RB 9 Hindi

RBSE Class 9 Hindi Rachana निबंध-लेखन

RBSE Class 9 Hindi Rachana निबंध-लेखन

RBSE Class 9 Hindi Rachana निबंध-लेखन

‘निबन्ध’ गद्य – साहित्य की प्रमुख विधा है। निबन्ध को ‘गद्य की कसौटी’ कहा गया है। अंग्रेजी में निबन्ध को एस्से (Essay) कहते हैं। नि + बन्ध = निबन्ध का शाब्दिक अर्थ है-अच्छी प्रकार से बँधा हुआ अर्थात् वह गद्य-रचना जिसमें सीमित आकार के भीतर निजीपन, स्वच्छता, सौष्ठव, सजीवता और आवश्यक संगति से किसी विषय का वर्णन किया जाता है। शब्दों का चयन, वाक्यों की संरचना, अनुच्छेद का निर्माण, विचार एवं कल्पना की एकसूत्रता, भावों की क्रमबद्धता आदि सब कुछ निबंध का शरीर निर्मित करते हैं। भाषा की सरलता, स्पष्टता, कसावट और विषयानुकूलता निबंध के शरीर को सजाने में अपना योगदान देती हैं।

अच्छे निबन्ध की विशेषताएँ –

  1. निबंध में विषय का वर्णन आवश्यक संगति तथा सम्बद्धता से किया गया हो।
  2. निबंध में मौलिकता, सरसता, स्पष्टता और सजीवता होनी चाहिए।
  3. निबंध की भाषा सरल, प्रभावशाली तथा व्याकरणसम्मत होनी चाहिए।
  4. निबंध संकेत बिन्दुओं के आधार पर अनुच्छेदों में लिखा जाना चाहिए।
  5. निबंध लेखन से पूर्व रूपरेखा तय कर संकेत-बिन्दु बना लेने चाहिए।
  6. निबंध निश्चित शब्द-सीमा में ही लिखा जाना चाहिए।
  7. निबंध-लेखन में उद्धरणों, सूक्तियों, मुहावरों, लोकोक्तियों एवं काव्य-पंक्तियों का आवश्यकतानुसार यथास्थान प्रयोग किया जाना चाहिए।

निबंध के अंग – निबंध को लिखते समय इसी विषय-वस्तु को सामान्य रूप से निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है –

1. भूमिका, प्रस्तावना या आरम्भ-निबंध का प्रारम्भ जितना आकर्षक और प्रभावशाली होगा निबंध उतना ही अच्छा माना जाता है। निबंध का प्रारम्भ किसी सूक्ति, काव्य-पंक्ति और विषय की प्रकृति को ध्यान में रखकर भूमिका के आधार पर किया जाना चाहिए।

2. मध्य भाग या प्रसार-इस भाग में निबंध के विषय को स्पष्ट किया जाता है। लेखक को भूमिका के आधार पर अपने विचारों और तथ्यों को रोचक ढंग से अनुच्छेदों में बाँट कर प्रस्तुत करते हुए चलना चाहिए या उप शीर्षकों में विभक्त कर मूल विषय-वस्तु का ही विवेचन करते हुए चलना चाहिए। ध्यान रहे सभी उप-शीर्षक निबंध विकास की दृष्टि से एक-दूसरे से जुड़े हों और विषय से सम्बद्ध हों।

3. उपसंहार या अंत-प्रारम्भ की भाँति निबंध का अन्त भी अत्यन्त प्रभावशाली होना चाहिए। अंत अर्थात् उपसंहार एक प्रकार से सारे निबंध का निचोड़ होता है। इसमें अपनी सम्मति भी दी जा सकती है।

राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्यात्मक निबन्ध

1. मेक इन इंडिया
अथवा
स्वदेशी उद्योग

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. मेक इन इंडिया प्रारम्भ एवं उद्देश्य
  3. स्वदेशी उद्योग
  4. योजना के लाभ’
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-किसी भी देश की समृद्धि एवं विकास का मुख्य आधार उसकी आर्थिक एवं उत्पादन क्षमता होती है। वर्तमान में आर्थिक सम्पन्नता की दृष्टि से भारत विश्व के प्रगतिशील देशों में अग्रणी बनता जा रहा है। इसके लिए . स्वदेशी की भावना निरन्तर प्रत्येक भारतीय के हृदय में विकसित होना आवश्यक है।

2. मेक इन इंडिया प्रारम्भ एवं उद्देश्य-भारत को सुख-सुविधा सम्पन्न और समृद्ध बनाने, अर्थव्यवस्था के विकास की गति बढ़ाने, औद्योगीकरण और उद्यमिता को बढ़ावा देने और रोजगार का सृजन करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 2014 में वस्तुओं और सेवाओं को देश में ही बनाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ (स्वदेशी उद्योग) नीति की शुरुआत की थी। भारत सरकार का प्रयास है कि विदेशों में रहने वाले सम्पन्न भारतीय तथा अन्य उद्योगपति भारत में आकर अपनी पूँजी से उद्योग लगायें। वे अपने उत्पादन को भारतीय बाजार तथा विदेशी बाजारों में बेचकर मुनाफा कमा सकेंगे तथा भारत को भी इससे लाभ होगा।

3. स्वदेशी उद्योग-मेक इन इंडिया का ही स्वरूप स्वदेशी उद्योग है। वर्तमान में कोरोना महामारी के बाद तो इसके स्वरूप को और अधिक विस्तृत करते हुए इसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ नाम दिया गया है, जिसका प्रमुख लक्ष्य अपने देश को पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाते हुए विदेशी पूँजी को भी भारत में लाना तथा रोजगार के अवसर विकसित करना है।

4. योजना के लाभ-‘मेक इन इंडिया’ अथवा ‘स्वदेशी उद्योग’ की योजना के द्वारा सरकार विभिन्न देशों की कम्पनियों को भारत में कर छूट देकर अपना उद्योग भारत में ही लगाने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे भारत का आयात बिल कम हो सके और देश में रोजगार का सृजन हो सके। इस योजना से निर्यात और विनिर्माण में वृद्धि होगी जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार होगा, साथ ही भारत में रोजगार सृजन भी होगा।

5. उपसंहार-आज भारत ‘स्वदेशी उद्योग’ अथवा ‘मेक इन इंडिया’ नीति के कारण रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक, हार्डवेयर आदि क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनता हुआ विश्व का एक सम्पन्न और समृद्ध राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है।

2. आत्मनिर्भर भारत

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. आत्मनिर्भर भारत
  3. आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तम्भ
  4. आत्मनिर्भरता के उपाय एवं लाभ
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-देश को समृद्ध व सुखी बनाने के लिए तथा कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए भारत के प्रधानमन्त्री ने 12 मई, 2020 को ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान शुरू करने की घोषणा की।

2. आत्मनिर्भर भारत-आत्मनिर्भर भारत का तात्पर्य स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ विदेशी निवेश को भी बढ़ावा देना है, जिससे यहाँ रोजगार के अधिकाधिक अवसर उपलब्ध हो सकें एवं भारत की आर्थिक समृद्धि के साथ ही विश्व का भी कल्याण हो सके।

3. आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तम्भ-प्रधानमन्त्री महोदय के अनुसार आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तम्भ इस प्रकार हैं –

  1. अर्थव्यवस्था, जो वृद्धिशील परिवर्तन नहीं, बल्कि लम्बी छलाँग सुनिश्चित करती है।
  2. बुनियादी ढाँचा, जिसे भारत की पहचान बन जाना चाहिए।
  3. प्रणाली (सिस्टम), जो 21 वीं सदी की प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्थाओं पर आधारित हो।
  4. उत्साहशील आबादी, जो आत्मनिर्भर भारत के लिए हमारी ऊर्जा का स्रोत है, तथा
  5. माँग, जिसके तहत हमारी माँग एवं आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) की ताकत का उपयोग पूरी क्षमता से किया जाना चाहिए।

4. आत्मनिर्भरता के उपाय एवं लाभ-आत्मनिर्भरता के लिए भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों पर फोकस करते हुए कुंटीर उद्योग, एमएसएमई, मजदूरों, मध्यम वर्ग तथा उद्योगों सहित विभिन्न वर्गों की जरूरतों को पूरा करना आवश्यक है। इसके लिए आर्थिक सहायता के रूप में भारत सरकार ने विभिन्न चरणों में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है, जो विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता और गुणवत्ता बढ़ाने, गरीबों, मजदूरों, प्रवासियों इत्यादि को सशक्त बनाने में सहायक होगा।

आत्मनिर्भरता भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेगी। इसके लिए लोकल (स्थानीय या विदेशी) उत्पादों का गर्व से प्रचार करने और इन लोकल उत्पादों को वैश्विक बनाने में मदद करने की आवश्यकता है। इन उपायों को करने से भारत न केवल आर्थिक दृष्टि से सशक्त होगा, अपितु विश्व में विकासशील देशों में अग्रणी बन सकेगा।

5. उपसंहार- आत्मनिर्भरता ही सभी तरह के संकटों का सामना करने का सशक्त हथियार है. जिसके बल से हम आर्थिक संकट रूपी युद्ध को जीत सकते हैं। अतः विश्व में भारत की महत्ता एवं सम्पन्नता को बनाये रखने के लिए आत्मनिर्भर भारत की अति आवश्यकता है।

3. कोरोना वायरस-21वीं सदी की महामारी
अथवा
कोरोना वायरस महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. कोरोना वायरस-लक्षण एवं बचाव के तरीके
  3. कोरोना वायरस महामारी का सामाजिक प्रभाव
  4. आर्थिक प्रभाव।

1. प्रस्तावना-हाल ही में कोरोना वायरस के रूप में जो महामारी फैल रही है, उसने सम्पूर्ण विश्व को हिलाकर रख दिया है। इस महामारी के कारण विश्व के समृद्ध से समृद्ध देशों की स्थिति दयनीय हो गई है। वर्ष 2019 के अन्त में चीन के वुहान शहर में पहली बार प्रकाश में आए कोरोना वायरस संक्रमण ने विश्व के लगभग सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने घातक कोरोना वायरस का आधिकारिक नाम कोविड-19 रखा है।

2. कोरोना वायरस-लक्षण एवं बचाव के तरीके लक्षण-इसके लक्षण फ्लू से मिलते-जुलते हैं, संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना, सिर में तेज दर्द, सूखी खांसी, गले में खराश व दर्द आदि समस्या उत्पन्न होती है।

बचाव के तरीके-स्वास्थ्य मन्त्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनके मुताबिक हाथों को बार-बार साबुन से धोना चाहिए, इसके लिए अल्कोहल आधारित हैंड वॉश का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। खाँसते व छींकते समय अपने मुँह और नाक को टिश/रूमाल से ढककर रखें।

अपने हाथों से बार-बार आँख, नाक या मुँह न छुएँ। भीड़-भाड़ वाले स्थान पर न जाएँ। बाहर जाते समय या किसी से बात करते समय मास्क का प्रयोग करें। संक्रमण के कोई भी लक्षण दिखलाई देने, संक्रमित व्यक्ति या स्थान से सम्पर्क होने पर तुरन्त स्वास्थ्य की जाँच करायें तथा कुछ दिनों तक स्वयं को होम आइसोलेशन में रखें।

3. कोरोना वायरस महामारी का सामाजिक प्रभाव-इस वैश्विक महामारी से बचाव, रोकथाम, उपचार एवं पुनर्वास हेतु विश्व के लगभग सभी देशों में लॉक डाउन, आइसोलेशन, क्वरेंनटाइन की नीति अपनाई गई, संक्रमण के भय से लगभग समस्त सामाजिक गतिविधियाँ, उत्सव आदि बन्द हो गए। लोगों के रोजगार एवं आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इससे खाद्य असुरक्षा में वृद्धि, उत्पादन में कमी आदि से सामाजिक जीवन अत्यधिक प्रभावित हुआ है।

4. आर्थिक प्रभाव-कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए सभी देशों, राज्यों द्वारा लगाए गए लॉकडाउन, संक्रमित व्यक्तियों के उपचार, सम्भाव्य रोगियों/कैरियर्स के आइसोलेशन, जाँच प्रक्रिया, दवा, क्वरेनटाइन की व्यवस्था; वंचित एवं अरक्षित समूहों को राहत पहुँचाने आदि के कारण सार्वजनिक व्यय में भारी वृद्धि तथा कर राजस्व में कमी होने से, व्यापार, उद्योग आदि बन्द हो जाने से सभी क्षेत्रों में आर्थिक मन्दी दिखलाई देती है। वस्तुतः इस महामारी ने सारे . विश्व में वैश्विक अर्थव्यवस्था को तोड़कर रख दिया है।

5. उपसंहार-कोरोना वायरस जो 21वीं सदी की भयंकर महामारी है, इसने सम्पूर्ण विश्व को घेर लिया है। इस . महामारी से स्वयं को बचाते हुए प्रत्येक नागरिक दूसरों का भी हित चिन्तन करे तथा ‘जान भी है जहान भी है’ इस कथन को सिद्ध करते हुए देश व समाज की समृद्धि में सभी को योगदान देना चाहिए।

4. समाज में नारी का स्थान
अथवा
भारतीय नारी तब और अब
अथवा
राष्ट्र के उत्थान में नारी की भूमिका

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. प्राचीन एवं मध्यकाल में नारी की स्थिति
  3. वर्तमान युग में नारी
  4. स्वतन्त्र भारत में नारी की भूमिका
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-भारतीय संस्कृति की पावन परम्परा में नारी को सदैव सम्माननीय स्थान प्राप्त रहा है। नारी प्रेम, दया, त्याग व श्रद्धा की प्रतिमूर्ति है और ये आदर्श मानव-जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। किसी देश की अवनति अथवा उन्नति वहाँ के नारी समाज पर अवलम्बित होती है। जिस देश की नारी जागृत और शिक्षित होती . है, वही देश संसार में सबसे अधिक उन्नत माना जाता है।

2. प्राचीन एवं मध्यकाल में नारी की स्थिति-प्राचीन भारत में सर्वत्र नारी का देवी रूप पूज्य था। वैदिक-काल’ में नर-नारी के समान अधिकार थे। लेकिन उत्तर-वैदिक काल में नारी की सामाजिक स्थिति में गिरावट आयी। फिर मध्यकाल में पर्दा प्रथा, जौहर प्रथा, सती प्रथा आदि का जन्म हुआ। परिणामस्वरूप कुरीतियों, कुप्रथाओं और रूढ़ियों ने समाज में अपने पैर जमा लिए। जिससे नारी के लिए शिक्षा के दरवाजे बन्द हो गये।

3. वर्तमान युग में नारी-19वीं शताब्दी में स्त्री-शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ। शिक्षा-प्राप्ति के क्षेत्र में नारी आगे बढ़ी। वर्तमान में नारी दो रूपों में दिखाई देती है; एक अशिक्षित नारी जो शिक्षा के अभाव में अब भी सामाजिक कुरीतियों से ग्रस्त है और दूसरी शिक्षित नारी जो सशक्त होकर समाज तथा देश की उन्नति में अपना योगदान दे रही है।

4. स्वतन्त्र भारत में नारी की भूमिका-भारतीय नारी ने स्वतन्त्र भारत में जो प्रगति की है, उससे देश उन्नत होता जा रहा है। अब नारी पुरुष के समान राष्ट्रपति, मन्त्री, डॉक्टर, वकील, जज, शिक्षिका, प्रशासनिक अधिकारी आदि सभी पदों और सभी क्षेत्रों में कुशलता से काम कर रही हैं। सारे देश में नारी सशक्तीकरण के अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। समाज में व्याप्त कुरीतियों और अन्धविश्वासों के निवारण करने में नारी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

5. उपसंहार-हमारे देश में प्राचीन काल में नारी को अतीव पूज्य स्थान प्राप्त था, परन्तु मध्यकाल में वह पुरुष की दासी बनकर रह गई। स्वतन्त्र भारत में नारी पुनः अपने गौरव एवं आदर्शों की प्रतिष्ठा करने लग गई है। हमारे राष्ट्रीय उत्थान में नारी की भूमिका सर्वमान्य है।

5. राष्ट्र-निर्माण में युवकों का योगदान
अथवा
राष्ट्रीय उत्थान में युवा-वर्ग का योगदान
अथवा
राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भूमिका

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना-समाज की वर्तमान स्थिति
  2. युवा-पीढ़ी का वर्तमान रूप
  3. युवकों का दायित्व
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-युवक देश के कर्णधार होते हैं। देश और समाज का भविष्य उन्हीं पर निर्भर होता है। परन्तु आज हमारे देश की दशा अत्यन्त शोचनीय है। समाज में एकता, जागरूकता, राष्ट्रीय चेतना, कर्तव्य-बोध, नैतिकता आदि की कमी है। शिक्षा प्रणाली भी दोषपूर्ण है। राजनीतिक कुचक्र एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है। स्वार्थ भावना की वृद्धि, कर्त्तव्यबोध की कमी, कोरा दिखावा एवं अन्धविश्वास आदि समाज को जकड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में युवकों का दायित्व निश्चय ही बढ़ जाता है।

2. युवा पीढ़ी का वर्तमान रूप-आज की युवा पीढ़ी दिशाहीन है। इसलिए उसमें कुण्ठा, निराशा, तोड़-फोड़ की प्रवृत्ति, दायित्वहीनता आदि अधिक व्याप्त हैं। पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण करने के कारण उनके मन में भारतीय संस्कृति की परम्परागत मान्यताओं के प्रति रुचि नहीं है। अश्लील चलचित्र, अशिष्ट व्यवहार और फैशनपरस्ती के प्रति उनकी रुचि अधिक है। अधिकतर नवयुवक पढ़ाई में मन नहीं लगाते हैं, मेहनत से भागते हैं तथा सफेदपोश साहब बनने के सपने देखते हैं।

3. युवकों का दायित्व-अतः युवा पीढ़ी के जहाँ समाज के प्रति दायित्व हैं, वहीं अपने जीवन-निर्माण के प्रति भी उसे कुछ सावधानी बरतनी अपेक्षित है। पहले युवक-युवती स्वयं को सुधारें, स्वयं को शिक्षित करें, स्वयं जिम्मेदार नागरिक बनें और स्वयं को चरित्रवान् बनायें, तभी वे समाज की प्रगति में सहायक हो सकते हैं।

साथ ही समाज में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखना, समाज विरोधी कार्य की रोकथाम करना, उनका दायित्व है। धर्म व नीति की मर्यादाओं को बनाये रखना भी उनका कर्त्तव्य है। समाज में ऊँच-नीच की भावना का विरोध करना, अन्याय और अनीतियों का विरोध करना, सामाजिक सौहार्द्र बनाये रखना भी उनका कर्त्तव्य है। इसके साथ ही भौतिकता के प्रभाव से बचे रहना भी उनका कर्तव्य है।

4. उपसंहार-उक्त सभी पक्षों को व्यावहारिक रूप देकर ही युवा पीढ़ी समाज के प्रति अपने दायित्वों को पूरा कर सकती है। इसी दशा में समाज सुखमय बन सकता है। नव-युवक भारत की भावी आशाएँ हैं, उन्हें यथासम्भव समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिए।

6. प्लास्टिक थैली : पर्यावरण की दुश्मन
अथवा
प्लास्टिक थैली : क्षणिक लाभ-दीर्घकालीन हानि
अथवा
प्लास्टिक थैली को न, पर्यावरण को हाँ
अथवा
प्लास्टिक कैरी बैग्स : असाध्य रोगवर्धक

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. प्लास्टिक कचरे का प्रसार
  3. प्लास्टिक थैलियों से पर्यावरण प्रदूषण
  4. प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबन्ध
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मानव द्वारा निर्मित चीजों में प्लास्टिक थैली ही ऐसी है जो माउंट एवरेस्ट से लेकर सागर की तलहटी तक सब जगह बिखरी मिल जाती है। लगभग तीन दशक पहले किये गये इस आविष्कार ने ऐसा प्रभाव जमा दिया है कि आज प्रत्येक उत्पाद प्लास्टिक की थैलियों में मिलता है और घर आते-आते ये थैलियाँ कचरे में तब्दील होकर पर्यावरण को हानि पहुँचा रही हैं।

2. प्लास्टिक कचरे का प्रसार-प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल इतनी अधिक मात्रा में हो रहा है कि सारे विश्व में एक साल में दस खरब प्लास्टिक थैलियाँ काम में लेकर फेंक दी जाती हैं। अकेले जयपुर में रोजाना पैंतीस लाख लोग प्लास्टिक का कचरा बिखेरते हैं और सत्तर टन प्लास्टिक का कचरा सड़कों, नालियों एवं खुले वातावरण में फैलता है। केन्द्रीय पर्यावरण नियन्त्रण बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार एक व्यक्ति प्रतिवर्ष छह से सात किलो प्लास्टिक कचरा फेंकता है।

3. प्लास्टिक थैलियों से पर्यावरण प्रदूषण-पर्यावरण विज्ञानियों ने प्लास्टिक के बीस माइक्रोन या इससे पतले उत्पाद को पर्यावरण के लिए बहुत घातक बताया है। ये थैलियाँ मिट्टी में दबने से फसलों के लिए उपयोगी कीटाणुओं को मार देती हैं। इन थैलियों के प्लास्टिक में पॉलि विनाइल क्लोराइड होता है, जो मिट्टी में दबे रहने पर भूजल को जहरीला बना देता है। इस प्लास्टिक कचरे से नालियाँ बन्द हो जाती हैं, धरती की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है, भूगर्भ का अमृत जैसा जल अपेय बन जाता है तथा रंगीन प्लास्टिक थैलियों से कैंसर जैसे असाध्य रोग हो जाते हैं। इस तरह प्लास्टिक थैलियों से पर्यावरण को हानि पहुँचती है।

4. प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबन्ध-प्लास्टिक थैलियों के उत्पादनकर्ताओं को कुछ लाभ हो रहा हो तथा उपभोक्ताओं को भी सामान ले जाने में सुविधा मिल रही हो, परन्तु यह क्षणिक लाभ पर्यावरण को दीर्घकालीन हानि पहुँचा रहा है। कुछ लोग बीस माइक्रोन से पतले प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाने की वकालत कर उससे अधिक मोटे प्लास्टिक को रिसाइक्लड करने का समर्थन करते हैं, परन्तु वह रिसाइक्लड प्लास्टिक भी एलर्जी, त्वचा रोग एवं पैकिंग किये गये खाद्य पदार्थों को दूषित कर देता है। इसीलिए राजस्थान सहित अन्य दूसरे राज्यों ने प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया है।

5. उपसंहार-प्लास्टिक थैलियों का उपयोग पर्यावरण की दृष्टि से सर्वथा घातक है। यह असाध्य रोगों को बढ़ाता है। इससे अनेक हानियाँ होने से इसे पर्यावरण का शत्रु भी कहा जाता है।

7. कन्या-भ्रूण हत्या : लिंगानुपात की समस्या
अथवा
कन्या-भ्रूण हत्या पाप है : इसके जिम्मेदार आप हैं
अथवा
कन्या-भ्रूण हत्या : एक चिन्तनीय विषय
अथवा
कन्या-भ्रूण हत्या : एक जघन्य अपराध

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. कन्या-भ्रूण हत्या के कारण
  3. कन्या-भ्रूण हत्या की विद्रूपता
  4. कन्या-भ्रूण हत्या के निषेधार्थ उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-परमात्मा की सृष्टि में मानव का विशेष महत्त्व है, उसमें नर के समान नारी का समानुपात नितान्त वांछित है। परन्तु वर्तमान काल में अनेक कारणों से नर-नारी के मध्य लिंग-भेद का वीभत्स रूप सामने आ रहा है, जो कि पुरुष-सत्तात्मक समाज में कन्या-भ्रूण हत्या का पर्याय बनकर असमानता बढ़ा रहा है। हमारे देश में कन्या-भ्रूण हत्या आज अमानवीय कृत्य बन गया है जो कि चिन्तनीय विषय है।

2. कन्या-भ्रूण हत्या के कारण हमारे यहाँ मध्यमवर्गीय समाज में कन्या-जन्म अमंगलकारी माना जाता है, क्योंकि कन्या को पाल-पोष कर, शिक्षित कर उसका विवाह करना पड़ता है। इस निमित्त और विवाह में दहेज के कारण बहुत सारा धन खर्च करना पड़ता है। इसीलिए कन्या को पराया धन मानकर उपेक्षा की जाती है और पुत्र को वंश-वृद्धि का कारक, वृद्धावस्था का सहारा मानकर उसकी चाहना की जाती है।

3. कन्या-भ्रूण हत्या की विद्रूपता-वर्तमान में अल्ट्रासाउण्ड मशीन वस्तुतः कन्या-संहार का हथियार बन गया है। लोग इस मशीन की सहायता से जन्म पूर्व लिंग ज्ञात कर कन्या-भ्रूण को गिराकर नष्ट कर देते हैं। जिसके कारण लिंगानुपात का संतुलन बिगड़ गया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन लगभग ढाई हजार कन्या-भ्रूणों की हत्या की जाती है। हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली में इसकी विद्रूपता सर्वाधिक दिखाई देती है।

4. कन्या-भ्रूण हत्या के निषेधार्थ उपाय-भारत सरकार ने कन्या-भ्रूण हत्या को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए नों से लिंग-ज्ञान पर पर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके लिए प्रसवपर्व निदान तकनीकी अधिनियम (पी.एन.डी.टी.), 1994′ के रूप में कठोर दण्ड-विधान किया गया है। आजकल तो लिंग जाँच पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। साथ ही नारी सशक्तीकरण, बालिका निःशुल्क शिक्षा, पैतृक उत्तराधिकार, समानता का अधिकार आदि अनेक उपाय अपनाये गये हैं। यदि भारतीय समाज में पुत्र-पुत्री जन्म में अन्तर न माना जाए और पुत्री जन्म को घर की लक्ष्मी मानकर स्वागत किया जाए तो लोगों की मानसिकता बदलने से कन्या-भ्रूण हत्या पर स्वतः प्रतिबन्ध लग जायेगा।

5. उपसंहार-भारत सरकार ने लिंगानुपात को ध्यान में रखकर कन्याभ्रूण हत्या पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया है। वस्तुतः कन्या-भ्रूण हत्या का यह नृशंस कृत्य पूरी तरह समाप्त होना चाहिए।

8. आतंकवाद : एक विश्व समस्या
अथवा
आतंकवाद : एक विश्वव्यापी समस्या
अथवा
विश्व चुनौती : बढ़ता आतंकवाद
अथवा
आतंकवाद : समस्या एवं समाधान

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. आतंकवाद के कारण
  3. आतंकवादी घटनाएँ एवं दुष्परिणाम
  4. आतंकवादी चुनौती का समाधान
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-आज आतंकवाद विश्व के समक्ष एक भयानक चुनौतीपूर्ण समस्या बन गया है। इसके सन्त्रास से आज संसार के अधिकतर देश जूझ रहे हैं। यह सम्पूर्ण मानवता एवं सहअस्तित्व के लिए खतरा है। आज धार्मिक एवं सांस्कृतिक वर्चस्व को लेकर आतंकवादी-नस्लवादी लोग व्यापक स्तर पर आतंक फैला रहे हैं।

