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RBSE Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

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पाठ-सार

अवलोकन – देश की बढ़ती हुई जनसंख्या अर्थव्यवस्था के लिए एक नकारात्मक पहलू है किन्तु इस जनसंख्या को मानव पूँजी के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। जब अर्थव्यवस्था में शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो देश की जनसंख्या मानव पूँजी में परिवर्तित हो जाती है तथा वह जनसंख्या उत्पादक बन जाती है। मानव पूँजी भी भौतिक पूँजी की भाँति ही देश की उत्पादक शक्ति में वृद्धि करती है। अधिक शिक्षित एवं अधिक स्वस्थ व्यक्तियों की उत्पादकता अधिक होती है। मानव पूँजी, उत्पादन के अन्य संसाधनों से अधिक श्रेष्ठ होती है क्योंकि वे ही भूमि एवं भौतिक पूँजी का उपयोग करते हैं । शिक्षित एवं स्वस्थ व्यक्ति भूमि एवं भौतिक पूँजी का अधिक कुशलता से उपयोग कर सकते हैं। मानव संसाधन में निवेश से भविष्य में उच्च प्रतिफल प्राप्त हो सकते हैं।
पुरुषों और महिलाओं के आर्थिक क्रियाकलाप –
पुरुषों एवं महिलाओं के विभिन्न क्रियाकलापों को मुख्य रूप से तीन क्षेत्रकों में विभाजित किया जा सकता है –
(1) प्राथमिक क्षेत्रक, (2) द्वितीयक क्षेत्रक एवं ( 3 ) तृतीयक क्षेत्रक।
प्राथमिक क्षेत्रक के अन्तर्गत कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गीपालन और खनन को शामिल किया जाता है। द्वितीयक क्षेत्रक में उत्खनन और विनिर्माण को शामिल किया जाता है। तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार, परिवहन, संचार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन सेवाएँ इत्यादि को शामिल किया जाता है । इन तीनों क्षेत्रकों में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है।
आर्थिक क्रियाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—(1) बाजार क्रियाएँ तथा (2) गैर-बाजार क्रियाएँ। बाजार क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है जबकि गैर-बाजार क्रियाओं से अभिप्राय स्व-उपभोग के लिए उत्पादन किया जाता है। भारतीय समाज में यह मान्यता है कि प्रायः महिलाएँ घर का कार्य करती हैं तथा पुरुष धन अर्जन का कार्य करते हैं । शिक्षित एवं अधिक कुशल लोगों की आय अधिक होती है ।
जनसंख्या की गुणवत्ता –
जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। जनसंख्या की गुणवत्ता को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
( 1 ) शिक्षा – शिक्षा जनसंख्या की गुणवत्ता का महत्त्वपूर्ण मापक है। अधिक शिक्षित जनसंख्या, जनसंख्या की गुणवत्ता का परिचायक है । शिक्षा देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। शिक्षा, राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक संवृद्धि में वृद्धि करती है और प्रशासन की कार्यक्षमता बढ़ाती है । शिक्षा में वृद्धि हेतु सरकार ने अनेक प्रयास किए हैं। इन प्रयासों के फलस्वरूप देश की साक्षरता दर जो वर्ष 1951 में 18 प्रतिशत थी वह वर्ष 2011 में बढ़कर 74 प्रतिशत गई है। वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सर्वशिक्षा अभियान एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसके अतिरिक्त दोपहर के भोजन की योजना भी महत्त्वपूर्ण है । विगत 65 वर्षों में देश में शिक्षण संस्थाओं की संख्या में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है ।
( 2 ) स्वास्थ्य – स्वस्थ व्यक्ति अधिक उत्पादक एवं कार्यकुशल होते हैं जबकि अशिक्षित व्यक्ति किसी संगठन के लिए बोझ बन जाता है। अतः जनसंख्या के स्वास्थ्य में सुधार लाना किसी देश के लिए सबसे प्राथमिक कार्य है। भारत में सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं हेतु कई प्रयास किए जिसके फलस्वरूप देश में विगत 65 वर्षों में स्वास्थ्य सुविधाओं में उल्लेखनीय विकास हुआ है। किन्तु देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का सभी राज्यों में समान रूप से विकास नहीं हुआ है, राज्यों में इस सम्बन्ध में काफी विषमताएँ हैं।
बेरोजगारी – बेरोजगारी का तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें योग्य एवं इच्छुक व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य नहीं मिले। भारत में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या विद्यमान है। ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः मौसमी एवं प्रच्छन्न बेरोजगारी पाई जाती है जबकि शहरी क्षेत्रों में शिक्षित बेरोजगारी पाई जाती है। मौसमी बेरोजगारी में लोगों को किसी विशेष समय अवधि हेतु ही रोजगार मिलता है। प्रच्छन्न बेरोजगारी में लोग किसी कार्य पर आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं, यह बेरोजगारी मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में पाई जाती है। शहरी क्षेत्रों में शिक्षित लोगों को उनकी योग्यता के अनुरूप कार्य नहीं मिल पाता, इसे शिक्षित बेरोजगारी कहते हैं। बेरोजगारी के कारण जनशक्ति का उपयोग नहीं हो पाता है। बेरोजगारी से देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी के कारण गरीबी कम नहीं होती तथा लोग शहरों की ओर प्रवास करते हैं ।

