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RBSE Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

RBSE Class 9 Social Science Solutions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

पाठ-सार

1. घुमन्तू चरवाहे और उनकी आवाजाही –
घुमंतू चरवाहे वे लोग होते हैं जो किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि रोजी-रोटी के जुगाड़ में एक जगह से दूसरी जगह पर घूमते रहते हैं
( 1.1 ) पहाड़ों में –
(1) जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते हैं। ये सर्दी-गर्मी के अनुसार अलग-अलग चरागाहों में चले जाते हैं।
(2) हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में रहने वाला चरवाहों का समुदाय ‘गद्दी’ कहलाता है। ये लोग मौसमी उतारचढ़ाव का सामना करने के लिए सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते हैं। ये लोग गाय-भैंस पालते हैं, जंगलों के किनारे रहते हैं और दूध, घी आदि बेचकर अपना पेट पालते हैं।
(3) कुमाऊँ तथा गुज्जर चरवाहे पाये जाते हैं। सर्दियों में ये भाबर तथा गर्मियों में बुग्याल की तरफ चले जाते हैं ।
(4) हिमालय के पर्वतों में भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग भी इसी तरह के चरवाहे हैं।
(1.2 ) पठारों, मैदानों और रेगिस्तानों में –
(1) पठारों, मैदानों तथा रेगिस्तानों में भी चरवाहे पाये जाते हैं।
(2) धंगर, गोल्ला, कुरुमा, कुरुबा आदि पठारी प्रदेश के चरवाहे हैं।
(3) मैदानी प्रदेश का प्रमुख चरवाहा समुदाय ‘बंजारा’ है।
(4) राजस्थान के रेगिस्तान में ‘राइका’ समुदाय चरवाही का काम करता है ।
2. औपनिवेशिक शासन और चरवाहों का जीवन –
 औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिन्दगी में अनेक परिवर्तन आये। इसके निम्न कारण थे….
(i) अंग्रेज सरकार द्वारा देश के विभिन्न भागों में परती भूमि के विकास के नियम बनाकर गैर-खेतिहर जमीन को अपने कब्जे में लेकर खास लोगों को उसे खेती योग्य बनाने के लिए दी गई। ऐसी अधिकतर जमीनें चरागाहों की थीं। इस तरह खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे और चरवाहों के लिए समस्याएँ पैदा होने लगीं।
(ii) वन अधिनियम लागू कर चरवाहों के जंगल में प्रवेश पर रोक लगा दी गई जो पहले बहुमूल्य चारे के स्रोत थे।
(iii) अंग्रेजी सरकार द्वारा घुमंतू लोगों को अपराधी माना जाता था। अपराधी जनजाति अधिनियम द्वारा चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया गया।
(iv) लगान में वृद्धि तथा चरवाही टैक्स लगाया गया। चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक एक जानवर पर टैक्स वसूला जाने लगा।
( 2.1 ) इन बदलावों ने चरवाहों की जिंदगी को किस तरह प्रभावित किया?
(1) इन बदलावों से चरागाहों का उपलब्ध क्षेत्र सिकुड़ने लगा।
(2) चरागाह सदा जानवरों से भरे रहने लगे।
(3) चरागाहों के बेहिसाब इस्तेमाल से चरागाहों का स्तर गिरने लगा तथा जानवरों के लिए चारा कम पड़ने लगा तथा जानवरों की सेहत और संख्या कम होने लगी।
( 2.2 ) चरवाहों ने इन बदलावों का सामना कैसे किया ?
(1) कुछ चरवाहों ने अपने जानवरों की संख्या ही कम कर दी।
(2) कुछ चरवाहों ने नए-नए चरागाह ढूँढ लिये ।
(3) कुछ धनी चरवाहे जमीन खरीद कर एक जगह बस कर रहने लगे और खेती या व्यापार करने लगे।
(4) कुछ चरवाहे मजदूर बन गए। वे खेतों या कस्बों में मजदूरी करते दिखाई देने लगे।
3. अफ्रीका में चरवाहा जीवन –