2. आतंकवाद के कारण-जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, धर्म तथा नस्ल के नाम .पर तथा व्यक्तिगत सत्तासुख की लालसा से अलग राष्ट्र की माँग करने से विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से आतंकवाद का प्रसार हुआ। इसके मुख्य कारण राजनीतिक, धार्मिक अथवा वैचारिक उद्देश्यों की प्राप्ति करना है।

3. आतंकवादी घटनाएँ एवं दुष्परिणाम-आतंकवाद को कुछ राष्ट्रों से अप्रत्यक्ष सहयोग मिल रहा है। इस कारण आतंकवादियों के पास अत्याधुनिक घातक हथियार मौजूद हैं। वे भौतिक, रासायनिक, जैविक एवं मानव बमों का प्रयोग कर रहे हैं। अमेरिका में ट्विन टावर विध्वंस काण्ड, भारतीय संसद् पर हमला, बाली में बम विस्फोट, मुम्बई पर आतंकवादियों का हमला; आदि विश्व आतंकवाद की प्रमुख घटनाएँ हैं।

4. आतंकवादी चुनौती का समाधान-आतंकवाद के बढ़ते खतरे का समाधान कठोर कानून व्यवस्था एवं नियन्त्रण से ही हो सकता है। इसके लिए अवैध संगठनों पर प्रतिबन्ध, प्रशासनिक सुधार के साथ ही काउन्टर टेरेरिज्म एक्ट अध्यादेश तथा संघीय जाँच एजेन्सी आदि को अति प्रभावी बनाना अपेक्षित है। अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया द्वारा जो कठोर कानून बनाया गया है तथा सेना व पुलिस को इस सम्बन्ध में जो अधिकार दे रखे हैं, उनका अनुसरण करने से भी इस चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है।

5. उपसंहार-निर्विवाद कहा जा सकता है कि आतंकवाद के कारण विश्व मानव-सभ्यता पर संकट आ रहा है। यह अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बन गई है। इसके समाधानार्थ एक विश्व-व्यवस्था की जरूरत है, सभी राष्ट्रों में समन्वय तथा एकजुटता की आवश्यकता है।

9. रोजगार गारंटी योजना : मनरेगा
अथवा
मनरेगा : गाँवों में रोजगार योजना
अथवा
गाँवों के विकास की योजना : मनरेगा

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. मनरेगा कार्यक्रम का स्वरूप
  3. मनरेगा से रोजगार सुविधा
  4. मनरेगा से सामाजिक सुरक्षा एवं प्रगति
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-भारत सरकार ने ग्रामीण विकास एवं सामुदायिक कल्याण की दृष्टि से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम फरवरी, 2006 में लागू किया। इस योजना का संक्षिप्त नाम ‘नरेगा’ रखा गया। अक्टूबर, 2009 से इसके साथ महात्मा गाँधी का नाम जोड़कर इसका संक्षिप्त नाम ‘मनरेगा’ पड़ा। इसके अन्तर्गत अकुशल ग्रामीण वयस्क स्त्री या पुरुष को ग्राम पंचायतों के माध्यम से रोजगार दिया जाता है। काम न देने पर बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है।

2. मनरेगा कार्यक्रम का स्वरूप-मनरेगा योजना के अन्तर्गत विविध कार्यक्रम चलाये जाते हैं; जैसे (1) जल-संरक्षण एवं जल-शस्य संचय, (2) वनरोपण एवं वृक्षारोपण, (3) इन्दिरा आवास योजना एवं अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए भूमि सुधार, (4) लघु सिंचाई कार्यक्रम, (5) तालाब आदि का नवीनीकरण, (6) बाढ़-नियन्त्रण एवं जल-निकास, (7) ग्रामीण मार्ग-सड़क निर्माण तथा (8) अनुसूचित जन्य विविध कार्य इस योजना में चलाये जा रहे हैं। सरकार द्वारा जिला पंचायत, विकास खण्ड तथा ग्राम पंचायत को इस योजना के क्रियान्वयन का भार दिया गया है। इसमें ग्राम पंचायत की मुख्य भूमिका रहती है।

3. मनरेगा से रोजगार सुविधा-इस योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मांगने वाले वयस्क व्यक्ति को ग्राम पंचायत से एक कार्ड दिया जाता है। पन्द्रह दिन के अन्तर्गत रोजगार उपलब्ध कराना पड़ता है। रोजगार न दिये जाने पर उसे बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता है। वयस्क व्यक्ति को गाँव के पाँच किलोमीटर की सीमा में रोजगार दिया जाता है तथा कार्यस्थल पर प्राथमिक चिकित्सा सुविधा और महिला मजदूरों के छोटे बच्चों की देखभाल की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।

4. मनरेगा से सामाजिक सुरक्षा एवं प्रगति-मनरेगा कार्यक्रम में आमजन की भागीदारी होने से गाँवों का विकास स्वतः होने लगा है। इससे महिलाओं तथा अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लोगों में से वंचितों को रोजगार मिलने लगा है। इससे महिला सशक्तीकरण पर भी बल दिया गया है। इस तरह मनरेगा से सामाजिक एवं आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को गति मिल रही है।

5. उपसंहार-मनरेगा कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्र के विकास तथा बेरोजगार लोगों को रोजगार देने का जनहितकारी प्रयास है। इसका उत्तरोत्तर प्रसार हो रहा है तथा भारत सरकार इस योजना के लिए काफी धन उपलब्ध करा रही है। इस योजना की सफलता ग्राम पंचायतों की सक्रियता पर निर्भर है।

10. राजस्थान में बढ़ता जल-संकट

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. जल-संकट की स्थिति
  3. जल-संकट के कारण
  4. संकट के समाधान हेतु सुझाव
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-राजस्थान प्रदेश का अधिकतर भू-भाग जल-संकट से हमेशा ही ग्रस्त रहता है। वर्षा न होने से यह – संकट और भी बढ़ जाता है।

2. जल-संकट की स्थिति-राजस्थान में जलाभाव के कारण जल-संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। चम्बल एवं माही नदियाँ जो इसके दक्षिणी-पूर्वी भाग में बहती हैं वे इस भाग को ही हरा-भरा रखती हैं। इसकी पश्चिम-उत्तर की भूमि तो एकदम निर्जल है। इस कारण यहाँ रेगिस्तान की निरन्तर वृद्धि हो रही है। पंजाब से श्रीगंगानगर जिले में से होकर इन्दिरा गाँधी नहर के द्वारा जो जल राजस्थान के पश्चिमोत्तर भाग में पहुँचाया जा रहा है, उसकी स्थिति भी सन्तोषप्रद नहीं है। पूर्वोत्तर राजस्थान में हरियाणा से जो पानी मिलता है, वह भी जलापूर्ति नहीं कर पाता है। इस कारण राजस्थान में जल-संकट की स्थिति सदा ही बनी रहती है।

3. जल-संकट के कारण-राजस्थान में पहले ही शुष्क मरुस्थलीय भू-भाग होने से जलाभाव है, फिर उत्तरोत्तर आबादी बढ़ रही है और औद्योगिक गति भी बढ़ रही है। यहाँ के शहरों एवं बड़ी औद्योगिक इकाइयों में भूगर्भीय जल का दोहन बड़ी मात्रा में हो रहा है। खनिज सम्पदा यथा संगमरमर, ग्रेनाइट, इमारती पत्थर, चूना पत्थर आदि के विदोहन से भी धरती का जल स्तर गिरता जा रहा है। दूसरी ओर वर्षा काल में सारा पानी बाढ़ के रूप में बह जाता है। पिछले कई वर्षों से वर्षा कम मात्रा में होने के कारण बाँधों, झीलों, तालाबों आदि में भी पानी कम हो गया है जिसके कारण जल-संकट गहराता जा रहा है।

4. संकट के समाधान हेतु सुझाव-(1) भूगर्भ के जल का असीमित विदोहन रोका जावे। (2) खनिज सम्पदा के विदोहन को नियन्त्रित किया जावे। (3) शहरों में वर्षा के जल को धरती के गर्भ में डालने की व्यवस्था की जावे। (4) बाँधों एवं एनीकटों का निर्माण, कुओं एवं बावड़ियों को अधिक गहरा और कच्चे तालाबों-पोखरों को अधिक गहरा-चौड़ा किया जावे। (5) पंजाब-हरियाणा-गुजरात में बहने वाली नदियों का जल राजस्थान में लाने के प्रयास किये जावें।

5. उपसंहार-सरकार को तथा समाज-सेवी संस्थाओं को विविध स्रोतों से सहायता लेकर राजस्थान में जल-संकट के निवारणार्थ प्रयास करने चाहिए। ऐसा करने से ही यहाँ की धरती मंगलमय बन सकती है।

11. बाल-विवाह : एक अभिशाप।

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. बाल-विवाह की कुप्रथा
  3. बाल-विवाह का अभिशाप
  4. समस्या के निवारणार्थ उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों में विवाह-संस्कार का विशेष महत्त्व है। अन्य संस्कारों की अपेक्षा विवाह-संस्कार पर काफी धन व्यय किया जाता है। परन्तु इस पवित्र संस्कार में धीरे-धीरे अनेक विकृतियाँ आयीं, जिनके फलस्वरूप देश में बाल-विवाह का प्रचलन हुआ, जो अब हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के लिए घोर अभिशाप बन गया है।

2. बाल-विवाह की कुप्रथा-बाल-विवाह की कुप्रथा का प्रचलन हमारे देश में मध्यकाल में हुआ। आक्रमणकारियों ने अपनी वासना पूर्ति के लिए कन्या अपहरण की कुचाल चली। जिसके कारण लोगों ने बालपन में ही अपनी कन्या का विवाह करना उचित समझा। फिर दहेज आदि से बचने के कारण बाल-विवाह का प्रचलन हुआ। इस कारण यह कुप्रथा निम्न-मध्यम वर्ग में विशेष रूप से प्रचलित हुई।

3. बाल-विवाह का अभिशाप-विवाह-संस्कार में कन्यादान पवित्र मांगलिक कार्य माना जाता है। इस अवसर पर कन्या पक्ष की ओर से कुछ उपहार भी दिया जाता रहा है। लेकिन समय के प्रवाह में इस उपहार की देन में विकृति आ गयी। परिणामस्वरूप दहेज माँगने की समस्या खड़ी हो गयी और माता-पिता के लिए कन्या भार बन गयी। दहेज से मुक्ति पाने का कारण बाल विवाह प्रचलित हुआ जो एक समस्या तो थी ही, इससे और समस्याएँ उत्पन्न हो गयीं। जल्दी शादी होने से जनसंख्या में आशातीत वृद्धि होने लगी। जीवन-स्तर में गिरावट आने लगी। स्वास्थ्य की समस्या खड़ी हो गयी और बाल-विवाह एक अभिशाप बन गया।

4. समस्या के निवारणार्थ उपाय-बाल-विवाह की बुराइयों को देखकर समय-समय पर समाज-सधारकों ने जन-जागरण के उपाय किये। भारत सरकार ने इस सम्बन्ध में कठोर कानून बनाया है और लड़कियों का अठारह वर्ष से कम तथा लड़कों का इक्कीस वर्ष से कम आयु में विवाह करना कानूनन निषिद्ध कर रखा है। फिर भी बाल-विवाह निरन्तर हो. रहे हैं। अकेले राजस्थान के गाँवों में वैशाख मास में अक्षय तृतीया को हजारों बाल-विवाह होते हैं। इस समस्या का निवारण जन-जागरण से ही सम्भव है।

5. उपसंहार-बाल-विवाह ऐसी कुप्रथा है, जिससे वर-वधू का भविष्य अन्धकारमय बन जाता है। इससे समाज में कई विकृतियाँ आ जाती हैं। समाज को इस अभिशाप से मुक्त कराया जाना चाहिए।

12. आतंकवाद : भारत के लिए चुनौती
अथवा
आतंकवाद : भारत की विकट समस्या

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. भारत में आतंकवाद
  3. आतंकवादी घटनाएँ
  4. आतंकवाद का दुष्परिणाम
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-‘आतंक’ का शाब्दिक अर्थ है-भय, त्रास या अनिष्ट बढ़ाना। नागरिकों पर हमले करना, सामूहिक नरसंहार करना, भय का वातावरण बनाना अथवा तुच्छ स्वार्थ की खातिर अमानवीय आचरण कर वर्चस्व बढ़ाना आतंकवाद कहलाता है। आतंकवाद कट्टर धार्मिकता, जातीयता एवं नस्लवादी उन्माद से उपजता है तथा शत्रु राष्ट्रों के द्वारा अप्रत्यक्ष पोषण करने से बढ़ता है। वर्तमान में भारत में आतंकवाद एक विकट समस्या बन गया है।

2. भारत में आतंकवाद-आतंकवाद से प्रभावित देशों में भारत का प्रमुख स्थान है। इस बढ़ते आतंकवाद को बढ़ावा देने में हमारे पड़ोसी देश का प्रमुख स्थान है। हमारे पड़ोसी देश में ‘जेहाद’ के नाम पर आतंकवादियों को तैयार किया जाता है, उन्हें प्रशिक्षण देकर विस्फोटक सामग्री और अत्याधुनिक हथियार देकर हमारी सीमा में भेजा जाता है। इससे हमारे देश में आतंकवाद निरन्तर अपने पैर पसार रहा है और हम आतंकी हमलों के शिकार हो रहे हैं। यह अतीव चिन्ता का विषय है।

3. आतंकवादी घटनाएँ-पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समय-समय पर भारत के विभिन्न भागों में अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। दिल्ली के लाल किले पर, कश्मीर विधानसभा भवन पर, संसद् भवन पर, गांधीनगर अक्षर धाम पर, अयोध्या एवं मुम्बई पर आतंकवादियों ने जो हमले किये, इसी प्रकार विभिन्न स्थानों वस्फोट करके जान-माल की जो हानि पहँचाई और भयानक क्ररता का परिचय दिया, वह राष्ट्र के लिए एक चुनौती है। जम्मू-कश्मीर में भाड़े के आतंकवादियों के साथ हमारे सैनिकों की मुठभेड़ें होती रहती हैं।

4. आतंकवाद का दुष्परिणाम-वर्तमान में आतंकवाद शत्रु-राष्ट्रों के कूटनीतिक इशारों पर छद्म-युद्ध का रूप धारण करने लगा है। जिसका दुष्परिणाम यह है कि भारत को अपनी सम्पूर्ण पश्चिमी सीमा एवं पूर्वोत्तर सीमा पर सेना तैनात करनी पड़ रही है। आतंकवादियों का मुकाबला करने में काफी धन व्यय हो रहा है तथा राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया जा रहा है। इस समस्या का समाधान कठोर कानून-व्यवस्था एवं कमाण्डो आपरेशन से ही हो सकता है।

5. उपसंहार-आतंकवाद रोकने के लिए सरकार गम्भीरता से प्रयास कर रही है। सेनाएँ एवं विशेष पुलिस दस्ते आतंकवादियों की चुनौतियों का उचित जवाब दे रहे हैं। आतंकवाद अब विश्व-समस्या बन गया है। मानवता के हित में इसका नामोनिशान मिटाना परमावश्यक कर्तव्य है।

13. दहेज-प्रथा
अथवा
समाज का कलंक : दहेज-प्रथा
अथवा
समाज का अभिशाप : दहेज-प्रथा

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. दहेज-प्रथा एक कलंक
  3. दहेज-प्रथा के दुष्परिणाम
  4. उन्मूलन हेतु उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-भारतीय संस्कृति में सभी संस्कारों में विवाह संस्कार को विशेष स्थान प्राप्त है। विवाह संस्कार में कन्यादान को अन्य दानों की अपेक्षा प्रमुख दान माना जाता है। इस संस्कार में माता-पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार नयी गृहस्थी के संचालन हेतु वस्त्र, आभूषण तथा अन्य जरूरी सामान दहेज के रूप में देते हैं।

2. दहेज-प्रथा एक कलंक-वर्तमान काल में दहेज प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया है और इसके फलस्वरूपं नारी समाज के साथ अमानवीय व्यवहार होता है। कन्या का विवाह एक जटिल समस्या बन गई है। माता-पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार दहेज देना चाहते हैं जबकि वर पक्ष वाले मुँह-माँगा दहेज लेना चाहते हैं। इस स्थिति में असहाय माता-पिता अपनी योग्य पुत्री का विवाह करने के लिए दूसरों से कर्ज लेते हैं। फिर दहेज के चक्कर में वे आजीवन लिये गये कर्ज के भार को ढोते रहते हैं। मुँह-माँगा दहेज न दे पाने पर कभी-कभी दरवाजे पर आयी बारात भी लौट जाती है और कन्या बिन-ब्याही रह जाती है।

3. दहेज-प्रथा के दुष्परिणाम-इस कुप्रथा के कारण ब्याही कन्या और उसके माता-पिता को अनेक असह्य यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। विवाहित कन्या को उचित दहेज न मिलने के कारण ससुराल पक्ष द्वारा परेशान किया जाता है, उसे अनेक यातनाएँ दी जाती हैं। कभी-कभी उसे जलाकर भी मार डाला जाता है। बेटी ससुराल में खुश रह सके इस हेतु दहेज पूर्ति के लिए माता-पिता को अपना घर-मकान आदि बेचना पड़ जाता है।

4. उन्मूलन हेतु उपाय-सन् 1975 में दहेज उन्मूलन कानून भी बनाया गया है। सरकार ने दहेज विरोधी कानून को प्रभावी बनाने के लिए एक संसदीय समिति का गठन किया है। सन् 1983 में दहेज से सम्बन्धित नये कानून प्रस्तावित किये गये, इसके अनुसार जो दहेज के लालच में युवती को आत्महत्या के लिए विवश करे, उस व्यक्ति को भी दण्डित किया जाए। सरकार इस प्रथा के उन्मूलन के लिए सचेष्ट है तथा कुछ सामाजिक संगठन भी इस समस्या के उन्मूलन का प्रयास कर रहे हैं।

5. उपसंहार-इस समस्या के कारण नारी समाज पर अत्याचार हो रहे हैं। उनको अमानवीय व्यवहार सहन करने पड़ते हैं। अतः समाज में अभिशाप बनी इस प्रथा से नारी को मुक्ति मिले, यह मानवीय दृष्टिकोण नितान्त अपेक्षित है।

14. मूल्यवृद्धि : एक ज्वलन्त समस्या
अथवा
बढ़ती महँगाई की मार
अथवा
बढ़ती महँगाई : एक विकराल समस्या

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. महँगाई के कारण
  3. महँगाई का दुष्प्रभाव
  4. मूल्यवृद्धि समस्या का समाधान
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-अनेक समस्याओं से आक्रान्त हमारा देश वर्तमान में महँगाई की समस्या से ग्रस्त है। बढ़ती हुई महँगाई की मार से प्रायः सभी वस्तुओं के भाव आसमान छूने लगे हैं और सामान्य वेतनभोगी एवं श्रमिक वर्ग के लोगों की आर्थिक दशा अतीव चिन्तनीय बन गई है।

2. महँगाई के कारण – (1) जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि और उत्पादन कम, (2) जमाखोरी और मुनाफाखोरी, (3) सरकार की गलत आर्थिक नीति; (4) भ्रष्ट सरकारी-तन्त्र और भ्रष्ट व्यावसायियों की साँठ-गाँठ, (5) रुपये की कमजोर क्रय शक्ति, (6) शहरीकरण और औद्योगीकरण से उपजाऊ भूमि का समाप्त होना, (7) प्राकृतिक आपदा – अतिवृष्टि और सूखा आदि, (8) सरकारी वितरण व्यवस्था की असफलता।

3. महँगाई का दुष्प्रभाव-महँगाई के निरन्तर बढ़ते रहने से सामाजिक जीवन में आपाधापी मच रही है। सम्पन्न लोग अधिक सम्पन्न होते जा रहे हैं और गरीबों में भुखमरी फैल रही है। महँगाई के कारण जब पेटपूर्ति नहीं हो रही है, तो लूटपाट, हत्या, डकैती, राहजनी, चोरी तथा तोड़फोड़ आदि अनेक दुष्प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं। सामान्य उपयोग की वस्तुओं के भाव आसमान छू रहे हैं, इससे सामाजिक जीवन में अस्थिरता बढ़ रही है। अनेक अपराधों का मूल कारण यही महँगाई की मार है।

4. मूल्यवृद्धि समस्या का समाधान-इस समस्या का समाधान पूर्व में बताये गये कारणों पर नियन्त्रण रखने से ही हो सकता है। जनसंख्या पर नियन्त्रण रहे, उत्पादन भी बढ़े, व्यापारियों की मुनाफे की प्रवृत्ति को रोका जावे, सरकार आर्थिक नीति में सुधार करे तथा काला-बाजारी पर नियन्त्रण रखे। सरकार आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों पर नियन्त्रण रखे और उनकी वितरण व्यवस्था स्वयं करे। इस समस्या के समाधानार्थ कठोर नियम बनाये जावें, साथ ही जन-जागरण भी इस दृष्टि से आवश्यक है।

5. उपसंहार-शारीरिक एवं मानसिक विकृतियों से यदि देश और समाज को बचाना है, आर्थिक विषमता एवं दिखावे की प्रवृत्ति से यदि मुक्त होना है और कल्याणकारी राज्य का प्रसार करना है, तो महँगाई पर नियन्त्रण रखना जरूरी है। आम जनता का हित महँगाई पर नियन्त्रण रखने में ही है।

15. पर्यावरण प्रदूषण
अथवा
बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण : एक समस्या

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. पर्यावरण प्रदूषण का कुप्रभाव
  3. प्रदूषण-निवारण के उपाय
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-आज भारत ही नहीं, सारा संसार पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से ग्रस्त है। वर्तमान में पानी, हवा, रेत-मिट्टी आदि के साथ-साथ पेड़-पौधे, खेती एवं कृमि-कीट आदि सभी पर्यावरण प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। गैस, धुआँ, धुंध, कर्णकटु ध्वनि एवं विषाक्त अपशिष्टों की भरमार आदि तरीकों से हर तरह का प्रदूषण देखने को मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रतिवर्ष पाँच जून को पर्यावरण दिवस भी मनाया जाता है, परन्तु पर्यावरण प्रदूषण कम नहीं हो रहा है।

2. पर्यावरण प्रदूषण का कुप्रभाव-निरन्तर जनसंख्या की वृद्धि, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण तथा प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन होने से पर्यावरण में निरन्तर प्रदूषण बढ़ रहा है। इससे मानव के साथ ही वन्य-जीवों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण का सबसे अधिक कुप्रभाव मानव-सभ्यता पर पड़ रहा है जो कि आगे चलकर इसके विनाश का कारण हो सकता है। धरती के तापमान की वृद्धि तथा असमय ऋतु-परिवर्तन होने से प्राकृतिक वातावरण नष्ट होता जा रहा है।

3. प्रदूषण-निवारण के उपाय-विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रदूषण रोकने के अनेक उपाय कर रहा है। भारत सरकार भी पर्यावरण-निवारण के लिए कई प्रयास कर रही है। जैसे – हरियाली को बढ़ावा देना, वृक्ष उगाना, शोर पर नियंत्रण करना तथा पर्यावरण प्रदूषण के प्रति जनचेतना को जाग्रत करना आदि। खुले में शौच करने, नालियों का गन्दा जल फैलने तथा कारखानों से निकलने वाले विषैले अपशिष्टों से पर्यावरण को बचाने के अनेक उपाय किये जा रहे हैं। सीवरेज ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट लगाये जा रहे हैं, घर-घर में शौचालय बनाये जा रहे हैं। नदियों की स्वच्छता का अभियान चलाया जा रहा है।

संहार-हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार द्वारा अनेक कदम उठाये जा रहे हैं। देश में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित पाठ्यक्रम भी प्रारम्भ किया गया हैं। बड़े उद्योगों को प्रदूषण रोकने के उपाय अपनाने के लिए कहा जा रहा है। इन सब उपायों से पर्यावरण में सन्तुलन रखने का प्रयास किया जा रहा है।

16. भ्रष्टाचार : एक विकराल समस्या
अथवा
भ्रष्टाचार और गिरते सांस्कृतिक मूल्य
अथवा
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. भ्रष्टाचार के कारण
  3. भ्रष्टाचार का कुप्रभाव
  4. समाधान या निराकरण के उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही हमारे देश में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होने लगीं। इनमें भी भ्रष्टाचार की समस्या इतनी विकराल हो गयी है कि इसका निवारण करना अत्यन्त जटिल हो गया है।

2. भ्रष्टाचार के कारण-भ्रष्टाचार का सबसे प्रमख कारण हमारा नैतिक पतन होना है, जिससे हम अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए सब कुछ किसी भी तरीके से करने के लिए तत्पर रहते हैं, बस धन मिलना चाहिए। भौतिक सुख सुविधाओं के लिए आज का मानव लालायित है इसलिए वह उचित-अनुचित कोई भी तरीका निस्संकोच अपनाता है। हमारे राजनेता देशभक्ति छोड़कर भ्रष्टाचार की भक्ति में ही लग गये हैं। साथ ही बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि आदि भी लोगों को आवश्यकता पूर्ति हेतु भ्रष्टाचारी बना रही है।

3. भ्रष्टाचार का कुप्रभाव-भ्रष्टाचार के कारण आज हमारे देश में राष्ट्रीय चरित्र तथा सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। इससे सामाजिक जीवन में नैतिकता का लोप होने लगा है। स्वार्थ और प्रलोभन के चक्कर में हम अपने आदर्शों को भूलते जा रहे हैं। भ्रष्टाचार की खातिर झूठ बोलना, धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी करना, मिलावट करना, पैंतरेबाजी दिखाना आदि सबकुछ जायज हो गया है। आज सारे भारत में भ्रष्टाचार का अँधेरा फैला हुआ है, जिससे हमारा चरित्र एकदम कलंकित हो रहा है।

4. समाधान या निराकरण के उपाय-भ्रष्टाचार का निवारण करने के लिए यद्यपि सरकार ने पृथक् से भ्रष्टाचार उन्मूलन विभाग बना रखा है और इसे व्यापक अधिकार दे रखे हैं। समय-समय पर अनेक कानून बनाये जा रहे हैं और इसे अपराध मानकर कठोर दण्ड-व्यवस्था का भी विधान है, तथापि देश में भ्रष्टाचार बढ ही रहा है। इसके निराकरण के लिए सर्वप्रथम जन-जागरण की आवश्यकता है तथा कर्त्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी की जरूरत है। अतः भ्रष्टाचार के उपर्युक्त सभी कारणों को पूरी तरह समाप्त करना जरूरी है।

5. उपसंहार-भारत जैसे नव-स्वतन्त्र, विकासशील लोकतन्त्र में भ्रष्टाचार का होना एक विडम्बना है। इसके खात्मे के लिए राजनेताओं, सरकारी-तन्त्र और जनता का पारस्परिक सहयोग अपेक्षित है, तभी यह राक्षसी प्रवृत्ति समाप्त हो सकती है।

