख) स्वावलम्बन की
(ग) आलम्बन की
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) स्वावलम्बन की

प्रश्न 3.
स्वावलम्बी महापुरुष थे
(क) अब्राहम लिंकन
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
परावलम्बी पुरुष की प्रवृत्ति है
(क) उत्साह
(ख) अकर्मण्यता
(ग) विश्वास
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ख) अकर्मण्यता

प्रश्न 5.
स्वावलम्बन के द्वारा ही संभव है
(क) विनाश
(ख) विकास
(ग) पराजय
(घ) पराभव
उत्तर:
(ख) विकास

6. जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं हैं, जो फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं, बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का कोई स्वाद छिपा है, तो वह भी उन्हीं के लिए है, जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं, जिनका कण्ठ सूखा हुआ, ओंठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है। पानी में जो अमृत वाला तत्त्व है, उसे वह जानता है जो धूप में सूख चुका है, वह नहीं जा रागस्तान में कभी पड़ाहा नहीं है।

सुख देने वाली चीजें पहले भी थी और अब भी हैं, फर्क यह है कि जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं, और उनके मजे बाद को लेते हैं, उन्हें स्वाद अधिक मिलता है। जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है। बड़ी चीजें बड़े संकटों में विकास पाती हैं। अकबर ने 13 साल की उम्र में अपने बाप के दुश्मन को परास्त कर दिया था, जिसका एक मात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था और वह भी उस समय जब उसके बाप के पास एक कस्तूरी को छोड़कर और कोई दौलत नहीं थी। महाभारत में देश के अधिकांश वीर कौरवों के पक्ष में थे। मगर फिर भी जीत पाण्डवों की हुई, क्योंकि उन्होंने लाक्षागृह की मुसीबत झेली थी, क्योंकि उन्होंने वनवास की जोखिम को पार किया था।

प्रश्न 1.
जिन्दगी के मजे किनके लिए है?
(क) साहसी
(ख) पराक्रमी
(ग) परिश्रमी
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
पानी के मिठास को कौन समझ सकता है?
(क) जो बहुत प्यासा हो
(ख) जो रेगिस्तान से चलकर आया हो
(ग) जो पानी की महत्ता समझता हो
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
महाभारत में कौरवों की हार का क्या कारण था
(क) लाक्षागृह की मुसीबत झेलना
(ख) अधिकांश वीरों का पक्ष में होना
(ग) अत्यधिक आराम में होना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) अत्यधिक आराम में होना

प्रश्न 4.
अकबर और पाण्डवों ने जीत हासिल की थी
(क) अकर्मण्यता से
(ख) साहस से
(ग) आलस्य से
(घ) आराम से
उत्तर:
(ख) साहस से

प्रश्न 5.
जिन्दगी के असली सुख और विकास किनके लिए है?
(क) जो फूलों की छाँह में खेलते हैं
(ख) जो आराम की नींद सोते हैं
(ग) जिनको सुखदायक चीजें उपलब्ध हैं
(घ) जो जोखिमों को साहस से पार करते हैं
उत्तर:
(घ) जो जोखिमों को साहस से पार करते हैं

7. जीना भी एक कला है। लेकिन कला ही नहीं, तपस्या है। जियो तो प्राण ढाल दो जिंदगी में, ढाल दो जीवन रस के उपकरणों में। ठीक है! लेकिन क्यों? क्या जीने के लिए जीना ही बड़ी बात है? सारा संसार अपने मतलब के लिए ही तो जी रहा है। याज्ञवल्क्य बहत बड़े ब्रह्मवादी ऋषि थे। उन्होंने अपनी पत्नी को विचित्र भाव से समझाने की कोशिश की कि सब कुछ स्वार्थ के लिए है। पुत्र के लिए पुत्र प्रिय नहीं होता, पत्नी के लिए पत्नी प्रिया नहीं होती सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते हैं-आत्मनस्तु कामाय सर्वप्रियं भवति।

विचित्र नहीं है यह तर्क? संसार में जहाँ कहीं प्रेम है सब मतलब के लिए। सुना है, पश्चिम के हॉब्स और हेल्वेशियस जैसे विचारकों ने भी ऐसी ही बात कही है। सुन के हैरानी होती है। दुनिया में त्याग नहीं है, प्रेम नहीं है, परार्थ नहीं है, परमार्थ नहीं है केवल प्रचण्ड स्वार्थ। भीतर की जिजीविषा—जीते रहने की प्रचण्ड इच्छा ही अगर बड़ी बात हो, तो फिर यह सारी बड़ी-बड़ी बोलियाँ, जिनके बल पर दल बनाये जाते हैं, शत्रु-मर्दन का अभिनय किया जाता है, देशोद्धार का नारा लगाया जाता है, साहित्य और कला की महिमा गाई जाती है, झूठ है।

इसके द्वारा कोई न कोई अपना बड़ा स्वार्थ सिद्ध करता है। लेकिन अन्तरतर से कोई कह रहा है,चना गलत ढंग से सोचना है। स्वार्थ से भी बड़ी कोई-न कोई बात अवश्य है, जिजीविषा से भी प्रचण्ड कोई-न-कोई शक्ति अवश्य है। क्या है?

प्रश्न 1.
सारा ऐसा सो संसार जीता है
(क) अपनों के लिए
(ख) स्वयं के लिए
(ग) दूसरों के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) स्वयं के लिए

प्रश्न 2.
‘आत्मनस्तु कामायं सर्वप्रिय भवति’ से तात्पर्य है
(क) सब, सबके लिए प्रिय होते हैं।
(ख) सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते हैं
(ग) सब अपने मतलब के लिए प्रिय नहीं होते हैं
(घ) सब दूसरों के लिए प्रिय होते हैं
उत्तर:
(ख) सब अपने मतलब के लिए प्रिय होते हैं

प्रश्न 3.
दुनिया में प्रस्तुत है-
(क) त्याग
(ख) प्रेम
(ग) प्रचण्ड स्वार्थ
(घ) परमार्थ
उत्तर:
(ग) प्रचण्ड स्वार्थ

प्रश्न 4.
पश्चिम के विचारकों ने कहा है कि दुनिया में
(क) त्याग नहीं है
(ख) परमार्थ नहीं है
(ग) प्रचण्ड स्वार्थ है
(घ) परार्थ नहीं है।
उत्तर:
(ग) प्रचण्ड स्वार्थ है

प्रश्न 5.
प्रचण्ड स्वार्थ में किया जाता है
(क) शत्रु-मर्दन का अभिनय
(ख) देशोद्धार का नारा
(ग) साहित्य, कला की महिमा
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

