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RBSE Class 10 Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

RBSE Class 10 Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

पाठ सार एवं पारिभाषिक शब्दावली (SUMMARY OF THE CHAPTERAND GLOSSARY)

1. पर्यावरण (Environment)- हमारे आस-पास का वह आवरण जो हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करता है, पर्यावरण कहलाता है।
2. पारिस्थितिकी (Ecology)-जीवधारियों पर पर्यावरण के प्रभावों के अध्ययन की शाखा को पारिस्थितिकी कहते हैं। पारिस्थितिकी शब्द का सबसे पहले प्रयोग रेटर ने किया था ।
3. पर्यावरणीय कारक (Environmental factors) पर्यावरण के प्रमुख दो कारक होते हैं।
(i) अजैविक कारक (Abiotic factors)—इसमें अजीवित अंश सम्मिलित होते हैं, जैसे- जल, वायु, वर्षा, ताप, नमी, मृदा, आदि ।
(ii) जैविक कारक (Biotic factors)—इसमें जीवित अंश सम्मिलित होते हैं, जैसे-उत्पादक, उपभोक्ता, अपघटक ।
4. पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem)-किसी स्थान विशेष पर पाये जाने वाले जीवधारियों तथा उनके पर्यावरण के बीच । प्रकार्यात्मक सम्बन्ध को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं । इकोसिस्टम शब्द सर्वप्रथम ए. जी. टेन्सले ने दिया।
5. पारिस्थितिक तंत्र के घटक (Components of ecosystem) : पारिस्थितिक तंत्र के निम्नलिखित दो प्रमुख घटक | होते हैं।
(A) अजैविक घटक (Abiotic components ) — ये निम्न प्रकार हैं
(i) अकार्बनिक (Inorganic) — इसमें H, O, CO, एवं अन्य गैसें, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, अमोनिया, पोटैशियम, मैग्नीशियम, लवण, आदि सम्मिलित हैं।
(ii) कार्बनिक (Organic) — इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, आदि वृहत्त् अणु सम्मिलित हैं।
(iii) भौतिक (Physical) — इसमें वातावरणीय कारक जैसे- वायु, जल, ताप, प्रकाश आदि सम्मिलित हैं।
(B) जैविक घटक (Biotic components)– इसमें विभिन्न जीवधारी सम्मिलित किये जाते हैं। ये निम्न प्रकार होते हैं।
(i) उत्पादक ( Producers ) — सभी हरे प्रकाश संश्लेषी पौधे उत्पादक कहलाते हैं। ये सूर्य के प्रकाश की | उपस्थिति में पर्णहरित की सहायता से पानी एवं CO, द्वारा भोजन संश्लेषित कर लेते हैं । यह भोजन प्रायः मंड, प्रोटीन एवं वसा के रूप में संचित कर लिया जाता है ।
(ii) उपभोक्ता (Consumers) — जन्तु भोजन प्राप्ति के लिए पौधों द्वारा बनाये गये भोजन पर आश्रित होते हैं। अतः ये उपभोक्ता कहलाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं|
(a) प्राथमिक उपभोक्ता – ये सीधे पौधों को खाते हैं अतः शाकाहारी होते हैं, जैसे- टिड्डा ।
(b) द्वितीयक उपभोक्ता- ये शाकाहारी जन्तुओं को खाते हैं, जैसे- मेंढ़क ।
(c) तृतीयक उपभोक्ता – ये द्वितीयक उपभोक्ताओं को खाते हैं, जैसे- सर्प ।
