RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद
RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 साखियाँ एवं सबद
साखियाँ एवं सबद Summary in Hindi
कवि-परिचय – भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा के भक्त-कवियों में कबीर का प्रमुख स्थान है। इनके जन्म और मृत्यु के बारे में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इनका जन्म सन् 1398 में काशी में और निधन सन् 1518 के आसपास मगहर में हुआ था। इन्होंने विधिवत् शिक्षा नहीं पायी थी, परन्तु सत्संग एवं स्वानुभव से ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर श्रेष्ठ सन्त, समाज-सुधारक एवं क्रान्तिद्रष्टा कवि थे। इन्होंने समाज में व्याप्त अन्धविश्वासों, रूढ़ियों, जातिगत भेदभावों, बहुदेववाद एवं सामाजिक विकृतियों का डटकर विरोध किया और सभी धर्मों का मूल एक बताकर मानवता का सन्देश दिया।
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में कबीर की सात साखियाँ एवं दो पद संकलित हैं। इन साखियों में मन की पवित्रता, प्रेम का महत्त्व, हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा कर्मों की उदात्तता का महत्त्व बताया गया है। साखी का अर्थ साक्षी या गवाह होता है। यहाँ साखी का आशय ईश्वर को साक्षी मानकर ज्ञानपूर्ण बातों का उल्लेख करना है। पदों में बाह्याडंबरों का विरोध भक्ति-भावना एवं ज्ञान-चेतना का प्रतिपादन कर मानव को अज्ञान से मुक्त रहने का सन्देश व्यक्त हुआ है।
भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न :
साखियाँ
1. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहि॥
कठिन-शब्दार्थ :
- मानसरोवर = हिमालय स्थित पवित्र सरोवर, पवित्र मन।
- सुभर = अच्छी तरह भरा हुआ।
- केलि = क्रीड़ा।
- मुकताफल = मोती, मोक्ष।
- अनत = अन्यत्र।
भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि मानसरोवर स्वच्छ जल से लबालब भरा है, उसमें हंस क्रीड़ा कर रहे हैं। वे वहाँ मोतियों को चुगते हैं और उस आनन्ददायी स्थान को छोड़कर कहीं अन्यत्र नहीं जाते हैं। इसका निहितार्थ है कि भक्त का मन रूपी सरोवर आनन्द रूपी स्वच्छ जल से भरा हुआ है। उसमें शुद्ध-मुक्त जीवात्मा रूपी हंस विहार कर रहा है। वह वहाँ आनन्द रूपी.मोतियों को चुगता है और वहीं पर मुक्ति पा लेने से अब अन्यत्र कहीं नहीं जाता है। अर्थात् हमारे मन में परमात्मा निवास करता है, उसे खोजने या पाने के लिए अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 1. मानसरोवर किसका प्रतीक बताया गया है?
प्रश्न 2. प्रस्तुत साखी में हंस किसका प्रतीक है?
प्रश्न 3. हंस मानसरोवर छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?
प्रश्न 4. प्रस्तुत साखी से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
- सामान्य अर्थ में मानसरोवर हिमालय पर स्थित एक पवित्र सरोवर है और ऐसी मान्यता है कि वहाँ पर हंस मोती चुगते हैं। प्रस्तुत साखी में मानसरोवर पवित्र मन का प्रतीक है।
- प्रस्तुत साखी में हंस भक्त-हृदय का या प्रभु साधना में लीन साधक का प्रतीक है।
- हंस अर्थात् भक्तजन मानसरोवर को छोड़कर अन्यत्र इसलिए नहीं जाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें वहीं मुक्ति का आनन्द मिले गया है।
- प्रस्तुत साखी से यह शिक्षा मिलती है कि भक्त-जन पवित्र मन में आनन्दित रहकर परमात्मा की प्राप्ति कर लेता है। अतएव साधक को मैन की पवित्रता पर ध्यान रखना चाहिए। ईश्वर का साक्षात्कार बाहर नहीं अपने हृदय में करना चाहिए।
2. प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ॥
कठिन-शब्दार्थ :
- प्रेमी = प्रभु भक्त।
- फिरौं = फिरा।
- विष = जहर।
भावार्थ – कबीर कहते हैं कि मैं (भक्त) सच्चे ईश्वर-प्रेमी को ढूँढ़ता फिरा, पर मुझे ऐसा प्रेमी कोई भी नहीं मिला। जब ईश्वर के प्रेमी से प्रेम मिला, तब मन की विषय-वासनाओं का सारा विष अमृत में परिणत हो गया। अर्थात् ईश्वर-प्रेम के प्रवाह से हृदय आनन्द से भर गया तथा सारी बुराइयाँ समाप्त हो गयीं।
प्रश्न 1. कवि ने ‘मैं’ का प्रयोग किसलिए किया है?
प्रश्न 2. कवि किसे ढूँढ़ता फिरा? वह उसे क्यों नहीं मिल सका?
प्रश्न 3. ईश्वर-प्रेमी के मिल जाने का क्या परिणाम होता है?
प्रश्न 4. साखी का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने ‘मैं’ का प्रयोग सच्ची ईश्वर-भक्ति या ईश्वर-प्रेमी दिखाने के लिए किया है।
2. कवि सच्चे ईश्वर-प्रेमी को ढूँढ़ता फिरा। संसार में सच्चे ईश्वर-प्रेमी कम ही होते हैं, इसलिए वह उसे नहीं मिल सका।
3. जब दो ईश्वर-प्रेमी मिल जाते हैं, तो हृदय में स्थित विषय-वासना रूपी बुराइयाँ अमृत में परिणत हो जाती हैं, अर्थात् परमानन्द की प्राप्ति हो जाती है।
4. आशय-कबीरदासजी कहते हैं कि जब मैं (भक्त) किसी सच्चे प्रभु-प्रेमी को ढूँढ़ने निकला, लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी वह नहीं मिल सका। जब मुझे सच्चा प्रेमी मिला तो मेरे सब पाप पुण्य में बदल गये और मन में समायी सभी वासनाएँ-दुर्भावनाएँ समाप्त हो गयीं। मन में आनन्द रूपी अमृत का संचार हो गया।
3. हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, मूंकन दे झख मारि॥
कठिन-शब्दार्थ :
- हस्ती = हाथी।
- सहज = सरल, स्वाभाविक।
- दुलीचा = छोटा आसन (यहाँ समाधि)।
- स्वान = कुत्ता।
- दूंकन = भौंकना।
भावार्थ – कबीर कहते हैं कि सहज समाधि का आसन बिछाकर ज्ञान के हाथी की सवारी करो, अर्थात् ज्ञान-प्राप्ति के लिए सहज समाधि लगाओ। यह संसार तो कुत्ते के समान है। यदि तुम्हारी आलोचना करने वाले कुत्तों की तरह भौंकते हैं, तो तुम उनकी चिन्ता मत करो। अर्थात् वे अन्ततः स्वयं चुप हो जायेंगे। आशय यह है कि प्रभु-साधक को संसार की निंदा की बिना परवाह किये साधना-पथ पर बढ़ते जाना चाहिए।
प्रश्न 1. ज्ञान की उपमा किससे की गई है और क्यों?
