RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 गिरिजाकुमार माथुर
RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 11 गिरिजाकुमार माथुर
गिरिजाकुमार माथुर
– कवि – परिचय – गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में गुना, मध्यप्रदेश में हुआ। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा झाँसी से ग्रहण करने के बाद इन्होंने एम.ए. अंग्रेजी व एल.एल.बी. की उपाधि लखनऊ से प्राप्त की। प्रारम्भ में कुछ समय तक इन्होंने वकालत की। इसके बाद ये आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत रहे । इनका निधन सन् 1994 में हुआ।
नयी कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर रोमानी
प्रकृति के कवि माने जाते हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं—’ नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ (काव्य-संग्रह), जन्म कैद (नाटक), नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ (आलोचना)। पाठ-परिचय-‘छाया मत छूना’ कविता में कवि बताना चाहता है कि जीवन में सुख-दुःख दोनों की उपस्थिति है। विगत सुख को याद कर वर्तमान दुःख को गहरा नहीं करना चाहिए। इससे दुःख बढ़ता है। विगत सुख से चिपक कर वर्तमान से पलायन करने की अपेक्षा कठिन यथार्थ से सामना करना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए। अतः यह कविता अतीत की स्मृतियों को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का सन्देश देती है।
सप्रसंग व्याख्याएँ
छाया मत छूना
(1)
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र – गंध फैली मनभावनी;
तन- सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी ।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना |
कठिन – शब्दार्थ – छाया = परछाई, भ्रम, दुविधा । दूना = दुगुना । सुरंग सुन्दर रंगों वाली । सुधियाँ = स्मृतियाँ, यादें । सुहावनी = मन को अच्छी लगने वाली, भली । छवियाँ = यादों में समाये रूप और दृश्य । चित्रगंध = चित्र के साथ-साथ उनकी गंध का होना। फैली = प्रसरित । मनभावनी = मन को अच्छा लगने वाली। यामिनी= रात । कुंतल । = बाल | छुअन = स्पर्श । जीवित क्षण = जीता-जागता अनुभव ।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखित कविता ‘छाया मत छूना’ से लिया गया है। इसमें कवि जीवन में दुःख-सुख दोनों की उपस्थिति बताते हैं। विगत के सुखों को याद करके वर्तमान में दुःख गहरा नहीं करना चाहिए जैसे भाव व्यक्त किये हैं।
व्याख्या – कवि अपने मन को सम्बोधित कर कहता है कि हे मन! तू कल्पनाओं के संसार में विचरण मत करना। पिछली स्मृतियाँ तुझे भ्रमित करेंगी और उनको याद कर तेरा दुःख दूना हो जायेगा। माना कि तुम्हारे जीवन में अनेक प्रकार की रंग-बिरंगी मनभावन मधुर यादें समायी हुई हैं। उन्हें याद करके तुम्हारे मन में न केवल मनभावन चित्र उभरते हैं, बल्कि उनके साथ जुड़ी मन को अच्छी लगने वाली गंध भी तुम्हारे तन-मन को खुशियों से भर देती है। तुम अपनी प्रिया की यादों में जीकर उसके तन की गंध महसूस कर लेते हो। इस प्रकार पुरानी मधुर यादों में डूब कर पूरी रात बीत जाती है। अर्थात् समय गुजर जाता है। तुम्हें चाँदनी रात देखकर अपनी प्रिया के बालों में शोभित फूलों की स्मृति हो आती है। इस तरह भूला हुआ प्रत्येक क्षण तुम्हारे सामने मानो जीवित होकर खड़ा हो जाता है, परन्तु फिर भी ये यादें छायाएँ ही हैं। इनसे मन को दुगुना दुःख मिलता है। इसलिए इनसे दूर रहना ही उचित है। दूर रह कर ही हम वर्तमान को सुखी बना सकते हैं।
विशेष – (1) विगत के सुखों को याद करने से वर्तमान में दुःख अधिक होता है की भावना व्यक्त हुई है।
(2) खड़ी बोली हिन्दी एवं तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग है।
(3) मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है। भाषा की व्यंजना सरल सहज है। –
(2)
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया ।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
