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RBSE Class 11 Hindi व्याकरण विराम चिह्न

RBSE Class 11 Hindi व्याकरण विराम चिह्न

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi व्याकरण विराम चिह्न

विराम-चिह्न
परिभाषा-वाक्यों को पढ़ते या बोलते समय प्रत्येक वाक्य के अन्त में ठहरना पड़ता है, कभी-कभी वाक्य लम्बा होता है तो बीच में भी एक या अधिक स्थानों पर ठहरना पड़ता है (यद्यपि बीच में ठहरने का समय अपेक्षाकृत कम होता है)। वाक्य में ठहरने के इन स्थानों को विराम कहते हैं।
लिखते समय विरामों को सूचित करने के लिए जिन निश्चित चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वे विराम चिह्न कहलाते हैं।

महत्त्व- विराम चिह्न एक वाक्य को दूसरे वाक्य या वाक्यांश से अलग करता, है। एक वाक्य के भीतर भी एक कोटि के कई शब्दों या वाक्यांशों या उपवाक्यों को वह अलग करता है। विराम चिह्नों के प्रयोग से भाषा में स्पष्टता आती है और भाव को समझने में सुविधा रहती है।

कभी-कभी विराम चिह्न के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है तथा वाक्य का ठीक अर्थ समझना असम्भव हो जाता है। जैसे—उसे रोको मत जाने दो, इस वाक्य के दो सर्वथा विपरीत अर्थ हो सकते हैं।

  • उसे रोको, मत जाने दो।
  • उसे रोको मत, जाने दो।

इसमें विराम चिह्न से ही ज्ञात हो सकता है कि वास्तविक अर्थ क्या है।

विराम चिह्न के प्रकार-
हिन्दी में प्रचलित प्रमुख विराम चिह्न इस प्रकार हैं-

RBSE Class 11 Hindi व्याकरण विराम चिह्न 1

1. अल्प विराम
पढ़ते समय जिस स्थान पर थोड़ी देर के लिए रुकना पड़े, वहाँ लिखने में अल्प विराम का चिह्न (,) लगाया जाता है। इसका प्रयोग निम्न दशाओं में भी होता है
(क) वाक्य के भीतर एक ही प्रकार के शब्दों या वाक्यांशों को अलग करने में। जैसे

  1. शाकुन्तलम्, मेघदूत और रघुवंश कालिदास की कृतियाँ हैं।
  2. राजा और रंक, धनी और निर्धन, गरीब और अमीर, कोई भी मौत से नहीं बचता।

(ख) वाक्य के उपवाक्यों को अलग करने में। जैसे

  1. हवा चली, पानी बरसा और ओले गिरे।
  2. अब यहाँ मत ठहरो, घर जाओ, भोजन करो और काम पर जाओ।

(ग) दो उपवाक्यों के बीच में संयोजक का प्रयोग न किया जाने पर। जैसे

  1. यही न होता, लोग मुझे धिक्कार कर निकाल देते। (यहाँ होता के आगे ‘कि’ संयोजक छिपा हुआ है)
  2. जागेश्वर ने सोचा, अच्छा हुआ जो मैं नहीं गया।

(घ) वाक्य के मध्य में क्रियाविशेषण–उपवाक्य का विशेषण-उपवाक्य आने पर। जैसे–

  1. यह बात, यदि सच पूछो तो, मैं भूल ही गया था।
  2. इस नगर में, जहाँ मेरा कोई परिचित नहीं, मैं कैसे रहूँगा?

2. अर्द्ध विराम
जहाँ अल्प विराम की अपेक्षा कुछ अधिक देर तक ठहरना हो, वहाँ अर्द्ध विराम चिह्न (;) का प्रयोग किया जाता है। यह अर्द्ध विराम चिह्न निम्नलिखित अवस्थाओं में लगाया जाता है
(क) वाक्य के अपेक्षाकृत लम्बे उपवाक्यों को अलग करने में। जैसे– “मैंने वेदों का अध्ययन किया; श्रुतियों को गहन चिन्तन किया; उपनिषदों का मनन किया; परन्तु कामायनी’ जैसा आनन्द मुझे कहीं। नहीं मिला।”
(ख) वाक्य के ऐसे उपवाक्यों को अलग करने में जिनके भीतर अल्पविराम या अल्पविरामों का प्रयोग हुआ है। जैसे “प्रेमाश्रम में एक ओर ज्ञानशंकर, प्रेमशंकर, गायत्री, कमलानन्द आदि जमींदार पात्र हैं; दूसरी ओर मनोहर, बलराज, कादिर आदि किसान पात्र

3. पूर्ण विराम
वाक्य के पूर्ण हो जाने पर जो विराम लगाया जाता है, वह पूर्ण विराम कहलाता है। जैसे वह पढ़ता है। रमेश प्रतिदिन विद्यालय जाता है।

4. प्रश्नवाचक चिह्न
जिस वाक्य को पढ़ने से किसी प्रश्न की सूचना हो रही हो, उसके अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न लगाया जाता है। जैसे–

  • तुम कहाँ जा रहे हो?
  • धोबी आया या नहीं?