(iii) अपघटक (Decomposers) — ये सूक्ष्म जीव होते हैं जो पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं के मृत शरीरों का। अपघटन करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं। ये पदार्थों का चक्रण करते हैं।
6. आहार श्रृंखला (Food chain) — किसी पारितंत्र में जीव भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए घास को टिड्डा खाता है,  टिड्डे को मेंढ़क और मेंढ़क को सर्प खा लेता है। इस प्रकार पारितंत्र में जीवधारियों की निर्भरता के आधार पर एक श्रृंखला बन जाती है, इसे खाद्य शृंखला या आहार शृंखला कहते हैं। प्रकृति में तीन प्रकार की खाद्य श्रृंखलाएँ देखने को मिलती हैं जलीय खाद्य शृंखला, स्थलीय खाद्य श्रृंखला तथा अपरद (detrites ) खाद्य श्रृंखला। कुछ प्रमुख खाद्य शृंखलाओं के उदाहरण निम्न प्रकार हैं –
(i) घास स्थल : घास → टिड्डा  → मेढक → सर्प ।
(ii) वन स्थल : पौधे → हिरन → शेर ।
(ii) तालाब : पादप प्लवक → कीड़े-मकोड़े → मछलियाँ ।
(iv) अपरद: सड़ी-गली पत्तियाँ →जीवाणु →जीवाणु भोजी, कवक → कवक भोजी |
7. पोषण स्तर (Trophic level) — आहार शृंखला के विभिन्न स्तरों पर ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है, इन स्तरों को  पोषण स्तर कहते हैं ।
8. आहार जाल (Food web) — प्रकृति में कोई भी आहार शृंखला एकल नहीं होती। अनेक आहार श्रृंखलाएँ आपस में सम्बन्धित भी होती हैं। उदाहरण के लिए घास को टिड्डा खाता है, लेकिन घास हिरन, खरगोश आदि द्वारा भी खायो जा सकती है। इसी प्रकार हिरन को शेर खाता है परन्तु हिरन को चीता, भेड़िया, तेंदुआ आदि भी खा सकते हैं। अतः। यह आवश्यक नहीं है कि किसी भी जीव को किसी भी विशिष्ट जीव द्वारा ही खाया जाए। स्पष्ट है कि एक जोव  के एक से अधिक भक्ष्य हो सकते हैं और स्वयं भी जीव अनेक जीवों का भक्ष्य बन सकता है। इस प्रकार अनेक खाद्य शृंखलाएँ आपस में जुड़कर एक जाल जैसी रचना बनाती हैं जिसे खाद्य जाल या आहार जाल कहते हैं।
9. सुपोषण (Eutrophication)—वाहित मलमूत्र जब बहकर जलाशयों में पहुँचते हैं तो इनमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप जलीय प्लवकों की संख्या भी काफी बढ़ जाती है। प्लवकों की अत्यधिक | संख्या बढ़ने पर इन्हें जलीय ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। ऑक्सीजन के अभाव में असंख्य जीव मरने और  सड़ने लगते हैं। अतः जलाशय में पोंषकों के अत्यधिक संभरण तथा ऑक्सीजन की कमी को सुपोषण कहते हैं।
10. ऊर्जा स्थानान्तरण का दस प्रतिशत का नियम– इसके अनुसार किसी भी आहार श्रृंखला में प्रत्येक पोषण स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा उससे पहले स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का 10% होती है। प्रत्येक श्रेणी के जीव एक पोषण स्तर बनाते हैं। । प्रत्येक पोषण स्तर पर लगभग 90% ऊर्जा जैवीय क्रियाओं तथा ऊष्मा के रूप में निकल जाती है तथा केवल 10% 1 ऊर्जा ही इसमें संचित रहती है। यह ऊर्जा ही अगले पोषण स्तर के लिए उपलब्ध रहती है। इस प्रकार अन्तिम पोषण स्तर तक पहुँचते-पहुँचते बहुत कम ऊर्जा रह जाती है। इसे लिन्डेमान का ऊर्जा सम्बन्धी 10% का नियम कहते हैं।