कठिन – शब्दार्थ- वैभव = सुख-साधन। सरमाया = पूँजी | भरमाया = भटका | प्रभुता का शरण-बिंब = बड़प्पन का एहसास। मृगतृष्णा = झूठा भ्रम | चन्द्रिका = चाँदनी | कृष्णा= काली । यथार्थ = वास्तविकता, सत्य। पूजन = पूजा करना ।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखित कविता ‘छाया मत छूना’ से लिया गया है। इसमें कवि ने दुःख के पीछे सुख और सुख के पीछे दुःख की भावना को व्यक्त किया है।
व्याख्या-कवि यथार्थ का बोध कराता हुआ कहता है कि इस संसार में न तो यश का कोई मूल्य है, न धन-वैभव का, न मान-सम्मान से कोई सन्तुष्टि मिलती है और न धन-दौलत से सन्तोष मिलता है। मनुष्य इस संसार में रहते हुए इनके पीछे जितना दौड़ता है, उतना ही वह भटकता चला जाता है, क्योंकि भौतिक वस्तुएँ व्यक्ति को भरमाती हैं। प्रभुता या बड़प्पन पाने की कामना भी एक विडम्बना है। यह केवल मृगतृष्णा या छलावा भर ही है। सत्य तो यह है कि हर चाँदनी रात के पीछे एक काली रात छिपी हुई है। अर्थात् हर सुख के पीछे एक दुःख छिपा रहता है। इसलिए छायाओं या कल्पनाओं में सुख खोजने की बजाय जीवन के यथार्थ अर्थात् सत्य को समझना चाहिए और उसी का पूजन करना चाहिए। अर्थात् कठिन यथार्थ को झेलने को तैयार रहना चाहिए। इसलिए भूल से भी छायाओं को नहीं छूना चाहिए, उससे तो दुगुना दुःख होगा। भूतकाल में सुख खोजने से वर्तमान की शांति भंग हो जाती है ।
विशेष- (1) कवि ने जीवन यथार्थ को समझने पर जोर दिया है क्योंकि भौतिकता सिर्फ दिखावा मात्र है। ।
(2) खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग तथा अनुप्रास अलंकार ही छटा एवं तत्सम शब्दों की बहुलता है।
(3) सरमाया का अर्थ पूँजी है।
(3)
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ।
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अन्त नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-वसंत जाने पर ?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ।
कठिन- शब्दार्थ- दुविधा-हत साहस दुविधा के कारण साहस नष्ट हो जाना। पंथ = रास्ता । देह = शरीर । शरद रात = ठंडी चाँदनी रात । रस वसंत = वसंत ऋतु का आनन्द । वरण = स्वीकार ।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखित कविता ‘छाया मत छूना’ से लिया गया है। मनुष्यमन को सन्तुष्टि का भाव रखना चाहिए, जो नहीं मिला उस पर दुःखी नहीं होना चाहिए का भाव व्यक्त हुआ है।
व्याख्या – कवि कहता है कि हे मन! तुम्हारा साहस दुविधाओं के कारण नष्ट हो गया है जिसके कारण तुम्हें आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। इसी कारण चाहे तुम शरीर से सुखी हो, परन्तु तुम्हारे मन में असीम दुःख समाये हुए हैं। अर्थात् सुख-सुविधाओं के होते हुए भी तुम मन से खुश नहीं हो। तुम्हें इस बात का दुःख है कि शरद् ऋतु आने पर आकाश में चाँद नहीं खिला। आशय यह है कि प्रसन्नता के सुअवसर पर भी तुम अपने मन से खुश न हो सके। और यदि रसमय वसंत के चले जाने के बाद फूल खिलें तो उन खिलने वाले फूलों से क्या फायदा? जिस काल में मनुष्य को प्रिय का सामीप्य मिलना चाहिए था, उस काल में तो मिला नहीं। बाद में उसका मिलना सुख की बजाय दुःख ही पहुँचाता है। अतः व्यक्ति को जो नहीं मिला, उसे भूलकर वर्तमान में ही जीना चाहिए और भविष्य की सुध लेनी चाहिए। अर्थात् व्यक्ति को असफलताओं को भूलकर वर्तमान और भविष्य को सँभालने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि कल्पनाओं में विचरण करने से कुछ नहीं मिलता, बल्कि मन का दुःख ही दुगुना हो जाता है। इसलिए कल को याद करके तू अपना आज मत खराब कर ।
विशेष – (1) कवि ने आज को प्रसन्नता से व्यतीत करने का संदेश दिया है। पिछली यादों की कड़वाहट से वर्तमान के सुख खट्टे नहीं करने को कहा है। । खड़ी बोली हिन्दी है, ‘होगा दुख दूना’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘चन्द्र’ चाँद
( 2 ) छन्द की दृष्टि से मुक्त छन्द हैका तत्सम रूप है ।
(3) शृंगारिक भावना से पूर्ण पद सहज एवं सरल है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है ?
