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RBSE Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

RBSE Class 10 Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

पाठ सार एवं पारिभाषिक शब्दावली (SUMMARY OF THE CHAPTER AND GLOSSARY)

1. आनुवंशिकी (Genetics) — जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवधारियों के आनुवंशिक लक्षणों एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं, आनुवंशिकी कहलाती है। |
2. आनुवंशिकता (Heredity) — जीवों में जनकों (parents) के लक्षणों का सन्तान (offsprings) में वंशानुगत स्थानांतरण होना, आनुवंशिकता कहलाता है।
3. लक्षण (Traits) — जीवधारियों में जो भिन्न-भिन्न गुण विद्यमान होते हैं, लक्षण कहलाते हैं। ये लक्षण दो प्रकार के होते हैं
(i) प्रभावी लक्षण – ऐसे लक्षण जो प्रथम पुत्री पीढ़ी में दिखाई देते हैं या प्रकट होते हैं, प्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे- लम्बापन मटर के पौधे का प्रभावी लक्षण है।
(ii) अप्रभावी लक्षण – ऐसे लक्षण जो प्रथम पीढ़ी में छिपे रहते हैं अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे- बौनापन मटर) के पौधे का अप्रभावी लक्षण है।
4. विविधता (Diversity) — संसार में लगभग 10 लाख प्रकार के प्राणी तथा लगभग 3,43,000 पादप प्रजातियाँ पायी जाती हैं। ये सभी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक रूप से एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। इसे जैव विविधता (Biodiversity) कहते हैं। जीवधारियों में यह विभिन्नताएँ उनकी आनुवंशिक संरचना के कारण होती हैं।
15. वंशागति के नियम (Laws of Heredity)-आस्ट्रिया के निवासी ग्रेगर जॉन मेण्डल (G. J. Mendel) ने वंशागति के तीन नियम प्रस्तुत किये –
I. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance) — इसके अनुसार जब एक जोड़ी के विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर क्रॉस कराया जाता है तो पहली पीढ़ी में उत्पन्न होने वाला लक्षण प्रभावी (dominant) होता है तथा दूसरे) लक्षण जो छिपे रहते हैं अप्रभावी होते हैं।
II. युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation) — इस नियम के अनुसार संकर F पीढ़ी के पौधों में) दोनों विपरीत लक्षण जोड़े में विद्यमान रहते हैं। ये लक्षण F, पीढ़ी में पृथक् हो जाते हैं अतः इसे पृथक्करण का) नियम भी कहते हैं ।
III. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)- इसके अनुसार दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले दो पौधों के बीच संकरण कराने पर इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है तथा एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति को प्रभावित नहीं करती है।
6. जीन (Gene) — मेण्डल के अनुसार आनुवंशिक कारकों को जीन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण करने वाली इकाई को जीन कहते हैं।
7. गुणसूत्र (Chromosomes) — जीवधारियों में पायी जाने वाली विशेष संरचनाएँ जो जीन्स का वहन करती हैं, गुणसूत्र) कहलाती हैं।
8. जीनोम (Genome) — किसी जीवधारी के गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चय (haploid set) को जीनोम कहते हैं।।
9. प्लाज्मोन (Plasmone) — केन्द्रक के बाहर कोशिका द्रव्य में पाये जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ को प्लाज्मोन | (plasmone) या प्लाज्मोजीन (Plasmogene) कहते हैं।
10. एलील (Allele)—जीन्स का वह जोड़ा जिसमें एक लक्षण के दो रूप होते हैं एलील कहलाता है।
11. उत्परिवर्तन (Mutation) — जीवों में अकस्मात् विकसित लक्षणों का परिवर्तित होना उत्परिवर्तन कहलाता है।
12. समयुग्मजी (Homozygous)—कारकों के सजातीय जोड़े में दोनों कारकों में जब समान गुण पाए जाते हैं तो यह जोड़ा समयुग्मजी कहलाता है, (जैसे-TT)।
13. विषमयुग्मजी (Heterozygous) यदि जीन्स के किसी जोड़े में दो विपर्यासी (अलग-अलग) लक्षणों वाले कारक होते हैं तो वह विषमयुग्मजी कहलाता है, (जैसे Ti) ।
