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RBSE Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

RBSE Class 9 Social Science Solutions Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

पाठ-सार

अवलोकन भारत में निर्धनता की समस्या एक विकट समस्या है। इस अध्याय में निर्धनता की समस्या का विस्तृत अध्ययन किया गया है। भारत में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में निर्धनता व्याप्त है तथा भारत में लगभग 27 करोड़ लोग निर्धनता का जीवन जी रहे हैं। अत: भारत के सम्मुख निर्धनता की एक कठिन चुनौती है। सामान्य अर्थ में निर्धनता का तात्पर्य लोगों को उनकी मूलभूत आवश्यकता प्राप्त न होना है अर्थात् यदि लोगों को भोजन, आवास, स्वच्छ जल, स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि पर्याप्त मात्रा में प्राप्त न हों तो उन्हें निर्धन माना जाएगा।
सामाजिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में निर्धनंता- सामाजिक वैज्ञानिकों की दृष्टि से निर्धनता के अनेक सूचक हैं। वर्तमान में निर्धनता को निरक्षरता स्तर, कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोधी क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुँच की कमी आदि सामाजिक सूचकों के माध्यम से देखा जाता है।
निर्धनता रेखा-निर्धनता रेखा की अवधारणा एक सर्वमान्य सामान्य विधि आय अथवा उपभोग स्तरों पर आधारित है। यदि कोई व्यक्ति इस निर्धारित आय अथवा उपभोग स्तर से नीचे रह जाता है तो वह निर्धन माना जाएगा। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में जिस व्यक्ति को 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन से कम मिलती है वह निर्धन माना जाता है। इन कैलोरी आवश्यकताओं को खरीदने के मौद्रिक आधार पर वर्ष 2011-12 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में 816 रुपये प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में 1000 रुपये प्रतिमाह किया गया था। भारत में निर्धनता सम्बन्धी आँकड़े राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (N.S.S.O.) द्वारा एकत्रित किए जाते हैं।
निर्धनता के अनुपात – भारत में निर्धनता अनुपात में वर्ष 1993-94 में लगभग 45 प्रतिशत से वर्ष 2011-12 में 22 प्रतिशत तक महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है। देश में 2004-05 में 40.7 करोड़ लोग निर्धनता रेखा से नीचे थे। यह संख्या वर्ष 2011-12 में 27 करोड़ हो गई।
असुरक्षित समूह-निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों का अनुपात सभी सामाजिक समूहों और आर्थिक वर्गों में एक समान नहीं है। भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार इस दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित हैं। इसी प्रकार आर्थिक समूहों में ग्रामीण कृषक एवं शहरी अनियत मजदूर परिवार सर्वाधिक असुरक्षित हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इनकी स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है; किन्तु अभी भी यह सुधार अपर्याप्त है ।
अंतर्राज्यीय असमानताएँ – भारत में निर्धनता अनुपात के आधार पर विभिन्न राज्यों में काफी असमानता पाई जाती है। देश में मध्यप्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं ओडिशा में निर्धनता की समस्या काफी गंभीर है। देश में कुछ राज्यों में निर्धनता का प्रतिशत काफी कम है तथा उनमें तीव्र गति से निर्धनता में गिरावट आई है।
वैश्विक निर्धनता परिदृश्य – वैश्विक स्तर पर भी निर्धनता के अनुपात में काफी असमानता है। पिछले वर्षों में चीन एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में निर्धनता में विशेष कमी आई है, जबकि कई देशों में निर्धनता में धीमी गति से गिरावट आई है। अफ्रीका में निर्धनता अनुपात काफी ऊँचा है ।
निर्धनता के कारण-भारत में निर्धनता की समस्या के अनेक कारण हैं, जो निम्न प्रकार हैं- ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा शोषण, जनसंख्या की उच्च दर से वृद्धि, रोजगार अवसरों में कमी, बेरोजगारी, आय की असमानता, भूमि सुधार की कमी, भूमि संसाधनों की कमी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण, आर्थिक कारण इत्यादि ।
निर्धनता विरोधी उपाय- भारत में सरकार ने निर्धनता निवारण हेतु अनेक प्रयास किए हैं, इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है- (1) आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन, (2) लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रम | सरकार ने निर्धनता निवारण हेतु आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा दिया है ताकि रोजगार अवसरों में वृद्धि हो सके। इसके अलावा सरकार ने अनेक निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम चलाए; जैसे- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, काम के बदले अनाज योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, अंत्योदय अन्न योजना इत्यादि ।
भावी चुनौतियाँ- भारत में निर्धनता में कमी आई है; परन्तु निर्धनता उन्मूलन अभी भी एक चुनौती बनी हुई है। इसके अतिरिक्त सभी को स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा एवं रोजगार सुरक्षा उपलब्ध कराना, लैंगिक समता, निर्धनों का सम्मान जैसी चुनौतियाँ भी हैं।