उत्तर – कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है, क्योंकि यही जीवन का सत्य और वास्तविकता है। विगत जीवन की स्मृतियों से बँधा रहना और वर्तमान से पलायन करना व्यर्थ है। मनुष्य को जीवन के कठोर सत्य का साहस से सामना करना चाहिए। जीवन के सत्य को स्वीकार करने में ही भलाई है। विगत स्मृतियाँ उसके वर्तमान और भविष्य दोनों को ही खराब करती हैं।
प्रश्न 2. भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चन्द्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-भाव यह है कि अपने बारे में बड़प्पन का एहसास करना भी एक छलावा है, क्योंकि मनुष्य बड़प्पन का एहसास करके भी अपने मन से खुश रह सके, यह भी उसके लिए आवश्यक नहीं है। सत्य तो यह है कि जिस प्रकार हर चाँदनी रात के बाद एक काली रात छिपी रहती है, उसी प्रकार सुख के पीछे दुःख भी छिपे रहते हैं। सुख-दुःख का क्रम जीवन में साथ-साथ चलता रहता है ।
प्रश्न 3. ‘छाया’ शब्द यहाँ किस सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ? उत्तर-यहाँ ‘छाया’ शब्द पुरानी स्मृतियों के लिए प्रयुक्त हुआ है। कवि छाया को छूने के लिए इसलिए मना करता है, क्योंकि वह वास्तविकता से परे है। इसलिए इनको अपने वर्तमान से बाँधना दुःख को ही ढ़ावा देना है, क्योंकि विगत मधुर स्मृतियों के सहारे जीवन नहीं जिया जा सकता है। जीवन तो वर्तमान की स्थिति में ही जिया जा सकता है।
प्रश्न 4. कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ । कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई ?
उत्तर- इस कविता में प्रयुक्त अन्य विशेषण हैं…
‘सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ यहाँ ‘सुधियाँ’ विशेष्य के लिए ‘सुरंग’ और ‘सुहावनी’ दो विशेषणों का प्रयोग हुआ है। इनके प्रयोग से बीती हुई ‘सुधियों’ के दृश्य बड़े मधुर, मनमोहक और रंगीन बन पड़े हैं। यह स्थिति मिलन जैसे अवसर का रंगीन और मोहक दृश्य प्रस्तुत करता जान पड़ता है। ‘दूना-दुःख’ यहाँ दूना विशेषण है जो दुःख की अत्यधिक वृद्धि के सम्बन्ध में सूचित करता है। ‘जीवित क्षण’ यहाँ ‘क्षण’ के लिए ‘जीवित’ विशेषण का प्रयोग हुआ है। इसके प्रयोग से विगत यादों का भूला हुआ क्षण इस रूप में यहाँ साकार हो उठता है कि वह क्षण पुराना न होकर वर्तमान में ही चल रहा है। ‘एक’ और ‘कृष्णा’ विशेषण प्रयोग रात के अन्धकार को गहराते हैं । ‘केवल मृगतृष्णा’ में ‘केवल’ विशेषण शब्द लगने से भ्रम या छलावा की स्थिति और अधिक सघन हो गयी है। इससे यह बोध जाग उठा कि बड़प्पन का एहसास छलावे के अलावा कुछ है ही नहीं । ‘दुविधा-हत साहस’ में साहस के साथ दुविधा-हत विशेषण का प्रयोग ‘साहस’ को निश्चित रूप से दबाये हुए प्रतीत होता है । ‘शरद – रात’, रात के साथ ‘शरद’ शब्द रात की मोहकता को उजागर करता हुआ प्रतीत होता है और ‘रस- वसंत’ के साथ ‘रस’ विशेषण वसंत को और अधिक मधुर बना रहा है। ‘
