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RBSE Class 10 Social Science Solutions Civics Chapter 3 लोकतंत्र और विविधता

RBSE Class 10 Social Science Solutions Civics Chapter 3 लोकतंत्र और विविधता

पाठ-सार

सामाजिक भेदभाव की उत्पत्ति
(1) सामाजिक विभाजन अधिकांशतः जन्म पर आधारित होता है। जन्म पर आधारित सामाजिक विभाजन का अनुभव हम अपने दैनिक जीवन में लगभग रोज करते हैं। लिंग, रंग, जाति, प्रजाति आदि के विभाजन का आधार जन्म है।
(2) सामाजिक विभाजन जन्म के अतिरिक्त हमारी पसंद और चुनाव के आधार पर भी तय होते हैं। धर्म का चुनाव, पढ़ाई के विषय, व्यवसाय, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियों का चुनाव के आधार पर हम जो भिन्न-भिन्न सामाजिक समूह बनाते हैं, उनका आधार जन्म नहीं, बल्कि हमारा चुनाव है।
(3) हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। यद्यपि सामाजिक विभिन्नताएँ लोगों के बीच बँटवारे का एक कारण होती हैं, लेकिन यही विभिन्नताएँ लोगों के बीच पुल का भी काम करती हैं।
 विभिन्नताओं में सामञ्जस्य और टकराव
सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं, जैसे—गरीब और अमीर का अन्तर तथा गरीब का अन्याय का शिकार होना । उत्तरी आयरलैंड में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच क्रमश: गरीब और अमीर का भेदभाव होने से दोनों समुदायों के बीच भारी मारकाट चलती है, जबकि नीदरलैंड में गरीब-अमीर का ऐसा भेद नहीं है। इसलिए वहाँ ऐसी मारकाट नहीं है। इसी प्रकार अमरीका में श्वेतअश्वेत का अन्तर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं, भेदभाव का शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित प्राय: गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है।
सामाजिक विभाजनों की राजनीति
(1) लोकतंत्र में अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ जा सकता है। उत्तरी आयरलैंड और यूगोस्लाविया की घटनाएँ यह बताती हैं कि राजनीति और सामाजिक विभाजन का मेल नहीं होना चाहिए।
(2) लेकिन राजनीति में सामाजिक विभाजन की हर अभिव्यक्ति फूट पैदा नहीं करती, जैसे— विभिन्न समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व देने का प्रयास करना, उनकी उचित माँगों को पूरा करने वाली नीतियाँ बनाना, एक समुदाय के लोगों द्वारा प्राय: किसी एक दल को दूसरों की तुलना में अधिक पसंद करना आदि से देश में विखंडन पैदा नहीं होता।
तीन आयाम
सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम तीन चीजों पर निर्भर करता है –
( 1 ) लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना- अगर लोग खुद को सबसे विशिष्ट और अलग मानने लगते हैं तो उनके लिए दूसरों के साथ तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन अगर लोग अपनी | बहु-स्तरीय पहचान के प्रति सचेत हैं और उन्हें राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानते हैं तब कोई समस्या नहीं होती। | जैसे- बेल्जियम के अधिकतर लोग खुद को बेल्जियायी ही मानते हैं, भले ही वे डच या जर्मन बोलते हों। भारत में अधिकतर लोग अपनी पहचान को लेकर ऐसा ही नजरिया रखते हुए अपने को पहले भारतीय मानते हैं और किसी प्रदेश, क्षेत्र, भाषा समूह या धार्मिक सामाजिक समुदाय का सदस्य बाद में।
( 2 ) किसी समुदाय की माँगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं— संविधान के दायरे में आने वाली तथा दूसरे समुदाय को हानि न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान होता है। लेकिन संविधान की सीमा से बाहर और दूसरे समुदाय को हानि पहुँचाने वाली माँगों का पूरा करना असंभव होता है। श्रीलंका में श्रीलंका केवल सिंहलियों के लिए’ की माँग तमिल समुदाय की पहचान और हितों के खिलाफ थी। “
( 3 ) सरकार का रुख – सरकार इन माँगों पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करती है । यदि शासन सत्ता में साझेदारी तथा अल्पसंख्यकों की उचित माँगों को ईमानदारी से पूरा करने के प्रयास किये जाएँ तो सामाजिक विभाजन देश के लिए खतरा नहीं बनते। ऐसी माँगों को यदि राष्ट्रीय हित के नाम पर दबाया जायेगा तो यह रुख विभाजन की ओर ले जायेगा। ताकत के दम पर एकता बनाए रखने की कोशिश अक्सर विभाजन की ओर ले जाती है।
अतः लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है। इसे छोटे सामाजिक समूह, हाशियायी जरूरतों और परेशानियों को जाहिर करके अपनी ओर सरकार का ध्यान खींचते हैं। राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के बीच संतुलन पैदा करने का काम भी करती है। इससे लोकतंत्र मजबूत होता है। अतः लोकतंत्र सारी सामाजिक विभिन्नताओं, अंतरों और असमानताओं के बीच सामंजस्य ‘ बैठाकर उनका सर्वमान्य समाधान देने की कोशिश करता है ।
जो लोग खुद को वंचित, उपेक्षित और भेदभाव का शिकार मानते हैं, उन्हें अन्याय से संघर्ष भी करना होता है। ऐसी लड़ाई प्राय: लोकतांत्रिक रास्ता ही अख्तियार करती है। कई बार गैर बराबरी और अन्याय के खिलाफ होने वाला संघर्ष हिंसा का रास्ता भी अपना लेता है, लेकिन ऐसी सभी गड़बड़ियों की पहचान करने और विविधता को समाहित करने का लोकतांत्रिक रास्ता ही सबसे अच्छा है।

