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RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 मित्रता

RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 मित्रता

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 मित्रता

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
जब कोई युवा घर से निकलकर बाहरी संसार में आता है, तो उसे पहली कठिनाई होती है –
(क) रहने की
(ख) भोजन की
(ग) काम-धन्धे की
(घ) मित्र चुनने की
उत्तर:
(घ) मित्र चुनने की

प्रश्न 2.
किसी को मित्र बनाने से पूर्व हमें विचार और अनुसंधान करना चाहिए –
(क) उसकी बुद्धि का
(ख) उसकी दौलत का
(ग) उसके धैर्य का
(घ) उसके आचरण और स्वभाव का
उत्तर:
(घ) उसके आचरण और स्वभाव का

प्रश्न 3.
मित्रता की धुन सवार रहती है –
(क) बाल्यावस्था में
(ख) युवावस्था में
(ग) प्रौढावस्था में
(घ) छात्रावस्था में
उत्तर:
(घ) छात्रावस्था में

प्रश्न 4.
कुसंग के ज्वर के कारण क्षय होता है –
(क) समय का
(ख) श्रम का
(ग) साहस का
(घ) नीति, सद्वृत्ति एवं बुद्धि को
उत्तर:
(घ) नीति, सद्वृत्ति एवं बुद्धि को

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लोगों से हेलमेले का सिलसिला किसमें बदल जाता है?
उत्तर:
लोगों से हेलमेल का सिलसिला मित्रता में बदल जाता है।

प्रश्न 2.
विश्वासपात्र मित्र हमारी सहायता कैसे करेंगे?
उत्तर:
विश्वासपात्र मित्र हमारी संरक्षक बनकर तथा उचित मार्गदर्शक बनकर। हमारी सहायता करेंगे।

प्रश्न 3.
युवा पुरुष की मित्रता कैसी होती हैं?
उत्तर:
युवा पुरुष की मित्रता दृढ़, शान्त और गम्भीर होती है।

प्रश्न 4.
किसी युवा पुरुष की बुरी संगति को लेखक ने किसके समान बताया
उत्तर:
किसी युवा पुरुष की बुरी संगति को लेखक ने पैरों में बँधी पत्थर की चक्की के समान बताया है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता का जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता का जीवन पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है। इसी चुनाव पर उसके जीवन की सफलता निर्भर करती है, क्योंकि संगति का गुप्त प्रभाव व्यक्ति के आचरण पर बहुत अधिक पड़ता है। यदि मित्र विश्वासपात्र होंगे तो वे जीवन के लिए रक्षक, औषध और माता के समान होंगे। सच्चे मित्र हमारे सच्चे पथ-प्रदर्शक होते हैं। वे उत्तम संकल्पों से हमें दृढ़ करेंगे और दोषों तथा त्रुटियों से हमें बचायेंगे।

प्रश्न 2.
जो हमारी बात को ऊपर रखते हैं, उनका साथ हमारे लिए ज्यादा बुरा है। कैसे?
उत्तर:
लेखक के अनुसार उन लोगों की संगति हमारे लिए बुरी है, जो अधिक दृढ़संकल्प हैं क्योंकि उनकी बात बिना विरोध के ही हमें माननी पड़ती है, परन्तु जो लोग उचित-अनुचित की पहचान किये बिना ही हमारी बात को सदैव ऊपर रखते हैं, भली-बुरी सब बातों का आँख मूंदकर समर्थन करते हैं, उनकी संगत हमारे लिए अधिक हानिकारक है। ऐसी अवस्था में हमारे आचरण पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं रहता है। यदि हमें सहारे की आवश्यकता हो तो उनसे वह भी अपेक्षा करना व्यर्थ है।

प्रश्न 3.
प्राचीन विद्वान के मित्रता को लेकर क्या विचार हैं? लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन विद्वान ने मित्र को एक बड़े खजाने के समान माना है। वह हमारा बहुत बड़ा रक्षक होता है। जिसे विश्वासपात्र मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि संसार की सबसे बड़ी दौलत मिल गई। ऐसा मित्र हमारे उत्तम संकल्पों. को दृढ़ता प्रदान करता है तथा बुराइयों से हमें दूर रखता है। वह हमारे जीवन में औषध के समान है। वह मित्र हमें कुमार्ग से बचाकर सत्य, पवित्रता, मर्यादा और प्रेम का मार्ग दिखाता है।