17. जनसंख्या की समस्या एवं समाधान

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. जनसंख्या वृद्धि-एक समस्या
  3. जनसंख्या वृद्धि के कारण
  4. जनसंख्या नियन्त्रण के उपाय
  5. समस्या समाधान एवं उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान में हमारा देश अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है। जैसे बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महँगाई, आतंकवाद, पड़ोसी देशों से कलह तथा जनसंख्या वृद्धि आदि। परन्तु इन सभी समस्याओं के बीच सबसे प्रबल समस्या है, जनसंख्या वृद्धि की समस्या। इस समस्या का हल हम अभी तक निकाल नहीं पा रहे हैं।

2. जनसंख्या वृद्धि-एक समस्या-आजादी के समय हमारे देश की जनसंख्या लगभग तैंतीस करोड़ थी, परन्तु आज यह एक अरब तीस करोड़ से भी अधिक हो गयी है। जनसंख्या की इस अप्रत्याशित वृद्धि से रोजगार के अवसर ही कम नहीं हुए, खेत-खलिहान और वन भी कम हुए हैं। सुविधाएँ जुटाने में अपार धनराशि व्यय की जा रही है। बेरोजगारी, महँगाई और भ्रष्टाचार भी इसी कारण बढ़ रहे हैं।

3. जनसंख्या वृद्धि के कारण-जनसंख्या वृद्धि के अनेक कारण हैं। आजादी प्राप्त करने के बाद इस पर नियन्त्रण नहीं किया और न परिवार नियोजन के कोई साधन ही उपलब्ध कराये गये। भारत के कुछ अशिक्षित एवं धर्मान्ध लोग सन्तान को ईश्वर की देन या खुदा की नियामत मानते हैं। छोटी अवस्था में विवाह होने से भी सन्तान-वृद्धि हो जाती है। समशीतोष्ण जलवायु के प्रभाव से भी अधिक सन्ताने हो जाती हैं। गरीब परिवारों में कमाने वाले हाथ अधिक हों, इस तरह की मानसिकता से भी जनसंख्या वृद्धि पर ध्यान नहीं दिया गया। इन प्रमुख कारणों से जनसंख्या की विस्फोटक है।

4. जनसंख्या नियन्त्रण के उपाय-जनसंख्या की तीव्रगति से वृद्धि को देखकर सरकार ने अनेक कदम उठाये। प्रारम्भ में परिवार नियोजन के साधनों का प्रसार किया गया, फिर पुरुष एवं स्त्री नसबन्दी कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। जनता में परिवार नियोजन की चेतना जागृत की गई। सरकारी नौकरियों में दो सन्तान से अधिक पर स्वैच्छिक प्रतिबन्ध लगाया गया। कम उम्र में युवक-युवतियों के विवाह को रोकने का कानून बनाया गया। इस तरह के उपाय करने से जनसंख्या वृद्धि पर कुछ हद तक अंकुश लगा है।

5. समस्या-समाधान एवं उपसंहार-जनसंख्या की असीमित वृद्धि से हमारे देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई है। विभिन्न विकास-योजनाएँ भी लाभकारी नहीं दिखाई दे रही हैं। जब प्रत्येक व्यक्ति परिवार नियोजन को प्राथमिकता देगा, तभी जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लग सकेगा। अपने समाज और देश की खुशहाली के लिए यह नियन्त्रण जरूरी है।

18. बढ़ती भौतिकता : घटते मानवीय मूल्य
अथवा
भौतिकता-व्यामोह से मानव-मूल्यों का पतन

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. भौतिकता का व्यामोह
  3. बढ़ती भौतिकता का कुप्रभाव
  4. भौतिकता से मानवीय मूल्यों का ह्रास
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना – आज के वैज्ञानिक युग में उपभोक्तावादी संस्कृति बढ़ रही है। भौतिकवादी प्रवृत्ति के बढ़ने के कारण मौज-मस्ती, फैशनपरस्ती, ऐशो-आराम की जिन्दगी को श्रेष्ठ माना जा रहा है। बढ़ती भौतिकवादी प्रवृत्ति के कारण मानवीय मूल्यों का पतन तीव्र गति से हो रहा है।

2. भौतिकता का व्यामोह-भौतिकतावादी प्रवृत्ति वस्तुतः चार्वाक् मत का नया रूप है। आज हर आदमी अपनी जेब का वजन न देखकर सुख-सुविधा हेतु भौतिक साधनों को जुटाने की जुगाड़ में लगा रहता है। बैंकों से कर्ज लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता है। इसीलिए फैशन के अनुसार कपड़े पहनना, बनावटी प्रदर्शन करना, क्लबों और पार्टियों में जाना आदि को इज्जत का प्रतीक मानना आज जीवन का मुख्य सिद्धान्त बन गया है। इस प्रकार निम्न मध्य वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक भौतिकता का व्यामोह फैल रहा हैं।

3. बढ़ती भौतिकता का कुप्रभाव-भौतिकता के साधनों की पूर्ति करने से अनेक कुप्रभाव देखे जा रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति मोटर, स्कूटर, मोबाइल फोन, टी.वी., फ्रिज आदि भौतिक संसाधनों की लालसा रखकर किश्तों में भौतिक सुविधा की वस्तुएँ खरीद रहा है। इससे निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों पर ऋण-बोझ बढ़ रहा है। इस कारण भी सब ओर अशान्ति, कलह, मानसिक तनाव, आपसी संबंधों में कड़वाहट, कुण्ठा आदि अनेक कुप्रभाव देखने को मिल रहे हैं। रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, गबन, चोरी आदि का बढ़ना भौतिकता का ही कुप्रभाव है।

4. भौतिकता से मानवीय मूल्यों का ह्रास-भौतिकता की प्रवृत्ति के कारण सर्वाधिक हानि मानवीय मूल्यों की हुई है। अब राह चलती महिलाओं से छीना-झपटी करना, भाई-बन्धुओं की सम्पत्ति हड़पने का प्रयास करना, बलात्कार, धोखाधड़ी, मक्कारी, असत्याचरण, खाद्य पदार्थों में मिलावट करना आदि अनेक बुराइयों से सामाजिक सम्बन्ध तार-तार हो रहे हैं। इसी प्रकार आज सभी पुराने आदर्शों एवं मानव-मूल्यों का पतन हो रहा है।

5. उपसंहार – आज भौतिकतावाद का युग है। भौतिकता की चकाचौंध में मानव इतना विमुग्ध हो रहा है कि वह मानवीय अस्मिता को भूल रहा है। इस कारण मानव-मूल्यों एवं आदर्शों का लगातार ह्रास हो रहा है। यह स्थिति मानव सभ्यता के लिए चिन्तनीय है।

19. बढ़ते वाहन : घटता जीवन-धन
अथवा
वाहन-वृद्धि से स्वास्थ्य-हानि

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. वाहन-वृद्धि के कारण
  3. वाहन-वृद्धि से लाभ
  4. बढ़ते वाहनों का कुप्रभाव
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना – मानव-सभ्यता के प्रगति-पथ पर एक लम्बे समय तक रथ, बैलगाड़ी, बग्घी, पालकी, इक्का ताँगा, रिक्शा आदि ने वाहन के रूप में अपना दायित्व निभाया। वहीं वैज्ञानिक मानव ने द्रुतगामी वाहनों का निर्माण कर आज स्कूटर, मोटर साइकिल, कार, बस, टू सीटर आदि वाहनों की सड़कों पर रेल-पेल मचा दी है। जिससे सड़क पर पैदल चलने तक की जगह नहीं रह गयी है।

2. वाहन-वृद्धि के कारण-इस यांत्रिक युग में जनसंख्या वृद्धि और समय के बदलते रूप के कारण द्रुतगामी परिवहन साधनों का आविष्कार हुआ। इन साधनों में दुपहिया वाहनों से लेकर चौपहिया वाहनों की भरमार हो गयी। इस तरह वाहनों की असीमित वृद्धि यद्यपि यातायात-परिवहन आदि सुख-सुविधाओं की दृष्टि से ही हुई, तथापि ऐसी असीमित वाहन वृद्धि पर्यावरण एवं जनस्वास्थ्य की दृष्टि से जटिल समस्या बन रही है।

3. वाहन-वृद्धि से लाभ-वाहन-वृद्धि से अनेक लाभ हुए हैं। आवागमन की सुविधा बढ़ी। कम समय में यात्रा पूरी होने लगी। माल भी कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने लगा। इससे जनता को सुविधाएँ मिलीं और वाहनों का निर्माण करने वाले बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना होने से लाखों लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हुआ।

4. बढ़ते वाहनों का कुप्रभाव – यान्त्रिक वाहनों के संचालन में पेट्रोल-डीजल का उपयोग होता है। इससे वाहनों द्वारा विषैली कार्बन-गैस छोड़ी जाती है, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैल रही हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। वाहन वृद्धि के कारण सड़कों पर भीड़-भाड़ रहती है। अनेक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। पेट्रोल-डीजल की अधिक खपत होने के कारण मूल्य वृद्धि हो रही है। इस तरह बढ़ते वाहनों से लाभ के साथ ही हानि भी हो रही है और इनके कुप्रभाव से जीवन-धन क्षीण हो रहा है।

5. उपसंहार – यान्त्रिक वाहनों का विकास भले ही मानव-सभ्यता की प्रगति अथवा देशों के औद्योगिक विकास का परिचायक है, तथापि वर्तमान में वाहनों की असीमित वृद्धि से मानव-जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

20. राजस्थान का अकाल

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना : अकाल के कारण
  2. राजस्थान में अकाल की समस्या
  3. अकाल के दुष्परिणाम
  4. अकाल रोकने के उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना – भारत मौसम की दृष्टि से भी विभिन्नताओं का देश है। इस दृष्टि से जहाँ इसके कई भागों में खूब वर्षा होती है, तो कई भागों में कम। पर राजस्थान में प्रायः कई भागों में अवर्षण की स्थिति बनी.रहती है। इस कारण यहाँ अकाल या सूखा पड़ जाता है।

2. राजस्थान में अकाल की समस्या-राजस्थान का अधिकतर भू-भाग शुष्क मरुस्थलीय है। इसके पश्चिमोत्तर भाग में मानसून की वर्षा प्रायः कम होती है और यहाँ पेयजल एवं सिंचाई सुविधा का नितान्त अभाव है। समय पर वर्षा न होने के कारण राजस्थान में अकाल की काली छाया हर साल मण्डराती रहती है। राजस्थान का प्रायः कोई न कोई जिला हर वर्ष अकाल की चपेट में रहता ही है।

3. अकाल के दुष्परिणाम-अकालग्रस्त क्षेत्रों के लोग अपने घर का सारा सामान बेचकर या छोड़कर पलायन कर जाते हैं। जो लोग वहाँ रह जाते हैं, उन्हें कई बार भूखे ही सोना पड़ता है। जो लोग काम-धन्धे की खोज में दूसरे शहरों में चले जाते हैं, उन्हें भी अनेक कष्टों तथा आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।

अकाल के कारण राजस्थान सरकार को राहत कार्यों पर अधिक धन व्यय करना पड़ता है। इससे राज्य के विकास कार्यों की प्रगति धीमी पड़ जाती है। अकालग्रस्त क्षेत्रों में आर्थिक-शोषण का चक्र भी चलता रहता है। पेट की खातिर लोग बड़ा से बड़ा अत्याचार भी सह जाते हैं और उनकी जीवनी-शक्ति क्षीण हो जाती है।

4. अकाल रोकने के उपाय-सरकार समय-समय पर अनेक जिलों को अकालगस्त घोषित कर सहायता कार्यक्रम चलाती रहती है। सन् 1981-82 से लेकर अब तक राजस्थान सरकार ने समय-समय पर केन्द्र सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त कर अनेक राहत कार्य चलाये तथा रियायती दर पर अनाज उपलब्ध कराया। वर्षा जल संरक्षण के कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं। गत वर्ष भी कई जिलों में अकाल राहत के कार्यक्रम चलाये गये। इस प्रकार राज्य सरकार अकाल की विभीषिका से। निपटने के पूरे प्रयास कर रही है।

5. उपसंहार-राजस्थान की जनता को निरन्तर कई वर्षों से कहीं न कहीं अकाल का सामना करना पड़ता है। दीर्घकालीन योजनाएँ प्रारम्भ करने तथा जन-सहयोग मिलने से ही अकाल का स्थायी समाधान हो सकता है।

21. बेरोजगारी : समस्या और समाधान
अथवा
रोजगार के घटते साधन

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. बेरोजगारी की समस्या
  3. रोजगार घटने के कारण
  4. निराकरण के उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना आजादी प्राप्ति के उपरान्त सभी नागरिकों को अपनी आर्थिक दशा सुधर जाने की आशा होने लगी। परन्तु प्रथम पंचवर्षीय योजना के साथ ही शरणार्थी समस्या, जनसंख्या वृद्धि तथा उचित विकास दर न रहने से रोजगार की समस्या बढ़ने लगी और नागरिकों को योग्यता एवं श्रम शक्ति के अनुरूप रोजगार न मिलने से बेरोजगारी का भयंकर रूप सामने आने लगा।

2. बेरोजगारी की समस्या विकासशील भारत में जनसंख्या जिस तीव्र गति से बढ़ी उसके अनुरूप रोजगार के साधनों में वृद्धि नहीं हुई। परिणामस्वरूप शिक्षित और अशिक्षित बेरोजगारी में वृद्धि हुई। जिसके कारण नयी पीढ़ी में असंतोष, अशान्ति और अराजकता का भयंकर प्रसार हुआ और बेरोजगारी एक ज्वलंत समस्या बन गयी।

3. रोजगार घटने के कारण (1) जनसंख्या की अप्रत्याशित वृद्धि होने से रोजगार के उतने साधन नहीं हैं। (2) लघु-कुटीर उद्योगों का ह्रास तथा मशीनीकरण का प्रसार भी इसका प्रमुख कारण है। (3) व्यावसायिक शिक्षा एवं स्वरोजगार की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। (4) जातिवाद, क्षेत्रवाद तथा अन्य कारणों से नौकरी के लिए आरक्षण का गलत तरीका अपनाया जा रहा है। (5) सार्वजनिक उद्योगों की घाटे की स्थिति और उत्पादकता का न्यून प्रतिशत रहने से रोजगार के नए अवसर नहीं मिल रहे हैं। (6) शासन-तंत्र पर स्वार्थी राजनीति एवं भ्रष्टाचार हावी हो रहा है। (7) पंचवर्षीय योजनाओं में मानव-श्रम शक्ति का सही नियोजन नहीं हो पाया है।

4. निराकरण के उपाय जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगायी जाए। लघु-कुटीर उद्योगों एवं कृषि-प्रधान हस्तकलाओं को प्रोत्साहन दिया जाए। शिक्षा को स्वरोजगारोन्मुखी और व्यावसायिक क्षमता प्रदान की जाए। आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर योग्यता को प्राथमिकता दी जाए। शासन तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता आदि पर अंकुश लगाया जाए और रोजगार के साधनों में वृद्धि की जाये।

5. उपसंहार-इस प्रकार के कारगर उपाय करने पर बेरोजगारी की समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है और इस समस्या का समाधान सरकारी तथा गैर सरकारी सभी स्तरों पर प्रयास करने से ही हो सकता है।

22. नारी सशक्तीकरण

संकेत बिन्दु :

  1. नारी सशक्तीकरण से आशय
  2. वर्तमान समाज में नारी की स्थिति
  3. नारी सशक्तीकरण हेतु किए जा रहे प्रयास
  4. देश की प्रमुख सशक्त नारियों का परिचय
  5. उपसंहार।

1. नारी सशक्तीकरण से आशय-नारी सशक्तीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष लाकर उन्हें स्वावलम्बी बनाया जा सके। अतः नारी सशक्तीकरण से तात्पर्य है महिलाओं को पुरुषों के बराबर वैधानिक, राजनीतिक, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में निर्णय एवं सहभागी बनाने की स्वायत्तता प्रदान करना।

2. वर्तमान समाज में नारी की स्थिति-वर्तमान काल में बढ़ते शिक्षा स्तर में भी नारी की स्थिति शोचनीय है। महिलाओं के विरुद्ध दिनों-दिन बढ़ते अपराध के आँकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। यद्यपि आज नारी विविध क्षेत्रों में पुरुषों के.साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम कर रही है, फिर भी नारी उत्पीड़न के आँकड़ों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिलाएँ पोषण, साक्षरता व लिंगानुपात तीनों ही क्षेत्रों में अत्यन्त शोचनीय स्थिति में हैं।

3. नारी सशक्तीकरण हेतु किए जा रहे प्रयास-नारी सशक्तीकरण का प्रारम्भ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च, 1975 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस से माना जा सकता है। भारत में नारी सशक्तीकरण हेतु किए जा रहे कतिपय प्रयास निम्नलिखित हैं-(1) संवैधानिक एवं कानूनी संरक्षण; (2) महिला विकास सम्बन्धी नीतियाँ एवं क्रियान्वयन, जैसे स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति-2001 आदि; (3) महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु कार्यक्रम, जैसे – महिला उत्थान योजना, स्वास्थ्य सखी योजना, महिला स्वाधार योजना, किशोरी शक्ति योजना, वंदे मातरम् योजना, कन्यादान योजना, राजलक्ष्मी योजना आदि; (4) राजनीतिक सशक्तीकरण के प्रयास।

4. देश की प्रमुख सशक्त नारियों का परिचय हमारे देश में अनेक ऐसी नारियाँ हैं जिन्होंने सशक्त महिला का दर्जा प्राप्त किया है, जैसे – इन्दिरा गाँधी, सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, निर्मला सीतारमण, सुमित्रा महाजन, वसुन्धरा राजे एवं ममता बनर्जी आदि नाम उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार स्मृति ईरानी, किरण बेदी, सानिया मिर्जा, बछेन्द्रीपाल, साइना नेहवाल आदि महिलाओं के नाम भी सशक्त महिलाओं के रूप में लिए जा सकते हैं।

5. उपसंहार-संक्षेप में कहा जा सकता है कि नारी सशक्तीकरण की दिशा में अनेक ठोस कदम उठाये गए हैं। अनेक क्षेत्रों में आरक्षण व्यवस्था भी की गई है। फिर भी इस दिशा में अभी निरन्तर प्रयास अपेक्षित है।

शिक्षा एवं विज्ञान सम्बन्धी निबन्ध :

23. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. वर्तमान में समाज की बदली मानसिकता
  3. लिंगानुपात में बढ़ता अन्तर
  4. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ-अभियान एवं उद्देश्य
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान काल में अनेक कारणों से लिंग-भेद का अन्तर सामने आया है, जो कन्या-भ्रूण हत्या का पर्याय बनकर बालक-बालिका के समान अनुपात को बिगाड़ रहा है। इसी कारण आज ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारा दिया जा रहा है।

2. वर्तमान में समाज की बदली मानसिकता-वर्तमान में मध्यमवर्गीय समाज बालिकाओं को पढ़ाने में अपनी परम्परावादी सोच को ही मान्यता देता चला आ रहा है, क्योंकि वह बेटी को पराया धन मानता है। इसलिए बेटी को पालना-पोसना, पढ़ाना-लिखाना, उसकी शादी करना आदि को भार मानता है। इस दृष्टि से कुछ स्वार्थी सोच वाले लोग गर्भावस्था में ही लिंग-परीक्षण करवाकर कन्या-जन्म को रोक देते हैं। परिणामस्वरूप बेटी या कन्या को बंचाना तथा उसे संरक्षण देना हमारा प्रथम कर्त्तव्य बन गया है।

3. लिंगानुपात में बढ़ता अन्तर-आज के समाज की बदली मानसिकता के कारण लिंगानुपात घटने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। सन् 2011 की जनगणना के आधार पर हमारे देश में बालक और बालिका का अनुपात एक हजार में लगभग 918 तक पहुँच गया है।

4. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ-अभियान एवं उद्देश्य-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के सम्बन्ध में हमारे राष्ट्रपति ने लोकसभा को जून, 2014 में सम्बोधित किया। जिसमें इस आवश्यकता पर बल दिया गया कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, उनका संरक्षण और सशक्तीकरण किया जाए। इसके बाद यह निश्चय किया गया कि महिला एवं बाल विकास विभाग इस अभियान का मुख्य मंत्रालय होगा, जो कि परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के साथ मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ायेंगे। इस अभियान में लिंग परीक्षण में बालिका भ्रूण-हत्या को रोकना बालिकाओं को पूर्ण संरक्षण तथा उनके विकास के लिए शिक्षा से सम्बन्धित उनकी सभी गतिविधियों में पूर्ण भागीदारी रहेगी। साथ ही उनको शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं कौशल विकास को प्रोत्साहित किया जायेगा।

5. उपसंहार-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के प्रति हमारे समाज में जागरूकता आनी चाहिए और हमारी रूढ़िवादी सोच का परित्याग होना चाहिए। ईश्वर के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए हमें यह सोचना चाहिए कि कन्या भी ईश्वर की देन है। इस परिवर्तित सोच से ही बिगड़ते लिंगानुपात में परिवर्तन आयेगा और बेटियों को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त होगा। हम समझ जायेंगे कि बेटी घर का भार नहीं, घर की रोशनी ही होती है।

शिक्षा एवं विज्ञान सम्बन्धी निबन्ध :

23. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. वर्तमान में समाज की बदली मानसिकता
  3. लिंगानुपात में बढ़ता अन्तर
  4. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ-अभियान एवं उद्देश्य
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान काल में अनेक कारणों से लिंग-भेद का अन्तर सामने आया है, जो कन्या-भ्रूण हत्या का पर्याय बनकर बालक-बालिका के समान अनुपात को बिगाड़ रहा है। इसी कारण आज ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारा दिया जा रहा है।

2. वर्तमान में समाज की बदली मानसिकता-वर्तमान में मध्यमवर्गीय समाज बालिकाओं को पढ़ाने में अपनी परम्परावादी सोच को ही मान्यता देता चला आ रहा है, क्योंकि वह बेटी को पराया धन मानता है। इसलिए बेटी को पालना-पोसना, पढ़ाना-लिखाना, उसकी शादी करना आदि को भार मानता है। इस दृष्टि से कुछ स्वार्थी सोच वाले लोग गर्भावस्था में ही लिंग-परीक्षण करवाकर कन्या-जन्म को रोक देते हैं। परिणामस्वरूप बेटी या कन्या को बंचाना तथा उसे संरक्षण देना हमारा प्रथम कर्त्तव्य बन गया है।

3. लिंगानुपात में बढ़ता अन्तर-आज के समाज की बदली मानसिकता के कारण लिंगानुपात घटने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। सन् 2011 की जनगणना के आधार पर हमारे देश में बालक और बालिका का अनुपात एक हजार में लगभग 918 तक पहुँच गया है।

4. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ-अभियान एवं उद्देश्य-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के सम्बन्ध में हमारे राष्ट्रपति ने लोकसभा को जून, 2014 में सम्बोधित किया। जिसमें इस आवश्यकता पर बल दिया गया कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, उनका संरक्षण और सशक्तीकरण किया जाए। इसके बाद यह निश्चय किया गया कि महिला एवं बाल विकास विभाग इस अभियान का मुख्य मंत्रालय होगा, जो कि परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के साथ मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ायेंगे। इस अभियान में लिंग परीक्षण में बालिका भ्रूण-हत्या को रोकना बालिकाओं को पूर्ण संरक्षण तथा उनके विकास के लिए शिक्षा से सम्बन्धित उनकी सभी गतिविधियों में पूर्ण भागीदारी रहेगी। साथ ही उनको शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं कौशल विकास को प्रोत्साहित किया जायेगा।

5. उपसंहार-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के प्रति हमारे समाज में जागरूकता आनी चाहिए और हमारी रूढ़िवादी सोच का परित्याग होना चाहिए। ईश्वर के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए हमें यह सोचना चाहिए कि कन्या भी ईश्वर की देन है। इस परिवर्तित सोच से ही बिगड़ते लिंगानुपात में परिवर्तन आयेगा और बेटियों को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त होगा। हम समझ जायेंगे कि बेटी घर का भार नहीं, घर की रोशनी ही होती है।

24. सर्वशिक्षा अभियान
अथवा
सर्वशिक्षा अभियान को कैसे सफल बनाएँ

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. साक्षरता कार्यक्रम
  3. सर्वशिक्षा अभियान
  4. अभियान की सफलता के लिए सुझाव
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-किसी भी राष्ट्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक उन्नति बहुत कुछ शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है। आजादी मिलने के बाद सरकार ने अशिक्षा को दूर करने के लिए जगह-जगह विद्यालय खोले और प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की। फिर भी देश में साक्षरता प्रतिशत आनुपातिक दृष्टि से कम ही है। इस समस्या के समाधान के लिए अब देश में सर्वशिक्षा अभियान चलाया जा रहा है।

2. साक्षरता कार्यक्रम-देश में शिक्षा का प्रतिशत बढ़ाने के लिए जगह-जगह प्रौढ़ शिक्षा एवं साक्षरता का अभियान चलाया गया है। इस अभियान में पैंतीस वर्ष तक के दस करोड़ लोगों को साक्षर करने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी यह अभियान पूरी तरह से सफल नहीं रहा।

3. सर्वशिक्षा अभियान-सरकार ने प्रौढ़ शिक्षा एवं साक्षरता अभियान को पहले ‘शिक्षा आपके द्वार पर’ कार्यक्रम चलाया, फिर इसे सर्वशिक्षा अभियान का रूप दिया है। पिछले दस सालों से इस अभियान को तेज गति से चलाया जा रहा है। इसके लिए गाँवों, ढाणियों, कस्बों, कच्ची बस्तियों एवं पिछड़े क्षेत्रों में नये विद्यालय खोले गये हैं। राजीव गाँधी विद्यालय योजना तथा साक्षरता अभियान के रूप में बेरोजगार शिक्षित युवकों को शिक्षा मित्र’ रूप में नियुक्त किया गया है। इसमें बालकों को निःशुल्क पाठन-सामग्री के साथ दोपहर का भोजन भी दिया जा रहा है। इसमें महिला शिक्षा पर काफी जोर दिया जा रहा है।

4. अभियान की सफलता के लिए सुझाव-इस अभियान को सफल बनाने के लिए ग्राम पंचायतों को पर्याप्त आर्थिक सहायता दी जाए। इसमें नियुक्त शिक्षा मित्रों को परा वेतन दिया जाए तथा प्रभावी निरीक्षण और पर्यवेक्षण की व्यवस्था की जाये। इसमें नैतिक शिक्षा, योग, स्वरोजगारपरक शिक्षा और दस्तकारी की शिक्षा का भी समावेश किया जावे।

5. उपसंहार-इस प्रकार सर्वशिक्षा अभियान से सारे राष्ट्र से निरक्षरता को दूर किया जा सकता है। सरकार इस ओर विशेष ध्यान दे तथा जन सहयोग लेकर भी अभियान को आगे बढ़ावे। निरक्षरता का दाग मिटाना ही इस अभियान की सफलता है।