8. भारतवर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है। यहाँ सभी ऋतुएँ अपने समय पर आती हैं और पर्याप्त काल तक ठहरती हैं। ऋतुएँ अपने अनुकूल फल-फूलों का सृजन करती हैं। धूप और वर्षा के समान अधिकार के कारण यह भूमि शस्यश्यामला हो जाती है। यहाँ का नगाधिराज हिमालय कवियों को सदा से प्रेरणा देता आ रहा है और यहाँ की नदियाँ मोक्षदायिनी समझी जाती रही हैं। यहाँ कृत्रिम धूप और रोशनी की आवश्यकता नहीं पड़ती। भारतीय मनीषी जंगल में रहना पसन्द करते थे।

प्रकृति-प्रेम के ही कारण यहाँ के लोग पत्तों में खाना पसन्द करते हैं। वृक्षों में पानी देना एक धार्मिक कार्य समझते हैं। सूर्य और चन्द्र दर्शन नित्य और नैमित्तिक कार्यों में शुभ माना जाता है। पारिवारिकता पर हमारी संस्कृति में विशेष बल दिया गया है। भारतीय संस्कृति में शोक की अपेक्षा आनन्द को अधिक महत्त्व दिया गया है। इसलिए हमारे यहाँ शोकान्त नाटकों का निषेध है। अतिथि को भी देवता माना गया है – ‘अतिथि देवो भव’।

प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति में विशेष बल दिया जाता है
(क) धर्म पर
(ख) इतिहास पर
(ग) परिवार पर
(घ) समाज पर
उत्तर:
(ग) परिवार पर

प्रश्न 2.
‘अतिथि देवो भव’ मूलतः किस देश की संस्कृति मानी जाती है?
(क) श्रीलंका
(ख) मॉरीशस
(ग) भूटान
(घ) भारत
उत्तर:
(घ) भारत

प्रश्न 3.
भारतीय संस्कृति में नैमित्तिक कार्यों में शुभ माना जाता है
(क) शनि-राहु
(ख) सूर्य-चन्द्र
(ग) मंगल-बृहस्पति
(घ) शुक्र-बुध
उत्तर:
(ख) सूर्य-चन्द्र

प्रश्न 4.
भारत में मोक्षदायिनी स्वरूप माना गया है
(क) पर्वतों का
(ख) नदियों का
(ग) मैदानों का
(घ) पेड़-पौधों का
उत्तर:
(ख) नदियों का

प्रश्न 5.
सदैव कवियों का प्रेरणास्रोत माना जाता है
(क) गंगा नदी
(ख) हिमालय पर्वत
(ग) सूर्य-चन्द्र
(घ) तारा-नक्षत्र
उत्तर:
(ख) हिमालय पर्वत

9. हर किसी मनुष्य को अपने राष्ट्र के प्रति गौरव, स्वाभिमान होना आवश्यक है। राष्ट्र से जुड़े समस्त राष्ट्र प्रतीकों के प्रति भी हमें स्वाभिमान होना चाहिए। राष्ट्र प्रतीकों का यदि कोई अपमान करता है, तो उसका पुरजोर विरोध करना चाहिए। प्रत्येक राष्ट्राभिमानी व्यक्ति के हृदय में अपने देश, अपने देश की संस्कृति तथा अपने देश की भाषा के प्रति प्रेम होना स्वाभाविक भावना ही है।

राष्ट्र के प्रति हर राष्ट्रवासी को राष्ट्र-हित में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने को तैयार रहना चाहिए। जिस देश के निवासियों के हृदय में यह उत्सर्ग भावना नहीं होती है, वह राष्ट्र शीघ्र ही पराधीन होकर अपनी सुख, शांति और समृद्धि को सदा के लिए खो बैठता है। देशभक्ति एवं सार्वजनिक हित के बिना राष्ट्रीय महत्ता का अस्तित्व ही नहीं रह सकता है। जिसके हृदय में राष्ट्रभक्ति है उसके हृदय में मातृभक्ति, पितृभक्ति, गुरुभक्ति, परिवार, समाज व सार्वजनिक हित की बात स्वतः ही आ जाती है।

इन उपर्युक्त भावनाओं से वह आत्मबली होकर अन्याय, अत्याचार व अमानवीयता से लड़ने को तत्पर हो जाता चे मानव धर्म का अनयायी होकर धर्म एवं न्याय के पक्ष में खडा होता है। अतः राष्ट-धर्म एवं राष्ट-भक्ति ही सर्वोपरि है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो स्वयं के प्रति, ईश्वर के प्रति एवं राष्ट्र के प्रति अनुत्तरदायी ही होंगे। किसी को हानि पहुँचाकर स्वयं के लिए अनुचित लाभ उठाना अन्याय है। अपने राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य से विमुख न होना ही सच्ची राष्ट्रभक्ति है।

प्रश्न 1.
एक नागरिक के लिए सर्वोपरि क्या है?
(क) राष्ट्र-प्रेम
(ख) राष्ट्र-भक्ति
(ग) राष्ट्र-स्वाभिमान
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य से विमुख न होना कहलाता है
(क) मातृभक्ति
(ख) पितृभक्ति
(ग) गुरुभक्ति
(घ) राष्ट्रभक्ति
उत्तर:
(घ) राष्ट्रभक्ति

प्रश्न 3.
प्रेम होना एक स्वाभाविक भावमा है-
(क) राष्ट्र के प्रति
(ख) राष्ट्र संस्कृति के प्रति
(ग) राष्ट्रभाषा के प्रति
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
एक सच्चा मानव खड़ा होता है-
(क) धर्म के पक्ष में
(ख) न्याय के पक्ष में
(ग) धर्म और न्याय के पक्ष में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) धर्म और न्याय के पक्ष में

प्रश्न 5.
किसी को हानि पहुँचाकर अनुचित लाभ उठाने को कहते हैं
(क) न्याय
(ख) धर्म
(ग) अन्याय
(घ) संस्कृति
उत्तर:
(ग) अन्याय

10. उपासना की दृष्टि से कई लोग काफी बढ़े-चढ़े होते हैं। यह प्रसन्नता की बात है कि जहाँ दूसरे लोग भगवान को बिल्कुल ही भूल बैठे हैं, वहाँ वह व्यक्ति ईश्वर का स्मरण तो करता है, औरों से तो अच्छा है। इसी प्रकार जो बुराइयों से बचा है, अनीति और अव्यवस्था नहीं फैलाता, संयम और मर्यादा में रहता है, वह भी भला है। उसे बुद्धिमान कहा जाएगा, क्योंकि दुर्बुद्धि को अपनाने से जो अगणित विपत्तियाँ उस पर टूटने वाली थीं, उनसे बच गया। स्वयं भी उद्विग्न नहीं हुआ और दूसरों को भी विक्षुब्ध न करने की भलमनसाहत बरतता रहा। यह दोनों ही बातें अच्छी हैं। ईश्वर का नाम लेना और भलमनसाहत से रहना, एक अच्छे मनुष्य के लिये योग्य कार्य है। उतना तो हर समझदार आदमी को करना ही चाहिये था। जो उतना ही करता है, उसकी उतनी तो प्रशंसा की ही जाएगी कि उसने अनिवार्यकर्त्तव्यों की उपेक्षा नहीं की और दुष्ट-दुरात्माओं की होने वाली दुर्गति से अपने को बचा लिया।

