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RBSE Class 9 Social Science Solutions Civics Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज

RBSE Class 9 Social Science Solutions Civics Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज

पाठ सार

राजनैतिक संस्थाओं की आवश्यकता- सभी आधुनिक लोकतांत्रिक देशों में सरकार के कामों को देखने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएँ की गई हैं। इस तरह की व्यवस्थाओं को संस्थाएँ कहते हैं। किसी भी देश के संविधान में प्रत्येक संस्था के अधिकारों और कार्यों के बारे में बुनियादी नियमों का वर्णन रहता है। ये संस्थाएँ तीन हैं (1) व्यवस्थापिका (2) कार्यपालिका और (3) न्यायपालिका ।
संस्थाओं के साथ कायदे-कानून जुड़े होते हैं। इनसे नेताओं के हाथ बंध सकते हैं। लोकतांत्रिक सरकारों को संस्थाओं की आवश्यकता होती है, ताकि निर्णय सही लिये जा सकें। कोई भी लोकतंत्र तभी ठीक से काम करता है, जब ये संस्थाएँ अपने काम को अच्छी तरह करती हैं।
संस्थाओं के काम-काज में कुछ बैठकें, कुछ समितियाँ और कुछ सामान्य रुटीन का काम होता है। संस्थाओं के काम-काज के इन तरीकों से कुछ परेशानियाँ होती हैं या थोड़ा वक्त लगता है। लेकिन यह स्थिति कई मायनों में उपयोगी होती है। यथा-
(i) किसी भी निर्णय के पहले अनेक लोगों से विचार विमर्श करने का अवसर मिल जाता है।
(ii) संस्थाएँ यद्यपि निर्णय लेने में देरी करती हैं तथापि ये बुरा निर्णय भी जल्दी ले पाने को मुश्किल बना देती हैं ।
( 1 ) संसद
हर लोकतंत्र में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की सभा, जनता की ओर से सर्वोच्च राजनैतिक अधिकार का प्रयोग करती है। भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों की राष्ट्रीय सभा को संसद कहा जाता है। राज्य स्तर पर इसे विधानसभा कहते हैं। अलग-अलग देशों में इसके अलग-अलग नाम हो सकते हैं, पर हर लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा होती है।
संसद के अधिकार संसद जनता की ओर से कई तरह के राजनैतिक अधिकारों का प्रयोग करती है। यथा(1) कानून का निर्माण (2) सरकार पर नियंत्रण ( 3 ) वित्त पर नियंत्रण (4) विचार-विमर्श का सर्वोच्च मंच |
संसद के दो सदन – अधिकांश बड़े देशों में संसद के दो सदन होते हैं। पहले सदन, जिसे निम्न सदन कहा जाता है, के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। दूसरे सदन, उच्च सदन के सदस्य प्राय: परोक्ष रूप से चुने जाते हैं। इसका काम विभिन्न राज्य, क्षेत्र और संघीय इकाइयों के हितों की निगरानी करना होता है ।
भारत में भी संसद के दो सदन हैं— (1) लोकसभा और (2) राज्य सभा । लोक सभा को ‘निम्न सदन’ और राज्य सभा को ‘उच्च सदन’ कहा जाता है। भारत का राष्ट्रपति संसद का हिस्सा होता है। इसलिए संसद के निर्णय राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही लागू होते हैं।
लोकसभा बनाम राज्य सभा- हमारे संविधान में राज्यों के सम्बन्ध में राज्यसभा को कुछ विशेष अधिकार दिये गए हैं। लेकिन अधिकतर मसलों पर सर्वोच्च अधिकार लोकसभा के पास ही है । यथा –
(1) सामान्य कानून के सम्बन्ध में दोनों सदनों में मतभेद होने पर अंतिम निर्णय दोनों के संयुक्त अधिवेशन में किया जाता है और लोकसभा की अधिक सदस्य संख्या होने के कारण इस बैठक में लोकसभा का पलड़ा भारी रहता है।
(2) धन विधेयक पहले लोकसभा में पेश होता है और राज्यसभा उसे पारित करने में केवल 14 दिनों की देरी कर सकती है ।
(3) लोकसभा ही मंत्रिपरिषद को नियंत्रित करती है ।
(2) कार्यपालिका
सरकार के विभिन्न स्तरों पर अधिकारी रोजमर्रा के फैसले करते हैं। इन सभी अधिकारियों को सामूहिक रूप से कार्यपालिका के रूप में जाना जाता है। कार्यपालिका सरकार की नीतियों को कार्यरूप देती है।
राजनैतिक और स्थायी कार्यपालिका- किसी भी लोकतांत्रिक देश में कार्यपालिका के दो भाग होते हैं – (1) राजनैतिक कार्यपालिका और (2) स्थायी कार्यपालिका।
राजनैतिक कार्यपालिका-जनता द्वारा खास अवधि के लिए निर्वाचित लोगों को अर्थात् मंत्रिमण्डल को राजनैतिक कार्यपालिका कहते हैं ।
स्थायी कार्यपालिका- वे अधिकारीगण जो लम्बे समय के लिए नियुक्त किये जाते हैं और मंत्रियों को फैसले लेने में सहयोग करते हैं, स्थायी कार्यपालिका कहे जाते हैं।
