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RBSE Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

RBSE Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

पाठ-सार

( 1 ) हमारे कानों द्वारा अनुभूतित संवेदन ध्वनि (sound) कहलाता है। ध्वनि ऊर्जा का वह रूप है जिससे हमें सुनाई देता है।
( 2 ) तरंग माध्यम में कम्पन विक्षोभ होता है, जो ऊर्जा को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक, दो बिन्दुओं के बीच बिना सीधा सम्पर्क हुए. ले जाता है।
( 3 ) ध्वनि तरंगों का गमन माध्यम में संपीडन एवं विरलन के द्वारा होता है। संपीडन के क्षेत्र में ध्वनि की ऊर्जा अधिक मात्रा में विद्यमान होती है तथा विरलन के क्षेत्र में ध्वनि की ऊर्जा की कम मात्रा विद्यमान होती है। अतः जब श्रोता का कान संपीडन वाले क्षेत्र में पड़ता है तो तेज ध्वनि तथा जब श्रोता का कान विरलन वाले क्षेत्र में होता है तो उसे मंद ध्वनि सुनाई देती है।
( 4 ) ध्वनि तरंगें प्रत्यास्थ तरंगें होती हैं। अतः ध्वनि तरंगों का संचरण शून्य में नहीं होता है । ध्वनि के संचरण के लिए वायु सबसे अधिक सामान्य माध्यम है।
( 5 ) ध्वनि तरंगों का वेग अलग-अलग माध्यमों में अलग-अलग होता है।
( 6 ) तरंगें दो प्रकार की होती हैं
(i) अनुदैर्ध्य तरंगें (ii) अनुप्रस्थ तरंगें ।
( 7 ) अनुदैर्ध्य तरंगें – तरंग, जिसमें माध्यम के कण उसी दिशा में आगे-पीछे कम्पन करते हैं, जिसमें तरंग गति कर रही होती है, अनुदैर्ध्य तरंग कहलाती है।
भूकम्प, ज्वालामुखी उद्गार, हवेल, हाथी द्वारा उत्पन्न तरंगें अवश्रव्य होती हैं।
(iii) 20 KHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों को, पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं। डॉलफिन, चमगादड़ और पॉरपॉइज पराध्वनि उत्पन्न करते हैं ।
( 19 ) पराध्वनि के अनुप्रयोग
(i) पराध्वनि उन भागों को साफ करने में उपयोग में आती है जिन तक पहुँचना कठिन होता है। जैसे सर्पिलाकार नली, विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक अवयव आदि ।
(ii) इनका उपयोग धातु के ब्लॉकों (पिण्डों) में दरारों तथा अन्य दोषों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।
(iii) इनका उपयोग चिकित्सा के क्षेत्र में, टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने में, पेशीय दर्द चिकित्सा तथा शरीर में उपस्थित स्टोन का पता लगाने में किया जाता है।
(iv) इनका उपयोग धातु टैंक में द्रव का स्तर पता लगाने में किया जाता है।
( 20 ) सोनार (SONAR) – सोनार (SONAR) शब्द Sound Navigation And Ranging से बना है । यह एक ऐसी युक्ति है, जिसका उपयोग समुद्र की गहराई नापने में किया जाता है। इसका उपयोग पनडुब्बियों का पता लगाने में और समुद्र के अन्दर विभिन्न चीजों का पता लगाने के लिए किया जाता है ।
( 21 ) हम कानों की सहायता से सुन सकते हैं । यह श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में बदलता है जो श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।

RBSE Class 9 Science Chapter 12 ध्वनि InText Questions and Answers

पृष्ठ 182.

