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RBSE Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

RBSE Class 9 Social Science Solutions History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

पाठ-सार

(1) सामाजिक परिवर्तन का युग

(i) उदारवादी, रैडिकल और रूढ़िवादी –
(1) फ्रांसीसी क्रांति के बाद यूरोप में सामाजिक परिवर्तन का युग आया।
(2) सामाजिक परिवर्तन के विचारों की दृष्टि से तीन प्रकार के समूह थे – (i) उदारवादी (ii) रैडिकल या आमूल परिवर्तनवादी तथा (iii) रूढ़िवादी । फ्रांसीसी क्रांति के बाद इन विविध विचारों के बीच टकराव हुए। 19वीं सदी में क्रांति और राष्ट्रीय कायान्तरण की विभिन्न कोशिशों ने इन धाराओं की सीमाओं और संभावनाओं को स्पष्ट कर दिया ।
(ii) औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन –
(1) उदारवादी तथा रैडिकल, दोनों औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न समस्याओं का हल खोजने की कोशिश कर रहे थे। उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में समाज परिवर्तन के इच्छुक बहुत सारे कामकाजी स्त्री-पुरुष उदारवादी और रैडिकल समूहों व पार्टियों के इर्द-गिर्द गोलबन्द हो गये थे ।
( 2 ) यूरोप में 1815 में जिस तरह की सरकारें बनीं उनसे छुटकारा पाने के लिए कुछ राष्ट्रवादी, उदारवादी और रैडिकल आंदोलनकारी क्रांति के पक्ष में थे।
(iii) यूरोप में समाजवाद का आना –
(1) उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोप में समाजवाद का अच्छा प्रचार हो चुका था । बहुत से लोगों का ध्यान इसकी तरफ आकर्षित हो रहा था ।
(2) कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने समाजवाद के पक्ष में अनेक नये तर्क पेश किये। मार्क्स का मानना था कि जब तक निजी पूँजीपति मजदूरों के शोषण से मुनाफे का संचय करते जाएंगे तब तक मजदूरों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता ।
(iv) समाजवाद के लिए समर्थन –
(1) 1870 का दशक आते-आते पूरे यूरोप में समाजवादी विचार फैल चुके थे। अपने प्रयासों में समन्वय लाने के लिए समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनेशनल के नाम से एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था बना ली थी ।
(2) 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों और ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली। फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी ही एक पार्टी का गठन किया गया।
(3) 1914 तक यूरोप में समाजवादी कहीं भी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाये ।
( 2 ) रूसी क्रांति
1917 की अक्टूबर क्रांति के जरिये रूस की सत्ता पर समाजवादियों ने कब्जा कर लिया। फरवरी 1917 में राजशाही के पतन और अक्टूबर की घटनाओं को ही अक्टूबर क्रांति कहा जाता है। क्रांति के समय रूस की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियाँ निम्न थीं –
(i) रूसी साम्राज्य, 1914-1914 में रूस और उसके पूरे साम्राज्य पर जार निकोलस II का शासन था। इसमें रूसी आर्थोडॉक्स क्रिश्चयैनिटी को मानने वाले बहुमत में थे। लेकिन उसमें कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, मुस्लिम और बौद्ध थी थे ।
(ii) अर्थव्यवस्था और समाज –
(1) रूसी साम्राज्य की लगभग 85% जनता आजीविका के लिए खेती पर निर्भर थी ।