RBSE Class 10 Social Science लोकतंत्र और विविधता InText Questions and Answers

पृष्ठ 31

प्रश्न 1.
कुछ दलित समूहों ने 2001 में डरबन में हुए संयुक्त राष्ट्र के नस्लभेद विरोधी सम्मेलन में हिस्सा लेने का फैसला किया और माँग की कि सम्मेलन की कार्यसूची में जातिभेद को भी रखा जाए। इस फैसले पर ये तीन प्रतिक्रियाएँ सामने आईं :
अमनदीप कौर ( सरकारी अधिकारी) : हमारे संविधान में जातिगत भेदभाव को गैर-कानूनी करार दिया गया है। अगर कहीं-कहीं जातिगत भेदभाव होता है तो यह हमारा आंतरिक मामला है और इसे प्रशासनिक अक्षमता के रूप में देखा जाना चाहिए। मैं इसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाए जाने के खिलाफ हूँ।
ओइनम (समाजशास्त्री): जाति और नस्ल एक जैसे सामाजिक विभाजन नहीं हैं इसलिए मैं इसके खिलाफ हूँ। जाति का आधार सामाजिक है जबकि नस्ल का आधार जीवशास्त्रीय होता है। नस्लवाद विरोधी सम्मेलन में जाति के मुद्दे को उठाना दोनों को समान मानने जैसा होगा।
अशोक (दलित कार्यकर्ता) : किसी मुद्दे को आंतरिक मामला कहना दमन और भेदभाव पर खुली चर्चा को रोकना है। नस्ल विशुद्ध रूप से जीवशास्त्रीय नहीं है, यह जाति की तरह ही काफी हद तक समाजशास्त्रीय और वैधानिक वर्गीकरण है। इस सम्मेलन में जातिगत भेदभाव का मसला जरूर उठाना चाहिए।
इनमें से किस राय को आप सबसे सही मानते हैं? कारण बताइए।
उत्तर:
इनमें से हम अमनदीप कौर की राय को सबसे सही मानते हैं। इसका कारण यह है कि हमारे संविधान में इस बुराई पर रोक लगाई गई है तथा उसे गैर-कानूनी बतलाया गया है। इसके बावजूद भी यदि कहीं जातिगत भेदभाव होता है तो यह प्रशासनिक अक्षमता है। इस पर कार्यवाही की जाकर दण्ड भी दिया जा सकता है तथा प्रभावितों को राहत पहुँचाई जा सकती है। प्रशासन को भी लगातार ऐसी व्यवस्था बनाये रखनी चाहिए कि इस तरह का कृत्य होने ही न पाये।
अतः इसे अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उठाये जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 2.
मैं पाकिस्तानी लड़कियों की एक टोली से मिली और मुझे लगा कि अपने ही देश के दूसरे हिस्सों की लड़कियों की तुलना में वे मुझसे ज्यादा समानता रखती हैं, क्या इसे राष्ट्र-विरोधी मेल कहा जायेगा?
उत्तर:
नहीं, इसे राष्ट्र विरोधी मेल नहीं कहा जा सकता।

पृष्ठ 37

प्रश्न 3.
……..तो आपके कहने का मतलब है कि एक बड़े विभाजन की जगह अनेक छोटे विभाजन लाभकर होते हैं? और, आपके कहने का यह भी मतलब है कि राजनीति एकता पैदा करने वाली शक्ति है?
उत्तर:
एक स्वस्थ राजनीति में विभिन्न प्रकार के छोटे सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के बीच सन्तुलन पैदा करने का काम करती है, जिसके कारण कोई सामाजिक विभाजन एक हद से ज्यादा उग्र नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति में लोकतंत्र मजबूत होता है।