11. पारिस्थितिक पिरैमिड (Ecological pyramids)– किसी भी पारितंत्र में उत्पादकों, विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं  की संख्या, जीवभार तथा संचित ऊर्जा के पारस्परिक संबंधों के चित्रीय निरूपण को पारिस्थितिक पिरैमिड कहते हैं। पारिस्थितिक पिरैमिड तीन प्रकार के होते हैं
(i) जीव संख्या का पिरैमिड, (ii) जीव भार का पिरैमिड तथा (iii) ऊर्जा का पिरैमिड ।
12. जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ (Bio-degradable wastes) — ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जो समय के साथ प्रकृति में सूक्ष्मजीवों की क्रियाओं द्वारा हानिरहित पदार्थों में अपघटित कर दिए जाते हैं, जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ कहलाते हैं, जैसे- घरेलू कचरा, कृषि अपशिष्ट ।
13. जैव-अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ (Non-biodegradable wastes) — ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जो प्रकृति में लम्बे समय तक बने रहते हैं और जिनका अपघटन सूक्ष्म जीवों की क्रियाओं द्वारा नहीं किया जा सकता है। | जैव-अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ कहलाते हैं, जैसे- प्लास्टिक, डी. डी. टी. आदि ।
14. जैविक-आवर्धन (Biological-magnification)– जब कोई हानिकारक रसायन, जैसे- डी. डी. टी. भोजन के साथ | किसी स्व-आहार श्रृंखला में प्रवेश कर जाता है तो इसका सान्द्रण धीरे-धीरे प्रत्येक पोषी स्तर में बढ़ता जाता है। इस | परिघटना को जैविक आवर्धन कहते हैं। इस आवर्धन का स्तर अलग-अलग पोषी स्तरों पर भिन्न-भिन्न होता है, जैसे –
15. ओजोन (Ozone)— ओजोन प्रकृति में गैस के रूप में पायी जाती है। इसके एक अणु में ऑक्सीजन के तीन परमाणु होते हैं। यह ऑक्सीजन का एक अपरूप है। ओजोन पृथ्वी के ऊपर लगभग 16 किमी की ऊँचाई पर एक सघन परत के रूप में स्थित है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों (UV-rays) से पृथ्वी पर जीवन की रक्षा  करती है।
16. रेफ्रिजरेशन वर्क्स, अग्निशामक यंत्रों, जेट उत्सर्जन तथा ऐरोसील स्प्रे से उत्सर्जित होने वाले एक रसायन क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन (CFC) से वायुमण्डलीय ओजोन का क्षरण हो रहा है जिससे कुछ स्थानों पर ओजोन परत काफी पतली हो गयी है।
17. पराबैंगनी किरणों से त्वचा रोग, आँखों के रोग तथा प्रतिरक्षी तंत्र के रोग उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।
जीवमण्डल (Biosphere) पृथ्वी का वह समस्त भाग जिसमें जीवधारी पाये जाते हैं, जीवमण्डल कहलाता है।
18. स्थलमण्डल (Lithosphere) पृथ्वी की स्थल सतह, जैसे- रेगिस्तान, मैदान, चट्टान आदि स्थलमण्डल कहलाती हैं |
19. जलमण्डल (Hydrosphere) पृथ्वी का वह भाग जिस पर जल है, जलमण्डल कहलाता है।
20. वायुमण्डल (Atmosphere) पृथ्वी के चारों ओर विभिन्न गैसों वाला क्षेत्र वायुमण्डल कहलाता है।