(1) अफ्रीका में दुनिया की आधी से भी ज्यादा चरवाहा आबादी रहती है। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे समुदाय शामिल हैं। ये अर्द्धशुष्क घास के मैदानों या सूखे रेगिस्तानों में रहते हैं तथा गाय-बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार और यातायात सम्बन्धी कार्य भी करते हैं । कुछ चरवाहे चरवाही के साथ-साथ खेती भी करते हैं ।
(2) इन चरवाहों के जीवन में औपनिवेशिक तथा उत्तर-औपनिवेशिक काल में गहरे बदलाव आए जैसे- इनकी जमीनें छीन ली गईं, इनकी आवाजाही पर पाबंदियाँ लगा दी गईं आदि ।
(3.1) चरागाहों का क्या हुआ?
(1) अफ्रीका के मासाई समुदाय के चरागाह दिनोंदिन सिमटे जा रहे हैं।
(2) सरकार ने गोरों को बसाने हेतु बेहतरीन चरागाहों को अपने कब्जे में ले लिया। मासाइयों की 60 फीसदी जमीन उनसे छिन गई ।
(3) पूर्वी अफ्रीका में भी खेती के प्रसार के साथ-साथ चरागाह खेती में बदलते गए।
(4) बहुत सारे चरागाहों को शिकारगाह बना दिया गया।
(5) अफ्रीका की अन्य जगहों पर भी चरवाहों को ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
(6) एक छोटे से क्षेत्र में लगातार चराई से चरागाहों का स्तर गिरने लगा और चारे की कमी से मवेशियों की पेट भरने की समस्या स्थायी बन गई।
( 3.2 ) सरहदें बन्द हो गईं-
(1) औपनिवेशिक काल में मासाइयों की तरह अन्य चरवाहों को भी विशेष आरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं में कैद कर दिया गया। अब ये समुदाय इन आरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं के पार आ-जा नहीं सकते थे ।
(2) चरवाहों को गोरों के क्षेत्रों में पड़ने वाले बाजारों में दाखिल होने से भी रोक दिया गया।
(3) नई पाबंदियों और बाधाओं के कारण इनकी चरवाही तथा व्यापारिक दोनों प्रकार की गतिविधियों पर बुरा असर पड़ा।
( 3.3 ) जब चरागाह सूख जाते हैं-
( 1 ) किसी वर्ष जब बारिश न होने से चरागाह सूख जाते हैं, तो उस साल यदि वे अपने मवेशियों को किसी हरेभरे क्षेत्र में न ले जाएं तो उनके सामने भुखमरी की समस्या आ जाती है ।
(2) औपनिवेशिक काल में मासाइयों को एक निश्चित क्षेत्र में कैद कर दिया गया तथा सूखे के दिनों में उन्हें बेहतरीन चरागाहों में जाने से रोक दिया गया। इसलिए सूखे के सालों में मासाइयों के बहुत सारे मवेशी भूख और बीमारियों के कारण मारे जाते थे। इससे चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई ।
( 3. 4 ) सब पर एक जैसा असर नहीं पड़ा –
(1) औपनिवेशिक काल में मासाईलैंड में आए बदलावों से सारे चरवाहों पर एक जैसा असर नहीं पड़ा ।
(2) अंग्रेज सरकार ने कई मासाई उपसमूहों के मुखिया तय कर दिए और अपने-अपने कबीले के सारे मामलों की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी।
( 3 ) हमलों और लड़ाइयों पर पाबन्दी लगा दी। इससे वरिष्ठजनों और योद्धाओं, दोनों की परम्परागत सत्ता बहुत कमजोर हो गई ।
(4) सरकार द्वारा नियुक्त किए गए मुखियाओं की नियमित आय बन गई थी । वे जानवर, साजो-सामान व जमीन खरीद सकते थे। उनमें से ज्यादातर शहरों में बस गए और व्यापार करने लगे। उनकी चरवाही व गैर- चरवाही दोनों प्रकार की आय थी ।
(5) जो चरवाहे सिर्फ चरवाही पर निर्भर थे, बुरे वक्त का सामना करने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं थे। ऐसी स्थिति में वे कच्चा कोयला जलाने, सड़क व भवन निर्माण कार्य में लग जाते थे।
(6) अब अमीर और गरीब चरवाहों के बीच नया भेदभाव पैदा हुआ।
(7) फिर भी चरवाहे बदलते समय के हिसाब से स्वयं को ढालते हैं – (i) वे अपनी सालाना आवाजाही का रास्ता बदलते हैं, (ii) जानवरों की संख्या कम कर लेते हैं, (iii) नये इलाकों में जाने हेतु लेन-देन करते हैं तथा (iv) रियायत व मदद हेतु सरकार पर राजनीतिक दबाव डालते हैं, (v) अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखते हैं।