राजनैतिक कार्यपालिका स्थायी कार्यपालिका से ज्यादा प्रभावशाली होती है क्योंकि वे जनता द्वारा चुने गये हैं, उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं तथा उनका दृष्टिकोण व्यापक होता है।
प्रधानमंत्री – भारत में प्रधानमंत्री सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संस्था है। राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल या गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। वह लोकसभा में विश्वास पर्यन्त अपने पद पर बना रहता है। प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मंत्री पद के लिए छ: माह के अन्दर-अन्दर संसद का सदस्य होना आवश्यक है।
मंत्रिपरिषद् – मंत्रिपरिषद उस निकाय का सरकारी नाम है जिसमें सारे मंत्री — कैबिनेट मंत्री, स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री, राज्यमंत्री होते हैं। चूँकि मंत्रिपरिषद की नियमित बैठक होना अव्यावहारिक है। इसलिए निर्णय कैबिनेट की बैठकों में ही लिये जाते हैं। कोई भी मंत्री कैबिनेट के किसी निर्णय की खुलेआम आलोचना नहीं कर सकता। टीम के रूप में कैबिनेट के फैसलों को क्रियान्वित करने के लिए कैबिनेट की मदद सचिवालय करता है।
प्रधानमंत्री के अधिकार – (1) प्रधानमंत्री अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। (2) वह कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता है। (3) वह विभिन्न विभागों के कार्य का समन्वय व नियंत्रण करता है । (4) वह मंत्रियों के कामों का वितरण व पुनर्वितरण करता है। (5) वह किसी भी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है। (6) उसके पद छोड़ने पर पूरा मंत्रिमंडल इस्तीफा दे देता है।
राष्ट्रपति–राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है। भारत में राष्ट्राध्यक्ष नाममात्र का कार्यपालिका प्रधान है। राष्ट्रपति को संसद और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य चुनते हैं ।
सारी सरकारी गतिविधियाँ राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। सारे कानून और सरकार के प्रमुख नीतिगत फैसले उसी के नाम से जारी होते हैं। सभी प्रमुख नियुक्तियाँ उसी के नाम पर होती हैं । वह भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय और राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, राज्यपालों, चुनाव आयुक्तों, राजदूतों आदि को नियुक्त करता है। भारत के रक्षा बलों का वह सर्वोच्च सेनापति होता है। लेकिन राष्ट्रपति इन अधिकारों का प्रयोग मंत्रिमण्डल की सलाह पर ही करता है।
न्यायपालिका
लोकतंत्रों के लिए स्वतंत्र और प्रभावशाली न्यायपालिका को आवश्यक माना गया है ।
देश के विभिन्न स्तरों पर मौजूद अदालतों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहा जाता है। भारतीय न्यायपालिका में पूरे देश के लिए सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों के उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय और स्थानीय स्तर के न्यायालय होते हैं।
भारत में न्यायपालिका एकीकृत है। भारत में सर्वोच्च न्यायालय निम्न में से किसी भी विवाद की सुनवाई कर सकता है—
(1) देश के नागरिकों के बीच;
(2) नागरिकों और सरकार के बीच;
(3) दो या उससे अधिक राज्य सरकारों के बीच; और
(4) केन्द्र और राज्य सरकार के बीच ।
यह फौजदारी तथा दीवानी मामले में अपील के लिए सर्वोच्च संस्था है । यह उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ सुनवाई कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति –
(1) राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को प्रधानमंत्री की सलाह पर और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से नियुक्त करता है ।
(2) व्यवहार में सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के नए न्यायाधीशों को चुनते हैं। इसमें राजनैतिक कार्यपालिका के दखल की गुंजाइश बहुत कम है।
( 3 ) सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को ही प्रायः मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है।
(4) सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से ( समय से पूर्व) महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है ।