प्रश्न 2. ‘सहज’ शब्द का आशय क्या है? प्रश्न 3. कवि ने संसार को किसके समान बताया है? क्यों?
प्रश्न 4. इस साखी में क्या सन्देश दिया गया है?
उत्तर :
- ज्ञान की उपमा हाथी से की गई है क्योंकि हाथी मस्त स्वभाव का होता है, उसी प्रकार ज्ञान-साधना वाला भी मस्त रहता है।
- ‘सहज’ शब्द का आशय है स्वाभाविक रूप से विषय-वासनाओं को त्यागकर समाधि लगाना, अर्थात् सच्ची भक्ति में निमग्न रहना।
- कवि ने संसार को कुत्ते के समान बताया है, क्योंकि संसारी लोग हर किसी की आलोचना करने (कुत्ते की तरह भौंकने) में लग जाते हैं।
- इसी साखी में यह सन्देश दिया गया है कि आलोचकों अथवा निन्दकों की परवाह न करके ज्ञान-साधना एवं प्रभुभक्ति में लीन रहना चाहिए।
4. पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई सन्त सुजान।
कठिन-शब्दार्थ :
- पखापखी = पक्ष और विपक्ष।
- भुलान = भूला हुआ।
- निरपख = निष्पक्ष।
- सोई = वही।
- सुजान = ज्ञानी।
भावार्थ – कबीर कहते हैं कि सब लोग समर्थन या विरोध करने में ही लगे हुए हैं। इस तरह पक्ष-विपक्ष के चक्कर में पड़कर लोग ईश्वर को भूलने की बड़ी भूल कर रहे हैं। वास्तविक ज्ञानी सज्जन तो वह है पक्ष-विपक्ष से ऊपर उठकर अर्थात् निष्पक्ष होकर ईश्वर का भजन करता है।
प्रश्न 1. ‘पखापखी’ से कवि का क्या आशय है?
प्रश्न 2. ‘पखापखी’ का लोगों पर क्या असर रहता है?
प्रश्न 3. ‘निरपख होइ’ का आशय क्या है?
प्रश्न 4. संसार किस कारण से किसे भूला हुआ है?
उत्तर :
- ‘पखापखी’ से कवि का आशय किसी का समर्थन (पक्ष लेना) या विरोध (पक्ष न लेना) है।
- पखापखी अर्थात् एक सम्प्रदाय का समर्थन और दूसरे का विरोध करने से लोग अपने वास्तविक लक्ष्य को भूल जाते हैं। जबकि प्रभु-भक्ति सच्चे मन से करना ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है।
- इसका आशय यह है कि किसी सम्प्रदाय के प्रति आग्रही न होना, सभी सम्प्रदायों को समान मानकर केवल प्रभु-भक्ति में मन लगाना।
- संसार आपसी तर्क-वितर्क और समर्थन-विरोध के प्रभाव में आकर ईश्वर को भूला हुआ है।
5. हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ॥
कठिन-शब्दार्थ :
- मूआ = मर गया।
- कहि = कहकर।
- सो जीवता = वही जीवित है।
- दुहुँ के = दोनों के।
भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि हिन्दू अपने धर्म को श्रेष्ठ मानकर राम का नाम लेकर मरता है और मुसलमान खुदा का। परन्तु जो इन दोनों ही सम्प्रदायों के चक्कर में न पड़कर भगवान् की आराधना करता है, वही व्यक्ति जीवित है अर्थात् उसका जीवन सार्थक है और सच्चा ज्ञान प्राप्त कर अमर हो जाता है। आशय यह है कि धार्मिक कट्टरता एवं सम्प्रदायवाद से सच्ची साधना नहीं हो पाती है।
प्रश्न 1. “हिन्द मआराम कहि’ से क्या आशय है?
प्रश्न 2. ‘दुहुँ के निकटि न जाइ’ से कवि ने क्या सन्देश दिया है?
प्रश्न 3. इस साखी में कबीर ने क्या भाव व्यक्त किया है?
प्रश्न 4. कबीर के अनुसार जीवित कौन है?
उत्तर :
- हिन्दू अपने आराध्य राम की रट लगाते हुए अपने धर्म-सम्प्रदाय की बढ़ाई करते हैं और राम-राम कहते हुए मर जाते हैं, परन्तु वे लोग सच्ची भक्ति का फल नहीं पाते हैं तथा उनका जीवन निष निष्फल चला जाता है।
- इससे कवि ने सन्देश दिया है कि हिन्दू या मुस्लिम सम्प्रदाय की कट्टरता के चक्कर में नहीं आना चाहिए। निष्पक्ष भाव से, निर्गुण ज्ञान-चेतना से भगवान् का ध्यान करना चाहिए।
- इस साखी में कबीर ने यह भाव व्यक्त किया है कि धार्मिक कट्टरता से अज्ञान बढ़ता है, जबकि ईश्वर-भक्ति ऐसी कट्टरता की अपेक्षा ज्ञान-साधना से ही हो सकती है। सच्चे ज्ञान से ही व्यक्ति का जीवन सफल रहता है।
- कबीर के अनुसार सांप्रदायिकता और कट्टरता से दूर रहने वाला मनुष्य ही सच्चे अर्थों में जीवित है।
6. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम॥
कठिन-शब्दार्थ :
- काबा = मक्का-मदीना, मुसलमानों का पवित्र तीर्थ।
- भया = हुआ।
- मोट चून = मोटा आटा।
- जीम = भोजन करो।
भावार्थ : धार्मिक संकीर्णता को त्यागने का सन्देश देते हुए कबीर कहते हैं कि काबा ही काशी है और राम व रहीम का नाम भी एक समान पवित्र है। भाव यह है कि काबा, काशी, राम, रहीम में कोई भेद नहीं है। जिसे मोट आटा अर्थात् खाने के अयोग्य समझता था वही अब मैदा के समान एकदम बारीक हो गया है और उसे खाते हुए मुझे आनन्दानुभूति होती है। अर्थात् धार्मिक एकता एवं समानता रखने से ही समाज का हित हो सकता है।
प्रश्न 1. साखी में किन दो धार्मिक स्थलों का उल्लेख हुआ है?