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प्रश्न 1.
संक्षेप में बताइए कि चरवाहा परिवारों के औरत-मर्द क्या-क्या काम करते हैं?
उत्तर:
चरवाहा परिवारों के औरत-मर्द निम्न कार्य करते हैं-

  • पुरुष मुख्यतः मवेशियों को चराने का कार्य करते हैं तथा इसके लिए वे कई सप्ताहों तक अपने घरों से दूर रहते हैं। इसके अलावा वे थोड़ी-बहुत खेती भी करते हैं।
  • महिलाएं अपने सिर पर टोकरी रखकर रोज बाजार जाती हैं। इन टोकरियों में मिट्टी के छोटे-छोटे बर्तनों में दैनिक खान-पान की चीजें; जैसे-दूध, मक्खन, घी आदि होती हैं। इन्हें बेचकर अपना घर चलाती हैं।

प्रश्न 2.
आपकी राय में चरवाहे जंगलों के आसपास ही क्यों रहते हैं?
उत्तर:
मेरी राय में चरवाहे निम्न कारणों से जंगलों के आसपास ही निवास करते हैं-

  • जंगल के छोर पर छोटे-छोटे गाँवों में रहते हुए वे जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर कृषि-कार्य करते हैं।
  • वे अपने मवेशियों तथा उनसे प्राप्त उत्पादों को नजदीक के शहरों में बेच पाते हैं।
  • कुछ लोग अपने मवेशियों को जंगलों में चराने ले जाते हैं तथा कुछ लोग खेतों में कृषि-कार्य करते हैं तथा शहरों में अपने उत्पाद तथा पुआल एवं जलावन की लकड़ी आदि बेचते हैं।

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प्रश्न 1.
मान लीजिए कि जंगलों में जानवरों को चराने पर रोक लगा दी गई है। इस बात पर निम्नलिखित की दृष्टि से टिप्पणी कीजिये :
(1) एक वन अधिकारी
(2) एक चरवाहा।
उत्तर:
(1) एक वन अधिकारी-एक वन अधिकारी का यह कर्त्तव्य है कि वह वनों की सुरक्षा तथा देख-रेख करे। इसके लिए वह किसी चरवाहे को जंगल में अपने मवेशियों को चराने से रोके तथा उन्हें जंगल में प्रवेश करने से मना करे।

(2) एक चरवाहा-चरवाहे जंगलों पर निर्भर होते हैं। वे भेड़-बकरियाँ तथा अन्य दुधारू पशु पालते हैं जिन्हें चराने की आवश्यकता होती है। इन जानवरों को वे जंगलों में चराते हैं। जंगलों में प्रवेश पर रोक लगाने से इनके मवेशियों का पेट भरने की समस्या उत्पन्न होगी तथा उनके जीवन को खतरा होगा। साथ ही चरवाहों की आजीविका भी व्यापक रूप से प्रभावित होगी।

