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RBSE Class 9 Hindi Vyakaran वाक्य-रचना (सरल और संयुक्त वाक्य)

RBSE Class 9 Hindi Vyakaran वाक्य-रचना (सरल और संयुक्त वाक्य)

RBSE Class 9 Hindi Vyakaran वाक्य-रचना (सरल और संयुक्त वाक्य)

वाक्य की परिभाषा – पूर्ण अर्थ प्रकट करने वाले एवं विशेष क्रम से संयोजित सार्थक शब्दों के समूह को वाक्य कहते हैं। वास्तव में बोलने या लिखने का पूरा अभिप्राय जिस शब्द-समूह से प्रकट होता है, वह वाक्य कहलाता है। जैसे –

1. रमा प्रतिदिन विद्यालय जाती है।
2. वर्तमान में महँगाई उत्तरोत्तर बढ़ रही है।

वाक्य के अंग प्रत्येक वाक्य की रचना में शब्दों या पदों को उचित क्रम से रखने पर ध्यान दिया जाता है। वाक्य में पदों का क्रम किस तरह हो, इसके लिए हिन्दी में वाक्य के दो अंगों का ज्ञान आवश्यक है। वे दोनों अंग हैं –

(1) उद्देश्य
और (2) विधेय।

उद्देश्य – वाक्य में जिस व्यक्ति या वस्तु के संबंध में कुछ कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं। जैसे-राम पुस्तक पढ़ रहा है। इस वाक्य में ‘राम’ के विषय में ‘पुस्तक पढ़ रहा है’ बात कही गयी है। अतः यहाँ राम उद्देश्य है। वाक्य में उद्देश्य प्रायः संज्ञा या संज्ञा की तरह प्रयुक्त शब्द होता है, अर्थात् वाक्य में कर्ता ही उद्देश्य होता है, कभी-कभी केवल विशेषण का भी प्रयोग होता है अथवा कर्ता के साथ विशेषण भी रहता है, उस दशा में वे दोनों उद्देश्य ही माने जाते हैं। वाक्य में उद्देश्य इन रूपों में आ सकते हैं

  • संज्ञा-रमेश पढ़ता है।
  • सर्वनाम वह पढ़ रहा है।
  • विशेषण-घमण्डी का आदर नहीं होता है।
  • वाक्यांश-आपस में झगड़ना अच्छा नहीं रहता।
  • क्रियार्थक-घूमना स्वास्थ्य के लिए हितकर रहता है।

उद्देश्य का विस्तार-वाक्य में कर्ता के साथ जो शब्द उसके अंग रूप में अथवा विशेषण रूप में प्रयुक्त होते हैं, वे उसके पूरक अथवा उद्देश्य का विस्तार कहलाते हैं। जैसे –

(i) दुष्ट व्यक्ति सदा अहित सोचता है।
(ii) पढ़ते-पढ़ते बालक सो गया था। इन वाक्यों में ‘दुष्ट’ एवं ‘पढ़ते-पढ़ते’ शब्द उद्देश्य के विस्तार रूप में प्रयुक्त हुए हैं।

विधेय – उद्देश्य (कर्ता) के संबंध में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं। अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त क्रिया या क्रिया का पूरक पद ‘विधेय’ होता है। वाक्य में विधेय अंश को ही मुख्य माना जाता है। जैसे-उद्देश्य के उदाहरण वाक्य में ‘पुस्तक पढ़ रहा है।’ वाक्यांश विधेय है, क्योंकि उद्देश्य ‘राम’ के सम्बन्ध में यह बात कही गई है।

विधेय का विस्तार-क्रिया के साथ उसकी विशेषता बताने वाले पदों को विधेय का ‘पूरक’ या ‘विस्तार’ कहते हैं। विधेय अर्थात् क्रिया-पद के ‘पूरक’ ये शब्द हो सकते हैं –