5. विस्मय या सम्बोधनसूचक चिह्न
विस्मय, हर्ष, आश्चर्य, विषाद, भय, करुणा आदि मनोभावों को प्रकट करने तथा किसी को सम्बोधित करने के लिए विस्मय या सम्बोधनसूचक चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे

  • अहो ! कैसा सुन्दर दृश्य है!
  • हाय ! अब मैं कहाँ जाऊँ!
  • हे मित्र ! अब घर चलो

6. उद्धरण चिह्न
जब किसी दूसरे की उक्ति को बिना किसी परिवर्तन के ज्यों-का-त्यों रखा जाता है, वहाँ इस चिह्न (” “) का प्रयोग होता है। इसके पूर्व अल्प विराम चिह्न लगाया जाता है। जैसे क-

  1. राणा ने कहा, “प्राणों को हथेली पर रखकर देश के गौरव की रक्षा करूंगा।”
  2. लोकमान्य तिलक ने घोषणा की थी कि, “स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।”

ख—(1) कवि के उपनाम, पुस्तक के नाम, पत्र-पत्रिका के नाम, लेख या कविता के शीर्षक के साथ भी इसका प्रयोग होता है। जैसेसूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’। सुभद्राकुमारी की ‘झाँसी की रानी कविता।

7. तुल्यतासूचक चिह्न
शब्दों का अर्थ प्रकट करने, व्याख्या करने अथवा समानता प्रकट करने के लिए तुल्यतासूचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे- छात्र + आवास = छात्रावास। दो + चार = छः।।

8. लोप चिह्न
जब लेखक उद्धरण देते समय कुछ छोड़कर लिखना चाहता है, अथवा अपने कथन को संकेत रूप में लिखकर वाक्य पूरा करता है, तब लोप चिह्न (…….. या xxx) का प्रयोग किया जाता है। जैसे

  1. “बाबूजी ……..” तभी झिझकता-सा स्वर सुनाई दिया।
  2. केवल एक ही वाक्य मन में बार-बार उठ रहा था “बहुत बुरा हो। रहा है। बहुत बुरी बात है। बहुत बुरा ……………….”
  3. कविता की पंक्तियों को छोड़ने के लिए लोप चिह्न लगाया जाता है।

जैसे-
नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है।।
x x x x x
बन्दी विविध विहंग शेष-फन सिंहासन है।”

9. निर्देशक चिह्न
जब कोई वाक्य या वाक्यांश किसी वाक्य के बीच में पड़कर भी स्वतन्त्र वाक्य बनता है अथवा किसी कथन की ओर संकेत किया जाता है, उस दशा में निर्देशक चिह्न (-) को प्रयोग किया जाता है।

(क) जब परस्पर सम्बद्ध या समान कोटि की कई एक वस्तुओं का निर्देश किया जाए (उनकी ओर इशारा किया जाए)
(1) काल तीन होते हैं

  • भूतकाल,
  • वर्तमानकाल,
  • भविष्यत्काल।

(2) ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद-ये चार वेद हैं।
(ख) कथोपकथन में नाम के आगे, जैसे गोविन्द तुम कहाँ जा रहे हो?
(ग) किसी अवतरण के अन्त में। जैसे मैं अभी आया ही हूँ-आते ही राम ने कहा।
(घ) जब वाक्य के भीतर कोई वाक्य लाया जाए। जैसे– महामना जवाहरलाल ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे–भारत की महान् विभूति थे।

10. विवरण चिह्न किसी विषय को समझाने या कथन को स्पष्ट करने के लिए विवरण चिह्न (:-) का प्रयोग वाक्य के अन्त में प्रायः किया जाता है। जैसे विकारी शब्दों में विकार उत्पन्न होने के कारण हैं। उनके रूप का परिवर्तन होना।

11. कोष्ठक चिह्न. किसी पद का अर्थ प्रकट करने अथवा वाक्यांश को पृथक् करने के लिए कोष्ठक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे

  1. साहित्य साधना का लक्ष्य प्रसिद्ध त्रेत (सत्यं, शिवं, सुन्दरम्) होना चाहिए।
  2. ज्योतिषी—(हाथ की रेखाएँ देखकर) बेटा तुम पर राहु की दशा है।

12. लाघव चिह्न
जो शब्द पर्याप्त प्रसिद्ध हो जाते हैं अथवा जिन्हें बार-बार लिखने की आवश्यकता पड़ती है, उनका पहला अक्षर लिखकर लाघव चिह्न (०, ०) लगा देते हैं। जैसे–