प्रश्न 4.
मित्र का कर्तव्य क्या है?
उत्तर:
मित्र हमें ऊँचे और महान् कार्यों को करने में सब प्रकार से सहायक सिद्ध होते हैं। वे हमें हर प्रकार से सहायता देते हैं कि हम अपनी सामर्थ्य से भी बढ़कर कार्य करने में सफल हो जाते हैं। अच्छे मित्र का कर्तव्य होता है कि वह अपने मित्र को सत्य और दृढ़ता का पथ प्रदर्शित करता रहे तथा उसके जीवन को उन्नत और आनन्दमय बनाने में सहायता करता रहे।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मित्र बनाते समय मैत्री का उद्देश्य क्या होना चाहिए? विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
मित्र बनाते समय व्यक्ति यह ध्यान रखे कि मैत्री ऐसा सुगम साधन है जिससे आत्मशिक्षा का कार्य आसानी से हो जावे। स्व-संस्कार निर्माण में लगे युवाओं को यह उद्देश्य अपने ध्यान में रखना चाहिए कि हमारी मित्र ऐसा होना चाहिए जो विश्वासपात्र हो, जो हमारे जीवन को उत्तम एवं आनन्दमय बनाने में सहायक सिद्ध हो सके। वह ऐसा व्यक्ति हो जो हमारा सच्चा पथ-प्रदर्शक बन सके, जिस पर हमें पूरा विश्वास कर सकें। वह हमारे भाई के समान होना चाहिए जिसे हम अपना प्रीति–पात्र बना सकें। हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति हो। जिससे हम एक के हानि-लाभ को दूसरे का हानि-लाभ समझ सकें।

प्रश्न 2.
विश्वासपात्र मित्र को खजाना, औषध और माता के समान क्यों माना है?
उत्तर:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने विश्वासपात्र मित्र को जीवन की अनमोल निधि माना है, क्योंकि ऐसे मित्र हमें उत्तम संकल्पों से दृढ़ करते हैं, दोषों और त्रुटियों से बचाते हैं। वे हमारे जीवन में सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करते हैं। सच्चे मित्र श्रेष्ठ औषध के समान भी होते हैं, जो हमें कुसंग के ज्वर से बचाते हैं। उनमें एक कुशल वैद्य की-सी परख होती है। विश्वासपात्र मित्र एक अच्छी माता के समान होता है, उसमें माता के समान धैर्य और स्वभाव में कोमलता। का भाव होता है। वह सदैव हमारा हित साधता रहता है। सच्चा मित्र एक निपुण वैद्य और अच्छी माता की भाँति हमारे जीवन को सम्भालता और संवारता है।

प्रश्न 3.
अच्छे मित्र की क्या-क्या विशेषताएँ बताई गई हैं? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
मित्रता निबन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अच्छे मित्र की अनेक विशेषताओं का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार हैं –

  1. अच्छा मित्र दृढ़ चित्त और सत्य-संकल्प वाला होता है।
  2. अच्छा मित्र आत्मबल से परिपूर्ण होता है।
  3. अच्छा मित्र प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय का होता है।
  4. वह मृदुल स्वभाव का और पुरुषार्थी होता है।
  5. सत्यता और शिष्टता अच्छे मित्र के गुण हैं।
  6. अच्छा मित्र विश्वासपात्र होता है।
  7. अच्छा मित्र सहारा देने वाली भुजा या भाई के समान होता है।
  8. अच्छे मित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक होते हैं, जिन पर हम पूर्ण रूप से विश्वास कर सकते हैं।
  9. मित्र का हृदय सहानुभूति से परिपूर्ण और सदा सहायक होता है।
  10. एक अच्छा मित्र सुग्रीव के मित्र राम के समान होता है।

प्रश्न 4.
इंग्लैण्ड के विद्वान को राज-दरबारियों में स्थान न मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के विद्वान ने राजदरबारियों में स्थान न मिलने पर स्वयं को सौभाग्यशाली माना। उसने इस अवसर पर दुःखी न होकर सदैव अपने भाग्य को सराहा, क्योंकि युवावस्था में वहाँ बुरे लोगों की संगति में पड़ जाता तो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा पहुँचती। बुरे लोगों की संगति तो घडी भर के लिए भी हो तो वह हमारी बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है। दरबारियों के बीच दीर्घ काल तक रहने से उस विद्वान का तो सारा जीवन ही नष्ट हो जाता। बुराई चित्त पर अटल भाव धारण करके बैठती है जो मानव-मन की पवित्रता का नाश कर देती है, विवेक को कुंठित कर देती है जिससे भले-बुरे की पहचान करना भी कठिन हो जाता है। अतः वह विद्वान राजदरबारियों के कुसंग से बचकर प्रसन्न था।

प्रश्न 5.
इतिहास में वर्णित किसी मित्र का ऐसा प्रसंग लिखिए जो मित्र के जीवन में सकारात्मक सोच या परिवर्तन लाया हो।
उत्तर:
इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जब एक मित्र ने अपने मित्र की जीवन-दिशा पूर्णतः परिवर्तित कर श्रेष्ठता प्रदान की। उदाहरणार्थ-राजा घनानन्द के यहाँ एक मुरा नामक दासी थी, जिसे राजमहलों से निष्कासित कर दिया गया था और वह अपने पुत्र के साथ वन में रहने लगी थी। वह अपनी आजीविका के लिए मोर पालती थी और उनके पंखों को बेचा करती थी। उसका पुत्र बड़ी एकाग्रता, तत्परता और बहादुरी के साथ मयूरों की वन्यजीवों से रक्षा करता था।