RBSE Class 10 Social Science लोकतंत्र और विविधता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारकों की चर्चा करें।
अथवा
भारत में सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन कारकों पर निर्भर करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारक निम्नलिखित हैं-
(1) लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना-यदि लोग स्वयं को सबसे विशिष्ट और अलग मानने लगते हैं तो उनके लिए दूसरों के साथ तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है, जैसे-उत्तरी आयरलैण्ड में। लेकिन अगर लोग अपनी बहुस्तरीय पहचान के प्रति सचेत हैं और उन्हें राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा या सहयोगी मानते हैं, तब कोई समस्या नहीं होती। जैसे-बेल्जियम के अधिकतर लोग खुद को क्रमशः बेल्जियाई मानते हैं।

(2) राजनैतिक दलों की भूमिका-यदि राजनैतिक दल तथा नेता संविधान के दायरे में आने वाली और दूसरे समुदायों के हितों को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को उठाते हैं तो उन्हें मान लेना आसान होता है, वहीं संविधान के दायरे से बाहर की और दूसरे समुदायों के हितों को हानि पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना असंभव होता है।

(3) सरकार का रुख-यदि सरकार अल्पसंख्यक समुदाय की उचित माँगों को पूरा करने की ईमानदारी से कोशिश करती हो तो सामाजिक विभाजन देश के लिए खतरा नहीं बनते। इसके विपरीत यदि सरकार राष्ट्रीय एकता तथा हित के नाम पर अल्पसंख्यकों की मांगों को दबाना शुरू कर दे, तो उसके भयानक परिणाम हो सकते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?
उत्तर:
जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरे सामाजिक अन्तरों के साथ एकाकार हो जाते हैं तो यह एकाकार अन्तर सामाजिक विभाजन का रूप ले लेते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में गोरे लोगों और काले लोगों में एक अन्तर प्रजाति का है कि वे गोरी तथा काली नस्ल से संबंध रखते हैं। यह एक सामाजिक अन्तर है। परन्तु जब इसके साथ गरीबी और अमीरी का आर्थिक अन्तर भी इस रूप में एकाकार हो जाता है कि काले लोग निर्धन तथा बेघर हैं और गोरे लोग समृद्धिशाली हैं तो यह सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है। इससे दोनों समुदायों में एक भावना आती है कि वे अलग-अलग हैं।

प्रश्न 3.
सामाजिक विभाजन किस तरह से राजनीति को प्रभावित करते हैं? दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक विभाजन राजनीति को निम्न प्रकार से प्रभावित करते हैं-
(1) राजनीति और सामाजिक विभाजनों का मेल बहुत खतरनाक और विस्फोटक-लोकतन्त्र में विभिन्न राजनीतिक दलों में आपसी प्रतिद्वन्द्विता पाई जाती है। इससे सामाजिक विभाजनों पर आधारित राजनीति को बढ़ावा मिलने के पूरे अवसर होते हैं। अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों के हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखण्डन की तरफ जा सकता है, जैसा कि यूगोस्लाविया में हुआ।

(2) विभिन्न हितों की अभिव्यक्ति सामाजिक विभाजन का प्रत्येक रूप देश के विभाजन का कारण नहीं होता। यह विभिन्न समूहों व वर्गों के हितों की अभिव्यक्ति का साधन भी बनता है। चुनावों में राजनैतिक दल इन विभाजनों के आधार पर वोट माँगते हैं। यह अहिंसक होना चाहिए। अहिंसक होने पर यह मत अभिव्यक्ति का आधार बनता है। बेल्जियम इसका प्रमुख उदाहरण है।

प्रश्न 4.
………..(1)……….. सामाजिक अंतर गहरे सामाजिक विभाजन और तनावों की स्थिति पैदा करते हैं। ………( 2 )……. सामाजिक अन्तर सामान्य तौर पर टकराव की स्थिति तक नहीं जाते।
उत्तर:
(1) कुछ
(2) सभी।