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प्रश्न 1.
बताइए कि ये क्रियाकलाप आर्थिक क्रियाएँ हैं या गैर-आर्थिक-
(अ) विलास गाँव के बाजार में मछली बेचता है।
(ब) विलास अपने परिवार के लिए खाना पकाता है।
(स) सकल एक प्राइवेट फर्म में काम करता है।
(द) सकल अपने छोटे भाई और बहिन की देखभाल करता है।
उत्तर:
(अ) आर्थिक क्रिया है।
(ब) गैर-आर्थिक क्रिया है।
(स) आर्थिक क्रिया है।
(द) गैर-आर्थिक क्रिया।

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आरेख 2.1 का अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दें :

प्रश्न 1.
क्या 1951 से जनसंख्या की साक्षरता दर बढ़ी है?
उत्तर:
हाँ, वर्ष 1951 से भारत की जनसंख्या की साक्षरता दर में निरन्तर वृद्धि हुई है।

प्रश्न 2.
किस वर्ष भारत में साक्षरता दर सर्वाधिक रही?
उत्तर:
भारत में वर्ष 2011 में साक्षरता दर सर्वाधिक रही। वर्ष 2011 में भारत की साक्षरता दर लगभग 74 प्रतिशत थी।

प्रश्न 3.
भारत में पुरुषों में साक्षरता दर अधिक क्यों है?
उत्तर:
भारतीय समाज पुरुष प्रधान, रूढ़िवादी और परम्परावादी है। यहाँ पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा अधिक सुविधा दी जाती है। अतः लिंग-भेद के कारण पुरुषों की साक्षरता दर अधिक है।

प्रश्न 4.
पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ कम शिक्षित क्यों हैं?
उत्तर:
भारत में स्त्रियों का परम्परागत कार्य क्षेत्र घर की चार-दीवारी के कार्य माने गये हैं। लिंग-भेद, परम्परागत सोच आदि के कारण भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ कम शिक्षित हैं।

प्रश्न 5.
आप भारत में लोगों की साक्षरता दर का परिकलन कैसे करेंगे?
उत्तर:
साक्षरता दर का आकलन करने हेतु साक्षर लोगों का देश की कुल जनसंख्या से अनुपात निकाला जाता है। साक्षर लोगों में उन लोगों को शामिल किया जाता है जिनकी आयु 7 वर्ष या उससे अधिक होती है तथा वे किसी भी भाषा को समझने के साथ-साथ एक साधारण परिच्छेद को पढ़ एवं लिख सकते हैं। इन साक्षर लोगों का कुल जनसंख्या से अनुपात ही साक्षरता दर कहलाती है। इस हेतु निम्न सूत्र प्रयोग किया जाता है-