एक बार चाणक्य ने उसे देखा और बहुत प्रभावित हुआ। चाणक्य ने उसे अपना मित्र बना लिया। धीरे-धीरे चाणक्य ने उस दासी पुत्र को विद्वान, कुशल राजनीतिज्ञ, श्रेष्ठ वीर और पराक्रमी व्यक्ति बनाया। उसका कुशल मार्गदर्शन करते हुए सैनिक शक्ति एकत्र की और एक दिन उसी दासीपुत्र युवक को सच्चे मित्र चाणक्य ने नन्दवंश को समाप्त कर राजसिंहासन पर बिठाया। वह मित्र चन्द्रगुप्त मौर्य कहलाया और मौर्य साम्राज्य का संस्थापक सम्राट् बना।

प्रश्न 6.
अगर आप मित्र बनाते हैं तो मित्र में किन बातों का ध्यान रखेंगे तथा आपके मित्र के प्रति क्या-क्या कर्तव्य होंगे? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
अगर मैं मित्र बनाऊँगा तो यह ध्यान रखेंगा कि मेरा मित्र सदाचरण वाला, सत्यनिष्ठ, पवित्र हृदय और मर्यादित जीवन जीने वाला हो। वह विश्वासपात्र हो तथा मेरा सच्चा पथ-प्रदर्शक व भाई के समान प्रीति-पात्र बन सके। एक अच्छा मित्र मिल जाने पर मेरा भी कर्त्तव्य बनता है कि मैं उसके जीवन को सफल और आननन्दमय बना सकें। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मैं अपने मित्र को बुरी संगत से बचाकर निरन्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर करने का प्रयत्न करूंगा। अपने मित्र की उच्च और महान् कार्यों के लिए सहायता करूंगा और साहस प्रदान करूंगा। मैं उसके आत्मबल को कभी कम नहीं होने दूंगा। अपने मित्र के प्रति पूर्ण सहानुभूति रखूगा और उसके जीवन में अच्छी आदतों का निर्माण करने में सक्रिय रहूंगा।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

प्रश्न
नोट – [व्याख्यात्मक प्रश्न के लिए ‘सप्रसंग महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ’ शीर्षक के अन्तर्गत देखिए।]

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
जिसका गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है, वह है –
(क) खान-पान
(ख) संगति
(ग) गुरु
(घ) धन-दौलत
उत्तर:
(ख) संगति

प्रश्न 2.
‘जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे तब हमें सचेत करेंगे।’ –
(क) परिवार के लोग
(ख) सहपाठी
(ग) विश्वासपात्र मित्र
(घ) पुलिस वाले
उत्तर:
(ग) विश्वासपात्र मित्र

प्रश्न 3.
किस अवस्था की मित्रता दृढ़, शान्त और गम्भीर होती है
(क) युवावस्था की
(ख) छात्रावस्था की
(ग) वृद्धावस्था की
(घ) शैशवावस्था की
उत्तर:
(क) युवावस्था की

प्रश्न 4.
शुक्लजी के अनुसार सबसे भयानक ज्वर कौनसा है –
(क) मैत्री का ज्वर
(ख) प्रेम का ज्वर
(ग) शत्रुता का ज्वर
(घ) कुसंग को ज्वर
उत्तर:
(घ) कुसंग को ज्वर

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज में प्रवेश करके कार्य आरम्भ करते समय युवा के मनोभाव कैसे होते हैं?
उत्तर:
जब एक युवा समाज में प्रवेश करके कार्य आरम्भ करता है, उस समय उसका चित्त कोमल और हर तरह के संस्कार ग्रहण करने योग्य; भाव अपरिमार्जित और प्रवृत्ति अपरिपक्व होती है।

प्रश्न 2.
हमसे अधिक दृढ़संकल्प के लोगों का साथ करना क्यों बुरा है?
उत्तर:
हमसे अधिक दृढ़संकल्प के लोगों का साथ करना बुरा है, क्योंकि, हमें उनकी प्रत्येक अच्छी-बुरी बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है।

प्रश्न 3.
युवा किस आधार पर किसी को तुरन्त अपना मित्र बना लेते हैं?
उत्तर:
युवा लोग बिना विवेक के किसी का हंसमुख चेहरा, बातचीत का ढंग, थोड़ी-सी चतुराई या साहस, ऐसी ही दो-चार बातें देखकर उसे चटपट अपना मित्र बना लेते हैं।