  1. क्रियाविशेषण।
  2. क्रियाविशेषण की भाँति प्रयुक्त विशेषण।
  3. संज्ञा या सर्वनाम के सहित सम्बन्ध सूचक अव्यय।
  4. अधिकरण, करण और अपादान कारक के चिह्न।
  5. पूर्वकालिक आदि कृदन्त पद।

वाक्य के तत्त्व या गुण किसी भी वाक्य में सार्थक शब्दों का विन्यास रहता है। इसके लिए उन पदों या शब्दों में 1. आकांक्षा, 2. योग्यता और 3. आसत्ति की आवश्यकता होती है। हिन्दी वाक्य-रचना में तीन तत्त्व और माने जाते हैं। वे हैं – 1. सार्थकता, 2. अन्वय और 3. पदक्रम। इस प्रकार ये सभी छः तत्त्व वाक्य-रचना के परिचायक होते हैं।

सी वाक्य के पर्ण भाव को समझने के लिए किसी पद को सनकर दसरे पद को सनने की इच्छा ‘आकांक्षा’ कहलाती है। जहाँ वाक्य में आकांक्षा की पूर्ति हो, वहाँ वाक्य-रचना ठीक समझनी चाहिए। जैसे –

1. रमेश, महेश, लता, कविता थी।
2. सो रहा था।

इन दोनों वाक्यों में अर्थ की पूर्ति नहीं हो रही है, क्योंकि इन वाक्यों में अन्य पदों को सुनने की आकांक्षा पूरी नहीं हो रही है। इसलिए ये दोनों वाक्य दोषपूर्ण हैं। प्रथम वाक्य में पढ़ रही थी’ या ‘सो रही श्री’ आदि शब्दों की योजना करने पर अर्थ की आकांक्षा पूर्ण हो जाती है। द्वितीय वाक्य में संज्ञा ‘बालक’ या सर्वनाम ‘वह’ शब्द का प्रयोग करने से वाक्य के भाव की पूर्ति हो जाती है।

2. योग्यता-वाक्य के अर्थ से किसी प्रकार की अयोग्यता अथवा असम्भव बात प्रकट न हो। योग्यता का तात्पर्य शक्ति अथवा सामर्थ्य से है। वाक्य में प्रयुक्त सभी शब्दों में अन्वय एवं परस्पर अर्थगत सम्बन्ध का सुसंगत विन्यास ही योग्यता है। यदि वाक्य के व्यक्त अर्थ में असंगति रहती है, तो वाक्य अपूर्ण ही कहा जाता है। जैसे –

(1) आग से सींचता है।
(2) बालक पानी खाता है।

यहाँ प्रथम वाक्य में ‘आग से सींचने का कार्य नहीं हो सकता और इनका अन्वय भी नहीं बैठ रहा है। इसलिए यह वाक्य-रचना अनुचित है। ‘जल से सींचता है’-यह वाक्य-रचना इसके स्थान पर उचित है। इसी प्रकार ‘पानी खाता है’ की अपेक्षा ‘पानी पीता है’ वाक्य-रचना संगत लगती है। इस तरह वाक्य में पदों का प्रयोग अर्थ की संगति के अनुरूप होना ही योग्यता तत्त्व माना जाता है।

आसत्ति – वाक्य के शब्दों को बोलने अथवा लिखते समय पदों में आसत्ति (निकटता) आवश्यक है। यदि एक शब्द प्रात:काल कहा जाये और उससे संबंधित अन्य शब्द एक-दो दिन बाद कहे जायें, तो उन शब्दों में निकटता नहीं रहने से वाक्य-रचना संगत नहीं हो सकती है। इसी प्रकार पुस्तक के एक पृष्ठ पर ‘महात्मा गांधी भारत के’ लिखकर फिर पचास पृष्ठों के बाद ‘राष्ट्रपिता थे’ यह लिखा जाये तो निकटता के अभाव में इन पदों को सार्थक होते हुए भी वाक्य नहीं माना जायेगा। इस प्रकार पढ़ने या सुनने में पद-बन्धों के निरन्तर प्रयोग से उनके मध्य बुद्धि का विच्छेद नहीं होने पर ही वे वाक्य हो सकते हैं।