(2) उद्योग बहुत कम थे। सेंट पीटर्सबर्ग और प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र थे । कारीगरों की वर्कशापों के साथ-साथ बड़ेबड़े कल-कारखाने भी थे। ज्यादातर कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थे। कहीं-कहीं कारीगरों और कारखाना मजदूरों की संख्या लगभग बराबर थी ।
(3) सामाजिक स्तर पर मजदूर बँटे हुए थे। मजदूर संगठन बहुत कम थे। फिर भी किसी मजदूर को नौकरी से निकालने पर मजदूर हड़तालें होती थीं ।
(iii) रूस में समाजवाद –
(1) 1914 से पहले रूस में सभी राजनैतिक पार्टियाँ गैर कानूनी थीं ।
(2) समाजवादियों द्वारा 1898 में ‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक श्रमिक पार्टी’ का गठन किया गया था।
(3) 1900 में समाजवादियों ने रूस के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘समाजवादी क्रांतिकारी पार्टी’ का गठन किया जिसने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
(4) किसानों और सांगठनिक रणनीति के प्रश्नों पर समाजवादी पार्टी में गहरे मतभेद थे।
(iv) उथल-पुथल का समय –
(1) रूस एक निरंकुश राजशाही था ।
(2) 1904 में कीमतों की वृद्धि से वास्तविक वेतन में 20 प्रतिशत तक गिरावट आ गयी ।
(3) मजदूर संगठनों में सदस्यता बढ़ी |
(4) मजदूरों की कार्यस्थिति में सुधारों की माँग के साथ मजदूरों ने हड़ताल कर दी। पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी जिसमें 100 से ज्यादा मजदूर मारे गए । इतिहास में यह घटना ‘खूनी रविवार’ के नाम से जानी जाती है।
(5) 1905 की क्रांति की शुरूआत इसी घटना से हुई थी ।
(v) पहला विश्व युद्ध और रूसी साम्राज्य) –
(1) 1914 में दो यूरोपीय गठबंधनों के बीच युद्ध छिड़ गया। )
(2) 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और आस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय मिली ।
(3) युद्ध से उद्योगों पर बुरा असर पड़ा ।
(4) मजदूरों की कमी हो गई तथा रोटी आटे की किल्लत पैदा हो गई।
( 3 ) पेत्रोग्राद में फरवरी क्रांति
1917 की अक्टूबर क्रांति के द्वारा रूस की सत्ता पर समाजवादियों ने कब्जा कर लिया । फरवरी, 1917 में राजशाही के पतन तथा अक्टूबर की घटनाओं को ही रूसी क्रांति कहा जाता है।
( 4 ) अक्टूबर के बाद क्या बदला
(i) 1917 की अक्टूबर क्रांति के बाद रूस में अनेक बदलाव आये । बोल्शेविक पार्टी का नाम बदल कर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया गया।
(ii) 1918 से 1920 तक रूस में भीषण गृह युद्ध चला। जनवरी, 1920 तक भूतपूर्व रूसी साम्राज्य के अधिकतर भाग पर बोल्शेविकों का नियन्त्रण कायम हो चुका था। इसके बाद बोल्शेविकों द्वारा समाजवादी समाज के निर्माण की ओर कदम बढ़ाये गये । शासन के लिए केन्द्रीकृत नियोजित व्यवस्था लागू की गई तथा एक विस्तारित शिक्षा व्यवस्था तथा सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराई गयी ।
(iii) 1927-1928 के आसपास रूस के शहरों में अनाज का संकट पैदा हो गया। अनाज की कमी बनी रहने पर खेतों के सामूहिकीकरण का फैसला लिया गया। 1929 से पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों (कोलखोज) में काम करने का आदेश जारी कर दिया। सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन में अधिक वृद्धि नहीं हुई ।
( 5 ) रूसी क्रांति और सोवियत संघ का वैश्विक प्रभाव
रूसी क्रांति का विश्व पर व्यापक प्रभाव पड़ा । अनेक देशों में साम्यवादी पार्टियों का गठन किया गया । सोवियत संघ की वजह से समाजवाद को एक वैश्विक पहचान एवं हैसियत मिल गई थी। लेकिन बीसवीं सदी के अन्त तक एक समाजवादी देश के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सोवियत संघ की प्रतिष्ठा काफी कम रह गई थी।