प्रश्न 5. ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर – राजस्थान की रेत पर धूप के चमकने से जल की भ्रान्ति होती है और हिरण उसे जल समझकर पीने के लिए भागता फिरता है लेकिन उसे कहीं पर भी पानी नहीं मिलता है । अतः प्रकृति के इस भ्रामक रूप को मृगतृष्णा कहा जाता है । इस कविता में इसका प्रयोग अयथार्थ स्थिति अर्थात् भ्रम और छलावा के अर्थ में हुआ है। व्यक्ति भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए जितना अधिक दौड़ता है, उतना ही अधिक वह भटकता चला जाता है। अतः प्रभुता या बड़प्पन पाने की लालसा केवल मृगतृष्णा ही है ।
प्रश्न 6. ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर – यह भाव कविता की निम्न पंक्ति में झलकता है
‘जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण ।’
प्रश्न 7. कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – कविता में व्यक्त दुःख के निम्नलिखित कारण बताये गये हैं
(i) हम हमेशा पुरानी स्मृतियों के पीछे भागते हैं। इससे हम वर्तमान को और अधिक दुःखी बना लेते हैं
(ii) हम छायाओं में डूबकर वर्तमान को न तो अच्छी तरह जी पाते हैं और न भविष्य को ही सुदृढ़ बना पाते हैं।
(iii) हम कल्पित सुखों की मृगतृष्णा में उलझकर रह जाते हैं। इससे हमारा भटकाव बढ़ जाता है और उचित अवसर पर लाभ रूपी सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। हमारी स्थिति वसन्त के बीत जाने के बाद खिले फूल के समान रह जाती है।
रचना और अभिव्यक्ति-
प्रश्न 8. ‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौनसी स्मृतियाँ सँजो रखी हैं ?
उत्तर – हमने भी अपने जीवन की अग्रलिखित स्मृतियाँ सँजो रखी हैंमेरे अब तक के जीवन की पहली मधुर स्मृति यह है कि जब मैं पहली बार स्कूल गया था तब घर के प्रत्येक सदस्य के मन में अपार खुशी समायी हुई थी । हमें नये वस्त्र पहनाये गये थे और घर-बाहर मिठाइयाँ बाँटी गयी थीं। उस समय सभी का ध्यान मुझ पर ही था ।
– दूसरी मधुर स्मृति तब की है जब मैं अपनी कक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त करके प्रथम आया था। उस दिन मेरे प्रथम आने के उपलक्ष में एक शानदार पार्टी रखी गयी थी । पार्टी में आने वालों ने मुझे प्रसन्नता के साथ आशीर्वाद और बधाई दी थी ।
– तीसरी मधुर स्मृति वह है, जब मैं स्कूल की फुटबॉल टीम में खिलाड़ी चुनकर जिला स्तर पर खेल कर विजेता टीम का खिलाड़ी घोषित हुआ था। तब मुझे फूलों की माला पहनाकर मेरा स्वागत किया गया था और पुरस्कार दिया गया था।
प्रश्न 9. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-वसंत जाने पर ?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनन्द देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर – यह सच है कि सभी उपलब्धियाँ उचित समय पर ही अच्छी लगती हैं। समय बीत जाने पर उपलब्धियों की कोई उपादेयता नहीं रहती है। उदाहरण के लिए, वसंत ऋतु के चले जाने पर फूल के खिलाने से क्या लाभ ? यदि विवाह की आयु निकल जाने के बाद विवाह हुआ तो वह उल्लास कहाँ? ये उदाहरण इस बात को स्पष्ट करते हैं कि उचित समय और आवश्यकता के अवसर पर ही उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं।
पाठेतर सक्रियता—
• आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर –
मित्र को पत्र
212, शास्त्री नगर,
अजमेर।
दिनांक 15 जुलाई 20XX “
प्रिय मित्र सौरभ,
सप्रेम नमस्ते ।