14. दर्शरूप (Phenotype) –वे लक्षण जो दिखाई देते हैं, फीनोटाइप कहलाते हैं।
15. लक्षण रूप (Genotype) – जीव का आनुवंशिक संगठन लक्षण रूप जीनोटाइप कहलाता है।
16. सहलग्नता (Linkage) — जब दो या दो से अधिक जीन्स एक ही गुणसूत्र पर तथा एक-दूसरे के पास स्थित होते हैं, तब यह स्वतन्त्र अपव्यूहन नहीं दिखाते, बल्कि यह साथ-साथ वंशानुगत होते हैं, इस लक्षण को सहलग्नता कहते हैं।
17. दैहिक गुणसूत्र (Autosomes)—दैहिक लक्षणों का जीन्स को धारण करने वाले गुणसूत्र दैहिक गुणसूत्र कहलाते हैं। |
18. लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes) — नर या मादा लक्षणों का निर्धारण करने वाले जीन्स को धारण करने वाले ! गुणसूत्रों को लिंग गुणसूत्र कहते हैं।
19. समलिंगी गुणसूत्र (Homologous chromosomes)— गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें माता-पिता से एक-एक गुणसूत्र प्राप्त होता है तथा दोनों में समान गुण होते हैं, समलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।
20. विषमलिंगी गुणसूत्र (Heterosomes) —  गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें से एक गुणसूत्र में नर लक्षण तथा दूसरे में मादा लक्षण होते हैं, विषमलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।
21. लिंग निर्धारण (Sex determination)—वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति का लिंग निर्धारित किया जाता है, लिंग निर्धारण कहलाता है। पुरुष के लिंग गुणसूत्रों में एक X तथा दूसरा Y होता है। स्त्री के दोनों लिंग गुणसूत्र X X होते हैं। जब पुरुष का X गुणसूत्र (शुक्राणु) मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो होने वाली भावी सन्तान लड़की होती है। यदि पुरुष का Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो भावी सन्तान लड़का होता है। इसी प्रक्रिया को लिंग निर्धारण कहते हैं ।
22. विकास (Evolution) — पृथ्वी पर करोड़ों वर्ष पहले उपस्थित सरलतम जीवों से आधुनिक विशालतम जीवों के निर्माण की प्रक्रिया जैव विकास कहलाती है। जैव विकास के सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए । गए हैं- (i) जीवाश्मों से प्रमाण, (ii) भूण विज्ञान से प्रमाण, (iii) संयोजक कड़ियों से प्रमाण, (iv) अवशेषी अंगों से । प्रमाण ।
23. जीवाश्म (Fossils) — जीवधारियों के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स । एक जीवाश्म है। जीवाश्म के अध्ययन से उनकी संरचना और विकास का ज्ञान होता है ।
24. भ्रूण विज्ञान (Embryology) — अनेक जीवधारियों में भ्रूण अपने पूर्वजों के लक्षण दर्शाते हैं। इससे इनके पूर्वजों के । बारे में ज्ञान होता है ।
25. संयोजन कड़ी (Connecting link) — अनेक ऐसे जीवधारी हैं जिनमें दो वर्गों के लक्षण उपस्थित होते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स में सरीसृप तथा पक्षी दोनों के लक्षण होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास । सरीसृपों से हुआ है।
26. समजात अंग (Homologous organs)—वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं। समजात अंग कहलाते हैं।
27. समवृत्ति अंग (Analogous organs) — वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना भिन्न होती है, लेकिन कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं ।
28. अवशेषी अंग (Vestigial organs) — ऐसे अंग जो किसी जीवधारी के पूर्वजों में क्रियाशील थे किन्तु अब उनकी J सन्तानों में केवल अवशेष के रूप में शेष बचे हैं अवशेषी अंग कहलाते हैं। अवशेषी अंगों से विकास की पुष्टि होती है। ।
29. डार्विनवाद (Darwinism)– डार्विन के अनुसार,
(i) किसी भी जनसमुदाय के बीच प्राकृतिक विविधता होती है। कुछ व्यक्तियों में दूसरे की अपेक्षा अधिक अनुकूल विविधताएँ होती हैं।
(ii) जीवधारियों में सन्तान उत्पत्ति की अत्यधिक क्षमता होती है, किन्तु फिर भी इनकी संख्या नियन्त्रित रहती है ।
(iii) एक ही जाति के सदस्यों के बीच तथा भिन्न-भिन्न जातियों के बीच आवास, भोजन एवं प्रजनन के लिए संघर्ष होते हैं, जिन्हें जीवन संघर्ष कहते हैं ।