प्रश्न 4.
हमें उत्तमतापूर्वक जीवन-निर्वाह करने में कौन सहायक होता है?
उत्तर:
विवेक से सोच-समझ कर बनाया गया विश्वासपात्र मित्र हमें उत्तमतापूर्वक जीवन-निर्वाह करने में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
शुक्लजी के अनुसार हमारी जान-पहचान के लोग कैसे होने चाहिए?
उत्तर:
शुक्लजी के अनुसार हमारी जान-पहचान के लोग ऐसे होने चाहिए जिनसे हम स्व-संस्कार निर्माण में कुछ लाभ उठा सकें तथा जो हमारे जीवन को उत्तम और आनन्ददायक बनाने में कुछ सहायता दे सकते हों।

प्रश्न 6.
कोई युवा पुरुष कैसे युवाओं को आसानी से पा सकता है?
उत्तर:
कोई युवा ऐसे युवा पुरुषों को आसानी से पा सकता है, जो उसके साथ थियेटर देखने जायेंगे, नाच-रंग में जायेंगे, सैर-सपाटे में जायेंगे और भोजन का निमन्त्रण स्वीकार करेंगे।

प्रश्न 7.
कैसी भावनाएँ बार-बार हृदय में उठती और बेंधती हैं?
उत्तर:
जिन बुरी भावनाओं से हम दूर रहना चाहते हैं, जिन बातों को हम याद करना नहीं चाहते हैं, वे ही बार-बार हृदय में उठती और बेंधती हैं।

प्रश्न 8.
शुक्लजी के अनुसार हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय क्या है?
उत्तर:
शुक्लजी के शब्दों में हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगत की छूत से बचें।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“यदि विवेक से काम लिया जाये तो यह भय नहीं रहता।” लेखक यहाँ किस भय की बात कर रहा है? समझाइये।
उत्तर:
लेखक कहता है कि युवा लोग मित्र बनाने में विवेक से काम न लेकर भावों में बहकर, बिना सोचे-समझे गलत लोगों को अपना मित्र बना लेते हैं। ऐसे लोग यदि दृढ़संकल्प के हों तो हमें उनकी हर भली-बुरी बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है, इसलिए उनकी संगति बुरी होती है, लेकिन ऐसे लोगों का साथ और भी बुरा है जो हमारी ही बात को ऊपर रखते हैं, क्योंकि ऐसी स्थिति में हम पर नियन्त्रण रखने वाला कोई सहारा नहीं रहता। –

प्रश्न 2.
“ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए।” लेखक कैसी मित्रता करने के लिए कहता है?
उत्तर:
शुक्लजी कहते हैं कि हमें मित्र बनाने में विवेक से काम लेना चाहिए। किसी को मित्र बनाने से पूर्व उसके आचरण, स्वभाव, मनोवृत्तियों आदि का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अच्छी तरह जानकर-समझकर बनाया हुआ मित्र हमारा बहुत रक्षक होता है। वह हमें बुराइयों से बचाकर सन्मार्ग पर चलाता है। हमारे जीवन को आनन्दमय, उत्साहपूर्ण, सत्यनिष्ठ, पवित्र और मर्यादित बनाने में विश्वासपात्र मित्र बहुत सहायक होता है।

प्रश्न 3.
“…………… तो ईश्वर हमें उनसे दूर ही रखे।” लेखक किन लोगों से दूर रहने की बात कहता है?
उत्तर:
शुक्लजी हमारी जान – पहचान के ऐसे लोगों से दूर रहने की बात कहते। हैं जो हमारे लिए न तो कोई बुद्धिमानी या विनोद की बातचीत कर सकते हैं, न कोई अच्छी बात बतला सकते हैं, न सहानुभूतिपूर्वक हमें ढाँढस बँधा सकते हैं, न हमारे आनन्द में सम्मिलित हो सकते हैं, न हमें कर्तव्य का ध्यान दिला सकते

प्रश्न 4.
“कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है।” कैसे?
उत्तर:
बुरी संगति विशेषकर युवा लोगों के जीवन में सबसे भयानक बुराई है। यह उनकी नीति, सद्वृत्ति और बुद्धि का नाश कर देती है। बुरी संगति व्यक्ति को निरन्तर अवनति की ओर ले जाती है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होती है, उसके मन की पवित्रता का नाश कर देती है। बुरे लोगों के घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

प्रश्न 5.
‘अतः तुम पूरी चौकसी रखो, ऐसे लोगों को साथी न बनाओ।” लेखक कैसे लोगों को साथी न बनाने की बात कहता है?
उत्तर:
लेखक ऐसे लोगों को साथी न बनाने की बात कहता है जो अश्लील, अपवित्र और फूहड़ बातें करके हमें हँसाने या मनोरंजन करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग हमें धीरे-धीरे बुरी बातों के अभ्यस्त कर देते हैं और फिर हमें इन बातों से घृणा कम हो जाती है। हमारा विवेक कुंठित हो जाता है, हमें भले-बुरे । की पहचान नहीं रह जाती और हम बुराई के भक्त बन जाते हैं।