तुम्हारा पत्र मिला । समाचार जानकर प्रसन्नता हुई । पत्रोत्तर देने में विलम्ब हो गया है। इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ । मित्र, इन दिनों मेरी मनःस्थिति कुछ ठीक नहीं है । गत सप्ताह ही मुझे जीवन के जिस यथार्थ का सामना करना पड़ा, उससे मैं आहत हुआ हूँ। यहाँ मैं उसी अनुभव का वर्णन कर रहा हूँ । मेरा एक प्रिय मित्र यहीं रहता है । हम दोनों साथ-साथ पढ़ने जाते और साथ – साथ ही खेलते हैं। इस दृष्टि से वह हमेशा ही मेरे सामने अपनापन प्रकट करता रहता है । वह शहर में अपने माता-पिता के साथ रहता है और जैसा कि तुम जानते हो, मैं यहाँ किराये का कमरा लेकर रहता हूँ । एक दिन अचानक मैं बीमार पड़ गया। देखभाल करने वाला कोई न होने के कारण मैंने अस्पताल में भर्ती होना ही उचित समझा। पता चलने पर जब वह अस्पताल में मुझसे मिलने आया तब इलाज करवाने की दृष्टि से मैंने उससे कुछ रुपये उधार माँगे । हाँ करने के बाद भी, रुपये देने के स्थान पर, वह मुझसे मिलने तक नहीं आया। मुझे उसके इस व्यवहार से बहुत धक्का पहुँचा। मैं इस बात को अच्छी तरह से समझ गया हूँ कि विपत्ति काल में ही मित्र की पहचान होती है। इस दृष्टि से मित्रता निभाने का झूठा दिखावा करने वाला, वह मेरा मित्र मित्रता की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। इससे मैं यह भली प्रकार से समझ गया कि हमें जो दिखाई देता है, वह सत्य नहीं होता है, वास्तविकता कुछ और ही होती है। यह मेरे जीवन का पहला कटु अनुभव था। अब मैं इस दुःख-जनित अनुभव से मुक्त होने का प्रयास कर रहा हूँ ।
शेष कुशल ! पत्रोत्तर शीघ्र देना ।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
राकेश बंसल
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1. ‘छाया मत छूना’ का भावार्थ क्या है ?
उत्तर – यही कि छाया यानि यादें । बीते मधुर क्षणों की यादें वर्तमान में दुःख ही देती हैं। हमें उन यादों को छूना
नहीं चाहिए।
प्रश्न 2. ‘जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ पंक्ति का भाव बताइये।
उत्तर – अर्थात् जीवन में मधुर यादों की बहुत लम्बी श्रृंखला है।
प्रश्न 3. ‘यामिनी’ शब्द का क्या अर्थ बताया गया है ?
उत्तर – ‘यामिनी’ यानि कि रात, रात्रि से है।
प्रश्न 4. कवि ने सांसारिक समृद्धि के किन-किन रूपों को भ्रान्ति कहा है ?
उत्तर – कवि ने रूप, यश, धन-वैभव, मान-सम्मान और प्रभुता आदि सांसारिक समृद्धि को भ्रान्ति कहा है ।
प्रश्न 5. ‘हर चन्द्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’ पंक्ति में क्या संदेश निहित है?
उत्तर- यही कि हर सुख के पीछे दुःख छिपा होता है वैसे ही हर चाँदनी के पीछे अमावस्या होती है।
प्रश्न 6. ‘सरमाया’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर – ‘सरमाया’ शब्द का अर्थ ‘पूँजी’ है।
प्रश्न 7. ‘छाया मत छूना’ कविता में किसे सम्बोधित किया गया है?
उत्तर- इस कविता में ‘मन’ को सम्बोधित किया गया है।
प्रश्न 8. ‘देहसुखी हो पर मन के दुःख का अंत नहीं’ से क्या आशय है?
उत्तर- कवि कहते हैं कि शरीर को सुख प्राप्त है लेकिन मन में अनेक असंतुष्टियों का दुःख है।
प्रश्न 9. गिरिजाकुमार माथुर के कार्यक्षेत्र कौन-कौन से रहे?
