RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 42 भूमण्डलीय पर्यावरणीय परिवर्तन
RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 42 भूमण्डलीय पर्यावरणीय परिवर्तन
Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 42 भूमण्डलीय पर्यावरणीय परिवर्तन
RBSE Class 11 Biology Chapter 42 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 11 Biology Chapter 42 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
वायु में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की सांद्रता है
(अ) 0.3 प्रतिशत
(ब) 0.03 प्रतिशत
(स) 0.003 प्रतिशत
(द) 33.00 प्रतिशत
प्रश्न 2.
हरित गृह प्रभाव से सर्वाधिक संबंधित गैस है
(अ) फ्रीओन
(ब) मीथेन
(स) कार्बन-डाई-ऑक्साइड
(द) ऑक्सीजन
प्रश्न 3.
ओजोन दिवस कब मनाया जाता है?
(अ) 16 सितम्बर
(ब) 16 अक्टूबर
(स) 26 सितम्बर
(द) 1 जनवरी
प्रश्न 4.
ओजोन छिद्र से तात्पर्य है
(अ) ओजोन परत में छिद्र
(ब) ट्रोपोस्फीयर में ओजोन परत की कमी
(स) ट्रोपोस्फीयर में ओजोन परत की मोटाई में वृद्धि
(द) स्ट्रेटोस्फीयर की ओजोन परत की मोटाई में कमी
प्रश्न 5.
वातावरण में किसकी अधिकता से तेजाबी वर्षा होती है
(अ) O3
(ब) CO2 व CO
(स) SO3 वे CO
(द) SO2
उत्तर तालिका
1. (ब)
2. (स)
3. (अ)
4. (द)
5. (द)
RBSE Class 11 Biology Chapter 42 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ओजोन गैस का रासायनिक सूत्र क्या है?
उत्तर-
O3
प्रश्न 2.
ओजोन छिद्र से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र कौनसा है?
उत्तर-
अन्टार्कटिका क्षेत्र ।
प्रश्न 3.
ओजोन वायुमण्डल में कहां मिलती है?
उत्तर-
वायुमण्डल के समताप मण्डल में मिलती है।
प्रश्न 4.
हरित गृह गैसें कौनसी हैं?
उत्तर-
CO2, CFC’s, N2O, CO तथा CH4 हरित गृह गैसें हैं।
प्रश्न 5.
हरित गृह प्रभाव से क्या होगा?
उत्तर-
पृथ्वी का तापमान बढ़ जायेगा जिससे अनेक दुष्परिणाम होंगे।
प्रश्न 6.
हरित गृह प्रभाव को रोकने के लिए एक मुख्य उपाय बताइए।
उत्तर-
अधिक से अधिक वृक्षारोपण, वनों की कटाई पर प्रतिबन्ध तथा वातावरण में CO2 को कम छोड़ना।
प्रश्न 7.
वायुमण्डल तापन किसे कहते हैं?
उत्तर-
वायुमण्डल में CO2 की मात्रा बढ़ने से भूमण्डल का तापमान बढ़ रहा है। इसे भूमण्डलीय तापन कहते हैं।
प्रश्न 8.
अलनीनो प्रभाव क्या है?
उत्तर-
समुद्र की धारायें जो उसके पानी में उतार-चढ़ाव उत्पन्न करती हैं, वे वातावरण को भी प्रभावित करती हैं। इनमें से एक प्रभाव अलनीनो प्रभाव कहलाता है। इस प्रभाव से समुद्र का पानी असामान्य रूप से गर्म हो जाता है।
प्रश्न 9.
ओजोन परत का क्या कार्य है?
उत्तर-
ओजोन परत पराबैंगनी (U.V.) तथा कॉस्मिक किरणों को अवशोषित करके वातावरण में आने से रोकती हैं। तथा सजीवों की रक्षा करती हैं।
प्रश्न 10.
CFC का पूरा नाम लिखिये।
उत्तर-
क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन
प्रश्न 11.
CFC किन उद्योग में उपयोग में लाई जाती है?
उत्तर-
इसका उपयोग दैनिक जीवन में एयर कंडीशनर, फ्रिज, प्लास्टिक, फोम, रंग तथा विभिन्न प्रकार के एयरोसोल में किया जाता है।
प्रश्न 12.
क्षोभ मण्डल की समुद्र तल से कितनी ऊंचाई है?
उत्तर-
16 किलोमीटर तक है।
प्रश्न 13.
अलनीनो प्रभाव सामान्यतया साल के किस समय में उत्पन्न होता है?
उत्तर-
वर्ष के अंत समय अर्थात क्रिसमस के समय उत्पन्न होता है।
प्रश्न 14.
अम्लीय वर्षा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
उद्योग-धंधों, मोटर वाहनों के निकलते धुएं से वायु में CO2, SO2, नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) इकट्ठी रहती है। ये गैसें वर्षा के पानी व वायुमण्डलीय जलवाष्प से अभिक्रिया करके अम्लों का निर्माण करती हैं। यह अम्ल, वर्षा के जल के साथ पृथ्वी पर आता है, इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं।
प्रश्न 15.