RBSE Class 9 Social Science यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति InText Questions and Answers

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प्रश्न 1.
निजी संपत्ति के बारे में पूँजीवादी और समाजवादी विचारधारा के बीच दो अंतर बताइए।
उत्तर:

पूँजीवादी विचारधारा समाजवादी विचारधारा
(1) पूँजीवादी निजी सम्पत्ति के पक्षधर थे। (1) समाजवादी मानते थे कि समस्त संपत्ति समाज के नियंत्रण में होनी चाहिए।
(2) पूँजीवादी मानते थे कि लाभ के अधिकारी फैक्ट्री मालिक ही होंगे। (2) समाजवादी मानते थे कि संपत्ति मजदूरों के कठिन श्रम का ही परिणाम है, इसलिए वे ही इसके अधिकारी हैं।

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प्रश्न 1.
रूस में 1905 में क्रांतिकारी उथल-पुथल क्यों पैदा हुई थी? क्रांतिकारियों की क्या माँगें थीं?
उत्तर:
(1) 1905 में क्रांतिकारी उथल-पुथल पैदा होने के कारण- आवश्यक वस्तुओं की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ीं कि वास्तविक वेतन में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई थी। प्युतिलोव आयरन वर्क्स से अनेक श्रमिकों को निकाल दिया गया था। इसलिए मजदूरों ने हड़ताल कर दी। मजदूर स्त्रियाँ, पुरुष तथा बच्चे शांतिपूर्ण ढंग से एक जुलूस के रूप में पादरी गैपॉन के नेतृत्व में जार को ज्ञापन देने जा रहे थे। परन्तु विन्टर पैलेस के सामने पहुंचने पर पुलिस तथा कोसैक्स द्वारा उन पर गोलियां बरसाई गईं, जिससे 100 से अधिक मजदूर मारे गए व 300 से अधिक घायल हुए। रूस में 1905 की क्रांतिकारी गतिविधियाँ इसी कारण हुईं।

(2) क्रांतिकारियों की माँगें थीं- केवल आठ घंटे काम, वेतनों में बढ़ोतरी, कार्य की परिस्थितियों में सुधार तथा नागरिक स्वतन्त्रता के अधिकारों की प्राप्ति।

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प्रश्न 1.
बॉक्स 2 देखें और वर्तमान कैलेण्डर के हिसाब से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की तिथि का पता लगाएँ।

बॉक्स 2
रूसी क्रान्ति की तारीख

रूस में 1 फरवरी, 1918 तक जूलियन कैलेंडर का अनुसरण किया जाता था। इसके बाद रूसी सरकार ने ग्रेगोरियन कैलेंडर अपना लिया जिसका अब सब जगह इस्तेमाल किया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर जूलियन कैलेंडर से 13 दिन आगे चलता है। इसका मतलब है कि हमारे कैलेंडर के हिसाब से ‘फरवरी क्रांति’ 12 मार्च को और ‘अक्टूबर क्रांति’ 7 नवम्बर को सम्पन्न हुई थी।

उत्तर:
जूलियन कैलेंडर के अनुसार रूस में 23 फरवरी को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का नाम दिया गया था। वर्तमान कैलेंडर जूलियन कैलेंडर से आगे चलता है अतः 23 फरवरी से 13 दिन आगे 8 मार्च आता है। अतः वर्तमान कैलेंडर के हिसाब से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की तिथि 8 मार्च है।

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प्रश्न 1.
भारतीयों (शौकत उस्मानी और रबीन्द्रनाथ टैगोर) को सोवियत संघ में सबसे प्रभावशाली बात क्या दिखाई दी?
उत्तर:
शौकत उस्मानी ने उस समानता की प्रशंसा की जो रूसी क्रांति अपने साथ लाई थी। उन्होंने कहा कि वे असली समानता की भूमि में आ गए हैं। उनका मत था कि यहाँ गरीबी के बावजूद लोग खुश और संतुष्ट थे। लोगों को आपस में मिलने-जुलने से रोकने के लिए जाति या धर्म की कोई दीवार नहीं थी।

रबीन्द्रनाथ टैगोर रूसी क्रांति के परिणामों से प्रभावित थे। उनका कहना था कि अभिजात वर्ग का कोई भी सदस्य गरीबों या मजदूरों का शोषण नहीं कर सकता था। अब कोई भी अंधकार में नहीं था क्योंकि सदियों से छुपे लोग अब खुले में आ गये थे। इन्हें सबसे प्रभावशाली यह लगा कि बहुत कम समय में ही इन लोगों ने अज्ञानता और बेसहारेपन के पहाड़ को उतार फेंका था।