RBSE Class 10 Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास InText Questions and Answers

पृष्ठ 157.

प्रश्न 1.
यदि एक ‘लक्षण – A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण – B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौनसा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर:
अलैंगिक प्रजनन करने वाली समष्टि में लक्षण बिना विभिन्नता के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं इसलिए ‘लक्षण – B’ पहले उत्पन्न हुआ है क्योंकि यह समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है जबकि ‘लक्षण – A’ समष्टि के सिर्फ 10 प्रतिशत सदस्यों में ही पाया जाता है। अतः ‘लक्षण – B’ पहले उत्पन्न होगा।

प्रश्न 2.
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर:
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से स्पीशीज का अस्तित्व बढ़ जाता है क्योंकि विभिन्नताओं से जन्तुओं व पादपों में लाभदायक परिवर्तन होते हैं तथा विभिन्नताएँ जन्तु को बदले हुए वातावरण के प्रति अनुकूलित करने में सहायता करती हैं। उदाहरण के लिए, उष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवाणुओं को अधिक गर्मी से बचने की सम्भावना अधिक होती है। इसके साथ ही विभिन्नताएँ जन्तु को अस्तित्व के साथ संघर्ष में बेहतर बनाती हैं। अतः विभिन्नताएँ जैव विकास का आधार हैं।

पृष्ठ 161.

प्रश्न 1.
मेंडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर:
मेंडल ने दो विकल्पी मटर के पौधों को अपने प्रयोग के लिए चुना, जैसे कि मटर के लम्बे पौधे, जो केवल मटर के लम्बे पौधे ही उत्पन्न करते थे तथा मटर के बौने पौधे, जो केवल मटर के बौने पौधे ही उत्पन्न करते थे। जब मेंडल ने इन दोनों पौधों में संकरण कराया तो प्रथम संतति पीढ़ी F1 में सभी मटर के पौधे लम्बे प्राप्त होते हैं | इससे स्पष्ट हो गया कि पौधे का लम्बापन लक्षण (TT), बौनापन लक्षण (tt) पर प्रभावी हो गया तथा बौनापन लक्षण अप्रभावी होने के कारण छिपा रह गया।

जब मेंडल ने F1 पीढ़ी के पौधों में स्वपरागण कराया तो इससे प्राप्त बीजों को उगाया तो F2 पीढ़ी में दोनों लक्षण प्राप्त हुए अर्थात् लम्बे पौधे भी एवं बौने पौधे भी (3 : 1 के अनुपात में)। इसका अर्थ हुआ कि लम्बे होने का लक्षण प्रभावी और बौनेपन का लक्षण अप्रभावी होता है।