प्रश्न 1.
बुद्धिमान कौन है?
(क) ईश्वर का स्मरण करने वाला
(ख) संयमी और मर्यादित
(ग) अन्याय, अव्यवस्था से दूर रहने वाला
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
एक समझदार आदमी को क्या नहीं करना चाहिए
(क) अनीति और अव्यवस्था फैलाना
(ख) ईश्वर का नाम लेना
(ग) भलमनसाहत से रहना
(घ) संयम और मर्यादा में रहना
उत्तर:
(क) अनीति और अव्यवस्था फैलाना

प्रश्न 3.
ईश्वर का नाम लेना और भलमनसाहत से रहना, योग्य कार्य है
(क) बुरे मनुष्य के लिए
(ख) अच्छे मनुष्य के लिए
(ग) अच्छे-बुरे मनुष्य के लिए
(घ) क, ख, ग तीनों के लिए
उत्तर:
(ख) अच्छे मनुष्य के लिए

प्रश्न 4.
बुराइयों से बचने वाला कहलाता है
(क) बुद्धिमान
(ख) समझदार
(ग) औरों से अच्छा
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
किस मनुष्य की प्रशंसा नहीं की जानी चाहिए?
(क) जिसने कर्तव्यों की उपेक्षा की
(ख) जो उपासना करता है
(ग) जो ईश्वर-स्मरण करता है
(घ) जो संयम से रहता है
उत्तर:
(क) जिसने कर्तव्यों की उपेक्षा की

11. श्रद्धा एक सामाजिक भाव है, इससे अपनी श्रद्धा के बदले में हम श्रद्धेय से अपने लिए कोई बात नहीं चाहते। श्रद्धा धारण करते हुए हम अपने को उस समाज में समझते हैं जिसके अंश पर उसने कोई शुभ प्रभाव डाला हो। श्रद्धा स्वयं ऐसे कर्मों के प्रतिकार में होती है जिनका शुभ प्रभाव अकेले हम पर ही नहीं, बल्कि सारे मनुष्य समाज पर पड़ सकता है। श्रद्धा एक ऐसी आनन्दपूर्ण कृतज्ञता है जिसे हम केवल समाज के प्रतिनिधि रूप में प्रकट करते हैं। सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध या घृणा प्रकट करने के लिए समाज ने प्रत्येक व्यक्ति को र रखा है।

यह काम उसने इतना भारी समझा है कि उसका भार सारे मनष्यों को बाँट दिया है, दो-चार मानवीयं लोगों के ही सिर पर नहीं छोड़ रखा है। जिस समाज में सदाचार पर श्रद्धा और अत्याचार पर क्रोध प्रकट करने के लिए जितने ही अधिक लोग तत्पर पाये जायेंगे, उतना ही वह समाज जागृत समझा जायेगा। श्रद्धा की सामाजिक विशेषता एक इसी बात से समझ लीजिये कि जिस पर हम श्रद्धा रखते हैं उस पर चाहते हैं कि और लोग भी श्रद्धा रखें। पर जिस पर हमारा प्रेम होता है उससे और दस-पाँच आदमी प्रेम रखें। परन्तु हम प्रिय पर लोभवश एक प्रकार का अनन्य अधिकार या इजारा चाहते हैं। श्रद्धालु अपने भाव में संसार को भी सम्मिलित करना चाहता है, पर प्रेमी नहीं।

प्रश्न 1.
श्रद्धा की सामाजिक विशेषता है
(क) श्रद्धेय से सब श्रद्धा-भाव रखे।
(ख) श्रद्धेय से सब प्रेम भाव रखे।
(ग) श्रद्धेय से सब क्रोध भाव रखे।
(घ) श्रद्धेय से सब स्नेह भाव रखे।
उत्तर:
(क) श्रद्धेय से सब श्रद्धा-भाव रखे।

प्रश्न 2.
श्रद्धालु अपने भाव में किसको शामिल करना चाहता है?
(क) स्वयं को
(ख) दूसरों को
(ग) परिजनों को
(घ) संसार को
उत्तर:
(घ) संसार को

प्रश्न 3.
प्रिय पर लोभवश अनन्य अधिकार चाहते हैं
(क) भक्ति में
(ख) श्रद्धा में
(ग) प्रेम में
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ग) प्रेम में

प्रश्न 4.
समाज के प्रतिनिधि रूप में प्रकट की जाती है?
(क) भक्ति
(ख) नीति
(ग) श्रद्धा
(घ) प्रेम
उत्तर:
(ग) श्रद्धा

प्रश्न 5.
श्रद्धा उत्पन्न होती है
(क) कर्मों के प्रतिकार रूप में
(ख) कर्मों के अपकार रूप में
(ग) कर्मों के शुभ प्रभाव रूप में
(घ) क और ग दोनों रूप में
उत्तर:
(घ) क और ग दोनों रूप में

12. हम जिस तरह भोजन करते हैं, गाछ-बिरछ भी उसी तरह भोजन करते हैं। हमारे दाँत हैं, कठोर चीज खा सकते हैं। नन्हे बच्चों के दाँत नहीं होते वे केवल दूध पी सकते हैं। गाछ-बिरछ के भी दाँत नहीं होते, इसलिए वे केवल तरल द्रव्य या वायु से भोजन ग्रहण करते हैं। गाछ-बिरछ जड़ के द्वारा माटी से रसपान करते हैं। चीनी में पानी डालने पर चीनी गल जाती है। माटी में पानी डालने पर उसके भीतर बहुत-से द्रव्य गल जाते हैं। गाछ-बिरछ वे ही तमाम द्रव्य सोखते हैं। जड़ों को पानी न मिलने पर पेड़ का भोजन बन्द हो जाता है, पेड़ मर जाता है।

गाछ के पत्ते हवा से आहार ग्रहण करते हैं। पत्तों में अनगिनत छोटे-छोटे मुँह होते हैं। खुर्दबीन के जरिए अनगिनत मुँह पर अनगिनत होंठ देखे जा सकते हैं। जब आहार करने की जरूरत न हो तब दोनों होंठ बन्द हो जाते हैं। जब हम श्वास लेते हैं और उसे बाहर निकालते हैं तो एक प्रकार की विषाक्त वायु बाहर निकलती है उसे ‘अंगारक’ वायु कहते हैं।