  1. सम्वत् = सं०
  2. मास्टर ऑफ आर्ट्स = एम०ए०
  3. दिनांक = दि०
  4. मैम्बर ऑफ लैजिस्लेटिव असेम्बली = एम०एल०ए०

13. योजक चिह्न
दो शब्दों अथवा शब्द खण्डों को जोड़ने के लिए योजक चिह्न (-) का प्रयोग किया जाता है। जैसे- राज-द्वार, माता-पिता, पाप-पुण्य, सुख-दुःख।

14. विस्मरण चिह्न
लिखते समय जब कुछ भूल जाते हैं तो भूले हुए अंश को विस्मरण चिह्न लगाकर लिख दिया जाता है। इसे हंसपद चिह्न भी कहते हैं। जैसे—

आज्ञा
(1) श्रीराम ने पिता की , मानकर वन में जाना स्वीकार किया।
प्रातः।
(2) वह प्रतिदिन , व्यायाम करने जाता है।

15. संकेत चिह्न
लिखते समय कुछ शब्द ही भूल जायें, तो विस्मरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है, परन्तु बहुत बड़ा अंश या कोई पंक्ति या वाक्य छूट जाये, अथवा वहाँ पर कुछ और जोड़ना हो, तो संकेत चिह्न (*, *, *) लगाकर लिख दिया जाता है। इस चिह्न का कोई निश्चित आकार-प्रकार नहीं है।

अभ्यास
प्रश्न वस्तुनिष्ठ

प्रश्न 1.
विवरण चिह्न है :
(क) (:-)
(ख) (-)
(ग) (-)
(घ) (xxx)
उत्तर:
(क) (:-)

प्रश्न 2.
निर्देशक चिह्न का सही प्रयोग किसमें हुआ है?
(क) जैसे-एक किलो।
(ख) जैसे, एक किलो।
(ग) जैसेः–एक मील।
(घ) जैसे = यथा।
उत्तर:
(क) जैसे-एक किलो।

प्रश्न 3.
विस्मयबोधक चिह्न का सही प्रयोग किसमें हुआ है?
(क) क्यों? कल कहाँ थे?
(ख) क्योंकि वह सुबह चले गया।
(ग) अहा! कैसा सुन्दर बालक है!
(घ) मित्र-शत्रु का अन्तर समझो।
उत्तर:
(ग) अहा! कैसा सुन्दर बालक है!

अतिलघूत्तरात्मक एवं लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नीचे लिखे विरामों के चिह्न उनके सामने कोष्ठक में लिखिए
(क) अर्द्ध विराम
(ख) लोप चिह्न
(ग) योजक चिह्न
(घ) तुल्यतासूचक चिह्न
(ङ) अल्प विराम
उत्तर:
(क) (;)
(ख) (xxx)
(ग) (-)
(घ) (=)
(ङ) (,)।

प्रश्न 2.
निम्न वाक्यों में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग करके पुनः लिखिए-
(क) अरे सुख दुःख से क्यों घबराते हो।
(ख) स्वदेश प्रेम की व्यञ्जना देश सेवा से होती है।
(ग) काल तीन होते हैं भूतकाल वर्तमानकाल भविष्यत्काल
(घ) गोस्वामी तुलसी की कथन है परहित सरिस धर्म नहिं भाई
उत्तर:
(क) अरे! सुख-दु:ख में क्यों घबराते हो?
(ख) स्वदेश-प्रेम की व्यञ्जना देश-सेवा से होती है।
(ग) काल तीन होते हैं-भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यत्काल।
(घ) गोस्वामी तुलसी का कथन है:–“परहित सरिस धर्म नहिं भाई”।

प्रश्न 3.
निम्न वाक्यों में उचित विराम-चिह्नों का प्रयोग कीजिए-
(क) अरे आप क्यों नाराज होते हैं मैं तो आपका भला ही चाहता हूँ पर क्या करूँ मुझे अवसर ही नहीं मिला।
(ख) गाँधीज़ी ने अंग्रेजों की भेद नीति का विरोध किया असहयोग आन्दोलन चलाया अहिंसा का मन्त्र देकर देश सेवा का नया पथ प्रशस्त किया
उत्तर:
(क) अरे! आप क्यों नाराज होते हैं? मैं तो आपका भली ही चाहती हूँ, पर क्या करूं? मुझे अवसर ही नहीं मिला।
(ख) गाँधीजी ने अंग्रेजों की भेद-नीति का विरोध किया; असहयोगआन्दोलन चलाया; अहिंसा का मन्त्र देकर देश-सेवा का नया पथ प्रशस्त किया।

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