RBSE Class 9 Social Science संस्थाओं का कामकाज InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
आरक्षण के मामले में किसने क्या किया? सर्वोच्च न्यायालय, केबिनेट, राष्ट्रपति, सरकारी अधिकारी।
उत्तर:

  • सर्वोच्च न्यायालय-आरक्षण को वैध करार दिया।
  • कैबिनेट-27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया।
  • राष्ट्रपति-मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की औपचारिक घोषणा की।
  • सरकारी अधिकारी-आदेश जारी करके घोषणा को लागू किया।

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प्रश्न 1.
आपके स्कूल को चलाने के लिये कौन-सी संस्थाएँ काम करती हैं? क्या यह अच्छा होता कि ज्यादा स्कूल के कामकाज के बारे में सिर्फ एक व्यक्ति सभी फैसले लेता?
उत्तर:
विद्यालय प्रबन्धन समिति और अध्यापक माता-पिता संगठन (PTA) जैसी संस्थाएँ हमारे विद्यालय को ठीक से चलाने हेतु कार्य करती हैं। कोई एक व्यक्ति सभी विषयों में सही निर्णय नहीं ले सकता है। बड़े निर्णयों के सम्बन्ध में विद्यालय प्रबन्ध समिति के सदस्यों तथा अध्यापक एवं माता-पिता संगठन (PTA) के सदस्यों के बीच आपसी चर्चा अवश्य होनी चाहिये।

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प्रश्न 1.
जब हमें मालूम है कि जिस पार्टी की सरकार है उसके विचार ही प्रभावी होंगे तो संसद में इतनी बहस और चर्चा करने का क्या मतलब है?
उत्तर:
संसद के वाद-विवाद और चर्चा की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है-

  • वाद-विवाद और चर्चा के दौरान विषय से जुड़े हुये कई सकारात्मक तथा नकारात्मक बिन्दुओं को उठाया जाता है। इसके बाद ही निर्णय लिया जाता है।
  • इससे लोगों को उस विषय से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती है जिस पर निर्णय लिया जाना होता है और आम जनता को भी अपने विचार अथवा आपत्तियाँ शासक दल को पहुँचाने का अवसर प्राप्त होता है।

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प्रश्न 1.
मंत्री बनने की होड़ नयी नहीं है। यह कार्टून 1962 के बाद नेहरू मंत्रिमण्डल में शामिल होने के लिये उम्मीदवारों की बेचैनी दर्शाता है। राजनेता मंत्री बनने के लिये इतने बेचैन क्यों रहते हैं? आप क्या सोचते
उत्तर:
राजनेता मंत्री बनने के लिये इतने बेचैन इसलिये रहते हैं क्योंकि-

  • जब वे चुनाव के दौरान मतदाताओं से मिलते हैं तो कुछ वायदे करते हैं और इन्हीं वायदों को पूरा करने की इच्छा रखने के कारण वे मंत्री बनना चाहते हैं।
  • जब वे राजनीति में प्रवेश करते हैं तो उनका एक उद्देश्य होता है कि वे मंत्री बन सकें । पद के साथ जुड़ी हुई प्रतिष्ठा तथा शक्तियाँ उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
  • ये देश की सेवा करना चाहते हैं और लोगों की आवश्यकताओं तथा समस्याओं का हल अपने तरीके से करना चाहते हैं।