अगर यह जहरीली हवा पृथ्वी पर इकट्ठी होती रहे तो तमाम जीव-जन्तु कुछ ही दिनों में उसका सेवन करके नष्ट हो सकते हैं। “जरा विधाता की करुणा का चमत्कार तो देखो-जो जीव-जन्तओं के लिए जहर है, गाछ-बिरछ उसी का सेवन करके उसे पूर्णतया शुद्ध कर देते हैं। पेड़ के पत्तों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब पत्ते सूर्य ऊर्जा के सहारे ‘अंगारक वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं और यही अंगार बिरछ के शरीर में प्रवेश करके उसका संवर्धन करते हैं।”

प्रश्न 1.
‘गाछ-बिरछ’ का अर्थ है-
(क) गाय-बछड़ा
(ख) पेड़-पौधे
(ग) फूल-पत्ते
(घ) पानी-जड़
उत्तर:
(ख) पेड़-पौधे

प्रश्न 2.
पेड़ कब मर जाता है?
(क) जड़ों में पानी देने से
(ख) जड़ों में पानी न देने से
(ग) जड़ों में खाद देने से
(घ) जड़ों में खाद न देने से
उत्तर:
(ख) जड़ों में पानी न देने से

प्रश्न 3.
अंगारक वायु नहीं कहलाती है
(क) विषाक्त वायु
(ख) जहरीली वायु
(ग) ऑक्सीजन
(घ) कार्बनडाइआक्साइड
उत्तर:
(ग) ऑक्सीजन

प्रश्न 4.
गाछ के पत्ते आहार ग्रहण करते हैं
(क) हवा से
(ख) पानी से
(ग) सूर्य किरण से
(घ) मिट्टी से
उत्तर:
(क) हवा से

प्रश्न 5.
जीव-जन्तु किसका सेवन करके नष्ट हो सकते हैं?
(क) अंगारक वायु
(ख) विषाक्त वायु
(ग) जहरीली वायु
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

13. क्रोध दुःख के चेतन कारण के साक्षात्कार या अनुमान से उत्पन्न होता है। साक्षात्कार के समय दुःख और उसके कारण के सम्बन्ध का परिज्ञान आवश्यक है। तीन-चार महीने के बच्चे को कोई हाथ उठाकर मार दे, तो उसने हाथ उठाते तो देखा है पर अपनी पीड़ा और उस हाथ उठाने से क्या सम्बन्ध है, यह वह नहीं जानता है। अतः वह केवल रोकर अपना दुःख मात्र प्रकट कर देता है। दुःख के कारण की स्पष्ट धारणा के बिना क्रोध का उदय नहीं होता।

दुःख के सज्ञान कारण पर प्रबल प्रभाव डालने में प्रवृत्त करवाने वाला मनोविकार होने के कारण क्रोध का आविर्भाव बहुत पहले देखा जाता है। शिशु अपनी माता की आकृति से परिचित हो जाने पर ज्यों ही यह जान जाता है कि दूध इसी से मिलता है, भूखा होने पर वह उसे देखते ही अपने रोने में कुछ क्रोध का आभास देने लगता सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरों के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिरनिवृत्ति का उपाय ही न कर सके। कोई मनुष्य किसी दुष्ट के नित्य दो-चार प्रहार सहता है।

यदि उसमें क्रोध का विकास नहीं हुआ है तो वह केवल आह-उह करेगा। भयभीत होकर प्राणी अपनी रक्षा कभी-कभी कर लेता है पर समाज में इस प्रकार प्राप्त दःख निवत्ति चिरस्थायिनी नहीं होती। हमारे कहने का अभिप्राय यह नहीं है कि क्रोध करने वाले के मन में सदा भावी कष्ट से बचने का उद्देश्य रहा करता है।

प्रश्न 1.
दु:ख के चेतन कारण के अनुमान से उत्पन्न होता है
(क) वात्सल्य
(ख) हास्य
(ग) क्रोध
(घ) रौद्र
उत्तर:
(ग) क्रोध

प्रश्न 2.
क्रोध का उदय किसकी स्पष्ट धारणा के बिना नहीं होता
(क) सुख
(ख) दुःख
(ग) आनन्द
(घ) उपेक्षा
उत्तर:
(ख) दुःख

प्रश्न 3.
कौनसा कथन सत्य नहीं है
(क) क्रोध दुःख के चेतन कारण के साक्षात्कार से उत्पन्न होता है।
(ख) शिशु केवल रोकर अपना दुःख मात्र प्रकट करता है।
(ग) सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत नहीं पड़ती है।
(घ) दुःख निवृत्ति चिरस्थायिनी नहीं होती।
उत्तर:
(ग) सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत नहीं पड़ती है।

प्रश्न 4.
क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है
(क) सांस्कृतिक क्षेत्र में
(ख) धार्मिक क्षेत्र में
(ग) सामाजिक क्षेत्र में
(घ) आर्थिक क्षेत्र में
उत्तर:
(ग) सामाजिक क्षेत्र में

प्रश्न 5.
कौनसा कथन सत्य है –
(क) भयभीत प्राणी अपनी रक्षा नहीं करता है
(ख) भयभीत प्राणी अपनी रक्षा करता है
(ग) भयभीत प्राणी अपनी रक्षा सदैव करता है
(घ) भयभीत प्राणी अपनी रक्षा कभी-कभी करता है
उत्तर:
(घ) भयभीत प्राणी अपनी रक्षा कभी-कभी करता है

14. मुझे आज भी वह दिन नहीं भूलता, जब मैंने बिना कपड़ों का प्रबन्ध किए हुए ही उन बेचारों को सफाई का महत्त्व समझाते-समझाते थका डालने की मूर्खता की। दूसरे इतवार को सब जैसे-के-तैसे ही सामने थे। केवल कुछ गंगाजी में मुँह इस तरह धो आए थे कि मैल अनेक रेखाओं में विभक्त हो गया था। कुछ के हाथ-पाँव ऐसे घिसे थे कि शेष मलिन शरीर के साथ वे अलग जोड़े हुए-से लगते थे और कुछ मैले-फटे कुरते घर ही छोड़कर ऐसे अस्थि पंजरमय रूप में आ उपस्थित हुए थे; पर घीसा गायब था।

पता चला कि कल रात को माँ को मजदूरी के पैसे मिले और आज सवेरे वह सब काम छ काम छोडकर पहले साबन लेने गई। अभी लौटी है, अतः घीसा कपडे धो रहा है, क्योंकि गुरु साहब ने कहा था कि नहा-धोकर साफ कपड़े पहनकर आना और अभागे के पास कपड़े ही क्या थे! जब घीसा नहाकर गीला अंगोछा लपेटे और आधा भीगा कुरता पहने अपराधी के समान मेरे सामने आ खड़ा हुआ, तब आँखें ही नहीं मेरा रोम-रोम गीला हो गया। उस समय समझ में आया कि द्रोणाचार्य ने अपने भील शिष्य से अँगूठा कैसे कटवा लिया था।