प्रश्न 1.
किसी माध्यम में ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ आपके कानों तक कैसे पहुंचता है?
उत्तर:
जब कोई वस्तु कम्पन करती है, तो यह अपने चारों ओर विद्यमान माध्यम के कणों को कम्पायमान कर देती है। ये कण कम्पायमान वस्तु से हमारे कानों तक स्वयं गति कर नहीं पहुंचते। सबसे पहले कम्पायमान वस्तु के सम्पर्क में रहने वाले माध्यम के कण अपनी संतुलित अवस्था से विस्थापित होते हैं। फिर ये अपने समीप के कणों पर एक बल लगाते हैं, जिसके फलस्वरूप निकटवर्ती कण अपनी विरामावस्था से विस्थापित हो जाते हैं। निकटवर्ती कणों को विस्थापित करने के पश्चात् प्रारम्भिक कण अपनी मूल अवस्थाओं में वापस लौट आते हैं। माध्यम में यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक कि ध्वनि हमारे कानों तक नहीं पहुँच जाती है। माध्यम में ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ माध्यम से होता हुआ संचरित होता है।

पृष्ठ 182.

प्रश्न 1.
आपके विद्यालय की घंटी, ध्वनि कैसे उत्पन्न करती है?
उत्तर:
जब घंटी पर हथौड़े से चोट करते हैं, तब घंटी कम्पित हो उठती है। घंटी के कंपित होने से ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है। तरंग एक विक्षोभ है जो कि वायु के माध्यम में गति करती है और माध्यम के कण अपने पास वाले कणों में गति उत्पन्न कर देते हैं। ये कण इसी प्रकार की गति अन्य कणों में उत्पन्न करते हैं । माध्यम के कण स्वयं तो आगे नहीं बढ़ते, लेकिन विक्षोभ आगे बढ़ता है। इस कारण से ध्वनि उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 2.
ध्वनि तरंगों को यांत्रिक तरंगें क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
ध्वनि तरंगें माध्यम के कणों की गति द्वारा अभिलक्षित की जाती हैं अर्थात् इनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है, इसलिए ध्वनि तरंगें यांत्रिक तरंगें कहलाती हैं।

प्रश्न 3.
मान लीजिए आप अपने मित्र के साथ चंद्रमा पर गए हुए हैं। क्या आप अपने मित्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि को सुन पायेंगे?
उत्तर:
हम अपने मित्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि को नहीं सुन पायेंगे क्योंकि चंद्रमा पर वायुमण्डल नहीं है और ध्वनि के संचरण के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता अवश्य होती है। यह निर्वात में नहीं चल सकती है।

पृष्ठ 186.

प्रश्न 1.
तरंग का कौन – सा गुण निम्नलिखित को निर्धारित करता है?
(a) प्रबलता
(b) तारत्व।
उत्तर:
(a) प्रबलता: ध्वनि की प्रबलता अथवा मृदुता मूलतः तरंग के आयाम से ज्ञात की जाती है। बड़े आयाम की ध्वनि प्रबल तथा छोटे आयाम की ध्वनि मृदु होती है।
तरंग की प्रबलता अधिक ऊर्जा से सम्बद्ध होती है। अधिक ऊर्जा से उत्पादित ध्वनि तरंग प्रबल होती है और दूर तक जाती है।
(b) तारत्व: ध्वनि का तारत्व, उसकी आवृत्ति द्वारा निर्धारित होता है। उच्च आवृत्ति की ध्वनि का तारत्व अधिक एवं निम्न आवृत्ति की ध्वनि का तारत्व कम होता है।

प्रश्न 2.
अनुमान लगाइए कि निम्न में से किस ध्वनि का तारत्व अधिक है।
(a) गिटार
(b) कार का हॉर्न।
उत्तर:
(a) गिटार।

पृष्ठ 186.