RBSE Class 10 Science Chapter 15 हमारा पर्यावरण InText Questions and Answers

पृष्ठ 292.

प्रश्न 1.
पोषी स्तर क्या है? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए।
उत्तर:
पोषी स्तर – स्वपोषी अर्थात् हरे पौधे सौर ऊर्जा का उपयोग करके अपना भोजन बनाते हैं। इन स्वपोषियों को शाकाहारी जन्तु खाते हैं, जिन्हें मांसाहारी जन्तु भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। इस प्रकार से खाद्य के आहार के अनुसार विभिन्न प्राणियों में एक श्रृंखला बन जाती है, जो आहार श्रृंखला कहलाती है। आहार श्रृंखला की प्रत्येक कड़ी/चरण पोषी स्तर (food level) कहलाती है।
एक आहार श्रृंखला निम्न प्रकार से है।
घास → टिड्डा → गिरगिट → बाज
इस आहार श्रृंखला में चार पोषी स्तर हैं।

  1. प्रथम पोषी स्तर – यह घास है, जो कि स्वयंपोषी है और उत्पादक कहलाती है।
  2. द्वितीय पोषी स्तर – यह टिड्डा है, जो शाकाहारी है और प्राथमिक उपभोक्ता कहलाता है।
  3. तृतीय पोषी स्तर – यह गिरगिट है, जो मांसाहारी है और द्वितीयक उपभोक्ता कहलाता है।
  4. चतुर्थ पोषी स्तर – यह बाज है, जो मांसाहारी है और तृतीयक उपभोक्ता कहलाता है।

प्रश्न 2.
पारितंत्र में अपमार्जकों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
पारितंत्र में अपमार्जकों का विशिष्ट स्थान है। पारितंत्र में जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव अपमार्जकों का कार्य करते हैं। ये पेड़ – पौधों एवं जीव – जन्तुओं के मृत शरीरों पर आक्रमण कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल पदार्थों में बदल देते हैं। इसी प्रकार कचरा, जैसे – सब्जियों एवं फलों के छिलके, जन्तुओं के मल – मूत्र, पौधों के सड़े – गले भाग अपमार्जकों द्वारा ही विघटित किए जाते हैं। इस प्रकार पदार्थों के पुनः चक्रण में अपमार्जक सहायता करते हैं और वातावरण को स्वच्छ रखते हैं।

पृष्ठ 295.

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं और कुछ अजैव निम्नीकरणीय?
उत्तर:
कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय और कुछ अजैव निम्नीकरणीय होते हैं क्योंकि इसमें सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु, कवक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ये केवल प्राकृतिक पदार्थों जैसे कागज, लकड़ी आदि का अपघटन कर सकते हैं परन्तु मानव निर्मित पदार्थ जैसे प्लास्टिक, पीड़कनाशी आदि का अपघटन नहीं कर सकते हैं। इसलिए कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय और कुछ अजैव निम्नीकरणीय होते हैं।

प्रश्न 2.
ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
निम्न दो तरीके हैं, जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।

  1. ये आसानी से अपघटित हो जाते हैं, इसलिए पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं।
  2. ये अपघटकों की सहायता से आसानी से भू रासायनिक चक्र में शामिल हो जाते हैं और पुनः उपलब्ध हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:

  1. कृषि की उपज बढ़ाने में उपयोगी शाकनाशी (herbicides), कीटनाशी (Insecticides), पेस्टीसाइड्स (Pesticides) आदि का उपयोग किया जाता है। ये रसायन बहकर मिट्टी में तथा जलस्रोतों में मिल जाते हैं तथा उन्हें प्रदूषित कर देते हैं।
  2. ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला में जैव आवर्धित हो जाते हैं और अन्त में मानव को प्रभावित करते हैं।

पृष्ठ 296.

प्रश्न 1.
ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
ओजोन ‘O2‘ के अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से निर्मित होते हैं। ओजोन एक घातक विष है। परन्तु वायुमण्डल के ऊपरी स्तर में ओजोन एक आवश्यक प्रकार्य सम्पादित करती है। यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है। यह पराबैंगनी विकिरण जीवों के लिए अत्यन्त हानिकारक है। उदाहरणतः यह मानव में त्वचा कैंसर उत्पन्न करती है।

प्रश्न 2.
आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं? किन्हीं दो तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कचरा निपटान की समस्या कम करने में हम निम्न योगदान कर सकते हैं।