प्रश्न 2.
ये लेखक किस चीज को नहीं देख पाए?
उत्तर:
दोनों लेखक ये देख पाने में असफल रहे कि बोल्शेविक पार्टी ने किस प्रकार सत्ता हथियाई और समाजवाद के नाम पर दमनकारी नीतियाँ अपनाकर देश पर राज किया। यह न तो न्यायपूर्ण था और न ही स्थायी। इसीलिए अंत में इसकी हार हुई।

RBSE Class 9 Social Science यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 से पहले कैसे थे?
उत्तर:
1905 से पहले रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट हैं-
(1) सामाजिक हालात-

  • देहाती क्षेत्रों में समाज किसानों, सामन्तों तथा चर्च के बीच बंटा हुआ था। देहात की ज्यादातर जमीन पर किसान खेती करते थे लेकिन विशाल सम्पत्तियों पर सामन्तों, राजशाही और आर्थोडोक्स चर्च का कब्जा था।
  • किसान बहुत धार्मिक स्वभाव के थे। वे सामन्तों और नवाबों का बिल्कुल भी सम्मान नहीं करते थे। इन्हें सामन्तों के अनेक अत्याचारों का सामना करना पड़ता था।
  • कुलीन और मध्यम वर्ग के लोग किसान तथा मजदूरों को हीन तथा घृणा की दृष्टि से देखते थे। पादरी वर्ग भी जनसाधारण वर्ग के लोगों का शोषण करता था।
  • शहरी समाज कारीगरों, मजदूरों तथा कुलीनों एवं उद्योगपतियों में बंट हुआ था।
  • सामाजिक स्तर पर मजदूर बंटे हुए थे। मजदूरों की तरह किसान भी बंटे हुए थे।
  • महिलाएँ भी कारखानों में काम करती थीं लेकिन उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिलता था।

(2) आर्थिक हालात-

  • 1905 से पूर्व रूसी साम्राज्य की लगभग 85 प्रतिशत जनता आजीविका के लिए कषि पर निर्भर थी। इनमें अधिकतर श्रमिक या छोटे किसान थे। उनकी दशा बहुत दयनीय थी।
  • देहात की ज्यादातर जमीन पर किसान खेती करते थे लेकिन विशाल सम्पत्तियों पर सामंतों, राजशाही और ऑर्थोडॉक्स चर्च का कब्जा था।
  • शहरों में अधिकतर लोग कारीगर तथा मजदूर थे। ज्यादातर कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थे। बहुत सारे कारखाने 1890 के दशक में चालू हुए।
  • मजदूरों को बहुत कम वेतन दिया जाता था। उन्हें कारखानों में 10 से 12 घण्टों तक कार्य करना पड़ता था। महिलाओं का वेतन पुरुषों से कम होता था।
  • जार की निरंकुश सरकार ने श्रमिकों, मजदूरों तथा किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया था।

(3) राजनीतिक हालात-

  • 1905 से पहले रूस में निरंकुश राजशाही थी। वहाँ अजवाबदेह तथा स्वेच्छाचारी शासन था। जारशाही की निरंकुशता के कारण सर्वत्र असन्तोष व्याप्त था। इसी समय रूस-जापान युद्ध में रूसी सेनाओं को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। इसने जनता के असन्तोष को चरम पर पहुँचा दिया था।
  • जार राष्ट्रीय संसद के अधीन नहीं था। अतः जार के समक्ष संसद का कोई महत्त्व नहीं था।
  • मजदूरों, भूमिहीनों तथा महिलाओं को शासन में भाग लेने का कोई अधिकार नहीं था। प्रशासन अयोग्य और भ्रष्ट अधिकारियों के हाथों में था।
  • राजनीतिक दलों के गठन को मान्यता नहीं थी।

प्रश्न 2.
1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
उत्तर:
1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले निम्न स्तरों पर भिन्न थी-