सार्थकता-वाक्य में हमेशा सार्थक शब्दों का ही महत्त्व रहता है। निरर्थक शब्दों की वाक्य-रचना में कोई उपयोगिता नहीं मानी जाती है। ऐसे शब्दों से अर्थ की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। सार्थकता जैसे –

(1) मानव इस समस्त सृष्टि का श्रेष्ठ प्राणी है।
(2) भारत का अतीत गौरवमय था।

अन्वय-हिन्दी में वाक्य-रचना के अन्तर्गत कर्ता, कर्म, संबंध, क्रिया आदि का क्रमानुसार प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार लिंग, वचन, पुरुष के अनुसार कारक और क्रिया का प्रयोग होता है। इस तरह वाक्य में पदों को उचित क्रम से रखने को अन्वय कहते हैं। जैसे –

(1) राम प्रतिदिन प्रातः नौ बजे अपने काम पर जाता है।
(2) वह निरन्तर परिश्रम करता रहता है। इन दोनों वाक्यों में पदों का क्रम अन्वय के अनुरूप है। इस कारण अर्थ की प्रतीति में भ्रम नहीं हो रहा है।

6. पदक्रम-शब्दों को उनके अर्थ और कारक आदि के संबंध को ध्यान में रखकर यथास्थान प्रयुक्त करने से वाक्य रचना शुद्ध हो जाती है। इस तरह की रचना को पद-क्रम से युक्त कहते हैं। उचित पद-क्रम न रहने से वाक्यार्थ अस्पष्ट रहता है। जैसे –

(1) नेताजी को एक फूल की माला पहनाई।
(2) वह जाता है जयपुर शहर को।

इन दोनों वाक्यों में पदक्रम सही नहीं है। प्रथम वाक्य में ‘एक’ शब्द का प्रयोग ‘माला’ के साथ होना चाहिए। द्वितीय वाक्य में ‘जाता है’ क्रिया का प्रयोग अन्त में होना चाहिए।

पदक्रम के नियम –

1. हिन्दी में वाक्य-रचना करते समय सर्वप्रथम कर्ता, फिर कर्म तथा अन्त में क्रिया का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
रमेश ने फल खाये।
शिवांजी ने अनेक युद्ध लड़े।

2. सम्बोधन और भावबोधक पद कर्ता से पहले प्रयुक्त होते हैं। जैसे –
अरे सुरेश ! तुम कहाँ गये थे?
अहा! कितना सुन्दर दृश्य है।

3. कर्ता का विस्तार सदा कर्ता से पहले प्रयुक्त होता है। यथा –
दशरथ-पुत्र राम ने धनुष उठाया।

4. द्विकर्मक क्रिया में गौण कर्म (या सम्प्रदान) मुख्य कर्म से पहले रखा जाता है। यथा –
पिता ने पुत्र को पर्याप्त धन दिया।

5. यदि वाक्य में कई कारक हों तो क्रम – अधिकरण-अपादान-सम्प्रदान-करण कारक होता है।

6. प्रश्नवाचक वाक्य में क्या वाक्य के प्रारम्भ में और आग्रहात्मक ‘न’ वाक्य के अन्त में आता है। यथा – क्या आप जयपुर जा रहे हैं? पहले आप भोजन कीजिए न।

7. पदक्रम के लिए कर्ता-क्रिया एवं कर्म-क्रिया के अन्वय के साथ ही निरपेक्ष अन्वय का ध्यान रखना पड़ता है।

8. पदक्रम में सर्वनाम संज्ञा का अन्वय, विशेष्य-विशेषण का अन्वय तथा सम्बन्ध-सम्बन्धी का अन्वय लिंग, वचन एवं कारक के अनुसार प्रयुक्त रहता है

वाक्य के भेद :

क्रिया, अर्थ और रचना की दृष्टि से वाक्यों के भिन्न-भिन्न भेद और उपभेद माने जाते हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –

क्रिया की दृष्टि से वाक्य के भेद –
क्रिया के अनुसार वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य। जैसे –