होली के पहले की एक घटना तो मेरी स्मृति में ऐसे गहरे रंगों से अंकित है, जिसका धुल सकना सहज नहीं। उन दिनों हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य धीरे-धीरे बढ़ रहा था। घीसा दो सप्ताह से ज्वर में पड़ा था। दो-चार दिन उसकी माँ स्वयं बैठी रही। फिर एक अंधी बुढ़िया को बैठाकर काम पर जाने लगी।

प्रश्न 1.
गंगाजी में मुँह धोकर आये गरीब शिष्यों की स्थिति थी
(क) कुछ मलिन अवस्था थे।
(ख) कुछ.साफ-सुथरे थे।
(ग) कुछ के शरीर का मैल अनेक रेखाओं में विभक्त था।
(घ) कुछ आये नहीं थे।
उत्तर:
(ग) कुछ के शरीर का मैल अनेक रेखाओं में विभक्त था।

प्रश्न 2.
लेखिका को कौनसा दिन भुलाए नहीं भूलता?
(क) जब परिश्रम का महत्त्व समझाया था
(ख) जब सफाई का महत्त्व समझाया था
(ग) जब पढ़ाई का महत्त्व समझाया
(घ) खेल-कूद का महत्त्व समझाया
उत्तर:
(ख) जब सफाई का महत्त्व समझाया था

प्रश्न 3.
लेखिका की कक्षा से घीसा गायब था
(क) नहा रहा था
(ख) सो रहा था
(ग) कपड़े धो रहा था
(घ) खेल रहा था
उत्तर:
(ग) कपड़े धो रहा था

प्रश्न 4.
गुरु साहब की कक्षा कौनसे दिन लगती थी?
(क) सोमवार
(ख) बुधवार
(ग) शुक्रवार
(घ) रविवार
उत्तर:
(घ) रविवार

प्रश्न 5.
कौनसा कथन सत्य है?
(क) हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य बढ़ रहा था।
(ख) वैमनस्य घट रहा था।
(ग) हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य धीरे-धीरे बढ़ रहा था।
(घ) हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य धीरे-धीरे घट रहा था।
उत्तर:
(ग) हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य धीरे-धीरे बढ़ रहा था।

15. सभी धर्म हमें एक ही ईश्वर तक पहुँचाने के साधन हैं। अलग-अलग रास्तों पर चलकर भी हम एक ही स्थान पर पहुँचते हैं। इसमें किसी को दुःख नहीं होना चाहिए। हमें सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखना चाहिए। दूसरे धर्मों के प्रति समभाव रखने में धर्म का क्षेत्र व्यापक बनता है। हमारी धर्म के प्रति अंधता मिटती है। इससे हमारा प्रेम अधिक ज्ञानमय और पवित्र बनता है। यह बात लगभग असम्भव है कि इस पृथ्वी पर कभी भी एक धर्म रहा होगा या हो सकेगा। हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है जो विविध धर्मों में ऐसे तत्त्व को खोजे जो विविध धर्मों के अनुयायियों के मध्य सहनशीलता की भावना भी विकसित कर सके।

सत्य के अनेक रूप होते हैं। यह सिद्धान्त हमें दूसरे धर्मों को भली प्रकार समझने में मदद करता है। सात अंधों के उदाहरण में सभी अंधे हाथी का वर्णन अपने-अपने ढंग से करते हैं। जिस अंधे को हाथी का जो अंग हाथ में आया, उसके अनुसार हाथी वैसा ही था। एक प्रकार से वे अपनी-अपनी समझ से सही थे। पर इस दृष्टि से गलत थे कि उन्हें पूरे हाथी की समझ न थी। जब तक अलग-अलग धर्म मौजूद हैं तब तक उनकी पृथक् पहचान के लिए बाहरी चिह्न की आवश्यकता होती है। लेकिन ये चिह्न जब आडम्बर बन जाते हैं और अपने धर्म को दूसरे से अलग बताने का काम करने लग जाते हैं, तब त्यागने के योग्य हो जाते हैं।

प्रश्न 1.
एक ही ईश्वर तक पहुँचाने का माध्यम है
(क) ज्ञान
(ख) शिक्षा
(ग) धर्म
(घ) दर्शन
उत्तर:
(ग) धर्म

प्रश्न 2.
धर्म का क्षेत्र व्यापक बनता है
(क) द्वेषभाव रखने पर
(ख) समभाव रखने पर
(ग) प्रेमभाव रखने पर
(घ) घृणाभाव रखने पर
उत्तर:
(ख) समभाव रखने पर

प्रश्न 3.
कौनसा कथन सत्य है?
(क) सभी धर्म हमें अलग-अलग ईश्वर तक पहुँचाने के साधन हैं।
(ख) सत्य का एक ही रूप होता है।
(ग) सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखना चाहिए।
(घ) दूसरे धर्मों के प्रति द्वेष भाव रखने से धर्म का क्षेत्र व्यापक बनता है।
उत्तर:
(ग) सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
धर्म त्यागने योग्य कब बनता है?
(क) अपने धर्म को दूसरे धर्म से अलग बताने पर।
(ख) धर्म चिन्ह जब आडम्बर बन जाये।
(ग) दूसरे धर्मों के प्रति समभाव न होने पर।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
सभी धर्मों के प्रति समभाव नहीं रखने से .
(क) धर्म का क्षेत्र व्यापक बनता है।
(ख) प्रेम ज्ञानमय और पवित्र बनता है।
(ग) सहनशीलता की भावना विकसित होती है
(घ) धर्म के प्रति अंधता नहीं मिटती है।
उत्तर:
(घ) धर्म के प्रति अंधता नहीं मिटती है।

16. मनुष्य नाशवान प्राणी है। वह जन्म लेने के बाद मरता अवश्य है। अन्य लोगों की भाँति महापुरुष भी नाशवान हैं। वे भी समय आने पर अपना शरीर छोड़ देते हैं, पर वे मरकर भी अमर हो जाते हैं। वे अपने पीछे छोड़े गए कार्य के कारण अन्य लोगों द्वारा याद किए जाते हैं। उनके ये कार्य चिरस्थायी होते हैं और समय के साथ-साथ और बल में बढ़ते जाते हैं। ऐसे कार्य के पीछे जो उच्च आदर्श होते हैं. वे स्थायी होते हैं और बदली परिस्थितियों में नए वातावरण के अनुसार अपने को ढाल लेते हैं।