ओजोन परत के ह्रास से होने वाले मुख्य दुष्प्रभावों को लिखिए।
उत्तर-
त्वचा कैसर, पृथ्वी के तापमान में वृद्धि, आनुवांशिक लक्षणों में परिवर्तन, प्रकाश संश्लेषण दर कम होना, अम्लीय वर्षा को बढ़ावा, केटेरेक्ट रोग उत्पन्न होंगे।
RBSE Class 11 Biology Chapter 42 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हरित गृह प्रभाव से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
पृथ्वी के धरातल के ऊपर लगभग 30 किमी. ऊंचाई तक वायुमण्डल का विशाल सघन घेरा उपस्थित होता है। वैसे वायुमण्डल पृथ्वी सतह से 800-1000 किमी. की ऊंचाई तक विद्यमान होता है। यह कई गैसों का मिश्रण है जिसमें एक गैस CO2 है। यद्यपि इसकी मात्रा केवल 0.03 प्रतिशत है, लेकिन यह प्रकाश संश्लेषण के अतिरिक्त पृथ्वी के तापक्रम को भी नियंत्रित करती है। वायुमण्डल का घेरा पृथ्वी पर हरित गृह की कांच की भित्ति के समान कार्य करता है। सूर्य से आने वाले – विकिरण (प्रकाश किरणें) वायुमण्डल को बेधते हुए भूतल पर टकराकर काफी मात्रा में नष्ट हो जाते हैं तथा काफी मात्रा में दुर्बल होकर अवरक्त किरणों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। ये किरणें दुर्बलता के कारण वायुमण्डल से बाहर नहीं निकल पाती हैं। वायुमण्डल में उपस्थित CO2 व कुछ अन्य गैसें, जैसे मीथेन, N2O व CFCs (ये प्रदूषण के रूप में उत्पन्न होती हैं) इन अवरक्त किरणों को अवशोषण कर भूतल के तापक्रम में वृद्धि कर देती है। इस परिघटना को हरित गृह प्रभाव कहते हैं। उपर्युक्त गैसों को हरित गृह गैसें कहते हैं।
प्रश्न 2.
हरितगृह प्रभाव के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
जैसा कि हम जानते हैं कि कि हरे पादप CO2 गैस को अपने में समावेश करते हैं। हरे पादप क्लोरोफिल की उपस्थिति में CO, तथा जल से प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा भोजन बनाते हैं। जंगलों की कटाई के कारण CO2 वातावरण में बढ़ रही है और यही हरितगृह प्रभाव का मुख्य कारण बन रहा है।
बढ़ती हुई आबादी के साथ ही औद्योगीकरण भी तेजी से हो रहा है। इससे वायुमण्डल में CO2 की मात्रा निरंतर बढ़ रही है। वायुमण्डल में ग्रीन हाऊस गैसों की मात्रा इतनी बढ़ गई है जिससे धरती की सतह पर लौटने वाली उष्मा वायुमण्डल को पार नहीं कर पा रही है। इससे धरती का तापक्रम बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न 3.
हरित गृह प्रभाव को कैसे नियंत्रित किया जा सकता
उत्तर-
हरित गृह प्रभाव को निम्न प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है
- वायुमण्डल में मिलने वाली कार्बनडाइऑक्साइड, मेथेन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन युक्त यौगिकों की मात्रा कम करके।
- औद्योगिक प्रतिष्ठानों में ऐसे संयंत्र लगाए जाएं जो कार्बन के यौगिक एवं अन्य गैसें कम उत्सर्जित करें तथा उत्सर्जित होने के बाद संयंत्र उसे वायुमण्डल में जाने से पूर्व ही विघटित कर दें।
- जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग कम करके।
- वनों का संरक्षण एवं विस्तार किया जावे, ताकि हरित गृह प्रभाव गैसों को अधिक से अधिक शोषण हो सके।
- जीवाश्म ईंधनों के स्थान परे सौर ऊर्जा जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों को काम में लेना चाहिए जिससे हरित गृह प्रभाव गैसों की मात्रा कम हो सके।
- बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण किया जावे ताकि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम हो सके।
- जैविक खादों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाना चाहिए।
प्रश्न 4.
हरित गृह प्रभाव से क्या दुष्प्रभाव हो सकता है?
