RBSE Class 7 Hindi व्याकरण मानक हिंदी का स्वरूप
RBSE Class 7 Hindi व्याकरण मानक हिंदी का स्वरूप
Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi व्याकरण मानक हिंदी का स्वरूप
संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश की परंपरा में विकसित हुई हिंदी एक प्राचीन भारतीय भाषा है। हिंदी को लेखन देवनागरी लिपि आदि भाषाओं में होता है। हिंदी में तत्सम, तद्भव, लोक भाषा, प्रांतीय भाषा, विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग होता है। अत: हिंदी के लेखन में विविधता है। उसके लेखन में एकरूपता और समानता लाने के उद्देश्य से किये गये प्रयासों के फलस्वरूप मानक हिंदी को स्वरूप प्रकट हुआ है।
देवनागरी लिपि में जो वर्ण हैं, उनके दो-दो रूप हैं। स्वरों के लेखन, व्यंजनों पर उनकी मात्राओं के प्रयोग, संयुक्ताक्षरों के लेखन इत्यादि के दोहरेपन को देखकर उनके एक ही सर्वमान्य स्वरूप की आवश्यकता बहुत समय से अनुभव की जा रही थी। वर्तनी की इस कठिनाई के समाधान हेतु भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ‘वर्तनी समिति ने 1962 में कुछ उपयोगी निर्णय लिये थे और हिंदी का मानक स्वरूप निश्चित किया था।
देवनागरी लिपि का मानक स्वरूप
स्वर- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ स्वरों की मात्राएँ

नोट-‘अ’ की कोई मात्रा नहीं होती। यह व्यंजन में सम्मिलित होता है।
अनुस्वार-अं ( )
विसर्ग- अ: (ा:)
व्यंजन
क वर्ग – क ख ग घ ङ
स्पर्श
च वर्ग – च छ ज झ ञ
ट वर्ग – ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़
त वर्ग – त थ द ध न
प वर्ग – प फ ब भ म
अन्त:स्थ य र ल व
ऊष्म – श ष स ह
संयुक्त व्यंजन – क्ष त्र ज्ञ श्र।
आगत व्रर्ण – ओं ज़ फ क ख ग
अंक – ० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ६
किसी भाषा का विकास और सुधार एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह कार्य सरकार के प्रयासों से नहीं हो सकता। किन्तु मानक हिंदी के स्वरूप के निर्धारण हेतु हुए इन प्रयासों को समझने की आवश्यकता है।
स्पर्श व्यंजनों के प्रत्येक वर्ग के प्रथम चार वर्षों में अनुनासिकता प्रकट करने के लिए उसी वर्ग के पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (बिंदु) का प्रयोग किया जाय। जैसे-गंगा, चंचल, वंदना, अंत, दंड इत्यादि।
नहीं, मैं, में, है इत्यादि में शिरोरेखा के ऊपर लगी मात्राओं के साथ बिंदु का प्रयोग हो। शेष आवश्यक स्थानों पर उच्चारण के अनुरूप चंद्रबिंदु का प्रयोग किया जाये। जैसे-हँसी, अँगार इत्यादि।
हिंदी में अपनाये जा चुके अरबी-फारसी भाषाओं के शब्दों के नीचे नुक्ता (.) तभी लगाया जाय जबकि उनका विदेशी रूप स्पष्ट करना आवश्यक हो अन्यथा नहीं। जैसेकागज़ ज़रूरी आदि को कागज, जरूरी ही लिखा जाये।
अंग्रेजी भाषा के शब्द-
अंग्रेजी भाषा के उन शब्दों के ऊपर अर्ध चंद्र का प्रयोग किया जाय जिनके उच्चारण में ‘आ’ और ‘ओ’ की मिली-जुली ध्वनि व्यक्त हो। जैसेडॉक्टर, हॉस्पीटल, हॉस्टल इत्यादि।
संस्कृत का हल चिह्न-
संस्कृत के तथा तत्सम शब्दों की वर्तनी में हल् चिहन लगाया जाय किंतु जो शब्द हिंदी में बिना हल चिह्न के स्वीकार हो चुके हैं उनके साथ इसका प्रयोग न किया जाय। जैसे- विद्वान, श्रीमान, महान इत्यादि।
विसर्ग का प्रयोग-
संस्कृत के तथा तत्सम रूप में प्रयुक्त शब्दों के साथ विसर्ग का प्रयोग किया जाय, जैसे- अतः, स्वतः किंतु उस शब्द के तद्भव रूप के साथ विसर्ग का प्रयोग न किया जाय। जैसे-दु:ख को दुख लिखा जाये।
योजक चिह्न-
द्वंद्व समास के पदों के बीच में योजक- चिह्न लगाया जाय। जैसे-माता-पिता, शिव-पार्वती। ‘सा’, जैसा’ समानता सूचक शब्दों से पहले योजक चिह्न लगाया जाय। जैसे- राम-जैसा, मोहन-सा, उर्वशी-सी।
विभक्ति चिह्न-
- विभक्ति चिह्न संज्ञा शब्दों से अलग लिखें। जैसे- राम ने, हरि को, बंदूक से।