प्रश्न 5.
सामाजिक विभाजनों को सँभालने के संदर्भ में इनमें से कौनसा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?
(क) लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया राजनीति पर भी पड़ती है।
(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें जाहिर करना संभव है।
(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है।
(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।
उत्तर:
सामाजिक विभाजनों को संभालने के संदर्भ में उपर्युक्त में से ‘(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर समाज को विखंडन की ओर ले जाता है।’ बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित तीन बयानों पर विचार करें :
(अ) जहाँ सामाजिक अंतर एक-दूसरे से टकराते हैं वहाँ सामाजिक विभाजन होता है।
(ब) यह संभव है कि एक व्यक्ति की कई पहचान हों।
(स) सिर्फ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।
इन बयानों में से कौन-कौन से बयान सही हैं?
(क) अ, ब और स (ख) अ और ब (ग) ब और स (घ) सिर्फ स।
उत्तर:
(ख) अ और ब।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित बयानों को तार्किक क्रम से लगाएँ और नीचे दिए गए कोड के आधार पर सही जवाब ढूँढ़ें।
(अ) सामाजिक विभाजन की सारी राजनीतिक अभिव्यक्तियाँ खतरनाक ही हों यह जरूरी नहीं है।
(ब) हर देश में किसी न किसी तरह के सामाजिक विभाजन रहते ही हैं।
(स) राजनीतिक दल सामाजिक विभाजनों के आधार पर राजनीतिक समर्थन जुटाने का प्रयास करते हैं।
(द) कुछ सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजनों का रूप ले सकते हैं।
(क) द, ब, स, अ (ख) द, ब, अ, स (ग) द, अ, स, ब (घ) अ, ब, स, द।
उत्तर:
(क) द, ब, स, अ।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में किस देश को धार्मिक और जातीय पहचान के आधार पर विखंडन का सामना करना पड़ा?
(क) बेल्जियम
(ख) भारत
(ग) यूगोस्लाविया
(घ) नीदरलैंड।
उत्तर:
(ग) यूगोस्लाविया।

प्रश्न 9.
मार्टिन लूथर किंग जूनियर के 1963 के प्रसिद्ध भाषण के निम्नलिखित अंश को पढ़ें। वे किस सामाजिक विभाजन की बात कर रहे हैं? उनकी उम्मीदें और आशंकाएँ क्या-क्या थीं? क्या आप उनके बयान और मैक्सिको ओलंपिक की उस घटना में कोई संबंध देखते हैं जिसका जिक्र इस अध्याय में था?
“मेरा एक सपना है कि मेरे चार नन्हें बच्चे एक दिन ऐसे मुल्क में रहेंगे जहाँ उन्हें चमड़ी के रंग के आधार पर नहीं, बल्कि उनके चरित्र के असल गुणों के आधार पर परखा जाएगा। स्वतंत्रता को उसके असली रूप में आने दीजिए। स्वतंत्रता तभी कैद से बाहर आ पाएगी जब यह हर बस्ती, हर गाँव तक पहुँचेगी, हर राज्य और हर शहर में होगी और हम उस दिन को ला पाएँगे जब ईश्वर की सारी संतानें-अश्वेत स्त्री-पुरुष, गोरे लोग, यहूदी तथा गैर-यहूदी, प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक-हाथ में हाथ डालेंगी और इस पुरानी नीग्रो प्रार्थना को गाएँगी-‘मिली आजादी, मिली आजादी! प्रभु बलिहारी, मिली आजादी!’ मेरा एक सपना है कि एक दिन यह देश उठ खड़ा होगा और अपने वास्तविक स्वभाव के अनुरूप कहेगा, “हम इस स्पष्ट सत्य को मानते हैं कि सभी लोग समान हैं।”
उत्तर:
(i) सन् 1963 में दिए गए अपने इस भाषण में मार्टिन लूथर किंग चमडी के आधार पर ‘काले’ और ‘गोरे’ के बीच सामाजिक विभाजन और दक्षिण अफ्रीका की सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली रंग-भेद की नीति की बात कर रहे हैं।

(ii) उनकी उम्मीदें और आशंकाएँ यह थी कि उन्होंने अपने चार छोटे बच्चों के लिए एक सपना देखा है जो उनके अनुसार एक ऐसे राज्य में रहेंगे जिसमें लोग, उन्हें उनके रंग के आधार पर नहीं बल्कि उन्हें उनके चरित्र के गुणों के आधार पर परखेंगे। वे उस दिन की कामना कर रहे हैं जब सभी व्यक्ति स्त्री-पुरुष, काले-गोरे, यहूदी-गैर-यहूदी, कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट-एक ही प्रकार के अधिकारों तथा स्वतंत्रता का प्रयोग कर पायेंगे।

(iii) अमेरिकी धावक टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस बिना जूते पहने पुरस्कार ग्रहण करने के अपने व्यवहार से विश्व के सामने यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि अमेरिकी अश्वेत लोग गरीब हैं और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। रजत पदक जीतने वाले आस्ट्रेलियाई धावक पीटर नॉर्मन एक श्वेत थे, परन्तु रंग-भेद की नीति के विरोधी थे, उसने पुरस्कार समारोह में अपनी जर्सी पर मानवाधिकारों का बिल्ला लगाकर इन दोनों अमेरिकन खिलाड़ियों के प्रति अपना समर्थन जताया। उनके फैसले ने अमेरिका में बढ़ते नागरिक अधिकार आंदोलन के प्रति विश्व का ध्यान आकर्षित किया। वे श्वेत तथा अश्वेत लोगों के लिए समान अधिकार तथा अवसरों के लिए लड़े।

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