प्रश्न 2. ‘रामहिं भया रहीम’ से कवि का क्या आशय है?
प्रश्न 3. इस साखी में कबीर ने क्या सन्देश व्यक्त किया है?
प्रश्न 4. कबीर ने मोट चून और मैदा किसे कहा है?
उत्तर :
- साखी में मुसलमानों के तीर्थस्थल काबा और हिन्दुओं के तीर्थस्थल काशी का उल्लेख हुआ है।
- कवि का आशय है कि धार्मिक संकीर्णता रखने से मनुष्यों ने भगवान् को राम और रहीम नाम देकर भेदभाव बढ़ाया है जबकि राम और रहीम में कोई भेद नहीं है, ये दोनों एक ही हैं।
- इसमें कबीर ने एकेश्वरवाद का प्रतिपादन कर यह सन्देश व्यक्त किया है कि राम-रहीम का भेदभाव गलत है, परमात्मा तो एक ही है, उसी की भक्ति करनी चाहिए।
- विभिन्न संप्रदायों को खटकने वाली बातों को मोट चून और अपनाने वाली अच्छी बातों को मैदा कहा गया है।
7. ऊँचे कुल का जनमिया, जो करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निन्दा सोइ॥
कठिन-शब्दार्थ :
- जनमिया = जन्मा हुआ।
- करनी = कर्म, काम।
- सुबरन = सोना।
- सुरा = शराब।
- साधू = सज्जन।
भावार्थ : कबीरदास कहते हैं कि केवल ऊँचे खानदान या श्रेष्ठ परिवार में जन्म लेने से ही व्यक्ति महान् नहीं बन जाता है। इसके लिए कर्म भी अच्छा करना जरूरी है। जैसे सोने जैसी मूल्यवान् धातु से बने कलश में यदि शराब भरी गई हो, तो भी सज्जन उसकी निन्दा ही करते हैं। अर्थात् श्रेष्ठ कर्म करने से ही व्यक्ति महान् बनता है, अन्यथा वह निन्दनीय होता है।
प्रश्न 1. ऊँचे कुल और अच्छे कर्मों में से किसका महत्त्व अधिक है?
प्रश्न 2. ‘सुबरन कलस’ का आशय क्या है? यह किसका उपमान है?
प्रश्न 3. इस साखी में किन लोगों पर आक्षेप किया गया है?
प्रश्न 4. साधु किसकी निंदा करते हैं?
उत्तर :
- ऊँचे कुल में जन्म लेने की अपेक्षा अच्छे कर्मों को श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यदि उच्च कुल का व्यक्ति निन्दित कर्म करे, तो वह निन्दा का पात्र बनता है।
- ‘सुबरन कलस’ का आशय बहुमूल्य धातु से निर्मित पात्र है। यह ऊँचे कुल में जन्म लेने वाले व्यक्ति का उपमान है, क्योंकि इससे ही उसकी तुलना की गई है।
- इस साखी में उन लोगों पर आक्षेप किया गया है, जो ऊँचे कुल में जन्म लेने का घमण्ड रखते हुए स्वयं को सम्मानित समझते हैं, परन्तु बुरे कामों में लिप्त रहते हैं।
- साधु मदिरा भरे सोने के पात्र की निंदा करते हैं अर्थात् वे बुराइयों में रत मनुष्य की निंदा करते हैं, चाहे वह मनुष्य कितने ही बड़े कुल में जन्मा क्यों न हो?
सबद (पद)
मोकों कहाँ ढूँढे बन्दे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबै कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहै कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में॥
कठिन-शब्दार्थ :
- मोकों = मुझे।
- देवल = देवालय, मन्दिर।
- कैलास = हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ।
- क्रिया-कर्म = कर्मकाण्ड।
- योग बैराग = योग-साधना एवं वैराग्य।
- खोजी = खोजने वाला।
- तालास = तलाश।
- स्वाँस = श्वास।
भावार्थ : ईश्वर मनुष्य को लक्ष्यकर कहता है कि हे मनुष्य, तुम मुझे अपने से बाहर कहाँ ढूँढ़ने का प्रयास कर रहे हो, मैं तो तुम्हारे पास में ही हूँ। मैं न तो किसी देवालय में रहता हूँ और न किसी मसजिद में। न काबा में रहता हूँ और न कैलास पर्वत पर रहता हूँ। मैं किसी प्रकार की क्रियाओं और नाना प्रकार के कर्मकाण्डों से या योग-साधना तथा वैराग्य धारण करने से भी नहीं पाया जा सकता हूँ। यदि सचमुच कोई मुझे खोजना चाहे तो मैं पलभर की तलाश में ही मिल सकता हूँ। हे सन्तो, मैं तो हर प्राणी की श्वास में बसा हुआ हूँ प्राणी की साँस में मेरा निवास है। अतएव मुझे बाहर नहीं अपितु अपने अन्दर खोजने की ही आवश्यकता है।
प्रश्न 1. अज्ञानी लोग ईश्वर को ढूँढ़ने के लिए क्या-क्या करते हैं?
प्रश्न 2. कवि ने ईश्वर का निवास कहाँ बताया है?
प्रश्न 3. कवि ने ईश्वर-प्राप्ति का क्या उपाय बताया है?