  1. अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थों का पुनः चक्रण (Recycling) के बाद पुनःउपयोग (reuse) करना चाहिए। जैसे – प्लास्टिक, धातुएँ आदि।
  2. जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ जैसे रसोई की बेकार सामग्री, खाना बनाने के बाद बची सामग्री, पत्तियाँ आदि को जमीन में गड्ढा खोदकर इन्हें दबाकर खाद तैयार किया जा सकता है, जिससे पौधों को उच्च कोटि की खाद उपलब्ध हो सके।

RBSE Class 10 Science Chapter 15 हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन – से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं।
(a) घांस, पुष्प तथा चमड़ा।
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नींबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास।
उत्तर:
(a) (c) व (d) में।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं?
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घास, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर:
(b) घास, बकरी तथा मानव।

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन पर्यावरण – मित्र व्यवहार कहलाते हैं?
(a) बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना।
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना।
(c) माँ द्वारा स्कूटर से विद्यालय छोड़ने के बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डालें)?
उत्तर:
यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर देंगे तो आहार श्रृंखला समाप्त हो जाएगी एवं पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित होगा। प्रकृति में सभी आहार श्रृंखलाएँ एक – दूसरे से जुड़ी हुई हैं। यदि किसी भी एक कड़ी (पोषी स्तर) को समाप्त कर दें तो उससे पहले के पोषी स्तर में जीवों की संख्या अत्यधिक बढ़ जाएगी और उसके बाद के पोषी स्तर के लिए भोजन अनुपलब्ध हो जाने के कारण संख्या घट जाएगी। उदाहरण के लिए।

  1. यदि शाकाहारियों को नष्ट करते हैं तो मांसाहारी अपना भोजन प्राप्त करने में असमर्थ होंगे तथा मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे।
  2. यदि पोषी स्तर के मांसाहारियों को समाप्त कर दें तो शाकाहारियों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी कि वे जीवित रहने के लायक नहीं रहेंगे।
  3. यदि पोषी स्तर के उत्पादकों को समाप्त कर दें तो उस क्षेत्र के पोषक तत्वों का चक्र पूर्ण नहीं होगा।

प्रश्न 5.
क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न – भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग – अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना सम्भव है?
उत्तर:
नहीं, यदि किसी पोषी स्तर के जीवों को नष्ट कर दिया जाए तो पहले तथा बाद के पोषी स्तरों में आने वाले सभी जीवधारी प्रभावित होंगे। सभी पोषी स्तर प्रारम्भ में तीव्रता से एवं बाद में धीमी गति से प्रभावित होंगे। किसी भी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना सम्भव नहीं है क्योंकि प्रकृति की सभी खाद्य श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन (Biological magnification) क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न – भिन्न होगा?
उत्तर:
जैविक आवर्धन (Biological magnification):
अजैव निम्नीकरणीय पीड़कनाशियों जैसे DDT का फसलों के बचाव के लिए व्यापक उपयोग किया जाता है। एक बार वे आहार श्रृंखला में प्रविष्ट हो जाएँ तो उसके बाद प्रत्येक पोषण स्तर (आहार श्रृंखला के चरण) पर उनका सान्द्रण बढ़ता जाता है। परिणामतः लम्बी अवधि में ये यौगिक शीर्ष उपभोक्ताओं के भीतर संचित होते जाते हैं। हानिकारक अजैव निम्नीकरणीय रसायनों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश होना और फिर प्रत्येक उच्चतर पोषण स्तर पर उनका अधिकाधिक सान्द्रण बढ़ते जाना ही जैव आवर्धन कहलाता है। हाँ, विभिन्न पोषी स्तरों में रसायनों की सान्द्रता भिन्न – भिन्न होती है। जैसे – जैसे आहार श्रृंखला की श्रेणी बढ़ती जाती हैं, रसायनों की सान्द्रता में भी अधिकता होती रहती है और उसका प्रभाव भी बढ़ता जाता है।