  • रूसी साम्राज्य की लगभग 85 प्रतिशत आबादी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर थी जबकि यूरोप के बाकी देशों में खेती पर आश्रित जनता का प्रतिशत इतना नहीं था।
  • रूसी साम्राज्य के किसान अपनी जरूरतों के साथ-साथ बाजार के लिए भी अन्न उपजाते थे जबकि अधिकांशतः यूरोप में ऐसा नहीं था।
  • रूसी किसानों की जोतें अन्य यूरोपीय देशों के किसानों की तुलना में छोटी थीं।
  • रूस में उद्योग कम थे। अतः मजदूर भी कम थे, जबकि यूरोप के अन्य देशों में मजदूरों की संख्या अधिक थी।
  • रूस के किसानों तथा मजदूरों में यूरोप के अन्य देशों की अपेक्षा संगठन की कमी थी।
  • रूस के किसान स्वाभाविक रूप से समाजवादी भावना वाले लोग थे। वे समय-समय पर अपनी जमीन कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक परिवार की जरूरत के हिसाब से किसानों को जमीन बाँटता था, जबकि यूरोप के बाकी देशों में ऐसा नहीं था।

प्रश्न 3.
1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर:
1917 में जार का शासन खत्म होने के निम्न कारण थे-
(1) निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासक-रूस में निरंकुश राजशाही थी। तत्कालीन जार निकोलस II भी निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासक था। उसकी नीतियों से प्रजा में असंतोष व्याप्त था।

(2) 1905 की क्रांति-1905 की क्रांति ने जार के शासन के खात्मे की भूमिका तैयार कर दी थी। 1905 की क्रांति के दौरान जार को एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद या ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति देनी पड़ी थी। 25 फरवरी, 1917 को इस ड्यूमा की बर्खास्तगी भी जार के शासन के अन्त का प्रमुख कारण बनी।

(3) प्रथम विश्व युद्ध-1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने पर जार ने रूस के भी युद्ध में भाग लेने की घोषणा कर दी। शुरू में जनता ने जार का साथ दिया। युद्ध लम्बा खिंचने पर जार ने ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया। इससे जार के प्रति जनसमर्थन कम होने लगा।

इसके साथ ही जर्मनी और आस्ट्रिया में रूस की भारी पराजय हुई। 1917 तक 70 लाख व्यक्ति मारे जा चुके थे तथा 30 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गये थे। सैनिक युद्ध के विरुद्ध हो गये थे। सेना की शक्ति बढ़ाने के लिए किसानों तथा श्रमिकों को सेना में जबरदस्ती भर्ती किया जाने लगा। इससे लोगों में असन्तोष था।

(4) तात्कालिक कारण-

  • 1916-17 में रूस में अनाज (रोटी तथा आटे) की भारी किल्लत हो गई। रोटी की दुकानों पर अक्सर दंगे होने लगे।
  • 22 फरवरी को पेत्रोग्राद में एक फैक्ट्री में तालाबंदी घोषित कर दी गई। इसके समर्थन में 50 अन्य फैक्ट्रियों के मजदूरों ने भी हड़ताल कर दी।
  • 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया। इसके विरोध में भारी संख्या में लोगों ने सड़कों पर प्रदर्शन किये।
  • 27 फरवरी को रोटी, तनख्वाह, काम के घंटों में कमी तथा लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते असंख्य लोग सड़कों पर जमा हो गए। सरकार ने घुड़सवार फौज को प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसाने का आदेश दिया किन्तु सैनिक टुकड़ियों ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया। कुछ अन्य रेजीमेन्टों ने भी बगावत कर दी तथा मजदूरों के साथ मिल गये।
  • उसी शाम को सिपाहियों तथा मजदूरों ने मिलकर पेत्रोग्राद सोवियत का निर्माण कर लिया। सैनिक कमाण्डरों की सलाह पर 2 मार्च को जार ने गद्दी छोड़ दी।

इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से 1917 में जार का शासन खत्म हो गया।

प्रश्न 4.
दो सूचियाँ बनाइये : एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्टूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
उत्तर:
सूची I
फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाएँ तथा प्रभाव