प्रश्न 4. ईश्वर किसे मिलते हैं और कैसे?
उत्तर :
1. अज्ञानी लोग ईश्वर को खोजने के लिए मन्दिरों या मसजिदों में जाकर प्रार्थना करते हैं। वे कर्मकाण्ड, धार्मिक अनुष्ठान, योग-साधना आदि जटिल क्रियाएँ करते हैं और अपने धर्म की मान्यतानुसार तीर्थ यात्रा करते हैं। इसी प्रकार वैराग्य अपनाकर एकान्त-साधना से ईश्वर को पाने का प्रयास करते हैं।
2. कवि ने ईश्वर का निवास प्रत्येक प्राणी की साँस में अर्थात् उसके हृदय में बताया है।
3. कबीर ने ईश्वर – प्राप्ति का उपाय बताते हए कहा है कि ईश्वर को आडम्बरपूर्ण तथा दिखावटी भक्ति से नहीं पाया जा सकता है। ईश्वर को बाहर नहीं अपने भीतर ही पाया जा सकता है। इसलिए तीर्थ-यात्रा, व्रत-उपवास, पूजा-आराधना आदि क्रियाकर्मों के स्थान पर अन्तर्मुखी होना चाहिए और हृदय में ही ईश्वरानुभूति करनी चाहिए।
4. जो सच्चे मन से परमात्मा की खोज करता है उसे ही परमात्मा. प्राप्त होते हैं। परमात्मा घट-घट वासी है।
2. संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहे न बाँधी।
हिति चित्त की द्वै चूंनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा॥
जोग जुगति करि संतौँ बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी॥
कूड़कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनौँ।।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।
कठिन-शब्दार्थ :
- भ्रम = सन्देह।
- टाटी = पर्दा, टटिया।
- माया = दौलत, मोह।
- हिति = भलाई।
- यूँनी = दो खम्भे (जिन पर झोंपड़ी की छत टिकी रहती है)।
- बलिंडा = छप्पर के नीचे लगने वाली बड़ी बल्ली।
- छाँनि = छाँवन।
- कुबधि = दुर्गति।
- भांडा = बर्तन।
- भाँडाँ फूटा = भेद प्रकट हुआ।
- निरचू = निश्चिन्ततापूर्वक।
- चुवै = टपके।
- काया = शरीर।
- बूठा = बरसा, फैला।
- हरि जन = भगवान् के भक्त।
- भीना = भीग गये।
- भाँन = सूर्य।
- तम = अंधकार।
- खीना = क्षीण, मन्द हो गया।
भावार्थ : कबीर ज्ञान का महत्त्व बताते हुए कहते हैं कि हे भाई साधुओ, ज्ञान की आँधी आ गई है। जिस प्रकार आँधी आने पर आड़ के लिए लगाई गई टटिया अर्थात् पर्दे उड़ जाते हैं, उसी प्रकार ज्ञान उत्पन्न होने पर मेरे सारे भ्रम नष्ट हो गये हैं। अब मैं वास्तविकता-अवास्तविकता का भेद समझने लगा हूँ। अब माया रूपी रस्सी भी टूट गई है अर्थात् माया के समस्त बन्धन समाप्त हो गये हैं। जैसे प्रबल आँधी के वेग के कारण छप्पर में लगी थूनी (खम्भे) गिर जाते हैं, उसी प्रकार ज्ञान की प्राप्ति में बाधक मोह और आसक्ति के खम्भे ढह गये हैं।
इतना ही नहीं, तृष्णा रूपी छप्पर को सँभाले हुए मोह रूपी शहतीर के टूटते ही शारीरिक अहंकार रूपी छप्पर भी गिर पड़ा, अर्थात् मोह और तृष्णा के समाप्त होते ही शारीरिक अहंकार समाप्त हो गया। जैसे छप्पर के गिरने से उसके भीतर रखे हुए बर्तन फूट जाते हैं, उसी प्रकार शारीरिक अहंकार समाप्त होते ही मेरी दुर्बुद्धि रूपी वासनाएँ समाप्त हो गई हैं।
अर्थात् जब तृष्णा ही नहीं रही, तब इच्छा भी कैसी? जब ज्ञान की प्राप्ति हुई, तब सन्तों ने वास्तविकता को समझ लिया। वह समझ गये कि बाहरी छप्पर (माया-मोह) व्यर्थ है। तब उन्होंने योग की युक्तियों और सद्वृत्तियों की सहायता से अपने शरीर रूपी छप्पर का निर्माण किया। इसका कूड़ा-करकट तुरन्त बाहर निकल आया और अब शरीर रूपी छप्पर में विषय-विकार रूपी जल की एक बूंद भी आने की सम्भावना नहीं रह गई।
ज्ञान की इस आँध की भक्ति रूपी जल की वर्षा हुई। उससे समस्त भक्तजन भीग गये, अर्थात् वे भक्ति से सराबोर हो गये। कबीरदासजी कहते हैं कि जब वर्षा के पश्चात् ज्ञान रूपी सूर्य का उदय हुआ, जिससे मन में जो अज्ञान रूपी अंधकार समाया हुआ था, वह भी पूरी तरह से समाप्त हो गया।
प्रश्न 1. ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य के मन की क्या स्थिति थी?
प्रश्न 2. ज्ञान की आँधी का फल क्या बताया गया है?
प्रश्न 3. कबीर ने किस युक्ति से छप्पर को बाँधा?
प्रश्न 4. आँधी के बाद बरसने वाले जल का क्या आशय है?
उत्तर :
- ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य के मन में नाना प्रकार के सांसारिक भ्रम, मोह-ममता, तृष्णा और कुविचार आदि समाये हुए थे।
- ज्ञान की आँधी वस्तुतः विवेक की उपलब्धि है। इसका फल यह होता है कि इसके आने पर मनुष्य के शरीर में समाये सारे विकार समाप्त हो जाते हैं।
- कबीर ने योग साधना की युक्तियों से छप्पर को बाँधा अर्थात् उन्होंने जीवन में योग-साधना को ही अपनाया।
- कबीर ने आँधी के बाद बरसने वाले जल का आशय प्रभु-भक्ति का आनन्द बताया है।
RBSE Class 9 Hindi साखियाँ एवं सबद Textbook Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न साखियाँ
प्रश्न 1.
‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘मानसरोवर’ से कवि का आशय है पवित्र मन रूपी पवित्र सरोवर। जैसे हिमालय में स्थित पवित्र मानसरोवर में हंस क्रीड़ा करते हुए मोती चुगते हैं, उसी प्रकार पवित्र मन रूपी सरोवर में आत्मा रूपी हंस प्रभु-भक्ति में निमग्न रहकर परमानन्द रूपी चुगता है या मोक्ष रूपी मोती प्राप्त करता है।
प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर :
कवि ने सच्चे प्रेमी की कसौटी यह बताई है कि उससे मिलने पर मन की सारी मलीनता नष्ट हो जाती है अर्थात सारे पाप धल जाते हैं।
प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर :
तीसरे दोहे में कवि ने सहज-समाधि या सहज ध्यान के बाद प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान को महत्त्व दिया है, जिसे पाकर मनुष्य सांसारिक माया-मोह एवं अज्ञान से सर्वथा मुक्त हो जाता है।
प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा सन्त कौन कहलाता है?
उत्तर :
इस संसार में सच्चा सन्त वही है, जो किसी भी मतवाद या सम्प्रदाय से निरपेक्ष होकर ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है।
प्रश्न 5.
अन्तिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर :
अन्तिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने मुख्यतया निम्न दो संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है
- ईश्वर एक है, परन्तु धार्मिक संकीर्णता के कारण हिन्दू उसे राम तथा मुसलमान उसे रहीम कहते हैं। काबा और काशी में भेद-भाव रखते हैं।
- मनुष्य स्वयं को उच्च कुलीन मानकर दूसरों को संकीर्ण भावना से देखता है तथा वह कर्म नहीं, जन्म को श्रेष्ठ मानता है।
प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्म से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्म से होती है, उसके कुल से नहीं। प्रायः देखा जाता है कि उच्च कुल में जन्म लेने वाला भी नीच कर्म करता है, चोरी, बेईमानी, धोखाधड़ी, फरेब आदि कर्म करता है जो कि हेय है। इसके विपरीत कोई सामान्य या निम्न कुल में जन्म लेकर भी अच्छे कर्म करता है। समाज में अच्छे कर्मों से उसे सम्मान मिलता है, विशेष पहचान मिलती है, तब उसकी कोई कुल-जाति नहीं पूछता है।
प्रश्न 7.
काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए –
हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, मूंकन देझख मारि॥
उत्तर :
भाव-सौन्दर्य – इसमें कबीर ने ज्ञान का महत्त्व बताते हुए उसे प्राप्त करने पर बल दिया है। हाथी बलशाली होता है, तो- ज्ञान भी प्रखर होता है। ज्ञान-रूपी हाथी की सवारी करना सम्मान का परिचायक है।
ज्ञान-प्राप्ति सहज – साधना, सहज समाधि या ध्यान से होती है। ऐसे ज्ञानी की आलोचना करने वाले कुत्तों की तरह भले ही भौंकते रहते हैं, परन्तु ज्ञान-साधक को उनकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। इस तरह निन्दकों पर व्यंग्य किया गया है और साधकों को प्रेरणा दी गयी है।
शिल्प-सौन्दर्य – इसमें ज्ञान रूपी हाथी, सहज साधना रूपी दुलीचा, स्वान रूपी संसार तथा निन्दा रूपी भौंकना की अप्रस्तुत योजना होने से सांगरूपक अलंकार का चमत्कार है।
‘भुंकन दे’ तथा ‘झख मारि’ मुहावरों का प्रयोग करने से व्यंजना की गई है कि आलोचक तो कुछ-न-कुछ कहते रहते हैं या व्यर्थ की बातें करते हैं। अतएव उनकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
दोहा छन्द, सधुक्कड़ी भाषा, लक्षणा शब्द-शक्ति और ‘स्वान रूप संसार’ में उपमा भी विद्यमान है।
सबद –
प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है?
उत्तर :
मनुष्य ईश्वर को संसार में अनेक स्थानों पर ढूँढ़ता है।
(1) कभी वह देवालयों एवं मसजिद आदि में, (2) कभी वह तीर्थस्थलों, काबा, काशी आदि में तथा (3) कभी वह योग-साधना, पूजा-पद्धति, कर्मकाण्ड एवं विभिन्न उपासनाओं के द्वारा ढूँढ़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ लोग वैराग्य अपनाकर, सांसारिकता से मुक्त होकर एकान्त साधना से ईश्वर को खोजते रहते हैं।
प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खण्डन किया है?
उत्तर :
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए मानवों में प्रचलित निम्न विश्वासों का खण्डन किया है
- ईश्वर देवालयों एवं मन्दिरों में मिलता है।
- ईश्वर मसजिद में उपासना करने से मिलता है।
- तीर्थ-स्थल काबा में अथवा कैलास की यात्रा करने से ईश्वर मिलता है।
- कर्मकाण्ड तथा विभिन्न उपासना-पद्धतियों को अपनाने से ईश्वर-प्राप्ति होती है।
- योग-साधना करने तथा वैराग्य धारण करने से ईश्वर मिलता है।
प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में क्यों कहा है?