25. शिक्षित नारी : सुख-समृद्धिकारी
अथवा
नारी-शिक्षा का महत्त्व

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. शिक्षित नारी का समाज में स्थान
  3. शिक्षित नारी आदर्श गृहिणी
  4. शिक्षित नारी से सख-समद्धि का प्रसार
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-हमारे समाज में पहले पुरुष की अपेक्षा नारी को कम महत्त्व दिया जाता था। इसलिए उसकी शिक्षा .की ओर कम ध्यान दिया जाता था। परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद सरकार नारी-शिक्षा पर ध्यान दे रही है, फिर भी अभी शिक्षित नारियों का प्रतिशत बहुत ही कम है।

2. शिक्षित नारी का समाज में स्थान-शिक्षित नारी का समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। गृहिणी के रूप में वह अपने घर-परिवार का संचालन कुशलता से कर सकती है। वह अपनी सन्तान को सभी दृष्टियों से योग्य बना सकती है। सुशिक्षित नारी माँ के रूप में श्रेष्ठ गुरु, पत्नी के रूप में आदर्श गृहिणी और बहिन के रूप में श्रेष्ठ मार्गदर्शिका होती है। यदि नारी शिक्षित है तो वह विभिन्न पदों पर आसीन होकर अपने दायित्व का निर्वहन सफलतापूर्वक कर सकती है और देश व समाज की प्रगति में अपना योगदान अच्छी तरह से दे सकती है।

3. शिक्षित नारी आदर्श गृहिणी-शिक्षित नारी घर-गृहस्थी का संचालन, कर्तव्य-अकर्त्तव्य की पहचान, अच्छे-बुरे का ज्ञान और सन्तान के भविष्य का निर्माण अच्छी तरह से कर सकती है। आमदनी के आधार पर व्यय-अपव्यय का ध्यान रख सकती है। सामाजिक-सम्बन्धों में प्रगाढ़ता ला सकती है। परिवार और समाज को व्याप्त अंधविश्वासों और रूढ़ियों से मुक्त कर सकती है। अपनी गृहस्थी को सुख-समृद्धशाली बना सकती है।

4. शिक्षित नारी से सुख-समृद्धि का प्रसार-शिक्षित नारी से ही सुख और समृद्धि का प्रसार होता है, क्योंकि वही परिवार के सदस्यों में आत्मीयता तथा एकता की भावना जाग्रत करती है। वह परिवार का कुशलता से संचालन करती है। अपने व्यवहार में सन्तुलन बनाये रखती है। शिक्षित नारी पंति की सच्ची सहधर्मिणी एवं सन्तान की सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शिका होती है। उसी के कारण सन्तान का भविष्य उज्ज्वल हो पाता है, घर-परिवार का वातावरण सुख-सम्पन्नता से परिपूर्ण हो जाता है और समाज उचित प्रभाव भी ग्रहण करता है।

5. उपसंहार-संक्षेप में कहा जा सकता है कि उचित एवं अनुकूल शिक्षा प्राप्त करके नारी अपने व्यक्तित्व का निर्माण तो करती ही है, वह अपने समाज और घर-परिवार में सुख का संचार करती है। जिस राष्ट्र की नारियाँ शिक्षित होती हैं, वह राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है, इसी कारण ‘शिक्षित नारी : सुख-समृद्धिकारी’ कहा गया है।

26. कम्प्यूटर शिक्षा का महत्त्व
अथवा
कम्प्यूटर शिक्षा की उपयोगिता
अथवा
कम्युटर शिक्षा की आवश्यकता

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. कम्प्यूटर शिक्षा का प्रसार
  3. कम्प्यूटर का विविध क्षेत्रों में उपयोग
  4. कम्प्यूटर शिक्षा से लाभ
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान में पूरे विश्व में अधिकांश कार्य कम्प्यूटर की सहायता से किये जाने लगे हैं। ऐसे में कम्प्यूटर शिक्षा का महत्त्व तथा उपयोगिता अत्यधिक बढ़ गई है।

2. कम्प्यूटर शिक्षा का प्रसार-कम्प्यूटर की उपयोगिता को देखते हुए कम्प्यूटर शिक्षा का स्वतन्त्र पाठ्यक्रम या है और इसकी शिक्षा का सभी देशों में अत्यधिक प्रसार हो रहा है। कम्प्यूटर से गणितीय कार्य के साथ ही विविध भाषाओं में मुद्रण, ध्वनि-संप्रेषण, शब्द-भण्डारण एवं प्रत्यक्ष-चित्र संयोजन आदि जटिल कार्य आसानी से हो रहे। हैं। इन सभी के ज्ञान के लिए अब कम्प्यूटर शिक्षा का प्रसार अनिवार्य रूप से होने लगा है।

3. कम्प्यूटर का विविध क्षेत्रों में उपयोग-कम्प्यूटर का सामान्य प्रयोग के अलावा, कम्प्यूटर शिक्षा में दक्ष व्यक्ति इसका उपयोग विविध प्रकार से करता है। कम्प्यूटर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, साक्षात्कार करना, मौसम की पूर्व सूचना देना, समुद्रीय लहरों की भविष्यवाणी करना, दूरसंचार का प्रसार करना, इण्टरनेट आदि का संचालन करना आदि अनेक क्षेत्रों में इसका कुशलता से उपयोग किया जा रहा है।

रेल-हवाई जहाज के टिकटों का वितरण-आरक्षण, दूरसंवेदी उपग्रहों का संचालन, परमाणु आयुधों का निर्माण, जटिल यान्त्रिक इकाइयों का पर्यवेक्षण एवं व्यवस्थापन, बड़ी मात्रा में समाचार-पत्रों एवं पुस्तकों का मुद्रण, पानी-बिजली-टेलीफोन के लाखों बिलों और परीक्षा-परिणामों का संगठन-प्रतिफलन, बैंकिंग कार्य करने में कम्प्यूटर का उपयोग आज निर्बाध गति से हो रहा है।

4. कम्प्यूटर शिक्षा से लाभ-जैसाकि कम्प्यूटर की विविध क्षेत्रों में उपयोगिता ऊपर दिखाई गई है, यह सब कम्प्यूटर शिक्षा से ही सम्भव है। अब कार्यालयीय कार्यों के लिए तथा व्यावसायिक क्षेत्र की सफलता के लिए कम्प्यूटर का ज्ञान अति आवश्यक बन गया है। इसी से वर्तमान में दूरस्थ शिक्षा तथा ऑन लाईन एजूकेशन के कार्यक्रम चल रहे हैं। फलस्वरूप इससे बौद्धिक-शारीरिक श्रम, समय तथा धन आदि की बचत हो रही है।

5. उपसंहार-कम्प्यूटर शिक्षा का वर्तमान में सर्वाधिक महत्त्व है। इसकी सभी क्षेत्रों में उपयोगिता बढ़ रही है। आज के व्यस्ततम जीवन में कम्प्यूटर से प्रत्येक सामान्य शिक्षित व्यक्ति लाभान्वित हो रहा है। अब कार्यालयीय कार्यों के लिए तथा कम्प्यूटर केवल संगणक न रहकर सर्व-कार्य सम्पादक बन गया है।

27. शिक्षा-सुधार में विद्यार्थियों की भूमिका

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. वर्तमान में शिक्षा का स्तर
  3. विद्यार्थियों के द्वारा सुधार के उपाय
  4. शिक्षा-सुधार से लाभ
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-हमारे देश की शिक्षा पद्धति में यद्यपि नागरिक कर्तव्यों का समावेश किया गया है तथापि विद्यार्थियों को इसका सम्यक् ज्ञान नहीं है। यदि आज का शिक्षार्थी ज्ञानार्जन की भावना रखकर शिक्षा के स्तर में सुधार करना चाहे तो वह अपनी शक्ति को हड़ताल, तोड़फोड़ जैसी गतिविधियों में न लगाकर शिक्षा क्षेत्र की कमियों को दूर करने में लगाये तो निश्चित ही हमारे शिक्षा-स्तर में सुधार हो सकता है।

2. वर्तमान में शिक्षा का स्तर-हमारे देश में वर्तमान में शिक्षा-प्रणाली का स्वरूप कोरे किताबी ज्ञान पर आधारित होने के कारण एकदम गिरा हुआ है। यह काफी श्रम-साध्य एवं व्यय-साध्य है। साथ ही व्यावसायिक प्रशिक्षण और स्वरोजगारोन्मुखता का अभाव होने से उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर भी युवा वर्ग बेकारी और बेरोजगारी के शिकार बन रहे हैं। यह स्थिति अतीव चिन्तनीय है।

3. विद्यार्थियों के द्वारा सुधार के उपाय-वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के स्वरूप एवं स्तर में सुधार लाने के लिए युवा-शक्ति क उपयोग नितान्त अपेक्षित है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं – (1) शिक्षा प्रणाली में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जावे। (2) विद्यार्थी व्यावहारिक एवं व्यावसयिक ज्ञान प्राप्त करें। (3) शिक्षा-स्तर में अनुशासन एवं कर्त्तव्यनिष्ठा का विशेष ध्यान रहे। (4) ज्ञान-साधना को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य माना जावे। (5) राष्ट्रीय एवं सामाजिक दायित्व-निर्वाह के प्रति जागृत किया जावे। (6) शिक्षा को आदर्श चरित्र एवं संस्कार-निर्माण का साधन समझा जावे। (7) शिक्षा-प्रणाली के समस्त दोषों का निवारण किया जावे।

4. शिक्षा-सुधार से लाभ-शिक्षा स्तर में सुधार करने से विद्यार्थियों में स्वावलम्बन की भावना पनपेगी। वे अपना सम्यक् चारित्रिक-बौद्धिक विकास करने के साथ ही सामाजिक दायित्वों का विकास अच्छी तरह से कर सकेंगे। शिक्षा सुधार से बेकारी-बेरोजगारी नहीं रहेगी और वे अच्छे नागरिक की भूमिका निभा सकेंगे।

5. उपसंहार-विद्यार्थियों के प्रयासों से ही शिक्षा में सुधार और उचित परिणाम सामने आ सकता है। अतएव पहले विद्यार्थी स्वयं जागृत होवें, फिर शिक्षा-सुधार में संलग्न रहें, तो निस्सन्देह हमारी शिक्षा का स्तर उच्च कोटि का बन
सकता है।

28. निरक्षरता : एक अभिशाप

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. निरक्षरता का दुष्प्रभाव
  3. निरक्षरता निवारण अभियान
  4. निरक्षरता निवारण के लिए सुझाव
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना बिना पढ़ा-लिखा व्यक्ति भले ही लौकिक ज्ञान से पूरित रहता है, लेकिन न तो वह अपने व्यक्तित्व का विकास कर पाता है और न वह समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी बन पाता है। इसलिए निरक्षरता को व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए अभिशाप कहा गया है।

2. निरक्षरता का दुष्प्रभाव हमारे देश में पराधीनता के काल में शिक्षण-सुविधाओं का नितान्त अभाव था। दूसरी ओर गरीबी, शोषण, अन्धविश्वासों और रूढ़ियों की भी अधिकता-थी। इन सभी कारणों से भारतीय सामाजिक जीवन का विकास नहीं हो पाया। आजादी के बाद साक्षरता के अनेक कार्यक्रमों का संचालन किया गया, फिर भी आज शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षरता का प्रतिशत अधिक है। इस व्याप्त निरक्षरता के अनेक दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं।

3. निरक्षरता निवारण अभियान स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकारी स्तर पर निरक्षरता दूर करने के अनेक प्रयास किए जाते हैं। इस दृष्टि से शिक्षण संस्थाओं का विस्तार किया गया और राष्ट्रीय स्तर पर प्रौढ़ शिक्षा नीति के अन्तर्गत साक्षरता कार्यक्रम चलाए जाने लगे। ग्रामीण और कस्बायी क्षेत्रों में प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों और विद्यालयों की स्थापना की गयी। समाज कल्याण के सहयोग से साक्षरता अभियान को आगे बढ़ाया गया। अब राजस्थान में राजीव. गाँधी पाठशाला योजना, लोक जुम्बिश परिषद् और सन्धान संस्था द्वारा पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय खोले जा रहे हैं और आठ से चौदह वर्ष के बालक-बालिकाओं को साक्षर करने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में प्रचलित सर्वशिक्षा अभियान के द्वारा साक्षरता के लक्ष्य के प्रति काफी आशाएँ हैं।

4. निरक्षरता निवारण के लिए सुझाव हमारे देश से निरक्षरता का कलंक तभी मिट सकता है, जब सारे देश में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी जावे और बालकों को अशिक्षित रखना कानूनी अपराध माना जावे। इसके लिए जगह-जगह पर विद्यालय खोले जावें और गरीब जनता के बालकों को हर तरह की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जावें। वयस्कों के लिए प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से चलाया जावे। वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित सर्वशिक्षा अभियान को अधिक प्रभावशाली बनाया जावे और प्रचार-साधनों एवं दूरदर्शन का इसके लिए पूरा उपयोग किया जावे।

5. उपसंहार-निरक्षरता मानव-समाज पर एक कलंक है, यह मानवता के लिए एक अभिशाप है। इस अभिशाप से मुक्ति आवश्यक है और यह कार्य साक्षरता के आलोक से ही हो सकता है।

29. विद्यार्थी जीवन में नैतिक शिक्षा की उपयोगिता
अथवा
नैतिक शिक्षा का महत्त्व
अथवा
नैतिक शिक्षा की महती आवश्यकता

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. नैतिक शिक्षा का स्वरूप
  3. नैतिक शिक्षा का समायोजन
  4. नैतिक शिक्षा की उपयोगिता
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-हमारे देश में स्वतन्त्रता के बाद शिक्षा-क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है फिर भी एक कमी यह है कि यहाँ नैतिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है। इससे भारतीय यवा पीढी संस्कारहीन और कोरी भौतिकतावादी बन रही है।

2. नैतिक शिक्षा का स्वरूप-प्राचीन काल में हमारे देश में नैतिक शिक्षा पर बल दिया जाता था, जिससे उस समय विद्यार्थियों में नैतिक आदर्शों को अपनाने की होड़ लगी रहती थी। लेकिन भारत गुलामी के कारण नैतिक शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ गया और जब आजाद हुआ तब शिक्षा का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण न होकर अर्थोपार्जन भर रह गया। जिसके कारण मानवीय मूल्यों का ह्रास ही नहीं हुआ बल्कि चारित्रिक पतन भी हुआ। इस स्थिति की ओर ध्यान देकर अब प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा-स्तर पर नैतिक शिक्षा का समावेश किया जा रहा है।

3. नैतिक शिक्षा का समायोजन-भारतीय संस्कृति के उपासक लोगों ने वर्तमान शिक्षा पद्धति के गुण-दोषों का चिन्तन कर नैतिक शिक्षा के प्रसार का समर्थन किया। परिणामस्वरूप पाठ्यक्रम में स्तरानुकूल नैतिक शिक्षा का समायोजन किया जा रहा है। वस्तुतः विद्यार्थी जीवन आचरण की पाठशाला है। इसलिए विद्यार्थी को जैसी शिक्षा दी जायेगी, आगे चलकर वह वैसा ही बनेगा। इस बात को ध्यान में रखकर नैतिक शिक्षा का समायोजन किया गया है।

4. नैतिक शिक्षा की उपयोगिता-नैतिक शिक्षा की उपयोगिता व्यक्ति, समाज और राष्ट्र इन सभी के लिए है। विद्यार्थी जीवन में तो नैतिक शिक्षा का विशेष महत्त्व और उपयोगिता है। नैतिक शिक्षा के द्वारा ही विद्यार्थी अपने चरित्र एवं व्यक्तित्व का सुन्दर निर्माण कर सकते हैं और अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं। अतएव प्रशस्य जीवन-निर्माण के लिए नैतिक शिक्षा की विशेष उपयोगिता है।

5. उपसंहार-नैतिक शिक्षा मानव-व्यक्तित्व के उत्कर्ष का, संस्कारित जीवन तथा समस्त समाज-हित का प्रमुख साधन है। इससे भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता, प्रमाद, लोलुपता, छल-कपट तथा असहिष्णुता आदि दोषों का निवारण होता है। मानवतावादी चेतना का विकास भी इसी से सम्भव है।

30. इन्टरनेट : वरदान या अभिशाप
अथवा
इन्टरनेट की उपयोगिता
अथवा
इन्टरनेट : लाभ और हानि
अथवा
इन्टरनेट : ज्ञान का भण्डार
अथवा
विद्यार्थी-जीवन में इन्टरनेट की भूमिका
अथवा
सूचना एवं संचार की महाक्रान्ति : इन्टरनेट

संकेत बिन्द :

  1. प्रस्तावना-नवीनतम प्रौद्योगिकी
  2. इन्टरनेट प्रणाली
  3. इन्टरनेट का प्र
  4. इन्टरनेट से लाभ एवं हानि
  5. आधुनिक जीवन में उपयोगिता
  6. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान में सूचना एवं दूर-संचार प्रौद्योगिकी का असीमित विस्तार हो रहा है। अब कम्प्यूटर एवं सेलफोन के द्वारा सूचना एवं मनोरंजन का एक सुन्दर साधन बन गया है, जिसे इन्टरनेट कहते हैं। इन्टरनेट नवीनतम संचार प्रौद्योगिकी है। इससे अल्प समय में समस्त जानकारियाँ सरलता से मिल जाती हैं।

2. इन्टरनेट प्रणाली-यह ऐसे कम्प्यूटरों एवं सेलफोनों की प्रणाली है, जो सूचना लेने और देने अर्थात् उनका आदान-प्रदान करने के लिए आपस में जुड़े रहते हैं। इन्टरनेट का आशय विश्व के करोड़ों कम्प्यूटरों को जोड़ने वाला ऐसा अन्तर्जाल है, जो क्षण-भर में समस्त जानकारियाँ उपलब्ध करा देता है।

3. इन्टरनेट का प्रसार-इन्टरनेट का प्रारम्भ सन् 1960 के दशक में अमेरिका में हुआ। फिर इसका प्रसार भारत तथा अन्य देशों में धीरे-धीरे बढ़ता गया। बहुउपयोगिता आधार पर जीवन के हर क्षेत्र के लोग इससे जुड़ते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप आज सारे विश्व में करोड़ों वेबसाइटों के रूप में इन्टरनेट का संजाल फैल गया है। इसके कारण सूचना एवं संचार-क्षेत्र में महाक्रान्ति आ गयी है।

4. इन्टरनेट से लाभ एवं हानि-इन्टरनेट से अनेक लाभ हैं। परस्पर विचार-विमर्श, सूचनाओं का आदान-प्रदान, ज्ञान-प्रसार एवं विविध मनोरंजन के साधन इससे प्राप्त हो जाते हैं। विद्यार्थियों की ज्ञान-वृद्धि के लिए यह अतीव उपयोगी है। परन्तु इन्टरनेट से कई हानियाँ भी हैं। इस पर कई बार मनपसन्द सामग्री के फ्री-डाउनलोड करते ही ऐसे खतरे आते हैं जो कम्प्यूटर सिस्टम को तो तबाह करते ही हैं, निजी सूचना-तन्त्र में भी सेंध लगाते हैं। इससे समय, धन एवं उपकरणों का नुकसान झेलना पड़ता है।

5. आधुनिक जीवन में उपयोगिता-आज इन्टरनेट की सभी के लिए नितान्त उपयोगिता है। व्यापारिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा व्यक्तिगत कार्यों में इसकी सहायता से सारे काम साधे जा सकते हैं। मनोरंजन की दृष्टि से भी इसकी बहुत उपयोगिता है। विद्यार्थियों के लिए तो यह ज्ञान का भण्डार है।

6. उपसंहार-वर्तमान काल में इन्टरनेट का द्रुतगति से विकास हो रहा है और इस पर कई तरह के सॉफ्टवेयर मुफ्त में डाउनलोड किये जा सकते हैं। भले ही इन मुफ्त के डाउनलोडों से अनेक बार हानियाँ उठानी पड़ती हैं, फिर भी सूचना-संचार के अनुपम साधन के साथ सामाजिक-आर्थिक प्रगति में इनकी भूमिका अपरिहार्य बन गई है।

31. मोबाइल फोन : वरदान या अभिशाप
अथवा
मोबाइल फोन का प्रचलन एवं प्रभाव
अथवा
मोबाइल फोन : छात्र के लिए वरदान या अभिशाप

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. मोबाइल फोन से लाभ : वरदान
  3. मोबाइल फोन से हानि : अभिशाप
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-आधुनिक युग में विज्ञान द्वारा अनेक आश्चर्यकारी आविष्कार किये गये, जिनमें कम्प्यूटर एवं मोबाइल या सेलफोन का विशेष महत्त्व है। मोबाइल फोन का जिस तेजी से प्रसार हुआ है, वह संचार-साधन के क्षेत्र में चमत्कारी घटना है। आज इसका उपयोग छोटे से लेकर बड़ा आदमी तक बड़े गर्व के साथ कर रहा है।

2. मोबाइल फोन से लाभ : वरदान-मोबाइल फोन अतीव छोटा यन्त्र है, जिसे व्यक्ति अपनी जेब में अथवा मुट्ठी में रखकर कहीं भी ले जा सकता है और कभी भी कहीं से दूसरों से बात कर सकता है। इससे समाचार का आदान-प्रदान सरलता से होता है और देश-विदेश में रहने वाले अपने लोगों के सम्पर्क में लगातार रहा जा सकता है। व्यापार-व्यवसाय में तो यह लाभदायक एवं सुविधाजनक है ही, अन्य क्षेत्रों में भी यह वरदान बन रहा है। असाध्य रोगी की तुरन्त सूचना देने, मनचाहे गाने या रिंग टोन सुनने, केलकुलेटर का कार्य करने के साथ मनचाही फिल्म देखने तक अनेक लाभदायक और मनोरंजक कार्य इससे किये जा सकते हैं। इससे अनेक फारमेटों एवं डाटा पैकों के माध्यम से संचार-तंत्रों से जुड़ा जा सकता है। छात्रों के लिए शिक्षा की दृष्टि से यह काफी उपयोगी तथा वरदान सिद्ध हो रहा है।

3. मोबाइल फोन से हानि : अभिशाप-प्रत्येक वस्तु के अच्छे और बुरे दो पक्ष होते हैं। मोबाइल फोन से भी अनेक हानियाँ हैं। वैज्ञानिक शोधों के अनुसार मोबाइल से बात करते समय रेडियो किरणें निकलती हैं, जो व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होती हैं। इससे लगातार सुनने पर कान कमजोर हो जाते हैं, मस्तिष्क में चिढ़चिढ़ापन आ जाता है। अपराधी प्रवृत्ति के लोग इसका दुरुपयोग करते हैं, जिससे समाज में अपराध बढ़ रहे हैं। इन सब कारणों से मोबाइल फोन हानिकारक एवं अभिशाप भी है।

4. उपसंहार-मोबाइल फोन दूरभाष की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण आविष्कार है तथा इसका उपयोग उचित ढंग से तथा आवश्यक कार्यों के सम्पादनार्थ किया जावे, तो यह वरदान ही है। लेकिन अपराधी लोगों और युवाओं में इसके दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है, यह सर्वथा अनुचित है। मोबाइल फोन का सन्तुलित उपयोग किया जाना ही लाभदायक है।

32. आधुनिक सूचना-प्रौद्योगिकी
अथवा
भारत में सूचना क्रान्ति का प्रसार
अथवा
संचार माध्यम व उसके बढ़ते प्रभाव
अथवा
सूचना क्रान्ति के युग में भारत

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी या संचार-क्रान्ति
  3. सूचना प्रौद्योगिकी का विकास या संचार माध्यमों का प्रसार
  4. सूचना प्रौद्योगिकी या संचार माध्यमों से लाभ
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान काल नवीनतम वैज्ञानिक आविष्कारों का युग है। अब कम्प्यूटर के आविष्कार के साथ टेलीफोन, मोबाइल, टेलीविजन आदि अनेक इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के आविष्कारों से इस क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। इससे आज के मानव का दैनिक जीवन काफी प्रभावित हो रहा है। आज संचार-साधनों से समाज का हर वर्ग लाभान्वित हो रहा है।

2. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी या संचार-क्रांति-हमारे देश में सन् 1984 में केन्द्र सरकार द्वारा कम्प्यूटर नीति की घोषणा होते ही संचार क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। संचार सुविधा की दृष्टि से जगह-जगह माइक्रोवेव टावर एवं दूरदर्शन टावर स्थापित किये गये। इसके फलस्वरूप दूरदर्शन के चैनलों तथा मोबाइल सेवाओं का विस्तार हुआ। साथ ही टेलेक्स, ई-मेल, ई-कामर्स, फैक्स, इन्टरनेट आदि संचार-साधनों का असीमित विस्तार होने से संचार-तंत्र से जहाँ सूचना प्रौद्योगिकी का प्रसार हुआ है, वहाँ संचार-सुविधाओं में आश्चर्यजनक क्रान्ति आ गई है।

3. सूचना प्रौद्योगिकी का विकास या संचार-माध्यमों का प्रसार-वर्तमान में संचार माध्यमों के प्रसार में जो क्रान्ति आयी है उससे विभिन्न यातायात के साधनों के टिकटों का आरक्षण, वेबसाइट पर विभिन्न परिणामों का प्रसारण, रोजगार समाचारों एवं व्यापार-जगत् का उतार-चढ़ाव अविलम्ब पता चल जाता है। फैक्स, ई-मेल, टेलीप्रिन्टर आदि इलेक्ट्रॉनिक साधनों से संचार-सुविधाओं का तीव्र गति से प्रसार हुआ है। भू-उपग्रहों की सहायता से विश्व की प्रमुख घटनाओं और अन्तरिक्ष की गतिविधियों को भी सरलता से देखा जाने लगा है। यह सब संचार क्रान्ति के प्रसार से ही संभव हो सका है।

4. सूचना प्रौद्योगिकी या संचार-माध्यमों से लाभ-संचार माध्यमों से समाज एवं देश को अनेक लाभ हुए हैं। शिक्षा-क्षेत्र में साइबर शिक्षा, दूरदर्शन चैनल से शिक्षा एवं ऑनलाइन एजुकेशन का प्रसार हुआ है। सर्वाधिक लाभ समाचार पत्रों को हुआ है। इंजीनियरिंग क्षेत्र में नये क्षेत्रों का सृजन हुआ है तथा देश के बड़े औद्योगिक परिसरों का विस्तार हुआ है। इनका लाभ जनता को प्रत्यक्ष रूप से मिल रहा है।

5. उपसंहार-वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप संचार-क्षेत्र में जो क्रान्ति आयी है, उससे व्यक्ति के दैनिक जीवन तथा सामाजिक जीवन को अनेक लाभ मिल रहे हैं। इससे रोजगार की उपलब्धता के साथ ही ज्ञान-विज्ञान एवं व्यवसाय आदि में भी अनेक सुविधाएँ बढ़ी हैं। निस्सन्देह संचार-क्रांति की आश्चर्यजनक प्रगति सभी के लिए लाभकारी रहेगी।