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प्रश्न 1.
इस कार्टून में अपनी लोकप्रियता के उफान वाले 1970 के दशक के शुरुआती दिनों में इंदिरा गांधी को कैबिनेट की बैठक करते दिखाया गया है। क्या आपको लगता है कि उनके बाद बने किसी प्रधानमंत्री को इसी आकार या रूप में दिखाते हुये कार्टून बनाया जा सकता है?
उत्तर:
नहीं, बाद के प्रधानमंत्रियों से सम्बन्धित इसी तरह के कार्टून नहीं बनाए जा सकते हैं, क्योंकि न तो इंदिरा जैसा करिश्माई व्यक्तित्व इन प्रधानमंत्रियों के पास था और न ही उतनी लोकप्रियता। बाद के अधिकतर प्रधानमंत्री अपेक्षाकृत कमजोर साबित हुये। लेकिन 2014 तथा 2019 में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भी करिश्माई व्यक्तित्व के साथ उभर कर आये हैं। उनको इसी आकार या रूप में दिखाते हुए कार्टून बनाया जा सकता है।

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प्रश्न 1.
लोकतंत्र के लिये कैसा प्रधानमंत्री होता है? ऐसा जो केवल अपनी मर्जी से काम करता है या ऐसा जो दूसरी पार्टियों और व्यक्तियों से भी सलाह लेता है?
उत्तर:
किसी लोकतंत्र के लिये यही उत्तम है कि उसका प्रधानमंत्री कोई भी फैसला अन्य नेताओं तथा पार्टियों से सलाह-मशविरा करके ही ले।

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प्रश्न 1.
इलियम्मा, अन्नाकुट्टी और मेरीमॉल राष्ट्रपति के विषय वाले हिस्से को पढ़ती हैं। वे तीनों एक-एक सवाल का जवाब जानना चाहती हैं। क्या आप उन्हें उनके सवालों के जवाब दे सकते हैं?
(i) इलियम्मा : अगर राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री किसी नीति पर असहमत हों तो क्या होगा? क्या प्रधानमन्त्री का विचार हमेशा प्रभावी होगा?
उत्तर:
(A) अगर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच असहमति की स्थिति हो तो प्रधानमंत्री का विचार मान्य होगा बशर्ते उसे इस पर बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।

(B) नहीं, प्रधानमन्त्री का विचार हमेशा प्रभावी नहीं होगा। यदि प्रधानमंत्री संसद में बहुमत का समर्थन खो देता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अपने विवेक से फैसला लेने के लिये स्वतंत्र है।

(ii) अन्नाकुट्टी : यह मुझे बहुत बेतुका लगता है कि सशस्त्र बलों का सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति हो। वह तो एक भारी बंदूक भी नहीं उठा सकता। उसे कमांडर बनाने में क्या तुक है?
उत्तर:
(A) वह कमांडर युद्ध जीतता है जिसमें अधिक शक्ति होती है। यहाँ सर्वोच्च कमांडर अर्थात् राष्ट्रपति की कलम में ताकत होती है जिससे वह आदेश देता है, जबकि सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के पास हथियार हैं जिनकी सहायता से वे आदेश का पालन करते हैं। हथियार में कलम से कम ताकत होती है।

(B) मंत्रिपरिषद् द्वारा प्राप्त सलाहों के आधार पर काम करने के कारण राष्ट्रपति के पास देश की सुरक्षा से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं की व्यापक जानकारियाँ उपलब्ध होती हैं। अतः राष्ट्रपति को कमांडर बनाना उचित ही है।

(C) एक तरीके से यह सेना को जनता के अप्रत्यक्ष नियंत्रण में रखने का एक साधन भी है जो कि किसी लोकतंत्र के लिये बहुत ही आवश्यक है।

(iii) मेरीमॉल : मेरा सवाल यह है कि अगर असली अधिकार प्रधानमंत्री के पास ही हैं तो राष्ट्रपति की जरूरत ही क्या है?
उत्तर:
(A) राष्ट्रपति देश की सांकेतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

(B) कई बार गंभीर परिस्थितियों में राष्ट्रपति द्वारा स्वयं ही वास्तविक शक्तियों का प्रयोग करते हये राष्ट्रहित में फैसला लिया जाता है। उदाहरण के लिये, जब कोई प्रधानमंत्री संसद में बहुमत का समर्थन खो देता है तो कार्यपालिका की वास्तविक शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा ही किया जाता है। इस पद के नहीं होने से, ऐसी स्थिति में, देश में अराजकता फैल सकती है।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित सन्दर्भो में एक कारण देकर समझाएँ कि भारतीय न्यायपालिका किस तरह स्वतन्त्र है?
(i) न्यायाधीशों की नियुक्ति
(ii) न्यायाधीशों को पद से हटाना
(iii) न्यायपालिका के अधिकार।
उत्तर:
[नोट-इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।]