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प्रश्न 6.
वर्ष 2020 में भारत की साक्षरता दर का आपका पूर्वानुमान क्या है?
उत्तर:
वर्ष 2020 में भारत की साक्षरता दर लगभग 85 प्रतिशत रहेगी।

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प्रश्न 1.
सारणी 2.1 की कक्षा में चर्चा करें तथा निम्न प्रश्नों के उत्तर दें-
(अ) क्या विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या को प्रवेश देने के लिए कॉलेजों की संख्या में वृद्धि पर्याप्त है?
(ब) क्या आप सोचते हैं कि हमें विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ानी चाहिए?
(स) वर्ष 1950-51 से वर्ष 1998-99 तक शिक्षकों की संख्या में कितनी वृद्धि हुई?
(द) भावी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के बारे में आपका क्या विचार है?
सारणी 2.1 : उच्च शिक्षा के संस्थानों की संख्या, नामांकन तथा संकाय

उत्तर:
(अ) नहीं, विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या को प्रवेश देने के लिए कालेजों की संख्या में वृद्धि पर्याप्त नहीं है।

(ब) भारत में विद्यार्थियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है तथा अब विद्यार्थी उच्च शिक्षा की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं जबकि देश में विश्वविद्यालयों की संख्या बहुत ही कम है। वर्ष 2016-17 में देश में मात्र 795 विश्वविद्यालय ही हैं । अतः देश में विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है।

(स) भारत में वर्ष 1950-51 से वर्ष 1998-99 तक शिक्षकों की संख्या काफी बढ़ी है। वर्ष 1950-51 में देश में शिक्षकों की कुल संख्या 24000 थी, वह बढ़कर वर्ष 1998-99 में 342000 हो गई है। इस प्रकार इस अवधि में 318000 शिक्षक बढ़े हैं।

(द) भारत में साक्षरता दर में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है तथा विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ रही है जबकि महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों की संख्या इस बढ़ती हुई विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार काफी कम है अतः देश में महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की संख्या में तीव्र गति से विस्तार किया जाना चाहिए। विशेष रूप से तकनीकी एवं प्रबन्ध शिक्षण संस्थाओं में वृद्धि करनी चाहिए तथा दूरस्थ शिक्षा को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही जिन महाविद्यालयों में विद्यार्थियों को बहुत-सी सुविधाएँ नहीं, उन सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाये।

प्रश्न 2.
सारणी 2.2 को पढ़ें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
(अ) वर्ष 1951 से 2015 तक औषधालयों की संख्या में कितने प्रतिशत की वृद्धि हुई है?
(ब) क्या आपको लगता है कि डॉक्टरों और नौं की संख्या में वृद्धि पर्याप्त है? यदि नहीं तो क्यों?
(स) किसी अस्पताल में आप और कौनसी सुविधाएँ उपलब्ध कराना चाहेंगे?
सारणी 2.2 : सम्बन्धित वर्ष की स्वास्थ्य आधारिक संरचना

उत्तर:
(अ) वर्ष 1951 में औषधालयों की संख्या 9209 थी, वह बढ़कर वर्ष 2015 में 29957 हो गई। अतः देश में इस अवधि में औषधालयों की संख्या में 225.30 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

(ब) भारत में देश की कुल जनसंख्या की दृष्टि से डॉक्टरों व नौं की संख्या बहुत कम है। इनकी संख्या कम होने के अनेक कारण हैं । एक तो देश में साक्षरता दर कम रही है तथा दूसरे, चिकित्सा की शिक्षा काफी खर्चीली होती है जिसके कारण हर कोई विद्यार्थी इसे ग्रहण नहीं कर पाता तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि देश में चिकित्सा एवं नर्सिंग महाविद्यालयों की संख्या बहुत कम है।