उत्तर-
हरित गृह प्रभाव के निम्न दुष्प्रभाव होते हैं
- पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा, तटवर्ती इलाकों में भारी वर्षा होगी, बाढ़ों के आने की संभावनाएं रहेंगी। औसत वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनेगी। तापमान में वृद्धि बेहद चिंता का विषय है। यदि इसी प्रकार से तापमान बढ़ता रहा तो सन् 2100 तक औसतन 3.60° सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इसके फलस्वरुप भीषण बाढ़, सूखा, चक्रवात, दावाग्नि का सिलसिला शुरू हो जाएगा जिससे मानवता को खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
- हरित गृह प्रभाव के कारण ताप बढ़ने के साथ ही भारत तथा अन्य विकासशील देशों में अनाज व विभिन्न फसलों के उत्पादन में कमी आएगी। मछलियों के उत्पादन में भी कमी आएगी।
- तापमान में वृद्धि से ध्रुवों की बर्फ पिघलने लगेगी जिससे समुद्र का जल-स्तर ऊपर उठ सकता है और तटवर्ती इलाके समुद्र के पानी में डूब जाएंगे।
- अंटार्कटिका की बर्फ भी पूरी तरह पिघल जाएगी।
प्रश्न 5.
वायुमण्डल क्या होता है?
उत्तर-
वायु पृथ्वी तल से 800-1000 किमी. तक की ऊंचाई तक विद्यमान है। इसे ही वायुमण्डल कहते हैं। उंचाई के अनुसार वायु हल्की होती जाती है, किंतु पृथ्वी के निकट की वायु भारी व घनी होती है। वायुमण्डल को पृथ्वी तल से ऊपर की ओर निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है
(i) क्षोभमण्डल (Troposphere)-
यह पृथ्वी की सबसे निकटतम परत है। वायुमण्डल की अधिकांश मात्रा इसी भाग के कारण है। क्षोभ मण्डल में गैसें, जल, वाष्प, धूल के कण आदि होते हैं। इसकी ऊंचाई पृथ्वी तल से लगभग 16 किलोमीटर तक है। पृथ्वी पर वायुदाब इसी के कारण है। मौसम संबंधी परिवर्तन (बादलों का बनना, वर्षा होना, हवाओं का चलना व आंधी-तूफान) इसी भाग में होते हैं। क्षोभमण्डल को समतापमण्डल से पृथक करने वाले क्षेत्र को क्षोभसीमा कहते हैं। इसमें दोनों मण्डलों के लक्षण पाए जाते हैं।
(ii) समतापमण्डल (Stratosphere)-
यह समुद्र तल से 18 से 32 किमी. की ऊँचाई तक होता है। इसमें तापक्रम समान रहता है व हल्की गैसें होती हैं। इस परत में आंधीतूफान व बादल आदि नहीं होते हैं।
(iii) ओजोनमण्डल (Ozonosphere)-
समुद्र तल से 32 से 80 किमी. ऊँचाई तक होता है। यह मण्डल ओजोन से युक्त होता है व तापमान समान रहता है। यह परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर जीवों की रक्षा करती हैं।
(iv) आयनमण्डल (Ionosphere)-
समुद्र तल से 80-640 किमी. ऊंचाई तक आयनमण्डल होता है। यहां वायु हल्की व आवेश युक्त कण पाए जाते हैं। इसके कारण विद्युत चुंबकीय क्रियायें होकर चमक व प्रकाश उत्पन्न होता है।
(v) बहिर्मण्डल (Exosphere)-
यह 640 किमी. से वायुमण्डल के शेष बचे हुए भाग तक होता है। यहाँ वायु अधिक हल्की होती है।
प्रश्न 6.
ओजोन परत को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
यह परत ओजोन से युक्त होती है, यह समतापमण्डल में होती है। समतापमण्डल में पराबैंगनी विकिरण ओजोन का प्रकाश विच्छेदन कर O2 एवं आणविक ऑक्सीजन (O) बना देता है जो शीघ्र ही फिर से जुड़कर O3 बना देता है। यह ओजोन परत पृथ्वी के जीव जगत
को तेज पराबैंगनी विकिरण के हानिकारक प्रभाव से बचाती है। इस परत को सुरक्षा छतरी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस परत की मोटाई मौसम के हिसाब से बदलती है। बसंत ऋतु (फरवरी से अप्रैल) में सबसे ज्यादा एवं वर्षा ऋतु (जुलाई से अक्टूबर) में सबसे कम रहती है। इस परत की मोटाई डॉबसन इकाई (Dobson unit) में मापा जाता है।
प्रश्न 7.
समताप मण्डल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
समतापमण्डल ठीक क्षोभमण्डल के ऊपर होता है। यह मण्डल समुद्र तल से 18 से 32 किमी. की ऊंचाई तक होता है। इस परत में हल्की गैसें पाई जाती हैं परंतु बादल, आंधी-तूफान नहीं होते हैं। इसमें ओजोन परत होती है। यहां पर तापक्रम समान होता है।
प्रश्न 8.
ओजोन परत किस प्रकार से सूर्य की पराबैंगनी किरणों से रक्षा करती है?
उत्तर-
ओजोन गैस की परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से रोकती है। ओजोन परत में सांद्रता स्थिर रहती है किंतु वायु में कुछ ऐसे पदार्थ हैं जैसे-क्लोरोफ्लोरो कार्बन, नाइट्रिक ऑक्साइड एवं क्लोरीन आदि, जो ओजोन परत को हानि पहुंचाते हैं।
प्रश्न 9.