उत्तर – इनके कार्यक्षेत्र आकाशवाणी और दूरदर्शन रहे थे ।
प्रश्न 10. कविता का संदेश क्या है ?
उत्तर – विगत की सुखद कल्पनाओं में चिपके रहकर पलायन की अपेक्षा कठिन यथार्थ से रूबरू होना जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
प्रश्न 11. ‘छाया मत छूना’ कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ?
उत्तर – कविता अतीत की स्मृतियों को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य को चुनने का भाव देती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. कवि गिरिजाकुमार माथुर ने ‘छाया छूना मत’ कविता में क्या सन्देश दिया है ?
अथवा
‘छाया मत छूना’ गिरिजाकुमार माथुर की यह कविता क्या संदेश देती है?
उत्तर-‘छाया मत छूना’ कविता यह संदेश देती है कि अतीत की मधुर स्मृतियों में खोकर वर्तमान जीवन को कष्टमय और दु:खी नहीं बनाना चाहिए। अतीत को भूलकर वर्तमान के कठोर यथार्थ का सामना कर भविष्य को सुदृढ़ बनाना चाहिए।
प्रश्न 2. ‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने यथार्थ को कठिन कह कर उसकी पूजा करने को क्यों कहा है? उत्तर – विगत जीवन की सुखद स्मृतियाँ तथा भविष्य की मधुर कल्पनाएँ वर्तमान जीवन के दुःख को दुगुना करके यथार्थ को कठिन बना देती हैं। वर्तमान पर आधारित यह यथार्थ कठिन भले ही हो, किन्तु यही जीवन के सत्य का प्रत्यक्ष साक्षात्कार कराता है ।
प्रश्न 3. कवि ने छाया को छूने के लिए क्यों मना किया है ?
उत्तर-कवि ने छाया को छूने के लिए इसलिए मना किया है, क्योंकि बीते दिनों की मधुर स्मृतियाँ वर्तमान जीवन के क्षणों में आकर उसे परिवर्तित नहीं कर पाती हैं। उनकी यादें वर्तमान और भविष्य को बिगाड़ने वाली ही होती हैं ।
प्रश्न 4. छाया को छूने का परिणाम क्या होता है और क्यों?
उत्तर- छाया को छूने अर्थात् विगत यादों में खो जाने का परिणाम कष्टमय और दुःखमय ही होता है, क्योंकि वर्तमान में याद करने से वे जीवन को अधिक दुःखी और अभावग्रस्त ही बना कर भविष्य को भी बिगाड़ देती हैं।
प्रश्न 5. ‘जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य का वरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि हमें क्या सन्देश देना चाहता है ?
उत्तर – कवि हमें सन्देश देना चाहता है कि यह जीवन सुख-दुःख का भण्डार है। जीवन के अतीत में भले ही केवल कष्ट ही मिले, परन्तु अब उन्हें भूल जाना ही उचित है । अब तो वर्तमान को यथार्थ के साथ जीकर भविष्य की सुदृढ़ नींव डालनी चाहिए ।
प्रश्न 6. ‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने किन जीवन-मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी है ?
उत्तर – कविता में कवि ने आशावाद का समर्थन करते हुए यश, वैभव, मान-सम्मान और धन के पीछे भागने के बजाय आत्मविश्वास के साथ यथार्थ और सत्य को स्वीकार करने जैसे जीवन-मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 7. कवि ने सुधियों को सुहावनी क्यों कहा है ?
उत्तर – कवि ने सुधियों को सुहावनी इसलिए कहा है कि अतीत की मधुर स्मृतियों में न केवल मनभावन चित्र उभरते हैं, बल्कि उनके साथ जुड़ी सुहानी गन्ध मन को मस्त कर देती है जिनमें खोकर मनुष्य अपने वर्तमान को भूल जाता है।
प्रश्न 8. ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि जब हम अतीत की मधुर यादों में जाते हैं तब हमारे सामने केवल बीती हुई घटनाओं के मधुर दृश्य ही नहीं याद आते हैं, अपितु उन क्षणों की सुगन्ध भी तरोताजा हो उठती है।
प्रश्न 9. ‘भूली सी एक छुअन’ हमारे जीवन में जीवित क्षण किस प्रकार बन जाती है?