  • कर्तृवाच्य – रमेश पुस्तक पढ़ता है।
  • कर्मवाच्य – रमेश से पुस्तक पढ़ी जाती है।
  • भाववाच्य – मोहन से सोया जाता है।

अर्थ की दृष्टि से वाक्य के भेद।

जैसा पूर्व में बताया गया है कि आकांक्षा, योग्यता, आसत्ति, अन्वय, पदक्रम आदि के द्वारा ही वाक्य का अर्थ पूर्णतया स्पष्ट होता है। इस दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं –

  1. विधानार्थक या विधि वाक्य-जिसमें किसी बात का होना पाया जाता है, उसे विधि वाक्य कहते हैं। यथा-मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
  2. निषेधार्थक वाक्य-जिस वाक्य द्वारा किसी का अभाव या निषेध सूचित होता हो, वह निषेधार्थक वाक्य कहलाता है। यथा-मैं पुस्तक नहीं पढ़ता हूँ।
  3. आज्ञार्थक वाक्य-जिस वाक्य से आज्ञा, विनती या उपदेश सूचित होता हो, वह आज्ञार्थक वाक्य होता है। यथा-तुम हमेशा व्यायाम करो।
  4. प्रश्नार्थक वाक्य-प्रश्न का बोध कराने वाला वाक्य प्रश्नार्थक वाक्य होता है। जैसे-तुम घर कब जा रहे हो ?
  5. विस्मयादिबोधक वाक्य-जिससे आश्चर्य विस्मय. सन्देह आदि भाव प्रकट होते हैं, वह विस्मयादिबोधक वाक्य होता है। यथा-हाय! ओलों की मार से फसल बरबाद हो गई
  6. इच्छाबोधक वाक्य-जिस वाक्य से इच्छा या आशीर्वाद सूचित हो, वह इच्छा-बोधक वाक्य कहलाता है। यथा-तुम्हारा भला हो। सब लोग सुखी रहें।
  7. सन्देहसूचक वाक्य-जिस वाक्य से सन्देह या सम्भावना प्रकट हो वह सन्देह-सूचक वाक्य होता है। . यथा-सम्भवतः आज आँधी आयेगी।
  8. संकेतार्थक वाक्य-जिस वाक्य में संकेत या शर्त हो वह संकेतार्थक वाक्य होता है। यथा-यदि तुम आते तो मैं भी तुम्हारे साथ चलता।

अर्थ-परिवर्तन के लिए विधि वाक्य को निषेध, आज्ञा या प्रश्नार्थ में प्रयुक्त किया जा सकता है। इसी प्रकार इन . वाक्यों का परस्पर परिवर्तन हो सकता है। यथा –

विधि वाक्य        आज्ञार्थक वाक्य
वह रोज पढ़ता है।   वह रोज पढ़ा करे।
रमा खेलने जाती है।  रमा! तुम खेलने जाया करो।

रचना की दृष्टि से वाक्य-भेद

रचना की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद होते हैं –
(1) सरल या साधारण वाक्य, (2) संयुक्त वाक्य और (3) मिश्र वाक्य। वाक्य के तीनों भेदों तथा इनसे सम्बन्धित उपवाक्यों का परिचयात्मक विवेचन यहाँ दिया जा रहा है

सरल या साधारण वाक्य –

जिस वाक्य में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं। जैसे (1) राहुल सोता है। (2) वह पुस्तक पढ़ता है।
इन वाक्यों में ‘राहुल’ और ‘वह’ उद्देश्य हैं तथा ‘सोता है’ और ‘पढ़ता है’ विधेय अंश हैं।

संयुक्त वाक्य –

जिस वाक्य में एक से अधिक साधारण या मिश्र वाक्य हों और वे किसी संयोजक अव्यय (किन्तु, परन्तु, बल्कि, और, अर्थवा, तथा आदि) द्वारा जुड़े हों, तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे

(1) राम पढ़ रहा था परन्तु रमेश सो रहा था।
(2) शीला खेलने गई और रीता नहीं गई।

इन दोनों वाक्यों में ‘परन्तु’ व ‘और’ अव्यय पदों के द्वारा दोनों साधारण वाक्यों को जोड़ा गया है।

मिश्र वाक्य –

जिस वाक्य में एक मुख्य उपवाक्य और उस मुख्य उपवाक्य के आश्रित एक अथवा एक से अधिक उपवाक्य होते हैं, वह मिश्रित वाक्य कहलाता है। जैसे –
रेखा उमाकान्त की बड़ी बहिन है, जो विवेक विहार में रहती है।
इस वाक्य में ‘रेखा उमाकान्त की बड़ी बहिन है’-प्रधान उपवाक्य है। ‘जो विवेक विहार में रहती. है’-आश्रित उपवाक्य है।

उपवाक्य :

एक वाक्य में पूर्ण विचार या अर्थ को व्यक्त करने के लिए तीन तरह के उपवाक्य प्रयुक्त होते हैं। वे इस प्रकार हैं –

  1. स्वतन्त्र उपवाक्य-किसी वाक्य में जो उपवाक्य किसी अन्य वाक्य के आश्रित नहीं होता है और अन्य उपवाक्य के समान अधिकार रखता है, उसे स्वतंत्र उपवाक्य कहते हैं।
  2. प्रधान उपवाक्य-मिश्र वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य होते हैं। इनमें जो उपवाक्य मुख्य उद्देश्य और विधेय से बना होता है, उसे प्रधान उपवाक्य कहते हैं।
  3. आश्रित उपवाक्य-जिस उपवाक्य का अर्थ प्रधान उपवाक्य पर आश्रित रहता है, उसे आश्रित उपवाक्य कहते हैं।

आश्रित उपवाक्य के भेद-आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार का होता है –

संज्ञा उपवाक्य-जो अपने प्रधान उपवाक्य की क्रिया का (1) कर्म या (2) पूरक या (3) कर्ता, कर्म या पूरक का समानाधिकरण होता है, उसे संज्ञा उपवाक्य कहते हैं। प्रायः संज्ञा उपवाक्य समुच्चयबोधक अव्यय ‘कि’ से जुड़ा रहता है। जैसे-मेरा विश्वास था कि वह अवश्य उत्तीर्ण होगा।

विशेषण उपवाक्य-जो अपने प्रधान उपवाक्य के किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताता है, उसे विशेषण उपवाक्य कहते हैं। विशेषण उपवाक्य में ‘जो’ सर्वनाम या उससे बने ‘जहाँ’ और ‘जब’ क्रिया विशेषण प्रयुक्त होते हैं, विशेषण उपवाक्य कभी प्रधान उपवाक्य के पहले आता है और कभी पीछे। जैसे-जो बात सुनो उसको समझो।

क्रिया विशेषण उपवाक्य-जो अपने प्रधान उपवाक्य के क्रिया शब्द की विशेषता बताता है या उस क्रिया शब्द की विशेषता बताने वाले किसी क्रिया विशेषण शब्द का समानाधिकरण रहता है, उसे क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते हैं। क्रिया विशेषण उपवाक्य कभी प्रधान वाक्य के पूर्व आता है और कभी पीछे। जैसे-उसको सफलता मिलेगी, क्योंकि वह परिश्रमी है।

समानाधिकरण उपवाक्य-जो उपवाक्य प्रधान उपवाक्य या आश्रित उपवाक्य के समान अधिकरण वाला हो, अर्थात् एक पूर्ण वाक्य में दो उपवाक्य हों और दोनों ही प्रधान हों, उसे समानाधिकरण उपवाक्य कहते हैं। समानाधिकरण उपवाक्य में संयोजक अव्यय शब्दों का प्रयोग होता है। यथा-मोहन निर्धन है किन्तु है ईमानदार। बुरी संगत मत करो वरना तुम पछताओगे।