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प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?
उत्तर:
घुमंतू समुदायों को निम्न कारणों से बार-बार एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता है-
(1) घुमंतू समुदायों का मुख्य कार्य अपने जानवरों को चराना होता है। अतः वे चारे के लिए अनुकूल जगहों पर घूमते रहते हैं। इसमें मौसमी दशाएँ मुख्य भूमिका निभाती हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले घुमंतू समुदाय के लोग सर्दी-गर्मी के अनुसार अपना स्थान परिवर्तन करते हैं। दक्षिण के गोल्ला, कुरुमा तथा कुरुबा समुदाय के लोग बरसात 3 अनुसार एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। ये लोग सूखे महीनों में तटीय इलाकों की तरफ चले जाते हैं तथा वर्षा आने पर वापस चले आते हैं। इसी प्रकार राजस्थान के राइका भी बरसात और सूखे मौसम के अनुसार जगह बदलते हैं।

(2) घुमंतू समुदाय अच्छे चरागाहों की तलाश में जगह बदलते रहते हैं।

(3) रोजी-रोटी की तलाश तथा जीवनयापन की अनुकूल दशाओं हेतु वे एक से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे।

निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को लाभ-

  • निरन्तर आवागमन से किसी एक चरागाह के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से बच जाते हैं तथा उनमें दोबारा हरियाली व जिन्दगी भी लौट आती है।
  • घुमंतू समुदायों के मवेशी खेतों में घूम-घूम कर गोबर देते रहते हैं। इससे कृषि भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिये कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइये कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?
(1) परती भूमि नियमावली
(2) वन अधिनियम
(3) अपराधी जनजाति अधिनियम
(4) चराई कर।
उत्तर:
(1) परती भूमि नियमावली
कारण-

  • औपनिवेशिक सरकार के लिये भारत में सभी गैर-कृषि भूमि अनुत्पादक थी जिससे न तो राजस्व प्राप्त होता था और न ही कृषि-उत्पाद। अतः ऐसी भूमि को कृषि-कार्य के अंतर्गत लाने की आवश्यकता थी।
  • परती भूमि नियमावली द्वारा वे खेती का क्षेत्रफल बढ़ाकर आय में बढ़ोतरी करना चाहते थे।
  • दूसरे, वे कृषि से इंग्लैण्ड के लोगों के लिए जरूरत की चीजें पैदा कर उन्हें उपलब्ध कराना चाहते थे।

चरवाहों के जीवन पर प्रभाव-

  • गैर-कृषि भूमि चरवाही लोगों से छीनकर खास लोगों को दे दी गई।
  • इन खास लोगों को कई तरह की छूट दी गई तथा इन्हें प्राप्त भूमि को कृषि-कार्य के अंतर्गत लाने तथा वहाँ बसने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
  • इनमें से कछ लोगों को नये साफ किये गये क्षेत्रों में गाँवों का मखिया या प्रधान बना दिया गया।
  • जो भूमि छीनी गई वह ज्यादातर चरागाह भूमि थी जिसका उपयोग नियमित रूप से चरावाही समुदायों द्वारा अपने मवेशियों को चराने के लिये किया जाता था। इससे चरागाहों की कमी हुई तथा चरवाहों का जीवन प्रभावित हुआ।

(2) वन अधिनियमों-औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कारणों से वन अधिनियम बनाए-

  • औपनिवेशिक सरकार वनों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहती थी ताकि उसे पर्याप्त मात्रा में देवदार, सागौन या साल जैसी कीमती लकड़ी प्राप्त होती रहे।
  • औपनिवेशिक अधिकारियों का मानना था कि पशुओं के चरने से छोटे जंगली पौधे और पेड़ों की नई कोपलें नष्ट हो जाती हैं।
  • वन अधिकारियों का मानना था कि चरवाहों के रेवड़ छोटे पौधों को कुचल देते हैं तथा कोंपलों को खा जाते हैं। इससे नये पेड़ों की बढ़त रुक जाती है।