अलनीनो प्रभाव को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-
अलनीनो एक भूगोलीय प्रभाव है। अलनीनो नाम दक्षिणी अमेरिकी मछुआरों ने दिया है। यह शब्द स्पेनी भाषा से लिया गया है। जिसका अर्थ ‘क्राइस्ट शिशु’ है अर्थात् साल के अन्त में जीसस के जन्म के आस-पास उत्पन्न होने वाला प्रभाव।।
जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि वनों के विनाश, ग्रीन हाऊस प्रभाव व पृथ्वी पर बढ़ते तापक्रम, ओजोन परत का विनाश इत्यादि ने पर्यावरण को असन्तुलित कर दिया है। वर्ष 1982-83 में जब प्रशान्त महासागर के अचानक अधिक गर्म हो जाने से विश्व व्यापी प्रभाव पड़ा तब यह तथ्य सामने आया। इसी प्रभाव को ही अलनीनो प्रभाव कही गया। प्रतिवर्ष क्रिसमस के आसपास दक्षिणी अमेरिका के इक्वेडोर तथा पेरू के तटीय समुद्र में अलनीनो प्रभाव के कारण उफान आता है, इससे समुद्र का जल गर्म हो जाता है व वहाँ स्थित जन्तु व पौधों की मृत्यु हो जाती है। विश्व के अन्य हिस्सों में अलनीनो प्रभाव के कारण मौसम में परिवर्तन आया तथा जंगलों में आग लग गई।
समुद्र की धारायें पानी में उतार-चढ़ाव पैदा करती हैं, जिससे वातावरण प्रभावित होता है। प्रभाव के कारण समुद्र का जल असामान्य रूप से गर्म हो जाता है। यह प्रभाव दक्षिण तथा मध्य अमेरिका के समुद्री किनारों पर वर्ष के अंत में देखा गया। इससे समुद्र की मछलियां प्रभावित हुई तथा मौसम में भी परिवर्तन आने लगा। सामान्य रूप से वायु पश्चिम से बहती हुई समुद्री गर्म जल को आस्ट्रेलिया की ओर गति करती हैं जबकि ठंडा जल अमेरिकी समुद्री किनारों की ओर रहता है। इसके कारण समुद्री मछलियों को पोषण प्राप्त होता है। परंतु हर 3 से 7 वर्षों के बाद यह वायु की दिशा समाप्त हो जाती है। जिसके कारण गर्म जल दक्षिणी अमेरिका की ओर स्थानांतरित हो जाता है। अलनीनो प्रभाव समुद्री वायुमंडल तंत्र के रॉपिकल पेसिफिक क्षेत्र में परिवर्तन लाता है जिससे मौसम में असामान्य परिवर्तन होकर दक्षिणी अमेरिका और पेरू क्षेत्र में अधिक वर्षा होकर बाढ़ आ जाती है और पश्चिमी पेसिफिक क्षेत्र में सूखा पड़ जाता है व आस्ट्रेलिया में विनाशकारी ‘बुश फायर’ का संकट उत्पन्न हो जाता है।
अब तो यह स्पष्ट है कि पेरू तट के समीप (उत्तर से दक्षिण दिशा में) 30° से 60° दक्षिणी अक्षांशों के बीच एक गर्म धारा बहती है। जिसे अलनीनो धारा कहते हैं। शरद ऋतु में विषवत रेखा के विपरीत धारा दक्षिण की ओर अलनीनो प्रभाव उत्पन्न करती है। अलनीनो में ठीक उल्टे प्रभावों वाला तंत्र लानीनो होता है, जिसमें समुद्री सतह का तापमान सामान्य से नीचे चला जाता है। अलनीनो प्रभाव वस्तुत: संपूर्ण विश्व के मौसमी बदलाव के फलस्वरूप है।
प्रश्न 10.
ओजोन परत के ह्रास के लिए मुख्य उत्तरदायी कारकों को लिखिए।
उत्तर-
ओजोन परत का क्षरण निम्न कारणों से होता है
- क्लोरो फ्लोरो कार्बन एवं अपक्षय (Decay by CFC) रेफ्रिजरेटर, एयर कण्डीशनर, फोम निर्माण एवं एरोसॉल आदि में क्लोरो फ्लोरो कार्बन (जैसे फ्रीऑन-11 एवं फ्रीऑन-12) का उपयोग किया जाता है। ये यौगिक हल्के एवं कम क्वथनांक के होते हैं जिसके कारण शीघ्र ओजोन परत तक पहुँच जाते हैं और मुक्त मूलक उत्पन्न कर ओजोन परत का अपक्षय करते हैं।
CFCl3 + पराबैंगनी किरणे = CFCl2 + Cl (मुक्त मूलक)
Cl + O3 = O2 + ClO (मुक्त मूलक)
ClO + O3 = ClO2 + O2 - नाइट्रिक ऑक्साइड द्वारा अपक्षय (Decay by Nitric Oxide)-पराध्वनिक वायुयानों द्वारा वायु में नाइट्रिक ऑक्साइड छोड़े जाते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार से ओजोन परत का अपक्षय करते हैं
NO + O3 = NO2 + O2 (नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड + ऑक्सीजन)
प्रश्न 11.