33. कम्प्यूटर के बढ़ते कदम और प्रभाव
अथवा
कम्प्यू टर के बढ़ते चरण

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना-परिचय
  2. कम्प्यूटर के बढ़ते चरण
  3. कम्प्यूटर के विविध प्रयोग एवं प्रभाव
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान में विज्ञान की आश्चर्यजनक प्रगतियों में कम्प्यूटर का आविष्कार सबसे अधिक चमत्कारी घटना है। सन् 1926 में वैज्ञानिकों ने अनुसंधान करके मानव मस्तिष्क के रूप में कम्प्यूटर का आविष्कार किया। कम्प्यूटर तीव्र गति से प्रोसेसिंग कर एक सेकण्ड में तीस लाख तक की गणना कर सकता है। साथ ही हजारों मानवों के मस्तिष्कों का कार्य एक साथ कुछ ही सेकण्डों में कर सकता है।

2. ढते चरण-वर्तमान काल में कम्प्यूटर का उपयोग मद्रण, वैज्ञानिक अनसन्धानअन्तरिक्ष विज्ञान एवं कृत्रिम उपग्रहों के प्रक्षेपण के साथ ही अनेक कार्यों में किया जा रहा है। इससे सूचना एवं संचार के क्षेत्र में क्रान्तिकारी प्रगति हो रही है। यह शुद्ध गणना के लिए अचूक साधन है। आज बैंकों, रेलवे कार्यालयों, औद्योगिक इकाइयों के संचालन, सैन्य-गतिविधियों, पोस्ट ऑफिसों, संचार माध्यमों, खगोलीय गणना, ज्योतिष गणना, मौसम की को विशेष रूप से अपनाया जा रहा है। आज के भौतिक जीवन के हर क्षेत्र में कम्प्यूटर की निरन्तर उपयोगिता बढ़ती जा रही है।

3. कम्प्यूटर के विविध प्रयोग एवं प्रभाव-आज कम्प्यूटर का उपयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हो रहा है। साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में, परमाणु आयुधों के निर्माण में, उनके संचालन में तथा श्रम-कौशल के संवर्द्धन में इसे अपनाया जा रहा है। विभिन्न परीक्षाओं के अंकन-कार्य, परिणाम प्रदर्शन, पानी-बिजली आदि के लाखों बिल बनाने में इसका उपयोग अनिवार्य-सा हो गया है। इस तरह कम्प्यूटर का विविध क्षेत्रों में प्रयोग होने से मानव-शक्ति का विकास उत्तरोत्तर हो रहा है।

4. उपसंहार-कम्प्यूटर विज्ञान का क्रान्तिकारी आविष्कार है। यह मानव का परिष्कृत एवं शक्तिशाली मस्तिष्क जैसा है। इसमें हजारों संकेतों एवं गणनाओं को विशुद्ध रूप से संग्रह-स्मरण करने की क्षमता है। इसलिए आज के जीवन में इसका शिक्षण-प्रशिक्षण प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक एवं उपयोगी है।

34. दूरदर्शन : वरदान या अभिशाप
अथवा
युवा पीढ़ी पर दूरदर्शन का प्रभाव

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. दूरदर्शन का महत्त्व
  3. दूरदर्शन विज्ञान का वरदान
  4. दूरदर्शन का दुष्प्रभाव
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-आज दूरदर्शन हमारे जीवन में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन है। यह ज्ञानवर्धक अनोखा आविष्कार भी है। दूरदर्शन अर्थात् टेलीविजन का सर्वप्रथम प्रयोग 25 जनवरी, 1926 को इंग्लैण्ड के एक इंजीनियर जॉन था। इसका उत्तरोत्तर विकास होता रहा और अनेक कार्यों में इसकी उपयोगिता भी बढ़ी.। हमारे देश में सन् 1959 से दूरदर्शन का प्रसारण प्रारम्भ हुआ और आज यह सारे भारत में प्रसारित हो रहा है।

2. दूरदर्शन का महत्त्व-वर्तमान में दूरदर्शन का ज्ञान-वर्द्धन और मनोरंजन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज हम दूरदर्शन के माध्यम से घर बैठे दुनिया में घटने वाली घटनाओं को तुरन्त जान लेते हैं। वहीं ज्ञान-विज्ञान, समाज-शिक्षा, खेती-बाड़ी, भविष्य-दर्शन, मौसम विज्ञान आदि के सम्बन्ध में जानकारी हासिल कर लेते हैं और सैकड़ों चैनलों से प्रसारित होने वाले सीरियलों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के मनोरंजन कर लेते हैं।

3. दूरदर्शन विज्ञान का वरदान-सामाजिक जीवन में दूरदर्शन की उपयोगिता को देखकर इसे विज्ञान का वरदान माना जाता है। दूरदर्शन पर विश्व में घटने वाली प्रमुख घटनाओं के समाचार तत्काल मिल जाते हैं। रोगों के निवारण, जन-जागरण, जनसंख्या नियन्त्रण तथा सामाजिक कुप्रवृत्तियों को रोकने में भी इसकी काफी उपयोगिता है। महिलाओं को दस्तकारी एवं गृह-उद्योग के सम्बन्ध में इससे जानकारी दी जाती है। सूचना-प्रसारण एवं विज्ञापन-व्यवसाय के लिए यह एक उत्कृष्ट माध्यम है। शिक्षा के क्षेत्र में तो यह विज्ञान का श्रेष्ठ वरदान है।

4. दूरदर्शन का दुष्प्रभाव-दूरदर्शन का बुरा प्रभाव यह है कि इसे देखते रहने से बच्चे पढ़ाई से जी चुराते हैं। साथ होने वाले कार्यक्रमों और मारधाड़ वाली फिल्मों से युवा पीढ़ी पर गलत प्रभाव पड़ रहा है। चोरी, डकैती, बलात्कार और फैशनपरस्ती की प्रवृत्तियाँ इसके प्रभाव से बढ़ रही हैं। इस तरह के दुष्प्रभावों के कारण दूरदर्शन को अभिशाप भी माना जा रहा है।

5. उपसंहार-आज के युग में मनोरंजन की दृष्टि से दूरदर्शन की विशेष उपयोगिता है। इससे संसार की नवीनतम घटनाओं, समाचारों आदि की जानकारी मिलती है तथा लोगों के ज्ञान का विकास होता है। परन्तु इसके कुप्रभावों से युवाओं को मुक्त रखा जावे, यह भी अपेक्षित है।

35. मानव के लिए विज्ञान-वरदान या अभिशाप
अथवा
विज्ञान के बढ़ते कदम

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. विज्ञान के बढ़ते कदम
  3. विज्ञान मानव के लिए वरदान
  4. विज्ञान मानव के लिए अभिशाप
  5. समाधान एवं उपसंहार।

1. प्रस्तावना-आधुनिक युग विज्ञान का युग है। विज्ञान आज मानव जीवन से इस प्रकार घुल-मिल गया है कि उसे जीवन से पृथक् करना असम्भव हो गया है। ऐसी स्थिति में यह आज एक विचारणीय प्रश्न उत्पन्न हो गया है कि यह विज्ञान मानवता को लाभान्वित कर रहा है अथवा पतन के गर्त की ओर ले जा रहा है ? इस सम्बन्ध में बुद्धिजीवियों एवं चिन्तकों में मतभेद हैं।

2. विज्ञान के बढ़ते कदम-आज विज्ञान के क्षेत्र में मानव ने अभूतपूर्व प्रगति की है। इसीलिए वह बैलगाड़ियों और घोड़ों पर बैठकर यात्रा करने की बात भूल गया है। आज वह वैज्ञानिक साधनों के सहारे सैकड़ों मीलों की यात्रा मिनटों में पूरी करने लगा है। इतना ही नहीं वह सैकड़ों मील दूर के दृश्य घर बैठे ही देखने लगा है। विश्व के किसी कोने में रह रहे अपने संबंधी से बात आसानी से करने लगा है। सामरिक क्षेत्र में विज्ञान की सहायता से ऐसे बम और राकेट तैयार कर लिए गये हैं जो पलक झपकाते ही दूर स्थित दुश्मन को नष्ट कर सकते हैं। ये सब विज्ञान के बढ़ते कदमों के ही प्रमाण हैं।

3. विज्ञान मानव के लिए वरदान-विज्ञान से समाज और व्यक्ति दोनों समान रूप से उपकृत हुए हैं। आज आवागमन, सुख-सुविधा, भोग-विलास, स्वास्थ्य-रक्षा, संचार-व्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में विज्ञान मानव के लिए वरदान बन गया है। आज अगर राजस्थान में अकाल पड़ता है तो पंजाब से वहाँ के लिए गेहूँ पहुँच जाता है। पहले यह सम्भव नहीं था। यह सब विज्ञान के द्वारा ही वरदान रूप में संभव हुआ है।

4. विज्ञान मानव के लिए अभिशाप-विज्ञान ने मनुष्य के महत्त्व और कार्यक्षेत्र का अपरिमित विस्तार करके उसे स्वचालित यंत्र जैसा बना दिया है। विज्ञान के द्वारा जुटाये सुख के साधन इतने मोहक तथा लुभावने हैं कि उन्हें प्राप्त करने के लिए व्यक्ति अपना मनुष्यत्व भूल जाता है। इसी से भ्रष्टाचार की असीमित वृद्धि हो रही है। विज्ञान ने अणु आयुधों एवं विषाक्त गैसों का निर्माण करके मानव-जाति के समूल विनाश का भय उत्पन्न कर दिया है। यह मानव जाति के लिए अभिशाप दिखाई दे रहा है। अतः विज्ञान का अति भौतिकवादी प्रयोग हानिकारक ही है।

5. समाधान एवं उपसंहार-आज इस तरह के चिन्तन की जरूरत है कि विज्ञान की प्रगति मानवीय दृष्टि से समन्वित रहे। विज्ञान हमारी सुविधा के लिए है, हम विज्ञान की सुविधा के लिए नहीं हैं। अतः विज्ञान को अभिशाप न बनाने का उत्तरदायित्व बुद्धिमान् और विवेकशील लोगों पर है। इसलिए विज्ञान के सुपरिणामों को सही रूप में प्राप्त करने का प्रयास करना अपेक्षित है।

विचारात्मक निबन्ध :

36. समय का सदुपयोग संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. समय के सदुपयोग की जरूरत
  3. समय के सदुपयोग से लाभ
  4. समय के दुरुपयोग से हानि
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मानव-जीवन में समय सबसे अधिक मूल्यवान है। साथ ही यह निरन्तर गतिशील, क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है। इसीलिए कहा जाता है कि कालचक्र का पहिया हमेशा घूमता रहता है। समय सदैव आगे बढ़ता रहता है। अतः जो समय के साथ गतिमान रहता है, वही अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करता है। जो समय की दौड़ में पिछड़ जाता है, समय उसे लात मार कर दूर कर देता है। इसीलिए कहा गया है “समय चूकि पुनि का पछिताने।”

2. समय के सदुपयोग की जरूरत-मानव-जीवन की सफलता का रहस्य समय के सदुपयोग में छिपा हुआ है। समय के सदुपयोग से सामान्य व्यक्ति भी महान् बन जाता है। उदाहरण के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और पण्डित नेहरू समय के बहुत पाबन्द थे। इसी कारण उन्होंने जीवन में सफलता ही प्राप्त नहीं की, बल्कि दुनिया में अपना नाम भी कमाया। इसलिए समय का सदुपयोग करने वाला ही सफल जीवन जीता है।

3. समय के सदुपयोग से लाभ-जीवन में समय के सदुपयोग से अनेक लाभ मिलते हैं। इससे व्यक्ति आलसी नहीं रहता है। प्रत्येक काम उचित समय पर करने से बाद में पछताना नहीं पड़ता है। समय के सदुपयोग से अपना हित तथा समाज व देश का हित-कार्य भी सध जाता है। समय के सदुपयोग की आदत पड़ने से दैनिक जीवनचर्या सुव्यवस्थित हो जाती है तथा किसी भी काम में हानि या नुकसान नहीं उठाना पड़ता है। अतः समय का सदुपयोग करना सब तरह से लाभकारी रहता है।

4. समय के दुरुपयोग से हानि-समय का उचित उपयोग न करने से जीवन में निराशा, असफलता, असन्तोष और हानि ही हाथ लगती है। समय का दुरुपयोग करने वाला व्यक्ति आलसी, गप्पी, व्यर्थ. घूमने वाला, नासमझ एवं कर्त्तव्यहीन होता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में असफल रहता है और वह अभावों एवं कष्टों से घिरा रहता है। उसका दूसरों की निगाहों में कोई मूल्य नहीं होता है।

5. उपसंहार-वर्तमान में समय को लेकर भारतीय लोग बदनाम हैं। प्रायः भारतीयों को समय का महत्त्व न समझने वाला माना जाता है। समय का सदुपयोग करने से न केवल व्यक्ति का, अपितु समस्त समाज एवं राष्ट्र का हित होता है। इससे उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। समय का सदुपयोग ही सभी सफलताओं का मूलमन्त्र है।

37. जल-संरक्षण : हमारा दायित्व
अथवा
जल-संरक्षण की आवश्यकता एवं उपाय
अथवा
जल संरक्षण : जीवन सुरक्षण
अथवा
जल है तो जीवन है

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. जल-चेतना हमारा दायित्व
  3. जल-संकट के दुष्परिणाम
  4. जल-संरक्षण के उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-सृष्टि के पंचभौतिक पदार्थों में जल का सर्वाधिक महत्त्व है और यही जीवन का मूल आधार है। कहा भी गया है—’जल है तो जीवन है’ या ‘जल ही अमृत है’। धरती पर जलाभाव की समस्या अब उत्तरोत्तर बढ़ रही है। अतएव धरती पर जल-संरक्षण का महत्त्व मानकर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सन् 1992 में विश्व जल-दिवस मनाने की घोषणा की, जो प्रतिवर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है।

2. जल-चेतना हमारा दायित्व-हमारी प्राचीन संस्कृति में जल-वर्षण उचित समय पर चाहने के लिए इन्द्र और वरुण का पूजन किया जाता था। नदियों का स्तवन किया जाता था। प्राचीन काल में हमारे राजा और समाजसेवी श्रेष्ठि-वर्ग पेयजल हेतु कुओं, तालाबों आदि का निर्माण करवाते थे और जल-संचय करवाते थे। लेकिन आजकल स्वार्थी मनोवृत्ति के कारण जल का ऐसा विदोहन किया जा रहा है जिससे पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है। इसलिए हमारा दायित्व है कि हम जल को संरक्षण प्रदान करें।

3. जल-संकट के दष्परिणाम-आजकल हमारे यहाँ भूजल का अतिशय दोहन होने के कारण जल-संकट उत्तरोत्तर बढ रहा है। परिणामस्वरूप न तो खेती की सिंचाई हेतु पानी मिल रहा है, न पेयजल की उचित पूर्ति हो पा रही है। जल-संकट के कारण तालाब और कुएँ सूख रहे हैं। नदियों का जल-स्तर घट रहा है। धरती के अन्दर भी जल-स्तर कम हो रहा है। इस तरह जल-संकट के अनेक दुष्परिणाम देखने में आ रहे हैं।

4. जल-संरक्षण के उपाय-जिन कारणों से जल-संकट बढ़ रहा है, उनका निवारण करने से यह समस्या कुछ हल हो सकती है। इसके लिए भूगर्भीय जल का विदोहन रोका जावे। वर्षा के जल का संचय कर भूगर्भ में डाला जावे, बरसाती नालों पर बाँध या एनीकट बनाये जावें, तालाबों-पोखरों व कुओं को अधिक गहरा-चौड़ा किया जावे और बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने का प्रयास किया जावे। इस तरह के उपायों से जल-संकट का समाधान हो सकता है।

5. उपसंहार-जल को जीवन का आधार मानकर समाज में नयी जागृति लाने का प्रयास किया जावे। ‘अमृतं जलम्’ जैसे जन-जागरण के कार्य किये जावें। इससे जल-चेतना की जागृति लाने से जल-संचय एवं जल-संरक्षण की भावना का प्रसार होगा तथा इससे धरती का जीवन सुरक्षित रहेगा।

38. अनुशासनपूर्ण जीवन ही वास्तविक जीवन है
अथवा
विद्यार्थी-जीवन में अनुशासन
अथवा
विद्यार्थी एवं अनुशासन

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व
  3. अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम
  4. अनुशासनप्रियता के सुपरिणाम
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-अनुशासन का अर्थ है नियन्त्रण या संयमपूर्वक रहना। अनुशासन एक मानवीय गुण है; जिसके कारण जीवन नियमित, संयमित होता है तथा समय की बचत होती है। इसलिए राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन में अनुशासन का विशेष महत्त्व है।

2. विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व-वैसे तो जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन अति आवश्यक है लेकिन विद्यार्थी जीवन में इसका विशेष महत्त्व है, क्योंकि विद्यार्थी जीवन वह अवधि है जिसमें नये संस्कार और आचरण एक नींव की भाँति विद्यार्थी के मन को प्रभावित करते हैं। इस अवस्था में वह जैसा व्यवहार और आचरण सीख लेता है, वही उसके भावी जीवन का अंग बन जाता है। इसलिए अनुशासन विद्यार्थी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। विद्यार्थी के चरित्र-निर्माण तथा शारीरिक एवं बौद्धिक विकास के लिए अनुशासन का होना एक अनिवार्य शर्त है।

3. अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम-वर्तमान में हमारे देश में अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। विद्यार्थी ज्ञान-प्राप्ति के प्रति उदासीन हो रहे हैं, वे गुरुजनों का आदर नहीं करते हैं तथा तोड़-फोड़, आन्दोलन आदि का सहारा लेकर शिक्षा-जगत् को दूषित कर रहे हैं। राजनीतिक दलों के सदस्य भी स्वयं अनुशासित नहीं रहते हैं और वे विद्यार्थियों को गलत रास्ते पर भटकाने का कार्य करते हैं। सरकारी कर्मचारी भी अनुशासनहीन हो रहे हैं।

4. अनुशासनप्रियता के सुपरिणाम-जीवन में सफलता का रहस्य अनुशासन की भावना रखना है। जिस सन का महत्त्व स्वीकार्य है, जो उत्तरदायित्व को समझते हैं, वे अपना तथा अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाते हैं। विद्यार्थी जीवन में तो अनुशासन की विशेष उपयोगिता है, क्योंकि आज का विद्यार्थी राष्ट्र का भावी सुनागरिक है। अनुशासनप्रिय छात्र ही परिश्रमी, कर्त्तव्यपरायण और विनयशील हो सकता है और जीवन में प्रगति-पथ पर स्वतः अग्रसर हो सकता है।

5. उपसंहार-अनुशासन एक ऐसी प्रवृत्ति या संस्कार है, जिसे अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन सफल बना सकता है। इससे अनेक श्रेष्ठ गुणों का विकास होता है। अनुशासित रहकर छात्र अपनी और राष्ट्र की प्रगति कर सकता है, अतः अनुशासनपूर्ण जीवन ही वास्तविक जीवन है।

39. स्वावलम्बन का महत्त्व
अथवा
स्वावलम्बन की एक झलक पर, न्यौछावर कुबेर का कोष

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. जीवन में स्वावलम्बन की उपयोगिता
  3. स्वावलम्बन के लाभ
  4. देश एवं समाज-हित के लिए स्वावलम्बन आवश्यक
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-एक नीतिकार का यह कथन ‘स्वावलम्बन की एक झलक पर, न्यौछावर कुबेर का कोष’ अक्षरशः सत्य है। स्वावलम्बन का गुण ऐसा रत्न है कि उसके सामने धन-दौलत की आवश्यकता नहीं रहती। यह आत्मविश्वास एवं धैर्य जगाता है और उज्ज्वल भविष्य के निर्माण की ललक पैदा करता है। इस तरह जीवन में स्वावलम्बन का अपरिहार्य महत्त्व है।

2. जीवन में स्वावलम्बन की उपयोगिता-जीवन में स्वावलम्बन ऐसा सम्बल है, जिससे व्यक्ति प्रगति-पथ पर बढ़ सकता है। अपने पैरों पर खड़ा होने वाला व्यक्ति प्रत्येक कार्य उत्साह और आत्मविश्वास के साथ कर जीवनगत उद्देश्य को आसानी से प्राप्त करता है। जबकि आलसी, निकम्मे, अविवेकी जन अपने हाथ-पैर न हिलाकर, उद्देश्य में असफलता मिलने पर भाग्य और ईश्वर को दोष देते हैं। भाग्य पर रोना और पछताना उनकी नियति बन जाती है। इन कमजोरियों का निवारण स्वावलम्बन से ही किया जा सकता है।

3. स्वावलम्बन के लाभ-जीवन में उन्नति, प्रगति, कीर्ति एवं सुख-सम्पन्नता की प्राप्ति स्वावलम्बन से ही संभव है। स्वावलम्बन से सुख मिलता है, आत्मनिर्भरता आती है, जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति होती है, आलस्य और निकम्मेपन का नाश होता है। इस प्रकार स्वावलम्बन के अनेक लाभ हैं।

4. देश एवं समाज-हित के लिए स्वावलम्बन आवश्यक-स्वावलम्बी व्यक्ति अपने हित के साथ अपने देश और समाज का भी हित करता है। वह अपने आचरण से दूसरों को भी स्वावलम्बन एवं आत्मनिर्भरता की प्रेरणा देता है। स्वावलम्बन की भावना का प्रसार होने से हमारा देश स्वतन्त्र हुआ और अल्प समय में विकासशील देशों में अग्रणी ही नहीं बन गया, बल्कि प्रगति-पथ पर निरन्तर बढ़ता भी जा रहा है।

5. उपसंहार-हमारे देश में कुछ लोग अपना सामान उठाकर चलने में हीनता समझते हैं, अपने हाथों काम करने में उन्हें लज्जा आती है। इस तरह बड़प्पन का कोरा दिखावा करने वाले स्वावलम्बन का महत्त्व नहीं समझते हैं। अतएव जीवन में सुख-शान्ति, यश-वैभव प्राप्त करने, देश और समाज का हित-सम्पादन करने हेतु स्वावलम्बन अपनाना आवश्यक है।

40. वर्तमान की महती आवश्यकता : राष्ट्रीय एकता
अथवा
राष्ट्रीय एकता
अथवा
राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. स्वतन्त्र भारत में राष्ट्रीय एकता
  3. राष्ट्रीय एकता की समस्या
  4. वर्तमान में राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-वर्तमान काल में कौमी एकता अथवा राष्ट्रीय एकता को लेकर काफी विवाद चल रहा है। इस विवाद के कारण ही वर्तमान काल में धार्मिक आस्था, भाषावाद, जातिवाद, वर्गवाद, सांस्कृतिक नस्लवाद एवं क्षेत्रवाद आदि का राजनीतिक कुचक्र चलने से राष्ट्रीय एकता की जो स्थिति है, वह अत्यन्त शोचनीय है।

2. स्वतन्त्र भारत में राष्ट्रीय एकता-स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद हमारे देश में लोकतन्त्र की प्रतिष्ठा हुई। शासन व्यवस्था में किसी जाति-विशेष या धर्म-विशेष को प्रमुखता न देकर सभी देशवासियों को समानता का अधिकार दिया गया और राजनीतिक, वैचारिक एवं आर्थिक समानता का सिद्धान्त अपनाकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया गया। हमारी एकता की स्थिति को निहार कर पड़ोसी देशों के मन में ईर्ष्या का भाव जाग गया और वे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारी एकता को कमजोर करने का कुचक्र रचते रहते हैं। लेकिन जब भी भारत पर आक्रमण हुए, भारतीयों ने सभी भेदभावों को भुलाकर एकता तथा राष्ट्रीयता का परिचय दिया। इससे हमारी राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई।

3. राष्ट्रीय एकता की समस्या-इतना सब कुछ होने के बाद भी हमारी राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने की कुचालें चली जा रही हैं। कुछ राष्टों की खुफिया एजेन्सियाँ आतंकवाद को बढ़ावा दे रही हैं। का जाते हैं तो कहीं जातिगत विद्वेष भड़काया जाता है। इन कारणों से आज हमारी राष्ट्रीय एकता समस्याग्रस्त बन गयी है।

4. वर्तमान में राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता-वर्तमान में कुछ शत्रु देश आतंकियों को माध्यम बनाकर हमारी राष्ट्रीय एकता को खण्डित करना चाहते हैं। कुछ देश भारत को विकासशील एवं समृद्ध नहीं देखना चाहते हैं। साथ ही आंतरिक-विभेद, प्रान्तवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता एवं आतंकवाद आदि विभिन्न कारणों से देश की एकता को हानि पहुँचाई जा रही है। परन्तु हमें अभी सावधान रहना चाहिए। लोकतन्त्र की स्थिरता, स्वतन्त्रता की रक्षा और राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए राष्ट्रीय एकता की महती आवश्यकता है।

5. उपसंहार-संक्षेपतः भारत में जब-जब राष्ट्रीय एकता की न्यूनता रही, तब-तब विदेशी शक्तियों ने यहाँ अपने पैर जमाने की चेष्टा की है। अब स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में अनेकता में एकता का स्वर गूंजने लगा है। उसकी रक्षा के लिए आज राष्ट्रीय एकता की महती आवश्यकता है।

41. समाज-निर्माण में पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका
अथवा
समाचार-पत्रों का महत्त्व

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. समाचार-पत्रों का स्वरूप
  3. समाचार-पत्रों का महत्त्व
  4. हानियाँ
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मनुष्य अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण संसार में घटने वाली प्राकृतिक, राजनैतिक और सामाजिक आदि सभी घटनाओं के साथ अन्य बातों की जानकारी तरन्त प्राप्त करना चाहता है। इन्हें समाचार-पत्र ही हैं।

2. समाचार-पत्रों का स्वरूप-समाचार-पत्रों में आज समाज के सभी वर्गों के लिए उपयोगी सामग्री का प्रकाशन होने लगा है। छात्र वर्ग के लिए ज्ञानवर्द्धक सामग्री, युवाओं के लिए रोजगार सम्बन्धी सूचनाएँ, खेल-प्रेमियों के लिए खेल जगत्, व्यापारियों और किसानों के लिए बाजार भाव, ग्राहकों के लिए विभिन्न वस्तुओं के विज्ञापन, रोगियों के लिए विभिन्न रोगों से सम्बन्धी विज्ञापन; इनके अतिरिक्त मौसम विज्ञान, योग, ज्योतिष आदि विषयों पर भी समाचार प्रचारित होने लगे हैं। स्वरूप की दृष्टि से समाचार जन-मानस की जिज्ञासाओं के प्रमुख साधन हैं।

3. समाचार-पत्रों का महत्त्व-वर्तमान काल में समाचार पत्रों का विशेष महत्त्व है। ये लोकतन्त्र के सजग प्रहरी हैं। समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए इनकी अपनी उपयोगिता है। चाहे वह छात्र हो, युवा हो, किसान हो, व्यापारी हो, खिलाड़ी हो, राजनीतिज्ञ हो, धार्मिक हो, ग्राहक हो, सामाजिक हो आदि सभी वर्गों के लिए उपयोगी सामग्री समाचार पत्रों में प्राप्त हो जाती है। इसलिए लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ का जन-जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