RBSE Class 9 Social Science संस्थाओं का कामकाज Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अगर आपको भारत का राष्ट्रपति चुना जाए तो आप निम्नलिखित में से कौन-सा फैसला खुद कर सकते हैं?
(क) अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुन सकते हैं।
(ख) लोकसभा में बहुमत वाले प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकते हैं।
(ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं।
(घ) मंत्रिपरिषद् में अपनी पसंद के नेताओं का चयन कर सकते हैं।
उत्तर:
(ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिये कह सकते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन राजनैतिक कार्यपालिका का हिस्सा होता है?
(क) जिलाधीश
(ख) गृह मंत्रालय का सचिव
(ग) गृहमंत्री
(घ) पुलिस महानिदेशक
उत्तर:
(ग) गृहमंत्री।

प्रश्न 3.
न्यायपालिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा बयान गलत है?
(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।
(ख) अगर कोई कानून संविधान की भावना के खिलाफ है तो न्यायपालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है।
(ग) न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है।
(घ) अगर किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है तो वह अदालत में जा सकता है।
उत्तर:
(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित राजनैतिक संस्थाओं में से कौन-सी संस्था देश के मौजूदा कानून में संशोधन कर सकती है?
(क) सर्वोच्च न्यायालय
(ख) राष्ट्रपति
(ग) प्रधानमंत्री
(घ) संसद
उत्तर:
(घ) संसद।

प्रश्न 5.
उस मंत्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार जारी किया होगा :

(क) देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है। 1. रक्षा मंत्रालय
(ख) ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ सुलभ करायी जाएँगी। 2. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूँ की कीमतें कम की जाएंगी। 3. स्वास्थ्य मंत्रालय
(घ) पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा। 4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
(ङ) ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएंगे। 5. संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय

उत्तर:

(क) देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है। 4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
(ख) ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ सुलभ करायी जाएँगी। 5. संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय
(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूँ की कीमतें कम की जाएंगी। 2. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
(घ) पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा। 3. स्वास्थ्य मंत्रालय
(ङ) ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएंगे। 1. रक्षा मंत्रालय

प्रश्न 6.
देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से उस राजनैतिक संस्था का नाम बताइए जो निम्नलिखित मामलों में अधिकारों का इस्तेमाल करती है-
(क) सड़क, सिंचाई जैसे बुनियादी ढाँचों के विकास और नागरिकों की विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों पर कितना पैसा खर्च किया जाएगा।
(ख) स्टॉक एक्सचेंज को नियमित करने सम्बन्धी कानून बनाने की कमेटी के सुझाव पर विचार-विमर्श करती है।
(ग) दो राज्य सरकारों के बीच कानूनी विवाद पर निर्णय लेती है।
(घ) भूकम्प पीड़ितों की राहत के प्रयासों के बारे में सूचना माँगती है।
उत्तर:
(क) कार्यपालिका
(ख) विधायिका
(ग) न्यायपालिका
(घ) विधायिका।

प्रश्न 7.
भारत का प्रधानमंत्री सीधे जनता द्वारा क्यों नहीं चुना जाता? निम्नलिखित चार जवाबों में सबसे सही को चुनकर अपनी पसंद के पक्ष में कारण दीजिए-
(क) संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमंत्री बन सकता है।
(ख) लोकसभा, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें हटा सकती है।
(ग) चूँकि प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति नियुक्त करता है लिहाजा उसे जनता द्वारा चुने जाने की जरूरत ही नहीं है।
(घ) प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च आएगा।
उत्तर:
(क) संसदीय लोकतन्त्र में लोकसभा में बहमत वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमन्त्री बन सकता है।

पक्ष में कारण-भारतीय संविधान में यह व्यवस्था है कि प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। लेकिन राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या पार्टियों के गठबन्धन के नेता को ही प्रधानमन्त्री नियुक्त करते हैं। यही कारण है कि भारत में प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्षतः नहीं किया जाता है।