प्रश्न 7.
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन – सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से निम्न समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

  1. अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित नहीं होते हैं।
  2. इनकी बढ़ती मात्रा का निपटान करना गंभीर समस्या होती है।
  3. अजैव निम्नीकरणीय कचरे से जल प्रदूषण उत्पन्न हो जाएगा एवं पानी पीने योग्य नहीं होगा।
  4.  नदी – नालों में इस कचरे के कारण पानी का बहाव रुक जाएगा।
  5. प्लास्टिक की थैलियों को जानवरों द्वारा खा लिए जाने के फलस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाएगी।
  6.  मृदा कृषि योग्य नहीं रहेगी एवं भूमि उत्पादकता कम हो जाएगी।
  7. अजैव निम्नीकरणीय रसायनों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करने पर विभिन्न बीमारियों से मानव ग्रसित हो जाएगा। उदाहरण के लिए गायों के दूध में और माँ के दूध में डी.डी.टी. का उच्च सान्द्रण पाया गया जिससे नवजात शिशुओं में कई प्रकार के दोष पाए गए।
  8.  पारितन्त्र का संतुलन नष्ट हो जाएगा।

प्रश्न 8.
यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:
यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो इनका निपटान आसानी से हो जाएगा। जैव निम्नीकरण पदार्थ सरलता से सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित कर दिए जाते हैं। यह अपशिष्ट लम्बे समय तक नहीं रहते हैं। परन्तु इनकी मात्रा बढ़ जाती है तो कई समस्याएँ भी उत्पन्न हो जाती हैं। जैसे

  1. चूंकि इनका अपघटन धीमी गति से होता है तो इस प्रक्रिया में दुर्गन्ध एवं विषाक्त गैसे उत्पन्न होती हैं जो जीवों पर हानिकारक प्रभाव डालती हैं।
  2. कचरा निस्तारण स्थलों पर इनकी मात्रा बढ़ने पर हानिकारक सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ने लगेगी जिसका जीवों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
  3. ऐसे पदार्थ जल के साथ बहकर जलाशयों में आ सकते हैं जहाँ ये पोषक पदार्थों का कार्य करेंगे जिससे जलीय जीवों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो जाएगी जिसका प्रभाव अन्य जीवों पर भी होगा।

प्रश्न 9.
ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिन्ता का विषय क्यों है? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के वायुमण्डल में मौजूद ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी की सतह तक आने से रोकती है। रेफ्रिजरेशन, वातानुकूलन, शोधन विलायकों, अग्निशामकों तथा एरोसॉलों (इत्रों, कीटनाशियों, औषधियों आदि के फुहार डिब्बों में काम आते हैं) आदि से उत्सर्जित रसायन, जैसे – क्लोरो – फ्लोरो कार्बन (CFCs) ओजोन परत को हानि पहुंचाते हैं।
ओजोन परत की क्षति से निम्नलिखित खतरे हो सकते हैं।

  1. त्वचा का कैंसर, त्वचा का जीर्णन, धूपताम्रता (चेहरा आदि का काला पड़ जाना), मोतियाबिन्द (आँख के लैन्स का धुंधला हो जाना, जिससे नजर कमजोर हो जाती है), आँख का रेटिना अर्थात् संवेदी परत जिस पर प्रतिबिम्ब बनता है, का कैंसर।
  2. आनुवंशिक दोष।
  3. समुद्र तथा वनों में उत्पादकता में हास।

ओजोन परत की क्षति को सीमित करने के लिए 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) में सर्वानुमति बनी कि CFC के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए। अब CFCs की जगह हाइड्रोफ्लोरो कार्बनों का प्रयोग आरम्भ किया गया है, जिसमें ओजोन परत को क्षति पहुँचाने वाले क्लोरीन या ब्रोमीन नहीं होते हैं। धीरे – धीरे अब.सभी देश इस समस्या से निपटने के लिए अग्रसर हो रहे हैं।

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