RBSE Class 9 Social Science निर्धनता : एक चुनौती InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
निर्धनता से सम्बद्ध निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा करें-
(i) भूमिहीनता
(ii) बेरोजगारी
(iii) परिवार का आकार
(iv) निरक्षरता
(v) खराब स्वास्थ्य/कुपोषण
(vi) बाल श्रम
(vii) असहायता।
उत्तर:
(i) भूमिहीनता-भूमिहीनता का तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति के पास कृषि भूमि न हो। भूमिहीनता की स्थिति में श्रमिक निर्धन होता है तथा दूसरों के यहाँ मजदूरी करता है।

(ii) बेरोजगारी-बेरोजगारी वह स्थिति होती है जब किसी काम करने के इच्छुक योग्य व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी दर पर रोजगार नहीं मिलता है। इससे निर्धनता बढ़ती है।

(iii) परिवार का आकार-परिवार का आकार परिवार के सदस्यों की संख्या से है। अधिक संख्या वाला परिवार बड़ा होता है तथा प्राय: यह परिवार निर्धन होता है। जबकि कम सदस्यों वाला परिवार छोटा एवं समृद्ध होता है।

(iv) निरक्षरता-निरक्षरता का तात्पर्य शिक्षा के अभाव से है। प्रायः निरक्षर व्यक्ति के पास रोजगार के कम अवसर होते हैं तथा कम आय ही कमा पाता है। अतः वह निर्धन होता है। शिक्षित व्यक्ति के पास रोजगार के अधिक अवसर होते हैं।

(v) खराब स्वास्थ्य/कुपोषण-खराब स्वास्थ्य वाला व्यक्ति या श्रमिक कम उत्पादक होता है, वह अधिक काम . नहीं कर पाता है। इस कारण उसकी आय कम होती है तथा वह निर्धन होता है।

(vi) बाल श्रम-बाल श्रम वह स्थिति होती है जिसमें बच्चों से आर्थिक क्रियाएँ करवाई जाती हैं। यह निर्धनता के कारण उत्पन्न समस्या है। निर्धनता के कारण माता-पिता बचपन से ही अपने बच्चों को काम पर लगा देते हैं।

(vii) असहायता-निर्धनता के कारण लोग असहाय हो जाते हैं तथा वे अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। (पृष्ठ 32

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प्रश्न 1.
विभिन्न देश विभिन्न निर्धनता रेखाओं का प्रयोग क्यों करते हैं?
उत्तर:
विभिन्न देशों की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं तथा अर्थव्यवस्था की स्थिति भी भिन्न होती है। विभिन्न देशों में अर्थव्यवस्था के भिन्न क्षेत्रों जैसे प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र की स्थिति भी भिन्न-भिन्न होती है। सभी देशों में निर्धनता को केवल एक ही मापदण्ड द्वारा नहीं मापा जा सकता है।
अतः विभिन्न देशों में विभिन्न निर्धनता रेखाओं का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
आपके अनुसार आपके क्षेत्र में न्यूनतम आवश्यक स्तर’ क्या होगा?
उत्तर:
भारत में निर्धनता निर्धारण हेतु ‘न्यूनतम आवश्यकता स्तर’ इतनी मासिक आय होनी चाहिए जिससे व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ जैसे भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा आदि अवश्य पूरी कर सके। यह लगभग 5,000 रुपये प्रतिमाह होना चाहिए।