(स) भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः छोटे स्वास्थ्य केन्द्र हैं जहाँ मरीजों को कोई सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो पाती हैं तथा शहरी क्षेत्रों में भी अनेक सरकारी अस्पतालों में कई सुविधाओं का अभाव है। हमारे अनुसार अस्पताल में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर एवं नर्सिंगकर्मी होने चाहिए तथा अस्पताल में एम्बुलेन्स, जांच सम्बन्धी सभी उपकरण, सभी प्रकार की जाँचों की व्यवस्था, पौष्टिक भोजन, दवाइयों तथा सफाई की व्यवस्था होनी चाहिए।

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प्रश्न 1.
‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जिस प्रकार भूमि एवं पूंजी उत्पादन के मुख्य संसाधन होते हैं उसी प्रकार शिक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रशिक्षण सुविधाओं में निवेश कर लोगों को भी मानव पूँजी में परिवर्तित किया जा सकता है। इससे मानव पूँजी भी भूमि एवं भौतिक पूँजी की भाँति उत्पादक बन जाती है, इसे ही ‘संसाधन के रूप में लोग’ की संज्ञा दी जा सकती है।

प्रश्न 2.
मानव संसाधन, भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
मानव संसाधन, भूमि और भौतिक पूँजी से कई प्रकार से भिन्न है। भूमि एवं भौतिक पूँजी आर्थिक विकास के साधन मात्र हैं जबकि मानव पूंजी आर्थिक विकास का साधन एवं साध्य दोनों हैं। मानव पूँजी एक तरफ तो वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती है, दूसरी ओर वह उनका उपभोग कर उनकी मांग में भी वृद्धि करती है जिससे उत्पादन की प्रेरणा में वृद्धि होती है। भूमि एवं पूँजी का प्रयोग अपने आप नहीं हो सकता है, इनका प्रयोग मानव संसाधन के माध्यम से ही होता है। भूमि एवं पूँजी की उत्पादकता स्थिर रहती है जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रशिक्षण सुविधाओं में निवेश कर मानव संसाधनों की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। भूमि एवं पूँजी को उत्पादन का निष्क्रिय साधन माना जा सकता है जबकि मानव संसाधन उत्पादन का सक्रिय साधन होता है।

प्रश्न 3.
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा के बिना मानव पूँजी का निर्माण करना अत्यन्त जटिल कार्य है। शिक्षा मानव पूँजी निर्माण को कई प्रकार से प्रभावित करती है। शिक्षित श्रमिक अधिक उत्पादक एवं कार्यकुशल होता है। शिक्षा के माध्यम से लोगों की कुशलता एवं कौशल में वृद्धि की जाती है जिसके फलस्वरूप उन्हें रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं। शिक्षा के माध्यम से जनसंख्या की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है जिससे वे आर्थिक एवं सामाजिक विकास में अधिक योगदान दे पाते हैं। शिक्षा के फलस्वरूप लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है जिससे उनकी उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा शिक्षा जनसंख्या नियंत्रण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। देश में तकनीकी शिक्षा का विस्तार कर मानवीय संसाधनों को अधिक कुशलं एवं उत्पादक बनाया जा सकता है। इस प्रकार मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। एक स्वस्थ व्यक्ति किसी भी अस्वस्थ व्यक्ति से अधिक उत्पादक एवं कुशल होता है तथा वह उत्पादन प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है जबकि अस्वस्थ व्यक्ति किसी भी संगठन पर बोझ होता है। अतः मानव को संसाधन के रूप में परिवर्तित करने में उसका स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। एक स्वस्थ व्यक्ति लम्बे समय तक पूरी कुशलता एवं ईमानदारी के साथ कार्य कर सकता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार कर अधिक कुशल एवं उत्पादक जनशक्ति का निर्माण किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति की उत्पादक क्षमता उस व्यक्ति के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत प्रदान करता है। एक स्वस्थ व्यक्ति, अस्वस्थ व्यक्ति की तुलना में अधिक कुशल एवं उत्पादक होता है, जिससे देश के उत्पादन में तो वृद्धि होती ही है साथ ही उस व्यक्ति की स्वयं की आय में भी वृद्धि होती है तथा उसके सम्मुख और भी अधिक वेतन के अवसर उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार स्वस्थ व्यक्ति की आय बढ़ती है जिसके फलस्वरूप वह पहले से बेहतर जीवनयापन कर पाता है, जबकि इसके विपरीत एक अस्वस्थ व्यक्ति किसी संगठन पर बोझ होता है तथा वह स्वयं के जीवन हेतु भी पर्याप्त आय नहीं कमा पाता तथा नीचा जीवन व्यतीत करता है। अतः किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसके कामयाब जीवन का आधार है।