उत्तर :
ईश्वर इस समस्त सृष्टि का रचयिता और पालनकर्ता है। सभी जीवधारी उसी की रचना है और वही घट घट में निवास करता है। वही संसार के प्रत्येक प्राणी की साँस-साँस में समाया हुआ है। वह किसी जीव से अलग या उससे भिन्न नहीं है। इसीलिए कहा गया है कि ईश्वर सब स्वाँसों की स्वाँस में है।
प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर :
कबीर के अनुसार जब प्रभु-ज्ञान का आवेश होता है तब उसका प्रभाव चमत्कारी होता है। परिणामस्वरूप सांसारिक बंधन पूरी तरह से कट जाते हैं। यह परिवर्तन धीरे-धीरे न होकर पूरे प्रवाह के साथ अचानक ही होता है। इसलिए उसकी तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से की गयी है।
प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर यह प्रभाव पड़ता है।
- भक्त के मन का भ्रम दूर हो जाता है।
- वह माया-मोह से मुक्त हो जाता है।
- तृष्णा, लालसा और कुबुद्धि नष्ट हो जाती है।
- ज्ञान की आँधी के बाद जो वर्षा होती है, उसमें भीगकर भक्त ईश्वरीय प्रेमाभक्ति में निमग्न हो जाता है।
- मन में ज्ञान का प्रकाश फैलता है और अज्ञान मिट जाता है। इससे परमानन्द की मनोरम अनुभूति होती है।
प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
उत्तर :
भाव यह है कि ज्ञान की आँधी आने से मोह और आसक्ति रूपी दोनों खम्भे गिर गये, उससे स्वार्थ-भावना समाप्त हो गई। तब ज्ञान-साधक स्वहित के साथ लोकहित का चिन्तन करने लगता है।
(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरिजन भीनों।
उत्तर :
जैसे तेज आँधी के बाद प्रायः वर्षा होती है, उसी प्रकार ज्ञान की आँधी के बाद ईश्वरीय प्रेम की जो वर्षा हुई, उससे भक्तजन का मन भीग गया, अर्थात् भक्ति-तन्मयता से आनन्द की अनुभूति करने लगे। रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 14.
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और साम्प्रदायिक सद्भाव सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
संकलित साखियों और पदों में कबीर ने धार्मिक तथा सामाजिक एकता बढ़ाने वाले विचारों को व्यक्त किया है। उन्होंने धार्मिक आडम्बरों तथा साम्प्रदायिक कट्टरता का विरोध करते हुए काबा और काशी में, राम और रहीम में एकरूपता बतलायी है। साथ ही कर्मकाण्ड, पूजा-नमाज, तीर्थयात्रा आदि विविध उपासना-पद्धतियों को मतवाद का पोषक बताया है। सच्ची भक्ति तो मतवाद-निरपेक्ष रहने से ही होती है, पारस्परिक प्रेम-भाव रखने से ही होती है तथा सत्कर्मों से होती है। इस तरह कबीर ने एकेश्वरवाद का समर्थन कर धार्मिक कट्टरता त्यागकर साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखने का सन्देश दिया है। इसमें कबीर एक सच्चे सुधारक रूप में दिखाई देते हैं।
भाषा-अध्ययन –
प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
उत्तर :
- पखापखी – पक्षापक्ष (पक्ष-विपक्ष)
- अनत – अन्यत्र
- जोग – योग
- जुगति – युक्ति
- बैराग – वैराग्य
- निरपख – निष्पक्ष
RBSE Class 9 Hindi साखियाँ एवं सबद Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
“अब उड़ि अनत न जाहिं।” हंस अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहता है
(क) मोती मिल जाने के कारण
(ख) मुक्ति का आनन्द मिल जाने के कारण
(ग) भौतिक-सुख की प्राप्ति हो जाने के कारण
(घ) जल-क्रीड़ा का आनन्द पा जाने के कारण।
उत्तर :
(ख) मुक्ति का आनन्द मिल जाने के कारण
प्रश्न 2.
कबीर ने सच्चा संत कहा है
(क) इन्द्रियों को वश में करने वाले को
(ख) वैर-विरोधों और संघर्षों से दूर रहकर ईश्वर-भजन करने वाले को
(ग) सांसारिक माया-मोह से दूर रहकर पूजा करने वाले को
(घ) भगवान की भक्ति करने वाले को।
उत्तर :
(ख) वैर-विरोधों और संघर्षों से दूर रहकर ईश्वर-भजन करने वाले को
प्रश्न 3.
कबीर मनुष्य की श्रेष्ठता मानते हैं
(क) उसके उच्च कुल में जन्मने को
(ख) उसके उच्च कर्मों में
(ग) उसकी व्यवहारशीलता में
(घ) उसकी विवेकशीलता में।
उत्तर :
(ख) उसके उच्च कर्मों में
प्रश्न 4.
ईश्वर का निवास-स्थल है
(क) मन्दिर-मस्जिद
(ख) धार्मिक तीर्थस्थल
(ग) मानव-हृदय
(घ) काबा-कैलाश।
उत्तर :
(ग) मानव-हृदय
प्रश्न 5.
‘संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे’ पद में कबीर ने किस ज्ञान की बात की है
(क) भौतिक ज्ञान की
(ख) कैवल्य ज्ञान की
(ग) आध्यात्मिक ज्ञान की
(घ) भावात्मक ज्ञान की।
उत्तर :
(ग) आध्यात्मिक ज्ञान की
बोधात्मक प्रश्न :
प्रश्न 1.
‘मुकताफल मुकता चुगैं’ इसका आशय क्या है? बताइए।
उत्तर :
‘मुकता’ का आशय सांसारिक माया-मोह से मुक्त तथा पवित्राचरण के कारण मोक्ष-साधक भक्त है। ऐसे लोग अपने मन रूपी सरोवर में मुक्ताफल अर्थात मोती रूपी मक्ति को फल रूप में चुगते हैं, उसक आनन्दित होते हैं। वे मोक्ष-प्राप्ति से परमानन्द में निमग्न हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
‘मानसरोवर सुभर जल………. अब उड़ि अनत न जाहिं।’ कथन के द्वारा कबीर ने क्या भाव व्यक्त किया है?
उत्तर :
इससे कबीर ने यह भाव व्यक्त किया है कि मानसरोवर की पवित्र जलराशि में क्रीड़ा करते हुए हंस मोती चुगकर आनन्दित होते हैं। उसी प्रकार पवित्र मन रूपी सरोवर में मुक्ति का साधक जीवात्मा आनन्दमग्न रहता है। अब वह पुनर्जन्म-मरण से मुक्त हो जाने से अन्यत्र कहीं भी नहीं जाना चाहता है। वह वहाँ पर प्रभु-भक्ति रूपी मोती या मुक्ति रूपी मोती पाकर प्रभु-भक्ति में निमग्न रहता है।
प्रश्न 3.
‘स्वान रूप संसार है’ इससे कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?