4. हानियाँ-समाचार-पत्रों से कुछ हानियाँ भी हैं। कभी-कभी कुछ स्वार्थी लोग दूषित एवं साम्प्रदायिक विचारधारा को समाचार-पत्रों में प्रकाशित कराते हैं। इससे समाज में अशान्ति फैलती है। कुछ सम्पादक चटपटे समाचार प्रकाशित करने के मोह में ऐसी खबरें छापते हैं, जिनसे दंगे तक हो जाते हैं। इसी प्रकार भ्रामक विज्ञापनों, अश्लील दृश्यों एवं नग्न-चित्रों के प्रकाशन से समाचार-पत्रों के द्वारा सामाजिक वातावरण को हानि पहुँचाई जाती है। मारे देश में स्वतन्त्रता संग्राम में समाचार-पत्र-पत्रिकाओं का अद्वितीय योगदान रहा। सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना की दृष्टि से आज के युग में समाचार-पत्रों का अत्यधिक महत्त्व है।

42. कटते जंगल : घटता मंगल

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. पर्यावरण के रक्षक : वन
  3. कटते जंगल : एक समस्या
  4. कटते वनों की रोकथाम के प्रयास
  5. समाधान एवं उपाय
  6. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मानव के जीवन को मंगलमय एवं स्वस्थ बनाये रखने के लिए केवल धन और भोजन ही पर्याप्त नहीं है. अपित इ शद्ध वातावरण अर्थात मंगलकारी भौगोलिक परिवेश भी अपेक्षित है। परन्तु वर्तमान काल में जंगलों की बेतहाशा कटाई से मानव-मंगल तथा पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई है।

2. पर्यावरण के रक्षक : वन-पर्यावरण की रक्षा करने वाले प्राकृतिक साधनों में वनों का विशेष महत्त्व है। वन या पेड़ अशुद्ध वायु अर्थात् कार्बन डाइ-आक्साइड को सोखकर प्राणवायु अर्थात् ऑक्सीजन का वमन करते हैं जिससे हमारे प्राणों की रक्षा होती है। वनों से हमें वर्षा की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वन और वृक्ष पर्यावरण के रक्षक माने जाते हैं।

3. कटते जंगल : एक समस्या-वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि के कारण वनों की कटाई हो रही है। उसके लिए आवास-व्यवस्था, औद्योगिक इकाइयों का विस्तार, ईंधन व्यवस्था, यातायात हेतु सड़क निर्माण आदि सभी दृष्टियों से वनों, पेड़-पौधों को काटा जा रहा है जिसके कारण वन और पेड़-पौधे घटते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप कटते जंगल पर्यावरण के लिए एक भारी समस्या बन गये हैं।

4. कटते वनों की रोकथाम के प्रयास-वर्तमान में कुछ सामाजिक संगठन, पर्यावरण प्रदूषण निवारक संस्थाएँ तथा कुछ सरकारी विभाग वनों की सुरक्षा एवं वृक्षारोपण का अभियान चला रहे हैं। उत्तरांचल में ‘चिपको आन्दोलन’, कर्नाटक में ‘आप्पिको आन्दोलन’ के द्वारा वनों की कटाई का विरोध किया जा रहा है। राजस्थान में विश्नोई समाज ने वृक्षों की कटाई के विरोध में कई बलिदान दिये हैं। देश के अन्य राज्यों में भी वनों की कटाई रोकने के प्रयास हो रहे हैं।

5. समाधान एवं उपाय-कटते जंगलों की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा अनेक कानूनी उपाय किये जा सकते हैं। सरकार को इस संबंध में कठोर दण्ड व्यवस्था करनी चाहिए। वन-रक्षण हेतु अलग से सतर्कता दल नियुक्त करने चाहिए। जन-जाग्रति हेतु प्रयास तेज करने चाहिए। सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा अधिक से अधिक पौधारोपण हेतु जन मानस को प्रेरित किया जाना चाहिए।

6. उपसंहार-वर्तमान में वनों की अन्धाधुन्ध कटाई होने से पर्यावरण प्रदूषण का भयानक रूप उभर रहा है। इस दिशा में कुछ मानवतावादी चिन्तकों एवं पर्यावरणविद् वैज्ञानिकों का ध्यान गया है। उन्होंने कटते जंगल और घटते मंगल को एक ज्वलन्त समस्या मानकर इसके निवारण के सुझाव भी दिये हैं।

पर्व-त्योहार सम्बन्धी निबन्ध :

43. ऋतुराज वसन्त
अथवा
प्रकृति का सौन्दर्य : वसन्त

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. ऋतुराज कहलाने का कारण
  3. प्राकृतिक वातावरण
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-भारत भूमि पर विधाता की विशेष कृपा-दृष्टि प्रतीत होती है, क्योंकि यहाँ पर समय की गति के साथ ऋतुओं का चक्र घूमता रहता है। इससे यहाँ प्राकृतिक परिवेश में निरन्तर परिवर्तन एवं गतिशीलता दिखाई देती है। पर्यावरणीय विकास की दृष्टि से भारत में ऋतु-परिवर्तन का विशेष महत्त्व माना जाता है। इसमें भी वसन्त ऋतु का अपना विशिष्ट सौन्दर्य सभी को आनन्ददायी लगता है।

2. ऋतुराज कहलाने का कारण-प्रत्येक ऋतु का अपना अलग महत्त्व है, परन्तु वसन्त ऋतु का विशेष महत्त्व है। इस ऋतु में समस्त प्रकृति में सौन्दर्य एवं उल्लास छा जाता है। धरती का नया रूप सज जाता है, प्रकृति अपना शृंगार सा करती है तथा समस्त प्राणियों के हृदय उमंग, उत्साह एवं मादकता से भर जाते हैं। इस ऋतु का आरम्भ माघ शुक्ल पञ्चमी से होता है, होली का त्यौहार इसी ऋतु में पड़ता है। नये संवत्सर का आरम्भ भी इसी से माना जाता है। इन सब प्रशंसा की है।

3. प्राकृतिक वातावरण-वसन्त ऋतु में सभी पेड़-पौधे नयी कोंपलों, कलियों एवं नये पत्तों-पुष्पों से लद जाते हैं। शीतल, मन्द एवं सुगन्धित हवा चलती है। न गर्मी और न सर्दी रहती है। कोयल कूकने एवं भौंरे गुंजार करने लगते हैं। होली, फाग एवं गणगौर का उत्सव किशोर-किशोरियों को उमंगित करता है। सारा ही प्राकृतिक वातावरण अतीव सुन्दर, मनमोहक और मादक बन जाता है। कवियों के कण्ठ से श्रृंगार रस झरने लगत है। दूर-दूर तक वनों. उपवनों एवं खेतों में नवीन पीताभ सुषमा फैल जाती है।

4. उपसंहार-भारत में वैसे सभी ऋतुओं का महत्त्व है, सभी उपयोगी हैं और समय-परिवर्तन के साथ प्राकृतिक परिवेश की शोभा बढ़ाती हैं। परन्तु सभी ऋतुओं में वसन्त का सौन्दर्य सर्वोपरि रहता है। इसी से इसे ऋतुराज कहा जाता है। यह ऋतु कवियों, प्रकृति-प्रेमियों एवं भावुकजनों को अतिशय प्रिय लगती है।

44. त्योहारों का महत्त्व
अथवा
त्योहार : जनमंगल के आधार

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. प्रमुख त्योहार
  3. त्योहारों का महत्त्व एवं उद्देश्य
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मानव-समाज में उत्सव एवं त्योहारों का बहुत ही महत्त्व है। सभी धर्मों और जातियों के लोग अपने-अपने त्योहारों और उत्सवों को उत्साह के साथ मनाते चले आ रहे हैं। त्योहार-उत्सव जीवन में समायी कटुता में सरसता तथा माधुर्यता लाते हैं। त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं।

2. प्रमुख त्योहार-हमारा देश त्योहारों-उत्सवों का देश है। कोई महीना ऐसा नहीं है, जिसमें कोई बड़ा-छोटा त्योहार नहीं पड़ता है। भारतवर्ष में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहार हैं – दीपावली, होली, रक्षाबंधन, ईद, बैसाखी, गुरुनानक जयन्ती, रामनवमी; कृष्ण जन्माष्टमी, विजयादशमी, मकर संक्रान्ति, शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी, श्रावणी तीज, दुर्गाष्टमी, बसन्त पंचमी। दीपावली व होली ऋतु परिवर्तन के समारोह हैं तथा इनका सम्बन्ध धार्मिक आस्था से भी है। कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी ये दो महान् अवतारी पुरुषों के जन्मदिन हैं। इस प्रकार सभी त्योहार हमारी संस्कृति एवं धर्म से जुड़े हुए हैं।

3. त्योहारों का महत्त्व एवं उद्देश्य-भारतीय जीवन में त्योहारों का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक महत्त्व है। इन त्योहारों को सभी अमीर और गरीब अपनी-अपनी स्थिति के आधार पर बिना किसी भेदभाव से मिलकर मनाते हैं। इन त्योहारों से आपसी कटुता जहाँ दूर होती है वहीं आपसी सहयोग, एकता और सद्भावना के भावों की जागृति होती है। इन त्योहारों के अलावा अन्य अनेक छोटे-छोटे त्योहार मनाये जाते हैं।

4. उपसंहार-त्योहार हमारी संस्कृति के सजीव रूप हैं। ये हमें उसकी अखण्डता एवं विशुद्धता स्थिर रखने के लिए जागरूक रखते हैं और कर्त्तव्य-कर्म में शिथिलता आने पर हममें स्फूर्तिमय चेतना भर देते हैं। त्योहार जीवन में विशृंखलता को दूर कर एकसूत्रता स्थापित करते हुए मंगल-भावना का प्रसार करते हैं।

45. राजस्थान के प्रमुख पर्वोत्सव

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. राजस्थान के प्रमुख पर्व-त्योहार
  3. राजस्थान के प्रमुख उत्सव-मेले
  4. प्रमुख पर्वोत्सवों से लाभ
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-भारत के विभिन्न प्रदेशों में राजस्थान का विशिष्ट महत्त्व है। प्रचलित परम्पराओं के आधार पर यहाँ अनेक पर्व और त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। वस्तुतः इन राजस्थानी पर्यों के द्वारा यहाँ की सांस्कृतिक झाँकी, जन-जीवन में व्याप्त धार्मिक आस्था एवं रीति-रिवाजों का आसानी से परिचय मिल जाता है।

2. राजस्थान के प्रमुख पर्व-त्योहार देश में मनाए जाने वाले प्रायः सभी त्योहार तो यहाँ मनाए ही जाते हैं। अन्य पर्यों और त्योहारों में ‘गणगौर’ राजस्थान का प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार पर कुँवारी कन्या अच्छा वर पाने के लिए तथा विवाहित स्त्रियाँ अखण्ड सौभाग्य के लिए गणगौर की पूजा करती हैं। इस त्योहार की तरह ही श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व पर कन्याएँ और स्त्रियाँ झूला झूलती हैं और श्रावण के गीत गाती हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी, शीतलाष्टमी, दशहरा, आखातीज आदि त्योहार भी बड़े उत्साह से मनाये जाते हैं।

3. राजस्थान के प्रमुख उत्सव-मेले-उपर्युक्त प्रमुख पर्यों एवं त्योहारों के अतिरिक्त राजस्थान में विशेष धार्मिक पर्यों पर मेले भी भरते हैं। इन मेलों में पुष्कर, तिलवाड़ा, परबतसर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, गोगामेड़ी आदि के मेले प्रसिद्ध हैं।

4. प्रमुख पर्वोत्सवों से लाभ-राजस्थान में मनाये जाने वाले विभिन्न पर्वो और मेलों से हमें अनेक लाभ हैं। इनसे सांस्कृतिक परम्परा निरन्तर चलती रहती है और लोगों में अपनी धार्मिक आस्थाओं के प्रति विश्वास बढ़ता है। समाज में परस्पर मेल-मिलाप, भाई-चारा, सहयोग तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता है और कुटीर एवं गृह उद्योगों से बनी वस्तुओं का व्यापार होता है जिससे ग्रामीण जनता लाभान्वित होती है।

5. उपसंहार – पणे, त्योहारों एवं मेलों की दृष्टि से राजस्थान का विशिष्ट स्थान है। गणगौर, तीज, शीतलाष्टमी आदि कुछ ऐसे पर्व हैं, जिन्हें केवल राजस्थान के लोग ही मनाते हैं। इन पर्यों के द्वारा यहाँ के जातीय जीवन की झाँकी देखने को मिलती है।

स्वास्थ्य एवं खेलकूद सम्बन्धी निबन्ध

46. स्वच्छ भारत अभियान
अथवा
राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. स्वच्छता अभियान का उद्देश्य
  3. स्वच्छता अभियान का व्यापक क्षेत्र
  4. स्वच्छता अभियान से लाभ
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-महात्मा गाँधी के सपने को सन्देश रूप में लेकर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी स्वच्छ भारत भयान से सफाई एवं स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों को गन्दगी से मुक्त करने का सन्देश दिया गया है।

2. स्वच्छता अभियान का उद्देश्य-हमारे देश में शहरों के आसपास की कच्ची बस्तियों में, गाँवों एवं ढाणियों में शौचालय नहीं हैं। विद्यालयों में भी पेयजल एवं शौचालयों की कमी है। इससे खुले में शौच करने से गन्दगी बढ़ती है तथा पेयजल के साथ ही वातावरण भी दूषित होता है। गन्दगी के कारण स्वास्थ्य खराब रहता है और अनेक बीमारियों पर नागरिकों को काफी खर्चा करना पड़ता है। अतः स्वच्छता अभियान का पहला उद्देश्य शौचालयों का निर्माण करना तथा स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करना है और देश को गन्दगी से मुक्त कराना है।

3. स्वच्छता अभियान का व्यापक क्षेत्र-केन्द्रीय सरकार ने इस स्वच्छता अभियान को आर्थिक स्थिति से जोड़ा है। यदि स्वच्छता रहेगी तो बीमारियाँ नहीं होंगी और गरीब लोगों को अनावश्यक व्यय-बोझ नहीं झेलना पड़ेगा। इस दृष्टि से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों एवं विद्यालयों में शौचालय निर्माण के लिए अनुदान देना प्रारम्भ कर दिया है। इसके साथ गाँवों स्था पर जोर दिया जा रहा है। गंगा-यमुना नदियों की स्वच्छता का अभियान चलाया जा रहा है। इस कार्य में देश के अनेक प्रतिष्ठित लोग सक्रिय सहयोग कर रहे हैं।

4. स्वच्छता अभियान से लाभ-स्वच्छता अभियान से सबसे बड़ा लाभ स्वास्थ्य के क्षेत्र में रहेगा। लोगों को बीमारियों से मुक्ति मिलेगी, दवाइयों पर अपव्यय नहीं करना पड़ेगा। सारा भारत स्वच्छ बन जायेगा, तो देशों में भारत की स्वच्छ छवि उभरेगी। प्रदूषण का स्तर एकदम घट जायेगा और जल-मल के उचित निस्तारण से पेयजल भी शुद्ध बना रहेगा। साथ ही कृषि-उपजों में भी स्वच्छता बनी रहेगी।

5. उपसंहार-स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश को स्वच्छ भारत के रूप में प्रस्तुत करना है। सरकार के इस अभियान में जनता का सक्रिय सहयोग नितान्त अपेक्षित है। प्रतिबद्धता रहेगी तो सफलता अवश्य मिलेगी।

47. खुला-शौचमुक्त गाँव

संकेत बिन्दु :

  1. खुला-शौचमुक्त से आशय
  2. सरकारी प्रयास
  3. जन-जागरण
  4. हमारा योगदान
  5. महत्त्व/उपसंहार।

1.खुला-शौचमुक्त से आशय-गाँवों, ढाणियों एवं कच्ची बस्तियों में लोग खुले स्थान पर शौच करते हैं, पेशाब तो किसी भी गली या रास्ते पर कर देते हैं। इस बुरी आदत से सब ओर गन्दगी रहती है। पेयजल, भूमि एवं वायु में गन्दगी बढ़ जाती है। इससे उन क्षेत्रों में भयानक संक्रामक बीमारियाँ फैल जाती हैं। अतः खुला-शौचमुक्त का आशय लोगों को इस बुरी आदत से छुटकारा दिलाना और खुले में मल-मूत्र त्याग न करना है।

2. सरकारी प्रयास-प्रधानमन्त्री मोदीजी ने ‘ग्रामीण स्वच्छता मिशन’ के माध्यम से गाँवों को खुला-शौचमुक्त करने का नारा दिया गया। केन्द्र सरकार ने गाँवों के बी.पी.एल., लक्षित, लघु सीमान्त किसान एवं भूमिहीन श्रमिक आदि को घर में शौचालय बनाने के लिए प्रति परिवार बारह हजार रुपये देना प्रारम्भ किया है। साथ ही गाँवों में शिशु मल निस्तारण तथा गन्दा-जल निवारण पर जोर दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों में शौचालय-निर्माण हेतु आर्थिक सहायता दी जा रही है। सरकार के इस प्रयास से अनेक गाँवों में शत-प्रतिशत शौचालय बन गये हैं। सारे भारत के गाँवों को सन् 2022 तक पूरी तरह खुला-शौचमुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

3. जन-जागरण-गाँवों में खुले में मल-मूत्र-त्याग के निवारण हेतु जन-जागरण जरूरी है। ‘स्वच्छ ग्रामीण मिशन’ एवं ग्राम पंचायतों के माध्यम से प्रयास किये जा रहे हैं। ग्रामीण स्त्रियों को स्वच्छता का महत्त्व बताकर प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस कारण अब नव-युवतियाँ उसी घर से विवाह का रिश्ता स्वीकार करती हैं जहाँ शौचालय बने हैं। इस कार्य में सभी प्रदेश सरकारें, समाज के प्रतिष्ठित लोग और बड़े कार्पोरेट सेक्टर सहयोग-सहायता दे रहे हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के प्रति उत्साह दिखाई दे रहा है।

4. हमारा योगदान-देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम सभी का कर्तव्य है कि हम स्वयं खुले में मल मूत्र का त्याग न करें। लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागृत करें तथा खुला-शौचमुक्त होने के लाभ बतावें। स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से इसका महत्त्व समझावें।

5. महत्त्व/उपसंहार-आम जनता के स्वास्थ्य, रहन-सहन, स्वच्छता आदि की दष्टि से ग्रामीण क्षेत्रों में खला शौचमुक्त होने का सर्वाधिक महत्त्व है। इससे पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा और गाँधीजी का ‘क्लीन इण्डिया’ का सपना भी साकार होगा। सरकार के इस अभियान में हम सभी का और गाँवों की जनता का सहयोग जरूरी है।

48. भारतीय संस्कृति का अनुपम उपहार : योग
अथवा
योग की उपादेयता
अथवा योग : स्वास्थ्य की कुंजी
अथवा
योग भगाए रोग

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. योग से आशय
  3. योग का महत्त्व
  4. वर्तमान में योग की स्थिति
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-हमारे ऋषियों, मुनियों और मनीषियों ने मानव-जीवन को सुखी बनाने के लिए अनेक उपाय किए हैं। इन उपायों में से एक उपाय है—योग। योग मानव-जाति के लिए भारतीय संस्कृति का अनुपम उपहार है।

2. योग से आंशय-‘योग’ शब्द संस्कृत के ‘युज्’ धातु से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-जोड़ना। किसी वस्तु को अपने से जोड़ना अर्थात् किसी अच्छे कार्य में अपने आपको लगाना। कार्य शारीरिक, मानसिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं। मन और शरीर से जो कार्य किया जायेगा, उसे ही योग कहते हैं।

3. योग का महत्त्व-योग से मनुष्य को शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक दृष्टि से अनेक लाभ हैं। इससे सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसको रोजाना करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। वह दीर्घजीवी होता है। उसके शरीर और मस्तिष्क में वृद्धि के साथ-साथ सोच में भी शुचिता आती है। अतः हमें शारीरिक, मानसिक, धार्मिक व आध्यात्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए योग की कोई न कोई क्रिया रोज पन्द्रह-बीस मिनट नियमित रूप से करनी चाहिए, क्योंकि योग स्वस्थ जीवन जीने की एक कला है।

4. वर्तमान में योग की स्थिति-वर्तमान में ‘योग’ शब्द अनजाना नहीं रहा है, क्योंकि जहाँ देखो वहीं योग का प्रचार-प्रसार विभिन्न माध्यमों से हो रहा है। साथ ही बहुत सारी संस्थाएँ योग सिखा रही हैं। असाध्य रोगों की प्राकृतिक दवा योग है, इसीलिए कहा गया है कि ‘योग भगाए रोग’, क्योंकि आज का मनुष्य अनियमित दिनचर्या के कारण अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियों से पीड़ित है। वह इन बीमारियों से मुक्त रहने के लिए योग का सहारा लेने लगा है। योग की उपादेयता को समझते हुए हमारे देश की कई प्रादेशिक सरकारों ने इसे शिक्षा पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से जोड़ने का प्रयास किया है और कई सरकारों ने इसे प्रार्थना स्थलीय कार्यक्रमों में अनिवार्यता प्रदान की है।

5. उपसंहार-योग भारतीय संस्कृति का एक अनुपम उपहार है। यह आज के मनुष्य के व्यस्ततम और तनावग्रस्त जीवन की एक अमूल्य औषधि है। योग स्वास्थ्य की कुंजी है। इसके नियमित अभ्यास से मनुष्य सौ वर्ष तक जीवित रह सकता है। इसीलिए आज सभी के लिए योग लाभदायक सिद्ध हो रहा है।

49. शिक्षा में खेल-कूद का महत्त्व
अथवा
जीवन में खेल-कूद की आवश्यकता

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. शिक्षा और क्रीड़ा का सम्बन्ध
  3. विद्यालय में क्रीड़ा के विभिन्न रूप
  4. शिक्षा में क्रीड़ा का महत्त्व
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-स्वास्थ्य जीवन की आधारशिला है। स्वस्थ मनुष्य ही अपने जीवन के सभी कार्यों को अच्छी तरह से कर सकता है। इसीलिए कहा गया है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन वास करता है। स्वस्थ जीवन हमें व्यायाम और खेल-कूद से प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि पहला सुख नीरोगी काया।

2. शिक्षा और क्रीड़ा का सम्बन्ध-शिक्षा यदि मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है तो खेलकूद उस विकास का पहला अंग है। इसीलिए प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकीय शिक्षा के साथ-साथ खेल-कूद और व्यायाम की शिक्षा भी अनिवार्य रूप से दी जाती है। इसके लिए अलग से व्यायाम प्रशिक्षक की नियुक्ति की जाती है।

3. विद्यालयों में क्रीड़ा के विभिन्न रूप-शरीर को शक्तिशाली, स्फूर्तिमय, लचीला और ओजस्वी बनाने के लिए जो कार्य निष्पादित किए जाते हैं, उन्हें हम खेल-कूद कहते हैं। खेल-कूद से शरीर में रक्त का संचार तेजी से होता है। विद्यालयों में कबड्डी, फुटबाल, क्रिकेट, बैडमिण्टन, टेनिस, हॉकी, दौड़, कुश्ती आदि विभिन्न प्रकार के खेल इसी दृष्टि से खेले जाते हैं। इन्हीं खेलों से सम्बन्धित विभिन्न स्तरों पर प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

कीड़ा का महत्त्व-विस्तृत अर्थ में शिक्षा का कार्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। इसके अन्तर्गत बालक का मानसिक, शारीरिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास आता है। मानसिक विकास का आधार यदि पुस्तक है तो शारीरिक विकास का आधार खेल-कूद और व्यायाम है, फिर भी मानसिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास में भी खेल-कूद और व्यायाम का विशेष योगदान है। तन-मन की स्वस्थता खेल-कूद और व्यायाम पर ही निर्भर होती है। इसलिए शिक्षा में क्रीड़ा का विशेष महत्त्व है।

5. उपसंहार-खेल-कूद से शरीर स्वस्थ रहता है। शक्ति का संचार होता है। जीवन में उत्साह, जोश और उत्साह समाया रहता है। शिक्षा प्राप्ति या कुछ करने की रुचि बनी रहती है। इसीलिए सरकार ने ‘खेल मंत्रालय’ की स्थापना कर शारीरिक शिक्षा को विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों तक इसे अनिवार्य कर रखा है।

50. जब मैंने क्रिकेट मैच देखा
आँखों देखे मैच का वर्णन

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. क्रिकेट मैच का आयोजन
  3. खेल का वर्णन
  4. अन्तिम परिणाम एवं पुरस्कार वितरण
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है और स्वस्थ शरीर के लिए व्यायाम तथा खेल परमावश्यक है। उससे मनोरंजन के साथ-साथ मानसिक-शारीरिक विकास भी होता है। इस कारण मेरी भी खेलकूद में अत्यधिक रुचि है। मुझे हॉकी, फुटबाल तथा क्रिकेट का मैच खेलने तथा देखने में बड़ा आनन्द आता है।

2. क्रिकेंट मैच का आयोजन-गत वर्ष मार्च माह की पच्चीस तारीख को जयपुर में भारत और इंग्लैण्ड की टीमों में एक दिवसीय क्रिकेट मैच का आयोजन रखा गया था। मैच के दिन प्रातः आठ बजे मैं और मेरा मित्र दोनों सवाई मानसिंह स्टेडियम मैच देखने के लिए पहुंचे।

3. खेल का वर्णन-सर्वप्रथम टॉस इंग्लैण्ड टीम के कप्तान ने जीता और बल्लेबाजी को चुना। मैच प्रारम्भ हुआ। भारत की ओर से गेंदबाजी की शुरुआत बुमराह और ईशान्त ने की। इन दोनों की सधी गेन्दबाजी से इंग्लैण्ड के बल्लेबाजों को रन जोड़ने कठिन हो गए। दूसरे ओवर में बुमराह ने दो विकेट लिए और चौथे ओवर में ईशान्त ने भी एक कीमती विकेट लिया। कुल पचास ओवरों में इंग्लैण्ड की पूरी टीम दो सौ उनतीस रन बनाकर आउट हो गई।

लंच के बाद खेल पुनः प्रारम्भ हुआ। भारतीय टीम को जीतने के लिए लक्ष्य कठिन नहीं था, परन्तु प्रारम्भ में इंग्लैण्ड के गेन्दबाजों ने ऐसी सधी हुई गेंदें फेंकी कि भारतीय बल्लेबाज खुलकर नहीं खेल सके। तीस ओवरों के बाद की जोडी ने बेधडक बल्लेबाजी की तथा चौके और छक्के जमाकर सैंतालीस ओवरों में भारत को विजयी लक्ष्य तक पहुँचा दिया। इससे दर्शकों को बहुत ही प्रसन्नता हुई और सभी दर्शक खिलाड़ियों को तालियाँ बजाकर साधुवाद देते रहे।