प्रश्न 2.
मेंडल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशागत होते हैं?
उत्तर:
मेंडल ने अपने प्रयोगों में दो जोड़ी विपर्यासी (Contrasting) लक्षणों का चयन किया, जैसे – पीले एवं गोल तथा हरे एवं झुरींदार बीज वाले पौधे । मेंडल ने जब इन गोल एवं पीले (RRYY) बीज वाले पौधे का क्रॉस झुर्शीदार एवं हरे (rryy) बीज वाले पौधे के साथ करवाया तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे पीले तथा गोल (RrYy) वाले प्राप्त हुए। ज़ब F1 पीढ़ी के पौधों के बीच उन्होंने स्वपरागण होने दिया तो F2पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे प्राप्त होते हैं

  • 9 पौधे गोल व पीले बीज के
  • 3 पौधे झुदार व पीले बीज के
  • 3 पौधे गोल व हरे बीज के
  • 1 पौधा झुरींदार व हरे बीज का

इस प्रकार द्विसंकर क्रॉस की F2 पीढ़ी के पौधों का लक्षणप्ररूप (Phenotype) 9:3:3:1 होता है। इसे द्विसंकर अनुपात कहते हैं।
इसे हम निम्न प्रकार समझ सकते हैं।

अनुपात
315 गोल, पीले बीज 9
108 गोल, हरे बीज 3
101 झुर्रीदार, पीले बीज 3
32 झुर्रीदार, हरे बीज 1
556 बीज 16

इस प्रकार इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि बीजों के रंग एवं आकृति की वंशानुगत पीढ़ी एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होती। ये लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसलिए इसे मेंडल का ‘स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम’ भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक ‘A – रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘0’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कष्टीकरण दीजिए।
उत्तर:
यह सूचना पर्याप्त नहीं है जिससे यह बताया जा सके कि रुधिर वर्ग ‘A’ अथवा ‘O’ में से कौनसा प्रभावी है। रुधिर वर्ग – ‘A’ हमेशा ABO रुधिर वर्ग में प्रभावी होता है जबकि रुधिर वर्ग ‘O’ अप्रभावी। इसलिए यहाँ पिता के रुधि र वर्ग का जीन प्रारुप ‘AA’ (समयुग्मजी) या ‘AO’ (विषमयुग्मजी) हो सकता है जबकि माता के रुधिर वर्ग का जीन प्ररूप ‘AO’ या ‘OO’ हो सकता है।

प्रश्न. 4.
मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मानव में उपस्थित लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome) बच्चे के लिंग निर्धारण का कार्य करते हैं। मानव में बच्चे के लिंग निर्धारण के प्रक्रम अग्र प्रकार से हैं।

  1. पुरुषों में दोनों लिंग गुणसूत्र अलग-अलग होते हैं। इनमें एक X और एक Y होता है अर्थात् पुरुषों में लिंग गुणसूत्र XY होता है।
  2. में दोनों लिंग गुणसूत्र समान अर्थात् XX होता है।
  3. रुष दो प्रकार के शुक्राणु उत्पन्न करते हैं । आधे शुक्राणुओं में X गुणसूत्र होता है जबकि शेष आधे शुक्राणुओं में Y गुणसूत्र होता है।
  4. स्त्री केवल एक प्रकार के अण्डाणु उत्पन्न करती है, जिसमें X गुणसूत्र होते हैं।
  5. जब X गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु X से संयोग करता है, तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़की (XX) होती है।
  6. जब Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु X से संयोग करता है, तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़का (XY) होता है।
  7. इस प्रकार बच्चे के लिंग निर्धारण हेतु पुरुष के शुक्राणु ही उत्तरदायी होते हैं।

पृष्ठ 165.