प्रश्न 6.
हमारी जान-पहचान के लोग कैसे होने चाहिए?
उत्तर:
हमारी जान – पहचान के लोग ऐसे होने चाहिए जिनसे हम अपने चरित्र निर्माण में कुछ लाभ उठा सकें, जो हमारे जीवन को उत्तम और आनन्दमय बनाने में कुछ सहायता कर सकें, जिनका आचरण ठिकाने का हो, शुद्ध हृदय के हों और जिनसे किसी प्रकार का धोखा होने की आशंका न हो।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी युवा को घर से बाहर निकलकर मित्र चुनने में कठिनता क्यों महसूस होती है?
उत्तर:
मनुष्य – जीवन को संस्कारित, सफल और सुखमय बनाने के प्रयत्नों में मित्रों का बड़ा योगदान रहता है। एक युवा पुरुष को बाहरी संसार में निकलकर सच्चा मित्र चुनने में बड़ी चुनौती का सामना करना होता है। किसी युवा के बाहरी रंग-रूप, वाक्चातुर्य आदि से प्रभावित होकर ही उसे मित्र नहीं बनाया जा सकता, अपितु उसका अतीत, उसका आचरण, चरित्र, स्वभाव आदि को अच्छी तरह जाँचनापरखना होता है। सच्चा और विश्वासपात्र मित्र मिल जाना बड़े भाग्य की बात होती है। किसी युवा का चित्त कोमल, अपरिमार्जित, अपरिपक्व और संस्कार ग्रहण करने योग्य होता है। उसकी अवस्था कच्ची मिट्टी की तरह होती है, जिसे राक्षस या देवता, किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। अतः ऐसी कोमल अवस्था में निर्मल हृदय, पवित्र मन और सुसंस्कारित मित्र की आवश्यकता होती है, जिसे चुनना बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है।

प्रश्न 2.
मित्र बनाने के सन्दर्भ में लेखक को किस बात का आश्चर्य होता है और क्यों?
उत्तर:
आचार्य शुक्ल कहते हैं कि कितने आश्चर्य की बात है कि लोग घोड़ा खरीदते हैं तो उसके गुण-दोष की परख कर लेते हैं, पर किसी को मित्र बनाने में उसके पूर्व आचरण और स्वभाव आदि का कुछ भी विचार और अनुसंधान नहीं करते। वे उसमें सब बातें अच्छी ही अच्छी मानकर विश्वास जमा देते हैं। यह स्थिति लेखक की दृष्टि में ठीक नहीं है। उनके अनुसार युवाओं को मित्र बनाते समय विवेक से काम लेना चाहिए। जीवन में मित्र का बहुत बड़ा योगदान होता है। यदि मित्र सही आचरण और विश्वास का है, तो वह एक युवा की आत्म शिक्षा के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। सच्चा मित्र उसके जीवन को सफल और आनन्दमय बनाने में बहुत सहायक होगा। यदि उसका आचरण अच्छा नहीं है तो वह जीवन में हानि भी बहुत बड़ी पहुँचायेगा।

प्रश्न 3.
“बाल-मैत्री में जो मग्न करने वाला आनन्द होता है, वह और कहाँ?” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाल-मैत्री या छात्रावस्था की मित्रता में बड़ा आनन्द होता है। वह निश्छल हृदयों की निर्मल मैत्री होती है जो उन्हें आनन्द के सागर में डुबो देती है। इस अवस्था की मित्रता मग्न कर देने वाली होती है। उनमें अगाध प्रेम और मधुरता का भाव भरा होता है। एक दूसरे के प्रति अपार विश्वास होता है। उनके मासूम और कोमल हृदय से बहुत मधुर और भावपूर्ण उद्गार उमड़ते रहते हैं। उन्हें अपना वर्तमान जीवन अपने मित्र के सान्निध्य में बहुत ही आनन्दपूर्ण प्रतीत होता है और भविष्य की सुन्दर और सुनहरी मधुर कल्पनाएँ उनकी आँखों में तैरती रहती हैं। उनके हृदय पर मित्र की बातों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है और तुरन्त ही उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। इस प्रकार बाल-मैत्री की धुन उनके मन पर सदैव सवार रहती है। उन जैसी मधुरता और अनुरक्ति बड़ों की मैत्री में देखने को नहीं मिलती।