उत्तर :
इससे कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि सांसारिक माया-मोह से ग्रस्त व्यक्ति ईश्वरीय भक्ति का महत्त्व नहीं जानते हैं। वे तो जैसे हाथी को देखकर कुत्ता भौंकता है, वैसे ही सहज-साधक को लेकर आलोचना करने लगते हैं, उसमें दोषों को खोजने का प्रयास करते हैं। परन्तु सच्चे साधक को ऐसे लोगों से नहीं डरना चाहिए।
प्रश्न 4.
‘मोकों कहाँ ढूँढे बन्दे’ पद में कबीर ने क्या सन्देश दिया है?
उत्तर :
इस पद में कबीर ने यह सन्देश दिया है कि ईश्वर की भक्ति के लिए मन्दिर-मसजिद में जाना, तीर्थ-यात्रा करना, कर्मकाण्ड आदि उपायों का सहारा लेना सर्वथा अनुचित, ढोंग और आडम्बरपूर्ण है। वस्तुतः ईश्वर कहीं बाहर नहीं, वह तो हृदय में ही रहता है और कहीं पर भी उसकी भक्ति एवं साक्षात्कार हो सकता है। प्रत्येक जीव की साँस में अर्थात् जीवात्मा में प्रभु रहता है। अतएव उसकी प्राप्ति आत्मानुभूति से ही हो सकती है।
प्रश्न 5.
‘मैं तो तेरे पास में’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर :
‘मैं तो तेरे पास में’ के माध्यम से कबीर यह कहना चाहते हैं कि ईश्वर घट-घटवासी है अर्थात वह प्रत्येक प्राणी के घट अर्थात् हृदय में या प्रत्येक की आत्मा में समाया हुआ है, बस उसे पहचानने की आवश्यकता है।
प्रश्न 6.
कबीरदास की वाणी साखी क्यों कहलाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीर की वाणी साखी इसलिए कहलाती है कि उन्होंने जो भी कहा वह अपने अनुभवों की सच्चाई के आधार पर कहा। इसलिए उनकी वाणी वास्तविक जीवन की साखी अर्थात् साक्ष्य या गवाह बन कर आयी है। इसलिए उनकी वाणी साखी (साक्ष्य) कहलाती है।
प्रश्न 7.
‘प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ’। इसमें विष और अमृत किसके प्रतीक हैं?
उत्तर :
कबीर द्वारा रचित साखी में मनुष्य के मन में रहने वाली विषय-वासनाएँ, लोभ, मोह, माया, मतिभ्रम तथा मलिन कर्म विष के प्रतीक हैं, अर्थात् ये सारे विकार विष के समान मनुष्य का अहित एवं विनाश करते हैं। इनके विपरीत सद्गुण, सदाचरण, प्रभुभक्ति, ईश्वरीय-साधना तथा माया-मोह आदि से मुक्ति पाकर परमानन्द की प्राप्ति अमृत के प्रतीक हैं। प्रभु-भक्ति से मिलने वाला आनन्द का प्रतीक अमृत जीवन को सफल बनाता है।
प्रश्न 8.
‘मोकों कहाँ ढूँढे बंदे’ पद के अनुसार मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ खोजता है? अन्ततः प्रभु-प्राप्ति कहाँ होती है?
उत्तर :
मनुष्य रूढ़ियों एवं अन्धविश्वासों से ग्रस्त होकर ईश्वर को धार्मिक स्थलों, तीर्थों, योग-वैराग्य और पूजा पाठ आदि कर्मकाण्ड में ढूँढता है। वह ईश्वर की खोज में भटकता रहता है। परन्तु ईश्वर तो घट-घट में व्याप्त है, प्रत्येक प्राणी की आत्मा में, प्रत्येक चेतन की स्वाँस में रहता है। अतः मनुष्य अन्ततः ईश्वर को अपनी आत्मा में ही प्राप्त करता है, परन्तु उसके लिए आत्मिक साधना करनी पड़ती है।
प्रश्न 9.
‘निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान’-के माध्यम से कबीर ने क्या सीख दी है?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से सन्त कबीर ने किसी भी मत, सम्प्रदाय, धर्म या किसी भी पक्ष-विपक्ष में न पड़ने की सीख दी है, क्योंकि किसी मत, पक्ष आदि का समर्थन करने से व्यक्ति का मन आसक्तियों से ग्रस्त हो जाता है, उसमें लोभ-मोह, मतिभ्रम आदि दोष आ जाते हैं। यथार्थरूप में समस्त सृष्टि में व्याप्त प्रभु तो एक ही है, अतः निष्पक्ष भाव से उसी प्रभु का भजन करना चाहिए। ऐसा व्यक्ति ही सच्चा सन्त और पुण्यात्मा कहलाता है।
प्रश्न 10.
कबीर के अनुसार काबा कब काशी हो जाता है?
उत्तर :
कबीर के अनुसार जब जातिगत एवं सम्प्रदायगत भेदभाव समाप्त हो जाता है, तब मनुष्य के मन से हिन्दू मुसलमान और राम-रहीम का ऊपरी भेदभाव मिट जाता है। उस स्थिति में काबा काशी हो जाता है, दुर्भावनाएँ एकदम मिट जाती हैं तथा काबा और काशी में अन्तर नहीं रह जाता है।
प्रश्न 11.
‘मैं’ और ‘तेरे’ मन के एक होने में क्या बाधा है?
अथवा
“मैं तेरे पास में होकर भी भेद की स्थिति क्यों बनी रहती है?
उत्तर :
‘मैं’ और ‘तेरे’ मन के एक होने में सबसे बड़ी बाधा अन्धविश्वास एवं ज्ञानाविष्ट अहंकार है। जब व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ ज्ञानी मानने का अहंकार पाल लेता है या स्वयं को जागरूक मानकर साधक बन जाता है तथा दूसरों को अन्धविश्वासी एवं शास्त्रों में कही बातों को मानने वाला समझ ले , तब दोनों के मन में अत्यधिक अन्तर आ जाता है। इसी कारण उनमें भेद की स्थिति बनी रहती है।
प्रश्न 12.