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प्रश्न 1.
तालिका 3.1 का अध्ययन कीजिए और अग्रलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(अ) 1993-94 और 2004-05 के मध्य निर्धनता अनुपात में गिरावट आने के बावजूद निर्धनों की संख्या 40.7 करोड़ के लगभग क्यों बनी रही?
(ब) क्या भारत में निर्धनता में कमी की गतिकी ग्रामीण और शहरी भारत में समान है?
तालिका 3.1 : भारत में निर्धनता के अनुमान ( तेंदुलकर कार्यप्रणाली)


(स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18)
उत्तर:
(अ) भारत में 1993-94 और 2004-05 के मध्य निर्धनता अनुपात में गिरावट आने के बावजूद निर्धनों की संख्या 40 करोड़ के लगभग स्थिर इसलिए बनी रही क्योंकि इस अवधि में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई।

(ब) नहीं, भारत में निर्धनता में कमी की गतिकी ग्रामीण और शहरी भारत में समान नहीं है।

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प्रश्न 1.
तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सर्वाधिक है।
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के इस अध्याय में आरेख 3.2 के अनुसार सर्वाधिक निर्धनता अनुपात वाले राज्य–बिहार, ओडिशा व असम हैं।

प्रश्न 2.
तीन राज्यों की पहचान करें जहाँ निर्धनता अनुपात सबसे कम है।
उत्तर:
इस अध्याय में आरेख 3.2 के अनुसार सबसे कम निर्धनता अनुपात वाले राज्य-पंजाब, हिमाचल प्रदेश व केरल हैं।

RBSE Class 9 Social Science निर्धनता : एक चुनौती Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण मानव के लिए आवश्यक प्राथमिक आवश्यकताओं-रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा आदि की भौतिक मात्रा को रुपये में उनकी कीमतों से गुणा करके किया जाता है। वर्तमान निर्धनता रेखा के लिए सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकता पर आधारित है जो कि ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र के लिए 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ऊर्जा देने वाले भोजन से है।

प्रश्न 2.
क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
उत्तर:
निर्धनता निर्धारण का हमारा वांछित कैलोरी उपभोग का तरीका न्यूनतम मूलभूत आवश्यकताओं के उपभोग पर आधारित है, अतः यह तरीका सही है। ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी उपभोग एवं शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी उपभोग का मापदण्ड रखा है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोग अधिक शारीरिक पारिश्रमिक करते हैं अतः उन्हें अधिक कैलोरी उपभोग की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 3.
भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में वर्ष 1973 से निर्धनता के अनुपात में कमी आई है। भारत में निर्धनता की प्रवृत्तियों को अग्र तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है-
तालिका : भारत में निर्धनता के अनुमान (तेंदुलकर कार्यप्रणाली)

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि (1) भारत में वर्ष 1973-74 में निर्धनता अनुपात लगभग 55 प्रतिशत था वह वर्ष 2011-12 में 22 प्रतिशत रह गया है। अतः भारत में निर्धनता प्रतिशत में निरन्तर कमी होने की प्रवृत्ति है। (2) भारत में ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता का अनुपात शहरी क्षेत्र की तुलना में अधिक रहा है। (3) संख्या के आधार पर भारत में वर्ष 1973-74 में लगभग 32 करोड़ लोग निर्धनता की श्रेणी में आते थे जबकि वर्ष 2011-12 में 22 करोड़ लोग निर्धनता रेखा से नीचे निवास करते थे।

प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता में अन्तर-राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
भारत में वर्ष 2011-12 में लगभग 22 प्रतिशत जनसंख्या निर्धन थी; किन्तु भारत में विभिन्न राज्यों में निर्धनता अनुपात में काफी असमानता पाई गई है। सभी राज्यों में निर्धनता का अनुपात समान नहीं है। कुछ राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं ओडिशा में निर्धनता अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से ज्यादा है। बिहार और ओडिशा क्रमश: 33.7 और 32.6 प्रतिशत निर्धनता औसत के साथ दो सर्वाधिक राज्य बने हुए हैं। ओडिशा, मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण निर्धनता के साथ नगरीय निर्धनता भी अधिक है।