  • 22 फरवरी, 1917-नेवा नदी के दाहिने किनारे की एक फैक्ट्री में तालाबंदी।
  • 23 फरवरी, 1917-50 फैक्ट्रियों के श्रमिकों की हड़ताल।
  • 25 फरवरी, 1917-सरकार द्वारा ड्यूमा का स्थगन। राजनीतिज्ञों द्वारा इस कदम की आलोचना।
  • 26 फरवरी, 1917-श्रमिक बहुत बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे।
  • 27 फरवरी, 1917-श्रमिकों द्वारा पुलिस मुख्यालय पर हमला।
  • 2 मार्च, 1917-जार का पदत्याग।

प्रभाव-

  • जार के शासन का अंत।
  • अंतरिम सरकार का गठन।
  • जनसभाओं तथा संगठन बनाने पर प्रतिबन्ध हटाये गये।

सूची II
अक्टूबर क्रांति की मुख्य घटनाएँ तथा प्रभाव

  • अप्रैल, 1917-लेनिन का रूस वापस लौटना तथा उसके द्वारा अप्रैल थीसिस की मांगें जारी करना।
  • जुलाई, 1917-अंतरिम सरकार के विरुद्ध बोल्शेविकों का प्रदर्शन।
  • 16 अक्टूबर, 1917-लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता हथियाने के लिए राजी कर लिया। इस कार्य हेतु एक सैन्य क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया।
  • 24 अक्टूबर, 1917-विद्रोह की शुरुआत हुई। सरकार समर्थक सैनिकों द्वारा दो बोल्शेविक समाचारपत्रों की इमारतों तथा टेलीफोन व टेलीग्राफ विभागों पर नियंत्रण किया गया। विन्टर पैलेस की सुरक्षा का प्रबंध किया गया। इन सरकारी गतिविधियों के जवाब में सैन्य क्रांतिकारी समिति के सदस्यों ने अनेक सैन्य ठिकानों पर कब्जा किया। रात होते होते पूरा शहर समिति के नियंत्रण में आ गया और मंत्रियों ने त्यागपत्र दे दिए।
  • दिसम्बर, 1917 तक मॉस्को-पेत्रोग्राद क्षेत्र पर बोल्शेविकों का पूर्ण नियंत्रण हो गया।

प्रभाव-

  • अन्तरिम सरकार का पतन।
  • बोल्शेविकों का सत्ता पर नियन्त्रण तथा साम्यवादी दौर की शुरुआत।
  • समस्त उद्योगों तथा बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
  • भूमि को सामाजिक सम्पत्ति घोषित कर दिया गया।

प्रश्न 5.
बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रांति के फौरन बाद कौन-कौन से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर:
बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रांति के तुरंत बाद निम्नलिखित परिवर्तन किये-

  • अधिकतर उद्योग और बैंक राष्ट्रीयकृत कर दिये गये और उनका स्वामित्व व प्रबंधन सरकार के नियंत्रण में आ गया।
  • भूमि को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया तथा किसानों को अभिजात वर्ग की जमीनों पर नियंत्रण करने का अधिकार दिया गया।
  • शहरों में मकान-मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़कर उनके बड़े घरों के अनेक छोटे-छोटे हिस्से कर उनमें बेघरबार कई परिवारों को आवास दिया गया।
  • अभिजात वर्ग द्वारा पुरानी पदवियों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई।
  • सेना और सरकारी अधिकारियों के लिए वर्दियां बदल दी गईं।
  • बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर रूसी साम्यवादी पार्टी (बोल्शेविक) कर दिया गया।
  • अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस को देश की संसद का दर्जा दे दिया गया तथा रूस अब एकदलीय राजनीतिक व्यवस्था वाला देश बन गया। ट्रेड यूनियनों पर पार्टी का नियंत्रण हो गया तथा गुप्तचर पुलिस बोल्शेविकों की आलोचना करने वालों को दंडित करती थी।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिये :
(1) कुलक
(2) ड्यूमा
(3) 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार
(4) उदारवादी
(5) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर:
(1) कुलक-रूस में सम्पन्न किसानों को कुलक कहा जाता था। 1928 में साम्यवादी पार्टी के सदस्यों ने ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया तथा कुलकों के खेतों में अनाज उत्पादन व संग्रहण का निरीक्षण किया। कुलकों के ठिकानों पर छापे भी मारे गये। स्टालिन के सामूहिकीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत रूस में कुलकों का सफाया किया गया।