प्रश्न 8.
तीन दोस्त एक ऐसी फिल्म देखने गए जिसमें हीरो एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनता है और राज्य में बहुत से बदलाव लाता है। इमरान ने कहा कि देश को इसी चीज की जरूरत है। रिजवान ने कहा कि इस तरह का, बिना संस्थाओं वाला एक व्यक्ति का राज खतरनाक है।शंकर ने कहा कि यह तो एक कल्पना है। कोई भी मंत्री एक दिन में कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसी फिल्मों के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर:
यह फिल्म आदर्शवाद तथा वास्तविक स्थिति दोनों पर ही आधारित है। फिल्म में दिखाई गई समस्याएँ तो वास्तविक हैं किन्तु जो हल सुझाए गये हैं वे 80 प्रतिशत तक आदर्श पर आधारित हैं। किन्तु मुख्यमंत्री की भूमिका निभा रहे नायक द्वारा किए गये सभी कार्य संस्था की सीमा के अन्तर्गत हैं। हाँ, फर्क इतना है कि मुख्यमंत्री के रूप में अव्यावहारिक रूप से नायक को जमीनी स्तर पर ऐसे कार्य करते हुये दिखाया गया है जो कि काल्पनिक हैं। दूसरे, राज्य में परिवर्तन लाने के लिए एक व्यावहारिक योजना बनाने की आवश्यकता होती है। अत: केवल एक दिन में परिवर्तन वाला संभव नहीं है।

प्रश्न 9.
एक शिक्षिका छात्रों की संसद के आयोजन की तैयारी कर रही थी। उसने दो छात्राओं से अलग अलग पार्टियों के नेताओं की भूमिका करने को कहा। उसने उन्हें विकल्प भी दिया। यदि वे चाहें तो राज्य सभा में बहमत प्राप्त दल की नेता हो सकती थीं और अगर चाहें तो लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल की। अगर आपको यह विकल्प दिया गया तो आप क्या चुनेंगे और क्यों?
उत्तर:

  • मैं लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल की नेता की भूमिका चुनूँगी।
  • क्योंकि, लोकसभा के सदस्यों द्वारा ही अपने सदन के नेता का चुनाव किया जाता है तथा जिस व्यक्ति को बहुमत प्रदान किया जाता है, उसे प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है तथा वही व्यक्ति केन्द्र में सरकार बनाता है।

प्रश्न 10.
आरक्षण पर आदेश का उदाहरण पढ़कर तीन विद्यार्थियों की न्यायपालिका की भूमिका पर अलग-अलग प्रतिक्रिया थी। इनमें से कौन-सी प्रतिक्रिया, न्यायपालिका की भूमिका को सही तरह से समझती है?
(क) श्रीनिवास का तर्क है कि चूँकि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गई है लिहाजा वह स्वतंत्र नहीं है।
(ख) अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतंत्र है क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ फैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन का निर्देश दिया।
(ग) विजया का मानना है कि न्यायपालिका न तो स्वतंत्र है, न ही किसी के अनुसार चलने वाली है बल्कि वह विरोधी समूहों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। न्यायालय ने इस आदेश के समर्थकों और विरोधियों के बीच बढ़िया संतुलन बनाया।
आपकी राय में कौन-सा विचार सबसे सही है?
उत्तर:
इन तीनों प्रतिक्रियाओं में से अंजैया (ख) का विचार सरकार के आरक्षण सम्बन्धी आदेशों को न्यायालय द्वारा न्यायसंगत पाया गया है। साथ ही उनमें अपेक्षित कमियों को देखते हुये न्यायालय ने सरकार को इसमें संशोधन करने का आदेश भी दिया है। न्यायालय ने पिछड़े वर्गों के सही व्यक्ति तक इस आदेश का लाभ पहुँचे, इसके लिये इस वर्ग के सम्पन्न लोगों की पहचान कर उन्हें इस लाभ से अलग रखने के लिये आवश्यक कदम उठाने हेतु सरकार को निर्देश दिया है।

मेरे विचार में यही सबसे सही राय है जो न्यायपालिका सरकार के आदेशों के खिलाफ फैसला सुना सकती है।

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