4. अन्तिम परिणाम एवं पुरस्कार वितरण-इस रोमांचकारी मैच में विजय भारतीय टीम की रही। सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में धोनी के नाम की घोषणा की गई। राजस्थान के मुख्यमंत्री ने सभी खिलाड़ियों को पुरस्कार वितरण किया। इंग्लैण्ड के खिलाड़ियों को स्मृति-चिह्न दिये गये। पुरस्कार वितरण के बाद सभी लोग अपने-अपने घरों को चले गये।

5. उपसंहार-वस्तुतः खेल के मैदान में हजारों लोगों की भीड़ में एक दर्शक बनकर खिलाड़ियों को अपने सामने खेलते देखना काफी आनन्ददायी लगता है।

संस्कृति एवं पर्यटन सम्बन्धी निबन्ध :

51. राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता

संकेत बिन्दु :

  1. लोकदेवता का आशय
  2. प्रमुख लोकदेवताओं का संक्षिप्त परिचय
  3. लोकदेवता के जनहितकारी कार्य
  4. लोकदेवता और लोक-आस्था
  5. उपसंहार।

1. लोकदेवता का आशय-ऐसे महापुरुषों को स्थानीय जनता द्वारा लोकदेवता माना जाता है जो मानव रूप में जन्म लेकर भी जनता की भलाई के अनोखे कार्य करते हुए अपना जीवन समर्पित करते हैं तथा दैविक अंश की तरह प्रतीक रूप में पूज्य होते हैं।

2. प्रमुख लोकदेवताओं का संक्षिप्त परिचय-राजस्थान के प्रमुख लोकदेवताओं में बाबा रामदेव, गोगाजी, देवनारायणजी, तेजाजी, पाबूजी, भौमियाजी, डूंगजी, जवाहरजी, कल्लाजी, हड़बूजी, देवबाबाजी, केसरियाजी, झुंझारजी, बिग्गाजी आदि की विशेष मान्यता है। रामदेवजी जैसलमेर जिले के रुणीचा गाँव में रहते थे।

इस स्थान को अब रामदेवरा और रामदेवजी को ‘रामसा पीर’ कहते हैं। मारवाड़ के पाँच पीरों में गोगाजी के नोहर में गोगामेड़ी मेला भरता है। देवनारायणजी गुर्जर जाति के लोकदेवता हैं, उनका पूजा-स्थल आसींद तथा देवधाम जोधपुरिया है। तेजाजी सारे राजस्थान में पूज्य हैं, नागौर जिले के परबतसर में इनका मेला भरता है। पाबूजी का फलौदी के कोलू गाँव में, देवबाबा का भरतपुर के नँगला जहाज में, हड़बूजी का भंडेल (नागौर) में, भौमियाजी का सारे राजस्थान के भूमि रक्षक देव के रूप में पूजे जाते हैं।

3. लोकदेवता के जनहितकारी कार्य-अनेक लोकहितकारी एवं जनरक्षक चमत्कारी कार्य करने से लोकदेवताओं की पूजा की जाती है। रामदेवजी ने जाति-पाति, छआछत आदि का विरोध कर हिन्द-मस्लिम एकता स्थापित की। गोगाजी सर्पदंश का अचूक उपचार करते थे। तेजाजी कृषि कार्यों के उपकारक थे। देवनारायणजी ने गोबर और नीम का औषधि रूप में महत्त्व बताया। हड़बूजी और बिग्गाजी गौ-रक्षक थे। पाबूजी गायों एवं ऊँटों के रक्षक थे।

4. लोकदेवता और लोक-आस्था-राजस्थान में ये लोकदेवता अपने चमत्कारी कार्यों से जनता के रक्षकं रूप में माने जाते हैं। इसी कारण लोकजीवन में इन पर घनिष्ठ आस्था है। प्रत्येक लोकदेवता के जन्म-दिवस अथवा समाधि-स्थल पर निश्चित मास-तिथि-वार को मेले लगते हैं और बड़ी आस्था से इनका पूजन एवं यात्राओं-जुलूसों का आयोजन होता है। इनके ‘पदों’ और ‘वाणियों’ का गायन भी होता है तथा रात्रि-जागरण भी किया जाता है।

5. उपसंहार-राजस्थान के ग्रामीण जीवन में लोकदेवताओं पर विशेष आस्था दिखाई देती है। इसी से यहाँ प्रतिवर्ष अनेक मेले-उत्सव आदि के.आयोजन पूरी श्रद्धा से किये जाते हैं।

52. राजस्थान के लोकगीत

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. राजस्थान के लोकगीतों का वर्गीकरण
  3. प्रमुख लोकगीतों का परिचय
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-प्रत्येक देश एवं समाज में लोक-भावों की अभिव्यंजना के लिए अलग-अलग अवसर पर कई प्रकार के गीत प्रचलित रहते हैं। समयानुसार इन लोक गीतों को सुनकर श्रोता भाव-विभोर ही नहीं हो जाता है बल्कि आत्मिक सुख की भी अनुभूति करता है। ये लोकगीत सामाजिक जीवन में उल्लास और आनन्दानुभूति का प्रसार करते हैं।

2. राजस्थान के लोकगीतों का वर्गीकरण-राजस्थानी लोकगीतों में जीवन का विशद चित्रण दिखाई पड़ता है। उनका क्षेत्र व्यापक है, इसी कारण उनको कई वर्गों में रखा जाता है; जैसे – संस्कारों से सम्बन्धित लोकगीत, ऋतुओं से सम्बन्धित लोकगीत, त्योहारों से सम्बन्धित लोकगीत, विविध लोकगीत।

3. प्रमुख लोकगीतों का परिचय-राजस्थान में विवाह, नामकरण, कृषि, ऋतु, धार्मिक आस्था आदि अनेक विषयों से सम्बन्धित गीत गाये जाते हैं। परिवार में शादी-विवाह, नामकरण, यज्ञोपवीत आदि संस्कार सम्पन्न किये जाते हैं। इन अवसरों पर अलग-अलग तरह के गीत गाये जाते हैं। महिलाएँ अनेक व्रत-उपवास रखती हैं और उन अवसरों से धार्मिक गीत गाती हैं। खाटू श्यामजी, कैलादेवीजी, पाबूजी, रामदेवजी, गोगाजी, तेजाजी, संतोषी माँ आदि से सम्बन्धित बहुत से गीत गाँवों में प्रचलित हैं।

राजस्थान में निर्धारित समयानुसार अनेक त्योहार और पर्व मनाये जाते हैं। इन त्योहारों और पर्वो को धूम-धाम से मनाया जाता है और उनके अनुकूल ही मनोहारी लोकगीत गाए जाते हैं। राजस्थान में और भी अनेक प्रकार के गीत प्रचलित हैं। अमरसिंह राठौड़, गोरबन्द, रतन राणा, पाबूजी के पावड़े खूब गाये जाते हैं। लाखा, मूमल, घुड़लो, सियालो, प्रपीड़ा, नींदड़ली, घूमर, भैंरू आदि से सम्बन्धित बहुत प्रकार के गीत प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रचलित हैं।

4. उपसंहार-अपनी सांस्कृतिक विशेषता के समान ही राजस्थान लोकगीतों की दृष्टि से भी विशेष महत्वशाली है। यहाँ के लोकगीतों में हृदयगत भावों की स्वाभाविक एवं निश्छल अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। इनमें हमारे सांस्कृतिक भाव तथा सामाजिक अनुभूतियाँ समाविष्ट हैं।

53. नखरालो राजस्थान

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. राजस्थान का रंगीला रूप
  3. राजस्थान की सुरंगी संस्कृति
  4. राजस्थान की नखराली छटा
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-राजस्थान प्राचीन काल से ही वीरता एवं शौर्य का क्षेत्र रहा है। यहाँ पर रंग-बिरंगी परम्पराओं, अनेक रीति-रिवाजों और आंचलिक विशेषताओं की अनोखी छटा है। इसी कारण इसे जीवन्त संस्कृति वाला और विविध परम्पराओं का रंगीला प्रदेश कहा जाता है।

2. राजस्थान का रंगीला रूप-प्राकृतिक दृष्टि से राजस्थान का पश्चिमोत्तर भाग रेतीली धरती के कारण सुनहरा दिखाई देता है, तो दक्षिण-पूर्वी भाग हरी-भरी छटा वाला है। यहाँ अरावली पर्वतमाला की सुरम्यता है तथा अनेक ऐतिहासिक दुर्ग-किले, गढ़-महल, स्मारक, मन्दिर एवं तीर्थस्थल हैं जो शौर्य, पराक्रम, भक्ति भावना, धार्मिक आस्था तथा रंग-बिरंगी लोक संस्कृति के प्रतीक हैं।

3. राजस्थान की सुरंगी संस्कृति-राजस्थान की संस्कृति अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। यहाँ अतिथि सत्कार की जहाँ विशिष्ट परम्परा है वहीं यहाँ धार्मिक व्रत-त्योहारों की अधिकता है। यहाँ तीज-त्योहार आदि धूम-धाम से ही अनेक स्थानों पर लोक देवताओं के मेले भरते हैं। यहाँ पर विभिन्न ऋतुओं में गीदड़ों, गैरों, रमतों; घूमरों, धमालों, ख्यालों, सांग-तमाशों आदि के खेल एवं कड़क नजारे देखने को मिलते हैं। इसी प्रकार घूमर, खड़ताली, फाग एवं कालबेलिया नृत्य देखने को मिलते हैं। इस कारण हर मौसम में राजस्थान प्रदेश के विविध अंचलों का पूरा बातावरण रंगीला बन जाता है।

4. राजस्थान की नखराली छटा-राजस्थान का धरातल ऊपर से शुष्क है, परन्तु इसके भूगर्भ में ताँबा, सीसा, अभ्रक, जस्ता आदि धातुओं के साथ चूना-सीमेन्ट एवं इमारती कीमती पत्थर बहुतायत से मिलता है। यहाँ पर अनेक सुन्दर स्मारक, विजय-तोरण, बावड़ियाँ, पोखर एवं छतरियाँ विद्यमान हैं। पुरा-सम्पदाओं एवं भवनों पर कलापूर्ण भित्ति चित्र, नक्काशी की वस्तुएँ, मीनाकारी, मूर्तिकला, मिट्टी व लाख के खिलौने आदि अनेक कलापूर्ण चीजें देखने को मिल जाती हैं। इन सब कारणों से राजस्थान की नखराली छटा सभी को आकर्षित कर लेती है।

5. उपसंहार-राजस्थान प्रदेश अपनी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक परम्पराओं, लोक-आस्थाओं, शिल्प-मूर्ति, स्थापत्य चित्रकलाओं तथा विविध रंगों की चटकीली वेश-भूषाओं आदि से जहाँ अतीव रंगीला दिखाई देता है, वहाँ यह जन जीवन की जीवन्तता तथा आंचलिकता की छाप के कारण अत्यन्त नखराला लगता है।

संस्मरणात्मक निबन्ध :

54. मेरे सामने घटित भीषण दुर्घटना
अथवा
विद्यार्थी जीवन की अविस्मरणीय घटना
अथवा
आँखों देखी वह दुर्घटना
अथवा
जीवन की वह चिरस्मरणीय घटना

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. पुष्कर यात्रा एवं घाट का दृश्य
  3. घटित घटना एवं अविस्मरणीय दृश्य
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-हमारे जीवन-काल में अनेकानेक घटनाएँ घटित होती रहती हैं। इनमें कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं, जो हमारे मानस पटल पर अपना प्रभाव हमेशा बनाए रखती हैं। इसी प्रकार की आँखों देखी एक घटना का यहाँ वर्णन किया जा रहा है जिसको भुलाया नहीं जा सकता।

2. पुष्कर यात्रा एवं घाट का दृश्य-हम पुष्कर सरोवर के एक घाट पर पहुँचे। उसी घाट पर कुछ ग्रामीण परिवार भी स्नान कर रहे थे। मैंने देखा कि एक महिला ने पहले स्वयं स्नान किया, फिर वह लगभग आठ वर्ष के अपने बालक को नहलाने लगी। बालक की कुचपलता तथा माता के हाथों की शिथिलता से बच्चा हाथ से छूट गया और गहरे पानी की ओर बहकर डूबने लगा। माँ अपने बच्चे को अपने पैरों के नीचे ही देख रही थी, परन्तु उसे बालक को पकड़ने में सफलता नहीं मिल रही थी। माता के करुण क्रन्दन ने मंगल में अमंगल कर दिया।

3. घाटत घटना एवं अविस्मरणीय दृश्य-बालक के डूबने का समाचार वहाँ चारों ओर फैल गया। सारे दर्शनार्थी और सभी स्नानार्थी सरोवर के चारों ओर खड़े होकर पानी में नजर लगाये खड़े थे। कई गोताखोरों ने भी पानी में बच्चे की तलाश की। दमकल विभाग की मोटर भी आयी, लेकिन सारे प्रयत्न असफल रहे। बालक के माता-पिता बुरी तरह चीख-चिल्ला रहे थे। इतने में ही सरोवर के लगभग मध्य में कुछ काली-सी वस्तु दिखाई दी। तैराक उस वस्तु की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे थे कि थोड़ी दूर पर बच्चे का हाथ दिखाई दिया और दूसरे क्षण देखा गया कि एक मगर बालक को मुँह में दबाये ऊपर आया और एकदम अन्दर चला गया। उस दृश्य को देखकर माता बेहोश हो गई। उस घटना को देखकर हम सभी अत्यधिक व्यथित हो गये औरा मुँह लटकाये वापस आ गये।

4. उपसंहार-मैंने जीवन में अनेक घटनाएँ देखीं, परन्तु ऐसी करुण घटना केवल एक ही बार देखी। बार बार भुलाने का प्रयत्न करने पर भी वह दृश्य मेरी आँखों के सामने आ जाता है और मैं शोक-विह्वल हो जाता हूँ।

55. गुरुजी जिन्हें मैं भुला नहीं सकता
अथवा
मेरे आदरणीय गुरुजी
अथवा
मेरे आदर्श शिक्षक

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. आदरणीय गुरुजी : व्यक्तित्व और स्वभाव
  3. गुरुजी का अनुकरणीय जीवन
  4. गरुजी का छात्रों पर प्रभाव
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-प्राचीन काल से हमारे समाज में गुरु का महत्त्व सर्वोपरि रहा है। गुरु अपने शिष्यों के व्यक्तित्व का निर्माण कर उनके मन में ज्ञान का आलोक भरता है। इसीलिए कबीर ने गुरु को ईश्वर से बड़ा बताया है। वस्तुतः मानव-जीवन का निर्माता, हमारे समाज और राष्ट्र का निर्माता गुरु या शिक्षक ही होता है।

2. आदरणीय गुरुजी : व्यक्तित्व और स्वभाव-मेरे आदरणीय गुरुजी का व्यक्तित्व एवं स्वभाव अत्यन्त प्रभावशाली है। इन गुरुजी का नाम श्री ज्ञानप्रकाश शर्मा है। गुरुजी हमारे विद्यालय में हिन्दी के वरिष्ठ अध्यापक हैं। वे हमेशा खादी की धोती और सफेद कुर्ता पहनते हैं। वे सादा जीवन, उच्च विचार के पोषक हैं । हमारे गुरुजी जहाँ विनम्र, सत्यवादी, मृदुभाषी और कर्मठ हैं वहीं स्नेहिल व्यवहार के धनी हैं। बच्चों से क्या, वे अध्यापकों और कर्मचारियों से भी मृदुल व्यवहार करते हैं। हमारे गुरुजी में एक श्रेष्ठ एवं आदर्श अध्यापक की सभी विशेषताएँ मौजूद हैं।

3. गुरुजी का अनुकरणीय जीवन-मेरे गुरुजी की जीवनचर्या अनुकरणीय है। वे प्रतिदिन प्रात:काल उठकर और नित्यकर्म से निवृत्त होकर नियमित रूप से भ्रमण के लिए जाते हैं। फिर स्नानादि कर सन्ध्योपासना करते हैं और भोजन करके विद्यालय में आ जाते हैं। विद्यालय की प्रार्थना सभा का संचालन वे ही करते हैं। प्रार्थना के बाद पाँच मिनट के लिए वे प्रतिदिन नये-नये विषयों को लेकर शिक्षापूर्ण व्याख्यान देते हैं। तत्पश्चात् वे अपने कालांशों में नियमित रूप से अध्यापन कराते हैं। सायंकाल घर आकर वे स्वाध्याय करते हैं। रविवार के दिन वे अभिभावकों से सम्पर्क करने की कोशिश करते हैं तथा एक आध धण्ट समाज-सेवा में लगाते हैं। इस तरह गुरुजी की दिनचर्या नियमित एवं निर्धारित है।

4. गुरुजी का छात्रों पर प्रभाव-छात्रों पर उनका काफी प्रभाव दिखाई देता है। छात्र उनसे आदरपूर्वक मिलते हैं, अपनी समस्याएँ उनके सामने रखते हैं और उनसे शंकाओं का समाधान पाकर सन्तुष्ट हो जाते हैं। छात्रों के प्रति गुरुजी का व्यवहार आत्मीयता से पूर्ण रहता है। गरीब और असहाय छात्रों की वे भरपूर सहायता करते हैं। वे अतीव अनुशासनप्रिय और सदाचारी व्यक्ति हैं। उनके आदर्श चरित्र से हम सभी प्रभावित रहते हैं।

5. उपसंहार-“गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाँय, बलिहारी गुरु आपणे गोविन्द दियो बताय”-कबीर की इस उक्ति के अनुसार वे हमारे आदरणीय गुरुजी मेरे लिए आदर्श शिक्षक हैं और हमें ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ सदाचरण के उपदेशक हैं।

56. विद्यालय का अन्तिम दिन

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. विद्यालय का अन्तिम दिन
  3. विदाई की बेला
  4. विद्यालय-परिवार के प्रति आभार
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-किसी कार्य की समाप्ति पर उसके कर्ता के लिए वह अन्तिम दिन होता है, जब वह लक्ष्य के अन्तिम छोर को पार कर लेता है। मेरे पिताजी आज से दस वर्ष पहले मुझे उँगली पकड़कर विद्यालय में ले गये थे और निरन्तर अध्ययन करते हुए दसवीं कक्षा तक की शिक्षा पूर्ण करके जब मैं अपने वि लगा, तो इस कारण वह मेरे लिए अपने विद्यालय का अन्तिम दिन था।

2. विद्यालय का अन्तिम दिन- हमारा विद्यालय माध्यमिक स्तर तक का होने के कारण दसवीं हमारी अन्तिम कक्षा थी। बोर्ड परीक्षा होने के कारण नियमानुसार परीक्षा तैयारी का अवकाश मिल गया था। नौवीं कक्षा के छात्रों ने हमारी कक्षा को विदाई देने के लिए विदाई समारोह का आयोजन किया। निश्चित समय और तिथि पर हम सब विदाई समारोह में शामिल होने के लिए विद्यालय सभागार में नौवीं कक्षा के छात्रों और गुरुजनों के बीच उपस्थित हुए। विदाई समारोह में सर्वप्रथम सरस्वती वंदना की गई। गुरुजनों और प्रधानाध्यापकजी के द्वारा आशीर्वाद के साथ जीवन में सफलता प्राप्त करने की शुभकामनाएँ दी गईं । अनुजों ने भी हमारे प्रति सद्भावों की सहज अभिव्यक्ति की।

3. विदाई की बेला-तत्पश्चात् प्रधानाध्यापक महोदय ने हमें गुलाब के फूल दिये और नौवीं कक्षा के मॉनिटर ने हमें पुष्पमालाएँ पहनाई। उस समय जिस प्रेम-भाव का परिचय हमारे सहपाठियों ने दिया, उससे हम सभी की आँखें नम हो गयी थीं। इसके बाद हमारी कक्षा के दो-तीन छात्रों ने नौवीं कक्षा के प्रति आभार प्रकट किया। उस समय का वातावरण इतना भावुकता से पूर्ण हो गया था कि आज तक मैं उसे भुला नहीं पा रहा हूँ। .

4.विद्यालय-परिवार के प्रति आभार-इतने वर्षों एक साथ रहने से विद्यालय के प्रति अपनत्व-सा हो गया था तथा छोटी कक्षाओं के छात्रों से हम अनुजों के समान व्यवहार करते थे। इसलिए मैंने जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए उनसे क्षमा-याचना की और उनके अगाध-प्रेम के लिए आभार व्यक्त करते हुए विद्यालय-परिवार के प्रति शुभकामना व्यक्त की।

5. उपसंहार-इस तरह विद्यालय का अन्तिम दिन हमारे लिए हर्ष और विषाद से मिश्रित रहा। हमें विद्यालय से अन्तिम परीक्षा उत्तीर्ण करके जहाँ भविष्य में उच्च कक्षाओं में अध्ययन करने की खुशी हो रही थी, वहीं अपने विद्यालय परिवार से बिछुड़ने का दुःख भी हो रहा था।

57. परीक्षा का अन्तिम दिन

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. परीक्षा की तैयारी
  3. परीक्षा आरम्भ
  4. परीक्षा का अन्तिम दिन
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-परीक्षा अपने आप में ही एक ऐसा शब्द है, जो प्रायः सभी को भयभीत कर देता है। इसका नाम सुनते ही परिश्रमी और बुद्धिमान परीक्षार्थी भी एक बार आशंकित हुए बिना नहीं रहता है। उसके मन में बेचैनी बढ़ जाती है और परीक्षा का भूत सवार हो जाता है।

2. परीक्षा की तैयारी-‘माध्यमिक परीक्षा’ के आते ही मैं भी अपने अन्य सहपाठियों की तरह परीक्षा की तैयारी में जुट गया था। परीक्षा का समय नजदीक आने पर मन में अजीब-सा भय होने लगा था, लेकिन मुझे अपनी मेहनत पर विश्वास भी हो रहा था। इसलिए मैंने घर पर नियमित अध्ययन के लिए समय-विभाग चक्र बनाया और परीक्षा की तैयारी में दत्तचित्त हो गया।

3. परीक्षा प्रारम्भ-नियत तिथि को परीक्षा प्रारम्भ हुई। पहले दिन हिन्दी का प्रश्न-पत्र था। परीक्षा के पहले दिन मन में काफी घबराहट हो रही थी, परन्तु जब प्रश्न-पत्र हाथ में आया तो मेरी घबराहट जाती रही, क्योंकि मैंने जैसी तैयारी की थी, प्रश्न-पत्र उसी के अनुरूप आया था। इससे मेरा उत्साह बढ़ने लगा और मैं परीक्षा केन्द्र से लौटकर अगले पेपर की तैयारी में लग गया। इसी तरह मेहनत करते हुए मेरे अन्य पेपर अच्छे होते रहे और मुझे अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण होने का पूरा विश्वास होने लगा।

4. परीक्षा का अन्तिम दिन-अब मेरा एक ही प्रश्न-पत्र देना शेष रह गया था। इसकी तैयारी के लिए अवकाश पड़ समय मिल गया था। मैं दो दिन-रात जागकर उसकी तैयारी में जुट गया। इसका परिणाम यह हुआ कि पेपर से एक दिन पूर्व मुझे हल्का ज्वर आ गया। डॉक्टर से दवाई ली और ज्वर उतर गया। नियत समय पर परीक्षा देने गया। उस दिन का पेपर कुछ कठिन था, लेकिन मुझे पूरा याद होने के कारण सरल लगा और मैंने उसे समय पर ही हल करके अपनी कापी वीक्षक महोदय को सँभलाई और प्रसन्नतापूर्वक परीक्षा कक्ष से बाहर आ गया।

5. उपसंहार-बाहर पिताजी मुझे लेने आये थे। मैं उनके साथ घर लौट आया। मेरी परीक्षा का अन्तिम दिन मेरे लिए चुनौती जैसा रहा। स्वास्थ्य ठीक न रहने पर भी मैंने जिस तरह से परीक्षा की तैयारी की, उसे देखकर सभी परिजनों ने मेरी पीठ थपथपाई, माँजी ने तो मुझे असीम स्नेह दिया और मेरा पूरा ध्यान रखा। इन सब बातों का विचार कर मुझे परीक्षा का अन्तिम दिन अत्यन्त प्रेरणादायी लगा।

58. जीवन की वह चिरस्मरणीय यात्रा
अथवा
किसी रोचक यात्रा का वर्णन

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. यात्रा का कार्यक्रम तथा तैयारी
  3. यात्रा के लिए प्रस्थान
  4. यात्रा के अनुभव
  5. यात्रा की रोचकता
  6. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-राजस्थान एक सुरम्य प्रदेश है। यहाँ के ऐतिहासिक स्थल देशी-विदेशी सभी लोगों को आकर्षित करते हैं।

2. यात्रा का कार्यक्रम तथा तैयारी-मैं भरतपुर में एक सरकारी स्कूल में विद्याध्ययन करता हूँ। अध्ययन के दौरान एक दिन प्रसंग चल पड़ा कि नौवीं कक्षा के छात्रों को राजस्थान के ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करवायी जाये। इच्छानुकूल समाचार सुनकर मन अत्यधिक खिल गया। प्रधानाध्यापकजी ने सभी छात्रों के लिए बस का प्रबन्ध कर दिया। निश्चित समय व तिथि पर हम आवश्यक सामान लेकर बस में सवार हुए और यात्रा पर चल दिये।

3. यात्रा के लिए प्रस्थान-हमारी बस भरतपुर से रवाना हुई। सर्वप्रथम हमने जयपुर आने का कार्यक्रम बनाया। मार्ग में आपस में हँसी-मजाक करते-कराते हम जयपुर आ जाये। जयपुर में आकर हमने नाहरगढ़, आमेर के महल, जन्तर-मन्तर, हवा महल आदि कई दर्शनीय स्थल देखे और खा-पीकर बस द्वारा रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर) के लिए रवाना हो गए।

4. यात्रा के अनुभव-सवाईमाधोपुर से आगे रणथम्भौर का मार्ग पहाड़ी है। पहाड़ को काटकर सड़क बनायी गयी है। हमारी बस अभी उसी सड़क पर जा रही थी कि आगे एक तंग मोड़ पर बस एकाएक रुक गयी। ड्राइवर द्वारा कोशिश किए जाने पर भी बस टस से मस नहीं हुई। बस में बैठे हम सभी चिन्तित हो उठे। मन में बुरी कल्पनाएँ आने लगीं।

5. यात्रा की रोचकता-काफी समय से कोशिश कर रहे ड्राइवर को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, तभी उसे दूर से पैदल आता हआ एक व्यक्ति दिखाई दिया। पास आने पर ड्राइवर ने उससे आवाज देकर कहा देखना पहियों के नीचे कुछ दिखाई दे रहा है!” उस व्यक्ति ने देखकर बताया कि दो पहियों के मध्य में एक बेडौल पत्थर आड़ा फँसा हुआ है। इसी कारण पहिया जकड़ गया और हिल न सका। उस व्यक्ति ने काफी कोशिश करके पहिये में फँसा हुआ वह पत्थर निकाला। ड्राइवर ने पुनः बस रवाना की। अब की बार झटके के साथ बस आगे बढ़ी और धीरे धीरे गति लेती हुई किले के नीचे तक पहुँच गयी।