प्रश्न 1.
किसी ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य, आवृत्ति, आवर्तकाल तथा आयाम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(i) ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य-न्यूनतम दूरी जिसमें ध्वनि तरंग अपनी पुनरावृत्ति करती है,उसकी तरंगदैर्घ्य (Wavelength) कहलाती है। अर्थात् दो क्रमागत संपीडनों या विरलनों (अनुदैर्घ्य तरंग के लिए) अथवा दो क्रमागत शृंगों या गर्तों (अनुप्रस्थ तरंग के लिए) के बीच की दूरी को तरंगदैर्घ्य कहते हैं।
इस प्रकार तरंगदैर्घ्य एक तरंग की लम्बाई होती है। इसे साधारणतः (लैम्डा) से प्रदर्शित करते हैं। इसका SI मात्रक, मीटर (m) होता है।

चित्र में संपीडन तथा समीपवर्ती विरलन के केन्द्रों के बीच की दूरी आधी तरंगदैर्घ्य (A) के बराबर है।
(ii) आवृत्ति: किसी माध्यम में तरंग संचरण के कारण माध्यम के किसी कण द्वारा एकांक समय में किए गए कम्पनों की कुल संख्या, उस तरंग की आवृत्ति कहलाती है। आवृत्ति का SI मात्रक ह (Hz) होता है। इसे v (न्यू) से प्रदर्शित करते हैं । v (न्यू) = 1 होता है। इस प्रकार से तरंग की आवृत्ति उसके आवर्तकाल के व्युत्क्रम होती है।

(iii) आवर्तकाल: दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों को किसी निश्चित बिन्दु से गुजरने में लगे समय को तरंग का आवर्तकाल कहते हैं। इसे ‘T’ से प्रदर्शित करते हैं एवं इसका मात्रक ‘सेकण्ड’ होता है।

(iv) आयाम: किसी माध्यम में तरंग संचरण के कारण किसी कण का मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विक्षोभ तरंग का आयाम कहलाता है। इसे साधारणतः ‘A’ से निरूपित करते हैं। ध्वनि तरंगों के लिए आयाम का मात्रक दाब अथवा घनत्व का मात्रक होता है। उपरोक्त चित्र में PB तरंग का आयाम है।

पृष्ठ 187.

प्रश्न 1.
ध्वनि की प्रबलता तथा तीव्रता में अन्तर बताइए।
उत्तर:
ध्वनि की प्रबलता तथा तीव्रता में अन्तरप्रबलता:

प्रबलता तीव्रता
1. कानों की संवेदनशीलता की माप को ध्वनि की प्रबलता कहते हैं। 1. इकाई क्षेत्रफल से, एक सेकण्ड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं।
2. ध्वनि की प्रबलता को मापा नहीं जा सकता। 2. ध्वनि की तीव्रता मापी जा सकती है।
3. ध्वनि की प्रबलता, तरंग की ऊर्जा की तुलना में, हमारे कानों की संवेदनशीलता पर अधिक निर्भर करती है। 3. ध्वनि की तीव्रता का सम्बन्ध उसकी ऊर्जा से होता है।

पृष्ठ 188.

प्रश्न 1.
वायु, जल या लोहे में से किस माध्यम में ध्वनि सबसे तेज चलती है ?
उत्तर:
लोहे में से ध्वनि वायु और जल की अपेक्षा तेज चलती है।

पृष्ठ 189.

प्रश्न 1.
कोई प्रतिध्वनि 3s पश्चात् सुनाई देती है। यदि ध्वनि की चाल 342 ms-1 हो तो स्रोत तथा परावर्तक सतह के बीच कितनी दूरी होगी?
उत्तर:
हल: ध्वनि की चाल (v) = 342m/s
प्रतिध्वनि सुनने में लिया गया समय (t) = 3s
ध्वनि द्वारा तय की गई दूरी =v x t
= 342 m/s x 3s
= 1026 m
3s में प्रतिध्वनि सुनाई देती है।
अतः 3 s में ध्वनि ने स्रोत तथा परावर्तक के बीच की दुगुनी दूरी तय की। अतः उन दोनों के बीच की दूरी = 1026 = 513 m.

पृष्ठ 190.