प्रश्न 1.
वे कौनसे विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर:
निम्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है।;
(1) प्राकृतिक वरण (Natural Selection)
(2) जीन विचलन (Genetic Drift)
(3) खाद्य (Food)।

प्रश्न 2.
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
उत्तर:
उपार्जित लक्षणों का प्रभाव केवल कायिक कोशिकाओं पर ही पड़ता है। इनका प्रभाव आनुवंशिक पदार्थ DNA पर नहीं पड़ता है। चूँकि आनुवंशिक पदार्थ में होने वाले परिवर्तन ही अगली पीढ़ी में वंशानुगत हो सकते हैं। इसलिए उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते।

प्रश्न 3.
बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिन्ता का विषय क्यों है?
उत्तर:
बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिन्ता का विषय है क्योंकि इनकी संख्या में लगातार कमी हो रही है, जो यह दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ रहे हैं, अर्थात् इनमें प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन नहीं हो रहे, जिससे कि इनकी संख्या बढ़ सके। इनकी आबादी में जीन्स के सैट भी सीमित हैं। लैंगिक जनन के दौरान इनके लक्षणों में विभिन्नताएँ भी सीमित हो गई हैं | अतः इन बदलती हुई परिस्थितियों में इनका जीवित रहना मुश्किल हो गया है।

पृष्ठ 166.

प्रश्न 1.
वे कौनसे कारक हैं जो नई स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं?
उत्तर:
नई स्पीशीज के उद्भव में निम्न कारक सहायक हैं

  • प्राकृतिक वरण (Natural Selection)
  • आनुवंशिक अपवहन।
  • दो उप समष्टियों का एक – दूसरे से भौगोलिक पृथक्करण। इसके कारण समष्टियों के सदस्य परस्पर प्रजनन नहीं कर पाते हैं।
  • लैंगिक प्रजनन के फलस्वरूप उत्पन्न परिवर्तन अर्थात् जननिक पृथक्करण।

प्रश्न 2
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर:
भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण नहीं हो सकता क्योंकि न ही नई जीन का प्रवेश होता है और न ही नई स्पीशीज का निर्माण होता है। इस प्रकार थोड़ी – सी विभिन्नता आने की सम्भावना रहती है।

प्रश्न 3.
क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक नहीं हो सकता है क्योंकि अलैंगिक जनन में केवल एक ही कोशिका भाग लेती है इसलिए न तो जीन का विचलन (genetic drift) होता है और न ही जीन का प्रवाह (gene flow) होता है।

पृष्ठ 171.

प्रश्न 1.
उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध निर्धारण के लिए करते हैं।
उत्तर:
मेंढक, छिपकली, पक्षी एवं घोड़े के अग्र पादों की मूलभूत संरचना समान है तथा इनके अग्र पाद में पाई जाने वाली अस्थियाँ भी समान हैं जबकि ये अलग स्पीशीज के प्राणी हैं। लेकिन उक्त प्राणियों के अग्र पादों का कार्य अलग – अलग है। इससे यह सिद्ध होता है कि इन प्राणियों की उत्पत्ति एक पूर्वज से हुई है तथा यह अलग – अलग स्पीशीज के होते हुए भी समानता प्रदर्शित करते हैं, जो कि दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 2.
क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों
नहीं?
उत्तर:
ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान होती है, किन्तु कार्य भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं | चूँकि तितली एवं चमगादड़ के पंखों के कार्य समान हैं (उड़ना) परन्तु उनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना भिन्न – भिन्न है। इसलिए ये समजात अंग नहीं हैं।

प्रश्न 3.
जीवाश्म क्या हैं? वे जैव विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर:
जीवाश्म – प्राचीनकालीन जीवों के वे अवशेष जो भू-पटल की चट्टानों में परिरक्षित मिलते हैं, जीवाश्म कहलाते हैं। इनकी आयु का निर्धारण रेडियोधर्मी पदार्थों की सहायता से किया जाता है। यह जैव विकास के बारे में निम्नलिखित बातें दर्शाते हैं।

  1. जीवाश्म विलुप्त हो चुके जीवों के बारे में जानकारी देते हैं तथा यह भी बताते हैं कि उद्विकास किस प्रकार हुआ होगा।
  2. जीवाश्मों का उपयोग किसी जीव के उद्विकासीय इतिहास के निर्धारण में किया जा सकता है।
  3. भू-पटल के विभिन्न स्तरों पर जीवाश्मों का वितरण यह जानकारी देता है कि किस कालखण्ड में किस जीव का उद्भव हुआ और विलुप्त हुआ।
  4. अनेक जीवाश्म दो भिन्न वर्गों के जीवों के मध्य योजक कड़ी के रूप में उनके मध्य उद्विकासीय संबंधों को समझने में सहायक होते हैं।

पृष्ठ 173.