क्या कबीर हिन्दू-मुसलमान भेदभाव से सर्वथा मुक्त थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीर अन्धविश्वास एवं धार्मिक रूढ़ियों के प्रबल विरोधी थे। इसी कारण वे धार्मिक भेदभाव और बहुदेववाद को नहीं मानते थे। उन्होंने परस्पर भेदभाव को लेकर हिन्दुओं तथा मुसलमानों दोनों को फटकारते हुए कहा-
हिन्दू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ।।
इसी प्रकार वे राम-रहीम और काबा-काशी में कोई भेद नहीं मानते थे। वे इस तरह के भेदभाव से सर्वथा मुक्त या ऊपर उठे हुए सच्चे सन्त थे।
प्रश्न 13.
कबीर ने अपने अधिकतर दोहों और सब्दों में साधुओं को ही सम्बोधित क्यों किया? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
कबीर सन्त स्वभाव के थे। वे मानते थे कि केवल सच्चा साधु ही प्रभु-भक्ति की बात सुनना और समझना चाहता है। अन्य संसारी जीव तो आसक्ति से ग्रस्त होने से प्रभु-भक्ति का कोरा दिखावा करते हैं तथा अज्ञान से ग्रस्त रहते हैं। इसलिए ज्ञान-साधना से मण्डित भक्ति को लेकर उन्होंने साधुओं को ही सम्बोधित कर अपना मन्तव्य व्यक्त किया है। इसी कारण उनकी साखियों और सबदों में सन्तों एवं साधुओं का उल्लेख हुआ है।
प्रश्न 14.
‘हिन्दू मूआराम कहि, मुसलमान खुदाइ’-कहकर कबीर ने क्या व्यंग्य-आक्षेप किया है?
उत्तर :
कबीर ने हिन्दुओं और मुसलमानों-दोनों को फटकार लगायी। उन्होंने दोनों सम्प्रदायों की उपासना पद्धति पर व्यंग्य-आक्षेप करते हुए कहा है कि हिन्दू जीवन भर राम-राम जपते तथा मुसलमान खुदा-खुदा कहते हुए संसार से चल बसते हैं। वे राम और खुदा के पक्ष में पड़कर धार्मिक रूप से कट्टर अन्धविश्वासी हो जाते हैं। इस कारण वे सच्चे हृदय से ईश्वर की उपासना नहीं कर पाते हैं। फलस्वरूप उनका मनुष्य जीवन भी असफल रहता है और उनका अगला जन्म भी बिगड़ जाता है।
प्रश्न 15.
कबीर की साखियों में प्रेम का जो स्वरूप बताया गया है, उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कबीर निर्गुण भक्तिधारा के ज्ञानमार्गी सन्त थे। इसलिए भले ही उन्होंने ईश्वर-प्राप्ति हेतु ज्ञान-साधना को प्राथमिकता दी, परन्तु उन्होंने प्रेम-साधना को भी काफी महत्त्व दिया। वे प्रेम को ‘सुभर जलं’ अर्थात् उज्ज्वल या पवित्र जल कहते हैं, जिसमें रहने के बाद प्रेमी उसे छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं जाता है। जब तक व्यक्ति के हृदय में अहंकार (मैं) रहता है, तब तक उसे ईश्वर नहीं मिलता है, परन्तु अहंकार मिटने पर प्रभु से आत्मीयता या प्रेम की अनुभूति होती है, तब आत्मा में ही परमात्मा का आनन्दमय साक्षात्कार हो जाता है।
प्रश्न 16.
‘मोट-चून मैदा भया’ से कबीर का क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इसमें मोटा चून का आशय अखाद्य या अग्राह्य वस्तु है तथा मैदा का आशय सुसेव्य एवं संग्राह्य वस्तु है। प्रतीक रूप में धार्मिक भेद-भाव, विषय-वासना, माया-मोह, अन्धविश्वास एवं मतिभ्रम आदि विकार मोटा चून हैं। धार्मिक एकता, राम-रहीम में अभेद या रूढ़ियों के कारण मन में बसी दुर्भावनाओं की समाप्ति मैदा की तरह सुसेव्य है। क्योंकि इससे प्रभु-भक्ति का आनन्द मिलता है। वैसे भी एकेश्वरवाद में राम-रहीम, केशव-करीम में कोई अन्तर नहीं माना गया है। उस दशा में मोट चून मैदा बन जाता है और धार्मिक भेद-भाव मिट जाता है।
प्रश्न 17.
कबीर की साखियों में उनका समाज-सुधारक रूप किस प्रकार व्यक्त हुआ है? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
कबीर ने अपनी साखियों में सन्त के लक्षण के साथ प्रेम एवं ज्ञान का महत्त्व बताया है तथा समाज में व्याप्त बाह्माडम्बरों पर कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा कि काबा या काशी की यात्रा करने तथा योग-वैराग्य, क्रिया-कर्म आदि करने से ईश्वर को खोजने का प्रयास कोरा अन्धविश्वास है। राम और रहीम में भेद मानकर धार्मिक कट्टरता बढ़ती है, समाज में प्रेम भाव घटता है। वस्तुतः राम और रहीम में कोई भेद नहीं है, केवल नाम का अन्तर है। इस प्रकार कबीर ने हिन्दू-मुसलमानों की एकता पर, अन्धविश्वासों के निवारण पर विशेष जोर दिया और समाज-सुधारक रूप में अपना निष्पक्ष मत व्यक्त किया।
प्रश्न 18.
‘कबीर की साखियाँ एवं पद आज पहले से भी अधिक प्रासंगिक हैं।’ तर्कसहित संक्षेप में उत्तर दीजिए।
उत्तर :
कबीर ने अपनी साखियों एवं पदों में अन्धविश्वासों एवं रूढ़ियों का खण्डन कर ज्ञानचेतना तथा सच्ची प्रभु-भक्ति को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने ईश्वर की भक्ति में तथा हिन्दू-मुस्लिम में अन्तर न मानकर समानता एवं परस्पर एकता रखने का सन्देश दिया है। वर्तमान समय में जो धार्मिक संकीर्णता, रूढ़िग्रस्तता, साम्प्रदायिक वैमनस्य तथा भक्ति का कोरा दिखावा फैल रहा है, उसका समाधान करने के लिए कबीर की बाणी आज भी पहले से अधिक सर्वाधिक उपयोगी है। अतः कबीर की साखियाँ एवं पद आज के युग में पूरी तरह उपादेय एवं प्रासंगिक हैं।