प्रश्न 1.
कंसर्ट हॉल की छतें वक्राकार क्यों होती हैं ?
उत्तर:
कंसर्ट हॉल की छतें वक्राकार इसलिए बनाई जाती हैं जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए। कभी – कभी वक्राकार ध्वनि पट्टों को मंच के पीछे रख दिया जाता है, जिससे कि ध्वनि, ध्वनिपट्ट से परावर्तन के पश्चात् समान रूप से पूरे हॉल में फैल जाये।

पृष्ठ 191.

प्रश्न 1.
सामान्य मनुष्य के कानों के लिए श्रव्यता परास क्या है?
उत्तर:
मनुष्यों में ध्वनि की श्रव्यता का परास लगभग 20 Hz से 20,000 Hz तक होता है।

प्रश्न 2.
निम्न से संबंधित आवृत्तियों का परास क्या है?
(a) अवश्रव्य ध्वनि
(b) पराध्वनि।
उत्तर:
(a) अवश्रव्य ध्वनि: 20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं, जिन्हें सामान्य व्यक्ति सुन नहीं सकता।
(b) पराध्वनि: 20 KHz से अधिक की ध्वनियों को पराध्वनि या पराश्रव्य ध्वनि कहते हैं । इनको भी हम सुन नहीं सकते। डॉलफिन, चमगादड़, पॉरपॉइज पराध्वनि उत्पन्न करते हैं ।

पृष्ठ 193.

RBSE Class 9 Science Chapter 12 ध्वनि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ध्वनि क्या है और यह कैसे उत्पन्न होती है?
उत्तर:
ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है, जो हमारे कान में श्रवण संवेदना उत्पन्न करती है। अतः ध्वनि ऊर्जा का वह रूप है, जिससे हमें सुनाई देता है। हम अपने दैनिक जीवन में अपने चारों ओर अनेक ध्वनियाँ सुनते हैं। हम विभिन्न वस्तुओं में घर्षण द्वारा, खुरच कर, वायु फूंक कर या उनको हिलाकर ध्वनि उत्पन्न कर सकते हैं। हम वस्तु को कंपमान करते हैं और ध्वनि उत्पन्न करते हैं। मनुष्यों में वाध्वनि उनके वाक्-तंतुओं के कंपित होने के कारण उत्पन्न होती है। जब कोई पक्षी पंख को फड़फड़ाता है, तो ध्वनि उत्पन्न होती है। मक्खी के भिनभिनाने से ध्वनि उत्पन्न होती है। एक खींचे हुए रबड़ के छल्ले को बीच में से खींचकर छोड़ने पर यह कंपन करता है और ध्वनि उत्पन्न होती है। इस प्रकार ध्वनि कंपन करती हुई वस्तुओं द्वारा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
एक चित्र की सहायता से वर्णन कीजिए कि ध्वनि के स्त्रोत के निकट वायु में संपीडन तथा विरलन कैसे उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर:
ध्वनि का संचरण:
ध्वनि के संचरण के लिए वायु सबसे अधिक सामान्य माध्यम है। जब कोई कम्पन करने वाली वस्तु आगे की ओर कम्पन करती है, तो वह अपने सामने की वायु को धक्का देकर संपीडित करती है, जिससे कि उच्च दबाव का क्षेत्र बनता है। यह क्षेत्र ‘संपीडन’ (C) कहलाता है। यह क्षेत्र कंपित वस्तु से दूर आगे की ओर गति करता है। जब कंपित वस्तु पीछे की ओर कंपन करती है, तो उससे एक निम्न दाब का क्षेत्र बनता है, जिसे ‘विरलन’ (R) कहते हैं। जैसे-जैसे वस्तु कंपन करती है, वैसे – वैसे हवा में संपीडनों और विरलनों की एक श्रेणी बन जाती है। यही संपीडन और विरलन ध्वनि तरंग बनाते हैं, जिसका हवा में संचरण होता है।