प्रश्न 4.
स्कूल के बालक की मित्रता और एक युवा पुरुष की मित्रता में क्या भिन्नता है? समझाइये।
उत्तर:
एक सहपाठी बालक की मित्रता हृदय से उमड़ी पड़ती है, जिसमें मग्न कर देने वाला आनन्द होता है। उसमें हृदय की मधुरता भरी होती है और अपार विश्वास होता है। मित्र की बातों को तुरन्त मानकर अंगीकार कर लेने का भाव होता है। दूसरी ओर एक युवा पुरुष की मित्रता’ एक स्कूली बालक की मित्रता से दृढ़, शान्त और गम्भीर होती है। जीवन-संग्राम में साथ देने वाले युवा मित्रों में इनसे कुछ अधिक बातें होती हैं। वे मित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक होते हैं, जिन पर पूर्णतः विश्वास किया जाता है। ये मित्र भाई के समान होते हैं जिसे हम अपना प्रीतिपात्र बना सकते हैं। ऐसे मित्र एक-दूसरे के सच्चे हितैषी एवं सहानुभूतिपूर्ण हृदय वाले होते हैं।

प्रश्न 5.
आचार्य शुक्ल के अनुसार हमें कैसे मित्रों की खोज में रहना चाहिए?
उत्तर:
आचार्य शुक्ल के अनुसार हमें ऐसे मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो, जो हमें उच्च और महान् कार्यों में इस प्रकार सहायंता दे सकें कि हम अपनी सामर्थ्य से अधिक काम कर सकें। हमें ऐसे मित्रों की आवश्यकता है, जो दृढ़चित्त और सत्य-संकल्प के हों। हमें ऐसे मित्रों को पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम को पल्ला पकड़ा था। शुक्लजी कहते हैं कि मित्र ऐसे हों जो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे छोड़ सकें और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा नहीं होगा। अतएव मित्रों की खोज करते समय या किसी से मित्रता करते समय इन बातों पर अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।

प्रश्न 6.
जान-पहचान वालों के सम्बन्ध में आचार्य शुक्ल के क्या विचार हैं? समझाइये।
उत्तर:
शुक्लजी के अनुसार आजकल जान-पहचान बढ़ाना कोई कठिन काम नहीं है। हर किसी से जान-पहचान आसानी से हो सकती है। परन्तु हमारी जानपहचान के लोग ऐसे हों जिनसे हम अपने जीवन को उत्तम और आनन्दमय बनाने में कुछ लाभ उठा सकें। उनका चरित्र अच्छा हो, जो शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिनका आचरण प्रेरणादायी और जीवन में ढालने योग्य हो। कोई भी युवा पुरुष ऐसे अनेक युवा पुरुषों से जान-पहचान बढ़ा सकता है जो उसके साथ मौज-मस्ती के कार्य-कलापों में भाग लेने को तैयार रहते हैं। लेकिन ऐसे जान-पहचान के लोगों से कुछ हानि न होगी तो लाभ भी नहीं होगा। परन्तु यदि हानि हुई तो बहुत अधिक होगी। अतः हमें उन्हीं लोगों से जान-पहचान रखनी चाहिए जिनका आचरण उत्तम हो और जो बुरी प्रवृत्तियों से दूर हों।

प्रश्न 7.
‘बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है।’ कैसे?
उत्तर:
यह कटु सत्य है कि बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं। हम सभी इस सत्य को स्वीकारते हैं कि भद्दे और फूहड़ गीत जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं, उतनी जल्दी कोई गम्भीर या अच्छी बात नहीं। जिन बुरी भावनाओं को हम दूर रखना चाहते हैं, जिन बातों को हम याद नहीं करना चाहते, वे बार-बार हृदय में उठती हैं। अतः लेखक का यही कहना है कि हमें सावधान रहना चाहिए कि ऐसे लोगों को साथी न बनाएँ जो अश्लील, फूहड़ और अपवित्र बातों से हमारा मनोरंजन करना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी बुराई है, यह हमारे चित्त। और हृदय को अपवित्र कर देगी और चित्त पर छायी रहेगी। इसलिए यह कहना पूर्णतः सत्य है कि बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है।

प्रश्न 8.
बुरी संगत की छूत से बचने के लिए शुक्लजी ने कौन-कौन-से तर्क दिए हैं? समझाकर लिखिए।
उत्तर:
शुक्लजी युवाओं को बुरी संगत की छूत से बचाने के लिए पुरजोर शब्दों में कहते हैं कि इससे दूर रहो। यदि एक बार कोई युवा बुराई में लिप्त हो गया तो आगे चलकर उससे बचना मुश्किल है, क्योंकि एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है, तब फिर यह नहीं देखता है कि वह कहाँ और कैसी जगह पैर रखता है। वह धीरे-धीरे उन बुरी बातों का अभ्यस्त हो जाता है और उसकी घृणा कम होती चली जाती है। तत्पश्चात् उसे बुराई से चिढ़ नहीं होती है, उसका विवेक कुण्ठित हो जाता है, उसे भले-बुरे की पहचान नहीं रह जाती है और वह बुराई का भक्त बन जाता है। अतः बुरी संगत की छूत से बचो, यह पुरानी कहावत सत्य ही है कि काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय। एक लीक काजल की लालि है पै लागि है।”