(2) ड्यूमा-रूस में निर्वाचित परामर्शी संसद को ड्यूमा कहते हैं। इसे 1905 की क्रांति के पश्चात् जार द्वारा गठित किया गया था। अपनी सत्ता पर किसी भी तरह की जवाबदेही या अंकुश से बचने के लिए जार इसे बार-बार बर्खास्त कर देता था। उसने प्रथम ड्यूमा 75 दिनों के भीतर स्थगित कर दी। दूसरी ड्यूमा को 3 महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया। तीसरी ड्यूमा में उसने रूढ़िवादी राजनेताओं को भर डाला।

(3) 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार-फैक्ट्री मजदूरों का 31 प्रतिशत महिला कामगारों का था। परंतु उन्हें पुरुष श्रमिकों से कम मजदूरी मिलती थी। अधिकतर फैक्ट्रियों में उन्हें पुरुषों की मजदूरी का आधा या तीन-चौथाई ही दिया जाता था। इसी कारण उन्होंने विद्रोह में पुरुषों का साथ दिया। 23 फरवरी, 1917 को कई फैक्ट्रियों में महिला कामगारों ने हड़ताल की। बाद में इस दिन को ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ का नाम दिया गया। वर्तमान कैलेंडर के अनुसार यह तिथि 8 मार्च है। रूसी क्रांति के दौरान महिलाएँ पुरुष क्रांतिकारियों को प्रेरित करती थीं। मार्फा वासीलेवा नामक एक महिला श्रमिक ने अकेले ही हड़ताल की घोषणा की। जब मालिकों ने उसके पास डबलरोटी का टुकड़ा भेजा, तो उसने वह ले लिया परंतु काम पर वापस जाने से इनकार कर दिया। उसने कहा, “जब बाकी सारे भूखे हों तो मैं अकेले पेट भरने की नहीं सोच सकती।”

(4) उदारवादी-

  • उदारवादी रूस में सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर थे।
  • वे राजवंश की अनियंत्रित शक्ति के विरुद्ध थे।
  • वे चाहते थे कि राष्ट धर्म-निरपेक्ष हो. अर्थात सभी धर्मों का सम्मान हो।
  • वे सरकार के विरुद्ध व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा चाहते थे।
  • वे चाहते थे कि राष्ट्र को एक निर्वाचित संसद द्वारा गठित और एक स्वतंत्र न्यायपालिका द्वारा लागू विधान के अनुसार चलाया जाए।
  • किंतु वे लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते थे। वे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के भी विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि केवल सम्पत्तिधारी पुरुष ही वोट दें।

(5) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम-

  • रूस में अनाज की कमी को देखते हुए स्टालिन ने छोटे-छोटे खेतों के सामूहिकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ की क्योंकि वह मानता था कि छोटे-छोटे भूमि के टुकड़े आधुनिकीकरण में बाधा डालते हैं।
  • इसलिए कुलकों का सफाया कर तथा छोटे-छोटे किसानों से उनकी जमीन छीनकर राज्य के नियंत्रण में एक विशाल जमीन का टुकड़ा बनाया जाना था।
  • सभी किसानों को राज्य बाध्य करता था कि वे सामूहिक खेती में कार्य करें।
  • सामूहिक खेती करने के लिए बड़ी भूमि अर्जित करना ही स्टालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम कहलाया। इसके तहत ज्यादातर जमीन और साजो-सामान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में सौंप दिए गए। सभी किसान सामूहिक खेतों में काम करते थे और कोलखोज के मुनाफे को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था।
  • उसके इस कार्यक्रम की अनेक लोगों ने आलोचनाएँ भी की किन्तु उसने आलोचकों को सख्ती से दबा दिया।

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