कंपमान वस्तु किसी माध्यम में संपीडन (C) तथा विरलन (R) की श्रेणी उत्पन्न करते हुए

प्रश्न 3.
किस प्रयोग से यह दर्शाया जा सकता है कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता-ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है और इसके संचरण के लिए किसी माध्यम जैसे-वायु, जल, स्टील आदि की आवश्यकता होती है। यह निर्वात में होकर नहीं चल सकती। इसे निम्न प्रयोग द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
प्रयोग-एक विद्युत घण्टी और एक काँच का वायुरुद्ध बेलजार लेते हैं। विद्युत घण्टी को बेलजार में कॉर्क की सहायता से लटकाते हैं और बेलजार को एक निर्वात पम्प से जोड़ते हैं । अब घण्टी के स्विच को दबाने पर हमें घण्टी की आवाज सुनाई देती है। इसके बाद निर्वात पम्प को चलाते हैं। जैसे-जैसे बेलजार से धीरे-धीरे हवा बाहर निकलती है, घण्टी की आवाज धीमी होती जाती है; यद्यपि अभी भी उसमें उतनी ही विद्युत प्रवाहित हो रही है। बेलजार में थोड़ी-सी हवा बचने पर हमें घंटी की बहुत धीमी आवाज सुनाई देती है। बेलजार से हवा पूरी तरह निकल जाने पर घंटी की आवाज सुनाई देना बन्द हो जाती है। अत: इस प्रयोग से सिद्ध होता है कि ध्वनि को संचरण के लिए एक माध्यम की आवश्यकता होती है।

निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं हो सकता यह दर्शाने के लिए बेलजार का प्रयोग

प्रश्न 4.
ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्घ्य क्यों है?
उत्तर:
किसी माध्यम में ध्वनि संपीडनों तथा विरलनों के रूप में संचरित होती है। जब ध्वनि तरंगें संचरित होती हैं, तब हवा के कण तरंग की गति की दिशा के अनुदिश अर्थात् समानान्तर गति करते हैं। इसलिए ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्घ्य होती है।

प्रश्न 6.
तड़ित की चमक तथा गर्जन साथ-साथ उत्पन्न होते हैं। लेकिन चमक दिखाई देने के कुछ सेकण्ड पश्चात् गर्जन सुनाई देती है। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
तड़ित की चमक व गर्जन साथ-साथ उत्पन्न होते हैं लेकिन पहले चमक दिखाई देती है, गर्जन की आवाज बाद में सुनाई देती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वायु में प्रकाश की गति बहुत तीव्र होती है जबकि ध्वनि की गति अपेक्षाकृत कम है। अत: ध्वनि कुछ सेकण्ड बाद सुनाई देती है।

प्रश्न 9.
किसी ध्वनि स्रोत की आवृत्ति 100 Hz है। एक मिनट में यह कितनी बार कम्पन करेगा?
उत्तर:
हल: आवृत्ति (v) = 100 Hz
समय = 1 मिनट = 60 सेकण्ड
कंपनों की संख्या = आवृत्ति x समय
= 100 x 60 = 6000 कम्पन

प्रश्न 10.
क्या ध्वनि परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका कि प्रकाश की तरंगें करती हैं ? इन नियमों को बताइए।
उत्तर:
हाँ, ध्वनि भी परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है, जिनका प्रकाश की तरंगें करती हैं। ये नियम इस प्रकार से हैं।

  1.  परावर्तक सतह पर खींचे गये अभिलम्ब तथा ध्वनि के आपतन होने की दिशा तथा परावर्तन की दिशा के बीच बने कोण आपस में बराबर होते हैं।
  2. इन तीनों की दिशाएँ एक ही तल में होती हैं।