- किंतु सर्वनाम शब्दों के साथ जोड़कर लिखे जायें जैसेतुमसे, उसने, हमको, आपको इत्यादि।
- सर्वनाम शब्द और विभक्ति के बीच ‘ही’ ‘तक’ अव्यय आयें तो विभक्ति चिहन अलग लिखा जाय। जैसे-उस तक को नहीं छोड़ा। आप ही के लिए लाया हूँ।
- सर्वनाम के दो विभक्ति चिह्न हों तो एक उससे जोड़कर तथा दूसरा उससे अलग लिखा जाय। जैसे-तुम में से, उसके लिए।
क्रिया तथा प्रत्यय-
यदि क्रिया के साथ पूर्व कालिक प्रत्यय ‘कर’ आये तो उसको मिलाकर लिखना चाहिये। जैसे-खाकर, सोकर, जागकर, बैठकर इत्यादि।
‘ऐं’ ‘और औ’ स्वर-
‘ऐ’, और ‘औ’ स्वरों के प्रयोग द्वारा दो ध्वनियाँ व्यक्त होती हैं जैसे-
- है (ऐ) तथा और (औ) तथा
- गवैया (वै-वई), कौआ (को-क इ)। इन दोनों ध्वनियों को प्रगट करने के लिए इनके मात्रा-चिह्न तथा का प्रयोग होना चाहिये। इन शब्दों को ‘गवय्या’ कव्वा लिखना उचित नहीं है।
संयुक्त वर्ण-
- संयुक्त वर्णो को लिखने की दो रीतियाँ प्रचलित हैं। जैसे-
- चक्की, चक्की
- लल्ला, लल्ला इनको चक्की अथवा चक्की लिखना ठीक है।
- ‘द’ के साथ ‘य’ का प्रयोग विद्यालय, विद्यार्थी को। विद्यालय, विद्यार्थी लिखना ठीक है। विध्यालय और विध्यार्थी लिखना भी शुद्ध नहीं है।
- द् के साथ प, व का प्रयोग-द्वापर’ शब्द को द्वापर, द्वारका को द्वारका, द्वन्द्व को द्वंद्व लिखना ठीक है।
ये और एका प्रयोग-
‘ये’ और ‘ए’ के प्रयोग में पर्याप्त भ्रम होता है। वर्तनी समिति ‘ए’ के प्रयोग पर बल देती है। इनके प्रयोग के लिए इन बातों पर ध्यान दिया जा सकती है
- जिस क्रिया के भूतकाल के पुल्लिंग एकवचन के अंत में ‘या’ आता है उसका बहुवचन ‘ये’ होगा। जैसे-गया गये। आया-आये। (आए, गए नहीं).
- जिस क्रिया के भूतकाल के पुल्लिंग एकवचन के अंत में ‘आ’ आता है उसके पुल्लिंग बहुवचन में ‘ए’ आयेगा। जैसे-हुआ-हुए। (हुवे हुये-नहीं)
- पी, दे, कर, लो से विधिवाचक (चाहिए वाचक) क्रिया बनाने के लिए इनमें ‘इए’ प्रत्यय जोड़ा जायेगा। जैसे पीजिए, दीजिए, कीजिए, लीजिए।
- इसलिये, चाहिये, राम के लिये इत्यादि में ‘ये’ नहीं ‘ए’ का प्रयोग होगा। जैसे- इसलिए, चाहिए, के लिए।
- विशेषण के अंत के अनुसार ‘ये’ अथवा ‘ए’ का प्रयोग होगा। जैसे नया लड़का-नये लड़के। जाता हुआ महीनाजाते हुए महीने।।
पाठ्य पुस्तक से सम्बन्धित हिंदी के मानक रूप
परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वर्तनी की दृष्टि से शुद्ध शब्द है-
(क) पक्का
(ख) पक्का
(ग) पकका
(घ) पक्का
प्रश्न 2.
शुद्ध शब्द है
(क) हंसना
(ख) हँसना
(ग) हसना
(घ) हसन्ना।
प्रश्न 3.
शुद्ध लेखन नहीं है।
(क) खाकर
(ख) पढ़कर
(ग) सो कर
(घ) उठकर।
प्रश्न 4.
द्वारका’ शब्द का मानक रूप है
(क) द्वारिका
(ख) द्वरिका
(ग) दवारका
(घ) द्वारका।
प्रश्न 5.
शुद्ध विशेषण रूप है।
(क) पढ़ते हुये बच्चे
(ख) लिखते हुये लेखक
(ग) नये खिलाड़ी
(घ) जाते हुये यात्री।
उत्तर:
1. (क)
2. (ख)
3. (ग)
4. (घ)
5. (ग)
अति लघूत्तात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘मानक हिंदी का क्या तात्पर्य?
उत्तर:
हिंदी का वह स्वरूप जो सबको स्वीकार हो मानक हिंदी कहलाता है।
प्रश्न 2.
हिंदी का मानक स्वरूप निश्चित करने की आवश्यकता क्यों हुई?
उत्तर:
हिंदी लिखने के भिन्न-भिन्न तरीके होने के कारण उत्पन्न हुए भ्रमं को दूर करने के लिए हिंदी का मानक स्वरूप निश्चित करना आवश्यक हो गया।
प्रश्न 3.
‘द्वन्द्व’ शब्द का मानक स्वरूप लिखिए।
उत्तर:
द्वन्द्व’ शब्द का मानक स्वरूप द्वंद्व है।
प्रश्न 4.
किसी स्पर्श व्यंजन से पूर्व की अनुनासिकता को प्रगट करने के लिए बिंदु के प्रयोग की संस्तुति क्यों की गई है?
उत्तर:
किसी स्पर्श व्यंजन से पूर्व अनुनासिकता को प्रगट करने के लिए उस व्यंजन-वर्ग का पाँचवाँ वर्ण प्रयुक्त होता है। इससे लेखन में पाँच प्रकार के भिन्न-भिन्न चिह्नों का प्रयोग होता है। अतः समानता की दृष्टि से बिंदु के प्रयोग की संस्तुति की गई।