वन अधिनियमों का चरवाहों के जीवन पर प्रभाव-

  • कई जंगलों को आरक्षित घोषित कर दिया गया तथा वहाँ चरवाहों के घुसने पर पाबन्दी लगा दी गई।
  • उन्हें उन वनों में प्रवेश करने से रोका गया जो उन्हें अपने पशुओं के लिये चारा उपलब्ध कराता था।
  • जिन क्षेत्रों में उन्हें प्रवेश करने की अनुमति थी वहाँ भी उन्हें सिर्फ सीमित गतिविधि करने की छूट दी गई थी।
  • उन्हें वनों में प्रवेश करने के लिये परमिट लेना पड़ता था।
  • उनके वनों में प्रवेश करने तथा बाहर निकलने का समय निश्चित कर दिया गया था। साथ ही वनों में बिताये जाने वाले दिनों की संख्या भी निश्चित कर दी गई थी।
  • समय सीमा के उल्लंघन पर उन पर जुर्माना लगाया जाता था।

(3) अपराधी जनजाति अधिनियम-औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम निम्न कारणों से बनाया-

  • अंग्रेज अफसर घुमन्तू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखते थे। वे गाँव-गाँव जाकर अपनी चीजें बेचने वाले कारीगरों व व्यापारियों और हर मौसम में अपनी रिहाइश बदलने वाले चरवाहों पर यकीन नहीं कर पाते थे।
  • ऐसे घुमन्तू लोगों की पहचान करना और उन्हें नियंत्रित करना, एक जगह टिक कर रहने वाले लोगों की अपेक्षा कठिन था।
  • घुमन्तू लोगों को वे अशांतिप्रिय, कानून का पालन न करने वाले तथा अपराधी मानते थे।
  • इन सब कारणों से सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम बनाया।

चरवाहों के जीवन पर प्रभाव-

  • चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को जन्म तथा स्वभाव से अपराधी जनजाति घोषित कर दिया गया।
  • इस अधिनियम के लागू होने पर उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे केवल एक अधिसूचित ग्रामीण क्षेत्र में निवास करेंगे।
  • इन क्षेत्रों से बिना अनुमति के उन्हें बाहर निकलने की छूट नहीं थी।
  • ग्रामीण पुलिस द्वारा उन पर लगातार नजर रखी जाती थी।
  • उनकी बिना परमिट आवाजाही पर रोक लगा दी गई।

(4) चराई कर-
कारण-अंग्रेजी सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए चराई कर लगाया। इसके लिए चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर टैक्स वसूल किया जाने लगा। प्रति मवेशी टैक्स की दर तेजी से बढ़ती चली गई।

चरवाहों पर प्रभाव-

  • चरवाहों पर पहले ही बहुत बन्दिशें लग चुकी थीं। चराई कर लगने से उनकी आर्थिक स्थिति बहुत गिर गई।
  • 1850 से 1880 के दशकों के बीच टैक्स वसूली का कार्य ठेकेदार करते थे। वे चरवाहों से ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूल करते थे। बाद में सरकार अपने कारिन्दों के माध्यम से सीधे चरवाहों से टैक्स वसूलने लगी थी।
  • प्रत्येक चरवाहे को एक ‘पास’ दिया जाता था। पास दिखाकर तथा टैक्स चुकाकर ही चरागाहों में प्रवेश किया जा सकता था।

प्रश्न 3.
मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गये? कारण बताएँ।
उत्तर:
मासाई समुदाय के चरागाह छिनने के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-
(1) उपनिवेशवाद-19वीं शताब्दी के अन्त में, यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच, अफ्रीका के, क्षेत्रीय अधिकारों के लिए छीना-झपटी हो गई, जिस कारण क्षेत्र अनेक छोटे-छोटे उपनिवेशों में बँट गया। 1885 में ब्रिटिश कीनिया तथा जर्मन तांगायिका के बीच एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा खींचकर मासाईलैण्ड के दो बराबर टुकड़े कर दिये गये। श्रेष्ठ चरागाहों पर धीरे-धीरे गोरों को बसा दिया गया तथा मासाई लोगों को दक्षिण कीनिया तथा उत्तर तन्जानिया में एक छोटे से क्षेत्र में धकेल दिया गया। मासाई लोगों ने अपनी पूर्व उपनिवेशीय भूमि का 60% खो दिया। वे एक शुष्क प्रदेश तक ही सीमित हो गए जहाँ अनिश्चित वर्षा होती थी तथा घटिया चरागाह थे।