प्रश्न 6.
प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती हैं?
उत्तर:
किसी भी अर्थव्यवस्था में लोगों द्वारा की गई विभिन्न आर्थिक क्रियाओं को निम्न तीन क्षेत्रकों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) प्राथमिक क्षेत्रक-प्राथमिक क्षेत्रक के अन्तर्गत कृषि एवं सम्बद्ध क्रियाओं को शामिल किया जाता है। इस क्षेत्रक में कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गीपालन, खनन इत्यादि को शामिल किया जाता है।

(2) द्वितीयक क्षेत्रक-द्वितीयक क्षेत्रक में उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिनसे कच्चे माल को मानव उपयोगी निर्मित माल में परिवर्तित किया जाता है। द्वितीयक क्षेत्रक में उत्खनन एवं विनिर्माण क्रियाओं को शामिल किया जाता है।

(3) तृतीयक क्षेत्रक-अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार, परिवहन, संचार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन सेवाएँ इत्यादि को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 7.
आर्थिक एवं गैर-आर्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आर्थिक एवं गैर-आर्थिक क्रियाओं में अन्तर निम्न प्रकार है-
(1) आर्थिक क्रियाएँ-आर्थिक क्रियाओं का सम्बन्ध लोगों के धन कमाने एवं व्यय करने सम्बन्धी क्रियाओं से है। इसके अन्तर्गत लोग जिन भी क्रियाओं से वेतन अथवा लाभ प्राप्त करते हैं उन्हें आर्थिक क्रियाओं में शामिल करते हैं। इसके अन्तर्गत सरकारी सेवाओं सहित वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन शामिल किया जाता है।

(2) गैर-आर्थिक क्रियाएँ-गैर-आर्थिक क्रियाएँ वे होती हैं जिनका सम्बन्ध किसी प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ से नहीं होता है। गैर-आर्थिक क्रियाएँ अधिकांशतः स्व उपभोग हेतु की जाती हैं।

प्रश्न 8.
महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति की आय अथवा वेतन को निर्धारित करने वाले मुख्य तत्व हैं-शिक्षा एवं कौशल। भारत में शिक्षित व्यक्तियों के सम्मुख रोजगार के अधिक अवसर मिलते हैं तथा उन्हें वेतन भी अधिक मिलता है। भारत में महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है अतः उन्हें निम्न वेतन वाले कार्य करने पड़ते हैं। शिक्षा के अभाव में महिलाओं में कौशल का अभाव पाया जाता है। नियोक्ताओं का यह भी मानना है कि महिलाएँ शारीरिक रूप से पुरुषों की अपेक्षा कमजोर होती हैं । वे उत्पादन में पुरुषों की बराबरी नहीं कर पातीं। अतः कम कौशल के कारण महिलाओं को कम वेतन वाले कार्यों में नियोजित होना पड़ता है।