अलनीनो प्रभाव को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
वर्ष 1982-83 में जब प्रशांत महासागर के अचानक अधिक गर्म हो जाने से विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा तब यह तथ्य सामने आया। इस प्रभाव को अलनीनो प्रभाव (Elnino effect) कहा गया। प्रतिवर्ष क्रिसमस के आसपास दक्षिणी अमेरिका के इक्वेडोर तथा पेरू के तटीय समुद्र में अलनीनो प्रभाव के कारण उफान आता है। इससे समुद्री जल गर्म हो जाता है व वहां स्थित जंतुओं व पौधों की मृत्यु हो जाती है।
प्रश्न 12.
वातावरण तापन के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
जैसा कि हम जानते हैं कि कि हरे पादप CO2 गैस को अपने में समावेश करते हैं। हरे पादप क्लोरोफिल की उपस्थिति में CO, तथा जल से प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा भोजन बनाते हैं। जंगलों की कटाई के कारण CO2 वातावरण में बढ़ रही है और यही हरितगृह प्रभाव का मुख्य कारण बन रहा है।
बढ़ती हुई आबादी के साथ ही औद्योगीकरण भी तेजी से हो रहा है। इससे वायुमण्डल में CO2 की मात्रा निरंतर बढ़ रही है। वायुमण्डल में ग्रीन हाऊस गैसों की मात्रा इतनी बढ़ गई है जिससे धरती की सतह पर लौटने वाली उष्मा वायुमण्डल को पार नहीं कर पा रही है। इससे धरती का तापक्रम बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न 13.
ओजोन परत को सबसे ज्यादा हानि कौनसा देश पहुंचा रहा है, और क्यों?
उत्तर-
ओजोन परत को सबसे ज्यादा हानि CFCs से होती है। 95% CFCs यूरोपीय देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, यू.एस.एस.आर. और जापान द्वारा उत्सर्जित होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका अकेले 37% CFCs उत्सर्जित करता है। भारत के दिल्ली, मुंबई और कोलकाता अत्यधिक ओजोन उत्पादक शहर हैं। अन्य शहर मेक्सिको, लॉस एन्जिल्से और बैंकाक हैं।
RBSE Class 11 Biology Chapter 41 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हरित गृह प्रभाव को परिभाषित कर इससे होने वाले दुष्प्रभाव तथा नियंत्रण के उपाय लिखिए।
उत्तर-
वैश्विक उष्णता मुख्यतः मानव की बढ़ती हुई आबादी तथा उसके क्रियाकलापों के कारण हो रही है। मानव द्वारा संसाधनों का दुरुपयोग, जैव इंधन भंडार का ह्रास है। मानव क्रियाओं द्वारा वातावरण में CO2 की मात्रा एवं ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोतरी तथा समताप मण्डल की ओजोन परत का ह्रास आदि इसके प्रमुख कारण हैं जो वैश्विक उष्णता में वृद्धि एवं भूमण्डलीय पर्यावरण परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार हैं।
ग्रीन हाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह व वायुमण्डल गर्म हो जाता है। यदि ग्रीन हाउस प्रभाव नहीं होता तो आज पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 15°C रहने के स्थान पर ठंडा होकर -18°C रहता।
ग्रीन हाउस प्रभाव के अंतर्गत पृथ्वी की ओर आने वाले सौर विकिरण का लगभग एक-चौथाई भाग बादलों और गैसों से परिवर्तित (reflect) हो जाता है (चित्र-1) तथा दूसरा चौथाई भाग वायुमण्डलीय गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है। लगभग आधा आने वाला (Incoming) सौर विकिरण पृथ्वी की सतह पर पड़ता है और उसे गर्म करता है व इसका कुछ भाग परावर्तित होकर लौट जाता है। पृथ्वी की सतह अंतरिक्ष (Space) में अवरक्त विकिरण (Infrared radiation) के रूप में ऊष्मा उत्सर्जित करती है। किंतु इसका बहुत छोटा भाग ही अंतरिक्ष में जाता है क्योंकि इसका अधिकांश भाग वायुमण्डलीय गैसों (CO2, मेथेन, जलवाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरो कार्बनों) के द्वारा अवशोषित हो जाता है। पूर्ण विश्वव्यापी उष्णता के लिए विभिन्न गैसों के योगदान को चित्र 2 में दर्शाया गया है। इन गैसों के अणु (molecules) ऊष्मा ऊर्जा (heat energy) विकिरित करते हैं और इसका अधिकतर भाग पृथ्वी की सतह पर पुनः आ जाता है और इसे फिर से गर्म करता है। यह चक्र अनेकों बार होता रहता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह और निम्नतर वायुमण्डल गर्म होता रहता है। ऊपर वर्णित गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहा जाता है क्योंकि इनके कारण ही ग्रीन हाउस प्रभाव होता है।