6. उपसंहार-इस प्रकार हम रणथम्भौर पहुँचे, किला देखा। वहाँ से चित्तौड़ गये। फिर चित्तौड़ से वापस हम भरतपुर के लिए रवाना हो गये। ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा तो महत्त्वपूर्ण रही, परन्तु यात्रा के मध्य मोटर खराब होने की घटना वास्तव में अविस्मरणीय थी। अन्ततः हम सब इस रोचक यात्रा से सकुशल अपने घरों को लौटने पर ईश्वर को धन्यवाद देने लगे।

59. भीषण वर्षा की वह रात
अथवा
जब मेरे गाँव में भीषण वर्षा हुई

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. मेरे गाँव की स्थिति
  3. वर्षा की जोरदार झड़ी
  4. भीषण वर्षा से विनाश लीला
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-राजस्थान में तो वर्षा ऋतु अच्छी लगती है। इस सूखे-रेतीले प्रदेश में अलसाई-मुरझाई हुई प्रकृति को वर्षा ऋतु ही उल्लसित एवं हरी-भरी करती है। यहाँ के निवासी वर्षा के लिए तरसते रहते हैं और बाढ़ के प्रकोप से अपरिचित रहते हैं।

2. मेरे गाँव की स्थिति-हमारा गाँव बनास नदी से कुछ दूर बसा हुआ है। हमारे गाँव की भूमि काफी उपजाऊ है। नदी में कई बार बाढ़ आ जाने से हानि हो जाती है, लेकिन बाढ़ के समाप्त होते ही गाँव में पुनः अमन-चैन

3. वर्षा की जोरदार झड़ी-दो साल पहले की बात है। जुलाई माह के अन्तिम रविवार के दिन गाँव के सभी लोग अपने-अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर सोने की तैयारी कर रहे थे। उसी समय कुछ देर हल्की बूंदाबांदी हुई और देखते ही देखते तेज बारिश होने लगी। रात के अंधेरे में वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। वर्षा की झड़ी लगी हुई थी। इस कारण मन में बाढ़ आने की आशंका जागने लगी थी।

4. भीषण वर्षा से विनाश-लीला-लगभग रात्रि के साढ़े ग्यारह बजे बनास का पानी गाँव की ओर बढ़ता प्रतीत हुआ। इससे सारे गाँव में शोरगुल मच गया। बाढ़ आने की आशंका से लोग पक्के घरों की छत पर बाल-बच्चों सहित पहुँचने लगे। परन्तु कुछ लोग इस कार्य में सफल नहीं रहे । वे बाढ़ की चपेट में आ ही गए और कुछ लोग वृक्षों पर चढ़ गये। अँधेरी रात में वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। बाढ़ से गाँव घिरा हुआ था।

सारी रात बादलों की गर्जना होती रही। सुबह पाँच बजे वर्षा बन्द हुई। धीरे-धीरे उजाला फैला। बाढ़ के प्रकोप से बचे हुए लोगों के मन में अपने घर-द्वार की दुर्दशा देखने की बेचैनी थी। आठ बजे तक नदी का पानी एकदम उतर गया था। गाँव के कई लोगों का सामान बाढ़ के पानी के साथ बह गया था। कई लोगों के घर उजड़ गये थे। मवेशी बह गए थे। वे उस दुर्दशा को देखकर बिलख रहे थे। लेकिन भगवान् की इस विनाश लीला के सामने वे असहाय थे। सारे गाँव में मातम छाया हुआ था।

5. उपसंहार-लगभग दस बजे आसपास के गाँवों से कई लोगों ने आकर सहायता कार्य प्रारम्भ कर दिया था। इसके बाद पंचायत समिति और सरकार की तरफ से राहत-कार्य प्रारम्भ हो गया था। भीषण वर्षा की वह रात आज भी जब याद आती है, तो सारा शरीर अज्ञात भय से काँपने लगता है।

60. चुनाव का एक दृश्य
अथवा
चुनाव की हलचल

संकेत बिन्दु :

  1. चुनाव का आशय
  2. लोकतन्त्र में चुनाव का महत्त्व
  3. चुनाव के दिनों में दिखाई देने वाला दृश्य
  4. प्रमुख राजनीतिक दल एवं मतदान दिवस
  5. उपसंहार।

1.चुनाव का आशय-हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा प्रजातान्त्रिक देश है। प्रजातन्त्र शासन प्रणाली में चुनाव से आशय लोगों द्वारा चुनाव में खड़े हुए प्रत्याशियों में से अपनी पसन्द के प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करना है।

2. लोकतन्त्र में चुनाव का महत्त्व-अब्राहम लिंकन के अनुसार, “लोकतन्त्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है।” लोकतन्त्र का अर्थ है–जनता का शासन। लोकतन्त्र में जनता अपने मताधिकार द्वारा अपने क्षेत्र के उम्मीदवारों में से एक का चयन जनप्रतिनिधि के रूप में करती है। निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही दलगत बहुमत के आधार पर राज्य व केन्द्र में अपनी सरकार बनाकर शासन का संचालन करते हैं। अतः लोकतन्त्र में चुनाव का बहुत महत्त्व है।

3. चुनाव के दिनों में दिखाई देने वाला दृश्य-चुनाव के दिनों में चारों ओर अलग ही माहौल दिखाई देता है। जगह-जगह उम्मीदवारों के समर्थन में पोस्टर-बैनर लगे दिखाई देते हैं। राजनैतिक दलों के बड़े-बड़े नेता अपनी बड़ी बड़ी जनसभाएँ सम्बोधित करते हैं । विभिन्न प्रचार साधनों एवं सामग्रियों में उन्हीं की पार्टी को वोट देने की बात कही जाती है। विभिन्न दलों के पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर जन-सम्पर्क करते हैं और अपने-अपने पक्ष अपील करते हैं। चौपालों, हाट-बाजारों, बस-अड्डों और पनघटों पर भी चुनाव की ही चर्चा होती दिखाई देती है।

4. प्रमुख राजनीतिक दल एवं मतदान दिवस-चुनाव में अनेक राजनीतिक दल भाग लेते हैं। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, शिवसेना, अकाली दल, तृणमूल कांग्रेस, जदयू आदि राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं । मतदान करने के लिए अनेक मतदान केन्द्र बनाये जाते हैं। मतदान-दिवस पर सुबह सात बजे से ही मतदान प्रारम्भ हो जाता है। मतदान केन्द्र पर पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग बूथ होते हैं। मतदान शुरू होते ही मतदाताओं की अलग अलग कतार लग जाती है। एक अधिकारी मतदाताओं की बायें हाथ की उँगली पर न मिटने वाली स्याही का एक चिह्न लगाता है। सभी मतदाता अपना अमूल्य वोट प्रदान करते हैं । अन्त में विभिन्न उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला वोटिंग मशीन में बन्द हो जाता है।

5. उपसंहार-चुनाव का दृश्य लोकतन्त्र का प्रमुख पर्व जैसा है, क्योंकि चुनाव से ही जन-प्रतिनिधियों का चयन होता है और लोकप्रिय सरकार गठित हो पाती है। हमें अपने मताधिकार का उपयोग अवश्य करना चाहिए।

विविध विषयात्मक निबन्ध :

61. मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. रामचरितमानस का प्रतिपाद्य
  3. रामचरितमानस का महत्त्व
  4. रामचरितमानस का प्रभाव
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना मेरी प्रिय पुस्तकों में गोस्वामी तुलसीदास की अमर-कृति ‘रामचरितमानस’ सबसे अधिक प्रिय पुस्तक है। यह धार्मिक ग्रन्थ के रूप में सभी हिन्दू परिवारों में श्रद्धा के साथ रखी रहती है। यह हमारे समाज तथा राष्ट्र की आत्मा को आलोकित करने वाला अनुपम ग्रन्थ है।

2. रामचरितमानस का प्रतिपाद्य ‘रामचरितमानस’ हिन्दी की ही नहीं विश्व साहित्य की श्रेष्ठतम रचना मानी जा सकती है। इसमें भगवान राम की पावन जीवन गाथा वर्णित है। किस प्रकार उन्होंने बाल्यकाल में ही अपने अपूर्व पराक्रम से ताड़का, सुबाहु आदि राक्षसों का वध करके तपोवन के ऋषियों का रक्षण किया। मिथिला की स्वयंवर-सभा में शिव-धनुष तोड़कर सीता को अपनी अर्धांगिनी बनाया।

पिता की आज्ञा का पालन करते हुए चौदह वर्ष के लिए वनवास स्वीकार किया। वन में जाकर वहाँ की कोल-किरात आदि वन्य जातियों से मित्रता निभायी, वानर और भालुओं की सेना लेकर रावण जैसे दुष्ट और अत्याचारी राक्षस का विनाश किया। लंका का राज्य विभीषण के हाथों में सौंप दिया। फिर अयोध्या लौटकर उन्होंने राज-काज सँभालते हुए राम-राज्य का आदर्श प्रस्तुत किया।

3. रामचरितमानस का महत्त्व ‘रामचरितमानस’ का महत्त्व अपने आप में ही सिद्ध है। सचमच साहित्यिक. धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सभी दृष्टियों से इस ग्रन्थ का अनुपम महत्त्व है। साहित्य के क्षेत्र में यह ग्रन्थ हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। इसमें मानव जीवन की अनेकानेक परिस्थितियों, मानव मूल्यों एवं विविध आदर्शों के साथ सांस्कृतिक मर्यादाओं का समग्र चित्रण हुआ है।

4. रामचरितमानस का प्रभाव-यह ग्रन्थ भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। हमारे सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक जीवन की मूल्यवान् सम्पदा है। इस ग्रन्थ में तुलसी ने श्रीराम का दैदीप्यमान् चरित्र जन-जन के समक्ष रखकर लोकधर्म का महामन्त्र दिया है। साथ ही उन्होंने व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र, पति-पत्नी, स्वामी-सेवक सभी के अधिकार और कर्त्तव्य, मर्यादाओं तथा जीवन के आदर्शों का प्रतिपादन किया तथा आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श पत्नी, आदर्श भाई, आदर्श सेवक, आदर्श राजा, आदर्श प्रजा सभी के उज्ज्वल चित्र देकर जन-जीवन को उदात्त बनाने की स्फूर्तिदायक प्रेरणा दी है।

5. उपसंहार – ‘रामचरितमानस’ की ऐसी गौरव गरिमा है, जिसकी अमरवाणी निरन्तर चार सौ से भी अधिक वर्षों से जन-मानस को पुष्ट करती हुई भारत-भूमि में गूंज रही है। हमारा कर्त्तव्य है कि इस पावन ग्रन्थ का हम नित्य अध्ययन करें। उसके आदर्शों पर अग्रसर होकर अपने जीवन को ऊँचा उठावें। अपने देश, जाति और समाज के कल्याण में हाथ बँटायें तथा अपना जीवन आदर्श बनायें।

62. इक्कीसवीं सदी का भारत
अथवा
मेरे सपनों का भारत

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. नव-स्वतन्त्र भारत के प्रति मेरी भावना
  3. इक्कीसवीं सदी का भारत
  4. प्रगतिशील भारत की कामना
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मानवं विचारशील प्राणी है। वह एकान्त में हो या सामाजिक जीवन में हो, कुछ-न-कुछ सोचता विचारता रहता है। उसके विचार कभी अपने तक ही सीमित रहते हैं तथा कभी समाज व राष्ट्र तक फैल जाते हैं। मैं भी कभी अन्य विषयों पर न सोचकर यही सोचा करता हूँ कि यदि मेरे सपनों का भारत बन जाए तो कितना अच्छा रहे !

2. नव-स्वतन्त्र भारत के प्रति मेरी भावना-अपने विकासशील देश भारत को लेकर मेरे मन में अनेक विचार उठते रहते हैं, मैं भी कभी-कभी अपनी कल्पनाओं के पंख फैलाने लगता हूँ। इस कारण मैं सोचता हूँ कि यदि इक्कीसवीं सदी में मेरे सपनों का भारत हो जाए, तो कितना सुखद भविष्य हो जाए!

3. इक्कीसवीं सदी का भारत-इक्कीसवीं सदी का शुभारम्भ हो गया है। इक्कीसवीं सदी में मेरे सपनों का भारत कैसा होगा, उसमें किन बातों की वृद्धि होगी, उन्हें यहाँ इस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है। मेरे सपनों के भारत में चारों ओर खुशहाली, समता, भाईचारा और सदाचार का बोलबाला होगा। हमारी आकांक्षा है कि ऐसा भारत हो जिसमें गरीबी और शोषण उत्पीड़न का नामोनिशान न हो। सभी को काम मिले। सब अपने पैरों पर खड़े होकर स्वावलम्बी जीवन व्यतीत करने में सक्षम हों। सब एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी बनें। भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, रिश्वतखोरी और अपराध समूल नष्ट हों। मेरे सपनों के भारत में सभी तरह के रोगों से जनता को मुक्ति मिले, अकाल-अतिवृष्टि या प्राकृतिक प्रकोप नहीं होवें, सभी का जीवन उन्नत-खुशहाल हो, यही मेरी कामना है।

4. प्रगतिशील भारत की कामना-आज का युग विज्ञान का युग है। दुनिया के अन्य राष्ट्रों में विज्ञान के नये आविष्कार हो रहे हैं, शक्र और मंगल ग्रह की यात्रा पर जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। मैं कामना करता हूँ कि हमारे भारत में भी विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हो। आने वाले काल में भारत में अनेक उद्योग स्थापित किये जाएँ और उनमें उत्पादन का प्रतिशत बढ़े, निर्यात-व्यापार बढ़े और राष्ट्रीय जीवन में आय-वृद्धि होने से जीवन-स्तर उन्नत हो जाए। इसके साथ ही सभी क्षेत्रों में पर्याप्त उन्नति हो और देश का गौरव बढ़े।

5. उपसंहार-मैं अपने देश भारत को समुन्नत एवं वैभवशाली देखना चाहता हूँ, परन्तु केवल मेरे सोचने से तो यह हो ही नहीं सकता। इसलिए सारे भारतीय भी इसी प्रकार सोचने लगें और सभी एकजुट होकर राष्ट्रोन्नति के कार्य में परिश्रम करें, तो वह सुदिन अवश्य आ सकता है।

63. मुझे गर्व मेरे भारत पर
अथवा
मेरा भारत महान्
अथवा
कितना निराला देश हमारा

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. नामकरण और हमारे गौरव
  3. प्राकृतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व
  4. संसार का सबसे बड़ा गणतंत्र
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-प्रत्येक नागरिक के मन में अपने देश के प्रति स्वाभाविक प्रेम होता है। जिस देश की धरती पर जन्म लेकर वहाँ के अन्न, जल आदि से वह अपने शरीर का पोषण करता है, उसका इतिहास, उसकी विशेषताओं को जानकर गौरवान्वित होता है। मुझे भी अपने देश पर गर्व है।

2. नामकरण और हमारे गौरव-हमारे देश का नामकरण दुष्यन्त और शकुन्तला के प्रतापी पुत्र ‘भरत’ के नाम पर किया गया। पहले इसे ‘आर्यावर्त’ भी कहा जाता था। इस पावन देश में राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, वर्धमान महावीर आदि महापुरुषों ने जन्म लिया। इस देश में चन्द्रगुप्त, अशोक तथा अकबर जैसे प्रतापी सम्राट् हुए। इस देश के स्वतन्त्रता संग्राम में महात्मा गाँधी, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, सरोजनी नायडू आदि ने कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। उनके त्याग, बलिदान और कर्मठता से हमें गौरव का अनुभव होता है।

3. प्राकृतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व-हमारे देश के उत्तर में हिमालय अपना ऊँचा मस्तक किए हुए प्रहरी-सम खड़ा हुआ है। दक्षिणी प्रदेशों के समुद्रतटीय भागों में स्थित नारियल के वृक्ष, गंगा-यमुना के उर्वर मैदान प्रकृति की अनुपम भेंट हैं। हमारा देश अत्यन्त प्राचीन सभ्यता और संस्कृति वाला देश है। यहाँ की संस्कृति में अन्य संस्कृतियों को अपने में समाहित करने की अद्भुत क्षमता है। यही कारण है कि संसार की कई संस्कृतियों के निशान मिटने के बाद भी हमारी संस्कृति जीवित है।

ऐतिहासिक दृष्टि से यह अत्यन्त प्राचीन देश है। सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश ने अनेक विदेशी आक्रमणकारियों को आकर्षित किया। यहाँ के अनेक प्राचीन महलों, किलों आदि के खण्डहर जहाँ प्रतापी और वीर राजाओं की गाथा का गायन करते हैं, वहीं इसकी संघर्षमयी और विजयी ऐतिहासिकता को सिद्ध करते हैं।

4. संसार का सबसे बड़ा गणतंत्र-हमारा देश संसार का सबसे बड़ा गणतंत्र है। यहाँ की जनता को बिना किसी भेदभाव के अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार है। हमारे देश में अनेक धर्मों, जातियों और विविध भाषा-भाषी लोग रहते हैं। जिनका खान-पान, रहन-सहन और रीति-रिवाज अलग-अलग हैं। इतनी विविधता होते हुए भी इसमें एकता है और सभी एक संविधान के तहत अपना जीवन-निर्वाह पूरी स्वतन्त्रता के साथ करते हैं।

5. उपसंहार+भारत विश्व का गुरु रहा है। इसका प्राकृतिक वैभव जहाँ अतुलनीय रहा है, वहीं इसकी संस्कृति महिमामयी रही है। यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक विकासशील देश है। इसकी विशेषताओं और महानताओं पर मुझे गर्व है।

64. यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. देश का प्रधानमंत्री बनना
  3. प्रधानमन्त्री बनने पर मेरे कर्त्तव्य
  4. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-प्रत्येक व्यक्ति मन में अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना करता है। मैं भी यदि चुनाव में जीत कर लोकसभा का सदस्य बन जाता और सभी प्रतिनिधि मुझे देश का प्रधानमन्त्री चुन लेते, तो कितना अच्छा होता ! मैं प्रायः इसी प्रकार की कल्पनाएँ करता रहता हूँ।

2. देश का प्रधानमंत्री बनना-यदि मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो यह मेरे लिए सौभाग्य का विषय होता। सबसे पहले मैं योग्य व्यक्तियों को अपने मन्त्रिमण्डल में उचित पद देकर देश का शासन सही ढंग पर चलाने की चेष्टा करता और देश और जनता की समस्याओं को निष्पक्षता के साथ समाधान करने का प्रयास करता।

3. प्रधानमंत्री बनने पर मेरे कर्त्तव्य-प्रधानमन्त्री बनने पर मैं देश की विदेश नीति को प्रभावशाली बनाता । रक्षा पर अधिक व्यय करता। देश को स्वावलम्बी बनाने के लिए आर्थिक उन्नति के लिए प्रयास करता। लघु-उद्योगों की स्थापना के लिए नीति बनाता। शिक्षा के स्तर में सुधार कर, रोजगारपरक और तकनीकी शिक्षा पर अधिक जोर देता, कृषि-उत्पादन पर अधिक जोर देता । कृषि कार्यों हेतु सिंचाई और पेयजल की उचित व्यवस्था करता। महँगाई और भ्रष्टाचार को समाप्त करने का भरसक प्रयत्न करता। साम्प्रदायिकता और जातिवाद को समाप्त करने का पूरा-पूरा प्रयास करता। श्रमिकों, कृषकों एवं गरीबी से ग्रस्त लोगों के उत्थान के कार्य करता; उनके स्वास्थ्य, स्वच्छता व आवास आदि पर विशेष ध्यान देता।

इस प्रकार मैं अनेक उपायों एवं विकासोन्मुख विविध योजनाओं को प्रारम्भ कर देश के शासन-तन्त्र को सुव्यवस्थित एवं गतिशील बनाता। मैं अपने देश की भौतिक प्रगति के साथ खगोलीय और नाभिकीय प्रगति पर भी विशेष ध्यान देता तथा ऐसे आविष्कारों को प्रधानता देता जिनसे देश का चहुंमुखी विकास हो सके। मैं आणविक आयुधों तथा विशाल बिजलीघरों का निर्माण करवाता, परन्तु पर्यावरण में सन्तुलन बनाये रखने की चेष्टा करता।

4. उपसंहार-इस प्रकार यदि मैं प्रधानमन्त्री होता तो स्वतंत्र भारत के अभ्युदय में अपना तन, मन और जीवन समर्पित करता। परन्तु मेरे सपने और प्रधानमन्त्री बनने की कल्पनाएँ कब पूरी होंगी, यह कहा नहीं जा सकता।

65. पर्यावरण संरक्षण परमावश्यक
अथवा
पर्यावरण संरक्षण के उपाय

संकेत बिन्दु :

  1. प्रस्तावना
  2. पर्यावरण संरक्षण की समस्या
  3. पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व
  4. पर्यावरण संरक्षण के उपाय
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-‘पर्यावरण’ शब्द परि + आवरण के संयोग से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है-चारों ओर का वातावरण, जिसमें हम श्वाँस लेते हैं। इसके अन्तर्गत कायु, जल, भूमि और उस पर रहने वाले आदि से युक्त पूरा प्राकृतिक वातावरण आ जाता है। जब पर्यावरण का निर्माण करने वाले भूमि, जल, वायु आदि तत्त्वों में कुछ विकृति आ जाती है या इनका आपसी सन्तुलन गड़बड़ा जाता है तब पयर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।

2. पर्यावरण संरक्षण की समस्या-विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा नित नये आविष्कारों के कारण प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ गया है। दूसरी ओर जनसंख्या वृद्धि के कारण शहरीकरण, औद्योगीकरण के कारण पेड़ों को काटा जा रहा है। खदानों, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है। कारखानों से निकलने वाले गैसीय पदार्थों, अवशिष्ट पदार्थों, विभिन्न यन्त्रों की कर्ण-कटु ध्वनियों एवं अनियन्त्रित भू जल उपयोग आदि के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। ऐसे में पर्यावरण का संरक्षण करना और इसमें सन्तुलन बनाये रखना कठिन कार्य हो गया है।

3. पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व-पर्यावरण संरक्षण अपने आप में अति महत्त्वपूर्ण है। इस दृष्टि से ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास कॉन्फ्रेंस’ द्वारा 174 देशों का सन् 1992 में तथा 2002 में ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आयोजित किया गया और पर्यावरण संरक्षण हेतु कई उपाय सुझाये गये।

4. पर्यावरण संरक्षण के उपाय-पर्यावरण संरक्षण के लिए इसे प्रदूषित करने वाले कारणों पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है। इस दृष्टि से युवा-वर्ग, विशेष रूप से विद्यार्थी अपने गाँव या कस्बे के आसपास वृक्षारोपण करें, पर्यावरण शुद्धता के लिए जन-जागरण के काम करें। विषैले अपशिष्ट छोड़ने वाले उद्योगों का और प्लास्टिक कचरे का विरोध करें।

वे कुओं, तालाबों एवं अन्य जल-स्रोतों की शुद्धता का अभियान चलावें। पर्यावरण संरक्षण के लिए हरीतिमा का विस्तार, नदियों आदि की स्वच्छता, गैसीय पदार्थों का उचित विसर्जन, रेडियोधर्मिता बढ़ाने वाले संसाधनों पर रोक, गन्दे जल-मल का परिशोधन, खुले में शौच का विरोध, कारखानों के अपशिष्टों का उचित निस्तारण, जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण और जन-जागरण आदि अनेक उपाय किये जा सकते हैं। ऐसे कारगर उपायों से ही पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखा जा सकता है।

5. उपसंहार-पर्यावरण संरक्षण किसी एक व्यक्ति या एक देश का काम न होकर समस्त विश्व के लोगों का कर्तव्य है। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले सभी कारणों को अतिशीघ्र रोका जावे तथा वृक्षारोपण व जलवायु स्वच्छीकरण पर पूरा ध्यान रखा जावे, तभी पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है।

66. मनोरंजन के आधुनिक साधन

संकेत बिन्दु-

  1. प्रस्तावना
  2. मनोरंजन का जीवन में महत्त्व
  3. मनोरंजन के साधनों का विकास
  4. मनोरंजन के आधुनिक साधन
  5. उपसंहार।

1. प्रस्तावना-मनोरंजन का अर्थ है, मन का रंजन अर्थात् मन को प्रसन्न रखना। जब व्यक्ति किसी काम से ऊब जाता है; तब उसे मनोरंजन की आवश्यकता पड़ती है। मनोरंजन के बाद वह थका-हारा व्यक्ति नवीन उत्साह का अनुभव करता है और फिर से अपने काम में दुगुने उत्साह से जुट जाता है।

2. मनोरंजन का जीवन में महत्त्व-आज के वैज्ञानिक युग में यंत्रवत् जीवन जीने के कारण मानव का जीवन नीरस और संघर्षमय बनता जा रहा है। इसलिए आज मानव-जीवन के लिए मनोरंजन का विशेष महत्त्व है। जिस प्रकार शरीर को पुष्ट बनाने के लिए उत्तम भोजन व स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन के लिए मनोरंजन परम विश्रान्तिदायक माना जाता है।

3. मनोरंजन के साधनों का विकास-प्राचीन काल में मानव का जीवन बहुत सहज और सरल था, तब भी मनोरंजन की आवश्यकता अनुभव की जाती थी। उस समय लोगों के पास समय की कमी नहीं थी, इसलिए उस समय नाटक, मेले-तमाशे एवं महोत्सव ऐसे होते थे, जिनसे कई दिनों और रातों तक जनता का मनोरंजन हो जाता था। परन्तु वर्तमान में सभ्यता के विकास और मानव-रुचि के परिवर्तन के साथ मनोरंजन के साधन भी बदल गये हैं। इस कारण अनेक प्रकार के मनोरंजन के साधनों का विकास निरन्तर हो रहा है।

4. मनोरंजन के आधुनिक साधन-वर्तमान समय में मनोरंजन के साधनों के रूप में रेडियो, टेलीविजन, फोटोग्राफी, वीडियो गेम्स, टेपरिकार्डर, सिनेमा एवं खेलों का अत्यधिक महत्त्व है। इनमें आज टेलीविजन सबसे सस्ता मनोरंजन का साधन है। घर-घर में टेलीविजन होने से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम, खेल, कुश्ती आदि घर बैठे देखे जा सकते हैं। साथ ही कवि-सम्मेलन, मुशायरा आदि का भी आनन्द लिया जा सकता है। इसके अलावा मेले, भ्रमण, देशाटन आदि से भी मनोरंजन सरलता से करके ज्ञानवर्द्धन किया जा सकता है।

5. उपसंहार-जीवन में अन्य कार्यों की भाँति मनोरंजन का उपयोग भी उचित मात्रा में होना चाहिए। मनोरंजन सदैव स्वस्थ-प्रकृति का होना चाहिए। आधुनिक समय में मनोरंजन के साधनों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। इससे आज के अतिव्यस्त मानव को भी आनन्द मिल सकेगा और उसके जीवन की नीरसता और यान्त्रिकता समाप्त हो जाएगी।

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