प्रश्न 11.
ध्वनि का एक स्रोत किसी परावर्तक सतह के सामने रखने पर उसके द्वारा प्रदत्त ध्वनि तरंग की प्रतिध्वनि सुनाई देती है। यदि स्रोत तथा परावर्तक सतह की दूरी स्थिर रहे तो किस दिन प्रतिध्वनि अधिक शीघ्र सुनाई देगी:
(i) जिस दिन तापमान अधिक हो?
(ii) जिस दिन तापमान कम हो?
उत्तर:
चूँकि समय = ग अर्थात् समय और वेग में प्रतिलोम अनुपात होता है।
किसी भी माध्यम का ताप बढ़ाने से उसमें ध्वनि का वेग बढ़ जाता है इसलिए गर्म दिन में अधिक तापमान के कारण ध्वनि का वेग बढ़ जाएगा और हमें प्रतिध्वनि ठंडे दिन की अपेक्षा शीघ्र सुनाई देगी।

प्रश्न 12.
ध्वनि तरंगों के परावर्तन के दो व्यावहारिक उपयोग लिखिए।
उत्तर:

  1. मेगाफोन, लाउडस्पीकर, हॉर्न, शहनाई आदि को आगे से खुला और शंक्वाकार आकार के बनाये जाते हैं, जिससे स्रोत से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर आगे की दिशा में भेजा जा सके। .
  2. चिकित्सकों के द्वारा हृदय तथा फेफड़ों में उत्पन्न ध्वनि को सुनने के लिए स्टेथोस्कोप का प्रयोग किया जाता है। इससे रोगी के हृदय की धड़कन बार – बार परावर्तन के कारण डॉक्टर के कानों तक पहुँचती है।

प्रश्न 15.
अनुरणन क्या है ? इसे कैसे कम किया जा सकता है?
उत्तर:
अनुरणन: किसी बड़े हॉल में उत्पन्न होने वाली ध्वनि दीवारों से बारंबार परावर्तन के कारण काफी समय तक बनी रहती है। जब तक कि यह इतनी कम न हो जाये, कि यह सुनाई ही न पड़े। यह बारंबार परावर्तन, जिसके कारण ध्वनि – निर्बंध होता है, अनुरणन कहलाता है। अनुरणन को कम करने के लिए सभा भवन की छतों तथा दीवारों पर ध्वनि अवशोषक पदार्थों जैसे संपीडित फाइबर बोर्ड, खुरदरे प्लास्टर अथवा पर्दै लगा देते हैं।

प्रश्न 16.
ध्वनि की प्रबलता से क्या अभिप्राय है? यह किन कारकों पर निर्भर करती है ?
उत्तर:
किसी ध्वनि की प्रबलता उसकी तीव्रता है। ध्वनि की प्रबलता ध्वनि के आयाम पर निर्भर करती है। ऐसी ध्वनि को जिसमें अधिक ऊर्जा होती है, उसकी प्रबलता कहते हैं अर्थात् इकाई क्षेत्र से 1 सेकण्ड में गुजरने वाली ध्वनि को प्रबलता कहते हैं।
कारक: यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है।

  1. आयाम पर
  2. ऊर्जा पर
  3. तीव्रता पर
  4. तरंग के वेग पर।

प्रश्न 17.
चमगादड़ अपना शिकार पकड़ने के लिए पराध्वनि का उपयोग किस प्रकार करता है? वर्णन
कीजिए।
उत्तर:
चमगादड़ गहन अंधकार में अपने भोजन को खोजने के लिए उड़ते समय पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करता है तथा परावर्तन के पश्चात् इनका संसूचन करता है। चमगादड़ द्वारा उत्पन्न उच्च तारत्व के पराध्वनि स्पंद अवरोधों या कीटों से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुँचते हैं। जैसा चित्र में दिखाया गया है। इन परावर्तित स्पंदों की प्रकृति से चमगादड़ को पता चलता है कि अवरोध या कीट कहाँ पर है और यह किस प्रकार का है। इस प्रकार वह उन्हें पकड़ लेता है।