संसार ने पिछली पच्चीस शताब्दियों से भी अधिक में जितने भी महापुरुषों को जन्म दिया है, उनमें गाँधीजी को यदि आज भी नहीं माना जाता तो भी भविष्य में उन्हें सबसे बड़ा माना जाएगा, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन की गतिविधियों को विभिन्न भागों में नहीं बाँटा, बल्कि जीवनधारा को सदा एक और अविभाज्य माना। जिन्हें हम सामाजिक, आर्थिक और नैतिक के नाम से पुकारते हैं, वे वास्तव में उसी धारा की उपधाराएँ हैं।

गाँधीजी ने मानव-जीवन के इन नव-कथानक की व्याख्या न किसी हृदय को स्पर्श करने वाले वीरकाव्य की भाँति की और न ही किसी दार्शनिक महाकाव्य की भाँति ही। उन्होंने मनुष्यों की आत्मा में अपने को निम्नतम रूप में उचित कार्य के प्रति निष्ठा, किसी ध्येय की पूर्ति के लिए सेवा और किसी विचार के प्रति स्वार्पण के बीच सतत चलने वाले संघर्ष के नाटक की भाँति माना है।

प्रश्न 1.
यह-जीवन है
(क) अजर
(ख) नाशवान
(ग) अमर
(घ) क और ग
उत्तर:
(ख) नाशवान

प्रश्न 2.
जिन कार्यों के पीछे आदर्श होते हैं
(क) स्थायी होते हैं।
(ख) क्षणभंगुर होते हैं।
(ग) नाशवान होते हैं।
(घ) अल्पकालिक होते हैं।
उत्तर:
(क) स्थायी होते हैं।

प्रश्न 3.
भविष्य में सबसे बड़े महापुरुष के रूप में याद किया जाएगा –
(क) गाँधीजी
(ख) नेहरूजी
(ग) विवेकानन्दजी
(घ) दयानन्द सरस्वती
उत्तर:
(क) गाँधीजी

प्रश्न 4.
उचित कार्य के प्रति निष्ठा का संदेश किसने दिया?
(क) अब्राहम लिंकन
(ख) विवेकानन्द
(ग) गाँधीजी
(घ) वल्लभ भाई पटेल
उत्तर:
(ग) गाँधीजी

प्रश्न 5.
कौनसा कथन सत्य नहीं है?
(क) उचित कार्य के प्रति निष्ठा आवश्यक है।
(ख) ध्येय की पूर्ति के लिए सेवाभाव जरूरी है।
(ग) महापुरुष अपने कार्यों के द्वारा याद नहीं किये जाते हैं।
(घ) अच्छे कार्य के प्रति सब कुछ न्यौछावर करना चाहिए।
उत्तर:
(ग) महापुरुष अपने कार्यों के द्वारा याद नहीं किये जाते हैं।

17. भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वास जनित भेदभाव अब धरती से शनैः-शनैः मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ संचार के साधनों में अभूतपूर्व अभिवृद्धि हुई है, जिससे देशों के बीच दूरियाँ कम हो गई हैं। अब एक देश दूसरे देश को अच्छी तरह जानने लग गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना को फैलाने तथा विभिन्न देशों के आपसी मनमुटाव को दूर करने में प्रयत्नशील है। फिर भी संसार में वर्णभेद की समस्या आज भी विद्यमान है। यह बड़े दुःख की बात है कि जब हम इक्कीसवीं सदी की ओर अग्रसर हो रहे हैं और पृथ्वी के सभी प्रगतिशील देश अखण्ड-विश्व की कल्पना के कार्यान्वयन में लगे हैं, तब भी वर्ण-भेद का यह कलंक दुनिया से दूर नहीं हुआ।

संसार के सब मनुष्य एक हैं। समस्त भेद कृत्रिम हैं और वे मिटाए जा सकते हैं। अमृत संतान है मानव! विश्व के समस्त जीवों में श्रेष्ठतम है। असीम शक्ति है उसमें। अपनी बुद्धि और मन से वह असाध्य-साधन कर सकता है। आवश्यकता है शिक्षा के व्यापक प्रसार की, जो मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एक मात्र साधन है। इसी बोध के द्वारा वह अपने को सब प्रकार की संकीर्णता के कलुष से मुक्त करके अपनी दृष्टि को निर्मल और विस्तीर्ण बना सकता है। संसार के सभी विवेकशील व्यक्ति इस दिशा में सक्रिय हैं।

प्रश्न 1.
संचार के साधनों में वृद्धि हुई है-
(क) अध्यात्म के कारण
(ख) विज्ञान के कारण
(ग) दर्शन के कारण
(घ) ज्योतिष के कारण
उत्तर:
(ख) विज्ञान के कारण

प्रश्न 2.
संसार के सभी कृत्रिम भेद निर्मित हैं
(क) ईश्वर द्वारा
(ख) मनुष्य द्वारा
(ग) दानवों द्वारा
(घ) यक्षों द्वारा
उत्तर:
(ख) मनुष्य द्वारा

प्रश्न 3.
असीम शक्ति का समूह-पुंज है-
(क) मानव
(ख) ईश्वर
(ग) दानव
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) मानव

प्रश्न 4.
संचार साधनों की वृद्धि से असत्य कथन है
(क) देशों के बीच दूरियाँ कम हो गई हैं।
(ख) वर्ण-भेद की समस्या खत्म हो गई है।
(ग) आपसी मनमुटाव कम हो गये हैं।
(घ) एक देश, दूसरे देश को जानने लग गया है।
उत्तर:
(ख) वर्ण-भेद की समस्या खत्म हो गई है।

प्रश्न 5.
अखण्ड-विश्व की कल्पना के क्रियान्वयन में बाधा है-
(क) संचार साधन
(ख) वर्ण-भेद
(ग) असीम शक्ति
(घ) देशों के बीच आपसी मनमुटाव
उत्तर:
(ख) वर्ण-भेद

18. यदि भाषाओं की दृष्टि से विचार करें तो विभिन्न भारतीय भाषाओं ने युग-युग से भारतीय सांस्कृतिक चरित्र की एकता स्थापित करने का प्रयास किया है। भाषा के इस सनातन दायित्व के निर्वहन में तमिल, तेलुगू, कन्नड़, अवधी, भोजपुरी, मलयालम, मराठी, गुजराती, सिन्धी, उर्दू, पंजाबी, असमिया, उड़िया, ब्रज, डोगरी, राजस्थानी, नेपाली और हिन्दी-आदि प्रत्येक भाषा और उपभाषा ने अपने साहित्य के माध्यम से भारत के सांस्कृतिक चरित्र और राष्ट्रीयता को धारण और मुखर किया है।