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंगरूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर:
मानव में आकृति, आकार, रंग – रूप आदि भिन्नता का कारण भौगोलिक पर्यावरण के कारकों से इनके भौतिक लक्षणों में होने वाले परिवर्तन हैं। परन्तु भौगोलिक पर्यावरण के परिवर्तन का इनकी जैविक संरचना के लक्षणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए इनके शारीरिक अंगों में कोई परिवर्तन नहीं आता, परन्तु भौगोलिक परिस्थितियों में हुए परिवर्तनों के कारण इनका आकार, आकृति, रंग आदि में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देते हैं, जबकि वे एक ही स्पीशीज ‘होमोसैपियन्स’ के सदस्य हैं।

प्रश्न 2.
विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विकास के आधार पर यह बता पाना कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में से किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है, संभव नहीं है। क्योंकि इन जीवों के शरीरिक अभिकल्प का विकास इनके पर्यावरण में उत्तरजीविता की आवश्यकता के आधार पर हुआ है न कि उत्तमता के आधार पर | जैसे चिम्पैंजी की शक्तिशाली भुजाएँ उसे अनेक क्रियाओं हेतु सक्षम बनाती हैं तो वही जीवाणु ऐसी विषम परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं जहाँ अन्य जीवों का जीवित रहना संभव नहीं है। इसलिए किसी भी एक शारीरिक अभिकल्प को उत्तम नहीं कहा जा सकता है।

RBSE Class 10 Science Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मेंडल के एक प्रयोग में लम्बे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परन्तु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लम्बे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी
(a) TTWW
(b) TTww
(c) Ttww
(d) Ttww
उत्तर:
(c) Ttww

प्रश्न 2.
समजात अंगों का उदाहरण है
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किससे अधिक समानता है
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु
उत्तर:
(a) चीन के विद्यार्थी।

प्रश्न 4.
एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता – पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता – पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी। क्योंकि हल्के रंग की आंखों के लिए दोनों जनकों का जीनोटाइप समयुग्मजी प्रभावी या समयुग्मजी अप्रभावी हो तो दोनों ही स्थितियों में बच्चों की आँखों का रंग हल्का होगा।

प्रश्न 5.
जैव विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
दो स्पीशीज के मध्य जितने अधिक अभिलक्षण समान होते हैं, उनका सम्बन्ध भी उतना ही निकट का होता है। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा। उदाहरण के लिए-एक भाई एवं बहन अति निकट सम्बन्धी हैं। उनसे पहली पीढ़ी में उनके पूर्वज समान थे अर्थात् वे एक ही माता – पिता की संतान हैं। लड़की के चचेरे/ममेरे भाई – बहन (Ist cousin) भी उससे सम्बन्धित हैं परन्तु उसके अपने भाई से कम हैं। इसका मुख्य कारण है कि उनके पूर्वज समान हैं, अर्थात् दादा-दादी जो उनसे दो पीढ़ी पहले के हैं, न कि एक पीढ़ी पहले के। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्पीशीज/जीवों का वर्गीकरण उनके विकास के सम्बन्धों का प्रतिबिम्ब है।
प्रश्न 6.
समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
समजात अंग (Homologous organs):
वे अंग जिनकी मूलभूत संरचना एवं उत्पत्ति समान हो लेकिन कार्य भिन्न हो, समजात अंग कहलाते हैं।
उदाहरण:
के लिए व्हेल, पक्षी, चमगादड़, घोड़े तथा मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग हैं। इन जन्तुओं के अग्रपाद बाहर से देखने में भिन्न दिखाई देते हैं। इनका बाहरी रूप उनके आवास एवं स्वभाव के अनुकूल होता है। व्हेल के अग्रपाद तैरने के लिए फ्लिपर में, पक्षी तथा चमगादड़ के अग्रपाद उड़ने के लिए पंख में रूपान्तरित हो गये हैं, जबकि घोड़े के अग्रपाद दौड़ने के लिए, मनुष्य के मुक्त हाथ पकड़ने के लिए उपयुक्त हैं। इन जन्तुओं के अग्रपादों के कार्यों एवं बाह्य बनावट में असमानताएँ होते हुए भी, इन सभी जन्तुओं के कंकाल की मूल संरचना तथा उद्भव (origin) समान होता है। ऐसे अंगों को समजात अंग (Homologous organs) कहते हैं।इन अंगों की समजातता यह सिद्ध करती है कि इन सभी जन्तुओं के पूर्वज समान रहे होंगे तथा कालान्तर में इनका क्रमिक विकास हुआ है।