सर्वप्रथम फ्रांस के वैज्ञानिक जेफोरियर ने 1827 में हरित गृह प्रभाव नाम दिया था। ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ता जा रहा है। जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता हो रही है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6 डिग्री सेंटीग्रेड वृद्धि हुई है। इसमें से अधिकतर वृद्धि पिछले तीन दशकों में ही हुई है। अनुमानतः सन् 2100 तक विश्व का तापमान 1.4-5.8 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है। कि तापमान में इस वृद्धि से पर्यावरण में हानिकारक परिवर्तन होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विचित्र जलवायु परिवर्तन (जैसे कि El Nino Effect) होते हैं। इसके फलस्वरूप ध्रुवीय हिम टोपियों और अन्य जगहों जैसे हिमालय की हिम चोटियों का पिघलना बढ़ रहा है तथा अण्टार्कटिका की बर्फ भी पूरी तरह पिघल रही है। कई वर्षों बाद इससे समुद्र-तल का स्तर बढ़ेगा जो कई समुद्रतटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा।
विश्वव्यापी उष्णता को नियंत्रित करने हेतु जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना, ऊर्जा दक्षता में सुधार करना, वनोन्मूलन को कम करना तथा वृक्षारोपण करना और मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करना होगा। वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अंतराष्ट्रीय प्रयास भी किए जा रहे हैं।
प्रश्न 2.
ओजोन परत के ह्रास से होने वाले दुष्प्रभाव तथा इसको कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
उत्तर-
ओजोन परत के ह्रास से होने वाले दुष्परिणाम (Harmful effects of Ozone layer depletion)-
ब्लैक हॉल्स या ओजोन परत का ह्रास वस्तुतः वायु प्रदूषण का दुष्परिणाम है। इससे मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव, त्वचा कैंसर और उत्परिवर्तन की सामान्य दर में वृद्धि होती है। आज एरोसॉल छिड़काव से निकली फ्रियोन गैस तथा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन ऑक्साइड के क्षार समतापमण्डल (वायुमण्डल) में ओजोन स्तर की कमी में संपूर्ण मानव स्वास्थ्य को मौत के मुंह में धकेल दिया है। पौधों के ऊपर ओजोन विषाक्तता, पत्तियों पर हरिमाहीन धब्बों, प्रकाश संश्लेषण में मंदता तथा घटा हुआ उत्पादन वह वृद्धि के रूप में देखी जाती है। अतः ओजोन परत में कमी के कारण पराबैंगनी किरणें धरती पर आकर त्वचा कैंसर, ऊतक निर्माण में अवरोध, अल्बुमिन स्कंदन और पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न कर देगी व मौसम में परिवर्तन आकर जलवायु प्रभावित होगी। कॉर्निया और लैंस द्वारा अवशोषित पराबैंगनी किरणों के कारण फोटोकैराटाइटिस वे कैटेरेक्ट रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
ओजोन परत के ह्रास को रोकने के उपाय (Control measures of Ozone layer depletion)-
भूमण्डल के उत्तरी भारत की 4-5% ओजोन परत मानवनिर्मित गैसों के कारण पिछले वर्षों में नष्ट हो चुकी है। ओजोन परत की सर्वाधिक क्षति पश्चिम व पूर्व यूरोप के मध्य क्षेत्र, सोवियत संघ के दक्षिणी भाग, उत्तरी चीन वे दक्षिणी कनाडा में हुई है। कार्बन टेट्रा क्लोराइड (CCl4), क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC), मेथिल क्लोरोफार्म (MCF) के उपयोग व निर्माण पर पाबंदी हो। क्योंकि इनमें ओजोन की क्षति की उच्च शक्ति होती है। वायुमण्डल में क्लोरीन का स्तर कम किया जाना चाहिए तथा यह प्रयास भी हो कि वायुमण्डल में नाइट्रोजन तथा क्लोरीन के ऑक्साइड न बन पायें। वृक्षारोपण को बढ़ावा तथा वृक्षों की कटाई पर रोक होनी चाहिए। इस संबंध में शिखर सम्मेलन आयोजित होने चाहिए तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम के सशक्त उपाय होने जरूरी हैं । समस्त मानवता इसके प्रति जागरुक होवे ताकि विषाक्त गैसों का निर्माण बंद हो ।
ओजोन के अवक्षय (ह्रास) के हानिकारक प्रभाव को देखते हुए सन् 1987 में माँट्रियल (कनाडा) में अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर हुए। जिसे माँट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है। यह संधि 1989 से प्रभावी हुई। इसके अंतर्गत ओजोन अवक्षयकारी गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण हेतु प्रतिबंध लगाया गया तथा और अधिक अन्य प्रयास किए गए। प्रोटोकॉल में विकसित व विकासशील देशों के लिए अलग-अलग निश्चित दिशा निर्देश दिये गए जिससे CFCs व अन्य ओजोन अवक्षयकारी रसायनों के उत्सर्जनों को कम किया जा सके।
प्रश्न 3.