देश की सीमाओं से दूर रहते हुए जब विदेशों में पाकिस्तान और बांग्लादेश की उर्दू, सिन्धी, बंगाली व पंजाबी अथवा मॉरिशस और श्रीलंका की भोजपुरी, तमिल व तेलुगू सुनते हैं, तो हमें उन भाषा-भाषियों के साथ भारतीयता तर था सांस्कृति तिक एकता का बोध होता है। हम चाहे कन्नड भाषा सनें अथवा मलयालम, न समझने पर भी हमें लगता है कि ये हमारी भाषा हैं और उन्हें सुनते समय हमारे सामने उन भाषा-भाषियों का साहित्य, संस्कार और सामाजिक चरित्र स्पष्ट दिखाई देने लगता है। महाकवि वल्लतोल चाहे मलयालम में लिखें या वाल्मीकि संस्कृत में, तुलसीदास अवधी में लिखें अथवा कम्बन तमिल में, भाषाएँ भिन्न होने पर भी उनके द्वारा लिखी गई रामकथाएँ हमारी भारतीय संस्कृति के गौरव गीत का गुणगान करती हैं।

प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति के गौरव का गान करती है
(क) भाषा
(ख) संस्कृति
(ग) बुद्धि
(घ) स्मृति
उत्तर:
(क) भाषा

प्रश्न 2.
कौनसा कथन सत्य है?
(क) तेलुगू, तमिल, अवधी भारतीय भाषाएँ नहीं हैं।
(ख) डोगरी, नेपाली, सिंधी विदेशी भाषाएँ हैं।
(ग) महाकवि वल्लतोल ने अवधी में रामकथा लिखी।
(घ) भारतीय भाषाओं ने सांस्कृतिक और राष्ट्रीयता को मुखर किया।
उत्तर:
(घ) भारतीय भाषाओं ने सांस्कृतिक और राष्ट्रीयता को मुखर किया।

प्रश्न 3.
वाल्मीकि ने कौनसी भाषा में रामकथा की रचना की?
(क) मलयालम
(ख) संस्कृत
(ग) अवधी
(घ) हिन्दी
उत्तर:
(ख) संस्कृत

प्रश्न 4.
भारतीय सांस्कृतिक चरित्र की एकता स्थापित करने का प्रयास करती है
(क) भारतीय भाषाएँ
(ख) विदेशी भाषाएँ
(ग) भारतीय भाषाएँ और उपभाषाएँ
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(ग) भारतीय भाषाएँ और उपभाषाएँ

प्रश्न 5.
तमिल में रामकथा लिखने वाले कवि हैं
(क) तुलसीदास
(ख) वल्लतोल
(ग) कम्बन
(घ) वाल्मीकि
उत्तर:
(ग) कम्बन

19. स्वतंत्र भारत का संपूर्ण दायित्व आज विद्यार्थी के ही ऊपर है-क्योंकि आज जो विद्यार्थी हैं, वे ही कल स्वतंत्र भारत के नागरिक होंगे। भारत की उन्नति और उसका उत्थान उन्हीं की उन्नति और उत्थान पर निर्भर करता है। अत: विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सतर्कता और सावधानी के साथ करें। उन्हें प्रत्येक क्षण अपने राष्ट, अपने समाज, अपने धर्म, अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए उनके जीवन से राष्ट्र को कुछ बल प्राप्त हो सके। जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप होते हैं।

विद्यार्थी का लक्ष्य विद्योपार्जन है। भली-भाँति विद्योपार्जन करके वह राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्य का निर्वाह सुचारु रूप से कर सकता है। राजनीति उसके इस लक्ष्य की पूर्ति नहीं कर सकती। राजनीति वास्तव में धूर्तों का खेल है. जो अनेक दाँवपेंच खेलकर जीवन में सफलता प्राप्त कर लेते हैं। यह सरल एवं शुद्ध-हृदय विद्यार्थी के वश का रोग नहीं है। राजनीति छात्रों के अध्ययन में बाधा ही नहीं डालती वरन् उन्हें गुमराह भी कर देती है। अतः छात्रों को चाहिए कि सर्वप्रथम अपने आपको योग्य बनाने के बाद ही वे राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखें।

प्रश्न 1.
भारत की उन्नति और उत्थान किन पर निर्भर हैं
(क) वेशभूषा पर
(ख) विद्यार्थियों पर
(ग) बुजुर्गों पर
(घ) मनोरंजन पर
उत्तर:
(ख) विद्यार्थियों पर

प्रश्न 2.
राष्ट्र और समाज के निर्माण के लिए दृष्टिकोण आवश्यक है
(क) सामाजिक
(ख) राष्ट्रीय
(ग) आर्थिक
(घ) सांस्कृतिक
उत्तर:
(ख) राष्ट्रीय

प्रश्न 3.
कौनसा कथन असत्य है-
(क) राजनीति धूर्तों का खेल है।
(ख) राजनीति छात्रों को गुमराह करती है
(ग) विद्यार्थी का लक्ष्य अर्थोपार्जन है।
(घ) विद्यार्थी ही.कल स्वतंत्र भारत के नागरिक होंगे।
उत्तर:
(ग) विद्यार्थी का लक्ष्य अर्थोपार्जन है।

प्रश्न 4.
छात्रों को राजनीति में भाग क्यों नहीं लेना चाहिए?
(क) क्योंकि राजनीति धूतों का खेल है।
(ख) राजनीति सरल हृदय विद्यार्थियों के वश की नहीं है।
(ग) यह छात्र जीवन में बाधा डालती है
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य का सुचारु रूप से निर्वाह विद्यार्थी किस प्रकार कर सकता है?
(क) संस्कृति द्वारा
(ख) विद्या द्वारा
(ग) समाज द्वरा
(घ) अर्थ द्वारा
उत्तर:
(ख) विद्या द्वारा

20. सामाजिक समानता का अभिप्राय है कि सामाजिक क्षेत्र में जाति, धर्म, व्यवसाय, रंग आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेद-भाव न किया जाए।सबको समान समझा जाए और सबको समान सुविधाएँ दी जाएँ। हमारे देश में सामाजिक समानता का अभाव है। जाति-प्रथा के कारण करोड्ने व्यक्ति समाज में अछूत के रूप में रहते हैं। उन्हें समाज से बहिष्कृत समझा जाता है और सामाजिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। हमारेसमाज में लड़कियों के साथ भी भेदभाव बरता जाता है।

माता-पिता भी उन्हें वे सुविधाएँ नहीं देते जो वे अपने लड़कों को देते हैं। इस प्रकार की असमानता से बहुत-सी लड़कियों का शारीरिक और मानसिक विकास सुचारू रूप से नहीं हो पाता। इससे समाज की स्वति में बाधा पड़ती है। इस प्रकार की असमानता का दूर होना आवश्यक है। नागरिक समता का अर्थ है कि राज्य में नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हों। कानून और न्यायालयों में गरीब अमीर और ऊँच-नीच का कोई भेद न किया जाए। दंड से कोई अपराधी बचन सके। उसी प्रकार राज्य के प्रत्येक नागरिक को राज्य-कार्य में समान रूप से भाग लेने का, मत देने का, सरकारी नौकरी प्राप्त करने का तथा राज्य के ऊँचे-से-ऊँचे पद को अपनी योग्यता के बल पर प्राप्त करने का अधिकार राजनीतिक समानता का द्योतक है।