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय दीजिए।
अथवा
“आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के महान् निबन्धकार हैं। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
अथवा
“शुक्लजी हिन्दी साहित्य के बेजोड़ निबन्धकार और उच्च कोटि के समालोचक हैं।” उक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ निबन्धकार हैं, इस तथ्य का प्रमाण उनकी प्रसिद्ध रचना ‘चिन्तामणि’ है। इनके निबन्धों में विचारों की नवीनता, सूक्ष्म विवेचना, गम्भीरता, मनोविकारों का सटीक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण आदि विशेषताएँ एक साथ देखी जा सकती हैं। विषय की मौलिकता, रसात्मकता तथा हास्य-व्यंग्य का समावेश शुक्लजी के निबन्धों में पर्याप्त मात्रा में दिखाई देता है। इनके निबन्धों में व्यक्तित्व एवं विषय का समन्वय बहुत सहज रूप में हुआ है। शुक्लजी जैसे महान् निबन्धकार व आलोचक शताब्दियों के बाद एक-दो दिखाई देते हैं। इनकी भाषा में प्रौढ़ता, गम्भीरता, परिष्कृत शब्दावली एवं प्राञ्जलता का गुण विद्यमान है।

निबन्धकार के साथ ही शुक्लजी उच्चकोटि के साहित्य-समालोचक भी हैं। इनके समीक्षात्मक लेखों में इनकी विद्वता एवं बहुज्ञता के दर्शन होते हैं। इनके रस मीमांसा’ नामक ग्रन्थ में यह विशेषता स्पष्टतः परिलक्षित होती है। शुक्लजी की कृतियाँ चिन्तामणि, रस मीमांसा, त्रिवेणी, हिन्दी साहित्य का इतिहास, जायसी, ग्रन्थावली आदि हमारे साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।

मित्रता लेखक परिचय-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ निबन्धकार हैं। ये उच्च कोटि के समालोचक हैं। इनके निबन्धों में मौलिकता एवं गम्भीरता के साथ ही रोचकता का गुण भी समाहित है। हिन्दी ग्रन्थों की, वैज्ञानिक तरीके से समीक्षा करके इन्होंने अपनी विद्वता, चिन्तनशील व्यक्तित्व एवं सूक्ष्म विवेचना-शक्ति का परिचय दिया है। शुक्लजी के निबन्ध मानव के मनोभावों की यथार्थ एवं सूक्ष्म अभिव्यक्ति करते हैं। शुक्लजी की भाषा में संस्कृतनिष्ठ शब्दावली की अधिकता है। इनकी भाषा में प्रौढ़ता, गम्भीरता एवं प्राञ्जलता का गुण समाविष्ट है। सूत्रात्मक शैली को सजीवता प्रदान करने के लिए इन्होंने हास्य-व्यंग्य का समावेश भी बड़ी कुशलता के साथ किया है। अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध निबन्धकार बेकन की भाँति आचार्य शुक्ल हिन्दी साहित्य के बेजोड़ निबंधकार हैं। शुक्लजी ने चिन्तामणि’, ‘रस मीमांसा’, ‘त्रिवेणी’, हिन्दी साहित्य का इतिहास’, ‘जायसी ग्रन्थावली की भूमिका’ जैसी अनुपम कृतियों से हिन्दी साहित्य की महान् सेवा की है।

पाठ-सार

सही मित्रों का चुनाव-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मानना है कि जब कोई युवा घर से बाहर निकलकर समाज में प्रवेश करता है तब अनेक लोगों से उसका मिलना-जुलना होता है, उनसे परिचय बढ़ता है और यह हेल-मेल मित्रता में बदल जाता है। शुक्लजी कहते हैं कि युवाओं को मित्रता करने से पहले उनके आचरण, व्यवहार, चरित्र आदि की पूर्ण जानकारी कर लेनी चाहिए। मित्रों के सही चुनाव से . ही जीवन सफल हो पाता है।

युवा मन पर संगति का प्रभाव-युवाओं का चित्त बहुत ही कोमल और हर तरह के भाव ग्रहण करने योग्य होता है। इस अपरिपक्व अवस्था में बाहरी चीजों का प्रभाव बहुत शीघ्र और स्थायी रूप से पड़ता है। युवा प्रायः कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें राक्षस या देवता, किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। अतः संगति करते समय बड़े विवेक की आवश्यकता होती है।