अभ्यास :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को चार भागों में विभाजित किया गया है, इन चारों भागों में से एक भाग में त्रुटि है, उस भाग को चुनकर बताइए
(i) (क) आज
(ख) देश में
(ग) सर्वस्व
(घ) शान्ति है।
उत्तर :
(ग) सर्वस्व

(ii) (क) गुलाब के पौधे पर
(ख) मैंने
(ग) कई फूल
(घ) को देखा।
उत्तर :
(ग) कई फूल

(iii) (क) आज बाजार में
(ख) एक भी
(ग) दुकान
(घ) नहीं खुला।
उत्तर :
(घ) नहीं खुला।

(iv) (क) रामचरितमानस
(ख) पढ़कर
(ग) पाठक की
(घ) आँख खुल गई।
उत्तर :
(घ) आँख खुल गई।

प्रश्न 2.
वाक्य के प्रारम्भ में कौन-सा कारक-पद रहता है?
(क) कर्म
(ख) कर्ता
(ग) करण
(घ) कर्म-विशेषण
उत्तर :
(ख) कर्ता

प्रश्न 3.
किसान रात-दिन परिश्रम करते हैं।
इस वाक्य में उद्देश्य-पद है –
(क) रात-दिन
(ख) किसान
(ग) परिश्रम
(घ) करते हैं।
उत्तर :
(ख) किसान

प्रश्न 4.
जिस वाक्य से किसी का अभाव या निषेध सूचित होता है, उसे कहते हैं
(क) निषेधार्थक वाक्य
(ख) विधानार्थक वाक्य
(ग) प्रश्नार्थक वाक्य
(घ) संकेतार्थक वाक्य
उत्तर :
(क) निषेधार्थक वाक्य

प्रश्न 5.
जिस वाक्य से सन्देह या सम्भावना प्रकट हो, उसे कहते हैं
(क) संकेतार्थक वाक्य
(ख) इच्छार्थक वाक्य
(ग) विस्मयादिबोधक वाक्य
(घ) सन्देहसूचक वाक्य
उत्तर :
(घ) सन्देहसूचक वाक्य

प्रश्न 6.
रचना की दृष्टि से साधारण वाक्य है
(क) भिखारी लोगों से भीख माँगता रहा।
(ख) श्याम पढ़ता रहा, परन्तु रमेश सोता रहा।
(ग) किसान अपने खेत में था और मजदूर काम कर रहा था।
(घ) नेहा अभिलाष की बड़ी बहिन है जो कक्षा चार में पढ़ती है।
उत्तर :
(क) भिखारी लोगों से भीख माँगता रहा।

प्रश्न 7.
पदक्रम की दृष्टि से सही वाक्य है
(क) पुत्र को पिता ने पर्याप्त धन दिया।
(ख) पिता ने पर्याप्त धन पुत्र को दिया।
(ग) पिता ने पुत्र को पर्याप्त धन दिया।
(घ) दिया पिता ने पुत्र को पर्याप्त धन।
उत्तर :
(ग) पिता ने पुत्र को पर्याप्त धन दिया।

प्रश्न 8.
अन्वय की दृष्टि से सही वाक्य है
(क) आम बच्चों को काटकर खिलाओ।
(ख) बच्चों को खिलाओ आम काटकर
(ग) आम काटकर बच्चों को खिलाओ।
(घ) बच्चों को आम काटकर खिलाओ।
उत्तर :
(घ) बच्चों को आम काटकर खिलाओ।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में निर्दिष्ट प्रकार में बदलिए

  1. शिक्षक कक्षा में नियमित पढ़ाते हैं। (प्रश्नवाचक)
  2. भगवान् सबका भला करता है। (इच्छावाचक)
  3. तुम प्रतिदिन व्यायाम करते हो। (आज्ञार्थक वाक्य)
  4. हाय! सारी फसल सूख गई! (निषेधार्थक)
  5. वह पुस्तक पढ़ता है। (सन्देहसूचक)

उत्तर :