वायुमण्डल तापन पर एक लेख लिखिए।
उत्तर-
वैश्विक उष्णता मुख्यतः मानव की बढ़ती हुई आबादी तथा उसके क्रियाकलापों के कारण हो रही है। मानव द्वारा संसाधनों का दुरुपयोग, जैव इंधन भंडार का ह्रास है। मानव क्रियाओं द्वारा वातावरण में CO2 की मात्रा एवं ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोतरी तथा समताप मण्डल की ओजोन परत का ह्रास आदि इसके प्रमुख कारण हैं जो वैश्विक उष्णता में वृद्धि एवं भूमण्डलीय पर्यावरण परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार हैं।
ग्रीन हाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह व वायुमण्डल गर्म हो जाता है। यदि ग्रीन हाउस प्रभाव नहीं होता तो आज पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 15°C रहने के स्थान पर ठंडा होकर -18°C रहता।
ग्रीन हाउस प्रभाव के अंतर्गत पृथ्वी की ओर आने वाले सौर विकिरण का लगभग एक-चौथाई भाग बादलों और गैसों से परिवर्तित (reflect) हो जाता है (चित्र-1) तथा दूसरा चौथाई भाग वायुमण्डलीय गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है। लगभग आधा आने वाला (Incoming) सौर विकिरण पृथ्वी की सतह पर पड़ता है और उसे गर्म करता है व इसका कुछ भाग परावर्तित होकर लौट जाता है। पृथ्वी की सतह अंतरिक्ष (Space) में अवरक्त विकिरण (Infrared radiation) के रूप में ऊष्मा उत्सर्जित करती है। किंतु इसका बहुत छोटा भाग ही अंतरिक्ष में जाता है क्योंकि इसका अधिकांश भाग वायुमण्डलीय गैसों (CO2, मेथेन, जलवाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरो कार्बनों) के द्वारा अवशोषित हो जाता है। पूर्ण विश्वव्यापी उष्णता के लिए विभिन्न गैसों के योगदान को चित्र 2 में दर्शाया गया है। इन गैसों के अणु (molecules) ऊष्मा ऊर्जा (heat energy) विकिरित करते हैं और इसका अधिकतर भाग पृथ्वी की सतह पर पुनः आ जाता है और इसे फिर से गर्म करता है। यह चक्र अनेकों बार होता रहता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह और निम्नतर वायुमण्डल गर्म होता रहता है। ऊपर वर्णित गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहा जाता है क्योंकि इनके कारण ही ग्रीन हाउस प्रभाव होता है।
सर्वप्रथम फ्रांस के वैज्ञानिक जेफोरियर ने 1827 में हरित गृह प्रभाव नाम दिया था। ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ता जा रहा है। जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता हो रही है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6 डिग्री सेंटीग्रेड वृद्धि हुई है। इसमें से अधिकतर वृद्धि पिछले तीन दशकों में ही हुई है। अनुमानतः सन् 2100 तक विश्व का तापमान 1.4-5.8 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है। कि तापमान में इस वृद्धि से पर्यावरण में हानिकारक परिवर्तन होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विचित्र जलवायु परिवर्तन (जैसे कि El Nino Effect) होते हैं। इसके फलस्वरूप ध्रुवीय हिम टोपियों और अन्य जगहों जैसे हिमालय की हिम चोटियों का पिघलना बढ़ रहा है तथा अण्टार्कटिका की बर्फ भी पूरी तरह पिघल रही है। कई वर्षों बाद इससे समुद्र-तल का स्तर बढ़ेगा जो कई समुद्रतटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा।
विश्वव्यापी उष्णता को नियंत्रित करने हेतु जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना, ऊर्जा दक्षता में सुधार करना, वनोन्मूलन को कम करना तथा वृक्षारोपण करना और मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करना होगा। वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अंतराष्ट्रीय प्रयास भी किए जा रहे हैं।
प्रश्न 4.