इसकी तुलना में केरल, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिमी बंगाल में निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है। इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश में भी निर्धनता अनपात काफी कम पाया जाता है। अतः स्पष्ट है कि देश में विभिन्न राज्यों में निर्धनता अनुपात में कमी तो आ रही है किन्तु अभी भी विभिन्न राज्यों में निर्धनता अनुपात में काफी असमानता पाई जाती है।

प्रश्न 5.
उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं।
उत्तर:
भारत में निम्नलिखित सामाजिक और आर्थिक समूह निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं-
(1) सामाजिक समूह-भारत में सामाजिक समूहों में सर्वाधिक असुरक्षित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार हैं। भारत में अनुसूचित जनजातियों में निर्धनता अनुपात लगभग 43 प्रतिशत एवं अनुसूचित जातियों में निर्धनता अनुपात लगभग 29 प्रतिशत रहा जो काफी अधिक है।

(2) आर्थिक समूह-भारत में आर्थिक दृष्टि से सबसे असुरक्षित वर्ग नगरीय अनियत मजदूरों एवं ग्रामीण खेतिहर मजदूरों का है। नगरीय अनियत मजदूरों में लगभग 34 प्रतिशत एवं ग्रामीण खेतिहर मजदूरों में लगभग 34 प्रतिशत लोग निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं। ये लोग निर्धनता रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।

प्रश्न 6.
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • राज्यों में कृषि वृद्धि दर में अन्तर का होना-पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य उच्च कृषि वृद्धि दर से निर्धनता कम करने में सफल रहे हैं।
  • मानव संसाधन विकास पर कम और अधिक ध्यान देना-केरल ने मानव संसाधन विकास पर अधिक ध्यान दिया है और उन राज्यों से निर्धनता को कम करने में सफल रहा है, जिनमें इस ओर कम ध्यान दिया गया है।
  • भूमि सुधार उपायों को लागू करने में अन्तर का होना-पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार उपायों से निर्धनता कम करने में सहायता मिली है।
  • अनाज के सार्वजनिक वितरण में अन्तर-आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु ने अनाज का सार्वजनिक वितरण कर निर्धनता में सुधार किया है।
  • अन्य कारण-(अ) राज्यों में जनसंख्या घनत्व में असमानता विद्यमान है। (ब) राज्यों के लोगों में शिक्षा के प्रतिशत की असमानता है। (स) राज्यों में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता में भी असमानता है।

प्रश्न 7.
वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में निर्धनता अनुपात में काफी असमानता पाई जाती है, हालांकि पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर निर्धनता में कमी आई है। विभिन्न देशों में 1990 में निर्धनता का अनुपात 36 प्रतिशत से गिरकर 2015 में 10 प्रतिशत हो गया है। चीन एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में निर्धनता में उल्लेखनीय कमी आई है, जबकि दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों-जैसे भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बंगलादेश, भूटान आदि में निर्धनता में धीमी गति से गिरावट आई है। अफ्रीका के देशों में निर्धनता अनुपात काफी ऊँचा है, जैसे सब सहारा अफ्रीका में निर्धनता अनुपात 2005 के 51 प्रतिशत से घटकर 2015 में 41 प्रतिशत हो गया है। रूस जैसे देशों में निर्धनता अनुपात में पुनः वृद्धि हुई है। अतः विश्व के विभिन्न देशों में निर्धनता अनुपात में काफी भिन्नता पाई गई है।

प्रश्न 8.
निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में सरकार ने निर्धनता उन्मूलन हेतु अनेक प्रयास किए हैं। सरकार की निर्धनता उन्मूलन की रणनीति को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित करना,
  2. लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रम प्रारंभ करना।

(1) आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित करना-सरकार ने देश में निर्धनता दूर करने हेतु आर्थिक संवृद्धि दर को बढ़ाने का प्रयास किया है। विकास की उच्च दर ने निर्धनता को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आर्थिक संवृद्धि की दर में वृद्धि होने से अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ता है जिससे उत्पादन एवं रोजगार दोनों में वृद्धि होती है। इससे मानव विकास में निवेश के लिए भी आवश्यक संसाधन उपलब्ध होते हैं। इन सबके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में निर्धनता को कम करने में मदद मिलती है।