अच्छा या विश्वासपात्र मित्र-मैत्री का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व होता है। जीवन के व्यवहार में उसका बहुत बड़ा योगदान रहता है। इससे आत्मशिक्षा का कार्य बड़ी आसानी से हो जाता है। शुक्लजी ने एक प्राचीन विद्वान् का कथन उद्धृत करके स्पष्ट किया है कि विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है। जिसे ऐसा मित्र मिल जाये उसे समझना चाहिए कि खजाना मिल गया।” विश्वासपात्र मित्र हमारे चित्त को दृढ़ संकल्पों से युक्त बनाते हैं, सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करते हैं तथा जब हम कुमार्ग पर पैर रखते हैं तो हमें सचेत करते हैं।

छात्रावस्था की मित्रता और युवावस्था की मित्रता-विद्यालयी छात्र में मित्रता की धुन सवार रहती है। बालकों के मन में मित्रता की उमंग रहती और मग्न कर देने वाला आनन्द होता है। उनके हृदय में मित्र के प्रति अत्यधिक मधुरता, अनुरक्ति, अपार विश्वास और भविष्य के प्रति लुभावनी कल्पनाएँ होती हैं। मित्र की बातें हृदय पर तुरन्त प्रभाव डालती हैं और शीघ्र ही मान ली जाती हैं।

युवा पुरुष की मित्रता बालक की मित्रता से भिन्न दृढ़, शान्त और गम्भीर होती है। केवल बाहरी सुन्दरता या आकर्षक रूप, चाल-ढाल आदि के आधार पर बनाये गये मित्रों से जीवन के संघर्षों में उचित साथ नहीं मिल पाता है। सच्चे मित्र तो सच्चे पथ-प्रदर्शक, भाई के समान प्रीति-पात्र, सहानुभूतिपूर्ण हृदय वाले एवं विश्वसनीय होने चाहिए।

मित्र का कर्तव्य-शुक्लजी के अनुसार सच्चा मित्र हमें अच्छे कार्यों में इस प्रकार सहायता देता है और हमारा मनोबल बढ़ाता है कि हम अपनी सामर्थ्य से भी बढ़कर काम कर जाते हैं। मित्र हमारा आत्मबल बढ़ाकर सुग्रीव के मित्र राम की तरह बड़े सहायक सिद्ध होते हैं तथा शुद्ध हृदय और विश्वसनीय होते हैं जो हमारे जीवन को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारी जान-पहचान के लोग कैसे हों-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार आजकल जान-पहचान बढ़ाना कोई बड़ी बात नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि हमारी जान-पहचान के लोग ऐसे हों, जिनसे हमें हमारे जीवन को उत्तम और आनन्दमय बनाने में कुछ सहायता मिल सके। जो लोग बुद्धिमानीपूर्ण तथा विनोदपूर्ण बात कर सकें, हमें अच्छा मार्ग बता सकें, हमें कर्त्तव्य का ज्ञान करा सकें ऐसे लोग ही हमारी जान-पहचान के होने चाहिए। बुरे लोगों की जान-पहचान या संगति हमें बड़ी हानि पहुँचा सकती है।

बुरी संगत का प्रभाव और उससे बचने की सलाह-शुक्लजी ने कुसंग को सबसे भयानक ज्वर बताया है। बुरी संगति हमारी नीति, सद्वृत्ति और बुद्धि का नाश कर देती है। यह हमें निरन्तर अवनति के गढ्ढे में ले जाती है। बुरी संगति तो ऐसी काजल की कोठरी के समान है, जिसमें प्रवेश करने वाला व्यक्ति कितना ही समझदार हो, वह निष्कलंक नहीं रह सकता। कहने का आशय यह है कि बुरी संगत से सदैव बचना चाहिए।

♦ कठिन शब्दार्थ-

परिणत = बदला हुआ। अपरिमार्जित = अशुद्ध, संस्कार रहित। अपरिपक्व = अविकसित, नादान। अनुसंधान = खोज करना, जानकारी प्राप्त करना। सुगम = आसान। त्रुटियों = गलतियों। पुष्ट = पोषित। कुमार्ग = गलत रास्ता। हतोत्साहित = उत्साहहीन। धुन सवार होना = किसी कार्य की लगन या उमंग होना। बाल-मैत्री = बचपन की मित्रता। खिन्नता = दु:ख या उदासीनता। अनुरक्ति = प्रेम। उद्गार = हृदय के भाव। कल्पित = कल्पना किये गये। प्रतिभा = प्रखर बुद्धि। प्रीति-पात्र = स्नेह के योग्य। मृदुल = कोमल। सत्यनिष्ठ = सच्चाई में निष्ठा रखने वाला। विनोद = मनोरंजन, हास्यपूर्ण। कुसंग = बुरी संगति। क्षय = नाश। बाहु = भुजा। फूहड़ = भद्दी। कुण्ठित = विफलताजन्य घोर निराशा। निष्कलंक = कलंक रहित, उज्ज्वल। लीक = रेखा, निशान॥

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