प्रश्न 1.
हमारे देश में अभाव है
(क) आर्थिक समानता
(ख) राजनैतिक समानता
(ग) सामाजिक समानता
(घ) पारिवारिक समानता
उत्तर:
(ग) सामाजिक समानता

प्रश्न 2.
समाज की उन्नति में बाधा पड़ती है क्योंकि
(क) जाति और धर्म में असमानता
(ख) लड़के और लड़की में असमानता
(ग) वर्ग और वर्ण में असमानता
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
राजनीतिक समानता का द्योतक है
(क) जाति-धर्म, व्यवसाय के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाये।
(ख) समाज में लड़कियों के प्रति भेदभाव नहीं बरता जाये।
(ग) प्रत्येक व्यक्ति को मत देने का, सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार है।
(घ) राज्य में नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होना।
उत्तर:
(ग) प्रत्येक व्यक्ति को मत देने का, सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार है।

प्रश्न 4.
कानून और न्यायालयों में गरीब-अमीर और ऊँच-नीच का भेद नहीं करना किस अधिकार के अन्तर्गत माना जाता
(क) सामाजिक समानता
(ख) सजनीतिक समानता
(ग) नैतिक समानता
(घ) धार्मिक समानता
उत्तर:
(ग) नैतिक समानता

प्रश्न 5.
किस प्रथा के कारण करोड़ों व्यक्ति समाज में अछूत के रूप में रहते हैं
(क) लिंग-प्रथा
(ख) जाति-प्रथा’
(ग) दास-प्रथा
(घ) पर्दा-प्रथा
उत्तर:
(ख) जाति-प्रथा’

21. साहस की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी होती है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल बेखौफ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं? जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है।

अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना, यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं। साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रस लेता है जिन सपनों का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं है। साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, वह अपने विचारों में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है। झुंड में चलना और झुंड में चरना, यह भैंस और भेड़ का काम है। सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मगन रहता है।

प्रश्न 1.
साहसी मनुष्य का गुण नहीं है
(क) साहसी मनुष्य सपने उधार लेता है।
(ख) साहसी मनुष्य अकेले ही कार्य को अंजाम देता है।
(ग) साहसी मनुष्य चिंतित नहीं होता।
(घ) साहसी मनुष्य जनमत की उपेक्षा करता है।
उत्तर:
(क) साहसी मनुष्य सपने उधार लेता है।

प्रश्न 2.
सबसे बड़ी जिन्दगी होती है।
(क) दरियादिली की
(ख) साहस की
(ग) हास्य की
(घ) उधार की
उत्तर:
(ख) साहस की

प्रश्न 3.
दुनियां की असली ताकत होता है
(क) कमजोर व्यक्ति
(ख) रुग्ण व्यक्ति
(ग) स्वस्थ व्यक्ति
(घ) साहसी व्यक्ति
उत्तर:
(घ) साहसी व्यक्ति

प्रश्न 4.
झंड में नहीं चलता है
(क) भेड़
(ख) भैंस
(ग) सिंह
(घ) सियार
उत्तर:
(ग) सिंह

प्रश्न 5.
क्रांति करने वाले लोग होते हैं
(क) वीर
(ख) बलवान
(ग) साहसी
(घ) योद्धा
उत्तर:
(ग) साहसी

22. गाँधीजी का कहना था कि जिस तरह केवल मध्यवर्ग की माली हालत सुधारने से देश का दुःख दूर नहीं होगा, उसी तरह शहर में पायी जाने वाली दरिद्रता दूर करने से सारे राष्ट्र की दरिद्रता दूर नहीं होगी। देश के लाखों गाँवों में जो करोड़ों लोग बसे हुए हैं, जिनको बेकारी में रहना पड़ता है, उनको उद्योग देकर उनके पेट की आग थोड़ी भी दूर कर सके, तो दुःख निवारण का सच्चा प्रारम्भ होगा। सैकड़ों वर्षों से जिन करोड़ों की उपेक्षा हो रही है, उनके दुःख निवारण से प्रारम्भ करना होगा। और वह भी “भिखारी को अन्नदान” के रूप में नहीं, बल्कि “बेकारों को उद्योग” द्वारा रोजी मिले, ऐसा व्यवहार्य और आबरूदार उपाय होना चाहिए।”

गाँधीजी का सारा जोर कौशलयुक्त परिश्रम को सार्वत्रिक करने पर था। जो आदमी परिश्रम टालता है, वह बड़ा धर्मात्मा, साधु-संन्यासी क्यों न हो, उसका जीवन निष्पाप नहीं है; जो भी आदमी शरीर-श्रम के बिना जीता है वह श्रमजीवी लोगों का शोषण करता ही है, और शोषण ही सबसे बड़ा ‘मानवता व्यापी पाप, गुण्डापन और द्रोह’ है। यह था गाँधीजी का सिद्धान्त।

प्रश्न 1.
बेकारी की समस्या को दूर किया जा सकता है
(क) अन्न देकर
(ख) उद्योग देकर
(ग) वस्त्र देकर
(घ) धन देकर
उत्तर:
(ख) उद्योग देकर

प्रश्न 2.
गाँधीजी के अनुसार राष्ट्र की दरिद्रता दूर होगी
(क) गरीबों के लिए भवन बनवाकर
(ख) गरीबों को राशन-पानी देकर
(ग) रोजगार दिलवाकर
(घ) वित्तीय सहायता करके
उत्तर:
(ग) रोजगार दिलवाकर

प्रश्न 3.
‘बेकारों को उद्योग’ से आशय है
(क) बेकार है जो उद्योग
(ख) बिना कार के उद्योग
(ग) बिना कार्य के उद्योग
(घ) बिना रोजगार वालों को उद्योग
उत्तर:
(घ) बिना रोजगार वालों को उद्योग

प्रश्न 4.
गाँधीजी किस बात पर बल देते थे.
(क) मानवताव्यापी पाप
(ख) गुण्डापन और द्रोह
(ग) कौशलयुक्त परिश्रम
(घ) भिखारी को अन्नदान
उत्तर:
(ग) कौशलयुक्त परिश्रम

प्रश्न 5.
सैकड़ों वर्षों से जिन ‘करोड़ों की उपेक्षा हो रही है, यहाँ ‘करोड़ों से आशय है
(क) शहरी मध्यवर्ग
(ख) ग्रामीण स्वरोजगार
(ग) शहरी उच्चवर्ग
(घ) ग्रामीण बेरोजगार
उत्तर:
(घ) ग्रामीण बेरोजगार

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