(2) लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रम प्रारम्भ करना-सरकार ने देश में निर्धनता को कम करने हेतु निर्धनता उन्मूलन एवं रोजगार सृजन हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए हैं। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम निम्न प्रकार हैं-
(i) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम 2005-यह कार्यक्रम 2 फरवरी 2006 को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के नाम से प्रारम्भ किया गया तथा 2 अक्टूबर, 2009 को इसका नाम परिवर्तित कर दिया गया। इस योजना के तहत चयनित जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित परिवार के एक सदस्य को वर्ष में कम-से-कम 100 दिन अकशल श्रम वाले रोजगार की गारण्टी दी गई है। इसमें प्रस्तावित रोजगारों का एक-तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित है।

(ii) काम के बदले अनाज कार्यक्रम-यह कार्यक्रम निर्धनता उन्मूलन एवं रोजगार सृजन का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है जिसे वर्ष 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण निर्धनों के लिए था, जिन्हें मजदूरी पर रोजगार की आवश्यकता थी और जो अकुशल, शारीरिक काम करने के इच्छुक थे। यह शत प्रतिशत केन्द्र प्रायोजित कार्यक्रम था। इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना में मिला दिया गया था।

(iii) प्रधानमंत्री रोजगार योजना-यह योजना गरीबी निवारण एवं स्वरोजगार की योजना है। इस योजना को 2 अक्टूबर, 1993 को प्रारंभ किया गया जिसका प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों एवं छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। उन्हें लघु व्यवसाय तथा उद्योग स्थापित करने में सहायता दी जा

(iv) ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम-यह कार्यक्रम 1995 में प्रारंभ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। दसवीं योजना में इस कार्यक्रम के तहत 25 लाख नए रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया था।

(v) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना-यह कार्यक्रम 1 अप्रैल, 1999 को प्रारंभ किया गया, इसमें पूर्व में चले आ रहे छः कार्यक्रमों को मिला दिया गया। इस योजना का उद्देश्य सहायता प्राप्त स्वरोजगारियों को बैंक ऋण एवं सरकारी सब्सिडी के जरिये आय सृजक परिसम्पत्तियों के प्रावधान के जरिये गरीबी रेखा से ऊपर लाना है।

(vi) प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना-यह योजना वर्ष 2000 में प्रारंभ की गई। इस योजना के अन्तर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

(vii) अन्त्योदय अन्न योजना-यह योजना निर्धनता उन्मूलन हेतु वर्ष 2000 में अन्नपूर्णा योजना के साथ प्रारंभ की गई। इन योजनाओं में गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब को लक्षित किया गया तथा उन्हें सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाया गया।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दें-
(क)मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन है?
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
(क) मानव निर्धनता का तात्पर्य उस अवस्था से है, जिसके अन्तर्गत लोगों को उनकी आवश्यकता की मूलभूत जरूरतें; जैसे-भोजन, शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य सुविधाएँ, रोजगार की सुरक्षा, उनका आत्मसम्मान आदि नहीं मिल पाए।

(ख) निर्धन परिवारों की महिलायें, बच्चियाँ तथा वृद्ध लोग निर्धनों में भी सबसे निर्धन हैं।

(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005-यह अधिनियम सितम्बर, 2005 में पारित किया गया तथा फरवरी, 2006 में इसका शुभारंभ किया गया तथा 1 अप्रैल, 2008 को इसे सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया गया है। इस अधिनियम के तहत चयनित जिलों में ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित परिवार के एक सदस्य को वर्ष में कम से कम 100 दिन अकुशल श्रम वाले रोजगार की गारण्टी प्रदान की गई। इसमें प्रस्तावित रोजगारों का एक-तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित है। इसके अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी कोष तथा राज्य सरकार राज्य रोजगार गारंटी कोष की स्थापना करेगी। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत यदि आवेदक को 15 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं करवाया जाता है तो वह दैनिक बेरोजगारी भत्ते का अधिकारी होगा।

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