समरूप/समवृत्ति अंग या एनेलोगस अंग (Analogous Organs):
वे अंग जिनके कार्य समान हों किन्तु उनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में अन्तर हो, समरूप/समवृत्ति अंग या एनेलोगस अंग कहलाते हैं।
उदाहरण के लिए कीट, पक्षी तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं परन्तु इनकी मूल संरचना एवं उत्पत्ति में बड़ा अन्तर है।
इन अंगों में केवल आभासी समानताएँ पाई जाती हैं । वातावरण एवं स्वभाव के कारण इनके कार्यों में समानता होती है। कीट के पंखों का विकास शरीर की भित्ति से निकले प्रवर्षों के रूप में होता है जबकि पक्षी एवं चमगादड़ में इनकी उत्पत्ति शरीर भित्ति के प्रवर्षों के रूप में नहीं होती है। अतः इनके कार्यों में तो समानता होती है, परन्तु उत्पत्ति एवं संरचना में भिन्नता होती है। इस प्रकार समरूप रचनाएँ भी जैव विकास का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।

प्रश्न 7.
कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर:

  1. सबसे पहले अपने आसपास के क्षेत्र में सर्वे के द्वारा कुत्तों की आबादी के बारे में पता लगाते हैं।
  2. इसके पश्चात् विभिन्न रंग की खाल (त्वचा) वाले कुत्तों का प्रतिशत ज्ञात किया जाता है।
  3. अब ऐसे कुतों का पता लगाते हैं जिन कुत्तों के माता-पिता एवं उनके बच्चों की खाल का रंग समान होता है।
  4. अब दो विभिन्न रंग की खाल वाले कुत्तों में क्रॉस करवाते हैं, जैसे-
  5. एक काले रंग का समयुग्मजी (Homozygous) नर कुत्ते का क्रॉस एक सफेद रंग की समयुग्मजी (Homozygous) मादा से करवाते हैं, तो प्रथम पीढ़ी (F1) में तमाम कुत्ते काले रंग के उत्पन्न होते हैं ! इसका तात्पर्य है कि त्वचा का काला रंग प्रभावी है।


अतः F2 पीढ़ी में 3 कुत्ते काले और एक कुत्ता सफेद प्राप्त होता है, जो यह दर्शाता है कि काला रंग, सफेद रंग पर प्रभावी है।

प्रश्न 8.
विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का महत्त्व:

  1. जीवाश्म से यह सिद्ध होता है कि प्राचीनकाल से ही जीव विकास हो रहा है। अभी तक केवल घोड़े, हाथी तथा मनुष्य के विकास की पूर्ण श्रृंखला प्राप्त हुई है।
  2. जीवाश्मों की उम्र भी ज्ञात की जाती है जिससे उस समय का ज्ञान हो पाता है जब ये सक्रिय थे।
  3. इनके चिन्हों अथवा जीवाश्म के आधार पर पूर्ण प्राणी का चित्र बनाकर कल्पना की जा सकती है।
  4. आर्किओप्टेरिस के जीवाश्म लगभग 15 करोड़ वर्ष पुरानी जुरैसिक चट्टानों से मिले हैं। यह सरीसृपों और पक्षियों के बीच की योजक कड़ी है। इसमें सरीसृपों की भाँति लम्बी पूँछ, चोंच में दाँत तथा अग्रपादों की अंगुलियों पर