उत्तर- जब हम अपने बीते हुए मधुर स्मृतियों से पूरित दिनों को याद करते हैं तो भूली हुई बातें हमारे मन को बरबस छू लेती हैं और वे छुअन भरे क्षण हमारे पुराने दिनों को हमारे सामने जीवित कर देते हैं।
प्रश्न 10. ‘कठिन यथार्थ के पूजन’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर- ‘कठिन यथार्थ के पूजन’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जो भी सच्चाई तुम्हारे सामने है अर्थात् जीवन का जो भी सुख-दुःख तुम्हारे सामने है, उसे सहर्ष एवं ससम्मान अपनाकर सुखपूर्वक जीना सीखो। यही जीवन-यथार्थ है।
प्रश्न 11. ‘हर चन्द्रिका में छिपी रात एक कृष्णा है’ द्वारा कवि जीवन की किस सच्चाई की ओर संकेत करता है?
उत्तर- जिस प्रकार हर चाँदनी रात के बाद एक काली रात आती है, उसी प्रकार जीवन के हर सुख के पीछे दुःख भी छिपे रहते हैं । अर्थात् जीवन में सुख और दुःख का क्रम सदैव चलता रहता है।
प्रश्न 12. ” दिखता है पंथ नहीं,” मनुष्य को रास्ता क्यों नहीं दिखाई देता ?
उत्तर – मनुष्य को रास्ता इसलिए दिखाई नहीं देता, क्योंकि उसके मन में दुविधाएँ रहती हैं जिसके कारण उसका मन सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाता है। उस दशा में वह सही पथ पर नहीं चल पाता है ।
निबन्धात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1. ‘छाया मत छूना’ कविता के माध्यम से कवि ने किस सत्य को स्पष्ट किया है?
उत्तर – ‘छाया मत छूना’ कविता के माध्यम से कवि ने बताया है कि जीवन में सुख-दुःख दोनों की उपस्थिति अनिवार्य है। यही जीवन का सत्य है। जीवन के इस सत्य को छोड़कर उसकी छायाओं में भ्रमित रहना जीवन की कठोर वास्तविकता से दूर रहना है। इसलिए विगत सुख से चिपककर वर्तमान से पलायन करने की अपेक्षा कठिन यथार्थ का सामना करना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
प्रश्न 2. ‘छाया मत छूना’ कविता के सार तथा सन्देश को स्पष्ट कीजिए । –
उत्तर – गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना’ में बताया गया है कि जीवन में सुख-दुःख दोनों की उपस्थिति अनिवार्य रूप से रहती है । विगत सुख को याद करके वर्तमान में दुःख को गहरा नहीं करना चाहिए । विगत सुख से चिपक कर वर्तमान से पलायन करने की अपेक्षा कठिन यथार्थ से सामना करना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए । इस सन्देश के साथ कवि यही कहते हैं कि इस संसार में न तो यश का कोई मूल्य है, न धन-वैभव का, न मान-सम्मान से कोई सन्तुष्टि मिलती है और न पूँजी से । मनुष्य इस संसार में रहते हुए भी इनके पीछे जितना दौड़ता है, उतना ही वह भटकता जाता है। क्योंकि भौतिकता – विलासिता मन को भटकाती है। प्रभुता या बड़प्पन पाने की कामना भी एक विडम्बना ही है। यह पाने की कोशिश करते रहना भी एक मृगतृष्णा या छलावा मात्र ही है। इसलिए छाया या कल्पनाओं में सुख तलाशने की बजाय जीवन के यथार्थ को झेलने को तैयार रहना चाहिए ।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न-
प्रश्न 1. गिरिजा कुमार माथुर का जीवन व कृत्तित्व परिचय संक्षेप में लिखिए ।
उत्तर – कवि गिरिजा कुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में गुना मध्य प्रदेश में हुआ । नयी कविता के कवि गिरिजा कुमार माथुर विषय की मौलिकता को ध्यान में रखते हुए शिल्प की कला में वातावरण के माध्यम से रंग भरते थे । इन्होंने अनेक काव्य-संग्रह, नाटक, आलोचना ग्रन्थ लिखे । इनका देहान्त 1994 में हुआ ।