(2) कृषि का विस्तार-पूर्वी अफ्रीका में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने स्थानीय किसानों को कृषि का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया। जैसे-जैसे कृषि का विस्तार हुआ, चरागाह कृषि-खेतों में बदल गए।

(3) आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना-बहुत से चरागाहों को शिकार के लिए आरक्षित कर दिया गया जैसे कीनिया में मासाई मारा तथा सांबरु नेशनल पार्क तथा तंजानिया में सेरेन्गेटी पार्क। चरवाह जाने की आज्ञा न थी। इनमें से अधिकतर क्षेत्र मासाई पशुओं के लिए नियमित चरागाह भूमियाँ थीं। उदाहरण के लिए सेरेंगेटी नेशनल पाके का 14,760 वर्ग कि.मी. से भी अधिक क्षेत्र मासाइयों के चरागाहों पर कब्जा करके बनाया गया था।

(4) चरागाहों की गुणवत्ता में कमी-अच्छे चराई क्षेत्रों के छिन जाने तथा जल संसाधनों के अभाव से मासाई क्षेत्र पर दबाव पड़ा। छोटे से क्षेत्र में निरन्तर चराई से चरागाहों का स्तर गिर गया तथा चारे की हमेशा कमी रहने लगी।

(5) सरहदें बन्द होना-19वीं सदी के आखिरी दशकों से पहले मासाई चरवाहे चरागाहों की खोज में दूर-दूर तक चले जाते थे, किन्तु 19वीं सदी के आखिरी दशकों से औपनिवेशिक सरकार ने उनकी आवाजाही पर अनेक पाबन्दियाँ लगा दी। इससे भी इनके चरागाह छिन गये।

प्रश्न 4.
आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गडरियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर:
वे परिवर्तन जो भारतीय चरवाहा समुदायों तथा मासाई पशुपालकों के लिये समान थे, वे हैं-
(1) सरहदें बन्द करना-औपनिवेशिक काल से पहले मासाई भूमि उत्तरी तंजानिया के घास के मैदानों से उत्तरी कीनिया तक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी। अफ्रीका में, जब यूरोपीय शक्तियों की क्षेत्रीय अधिकारों के लिए छीना-झपटी हुई, तो मासाई क्षेत्र को आधा कर दिया गया, जिसकी अन्तर्राष्ट्रीय सीमाएँ ब्रिटिश कीनिया तथा तंजानिया से लगती थीं। श्रेष्ठ भूमि पर गोरों ने अधिकार कर लिया तथा स्थानीय लोगों को प्रतिबन्धित चरागाहों के एक छोटे से क्षेत्र की ओर धकेल दिया।

भारत में देश के विभाजन ने राइका चरवाहा समुदाय को हरियाणा में नए चरागाह खोजने के लिए मजबूर किया क्योंकि राजनैतिक विभाजन के कारण अब उन्हें पाकिस्तान के सिन्ध में जाने की आज्ञा न थी।

(2) वन अधिनियम-विभिन्न वन कानन भी भारत तथा अफ्रीका में चरवाहों के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए उत्तरदायी थे। भारत में वनों को आरक्षित तथा सुरक्षित दो वर्गों में विभाजित किया गया। किसी भी चरवाहे को आरक्षित वनों में जाने की आज्ञा न थी। सुरक्षित वनों में उनकी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी।

अफ्रीका में चरागाह भूमियों के बड़े क्षेत्र को शिकार के लिए आरक्षित कर दिया गया था। चरवाहों का इनमें प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया गया।

श्रेष्ठ चरागाहों के छिन जाने तथा चरवाहों की गतिक्रियाओं पर प्रतिबन्धों ने उनकी जीवनशैली पर बुरा प्रभाव डाला।

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