प्रश्न 9.
‘बेरोजगारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर:
बेरोजगारी का तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें किसी व्यक्ति में काम करने की योग्यता एवं इच्छा होने के उपरान्त उसे प्रचलित मजदूरी पर रोजगार नहीं मिलता।

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न और मौसमी बेरोजगारी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्रच्छन्न बेरोजगारी-प्रच्छन्न बेरोजगारी का तात्पर्य उस अवस्था से है जिसमें किसी कार्य पर आवश्यकता से अधिक लोग लगे होते हैं। वे लोग काम करते नजर आते हैं परन्तु वास्तव में वे बेरोजगार होते हैं क्योंकि उनका उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता है। भारत में कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी पाई जाती है जिसमें कृषि भूमि पर आवश्यकता से अधिक लोग लगे हुए रहते हैं। उदाहरण के लिए, किसी कृषि भूमि पर तीन व्यक्तियों के योग्य कार्य है किन्तु उस पर परिवार के 5 लोग लगे हुए हैं तथा उनमें से 2 लोगों को काम से हटा लेने पर भी उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहेंगे।

मौसमी बेरोजगारी-मौसमी बेरोजगारी का तात्पर्य उस अवस्था से है जिसमें किसी व्यक्ति को किसी मौसम विशेष या किसी विशेष समय अवधि हेतु ही रोजगार मिलता है तथा शेष समय अवधि में वह बेरोजगार रहता है तथा रोजगार की तलाश करता है। जैसे गुड़ तथा चीनी उद्योग में लगे मजदूरों को कुछ समय विशेष हेतु ही रोजगार मिलता है जब गन्ने का उत्पादन होता है।

प्रश्न 11.
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर:
भारत में शिक्षित बेरोजगारी एक विशेष समस्या है, क्योंकि-

  • भारत में शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का निरन्तर विस्तार हो रहा है किन्तु रोजगार के अवसरों में इतनी वृद्धि नहीं हो रही है।
  • यहाँ किसी क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक लोग शिक्षित और प्रशिक्षित हैं तथा दूसरे क्षेत्रों में प्रशिक्षितों की कमी है।
  • यहाँ की शिक्षा रोजगारोन्मुखी नहीं है।
  • भारत में जिस तेजी से पिछले 65 वर्षों से जनसंख्या बढ़ी है, उस तेज गति से रोजगार के अवसर सृजित नहीं हुए हैं।

प्रश्न 12.
आपके विचार से भारत किस क्षेत्रक में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?
उत्तर:
भारत में तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित किए जा सकते हैं। प्राथमिक अथवा कृषि क्षेत्रक में प्रच्छन्न बेरोजगारी पाई जाती है तथा आवश्यकता से अधिक लोग रोजगार में लगे हुए हैं अत: कृषि क्षेत्र में रोजगार के अधिक अवसर सृजित नहीं किए जा सकते हैं। द्वितीयक क्षेत्र में उद्योग एवं विनिर्माण को सम्मिलित किया जाता है, इस क्षेत्र में छोटे पैमाने पर होने वाले विनिर्माण अर्थात् लघु एवं कुटीर उद्योगों को शामिल किया जाता है जिसमें रोजगार के काफी अवसर सृजित किए जा सकते हैं। इस क्षेत्र में पूँजी का निवेश बढ़ाकर भी रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं। लेकिन तृतीयक क्षेत्र, जिसमें विभिन्न प्रकार की सेवाएँ आती हैं, में प्रशिक्षण प्रदान कर भारत में रोजगार के सर्वाधिक अवसर प्रदान किये जा सकते हैं, विशेषकर जब देश उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति को अपना रहा है।

प्रश्न 13.
क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोजगारों की समस्या दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर:
भारत में शिक्षित बेरोजगारों की समस्या दूर करने के लिए शिक्षा प्रणाली के संदर्भ में निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं-