प्रश्न 18.
वस्तुओं को साफ करने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे करते हैं?
उत्तर:
पराध्वनि वस्तुओं के प्रायः उन भागों को साफ करने में उपयोग की जाती है जिन तक पहुँचना कठिन होता है। जैसे-सर्पिलाकार नली, विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक अवयव आदि। जिन वस्तुओं को साफ करना कठिन होता है, उन्हें साफ करने वाले मार्जन विलयन में रखते हैं और इस विलयन में पराध्वनि तरंगें भेजी जाती हैं। उच्च आवृत्ति के कारण धूल, चिकनाई तथा गंदगी के कण अलग होकर नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार वस्तु पूर्णतया साफ हो जाती है।

प्रश्न .19.
सोनार की कार्यविधि तथा उसके उपयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोनार: सोनार एक ऐसी युक्ति है जिसमें जल में स्थित पिण्डों की दूरी, दिशा तथा चाल मापने के लिए पराध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। सोनार में एक प्रेषित्र तथा एक संसूचक होता है और इसको किसी नाव या जहाज में चित्र में दर्शाये अनुसार लगाते हैं।

प्रेषित्र पराध्वनि तरंगें उत्पन्न तथा प्रेषित करता है। ये तरंगें जल में चलती हैं तथा समुद्र तल में पिण्ड से टकराने के पश्चात् परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं। संसूचक पराध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में बदल देता है। जिनकी उचित रूप से व्याख्या कर ली जाती है। जल में ध्वनि की चाल और पराध्वनि के प्रेषण व अभिग्रहण के समय अंतराल को ज्ञात करके उस पिण्ड की दूरी की गणना कर ली जाती है, जिससे ध्वनि तरंग परावर्तित हुई है।
माना पराध्वनि संकेत के प्रेषण तथा अभिग्रहण का समय अन्तराल 1 है तथा समुद्री जल में ध्वनि की चाल v है। तब सतह से पिण्ड की दूरी 2d होगी।
2d = v x t इस विधि को प्रतिध्वनिक-परास कहते हैं।
उपयोग:

  1. समुद्र की गहराई ज्ञात करने में।
  2. जल के भीतर स्थित चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बियों, हिम शैल, डूबे हुए जहाज आदि की जानकारी प्राप्त करने में।

प्रश्न 22.
मनुष्य का कान किस प्रकार कार्य करता है ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य का कान, एक अतिसंवेदी युक्ति होता है, जिसकी सहायता से मनुष्य ध्वनि सुन पाते हैं। यह श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में बदलता है, जो श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुंचते हैं।
मानव के कान द्वारा सुनने की प्रक्रिया:
मानव कान के तीन भाग होते हैं:
(1) बाह्य कर्ण (External Ear)
(2) मध्य कर्ण (Middle Ear)
(3) आंतरिक कर्ण (Inner Ear)

(1) बाहरी कान ‘कर्ण पल्लव’ कहलाता है। यह परिवेश से ध्वनि को एकत्रित करता है। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है। श्रवण नलिका के सिरे पर एक पतली झिल्ली होती है, जिसे ‘कर्ण पटह या कर्ण पटह झिल्ली’ कहते हैं । जब माध्यम के संपीडन कर्ण पटह तक पहुँचते हैं तो झिल्ली के बाहर की ओर लगने वाला दाब बढ़ जाता है और यह कर्ण पटह को अन्दर की ओर दबाता है। इसी प्रकार, विरलन के पहुंचने पर कर्ण पटह बाहर की ओर गति करता है। इस प्रकार से कर्ण पटह कम्पन करता है।

(2) मध्य कर्ण में विद्यमान तीन हड्डियाँ [मुग्दरक, निहाई तथा वलयक (स्टिरप)] इन कम्पनों को कई गुना बढ़ा देती हैं। मध्य कर्ण ध्वनि तरंगों से मिलने वाले इन दाब परिवर्तनों को आंतरिक कर्ण:तक.संचरित कर देता है।

(3) आंतरिक कर्ण में कर्णावर्त (Cochlea) द्वारा दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इन विद्युत संकेतों को श्रवण तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है और मस्तिष्क इनकी ध्वनि के रूप में व्याख्या करता है।

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