  1. क्या शिक्षक कक्षा में नियमित पढ़ाते हैं?
  2. भगवान् सबका भला करे।
  3. तुम प्रतिदिन व्यायाम करो।
  4. अहा ! सारी फसल नहीं सूखी।
  5. सम्भवतः वह पुस्तक पढ़ता हो।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्ता, कर्ता का विस्तारक, पूरक, क्रिया और क्रिया का विस्तारक बताइए –

  1. गुलाबी नगरी जयपुर की राजधानी है।
  2. मेरा भाई प्रशान्त अच्छी पुस्तकें पढ़ता है।
  3. हमें नियमित विद्यालय जाना चाहिए।
  4. हमारा देश समृद्धिशाली है।

उत्तर :

  1. कर्ता-जयपुर, कर्ता का विस्तारक-नगरी, पूरक-गुलाबी, राजधानी, क्रिया है।
  2. कर्ता-प्रशान्त, कर्ता का विस्तारक-मेरा भाई, कर्म-पुस्तकें, विस्तारक-अच्छी, क्रिया-पढ़ता है।
  3. कर्ता-हमें, विस्तारक-विद्यालय, क्रिया-जाना चाहिए, क्रिया का विस्तारक नियमित।
  4. कर्ता-देश, कर्ता का विस्तारक – हमारा, क्रिया-है, पूरक पद-समृद्धिशाली।

प्रश्न 11.
“बादल खूब गरजे परन्तु वर्षा नहीं हुई।” उपर्युक्त वाक्य रचना के आधार पर किस प्रकार का वाक्य है ? उसकी परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
यह संयुक्त वाक्य है। जिस वाक्य में एक से अधिक साधारण या मिश्रवाक्य किसी संयोजक अव्यय से जुड़े .. हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।

प्रश्न 12.
रचना की दृष्टि से वाक्य के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर :
रचना की दृष्टि से वाक्य के मुख्य तीन प्रकार होते हैं

  1. साधारण वाक्य,
  2. संयुक्त वाक्य और
  3. मिश्र वाक्य।

प्रश्न 13.
शुद्ध वाक्य-रचना के लिए किसका ध्यान रखा जाता है?
उत्तर :
शुद्ध वाक्य-रचना के लिए अन्वय एवं पदक्रम का ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 14.
वाक्य-रचना के सामान्य नियम क्या हैं? बताइए।
उत्तर :
वाक्य-रचना करते समय सर्वप्रथम कर्त्ता का और उसके बाद कर्म का प्रयोग करना चाहिए। अन्त में क्रिया का पूरक और क्रिया रखनी चाहिए।

प्रश्न 15.
उद्देश्य और विधेय किसे कहते हैं?
उत्तर :
वाक्य-रचना में कर्ता एवं उसके विस्तारक को उद्देश्य और क्रिया एवं उसके पूरक को विधेय कहते हैं।

प्रश्न 16.
साधारण वाक्य की परिभाषा सोदाहरण दीजिए।
उत्तर :
जिस वाक्य में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उसे साधारण वाक्य कहते हैं। जैसे किसान अनाज उगाता है।

प्रश्न 17.
निम्न संयुक्त वाक्यों का विश्लेषण कीजिए –
1. आँधी आ रही थी इसलिए कल मैं तुम्हारे घर नहीं आ सका।
2. हम कोई काम करना चाहते हैं, परन्तु उसको जानते नहीं हैं।
उत्तर :
1. आँधी आ रही थी – प्रधान उपवाक्य। यह अन्य वाक्य से संयुक्त है। इसलिए मैं कल तुम्हारे घर नहीं आ सका परिणामबोधक उपवाक्य।।
प्रधान उपवाक्य का दूसरा वाक्य समानाधिकरण है। इन दोनों में ‘इसलिए’ संयोजक शब्द है।

2. हम कोई काम करना चाहते हैं – प्रधान उपवाक्य। अन्य वाक्य से संयुक्त। परन्तु उसको जानते नहीं हैं विरोधसूचक उपवाक्य।
प्रधान उपवाक्य द्वितीय उपवाक्य का समानाधिकरण है। इन दोनों के मध्य में ‘परन्तु’ संयोजक शब्द है।

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