अलनीनो प्रभाव को समझाइये।
उत्तर-
अलनीनो एक भूगोलीय प्रभाव है। अलनीनो नाम दक्षिणी अमेरिकी मछुआरों ने दिया है। यह शब्द स्पेनी भाषा से लिया गया है। जिसका अर्थ ‘क्राइस्ट शिशु’ है अर्थात् साल के अन्त में जीसस के जन्म के आस-पास उत्पन्न होने वाला प्रभाव।।
जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि वनों के विनाश, ग्रीन हाऊस प्रभाव व पृथ्वी पर बढ़ते तापक्रम, ओजोन परत का विनाश इत्यादि ने पर्यावरण को असन्तुलित कर दिया है। वर्ष 1982-83 में जब प्रशान्त महासागर के अचानक अधिक गर्म हो जाने से विश्व व्यापी प्रभाव पड़ा तब यह तथ्य सामने आया। इसी प्रभाव को ही अलनीनो प्रभाव कही गया। प्रतिवर्ष क्रिसमस के आसपास दक्षिणी अमेरिका के इक्वेडोर तथा पेरू के तटीय समुद्र में अलनीनो प्रभाव के कारण उफान आता है, इससे समुद्र का जल गर्म हो जाता है व वहाँ स्थित जन्तु व पौधों की मृत्यु हो जाती है। विश्व के अन्य हिस्सों में अलनीनो प्रभाव के कारण मौसम में परिवर्तन आया तथा जंगलों में आग लग गई।
समुद्र की धारायें पानी में उतार-चढ़ाव पैदा करती हैं, जिससे वातावरण प्रभावित होता है। प्रभाव के कारण समुद्र का जल असामान्य रूप से गर्म हो जाता है। यह प्रभाव दक्षिण तथा मध्य अमेरिका के समुद्री किनारों पर वर्ष के अंत में देखा गया। इससे समुद्र की मछलियां प्रभावित हुई तथा मौसम में भी परिवर्तन आने लगा। सामान्य रूप से वायु पश्चिम से बहती हुई समुद्री गर्म जल को आस्ट्रेलिया की ओर गति करती हैं जबकि ठंडा जल अमेरिकी समुद्री किनारों की ओर रहता है। इसके कारण समुद्री मछलियों को पोषण प्राप्त होता है। परंतु हर 3 से 7 वर्षों के बाद यह वायु की दिशा समाप्त हो जाती है। जिसके कारण गर्म जल दक्षिणी अमेरिका की ओर स्थानांतरित हो जाता है। अलनीनो प्रभाव समुद्री वायुमंडल तंत्र के रॉपिकल पेसिफिक क्षेत्र में परिवर्तन लाता है जिससे मौसम में असामान्य परिवर्तन होकर दक्षिणी अमेरिका और पेरू क्षेत्र में अधिक वर्षा होकर बाढ़ आ जाती है और पश्चिमी पेसिफिक क्षेत्र में सूखा पड़ जाता है व आस्ट्रेलिया में विनाशकारी ‘बुश फायर’ का संकट उत्पन्न हो जाता है।
अब तो यह स्पष्ट है कि पेरू तट के समीप (उत्तर से दक्षिण दिशा में) 30° से 60° दक्षिणी अक्षांशों के बीच एक गर्म धारा बहती है। जिसे अलनीनो धारा कहते हैं। शरद ऋतु में विषवत रेखा के विपरीत धारा दक्षिण की ओर अलनीनो प्रभाव उत्पन्न करती है। अलनीनो में ठीक उल्टे प्रभावों वाला तंत्र लानीनो होता है, जिसमें समुद्री सतह का तापमान सामान्य से नीचे चला जाता है। अलनीनो प्रभाव वस्तुत: संपूर्ण विश्व के मौसमी बदलाव के फलस्वरूप है।
प्रश्न 5.
एक आदर्श वातावरण किस प्रकार बनाये रखा जा सकता है। इस पर एक वैज्ञानिक निबन्ध लिखिए।
उत्तर-
एक आदर्श वातावरण जब ही तैयार किया जा सकता है। जबकि समस्त प्रकार के प्रदूषण ना हो जैसे वायु, जल, मृदा, शोर व नाभिकीय आदि। वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें जैसे CO2 CO, NO2, SO2, CFCs’ तथा मीथेन इत्यादि की मानक अनुसार मात्रा हो। अधिक से अधिक उद्योगों को शहर से बाहर स्थानांतरित करने चाहिए तथा उनमें पर्याप्त ऐसे यंत्र लगे हो ताकि कम से कम उत्सर्जित पदार्थों या धुएं में पर्यावरण प्रदूषण के कारक विद्यमान हो । ईंधन के रूप में CNG का उपयोग हो, बड़े शहरों में मेट्रो ट्रेन का प्रचलन, विद्युत से चलने वाले वाहनों का उपयोग, सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। पुराने जर्जर वाहनों को मार्ग पर से हटाना, शौचालयों का निर्माण, स्वच्छता के प्रति जागरूकता, जलाशयों में अनावश्यक पदार्थों का न डालना आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता है। नाभिकीय परीक्षण पर रोक तथा इनके अपशिष्टों के निष्पादन की पर्याप्त व्यवस्था हो । जंगलों के काटने पर प्रतिबंध हो, अधिक वृक्षारोपण हो व लकड़ी या कोयले को ना जलाया जाए। ओजोन परत का क्षय करने वाले कारकों पर गंभीरता से चिंतन । होकर इसकी रक्षा की जाए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परियोजनाओं को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। एक आदर्श पर्यावरण प्रदूषण रहित होना चाहिए। प्रत्येक नागरिक का यह एक नैतिक कर्तव्य है। जब तक नैतिक बोध नहीं होगा तब तक इस समस्या का निराकरण असंभव होगा।