पंजे थे फिर भी यह पक्षी ही था क्योंकि उसके अग्रपाद उड़ने के लिए विकसित पंखों में रूपान्तरित हो चुके थे। यह स्पष्ट करता है कि पक्षियों का उद्भव सरीसृप से हुआ। अर्थात् जीवों का विकास एक निश्चित क्रम में हुआ।

प्रश्न 9.
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?
उत्तर:
एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन ने सबसे पहली बार सुझाव दिया था कि जीवों की उत्पत्ति उन। अजैविक पदार्थों से हुई होगी, जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे। सन् 1953 में स्टेनल एल. मिलर और हेराल्ड सी. डरे ने ऐसे कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया था, जो सम्भवतः प्राथमिक/प्राचीन वातावरण के समान था। इसमें अमोनिया, मीथेन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु थे परन्तु ऑक्सीजन नहीं थी। एक पात्र में जल भी था। इसे 100°C से कुछ कम ताप पर रखा गया। गैसों के इस मिश्रण में कृत्रिम रूप से समय-समय पर चिंगारियाँ उत्पन्न की गईं, जैसे कि आकाश में बिजली उत्पन्न होती है। एक सप्ताह बाद 15% कार्बन (मीथेन से) सरल कार्बनिक यौगिकों में बदल जाता है। इनमें एमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।

प्रश्न 10.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं । अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतति में जा पाते हैं और वे बिना परिवर्तन के पीढ़ी – दरपीढ़ी समान ही रहते हैं। परन्तु लैंगिक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है, जिनमें भिन्न – भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न हो सकती है। लैंगिक जनन में गुणसूत्रों में ‘क्रॉसिग ओवर’ होती है, जिससे विभिन्नताएँ प्रकट होती हैं।

ये वंशानुगत विभिन्नताएँ जीव की उत्तरजीविता को बढ़ाती हैं। उदाहरणस्वरूप सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे, पर जब उनमें से अनेक अफ्रीका से बाहर चले गए और धीरे-धीरे पूरे संसार में फैल गए तो लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताओं के कारण उनकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया।

प्रश्न 11.
संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:
सामान्यतः
विकसित जीवधारियों की कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों के दो जोड़े होते हैं, जिन्हें 2n से प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कोशिकाएँ द्विगुणित कहलाती हैं। इन गुणसूत्रों में ही आनुवंशिक पदार्थ स्थित होता है। जब अर्धसूत्री विभाजन जननांगों की जनन कोशिकाओं में होता है (वृषण – नर, अण्डाशय – मादा) तब ये मातृ कोशिकाएँ विभाजित होकर युग्मकों का निर्माण करती हैं। जिनमें अगुणित n गुणसूत्र होते हैं । लैंगिक जनन के दौरान नर एवं मादा युग्मक का निषेचन होता है तो आधे गुणसूत्र माता (मादा) से एवं आधे गुणसूत्र पिता (नर) से आते हैं। इस प्रकार प्राप्त युग्मनज द्विगुणित होता है। इस युग्मनज से बनने वाली संतति में नर एवं मादा जनकों की आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी होती है।

प्रश्न 12.
केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?
उत्तर:
हाँ, क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं, तो प्राकृतिक चयन द्वारा वे अपने अस्तित्व को बनाए रखेंगी। ये विभिन्नताएँ समय के साथ समष्टि की मुख्य विशेषता के रूप में स्थापित हो जाती हैं। जीवधारी इन विभिन्नताओं के कारण स्वयं को वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं और अपनी संतति को निरन्तर सृष्टि में बनाये रखते हैं।

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