  • भारतीय शिक्षा प्रणाली रोजगार-उन्मुख नहीं है। अतः भारतीय शिक्षा प्रणाली को रोजगार उन्मुख बनाना चाहिए।
  • भारतीय शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत स्कूल एवं कॉलेज स्तर पर व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।
  • भारत में शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों को स्वरोजगार हेतु भी प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि उन्हें रोजगार न मिलने पर वे स्वयं का व्यवसाय कर सकें।
  • भारत में रोजगार उपलब्ध करवाने एवं रोजगार सम्बन्धी मार्गदर्शन करने वाली संस्थाओं को अधिक विकास किया जाना चाहिए।
  • भारत में तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त लोगों को स्वयं के व्यवसाय हेतु ऋण उपलब्ध करवाया जाना चाहिए ताकि उन्हें रोजगार मिल सके।

प्रश्न 14.
क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोजगार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत में हो गया?
उत्तर:
मेरे गाँव के आस-पास कई ऐसे गाँव हैं जो पहले बहुत अधिक पिछड़े हुए थे। इन गांवों में पहले बहुत से निर्धन लोग रहते थे जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि था तथा अधिकांश लोग कृषि में लगे हुए थे। उस समय परिवार के सभी सदस्य खेती में ही लगे रहते थे तथा परिवार के बच्चों को स्कूल भी नहीं भेजा जाता था। उन गाँवों में रोजगार के अन्य कोई अवसर नहीं थे।

उनमें से एक गाँव में सरकारी विद्यालय में एक अध्यापक की नियुक्ति हुई। उसने गाँव की स्थिति को देखा तथा गाँव के मुखिया से मिलकर गाँव वालों की एक बैठक बुलाई। अध्यापक ने गाँव वालों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य का महत्व समझाया तथा उनसे अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाने का अनुरोध किया तथा माता-पिता को स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया। इस सबसे प्रभावित होकर कई ग्रामीणों ने अपने बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलवाया। इन बच्चों ने स्कूल शिक्षा प्राप्त कर निकट के शहर में आगे की पढ़ाई पूरी की। उसके पश्चात् उनमें से कई छात्र नौकरी करने लगे। कुछ लोग गाँव वापस आ गए तथा उन्होंने सरकार से ऋण लेकर कई लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की। इससे गाँव के कई अन्य लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए। गाँव की कुछ लड़कियों ने स्कूल शिक्षा पूरी कर सिलाई एवं कढ़ाई का प्रशिक्षण लिया, प्रशिक्षण पूरा होने पर उन्होंने गाँव में अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया जिससे उनकी आमदनी भी होने लगी। गाँव के इन शिक्षित लोगों से प्रेरणा लेकर गाँव के अन्य भी कई अशिक्षित युवाओं ने तकनीकी कौशल प्राप्त कर अपने-अपने कुटीर उद्योग प्रारम्भ किए।

प्रश्न 15.
किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं-भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी? क्यों?
उत्तर:
हम मानव पूँजी को सबसे श्रेष्ठ मानेंगे क्योंकि मानव पूंजी उत्पादन का साध्य एवं साधन दोनों है। एक तरफ तो मानव पूंजी उत्पादन में सहायक है, दूसरी तरफ मानव पूँजी वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग भी करती है जिससे बाजार में माँग उत्पन्न होती है तथा उत्पादन को प्रेरणा मिलती है। मानव पूँजी को श्रेष्ठ इसलिए भी माना जाता है क्योंकि मानव पूँजी ही भूमि एवं श्रम का उपयोग करती है। कुशल मानव पूँजी साधनों का कुशलता से उपयोग करती है। मानव पूँजी की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि अधिक शिक्षित एवं स्वस्थ लोगों के लाभ स्वयं उन तक ही सीमित नहीं होते हैं, बल्कि उनका लाभ उन तक भी पहुँचता है जो स्वयं उतने शिक्षित एवं स्वस्थ नहीं हैं जबकि भूमि, श्रम और भौतिक पूँजी के संदर्भ में ऐसा नहीं होता है।

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